Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे पात्राणि आ६-'तं जहा-सरावंसि वा नद्यथा-शरावे वा (सिकोरा इति भाषा) 'डिंडिमंसि वा' डिंडिमेवा-कांस्यपात्रे 'कोसगंसि वा' कोशके वा उपस्थापितमशनादिकं भोजनजातं पश्येत् 'अह पुण एवं जाणिज्जा' अथ पुनरेवं वक्ष्यमाणरीत्या यदि जानीयात् 'बहुपरियावन्ने पाणीसु उदगले वे' बहुपर्यापनः बहुपरिणतः, पाणिषु-हस्तेषु उदकलेपो नतु हस्तः उदकाद्रों वर्तते तहिं तथा ज्ञात्वा तहप्पगारं' तथाप्रकारम् तथाविधम् शरावादी संस्थापितम् 'असणं वा पाणं चा खाइमं वा साइमं वा' अशनं वा पानं वा खादिम वा स्वादिमं वा भोजनजातम् 'सयं वा णं जाएजा' स्वयं वा खलु साधुः याचेत 'परो वा से देजा' परो वा-गृहस्थो वा तस्यतस्मै साधवे दद्यात् 'फाय' प्रामुकम् अचित्तम् 'एसणिज्ज' एषणीयम् आधाकर्मादिदोषरहितं 'जाव' यावत्-प्रतिमन्यमानो ज्ञात्वा लाभे सति 'पडिगाहिजा' प्रतिगृह्णीयात् तथाकांस्यपात्र में रक्खा हआ अथवा 'कोसगंसि वा' कोश-ढकना में रक्खा हुआ अशनादि चतुर्विध आहार जात को देख ले 'अहपुण एवं जाणिज्जा' अथ यदि ऐसा वक्ष्यमाण रीति से जान ले कि हाथ में उदक लेप 'बहु परियायण्णे' बहु पर्यापन्न-बहुत अधिक काल से परिणत हो गया है अर्थात् 'पाणीसु उद्ग लेवे' हस्त में पानी का लेप सूख गया है इसलिये हाथ पानी से गीला आई नहीं है अर्थात् हाथ जल से भीगा हुआ नहीं है ऐसा जानकर 'तहप्पगारं असणं चा, पाणं चा, खाइमं वा, साइमं वा' इस प्रकार का अशनादि चतुर्विध आहार जात को साधु 'सयं चाणं जाएजा' स्वयं याचना करे या पर-गृहस्थ श्रावक ही उस साधु को देये, इस प्रकार स्वयं याचना करे अथवा 'परोवा से देज्जा' गृहस्थ श्रावक के द्वारा ही दिये गये अशनादि चतुर्विध आहार जात को 'फासुथं एसणिज्जं जाव' प्रासुक अचित्त तथा एषणीय-आधाकर्मादि दोषों से रहित यावत्-समझते हुए साधु और साध्वी मिलने पर 'पडिगाहिज्जा' ग्रहण करले, क्योंकि इस प्रकार का पाला वगैरह में रक्खा हुआ अशनादि आहार 'डिडिमंसि वा' 38 उता साना पासमा राणे मथ। 'कोसगंसि वा' १२ मत ढां४९मा रामेस २५शनायतुवि५ हारने / a 'अह पुण एवं जाणिज्जा' ने तो ये समो -'बहुपरियावण्णे पाणीसु उदगलेवे' यम पायीन घn airi સમયથી પરિણત થઈ ગયેલ છે. અર્થાત્ હાથ પાણીથી પલળેલ નથી સુકાઈ ગયેલ છે. तथा ७५ पाfiqाणे भान नथी मेम समझने 'तहप्पगारं' ते प्रमाणेनु 'असणं वा पाणं या खाइमं या साइमं वा' अशन, पान माहिम म२ स्वाहिम से शतना यतुविध साहार जतने 'सय वा णं जाएज्जा' साधु पोते यायना ४२ २०१२ 'परोवा से देज्जा' श्रा१४
भने साये तो शतने। माडा२ 'फासुय' मयत तथा 'एसणिज्जं जाय' अषणीयभाभा पा पारने यावत् समलने 'पडिगाहिज्जा' साधु भने साधी प्राप्त થાય તે તે ગ્રહણ કરી લે. કેમ કે આ રીતે પવાલા વિગેરેમાં રાખવામાં આવેલ અશ
श्री मायारागसूत्र :४