Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे कुट्रियाओ वा कोलेजाओ वा, असंजए भिक्खुपडियाए, उक्कुजिय अव उज्जिय ओहरिय, आहट दलइज्जा, तहप्पगारं असणं वा पाणंवा खाइम वा साइमं वा मालोहडंति णच्चा लाभे संते णो पडिगाहिज्जा ॥सू. ६६॥ ___ छाया-स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा गृहपतिकुलं यावत् प्रविष्टः सन् यत् पुनरेवं जानीयात्अशनं वा पानं वा खादिम वा स्वादिम वा कोष्टिकातो वा अधोवृत्तखाताकाराद् वा असंयतः भिक्षुप्रतिज्ञया उत्कुब्ज्य अवकुब्ज्य अवहृत्य आहृत्य दद्यात्, तथाप्रकारम् अशनं वा पानं वा खादिम वा स्वादिम वा लाभे सति नो प्रतिगृह्णीयात् ॥ ०६६ ॥
टीका-पुनः प्रकारान्तरेणापि भिक्षानिषेधमाह-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स पूर्वोक्तो भिक्षु भिक्षुकी वा 'गाहावइकुलं जाव' गृहपतिकुलं गृहस्थगृहं यावत्-पिण्डपातप्रतिज्ञयाभिक्षालाभाशया 'पविढे सपाणे' प्रविष्टः सन् ‘से जं पुण एवं जाणिज्जा' स भिक्षुः यदि पुनरेवं वक्ष्यमाणरीत्या जानीयात् तद्यथा 'असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा' अशनं वा पानं वा खादिम वा स्वादिमं वा एतच्चतुर्विधमाहार जातम् 'कुट्टियानो वा' कोष्ठिकातो वामृत्तिकानिर्मितकुशूलाद् वा 'कोलेज्जाओ वा' वंशादिनिर्मिताधोवृत्तखाताकारविशेषाद् वा (ढक इति भाषा) उद्धृत्य 'असंजए' असंयतः-गृहस्थः भिक्षादाता 'भिक्खुपडियाए' भिक्षु.
टोकार्थ-अब दूसरे प्रकार से भी भिक्षाका निषेध बतलाते हैं-'से भिक्खू वा भिक्खु णी वा' वह पूर्वोक्त भिक्षु-भाव साधु और, भिक्षुकी-भाव साध्वी 'गाहा. वइ कुलं जाव पविढे समाणे से जं पुण एवं जाणिज्जा' गृहपति-गृहस्थ ायक के घरमें यावतू-पिण्डपात की प्रतिज्ञा से-मिक्षा लाभ की आशा से अनुप्रविष्ट होकर यदि ऐसा वक्ष्यमाणरीति से जान ले कि 'असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा' अशनादि चतुर्विध आहार जात 'कुहियाओ वा मिहि की बनाई हुई कोठो से या कोलेजाओ वा' आढक से जो कि वांस वगैरह से बनाया गया नीचे भाग में अत्यन्त गोलाकार फैला हुआ होता है उद्घृत्य निकालकर 'असंजए' असंयत गृहस्थ-श्रावक 'भिक्खुपडियाए' भिक्षु-साधु को भिक्षा देने की इच्छा
હવે પ્રકારાન્તરથી ભિક્ષાને નિષેધ બતાવે છે—
Astथ-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वात साप साधु सने हा साध्वी 'गाहा. वइकुलं जाव' Hिa! बालनी माथी गडपतिश्रावन घरमा 'पविढे समाणे' प्रवेश ४शन से जं पुण एवं जाणिज्जा' तेभनी गाभा मे मावे 'अप्पणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा' 41 RANनपान माम माने वाहन को सतुविध माहार nd 'कुट्टियाओ वा' भाटीनी हीमाथी कोलेज्जाओ वा' माथी अर्थात् पास विशेषथी मनावदा मने नायना भागमा थारे ग डाय तेमाथी ४९02. 'असंजए' ७५ श्रा१४ 'भिक्खुपडियाए' साधुने भिक्षा मापवानी थी 'उक्कुज्जिय' Us 4 वाजीने पोताना शरीरने नीयु नभा. पी२ म24. 'अव उज्जिय' अत्यत जान नीयनभान 'ओहरिय' 4241 4 जीन
श्री सागसूत्र :४