Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे
अभिमुखीकर्तुम्, 'जा य खलु एएहिं सद्धि' या च खलु तरुणी एतैः साधुभिः सार्द्धम् 'मेहुण परियारणाए' मैथुनधर्मपरिचारणाय विषयभोगसेवनाय 'आउहाविज्जा' आकूटयेत् - अभिमुखीकुर्यात् 'पुत्त खलु सा लभिज्जा' पुत्रं खलु सा तरुणी लभेत कीदृशं पुत्र मित्याह - 'ओस्सि' ओजस्विनम् - जलवन्तम् 'तेयस्सि' तेजस्विनम् - दीप्तिमन्तम् 'वच्चरिंस' वर्चस्वनम् - रूपसौन्दर्यवन्तम् ' जसस्सि' यशस्विनम् - कीर्तिमन्तम् ' संपराइयं' सांपरायिकम् संग्रामे शूरवीरम् 'आलोयणदरसणिज्जं' आलोकनीयं दर्शनीयञ्च पुत्रं लभते 'एय पगारं एतत्प्रकारम् - उपर्युक्तरूपम् णिग्धोसं सुच्चा' निर्घोषं शब्दश्रुत्वा 'णिसम्म' निशम्य - हृदये संप्रधार्य 'तासि य णं अण्णयरी' तासाञ्च तरुणीनां मध्ये खलु अन्यतरा काचिदेका 'सड्डी' श्राद्धा - पुत्रेच्छावती faar 'तं aati fraखुं' तं तपस्विनम् भिक्षुम् साधुम् निवृत अर्थात् सांसारिक स्त्री सेवन रूप विषय भोग से वर्जित होते हैं इसलिये 'णो खलु कप्पर एतेसि मेहुणधम्मपरिधारणाए आउहित्तए' इन साधु महात्माओं को विषय भोग सेवन करने के लिये अभिमुख नहीं किया जा सकता, 'जा च खलु एएहिं सद्धिं मेहुणधम्मं परिधारणाए आउहाविजा, पुत्तं खलु सा लभिज्जा' किन्तु जो स्त्री इन साधु महात्माओं के साथ मैथुन धर्म विषयभोग करने के लिये अभिमुख करेगी अर्थात् उन साधुओं को विषय भोग में प्रवृति करायेगी, वह स्त्री निश्चय ही पुत्र को प्राप्त करेगी, 'ओयसि, तेयरिंस, वच्चसिं जसस्सि, संपराइयं' जो पुत्र ओजस्वी बलवान् होगा एवं तेजस्वी दिप्तिशाली होगा तथा वर्चस्वी अत्यन्त रूप सौन्दर्य शाली होगा, तथा यशस्वी कीर्तिशाली भी होगा एवं सपरायिक - संग्राम में शूरवीर भी होगा 'आलोयणदरसणिज्जं' आलोकनीय एवं दर्शनीय पुत्र होगा 'एयपगारं णिग्घोसं सुच्चा' इस तरह के निर्घोष शब्द को सुनकर और 'णिसम्म' हृदय में विचार कर 'तासि च अण्णयरी सड्री' उन तरुणी युवती स्त्रियों में कोई एक स्त्री पुत्र की इच्छावाली श्राविका 'तं तवसि भिक्खु' उस तपस्वी भिक्षुक साधु को 'मेहुणधम्मपरियारणाए' मैथुन धर्म-विषय भोग करने के लिये 'आउ
साधु महात्मामानी साथै 'मेहुणधम्मं परियारणाएं' मैथुन धर्म सेव४ ५२वा 'आउट्टाविज्जा' तैयार २ 'पुतं खलु सालभिज्जा' ते स्त्री ४३२ पुत्र मेजवशे अने पुत्र 'उयस्सिं' गोस्पी जणवान थशे 'तेयरिस' तेत्रस्वी अंतीवाणी यशे 'वच्चसि' अत्यंत ३५ अने सौंध्यवाणी थशे. तथा 'जसस्सि' यशस्वी अर्थात् प्रीतिपाणो थशे. तथा 'सं 'पराइय' सांपरायिङ अर्थात् संग्राममा शूखीर पशु थशे तथा 'आलोयण दरसणिज्ज' आलो४नीय भने हर्शनीय पुत्र थशे 'एयपगारं णिग्घोसं सुच्चा' का प्रहारना निर्धाश अर्थात् शब्द सांभाजीने 'णिसम्म' भने हृदयमा धारण रीने 'तासिं च अण्णयरी सडूढी' मे युवती स्त्रीयामा अर्ध पुत्रनी इच्छावाजी स्त्री 'तं तवस्सिं भिक्खु' ते तपस्वी साधने 'मेहुणधम्म परियारणार' मैथुन उर्माना सेवन भाटे 'आउट्टाविज्जा' तत्र रे ते ने
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪