Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ६ सू० ६१ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् १६१
छाया-स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा अथ पुनरेवं जानीयात् पृथुकं वा बहुरजो या यावत् नन्दुलप्रलम्ब वा भसंपताः मिथुप्रतिज्ञया चित्तवत्यां शिलायाम् यावत् संतानोपेतायाम् अकुद्विषर्या कुट्टन्ति वा कुट्टिष्यन्ति वा, अदुर्वा ददति वा दास्यन्ति वा तथाप्रकारं पृथुकं वा यावत् अप्रासुकं न प्रतिगृह्णीयात् ।। सू० ६१ ।। ____टीका-अथ पिण्डैपणाया अधिकाराद् भिक्षाविषयमेवाधिकृत्य निषेधमाह-‘से भिक्खू या भिक्खुणी वा' स पूर्वोक्तो भिक्षुर्ग भिक्षुकी वा 'से जं पुण जाणिज्जा' अथ यत् पुनरेवं जानीयात्-'पिहुयं वा बहुरयं वा जाव चाउलपलंबं वा' पृथुकं वो चिपिटान्नं शालीयवगोधूमादि सचित्तलाजान्न वा बहुतुपकणोपेतम् यावत्-भनितं या, मन्थु वा-गोधूमादिचूर्णम् , तण्डुलं वा, तण्डुलप्रलम्बं वा-अर्धप्रश्वचाल्यादिकणादिकं धान्यादिचूर्णम् 'असंजए' असंयता:-गृहस्थाः 'भिक्खुपडिया' भिक्षुप्रतिज्ञया-साधुमुद्दिश्य 'चित्तमंतार सिलाए' चित्तपत्यां शिलायाम् 'जाव संतागाए' यावत्-सबीजायां सहरितायां साण्डायाम् सप्राणायाम् ससच्चायां सभूतायां मर्कटसन्तानायां लूतातन्तु जालोपेतायाम् 'कुर्दिसु वा' अकुट्टिषुर्वा- कुट्टि ____टीकार्थ-पिण्डैषणा का अधिकार होने से भिक्षा विषय को ही लेकर निषेध बतलाते हैं-'से भिक्खू वा भिक्खुणी बा से जं पुण जाणिज्जा-वह पूर्वोक्त भिक्षुभाव साधु और भिक्षुकी-भाव साध्वी बह यदि ऐसा वक्ष्यमाण रीति से जान ले कि 'पिहुयं वा, बहुरयं वा, जाव चाउलपलंबं वा' पृथुक-पौआं- चूरा को अर्थात् शाली गोधूम यव वगैरह का सचित्त लाजान्न को या बहरज-अधिकतुष कणों से युक्त अन्न को या यावत्-भर्जित-भुजा हुआ भन्थु गोधूमादि चूर्ण को या तण्डुल चावल को या तण्डुलधान्यादि चूर्ण को 'असंजए असंयत-गृहस्थ श्रावक 'भिक्खुपडियाए' भिक्षुक की प्रतिज्ञा से-साधुको देने की इच्छा से 'चित मंताएसिलाए' जाब संताणए' सचित शिला पर जो कि यावत्-सबीज सचित बीजों से युक्त है एवं सचित हरित घास वगैरह से युक्त है तथा अण्डे से युक्त है और अन्य प्राणी-सत्व भूत लूता मकडा तन्तु जाल से युक्त है इस प्रकार की सचित्त शिला का खण्ड विशेष' पर 'कुटिंसु वा कुटिंति वा' कुट चुका हैं या પિઠેષણાનો જ અધિકાર હેવાથી ભિક્ષા સંબંધી નિષેધનું જ રરકાર કથન કરે છે.
12-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूरित मा साधु मा साधी से जं पुण जाणिज्जा' तेयाना requi मे मावे 'पिहुयं वा बहुरयं वा जाव' पोमाने અર્થાતુ ડાંગર, ઘહું, જવ, વિગેરેની સચિત્ત ધાણીને અથવા બહુરજ અધિક છેડા ના કણોથી યુકત અનને અથવા યાવત્ શેકેલા ઘણું વિગેરેના લેટને અર્થાત सत्तन ॥२ 'चाउलपलंब वा' यामान ॥ धान्याना साटन 'असंजए भिक्ख पडियाए' मसयत-९२५ श्राप साधुने मापवानी थी 'चित्तमंताए सिलाए રાજ' બીજ અર્થાત્ સચિત્ત શિલા પર અર્થાત જેના પર બી પડેલા હોય તેવી શિલા પર
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श्री सागसूत्र :४