Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 765
________________ - ७५४ आचारांगसूत्रे वा दास्यसि त्वमिति पूर्वेणान्वयः 'तहप्पगारं पायं सयं वा जार पडिगाहिज्जा' तथाप्रकारम्तथाविधम् अलावूदारुमृत्तिकापात्रान्यतमं पात्रं स्वयं वा साधुः यावद् याचेत, परो वा गृहस्थः तस्मै साधवे दद्यात्, तथाविधं पात्रम् प्रामुकम् अचित्तम् एषणीयम् आधाकर्मादिदोषरहितं मन्यमानः प्रतिग्रहीयात, 'दुच्चा पडिमा' इति द्वितीया प्रतिमा पात्रैषणारूपा प्रतिज्ञा बोध्या, अथ तृतीयां पात्रैषणां प्ररूपयितुमाह-'अहावरा तच्चा पडिमा'-अथ-अनन्तरम् अपरा ततीया प्रतिमा-पात्रैषणारूपा प्रतिज्ञाप्ररूप्यते-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'से जं पुण पायं जाणिज्जा' स यत् पुनः पात्रं जानीयात् 'संगइयं वा वेजइयंतियं वा' स्वाङ्गिकं वा उपभुक्तप्रायम् पूर्वमुपभोगविषयीकृतं, वैजयन्तिकं वा-द्वित्रपात्रेषु सत्सु. या 'मट्टियापायं वा मृत्तिका-मिटि के पात्र को दोगे? इस तरह 'तह पगारं पायं मयं वा जाव' उस अलाबू वगैरह के पात्र को साधु स्वयं याचना करे या गृहस्थ श्रावक हो उस साधु को दे देवे, बाद में इस प्रकार के तुम्यो वगैरह पात्र को प्रासुक-अचित्त तथा एषणीय-आधाकर्मादि षोडश दोषों से रहित समझते हुए 'पडिगाहिज्जा' साधु ग्रहण करले, 'दोच्चा पडिमा' यह द्वितीय पात्रैषणा रूपा प्रतिमा-प्रतिज्ञा समझनी चाहिये, अब तृतीय पात्रैषणा प्रतिमा प्रतिज्ञा को बतलाते हैं 'अहावरा तच्चा पडिमा से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, से पुण पायं जाणिजा' अथ-द्वितीय प्रतिमा रूप पावणा के निरूपण के बाद तीसरी प्रतिमा-पात्रैषणा रूपप्रतिज्ञा बतलायी जाती है-वह पूर्वोक्त भिक्षुकसंयमवान साधु और भिक्षुकी-साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से पात्र को जान ले कि 'संगइयं वा' यह पात्र स्वाङ्गिक है अर्थात् पहले उस का उपभोग कर लिया गया है अतएव यह उपभुक्त प्राय है अथवा 'वेजइयंतियं वा' यह पात्र बैजयन्तिक है अर्थात दो तीन पात्रों के रहने पर क्रम से उपभुज्यमान है ऐसा पायवा' भाटिना पात्रन भने माप ? 'तहप्पगारं पाय सय वा जाव' मा प्रारना તંબડા વિગેરેના પાત્રની સાધુએ સ્વયં યાચના કરવી અથવા ગૃહસ્થ શ્રાવક જ એ સાધુને આપે તે પછી આ પ્રકારના તુંબડા વિગેરેના પાત્રોને પ્રાસુક-અચિત્ત તથા એષણીય આધાકદિ સેળ દેશે વિનાના સમજીને સાધુએ તે ગ્રહણ કરી લેવા આ બીજી પાવૈષણા રૂપા પ્રતિમા પ્રતિજ્ઞા સમજવી. वत्री पाषण। ३५ प्रतिभा-प्रतिज्ञा सतावे छे. 'अहावरा तच्चा पडिमा' હવે બીજી પ્રતિમા રૂપ પાવૈષણનું નિરૂપણ કર્યા પછી ત્રીજી પ્રતિમા–પાવૈષણા રૂપ प्रतिज्ञा वामां आवे छे.-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते सयमशीय साधु सने साथी 'से जं पुण पाय जाणिज्जा' वक्ष्यमा शत पात्रने से 3-241 पात्र 'संगहय वा' સાંગતિક એટલે કે પહેલાં તેનો ઉપયોગ કરી લીધેલ છે જેથી તે ઉપભુક્ત પ્રાય છે. अथवा 'वेजइयं तियं वा' मा पात्र वैयdिs छ, अथवा मे पात्र डाय तो मथा श्री सागसूत्र :४

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