Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे
उदगंसि पक्खिवह' नावः उदके प्रक्षिप, 'सयं चेवणं अहं नावाओ उदगंसि ओगा हिस्सा मि' स्वयं चैव खलु अहं साधुः नावः सकाशाद् उदके अवगाहिष्यामि प्रवेक्ष्यामि 'सेणं वयंतं परो' तं खलु वदन्तं साधुम् परः गृहस्थः यदि 'सहसा बलसा' सहसा - साहसपूर्वकं शीघ्रमेव बलात् हठात् 'बाहाहिं गहाय' बाहुभ्यां गृहीत्वा 'नावाओ उदगंसि' नावः सकाशाद् उदके 'पक्खिविज्जा' प्रक्षिपेत् 'तं नो सुमणे सिया' तदा उदके प्रक्षिप्तः सन् स साधुः नो सुमनाः प्रसन्नो वा स्यात् - भवेत् 'नोदुम्मणे सिया' नो वा दुर्मनाः अप्रसन्नो वा स्याद् - भवेत् 'नो उच्चावयं मणं नियंछिज्जा' नो वा उच्चावचं मनो नियच्छेत्, रोषाविष्टं वा मनो न कुर्यादित्यर्थः संयमपरायणस्य साधोः समभाववर्तनस्यैव युक्तत्वात्, अतएव 'नो तेसिं बालागं घायाए वहाए समुद्विज्जा' नो तेषां बालानाम् उदके प्रक्षेप्तॄणां घाताय ताडनाय वधाय हननाय वा पकडकर 'नावाओ उद्गंसि पक्खिवह' नावके पानीमें मत फेंको 'सयं चेवणं अहं नावाओ उद्गंसि ओगाहिस्समि' में स्वयं ही नावके पानीमें अवगाहनप्रवेश करने को तैयार हूं ऐसा कहने पर 'से णं वयंतं परो सहसा बलसा वाहाहिं गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिविज्जा' इस प्रकारसे बोलते हुए अर्थात् मुझको तुम लोग जबरदस्ती नावके पानी में मत फेंको में स्वयं उस नाव के पानी में प्रवेश कर लूंगा - इस प्रकार कहने पर भी यदि वह नाविक या गृहस्थ सहसा एकाएक जबरदस्ती या हउसे उस साधु को बाहों से पकड़कर नायके पानी में फेंक डाले तो यह साधु पानी में फेके जाने पर - 'तं नो सुमणे सिया' प्रसन्नचित्त भी नहीं हो और 'नो दुमणे सिया' अप्रसन्नचित भी नहीं हो और 'णी उच्चावयं मणं णियंछिज्जा' उच्चावच ऊंचे-नीचे मन को नहीं करे अर्थात् मनमें रोष गुस्सा भी नहीं करे और गाली प्रदान चगैरह खराब शब्द भी नहीं बोले और 'णो तेसिं बालाणं घायाए चहाए उन बाल अर्थात् अज्ञानीयों को ताडन करने के लिये और मारने के लिये भी 'समुद्विज्जा' उद्यत नहीं हो क्योंकि संयम परायण साधुको समभाव से ही रहना अच्छा माना गया है और साधु लोग समदर्शी
पाशुभां न हैं'। 'सयं चेव अहं नावाओ उगंसि' हु पोते नावांथी पाणीभां 'ओगाहिस्सामि' उतरपा तैयार छुः तेभ उडेवाथी ' से णं वयतं परो सहसा प्रभा मोसता मेवा साधुने ले ते नाविक गृहस्थ म्हम 'बाहाहिं गहाय' हाथथी पहुंडीने मात्रथी 'नावाओ उदगंसि' नावभांथी पाशुभां 'पक्खिविज्जा' में 'डी हे तो 'तं नो सुम सिया' ते साधु पासीमा अ गया पछी प्रसन्न चित्तवाणा न थर्पु तेम ४ 'नो दुमणे सिया' अप्रसन्न चित्तषषु ध नहीं तथा 'नो उच्चावयं' मणं नियंछिज्जा' મનને ઉંચા નીચુ' પણુ કરવુ' નહી' અર્થાત્ મનમાં ગુસ્સા કરવા નહી' તથા ગાળાગાળી तेषा भरा हो मोसवा नही 'नो तेर्सि बालाणं घायाए वहाए समुट्टिज्जा' तथा ते जाण अर्थात् अज्ञानीओने भारवा भाटे कुरवो नहीं प्रेम है 'अप्पुस्सुए
उद्यम
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪