Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ० १ सू० ३२ शय्येपणाध्ययननिरूपणम्
विराधनाभयेन 'जे भयंतारो' ये भयत्रातारः भवतीति त्राणकर्तारो भगवन्तो निर्ग्रन्थाः साधवः 'तपगाराणि' ये भयत्रातारः भवभीतित्राणकर्तारो भगवन्तो निर्ग्रन्थाः साधवः 'तहष्पगाराणि' तथा प्रकाराणि तथाविधानि पूर्वोक्तरूपाणि 'आएसणाणि वा' आयसानि वा लोहमयानि आदेशनानि वा 'आयतणाणि वा' आयतनानि वा देवकुलरूपाणि गृहाणि 'जाव' यावत् - देवकुलपार्श्वावरकरूपाणि वा सभा वा प्रपा वा पण्यगृहाणि वा यानगृहाणि वा यानशाला वा सुधाकर्मान्तानि वा वर्द्धकर्मान्तानि वल्कलकर्मान्तानि वा यावद् भवनगृहाणि वा 'उवागच्छति' उपागच्छन्ति, तत्रोपागम्य 'इयराइयरेहिं' इतरेतरैः 'पाहुडेहि ' प्रामृतकैः उपायनरूपेण प्रदत्तेः उपाश्रयैः 'वहंति' वर्तन्ते वर्तयन्ति 'दुपक्खते कम्मं सेवंति' संरम्भ एवं आरम्भ तथा समारम्भों से संयमकी विराधना का भय रहता है इसलिये 'जे भयंतारो तहपगाराणि' जो ये भयत्राता भवभीति से त्राण करने वाले भगवान् निर्ग्रन्थ जैन साधुमुनि महात्मा 'तहपगाराणि' उस प्रकार के पूर्वोक्त रूप वाले 'आएसणाणि बा' आपसानि लोहे या इस्पात के बनाये हुए गृहों में या 'आयतणाणि वा' देवकुल गृह रूप आयतनों में या 'जाव' देवकुल पार्श्वारिक रूप गृहों में या सभागृहों में या प्रपा पनीयशालाओ में या पण्यगृहों में या पण्य. शालाओं में यान रथों के बनाने के गृहोंके अथवा यानशालाओ में यानरथों रखने के गृहों में या सुधा चूना के निर्माण गृहों में या वर्द्ध-चमडे के बनाये जाने वाले मशक चरस वगैरह के निर्माण गृहों में या वल्कल छाल या छिलका शण वगैरह से बनाये जाने वाले पिटारी-टोकरी वगैरह के निर्माण गृहों में या भवन गृहों में 'उवागच्छति' आ जाते है और 'उचागच्छित्ता इयराइयरेहिं पाहुडेहिं वहति' आकर परस्पर में प्राभृतक उपायन भेंटके रूप में दिये गये उन उपाश्रय रूप गृहों को उपयोग में लाते है तथा व्यवहार में अमल करते हैं ये
આવે છે. આ રીતે ષટ્કાયના જીવાના સંરભ અને આરંભ તથા સમારંભાથી સંયમની विराधना थवानो लय रहे छे. तेथी 'जे भयं तारो तहपगाराणि' ने आ लवलयश्री मयाबनार निर्थन्थ साधु भुनि तेवा प्रारना 'आएसणाणि वा' बोड निर्मित गृहशमां है सारस्थी मनावेस गृह मां अथवा 'आयतणाणि वा' बहु३५ आयतनमां अथवा हेव ગૃહેામાં કે સભાગૃડામાં અથવા પાનીયશાળાઓમાં અથવાપણ્ય શાળાઓમાં અર્થાત્ દુકાનના ગૃહમાં કે યાન ગુડામાં એટલે કે રથા મનાવવાના ગૃડામાં અથવા યાનશાળાઓમાં અર્થાત્ યાન રથા વિગેરે રાખવાના ગૃહેામાં અથવા ચુના બનાવવા ગૃહેમાં અથવા છાલ કે છેડા કે શણુ વિગેરેથી ખનાવવામાં આવનાર ટાપલી કડીયા વિગેરે अनाववाना श्रहेोभां तथवा भवन गृहेोभां 'उवागच्छंति' भावी भय छे भने 'उत्रागच्छित्ता' भावीने 'इया इयरेहिं' पाहुडेहिं वट्टंति' परस्पर लेट तरी आपेस मे उपाश्रय ३५ गुडेनि उपयोगभां तेषाभां आवे छे, तथा व्यवहारमां से छे ते साधु भुनि जरी रीते 'दुपख ते
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪