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आदर्श-जीवन ।
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'. उसी दिनसे लाला घसीटामलनीकी श्रद्धा ढूँढकपंथसे हट गई।
यह बात तो निश्चित है कि, विद्वानोंसे कभी दुकान्दारी नहीं होती। यही हालत पंडित अमीचंद्रजीकी भी हुई। उन्हें अपने योग्य कामकी जरूरत मालुम हुई । एक बार मुर्शिदाबादवाले बाबू धनपतिसिंहनीने कहा:-" आप गुरु महाराजकी (स्व० आत्मारामजी महाराजकी) सेवामें रहिए और साधुओंको पढ़ाइए । साधर्मीभाई समझकर आपकी योग्य सेवा होती रहेगी। तभीसे वे साधुओंके साथ ही रहते थे । स्वर्गीय आचार्य महारान श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद सूरिजीके प्रायः सभी साधु आपके पाससे कुछ न कुछ सीखे हैं, उस समय सीखते थे । पालीतानेके चौमासेमें चौबीस साधु थे उनमें से पन्द्रह सोलह साधु अमीचंद्रनीके पास उस समय पढ़ते थे। ... ___आपकी बुद्धि तेज थी । इसलिए आपने चौमासेहीमें चंद्रिकाका पूर्वार्द्ध समास तक समाप्त कर दिया। यह हम पहले ही बता चुके हैं कि, स्वर्गीय महाराज आप पर उसी दिनसे विशेष स्नेह रखते थे जिस दिनसे आपको उन्होंने देखा था और
आपकी बुद्धिका परिचय पाया था। अब चौमासेमें साथ होनेसे विशेष अनुग्रह हो गया। आप अभी अदीक्षित थे तो भी महाराज आपहीके पाससे अपना लिखानेका और पत्रव्यवहारका कार्य कराते थे। आपका भी स्कूलके अध्ययनके कारण लिख
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