Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
५८०
आचारांगसूत्रे ग्रामान्तरम् दूयमानः 'गच्छन् 'अंतरा से पाडिवहिया उवागच्छिज्जा' अन्तरा--मार्गमध्ये तस्य गच्छ : साधोः सम्मुखे प्रातिपथिकाः पथिका उपागच्छेयुः, अथ च 'ते णं पाडिवाहिया एवं वइज्जा' ते खलु प्रातिपथिकाः एवं-वक्ष्यमाणरीत्या यदि वदेयुः पृच्छेयु:-'आउसंतो! समणा! आयुष्मन्तः? श्रमणा ! 'अवियाई इतो पडिवहे पासह' अपि च इतः प्रतिपथे-मार्गमध्ये पश्यथ-यूयं दृष्टवन्तः तथाहि 'उदगपसूयाणि कंदाणि वा' उदकप्रसूतानि जलोत्पन्नानि कन्दानि वा 'मूलाणि वा' मूलानि वा 'तया पत्ता पुप्फा फला बीआ' त्वचा पत्राणि पुष्पाणि, फलानि बीजानि 'हरियाणि वा उदकं वा संनिहियं' हरितानि वा उदकं वा सन्निहितम् जलनिकटवर्ति तडागादिकंवा 'अगणि वा संनिखितं' अग्नि या सन्निक्षिप्तम्-प्रज्वालितं यदि यूयं दृष्टवन्तस्तर्हि 'से आइक्खह जाव दृइज्जिज्जा' तम् कन्दादिकम् आच इढूवम्-कथयत, यावद्-दर्शयत, तं नो आचक्षोत नो दर्शयेत्-नो तस्य तां परिज्ञां परिजानीयात्, अपितु तूष्णीक उपेक्षे,त भिक्खू चा, भिक्खुणी वा, गामाणुगामं दूइज्जमाणे' यह पूर्वोक्त भिक्षु-संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी एक ग्रामसे दूसरे ग्राम जाते हुए 'अंतरा से पाडियाहिया उचागच्छिज्जा' और मार्ग के मध्य में उस साधु को यदि कोह प्रातिपथिक बटोही राहगीर पथिक आ जाय और 'तं पाडिवाहिया' ये पथिक यदि 'एवं वइज्जा' ऐसा वक्ष्यमाण रूप से बोले कि 'आऊसंतो' समणा? हे आयुष्मन् ! भगवन् ! श्रमण ! साधु 'अचियाइं इत्तो पडिवहे पासह' इस मार्गके निकट से ही प्रतिपथ में आपने क्या 'उदगपसूयाणि कंदाणि वा' उदक प्रसत पानी में उत्पन्न होने वाले कन्दों को या 'मूलाणि या' कन्दमूलो को या 'तया पत्ता पुप्फा फलाबीया' पत्ते को या पुष्पों को या फलों को या बीजों को या 'हरियाणि वा उद्गं वा संनिहियं' हरित वर्णवाले वनस्पति को या निकटवती पानी को या 'अगणिं चा संनिखितं से आइक्खह' निकटवर्ती रखे हुए अग्नि को यदि आपने देखा हो तो मुझे बताइये ? यावत् 'जाव दूइन्जिज्जा' और 'गामाणुगाम दूइज्जमाणे' मे ॥मथी भी आम rai 'अंतरा से पाडिवाहिया उवागच्छिज्जा' भागमा ते साधुन ७ पटेभागु भणे भने 'ते णं पाडिबाहिया एवं वइज्जा' ते भुसा३२ ने सेम डे 'आउसतो समणा !' मायुष्मन् मापन श्रम ! 'अवि याई पडिवहे पासह' 24 २२तानी नभ। भागनी मासे मापशु 'उदगपसूयाणि कंदाणि वा' पाणीमा पहा थना। ४ाने 4241 'मूलाणि वा' जाने 'तया वा पत्ता वा' -छास म241 पान । अथवा 'पुप्फा फला बीया' पुष्पाने , गोर अथ। मानने 'हरियाणि वा उद्गं वा संनिहिय” बाटोतरी वनस्पतिन अथवा सभी५२० पाएन अथवा 'अगणिं वा स निखित्तं' नलमा रामे मशिन आये नया छ ? भने तर माना जाय तो 'आइक्खह' भने मताव भने 'जाव' यावत् हेमा। 20 प्रभारी તે મુસાફર કહે તે સાધુએ તે બતાવવા નહીં કે દેખાડવા નહીં એ પથિકની પૂર્વોક્ત
श्री.माया
सूत्र:४