Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे एव यतनापूर्वकमेव उदके प्लवेत-संतरेत, नतु हस्तपादादिकं किञ्चिदपि संचालयेत् 'से भिक्खू वा उदगंसि पत्रमाणे दुबलियं पाउणिज्जा' स भिक्षु वा उदके प्लवमानः संतरन् यदि दौर्बल्यं कष्टं प्राप्नुयात तहि 'खिप्पामेव उवाहि विगिचिज्जवा विसोहिज्ज वा' क्षिप्रमेव-शीघ्र. मेव उपधिं वस्त्रोपकरणादिकं विगिश्चेत्-परित्यजेत, वा, विशोधयेद् वा किञ्चिदनुपयुक्तमुपक. रणादिकं त्यजेत् किन्तु 'नो चेवणं साइजिजजा' नो चैव खलु सादयेत्-उपधौ ममत्वं कुर्यात् उपधौ वस्त्रोपकरणादौ आसक्तो न भवेदित्यर्थः, 'अह पुण एवं जाणिज्जा' अथ-यदि पुनरेवं जानीयात-'पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए' पारगः स्यात्-पारं गतः स्याम्-उदकात् तीरं प्राप्तुम् समर्थोऽहं संजातः इत्येवं यदि जानीयाईि 'तओ संजयामेव' ततः तदनन्तरम् संयतमेव यतनापूर्वकमेव 'उदउल्लेण वा ससिणद्धेण वा कारण' उदकाईण वा जलक्लि. पचिज्जा' किन्तु संयम पूर्वक ही पानी में तैरे और उस पानी में तेरते समय हाथ पैर वगैरह का संचालन भी नहीं करे और ‘से भिक्खू या उदगंसि पवमाणे' वह पूर्वोक्त भिक्षु और भिक्षुकी पाली में तैरते हुए यदि 'दुब्बलियं पाउणिज्जा' दुर्बलता को प्राप्त करे याने कष्ठ का अनुभव करें तो-'खिप्पामेव उद्यहिं विगिंचिज्ज वा' शीघ्र ही उपधि वस्त्र उपकरणादि का परित्याग करदे या जो कुछ 'विसोहिज्ज या' अनुपयुक्त उपकरण हो उसको छोड दे किन्तु 'णो चेव णं साइजिज्बा' उस उपधि में ममत्व आसक्ति नहीं करे अर्थात् उस वस्त्र उपकर. णादि में आसक्त नहीं हो और यदि 'अह पुणरेवं जाणिज्जा' वह साधु ऐसा वक्ष्यमाण रूप से जान ले कि 'पारएसिया' उदक में तैरता हुआ मैं 'उदगामो तीरं पाउणित्तए' तट के उस पार जाने में समर्थ हं अर्थात् पानीके दूसरे तटपर में अवश्य जाने में समर्थ हो चुका हूं ऐसा जान ले तो संयमपूर्वक ही पानी से आर्द्र गीलाशरीर और 'ससिणिद्वेण चा, कारण उदगतीरे चिट्ठिज्जा' जल से 'सजयामेय उद्गसि पविज्जा' सय पूर्व पाएमा तरता रहे. मने ये भी तरती मते १५० विगेरेने uqq नही आने से भिक्खु वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वाgn साधु साथी 'उदगंसि पवमाणे' पाणीमा ततi Rai 'दुब्बलियं पाउणिज्जा' ने दुमत पाभ अर्थात् ५fst 0 3 ४टना यसव थाय ते 'खिप्पामेव उवहिं विनिंच वा विसोहिज्ज वा' are S५धि पत्र पात्र ५४२६। ना त्या ४३ हे मारे
अनुपयोगी 3५४२७५ डाय तेन ३४ वा 'नो चेव णं साइजिज्जा' परंतु 22 6५. ધિમાં આસકતી રાખવી નહીં'. અર્થાત્ એ વસ્ત્ર ઉપકરણદિમા આસકત થવું નહીં જ पुण एवं जाणिज्जा' मनेने ते साधुने मेम समय 3 'पारप सिया' ५Hi Rai तरता हु सामे नारे शीश 'उदगाओ तीरं पाउगित्तए' न सामे नारे पईया समर्थ छु तो 'तो सजयामेव' सयम पूर्व " 'उद उल्लेण वा ससिद्धेण या कारण' पाथी भीना शरीरथी मन पाणीथी निच-य४४ शरीरथी 'उद्गतीरे
श्री मायारागसूत्र :४