Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे प्रतिगृह्य पुष्पं पुष्पम् आपीय कषायं कषायं परिष्ठापयेत, मावस्थानं संस्पृशेत्, नो एवं कुर्यात्, पुष्पं पुष्पिमिति वा कषायं कषामिति वा सर्वमेतत् भुञ्जीत नो किश्चिदपि परिष्टापयेद् ॥१९॥ __टोका-'पानकविषयमधिकृत्य नत्र विशेष वक्तुमाह-'से भिक्खू वा भिवखुणी वा' स पूर्वोक्तो भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'गाहावइकुलं' गृहपतिकुलम्-गृहस्थगृहम् 'जाव पविढे समाणे' यावत्-पिण्डपातप्रतिज्ञया भिक्षालाभार्थ प्रविष्टः सन् 'अण्णयरं पाणगजायं अन्यतरद यत् किमपि पानकजातम्-पेयवस्तु 'पडिगाहित्ता' प्रतिगृह्य-गृहीत्वा तत्र पानकजाते पुप्फं पुष्पं आसाइना' पुष्पं पुष्पम्-सुगन्ववर्णरसोपेतम् आपीय-पीत्वा 'कसायं कसायं परिहवेई' कषायं कषायं-कषायरसोपेतम् यदि परिष्ठापयेत्-परित्यजेत् तर्हि 'माइट्ठाणं संफासे' मातृस्थानम्-मायाछलकपटादिदोषजातम् संस्पृशेत्, छलकपटादिदोषयुक्तो भवेत् तस्मात्
अब पान विषय को लक्ष्य कर कुछ विशेष बात बातलाना चाहते हैं
टीकार्थ-'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, गाहयइ कुलं जाव पविठू समाणे' वह पूर्वोक्त भिक्षुक-संयमवान् साधु और भिक्षुकी-साध्वी गृहति-गृहस्थ श्रावक के घर में यावत्-पिण्डपात की प्रतिज्ञा से अर्थात् भिक्षालाभ की आशासे अनुप्रविष्ट होकर 'अण्णयरं या पाणगजायं पड़िगाहित्ता' अन्यतर-किसी भी एक पानक जात-पेय वस्तु को ग्रहण कर 'पुष्पं पुष्पं आसाइत्ता' उस में से अधिक सुगन्धित रस युक्त पेय वस्तु को पीकर अत्यन्त 'कसायं कसायं कषाय कषायला रस युक्त पेय वस्तु को यदि 'परिवेइ' फेंकदे तो 'माइट्ठाणं संफासे' मातृ स्थान दोष मायाछलकपटादि दोष लगेगा, इसलिये 'णो एवं करिजा' ऐसा नहीं करे आर्थात् भिक्षा के रूप में पेय वस्तु को लाकर उनमें अच्छा गन्ध रस वर्ण युक्त पेयवस्तु का पान करले और यदि कषाय रस युक्त पेय वस्तु का परित्याग करदे तो साधु और साध्वी को मायाछलकपरादि दोष होने से संयम आत्म विराधना होगी, क्योंकि साधु को संयम का पालन करना ही मुख्य कर्तव्य
હવે પાન વિષયના સંબંધમાં કંઈક વિશેષ કથન કરે છે.
टी-से भिक्ख वा भिक्खुणी वा ते पूरित साधु सादी 'गाहावइकुलं जाव' २५ श्रा१ना ५२i यापत् सिक्षा भवानी ४-12ी 'पविद्वेसमाणे' प्रवेश ४शन 'अण्ण यरं वा पाणगजाय 1 मे पान ५२ 'पडिगाहित्ता' असएशन तेमाथी पुष्फ पुष्फ आसाइत्ता सुध २सा पेय ५४ायन पोते पाउनेते शिवायना कसाय कसायं पडिटुवेई' ४पाय २सवाणा पेय द्रव्य ३७ हे तो साधु सापान 'माइट्ठाणं संफासे' भाया ७४४५6 ष सा छे. तेथी जो एवं करिज्जा' तथा ३ प्रमाणे:४२७ नही. अर्थात ભિક્ષા રૂપે મળેલ પિય પદાર્થ પૈકી સારા સુગંધદાર કે સ્વાદિષ્ટ રસ યુક્ત પેય વસ્તુનું પાન કરીને બાકીના ખાટા તુરા કડવા વિગેરે રસવાળા પદાર્થને ત્યાગ કરવાથી સાધુને માયા છલકપટાદિ દોષ થવાથી સંયમ આત્મ વિરાધના થશે, કેમ કે સંયમ પાલન એજ
श्री सागसूत्र :४