Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतकंस्घ २ उ० ३ सू. २५ तृतीय ईर्याध्ययननिरूपणम्
५७५
ग्रामान्तरम् ' दुइज्माणे' दुयमानः गच्छन् 'नो राईणियस्स हत्थेण इत्थं जाव' नो रानिकस्य श्रेष्ठसाधोः हस्तेन हस्तम् यावत् - पादेन पादं कायेन कार्यं वा 'अणासायमाणे' अनासादयन्-असंस्पृशन् 'तओ संजयामेव अहाराइणियं' ततः तदनन्तरम् संयतमेव यतनापूर्वकमेव यथाशत्निकम् रत्नाधिकेन सह - श्रेष्ठसाधुमनुसृत्येत्यर्थः ' गामाशुगामं दृइज्जिज्जा' ग्रामानुग्रामम्-ग्रामाद् ग्रामान्तरम् दूयेत गच्छेत्, 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षु व frant वा 'अहाराइणिअं गामाणुगामं दृइज्जमाणे' यथारात्निकम् - श्रेष्ठसाधुमनुसृत्य ग्रामानुग्रामं - ग्रामाद् ग्रामान्तरं दूयमानः गच्छन् 'अंतरा से पाडिवहिया' अन्तरा-मार्गमध्ये तस्य गच्छतः सधोः सम्मुखे प्रातिपथिकाः 'उवागच्छिज्जा' उपागच्छेयुः 'तेणं पाडिवहिहिया एवं इज्जा' ते खलु प्रातिपथिकाः यदि एवं वक्ष्यमाणरीत्या वदेयुः पृच्छेयुः 'आउसंतो ! समणा!' आयुष्मन्तः ! श्रमणाः ! 'के तुब्भे ?' के यूयम् - भवन्तः ? इत्यादि रीत्या यदि पृच्छेयुः तर्हि 'जे तत्थ सन्चराइजिए' यस्तत्र तेषु साधुषु मध्ये सर्वरास्निकः राइणियं गामाणुगामं दूइज्जिज्जा' वह भिक्षुक और भिक्षुकी अपने श्रेष्ठ साधुओं के साथ एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाते हुए 'णो राइणियस्स हत्थेण हत्थं जाच' उन अपने श्रेष्ठ साधुके हाथ को हाथ से और पैर को पैर से तथा शरीर से शरीर को 'अणासायमाणे तओ संजयामेव' नहीं छूते हुए ही संयमपूर्वक 'अहा राइणियं गामाणुगामं दूइज्जिज्जा' श्रेष्ठ साधु के साथ एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाय क्योंकि इस प्रकार श्रेष्ठ साधुओं के साथ गमन करने से संयम की विराधना नहीं होती 'सेभिक्खु वा भिक्खुणी वा' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी अपने 'अहाराइणिअं' सर्वश्रेष्ठ साधु के साथ 'गामाणुगामं दूहज्जमाणे' एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाते हुए हो और उस साधु और साध्वी को 'अंतरा से पाडियहिया उचागच्छ्जिा' यदि कोई प्रतिपधिक राहगिर बटोही पथिक पास में आ जाय और 'तेणं पाडिवहिया एवं वइज्जा' वे पथिक इस प्रकार बोले अर्थात् उस साधु को पूछे कि 'आऊसंतो ! समणा !' हे आयुष्मन् ! भगवन् ! श्रमण ! साधु 'के तुग्भे' आप कौन है ? इस तरह उस राही के पूछने पर 'जे तत्थ सव्व 'जाव अणासायमाणे' हे तेखाना अगने पोताना पाथी तथा शरीरथी शरीरने स्पर्श न ४२तां 'तओ संजयामेव अहाराइणिय' सयभ पूर्व वडिस साधुनी साथै 'गामाणुगाम' યુજ્ઞિજ્ઞ' એક ગામથી બીજે ગામ જવુ કેમ કે આ રીતે વિડેલ સાધુની સાથે ગમન ४२पाथी सत्यभनी विराधना अने आाशातना थती नथी. 'से भिक्खु वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वोत संयमशील साधु मने साध्वी 'अहाराइणियं गामाणुगाम दुइज्जमागे' वडिस साधुयोनी साथै ये गामथी मी गाम तो 'अंतरा से पाडिवाहिया उवागच्छिज्जा' थे साधु साध्वीने भार्गभां ने व भुसार पांसे आये भने ' ते णं पाडिवाहिया एवं वइज्जा' ते भुसाइ२ लेखेवी रीते आहे- 'आउसंतो ! समणा ! के तुम्भे' हे मायुष्मन् ! लगवन् श्रभाय 1
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪