Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे संकल्पं मनसि विचारं वा न कुर्या दित्यर्थः, हेतुमाह 'केवली चूया-आयाण मेयं' केवली ब्रयात्-भगवान-तीर्थङ्कर उपदिशति आदानम् कर्मबन्धकारणम् एतत्-दस्युस्थानमध्य गमनम तथाहि 'तेणं बाला अयं तेणे अयं उवचरए' ते खलु दस्युस्थानस्थिताः दस्यूना बालकाः अयं साधुःस्तेनः चौरो वर्तते, अयं साधुः उपचरकः गुप्तचरो वर्तते 'अयं तो आगएत्ति कटूटु' अयम् साधुः ततः शत्रुनिकटाद् आगतोऽति इति कृत्वा-इत्येवं रीत्या व्याहत्य 'तं भिखं अक्कोसिज्ज वा जाव उद्दविज्ज वा' तं भिक्षुम् उत्क्रोशेयु वा आक्रुश्य दृषयेयुः, को विहार करते हुए देखकर सब वस्तु लूट लेगें और मार भी डालेंगे इसलिये 'णो विहारचडिवाए पव्वज्जिज्जा' इस प्रकार के खतरे से भरे हए स्थानों के मध्य से 'गमणाए' नहीं जाना चाहिये इसी तात्पर्य से कहते हैं कि 'केवलीया आयाणमेयं केवली केवलज्ञानी भगवान् महावीर स्वामी ने कहा हैं कि यह डाकू चौर लुटेरा शैतानों के रहने के स्थानों के बीच गमन करना साधु और साध्वी के लिये आदान है अर्थात् कर्मबंधका कारण माना जाता है क्योंकि 'तेणं बाला अयं. तेणो' उस दस्यु डाकू चौर वगैरह के स्थान में रहने वाले डाकू चोरी के लडके इस प्रकार वक्ष्यमाण रूपसे कहने लगेंगे कि यह साधु स्तेन चोर है और 'अयं ऊबचरए' यह साधु उपचर अर्थात् गुप्तचर (सि. आई.डी.) है और 'अयं तओ आग एत्तिकट्टू' यह साधु गुप्तचर रूप से शत्रके निकट से आया है ऐसा कहकर के 'तं भिक्खु अकोसिज्ज वा' उस साधुको आक्रोशित करेंगे अर्थात आकोश निन्दा करके दूषित करेंगे और 'जाव उद्दयिज्ज वा' यावत् दण्डे से आहत भी करेगें अर्थात् ये चोर डाकू के शैतान लडके साधु को लगुड यष्टि वगैरह से उय तो 1 सुराथा। विगेरेथा सरेका 'जाणवएगहिं' स्थानामांथा ‘णो विहारपडियाए' विहानी २७थी 'पवज्जिज्जा गमणार' ४१। भाटे त थ नहीं है આવા ચાર લુટારાઓ સાધુ અને સાધ્વીને વિહાર કરતા જોઈને તેમની વસ્તુઓ લુટી લેશે. તથા મારી પણ નાખવાને સંભવ રહે છે. તેથી આવા પ્રકારના ભય ભરેલા સ્થાનમાંથી ४ नही ४ हेतुथी सू२४॥२ ४ ४२ छ. 'केवलीवूया' अज्ञानी भगवान महा. पीर स्वामीये ४युं छे -'आयाणमेयं' या२ सुटायाने २२पाना स्थानानी क्यमाथी ગમન કરવું તે સાધુ અને સાધ્વીને કમબંધનું કારણ માનવામાં આવે છે. કારણ કે 'ते णं बाला अयंतेणे' से ३ना स्थानमा २।२। यार ना छ।४२।। सेयी रीत
ये साधु यार छ 'अयं उवचरए' 248 साधु गुस्तय२ (सी. मा७. 1.) छे. सन 'अयं तओ आगएत्ति कटूटु' मा साधु गुप्तय२ ३३ शत्रुमानी पांसेथी मावेस छ, ये प्रमाणे
ही 'तं भिक्खु अक्कोसिज्ज वा' से साधुनी नहा रीन पत ४२शे. 'जाव उद्दपिज्ज વા તથા યાવત્ દંડાથી તાડિત પણ કરશે અર્થાત્ એ ચે૨ લુટારાના બદમાસ છોકરાઓ સાધન સોટી કે લાકડી વિગેરેથી માર પણ મારશે, એને કદાચ મારી પણ નાખે કે
श्री.माया
सूत्र:४