Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंघ २ उ. ५ सू० ४२ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् १२९ णी वा' पूर्वोक्तो भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'गाहावइ कुलं' गृहपतिकुलम् 'जाव पयितु समाणेयावत्-पिण्डपानप्रतिज्ञया प्रविष्टः सन् यदि जानीयात् अंतरा से' अन्तरा-मार्गमध्ये तस्य साधोः 'ओवाओवा' अवपातः-गर्तः, तथा 'खाणू वा' स्थाणुर्वा-स्तम्भविशेषो वा एवं 'कंटए वा कण्टको वा 'घसीवा' घसीवा-स्थलादघस्तादवतरणरूपा 'भिलूगा वा भिलूगास्फुटितकृष्णवर्णभूराजिरूपा या 'विस मेवा, विज्जले वा विषमो वा-उच्चावचं निम्नोभतरूपं स्थलं वा विज्जलं वा कर्दमरूपं वा 'परियावज्जिज्जा' परितापयेत् परितापनं कुर्यात् तर्हि 'सनि परक्कमे' सति पराक्रमे-मार्गान्तरे विद्यमाने सति 'संजयामेव परकमेज्जा' संयत एव स साधुः मार्गान्तरेणैव पराक्रामेत् गच्छेत् ‘णो उज्जुयं गच्छिज्जा' नो ऋजुकम्-ऋजुना सरलेन गर्नादियुक्तेन मार्गेण गच्छेत्, तथा सति गादियुक्तमार्गेण गमने सनि संयमात्मविराधना संभयात्, तस्मात मार्गान्तरे सति ऋजुनापि गादियुक्तपथा न गच्छेदिति मावः॥० ४९॥ ही जाना चाहिये यह बतलाते हैं-से भिक्खू वा भिक्खुणी या गाहावइ कुलं' वह भिक्षु-भाव साधु और भिक्षुकी भाव साध्वी-गृहस्थ श्रावक के घर में 'जाच पविढे समाणे' यावत्-पिण्डपान की प्रतिज्ञा से-भिक्षालाम की आशा से अनुप्रविष्ट होकर-अनुप्रवेशकरते हुए यह यदि ऐसा वक्ष्यमाण रीति से जाने कि अन्तरा से 'ओवाओवा'-अन्तरा-मार्ग के मध्य में उस साधु को अवपात-गर्त खड्डा मिले या 'खाणू वा स्थाणु-स्तम्भ विशेष खूटामिले या 'कंरए वा' कण्टक-कंटा मिले या 'घसी वा' घसी-स्थल से नीचे उतरने का मार्ग मिले या 'भिलूगा या'-स्फुटित काला वर्ण की भूराजिरूप ऊंचा स्थान विशेष टील्हा मिले या 'विसमेवा' विषम-उच्चावच-उबडखाबड निम्नोन्नत भूमि मिले अथवा 'विज्जलेवा' विज्जुल कोचड रूप कर्दम मिले अर्थात् ये सभी यदि उस साधु या साध्वी के 'परियावजिज्जा' परितापित करने वाला होतो 'सतिपरकमे दूसरे मार्ग के होने पर 'संजयामेव परक्कमेज्जा' संयमशील होकर ही वह साधु और साध्वी दूसरे ही रास्ते से मिक्षा के लिये जाय, भले ही यह दूसरा रास्ता दूरवर्ती ही क्यों नहो उसी से जाय किन्तु 'णो उज्जुयं गच्छिज्जा' ऋजु. ५२मां यावत् भिक्षा मनी ४२७थी 'पविढे समाणे' प्रवेश पशन तमना नपामा मे भावे -'अंतरा से ओवाओ वा' भाभी के साधुने मा31 'खाणू वा' स्तन विशेष हाय अथवा हाय 'कंटए वा' givडाय 'घस्सी वा' सुपाण। २स्ता सोय 'भिल्लू. गा वा' टेस नी भीननुयु स्थान डाय 4थवा 'विसमे वो' नीया Guy प्रदेश हाय अथवा 'विज्जले वा' ४४१वाजी भीन डाय अर्थात् 240 या साधुसापान 'परियावज्जिज्जा' ५२तापित अर्थात् पीड। ४।२४ थाय तो 'सति परकमे भी भागीय त 'सजयामेव परकमेज्जा' सयमा यछन ते साधु सावाये पीत तथा MAL A . ५२तु णो उज्जुय गच्छिज्जा' स२८ २९तेथी अर्थात् मा। 23२॥ विश्था
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શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪