Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १० सू. १०६ पिण्डेषणाध्ययननिरूपणम् २७१ निच्योतितेक्षुबाह्याग्रमागं वा 'उच्छुसालगं वा' इक्षुशालकं वा-इक्षुशाखां वा 'उच्छुडालगं वा' इक्षुशाखाखण्ड का 'सिंबलिं वा' सिम्बली वा-मुद्गादीनामचित्तफली वा 'सिंबळथा लगं वा' सिम्बली स्थालकं वा-बालप्रभृतीनामचित्तफलिकां वा यदि जानीयादिति पूर्वे णान्वयः तदुपसंहारफलितमाह-'अस्सि पडिग्गहयंसि' अस्मिन् खलु प्रतिग्रहे-गृहस्थपात्र. स्थापितं 'अप्पेसिया भोयणजाए' अल्पं स्यात् भोजनजातं अल्पमात्रग्राह्या हार जातं 'बहुउज्झियधम्मिए बहूशितधर्मिक' अधिकत्याज्यनिस्तारभागं लभ्यमानं सति 'तहप्पगारं अंतरुच्छुयं वा' तथापकारम् अन्तरिक्षुकम् वा इक्षुपर्वमध्यम् 'उच्छुगंडियं वा' इक्षुगण्डिको वा बग्रहित सपर्वेक्षुखण्डं वा 'उच्छु बोयगं वा' इक्षच्योतकं वा निष्यिष्टेक्षुनिः सारत्वचम् वा 'उच्छु मेरगं वा' इक्षुमेरुकं वा निच्योति ते क्षुबाह्याग्रभागं वा 'उन्छुसालगं वा' इक्षुशालकम्लिं चा, सिंबलि थालगं वा, सिम्बली-मूंग बगैरह की फली को या सिम्बली स्थालक-मूग वगैरह की अचित फली को वक्ष्यमाण रूप से जान ले कि इस पूर्वक्रिया से अन्वय समझना चाहिये, अब उन सबका उपसंहार करते हुए कहते हैं-'अस्सि पडिग्गहयंसि, अप्पे सिया भोयणजाए, बहु उज्झिय धम्मिए' अस्मिन् प्रतिग्रहे-इस गृहस्थ श्रावक के पात्र में स्थापित-- रक्खा हुआ, अल्प मात्र ग्राह्य भोजन जात-अशनादि चतुर्विध आहार जात यदि बहरज्झित धार्मिक-अधिक त्याग करने योग्य निस्सारभाग हो अर्थात् थोडा हो भाग ग्रहण करने योग्य हो और अधिक भाग छोडने योग्य आहार जात हो तो इस प्रकार के भोजन जात को मिलने पर भी नहीं लेना चाहिये ऐसा बतलाते हुए कहते हैं-'तहप्पगारं अंतरुच्छुयं बा, उच्छुचोयगं वा, उच्छुमेरगं चा' तथा प्रकार-इस तरह का अन्तरिक्षुक-गन्ना के पोर का मध्य भाग, जो कि अधिक त्याज्य भाग वाला है और थोडा ही ग्रात्य भाग चाला है इस प्रकार का 'उच्छु. गंडियं वा गन्ना के पूर्व का मध्य भाग को एवं इक्षुगण्डि का-छिलका से रहित गन्ने का पूर्व खण्ड को तथा 'उच्छु चोयगं वा' इक्षुच्योतक-रस निचोरा हुआ ४४७ने तथा 'सिंबलिं या' भावगेरेनी सीने मथ। 'सिंबलिथालगं वा' भग विशेरनी અચિત્ત સીંગને જે નીચે કહેવામાં આવ્યા પ્રમાણે જાણવામાં આવે કે-આની સાથે સંબંધ समय। 62 ७५ डा२ ४२त ४३ छ, 'अस्सि पडिग्गहियासि' मा यतिना पत्रमा २।सामi Pा 'अप्पेसिया भोयणजाए' रामेस २५शनात मा।२ २५६५मात्र बाह्य डाय 'बहुउज्झियधम्मिए' मधि४ त्या॥ ४२५॥ योग्य डाय अर्थात् 231 २१ मा देवाने योग्य डाय भने पधारे छ।उ4। योग्य माहा२ सय तो 'तहप्पगारं' तक प्रा२ना 'अंतरुच्छुय वा' साहनी हनी मध्यम भाग २ पधारे नामी हेवा वो डाय छे. तथा था। ४ देवा सायडाय छ मा प्रश्ना शमीन मध्यभागने तथा 'उच्छुगंडियं या' छ।। पिनाना शसडीन ४४ाने तथा 'उच्छचोयगं वा' २सनी यावेद शीना
श्री सागसूत्र :४