Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० ६ पञ्चमं वस्त्रैषणाध्ययननिरूपणम् ६९१ वा' गृहपति वा 'गाहावई भारियाए वा' गृहपतिभा वा 'गाहावई पुत्तं वा' गृहपतिपुत्रं वा 'गाहावइधूए वा' गृहपतिदुहितरं वा 'गाहावइ सुण्हां वा' गृहपतिस्नुषां वा 'जाव कम्मकरी वा' यावद्-धात्री वा दासं चा दासी वा कर्मकरं वा कर्मकरी-परिचारिकारूपां वस्त्रं याचेत इति पूर्वेणान्वयः 'से पुव्वामेव आलोइज्जा' स साधुः पूर्वमेव-याचनात्प्रागेव आलोचयेतविचारयेत् आलोचना प्रकारमाह-'आउसोत्ति वा भगिणित्ति वा' हे आयुष्मन् ! इति वा हे भगिनि ! इति वा इत्येवं सम्बोध्य 'दाहिसि मे इत्तो अन्नयरं वत्थं ?' दास्यसि खम् मे-मह्यम् साधवे इतः पूर्वोक्तात जामिकादिरूपाद यत् किमपि अन्यतरद् एकम् वस्त्रम् ? 'तहप्पगारं वत्यं सयं वा जइज्जा' तथाप्रकारम्-तथाविधं जाङ्गमिककम्बलादिरूपं वस्खं स्वयं वा साधुः पहली प्रतिमारूप अभिग्रह विशेषात्मक वस्त्रैषणा विषयक प्रतिज्ञा के निरूपण के बादमें अब दूसरी अन्य प्रतिमाका निरूपण करते हैं वह पूर्वोक्त भिक्षु-संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी 'पेहाए इत्थं जाइज्जा' वस्त्रको देखभाल कर अर्थात अच्छी तरह से अवलोकन कर याचना करे जैसे कि 'गाहावई वा' गृहपति गृहस्थ श्रावक से या 'गाहावईभारिया वा, गाहावइपुत्तं वा' गृहपति की भार्या से एवं गृहपति के पुत्र से या 'गाहावईधूए वा' गृहगति की कन्या से या 'गाहावइ. सुण्हां वा' गृहपति की स्नुषा पूत्रवधू से वस्त्रकी याचना करनी चाहिये एवं 'जाव कम्मकरी वा' यावत् गृहपति की धाइ से या गृहपति के दास से या गृहपति की दासीसे या गृहपति के कर्मकर से या गृहपतिकी कर्मकरी से वस्त्र की याचना करे किन्तु 'से पुड्यामेव आलोइन्जा' वह साधु याचना करने से पहले ही आलोचना विचार करके बोले कि 'आउसोत्तिवा भगिणित्तिवा' हे आयुष्मन ! श्रावक ! भगिनि ! बहिन ! इस प्रकार से सम्बोधन करके कहे कि 'दाहिसि मे इत्तो अन्नयरं वत्थं तुम मुझको पूर्वोक्त जागमिकादि वस्त्रों में से कोई एक भी वस्त्र दोगे? इस तरह 'तहप्पगारं वत्थं सयं वा जाइज्जा' उस प्रकार के जामिक
मन सामी पहाए वत्थं जाइज्जा' पर सारी शेते धन तना याय॥ ४२वी रेम 'गाहावइ वा' ७ पति 48२५ श्राप४ पासे अथवा 'गाहावइ भारियाए वा' गृहपतिना पलानी पांसे मथवा 'गाहावइ पुत्तं वा' श्रा१४ना पुत्रनी पांसे अथवा 'गाहावइ धूए वा' गृहपतिनी पुत्रीनी पांसे अथवा 'गाहावइ सुण्हा वा' गृहपतिनी पुत्रवधूनी पांसे अथवा 'जाव कम्मकरिं वा' 24 यावत् १९पतिनी घानी पांसे ५२१उपतिना से१४ पांसे કે ગૃહપતિની દાસી પાસે અગર ગૃહપતિના કમકર પાસે કે ગૃહપતિની કર્મ કરી પાસે पवनी यायना ४२वी. ५२'तु 'से पुव्वामेव आलोइज्जा' से साधु यायना या पडसi of माया अर्थात् विया२ श ४ 'आउसोत्ति वा' 3 आयुष्मन् श्राप ! 'भगिणित्ति वा' अथवा माडन माशते समापन प्रशन ४ । 'दाहिसि मे इत्तो अन्नयर वत्थं' तमे भर also म विगैरे पत्रोमाथी : १७ मापशी
श्री सागसूत्र :४