Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे कन्दरारूपाः, यदि स्युस्तहि 'सइ परक्कम्मे' सति परक्रमे-अन्यगमनमार्गे सति न तेन सरलेनापि मध्य पातिवादि मार्गेण गच्छेदित्याह-'संनयामेव परिक्कमिज्जा' संयतमेव यतना पूर्वकमेव परिक्रामेत-अन्य मागेणैव गुरूभूतेनापि गच्छेत् 'नो ऋजुएण' नो ऋजुकेन सरलेन तेन मार्गेण न गच्छेदित्यर्थः तत्र हेतुमाह- केवली बूया -आयाणमेयं केवली-केवल ज्ञानी तीर्थकृत बूयात्-अधीति उपदिशति आदानम्-कर्मबन्धकारणम् एतत्-वप्रादि सहित मार्गेण गमनम्, तथाहि ‘से तत्थ परक्कममाणे' स साधुः तत्र मध्य प्रादिमार्गे परिक्रामन् गच्छन् ‘पयलिन वा पर्वाडज्न वा' प्रस्खलेद् वा प्रपतेद् वा 'से तत्थ पयलेमाणे वा परडेमाणे वा' स साधुः तत्र तस्मिन् वादियुक्तमार्गे प्रस्खलन् वा प्रपतन् वा 'रुक्खा. णिवा गुच्छाणि वा' वृक्षान् वा गुच्छान् वा 'गुम्माणि वा गुल्मानिया 'लयाओ वा' लता या 'वल्कीओ वा वल्ली वो 'तणाणि वा' तृणानि वा 'गहणाणि वा गहनानि वा वनस्पति'सइपरक्कमे' तो दूसरे गमन मार्ग के होने पर उस सरल भी वप्र किला वगैरह वाले मार्ग से साधु और माध्वीको नहीं जाना चाहिये अपितु 'संजयामेव परिक मिजा' संयम पूर्वक ही लम्बे भी गुरूभृत मार्ग से जाय किन्तु 'णो ऋजुएण' उस सरल ऋजु वप्र किला वगैरह से युक्त मार्ग से नहीं जायें क्योंकि 'केबलीबूया' केवली केवलज्ञानी भगवान महावीर स्वामीने कहा हैं कि 'आयाणमेयं' यह चम किला वगैरह वाले सरल मार्ग से जाना साधु और साध्वी के लिये आदान कर्म बन्धन का कारण माना जाता है क्योंकि 'से तत्थ पयलेमाणे या' वह साधु उस चमकिला वगैरह वाले मार्गमें प्रस्खलित होता हुआ या 'पवडेमाणे वा' गिरता हुआ सहाराके लिये 'रुक्खाणि वा गुच्छाणि वा' वृक्षोके गुच्छों को या 'गुम्माणि या लयाओ वा' गुल्मों को या लताओं को-'वल्लीओ वा तणाणि वा' या पल्लियों को या तृणों घासों को अथवा 'गहणाणि वा' वनस्पति विशेषरूप गहनों को या 'अगलपासगाणि वा' 431 माजी ०४ीन हाय तो गड्डाओ वा दरीओ वा' मीण डाय शु। ५ तेथे मागे साधु मने साध्वी नडी'. 'सइपरक्कमे पानी અન્ય માર્ગ હોય તે એ વય કીહલા વિગેરેથી યુક્ત માર્ગેથી સાધુ કે સાધ્વીએ જવું नही ५२'तु 'संजयामेव परिकमिज्जा' सयम पू: १ Gian भागे था .पु. ५५ 'यो ऋजएण' स२५ डावा ७di 4, le विगेरेयी युत मागे थी न नडी 'केवलीबूया'
आयाणमेय भ ज्ञानी वान श्रीमहावीर स्वामी से धुं छे ३ मा १५ Feat વિગેરેથી યુક્ત સરળ માર્ગેથી જવું એ સાધુ અને સાધીને માટે કર્મબંધનું કારણ માનपामा मा छ म -से तत्थ पयलेमाणे वा पबडेमाणे वा' ते साधु साया से 4 sea विश्थी युत भामा प्रति यता अर्थात् १५सता , ५७तi 'रुखाणि या गुच्छाणि वो' सा२। भाट वृक्षाने शुछ। 'गुम्माणि वा' शुभाने 'लयाओ या' भय सतामान 'वल्लीओ वा सोने सवा 'तणाणि वा' पासान मा 'गह
श्री सागसूत्र :४