Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतकस्ध २ उ. १० सू. १०८ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् २७९ चा-उद्याने वा 'अहे उवस्सयंसि वा' यथ उपाश्रये वा 'अप्पंडे वा' अल्पाण्डे वा अण्डरहितप्रदेशे वा 'अप्पपाणे वा' अल्पप्राणे वा-प्राणिरहितस्थाने वा 'अप्पबीए वा' अल्पबीजे वा बीजरहितप्रदेशे वा 'अप्पहरिए वा' अल्पहरिते वा हरितरहितप्रदेशे वा 'अप्पोसे वा' अल्प हिमकणे वा हिमकणरहित स्थाने या 'अप्पोदगे या' अल्पोदके वा शीतोदकरहितप्रदेशे चा 'जाव अप्पसंताणगे वा' यावत्-अल्पोत्तिङ्गपनकोदकमृत्तिका मर्कटसन्तानके वा-उत्तिङ्गपनकोदकमृत्तिकालतातन्तु जाल रहितस्थाने वा 'फलस्स सारभागं पोग्गलं भुच्चा' फलस्य बहुबीजक बहुकण्टयुक्तफलस्य सारभागं पुद्गलं मुक्त्वा 'बीयाई कंटए गहाय' बीजानि कण्टकानि गृहीत्वा से तमायाय' स-भावभिक्षुः, तदादाय बीजकण्टकानि नीत्वा 'एगंतमवक्कयेज्जा' एकान्तम् अपक्रामेत् 'एगंतमकमित्ता' एकान्तमपक्रम्य 'अहेज्झामथंडिलंसि वा' मवकमिज्जा' एकान्त में चला जाय, और चाहे 'अहे आरामंसिवा'-उद्यान बगीचा में या 'अहेउवस्सयंसि वा' उपाश्रय में अथवा 'अप्पंडे अप्पपाणे' अण्डासे रहित प्रदेश में या प्राणी से रहित स्थान में या 'अप्पथीए वा' बीज रहित स्थान में अथवा 'अप्पहरिए या हराभरा रहित प्रदेश में 'अप्पोसे वा' हिम कण रहित स्थान में या 'अप्पोदगे वा' शीतोदक रहित प्रदेश में अथवा 'जाब अप्पसंता. जगे वा' यायत्-उत्तिन-छोटी छोटी चिटी पिपडी, एवं पनक-फनिगा, और उदकमृत्तिकापानी से मिश्रित मिट्टी तथा मर्कट लता तन्तु संतानक-मकरा का तन्तु जाल से रहित प्रदेश में उस बहु बीज तथा बहुत कण्टक युक्त 'फलस्स सारागं' फलका सार भाग रूप 'पोग्गलं भुच्चा' पुदगल को खाकर 'बीयाई कंटगे गहाय' उस के बीजों को और कांटेको लेकर 'से तमायाप एगंतमयकमेजा' वह पूर्वोक्त संयमशील साधु उसको ग्रहण कर एकान्त में चला जाय और 'एगंत मवक्कमित्ता' एकान्त में जाकर उन सभी बीजों और कांटों को 'अहे ज्झामथंडि तो मशीयामा मया 'अहे उवस्सयसि वा' पाश्रयमा अथवा 'अप्पंडे वा अप्पपाणे वा' डा विनाना प्रदेशमा मा२ प्रा विनाना स्थानमा 'अप्पत्रीए वा अप्पहरिए वा' या भी विमान स्थानमा अथ दीविनाना प्रदेशमा मथ'अप्पोसे वा अप्पोदगे वा' ५२३॥ ॥ विनाना स्थानमा अथवा ४. पाय पाना स्थानमा अथवा 'जाव अप्पसंताणके वा' यावत् नानी नानी (उयो मी पन अने भूति पोथी भणेही भाटी मट-सूत। माना तु विनाना प्रदेशमा ने 'फलस्स सारमार्ग पोग्गलं भुच्चा' सेमी तथा मटियाणा ने सारमा ३५ घुसने पाइने 'बीयाइ कंटए गहाय' तेना मी मने सामान २ ‘से तमायाय एगंतमवक्कमेज्जा' से पूर्वात सयमास સાધુ કે સાધવીએ તે બહુ બીવાળા કે બહું કાંટાવાળા ફળને લઈને એકાંતમાં ચાલ્યા જવું भने 'एगंतमवक्कमित्ता' मेम ने ये मामी सन याने 'अहे ज्झामथंडिलंसि वा'
श्री सागसूत्र :४