Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० ८ तृतीयं ईर्याध्ययननिरूपणम्
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पावद्दण्डेन ताडयेयुः जीविताद् व्यपरोषयेय व उपद्रवेयुः उपद्रयं वा कुर्युः, 'वस्थं वाडा व कंबलं वा पायपणं वा' वस्त्रम् वा पनद् ग्रहम्, कम्बलं वा पादप्रोच्छनं या 'अच्छिदिज्ज वा मिंदिज्ज वा' आच्छिन्द्युर्वा, भिन्धु व 'अवहरिज्ज वा' अपहरेयु - खादीनामपहरणं वा कुर्युः, 'परिहविज्जा वा' परिष्ठापयेयु र्वा - छिन्न भिन्नं कृत्वा क्वचित् प्रक्षिपेयु: 'अह भिक्खूणं पुण्त्रोवदिट्ठा एस पइण्णा जाव' अथ तस्मात् भिक्षूणां साधूनां साध्वीनाञ्च कृते पूर्वोपदिष्टा तीर्थकुदुक्ता एषा प्रतिज्ञा यावद् - एष उपदेशः एतत् कारणम् 'जं तपगाराई विरुवरूवाई' यत् तथा प्रकाराणि पूर्वोक्तरूपाणि अनेकानि 'पच्चतियाणि ' प्रातकानि सीमा समीपवर्तीनि ' दस्सुगायतणाणि' दस्युकायतनानि दस्युचौरस्थानानि 'जाव विहारवडियाए ' यावत् म्लेच्छस्थानानि अनार्यस्थानानि दुःसंज्ञाप्यानि दुःप्रज्ञाप्यानि Free भी करेंगे और जीवन से भी मार डालेंगे या अनेक प्रकार के उपद्रव भी करेंगे और 'वत्थं वा पडिग्गहं वा, कंबलं बा' वस्त्र कपडा पतत्ग्रह - पात्रभाजन कंबल और 'पायपोंच्छणं वा, अच्छिदिज्ज वा' और पादप्रोंछन वगैरह को भी छीन लेंगे तथा 'मिंदिज्ज वा' भेदन भी कर डालेंगे, या 'अबहरिज्जया' वस्त्रादि का अपहरण भी कर लेंगे तथा 'परिट्ठचिज्ज वा' वस्त्रादि बगैरह उपकरणों को चीर फार कर या तोडफोड कर कहीं भी फेंक डालेंगे इसलिये इस प्रकार के चोर डाकू लुटेरे बगैरह के रहने के स्थानो के मध्य से साधु और साध्वी को नहीं विहार करना चाहिये इस तात्पर्य से कहते हैं कि 'अह भिक्खुणं पुत्रचोदिट्ठा एस पहण्णा जाव' अध भिक्षु साधुओं के लिये पूर्व में भगवान् महावीर स्वामीने इस प्रकार की प्रतिज्ञा अर्थात् उपदेश दिया है कि 'तपाराई' इस प्रकार के पूर्व में वर्णित 'विरूवरूवाई पच्चंतियाणि' विरूपरूप अनेकों प्रात्यन्तिक सीमा समीपवर्ती 'दस्सुगायतणाणि' दस्यु डाकू चोर लुटेरे के आयतनो स्थानों के मध्य मार्ग से गमन नहीं करना चाहिये एवं 'जाचभने प्रभारी पीडा उरे तथा 'वत्थं वा पडिगाहं वा' वस्त्र અથવા પાતરાએ અથવા कंवलं वा पायप्रोछणं वा' अंग है पादपोंछन विगेरे पशु 'अच्छिदिज्ज वा' मांडीये तथा 'मिदिज्ज वा' तेतु' लेहन अर्थात लांग झोड याशु पुरी नाणे अथवा 'अवहरिज्ज वो' बुटी
से तथा 'परिविज्ज वा' पखादि ७५४२ने झडी नामीने यात्राहिने तोडी झडीने ફૂંકી પશુ દે તેથી આવા પ્રકારના ચેર કે લુટારાએને રહેવાના સ્થાનેામાંથી સાધુ સાધ્વીએ विहार उरयेो नहीं खेष्ट पात सूत्रकार नीयेना सूत्रांशथी उडे छे अह भिक्खूणं पुल्वोवदिट्ठा स पइण्णा' तेथी साधु भने साध्वीने भगवान् महावीर स्वामीये या प्रमाना पूर्वोति रीते उपदेश ! छे तथा 'जं तहपगारं विरूवरूवाई' यादा प्रहारना हुन अने और लुटाना रहेबाना स्थानामां थाने भवु नहीं तथा 'पच्चतियाणि' सीमा सभी पर्ति 'दस्सुगायतणाणि' योर लुटारामोना स्थानामांथी गमन दु नहीं
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શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
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