Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू०५ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् चरकप्रभृति श्रमण-ब्राह्मण-प्रतिथि-कृपण-वनीपकान् ‘पणिय पगणिय' प्रगण्य प्रगण्य तान् शाक्यादीन प्रत्येकं गणयित्वा 'समुहिस्स' समुद्दिश्य लक्ष्यीकृत्य 'पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई' प्राणान्-प्राणिनः, भूतानि, जीवान् सत्वान् 'समारब्म' समारभ्य समारम्भं कृत्वा 'समुद्दिस्स' समुद्दिश्य लक्ष्यीकृत्य ‘कीय' क्रीतं द्रव्यविनिमयेन सम्पादितं 'पामिच्च प्रामित्यम्-पर्युदश्चनेन (पैंसा-उधार इति भाषा) सम्पादितम् 'अच्छेज्ज' आच्छेद्यम्-हठात भृत्यादेः सकाशाद् गृहीतं 'अणि सिर्ट' अनिसृष्टम् सर्वस्वाम्यननुमतम् 'अभिहडं' अभिहतम्निष्पन्नमेव कुतश्चिद् आनीतम् 'जाव' यावद्-आहृत्य च 'चेएइ' चेतयति-साधये ददाति 'तहप्पगारे' तथाप्रकारे तथाविधे उपर्युक्तरूपे प्राणिप्रभृतीनां समारम्भेण क्रयणादिना सम्पादिते 'उवस्सए' उपाश्रये प्रतिश्रये 'अपुरिसंतरकडे' अपुरुषान्तरकृते-दातृपुरुषनिर्मिते 'बहिया श्रमण-साधर्मिक-चरकशाक्य प्रभृति साधुओं को एवं ब्राह्मणों को तथा 'अतिहिकिवण वणीमए' अतिथि-अभ्यागत को एवं कृपण-गरीब दीन दुःखी को और वनीपक-याचकों को 'पगणिय पगणिय' गिन गिन कर अर्थात् चरक शाक्य प्रभृति प्रत्येक की बार बार गिनकर तथा 'समुद्दिस्स' प्रत्येक को लक्ष्यकर 'गणाई भूयाइं सत्ताई' प्राणों को अर्थात् प्राणियों को एवं भूतों का तथा जीवों को एवं सत्यों को 'समारब्भ' समारम्भ कर तथा 'समुद्दिस्स कीयं' लक्ष्यकर क्रीत 'रूपया से खरीदा गया, एवं 'पामिच्चं' प्रामित्यं रुपया उधार पैसा लेकर सम्पादित किया गया, तथा 'अच्छेज्जं' आच्छेद्य-हठात् जबरदस्ती भृत्यादि से छिनकर लिया गया 'अणिमिट्ट' अनिसृष्ट-सभी मालिक की अनुमति के विना ही ले लिया गया, एवं 'अभिहडं जाव चेएइ' अभिहत-निष्पन्न-घना बनाया ही कहीं से लाकर रक्खा गया एवं यावत्-इस प्रकार के उपाश्रय को यदि गृहस्थ श्रवक साधु के लिये देवेतो 'तहप्पगारे उवस्सए' इस प्रकार के प्राणियों भूतों जीवों और सत्वों को सता कर, खरीद विक्री वगैरह के द्वारा लिये गये गतान तथा 'किवणवणीमए' ५ गमहीन मी मने पनी ५४ यायाने पगणिय पगणिय' णी गयी. अर्थात् य२४॥४य विगेरे ४२४ने पार पा२ मशीन तथा ४२७ने 'समुद्दिस्स' १६ उरीन 'पाणाइं भूयाई जीवाई सत्ताई समारभ' प्रालियाना सूताना याने भने सत्वाना सभा२म शत अर्थात् भने पीडा पडायाी तथा तेभने 'समुदिस्स' AA N२ 'कीय पामिच्चे अच्छेज्ज' जीत-पैसाथी भरी ४२० प्रमिस-३पिया धार
२५२छेध माथी न४२ विगैरेनी पांसेथी छीनवी सीधेस तथा 'अणिसिद्रं अभिहडं' भनिसष्ट सा मालिनी सभात विन as दीयेस तथा अमिहन-तैयार मनावर 315 रे रामे 'जाव चेइए' व यावत् साव। २ GIRL स्थ श्री साधुमे। भाट माघे तो 'तहप्पगारे उबस्सए' मा ५४:२थी प्राणियो, भूते। वो भने सत्वान पीडित शत मरी २० विगेरे भगवे पाश्रीयमा 'अपुरिसंतरकडे २
श्री सागसूत्र :४