Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे
साधुः यानि पुनः वस्त्राणि वक्ष्यमाणरूपाणि जानीयात् 'विरूवरूवाई महद्धणमुल्लाई' विरूपरूपाणि नाकारकाणि महाधनमूल्यानि - महार्घाणि जानीयादिति पूर्वेणान्वयः, 'तं जहा ' तद्यथा - 'आईणगाणि वा' आजिनानि वा मूषकादिचर्मनिष्पन्नानि 'सहिणाणि वा' श्लक्ष्णानि वा सूक्ष्मचिकणानि 'सहिणकल्लाणाणि वा' श्लक्ष्णकल्याणानि वा सूक्ष्मचिकणशोभनानि 'आयाणि वा' आजिकानि वा - देशविशेषोद्भवाजसूक्ष्मचिकणपक्ष्मनिष्पन्नानि आजिकaarणि उच्यन्ते 'कायाणि वा' कायकानि वा देशविशेषोद्भव इन्द्रनीलवर्णकर्पासनिर्मितानि Tarf araara arयन्ते, 'खोमियानि वा' क्षौमिकाणि वा - सामान्यकर्पासनिष्पन्नानि वणि श्रमिकाणि उच्यन्ते 'दुगुल्लाणि वा' दुकूलानि वा - गौडदेशोद्भूतविशिष्ट कर्पास
टीकार्थ- ' से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा' वह पूर्वोक्त भिक्षु- संयमशील साधु और भिक्षुकी - साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूपसे 'से जाई पुण बस्थाई जाणिज्जा' जिन वस्त्रोंको जो कि 'विरूवरूबाई महद्वणमुल्लाई' नाना प्रकार के हैं और महामूल्य अर्थात् बहुत अधिक कीमत वाले वे वस्त्र हैं ऐसा जान ले कि 'तं जहा ' जैसे कि 'आईगाणि वा' ये वस्त्र आजिन अर्थात् मूषकादि के चर्म से बनाये गय हैं और 'सहिणाणि वा' अत्यंत चिकण हैं तथा - ' सहिणकल्लाणाणि वा' सूक्ष्म चिकण तथा सुंदर है तथा 'आयाणि वा' आजिक अर्थात् देश विशेष में उसन्नअज बकरा मेडा गेटा वगैरह के सूक्ष्म चिकण रोमसे निष्पन्न हुए है इसलिये ये आजिन वस्त्र कहलाते हैं, एवं जो वस्त्र 'कायाणि वा' कायक अर्थात् देशविशेमें उत्पन्न इन्द्रनीलमणि के नीलवर्ण के समाननील वर्णवाले कपास रुई से बनाये गये वस्त्र कायक वस्त्र कहलाते हैं तथा एवं जो वस्त्र 'खोमियाणि वा ' क्षोमिक अर्थात् सामान्य कपास से बनाये गये हैं इसलिये क्षौमिक वस्त्र कहलाते हैं एवं ये 'दुगुल्लाणि वा' दूकूल अर्थात् गोडदेशमें उत्पन्न कपास अर्थ- 'से भिक्खु वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वोक्त संयमशील साधु ने साध्वी 'से जाई पुण वत्थाई जाणिज्जा' ले या वक्ष्यमाणु रीते वस्त्राने ले भगे ने 'विरूवरूवाई' मने प्रारना होय छे भने 'महद्बणमुल्लाई' धाथा श्रीमती मे वस्त्र होय छे. 'तं जहा' प्रेम 'आईणगाणि वा' ने रखे। सलुन अर्थात् भृगयर्भथी मनावेस हाय 'सहिणाणि वा' अने अत्यंत शिष्या होय 'सहिणकल्लाणाणि वा' तथा सूक्ष्म या अने सुंदर हाय तथा 'आयाणि वा' ? कत्रो भालु अर्थात् देशविदेशमां उत्पन्न थयेस *રા ઘેટા વિગેરેના સૂક્ષ્મ ચિૠણા રૂવાટાથી બનાવેલ હાય તેથી તે આજીક વસ્ત્ર કહે वाय छे. तथा 'कायाणि वा' ने यह अर्थात् देशविदेशमां उत्पन्न थयेस न्द्रि નીલમણીના નીલવર્ણ જેવા નીલવર્ણ વાળા કપાસના રૂથી બનાવેલ વસ્ત્રકાયિક વસ્ત્ર કહેવાય छे. तथा 'खोभियाणि वा' ने वस्त्र सामान्य उपासना इथी मनावेस होय ते क्षोभि वस्त्र देवाय छे. तथा 'दुगुल्लाणि वा' हे वस्त्र इज
अर्थात् गौड
देशमा उत्पन्न
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪