Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ ० १२ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ३५१
टीका-अथ प्रकारान्तरेण क्षेत्रशय्यामेवाधिकृत्य विशेष वक्तुमाह-‘से भिखू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी या 'से जं पुण एवं उवस्सयं' स भावभिक्षुः यदि पुनरेवं वक्ष्यमाणस्वरूपम् उपाश्रयम् 'जाणिज्जा' जानीयात् तद्यथा 'सइत्थियं सखुईं सपसुभतपाणं' सस्त्रियम्-- स्त्री बालकादिकुटुम्बपरिवारसहितम् सक्षुद्रम्-श्वानविडालमारिप्रभृतिषुद्रप्राणियुक्तम्, सप शुभक्तपानं गोमहिषादिपशुयुक्तम्, तद् भक्ष्यरूपभक्तपानसहितञ्च उपाश्रयं जानीयादिति पूर्वेणान्वयः तर्हि 'तहप्पगारे सागारिए' तथाप्रकारे-पूर्वोक्तरूपे सागारिके-गृहस्थकुटुम्बपरिवारयुक्ते 'उवस्सए' उपाश्रये 'णो ठाणं वा सेज्ज वा निप्सीहियं वा' नो स्थानंवा कायोत्सर्गरूपम्, शय्यां वा संस्तारकम, निषीधिकां वा स्वाध्यायभूमि 'चेतेजा' चेतयेद-विदध्यात, यतस्तत्र वसतः सायोः एते वक्ष्यमाणदोषा-भवन्ति तथाहि 'आयाणमेयं' आदानमेतत्-कर्मोपादानम्
टीकार्थ-अब प्रकारान्तर से क्षेत्र शय्या को लक्ष्य करके ही कुछ विशेषता बतलाते हैं-'से भिक्खू या, भिक्खुणी या, से जं पुण एवं उवस्मयं जाणिजा' वह पूर्वोक्त भिक्षुक-संयमशील साधु और भिक्षुकी- साध्वी यदि ऐसा वक्ष्य माण रूप से उपाश्रय को जान ले कि-यह उपाश्रय 'सइत्थियं' स्त्री बालक वगैरह कुटुम्ब परिवार से युक्त है, एवम् 'सखुड्डं' श्वान-कुत्ता, विडाल-बिल्ली, वगैरह क्षुद्र-छोटे छोटे प्राणियों से भी युक्त है तथा 'सपसुमत्तपाणं' गाय भैंस वगैरह पशुओं से भी भरा है और उन स्त्रीबालक श्वान गाय बैल भैंस वगैरह के भक्ष्य भक्त पान चारा वगैरह से भी भरा हुआ है तो 'तहप्पगारे सांगारिए' इस प्रकार के सागारिक-स्त्रीबालक गाय मेंस वगैरह से भरे हुए 'उवस्सए' उपाश्रय में 'णो ठाणं वा' स्थान ध्यान रूप कायोत्सर्ग के लिये तथा 'सेज्जं वा' शय्या-शयन संथरा बिस्तरा करने के लिये एवं 'निसीहियं वा निषीधिका 'चेइज्जा' स्वाध्याय करने के लिये स्थान ग्रहण नहीं करना चाहिये, क्योंकि 'आयाणमयं' एतत्-इस प्रकार के सागारिक उपाश्रय में रहना साधु के लिये
હજ પ્રકારાન્તરથી ક્ષેત્રશસ્યા વિષે જ વિશેષતાનું કથન કરે છે –
ट -से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते सयमा साधु , सायी से जं पुण एवं जाणिज्जा' मा यक्ष्य भा५५ उपाश्रयाने गए हैं 21 उपाश्रय 'सइथिय” श्री मा विगेरे ४४५ परिवार पाणी छे. तथा 'सखुड' त, Mal), विगेरे प्राणयोथी ५ युक्त छ. तथा 'सपसुभत्तगाणं' आय में विगेरे ५शुमाथी ५५ मत छे. તથા એ સ્ત્રી, બાળકે, કુતરા, બિલાડાઓ અને ગાય ભેંસ વિગેરે પશુઓને ભય सना नि२ विगैरेथा ५५ भरे छ. तो 'तहप्पगारे सागारिए उबस्सए' १२ना सा॥२३ अर्थात् स्त्री माण पशु विगेरेथी मरे श्रयमाणो ठाणं वा सेज्ज वा' स्थान-मर्थात् ध्यान३५ यत्सा भाटे शय्या सस्ता२४ पाथर। , 'निसीहियं वा चेतेज्जा' पाध्याय ४२१॥ भाटे स्थान अर) ४२ नही म. -'आयाणमेय' मा
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪