Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे छाया-स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा स यदि पुनः उपाश्रयं जानीयात्-इह खलु गृहपति कुलस्य मध्यमध्येन गन्तुम् पन्थाः पदे पदे प्रतिबद्धः नो प्राज्ञस्य निष्क्रमणप्रवेशनाय यावद् अनुचिन्तायै तथाप्रकारे उपाश्रये नो स्थानं वा शय्यां वा निषीधिकां वा चेतयेत् ॥४१॥
टीका-'गृहस्थगृहमध्यमार्गे स्थितेऽप्युपाश्रये साधुभिर्वसतिर्नविधेयेति प्रतिपादयितुमाह-'से भिक्खू वा भिवखुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा-साधु वा साध्वी वा 'से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा' स यदि पुनरेवं वक्ष्यमाणरीत्या उपाश्रयं जानीयात् तद्यथा 'इह खलु गाहावइ कुलस्स' इह खलु उपाश्रय गृहपति कुलस्य गृहस्थगृहस्य 'मज्झं मज्झेणं' मध्य मध्येन 'गंतुं पंथए पएपए पडिबद्धं गन्तुत् पन्थाः पदेपदे प्रतिबद्धो वर्तते तर्हि 'णो पण्णस्स णिक्खमणपवेसणाए' नो प्राज्ञस्य संयमशीलस्य साधोः निष्क्रमणप्रवेशनाय प्रवेष्टु निर्गन्तुं वा न कल्पते जावऽणुचिताए' यावद् अनुचिन्तायै स्वाध्यायानुचिन्तनार्थमपि एवंविध
अब गृहस्थ श्रावक के घर के मध्य मार्ग के भी उपाश्रय में साधु को नहीं रहना चाहिये यह बतलाते है
टीकार्थ-'से भिक्खू वा भिक्खूणी वा से जं पुणं उवस्सयं जाणिज्जा' वह पूर्वोक्त-भिक्षुक जैन साधु और भिक्षुकी जैन साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाणरूप से उपाश्रय को जान लेकि 'इह खलु गाहावईकुलस्स' इस उपाश्रय में जाने के लिये गृहपति गृहस्थ श्रावक के घर के 'मझं मज्झेणं गतुं' मध्य भाग में ही 'पंथए पए पए' पद पद पर मार्ग 'डिबद्धं' प्रतिबद्ध रुका हुआ है इसलिये 'गो पण्णस्स' प्राज्ञ समझदार संयमशील साधु को इस मार्ग से 'णिक्खमणपवे. सणाए' नीकलना और प्रवेश करना ठीक नहीं है इस प्रकार 'जाव अणुचिंताए' यावत् स्वाध्याय के अनुचिन्तन मनन करने के लिये भी ठीक नहीं है अर्थात् साधु और साध्वी को इस प्रकार का उपाश्रय में जो कि गृहस्थ श्रावक के घर के मध्य भाग से होकर जाते हुवे मार्ग वाले उपाश्रय में नहीं रहना चाहिये
હવે ગૃહસ્થ શ્રાવકના ઘરની વચમાંના માર્ગવાળા ઉપાશ્રયમાં સાધુએ ન રહેવા સંબંધી કથન કરે છે
टा-‘से 'भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पति संयमशील साधु भने साथी से जं पुण उबस्सय जाणिज्जा'ले ५६५मा प्राथी उपाश्रयने है-'इह खलु गाहावइ कुलस्स मज्झं मझेणं' पाश्रयमा ११॥ भाट ७२५ श्रावना धरना मध्य भागमाथा 'गंतुं पंथए' पाना भा छ भने 'पए पए पडिबद्धं' से उसे मा प्रतिमा अर्थात् ३४११ट पाणी छे. तेथी ‘णो पण्णस्स णिक्खमणपवेसाए' प्राज्ञ मेट , सभा२ सयम શીલ સાધુએ એવા માર્ગમાંથી નીકળવું કે પ્રવેશ કરે તે એગ્ય નથી તે જ પ્રમાણે 'जाब अणुचिंताए' यावत् स्वाध्यायना अनुतिन अर्थात् मनन ४२५॥ भाट ५५ ही नथी मर्थात् साधु म सानीय तहप्पगारे उपस्सए' मा प्रधान श्रयमा २
श्री सागसूत्र :४