Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ ५ सू० ४८ पिण्डेषणाध्ययन निरूपणम्
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मार्गमवरुध्य स्थितं प्रेक्ष्य दृष्ट्वा एवं 'महिसं वियालं पडिप पेहाए' महिषम् महासरिभं व्यालम् - अत्यन्त दृप्तम् मदोन्मत्तं प्रतिपथे तन्मार्गमवरुन्धानं प्रेक्ष्य दृष्ट्वा 'एवं मणुस्सं आसं हल्थि' एवं तथैव मनुष्यं दुष्टम् दस्युप्रमृतिरूपम् अश्वम्-तुरगम्, हस्तिनम् दिग्गजम् 'सीहं वग्धं विगं' सिंहं व्याघ्रम्, वृकम् 'दीवियं अच्छं तरच्छं' द्वीपिनम् - चित्रकम्, ऋक्षम् - भल्लूकम्, तरक्षुम् - खड़गिनम्, व्याघ्रविशेषं वा 'परिसरं ' परिसरम् अष्टापदम् सरभम् 'सियालं' शृगालम् 'बिरालं' विडालम् 'सुर्य' शुनकम् - श्वानम्, 'कोलसुणयं' कोलमकरम् - वनकरम् 'कोकंतियम्' कोकन्तिकम् - शृगालाकारम् बहुलोभयुक्तम् बन्यजन्तुविशेषम् (खीखीर इति भाषा ) रात्रौ को को इत्येवं शब्दकर्तारम् 'चित्ताचिल्लडयम्' चित्ताचिल्लडयो वन्यजन्तुविशेषः तम् 'वियालं पडिप पेहाए' व्यालम् - अत्यन्यघोरम् सर्पम् भयङ्करमित्यर्थः प्रतिपथे पन्थानमवरुध्य स्थितं प्रेक्ष्य दृष्ट्वा 'सइपरकमे' सति पराक्रमे - मार्गान्तरे विद्यमाने सति 'संजयामेव परकमेज्जा' संयत एव पराक्रामेत् - मार्गान्तरेणैव गच्छेत् 'जो उज्जुयं गच्छिज्जा' नो ऋजुनाकाल - अत्यन्तदृप्त- मदोन्मत्तसांढ प्रतिपथ मार्गको रोककर खड़ा है ऐसा देख कर या जान कर एवं 'महिसं वियालं पडिपहे पेदाए' महिष भैसा जो कि अत्यन्त मदोन्मत्त होकर रास्ता, को रोक कर खड़ा है ऐसा देखकर या जानकर इसी तरह 'मनुस्सं आसं हस्थि' मनुष्य- दुष्ट-चोर दस्यु- डाकू वगै रह को तथा तुरगस घोडा को या हाथी को या 'सी व सिंह को एवं व्य- बाघ को और 'विगं दीविध' वृक-भेडिया को अथवा 'दीवियं' द्वीपी - चीता को या 'अच्छे' ऋक्ष-भालू को या 'तरच्छं' तरक्षु-गैंडा को या 'परिसरं ' परिसर- अष्टापद को या सरभ-सब से बडा अत्यन्त विशाल पक्षी विशेष को अथवा 'सियालं' सियार - गीदड को या 'विरालं' विडाल - वन विडाल को 'सुण' या शुनक - कुत्ता को या 'कोलसुणयं' कोक शुनक5- वनैया शुगर को तथा 'कोकंतियं' कोकन्तिक- खीखीर को एवं 'चिता चेल्लरयं' चित्ता चिडलय वन्य जन्तु विशेष को तथो 'विद्याल' व्याल - अत्यन्त भयंकर सर्प को पिडिपहे अथवा लगीने तथा 'महिस' वियालं पडिप पेहाए' पाडो ? अत्यन्त महोन्मत्त थर्धने रस्ताने रोडीने उलो होय खेवु लेने लगीने भेट प्रमाणे 'मणुस्स आस' हत्थिसीहं वग्धं विगं दीवियं अच्छं तरच्छं परिसरं सियालंविरालं सुणय कोलसुणय कोकंतियं चित्ताचेल्लरय वियालं पडिप पेहाए' दुष्ट भनुष्य और लुटारा विगेरे तथा घोडा, ने हाथी ने अथवा સિ'હુને કે વાઘને અગર નાર અથવા ચિત્તાને અગર રીછને કે તરક્ષને કે પરિસરને સરભ કે સૌથી મોટા પક્ષિ વિશેષને અથવા સિયાળને કે બિલાડીને કે કુતરાને જંગલી કુતરાને अथवा डाङतिङ } मंगली पशु विशेषने ! सर्पने 'पडिप पेहाए' भार्ग शहीने उलेसा लेने लखीने 'सइपरक्कमे' जीने भार्ग होय तो 'संजयामेव पकमेज्जा' संयम शीस થઇને જવું. અર્થાત્ બીજા માળેથી ભિક્ષા લેવા જવુ. જેથી સચમ અને આત્માની
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪