Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ११ सू० १११ पिण्डैपणाध्ययननिरूपणम् २८७ मिक्षाकाः मिसाटनशीलाः नाम एके-केचन साधवः साध्यो वा एवम्-वक्ष्यमाणरीत्या आहु:-साधुनिकटमागत्य उक्तवन्तः, ते खलु साधवः 'सपाणे वा वसमाणे वा समानाः वा-सांभोगिकाः वा स्युः, वसन्तो वा-एकत्र वास्तव्या वा भवेयुः 'गामाणुगामं वा दूइज्ज माणे' ग्रामानुग्रामं वा-ग्रामाद्नामान्तरं वा वजन्त:-अन्यस्माद् ग्रामात् समागता वास्युः 'मणुन्नं भोयणजायं' मनोज्ञ-सुस्वादु भो जनजातम् - प्रशनादिकमाहारजातम् 'लब्ध्वा' तेषु च 'से मिक्खू गिलाई स-कश्चिन भिक्षुः साधुः ग्लायति रुग्णो वर्तते ग्लानिमनु भवतीत्यर्थः, तदर्थं मनोज्ञसुस्वादु मोजनलाभे सति तान् सांभोगिकादीन् वक्ष्यमाणरीत्या ते भिक्षाटा आहुरिति पूर्वेणान्वयः किमाहुरित्याह-'सेहंदह णं' तद्-मनोज्ञमशनादिकमाहारजातं यूयं गृहीत खलु 'तस्साहारह तस्य आहरत, तस्य-ग्लानस्य कृते नयत, तस्मै ग्लानाय प्रयच्छत इत्यर्थः ‘से य भिक्खू नो अँजिज्जा' स च ग्लानो भिक्षुर्यदि नो भुञ्जीत न भुङ्क्ते तहि आहरित्ता 'तुमं चेवणं अँजिज्जासि' आहृत्य त्वचव खलु भुक्ष्व ‘से एगइओ भोक्खामित्ति वे साधु समान अर्थात सांभोगिक हों या एक ही जगह बसने वाले हों 'गामाणु गामं वा दूइज्जामाणे' अथवा एक ग्राम से दूसरे ग्राम विहार कर आने वाले हों 'मणुषणं भोयणजायं लभित्ता' मनोज्ञ-सुस्वादु भोजन जात-अशनादि चतुर्विध आहार जात का लाभ कर 'से भिक्खू गिलाई, सेहंदहणं, तस्साहरह' उन साधुओं में से यदि कोई साधु रुग्ण है तो उस के लिये मनोज सुस्वादु भोजन मिलने पर उन सांभोगिक वगैरह साधुओं को वे भिक्षाटन शील साधु ने निम्न प्रकार कहा कि-उस मनोज्ञ सुस्वादु अशनादि आहार जात को तुम ग्रहण कर उस ग्लान-बिमार साधु केलिये लेजाओ और उस ग्लान बिमार रुग्ण साधु को दे दो 'सेय भिक्खू नो भुजिज्जा' किन्तु यदि वह ग्लान साधु उस मनोज्ञ आहार जात को नहीं खाय तो 'आहरिजा तुमं चेवणं सुंजिज्जासि' उसे लेकर तुम ही खा लेना इस तरह कहने पर 'से एगइओ भोक्खामित्ति कटु' वह साधु यदि 'अकेला ही में इस मनोज्ञ सुस्वादु भोजन जात को । स्थणे वसनारा छी. 'गामाणुगामं वा दुइजमाणे' भया ये मामयी मा म विहार ४२वाणा छ। ? 'मणुण्णं भायगजाय लमित्ता' 2424। मनोज्ञ स्वादिष्ट भशनाहि यार ५४॥२॥ मारने वाम ४२ छ। ? ‘से भिक्खू गिलाइ' थे साधु।
पै ts સાધુ બિમાર હોય તે તેમને માટે મને સ્વાદિષ્ટ આહાર મળવાથી એ સાંગિક विगेरे साधुमान निक्षाटन ४२वायाणा साधु - सेहंदहणं' 24 भनाज्ञ सुस्वाह मशना माहा२ सातये तभी सन 'तस्साहरह' से प्रभार साधुने माट स व भने ते भार साधुने माथे 'सेय भिक्खू णो भुजिज्जा' यही 22 माहारने मिमा२ साधु न माय तो 'आहरिजः तुम चेव णं भुजि जासि' 22 माहा र तमे २५ मा सन २मा शते ते साधुना ह्याथी से एगइ भो भोक्खामित्तिकटूटु' मे २0 हट
श्री सागसूत्र :४