Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ११ सू० १११ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् २८९ चित्ती स्यात् तस्मात् ‘णो एवं करेजा' नो एवं कुर्यात्-मनोज्ञमाहारजातं छलकपटवञ्चनाद्वारा ग्लानापदेशेन न स्वयं भुञ्जीत अपि तु 'तहाठियं आलोइज्जा' तथास्थितं तथावस्थित मेव आहारजातम् आलोचयेत्-प्रदर्शयेत् 'जहाठियं गिलाणस्स सयइत्ति' यथास्थितं यथावदवस्थितं तदाहारजातम् ग्लानस्य--ग्लानाय स्वदते-हितकरं भवेत् 'तं तित्तयं तित्तएत्ति वा' तत्-तस्मात् कारणात् तिक्तकं तिक्तकमिति वा 'कडुयं कडुयं' कटुकं कटुकम् 'कसायं कसायं' कषायं कषायम् 'अंबिलं' अम्लम् अम्लम् 'महुरं महुरं' मधुरम् मधुरम् इतिरीत्या मनोज्ञ आहार जात को स्वयं खाले तो 'माइट्ठाणं संफासे' मातृस्थान-माया छलकपटादि दोषों का भागी बनेगा, और प्रायाश्चित्ती होगा, इसलिये-'णो एवं करेज्जा' ऐसा नहीं करे अर्थात् मनोज्ञ सुस्वादु आहार जात को छल कपट वश्चना द्वारा ग्लान-रुग्ण के बहाने से स्वयं न खाले, क्योंकि इस प्रकार छल कपट से खाने में मातृस्थान दोष होता है। अपितु 'तहाठियं आलोइज्जा, जहाठियं गिलाणस्स सयइत्ति' तथास्थित तथावस्थित अर्थात् उसी स्वरूप में अवस्थित अशनादि चतुर्विध आहार जात को दिखलावे जिस स्वरूप में अव स्थित वह अशनादि आहार हो, जिस से कि ग्लान रुग्ण साधु के लिये हित कर हो सके, अर्थातू जैसा आहार जात हो वैसा ही दिखलाना चाहिये, तभी उस बिमार रुग्ण साधु को हितकारक हो सकता है इसीवात को स्पष्ट रूप से बतलाते हैं 'तं तित्तयं तित्तए त्तिवा' इसलिये यदि वह अशनादि चतुर्विध आहार जात वास्तव में तिक्त हो तो उसको तिक्त रूप में ही दिखलाना चाहिये एवं यदि वह अशनादि आहार जात वास्तव में 'कडुयं कडुयं' कडवा है तो उस को कडया ही रूप में दिखलाना उचित है इसी तरह यदि वह आहार वास्तव में 'कसायं कसायं' कसेला है तो उसको कसेला रूप में ही कहना ठीक
से साधुने छतरीन पोते थे पाहिष्ट मा २२ मा ले त त माना२२ 'माइट्राणं संफासे' माय॥ ७॥ ४५८३५ मातृस्थान होष साणे छे. अने प्रायश्चिती मने छे. तथा 'णो एवंकरिज्जा' -। रीते न ४२. अर्थात् मनोज्ञ सुस्वाद माहा२२ ७१४५८ ॥२॥ રેગીના બહાનાથી લઈને પિતે ખાવે નહીં કેમ કે આવી રીતે છળકપટથી લઈને ખાવાથી भातृस्थान होष साणे छ. ५२'तु 'तहाठिय आलोइज्जा' तथास्थित अर्थात् रेवडीय એજ સ્વરૂપે રહેલ એ આશનાદિ આહાર જાતને તે બિમારને બતાવ એટલે કે જે રીતને એ અશનાદિ આહાર હોય જેમ કે બિમાર સાધુને હિતકર -પચ્ચે હોય તે તેમ બતાવવું. અર્થાત્ જેવો આહાર હૈય તેજ રીતને કહે જોઈએ તે જ એ બિમાર સાધુને ति:२ / शहे. मे पात सूत्रा२ २५ ते मतपतi डे छ. 'तं तित्तय तित्तएति वा' ने ते माहार गरी शते ती य त तने तीमा ४ा . 'कडुयं कडुय' ५४३ थाहा२ डाय ते ४७३। ४३०. 'कसाय कसाय' ४ाय माहारने ४ाय । मन 'महरं
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श्रीमायारागसूत्र:४