Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतकंस्ध २ उ. ९ सू. १०० पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् २५७ मानाचारवन्तः 'अपरिहारिया' अपरिहार्याः अत्पाज्या न कथमपित्यक्तुं योग्याः 'अदूरगया' अद्रगताः समीपवर्तिनः एतेषु सत्सु अदूरगतेषु ते सिं अणालोइया' तेषाम् अनोचयित्वातान् सार्मिकसांभोगिकप्रभृतीन् अनिवेद्य अनापृच्छय 'अणामंते' अनामन्त्र्य-'आमन्त्रणमकृत्या यदि 'परिहवेइ' परिष्ठापयेत-प्रमादितया परित्यजेत् तर्हि 'माइट्ठाणं संफासे' मात. स्थानं मायाछलकपटादिदोष न संस्पृशेत प्रायश्चित्ती स्यात् तस्मात् 'णो एवं करेजा' नो एवं कुर्यात-अधिकमाहारजातं प्रतिगृह्य साधर्मिकादीन् अनापृच्छय न परित्यजेत, किं कुर्यात स इत्याह-'से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा' स साधुः तद्-अधिकम् अशनादिकमाहारजातम् आदाय-गृहीत्वा तत्र-तस्मिन् साधर्मिकादि स्थाने गच्छेत् ‘गच्छित्ता' गत्वा-साधर्मिकादिसमीपं गत्वा 'से पुवामेव आलोइज्जा' स साघुः पूर्वमेव आहारात्प्रागेव आलोचयेत्-तान् साधर्मिकप्रभृतीन् अधिकमाहरजातं प्रदर्शयेत्-आलोचनप्रकारमाह 'आउसंतो समणा!' हे जिन को किसी भी तरह नहीं छोड़ सकते हैं इस तरह के साधु तथा अदरगया' अदूरगत-समीप में रहने वाले साधु 'तेसिं अणालोइया' इन सभी साधुओं के निकट में रहते हुए भी इन सबको पूछे बिना ही और 'अणामंतिया' आमन्त्रण-विचार विमर्श किये बिना ही यदि अधिक आहार को 'परिहवेइ माइ ट्ठाणं संफासे' फेंक दे तो मातृस्थान-माया छलकपटादि दोष लगने से प्रायश्चिती होगा, इसलिये ‘णो एवं करिज्जा' ऐसा नहीं करना चाहिये अर्थातू अत्यधिक अशनादि चतुर्विध आहारजान को मिक्षा के रूप में ग्रहण कर पास में ही रहने वाले साधर्मिक सांभोगिक वगैरह साधुओं को पूछे बिना ही र्याद कहीं पर फेक डाले तो उस साधु को छलकपटादि दोष लगेगा इसलिये उस अधिक आहार जात को फेंके नहीं, अपितु 'से तमायाए तत्थ गच्छित्ता' वह साधु उस अधिक भिक्षा को लेकर उन साधर्मिक प्रभृति साधुओं के पास जाकर 'से पुवामेव आलोइज्जा' वह साधु उस आहार जात को खाने से पहले ही उन साधर्मिक वगैरह साधुओं को दिखलाये और कहे कि 'आउसंतो समणा!' सभी५२५ साधु 'तेसिं अणालोइया' २॥ सा साधुन ५७या विना तथा 'अणामनिया, विया विनिमय या विना थाराना माहारने ने 'परिटुवेइ' ३ तेम नारन 'माइदाणं सफासे' भाया७१४५ होष सागे छे. तेथी 'णो एवं करिज्जा' तेम ४२७ नही. અથત વધારે પડતા આહાર દ્રવ્યને ભિક્ષા માટે લઈને પાસે રહેનાર સાધમિક સાંગિક વિગેરે સાધુને પૂછયા વિના તેને નાશ કરે છે તેમ કરનારા સાધુને માતૃસ્થાન નામને डोष सागे छ. तेथी थाना पहाय ३३ नही ५२'तु 'से तमायाए' ते साधु अघि मारने १४२ 'तत्थगच्छित्ता' त सामि विगेरे साधुमे। पांसे ४२ से पुव्वामेव आलोइज्जा' पोते माडा२ सीधा पाडस ते सायमि विगैरे साधुयान त सतावे मन 33 3 'आउसंते समणा' 3 सायुध्मन! लन् श्रम 'इमे मे असणं या पाणं या
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श्रीमायारागसूत्र:४