Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे संख्याकैः परिहितैरपि परस्परम् असंधीयमानैः असंश्लिष्टैः सद्भिः 'अइपच्छा एगमेगेन संसिविज्जा' अथ पश्चात् असंश्लेषणानन्तरम् एकं वस्त्रम् एकेन अपरेण वस्त्रेण संसीव्यात्सूच्यादिना संश्लेषये दितिभावः ॥सू. १॥
मूलम्-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयणमेराए वत्थपडियाए नो अभिसंधारिज गमणाए ॥सू० २॥ ___ छाया-स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा परम् अर्द्धयोजनमर्यादायाः वस्त्रप्रतिज्ञया नो अभिसंधारयेद् गमनाय ।। सू०२॥
टीका-सम्प्रति साधूनां साध्वीनाश्च वस्त्रयाचनार्थम् गमनावधि निरूपयति-'से मिक्खू वा भिक्खुगी वा स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'परं अद्धजोयणमेराए' परम् अद्धयोजनमर्यादाया:-अर्द्धयोजनात्परं क्षेत्रं 'वत्थपडियाए' वस्त्रप्रतिज्ञया-वस्त्रयाचनार्थम् 'नो अभिसंधारिज गमणाए' नो अभिसंधारयेद्-मनसि विचारयेद् गमनाय-गन्तुं हृदि संकल्पमपि न कुर्यादित्यर्थः। एतावता अर्द्धयोजन पर्यन्तमेव क्षेत्रं वस्त्रग्रहणार्थ गच्छेदिति फलितम् ।।सू ० २॥ चार चादरों को पहन लेने पर भी परस्पर संबंध नहीं हो पाती हो तो 'अह पच्छा एगमेगेन संसिविसिज्जा एक वस्त्र को दूसरे वस्त्र से सी लेना चाहिये अर्थात् सूई से परस्पर दो चद्दरों को सीकर जोड लेना चाहिये क्योंकि संयमका पालन करना साध्या का मुख्य उद्देश्य है ॥१॥ ___ अब साधु और साध्वी को वस्त्र याचना करने के लिये गमन की अवधि बतलाते हैं
टीकार्थ-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा, अद्ध जोयण मेराए' वह पूर्वोक्त भिक्षु-संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी आधा योजन से अधिक क्षेत्र में अर्थात् दो क्रोश से अधिक दूर में 'वत्थपडियाए' वस्त्र की याचना के लिये 'नो अभिसंधारिजा गमणाए' मन में जाने का विचार नहीं करे, एतावता आधा योजन के अन्दर ही किसी भी गाम में वस्त्र याचना के लिये साधु और ज्जमाणे' ५२२५२ साधित न थाय तो 'अह पच्छा एगमेगेन संसिविज्जा' ४ वसन બીજા વસ્ત્ર સાથે સીવી લેવું. અર્થાત્ સેઈથી બે ચાદરોને પરસ્પર સીવીને જેડી લેવી. કેમ કે સંયમનું પાલન કરવું એજ સાધુ સાધ્વીને મુખ્ય ઉદ્દેશ હોય છે. ૧
ઉદ્દેશક પહેલે હવે સાધુ અને સાધ્વીને વસ્યાચન કરવા ગમન કરવાની અવધિ સૂત્રકાર બતાવે છે
-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वात सयमशीर साधु मन साली 'पर अद्धजोयणमेराए' मा योनयी धारे क्षेत्रमा यातू मे sil qधारे ६२ 'वत्थ पडि. याए' पनी यायना ४२३॥ माटे 'नो अभिसंधारिज्जा गमणाए' भवानी मनमा विद्यार કરે નહીં. એટલે કે અર્ધા જન અર્થાત્ બેગાઉની અંદર જ કેઇપણ ગામમાં વસ્ત્ર
श्री सागसूत्र :४