Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे प्रतिपद्यमानाः स्वीकुर्वन्तः 'तं चेव जाव' तच्चैव यावत्-प्रतिमा प्रतिपद्यमानस्य यस्य कस्यापि साधोः अवहेलनाम अकुर्वन्तः 'अन्नोन समाहीए' अन्योन्य समाहिताः परस्परसमाधिसंप्राप्ताः सन्तः ‘एवं च णं विहरंति' एवञ्च खलु-पूर्वोक्तरीत्या विहरन्ति-उपाश्रये संवसन्ति ।।५७॥
मूलम्-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेजा संथारं पञ्चप्पिणित्तए, से जं पुण संथारगं जाणिज्जा सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सोसं सोदयं जाव ससंताणगं तहप्पगारगं संथारगं णो पञ्चप्पिणिज्जा ।सू०५८॥
छाया-प्स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा अभिकाक्षेत् संस्तारकं प्रत्यर्पयितुम् सयत् पुनःसंस्तारक जानीयात्-साण्डम् सप्राणम् सबीजम् सहरितम् सौषम् सोदकं यावत् ससंतानकम् तथाप्रकारकं संस्तारकं नो प्रत्यर्पयेत् ॥५८॥ ___टीका- अथ गृहस्थम्प्रति संस्तारकप्रत्यर्पणविषयमधिकृत्य विशेष वक्तमाह-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षु र्वा भिक्षुकी वा 'अभिकंखेज्जा' अभिकाङ्क्षेत् 'संथारं' तारकम्-फलकादिकम् ‘पच्चप्पिणित्त ए' प्रत्यर्पयितुम् परावर्तयितुं यदि वाञ्छेत् नहि ‘से जं पुण संथारगं जाणिज्जा' स साधुः यदि पुनः वक्ष्यमाणस्वरूपं संस्तारकम् फलकादिकं जानीयात् तद्यथा-'सअंडं सपाणं सबीयं सोदगं सहरियं जाव ससंताणगं' साण्डम्-अण्डसहि. होकर अर्थात् परस्पर में समाधि प्राप्त कर 'एवं च णं विहरंति' पूर्वोक्त रीति से उपाश्रय में निवास करना चाहिये ॥५७॥ ___ अब गृहस्थ श्रावक के प्रति संस्तारक को वापस करने के बारे में कुछ विशेष बात बतलाना चाहते हैं।
टीकार्थ-'से भिक्खू वा, भिक्खूणीवा अभिकखेज्जा संथारं पच्चप्पिणित्तए' वह पूर्वोक्त भिक्षुक संयमवान साधु और भिक्षुकी साध्वी यदि फलक पाट वगैरह संथरा को वापस करना चाहे तो वह ‘से जं पुण संथारगं जाणिज्जा' सो यह चापस करनेवाला साधु और प्रत्यर्पण करने वाली साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूपसे फलकादि संस्तारक संथरा को जान ले या देख ले कि यह फलकादि संस्तारक संथरा-'सअंडं सपाणं सबीयं' अण्डों से युक्त है या प्राणियों से युक्त भाना था।२ ४१२ २५ावा ५९ साधुना सना२ र्या विना 'अन्नोन्नसमाहिए' ५२२५२ समाधि प्राप्त ४रीन. 'एवं च णं विहरंति' पूalsa Rथी उपाश्रयमा पास ४३३. ॥सू. ५७ ॥
હવે ગૃહસ્થ શ્રાવકને સંથારાને પાછા આપવાના સંબંધમાં કથન કરે છે.
10-'से भिक्ख वा भिक्खुणी वा' ते पूरित सयमशीस साधु भने सायी 'अभिकंखेज्जा संथारं पच्चप्पिणित्तए ने पाटिया पाट विगेरे सयाराने ५२त ४२५ानी २४। उसय त से जं पुण जाणिज्जा' ते ५२त ४२वानी ४२छावा साधु अथवा साथी पक्ष्यमा ५९ सयाराने थे 'सअंडं सपाणं सबीय सहरिय'
श्री सागसूत्र :४