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_ नमो नमो निम्मलदसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर-गुरुभ्यो नम:
भाग
सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि
27
आगम ३३-३९ ३३. मरणसमाधि-प्रकीर्णक [मूलं एवं संस्कृत-छाया] ३४.निशीथ,३५.बृहत्कल्प,३६.व्यवहार,३७.दशाश्रुतस्कंध,३९.महानिशिथ [५-छेदसूत्राणि मूल],
३८/१,जीतकल्प-मूलं+भाष्य,३८/२.पंचकल्प-भाष्यं.
मूल संशोधक :- पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब
अभिनव-संकलनकर्ता :- आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी [M.Com., M.Ed., Ph.D. श्रतमहर्षि
पूज्य शासनप्रभावक आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी की प्रेरणा से।
'वर्धमान जैन आगम मंदिर संस्था' पालिताणा
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ईस प्रोजेक्ट के संपूर्ण अनुदान दाता
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श्री आगम मंदिर
पालिताणा
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आजाआजामामाला
नमो नमो निम्मलदसणस्स
सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि
मूल संशोधक
अभिनव-संकलनकर्ता
PAPAE
पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज
आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहषि]
प्रत-प्राप्ति और पेज सेटिंग कर्ता : के चेरमन श्री प्रवीणभाई शाह, अमेरिका
मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस अमदाबाद Mo 9825598855 19825306275 |
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आगम आगम के आगम
A
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आजम VOLODIPH BBRICALL
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आश्रम
आगम
वाचना शताब्दी वर्ष
आगम Supre
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आगम
आवास
आगर
Honey
आगम
Grow
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आजक
अजम SUSTA
आजम आश्रम आगम
भागम वाजम
CHIOTA
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[भाग-२७] श्री मरणसमाधि (१ प्रकीर्णकसूत्र - १० ) श्री निशीथ आदि (६ छेदसूत्राणि २४-३२)
नमो नमो निम्मलदंसणस्स
पूज्य श्रीआनंद- क्षमा- ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः
३३. मरणसमाधि-प्रकीर्णक [ मूलं एवं संस्कृत - छाया] ३४.निशीथ,३५.बृहत्कल्प, ३६. व्यवहार, ३७. दशाश्रुतस्कंध, ३९. महानिशिथ [५-छेदसूत्राणि मूलं], ३८/१, जीतकल्प-मूलं भाष्यं, ३८/२.पंचकल्प-भाष्यं.
[आद्य संपादकश्री]
पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा. (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह )
पुनः संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.,श्रुतमहर्षि) 'सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि श्रेणि भाग-२७
28/07/2017, शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल ५
श्री आगमोद्धारक-वाचना- शताब्दी वर्ष निमित्त 'आगम-वृत्ति - मुद्रण- प्रोजेक्ट'
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सामाचारी-संरक्षक, ज्ञानधनी, आगम-संशोधक, तीव्र-मेधावी, समाधिमृत्यु-प्राप्त, बहुमुखीप्रतिभाधारक पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसरीश्वरजी महाराज साहेब
.जिन्होने शुद्ध-श्रद्धा, सम्यक् श्रुत आराधना, यथाख्यातचारित्र के प्रति गति और अंत समय देह-ममत्व के त्याग के द्वारा कायोत्सर्ग नामक : | अभ्यंतर-तप कि मिशाल कायम कि है ऐसे बहुश्रुत आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी महाराज का परिचय कराना मेरे लिए नामुमकिन है, फिर भी । गुरुभक्ति बुद्धि से श्रद्धांजली स्वरुप एक मामुली सी झलक पैस करने का यह प्रयास मात्र है।
.चारित्र-ग्रहण के बाद अल्प कालमे जो अपने गुरुदेव की छत्रछाया से दूर हो गये, तो भी गुरुदेव के स्वर्ग-गमन को सिर्फ कर्मो का प्रभाव : मानकर अपने संयम के लक्ष्य प्रति स्थिर रहते हए अकेले ज्ञान-मार्ग कि साधना के पथ पर चले | पढाई के लिए ही कितने महिनो तक रोज
एकासणा तप के साथ बारह किल्लोमिटर पैदल विहार भी किया | लेकिन अपने मंझिल पे डटे रहे, और परिणाम स्वरुप संस्कृत एवं प्राकृत भाषा का, | । प्राचीन लिपिओ का, व्याकरण-न्याय-साहित्य आदि का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया | जैन आगमशास्त्रो के समुद्र को भी पार कर गए।
. एक अकेला आदमी भी क्या नहीं कर शकता? इस प्रश्न का उत्तर हमें इस महापुरुष के जीवन और कवन से मिल गया, जब वे चल पड़े। | देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण के स्थापित पथ पर. बिना किसी सहाय लिए हुए सिर्फ अकेले ही “जैन-आगम-शास्त्रो" को दीर्घजीवी बनाने के लिए अनेक : हस्तप्रतो से शुद्ध-पाठ तैयार किये | दो वैकल्पिक आगम, कल्पसूत्र और नियुक्तिओ को जोड़कर ४५ आगम-शास्त्रो को संशोधित कर के संपादित किया : || फिर पालीताणामें आगम मंदिर बनवाकर आरस-पत्थर के ऊपर ये सभी आगम-साहित्य को कंडारा, सूरतमें तामपत्र पर भी अंकित करवाए और । : "आगम मंजूषा" नाम से मुद्रण भी करवा के बड़ी बड़ी पेटीमें रखवा के गाँव गाँव भेज दिए | वर्तमानकालमे सर्व प्रथमबार ऐसा कार्य हुआ |
.सिर्फ मूल आगम के कार्य से ही उन के कदम रुके नही थे, उन्होंने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, नियुक्ति, अवचूरी, संस्कृत-छाया आदि का | :भी संशोधन-सम्पादन किया | उपयोगी विषयो के लिए उन्होंने एक लाख श्लोक प्रमाण संस्कृत-प्राकृत नए ग्रंथो की रचना भी की | कितने ही ग्रंथो । की प्रस्तावना भी लिखी | ये सम्यक्-श्रुत मुद्रित करवाने के लिए आगमोदय समिति, देवचंद लालभाई इत्यादि विभिन्न संस्था की स्थापना भी की। |
.ज्ञानमार्ग के अलावा सम्मेतशिखर, अंतरीक्षजी, केशरियाजी आदि तीर्थरक्षा कर के सम्यक-दर्शन-आराधना का परिचय भी दिया | राजाओं . को प्रतिबोध कर के और वाचनाओ द्वारा अपनी प्रवचन-प्रभावकता भी उजागर करवाई | बालदिक्षा, देवद्रव्य-संरक्षण, तिथि-प्रश्न इत्यादि विषयोमे | सत्य-पक्षमें अंत तक दृढ़ रहे | जैनशासन के लिए जब जरुरत पड़ी तब अदालती कारवाईओ का सामना भी बड़ी निडरता से किया था |
• सागरानंदजी के नाम से मशहूर हो चुके पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजीने अपने परिवार स्वरुप ८७० साधू-साध्वीजी भी शासन को भेट किये | ...ये थे हमारे गुरुदेव “सागरजी"...
......मुनि दीपरत्नसागर... .. -.. -.. -.. -.. -..
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संयमैकलक्षी, उपधान-तप-प्रेरक, चारित्र मार्ग-रागी, प्रवचन- पटु, सुपरिवार युक्त
पूज्य गच्छाधिपतिआचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब
••• परमपूज्य आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी के पाट-परंपरामे हुए तिसरे गच्छाधिपति थे पूज्य आचार्य श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी, जो एक पून्यवान् आत्मा थे, दीक्षा ग्रहण के बाद अल्पकालमे ही एक शिष्य के गुरु बन गये । फ़िर क्या ! शिष्यो कि संख्या बढ़ती चली, बढ़ते हुए पुन्य के • साथ-साथ वे आखिर 'गच्छाधिपति' पद पे आरूढ़ हो गए | इस महात्मा का पुन्य सिर्फ शिष्यों तक सिमित नही था, वे जहा कहीं भी 'उपधान- तप' की प्रेरणा करते थे, तुरंत ही वहां 'उपधान' हो जाते थे | प्रवचनपटुता एवं पर्षदापुन्य के कारण उन के उपदेश प्राप्त बहोत आत्माओने संयम-मार्ग का स्वीकार किया | खुद भी संयमैकलक्षी होने के कारण चारित्रमार्ग के रागी तो थे ही, साथसाथ ज्ञानमार्ग का स्पर्श भी उन का निरंतर रहेता था | आप कभी भी दुपहर को चले जाइए, वे खुद अकेले या शिष्य परिवार के साथ कोई भी ग्रन्थ के अध्ययन-अध्यापनमें रत दिखाई देंगे |
••• ये तो हमने उनके जीवन के दो-तीन पहेलु दिखाए | एक और भी अनुसरणीय बात उन के जीवनमें देखने को मिली थी- 'आराधना-प्रेम'. कैसी भी शारीरिक स्थिति हो, मगर उन्होंने दोनों शाश्वती ओलीजी, [पोष}दशमी, शुक्ल पंचमी, त्रिकाल देववंदन, पर्व या पर्वतिथि के देववंदन आदि आराधना कभी नहीं छोड़ी | आखरी सालोमें जब उन को एहसास हो गया की अब 'अंतिम आराधना' का अवसर नजदीक है, तब उन के मुहमें एक ही | • रटण बारबार चालु हो गया- "अरिहंतनुं शरण, सिद्धनुं शरण, साधुनुं शरण, केवली भगवंते भाखेला धर्मनुं शरण" इसी चार शरणो के रटण के साथ ही वे : समाधि-मृत्यु-रूप सम्यक् निद्रा को प्राप्त हुए थे | ऐसे महान् सूरिवर को भावबरी वंदना | मुनि दीपरत्नसागर....
श्री वर्धमान जैन आगम मंदिर संस्था, पालिताणा
...
पूज्यपाद आनंदसागर-सूरीश्वरजी की बौद्धिक प्रतिभा का मूर्तिमंत स्वरुप ऐसी इस संस्था की स्थापना विक्रम संवत १९९९ मे महा-वद ५ को हुई | पूज्य आचार्य हर्षसागरसूरिजी की प्रेरणा से जिन की तरफ़ से इस सवृत्तिक- आगम-सुत्ताणि के लिए संपूर्ण द्रव्य सहाय की प्राप्ति हुई | शिल्प-स्थापत्य, शिलोत्कीर्ण आगम और समवसरण स्थित नयनरम्य ४५ चौमुख जिन प्रतिमाजी से सुशोभित ऐसा ये 'आगममंदिर है, जो शत्रुंजय-गिरिराज कि तलेटीमे स्थित है । वर्तमान २४ जिनवर, २० विहरमान जिनवर और १ शाश्वत मिलाकर ४५ चौमुखजी यहा बिराजमान है | जहां ४० समवसरण की रचना मेरु पर्वत के तिनो काण्ड के वर्णों के अनुसार चार अलग-अलग रंगो के आरस पत्थर से बना है, देवो द्वारा रचित समवसरण ं के शास्त्र वर्णन अनुसार आगम मंदिर कि समवसरण का स्थापत्य है । ऐसी अनेक विशेषता से युक्त ये आगममंदिर है |
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मुनि दीपरत्नसागर ....
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____ 'सागर-समुदाय-एकता-संरक्षक, तीर्थ-उद्धार-कार्य-प्रवृत्त, गुणानुरागी' इस “सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि' श्रेणि भाग १ से ४० के संपूर्ण अनुदान के प्रेरणादाता पूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री हर्षसागरसूरिजी महाराज साहेब
पूज्यपाद स्व. गच्छाधिपति देवेन्द्रसागर-सूरीश्वरजी के विनयी शिष्य एवं दो गच्छाधिपतिओ के मुख्य सहायक के रुपमे 'सागर समुदाय' के सुचारु संचालक पूज्य हर्षसागरसूरिजी, जिन की प्रेरणा से ये "सवृत्तिक-आगम-सत्ताणि" के मुद्रण के लिए संपूर्ण द्रव्यराशि प्राप्त हुई, उनका अत्यल्प परिचय यहां करेंगे| समुदाय-एकता के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हुए ये महात्मा समुदाय के साधु-साध्वीजी की आवश्यकताओकी पूर्ती के लिए भी प्रवृत्त रहेते है, प्राचीन-अर्वाचीन तीर्थो के जीर्णोद्धार एवं विकाश के लिए भी उत्साहित रहेते है, ज्ञान-क्षेत्र अछूता न रहे इसीलिए अनुमोदना, अनुदान एवं | समय मिलने पर शास्त्र-वांचनमें भी रूचि रखते है | समुदाय के जरूरतमंद साध्वीजी भगवंतो के आवास का विषय हो या साध्वीजी के विहारमें मजदूर
का वेतन चुकाना हो, ऐसे छोटे-छोटे कार्यों के प्रति भी उन का लक्ष्य रहेता है | दर्शन-शुद्धि के लिए जब उन्होंने समग्र भारतवर्ष के १०० साल तक के | पुराने जिनालयो में १८ अभिषेक की प्रेरणा की, उस वक्त लगभग सभी अभिषेक-सामग्री की द्रव्य-शुद्धि का ख़याल रखते हुए अपनी मेधावी बुद्धि का : परिचय दिया था, साथमे अनुकंपा भाव से पुजारी या विधि करानेवाले को यत्किंचित् बहुमान प्रगट करते हुए कुछ धन-राशि प्रदान करवाई | ऐसे बहुगुण-संपन्न महात्मा पूज्य आचार्यश्री हर्षसागर-सूरिजी को हम भावभरी वंदना करते हुए इस श्रुतकार्य का प्रारंभ करने जा रहे है।
- मुनि दीपरत्नसागर
[कात्रजपूना, कपडवंज, प्रभासपाटण आदि स्थानोमे आगममंदिर के प्रेरक, कर्मग्रंथ अभ्यासु, निस्पृह महात्मा पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्य श्री दौलतसागर-सूरीश्वरजी महाराज साहेब
(एवं) अजातशत्रु, स्वाध्याय-रसिक, प्रशांतमूर्ती और अपने गुरु के प्रीतिपात्र
परम पूज्य आचार्य श्री नंदीवर्धनसागर-सूरिजी महाराज साहेब
इस पवित्र श्रुत-कार्यमे दोनो सूरिवरो का स्मरण करते हुए कोटि कोटि वंदना के साथ :-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..
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.......... भाग-२७मे कहां क्या देखोगे [१].........
मूलाका: ६६३+प्र०१
मुलांक
गाथा:
[आगम-३३] मरणसमाधि प्रकीर्णक(१०)-सूत्रस्य विषयानुक्रम
दीप-अनुक्रमा: ६६४ पृष्ठांक: | मलांक:
गाथा:
| पृष्ठांक | मूलांक:
गाथा:
पृष्ठांक: ०१४ ०११ आराधना, मरणस्वरुपम् ०२० ०८४ | आचार्यस्य गुणा:
०२६ રાક १२७ तपस: भेदा:
०३१ १२९ | ज्ञानादि गण-वर्णनं
०३२ १७५ संलेखना ०३८ २०८ आतुरप्रत्याख्यान-आदिः
०४२ २६७ आराधना, उपदेश-आदिः ०५० ४१३ | विविध-उदाहरणादिः
०७१ ०८७ ५५१ आराधना-अनचिन्तन
५७० दवादश-भावना
०९३ १०३
००१ | मरणविधि: आरम्भ: ०९३ | आलोचना-वर्णनं १५८ | आत्मन: शुद्धिः २५८ | पञ्चमहाव्रतस्यरक्षा ५२६ । मरणभेदानि-निरूपणं ६४० पण्डितमरणं, उपसंहार:
०३६
१०९
१११
११२
११३
११३
समाप्तोऽत्र प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम........अथ छेदसूत्रस्य विषयानुक्रम: आरभ्यते मूलाका : ५८+.......+५१ [आगम-३४] 'निशीथ' (१) छेदसूत्रस्य विषयानुक्रम
दीप-अनुक्रमा: १४२० मुलांक उद्देश: पृष्ठांक: मूलांक:
उद्देश: पृष्ठांक | मुलांक:
उद्देश:
पृष्ठांक: ०००१ | प्रथम:
००५९ | वितिय:
१०८ | | ०११८ | तृतीय: ०१९७ | चतुर्थ:
०३१४ | पंचम:
| ११० । । ०३९३ | षष्ठ: । ०४७० सप्तमः ११२ ०५६१ | अष्टम:
०५८० | नवम: ०६०८ | दशम:
०६५५ | एकादश: ११४ ०७४७ | द्वादश:
११५ ०७८९ | त्रयोदश: ११५ ०८६३ | चतुर्दश:
११६ ०९०५ | पंचदश:
११६ १०५९ | षोडश: ११७ ११०९ | सप्तदश:
१२६० अष्टादश:
११८ १३३३ | एकोनविंशतिः ११८ १३७०- | विंशति:
११८ मूलाङ्का : ५०+.......+२० [आगम-३५] 'बृहत्कल्प' (२) छेदसूत्रस्य विषयानुक्रम
दीप-अनक्रमा: २१५ उद्देश: | पृष्ठांक: । | मुलांक: ।
उद्देश: पृष्ठांक | | मूलांक:
उद्देश:
पृष्ठांक: ०००१ | प्रथम: १२१ । ००५९ | दवितिय: । | १२३ । । ०११८ | तृतीय:
१२४ ०१९७ | चतुर्थ: १२५ ०३१४ | पंचम: १२७ | | ०३९३ | षष्ठः
१२९ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [३३-३९] अन्तर्गता: १-प्रकीर्णकसूत्र [१०] मूलं एवं संस्कृतछाया + छेदसूत्राणि [१-६]
मूलांक
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...... भाग-२७मे कहां क्या देखोगे [२].........
अत्र छेदसूत्रस्य विषयानुक्रम: वर्तते
मूलाका : ३५+.......+३७ मूलांक
उद्देश: ००१
प्रथम: ०९५ ।
चतुर्थ: १६०
सप्तम: २४९
दशम:
[आगम-३६] 'व्यवहार' (३) छेदसूत्रस्य विषयानुक्रम पृष्ठांक: मूलांक:
उद्देश:
पृष्ठांक मलाक: ०३६ दवितिय:
। १३३ । । ०६ १३५ १२७ पंचम:
१३७ १४८ १३८ । । १८७
अष्टम:
१३९
२०३ १४१ ।। ----
-----
---- | |
दीप-अनुक्रमा: २८५ उद्देश:
पृष्ठांक: तृतीय:
१३४ षष्ठः
१३९ नवम:
१४०
।
मलाड़का: २+.......+५७ (+५६) मूलांक
दशा ००१ - ०१- असमाधिस्थानानि ००५ | ०४- गणिसंपत्ति ०३१ - भिक्षुप्रतिमा ०३७-१०- निदान-आदि
[आगम-३७] 'दशाभूतस्कन्ध' (४) छेदसत्रस्य विषयानक्रम
दीप-अनुक्रमा: ११४ पृष्ठांक: | | मूलांक:
दशा पृष्ठांक | | मुलांक:
दशा
पृष्ठांक: १४३ ००३ ०२- शबला | १४३ । । ००४ | ०३- आशातना
१४३ १४४ ०१६ | ०५- चित्त असमाधिस्थानानि । १४५ ०१८ | ०६-उवासगप्रतिमा
१४५ १४६ ०३६ ०८- पर्युषणा १४९ ०३७ ०९- मोहनीयस्थानानि
१४९ १५०
१५६
मूलाइका: १०३ मूलांक |
विषय:
विषय ००१ | मङ्गलम् आदि ०१३ | तदुभय प्रायश्चितं ०२३ | तप प्रायश्चितं ०८३ | मूल प्रायश्चितं
[आगम-३८/१] 'जीतकल्प' (५/१) छेदसूत्रस्य विषयानुक्रम
दीप-अनुक्रमा: १०३ पृष्ठांक: | | मूलांक: | विषय: | पृष्ठांक | | मूलांक: | विषय:
पृष्ठांक: ००५ | आलोचना प्रायश्चित १६७ ००८ | प्रतिक्रमण प्रायश्चितं
१७१ १७४ ०१६ | विवेकाह प्रायश्चितं १७५ ०१८ | कायोत्सर्ग प्रायश्चितं
१७५ १७६ ०७४ प्रतिसेवना
०८० | छेद प्रायश्चितं
२०२ २०३ ।। ०८७ | पाराञ्चित प्रायश्चितं २०३ । । १०३ | उपसंहार:
२०९
२०२ ।
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [३३-३९] अन्तर्गता: १-प्रकीर्णकसूत्र [१०] मूलं एवं संस्कृतछाया + छेदसूत्राणि [१-६]
~10~
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भाष्याङ्का: २६६५
भाष्यांक:
०००१
००७८
०१९७
०७२५
०९६७
१०२२
१६६८
२६६४
विषय:
भद्रबाहं वंदना, तत्पदस्य
चारित्रस्य भेदा:
दीक्षादाने अयोग्याः,
लोकपिंड, भोजनविधि,
सार्ध पञ्चविंशतिआर्यदेशा:
पृष्ठांक:
२११
२१२
२१४
२२५
230
२३१
मासकल्प, पर्युषणा,
वृद्धवास, पर्यायकल्प,
कायोत्सर्ग, प्रति-क्रमण,
नाम - स्थापनादि २० कल्पाः २४४ उपसंहारः २६१
भाग - २७ मे कहां क्या देखोगे [ ३ ] ......... अत्र छेदसूत्रस्य विषयानुक्रमः वर्तते
[आगम-३८/२] ‘पंचकल्प-भाष्य' (५/२) छेदसूत्रस्य विषयानुक्रम भाष्यांक: पृष्ठांक
विषय:
००३२
२११
००८३
दुःषमकालानुभाव निर्ग्रन्थ एवं संयत, भेद-आदि २१२ प्रव्रज्या: १६ भेदा: -सदृष्टांता:
०५५८
२२२
उपधि-जिन स्थवीर कल्प
मूलाका २१७++३० + (७+ ... +2) मूलांक:
अध्ययनं
__पृष्ठांक:
०००१ प्रथमं
२६३
०६५४
चतुर्थ
२८२
१३५७
पच्छित्त-सुतं
३०५
०७८८
०९७४
११६८
१६८२
विहारयोग्य क्षेत्राणाम् गुणाः सूत्रकल्प, उद्देशकल्प, वाचनायाः गुणाः एवं विधिः, पृच्छनाकल्प अध्यापन योग्य आचार्य स्वरुप द्रव्य भाव आदि २० कल्पाः
मूलांक:
०२२६
द्वितियं
०६८४
पंचमं
१४८४- | सुषढ अनगार कथा
२२७
230
२३४
२४४
[आगम-३९] ‘महानिशीथ' छेदसूत्रस्य विषयानुक्रम
अध्ययनं
~ 11~
भाष्यांक: ००५२
० १५३
०७०१
०८५७
०९९०
१२६३
२१६५
दीप- अनुक्रमा: २६६५ विषय:
कल्प-अध्ययनस्य अभिधेयानि कल्प- अर्था:, निक्षेपाः, भेदादिः उपस्थापना विधि:
उपधेः उपघाताः
अनायतन
स्थित अस्थित जिन स्थविरलिंग उपधि संभोग कल्पा:
कल्प-प्रकल्प आदि १० कल्पा; द्रव्य भावादि ४२ कल्प-भेदाः
पृष्ठांक मूलांक: ०४६७ तृतीयं षष्ठं
२६६
०८४५
२८६ ३१४
पृष्ठांक:
२१२
२१४
२२५
२२८
२३१
२३६
-----------
२५२
दीप- अनुक्रमा: १५२८ अध्ययनं
पृष्ठां
२७३
२९६
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र- [ ३३-३९] अन्तर्गताः १- प्रकीर्णकसूत्र [१०] मूलं एवं संस्कृतछाया + छेदसूत्राणि [१६]
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इस प्रकाशन (भाग-२७) की विकास-गाथा “सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि" के इस २७-वे भागमें हमने +१ आगमो को शामील किया है | जिसमे एक प्रकीर्णकसूत्र और छह + एक छेदसूत्र है । दश प्रकीर्णको की प्रत संस्कृत-छाया के साथ सन १९२७ (विक्रम संवत १९८३) में आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित हुई, संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब | उन दश प्रकीर्णकमे से ९ प्रकीर्णको २६-वे भागमे हमने रक्खे है | और ये १०वा प्रकीर्णक 'मरणसमाधि' इस २७वे भागमे है | साथमें छह+एक वैकल्पिक छेदसूत्र भी इस भागमे शामिल है, ३४.निशीथ, ३५.बृहत्कल्प, ३६.व्यवहार, ३७.दशाश्रुतस्कन्ध, ३८/१.जीतकल्प, ३८/२ पंचकल्प, और ३९.महानिशिथ. 'मरणसमाधि' सूत्र दश-प्रकीर्णको की प्रतमे है और सभी छेद-सूत्र पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित 'आगममंजुषा मे से यहा शामिल किये है | जिसमे ५ छेदसूत्र सिर्फ़ 'मूल' है, 'जीतकल्प' मे 'मूल+भाष्य' है और 'पंचकल्प'मे तो 'भाष्य' ही है ।
+ हमारा ये प्रयास क्यों? + आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की [पूर्वाचार्य पूज्य श्री के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसमे बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर अध्ययन और मूलसूत्र के क्रमांक आदि लिख दिए, ताकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा अध्ययन एवं सूत्र चल रहे है उसका सरलता से ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके | हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढते हए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में उद्देशक, गाथा और सूत्रो के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस दिए है और जहां गाथा है वहाँ ||-|| ऐसी दो लाइन खींची है या फिर गाथा शब्द लिख दिया है।
हमने एक अनुक्रमणिका भी बनायी है, जिसमे प्रत्येक अध्ययन /उद्देशक, मल आदि लिख दिये है और साथमें इस सम्पादन के पृष्ठांक भी दे दिए है, जिससे अभ्यासक व्यक्ति अपने चहिते अध्ययन या विषय तक आसानी से पहुँच शकता है | अनेक पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट भी लिखी है, जहां उस पृष्ठ पर चल रहे ख़ास विषयवस्तु की, मूल प्रतमें रही हुई कोई-कोई मुद्रण-भूल की या क्रमांकन-भूल सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है |
शासनप्रभावक पूज्य आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी म.सा. की प्रेरणासे और श्री वर्धमान जैन आगममंदिर, पालिताणा की संपूर्ण द्रव्य सहाय से ये 'सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि' भाग-२७ का मुद्रण हुआ है, हम उन के प्रति हमारा आभार व्यक्त करते है।
......मुनि दीपरत्नसागर.
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[३३] श्री मरणसमाधि (प्रकीर्णकसूत्रम्-१०)
नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम:
"मरणसमाधि" मूलं एवं छाया
मूलं एवं संस्कृतछाया]
[आद्य संपादकश्री] पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.
(किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.,श्रुतमहर्षि)
28/07/2017, शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल ५
'सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि' श्रेणि भाग-२७
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आगम
(33)
प्रत
सूत्रांक
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दीप
अनुक्रम [3]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [१]---
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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अथ मरणसमाधिः ॥ १० ॥
तिसरीविंद सप्प (संघ) वयणरयणमंगलं नमिडं । समणस्स उत्तम मरणविही संगहं बुच्छं ॥ १ ॥
।। १२३६ ।। सुणह सुयसारनिहसं ससमयपरसमयवायनिम्मायं । सीसो समणगुणहं परिपुच्छर वायगं कंचि | ॥ २ ॥ १२३७ ॥ अभिजाइसन्तविक्कमसुष सीलविमुत्तिखंतिगुणकलियं । आधारविणयमद्दव विज्ज्ञाचरणागर
अथ मरणविधिः आरभ्यते
अथ मरणसमाधिः ॥ त्रिभुवनशरीरिवन्धं सत्यवचनरचना मंगलं नत्वा । श्रमणस्योत्तमार्थाय मरणविधिसंमहं वक्ष्ये ॥ १ ॥ शृणुत श्रुतसारनिकर्षं स्वसमयपरसमयवादनिष्णातं । श्रमणगुणाढ्यं कंचित् वाचकं शिष्यः परिपृच्छति || २ || अमिजाति सश्वविक्रमश्रुतशीलविमु
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
-------------------------------------- मूलं [३]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत
सूत्रांक
पइण्णय- मुदारं ॥३॥१२३८ ॥ कित्तीगुणगम्भहरं जसखाणि तबनिहिं सुपसमि । सीलगणनाणदसणचरित्सरय-शिष्यप्रश्नः दसए १०णागरं धीरं ॥४॥ १२३९ ॥ तिविहं तिकरणसुद्धं मपरहियं दुषिहठाण पुणरसं (बई)। विणएण कमविमरणस- सुद्धं चउरिसरं वारसावसं ॥५॥ १२४० ॥ दुओणयं अहाजायं एवं काऊण तस्स किकम्मं । भत्तीह भरिमाही यहियओ हरिसवसुभितरोमंचो ॥ ६॥ १२४१॥ उपएसहेउकुसलं तं पषयणरयणसिरिघरं भणही
इच्छामि जाणिजे मरणसमाहि समासेपं ॥७॥१२४२ ।। अन्भुजुयं विहारं इथं जिणदेसियं विउपसत्य। ॥९६॥
ना महापुरिसदेसियं तु अन्भुजुयं मरणं ।। ८॥१२४३ ।। तुम्भिस्थ सामि! सुअजलहिपारगा समणसं-| घनिजवया । तुज खु पायमूले सामन्नं उज्जमिस्सामि ॥९॥१२४४ ॥ सो भरिपमहरजलहरगंभीरसरो
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अनुक्रम
(३)
तिक्षान्तिगुणकलितं । आचारविनयमार्दवविद्याचरणाकरमुदारं ॥ ३ ॥ कीर्तिगुणगर्भधरं यशःखानि तपोनिधि श्रुतसमिदं । शीलगुणज्ञा-1 नदर्शनचारित्ररत्नाकर धीरं ॥ ४॥ त्रिविधत्रिकरणशुद्धं मदरहितं द्विविघे स्थाने पुना रक्तं (रुष्टं)। विनयेन क्रमविशुद्ध चतुश्शिरो|
द्वादशावतं ॥ ५ ॥ व्यवनतं यथाजातं एतादृशं कृतिकर्म तस्य कृत्वा । भक्त्या भृतहृदयो हर्षवशोशिमरोमात्रः॥ ६॥ उपदेशहेतु कुशलं । प्रवचनरजश्रीगृहिकं भणति । इच्छामि ज्ञातुं समासेन मरणसमाधि ॥ ७ ॥ अभ्युद्यतं विहारमिच्छामि जिनदेशितं विद्वत्प्रशस्त । |शातुं महापुरुषदेशित अभ्युद्यतं मरणं (इच्छामि ) ॥ ८॥ यूयमत्र स्वामिनः श्रुतजलधिपारगाः श्रमणसंघनिर्यामकाः । युप्माकमेव पादमूले श्रामण्यमुद्यापयिष्यामि ( 0 मुद्यस्यामि) ॥९॥ स भृतजलधरमधुरगंभीरखरो निषण्णो भणति । शृणु इदानीं धर्मवत्सला
॥९६ ॥
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आगम
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------------------- मूलं [१०]------------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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प्रत
सूत्रांक
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4
निसन्नओ भणइ । सुण दाणि धम्मवच्छल ! मरणसमाहि समासेणं ॥१०॥१२४५ ।। सुण जह पच्छिमकाले तापच्छिमतित्थयरदेसियमुपारं । पच्छा निच्छियपत्थं उचिंति अन्भुन्नुयं मरणं ॥ ११ ॥ १२४६ ॥ पहनाई सर्व
काऊणालोयणं च सुविसुद्धं । दसणनाणचरित्ते निस्सल्लो विहर चिरकालं ॥ १२ ॥ १२४७ ॥ आउधेयसम
सी तिगिच्छिा जह विसारओ विजो । रोआर्यकागहिओ सो निरुयं आउरं कुणइ ॥ १३ ॥ १२४८ ॥ एवं | पयपणसुपसारपारगो सो चरित्तसुद्धीए । पापच्छित्तविहिन् तं अणगारं विसोहे। ॥ १४ ॥ १२४० ।। भणइ |प तिविहा भणिया सुविहिप! आराहणा जिर्णिदेहिं । सम्मत्तम्मि य पढमा नाणचरित्तेहिं दो अण्णा ॥१५॥ १२५० ॥ सहहगा पसिषगा रोयगा जे य वीरक्यणस्स । सम्मत्तमणुसरंता दंसणाराहगा हुंति ॥१६॥ १२५१ ॥ संसारसमावणे य छविहे मुक्खमस्सिए चेव । गा दुविहे जीवे आणाए सरहे निचं
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दीप
अनुक्रम [१०]
455-50-550-55
मरणसमाधि समासेन ।। १० ।। शृणु यथा पश्चिमकाले पश्चिमतीर्थकरदेशितमुदारम् । पश्चात् निश्चयपथ्यं उपयान्यभ्युद्यतं मरण (तथा| वक्ष्ये) ॥ ११ ॥ पत्रज्यादि सर्व कृत्वाऽऽलोचनां च सुविशुद्धां । दर्शनज्ञानधारित्रेषु निश्शल्यो विहर चिरकालम् ।। १२ । समाषायुर्वेदचिकित्सायां विशारदश्च यथा वैद्यः । रोगातकागृहीतः स नीरुजमातुरं करोति ॥१३॥ एवं प्रवचनभुतसारपारगः स चारित्रशुद्धया । प्रायवित्तविधिज्ञस्तमनगार विशोधयति ॥१४॥ भणति च त्रिविधा भणिता सुविहित ! आराधना जिनेन्द्रः । सम्यक्त्वे च प्रथमा ज्ञानचारि-18 यो अन्ये ॥१५।। प्रधानाः प्रत्यायका रोचका ये च बीरवचनस्य । सम्यक्त्वमनुसरन्तो दर्शने आराधका भवन्ति ।।१६।। संसारस-161
च.स.१७
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Fonte
अथ आराधना एवं मरणस्य स्वरूपम् कथयते
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आगम
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"मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------------------ मूलं [१८]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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पइण्णय- ॥१७॥१२५२॥ धम्माधम्मागासं च पुग्गले जीवमत्थिकायं च । आणाइ सद्दहंता सम्मत्ताराहगा भणिया| आराधनाः दसए १० ॥१८॥१२५३ ।। अरहंतसिद्धचेइयगुरूसु सुयधम्मसाहुबग्गे य । आयरियउवज्झाए पछयणे सबसंघे य मरणस- H॥१९॥१२५४ ॥ एएसु भत्तिजुत्ता पूर्यता अहरहं अणपणमणा । सम्मत्तमणुसरिता परित्तसंसारिया हुंति | माही
॥२०॥ १२५५ ।। सुविहिय! इमं पइपणं असद्दहंतेहि गजीवहिं । पालमरणाणि तीए मयाई काले अणं-18 ताई ॥ २१ ॥ १२५६ ।। एगं पंडियमरणं मरिऊण पुणो यहणि मरणाणि । न मरंति अप्पमत्ता चरित्तमारा
हियं जेहिं ॥ २२ ॥ १२५७ ।। दुविहम्मि अहक्खाए सुसंवुडा पुवसंगओमुका । जे उ चयंति सरीरं पंडियहमरणं मयं तेहिं ॥ २३ ॥१२१८॥ एवं पंडियमरणं जे धीरा उबगया उवाएणं । तस्स उवाए उ इमा परिक-18
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दीप अनुक्रम
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| मापनांश्च पडिधान मोक्षमाश्रितांश्चैव । एतान् द्विविधान जीवान आज्ञया श्रद्दधाति नित्यम् ।। १७ ॥ धर्माधर्माकाशान् च पुलान् जीवानास्तिकार्य च । आज्ञया श्रदधानाः सम्यक्त्वाराधका भणिताः ॥ १८ ॥ अहं सिद्धचैत्यगुरुपु श्रुतधर्मे साधुचर्गे च । आच ये उपाध्याये ?
प्रवचने सर्वसंधे च ॥ १९ ॥ एतेषु भक्तियुक्ताः(तान पूजयन्तः अहरहः अनन्यमनसः । सम्यक्रवमनुसरन्तः परित्तसंसारिका भवन्ति । ॥ २० ॥ सुविहित ! इमां प्रतिज्ञा (इदं प्रकीर्णक) अश्रद्दधानैरनेकजीवेः । बालमरणानि अतीते मृतानि कालेऽनन्तानि ॥ २१ ॥ एक पंडिनमरणं मृत्वा पुनर्वहूनि मरणानि । न म्रियते अप्रमत्ताः चारित्रमाराद्धं यैः ॥ २२ ॥ द्विविधे यथाख्यासे सुसंवृताः पूर्वसंगोन्मुक्ताः। ॥९७ ॥
तु त्यजन्ति शरीर पंडितमरणं मृतं तैः ॥२३॥ एतत् पंडितमरण ये धीरा' उपगता उपायेन । तस्योपाये इमं तु परिकर्मविधि तु योज-||
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
----------------------------------- मूलं [२४]------------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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प्रत सूत्रांक ||२४||
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दीप अनुक्रम [२४]
[म्मविही उ जुजीया ॥ २४ ॥ १२५९ ॥ जे कुम्म (केस) संखताडणमारुअजिअगगणपंकयतरूण । सरि
कप्पा सुयकप्पियआहारविहारचिट्ठागा ॥ २५ ॥ १२६० ॥ निचं तिदंडविरया तिगुत्तिगुत्ता तिसल्लनिसल्ला । तिविहेण अप्पमत्ता जगजीवदयावरा समणा ॥ २६ ॥ १२६१ ॥ पंचमहबयसुत्थिय संपुष्णचरित्त सीलसंजुत्ता। तह तह मया महेसी हवंति आराहगा समणा ॥२७॥१२२२॥ इर्फ अप्पाणं जाणिऊण काऊण|| अत्तहिययं च । तो नाणदंसणचरित्ततवसुटिया मुणी हुंति ॥ २८ ॥ १२६३ ॥ परिणामजोगसुद्धा दोसुगु दो दो निरासयं पत्ता । इहलोए परलोए जीवियमरणासए चेव ॥ २९॥ १२३४ ॥ संसारबंधणाणि य राग-16 दोसनियलाणि छित्तूणं । सम्मईसणमुनिसियसुतिक्वधिइमंडलग्गेणं ॥ ३० ॥ १२३५ ॥ दुप्पणिहिए य पियेत् ॥ २४ ॥ ये कूर्म (वेशमुक्ताः) शंख (वन्निरुपलेपाः) ताडन (सहाः) मारतं (वप्रतिबद्धाः) जीव (पदप्रतिहतातयः ) गगन( वन्निरालम्याः) पंकज( वस्यक्तकामभोगाः) तरु( पदारणीयाः) एभिः । सहगाचाराः श्रुतकल्पिताहारविहारचेष्टाकाः ॥२५।। नित्यं निदण्डविरताः विगुपिगुमानिशल्यनिश्शल्याः । त्रिविधेनाप्रमत्ता जगजीवदयापराः श्रमणाः ।।२६।। पंचमहानतमुस्थिताः संपूर्णचारिया:शीलसंयुक्ताः । तथा तथा मृता महर्षयो भवन्त्याराधकाः श्रमणाः ॥ २७ ॥ एकमात्मानं ज्ञात्वा कृत्वा चात्महितदं च । ततो ज्ञानदर्शनचारित्रतपःसुस्थिता मुनयो भवन्ति ।। २८॥ शुद्धपरिणामयोगाः द्वयोश्च (कामभोगयोः) द्वे स्पर्शनरसने द्वे चक्षुःोत्रे दान्ते निरामयं च प्राणं कृतं । इहलोके च परलोके च जीविते मरणे च (याः) आशंसाः (भीर्तयध ताः त्यक्ताः) ॥२९॥ संसारबन्धनानि च रागद्वेषनिगडान हित्वा सम्यग्दर्शनमुनिशितमुतीक्ष्णधृतिमंडलायेण ॥३०॥ दुष्पणिधीच पिधाय धीन त्रिभ्य एव गौग्वेभ्यो जिम्माः । कार मनो।
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आगम
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
----------------------------------- मूलं [३१]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||३१||
पण्णय-12|हिऊण तिनि तिहि चेव एवविमु.।। कार्य मणं च वायं मणवयसा कायसा चेव ॥ ३१ ॥ १२६६ ॥ तव- आराधकदसए १० परसुणा य छिचूण तिपिण उजुखंतिविहियनिसिएणं । दुग्गइमग्गा नरिएण मणवयसाकायए दंडे ॥ ३२॥
स्वरूपम् मरणस-IN॥ १२६७ ॥ तं नाऊण कसाए चउरो पंचहि य पंच हन्तूणं । पंचासचे उदिपणे पंचहि य महवयगुणेहिं ॥३३॥ माही ॥ १२६८ ॥ छजीवनिकाए रविखऊण छलदोसवजिया जइणो। तिगले सापरिहीणा पच्छिमलेसातिगजुआ4 IN ॥ ३४ ॥ १२६९ ॥ एकगद्गतिगचउपणसत्तट्ठगनवदसगठाणेसुं। असुहेसु विप्पहीणा सुभेसु सप संठिया।
जे उ ॥ ३५ ॥ १२७० ॥ वेयणवेपावचे इरियट्टाए य संजमट्टाए । तह पाणवत्तियाए छटुं पुण धम्मचिंताए। C॥३६॥ १२७२ ।। छसु ठाणेसु इमेसु य अण्णयरे कारणे समुप्पण्णे | कडजोगी आहारं करंति जयणानि-IG मिस तु ॥ ३७॥१२७२ ।। जोएम किलायंती सरीरसंकप्पचेट्टमचयंता । अविकप्पऽवज भीरू उर्विति अन्भु-IN वार्च च मनोवचनकायगुप्तिभिरेव निरन्ध्यात् ।। ३१ ।। तपःपरशुना च छिच्या त्रीन् दुर्गतिमार्गान मजुझान्तिविहिततक्ष्ण्येन । पौरुपेण मनोवचःकायान दण्डान् ॥ ३२ ॥ तत् ज्ञात्वा कपायांचतुरः पंचमिश्च पंच हत्या । पंचाभवानुदीर्णान् पंचभिश्च महावतगुणैः ॥ ३३ ॥ पड्जीवनिकायान रक्षयित्वा दोपपटवर्जिता यतयः । विकलेश्यापरिहीणाः पश्चिमलेश्यात्रिकबुताश्च ।। ३४ । एकद्विविचतुःपंचसप्ताट| नवदशस्थानेभ्यः अशुभेभ्यो विप्रहीणाः शुभेषु च सदा संस्थिता थे तु ॥ ३५ ॥ वेदनोपशमाय चैयावृत्याय ईयार्थाय च संयमार्थाय । हतधा प्राणप्रत्ययाय पात्रं पुनधर्मचिन्ताय ।। ३६ ॥ पदसु कारणेप्वेषु चान्यतरस्मिन् कारणे समुत्पन्ने । कृतयोगिन आहार कुर्वन्ति
यतनानिमित्तं तु ॥ ३७ ॥ योगेषु काम्यत्म शरीरसंकल्पचेष्टामशक्नुवन्तः । अविकल्पा अवद्यमीरख उपयान्त्यभ्युवतं मरणं ।। ३८॥
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आगम
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॥३८॥
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अनुक्रम [३८]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
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पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र [३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया
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वयं मरणं ।। ३८ ।। १२७३ || आपके उवसग्गे तितिक्खयावंभचेरगुत्तीसु । पाणिदयातवहे सरीरपरिहार | बुच्छेओ ॥ ३९ ॥ १२७४ || डिमासु सीहनिकीलियासु घोरे अभिग्गहाईसु । छचिय अभितरए बज्झे य तवे समरता ॥ ४० ॥ १२७५ || अविकलसीलायारा पडिवन्ना जे उ उत्तमं अहं । पुविल्लाण इमाण प भणिया आराहणा चैव ।। ४१ ।। १२७६ ॥ जह पुवदुअगमणो करणविहीणोऽवि सागरे पोओ । तीरासन्नं | पावइ रहिओऽवि अवल्लगाईहिं ॥ ४२ ॥ १२७७ ॥ तह सुकरणो महेसी तिकरण आराहओ धुवं होइ । अह | लहइ उत्तम तं अइलाभसणं जाण ।। ४३ ।। १२७८ ॥ एस समासो भणिओ परिणामवसेण सुविहियजणस्स । इतो जह करणिजं पंडियमरणं तहा सुणह ॥ ४४ ॥ १२७९ ॥ फासेहिंति चरितं सर्व सुहसीलयं पजहिऊणं । घोरं परीसहचमुं अहियासिंतो धिइबलेणं ||४३|| १२८० || सदे रुवे गंधे रसे य फासे य निधिआतंक उपसर्गः तितिक्षात्रह्मचर्यगुप्तिषु प्राणिदयाद्देतोः तपोद्देतोः शरीरपरिहाराय व्युच्छेदः ||३९|| प्रतिमासु च सिंह्निः क्रीडितादिषु घोरामिप्रहादिषु । पदसु चैवाभ्यन्तरेषु बाह्येषु च (द्वादशधा ) तपसि समनुरक्ताः ||४०|| अविकलशीलाचाराः प्रतिपन्ना ये तूत्तममर्थम् । पूर्वेपामेषां च भणिता आराधनैव ॥ ४१ ॥ यथा पूर्वमुद्भूतगमनः करणविहीनोऽपि सागरे पोतः । तीरासन्नं प्राप्नोति रहितो ऽप्यबद्धकादिभिः ॥ ४२ ॥ तथा सुकरणो महर्षिः त्रिकरण आराधको ध्रुवं भवति । असौ लभते उत्तममर्थं तद् अतिलाभयत्त्वं जानीहि ॥ ४३ ॥ एप समासो भणितः परिणामवशेन सुविहितजनस्य । इतो यथा करणीयं पंडितमरणं तथा शृणुत ॥४४|| रप्रक्ष्यति चारित्रं सर्व सुखशीलत्वं ग्रहाय घोरां परिषहचमूमध्यासीनो धृतिबलेन || ४५|| शब्दे रूपे गन्धे रसे च स्पर्शे च निर्घृणतया धृत्या सर्वांन कपायान निहन्तुं सदा परमो
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आगम
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
---------------------------------- मूलं [४६]---------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
दसए १०
प्रत सूत्रांक ||४६||
पइण्णय-131णधिईए । सधेसु कसाएमु य निहंतु परमो सया होहि ॥ ४६॥ १२८१॥ चहऊण कसाए इंदिए य सवे
य आराधकागारवे हेतुं । तो मलियरागदोसो करेह आराहणासुद्धिं ॥४७॥१२८२॥ दंसणनाणचरित्ते पबजाई नाराधक मरणस- जो य अइयारो । तं सर्व आलोपहि निरवसेसं पणिहियप्पा ॥४८॥ १२८३ ॥ जह कंटएण विद्धो सवंग वेय- स्वरूपम् माही दिओ होइ । तह चेव उद्वियंमि उ निसल्लो निवओ होइ ॥ ४२ ॥ १२८४ ॥ एवमणुद्धिपदोसो माइलो
तेण दुक्तिओ होइ । सो चेव चसदोसो सुविसुद्धो निधओ होइ ॥ ५० ॥ १२८५ ।। रागहोसाभिहया सस-8 ॥९९॥
हमरणं मरंति जे मूढा। ते दुक्खसल्लयहुला भमंति संसारकतारे ॥५१॥ १२८६ ॥ जे पुण तिगारवजदा ४|निस्सला सणे परित्ते य । विहरंति मुक्कसंगा खवंति ते सबदक्खाई॥५२॥१२८७ ।। सुचिरमधि संकि-18 सालिटुं विहरितं झाणसंवरविहीणं । नाणी संवरजुत्तो जिणइ अहोरसमित्तेणं ॥५३ ॥ १२८८ ॥ जं निजरेइ साभव ॥ १६ ॥ त्यक्त्वा कषायान इन्द्रियाणि च सर्वाणि च गौरवामि हत्या । ततो मर्दितरागद्वेपः कुरुध्वाराधनाशुद्धिं ॥ ४७ ॥ दर्श-16
नज्ञानचारित्रेषु प्रत्रग्यादिषु यथातिचारः । तं सर्व आलोचय निरवशेष प्रणिहितात्मा ॥ ४८ ॥ यथा कण्टकेन विद्धः सर्वेष्वंगेषु थेदनाहार्दितो भवति । नथैव उद्धृते निदशल्यो निर्वृतो (निर्वातः) भवति ॥४९।। एवमनुवृतदोषो मायावी तेन दुःखिनो भवति । स एव त्यक्तदोषः ।
मुविशुद्धो निर्दृतो (निर्वातः) भवति ॥५०॥ रागद्वेपाभिहताः सशल्यं मरणं म्रियन्ते ये मूढाः । ते दुःखिनो बहुशल्या भ्राम्यन्ति संसारकान्तारे 31॥५१॥ ये पुनखिगौरवरहिता निश्शल्या दर्शने चारित्रे च । विहरन्ति मुक्तसंगाः क्षपयन्ति तानि सर्वदुःखानि ॥ ५२ ॥ सुचिरमपि 3॥ ९९॥
संक्लिष्ट बिहनं ध्यानसंवरविहीनं । ज्ञानी संवरयुत्तो जयति अहोरात्रमात्रेण ।। ५३ ।। यद् निर्जरयति कर्म असंवृतः सुबहुनाऽपि कालेन ।
दीप
अनुक्रम
[४६]
janmitram
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------------------- मूलं [१४]------------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत
सूत्रांक
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कम्मं असंवुडो सुबहणाऽवि कालेणं । तं संबुडो तिगुप्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥ ५४॥ १२८९ ॥ सुबहुस्सु-14 यापि संता जे मूढा सीलसंजमगुणेहिं । न करंति भावसुद्धिं ते दुक्खनिभेलणा हुंति ॥ १५॥ १२९० ॥ जे | पुण सुपसंपन्ना चरित्तदोसेहिं नोवलिप्पंति । ते सुविसुद्धचरित्ता करंति दुक्खक्खयं साह ॥५६॥ १२११॥15 पचमकारियजोगो समाहिकामोऽवि मरणकालम्मि । न भवइ परीसहसहो विसयसुहपराइओ जीवो॥२७॥
॥ १२९२ ॥ तं एवं जाणतो महंतरं लाहर्ग सुविहिएसु । दसणचरित्तसुद्धीइ निस्सल्लो विहर तं धीर ! ॥८॥ SU१२९३ ॥ इत्थ पुण भावणाओ पंच इमा हुति संकिलिट्ठाओ । आराहिंत सुविहिया जा निचं वजणि-18
वाओ॥ ५९॥ १२९४ ।। कंदप्पा देवकिविस अभिओगा आसुरी य संमोहा । एयाउ संकिलिट्टा असंकि-1, लालिट्टा हवइ छट्ठा ॥ ६० ॥ १२९५ ॥ कंदप्प कोकुयाइय दवसीलो निश्चहासणकहाओ। विम्हावितो उ परं|
तत् संघृतग्विगुणः पयत्युच्यासमात्रेण ।। ५४ ॥ सुबहुलता अपि सन्तो ये मूढाः शीलसंयमगुणेषु । न कुर्वन्ति भावशुद्धि ते दुःखभा-18 गिनो (गृहाणि) भवन्ति ॥५५॥ ये पुनः श्रुतसंपन्नाश्चारित्रदोनोंपलप्यन्ते । ते सुविशुद्धचारित्राः कुर्वन्ति दुःखभयं साधवः ॥५६॥ पूर्व|मकृतयोगः समाधानुकामोऽपि मरणकाले । न भवति परीषहसहो विषयसुखपराजितो जीवः ।। ५७॥ तदेवं जानानो महत्तर लाभ सुविहितेषु । दर्शनचारित्रशुझ्या निश्शल्यो विहर त्वं धीर! ॥ ५८ ।। अत्र पुनर्भावनाः पञ्चेमा भवन्ति संछिष्टाः । आराधकैः मुवि
हिताः! या नित्यं वर्जनीयाः ॥ ५९॥ कान्दर्षी देवकिल्पिषी आभियोगी आसुरी च सामोही । एताः संष्टिष्टा असंकिष्टा भवति Kापती ॥ ६॥ कन्दर्पचेष्ठावान कोकुचिकः द्रवशीलो नित्यहासनकथाकश्च । विस्मापयन पर तु कान्दर्षी भावनां करोति ॥ ६१ ॥1॥
दीप अनुक्रम [५४]
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
----------------------------- मूलं [६१]------------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत
सूत्रांक
SSCR
||६||
पण्णय-I कंदप्पं भावणं कुणइ ।। ६१ ॥ १२९६ ॥ नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहणं । माई अवपणवाई संकि
किविसियं भावणं कुणइ ।। ६२ ॥ १२९७ ॥ मंताभिओगं कोउग भूईकम्मं च जो जणे कुणइ । सायरसइहि-वर्जनम
हे अभिओगं भावणं कुणइ ॥ ६३ ॥ १२९८ ॥ अणुबद्धरोसबुग्गहसंपत्त तहा निमित्तपडिसेवी । एएहि || माही INकारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ ॥ १४ ॥ १२९९ ।। उम्मग्गदेसणा नाण(मग्ग)दसणा मम्गविपणासो अ।
मोहेण मोहयंतसि भावणं जाण सम्मोहं ॥६५॥ १३०० ॥ एयाउ पंच वज्जिय इणमो छट्ठीइ बिहर तं| ॥१०॥ धीरा पंचसमिओ तिगुत्तो निस्संगो सवसंगेहिं ।। ६६ ॥१३०१ ।। एयाए भावणाए विहर विसुद्धाइ दीह
कालम्मि । काऊण अंत सुद्धिं दंसणनाणे चरित्ते य ॥ ६७ ॥१३०२ ॥ पंचविहं जे सुद्धिं पंचविहविवेगसंजुयमकाउं । इह उवणमंति मरणं ते उ समाहि न पाविति ॥ ६८॥ १३०३ ॥ पंचविहं जे सुद्धि पत्ता निखि-18 ज्ञानस्य केवलिनां धर्माचार्यस्य संघस्य साधूनां च । मायी अवर्णवादी किस्विषिकी भावनां करोति ॥६२॥ मंत्राभियोगी कौतुकं भूतिकर्म च | यो जनेषु करोति । सातरसदिहतोराभियोगी भावनां करोति ॥६३।। अनुबद्धरोपव्युगृहसंप्राप्तास्तथा निमित्तालिसे विनः । एतैः (एव) कारणेरामरी भावनां करोति ।।६४॥ उन्मार्गदेशना ज्ञान(मार्ग)दूषणं मार्गविप्रणाशन (तान् कुर्वति) 1 मोहेन च मोहयति भावना जानीहि संमोहीम ॥६५।। एताः पंच वर्जयित्वा अनया पष्ठषा विहर त्वं धीर! । पञ्चसमितस्त्रिगुप्तो निस्संगः सर्वसंगैः ॥६६॥ एतया भावनया विशुद्धया | दीर्घकालं विहर । कृत्वा अन्त्ये शुद्धि दर्शनज्ञानचारित्रेषु च ॥ ६७ ॥ पंचविधां ये शुद्धिं पंचविधविवेकसंयुतामकृत्वा । इहोपगच्छन्ति ॥१०॥ मरणं ते समाधि न प्राप्नुवन्ति ।। ६८ ॥ पंचविधां ये शुद्धिं प्राप्ता निखिलेषु निश्चयमतिकाः । पञ्चविधं च विवेकं ते एव समाधि परं
दीप
अनुक्रम
[६१]
JHTEtuatinatamaimer
FADATAPomeOfR
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------------------ मूलं [६९]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||६९||
OCCACROCOCCOS*
लेण निच्छिपमईया। पंचविहं च विवेगं ते हु समाहि परं पत्ता ॥ ६॥ १३०४ । लहिणं संसारे मुदुल्लहं. कहवि माणुसं जम्मं । न लहंति मरणदुल हं जीवा धम्म जिणग्वायं ।। ७० ॥ १३०५ ॥ किच्छाहि पाविय|म्मिवि सामपणे कम्मसत्तिओसन्ना । सीयंति सायदुलहा पंकोसन्नो जहा नागो ॥७१ ॥ १३०६ ।। जह? | कागणीइ हे मणिरपणाणं तु हारए कोडिं। तह सिद्धसुहपक्खा अबुहा सर्जति कामेसुं ॥ ७२ ॥ १३०७।। चोरो रक्खसपहओ अस्थत्थी हणइ पंथियं मूढो । इय लिंगी मुहरक्षसपहओ विसयाउरो धर्म ।। ७३ ॥ ॥ १३०८॥ तेसुवि अलद्धपसरा अवियाहा दुक्खिया गयमईया । समुर्विति मरणकाले पगामभयभेरवं नरयं| ॥७४ ॥ १३०९॥ धम्मो न कओ साटून जेमिओ न य नियंसियं सह । इहि परं परासुत्ति य नेव प पत्ताई सुक्खाई ।। ७५ ॥ १३१० ।। सावणं नोवकयं परलोयच्छेय संजमो न कओ। दुहओऽपि तओ विह
दीप
अनुक्रम [६९]]
प्राप्ताः ॥ ६९ ॥ लब्बा संसारे मुदुर्लभं कथमपि मानुपं जन्म । न लभंते मरणे दुर्लभं जीवा धर्म जिनाख्यातं ।। ७० ।। कटः प्राप| ऽपि श्रामण्ये कर्मशक्लवसन्नाः। सीदन्ति दुर्लभसाताः पंकावसन्नो यथा नागः ।। ७१ ॥ यथा काकिण्या हेनोर्मणिरवानां तु हारयेन | १ कोटी । तथा परोक्षसिद्धसौख्याः सज्यन्तेऽबुधाः कामेषु ॥ ७२ ॥ चौरो राक्षसमहतोऽर्थायी पायं मूढो हन्ति । इति लिंगी गुखराक्षस-18
हतो विषयातुरो धर्म ॥७३॥ तेष्वपि अलब्धप्रसयः भवितृष्णा दुःसिता गतमतिकाः । समुपवान्ति मरणकालाद् (परं) प्रकामभयभैरवं | नरकं ॥७४।। धर्मो न कृतः साधुन जिमिनः न च लक्षणं निवसितं । इदानीं परं परामुरिति न नैव च प्रामानि सौगयानि ।।।। माधुभ्यो|3|
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आगम
(33)
प्रत
सूत्रांक
||७६||
दीप
अनुक्रम [ ७६ ]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [७६]---
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र [३३] प्रकीर्णकसूत्र [१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया
पइण्णय
दसए १०
मरणसमाही
॥ १०१ ॥
Jin Eumen
अपडिकमंता मरंति ते बालमरणाहं ।। ७७ ।। १३१२ ॥ इय अवि आलोइय निस्सल्ला मरिडं आगहगा नेऽवि ।। ७८ ।। १३१३ ॥ जिणकप्पो। किं पुण इयरमुणीयं तेन विही देसिओ इमो सुपसारझरियपरमत्था । ते आयरिय विन्निं उविंति अन्त | संदेहणाइ २ खमणाड़ ३ का ४ उ २ । उग्गासे संधारे ।। १३१६ ॥ झाणविसेसो ११ मा १२ सम्मतं १३ पायगनणर्य १४ चैत्र । चउदसओ एस विही पढमो मरणंमि नायवो ॥ ८२ ॥ १३१७ ॥ दिवार माणस भंणा पूपणा गुरुजणस्स । तित्थयराण य नोपकृतं परलोकफः संयमय न कृतः मोहमहासागरानिहताः
लो अह जम्मो धम्मरुवखाणं ॥ ७३ ॥ १३१ ॥ दिक्खं महले या मोहमहावत्तसागराभिहया । तस्स मेहपत्ता मोह मोतृण गुरुसगासम्मि । विसेसो भण्णइ छलणा अवि नाम हुज ७९ ॥ १३१४ ॥ अप्यविहीणा जाहे धीरा मरणं ।। ८० ।। १३१५ || आलोयणाइ १ निसग्ग ८ वेरग्ग ९ मुक्खाए १० ॥ ८१ ॥
तो विफलमिदं जन्म धर्माणां ॥ ७६ ॥ दीक्षां मलिनयन्तो ॥ ७ ॥ एवमपि मोहयुक्त मोई मुक्त्वा गुरुसकाशे । अत्र विशेष प्ते छनमपि नाम भवेन् जिनकल्पे । किं पुनरितरविना धीराः स्मृतसागरपरमाथी ते आचार्यविदत्तं मरणमका उत्सर्ग संसारकः निसगों वैराग्यं मोक्षः ॥ ८१ ॥ ध्यानचतु एप विधिः प्रथमं ज्ञातव्यः ।। ८२ ।। नव उपचारो मानस्य भंग:
Farate Use ON
T
आलोच्य निश्शल्पा मर्तु (प्रयाः) आराधकान्तेऽपि ॥ ७८ मुनीनां ? तेन विधिदेर्शितोऽयम् ॥ ३९ ॥ भ्युद्यतमुपयान्ति ॥ ८० ॥ आलोचना विशेष लेइया सम्यक्त्वं पादपोतं चैत्र
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परिकर्मणा आलोच
नादीनि
द्वाराणि
1130211
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
----------------------------------- मूलं [८३]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||८३||
दीप अनुक्रम [८३]
[आणा सुयधम्माऽऽराहणाऽकिरिया ।। ८३॥ १३१८ ॥ छत्तीमाटाणेसु य जे पवयणसारअरियपरमत्या । तेसि। दापासे सोही पन्नता धीरपुरिमहि ॥ ८५ ॥ ११ ॥ वय कापरकं १२ बारसगं नह अकप्प १३ गिहि
भाणं १४ । पलियंक १५ गिहिनिमित्राममोन १७ पलिमलण सिणार्ण १८॥८०॥ १.२० । आयारवं च १ उवधारवं च.२ ववहारविहिविहिन् य । उच्चीलगा य धीरा पावणा विहिष्णू या ३॥८६॥ १:२१॥ तह य अवायविहिन ४ निजवगा जिणमपम्मि गहियत्या । अपरिस्साई ७ प नहा विस्मासरहस्म निच्छिड्डा ८॥ ८७ ॥१३२२ ।। पचमं अट्टाग्मगं अट्ट य ठाणाणि एव भणियाणि । इसो दस ठाणाणि य जेमु| |उवट्ठावणा भणिया || ८८ ॥१३२३ ।। अणवट्ठतिगं पारंचिगं च निगमेय छहि गिहीभूषा ६ । जाणंनि जे 'उ | पण सुअरयणकरंडगा सूरी।। ८ ।। १३२४ मम्मटमणच जे पवियानि आगमचिरिन । जाणति चरिपूजना गुरु जनस्य । तीर्थकराणां न आज्ञा धुनधर्म गवनाऽक्रिया ।।८।। पदविंशति मानेषु च ये रमुनपत्र चनसारपरमार्धाः । तेषां | पार्थे शुद्धिः प्रज्ञप्ता धीरपुरुषः ॥ ८४ । वनपटु कापड द्वादानं नया अलवं गृहिभाजनं । पल्यं को गृहिनिषणा राशोमन्वं परिमार्जन सानं ।। ८५ ॥ भाचारयन्त। उपधारणावातच ध्यवराविधिविधिज्ञाच । अपनीडकाा धीराः प्ररूपणापा विधिज्ञाध ॥ ८६ ।। गधा चापायविधिज्ञा निर्यामका जिनमते गृहीतायाः । अपरिभाविना नया निधामरहम्पनिश्छिद्राः ।। ८७ ।। प्रथममतादाक अट च | स्थानानि एवं भणियानि । इतो दश स्थानानि च येपुरधापना भगिता ।। ८८ ॥ अनवस्थाप्यत्रिक पाराचिकनिक चैतानि पद्भिाही-13 भूताः । जानन्ति वे खेतान् श्रुतरत्नकरण्डकाः मूरयः ।। ८९॥ सक्तमम्बग्दा नान याच विजानन्ति आगमविधिज्ञाः । ज्ञानन्ति चारि
KACROSAX
-01--7
4
अथ आचार्यस्य गुण-आदि वर्णयते
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आगम (३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
---------------------------- मूलं [९०]------------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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प्रत सूत्रांक ||९०||
॥१०२॥
पइण्णय- साओ अ निग्गयं अपरिसेसाओ ८॥९०॥१३२५ ॥ जो आरंभे वदृइ चिअसकिचो अणणुतावी य सोगो का सरिगुणाः दसए १०इप भवे दसमो १० जेसूबट्टावणा भणिया ॥ ११ ॥ १३२६ ।। एएमु विहि विहाणू छत्तीसाठाणएम जे सूरी। ते मरणस- पवयणसुहकेऊ छत्तीसगुणत्ति नायबो ।। ९२ ॥ १३२७ ।। तेर्सि मेरुमहोयहिमेयणिससिसूरसरिसकप्पाणं ।। माही पायमूले प विसोही करणिज्जा सुविहियजणेणं ॥९३ ॥ १३२८॥ काइयवाइयमाणसियसेवर्ण दुप्पओगसंभूयं ।।
जो अइयारो कोई तं आलोए अगहितो ॥ ९४ ॥ १३२९ ।। अमुगंमि इउ काले अमुगत्थे अमुगगामभावेणं ।
जह निसेवियं खलु जेण य सवं तहाऽऽलोए । ९५ ।। १३३०॥ मिच्छादसणसलं माघासलं नियाणसल्लं च । तं संखेवा दुविहं दवे भावे य योदई ।। ९६ ॥ १३३१ ॥ वि(ति)विहं तु भावसल्लं दंसणनाणे चरित्ता जोगे य । सचित्ताचित्तेऽविय मीसए यावि दबंमि ॥ १७ ॥ १३३२॥ सुहुमंपि भावसल्लं अणुद्धरित्ता उ जो मात् निर्गत चापरिशेषात् ।। ९० ॥ य आरंभे वर्तते सक्तकार्योऽननुतापी च । शोक(भोग)च भवेदशमी येषूपस्थापना भणिता ।। ९१ ।। एतेषु विधिविधानज्ञाः पट्विंशति स्थानेषु वे सूरयः । ते प्रवचनशुभकेतवः पत्रिंशगुणा इति ज्ञातव्याः ॥ १२ ॥ तेषां मेरुमहोदधिमेदिनीशशिसूर्यसहकल्पानां । पादमूले च विशोधिः करणीयः सुविहितजनेन ।। ९३ ।। कायिकवाचिकमानसिकसेवनं दुष्पयोगसंभूतं ।। (तपो ) योऽतिचारः कश्चित् तमालोचयेद् अगृहयन् ।। ९४ ॥ अतः अमुकरिमन् काले अनुकायें अमुकग्रामभावेन । यद्यथा निपे
वितं येन च सर्व तथैवालोचयेत् ॥ ९५ ॥ मिध्यादर्शनशल्यं मायाशल्यं निदानशल्यं च । सन् (शल्यं ) संक्षेपान् द्विविधं द्रव्ये भावे ॥१०२॥ पूाच योद्धाय ।।९६॥ वि(वि)विधं तु भावशल्य दर्शने ज्ञाने चारित्रयोगे च । सचित्ताचिनयोरपि च मित्रे चापि द्रव्ये ।। ९७ ।। सूक्ष्ममपि |
CCCCCCC
दीप
अनुक्रम
[९०]
अत्र आलोचना वर्णनं क्रियते
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
--------------------------- मूलं [९८]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||९८||
दीप
कुणइ कालं । लजाय गारवेण य नहु सो आराहओ भणिओ ॥ ९८॥ १३३३ ॥ तिविपि भावसलं समुद्धरिता उ जो कुणइ कालं । पञ्चजाई सम्म स होइ आराहओ मरणे ॥ ९९ ॥ १३३४ ॥ तम्हा सुत्तरमूलं अविकूलमविर्य अणुविग्गो । निम्मोहियमणिगूढं सम्मं आलोअए सवं ॥ १०० ॥ १३३५ ॥ जह पालो जंपतो कजमकलं च उजु भणइ । तं तह आलोएजा मायामयविष्पमुको य॥१०१ ॥ १३३६ ॥ कयपावो । वि मणूसो आलोइय निंदिर गुरुसगासे । होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरोष भारवहो ॥१०२॥१३३७ ॥ लजाइ गारवेण प जे नालोयंति गुरुसगासम्मि । धंतपि सुयसमिद्धा न हु ते आराहगा हुंति ॥१०३।१३३८ जह सुकुसलोऽवि विज्जो अन्नस्स कहेइ अत्तणो बाहिं । तं तह आलोयचं सुदृषि ववहारकुमलेणं ॥ १०४ ॥ ॥ १३३९ ।। जं पुर्व तं पुर्व जहाणुपुर्वि जह कम सबं । आलोइज्ज सुविहिओ कमकालविहिं अभिदंतो भावशल्यमनुदल तु वः कुर्यात् कालं । लजया गौरवेण प नैव स आराधको भणितः ।। ९८ ॥ त्रिविधमपि भाषशय समुदत्य तु| | यः करोति फालं। प्रवग्यादौ सम्यक् स भवति आराधको मरणे ॥ ९९ ॥ तस्मान् सोत्तरमूलं अपिकूलं अविहुतमनुद्विसः । निमाहिती |अनिगूदितं सम्यकू आलोचयेत् सर्व ॥ १०॥ यथा बालो जल्पन कार्यमकार्य च जुकं भणति । तत् तथा आलोपवेन् मायामद-18 विप्रमुक्तच ।। १०१ ।। तपापोऽपि मनुष्य आलोच्य निन्दवित्वा गुरुसकाशे । उत्तारितभर इव भारवाहो भवत्यतिरेकलघुनरः ।।१२।। उज्जया गौरपेण च ये नालोचयंति गुरुसकाशे । मनमपि शुनसमृद्धा नैव ते बाराधका भवन्ति ॥ १०३ ॥ यथा सुकुशलोऽपि वैद्यः | अन्यस्मै कथयति आत्मनो व्याधि । तत् तथाऽऽलोचयितव्यं मुटपि व्यवहारकुशलेन ॥१०४।। वन पूर्व तत् पूर्व यथानुपति यथाक्रम सर्व।
अनुक्रम
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च. स.१०
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------ मूलं [१०६]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
माही
प्रत सूत्रांक ||१०६||
पइण्णय-16|॥१०॥१३४०॥ अत्तंपरजोगेहि य एवं समुवट्ठिए पओगेहिं । अमुगेहि य अमुगेहि य अमुपगसंठाणकरणेहिं| शल्योदसए १० ॥१०६ ॥ १३४१ ।। वण्णेहि य गंधेहि य सहफरिसरसरूवगंधेहिं । (सद्देहि य रसफरिसठाणेहिं) पडिसेवणालाद्धारः मरणस- ४कया पज्जवेहिं कया जेहि य जहिं च ॥१०७।१३४२॥ जो जोगओ अपरिणामओ अ दंसणचरित्त अइयारो।
दण्डाण याहिरो वा छट्ठाणभतरो वावि ॥ १०८॥१३४३॥ तं उजुभावपरिणउ राग दोसं च पयणु काऊणं ।।
तिविहेण उद्धरिजा गुरुपामूले अगाहितो॥१०९॥१३४४ ॥ नचि तं सत्थं च विसं च दुप्पउनुब कुणइ8 ॥१०॥
४/वपालो । जंतंच दुप्पउत्तं सप्पुष पमाइणो कुरो ॥ ११० ॥ १३४५ ॥ जं कुणइ भावसल्लं अणुद्वियं उत्तमट्टटाकालम्मि । दुल्लहयोहीयत्तं अर्णतसंसारियतं च ॥१११ ॥ १३४६ ॥ तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणम्भ-1
वलयाणं । मिच्छादसणमलं मायासलं नियाणं च ॥ ११२ ॥ १३४७ ॥ रागेण व दोसेण व भएण हासेण
आलोचयेत् सुविहितः क्रमकालविधीन् अभिन्दानः ॥ १०५ ॥ आत्मपरयोगाभ्यां चैवं प्रयोगैः समुपस्थिते । अभुकैरमुकैश्च अमुकैः द संस्थानकरणैः ॥ १०६ । वर्णैश्च गन्धैश्च शब्दस्पर्शरसरूपगन्धैः (शब्दैश्च रसस्पर्शस्थानः) । प्रतिसेवना कृता या पर्यवैः कृता यैर्यत्र च
॥१०७॥ यो योगतोऽपरिणामतञ्च दर्शनचारित्रातिचारः । पदस्थान्या बायो वा पट्थान्या अभ्यन्तरो वापि ॥१०॥ तजुभावपरिणतो
राग द्वेषं च प्रतनुको कृत्वा । त्रिविधेनोद्धरेत् गुरुपादमूले अगृहयन् ॥ १०९ ॥ नैव तत् शस्त्रं च विपं च दुष्पयुक्तो वा करोति वैतादालः । यत्रं वा दुष्प्रयुक्तं सर्पो वा प्रमादिनः क्रुद्धः ॥११०॥ वत् करोति भावशल्यमनुढ्तमुत्तमार्थकाले । दुर्लभवोधिकत्वं अनन्तसंसारि-12॥१०३।।
कत्वं च ।।१११।। तत उद्धरन्ति गौरवरहिता मूलं पुनर्भवलतानां । मिध्यादर्शनशल्यं मायाशल्यं निदानं च ॥११२।। रागेण वा द्वेषेण या
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दीप अनुक्रम [१०६]
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JAHEturittnimamsin
Manmitrrs.au
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [११३]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ॥११३||
2-562-6-*
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तह पमाएणं । रोगेणायंकण व वत्तीइ पराभिओगेणं ॥११३ ॥ १३४८ ॥ गिहिविजापडिएण व सपक्खपपारधम्मिओवसग्गेणं । तिरियंजोणिगएण व दिवमणूसोयसग्गेणं ॥११४ ॥ १३४९ ॥ उवहीइ व नियडीइ
व तह सावयपेल्लिएण व परेणं । अप्पाण भएण कयं परस्स छंदाणुवत्तीए ॥ ११५ ॥ १३५० ॥ सहसकार-1 मणाभोगओ अजं पनपणाहिगारेणं । सन्निकरणे विसोही पुण्णागारो य पणत्ता ।। ११६ ॥ १३५१ ॥ उजु-11 अमालोइत्ता इत्तो अकरणपरिणाम जोगपरिसुद्धो । सो पणुइ पइकम्मं सुग्गइमग्गं अभिमुहेइ ॥ ११७ ॥
॥ १३५२ ॥ उवहीनियडिपइट्टो सोहिं जो कुणइ सोगईकामो । माई पलिकुंचतो करेइ बुंदुछियं मूढो॥११८॥ 1॥१३५३ ।। आलोयणाइदोसे दस दोग्गइबंधणे परिहरंतो । तम्हा आलोइजा मायं मुत्सूण निस्सेसं ॥ ११९॥ J॥१३५४॥ जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु । ते तह आलोएमी उवडिओ सबभावेणं ।।१२०॥ भयेन हास्येन तथा प्रमादेन । रोगणतंकेन वा वृत्त्या पराभियोगेन ।। ११३ ॥ गृहिविद्यापतितेन वा खपक्षपरधार्मिकोपसर्गेन । तिर्य-18
योनिसंबंधिना वा दिव्यमनुष्योपसर्गेन ।। ११४ ॥ उपधिना वा निकृत्या वा तथा श्वापदप्रेरितेन या परेण । आत्मनो भयेन कृतं परस्य ४ान्दोऽनुवृत्त्या ॥ ११५ ॥ सहसाकारात् अनाभोगता या प्रवचनाधिकारेण । संज्ञीकरणं विशुद्धिः पूर्णाकारश्च प्रज्ञप्ताः (पर्यायाः)| है|॥११६ ।। ऋभ्यालाच्य इतोऽकरणपरिणामयोगपरिशुद्धः । स प्रतनुकरोति प्रकृतिकर्म सुगतिमार्गमभिमुखयति ।। ११७ ।। उपधिनिक-16 शतिप्रविष्टः शुद्धि यः करोति मुगतिकामः । मायी परिकुंचयन करोति विछितं मूढः ।। ११८ ॥ आलोचनाया दोपान दश दुर्गतिबन्ध-131
नान् परिहरन् । तस्मादालोचयेत् मायां मुक्त्वा निश्शेषम् ॥ ११९ ॥ यान मे जानन्ति जिना अपराधान येषु येषु स्थानेषु । तांस्तधा-||
दीप अनुक्रम [११३]
AAROCESSOCLASAX
Jantakmainamaina
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आगम (३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [१२१]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
लगाशाज्ञानाधु
प्रत सूत्रांक ||१२१||
डण्णाय-181॥१३७५ ॥ एवं एट्ठियस्सवि आलोएउं विसुद्धभावस्स । जं किंथिवि विस्सरियं सहसकारेण वा चुकं आलोचदसए १० ॥१२१ ॥ १३५६ ॥ आराहओ तहवि सो गारवपरिकुंचणामयविहणो । जिणदेसियस्स धीरो सद्दहगो मुत्ति- नादोषादि मरणस
समग्गस्स ॥१२२ ॥ १३५७ ॥ आकंपण १ अणुमाणण २ जंदिढे ३ वायरं ४ च सुहम ५ च । छन्नं ६ सदाउलगं|| माही ७ बहुजण ८ अवत्त ९ तस्सेवी ॥ १२३ ।। १३५८॥ आलोयणाइ दोसे दस दुग्गइचट्टणा पमुत्तूणं । आलोइज घमश्च
सुविहिओ गारवमायामयविहणो ।। १२४ ॥ १३५९ ॥ तो परियागं च बलं आगम कालं च कालकरणं च । ॥१०४॥
हापुरिसं जीअंच तहा खित्तं पडिसेवणविहिं च ॥ १२५ ।। १३६०॥ जोग्गं पायच्छित्तं तस्स य दाऊण किंति
आपरिया। दंसणनाणचरिते नवे य कुणमप्पमायंति ॥ १२६ ॥ १३६१ ॥ अणसणमणोयरिया विसिच्छेओट। रसस्स परिचाओ । कायस्स परिकिलेसो उट्ठो संलीणया चेव ॥ १२७ ॥ १३६२॥ विणए वेपावचे पायच्छिते) Isलोचयामि उपस्थितः सर्वभावेन ।। १२० ।। एवमुपस्थितस्यापि आलोचयितुं विशुद्धभावस्य । यत्किश्चिदपि विस्मृतं सहसाकारेण वा
विमृष्टं ॥ १२१ ॥ आराधकस्तथापि स गौरवपरिकुंचनामदविहीनः । जिनदेशितस्य धीरः श्रद्धायको मुक्तिमार्गस्य ।। १२२ ।। आकंप| नमनुमाननं यदृष्टं बादरं च सूक्ष्मं च । छन्नं शब्दाकुलं बहुजनं अव्यक्तं तत्सेवि ।। १२३ ॥ आलोचनाया दोषान दश दुर्गतिवर्धनान् | प्रमुच्य । आलोचयेन् सुविहितो गौरवमायामविहीनः ।। १२४ ।। ततः पर्यायं च बलं चागमं कालं च कालकर च । पुरुष जीतं च तथा क्षेत्र प्रतिसेवनाविधि च (ज्ञात्वा) ॥१२५।। योग्यं प्रायश्चित्तं तस्मै दत्वा ध्रुवते आचार्याः । दर्शनशानचारित्रेषु तपसि च कुरुष्वाप्र- १९४॥ मादमिति ।। १२६ ॥ अनशनमवमौदर्य वृत्तिच्छेदो रसस्व परित्यागः। कायस्य परिलेशः पष्टी संलीनता चैव ।। १२७ ॥ विनयो वैया
दीप अनुक्रम [१२१]
अथ तपस: भेदानि वर्णयते
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [१२८]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||१२८||
CARLOCAX
विवेग सज्झाए । अभितरं तवविहिं छटुं झाणं विषाणाहि ॥ १२८ ॥१३६३॥ धारसविहम्मिवि तचे अभितरयाहिरे कुसलदिहे । नवि अस्थि नविय होही सज्झायसमं तबोकम्मं ॥ १२९ ॥ १३६४ ॥ जे पयणुभत्तपाणा सुपहेऊ ते तवस्सिणो समए । जो अतवो सुयहीणो वाहिरयो सो छुहाहारो॥१३० ॥१६॥ छहमदसमदुवालसेहिं अबहुसुयस्स जा सोही । तत्तो बहुतरगुणिया हविज जिमियस्स नाणिस्स C॥ १३१ ॥ १३६६ ॥ कल्लं कलंपि वरं आहारो परिमिओ अ पंतो अ।न य खमणो पारणए बहु बहुसरो यहु
विहो होइ ।। १३२ ।। १३६७ ॥ एगाहेण तबस्सी हविज्ञ नत्थित्य संसओ कोइ । एगाहेण सुयहरो न होइ ४ाधतंपि तूरमाणो ॥१३३ ॥१३६८ ॥ सो नाम अणसणतबो जेण मणो मंगुलं न चितेइ । जेण न इंदिप-न। दाहाणी जेण य जोगा न हायंति ॥ १३४ ॥ १३३९॥ अन्नाणी कम्मं खचेइ बहुआहिं वासकोडीहिं । तं नाणी
वृत्त्यं प्रायश्चित्तं विवेकः स्वाध्यायः । अभ्यन्तरं तपोनिधि पठं ध्यानं विजानीहि ।। १२८ ॥ द्वादशविधेऽपि तपसि साभ्यन्तरवाहो कुश-IM लहटे । नैवासित नापि च भविष्यति स्वाध्यायसमं तपःकर्म ।। १२९ ॥ ये प्रतनुभक्तपानाः धुतहेतोस्ते तपस्विनः समये । अब तपः१४
श्रुतहीनं बाह्यः स क्षुदाहारः ॥ १३० ।। पाष्टमदशमद्वादशेरबहुश्रुतस्य या शुद्धिः । ततो बहुतरगुणिता भवेत् जिगितम्य ज्ञानिनः | *॥१३१।। कल्ये कल्येऽपि वर आहारः परिमितश्च प्रान्तश्च । न च क्षपणस्य पारणके बहुः बहुतरो बहुविधो भवति ।।१३२।। एकनाहा
तपस्वी भवेत् नास्त्यत्र संशयः कश्चित् । एकनाडा श्रुतधरो न भवति बाढमपि त्वरमाणः ।। १३३ ।। तन्नाम अनशनतपो येन मनोऽम-| गलं न चिन्तयति । येन नेन्द्रियहानियेन च योगा न हीयन्ते ।। १३४ ।। यदज्ञानी कर्म क्षपयति बहुकाभिषेप कोटीनिः । नन ज्ञानी ||
दीप अनुक्रम [१२८]
antom
अथ ज्ञानादि गुणा: वर्णयते
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आगम (३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------- मलं [१३५]-------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||१३५||
पइण्णय- तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तणं ॥ १३५ ॥ १३७० ॥ नाणे आउत्ताणं नाणीणं नाणजोगजुत्ताणं । को निजरं ज्ञानमदसए १०तुलिज्जा चरणे य परकमंताणं? ॥ १३६ ॥ १३७१ ॥ नाणेण बजणिजं बजिजा किज्जई य करणिज्जं । नाणी | हिमा मरणस- जाणइ करणं कजमकजं च बजेउं ।। १३७ ॥ १३७२ ॥ नाणसहियं चरितं नाणं संपायर्ग गुणसयाणं । एस माही जिणाणं आणा नस्थि चरित्तं विणा णाणं ॥ १३८॥ १३७३ ।। नाणं मुसिक्खिया नरेण लण दुल्लहं बोहिं ।।
जो इच्छा ना जे जीवस्स विसोहणामग्गं ॥ १३॥ १३७४ । नाणेण सबभावा णज्जती सबजीवलोअंमि ।। ॥१०५॥
तम्हा नाणं कुसलेण सिक्खियवं पयत्तेणं ॥१४० ।। १३७२ ॥ न ह सका नासे नाणं अरहंतभासियं लोए । ते धन्ना ते पुरिसा नाणी य चरित्तजुत्ता य ॥ १४१ ॥ १३७६ ॥ पंधं मुक्खं गहरागयं च जीवाण|| जीवलोयम्मि । जाणति सुयसमिद्धा जिणसासणचेइयविहिष्णू ॥ १४२ ॥ १३७७ ॥ भई सुबहसुपाणं सबविभिगुप्तः क्षपयत्युच्छासमात्रेण ।। १३५ ॥ ज्ञाने आयुक्तानां ज्ञानिनां ज्ञानयोगयुक्तानां । को निर्जरां तोलयेत् चरणे च पराक्रममाणानां
१३६ ॥ ज्ञानेन वर्जनीयं वय॑ते क्रियते च करणीयं । ज्ञानी जानाति करणं कार्यमकार्य च वर्जयितुम् ॥ १३७ ॥ ज्ञानसहितं चारित्रं ज्ञानं संपादकं गुणशतानां । एषा जिनानामाज्ञा नास्ति चारित्रं विना ज्ञानं ।। १३८ ।। ज्ञानं सुशिक्षयितव्यं नरेण लम्वा सुदुर्लभ
बोधि । य इच्छति ज्ञातुं जीवस्य विशोधनामार्गम् ।। १३९ ।। ज्ञानेन सर्वभावा ज्ञायन्ते सर्वजीवलोके । तस्मात् ज्ञानं कुशलेन शिक्षभावितव्यं प्रयनेन ॥ १४० ॥ नैव शक्यं नाशयितुं लोकेऽहंद्राषितं ज्ञानं । ते धन्यास्ते पुरुषा ज्ञानिनश्च चारित्रयुक्ताच ।। १४१॥ ॥१०५॥ Jबन्ध मोक्षं गतिमागतिं च जीवानां जीवलोके । जानन्ति श्रुतसमृद्धा जिनशासनचैयविधिज्ञाः ॥ १४२ ॥ भद्र बहुश्रुतेभ्यः सर्वपदार्थेषु।
दीप अनुक्रम [१३५]
SAMACHAR
Janbundanimational
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आगम
(33)
प्रत
सूत्रांक
|| १४३||
दीप
अनुक्रम [१४३]
JE
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [१४३]---
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
पघत्थेसु पुच्छणिजाणं । नाणेण जोऽवयारे सिद्धिंपि गए सिद्धे ॥ १४३ ॥ १३७८ ॥ किं इत्तो लट्ठपरं अच्छेरययं व सुंदरतरं वा ? | चंदमिव सबलोगा बहुस्सुयमुहं पलोयंति || १४४ ।। १३७९ ॥ चंदाउ नीइ जुण्हा बहुस्सुयमुहाओ नीह जिणवयणं । जं सोऊण सुविहिया तरंति संसारकंतारं ॥ १४५ ।। १३८० ॥ चउदसपु धराणं ओहीनाणीण केवलीणं च । लोगुत्तमपुरिसाणं तेसिं नाणं अभिन्नाणं ॥ १४६ ॥ १३८१ ॥ नाणेण विणा करणं न होइ नापि करणहीणं तु । नाणेण य करणेण य दोहिवि दुक्खक्खयं होइ ॥ १४७ ॥ १३८२॥ | दढमूलमहाणंमिवि वरमेगोऽवि सुयसीलसंपण्णो । मा हु सुयसीलविगला काहिसि माणं पवयणम्मि ॥ १४८ ॥ १३८३ ॥ तम्हा सुयम्मि जोगो कायदो होह अप्पमत्तेनं । जेणऽप्पाण परंपि य दुक्ख समुदाओ तारे || १४९ ।। १३८४ ॥ परमत्थम्मि सुदिट्टे अविणट्ठेसु तवसंजमगुणेसु । लभड़ गई विसुद्धा सरीरसारे | प्रच्छनीयेभ्यः । ज्ञानेन येऽवतारयंति सिद्धिमपि गतान् सिद्धान् ॥ १४३ ॥ किमितो लष्टतरमाचर्यकारकं वा सुन्दरतरं वा ? चन्द्रमिव सर्वढोका बहुश्रुतमुखं प्रलोकन्ते || १४४ ॥ चन्द्रात् निर्गच्छति ज्योत्स्ना बहुश्रुतमुखात् निर्गच्छति जिनवचनं । यत् श्रुत्वा सुविहितास्तरन्ति संसारकान्तारं ॥ १४५ ॥ चतुर्दशपूर्वराणां अवधिज्ञानिनां केवलिनां च । लोकोत्तमपुरुषाणां तेषां ज्ञानमभिज्ञानम् ।। १४६ ॥ ज्ञानेन विना करणं न भवति ज्ञानमपि करणहीनं तु । ज्ञानेन च करणेन च द्वाभ्यामपि दुःखक्षयो भवति ॥ १४७ ॥ दृढमूल महाजनेऽपि एकोऽपि श्रुतशीलसंपन्नो वरं । श्रुतशीलविकलान् मा मानं प्रत्रचने कार्षीः || १४८ ॥ तस्मात् श्रुते योगः कर्त्तव्यो भवत्यप्रमत्तेन । येनात्मानं परमपि च दुःखसमुद्रात् तारयति ॥ १४९ ॥ परमार्थे सुदृष्टे अविनष्टेषु तपःसंयमगुणेषु । लभ्यते गतिर्विशुद्धा शरीर सारे
Far P&P Oy
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आगम
(33)
प्रत
सूत्रांक
|| १५० ||
दीप
अनुक्रम
[१५० ]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [१५०] ---
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र [३३] प्रकीर्णकसूत्र [१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया
पइण्णय
दसए १०
मरणस
माही
॥ १०६ ॥
Juridion vierail
विम्मि ।। १५० ।। १३८५ || अविरहिया जस्म मई पंचहि समिति तिहिवि गुत्तीहिं । न प कुणड़ राग- ज्ञानचारिदोसे तस्स चरितं हवइ सुद्धं ।। १५१ ।। १३८६ ।। उक्कोसचरितोऽवि य परिवडई मिच्छभावणं कुणइ । किं २५ त्रयोरुद्यमः ४. पुण सम्मद्दिट्ठी सरागधम्मंमि वर्द्धतो १ ॥ १६२ ॥ १३८७ ॥ तम्हा घत्तह दोस्रुवि काउं जे उखमं पयत्तणं । * सम्मत्तम्मि चरिते करणम्मि अ मा पमागृह ॥ १५३ ।। १३८८ ॥ जाव य सुई न नासह जाव य जोगा न ते पराहीणा । सट्टा व जा न हायइ इंद्रियजोगा अपरिहीणा ॥ १५४ ॥ १३८९ ॥ जाव य खेम सुभिक् आयरिया जाव अस्थि निजबगा । इहीगारवरहिया नाणचरणदंसणंमि रया ।। १५५ ।। १३९० ।। ताव खमं कार्ड जे सरीरनिक्वणं विउपसत्थं । समग्रपडागाहरणं सुविहियइहं नियमजुतं । १५६ ।। १३९१ ।। हंदि | अणिचा सद्धा सुई व जोगा य इंदियाई च । तम्हा एवं नाउं विरह तवसंजमुज्जुत्ता ।। १५७ ।। १३९२ ।। ताविनष्टे || १५० || अविरहितं पञ्चसु ममितिषु तिसृष्वपि गुप्तिषु यस्य मतिः । न च करोति रागद्वेषौ चारित्रं तस्य भवति शुद्धं ॥ १५१ ॥ उत्कृष्टचारित्रोऽपि च परिपतति मिध्यात्वभावनां (यदि) करोति । किं पुनः सम्यग्दृष्टिः सरागधर्मे वर्त्तमानः ? ।। १५२ ।। तस्माद् यतस्व द्वयोरपि कर्तुं उद्यमं प्रयत्वेन । सम्यक्त्वे चारित्रे करणे च मा प्रमादिष्ट ।। १५३ ।। यावण श्रुतिर्न नश्यति यावच योगा न तव परा धीनाः । श्रद्धा व यावन हीयते इन्द्रिययोगाश्चापरिहीणाः ॥ १५४ || याच क्षेमसुभिक्षे यावच्चाचार्याः सन्ति निर्यामकाः । ऋद्धिगौरवरहिता ज्ञान चरणदर्शनेषु रताः ॥ १५५ ॥ तावन् श्रमं कर्तुं शरीरनिक्षेपणं विद्वत्यास्तं । समयपताकाहरणं सुविहितेष्टं नियमयुक्तम् ॥ १०६ ॥ ।। १५६ ॥ इन्त अनित्या श्रद्धा श्रुतिश्च योगाचेन्द्रियाणि च । तस्मादेतत् ज्ञात्वा विहरत तपःसंयमोयुक्ताः ॥ १५७ ॥ तद् एतन्
For P&Pete Use Only
अथ आत्मनः शुद्धिः वर्णयते
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [१५८]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत
सूत्रांक
||१५८||
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दीप अनुक्रम [१५८]
पर्य नाऊणं ओवायं नाणदसणचरित्ते। धीरपुरिमाणुचिन्नं करिति सोहिं सुयसमिदा ॥ १५८ ॥ ११९३॥!
अभितरवाहिरियं अह ते काकण अप्पणो सोहिं । निविहण तिबिहकरणं निविहे काले बिघडभाया ॥१५॥ ४॥ १३९४ ॥ परिणामजोगसुद्धा उवहिविधेगं च गणविसम्ग प। अजाइयउबस्सयवजणं च विगई विवगं च C|| १६० ।। १३९५ ।। उम्गम उपायणएसणाधिसुद्धिं च परिहरणसुद्धि । सन्निहिसंनिचर्यमि य तववेयावचक
रणे य ॥ १६१ ॥ १३१६ ॥ एवं करंतु सोहिं नवसारयमलिलनहयलसभावा । कमकालदवपजवअत्तपरजो४ोगकरणे य ॥ १६॥१३९७ ॥ तो ते कयसोहीया पच्छिते फासिए जहाथाम । पुप्फावकिन्नयम्मि य तवम्मि
जुत्ता महासत्ता ॥ १६३ ॥ १३९८ ।। तो इंदियपरिकम्मं करिति विसयसुहनिम्गहसमत्था । जयणाइ अप्प-| मत्ता रागहोसे पयणुयंता ॥ १६४ ॥ १३९९ ।। पुधमकारियजोगा समाहिकामावि मरणकालम्मि । न भवति । ज्ञात्वा औषयिक ज्ञानदर्शनचारिपु । धीरपुरुषानुचीणी शुद्धिं कुर्वन्ति भुनसमृद्धाः ।। १५८ ॥ अभ्यन्तरां बाह्यां चाय ते कृत्वाऽऽत्मनः आदि । त्रिविधेन निविधकरणेन विविध काले चिकटभावात् ॥१५९।। शुद्धपरिणामयोगाः उपधिविवेक व गणविसर्ग च । आर्या या उपा-16
श्रयवर्जनं च विकृति विवेक च ।। १६० ॥ उद्मोत्पादनपणाविशुद्धिं च परिहरणशुद्धि । सन्निधिसन्निचये च तपोवैयावृत्यकरणे च 81॥ १६१ ।। एवं कुर्धन्तु शुद्धिं नवशारदसलिलनभसलवभावाः । कमकालद्रव्यपर्यायात्मपरयोगकरणेषु च ॥ १६२ ॥ ततस्ते कृतशुपाशिकाः प्रायश्चित्तानि पवा यथास्थाम । पुप्पावकीर्ण के च तपसि युक्ताः महासत्त्वाः ॥ १६३ ॥ तत इन्द्रियपरिकर्म कुर्वन्ति विषयमुख
निप्रहसमर्थाः । यतनायामप्रमत्ताः रागद्वेपी प्रतनूकुम्नः ॥ १६४ ॥ पूर्वमकृतपरिकर्मयोगाः समाधिकामा अपि मरणकाले । न भवन्ति
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आगम
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प्रत
सूत्रांक
||१६५||
दीप
अनुक्रम [१६५]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [ १६५]---
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
पफ्य
दसए १०
मरण
माही
॥१०७॥
Jan Estim
परीसहसहा विसयसुहपमोइया अप्पा ॥ १६५ ॥। १४०० ॥ इंदियसुहाउलओ घोरपरीसहपराइयपरज्झो अकयपरिकस्म कीवो मुज्झह आराहणाकाले || १६६ ।। १४०१ ॥ बार्हति इंदियाई पुषिं दुन्नियमिप्पाराई । अकपपरिकम्मकीवं मरणे सुअसंप संपि ॥ १६७ ॥। १४०२ ॥ आगममयप्पभाविप इंद्रियसुहलोलुयापइइस्स । जवि मरणे समाही हुज न सा होइ बहुयाणं ॥ १६८ ॥। १४०३ || असमत्तसुओऽवि मुणी पुि सुकयपरिकम्मपरिहत्थो । संजमनियमपनं सुहमत्तहिओ समण्णे ॥ १६९ ॥ १४०४ ॥ न चयंति किंचि काउं पुत्रिं सुकयपरिकम्मजोगस्स । खोहं परीसहचमू धिईबलपराइया मरणे ॥ १७० ॥। १४०५ ॥ तो तेऽवि पुढचरणा जयणाए जोगसंगह विहीहिं। तो ते करिंति दंसणचरितसर भावणाहेउं ॥ १७१ ॥। १४०६ ॥ जा भाविया किर होड़ सुई चरणदंसणे यहा । सा होड़ बीवभूषा कपपरिकम्मस्स मरणम्मि || १७२ || १४०७ || परीपहसहाः विषयसुखप्रमो (नोदितात्मानः ॥ १६५॥ इन्द्रियमुखसाताकुल घोरपरीपपराजितः अपराद्ध: (परायत्तः) अकृतपरिकर्मा शीवो मुह्यति आराधनाकाले || १६६ ॥ बाधन्ते इन्द्रियाणि पूर्व दुर्नियमितप्रचाराणि । अकृतपरिकर्माणं द्वीवं मरणे स्व (धुत) प्रसंयुक्तमपि ॥ १६७॥ आगममयाभावितस्य इन्द्रियमुखलोलताप्रतिष्ठस्य । यद्यपि मरणे समाधिर्भवेन न सा भवति बहुकानां ।। १६८ ।। असमाप्तश्रुतोऽपि मुनिः पूर्व सुकृतपरिकर्मनिपुणः । संयमनियमप्रतिज्ञां सुखमात्महितः समन्वेति ॥ १६९ ॥ न शक्नोति किंचित् कर्तुं पूर्व सुकृतपरिकर्मयो गस्य क्षोभं परपचमूः धृतिवलपराजिता मरणे ॥ १७० ।। ततस्तेऽपि पूर्व चरणा ( भवन्ति ) यतनया योगसंग्रहविधिभिः । ततस्तेऽपि भाव ॥ २०७ ॥ नाहेतोर्दर्शनचारित्रस्मृतिं कुर्वन्ति ॥ १७१ ॥ या पूर्व भाविता किल भवति श्रुतिधरणे दर्शने च बहुधा सा भवति बीजभूता कृतपरिक
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परिकर्मण आवश्यता
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आगम
(33)
प्रत
सूत्रांक || १७३ ||
दीप
अनुक्रम [१७३]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [१७३]---
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र [३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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अथ संलेखना वर्णयते
तं फासेहि चरितं तुमंपि सुहसीलयं पमुत्तूणं । सर्व परीसह चमूं अहियासतो धिइबलेणं ॥ १७३ | १४०८ ॥ | सद्दे रुवे गंधे रसे य फासे य सुविहियजणेहिं । सर्व्वसु कसाए अ निग्गहपरमो सपा होहि ॥ १७४ ॥ ।। १४०९ ।। सबै रसे पणीए निजहेऊण पंतलक्खेहिं । अन्नघरेणुवहाणेण संलिहे अप्पगं कमसो ॥ १७५ ॥ ॥ १४१० ॥ संलेणा य हुविहा अभितरिया य बाहिरा चैव । अभितरिय कसाए बाहिरिया होइ य सरीरे ।। १७६ ।। १४११ ।। उग्गमउपायणएसणाविसुद्वेण अण्णापाणेणं । मियविरसलुक्वलहेण दुब्बलं कुणसु 1 अपागं ॥ १७७ ।। १४९२ ॥ उल्लीणोल्लीणेहि य अहव न एतबद्धमाणेहिं । संलिह सरीरमेयं आहारविहि पणतो ॥ १७८ ॥ १४१३ ॥ तत्तो अणुपुत्रेणाहारं उवहिं सुओवरसेणं । विविहतवोक्रम्मेहि य इंदिय | विक्कीलियाईहिं ॥ १७९ ॥ १४१४ ॥ तिविहाहिं एसणाहि य विविहेहि अभिग्गहेहिं उग्गेहिं । संजममविरार्मणो मरणे ॥ १७२ ॥ तत् स्पृश चारित्रं त्वमपि मुखशीलतां प्रमुच्य । सर्वा परीषहच भूमध्यासीनो धृतिबलेन ॥ १७३ ॥ शब्दे रूपे गन्धे रसे च स्पर्शे च सुविहितजनेषु (जनैः) । सर्वेषु कषायेषु च निग्रहपरमः सदा भव ॥ १७४ ॥ सर्वान् रसान् प्रणीतान् निर्यू प्रान्तरूक्षैः । अन्यतरेणोपधानेन संलि खेदात्मानं क्रमशः ॥ १७५ ॥ संलेखना च द्विविधा अभ्यन्तरा व बाह्या चैव । अभ्यन्तरा कषाये वाह्या भवति च शरीरे ॥ १७६ ॥ उद्गमोत्पादनेपणाविशुद्धेन अन्नपानेन । मितविरसाति रूक्षेण दुर्बलं कुरुष्वात्मानम् ।। १७७ ।। दीयमानहीयमानैश्रायवश न एकान्तवर्धमानैः । संलिख शरीरमिदं आहारविधिं प्रतनुकुर्वन् ।। १७८ ॥ ततोऽनुपूर्व्याऽऽहारं उपधिं श्रुतोपदे शेन । विविधतपः कर्मभिश्च इन्द्रियविक्रीडितादिभिः ।। १७९ ॥ त्रिविधामिरेषणाभिश्च विविधैरभिप्ररुमैः । संयमम विराधयन् यथा
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [१८०]--------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
पइण्णय. दसए १० मरणस- माही
प्रत सूत्रांक ||१८०||
॥१०८॥
हितो जहाबलं संलिह सरीरं ॥१८०॥ १४१५ ॥ विविहाहि व पडिमाहि य बलवीरियजई य संपहोइन संलेखना सुहताओवि न पाहिती जहरूमं संलिहंतम्मि ॥ १८१॥ १४१६ ॥ छम्मासिया जहन्ना उक्कोसा यारिसेवा विधिः वरिसाई । आयंथिलं महेसी तत्थ य उक्कोसयं विनि ।। १८२॥ १४१७ ॥ छहमदसमदुवालसहिं भत्तेहिं । चित्तक?हिं । मियलहुकं आहारं करेहि आयंबिलं विहिणा ॥ १८३ ॥ १४१८ ॥ परिवहिओवहाणो पहारवि-| रावियवियडपासुलिकडीओ । संलिहियतणुसरीरो अजनप्परओ मुणी निचं ॥ १८४ ।। १४१९ ॥ एवं सरीरसंलेहणाविहिं बहुविहंपि फासितो । अज्झवसाणविमुहिं वर्णपि तो मा पमाइत्था ॥ १८५ ॥ १४२०॥
अज्झवसाणविसुद्धीविवजिया जे तवं विगिट्टमवि । कुवंति बाललेसा न होइ सा केवला सुद्दी॥१८॥ ६॥१४२१ ॥ एवं सरागसंलेहणाविहिं जइ जई समायरइ । अज्झप्पसंजयमई सो पाबइ केवलं सुद्धिं ॥१८॥ बलं संलिख शरीरं ॥ १८० ॥ विविधाभिश्च प्रतिमाभिर्वा बलवीर्य यदि संप्रभवति मुखाय । ता अपि न याधन्ते यथाक्रमं संलिग्यमाने ॥ १८१ ॥ षण्मासाञ्जपन्या उत्कृष्टा द्वादशेय वर्षाणि । आचाम्लं तत्र च महर्षिरुत्कृष्टं धुवते ।। १८२ ।। पटाष्टमदशमद्वादशेभ्यो भक्तभ्यचित्रकष्टेभ्यः । मिर्त लघु आहारं कुरुष्वाचामाम्ल विधिना ।। १८३ ॥ परिवर्धितोपधानः भन्मस्नायुविकट पांचलिकटीकः । संलिखित-" तनुशरीरः अध्यात्मरतो मुनिनित्यं ।। १८४ ॥ एवं शरीरसंलेखनाविधि बहुविधमपि स्पृशन । अध्यवसानविशुद्धि (प्रति) क्षणमपि ननो मा| प्रमादीः ॥ १८५ ।। अध्यवसायविशुद्धिविवर्जिता ये तपो विकृष्ट मपि । कुर्वन्ति धाललेश्या न भवति सा संपूर्णा शुद्धिः ।। १८६॥ ॥१०८। एनं सरागसंलेखनाविधि यदि यतिः समाचरति । अध्यात्ममतिसंयुतः स प्रायोति केवलां शुद्धि ॥ १८७ ॥ निखिलः स्पर्शयितव्यः |
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दीप अनुक्रम [१८०]
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
---------------- मूलं [१८८]-------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||१८८||
दीप अनुक्रम [१८८]
॥ १४२२ ॥ निखिला फासेयवा सरीरसलेहणाविही एसा । इत्तो कसायजोगा अज्झप्पविहिं परम बुच्च ॥१८८ ॥ १४२३ ।। कोहं खमाइ माणं मद्दयया अजवेण मायं च । संतोसेण च लोहं निजिण चत्तारिगि कसाए ॥ १८९॥ १४२४ ॥ कोहस्स व माणस्स व मायालोमेसु वा न एएसि। बबई वसं खणपि हदग्गइगइबहूणकराणं ॥ १९० ॥ १४२५ ॥ एवं तु कसापरिंग संतोसेणं तु विझवेयहो । रागद्दोसपबत्ति बजे माणस्स विज्झाइ ॥ १९१ ॥ १४२६ ।। जावंति केइ ठाणा उदीरगा हुंति हु कसायाणं । ते उ सपा वर्जये। विमुत्तसंगो मुणी विहरे ॥ १९२ ॥ १४२७ ।। संतोवसंतधिइमं परीसहविहिं व समहियासंतो । निस्संगपाइ सुविहिय! संलिह मोहे कसाए य ॥ १९३ ।। १४२८ । इटाणिसु सया सद्दफरिसरसरूवगंधेहिं । सुहदुक्क निविसेसो जियसंगपरीसहो विहरे ॥ १९४ ॥ १४२९ ।। समिईसु पंचममिओ.जिणाहि तं पंच इंदिए सुट्ट। शरीरसंलेखनाविधिरेषः । अतः कपाय(जय)योग्यमध्यात्मविधि परमं वक्ष्ये ॥ १८८ ॥ क्रोधं शमया मानं मार्दवेन आर्जवेन मायां च । संतोपेण च लोभं निर्जय चतुरोऽपि कपायान् ॥ १८९१। क्रोधस्य च मानव च मायालोभयोश्च नैतेषां । प्रजति वर्श क्षणमपि दुर्गतिगति(प्राप्ति)वर्धनकराणाम् ॥ १५० ॥ एवं तु कषायानिः संतोषेण तु विध्यापक्निव्यः । रागद्वेषप्रवृत्ति वर्जयतो विध्याति ।। १९१ ॥ यावन्निता कानिचित् स्थानानि उदीरकाणि भवन्ति कषायाणां । तानि सदा वर्जयन् विमुक्तसंगो मुनिर्विहरेत् ।। १९२ ।। शान्त उपशान्त धृतिमान
परीपहविधि समध्यासयन् । निस्संगतया सुविहित ! संलिख कषायान् मोहं च ॥ १९३ । इष्टानिष्टेषु सदा शब्दस्पर्श स्मरूपगन्धेपुरा च. स.१९15 मुखदुःखनिर्विशेषो जितसंगपरीपहो विहरेः ।। १९४ । समितिषु पंचमु समितो जय त्वं पंचेन्द्रियाणि सुप्त । प्रिमिगौरवै रहिनो भवनिता
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आगम
(33)
प्रत
सूत्रांक
|| १९५||
दीप
अनुक्रम [१९५ ]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [१९५]---
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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पइण्णयदसए १०
मरणस
माही
॥ १०९ ॥
कषायराग
| तिहिं गारवेहिं रहिओ होह निगुत्तो य दंडेहिं ॥ १९५ ॥ १४३० ॥ सन्नासु आसवे अ अडे रुद्दे अ तं विसुद्वप्पा रागहोसपर्वचे निनिणिडं सबणोज्जुत्तो ॥ १९६ ॥ १४३१ || को दुक्खं पाविज्जा ? कस्स य सुक्खेहिं द्वेषनिग्रहः विम्हओ तुला? । को व न लभिन मुक्खं? रागदोसा जड़ न हुजा ॥ १९७ ॥ १४३२ || नवि तं कुण अमित्तो सुद्ध विय विराहिओ समत्थोचि । जं दोवि अनिहिया करंति रागो य दोसो य ।। १९८।। १४३३।। तं सुबह रागदोसे सेयं चिंतेह अप्पणो निधं । जं तेहिं इच्छह गुणं तं वुह बहुतरं पच्छा ॥ १९९ ॥ १४३४ ॥ इहलोए आयासं अयसं च करिंति गुणविणासं च । पसवंति य परलोए सारीरमणोगए मुक्खे ॥ २०० ॥ ॥ १४३५ ॥ घद्धी अहो अकजं जं जाणंतोऽवि रागदोसेहिं । फलमडलं कडुयरसं तं चेत्र निसेब जीवो | २०१ ॥ १४३६ ॥ तं जह इच्छसि गंतुं तीरं भवसायरस्स घोरस्स । तो तवसंजमभंडं सुविहिप ! गिण्हाहि त्रिगुप्त दण्डेषु ॥ १९५ ॥ संज्ञासु आभवेषु च आते रौद्रे च त्वं विशुद्धात्मन्! रागद्वेषप्रपंचान निर्जेतुं संत्रण ! उद्युक्तो ( भव) | ।। १९६ ॥ को दुःखं प्रावीत ? कस्य वा सौख्यैर्विस्मयो भवेत् ! को वा न लभेत मोक्षं ? रागद्वेषौ यदि न स्याताम् ॥ १९७ ॥ नेत्र तत् करोति अमित्रं सुपि विराः समर्थोऽपि । यद् द्वावपि अनिगृहीतौ कुरुतो राग द्वेषच ॥ १९८ ॥ तत् मुख रागद्वेपौ श्रेयः चिन्तयत आत्मनो नित्यम्। यं ताभ्यामिच्छत गुणं तस्माद्बहुवरं पञ्चान् भवं ॥ १९९ ॥ इह लोके आवासं अयशश्च कुरुतो गुणविनाशं च प्रमुवाच परलोके च शारीरमनोगतानि दुःखानि ॥ २०० ॥ धिग् धिग अहो अकार्य यन् जानानोऽपि रागद्वेपास्वाम् फलमतु कटुरसं तावेव निषेवते जीवः ॥ २०१ ॥ तद् यदीच्छसि गन्तुं तीरं भवसागरस्य घोरा तर्हि तपःसंयमभाण्डं
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॥ १०९ ॥
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------ मलं २०२]--------------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||२०२||
तूरंतो ।। २०२॥१४३७ ।। बहुभयकरदोसाणं सम्मत्तचरित्तगुणविणासाणं । नहु वसमागंतवं रागद्दोसाण पावाणं ॥ २० ॥ १४३८ ॥ जं न लहइ सम्मत्तं लणवि जं न एइ वेरग्ग। विसयसुहेसु य रजह सो दो. सो रागदोसाणं ॥ २०४ ॥ १४३९ ॥ भवसयसहस्सदुलहे जाइजरामरणसागमत्तारे । जिणवयणम्मि गुणागर! खणमवि मा काहिसि पमायं ॥ २०५ ॥ १४४० ॥ दहिं पजवेहि य ममत्तसंगेहिं मुट्ठवि जियप्पा । निप्पणयपेमरागो जइ सम्म नेइ नुक्खत्वं ॥ २०६॥ १४४१॥ एवं कयसलेहं अम्भितरवाहिरम्मि संलेहे। संसारमुक्खबुद्धी अनियाणो दाणि विहराहि ।। २०७॥ १४४२ ॥ एवं कहिय समाही तहविह संवेगकरणग-16 | भीगे । आउरप चक्खाणं पुणरवि सीहायलोएणं ॥ २०८ ॥ १४४३ ॥ न हु सा पुणरुत्तविही जा संवेगं करेइ
भपणती । आउपभक्खाणे तेण कहा जोइया भुजो ॥ २०९ ॥ १४४४ ॥ एस करेमि पणामं तित्थयराणं | सुबिहिन ' गृहाण त्वरमाणः ।। २०२ ।। बहुभयङ्करदोषयोः सम्यक्त्वचारित्रगुणविनाशकयोः । न वशमागन्तव्य रागद्वेषयोः पापयोः
२.३॥ यन्न लभते सम्मक्वं लब्धाऽपि यत् नैति वैराग्यम् । विषयसुखेषु च रज्यति स दोपो रागद्वेषयोः ।। २०४ ।। भवशतसहस्रदुर्लभे जातिजसमरणसागरोतारे । जिनवचने गुणाकर! क्षणमपि मा कार्षीः प्रमादम् ।। २०५ ।। द्रव्यैः पर्यायैश्च ममत्वसंगैश्च है। सुप्लपि जितात्मा स्यान । निष्पणयप्रेमरागो यदि सम्यग् प्राप्नोति मोक्षार्थम् ।।२०६॥ एवमभ्यन्सरबासलेखनया कृतसंले घनः । संसारमोक्ष
बुद्धिरनिदान इदानीं विहर ।।२०७॥ एवं कथितसमाधिकस्तथाविधसंवेगकरणगंसीरः । आतुरप्रत्याख्यानं पुनरपि सिंहावलोकेन (करोति) २०८॥ नैव स विधिः पुनरुक्तः (स्पाद) यः संवेगं भण्यमानः करोति । आतुरप्रत्याख्याने तेन कथा योजिता भूयः ।। २०५॥ एष करोमि
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दीप अनुक्रम [२०२]
6-4
अथ आतुरप्रत्याख्यान-आदि वर्णयते
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [२१०------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
दित्यागः
प्रत सूत्रांक ||२०८||
रहणणय 13 अणुत्तरगईणं । सवेसि च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च ॥ २१० ।। १४४५ ॥ ज किंचिवि दुचरियं तमहं |
काप्रमादत्यादसए १० निंदामि सबभावणं । सामाइयं च तिविहं तिविहेण करेमऽणागारं ।। २११ ॥ १४४६ ॥ अम्भितरं च तह
लिगः उपध्यामरणस- बाहिरं च उचहीं सरीर साहारं । मणवयणकायतिकरणसुद्धोऽहं मित्ति पकरेमि ।। २१२ ॥ १४४७ ॥ बंधपओ-11 माही सं हरिसं रइमरई दीणयं भयं सोग। रागद्दोस विसायं उस्सुगभावं च पयहामि ॥ २१३ ॥ १४४८ ॥ रागेण18
आत्माव दोसेण व अहवा अकयन्नुधा पडिनिवेसेणं । जो मे किंचिवि भणिओ तमहं तिविहेण खामेमि ।। २१४ ॥
लंबन ॥११०॥
101॥१४४९ ॥ सबेसु य दचेसु य उवडिओ एस निम्ममत्ताए। आलंवणं च आया दंसणनाणे चरित्ते या॥२१॥ ||॥१४५० ।। आया पचकवाणे आया मे संजमे तवे जोगो। जिणवधणविहिविलग्गो अवसेसविहिं तु दंसेहि ||२१६ ॥१४५१ ॥ मूलगुण उत्तरगुणा जे मे नाराहिया पमाएणं । ते सो निंदामि पडिकमे आगमिस्साणं प्रणाम तीर्थफरेभ्यः अनुत्तरगतिभ्यः । सर्वेभ्यश्च जिनेभ्यः सिद्धेभ्यः संयतेभ्यश्च ॥ २१ ॥ यत्किंचिदपि दुश्चरितं तदहं निन्दामि। सर्वभावेन । सामायिक च त्रिविध निविधेन करोम्यनाकारं ।। २११ ॥ अभ्यन्तरं च तथा यायं च उपधिं शरीरं साहार (व्युत्मज्य) मनोवचनकायैः त्रिकरणशुद्धोऽहं प्रकरोमि (मैत्री ) इति ॥२१२।। बन्धं प्रदेष हर्ष रतिमरति दीनतां भयं शोकं । रागद्वेषौ विपादं उत्सुकभावं च प्रजहामि ॥ २१३ ।। रागेण वा द्वेषेण वा अथवा अकृतज्ञतया प्रति निवेशेन वो मया किञ्चिदपि भणितः तमहं त्रिविधेन श्रमयामि ॥ २१४ ।। सर्वेषु च द्रव्येषु च निर्ममत्वाय एष उपस्थितः (मम)। आलम्बनं चात्मा दर्शनज्ञाने चारित्रं च ।। २१५ ।। आत्मा ॥११० प्रत्याख्यानं आत्मा मे संयमस्तपः योगः । जिनवचनविधिविलनः अवशेषविधि तु दर्शय ।। २१६ ।। मूलगुणा उत्तरगुणा ये मया नारा
दीप अनुक्रम [२०८]
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आगम
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [२१८]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||२१८||
॥२१७ ॥१४५२ ॥ एगो सर्यकडाइं आया मे नाणदंसणवलक्खो । संजोगलक्खणा खलु सेसा मे बाहिरा तभावा ॥ २१८॥१४५३ ॥ पत्ताणि दुहसयाई संजोगस्सा(वसा)णुएण जीवेणं । तम्हा अंणतदक्खं चयामि।
संजोगसंबंध ॥ २१९ ॥ १४२४ ।। अस्संजममण्णाणं मिच्छत्तं सबओ ममत्तं च । जीवेसु अजीवसु प तं निंदे तं च गरिहामि ॥ २२० ।। १४५५ ॥ परिजाणे मिच्छत्तं सर्घ अस्संजमं अकिरियं च । सवं चेव ममत्तं चयामि सवं च खामेमि ॥ २२१ ।। १४५६ ॥ जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु । ते तह आलोएमि
उचडिओ सबभावेणं ॥ २२२ ॥ १४५७ ।। उप्पन्ना उप्पन्ना माया अणुमग्गओ निहंतवा। आलोयणनिंदणग-IN दारिहणाहिं न पुणोत्ति या बियं ॥ २२३ ॥ १४५८ ।। जह यालो जपतो कजमकजं च उजु भणइ । तं तहा।
दीप अनुक्रम [२१८]
द्वाः प्रमादेन । तान् सर्यान् निन्दामि प्रतिक्राम्यामि आगमिष्यद्भवः ।। २१७ ।। एकः स्वयं कृतानि (भुङ्के) आत्मा मे शानदर्शनबलक्षः । संयोगलक्षणाः खलु शेषा बासा भावाः ॥ २१८ ।। प्राप्तानि दुःखदातानि संयोगवशानुगेन जीवेन । तस्मादनन्तदुःखं त्यज्ञामि। संयोगसम्बन्ध ।। २१९ ।। असंयममज्ञानं मिध्यात्वं सर्वेषु जीवेषु अजीवेषु च ममत्वं तन्निन्दामि तच गहें ।। २२० ॥ परिजानामि मिथ्यात्वं सर्वमसंयममक्रियां च । सर्वमेव ममत्वं त्यजामि सर्वच क्षमयामि ।। २२१ ॥ यान् मम जानन्ति जिना अपराधान् येषु २ स्थानेषु तास्तथाऽऽलोचयामि उपस्थितः सर्वभावेन ॥ २२२ ॥ उत्पना स्त्पना माया अनुमार्गतो निहन्तल्या । आलोचननिन्दना-1 गाभिः न पुनरिति च द्वितीयम् ।। २२३ ॥ यथा चालो जल्पन् कार्यमकार्य च अजुकं भणति । तत्तथा आलोपवितव्यं गायां
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आगम
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [२२४]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
माही |
प्रत सूत्रांक ||२२४||
पइण्णय-18 आलोयई मायं मुत्तूण निस्सेसं ॥ २२४॥१४५९॥ सुबहुंपि भावसलं आलोएऊण गुरुसगासम्मि । निस्सल्लो ममत्वादि दसए १० संथारं उवेइ आराहओ होइ ।। २२५ ॥ १४६० ।। अप्पंपि भावसल्लं जे णालोयंति गुरुसगासम्मि । धंतपि त्यागः मरणस- सुयसमिद्धा न हु ते आराहगा हुंति ॥ २९६॥१४६१।। नवि तं विसंच सत्थं च दुप्पउत्तो व कुणइ वेयालो। | भावा
४जतं व दप्पउत्तं सप्पो व पमायओ कुविओ ॥ २२७ ॥ १४६२ ॥ जं कुणा भावसल्लं अणुद्धियं उत्तमट्टका-नाल्यो द्वार: हलम्मि | दुल्लहयोहीयत्तं अगंतसंसारियतं च ॥ २२८ ॥ १४६३ ।। तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणन्भवPालयाणं । मिच्छादसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च ॥ २२९॥ १४६४ ॥ कयपावोऽवि मणूसो आलोइय निदिप ।
|गुरुसगासे । होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरुव भारवहो ॥ २३० ॥ १४६५ ।। तस्स य पायच्छितं जं मग्ग-13 है| विऊ गुरू उवासंति । तं तह अणुचरियई अणवत्थपसंगभीएणं ।। २३१॥ १४६६ ॥ दसदोसविप्पमुक्कं तम्हा *मुक्त्वा निःशेषाम् ॥ २२४ ।। सुबदपि भावशल्यमालोच्य गुरुसकाशे । निःशल्यः संस्तारकमुपैति(यः सः) आराधको भवति ।। २२५।।
अल्पमपि भावशल्यं ये नालोचयंति गुरुसकाशे । बाढमपि श्रुतसमृद्धा नैव त आराधका भवन्ति ।। २२६ ॥ नैव तत् विषं च शत्रं च दुष्प्रयुक्तो वा करोति वैतालः । यत्रं वा दुष्पयुक्तं सर्पो वा प्रमादतः कुषितः ।। २२७ ।। यत्करोति भावशल्यं अनुदत उत्तमार्थकाले । दुर्लभवोधिकलं अनन्तसंसारिकत्वं च ।। २२८ ॥ तत उद्धरन्ति गौरवरहिता मूलं पुनर्भवलतानां । मिथ्यादर्शनशल्यं मायाशल्यं निदान च ॥ २२९ ॥ कृतपापोऽपि मनुष्यः गुरुसकाशे आलोच्य निन्दयित्वा । भवत्यतिरेकलघुः उत्तारितभर इव भारवाट् ॥ २३०॥ ॥१११॥ तस्य च प्रायश्चित्तं यन्मार्गविदो गुरवः उपदिशन्ति । तत्तथा अनुचरितव्यं अनषस्थाप्रसङ्गभीतेन ॥ २३१ ॥ दशदोषविप्रमुक्तं तस्मात् द्रा
दीप
अनुक्रम [२२४]
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [२३२]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||२३२||
सर्व अमग्ग(गृह)माणेणं । ज किंचि कयमकजं आलोए तं जहावत्तं ॥ २३२ ॥ १४६७ ॥ सर्व पाणारंभ पञ्चक्खामित्ति अलियवयणं च । सई अदिन्नदाणं अव्यंभपरिग्गहं चेव ॥ २३३ ॥१४६८ ॥ सर्व च असणपाणं चतविहं जा य याधिरा उपही । अम्भितरं च उबहिं जावजीवं वोसिरामि ॥ २३४ ॥ १४३९ ॥ तारे। दुभिक्खे आपके वा महया समुप्पन्ने । जं पालियं न भग्गं तं जाणसु पालणासुदं ॥ २३५ ॥ १४७० ।।
रागेण व दोसेण व परिणामेण व न दृसियं जं तु । तं खलु पञ्चक्खाणं भावविमुद्रं मुणेयचं ॥२३६॥१४७१। दापीयं थणअच्छीरं सागरसलिलाउ बहुयरं हुज्जा । संसारे संसरंतो माऊणं अन्नमन्नाणं ॥२३७॥१४७२॥ नस्थि किर सो पएसो लोए बालग्गकोडिमित्तोऽवि । संसारे संसरंतो जत्थ न जाओ मओ वाऽवि ।।२३८॥१४७३|| चुलसीई किर लोए जोणीणं पमुह. सयसहस्साई । इकिमि य इत्सो अर्णतखुसो समुप्पन्नो ॥ २३९ ॥ सर्वमगृहयता। यत्किनिदपि अकार्य कृतं तद्यथावृत्तमालोचयेत् ॥ २३२ ॥ सर्व प्राणारम्भं प्रत्याख्यामीति पालीकवचनं च । सर्प- मदत्तादानमब्रह्म परिग्रहं चैव १। २३३ ॥ सर्वच अशनपानं चतुर्विधः यश्च बायोपधिः (त)। अभ्यन्तरं च उपधि यावजीवं व्युत्मजामि ॥ २३४ ।। कान्तारे दुर्भिक्षे आतके वा महति समुत्पन्ने । यत्पालितं न भमं तत् (प्रत्याण्यानं ) जानीहि पालनाशुद्धम् ॥२३५।। रागेण वा द्वेषेण वा परिणामेन वा न दूषितं यत्तु । तत्खलु प्रत्याख्यानं भावविशुद्ध ज्ञातव्यम् ।। २३६ ॥ पीतं स्तनक्षीर सागरसलिलाद् बहुतरं भवेत् । संसारे संसरता मातृणां अन्यान्यासाम् ।। २३७॥ नास्ति किल स प्रदेशो लोके वालापकोटीमात्रोऽपि । संसारे संसरन | यत्र न जातो मृतो वाऽपि ।।२३८॥ चतुरशीतिः किल लोके योनिप्रमुखाणि शतसहस्राणि । एकैकस्मैिश्वेतोऽनन्तकृत्वः समुत्पन्नः ॥२३॥
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दीप अनुक्रम [२३२]
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------ मूलं [२४०]------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||२४०||
पण्णय- ॥ १४७४ । उहुमहे तिरियम्मि य मयाणि बालमरणाणिऽणताणि । तो ताणि संभरतो पंडियमरणं प्रत्यादसए १01मरीहामि ॥ २४०॥ १४७५ ॥ माया मित्ति पिया मे भाया मजत्ति पुस धूया य । एयाणिऽचिंतयंतो पंडि-I ख्यानं मरणस- यमरणं मरीहामि ॥ २४१ ॥ १४७६ ।। मायापिइयंधूहिं संसारत्थेहिं पूरिओ लोगो । बहुजोणिनिवासीहिं न भवभावना माही ते ताणं च सरणं च ॥ २४२ ॥ १४७७ ॥ इको जापइ मरइ इको अणुहबह दुक्कयविवागं । इको अणुसरह पंडितमरण
जीओ जरमरणचउम्गईगुविलं ॥२४३ ।। १४७८ ॥ उल्वेवणयं जम्मणमरणं नरएसु वेयणाओ य। एपाणि ॥११२॥
संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥ २४४ ॥ १४७२ ।। इकं पंडियमरणं छिंदह जाईसयाणि बहुपाणि । तं मरणं मरियर्ष जेण मओ सुम्मओ (मुकओ) होइ ॥ २४५ ॥ १४८० ।। कइया णु तं सुमरणं पंडिपमरणं जिणेहि पणतं । मुद्धो उद्वियसल्लो पाओवगमं मरीहामि ॥ २४६ ॥ १४८१ ॥ संसारचकवाले सवेऽवि य पुग्गला
ईमधसिरचि च मृतानि बालमरणानि अनन्तानि । ततस्तानि स्मरन् पण्डितमरण मरिष्ये ॥२४०॥ माता मे इति पिता मे भ्राता भार्या इति पुत्रो दुहिता च । एतानि अचिन्तयन् पण्डितमरणं मरिष्ये ॥ २४१॥ मातापितृबन्धुमिः संसारस्थैः पूरितो लोकः। बहुयोनिनिवासिभिर्न च ते त्राणं च शरणं च ॥ २४२ ॥ एको जायते म्रियते एकोऽनुभवति दुष्कृतविपाकं । एकोऽनुसरति | |जीवो जरामरणचतुर्गति गुपिलं (भवम् ) ।। २४२ ॥ उद्वेजकं जन्ममरणं नरकेपु वेदनाश्च । एताः स्मरन् पण्डितमरणं मरिष्ये ॥२४॥ *एक पण्डितमरणं छिनत्ति जातिशतानि बहुकानि । तेन मरणेन मर्तव्यं येन मृतः सुमृत: (मुक्तः) भवति ॥ २४५ ॥ कदा तत् सुम-II
रणं पण्डितमरणं जिनैः प्रज्ञप्तम् । शुद्ध उद्धृतशल्यः पादपोपगतो मरिष्ये ॥ २४६ ॥ संसारचक्रवाले सर्वेऽपि च पुद्गला मया बहुशः ।
दीप अनुक्रम [२४०]
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
--------------- मूलं [२४७]------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||२४७||
मए पहसो। आहारिया य परिणामिया य न य तेसु तित्तोऽहं ॥ २४७ ॥ १४८२ ॥ आहारनिमित्तेणं मच्छा!!
वचंतिऽणुत्तरं नरयं । सचित्ताहारविहिं तेण उ मणसाऽपि निच्छामि ॥ २४८ ॥ १४८३ ॥ तणकट्टेण व अग्गी ४ालवणसमुद्दो नईसहस्सेहिं । न इमो जीवो सक्को तिप्पे कामभोगेहि ॥ २४९॥१५८४ ॥ लवणयमुहसामाणो
दप्तरो घणरओ अपरिमिज़ो। न हुसको तिप्पेउं जीवो संसारिपसुहेहिं ।। २५० ।। १४८५ ।। कप्पतरूसंभ-18 वसु य देवुत्तरकुरुवंसपमूएसुं । परिभोगेण न तित्तो न प नरविजाहरसुरेसं ॥२५१ ॥ १४८६ ॥ देविंद-13 |चकवहितणाई रवाई उत्तमा भोगा । पत्ता अर्णतखुत्तो न यऽहं तित्तिं गओ तेहिं ।। २५२ ॥ १४८७ ।। पप
वीरुकछुरसेसु य सामु महोदहीसु बहुसोवि । उववतो न य ताहा छिन्ना ते सीयलजलेहि ॥ २५ ॥ ॥१४८८ ॥ तिविहेणवि सुहमउलं जम्हा कामरइबिमयसुक्खाणं । यसोऽवि समणुभूयं न य तुह तण्हा आहारिताच परिणामिताश्च न च तैस्तृप्तोऽहं ।। २४७ ।। आहारनिर्मिनन मत्स्या प्रजन्ति अनुत्तरं नरकं । सचित्ताऽऽहारविधि तेन तु |
मनसापि नेच्छामि ॥ २४८ ॥ तृणकावैरपिरिव नदीसहः लवणसमुद्र इव । नायं जीवः शक्यः तर्पयितुं कामभोगेः ॥ २४९ ॥ लवVणमुखसमानः दुप्पूरः धनरयोऽपरिमेयः । नैव शक्यः तर्पयितुं जीवः सांसारिकसुम्यः ।। २५० ॥ कल्पतरूसम्भवः देवकुरुत्तरकुरुप४ सूतैः । परिभोगेर्न तृप्तः न च नरविद्याधरमुरभवजैः ।। २५१ ॥ देवेन्द्रचक्रवर्तित्वानि राज्यानि उत्तमा भोगाः । प्राप्ता अनन्तकृत्वः | &ान चाहं तृप्रिगतस्तैः ॥ २५२ ॥ पक्षीरेक्षुरसेषु च स्वादुपु महोदधिषु बहुशोऽपि । उत्पन्नो न च तृष्णा छिन्ना तव शीतलजलैः | V॥२५३ ॥ त्रिविधेनापि सुखमतुलं यस्मात् कामरतिविषयसौख्यैः । बहुशोऽपि समनुभूतं न च तव तृष्णा परिचिना ॥ २५५ ।।
दीप
अनुक्रम [२४७]
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आगम
(33)
प्रत
सूत्रांक
||२५४||
दीप
अनुक्रम [२५४]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [२५४]--- पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र [३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया
दस १०
पइत्य- * परिच्छिणा ।। २५४ ॥ १४८९ ।। जा का पत्थणाओ कथा भए रागदोसवसरणं । पडिवंधण बहुविहा तं निंदे तं च गरिहामि ॥ २५५ ॥। १४९० || तूण मोहजालं चिकूण य अट्टकम्मसंकलियं । जम्मणमरणरहहं भिन्तृण भवा णु मुद्दिहिसि ॥ २५६ ॥। १४९१ ॥ पंच य महवयाई तिविहं तिविहेण आरुहेऊणं । मणवयकायगुत्तो सज्जो मरणं पडिच्छित्रा (लहिजा ) ॥ २५७ ॥। १४९२ || कोहं माणं मायं लोहं पिज्जं तहेव दोसं च। चऊण अप्पमत्तो रक्खामि महाए पंच ।। २६८ ।। १४९३ || कलहं अभक्खाणं पेसुन्नपि य परस्स परिवार्य । परिवर्जितो गुत्तो रक्खामि महङ्घए पंच ।। २५९ ।। १४९४ ॥ किन्हा नीला काऊ लेसं झाणाणि अप्पसस्याणि । परिवर्जितो गुतो रक्खामि महङ्घए पंच ।। २६० ।। १४९५ ।। तेऊ पम्हं सुक्कं लेसा झाणाणि सुप्पसत्थाणि । उवसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महदए पंच ।। २३१ ।। १४९६ ॥ पंचिंदियसंवरणं पंचैव निरंभि
मरणस
माही
॥ ११३ ॥
Jemain
या काचित् प्रार्थना कृता मया रागद्वेपवशगेन प्रतिबन्धेन बहुविधा तां निन्दे तां च गर्हे ॥ २५५ ॥ हत्वा मोहजालं हिरवा चाष्टकर्मशृङ्खयं। जन्ममरणारहट्टं भित्त्वा भवाद् मुच्यसे ॥ २५६ ॥ पञ्च च महात्रतानि त्रिविधं त्रिविधेनारोा । मनोवचनकाय गुप्तः सद्यो मरणं प्रतीप्सेत् ॥ २५७ ॥ क्रोधं मानं मायां लोभं प्रेम तथैव द्वेपं च यत्तवा अप्रमत्तः रक्षानि महात्रतानि पञ्च ॥ २०८ ॥ कलहं अभ्याख्यानं पैशुन्यमपि च परस्य परिवाद । परिवर्जयन् गुप्तः रक्षामि महात्रतानि पञ्च ।। २५९ ।। कृष्णां नीलां कापोती लेइयां ध्याने अप्रशस्ते परि० ।। २६० ।। तैजसीं पद्मां हां लेइयां ध्याने नुमास्ते उपसम्पन्नो युक्तः ० ॥ २६१ ॥ पचेन्द्रियसंवरणं पञ्चैव निरुद्ध्य काम
अथ 'पंचमहाव्रतस्य रक्षा' वर्णयते
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तृप्तेरभावः
महाव्रतरक्षा
★ ॥ ११३ ॥
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
--------------------------- मूलं [२६२]--------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||२६२||
दाऊण कामगुणे । अचासायणविरओ रक्खामि महत्वए पंच ॥ २३२ ॥ १४९७ ।। सत्तभयविप्पमुको चत्तारि। निमंभिऊण य कसाए । अट्ठमयहाणजहो रक्खामि महबए पंच ।। २६३ ॥ १४९.८ ।। मणसा मणमञ्चविऊट वायासबेण करणसच्चेण । तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि महार पंच ॥ २४॥ १४९९ ॥ एवं तिदंडविरओ तिकरणसुद्धो तिल्लनिस्सल्लो । तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि महया पंच ॥ २३५ ।। १५०० ।। सम्पत्तं समि|इओ गुत्तीओ भावणाओ नाणं च । उपसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महाप पंच ।। २६६ ॥ १५०१ ॥ संगं परिजाणामि सल्लंपि य उद्धरामि तिविहेणं । गुत्तीओ समिईओ मज्झं ताणं च सरणं च ।। २६७ ॥ १५०२॥12 जह खुहियचकवाले पोषं रयणभरि समुद्दम्मि । निजामया धरिती कवरप(कर)णा पुद्धिसंपणा || २०८: ॥ १३०३ ॥ तवपो गुणभरियं परीसम्मीहि धणियमाइदं । तह आराहिति विऊ उवामऽवलंबगा
COMMELANC
दीप
अनुक्रम [२६२]
गुणान् । अत्याशातनाविरतः० ॥ २६२ ।। सप्तभयविप्रमुक्तः चतुरो निरुद्धय च कपायान । त्यक्ताष्टमस्थानः ।। २६३ ॥ मनसा मनःसत्यविन् वाचासत्येन करणसत्येन ( युक्तः ) त्रिविधेनाप्यतमत्तः ।। २६४ ।। एवं त्रिदण्डदिरतः त्रिकरणशुद्धः त्रिशल्य-. निःशल्य । त्रिविधेनाप्रमत्तः ॥ २६५ ।। सम्यक्त्वं समितीः गुप्तीः भावना ज्ञानं च । उपसम्पन्नो युक्तः ॥ २६६ ॥ सङ्ग परिजानामि शल्यमपि चोद्धरामि त्रिविधेन । गुपयः समितयः मम त्राणं शरणं च ।। २६७ ।। यथा क्षुभितचकवाले समुद्रे रनभृतं पोतं । निर्यामका धारयन्ति कृतरचनाः ( करणाः) बुद्धिंसम्पन्नाः ॥ २६८ ।। तपःपोतं गुणभूतं परीपहोर्मिभिः वाढमाविष्टम ( धारयित्वा )।
Jimtharitmanamadian
अथ आराधना एवं उपदेश-आदि वर्णयेते
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [२६९]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
साहाताउत्तमार्थ
प्रत सूत्रांक ||२६९||
पइण्णय- धीरा ॥ २६॥१५०४ ॥ जइ ताव ते सुपुरिसा आयारोवियभरा निरवयक्खा । गिरिकुहरकंदरगया साहति दसए १०य अप्पणो अई ।। २७० ॥ १५०५ ॥ जह ताव सावयाकुलगिरिकंदरविसमंदुग्गमग्गेसु । धिहधणियपद्धकच्छा
सिद्धिः मरणस- साहति य उत्तम अदृ ।। २७१ ॥ १५०६॥ किं पुण अणगारसहायगेण वेरग्गसंगहबलेणं । परलोएण ण सका। परिकर्म माही संसारमहोदहि तरिउ ? ।। २७२ ॥ १५०७॥ जिणवयणमप्पमेयं महुरं कन्नामयं सुणताणं । सका हसार
मज्झा साहेउं अप्पणो अहूँ ।। २७३ ।। १५०८ ॥ धीरपुरिसपण्णतं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं । धन्ना मिला॥११४॥
तलगया साहिती अपणो अटुं ॥ २७४ ॥ १५०९ ॥ याहेइ इंदियाई पुरमकारियपट्टचारिस्स । अकयपरि
कम्म कीवं मरणेसु अ संपउत्तंमि ॥ २७५ ॥ १५१० ॥ पुखमकारियजोगो समाहिकामोऽवि मरणकालम्मि । टून भवद परीसहसहो विसयसुहपराइओ जीवो ॥ २७६ ॥ १५११ ॥ पुर्वि कारिपजोगो समाहिकामो य मर-1
उपदेशावलम्बका धीराः विदः नथाऽऽराधयन्ति ॥ २६९ ॥ यदि तावते सुपुरुषा आत्मारोपितभाराः निरपेक्षा गिरिकुहरकन्दरागताः साधयन्ति चात्मनोऽर्थम् ।। २७० ॥ यदि तावद् श्वापदाकुलगिरिकन्दराविषमदुर्गमार्गेषु । बाढं धृतिवद्धकपडाः उत्तमार्थ साधयन्ति ॥२७१।। किं पुनरनगारसहायकेन वैराग्यसायलेनापरलोकेन न शक्यः संसारमहोदधिस्तरीतुम् ? ।। २७२ ।। जिनवचनमप्रमेयं मधुरं । कर्णामृतं शृण्वता साधुमध्ये आग्मनोऽर्थः साधयितुं', शक्य एव ॥२७३॥ धीरपुरुषप्रजातं सत्पुरुषनिसेवितं परमधोरं। आत्मनोऽर्थ धन्याः । शीलातलगताः साधयन्ति ॥ २७५ ।। बाधयन्ति इन्द्रियाणि पूर्व अकारितप्रतिष्ठाचारितस्य अकृतपरिकर्माण वीर्य मरणे सम्प्रयुक्ते ॥११४॥ ॥ २७५ ।। पूर्वमकृतयोगः समाधिकामोऽपि मरणकाले। न भवति परीपहसहः विषयसुखपराजितो जीवः ॥ २७६ ।। पूर्व कृतयोगः।
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अनुक्रम
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [२७७]--------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||२७७||
णकालम्मि । होइ उ परीसहसहो विसयसुहनिवारिओ जीवो ॥ २७७ ॥ १५१२॥ पुर्वि कारियजोगो अनि-1 याणो ईहिऊण सुहभावो । ताहे मलियकसाओ सज्जो मरणं पडिच्छिन्ना ॥ २७८ ॥ १५१३ ।। पावाणं पावाणं कम्माणं अप्पणो सकम्माणं । सका पलाइ जे तवेण सम्म पउत्तेणं ॥ २७९ ।। १५१४ ॥ इथं पंडियमरणं |पडिवनइ सुपुरिसो असंभंतो। खिप्पं सो मरणाणं काहिइ अंतं अर्णताणं ॥ २८० ।। १५१५ ॥ किं तं पंडियमरण? काणि व आलंबणाणि भणियाणि? । एयाई नाऊणं किं आयरिया पसंसंति? ॥ २८१ ॥ १५१६ ॥ अणसणपाउबगमणं आलंयण झाण भावणाओ अ । एयाइं नाऊणं पंडियमरणं पसंसंति ॥ २८२ ॥१५१७॥ इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपराइयपरज्झो। अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले ॥२८॥१५१८॥ लजाइ गारवेणं बहुसुयमएण वावि दुचरियं । जे न कहिंति गुरूणं न हु ते आराहगा हुंति ॥२८४॥१५१९॥ समाधि कामश्च मरणकाले । भवति तु परीषहसहः निवारितविषयसुखः जीवः ॥ २७७ ।। पूर्व कृतयोगः अनिदानः शुभभावान ईहयित्वा । तदा मस्तिकपायः सबो मरणं प्रतीप्सेत् ।। २७८ ॥ पापानामपि पापेभ्यः कर्मभ्यः आत्मना सकृतेभ्यः । शक्यः पलायितुं तपसा सम्यक् प्रयुक्तेन ॥२८९।। एकं पण्डितमरणं प्रतिपद्यते सुपुरुष: असंभ्रान्तः । क्षिप्रं सः अनन्तानां मरणानामन्तं करोति ॥२८॥ किं तत् पण्डितमरणं कानि वाऽऽलम्बनानि भणितानि । एतानि ज्ञात्वा कि आचार्याः प्रशंसन्ति ।। २८१ ।। अनशनं पादोपगमनं (मरणे)। आलम्बनानि ध्याने भावनाश एतानि ज्ञात्वा पण्डितमरणं प्रशंसन्ति ॥ २८२ ।। इन्द्रियसुखसाताकुलः घोरपरीषहपराजितः परायत्तः । अकृतपरिका लीवः' मुद्यति आराधनाकाले ॥ २८३ ॥ लजया गौरवेण बहुश्रुतमदेन वा भारितमपि । ये न कथयन्ति
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अनुक्रम [२७७]
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [२८५]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||२८५||
पइण्णय-18 मुझइ दुपरकारी जाणइ मग्गंति पावए किसि। विणिगृहितो निदं तम्हा आलोषणा सेया ॥२८॥१५२०॥ अभ्युपतं दसए १०८ अग्गिम्मि य उदयम्मि य पाणेसु य पाणयीयहरिएसुं । होइ मओ संथारो पडिवजा जो(जई) असंभंतो मरणं मरणास- २८६ ॥ १५२१ ॥ नवि कारणं तणमओ संधारो नवि य फासुपा भूमी। अप्पा खलु संथारो होइ विसुद्धो सस्तार माही मरंतस्स ।। २८७ ॥ १५२२ ॥ जिणवणमणुगया मे होउ मई प्राणजोगमल्लीणा । जह तम्मि देसकाले अमृ- जिनवच
|सको पए देहं ॥ २८८ ॥ १५२३ ॥ जाहे होइ पमत्तो जिणवयणरहिओ अणापत्तो । ताहे दियचोरा करेंति|| नमहिमा तवसंजमविलोमं ।। २८९ ॥ १५२४ ॥ जिणवयणमणुगयमई जबेलं होइ संवरपविट्ठो। अग्गी व वायसहिओ समूलडालं डहाइ कम्मं ॥ २९० ॥ १५२५ ।। जह डहाइ वायसहिओ अग्गी हरिएवि रुक्खसंघाए। तह पुरि-1
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दीप अनुक्रम [२८५]
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गुरुभ्यः नैव तयाराधका भवन्ति ॥२८४॥ शुद्धयति दुष्करकारी जानाति मार्गमिति प्राप्नोति कीर्तिम् । विनिगूहयन् निन्दा तस्मादालोचना श्रेयसी ।। २८५ ।। अनी च उदके च प्राणेषु च प्राणवी जहरितेषु । भवति मृतस्य संस्तारकः प्रतिपद्यते यदि असंभ्रान्तः ।। २८६ ॥ नैव कारणं तृणमयः संस्तारकः नापि च प्रासुका भूमिः । आत्मा खलु संस्तारको भवति विशुद्धो म्रियमाणस्य ॥ २८७ ॥ जिनवचनानुगता| ध्यानयोगाश्रिता मम मतिर्भवतुं । यथा तस्मिन्नवसरेऽमूढसंझो देहं त्यजेयम् ॥ २८८ ॥ यदा भवति प्रमत्तः जिमवचनरहितः परायत्तः। तदा इन्द्रियचौराः कुर्वन्ति तपःसंयमप्रातिकूल्यम् ॥ २८९ ।। जिनवचनानुगतमतिः यस्यां वेलायां भवति संवरप्रविष्टः । वातसहितः अनिरिख समूलडालं कर्म दद्दति ॥ २९० ॥ यया वातस हितोऽग्निः हरितानपि वृक्षसहातान् । दहति तथा पुरुषकारसहितो शानी
का॥११५॥
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आगम
(33)
प्रत
सूत्रांक
||२९९||
दीप
अनुक्रम [२९१]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [ २९१+प्र०१]--
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र [३३] प्रकीर्णकसूत्र [१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया
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सकारसहिओ नाणी कम्मं स्वयं नेह || २९९॥१५२६ || जह अग्गिंमि व पयले वडपूलिय विप्पमेव शामेह । तह नाणीवि सकम्मं खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥ २९२ ॥ १५२७ || न हु मरणम्मि उबग्गे सको बारसविहो सुपरसंघो । सो अणुचितेडं धंतंपि समत्थचित्तेणं ॥ २९३ ॥ १५२८ ॥ इकम्मिवि जंमि पर संवेगं कुणह वीयरागमए । वच्च नरो अविग्धं तं मरणं तेण मरित || २९४ ।। १५२९ ॥ इकम्मिवि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरागमए । सो तेण मोहजालं छिंदह अज्झप्पओगेणं ॥ २९५ ॥। १५३० ॥ जेण विरागो जाय तं तं सदापरेण करणिज्जं । मुम्बइ तु ससंवेगी अनंतओ होइ असंवेगी || २९६ ॥ १५३१ धम्मं जिणपण्णसं सम्मत्तमिणं सद्दहामि तिविहेणं । तसवापरभूयहियं पंथं निवाणमग्गस्स ॥ १ ॥ (प्रत्यंतरेऽधिका) समणोऽहंति य पढमं बीयं सवत्थ संजओमिति । सर्व्वं च वोसिरामी जिणेहिं जं जं पडिकुटं ॥ २९७ ॥ १५३२ || मणसावि कर्म्म क्षयं नैति ।। २९१ ।। यथा प्रबलोऽतिः तृणपुलिकान् क्षिप्रमेव ध्मायति । तथा ज्ञान्यपि उच्छासमात्रेण स्वकर्म्म क्षपयति ||२९२|| नैव मरणे समीपगे शक्यो द्वादशविधः श्रुतस्कन्धः। सर्वोऽनुचिन्तयितुं बाढमपि समर्थचित्तेन ॥ २९३ ॥ एकस्मिमपि यस्मिन् पदे संवेगं करोति वीतरागमार्गे व्रजति च नरोऽविनं तन्मरणं तेन मर्त्तव्यम् ।। २९४ ॥ एकस्मिन्० । सः तेन मोहजालं छिनत्ति अध्यात्मयोगेन | ।। २९५ ॥ येन विरागो जायते तत् तत् सर्वादरेण कर्त्तव्यम् । मुच्यते एव ससंवेगः असंवेगोऽनन्तको भवति ।। २९६ ॥ धर्म जिनप्राप्तं इदं सम्यत्तत्वं च अद्दधामि त्रिविधेन । प्रसवादरभूतहितं पन्थानं निर्वाणमार्गस्य (१ प्र०) भ्रमयोऽहमिति च प्रथमं द्वितीयं सर्वत्र संयतोऽस्मीति । सर्व च व्युत्सृजामि जिनैः यद् यद् प्रतिकुष्ठम् ॥ २९७ ॥ मनसाप्यचिन्तनीयं सर्वं भाषयाऽभाषणीयं च । कायेन
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------ मूलं [२९८]--------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||२९८||
पइण्णय- अचिंतणिज्नं सच भासाइ अभासणिज्जं च । कारण य अकरणिलं वोसिरि तिविहेण सावजं ॥ २९८ ॥१५३३॥ संवेगपट दसए १०1अस्संजमयोसिरणं उबहिविवेगो तहा उवसमा । पडिस्वजोगविरिओ खंतो मुत्तो विवेगो य ॥२९९।।१५३॥ प्रत्याख्यानं मरणस-1एवं पञ्चक्खाणं आउरजणं आवईसु भावेणं । अन्नतरं पडियनो जपतो पायइ समाहिं ॥३०॥ १५३५ ॥ मम माही मंगलमरिहंता सिद्धा साहू सुयं च धम्मो य । तेसिं सरणोवगओ साचलं बोसिरामित्ति ।। ३०१ ॥१५३६॥
(इति सिरिमरणधिभत्तिसुए संलेहणासुयं सम्मत्तं ॥२॥ अध आराहणासुपं लिख्यते इति प्रत्यन्तरेऽधिकं ॥)। ॥११६॥
सिद्धे उयसंपनी अरिहते केवली य भावेण । इत्तो एगतरेणवि पएण आराहओ होइ ।। ३०२ ॥ १३७ ॥ समुइनवेयणो पुण समणो हिययम्मि किं निवेसिज्जा? । आलंबणं च काई काऊण मुणी दुहं सहइ ? ॥३०॥ ॥१५३८ ।। नरएसु अणुसरेसु अ अणुत्तरा वेयणाओ पत्ताओ । बट्टनेण पमाए ताआवि अर्णतसा पत्ता
दीप
अनुक्रम [२९९]
चाकरणीय व्युत्सृजामि त्रिविधेन सावधम् ॥ २९८ ॥ असंयमव्युत्सर्जनं उपधिविवेकश्च तथा उपशमश्च । प्रतिरूपयोगवीर्यवान् क्षान्तो | | मुक्को विविधश्च ॥ २५९ ॥ एतन् प्रत्याख्यानं आतुरजनः आपत्सु भावेनान्यतरत्प्रतिपन्नः (इदं) जस्पन प्राप्नोति समाधिम् | 81॥३०० ॥ मम मालमईन्नः सिद्धाः साधषः धुनं च धर्मश्च । तेषां शरणोपगतः सावां व्युत्सृजामीति ।। ३०१ ॥ सिद्धानु
पसंपन्नः अर्हतः केवलिनश्च भावेन । एपामेकतरेणापि पदेनाराधको भवति ॥३०२ ॥ समुदीर्णवेदनः पुनः श्रमणो हदये कि | निवेशयेत् ? । आलंधनानि च कानि कृत्वा मुनिर्दुःख सहते ? ॥ ३०३ ॥ नरफेषु अनुत्तरेषु च अनुत्तरा बेदनाः प्राप्ताः । प्रमादे |
॥११६॥
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [३०५]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||३०५||
४॥ ३०४ ॥ १५३९ ।। एवं सयं कयं मे रिणं व कम्मं पुरा असायं तु । तमहं एस धुणामी मणम्मि ससं निवे-12 है सिजा ॥ ३०५ ॥ १५४०॥ नाणाविहदुक्खेहि य समुइन्नेहि उ सम्म सहणिजं । न य जीयो उ अजीबो
कयपुबो वेयणाईहिं ॥ ३०६ ॥ १५४१ ॥ अन्भुजयं विहार इत्थं जिणदेसियं विउपसत्यं । नाउँ महापुरिस-10 सेवियं जं अब्भुजयं मरणं ॥ ३०७ ।। १५४२ ॥ जह पच्छिमम्मि काले पच्छिमतित्थपरदेसियमुपारं । पच्छानिच्छयपत्थं उचेइ अन्भुजयं मरणं ।। ३०८ ।। १५४३ ॥ छत्तीसमवियाहि य कडजोगी (जोग) संगहयलेणं ।
उजमिळणं वारमविहेण तवनियमठाणेणं ॥ ३०९ ॥१५४४ ॥ संसाररंगमझे घिहवलसन्नदबद्धकच्छाओ 112 पाहतूण मोहमहं हराहि आराहणपडागं ।। ३१० ॥ १५४५॥ पोराणयं च कम्मं खवेद अन्नन्नबंधणायाई (पं)118
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दीप अनुक्रम [३०६]
वर्तमानेन पुनला अनंतशः प्राप्तव्याः ॥ ३०४॥ एतत् स्वयंकृतं मया ऋणमिव कर्म पुरा असातं तु । तदहं एष धुनामि (एवं) मसि सत्सं निवेशयेत् ।। ३०५ ॥ नानाविधेषु दुःखेषु समुदीपु सम्यक सहनीयम् । नैव जीवस्त्वजीवः कृतपूर्वो बेदनादिभिः ।। ३०६ ॥ अभ्युवतं विदारं एवं जिनदेशितं विद्वत्प्रशस्तम् । ज्ञात्वा महापुरुषसेवितं यत् (तद् सेय) अभ्युषतं मरणं ॥ ३०७ ॥ यथा पधिमे | काले पश्चिमतीर्थकरदेशितमुपकारं पश्चात् निश्चयपथ्य उपेति अभ्युद्यतं मरणम् (तथा कुरु) ॥ ३०८ ॥ षट्त्रिंशता आर्तजनकैः (उपप-| रीषहोपसर्गः ) कृतयोगी योगसंपदवलेन । उद्यम्य द्वादशविधेन तपोनियमस्थानेन ॥ ३०९ ॥ संसारंगमध्ये धृतिबलसमद्धपित कक्षाकः ।। दत्वा मोहमह हराराधनापताकाम् ॥ ३१ ॥ पुराणं च कर्म क्षपयति अन्यान्यवन्धनायातम् । कर्मकल्मषवकी छिनत्ति संचारक-1
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आगम (३३)
"मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------- मूलं [३११]------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
पताकाहरणं
प्रत
सूत्रांक
पइपणय-12/कम्मकलंकलवल्लिं दिइ संथारमारूदो ॥ ३११ ॥ १५४६ ॥ धीरपुरिसेहिं कहियं सप्पुरिसनिसेवियं परम- दसए १०४ी घोरं । उत्तिपणोमि हु रंग हरामि आराहणपडागं ॥ ३१२ ॥ १९४७ ॥ धीर ! पडागाहरणं करेहि जह तंसि | मरणस- देमकालम्मि । सुत्सत्यमणुगुणितो घिइनिचलबदकच्छाओ ॥ ३१३॥१५४८ ॥ चत्तारि कसाए तिमि गारवे | माही Iपंच इंदियग्गामे । जिणि परीसहसहे (सहेऽविय) हराहि आराहणपडागं ॥ ३१४ ॥ १५४९॥ न य|
मणसा चिंतिज्ञा जीवामि चिरं मरामि व लहुँति । जइ इच्छसि तरि जे संसारमहोअहिमपारं ॥ ३१५ ॥ M॥ १५५० ॥ जई इच्छसि नीसरिउं सोर्सि चेव पाचकम्माणं । जिणवपणनाणदंसणचरित्तभावुजुओ जग्ग
॥ ३१६ ॥ १५५१ ।। दसणनाणचरित्ते तवे य आराहणा चउक्खंधा । सा चेव होइ तिविहा उक्कोसा मज्झिमजहण्णा ।। ३१७ ॥ १५५२ ।। आराहेऊण विऊ उक्कोसाराहणं चउक्खधं । कम्मरयविष्पमुको तेणेव भवेणी
दीप
अनुक्रम [३१२]
CAAACe
मारूदः ।। ३११॥ धीरपुरुषैः कषितं सत्पुरुषनिषेवितं परमघोरम् | उत्तीर्णोऽस्मि रजं हराम्याराधनापताकाम् ॥ ३१२ ।। धीर! पताकाहरणं कुरु (एव) यथा तस्मिन देशकाले । सूत्रार्यमनुगुणयन धृतिनिश्चलबद्धकक्षाकः ।।३१३॥ चतुरः कषायान त्रीणि गौरवाणि पंचेन्द्रियमामान । जित्वा परीषहानपि प हराराधनापताकाम् ॥३१४|| न च मनसा चिन्तयेत् जीवामि चिरं म्रिये वा लघु इति । यदीच्छसि |
तरीतुं संसारमहोदधिमपारम् ॥ ३१५ ।। यदीच्छसि निस्तरीतुं सर्वेभ्यश्चैव पापकर्मभ्यः । जिनवचनज्ञानवर्शनचारित्रभावोधतो जागृहि १॥ ३१६ ।। दर्शने काने पारित्रे तपसि चाराधना चतुःस्कन्धा। सैव भवति त्रिविधा उत्कृष्टा मध्यमा जपन्या ।। ३१७ ॥ भाराव्य
॥११७ ॥
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आगम
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"मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [३१८]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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प्रत सूत्रांक ||३१८||
KIसिजिमला ॥ ३१८ ॥ १६५३ ॥ आराहेऊण विऊ मजिसमआराहणं चउक्खधं । उक्कोसेण य परो भवे उ8
गंतूण सिजिसज्जा ।। ३१९ ॥ १५५४ ॥ आराहेऊण विऊ जहन्नमाराहणं घउक्खधं । सत्स? भवग्गहणे परिजाणामेऊण सिजिसजा ॥ ३२० ॥ १५५५ ॥ धीरेणवि मरियवं काउरिसेणवि अवस्स मरियछ । तम्हा अवस्सट्रिमरणे घरं खुधीरसणे मरि ॥ ३२१ ॥ १५५६॥ एवं पञ्चक्खाणं अणुपालेऊण सुविहिओ सम्म । बेमाणि-18
ओष देवो हविल अहवावि सिज्झिज्जा ॥ ३२२ ।। १५५७ ॥ एसो सपियारकओ उवकमो उत्तमढकालम्मि ।। इत्तो उ पुणो बुच्छं जो उ कमो होइ अविपारे ॥३२३ ॥१५५८ ॥ साहू कयसलेहो विजिपपरीसहकसायसंताणो । निजवए मग्गिजा सुपरपणस(र)हस्सनिम्माए ।। ३२४ ॥ १५५९ ॥ पंचसमिए तिगुसे अणिस्सिए
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दीप अनुक्रम [३१९]
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विद्वान उत्कष्टामाराधनां चतुःस्कन्धाम् । कर्मरजोविप्रमुक्तस्तेनैव भवेन सिध्येत् ॥ ३१८ ॥ आराध्य विद्वान् मध्यमामाराधनां चतुःस्कन्धाम् । उत्कर्षेण च चतुरो भवांस्तु गत्वा सिध्येत् ॥ ३१९ ॥ आराध्य विद्वान् जघन्यामाराधनां चतुःस्कन्धाम् । सप्ताष्टौ भव-| पाहणानि परिणमप्य सिभ्येत् ॥ ३२० ॥ धीरेणापि मर्त्तव्यं कापुरुषेणाप्यवश्यमत यं । तस्मादवश्यमरणे वरं खलु धीरत्वेन मर्तुम् ॥ ३२१ ।। पतात् प्रत्याख्यानमनुपाल्य सुविहितः सम्यक् । वैमानिको वा देवो भवेत् अथवापि सिध्येत् ।। ३२२ ॥ एष सविचारकृत पक्रम तमार्थकाले । इतस्तु पुनर्वक्ष्ये यस्तु क्रमो भवत्यविचारः ।। ३२३ ।। साधुः कृतसंलेखनो विजिसपरीषदकपायसंप्तानः । निर्या-15 मकान मायेत् सुतरनरहस्यनिष्णातान् ।। ३२४ ॥ पश्चसमितानिगुमान् अनिभितान् रागद्वेषमवरहितान् । कृतयोगिनः कालझान शान-4
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------ मूलं [३२५]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||३२५||
पइण्णय- रागदोसमयरहिए । कडजोगी कालण्णू नाणचरणदंसणसमिद्धे ॥ ३२५ ॥ १५६० ॥ मरणसमाहीकुसले इंगिदसए १०ीयपत्थियसभाववेत्तारे । यवहारविहि विहिण्णू अब्भुज्जयमरणसारहिणो ॥ ३२६ ॥ १५६१ ॥ उवएसहेउ-18निर्यामकाः मरणस- कारणगुणनिसढा णायकारणविहाणू । विष्णाणनाणकरणोबयारसुयधारणसमत्थे ॥ ३२७ ।। १५६२ ॥ एगमाही
तगुणे रहिया बुद्धीइ चउबिहाइ उववेया। छंदण्णू पवइया पञ्चक्खाणंमि य विहण्णू ॥ ३२८॥ १५६३ ॥ दुण्हं ॥११८॥
आयरियाणं दो वेयावचकरणनिजुत्ता । पाणगवेयावचे तवस्सिणो वत्ति दो पत्ता ॥ ३२९ ॥ १५६४ ॥ उच-18 सण परिवत्तण उच्चारुस्सास(व)करणजोगेसुं। दो वायगत्ति णज्जा अ(उ प्र.)सुत्तकरणे जहन्नेणं ॥३३०॥१५६५॥ असद्दहवेयणाए पायचित्ते पडिक्कमणए य । जोगायकहाजोगे पञ्चक्खाणे य आयरिओ ॥ ३३१ ॥ १५६६ ॥ कप्पाकप्पविहिन दुवालसंगसुयसारही सर्व । छत्तीसगुणोवेया पच्छित्तवियारया धीरा ॥ ३३२ ॥ १५६७ ॥
दीप अनुक्रम [३२६]
चरणदर्शनसमृद्धान् ॥ ३२५ ।। मरणसमाधिकुशलान् इनित्तप्रार्थितस्वभाववेत्तुन । व्यवहारविधिविधानज्ञान अभ्युद्यतमरणसारधिनः |
॥ ३२६ ।। उपदेशहेतुकारणगुणक्षमान न्यायकारणविधानज्ञान् । विज्ञानज्ञानकरणोपचारभुतधारणासमर्थान् ।। ३२७ ॥ एकान्तेन गुणेषु ICIस्थितान् बुवा चतुर्विधयोपपेतान् । छन्दोज्ञान प्रश्नजितान् प्रत्याख्याने च विधिज्ञान् ।। ३२८ ।। द्वयोराचार्ययो वैयावृत्यकरणनियुक्तौ ।।
पानकायावृत्ये तपस्विनो वेति द्वी प्राप्तौ ।। ३२९ ॥ उद्वर्तनपरिवर्तनोच्चारोत्स्नावकरणयोगेषु । द्वौ वाचको इति शेयो सूत्रकरणे जपन्येन ॥ ३३० ।। अश्रयाने वेदनायां प्रायश्चित्ते प्रतिक्रमणे च । योगात्मकथायोगे प्रत्याख्याने च आचार्यः ॥ ३३१ ॥ कल्प्याकल्य
॥११८॥
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [३३३]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||३३३||
ट!एए ते निजवया परिकहिया अट्ठ उत्तमम्मि । जेसिं गुणसंखाणं न समत्था पायया बुत्तुं ।। ३३३ ॥ १५३८॥18
एरिसयाण सगासे सूरीणं पवयणप्पवाईणं । पडिवजिज महत्थं समणो अन्भुजयं मरणं ॥ ३३४ ॥ १५६९॥
आयरियउवज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य । जे मे किया सकाया (जंमि कसाओ कोई विप्र.) सो सातिविहेण खामेमि ॥ ३३५ ॥ १५७० ॥ सबस्स समणसंघस्स भावओ अंजलि करे सीसे । सर्व खमावइत्ता
खमामि सबस्स अपि (खमिन सघस्सवि सर्पमि प्र०)॥ ३३६ ॥ १५७१ ॥ गरहित्ता अप्पाणं अपुणकारं हापरिकमिसाण । नाणम्मि दसणम्मि अचरित्तजोगाइयारे य ॥३३७॥ १५७२ ॥ तो सीलगुणसमग्गो। भाअणुवहयक्खो बलं च थामं च । विहरिज तवसमग्गो अनियाणो आगमसहाओ ॥ ३३८ ॥ १५७३ ॥
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दीप अनुक्रम [३३४]
विधिना द्वादशानभुतसारथिनः सर्वथा । पशिद्गुणोपपेताः प्रायश्चित्तविशारदा धीराः ॥ ३३२ ॥ एते तुभ्यं निर्यामकाः परिकथिना | अष्ट उत्तमायें । येषां गुणसंख्यीनं न समर्थाः प्राकृता वकृम्।।३३३॥ एतादृशानां सकाशे सूरीणां प्रवचनप्रवादिनाम् । प्रतिपयत महा श्रमणोऽभ्युवतं मरणम् ॥ ३३४ ॥ आचार्यान उपाध्यायान् शिष्यान् साधर्मिकान् कुलगणौ च । ये मया कृताः कषायिताः (यस्मिन् | कषायः कोऽपि ) सर्वान् त्रिविधेन क्षमयामि ।। ३३५ ॥ सर्वस्मै श्रमणसंघाय भावतोऽखलिं कृत्वा शीर्षे । सर्व क्षमयित्वा क्षम्यामि | सर्वस्याहमपि (क्षमेत सर्वस्यापि खस्मिन् ) ॥ ३३६ ॥ गर्हयित्वाऽऽत्मानं अपुनःकारं प्रतिक्रम्य । ज्ञाने च दर्शने च चारित्रयोगातिचारे । च ॥ ३३ ॥ ततः शीलगुणसमनः अनुपहताक्षो बलं च स्थाम च । (अपेक्ष्य) विहरेत् तपःसमग्रोऽनिदान आगमसातयः ।।३३८।।
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [३३९]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत
पण्णय-
Iतवसोसियंगमंगो संधिषिराजालपागडसरीरो। किच्छाहियपरिहत्थो परिहाइ कलेवर जाहे ॥३३९॥१५७४क्षामणा दसए १०पचक्खाइ य ताहे अन्नन्नसमाहिपत्तियंमित्ती । तिविहेणाहारविहिं दियसुग्गइकायपगईए ॥ ३४० ॥ १५७ देहादिमरणस- इहलोए परलोए निरासओ जीविए अ मरणे य । सायाणुभये भोगे जस्स य अवहट्टणाऽईए॥३४॥१५७६।। त्यागः माही
[निम्ममनिरहंकारो निरासयोकिंचणो अपडिकम्मो । वोसट्टविसटुंगो चत्तचियतेण देहेणं ॥ ३४२ ॥१५७७॥ ॥११९॥
तिविहेणवि सहमाणो परीसहे दूसहे अ ऊसग्गे। विहरि विसयतहारपमलमासुमं विहुणमाणो ॥३४॥ ॥ १५७८ ॥ नेहक्खए व दीवो जह खयमुवणेइ दीववष्टिम्मि (डिपि) । खीणाहारसिणेहो सरीरयहि तह स्ववेइ ॥३४४॥१५७९॥ एव परज्झा असई परक्कमे पुखभणियसूरीणं। पासम्मि उत्तमढे कुजा तो एस परिकम्मं ॥३४५||
सूत्रांक
॥३३९||
C
दीप
अनुक्रम [३४०]
तपशोषितांगोपांगः प्रकटसन्धिशिराजालशरीरः । कृचट्राहितनैपुण्यः (कृच्तैःपूर्णः ) परिहरति कलेवरं यदा ॥ ३३९॥ प्रत्याख्याति च है तदा अन्याऽन्यसमाधिप्रत्ययमिति । त्रिविधेनाहारविधि उदितसुगतिकायप्रकृतिकः ।। ३४०॥ इहलोके परलोके प निराश्रयो जीविते |
च मरणे वा । सातानुभवे मोगे यस्य चापहरणा (परित्यजना )ऽतीते ।। ३४१ ।। निर्ममनिरहंकारो निराश्रयोऽकिसानोऽप्रतिकर्मा ।। अत्यर्थ (व्युत्कृष्टं ) विसृष्टांगः त्यक्तप्रीतिना देहेन ।। ३४२ ॥ त्रिविधेनापि सहमानः परीपहान् दुःसहांश्च उत्सर्गवान् । बिहरेत् | विषयतृष्णारजोमलमशुभं विधून यम् ॥ ३४३ ।। कोहक्षये वा दीपो यथा भयमुपनयति दीपवर्तिमपि । झीणाहारनेहः शरीरवति तथा ॥११९।। अपयति ॥ ३४४॥ एवं प्रारब्धः सति पराक्रमे पूर्वमणितसूरीणाम् । पार्थे पत्तमार्थाय कुर्यात्तदा एतत् परिकर्म ॥ ३४५॥12ी
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [३४६]---------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||३४६||
14॥ १५८० ।। आगरसमुट्ठियं तह अजमुसिरवागतणपत्तकडए य । कसिल्लाफलगंमि व अणभिज्जय निप्पहै कप्पमि ॥ ३४६ ॥ १५८९॥ निस्संधिणातणमिव सुहपडिले हेण जइपसत्थेणं । संधारी कायद्यो उत्तर
पुत्वस्सिरो वावि ॥ ३४७ ॥ १५८२ ॥ दोसुत्थ अपमाणे अंधकारे समम्मि अणिसिट्टे । निरुवहम्मि गुणबामणे वणम्मि गुत्ते (धणनि गुप्ते)प संधारो॥ ३४८॥ १५८३ ।। जुत्ते पमाणरइओ उभउकाल पहिलेहणा-13 &सुद्धो । विहिविहिओ संधारो आरुहियो तिगुसणं ।। ३४९ ॥१५८४ ॥ आमहियचरित्तभरो अनेसु उ P(अन्नस) परमगुरुसगासम्मि । दवेमु पनवेसु य खिसे काले य समि ॥ ५५० ।। १९८५ ॥ एएसुचेष
ठाणेसु चउसु सबो चउधिहाहारो। तवसंजमुत्सि किच्चा बेसिरियको तिगुत्तेणं ॥ ३५१ ॥ १५८६ ।। अहवा सासमाहिहे कायबो पाणगस्स आहारो। तो पाणगंपि पच्छा योसिरियई जहाकाले ॥ ३५२ ॥ १५८७ ॥
AMALSSC
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दीप अनुक्रम [३४७]
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आकरसमुत्थिते तथा अशुषिरवकतृणपत्रकटके च । काष्ठशिलाफलके वा बमिद्यमाने निष्प्रकल्पे ॥३४६॥ निस्मन्धिकेन तृणेन वा सुखप्रतिलेखनेन यतिप्रशस्तेन । संस्तारः कर्तव्य उत्तरस्या पूर्वस्यां शिरो वाऽपि ।। ३४७॥ दोषोऽत्र अप्रमाणे अन्धकारे च (ततः ) समे च निसृष्टे । निरुपहते गुणवति पने गुप्ते च संस्तारकः ॥३४८॥ युक्ते प्रमाणरपित उभयकालप्रतिलेखनायुक्तः शुद्धः । विधिविहितः संस्तारक: आरूढव्यत्रिगुप्लेन ॥३४५॥ आरूउचारित्रभारः अन्येष्वपि परमगुरुसका। द्रव्येषु पर्यायेषु च क्षेत्रे काले च सर्वस्मिन् (प्रशस्तेष्वारूढः) ॥ ३५० ॥ एतेषु चैव स्थानेषु चतुर्यु सर्वश्चतुर्विध आहारः । तपःसंयम इकत्वा व्युत्प्रष्टव्यनिगुमेन ॥ ३५१ ॥ अथवा समाधिहेतोः
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [३५३]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||३५३||
पइण्णय-11निसिरित्ता अप्पाण सधगुणसमनियम्मि निजयए । संथारगसंनिविट्ठो अनियाणो चेव विहरिजा ॥ ३५३ संस्तारकः दसए १० B॥१५८८ ॥ इहलोए परलोए अनिमाणो जीथिए य मरणे य । बासीचंदणकप्पो समो य माणावमाणेसुरा निर्यागक
I॥ ३५४ ॥१५८९ ।। अह महरं फुडवियर्ड तहप्पसायकरणिन विसयकर्य । इज कहं निजवओ सुईसमन्ना-किया माही शाहरणहेउं ॥ ३५५ ।। १५९० ॥ इहलोए परलोए नाणचरणदंसर्गमि य अवार्य । दसेइ नियाणम्मि य माया|
मिच्छत्तसल्लेणं ॥ ३५६ ॥ १५९१ ।। यालमरणे अवायं तह य उयायं अघालमरणम्मि । उस्सासरजुवेहाणसे तय तह गिद्धपढे च ॥ ३५७ ॥ १५९२ ।। जह य अणुदुय सल्लो समल्लमरणेण कइ मरऊणं । ईसणनाणविशाहणो मरंति असमाहिमरणेणं ॥ ३५८ ॥ १५९३ ॥ जह मायरसे गिद्वा इस्थिअहंकारपावसुयमत्ता । ओसन्न
SSC
दीप अनुक्रम [३५४]
कर्तव्यः पानकल्याहारः । ततः पानकमपि पश्चात् व्युत्प्रष्टव्यं यथाकाले ।। ३५२ ॥ निसृज्यात्मानं सर्वगुणसमन्वितेषु निर्यामकेषु संस्तारहकसंनिविष्टोऽनिदानकश्चैव विहरेत् ॥ ३५३ ॥ इहलोके परलोकेऽनिदानो जीविते च मरणे च । वासीचन्दनकल्पः समच मानापमा-1
नयोः ॥३५४।। अथ मधुरां फुटचिकटा तथात्मसात्कृतकरणीयविषयाम । नियामकः कथा कथयेत् श्रु(स्मृतिसमन्बाहरणहेतोः ॥३५५॥
इहलोके परलोके ज्ञाने चरणे दर्शने च (कर्मणः) अपायं दर्शयति निदाने च मायामिध्यात्वशल्ययोश्च ॥ ३५६ ॥ बालमरण उपायं तथा| हाचोपायमवालमरणे । उच्छास(रोध)रज्जुबेहायसेषु च तथा गृपृष्ठे च ।। ६५७ ॥ यथा चानुद्धृतशल्यः सशल्यमरणेन केचिन्मृत्वा प्रदर्शनशानविहीना म्रियतेऽसमाधिमरणेन ॥ ३५८ ॥ यथा सातरसोगुद्वाः म्यहवारपापश्रुतमत्ताः । बाहुल्येन बाउमरणा भ्राम्यन्ति
॥१२०॥
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [३५९]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||३५९||
बालमरणा भमंति संसारकतारं ।। ३५९ ॥ १५९४ ॥ अह मिच्छत्त ससल्ला मायासल्लेण जह ससल्ला य । जह द्रीय नियाण ससल्ला मरंति असमाहिमरणेणं ।। ३६०॥ १५९५ ॥ जह वेयणावसहा मरंति जह केड दिय
बमा । जह य कसायवसट्टा मरंति असमाहिमरणेणं ॥३६१ ॥ १५९६ ॥ जह सिद्धिमग्ग दुग्गइसम्ग-1
गलमोडणाणि मरणाणि । मरिऊण केइ सिद्धिं उविति सुसमाहिमरणेणं ॥३६२॥ १५९७ ।। एवं पहप्पया ४ात अवापं उत्तमढकालम्मि । संति अवायण्णू सल्लद्धरणे सुविहियाणं ॥३६३ ॥ १५९८ ॥ दितिय सिं| दावएस गुरुणो नाणाविहेहिं हेऊहिं । जेण सुगई भयंतो संसारभयदुओ (दुहो) होइ ॥ ३६४ ॥१५९९॥ न ह मानस वेपणं खलु अहो चिरम्मित्ति दारुणं दुक्खं । सहणिलं देहेणं मणसा एवं विचिंतिजा ॥ ३६५ ॥१३००॥1 Bासागरतरणत्यमहे इपस्स पोयस्स जए (उज्जवे) धूवे । जो रज्जु (रक्ख) मुक्खकालो न सो विलंपत्ति
।
दीप अनुक्रम [३६०]
संसारकान्तारे ।। ३५९ ॥ अथ मिध्यात्वेन सशल्या मायाशल्येन यथा सशल्याश्च । यथा च निदानेन सशस्या नियन्तेऽसमाधिमरणेन FI यथा वेदनावशात्ती नियन्ते यथा केचिदिन्द्रियवशाताः । यथा च कषायवशार्ता प्रियन्तेऽसमाधिमरणेन ॥ ३६१ ॥ यथा| मितिमा दर्गतिस्वर्गार्गलामोटनानि मरणानि । मृत्वा केचित्सुसमाधिमरणेन सिदिमुपयान्ति ॥३६२।। एवं बहुप्रकार वपायमुत्तमार्थ काले||
यस्पायज्ञाः शस्योद्धरणाय सुविहितानाम् ।। ३६३ ॥ ददति चैषामुपदेशं गुरवो नानाहियतुभिः । येन सुगतिं भजन संसारभवहुतो। प.स.२१| शुरु) भवति ।।३६४।। नेव तेषु वेदना (न) खलु अहो। चिरमिति दारुणं दुःखम् । सहनीयं देहेन मनसैबंप विचिन्तयेत् ॥३६५।। साग-
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आगम
(33)
प्रत
सूत्रांक
||३६६||
दीप
अनुक्रम [३६७]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [३६६]---
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
पणयदसर १०
मरणस
माही
॥ १२१
| कायो || ३६६ ।। १६०१ । तिल्लविमो दीवो न चिरं दिप्पह जगम्मि पथक्खं । न य जलरहिओ मच्छो |जिअ चिरं नेव पउमाई ॥ ३३७ ॥। १६०२ ॥ अनं इमं सरीरं अन्नोऽहं इय मणम्मि ठाविज्जा । जं सुचिरेणवि मोचं देहे को तत्थ पडिबंधो ? ।। ३६८ ।। १६०३ ॥ दूरस्थंपि विणासं अवस्सभावं उबट्ठियं जाण । जो अह वह कालो अणागओ इत्थ आसिन्हा ॥ ३६९ || १६०४ ॥ जं सुधिरेणवि होहि अणावसं तंमि को ममीकारो? | देहे निस्संदेहे पिएवि सुपणसणं नस्थि || ३७० || १६०५ || उबलदो सिद्धिपहो न य अणुचिण्णो पमायदोसेणं हा जीव ! अप्पवेरिय! न हु ते एयं न तिप्पिहिइ ॥ ३७१ ।। १६०६ ।। नस्थि य ते संघयणं घोरा य परीसहा अहे निरया । संसारो य असारो अइप्यमाओ अ तं जीव ! ।। ३७२ ।। १६०७ ।। कोहाइकसाया खलु बीयं संसारभेरवदुहाणं । तेसु पमत्तेसु सपा कत्तो सुक्खो य मुक्खो वा ? ॥ ३७३ ॥ रतरणार्थमतिकः आयातस्य पोतस्य ध्रुवे जये । यो रज्जुमोक्षकालः स कर्त्तव्यः, न विलम्ब इति (मत्वा) कर्त्तव्यः ॥ ३६६ ॥ तैलविहीनो दीपो न चिरं दीप्यते जगति प्रत्यक्षम् । न च जलरहितो मत्स्यो जीवति चिरं नैव च पद्मादि (जलं विना ॥ ३६७॥ अन्यदिदं शरीरं अन्योऽहमिति मनसि स्थापयेत् । यत्मुचिरेणापि मोच्यं तत्र देहे कः प्रतिबन्धः ? ।। ३६८।। दूरस्थमपि विनाशमवश्यभाविनमुपस्थितं जानीहि । यो यथा वर्त्तते कालोऽनागतोऽत्र चासीनस्य || ३६९ || यत्सुचिरेणापि भविष्यति अवशं (शरीरं) तस्मिन् को ममीकारः ? देहे निःसंदेहं प्रियेऽपि सुजनत्वं नास्ति ।। ३७० ॥ उपलब्धः सिद्विषयो न चानुचीर्णः प्रमाददोषेण हा जीव ! आत्मवैरिन् ! नैव तवैतत् न च तर्पयिष्यति ॥ ३७१|| नास्ति च तब संहननं घोराय परीपहा अधो नरकाः। संसारयासारः अतिप्रमादश्च त्वं जीव ! ॥ ३७२ ॥ क्रोधादयः कषायाः खलु बीजं
Far Preat the Only
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हितशिक्षा
॥ १२१ ॥
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [३७४]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||३७४||
॥ १६०८॥ जाओ परवसेणं संसारे वेयणाओ घोराओ। पत्ताओ नारगत्ते अहणा ताओ विचिंतिजा ॥३७॥ di॥१३०९ ॥ इहि सयं वसिस्स उ निरुवमसुक्खावसाणमुहदूयं (कटुयं) । कल्लाणमोसहं पिय परिणाम
सुहं न तं दुक्खं ।। ३७५॥१६१० ।। संबंधि बंधवेसु य न य अणुराओ वर्णपि काययो । तेचिय हंति अमित्ता जह-जणणी यंभवत्तस्स ॥ ३७६ ॥ १३११ ॥ बसिऊण व मुहिमझे बच्चइ एगाणिओ हमो जीवो। मोत्तण सरीरघरं जह कण्हो मरणकालम्मि ।। ३७७ ॥१६१२ ।। इम्हि व मुहुत्तेणं गोसे व सुए व अदरसे वा।।
जस्स न नजइ वेला कदिवसं गछिई जीवो? ॥ ३७८ ॥ १६१३ ॥ एवमणुचिंतयंतो भावणुभावाणुरत्त सियहै लेसो । तदिवस मरिउकामो व होइ आणम्मि उजुत्तो ॥ ३७९ ॥ १३१४ ।। नरगतिरिक्स्वगईसु य माणुसदे-16
दीप अनुक्रम [३७५]
CALLERK4
सासंसारभैरवदुःखानाम् । वैः प्रमत्तेषु सदा कुतः सौख्यं च मोक्षश्च ॥३७३।। याः पारवश्येन संसारे वेदना घोराः । प्राप्ता नारकत्वे-18
धुना ता विचिन्तय ।। ३७४ ।। इदानीं ववशस तु निरुपमसौख्यावसानमुखकटुकम् । कल्याणौषधं पिव परिणामसुखं न तदुःसमा ४॥ ३७५ ॥ सम्बन्धिवान्धवेषु च न चानुरागः क्षणमपि कर्त्तव्यः । ते चैव भवन्त्यमित्राणि यथा जननी ब्रह्मदत्तस्य ॥ ३७६ ॥ उपित्या
च मुहन्मध्ये ब्रजत्येकाक्ययं जीवः । मुक्त्वा स्वशरीरगृहं यथा कृष्णो मरणकाले ॥ ३७७ ।। अधुना वा मुहूर्त्तन प्रभाते ना वो वाऽर्द्धरात्रे या । यस्य नायते बेला क दिवसे गमिष्यति जीवः॥३७८॥ एवमनुचिन्तयन् भावानुभावानुरक्तः सितलेश्यः । तस्मिन दिने मर्तु कामो वा (ऽपि) भवति ध्याने उयुक्तः ॥३७९।। नरके तिर्यमातिषु च मानुषदेवत्ययोर्चसना यस्सुखदुःखं प्राप्तं तदनु चिन्तयेन् संसारके
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [३८०]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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दसए १०
प्रत सूत्रांक ||३८०||
वत्तणे वसंतेणं । जं सुहदुक्खं पत्तं तं अणुचिंतिज संधारे ॥ ३८ ॥ १६१५ ॥ नरएम वेषणाओ अणोवमा गत्यन्तर
सीयउणहवेरा(गा)ओ । कापनिमित्तं पत्ता अणंतखुत्तो यहुविहाओ॥ ३८१ ॥ १६१६ ॥ देवत्ते माणुस्से परा- दुःखस्मामरणस- 151हिओगत्तणं उबगएणं । दुक्खपरिकेसविही अणंतखुत्तो समणुभूया ॥ ३८२ ।। १६१७ ॥ भिन्निंदियपंचिंदि-18 रणा माही यतिरिक्खकायम्मि रोगसंठाणे । जम्मणमरणरहदं अर्णतखुत्तो गओ जीवो ॥ ३८३ ॥ १३१८ ॥ सुविहिय!
अईयकाले अणंतकाएमु तेण जीवेणं । जम्मणमरणमणतं बहुभवगहणं समणुभूयं ॥ ३८॥१६१९ ॥ घोरम्मि ॥१२२॥
गम्भवासे कलमलजंबालअसुहबीभच्छे । वसिओ अर्णतखुत्तो जीवो कम्माणुभावेणं ॥ ३८५ ॥ १६२०॥13 जोणीमह निग्गच्छतेण संसार इमे(रिमे)ण जीवेणं । रसियं अइवीभच्छं कडीकडाहंतरगएणं ॥३८॥१६२६॥ जं असियं बीभच्छं असुईघोरम्मि गम्भवासम्मि । तं चिंतिऊण सयं मुक्खम्मि मई निवेसिजा ॥ ३८७ ॥
दीप
अनुक्रम [३८१]
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॥ ३८॥ नरकेषु वेदना अनुपमाः शीतोष्णवैर वेग]जाताः । कायनिमित्तं प्राप्ता अनन्तकृत्वो बहुविधाः ॥ ३८१ ॥ देवत्वे मानुष्ये परामियोगत्वमुपगतेन । दुःखपरिक्लेशविधयोऽनन्तकृत्वः समनुभूताः ।। ३८२ ॥ भिन्नेन्द्रियपञ्चेन्द्रियतिर्यक्कायेऽनेकसंस्थाने । जन्म-10 ४ा मरणारहट्टमनन्तकृत्यो गतो जीवः ।। ३८३ ।। सुविहित! अतीतकालेऽनन्तकायेषु एतेन जीवेन । जन्ममरणमनन्तं बहुभवग्रहणे समनु-18
भूतम् ॥ ३८४ ॥ घोरे गर्भवासे कलिमलजम्बालाशुचिवीभत्से । उपितोऽनन्तकृत्यो जीवः कर्मानुभावेन ।। ३८५ ॥ योनिमुखानिगच्छवा संसारेऽनेन जीवेन । रसितमतिबीभत्सं कटिकटाहान्तरगतेन ॥ ३८६ ॥ यदशितं बीभत्सं अशुचिघोरे गर्भवासे । वचिन्त-|
COMKAM
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------- मूलं [३८८]-------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||३८८||
ISI॥ १६२२ ॥ वसिऊण विमाणेसु य जीवो पसरतमणिमऊहेसु । वसिओ पुणोवि सुचिय जोणिसहस्संधया ||
रसुं॥ ३८८ ॥ १६२३ ॥ यसिऊण देवलोए निबुजोए सयंपभे जीवो। वसइ जलवेगकलमलविउलवलयामुहे घोरे ॥ ३८९ ॥१६२४ ॥ वसिऊण सुरनरीसरचामीयररिदिमणहरघरेसु । वसिओ नरग निरंतरभयभरवपंजरे जीवो ।। ३९० ।। १६२५ ॥ यसिऊण विचित्तेसु अ विमाणगणभवण सोभसिहरेसु । बसह तिरिपसु गिरिगुहविवरमहाकंदरदरीसु ।। ३९१ ॥ १६२६ ।। भुसूणवि भोगसुहं सुरनरखयरेसु पुण पमा
एणं । पिया नरएम भेरवकलंततउतषपाणाई ॥ ३९२ ॥ १६२७ ॥ सोऊण मुइयणस्वाभवे भ जपसह181 मंगलरवोघं । सुणइ नरपसु दुहपरं अकंदुरामसहाई ॥ ३९३ ॥ १६२८ ॥ निहण हण गिण्ह दह पप उज्बंध
दीप अनुक्रम [३८९]
यित्वा स्वयं मोक्षे मतिं निवेशयेत् ॥ ३८७ ॥ उषित्वा विमानेषु च जीवः प्रसरनमणिमयूखेषु । उषितः पुनरपि स एव योनिसहस्रा-R प्रकारेषु ॥ ३८८ ।। उपित्वा देवलोके नित्योद्योते स्वयंप्रभे जीवः । वसति विपुलजलपेगकलिमलबलयामुखे घोरे ॥ ३८९ ॥ उपिया सुरनरेश्वरधामीकरऋद्धिमन्मनोहरगृहेषु । उपितो नरके निरन्तरभयभैरवपचरे जीवः ॥ ३९० ॥ उपित्वा विचित्रेषु च विमानगणभवनेषु शोमितशिखरेषु । वसति तिर्यक्षु गिरिगुहाविवरमहाकन्दरदरीषु ॥ ३९१ ॥ भुक्त्वाऽपि भोगमुखं सुरनरखचरेषु पुनः प्रमा-10 देन । पियति नरकेषु भैरवकलकलायमानत्रपुताम्रपानानि ॥ ३९२ ॥ श्रुत्वा मुदितनरपतिभये प जयशब्दमङ्गलरवौषम् । शृणोति । नरकेषु दुःखकरान् आक्रन्दोदामशम्दान् ॥ ३९३ ॥ निजहि जहि गृहाण दह पच उद्वन्धय प्रवन्धय पधान रुद्धि स्फाटय लोलय घोल
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आगम
(33)
प्रत
सूत्रांक
||३९४||
दीप
अनुक्रम [३९५ ]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [ ३९४] ---
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
पइण्णय
दसए १०
मरणस
माही
॥ १२३ ॥
Jan Enest
पबंध बंध रुद्धाहिं । फाले लोले घोले घूरे खारेहिं से गतं ॥ ३९४ ॥ १६२९ ॥ वेयरणिखारकलिमलवेसल्लकुस| लकरकयकुलेसु । वसिओ नरएस जीवो हणहणघणघोरसद्देसुं ॥ ३९५ ॥। १६३० ॥ तिरिएस व भैरवसद्दपकखणपरपक्खणच्छणसएस। वसिओ उधियमाणो जीवो कुडिलम्मि संसारे || ३९६ ।। १६३१ ।। मणुयन्तणेवि बहुविहविणिवायसहस्स भेसणघणम्मि । भोगपिवासाणुगओ वसिओ भयपंजरे जीवो ॥ ३९७ ॥ || १६३२ ॥ वसियं दरीसु बसियं गिरी बसियं समुदमज्झे । रुक्खग्गेसु य वसियं संसारे संसरं तेणं ।। ३९८ ।। १६३३ ॥ पीयं धणअच्छीरं सागरसलिलाओ बहुयरं हुखा । संसारम्मि अणते माईणं अण्णमणणं ॥ ३९९ ॥। १६३४ ॥ नयणोद्गंपि तासिं सागरसलिलाओ बहुपरं हुजा । गलियं रुपमाणीणं माईणं अण्णमण्णाणं ॥ ४०० | १६३५ || नत्थि भयं मरणसमं जम्मणसरिसं न विजए दुक्खं । तम्हा जरमरण
यस्यूरय क्षारस्तस्य गात्रं ( कृशय ) ॥ ३९४ ॥ बैतरणिक्षारकलिमलविविधशल्यकुशल (० अंकुश) क्रकचाकुलेषु। उषितो नरकेषु जीवो हनहनघनघोर शब्देषु ॥ ३९५ ॥ तिर्यक्षु च भैरवशब्दपक्षणपरिपक्षणतक्षणशतेषु। उषित उद्विजन् जीवः कुटिले संसारे ॥ ३९६ ॥ मनुजत्वेऽपि बहुविधविनिपातसहस्रघनभीषणे । भोगपिपासानुगत उपितो भयपञ्जरे जीवः ।। ३९७ ।। उषितं दरीषु उपितं गिरिषु उपितं समुद्रमध्येषु । वृक्षात्रेषु घोषितं संसारे संसारता ॥ ३९८ ॥ पीतं स्तनक्षीरं सागरस लिलाद्बहुतरं भवेत् । संसारेऽनन्ते मातॄणामन्यान्यासाम् ॥ ३९९ ॥ नयनोदकमपि तासां सागरसलिलाद्बहुतरं भवेत् । गलितं रुदन्तीनां मातृणामन्यान्यासाम् ॥ ४०० ॥ नास्ति भवं मरण
FPO
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गत्यन्तर
दुःखस्मारणा
॥ १२३ ॥
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [४०१]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
%
56-4-537
%
प्रत सूत्रांक ||४०१||
कर छिंद ममत्तं सरीराओ ॥ ४०१ ॥ १६३६ ॥ अन्नं इमं सरीरं अण्णो जीवुत्ति निच्छियमईओ । दुवपरीकेसकर छिंद ममत्तं सरीराओ॥ ४०२॥ १६३७ ।। जावइयं किंचि दुहं सारीरं माणसं च संसारे । पत्तो
अणतखुत्तो कायस्स ममत्तदोसेणं ॥ ४०३ ॥ १६३८ ॥ तम्हा सरीरमाई अम्भितर वाहिरं निरवसेसं । लिंद दममत्तं सुविहिय! जइ इच्छसि मुचिउ दुहाणं ॥ ४०४ ॥ १६३९ ॥ सवे उवसग्ग परीसहे य तिविहेण निजिMणाहि लहु । एएसु निजिएK होहिसि आराहओ मरणे ॥ ४०५ ॥ १६४० ॥ मा हु य सरीरसंताविओ अ
तं झाहि अदृरुदाई। मुद्दवि रूवियलिंगवि अट्टरुहाणि रूवंति ॥ ४०६ ॥ १६४१ ।। मित्तसुयबंधवाइसु इट्ठा-12 गिटेसु इंदियत्धेसुं। रागो वा दोसो वा इसि मणेणं न कायवो ॥ ४०७ ।।१३४२॥ रोगायंकेसु पुणो विउ-18
दीप अनुक्रम [४०२]
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समं जन्मसदृशं न विद्यते दुःखम् । तस्माजरामरणकरं छिन्द्धि ममत्वं शरीरात् ।। ४०१॥ अन्यदिदं शरीरं अन्यो जीव इति निश्चितमसिकः । दुःखपरिग्रेशकरं छिन्द्धि ममत्वं शरीरात् ।। ४०२ ॥ यावकिश्चिदुःखं शारीरं मानसं च संसारे प्राप्तोऽनन्तकृत्वः कायस्य ममत्वदोषेण ।। १०३ ॥ तस्मात् शरीरादि अभ्यन्तरं बाह्यं निरखशेष (आश्रित्य) । छिन्द्धि ममत्वं सुविहित ! यदीच्छसि दुःखेभ्यो
मोक्कुम् ।। १०४ ॥ सर्वानुपसर्गान परीपहांश्च निर्जय त्रिविधेन लघु । एतेषु निर्जितेषु भविष्यस्वाराधको मरणे ॥ ४०५॥ मा च शरीदारसंतापितच त्वमातरौद्रे ध्याय । सुपि निरूपितलिझान आर्त्तरौद्रे रोदयतः ॥ ४०६ ।। मित्रसुतवान्धवादिषु इष्टानिष्टेष्विन्द्रियार्थेषु ।
रागो वा द्वेषो या ईपदपि मनसा न कर्तव्यः ।। ४०४ ॥ रोगातङ्केषु पुनर्विपुलामु च वेदनासूदीर्णासु । सम्यगण्यासयन् इदं हदयेन |
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आगम (३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [४०८]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
सूत्रांक ||४०८||
पइण्णय- लासु य वेयणासुइनासु । सम्म अहियासंतो इणमो हियएण चिंतिजा ॥ ४०८ ॥१६४३ ॥ यहपलियसा-
Iगत्यन्तरदसए १० गराई सहाणि मे नरयतिरियजाईमुं। किं पुण सुहावसाणं इणमो सारं नरदुहंति? ॥ ४०९ ॥ १६४४॥ दुःखस्मामरणस- [सोलस रोगायका सहिया जह चक्किणा चउत्थेणं । वाससहस्सा सत्त उ सामपणधरं उवगएणं ॥ ४१०॥ रणा माही ॥१६४५ ॥ तह उत्तमढकाले देहे निरवक्खयं उवगएणं । तिलच्छित्तलावगा इव आर्यका विसहियवाओ*
॥ ११ ॥ १६४६ ।। पारियवायगभत्तो राया पट्टीई सेट्ठिणो मूढो । अचुण्हं परमन्नं दासी य सुकोवियम१२४॥
गुस्सा ॥ ४१२ ।। १६४७ ॥ सा य सलिलल्ललोहियमंसवसापेसिधिग्गलं पित्तुं । उप्पड्या पट्ठीओ पाई। जह रक्खसबहुध ॥ ४१३ ॥ १६४८ ॥ तेण य निवेएणं निग्गंतूणं तु सुविहियसगासे। आरुहियचरित्तभरो सीहोरसियं समारूढो ॥ ४१४ ।। १६४९ ॥ तम्मि य महिहरसिहरे सिलायले निम्मले महाभागो। वोसिरह
दीप
अनुक्रम [४०९]
चिन्तयेत् ॥ ४०८॥ बहुपल्योपमसागरोपमाणि यावत् दुःखानि मया नरकतिर्यगजाति सोदानि किं पुनः सुखावसानमिदं सारं नरदुःख-11
मिति ॥ ४०९॥ षोडश रोगातकाः पोढा यथा चक्रिणा चतुर्थेन । वर्षसहस्राणि सप्त तु श्रामण्यधरत्वमुपगतेन ।। ४१० ॥ तथोत्तमा-] प्रियंकाले देहे निरपेक्षतामुपगतेन । तिलक्षेत्रलाबका इव आतङ्का विसोढव्याः ॥ ४११ ॥ परिबाड्भको राजा पृष्ठौ श्रेटिनो मूढः ।। * अत्युष्णं परमात्रमदात् सुकोपितमनुष्यात् ।। ४१२ ॥ सा च पात्री सलिलारुधिरमांसवसापेशीथिमगलं गृहीत्वा पृष्ठेरुत्पतिता यथा ॥१४॥
राक्षसवधूः ॥ ४१३ ।। तेन च निवेदन निर्गत्य तु सुविहितसकाशे। आरूढचारित्रभरः सिंहोरस्य समारूढः ॥ ४१४ ॥ तस्मिंश्च महीधर-181
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अथ मरणसमाधि-आराधकानां वर्णयते
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [४१५]--------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ॥४१५||
थिरपइन्नो सवाहारं महतणू य ॥ ४१५ ॥ १६५० ॥ तिविहोवसग्ग सहिउँ पडिमं सो अद्धमासियं धीरो।। ठाइ य पुवाभिमुहो उत्तमधिइसत्तसंजुत्तो ॥ ४१६ ॥ १६५१ ॥ सा य पगतंतलोहियमेयवसामंसलपरी(लंघ
रा)पट्टी । खजइ खगेहिं दूसहनिसहचंचुप्पहारहिं ॥ ४१७ ॥ १६५२ ॥ मसएहि मच्छियाहि य कीडीहिवि तमससंपलगाहिं । खजंतोवि न कंपद कम्मविवागं गणेमाणो ॥ ४१८ ॥ १६५३ ॥ रत्तिं च पयइविहसिय
सियालियाहिं निरणुकंपाहिं । उपसग्गिजद धीरो नाणाविहरूवधाराहिं ॥ ४१९ ॥ १६५४ ॥ चिंतेइ य खर-2
करवयअसिपंजरखग्गमुग्गरपहाओ। इणमो नहु कट्टयरं दुक्खं निरयग्गिदुक्खाओ ॥ ४२० ।। १६५५ ॥ सावं च गओ पक्खो वीओ पक्खो य दाहिणदिसाए। अवरेणवि पक्खोवि य समार्फतो महेसिस्स ॥४२१
॥१६५६ ॥ तह उत्तरेण पक्खं भगवं अविकंपमाणसो सहइ । पडिओ य दुमासंते नमोत्ति वोत्तुं जिणिदाणं ४ारशिखरे शिलातले निर्मले महाभागः । ग्युत्सृजति स्थिरप्रतिज्ञः सर्वाहारं महातनुं च ॥ ४१५ ॥ त्रिविधोपसर्गान सहित्वा प्रतिमा
सोऽर्द्धमासिकी धीरः । तिष्ठति च पूर्वाभिमुख उत्तमधृतिसत्त्वसंयुक्तः ॥ ४१६ ॥ सा च प्रगलवुधिरमेदवशामांसव्याप्ता पृष्ठिः। खाद्यते खगैः निसृष्टदुःसहच महारैः ॥ ४१७ ॥ मशकैर्मक्षिकामिश्च कीटिकाभिरपि मांससंप्रलमामिः । खाद्यमानोऽपि न कम्पते कर्म-| विपाकं गणयन् ॥ ४१८ ॥ रात्रौ च प्रकृति विहसितशृगालिकाभिर्निरनुकम्पाभिः । उपसर्यते धीरो नानाविधरूपधारिणीमिः ।। ४१९ ॥ चिन्तयति च खरककचासिपञ्जरखड्गमुद्रप्रहारात् । इदं नैव कष्टकर दुःखं नरकानिदुःखाच ॥ ४२० ॥ एवं च गतः पक्षो द्वितीयः | पक्षध दक्षिणस्यां दिशि । अपरस्यामपि पक्षोऽपि च समतिकान्तो महर्षेः ॥४२१।। तयोत्तरस्यां पक्षं भगवान् अविकम्पमानसः सहते ।।
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------- मूलं [४२३]-------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
पइण्णय-1 दसए १० मरणस- माही
प्रत
सूत्रांक ||४२३||
॥४२२ ॥१६५७ ॥ कंचणपुरम्मि सिट्ठी जिणधम्मो नाम सावओ आसी । तस्स इमं चरियपयं त एवं जिनधर्माकित्तिम मुणिस्स ॥ ४२३ ॥ १६५८ ॥ जह तेण वितथमुणिणा उपसग्गा परमदूसहा सहिया। तह उवसग्गा|| | दिदृष्टासुविहिय । सहियषा उत्समट्ठमि ॥ ४२४ ॥ १६५९ ।। निष्फेडियाणि दुपिणधि सीसावेक्षण जस्स अच्छीणि ।। न घ संजमाउ चलिओ मेअजो मंदरगिरिव ॥ ४२५ ॥ १६६० ॥ जो कुंचगावराहे पाणिदया कुंचगंपि नाइ-t क्खे । जीवियमणुपेहतं मेयवरिसिं नमसामि ॥ ४२६ ॥ १६६१ ॥ जो तिहिं पाहिं धम्मं समगओ संजमं| समारूढो । उवसमविवेगसंवर चिलाइपुसं नमसामि ॥ ४२७ ।। १६६२॥ सोएहि अइगयाओ लोहियगंधेण जस्स कीडीओ खाति उत्तमंग तं दुकरकारयं वंदे ॥ ४२८ ॥ १६६३ ॥ देहो पिपीलियाहिं चिलाइपुत्तस्स
॥१२५॥
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दीप अनुक्रम [४२४]
पतितश्च द्विमास्यन्ते जिनेन्द्रेभ्यो नमोऽस्त्वित्युक्त्वा ।। ४२२ ॥ कानपुरे श्रेष्ठी जिनधर्मो नाम श्रावक आसीत् । तस्यैतश्चरिनपदं तन एतत्कृत्रिममुनेः ॥ ४२३ ॥ यथा तेन वितधमुनिना उपसर्गाः परमदुष्कराः सोढाः। सथोपसर्गाः सुविहित ! सोढव्या उत्तमार्थे ॥४२॥ निष्काशिते द्वे अपि शिरसावेष्टेन यस्याक्षिणी। न च संयमाचलितो मेतार्यों मन्दरगिरिवि ॥ ४२५ ॥ यः क्रौटाकापराधे प्राणि दयावाः । क्रौनकमपि नारव्यत् । तं संयमजीवितमनुप्रेक्षमाणं मेतार्षि नमस्यामि ॥ ४२६ ।। यत्रिभिः पदैर्धर्म समधिगतः संयमं च समारूढः ।
उपशमविवेकसंबरैस्तं चिलातीपुत्रं नमस्यामि ॥ ४२७ ॥ ओतोभिरभिगता रुधिरगन्धेन यस्य कीटिकाः । खादन्त्युत्तमाङ्गं तं दुष्करकानारकं वन्दे ।। ४२८ ॥ देहः पिपीलिकाभिचिलातीपुत्रस्व चालनीव कृतः । तनुकोऽपि मनःप्रद्वेपो न च जातस्तस्य तासामुपरि ।। ४२९ ।।
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सूत्रांक
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दीप
अनुक्रम [ ४३० ]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [४२९]---
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र [३३] प्रकीर्णकसूत्र [१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया
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चालणिव कओ । तणुओवि मणपओसो न य जाओ तस्स तावरिं ॥ ४२९ ।। १६६४ ॥ धीरो चिलाहपुत्तो मूगलियाहिं चालिणिव कओ । न य धम्माओ चलिओ तं दुक्करकारयं वंदे ।। ४३० ।। १६६५ || गयसुकुमा लमहेसी जह दहो पिइवणंसि ससुरेणं । न य धम्माओ चलिओ तं दुकरकारयं वंदे || ४३१ || १६६६ || जह तेण सो हुयासो सम्मं अगदसहो सहिओ । तह सहियो सुविहिय । उवसग्गो देहदुक्खं च ॥ ४३२ ॥ ।। १६६७ | कमलामेलाहरणे सागरचंदो सुईहिं नभसेणं । आगंतॄण सुरता संपइ संपाइणो वारे ॥ ४३३ ॥ ।। १६६८ ॥ जा तस्स खमा तइया जो भावो जा य दुकरा पडिमा । तं अणगार! गुणागर तुमपि हिपएण | चिंतेहि ॥ ४३४ ॥ १६६९ ॥ सोऊण निसासमए नलिणिविमाणस्स वण्णणं धीरो । संभरिषदेवलोओ उज्जेणि अवंतिसुकुमालो || ४३५ || १६७० ॥ घितूण समणदिक्वं नियमुज्झियसवदिवआहारो। बाहिं वंसकुडंगे
धीरचिलातीपुत्रः पिपीलिकाभिवादनीव कृतः । न च धर्माच्चलितस्तं दुष्करकारकं वन्दे || ४३० || गजमुकुमालमहर्षिर्यथा दग्धः पितृवने वशुरेण न च धर्मावलितस्तं दुष्करकारकं वन्दे ||४३१॥ यथा तेन स हुताशनः सम्यगतिरेकदुःसहः सोढः । तथा सोडन्यः सुविहित ! उपसगों देहदुःखं च ॥ ४३२ ॥ | कमलामैलोदाहरणे सागरचन्द्रः सूचिभिः (गृतः ) नभः सेनम् । आगत्य सुरत्वात् तत्कालं संपातिनो वारयति ॥ ४३३ ॥ या तस्य क्षमा तदा यो भावो या च दुष्करा प्रतिमा । तद् अनगार! गुणाकर! त्वमपि हृदयेन चिन्तय ॥ ४३४ ॥ मुखा निशासमये नलिनीगुल्मविमानस्य वर्णनं धीरः । संस्मृतदेवलोक उज्जयिन्यामवन्तीसुकुमालः ॥ ४३५ ॥ गृहीया पणदीक्षां नियमोज्झित
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------- मूलं [४३६]------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||४३६||
पइण्णय- पायवगमणं निवपणो ॥४३६ ॥ १६७१॥ बोसवनिसटुंगो तहिं सो मुटुंकिपाइ खाओ उ । मंदरगिरिनि-चिलातिदसए १०४ कप तं दुकरकारयं वंदे ॥३७॥१६७२ ॥ मरणंमि जस्स मुकं सुकुसुमगंधोदयं च देवहिं। अबवि गंधवई पुत्रादि
तसा तं च कुडंगीसरहाणं ॥४८॥ १६७३ ॥ जह तेण तस्थ मुणिणा सम्म सुमणेण इंगिणी तिण्णा । तह दृष्टान्ता माही तूरह उत्तम8 तं च मणे सनिवेसेह ॥ ४३९ ॥ १६७४ ॥ जो निच्छएण गिण्हइ देहचाएवि न अद्वियं कुणइ ।
|सो साहेद सकलं जह चंदवसिओ राया ॥४४०॥ १६७५ ॥ दीवाभिग्गहधारी दूसहघणविणयनिश्चल-| ॥१२६॥
नगिंदो । जह सो तिण्णपइण्णो तह तरह तुम पइमि ॥ ४४१ ॥१६७६ ॥ जह दमदंतमहसी पंडयकोरव |मुणी धुयगरहिओ। आसि समो दुण्हपि हु एवं समा होह सवत्थ ॥ ४४२ ॥ १६७७ ॥ जह खंदगसीसेहि
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अनुक्रम [४३७]
सर्वदिव्य आहारः । बहिर्वशकुडङ्गे पादपोपगमनेनोपविष्टः ॥४३६॥ निःसह न्युत्सृष्टानस्तत्र सः शृगाल्या खादितस्तु । मन्दरगिरि निष्कम्प
दुष्करफारकं बन्दे ॥ ४३७ ॥ मरणे यस्य मुक्तं सुकुसुमगन्धोदकं च देवैः । अद्यापि गन्धवती सा (भूमिः) तच कुडोश्वरस्थानम|2 ॥ ४३८ ॥ यथा तेन तत्र मुनिना सम्यक् सुमनसा इझिनी तीर्णा । तथा त्वरस्व उत्तमार्थे वश मनसि संनिवेशय ॥ ४३९ ।। यो निश्च-12
येन गृह्णाति देहत्यागेऽपि नास्थिति करोति । स साधयति खकार्य यथा चन्द्रावतंसको राजा ॥ ४४० ॥ दीपाभिप्रहधारी दुःसह (पाप)घकानविनयननिश्चलनगेन्द्रः । यथा स तीर्णप्रतिशस्तथा त्वरख त्वं प्रतिज्ञायाम् ॥४४१॥ यथा यमदन्तमहर्षिः कौरवपाण्डवाभ्यां गर्हितगुतो
मुनिः । आसीहयोरपि समः एवं समो भव सर्वत्र ॥ ४४२ ॥ यथा स्कन्दकशिष्यैः शुक्लमहाध्यानसंसृतमनस्कैः । न कृतो मनःप्रपो|
॥१२६॥
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------ मूलं [४४३]------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||४४३||
मुक्कमहाझाणसंसियमणेहिं । न कओ मणप्पओसो पीलिज्जतेसु जंतंमि ॥ ४४३ ॥ १६७८ ॥ तह धन्नसा-15 लिभद्दा अणगारा दोवि तवमहितीया । वेभारगिरिसमीवे नालंदाए समीच मि ॥ ४४४ ॥ १६७९ ॥ जुअलसिलासंथारे पायवगमणं उवगया जुगवं । मासं अणूणगं ते वोसट्ठनिसहसवंगा ॥ ४४५ ॥ १६८०॥ सीयायवझडियंगा लग्गुद्धियमंसाहारुणि विणवा । दोवि अणुत्तरवासी महेसिणो रिद्धिसंपण्णा ॥ ४४६ ॥ १६८१॥ अच्छेरयं च लोए ताण तहिं देवयाणुभावेणं । अवि अढिनिवेसं पंकिब सनामगा हत्थी ॥ ४४७ ॥१६८२॥
जह ते समंसचम्मे दुबलविलग्गेवि णो सयं चलिया । तह अहियासेयर गमणे धेवंपिमं दुक्खं ।। ४४८ ॥ 51॥१६८३ ॥ अयलग्गाम कुटुंबिय सरदयसयदेवसमणयसुभदा । सबे उ गया खमगं गिरिगुहनिलय-181
नियच्छीय ।। ४४९ ॥ १६८४ ॥ ते तं तबोकिलंतं वीसामेऊण विणयपुवागं । उवलद्धपुषणपावा फासुपसु. यश्रेण पीड्यमानैः ॥ ४४३ ॥ तथा धन्यशालिभद्रौ अनगारौ द्वावपि तपोमहद्धिको । वैभारगिरिसमीपे नालन्दायाः समीपे ॥ ४४४ ॥ शिलायुगलसंस्तारके युगपत्पादपोपगमनमुपगतौ । मासमनूनं तौ निःसहव्युत्सृष्टसर्वाङ्गी ॥४४५|| शीतातपक्षपितानौ लमोद्धृत(भग्नास्थि)
मांसनायुको विनष्टौ । द्वावपि अनुत्तरवासिनी महर्षी माद्धिसंपन्नौ जातौ ॥४४६।। आश्चर्य च लोके तयोस्तत्र देवताऽनुभावेन । अद्यापि हैपले इवास्थिनिवेशं स्वनामको हस्तिनी (विद्यते) ॥ ४४५ ॥ यथा तो समांसचर्मणि दुर्बलविलोऽपि देहे न स्वयं चलितौ तथाऽध्या
सितव्यं गमने स्तोकमपीदं दुःखम् ।। ४४८ ॥ अचलगामे कौटुम्बिकाः सुरतिकशतकदेवश्रमणकसुभद्राः । सर्वेऽपि गताः क्षपणकं गिरिगुहानिलये ऽद्राक्षिषुः ।। ४४९ ॥ ते तं तपःवाम्यन्तं विश्रम्य विनयपूर्वम् । उपलब्धपुण्यपापाः प्रासुकं सुमहिमानमकापुरिह ॥ ४५० ॥
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [४५०]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||४५०||
पाहण्णय- मई करेसीह । ४५० ॥१६८५१ सुमरियताक्यधम्म जिणमहिनाणेसु जाणिवतोहग्गा । जसहरमुणिणो ४ घन्यशालिदसए १० पासे निक्वंता तिवसंधेगा॥ ४५१ ॥१६८६॥ सुमिहिपजिगणपणीमयपरिपुडा सीलसुरहिगंपडा(हा)। विह- भद्राधनुमरणस-5
रिय गुरुस्सगासे जिणवरवसुपुजतिस्पंमि ॥ ४५२ ॥ १५८७ ॥ कणगावलिमुत्तावलिरयणावलिसीहकीलिय- स्मृतिः
कलंता । काही य ससंवेगा आयंबिलवहुमाणं च ॥ ४५३ ॥ १५८८ आसरिया यमणोहरसिहरंतरसं॥१२७॥ चरंतपुक्खरयं । आइकरचलणपंकयसिरसेषियमाल हिमवंतं ॥ ४२४॥ १६८९॥ रमणिबहरैयतरुवरपरहु-6
असिहिभमरमहपरिविलोले । अमरगिरिविसयमणहरजिणवयणमुकाणणुरेसे ॥ ४५५ ॥ १६९० ॥ संमि| |सिलायल पुहवी पंचवि देहटिईसु मुणियथा । कालगयां उवषण्णा पंचधि अपराजियविमाणे ॥ ४५६ ॥ है॥१६९१ ॥ ताओ चहऊण इहं भारहवासे असेसरिउदमणा । पंडुनराहिवतणया जाया जयलच्छिम-16
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अनुक्रम [४५१]
सुगृहीतश्रावकधर्मा जिनमहिमतु जनितसौभाग्याः। यशोधरमुनेः पार्थे निष्कान्तास्तीनसंवेगाः ॥ ४५१॥ सुगृहीतजिनषचनामृतपरिपुष्टाः। | शीलसुरभिगन्धाढ्याः । विहताः गुरुसकाशे जिनवरवामुपूज्यतीर्थे । ४५२ ॥ कनकावलीमुक्तावलीरावलीसिंहनिष्क्रीडितानि फल-15 वन्तः । अकार्पश्च ससंवेगा आचाम्लवर्द्धमानं च ॥ ४५३ ॥ आश्रिताध मनोहरशिखरान्तरसञ्चरत्पुष्करकम् । आदिकरचरणपङ्कजसेवित-IN शिरोमालं हिमवन्तम् ॥ ४५४॥ रमणीयदहतरुवरपरभृतशिखिभ्रमरमधुकरीविलोले। अमरगिरिविशदमनोहरजिनवच (भव)नसुकाननोरेशे[४॥१२७ ।। ॥४५५ ।। तस्मिन् शिलातले पञ्चापि पार्थिवदेहस्थितिषु ज्ञातार्थाः। कालगताः पाप्युत्पन्ना अपराजितविमाने ॥ ४५६ ॥ तस्मात्रयुत्वा ।
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [४५७]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||४५७||
सारा ॥ ४५७ ॥ १६९२ ॥ से कण्हमरणदूसहदुक्खसमुप्पन्नतिसंवेगा । सुट्टियधेरसगासे निक्खंता खाय
कित्तीया ॥ ४५८ ॥ १६९३ ।। जिट्ठो चउवसपुती चउरो इकारसंगवी आसी। विहरिय गुरुस्सगासे जसपडसहभरतजियलोया ॥ ४५९ ॥ १६९४ ॥ ते विहरिऊण विहिणा नवरि मुरव कमेण संपत्ता । सो जिणनि
वाणं भत्तपरिनं करेसीय ।। ४६० ॥ १६९५ घोराभिग्गहधारी भीमो कुंतग्गगहियभिक्खाओ । सत्तुंजयसेलसिहरे पाओवगओ गयभवोघो ॥ ४६१ ॥ १६९६ ॥ पुषविराहियवंतरउवसग्गसहस्समारुयनगिंदो । अचिकंपो आसि मुणी भाई इकपासम्मि ॥ ४६२ ॥ १६९७ ॥ दो मासे संपुण्णे सम्म धिहपणियबद्धकच्छाओ। ताव उवसग्गिओ सो जाव उ परिनिचुओ भगवं ।। ४६३ ॥ १६९८ ॥ सेसावि पंडपुत्ता पाओव
दीप अनुक्रम [४५८]
इह मरतक्षेत्रेऽशेषरिपुदमनाः । पाण्जुनराधिपतनुजा जाता जयलक्ष्मीभारः ॥ ४५७ ॥ ते कृष्णमरणदुःसहदुःखसमुत्पन्नतीप्रसंवेगाः। सुस्थितस्थविरसकाशे निष्क्रान्ताः ख्यातकीर्त्तिकाः ॥ ४५८ ॥ ज्येष्ठश्चतुर्दशपूर्वी चतस्र एकादशाङ्गाविद आसन् । व्यहार्पः
गुरुसकाशे यश पटहध्रियमाणजीवलोकाः ॥ ४५९ ॥ ते विद्वत्य विधिना नवरं सौराष्ट्र क्रमेण संप्राप्ताः । श्रुत्वा जिननिर्वाणे भक्तपरिक्षा-12 Mमकापुंध ॥ ४६० ॥ घोराभिमहधारी मीमः कुन्तापगृहीतमिक्षाकः । शवजयशैलशिखरे पादपोपगतो गतभवीधः ॥ ४६१ ।। पूर्वविरा
व्यन्तरोपसर्गसहनमारुतनगेन्द्रः । अविकम्प आसीन्मुनिर्धातृणामेकपाः ॥ ४६२ ॥ द्वौ मासौ संपूर्णौ सम्यग्धृतिबाढवद्धकक्षाकः। वातावदुपसर्गितः स यावत्तु परिनिर्वृतो भगवाम् ॥ ४६३ ॥ शेषा अपि पाण्डुपुत्राः पादपोपगतास्तु निर्वृताः सर्वे । एवं धृतिसंपन्ना अन्ये-181
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [४६४]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
पाइण्णयदसए १० मरणसमाही
प्रत सूत्रांक ||४६४||
॥१२८॥
गया उ निखया संघ । एवं घिसंपन्ना अण्णवि दुहाओं मुचंति ॥ ४६४ ॥ १६९९ ॥ दंडोवि य अणगारो पाण्डवारा आयावणभूमिसंठिओ वीरो । सहिऊण वाणघापं सम्मं परिनिषुओभगवं ॥४६५ ।। १७०० ॥ सेलम्मिनस्मतिः चित्तकदे सकोसलो सुट्टिओ उ पडिमाए। नियजणणीए खाओ बग्घीभावं उपगपाए ॥ ४६६ ॥१७०१॥ परि(णिय )मापगओ अ मुणी लंबेसु ठिओ बहसु ठाणेसुं। तहवि य अकस्लुसमावो साहुखमा सवसाहणं ॥ ४६७ ॥ १७०२ ॥ पंचसयापरिवुडया वइररिसी पथए रहायसे । मुसूण खुर्ग किर असं गिरि-1 मस्सिओ सुजसो ॥ ४६८ ॥ १७०३ ॥ तत्व य सो उबलतले एगागी धीरनिच्छयमईओ। बोसिरिऊण सरीरं उहम्मि ठिओ वियप्पाणो॥ ४६९ ॥१७०४ ॥ ता सो आसमालो विणयरकिरणग्गितावियसरीरो । हविपिंटुप बिलीणो उवषण्णो देवलोयम्मि ॥४७०||१७०५॥ तस्स य सरीरपूर्य कासीय रहेहि लोगपाला उ ।। ऽपि दुःखान्मुच्यन्ते ॥४६४ ॥ दण्डोऽपि चानगारः आतापनभूमिसंस्थितो वीरः । सोढा वाणघातं सम्यक् परिनिभृतो भगवान ॥४६५॥ शैले चित्रकूटे मुकोशल: सुस्थितस्तु प्रतिमया । निजजनन्या खादितो व्याघ्रीभावमुपगतया ॥ ४६६ ।। अतिमागता मुनिद्रदूरेषु स्थितो| बहुषु स्थानेषु । तथाऽपि चाकलुषभावः सैव क्षमा सर्वसाधूनाम् ।। ४६७ ।। पञ्चशतपरिवृतो वर्षिः पर्वते रथावते । मुक्त्वा क्षुल्लकं | [किल अन्यं गिरिमाभितः सुयशाः ।। ४६८ ॥ तत्र च स उपलतले एकाकी धीरनिश्चयमतिकः । व्युत्सृज्य शरीरमुष्णे स्थितो विदात्मा| |१२८॥ ॥४६९ ॥ ततः सोऽतिसुकुमालो दिनकरकिरणामितापितशरीरः । हविःपिण्ड इव विलीन उत्पन्नो देवलोके ॥ ४७० ।। तस्य च शरी-121
दीप
अनुक्रम [४६५]
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [४७१]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||४७१||
तेण रहावत्तगिरी अज्जवि सो विस्सुओ लोए॥ ४७१ ॥१७०६॥ भगवंपि वइरसामी विदयगिरिदेवयाइ कयसपूओ। संपूहओन्त्य मरणे कुंजरभरिएण सकेणं ।। ४७२ ।। १७०७ ।। पूझ्यसुविहियदेहो पयाहिणं कुंजरेण
तं सेलं । कासीय सुरवरिंदो तम्हा सो कुंजरावत्तो ॥ ४७३ ॥ १७०८ ॥ तत्तो य जोगसंगह उवहाणक्खापाणयम्मि कोसंबी। रोहगमवंतिसेणो रुज्झइ मणिप्पभो भासो (म्भासं)॥४७४ ॥ १७०९ ॥ धम्मगसुसीलिजुयलं धम्मजसे तत्व रणदेसम्मि । भत्तं पञ्चक्खाइय सेलम्मि उ बच्छगातीरे ॥ ४७५ ॥ १७१० ॥ निम्म-IN
मनिरहंकारो एगागी सेलकंदरसिलाए । कासीय उत्तमढे सोभावो सबसाहणं ॥ ४७६ ॥ १७११ । उहम्मि सिलावद्दे जह तं अरहण्णएण सुकुमालं । विग्धारियं सरीरं अणुचिंतिजा तमुच्छाहं ।। ४७७॥१७१२ ।। गुब्बर |
पाओवगओ सुबुद्धिणा णिग्घिणेण चाणको। दहो न य संचलिओ साहघिई चितणिजा उ ॥४७८॥१७१३॥ सारपूजामका' रथैलोकपालाः । तेन रथावर्तगिरिरद्यापि स विश्रुतो लोफे ॥ ४७१॥ भगवानपि वनस्वामी द्वितीयगिरिदेवतया कृतपूजः ।
संपूजितोऽत्र मरणे बुञ्जरसहितेन (रथेन) शकेण ॥४७२|| पूजितसुविहितदेहः प्रदक्षिणां कुञ्जरेण तस्य शैलस्य । अकार्षीत्सुरवरेन्द्रस्तस्मारस कुमरावतः ।।४७३।। ततश्च योगसङ्घहे उपधानाख्याने कोशाम्बीम् । रोधेनावन्तीसेनो रुणद्धि मणिप्रभोऽभ्यासम् (आगतः) ॥४७४॥ धर्माचार्यसुशीलयुगलं धर्मयशास्तत्रारण्यदेशे। भक्तं प्रत्याख्याय शैले तु वत्सकातीरे स्थितः)।४७५।। निर्ममनिरहवार एकाकी शैलकन्दराशिलायाम् । अकार्षीदुत्तमार्थ स भावः सर्वसाधूनाम् ॥ ४७६ ॥ उष्णे शिलापट्टे यथाऽहन्नकेन सुकुमालं तत् । दावितं शरीरं वमुत्साह-| मनुचिन्तयेत् ।। ४७७ ।। करीपे पादपोपगतः सुबुद्धिना निपूणेन चाणाक्यः । दन्धो न च संचलितः सैव धृतिचिन्तनीया ॥ ४७८ ।।
दीप अनुक्रम [४७१]
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------ मूलं [४७९]-------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
वनस्वा
प्रत सूत्रांक ॥४७९||
पइण्णय-13जह सोऽवि सप्पएसी वोसनिसिहचासवेहो उ । वंसीपसेहिं विनिग्गएहि भागासमुक्खित्तो॥ ४७९॥1 दसए १० ॥ १७१४ ॥ जह सा वत्सीसघडा वोसट्ठनिसट्टचसदहागा । धीरा बाए ख दीपएण विगलिम्मि ओलइया म्याधनु
॥ ४८०॥ १७१५ ।। जंण करकरण व सत्धेहि व सावरहि विविहहिं । देहे विद्धस्सते इसिपि अकप्पणा- स्मृतिः माही (झ)मणा ॥ ४८१ ॥ १७१५ ॥ पहिणीययाइ केसिं चम्मसे खीलएहिं निहणिता। महुघयमक्खियह पि-12
वीलियाणं तु दिजाहि ॥ ४८२ ॥ १७१७ ॥ जेण विरागो जाया संत सदायरेण करणिकं । सुबाहु ससंवेगो ॥१२९॥
इत्थ इलापुत्तदिलुतो ॥ ४८३ ॥ १७१८ ॥ समुइण्णेसु य सुविहिय! घोरेसु परीसस सहणेणं । सो अत्यो । सरणिनो जोऽधीओ उत्सरज्झयणे ॥ ४८४ ॥१७१९ ।। उल्लेणि स्थिमित्तो सत्पसमग्गो वणम्मि कट्टेणं । |पायहरो संवरण चिल्लगभिक्खा वण सुरेसुं ॥ ४८५ ॥ १७२० ॥ तस्थेव य धणमिसो घेल्लगमरणं नईइ8 यथा सोऽपि सप्रदेशी व्युत्सृष्टनिसृष्टत्यक्तदेहस्तु । वंशीपत्रैर्विनिर्गतैराकाश उत्क्षिप्तः ॥ ४७९ ॥ यथा सा द्वात्रिंशवटा म्युत्सएनिसृष्टस्यतदेहा । धीरा सवातेन प्रदीपनकेन विकाले विलीना ॥ ४८० ।। यत्रेण ककचेन वा शौर्वा श्वापदेविविधः । देहे विश्वस्यमाने ईषदपि असरकल्पनाक्षपणा (अनारूढासन्मनःकल्पना) ॥ ४८१ ॥ (केचित् ) प्रत्यनीकतया केषाधिधर्माशे बलकाभिहत्य । मधुघृतम्रक्षित पिपीलिकाभ्यो दद्यात् (अदुः)॥ ४८२ ॥ येन विरागो जायते तत्तत्सर्वादरेण करणीयम् । श्रूयते ससंवेगोऽत्रेलापुत्रो दृष्टान्तः ॥ ४८३ ॥ समुदीर्णेषु च सुविहित ! घोरेषु परीपहेषु सहनाय । सोऽर्थः स्मरणीयो योऽधीत उत्तराभ्ययनेषु ।।४८४।। उज्जयिन्या हस्तिमित्रः सार्यसमग्रो ॥१२९॥ बने काठे(कण्टके)न हतपादः प्रत्याख्यानं क्षुल्लकभिक्षा बने सुरेण ॥ ४८५ ॥ तत्रैव च धनमित्रः क्षुल्लकमरणं नद्यां तृष्णया निस्तीर्णेष्व-16
दीप अनुक्रम [४८०]
C4X4
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [४८६]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||४८६||
तहाए । निच्छिण्णेसुऽणज्जत विटियविस्सारणं कासि ॥ ४८६ ॥ १७२१ ॥ मुणिचवेण विदिण्णस्स रायगिहि है। परीसहो महाघोरो । जत्तो हरिवंसविहसणस्स वुच्छ जिणिदस्स ॥ ४८७ ॥ १७२२ ॥ रायगिहनिग्गया खलु पहिमापडिवनगा मुणी घउरो । सीयविहूय कमेणं पहरे पहरे गया सिद्धिं ॥ ४८८ ।। १७२३ ॥ उसिणे18
तगररहन्नग चंपा मसएसु सुमणभद्दरिसी। खमसमण अजरक्खिय अचेल्लय पत्ते अ उजेणी ॥ ४८९॥ 1॥ १७२४ ॥ अरईय जाइस्करो (मूओ) भवो अ दुलहयोहीओ। कोसंबीए कहिओ इत्थीए थूलभद्दरिसी ॥ ४९० ॥ १७२५ ॥ कुल्लइरम्मि य दत्तो चरियाइ परीसहे समक्खाओ । सिट्ठिसुयतिगिच्छणणं अंगुलदीवो य वासम्मि ॥ ४९१ ॥ १७२६ ।। गयपुर कुरुदत्तसुओ निसीहिया अडविदेस पडिमाए । गाविकुविएण दहो। गयसुकुमालो जहा भगवं ॥४९२॥ १७२७।। तो(दो) अणगारा धिल्लाइयाइ कोसंवि सोमदत्ताई। पाओवगया
ज्ञायमानं विण्टिकाविस्मरणमकार्षीत् ॥ १८६ ॥ राजगृहे(मन्दिरे)(तत्र) महाघोरः परीवहो मुनिचन्द्रेण विदत्तः । हरिवंशविभूषणस्य जिनेसान्द्रस्य यत्र वसनं ।। ४८७ ॥ राजगृहनिर्गताः प्रतिमाप्रतिपन्ना मुनयश्चत्वारः । शीतविधूताः क्रमेण प्रहरे २ सिद्धि गताः ॥४८८।। उष्णेतगरायामईनकचम्पायों मशकेषु सुमनोभद्र प्राषिः । अमाश्रमणा आर्यरक्षिता अचेलकत्वे उमायिन्याम् ॥ ४८९॥ अरतौ च जातिसूकरो। मूको भव्यश्च दुर्लभो बोधिः । कौशाम्या कथितः खियो स्थूलभद्र ऋषिः ॥ ४९० ।। कुल्लकिरे व दत्तश्चर्यायाः परीपहे समाख्यातः । प्तिसुतचिकित्सनमङ्गलदीपश्च वर्षणे ॥ ४९१ ॥ गजपुरे कुरुदत्तसतो नैवेधिक्यामटवीदेशे प्रतिमया । गोहेरकेण दग्धो गजमुकुमालोद यथा भगवान् ॥ ४९२ ॥ द्वौ भनगारौ धिग्जातीयौ कौशाम्न्यां सोमदत्तादी । पादपोपगतौ नदीनैषेधिक्या सागरे क्षिप्तौ ॥ ४९३ ॥
दीप अनुक्रम [४८७]
Jantuatimomindian
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [४९३]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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प्रत सूत्रांक ||४९३||
पइण्णय-हणविणेसिजाए सागरे छुदा ॥ ४९३ ॥ १७२८ ॥ महुराइ महुरखमओ अकोसपरीसहे उ सविसेसो । धीओ . दसए १० रायगिहम्मि उ अजुणमालारदिट्टतो ।। ४९४ ॥ १७२९ ॥ कुंभारकडे नगरे खंदगसीसाण जंतपीलणया||Khelaमरणस-1
एबिहे कहिलइ जह सहियं तस्स सीसेहिं ॥ ४९५ ॥ १७३० ॥ तह प्राणनाणवु(जु)त्तं गीए संठि(पट्टि)पस्सदा स्मृतिः माही समुयाणं । तत्सो अलाभगंमि उ जह कोहं निजिणे कण्हो ॥ ४९६ ॥ १७३१॥ किसिपारासरढंढो थीयं तु
|अलाभगे उदाहरणं । कणहबलभदम चहऊण खमन्निभो सिद्धो ॥ ४९७ ॥ १७३२ ॥ महरा जियसत्तुसुओ 4॥१३०॥
अणगारो कालवेसिओ रोगे । मोग्गल्लसेलसिहरे खइभो किल सरसियालेणं ॥ ४९८ ॥ १७३३ ॥ सावत्थी |जिपसलूतणओ निक्खमण पडिम तणफासे । बीरिय पविय विकंचण कुसलेसणकहणासहणं ॥४९९॥१७३४॥ चंपासु गंदगं चिय साहुदुगुंछाह जल्लम्वउरंगे । कोसंवि जम्मनिक्खमण वेयणं साहुपडिमाए ॥ ५०० ॥
*
दीप अनुक्रम [४९३]
#मधुरायां मथुरः क्षपक आक्रोशपरीपहे तु सविशेषः । द्वितीयो राजगृहेऽर्जुनमालाकारदृष्टान्तः ॥ ४९४ ॥ कुम्भकारकटे नगरे स्कन्ध-II
कशिष्याणां यधपीलना । एवंविधे कध्यते यथा सोढं तस्य शिष्यैः ।। ४९५ ॥ तथा ध्यानज्ञानयुक्तस्य गीतार्यस समुदाने संप्रस्थितस्य ।। ततोऽलाभे तु यथा शोध निरजपीकृष्णः ॥ ४९६ ॥ कृषिपारासरढण्दो द्वितीयमलाभके उदाहरणम् । कृष्णबलभद्रकमन्यत् त्यक्ता क्षमान्वितः सिद्धः ॥४९७। मथुरायां जितशत्रुसुतोऽनगारः कालवैशिको रोगे। मौद्गल्यशैलशिखरे खादितः किल शरशृगाकेन ॥४९८| |१३०॥ श्रावस्त्यां जितशत्रुवनयो निष्क्रमण प्रतिमा तृणपर्छ । प्रापिते वीर्ये विकिशन कुशलेषणं कर्षणं सहनम् ॥ ४९९ ॥ चम्पायां नन्दकः
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [५०१]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||५०१||
G॥१७३५ ॥ महुराइ इंददत्तो सकारा पापछेषणे सहो । पन्नाइ अन्जकालग सागरखमणो य दिट्टतो ॥५०१॥
१७३६ ॥ नाणे असगडताओ खंभगनिधी अणहियासणे भहो । दसणपरीसहम्मि उ आसाढभूई उ8
आपरिया ॥ ५०२ ॥ १७३७ ॥ चरियाए मरणम्मि उ समुइण्णपरीसहो मुणी एवं । भाविज निघणजिणमप्रायवएससुईइ अप्पाणं ॥ ५०३ ॥ १७३८ ॥ उम्मग्गसंपयार्य मणहत्यि विसयसुमरियमणतं । नाणकसेण
धीरो घरेइ दित्तंपिव गइंदं ।। ५०४ ॥ १७३९॥ एए उ अहासूरा महिहिए को व भाणिउं सत्तो? । किं वातिसामवमाए जिणगणधरधेरचरिएK ॥ ५०५ ।। १७४०॥ किं चित्तं जह नाणी सम्मट्टिी करति उफछाहं ।।
तिरिएहिषि दुरणुचरो केहिवि अणुपालिओ धम्मो ॥ ५०६ ॥ १७४१ ॥ अरुणसिहं दट्टणं मच्छो सपणी
दीप
अनुक्रम [५०२]
साधुजुगुप्सायां जलप्रचुराने कौशाम्यां जन्म निष्क्रमण वेदनं साधुप्रतिमायाम् ।। ५०० ।। मथुरायामिन्द्रदत्तः असत्कारः पादपीलने 8 श्राद्धः । प्रज्ञायामार्यकालकः सागरक्षमाश्रमणश्च दृष्टान्तः ॥ ५०१॥ ज्ञानेऽशकटातातः स्तम्भनिधिरनध्यासने स्थूलभद्रः । दर्शनपरीपहे तु
आपादभूतय आचार्याः ॥५०२।। चर्यायां मरणे तु समुदीर्णपरीषदो मुनिः एवं । भावयेत् निपुणजिनमतोपदेशभुत्याऽऽत्मानम् ॥ ५०३ ॥10 दउन्मार्गसंप्रयातं मनोहस्तिनं स्मृतविषयमनन्तं । मानाशेन धीरो धारयति सप्तमिव गजेन्द्रम् ॥ ५०४॥ एखांस्तु यथाशूरान् महर्दिकान
को वा भणितुं शक्तः । किं वाऽत्युपमया जिनगणधरस्थविरचरितेषु ।। ५०५ ।। किं चित्रं यदि ज्ञानिनः सम्यग्दृष्टयः कुर्वन्ति (धर्मे) शनमा । निरिपिटाजनाः कशिदनपानिनो पर्य: ।। प्रासादि गाममाः मंनी महानि को
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [५०७]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||५०७||
पइण्णय- महासमुद्दम्मि । हा ण गहिउत्ति काले झसत्ति संवेगमावण्णो ॥ ५०७॥ १७४२ ॥ अपाणं निंदतो उत्त- परीषहसो. दसए १०रिऊणं महनवजलाओ । सावजजोगविरओ भत्तपरिणं करेसीय ॥५०८॥१७४३ ॥ खगतुंडभिन्नदेहो तिर्यरहमरणस- दूसहसूरग्गितावियसरीरो। कालं काऊण सुरो उबवन्नो एव सहणिज्जं ॥ ५०९॥ १७४४ । सो वानरजूहबई| माही तारे सुविहियाणुकंपाए । भासुरवरदिधरो देवो वेमाणिओ जाओ॥ ५१०॥ १७४५ ॥ तं सीहसेणग-।
यवरचरियं सोऊण दुकरं रपणे । को हुणु तवे पमायं करेज जाओ मणुस्सेसुं? ॥ ५११ ॥ १७४६ ॥ भुयगपुरोहियडको राया मरिऊण सल्लइवणम्मि । सुपसत्थगंधहत्थी बहुभयगय भेलणो जाओ ॥ ५१२॥ १७४७॥ सो सीहचंदमुणिवरपडिमापडिबोहिओ सुसंवेगो। पाणवहालियचोरियअन्यंभपरिग्गह नियत्तो ॥५१३ ॥ ॥ १७४८ ॥ रागदोसनियत्तो छट्ठक्खमणस्स पारणे ताहे। आससिऊणं पंडं आयवतत्तं जलं पासी ॥५१४॥
दीप अनुक्रम [५०८]
झटिति संवेगमापन्नः ॥ ५०७ ॥ आत्मानं निन्दयन् उत्तीर्य महार्णवजलात् । सावधयोगविरतो भक्तपरिनामकार्षीत् ।। ५०८ ॥ खगतुण्डमिन्नदेहो दुस्सहसूर्याप्रितापितशरीरः । कालं कृत्वा सुर उत्पन्न एवं सहनीयम् ॥ ५०९॥ स वानरयूथपतिः कान्तारे सुविहितानुकम्पया । भासुरवरमोन्दिधरो देवो वैमानिको जातः ।।५१०॥ तत् सिंहसेनगजवरचरितं श्रुत्वा दुष्करमरण्ये । को नु तपसि
प्रमादं कुर्यान जातो मनुष्येषु ॥ ५११ ।। भुजगपुरोहितदष्टो राजा मृत्वा सल्लकीवने । सुप्रशस्तो गन्धहस्ती बहुभयगजभेषणो जातः 31॥५१२ ॥ स सिंहचन्द्रमुनिवरप्रतिमाप्रतियोधितः सुसंवेगः । प्राणवधालीकचौर्याब्रह्मपरिग्रहेभ्यो निवृत्तः ॥ ५१३ ॥ रागद्वेषनिवृत्तः
॥१३१॥
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [५१५]--------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||५१५||
CA
दीप
॥ १७४९ ॥ खमगसणनिम्मंसो धवणिसिरोजालसंतयसरीरो । विहरिय अपप्पाणो मुणियएसं विचिंतंतो। ॥ ५१५ ॥ १७५० ।। सो अन्नया णिदाहे पंकोसन्नो वणं निरुत्थारो। चिरवेरिएण विट्ठो कुछडसप्पेण घोरेणं| ॥ ५१६ ॥ १७५१ ॥ जिणवयणमणुगुणितो ताहे सर्व चउबिहाहारं । वोसिरिऊण गांवो भायेण जिणे नम: सीय ॥ ५१७ ॥ १७५२ ॥ तत्थ य वणयरसुरवरविम्हियकीरंतपूषसकारो | मज्स्पो आसी किर कलहेसु। य जजरिवतो ।। ५१८॥ १७५३ ॥ सम्म सहिऊण तओ कालगओ ससममि कप्पम्मि । सिरितिलयम्मि |विमाणे उकोसठिई सुरो जाओ ॥ ५१९ ।। १७५४ ॥ सुपदिविवायकहियं एवं अक्खाणयं निसामिसा । | पंडियमरणम्मि महं वरं निवेसिज्ज भाषणं ॥ ५२०॥ १७५५ ॥ जिणवयणमणुस्सट्टा दोवि भुपंगा महाविसा| घोरा । कासीय कोसियासय तणूसु भसं मुहंगाणं ॥ ५२१ ॥ १७५३ ॥ एगो विमाणवासी जाओं परविजपटक्षपणस्य पारणे तदा । आश्वास्यात्मानमालपतप्तं जलमपात् ॥ ५१४ ॥ आपुकत्येन निर्मासः धमनिशिराजालसंततशरीरः । व्यहापी
दल्पमाणो मुन्धुपदेशं विचिन्तयन् ॥ ५१५ ॥ सोऽन्यदा निदाघे पावसको बने निरुत्साहः । चिरबैरिकेण वष्टः कुर्कुटसर्पण घोरेण है|॥५१६॥ जिनवचनमनुगुणयन तदा सर्वं चतुर्विधाहारं । व्युत्सृज्य गजेन्द्रो भावेन जिनान सीत् ॥ ५१७ ॥ वत्र र विस्मित प्यन्तर| सुरवरक्रियमाणपूजासरकारः । मध्यस्थ आसीत् किलकलभैश्च जर्जरीक्रियमाणः ॥ ५१८ । सम्यक् सोडा ततः कः सप्तमे करूपे ।। |श्रीतिलके विमाने उत्कृष्टस्थितिः मुरो जातः ।।११।। रष्टिपादश्रुतकषितमेतदाक्यानकं निक्षम्य पण्डिवमरणे रखो माल भावेन निवेशयेत् | ॥ ५२० ।। अनुसृष्टजिनवधनी द्वावपि भुजङ्गी महाविषी घोरौ । अकार्टी कौशिकाश्रमे तनुम्यां पिपीलिका मम ।। ५२१ ॥ एको
अनुक्रम [५१६]
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------ मूलं [५२२]------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
पइण्णय- दसए १० मरणस- माही
प्रत सूत्रांक
||५२२||
।।१३२॥
पंजरसरीरो। बीओ उ नंदणकुले बलुत्ति जक्खो महडिओ ॥५२२ ॥ १७५७॥ हिमचूलसुरुप्पत्ती भग-1 तिरहमहिसी य थूलभदो य । वेरोसवसमे कहणा सुरभावे दसणे खमणो ॥ ५२३ ॥ १७५८ ॥ यावीसमाणुपुषित तिरिक्खमणुयावि भेसणट्ठाए । विसयाणुकंपरक्षण करेन देवा उ उवसरगं ॥ ५२४ ॥ १७५९॥ संघयण-I धिईजुत्तो नवदसपुची सुरण अंगा वा । इंगिणि पाओवगम पडिवजह एरिसो साहू ॥ ५२५ ॥ १७६० ॥18 निचल निप्पटिकम्मो निविखवए जं जहिं जहा अंगं । एवं पाओवगमं सनिहारिं वा अनीहारिं ॥ ५२६ ।।
॥१७६१ ॥ पाओवगम भणियं समविसमे पायवुब जह पडिओ। नवरं परप्पओगा कंपिज जहा फलतरूब 11॥ ५२७ ।।१७६२ ।। तसपाणवीपरहिए विच्छिपणचियारथंडिलविसुद्धे । एगते निहोसे उविति अन्भुजयं मरणं
॥५२८ ॥ १७६३ ॥ पुवभवियवेरेणं देवो साहरइ कोऽवि पायाले। मा सो चरिमसरीरो न वेअणं किंचित विमानवासी जातो वरविद्युत्पिक्षरशरीरः । द्वितीयस्तु नन्दनकुले बल इति यक्षो महर्दिकः ।। ५२२ ।। हिमचूलसुरोत्पत्तिभद्रकमहिषी च स्थूलभद्रश्च । वैरोपशमाय कथनं सुरभावे दर्शने क्षमायुक्॥५२३॥ द्वाविंशतिमानुपूर्व्या (चिन्तय)। तिर्यअनुष्या अपि भापनार्थ विषयानुकम्पापयरक्षणार्थ कुर्युर्देवास्तूपसर्गम् ।।५२४॥ संहननभृतियुत्तो नवदशपूर्वी श्रुतेनाङ्गेन था। इङ्गिनी पादपोपगमनं प्रतिपद्यते ईदृशः साधुः ।। ५२५ । निश्चलो निष्प्रति कर्मा निक्षिपति यद् यत्र यथाङ्गम् । एतत्पादपोपगमनं सनिहार वाऽनिहारम् ।। ५२६ ।। पादपोपगमनं । भणितं समविषमे पादप इव यथा पतितः । नवरं परप्रयोगात्कम्पेत यथा फलतरिव ।। ५२७॥ सप्राणवीजरहिते विस्तीर्णे विचार-5॥१३२॥ खण्डिले विशुद्धे । एकान्ते निदोंपे उपयान्यभ्युद्यतं मरणम् ॥५२८॥ पूर्वभविकवरेण देवः संहरति कोऽपि पाताले । मा स चरमशरीरो
दीप
अनुक्रम [५२३]
Janshakaniyaindian
अथ मरणस्य भेदानि वर्णयते
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [५२९]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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प्रत सूत्रांक ||५२९||
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पाविज्ञा ॥ ५२९ ॥ १७६४ ।। उप्पन्ने उपसग्गे दिवे माणुस्सए तिरिक्खे अ। सधे पराजिणित्ता पाओवगया पविहरंति ॥ ५३० ॥ १७६५ ॥ जह नाम असी कोसा अन्नो कोसो असीवि खलु अन्नो । इय मे अन्नो जीवो अन्नो देहुत्ति मनिला ॥ ५३१ ॥ १७६६ ॥ पुच्चावरदाहिणउत्तरेण वाएहिं आवडतेहिं । जह नवि कंपइ मेरू तह झाणाओ नवि चलंति ॥ ५३२ ॥ १७६७ ॥ पढमम्मि य संघपणे बहते सेलकुडसामाणे । तेसिपिप [बुच्छेओ चउदसपुचीण वुच्छेए ॥ ५३३ ॥ १७६८ ॥ पुढविदगअगणिमारुयतरुमाइ तसेसु कोइ साहरइ । वोसट्टचत्तदेहो अहाउअंतं परिक्खिज्जा ॥ ५३४ ॥ १७६९ ॥ देवो नेहेण णए देवागमणं च इंदगमणं वा । जहियं इही कंता सबसुहा हुंति सुहभावा ॥ ५३५ ॥ १७७० ।। उवसग्गे तिविहेवि य अणुकूले चेव तह य पडिकूले । सम्मं अहियासंतो कम्मक्खयकारओ होइ ॥५३६॥ १७७१ ॥ एवं पाओवगम इंगिणि पडिक- न बेदनां काञ्चित् प्राप्नुयात् ॥ ५२९ ॥ उत्पन्नानुपसर्गान् दिव्यान् मानुष्यकांश्च तैरश्चान् । सान पराजित्य पादपोपगताः प्रविहरन्ति ।। ५३० ।। यथा नाम असिः कोशादन्यः कोशोऽसेरपि खल्वन्यः । एवं ममान्यो जीवोऽन्यो देह इति मन्त्रीत ।। ५३१ ।। पूर्वापरए-161 क्षिणोत्तरत्यैवातैरापतद्भिर्यथा नैव कम्पते मेरुः तथा ध्यानात्रैव चलन्ति ॥ ५३२ ॥ प्रथमे च संहनने वर्तमाने शैलकुड्यसमाने । तथो-| रपि च बिछेदचतुर्दशपूर्विणां विच्छेदे ।। ५३३ ।। पृथ्वीदकानिमारुततर्वादिषु वसेषु च कोऽपि संहरति । युत्सृष्टयक्तदेहो यथायुष्कं 4
परी प्रतीक्षेत ॥ ५३४ ॥ देवः सेहेन नयेत् देवागमनं चेन्द्रागमनं वा । यत्र ऋद्धिः कान्ता सर्वसुखा भवन्ति शुभभावाः ।। ५३५॥16 उपसर्गाग्निविधानपि चानुकूलांश्चैव तथैव प्रतिकूलान् । सम्यग् अध्यासयन् कर्मक्षयकारको भवति ।। ५३६ ॥ एतत्पादपोपगमनेङ्गिनी
CACXR
दीप अनुक्रम [५३०]
च.स.२३
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lantastmaramanand
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [५३७]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||५३७||
पइण्णय-
1म्म वणियं सुत्ते । तित्थयरगणहरेहि य साहहि य सेवियमुयारं ॥ ५३७॥ १७७२ ॥ सवे सबद्धाए सबन्ना उपसर्गदसए १० सबकम्मभूमीसु । सबगुरू सबहिया सवे मेरुसु अहिसित्ता ॥५३८॥ १७७३ ।। सबाहिवि लद्धीहि सवेऽवि सहनं मरणस- परीसहे पराइत्ता । सवेऽविय तित्थयरा पाओवगयाउ सिद्धिगया ॥ ५३९ ॥१७७४ ॥ अवसेसा अणगारापादपोपगमाही द्वितीयपटुप्पन्नऽणागया सधे । केई पाओवगया पचक्खाणिगिर्णि केई ॥५४०॥ १७७५ ॥ समावि अ अज्जाओमाद्यधि
सवेऽवि य पढमसंघयणवज्जा । सवे य देसविरया पचक्खाणेण य मरंति ॥५४१ ॥१७७६ ॥ सबसुहप्पभ- कारिणः ॥१३३॥
वाओ जीवियसाराओ सबजणिगाओ। आहाराओ रयणं न विज्जए उत्तमं लोए ॥५४२॥ १७७७ ॥ विग्ग-12 दहगए य सिद्धे मुत्तुं लोगम्मि जंमिया जीवा । सबे सहावत्थं आहारे हुंति आउत्ता ॥ ५४३ ॥ १७७८॥ तं
तारिसगं रयणं सारं जं सबलोयरयणाणं । सर्व परिचइत्ता पाओवगया पविहरंति ॥५४४ ॥ १७७९ ॥
परिकर्म वर्णित सूत्रे । तीर्थकरगणधरैन साधुभिश्च सेवितमुदारम् ॥ ५३७॥ सर्वे सर्वातायां सर्वशाः सर्वकर्मभूमिषु। सर्वगुरवः सर्वदहिताः सर्वे मेरुष्वभिषिक्ताः ॥ ५३८ ॥ सर्वाभिरपि लब्धिभिर्युताः सर्वानपि परीपहान् पराजित्य । सर्वेऽपि च तीर्थकराः पादपोपगता एवं | सिद्धिगताः ॥५३९॥ अवशेषा अनगारा अतीतप्रत्युत्पन्नानागताः सर्वे । केचित्पादपोपगताः इङ्गिनीमरणेन प्रत्याख्यानेन च केचित् ॥५४०॥ सर्वा अपि चार्याः सर्वेऽपि च प्रथमसंहननवर्जाः । सर्वे च देशविरताः प्रत्याख्यानेनैव नियन्ते ॥५४१।। सर्वसुखप्रभवात् जीवितसारासर्व व्यापार )जनकात् । आहारात उत्तम रत्रं लोके न विद्यते ॥ ५४२ ॥ विप्रहगतान् सिद्धांश्च मुक्त्वा लोके यावन्तो जीवास्ते । सर्वे ॥१३३॥ सर्वावस्थासु आहारे आयुक्ता भवन्ति ।।५४३॥ तत्तादृशं रत्रं सारं यत्सर्वलोकरज्ञानाम् । सर्व परित्यज्य पादपोपगताः प्रविहरन्ति ।।५४४||
दीप अनुक्रम [५३८]
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आगम
(33)
प्रत
सूत्रांक
|| ५४५||
दीप
अनुक्रम
[५४६ ]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [ ५४५] ---
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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एयं पाओवगमं निष्पडिकम्मं जिणेहिं पनतं । तं सोऊणं खमओ ववसायपरकर्म कुणइ || ५४५ ।। १७८० ॥ धीरपुरिसपण्णसे सप्पुरिसनिसेविए परमरम्मे । घण्णा सिलायलगया निरावयक्खा विनंति ॥ ५४६ ॥ ।। १७८१ ।। सुवंतिय अणगारा घोरासु भवानियास अडवीसुं । गिरिकुहरकंदरासु य विजणेसु य रुक्खहेहे ॥ ५४७ ।। १७८२ ॥ धीधणियबद्धकच्छा भीया जरमरणजम्मणसयाणं । सेलसिलासयणत्था साहति उ उत्तमट्ठाई ॥ ५४८ ॥ १७८३ || दीवोदहिरण्णेसु प खयरावहियासु पुणरविध तासु । कमलसिरीमहिलादिसु भन्तपरिक्षा कथा थी || ५४९ ।। १७८४ ॥ जइ ताव सावयाकुलगिरिकंदरविसमकडग दुग्गासुं। साहिति उत्तम घिणियसहायगा धीरा ॥ ५५० ।। १७८५ ।। किं पुण अणगारसहायगेण अष्णुन्नसंगहबलेणं । परलोए य न सका साहेउं अप्पणो अहं १ ॥ ५५१ || १७८६ ॥ समुन्नेसु अ सुविहिय । उवसग्गमहएतत् पादपोपगमं निष्प्रतिकर्म जिनैः क्षप्तम् । तच्छ्रुत्वा क्षपको व्यवसायपराक्रमं करोति ॥ ५४५ || धीरपुरुषप्रज्ञप्तान् सत्पुरुपनियेवितान् परमरम्यान ( भावान् ) | धन्याः शिलातलगता निरपेक्षाः प्रपद्यन्ते ॥ ५४६ ॥ श्रूयन्ते चानगाराः घोरासु भवानकास्वटवीषु । गिरिकुहरकन्दरासु च विजनेषु च वृक्षाणामधस्तात् ॥५४७|| धृतिबाढबद्धकक्षा मीता जरामरणजन्मशतेभ्यः । शैलशिलाशयनस्थाः साधयन्त्येवोत्तमार्थम् ।। ५४८ ।। द्वीपोदध्यरण्येषु च खेचरापहृताभिः पुनरपि च । सासु कमलश्रीमहिलादिमिर्भक्तपरिज्ञा कृता स्त्रीषु ॥ ५४९ ।। यदि तावत् श्वापदाकुलगिरिकन्दरविषमकटकदुर्गासु साधयन्त्युत्तमार्थ वाढं धृतिसहायका धीराः ।। ५५० ।। किं पुनरनगारसहायकेनान्योन्यसंग्रह बलेन । परदा च न यः साधयिनान्स ०१ ॥
Paul Plate Use Of
अथ आराधना- अनुचिन्तन वर्णयते
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [५५२]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
निभीकता
प्रत सूत्रांक ||५५२||
दीप अनुक्रम [५५३]
पइण्णय-3भएसु विविहेसुं । हियएण चिंतणिलं रयणनिही एस उपसग्गो ॥ ५५ ॥ १७८७॥ किं जायं जइ मरण माग्भव दसए १०11अहं च एगाणिओ इहं पाणी । वसिओऽहं तिरियत्ते बहुसोएगागिओ रणे ॥ ५५३ ॥ १७८८ ॥ बसि- स्मरण मरणस
ऊणऽवि जणमजसे बचा एगागिओ इमो जीयो । मुसूण सरीरधरं मधुमुहाकहिओ संतो॥५५४॥ १७८९॥131 माही जह धीहंति अ जीवा विविहाण विहासियाण एगागी। तह संसारगएहिं जीवेहि बिहेसिया अने ॥ ५५॥
॥ १७९० ॥ सावपभयाभिभूओ बहूम अडवीसु निरभिरामासु । सुरहिहरिणमहिससूपरकरघोडियरुक्ख॥१३४॥
छायासु ॥५५६ ॥ १७९१ ॥ गयगवयखग्गगंडयवग्यतरच्छच्छमल्लचरियासु । भलंकिकंकदीवियसंचरस-181 भावकिपणामुं ॥५५७ ॥ १७९२ ॥ मत्तगईदनिवाडियाभिलपलिंदावकुंडिपवणासुं। वसिओज्हं तिरियते| भीसणसंसारचारम्ति ॥५५८ ॥ १७९३ ॥ कत्थ य मुद्धमिगत्ते बहुसो अडचीसु पयहविसमासु । वग्ध-12
हृदयेन चिन्तनीयं रत्ननिधिरेष उपसर्गः ।। ५५२ ।। किं जातं यदि मरणं अहं पकाकीह प्राणी । उथितोऽहं तिर्यकरये बहुश एकाक्यरण्ये | 31॥ ५५३ ।। उपित्वाऽपि जनमध्ये ब्रजत्येकाक्ययं जीवः । मुक्त्वा शरीरगृह मृत्युमुखाकर्पितः सन् ॥ ५५४ ॥ यथा बिभ्यति च |
जीवा विविधेभ्यो विभीपिकाभ्य एकाकिनः । तथा संसारगतैजीवविभीपिका अन्याः (सोळाः ) ॥५५५।। श्वापदभयामिभूतो बहुष्व
टवीषु निरभिरामासु । रथिक(सुरभि)हरिणमहिषशूकरखण्डितवृक्षच्छायासु ।। ५५६ ॥ गजगवयसगिगण्डकण्यापतरक्षाच्छभल्लचरितासु ।। 18गालकद्वीपिकसद्भावसंचारकीर्णासु ॥ ५५७ ।। मसगजेन्द्रनिपातितमिल्लपुलिन्द्रावकुण्टितवनासु (अटवीघु) । उपितोऽहं तिर्यक्त्वे भीपणे
संसारचारके ॥ ५५८ ॥ कचित् मुग्धमृगत्वे बहुशोऽटीपु प्रकृतिविषमासु । व्याप्रमुखापतितेन रसितमतिभीतहृदयेन ।।५५९।। कचिदति
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [५५९]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||५५९||
मुहावडिएणं रसियं अभीपहियएणं ॥५५९ ॥ १७९४ ॥ कत्था अइदुप्पिक्खो भीसणविगरालघोरवय-18 राणोऽहं । आसि महंविय वग्यो रुरुमहिसवराहविवओ ॥ ५६० ॥ १७९५ ।। कत्थइ दुविहिएहिं रक्खसवे
पालभूयरूवेहिं । छलिओ वहिओ य अहं मणुस्सजम्मम्मि निस्सारो॥५६१ ॥ १७९६ ॥ पयइकुडिलम्मि कधइ संसारे पाविऊण भूयतं । बहुसो उचियमाणो मएवि बीहाविया सत्ता ॥ ५६२॥१७९७ ॥ विरसं
आरसमाणो कत्थई रपणेसु घाइओ अहयं । सावयगहणम्मि वणे भयभीरू खुभियचित्तोऽहं ॥ ५६३ ॥ है॥१७९८ ॥ पत्तं विचित्तविरसं दुक्ख संसारसागरगएणं । रसियं च असरणेणं कयंतदंतंतरगएणं ॥५६४ ॥
॥ १७९९ ॥ तइया कीस न हायइ जीवो जइया सुसाणपरिविद्धं । भल्लुकिकंकवायससएसु ढोकिजए देह ॥ ५६५ ॥ १८०० ॥ तातं निजिणिऊणं देहं मुनूण वच्चए जीवो। सो जीवो अविणासी भणिओ तेलुकद
दीप अनुक्रम [५६०]
A4GROR
दुष्प्रेक्ष्यो भीषणविकरालपोरवदनोऽहम् । आसं महानपि च व्यायो रुरुमहिपवराहविद्रावकः ॥ ५६० ॥ कचिदुर्विहित राक्षसवैतालभू-| तरूपैश्चलितो हनचाहं मनुष्यजन्मनि निःसारः ।। ५६१ ।। प्रकृतिकुटिले कचित्संसारे प्राप्य भूतत्वं बहुश उद्विजन मयाऽपि भापिताः | सत्त्वाः ।। ५६२ ॥ विरसमारसन कचिदरण्येषु घातितोऽहम् । भापदगहने वने भयभीरुः क्षुब्धचित्तोऽहम् ॥ ५६३ ॥ पातं विचित्रबिरसं दुःख संसारसागरगतेन । रसित चाशरणेन कृतान्तदन्तान्तर्गतेन ॥५६४॥ तदा कथं न हीयते जीवो यदा (तस्य)श्मशानपरिविद्धः ।। शृगालकवायसशतेषु अढीक्यत देहः ॥ ५६५ ॥ तत्तं निर्जित्य देहं मुक्त्वा ब्रजति जीवः स जीवोऽविनाशी भणितत्रैलोक्यदर्शिभिः |
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [५६६]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
पइण्णय-
प्रत
मरणसमाही
सूत्रांक ||५६६||
॥१३५॥
सीहिं॥ ५६६ ॥ १८०१॥ तंजा ताव न मुच्चइ जीयो मरणस्स धियंतोऽवि । तम्हा मन न जुजइ दाऊण माग्भवभयस्स अप्पाणं ॥५६७ ॥ १८०२ ॥ एवमणुचिंतयंता सुविहिय! जरमरणभावियमईया । पार्वति कयप- चिन्तनं यत्ता मरणसमाहिं महाभागा ॥ ५६८ ॥ १८०३ ।। एवं भावियचित्तो संधारवरंमि सुविहिय! सपावि जीवस्याभावेहि भावणाओ यारस जिणवयणदिवाओ ॥ ५६९ ॥ १८०४ ॥ इह इत्तो चउरंगे चउत्थमग्गं (मंग) नाशा सुसाघम्मम्मि । वनइ भावणाओ पारसिमो वारसंगविज ॥५७०॥१८०५॥ समणेण सावएण य जाओ। | निचंपि भावणिज्जाओ । दसंवेगकरीओ विसेसओ उत्तमम्मि ।। ५७१ ॥ १८०६ ॥ पढम अणिचभावं
असरण एगयं च अन । संसारमसुभयायिय विविहं लोगस्सहावं च ॥५७२॥१८०७॥ कम्मस्स आसवं। |संवरं च निज्जरणमुत्तमे य गुणे । जिणसासणम्मि योहिं च दुल्लहं चिंतए महमं ॥ ५७३ ॥ १८०८ । सधट्टा-14 ॥ ५६६ ।। तद् यदि तावन्न मुच्यते जीवो मरणादुद्विजम्नपि । तस्मान्मम न युज्यते दातुं भयायात्मानम् ॥ ५६७ ॥ एवमनुचिन्तयन्तः सुविहित ! जरामरणभावितमतिकाः । प्राप्नुवन्ति कृतप्रतिज्ञा मरणसमाधि महाभागाः ॥ ५६८ ॥ एवं भावितचित्ताः संस्तारकवरे सुवि-12 हित! सदैव भावय भावना द्वादश जिनवचनदृष्टाः ॥ ५६९॥ इहेतश्चतुरङ्गे चतुर्थमार्ग सुसाधुधर्मे । वर्णयति भावना द्वादशार्य द्वादशावित् ।। ५७० ॥ श्रमणेन श्रावकेण च या नित्यमपि भावनीयाः । दृढसंवेगकारिण्यो विशेफ्त उत्तमार्थे ।। ५७१ ॥ प्रथममनित्यभावमशरणतामेकतां चान्यत्वम् । संसारमशुभतामपि च विविघं लोकस्वभावं च ।। ५७२ ॥ कर्मण आश्रवं संवरं च निर्जरणमुत्तमांश्च ॥१३५।। गुणान् । जिनशासने बोधि च दुर्लभां चिन्तयेन्मतिमाम् ॥ ५७३ ।। सर्वस्थानान्यशाश्वतानि इहापि देवलोके च । सुरासुरनरादीनां |
दीप अनुक्रम [५६७]
Jinnuadmimments
अथ दवादश-भावना: वर्णयते
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [५७४]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||५७४||
तणाई असासयाई इह चेव देवलोगे य । सुरअसुरनराईणं रिद्धिविसेसा सुहाई वा ।। ५७४ ॥ १८०९॥ माया-16
पिइहिं सहवहिएहिं मित्तेहिं पुत्तदारेहिं । एगयओ सहवासो पीई पणओऽविअ अणिच्चो ॥५७५॥१८१०॥
भवणेहिं व वणेहि य सपणासणजाणवाहणाईहिं । संजोगोऽवि अणिचो तह परलोगेहिं सह तेहिं ।। ५७६।।। C१८११ ।। बलबीरियरूवजोचणसामग्गीसुभगया वपूसोभा । देहस्स य आरुग्गं असासयं जीवियं चेवर M॥५७॥ १८१२॥ १ । जम्मजरामरणभए अभिहुए विविहवाहिसंतत्ते । लोगम्मि नत्थि सरणं जिणिंदवरसा-IA |सणं मुत्तुं ॥ ५७८ ॥ १८१३ ॥ आसेहि य हत्थीहि य पचयमित्तेहिं निश्चमित्तेहिं । सावरणपहरणेहि य बलवयमत्तेहिं जोहेहिं ॥ ५७९ ॥ १८१४ ॥ महया भडचडगरपहकरेण अधि चकवहिणा मच् । न य जियपुरो केणइ नीइयलेणावि लोगम्मि ॥ ५८०॥ १८१५ ॥ विविहेहि मंगलेहि य विज्जामंतोसहीपओगेहिं । नवि
दीप अनुक्रम [५७५]
ऋद्धिविशेषाः सुखानि च ॥ ५७४ ॥ मातापितृभिः सहवर्द्धितैमित्रैः पुत्रदारैः । एकतः सहवासः प्रीतिः प्रणयोऽपि चानित्यः ।। ५७५ ॥ भवनैर्वा बनध शयनासनयानवाहनादिभिः । संयोगोऽप्यनित्यस्तथा परलोकेऽपि सह तैः ।। ५७६ ।। बलवीर्यरूपयौवनसामग्रीसुभगताः वपुःशोभा । देहस्य चारोग्यमशाश्वतं जीवितं चैव ॥५७७॥ जन्मजरामरणभयैरमिते विविधव्याधिसंतप्त लोके नासित शरण जिनेन्द्रवरशासनं भुक्त्वा ।। ५७८ ॥ अश्वैश्च हस्तिभिश्च पर्वमित्रनित्यमित्रैः । सावरणप्रहरणैश्च बलवयोमत्तैयाँधः ॥५७९।। महत्ता भटकुन्दसमूहेनापि | चक्रवर्तिना मृत्युः । न च जितपूर्वः केनापि नीतियलेनापि लो के (मृत्युः) ॥५८०॥ विविधर्मङ्गलैश्च विद्यामनौषधिप्रयोगैश्व नैव शक्यतारयितुं |
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [५८१]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||५८१||
पइण्णय- सका तारे मरणा णघि रुपणसोएहिं ।। ५८१ ॥ १८१६ ॥ पुसा मित्ता य पिया सयणो पंधवजणो अ अत्थोअनित्या. दसए १०यम समस्या ताएउ मरणा सिंदाधि देषगणा ॥५८२ ॥ १८१७ ॥ सयणस्स प मजमगओ रोगामिह
ओ रणमरणस
किलिस्सह इहेगो । सपणोऽषिय से रोग न विरिंचह नेव नासेह ॥ ५८३ ॥ १८१८ ॥२। मज्मम्मि पंधवाणं कत्वानि माही इको मरह कलुणरुयंताणं । न य णं अनेति तओ बंधुजणो नेव दाराई ॥ ५८४ ॥ १८१९ ॥ इको करेह कम्म ॥१३६॥
फलमवि तस्सेको समणुहवह । इको जायइ मरद य परलोअं इकओ जाई ॥ ५८५॥ १८२० ॥ पत्तेयं पत्तेयं नियगं कम्मफलमणुहवंताणं । को कस्स जए सयणो? को कस्स व परजणो भणिओ ? ॥५८६॥१८२१॥ को केणी समजायइ को केण समं च परभवं जाई। को वा करेड किंची कस्स व को कं नियत्तेह ।।५८७॥१८२२॥ अणु-IA
दीप
Saked
अनुक्रम [५८२]
मरणान्नैव प रुग्णश्रोतोभ्यः (रुवितशोकैः) ॥५८१।। पुत्राः मित्राणि च पिता खजनो बान्धवजनोऽर्थश्च । न समर्थास्वातुं मरणात्सेन्दा अपि देवगणाः ।। ५८२ ।। स्वजनस्यापि मध्यगतो रोगाभिहतः क्लिश्यते इहैकः । स्वजनोऽपि च तस्य रोगं न विभजति नैव नाशपति ।।५८३।। बान्धवानां मध्ये एको म्रियते करुणं रुदताम् । न चैनमन्वेति सको बन्धुजनो नैव च दाराः ॥ ५८४ ॥ एकः करोति कर्म फलमपि | तस्यैककः समनुभवति । एको जायते म्रियते च परलोकमेकको याति ।। ५८५ ॥ प्रत्येकं २ निजकं कर्मफलमनुभवता कः कस्य लगति द | स्वजनः ? को वा कस्य परजनो भणितः १ ॥५८६॥ कः केन समं जायते ? कः केन समं च परभवं याति! । को वा करोति किचित् कस्यापि च कः कं निवर्तयति ।। ५८७ ॥ अनुशोपत्यन्यजनमन्वभवान्तरगवं तु बाटजनः । नैव शोचन्त्यात्मानं हिश्यन्तं भवसमुद्रे
॥१३६ ॥
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आगम
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [५८८]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||५८८||
सोअइ अपणजणं अन्नभवंतरगयं तु बालजणो। नवि सोयह अप्पाणं किलिस्समाणं भवसमुदे ॥५८८
॥१८२३॥ । अन्नं इमं सरीरं अन्नोऽहं बंधवाविमे अन्ने । एवं नाऊण खमं कसलस्स न तं खम काउं? ॥५८९॥1॥ 81॥१८२४॥ ४। हा! जह मोहियमहणा सुग्गामागं अजाणमाणेणं । भीमे भवकतारे सुचिरं भमियं भपकरम्मि||
॥५९० ॥ १८२५ ।। जोणिसयसहस्सेसु य असई जायं मयं वाणेगासु । संजोगविप्पओगा पत्ता दुक्खाणि य यहूणि ॥ ५९१ ॥ १८२६ ॥ सग्गेसु य नरगेसु य माणुस्से तह तिरिक्खजोणीसुं । जायं मयं च बहुसो|
संसारे संसरंतेणं ॥ ५९२ ॥ १८२७ ॥ निम्भवणावमाणणवहबंधणरुंधणा धणविणासो । णेगा य रोगदूसोगा पत्ता जाईसहस्सेसुं ॥ ५९३ ॥ १८२८ ॥ सो नत्थि इहोगांसो लोए वालग्गकोडिमित्तोऽवि । जम्म
णमरणायाहा अणेगसो जत्थ न य पत्ता ॥ ५९४ ॥१८२९ ॥ सवाणि सबलोए रूवी दवाणि पत्तपुवाणि ।
दीप अनुक्रम [५८९]
।।५८८।। अन्यदिदं शरीरं अन्योऽहं वान्धवा अपीमेन्ये । एवं क्षमं ज्ञात्वा कुशलस्य तत्कर्तुं क्षमं न ॥५८९॥ हा! यथा मोहितमतिना | सुगतिमार्गमजानता । भीमे भवकान्तारे सुचिरं भ्रान्तं भवरे ॥ ५९॥ योनिशतसहस्रेषु चासकृत् जातं मृतं वाऽनेकासु जातिषु ।। संयोगविप्रयोगाः प्राप्ता दुःखानि च बहूनि ।। ५९१ ।। स्वर्गेषु च नरकेषु च मानुष्ये तथा तिर्यग्योनिषु । जातं मृतं च बहुम्नः संसारे | संसरता ।। ५९२ ।। निर्भर्त्सनाऽपमाननवधवन्धनरोधा धनविनाशः । अनेके घ रोगशोकाः प्राप्ता जातिसहस्रेषु ॥ ५९३ ।। स नास्ती-| हायकाशी लोके वालाप्रकोटिमात्रोऽपि । जन्ममरणावाधा अनेकशो यत्र न प्राप्ताः ।।५९४|| सर्वाणि सर्वलोके रूपिद्रव्याणि प्राप्तपूर्वाणि ।।
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------- मूलं [५९५]-------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||५९५||
*ॐॐ
पइण्णय- देहोरक्खरपरिभोगयाइ दुक्खेसु य बर्सुं ॥ ५९५ ॥ १८३० ॥ संबंधिबंधवत्ते सवे जीवा अणेगसो ममं अन्यत्वदसए १०1बिबिहवहवेरजणया दासा सामी य मे आसी ॥५९६ ॥१८३१ ॥ लोगसहावो धीधी जत्थ व माया मया 21 संसारी मरणस- हवइ घूया । पुत्तोऽवि य होह पिया पियावि पुत्तत्तणमुवेइ ॥ ५९७ ॥ १८३२ ॥ जत्थ पियपुत्तगस्सवि माया| अशुभता माही छाया भवंतरगयस्स । तुट्ठा खायइ मंसं इसो किं कट्टयरमन्नं ? ॥ ५९८ ॥ १८३३ ॥धी संसारो जहियं जुवा
हाणओ परमरूवगवियओ । मरिऊण जायह किमी तस्थेव कलेवरे नियए ॥ ५९९ ॥ १८३४ ॥ बहुसो अणुभू॥१३७॥
याई अईयकालम्मि सातुक्खाई । पाविहिड पुणो दुक्खं न करेहिह जो जणो धम्मं ।। ६०० ॥ १८३५ ॥५॥ धम्मेण विणा जिणदेसिएण नन्नत्थ अस्थि किंचि सुहं । ठाणं वा कज्ज वा सदेवमणुयासुरे लोए । ६०१॥ ॥ १८३६ ।। अत्धं धम्म कामं जाणि च कजाणि तिनि मिच्छति । ज तत्व धम्मकर्ज तं सुभमियराणि असु. | देहोपस्करपरिभोगतया दुःखेषु च बहुपु ।। ५९५ ।। सम्बन्धिबान्धवत्वे सर्वे जीवा अनेकशो मम । विविधवधरजनका दासाः स्यामि|नश्च मे आसन् ।। ५५६ ॥ लोकसभा धिग् धिग् यत्र च माता मृता भवति दुहिता । पुत्रोऽपि च भवति पिता पिताऽपि पुत्रत्वगुपयाति ॥५९७।। यत्र प्रियपुत्रस्यापि माता छायया भवान्तरगतस्य । तुष्टा खादति मांस किमितोऽन्यत्कष्टकरम् ॥५९८॥ धिक् संसार || यत्र युवा परमरूपगर्वितः । मृत्वा जायते कृमिस्तत्रैव कलेवरे निजके ॥ ५९९ ॥ बहुशोऽनुभूतान्यतीतकाले सर्वदुःखानि । प्राप्स्यति | पुनर्तुःखं न करिष्यति यो जनो धर्मम् ।। ६०० ॥ धर्मेण विना जिनदेशितेन नान्यत्रास्ति किञ्चित्सुखम् । स्थानं वा कार्य वा सदेवमनु- ॥१३७॥ जासुरे लोके ।। ६०१ ॥ अर्थ धर्म कामं यानि च कार्याणि त्रीणि इच्छन्ति । यत्तत्र धर्मकार्य तच्छुभमितरे अशुभे ।। ६०२ ॥
दीप अनुक्रम [५९६]
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आगम
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सूत्रांक
||६०२||
दीप
अनुक्रम [६०३ ]
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [६०२]--
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
Jan Enema
भाणि ॥ ६०२ ।। १८३७ ॥ आयासकिलेसाणं वेराणं आगरो भयकरो य । बहुदुक्खदुग्गइकरो अत्थो मूलं अणस्थाणं || ६०३ || १८३८ ॥ किच्छाहि पाविडं जे पत्ता वहुभय किलेस दोसकरा । तक्खणसुहा बहुदुहा संसारविषद्धा कामा ||६०४ || १८३९ || ६ | नत्थि इहं संसारे ठाणं किंचिवि निरुवदुयं नाम । ससुरासुरेसु मणुए नरपसु तिरिक्खजोणीसुं ।। ६०५ || १८४० ।। बहुदुक्खपीलियाणं महमूदाणं अणप्पवसगाणं । तिरियाणं नत्थि सुहं नेरयाणं कओ चेव ? ।। ६०६ ।। १८४१ ॥ हयगन्भवास जम्मणवा हिजरामरणरोगसोगेहिं । अभिभूए माणुस्से बहुदोसेहिं न सहमत्थि ॥ ६०७ ॥। १८४२ ॥ मंसट्टियसंघाए मुत्तपुरीसभरिए नवच्छिदे । असुरं परिस्सर्वते सुहं सरीरम्मि किं अस्थि ? ॥ ६०८ ।। १८४३ ॥ इहजणविप्पओगो चवणभयं चैव देवलोगाओ। एयारिसाणि सग्गे देवावि दुहाणि पाविंति ॥ ६०९ | १८४४ ॥ ईसाविसायमयकोहलोहदोसेहिं आयासक्केशानां वैराणामाकरो भयंकरच । बहुदुःखदुर्गतिकरो मूलमर्थोऽनर्थानाम् ||६०३ ॥ कृच्छ्रः प्रातुं यान् (शक्यं ये च प्राप्ता बहुभयठ्ठेशदोषकराः । तरक्षणमुखा बहुदुःखाः संसारविवर्द्धनाः कामाः || ६०४ ॥ नास्तीह संसारे स्थानं किञ्चिदपि निरुपद्रुतं नाम । ससुरासुरेषु मनुजेषु नरकेषु तिर्यग्योनिषु च ।। ६०५ ॥ बहुदुःखपीडितानां मतिमूढानामनात्मवशानाम् । तिरयां नास्ति सुखं नैरयिकाणां कुतश्चैव ||६०६ ॥ इतगर्भवासजन्मव्याधिजरामरणरोगशोकैः । अभिभूते मानुध्ये बहुदोपैर्न सुखमस्ति || ६०७ || मांसास्थिसंघाते मूत्रपुरीषभूते नवच्छिद्रे । अशुचि परिभवति शुभं शरीरे किमस्ति ? || ६०८ ।। इष्टजनविप्रयोगश्ववनभयं चैव देवलोकात् । एतादृशानि स्वर्गे देवा अपि दुःखानि प्राप्नुवन्ति ।। ६०९ ।। ईर्ष्याविपादमदक्रोध लोभेदोपैरेवमादिभिः । देवा अपि च समभिभूतास्तेष्वपि च कुतः सुखमस्ति ?
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [६१०]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||६१०||
पइक्य- एक्माईहिं । देवावि समभिस्या तेसुविप को मुहं अधि? ॥६१०॥ १८४५॥ ७। एरिसयदोसपुण्णे खुत्तोलोकस्व
संसारसायरे जीवो। वाइचिरं किलिस्सहतं आसवहेजअं सई ॥ ६११ ॥ १८४६ ॥ रागोसपमत्तो इंदि- भावाश्रयी मरक्स- यवसओ करेइ कम्माई । आसवदारेहिं अधिगुहेहिं सिविहेण करणेणं ।।६१२॥ १८५७ ॥ धिधी मोहो जेणिह माई हियकामो खलु स पावमायरइ । नहु पावं हवह हियं विसं जहा जीवियस्थिरस ॥ ६१३॥१८४८ ॥ रागस्म
य दोसस्स य घिरत्थु जं नाम सदहतोऽवि । पावेसु कुणइ भावं आउरविजय अहिएK ॥ ६१४ ॥ १८४९॥ लोभेण अहव घत्यो कजं न गणेइ आयअहियपि । अइलोहेण विणस्सह मच्छुछ जहा गलं गिलिओ ॥६१५॥ ॥१८५०।। अत्थं धम्म कामं तिपिणवि बुद्धो जणो परिचयह। ताई करेह जेहि उ (न) किलिस्सह इहं परभवे य 1॥६१६ ॥ १८५१ ॥ हुँति अजुत्तस्स विणासगाणि पंचिंदियाणि पुरिसस्स । उरगा इव जग्गविसा गहिया
॥१४॥
दीप अनुक्रम [६११]
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६१० ॥ ईटगदोषपूर्ण मनः संसारसागरे जीवः । यदतिचिरं हिश्यति तदाअवहेतुकं सर्वम् ।। ६११ ।। रागद्वेषप्रमत्त इन्द्रियब-18 शगः करोति कर्माणि । आश्रयद्वारैरविगृहितैसिविधेन करणेन ॥ ६१२ ॥ धिग् धिग् मोहं येनेट् हितकामः खलु स पापमाचरति । नैव पापं भवति हितं विपं यथा जीवितार्थिनः ॥ ६१३ ॥ रागं च द्वेषं च धिगस्तु यन्नाम प्रधानोऽपि । पापेषु करोति भावमातुरवैद्य | वाहितेषु ॥६१४॥ लोभेनाथवा प्रस्तः कार्य न गगवति आत्माहितमपि । अतिलोभेन विनश्यति मत्स्य इव यथा गर्ल गिलितः ॥६१५ अर्थ धर्म काम त्रीनपि बुधो जनः परित्यजति । तानि करोति यैस्तु (न) विश्यतीह परभवे च ॥६१६॥ भवन्त्ययुक्तस्य विनाशकानि पञ्चे
॥१३८॥
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [६१७]----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||६१७||
मतोसहीहि विणा ।। ६१७ ॥ १८५२ ॥ आसवदारेहि सया हिंसाईएहि कम्ममासवइ । जहनावाइ विणासो छिदेहि जलं उयहिमज्झे ।। ३१८॥१८५३ ॥८। कम्मासवदाराई निरंभियबाई इंदियाई च । इंतहा य फसाया | तिविहंतिविहेण मुक्खत्धं ॥ ६१९ ॥ १८५४॥ निग्गहिय कसाएहिं आसवा मूलओ हया हुंति । अहियाहारे| || मुके रोगा इव आउरजणस्स ॥ ६२० ॥ १८५५ ॥ नाणेण य प्राणेण पतवोयलेण य पला निमंति। इंदि
यविसयकसाया धरिया तुरगा व रज्जूहि ॥ ६२१ ॥ १८५६ ॥ हुंति गुणकारगाई सुपरहिं धणियं नियमिपाई । नियगाणि इंदियाई जइणो तुरगा इव सुदंता ।। ६२२ ॥ १८५७ ॥ मणवयणकापजोगा जे भणिया X करणसणिया तिषिण । ते जुत्तस्स गुणकरा हंति अजुत्तस्स दोसकरा ॥ २३ ॥ १८५८ ॥ जो सम्म भूयाई
दीप अनुक्रम [६१८]
न्द्रियाणि पुरुषस्य । उरगा इवोपविषाः मौषधिभिर्चिना गृहीताः ॥ ६१७ ॥ आश्रवद्वारैः सदा हिंसादिकैः कर्माश्रवति । यथा नायो। विनाशश्छिद्रैरुदधिमध्ये जलमाश्रवन्त्याः (तथाऽऽअवैर्जीवस्य) ।।६१८॥ कर्माश्रवद्वाराणि निरोद्धव्यानीन्द्रियाणि च । हन्तव्याश्च कषायात्रिविधत्रिविधेन मोक्षार्थम् ॥६१९॥ निगृहीतेषु कषायेषु आश्रवा मूलतो हवा भवन्ति । अहिताहारे मुक्त रोगा इवातुरजनस्य ।। ६२०॥ झानेन च ध्यानेन प तपोषलेन च बैलानिरुध्यन्ते । इन्द्रियविषयकपाया घृतास्तुरगा इव रजभिः ।। ६२१ ॥ भवन्ति गुणकारकाणि | | श्रुतरजुभिरत्यर्थ नियमितानि । निजकानीन्द्रियाणि यतेस्तुरगा इव सुदान्ताः ॥ ६२२ ॥ मनोवचनकाययोगा ये भणिताः करणसंशितात्रयस्ते । युक्तस्य गुणकरा भवन्त्ययुक्तस्य दोषकराः ॥ ६२३ ॥ यः सम्यग् भूतान् पश्यति भूतांचात्मभूतान् कर्ममसेन न लिप्यते स संवृतानवद्वारः |
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [६२४]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत
सूत्रांक ||६२४||
....... ... सया ।। ५९४ ॥ १८५९॥ ५। घण्णा सससवरनिजदसए १०हियाई सुगंति धण्णा वरंति सुणियाई । घण्णा मुरगइरागं मरंति घण्णा गया सिदिं ।। ६२५ ॥ १८६०॥ राबोधिमरणस-धिपणा कलत्तानियलेहि विषमुका सुसत्तमजुत्ता । वारीओच गयवरा घरवारीमोवि निफिडिया ॥ ६२६॥ दुर्लभमाही ॥१८६१ ॥ धण्णा (उ) करति तवं मंजमजोगेहि कम्ममढविहं । तवसलिलेणं मुणिणो धुणंति पोराणयं कम्मल भावनाः
॥६२७ ॥ १८६२ ॥माणमथथायमाहिओ सीलुटिओतवो मओ अग्गी । संसारकरणषीयं दहा वग्गी व तणरासिं ।। ६२८ ।। १८६३ ॥ १०॥ इणमो सुगइगाहो मुसिओ उक्खिओ य जिणवरेहिं । ते धन्ना जे एवं पहमणयज पयजति ॥ १२ ॥ १८६४ ॥ जाहे य पावियन इह परलोए य होह कल्लाणं । ता एवं जिणकहियट पडियजा भावओ धम्मं ।। ६३० ।। १८६५ ॥ जह जह दोमोचरमो जह जह विसएसु होइ वेरंग्गं। तह तह
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दीप अनुक्रम [६२५]
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॥ ६२४ ।। धन्याः सच्चा हिनानि शृण्वन्ति धन्याः कुर्वन्ति भूतानि धन्याः सुगतिमार्गः (यथा नथा) नियन्ते धन्या गताः सिद्धिम् ।। ६२५।। धन्याः कलत्रनिगवेभ्यो विषमुकाः मुमत्वसंयुक्ताः । वारीभ्य व गजवराः गृहवारीनो निम्फिदिताः ।। ६२६ ।। धन्यास्तु कुर्वन्ति तपः | संयमयोगः काष्टविधम (मणावि) । तपासलिलेन मुनयो धुन्वन्ति पौराणिक कर्म ।। ६२७॥ ज्ञानमयवातसहितं शीलोज्वलं तपो मतोऽग्निः । संसारकरणयीज दहति दयानिवि तृणराशिम ॥६२८।। अयं मुगतिगमनपयः सुदेशित उत्मिनश्च जिनवरैः। ते धन्या ये एनं पन्थानमनवयं |
IN ॥१३९॥ छाप्रपद्यन्ते ।। ६२५ ।। यदा च प्राप्तव्यमिह परलोके च भवति कल्याणम् । तहानं जिनकथितं प्रतिपद्यते भावतो धर्मम् ।। ६३० ॥ यथा
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आगम
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"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [६३१]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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सूत्रांक ||६३१||
विजाणयाहि आसन्नं से पर्य परमं ॥ ६३१॥ १८६६ ॥ ११॥ दुग्गो भवकतारे भममाणेहिं सुचिरं पणटेहिं ।। दिट्टो जिणोवदिट्टो सुग्गइमग्गो कहवि लदो ॥ ६३२ ॥ १८६७ ॥ माणुस्सदेसकुलकालजाइइंदियबलोबयाणं |
च । विन्नाणं सद्धा दंसणं च दुलहं सुसाहणं ।। ६३३॥१८३८ ॥ पत्तेमुवि एएसुं मोहस्सुदएण दुल्लहो सुपहो। द्र कुपहबहुपत्तणेण य विसयनुहाणं च लोभेणं ॥ ६४ ॥ १८६९॥ सो य पहो उबलद्धो जस्स जए बाहिरो
जणो बहुओ । संपत्तिच्चिय न चिरं तम्हा न खमो पमाओ भे ॥ ६३५ ॥ १८७० ॥ जह जह ढप्पइपणो |CI सभणो वेरग्गभावणं कुणइ । तह तह असुभं आयवहयं व सीयं खयमुवेइ ।। ६३६ ॥ १८७१ ॥ एगअहोरत्तेगवि दढपरिणामा अणुसरं जंति। कंडरिओ पुंडरिओ अहरगईउद्दगमणेमुं ॥ ६३७ ॥ १८७२ ॥ १२॥ पारसवि | भावणाओ एवं संखेबो समत्ताओ । भावमाणो जीयो जाओ समुवेइ धेरगं ॥ ६३८॥ १८७३ ।। यथा दोपोपरमो यथा यथा विषयेषु भवति वैराग्यम् । तथा २ विजानीहि आसन्नमय पदं परमम् ॥ ६३१ ।। भवकान्तारे भ्रायद्भिः सुचिरप्रणष्टैर्दष्टो दुर्गा जिनोपदिष्टः सुगतिमार्गः कथमपि च लब्धः ।। ६३२ ॥ मानुष्यदेशकुलकालजातीन्द्रियवलोपचयाश्च विज्ञानं श्रद्धा सुसाधूनां दर्शनं च दुर्लभम् ॥ ६३३ ॥ प्रामप्वषि एतेषु मोहस्योदयेन दुर्लभः सुपथः । कुपथबहुत्वेन च विषयसुखानां च | पालोभेन ॥६३४॥ स च पन्थाः उपलब्धो यस्माजगति यायो जनो बहुकः । संप्नाप्तोऽपि न चिरं तस्मान्न क्षमः प्रमादो भवताम् ।। ६३५ ।।
यधा यथा दृढप्रतिज्ञः श्रमणो वैराग्यभावनां करोति तथा तथाऽभमानपहतमिव शीतं क्षयमुपयाति ।। ६३६ ।। एकेंनाहोरानेणापि दृढपरिणामा अनुत्तरं यान्ति । कण्डरीकः पुण्डरीकः (च) अथमगत्यूइंगमनयोः(ज्ञाते) ॥६३८॥ द्वादशापि भावना एवं संक्षेपतः समानाः ।।
4-30-3500-54-%
दीप
अनुक्रम [६३२]
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
----------------- मल [६३९]------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
धर्मखा
ख्यातता
प्रत
विशेषेणा
शरणता
सूत्रांक ||६३९||
पाइण्णय- भाविज भाषणाओ पालिज वपाई रयणसरिसाई । पडिपुण्णपावखमणे आरा सिर्दिपि पावहिसि ॥४९ दसए १० Iom१८७४|| कत्थइ सुहं सुरसमं कत्था निरओवमं हवा दुक्खं । कत्था तिरियसरित्यं माणुसजाई बहुविचित्ता मरणस- ॥ ६४०॥ १८७५ ॥ ददणवि अप्पसुहं माणुस्सं गदोस (सोग) संजुक्तं । सुषि हियमुबाई कन मुणे माही मूढजणो ।। ६४१ ॥ १८७६ ॥ जह नाम पट्टणगओ संते मुल्लमि मूदभावेणं । न लहंति नरा लाई माणुसभावं
तहा पत्ता ।। ६४२ ॥१८७७।। संपत्ते पलविरिए सम्भावपरिक्खणं अजाणता । म लहंति बोहिलाभ दुग्गा ॥१४॥
मग्गं च पापंति ॥ ६४३ ॥ १८७८ ॥ अम्मापियरो भाया भजा पुसा सरीर अस्थो य। भवसागरंमि चोरे न पति ताणं च सरणं च ॥ ६४४ ॥ १८७९ ॥ नवि माया नविय पिया न पत्तदारा न चेव बंधुजणो। नविप साधणं नवि धनं दुक्खमुइन्नं उसमेति ॥ ६४५ ॥१८८०॥ जइया सयणिज्जगओ दुक्खसो सपणवंधुपरिर भावयन् जीवो याः समुपयाति वैराग्यम् ॥ ६३८ ॥ भावयेः भावनाः पालयेः प्रतानि रनसदृशानि । प्रतिपूर्णपापक्षपणानि अधि
रात्सिद्धिमपि प्राप्स्यसि ।। ६३९ ॥ कचित् सुखं सुरसमं कचिन्निरयोपमं भवति दुःखम् । कचित्तिर्यसदृशं मनुष्यजातिवहुविचित्रा Mu६४० ॥ राऽप्यल्पमुखं मानुष्यं नैकदोषसंयुक्तम् । सुष्ट्रपि हिलमुपविष्ट कार्य न जानाति मूढजनः ॥ ६४१॥ यथा नाम पत्तनगतः
सति मूल्ये मूढभावेन । न लभते नरा लाभं मनुष्यभावं तथा प्राप्ताः ॥ ६४२ ॥ संभाप्ते बळवीर्य सद्भावपरीक्षणमजानानाः । न लभन्ते
बोधिलाभं दुर्गतिमार्ग च प्राप्नुवन्ति ॥६४३॥ मातापितरौ भ्राता भार्या पुत्राः शरीरमर्यश्च । भवसागरे घोरे न भवन्ति त्रागं च शरणं X ॥६४४॥ नैव माता नैव च पिता न पुत्रदारा नैव च बन्धुजनः । नैव प धनं नैव च धान्यं दुःसमुदीर्णमुपशामयन्ति ॥६४५।। यदा शाय
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दीप अनुक्रम [६४०]
अथ पंडितमरण' दर्शयित्वा पश्चात् उपसंहार: क्रियते
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [६४६]--------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
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प्रत सूत्रांक ||६४६||
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हीणो । उपत्तइ परियत्तइ उरगो जह अग्गिमझमि ।। ६४६ ॥ १८८१ ॥ अमुह सरीरं रोगा जम्मणसयसा-|| हणं छुहा तण्हा । उहं सीयं वाओ पहाभिघाया यऽणेगचिहा ।। ६४७ ॥ १८८२ ॥ सोगजरामरपाई परिस्समो दीणया य दारिदं । तय पियविष्पओगा अप्पियजणसंपओगा य ॥ ६४८ ॥ १८८३ ॥ एयाणि य अण्णाणि य माणुस्से बहुविहाणि दुक्खाणि । पञ्चक्खं पिक्खंतो को न मरह तं विचिंतंतो? ॥६४९॥१८८४॥ लणवि माणुस्सं सुदुल्लहं केइ कम्मदोसेणं । सायासुहमणुरता मरणसमुद्देऽवगाहिति ॥ ६५० ॥ १८८५ ॥ | तेण च इहलोगसुहं मोत्तूर्ण माणसंसियमईओ। विरतिक्खमरणभीरू लोगसुईकरणदोगुंगी ॥५१॥१८८६॥ दारिद्ददुक्खवेयणबहुविहसीउहखुप्पिवासाणं । अरईभयसोगसामियतकरदभिक्खमरणाई ॥५२॥१८८७
एएसिं तु दुहाणं जं पडिवक्खं सुहंति तं लोए। जं पुण अचंतसुहं तस्स परुक्खा सया लोपा ॥ ६५३ ॥ ॥ नीवगतो युःखाः स्वजनबन्धुपरिहीनः । वर्तते परिवर्तते उरगो यथाऽग्निमध्ये ॥ ६४६ ॥ अशुचि शरीरं रोगा जन्मशतसाधनं 12 र क्षुत्तृष्णा । उज्यं शीतं वातः पध्यभिघावाश्चानेकविधाः ॥ ६४७ ॥ शोकजरामरणानि परिश्रमो दीनता च दारिद्यम् । तथैव प्रियविप्रयोगा। के अप्रियजनसंप्रयोगाश्च ।।६४८॥ एतानि चान्यानि च मानुष्ये बहुविधानि दुःखानि प्रत्यक्षमीक्षमाणः को न म्रियते तद्विचिन्तयन् ॥६४९०
लभ्वाऽपि मानुष्यं मुदुर्लभं केचित्कर्मदोषेण । सातसुखानुरक्ता मरणसमुद्रमवगाहन्ते ।। ६५० ।। तेनैवेहलोकसुखं मुक्त्वा मानसंश्रितमपातिकः । विरतिक्षमरणभीरुलोकश्रुतिकरणजुगुप्सी ॥ ६५१ ॥ दारिद्यदुःसवेदना बहुविधशीतोष्णक्षुत्पिपासाः । अरतिभयशोक
वामितरफरदुर्भिक्षमरणानि ।। ६५२ ॥ एतेषां तु दुःखानां यः प्रतिपक्षस्तलोके सुखमिति । यत्पुनरत्यन्तमुखं तस्य परोक्षाः सदा 31
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दीप अनुक्रम [६४७]
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आगम
(३३)
"मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------------------- मूलं [६५४]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||६५४||
पदण्णय- १८८८ ॥ जस्स न छुहा ण तण्हा नय भीउण्हं न दुक्खमुषिटं । न य असुइय सरीरं तस्सऽसणाईसु किंमो दसए १०कनं? ॥ ६५४ ॥ १८८९॥ जह निंबदुमुप्पन्नो कीडो कडयंपि मन्नए महुरं । तह मुक्खमुहपरुक्खा संसारदुहं अपूर्वना मरणस- सुहं पिंति ॥ ६५५ ॥ १८९० ॥ जे कडयदुमुप्पन्ना कीडा बरकप्पपायवपरुक्खा । तेर्सि विसालवल्ली विसं व माही सग्गो य मुक्खो य ।। ६५६ ॥ १८९१ ॥ तह परतित्थियकीडा बिसयविसंकुरविमूढदिट्ठीया । जिणसास
णकप्पतरूबरपासक्खरसा किलिस्संति ॥ ६५७ ॥ १८९२ ॥ तम्हा सुक्यमहातरुसासयसिवफलयसुक्खसत्तेणं । मोत्तूण लोगसपणं पंडियमरणेण मरिया ॥ ६५८ ॥ १८९३ ।। जिणमयभाषिअचित्तो लोगसुईमलविरेपणं कार्ड । धम्ममि तओ झाणे सुक्के य मई निवेसेह ॥ ६५९ ॥ १८९४ ।। सुणह-जह जिणवयणामय (रस)
॥१४॥
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दीप अनुक्रम [६५५]
लोकाः ।। ६५३ ।। यस्य न क्षुत् न तृद्द न च शीतोष्णं न दुःखमुत्कृष्टं । न चाशुचिकं शारीरं नस्याशनादिभिः कि कार्यम् ? ।। ६५४ ॥ यथा निम्बद्मोत्पन्नः कीटः कटुकमपि मन्यते मधुरम् । तथा परोक्षमोक्षसुखाः संसारदुःखं सुखं युवते ॥६५५॥ ये कटुकटुमोत्पन्नाः कीटाः | परोक्षवरकल्पपादपाः । तेषां विशाल(सुख)वही विषवत्स्वर्गध मोक्षश्च ।। ६५६॥ तथा परतीर्थिककीटा विषयविषाङ्करबिमूढष्टिकाः । परोअजिनशासनकरूपतरुवररमाः हिश्यन्ति ॥६५७॥ तस्मात्सौख्यमहातरुशाश्वतशिवफलकसौख्यसक्तेन(जीवेन)। मुक्त्वा लोकसां पण्डितमरणेन मर्त्तव्यम् ॥ ६५८ ॥ जिनमतभावितचित्तो लोकधुतिमलविरेचनं कृत्वा । धयें ततो ध्याने शुळे च मति निवेदायेन् ।। ६५९।।। शृणुत-यथा जिनवचनामृतरसभावितहदयेन ध्यानव्यापारः । करणीयः श्रमणेन यद् ध्यानं ये(ते) ध्यातव्यम् ॥ ६६० ॥
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॥१४॥
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आगम
(33)
प्रत
सूत्रांक
||६६०||
दीप
अनुक्रम
[६६१]
भाग
27
“मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया)
मूलं [ ६६०] ---
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र [३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया
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भावियहियण झाणवावारो। करणिजो समणेणं जं झाणं जेसु झापहं ॥ ६६० || १८९५ ॥ इति संलेहणासुयं । एयं मरणविभत्तिमैरणविसोहिं च नाम गुणरयणं । मरणसभाही तइयं संलेहसूयं चत्थं च ।। ६६१ ।। १८९६ ।। पंचम भत्तपरिण्णा छ आउरपचक्खाणं च सत्तम महपञ्चवाणं अट्टम आराहणपइष्णो ।। ६६२ ।। १८९७ ।। इमाओ अट्ट सुधाओ भावा उ गहियंमि लेस अत्थाओ । मरणविभक्ती रहयं बिय नाम मरणसमाहिं च ॥ ६६३ ।। १८९८ ।। इति सिरिमरणविभत्तीपइण्णयं संमत्तं ॥ ८ ॥ इति संलेखना श्रुतम् ॥ ॥ इति श्रीमरणविभक्तिप्रकीर्णकं समाप्तम् ॥ १० ॥
एतत् मरणविभक्तिः मरणविशोधिश्च नाम गुणरत्रम् । मरणसमाधिस्तृतीयं संलेखना श्रुतं चतुर्थ च ॥ १ ॥
पञ्चमं भक्तपरिक्षा मातुरप्रत्याख्यानं च सप्तमं महाप्रत्याख्यानं अष्टममाराधनाप्रकीर्णकम् ॥ २ ॥ एतेभ्योऽभ्यः श्रुतेभ्यो भावेनावगृद्यार्थलेशम् । मरणविभक्ती रचिता द्वितीयं नाम मरणसमाधिः ॥ ३ ॥ इति श्रीमरणसमाधिः ॥
इति श्री शरणादि मरणसमाध्यन्तं प्रकीर्णकदशकं समाप्तिमगमत् wwwwwwwwwwwimm
इति श्री आगमोदय समितिग्रन्थोद्वारे ग्रन्थांकः ४६.
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मरणसमाधि-प्रकीर्णकसूत्र [१०] मूलं एवं संस्कृतछाया: परिसमाप्ता:
मूल संशोधकः सम्पादकश्च पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब किंचित् वैशिष्ट्य समर्पितेन सह पुनः संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागरजी [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि]
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| श्री निशीथ (छेदसूत्रम्-१)
[38]
नमो नमो निम्मलदंसणस्स
पूज्य श्रीआनंद-क्षमा ललित- सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः
“निशीथ” मूलं
[मूलं एव]
[आद्य संपादकश्री]
पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.
(किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह )
पुन: संकलनकर्ता→ मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि)
'सवृत्तिक- आगम-सुत्ताणि' श्रेणि भाग-२७
28/07/2017, शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल ५
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आगम (३४)
“निशीथ” – छेदसूत्र-१ (मूल) ---------- उद्देश: [१] ------------------------ ------------- मूलं [१] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [१] "निशीथ" मूलं
श्रीनिशीथसूत्र-भाषा र
भाष्ये पीठिकागाथाः १८६ प्रतिमाः १०' जे भिक्खू इत्यकम्मं करेड करतं या साइजइ ५५१ राजे मिक्सू अगादाणं कद्वेण वा कलिला माला
नगाए वा संचालन संचालन सा. ५८६ ॥राजे-संबाहेज वा पलिमदेन वा संवाईत वा पलिमईत वा सा०1३/जे. तेण वा पएण मा बसाए वा नपणीएण वा अभंगज या मक्खेज बा अभंगतं मक्खतं वा सा.॥४॥ जे०ककेग बालोदेण वा पडमचुणेण वाहाणेण वा सिगाणेण वा चुण्णेहि वा गणेहि वा उबहेड वा परिवहन वा उपहुन मा परिवहतं वा सा.1५ जेसीओदगनियटेण या उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पपोएन वा उच्होल वा पोवंत बासा ।जे. निचलेड वा निच्छति का
प्रत
सूत्राक
|
अनुक्रम
सााजे जिग्या जिग्पतं वा सा० ५९०'बाजे. अन्नयरंसि अचिसि सोयंसि अणुपयेसेत्ता सुकपोग्गले निग्माया निग्यायंत या सा० १६०३।९। जे भिक्ख सचित्त. पइद्वियं गं जिग्पा जिग्यतं वा सा. ६०८।१०।जे मिक्खू पयमा वा संकर्म वा अवलंब या '६१९।११।जे दगवीणियं '६२९।१२। जेसिकगं वा सिकगणंतर्ग वा '६४१।१३। जे० सोचियं वा रज़र्य वा चिलिमिर्षि वा '६५१।१४॥ जे० सूईए।१५। पिप्पलास्स ।१६। नइच्छेयणगस्त ।१७। कण्णासोहनगरस उत्तरकरणं अम्नउत्थिएणं बा गारस्थिएन वा का कारण वा सा'६६५१वाजे अन्नहाए सूई । १९। पिप्पलग ।२०। नहुच्छेयणग।२१। कृष्णसोहण जाया जायत वा सा. '६५८॥२२जे मिक्स अविहीए सूई जाब जाया जायंत वा सा.'६६०२३.२६ जे मिक्खू बप्पणो एमरस बहाए सूई जाइत्ता अन्नमन्नस्स अगुपदेड अणुपदेत पा सा ।२७-३01 जे मिक्स पनिहारिक सूत्र जात्ता 'बत्य सिविस्लामिति पाय सिमा सितंबा सा.३१० पिप्पलग जाइत्ता 'बत्य हिंदिस्सामि 'सिपाय लिंदा जिंदतं वा सा ॥३२२० नहोयणगं जाइता 'गई विदिस्सामिति साबरण करत करतं वा सा०।३० करणसोहण जाइत्ता 'करणमल नीहरिस्सामिति दन्तम वा नहमलं वा नीहरा नीहरंत या सा. ५६२'1३४ाजे भिपसू अविहीए सूई पचपिणा पचपिर्णत वा सा. '६७२।३५-३दाजे मिक्खू खाउपाय वा दास्यायं वा महियापार्य वा अन्नउस्थिएण या गारस्थिएण वा परिचढावेह वा संतबेहवा जमावेह वा अलमपणो करणयाए समपिनो कप्पड़ जायमाने सरमाणे अन्नमन्नस्स वियर वियरत वा सा. '६८६।३९ जे. दण्डयं वा सहियं वा अवलेहणिय का अनुसूहये ना अन्नउत्विरण वा गारपिएम वा परिपकाचे सोपेर मम्गिजो गमजी अणुगंतवो जाव (पाय तइडेवि) सा.७.८' 101 जे० पायरस एक तुडियं तइटेड तहतं वा सा. '१४४१० पायरस पर निष्ड तडिया सड्न ड्डत वा सा.'७१९४२।० पायं अविहीए पंचायत या सा- ७२९°१४३ जे. पाय एगेणं घेणं बंधा बचत वाला. '७३१।४४ जे. पाये पर ति बंधाणे बंधा धन वा सा.'७३६।४५जे० अरेगपंधणं पाये विवड्दानी मासाओ परेण घरे धरतं वा सा०७५'४६॥ जे पत्यरस एम पटियाणिय देह देतचा सा. १७६२' 1४७ जे.बत्यस्स परं तिन्हं पडियाणियाणं देह देतं वा सा.'७६७।५८ जे. अविहीए पत्थं सिबा सित वा सा. "७७४॥४९जे. पत्ये एग कालियमष्टियं करे करतं वा सा-७७७१५० जे०वस्ये परं तिन्हं कालियगठियाण करे करतं वा सा1५१ जेवस्ये एग लिय गछेड मंठन वा सा॥५२॥ जे पत्ये पर तिर फालियाण गठन गठन वा सा-1५३। जे०वस्थं अविहीए गंठेड गठतं वा सा-७७८1५४ जे.पत्यं अतजाएणं गाड माहंत वा सा. "७८११५५॥ जे. अइरेमगहियं वयं पर विचइदाओ मासामी परेर घरत वा सा०'७८1५६॥ जेगिहचूर्म अचडपिएन वा गारस्थिएन वा परिसाहावेह परिसातं वा सा०
७९३।५७ जे. पूरकम मुंजा मुंजतं वा साइजा, तसेवमाणे आवजाइ मासिय परिहारहाणं अगुग्धाइयं '८०४.3-21५८॥ पढमो उदेसओ समतो॥ जे मिक्लू दादंबर्ग पावर्षउगर्म करे करतं वा सा. १८१राजे. गिधा गित बासा परेइपरतं वा सा॥३१० चियर वियरेंस वासा ॥४० परिभाएड परिभात या साom. परिभुजा परि . जनमा सा. '२१।६) जे.पर दिवदामो मासाओ घर परतं वा सा. '२८।अजे०विमुयाचे विमुपानवासा '३६'दाजे मिक्सू अचित्तपाहियं गये जिग्घा जिग्यतं वा साभ "३८ जे पयमचा संकर्म पा अवलंबणं
वाजे० दगवीणियं ।११। सिकर्ग वा सिकगणतर्गवा।१२। सोत्तियं वा रजुयं वा (चिलिमिणिवा) करे करत वा सा०।१३। जे मूईए १४१ पिप्पलगस्सा१५५नहपठेवमयस्स।१६।कण्णसोहणगस्स उत्तरकरणं सयमेव करे करैत वासा. "५६११अजे मिक्यू लहुस्सग करसंवयह पर्यत वासा.'७९।१८ाजे मुर्स वयहस्यंत वासा. '९० ॥१९॥जे. अदल माइयइआइयतवासा ९९२०। जे मिक्स्स स्सएण सीमोदगवियडेण वा उसिणोदमवियडेण वा हत्यापि वा पाचाणि पाकग्णाणि वा अच्छीणि पाइन्नाणिवानहाणि वा मुह वा उच्छोलेज वा पच्डोलेज वा उच्छोलत वा पच्छोलत वा सा११७।२१० जे०कसिणाई चम्माई घरेइ परेन वा सा. १५२१२२१ कसिणाई बत्थाई '१७७।२३१० अभिनाई पत्थाई २४ लाउयपायं वा दारूपाय वा महियापार्यवासयमेव परिपहावा संठवेदया जाना परिपतवा जाय जातं वा सा. १८. १२५॥ देउवालद्वियं वा अपाहणं पा वेणुसूइयं वा।२६॥जे नियममवेसियं पडिग्गहरी धरेड पौन वा सा. १९४२अजे० परमवेसिया२८०परगवेसियं ।२९ बलमवेसिय २०४।३०॥ लगनेसिय २१०॥३१॥जे भिक्खू नितियं जग्गपिंड भुंजह मुंजन वा सा• '२१९३२०० पिई।३३। अबइट ३४००मार्ग।३५/० उपदभार्ग ।३६० यास पसह वसंतं वा सा० '२३६१३जे भिक्षु पुरेसंघर्ष वा पच्छासंघ वा कर करन पासा. '२६५'३८ाजे समाणे वा बसमागे पागामाणुगामं दूइनमाणे पुरेसंयुयाणि वा पढासंधुदयाणि पा कुलाई पुकामेव पळा या मिक्खापरिवाए अणुपनिसइ अगुपविसंत वा सा. १९१९जे मिक्सू अमाउथिएण वा गारित्याएन वा परिहास्त्रिाचा अपरिहारिएम सदि गाहाबह९.५० निशीथं छेदसू उमर
मुनि दीपरजसागर
ISI
अत्र उद्देशक: । आरब्ध:
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________________
आगम
(३४)
प्रत
सूत्रांक
[४०]
दीप
अनुक्रम [94]
Agyavav
अत्र उद्देशकः ३ आरब्ध:
“निशीथ" छेदसूत्र- १ (मूलं)
-------
-
उद्देश: (२)
मूलं [४०]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र [१] "निशीथ" मूलं
..........
फुलं पिंडवायपडियाए अणुपविसद् वा निक्लमह वा अणुपचितं वा निक्खमंत या सा० ३०६' |४०| जे० बहिया विहारभूमिं वा विधारभूमिं वा निक्सम वा पविस वा निलमंत या पवितं वा सा० '३१४' ।४१। जे० गामाणुगामं दुइ दुइ वा सा '३२२ । ४२ । जे० मिक्लूजनपरं भोयणजायं पडिम्माता सुम्सुम्भ मुझ दुम्भ दु परिडुबेइ परिदुर्बलं या सा० ।४३। जे० अन्नयरं पाणगजाये पडिग्माता पुण्यगं पुष्कगं आइय कसार्थ कसायं परिदुबइ परि० स० '३३३' ४४० जे० मन्नं भोपणजायं पडिमा हेला बहुपरियावन्नं सिया अदूरे तत्व साहम्मिया संभोइया समणुना अपरिहारिया संता परिवसन्ति ते जणापुच्छिता अनिमंतिय परिवइ परिवर्त वा सा० ३४८ ॥ ४५ ॥ जे सागारिथपिंडं गिष्ड्ड गिष्टं वा सा० १४६० जे० मुंज भुजं वा सा०] '४१५' १४७। जे० सागारियं कुलं अजाणिय अपुच्छिय जगवेसिय पुवामेव पिंडवायपडियाए अनुपविसह अपवितं वा सा० ४२० १४८] जे० सामारियनिस्साए असणं वा पाणी वा साइमं वा साइमं वा ओमासिय जाया जायंत या सा० ४२७ । ४९ जे० उबदियं वा सेज्जासंवार परं पोसवणाओ उवाइणावे उपायणावतं वा सा० ४५७५० जे० वासावासिय सेजासंचार पर दसरायकप्पाजो० ४९४ । ५१।० उडुवदियं वा वासावासियं वा सेवा संचार उबरिसिजमार्ग पेहाए न ओसारे न ओसारंतं वा सा० ५०० १५२० जे० पाटिहारियं सेजासंघारगं दोपि अणुश्वेत्ता बाहिनीने नीतं वा सा० । ५३ । जे० लागारियसंतियं । ५४। जे० पाडिहारियं वा सागारियतियं या ५१३' ५५ जे० पाडिहारियं सेवासंघारगं आयाए अपरिहट्टु संप संपश्यं वा सा० ५२३' । ५६। जे० सामारियसंनियं सेज्ञासंचार आयाए अगर कट्टु अतिथित्ता संपय संपव्ययंत या सा० ५२७ ॥५७॥ जे० पाडिहास्यिं वा सामारियसंतियं वा सेज्जासंघारगं विपण न गवेसह णगत वासा०] [६०० १५.८ । जे० इत्तिरियपि उबहिं न पहिलेहे नपहिले वा सा० तं सेवमाणे आवजह मासियं परिहारट्ठाणं उपाइ ५९ इओ उदेज २ ॥ जे मिक्स आगेतागारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेस वा परियाचसहेसु वा अन्नउत्थिर्य वा गारत्वियं वा असणं या० ओभासद ओभात या सा० १० अन्नउत्थिया वा गारस्थिया वा० २१० अनउत्थिणि वा गारस्थिणि वा०३० अनउत्थिणीओ वा गारत्थिणीओ वा०|४|११ जे अन्नउत्थियं वा मारत्व वा कोहलपडियाए पड़ियागयं समाणं असणं या० ओमासिय ओमासिय जायद जायं वा सा० एवं एतेनावि चत्तारि गमगा २०५८ जे० अनउत्थिएन वा गारपिएन वा जसणं वा अभिहर्ड आहद्ध दिजमार्ण परिसेनानमेव अणुवत्तिय २ परिवेडिय २ परिजविय २ जोभासिय २ जायद जायं वा सा० एवं एते चैव चत्तारि गमना २७ । ९-१२ जे० गाहानहकुलं पिण्डवायपडियाए पबिडे पडियाक्खिते समाणे दोघं तमेव कुलं अणुपविस अणुविसंवासा '३३' ॥१३॥ जे संपलोयगाए अस वा पडिगाहेइ पडिगाहतं वा सा० '४५' १४० जे० गाहा बकुलं पिण्डवायपडियाए अणुपविट्टे समाने पर विपरंवराज अस वा० अनि आह दिनमाणं पडिगाड पटिगा वा सा० ५३' । १५ । जेमिन अप्पणी पाए आमजेल ना मजेज वा आमा मर्ज वा सा०] [५७ १६० जे० बाहेज वा पलिमदेज वा संवाह वा पलिम वा सा० १७ •तेले वा घाण वा बसाए वा नवगीएण वा मक्लेज वा मिलिज वा मक्तं वा मिलिया सा० १८०लो वा ककेण वा उहोलेज या उप वा उहाले वा उच्च वा सा० । १९ । ० सीओदगचिपडेण वा उसिणोदगडे वा उच्छोलेज वा पोवा उच्छलत वा पोयतं या सा० २०१० फुमेज वार वा फर्मास '६२ । २१ । जे अपणो कार्य आमज वा पमजेज वा आम वा पमजन नासा एते अभिलाषेण सो चेन गमो भाणियो जाव रतं वा सा० ६३ ।२२-२७ जे अप्पणी कायस्स वणेवि ते चैव '७२' १२८-३३। जे मिक्स अप्पणी कार्यसि वापि वा अरइयं वा असि या भगदल या अक्षयणं तिक्खणं सत्याए अच्छिदे या विच्छिदेश वा अदितं वा विच्छिदंतं वा सा० ॥ ३॥ दिसावा पूर्व वा सोये ना नीहरेज या विसोज या पीहर वा विसो वा सा० ३५०० विच्छिनीहरिता विसोहेला सीओदगचिपटे वा उसि गोदगवियटेण वा पच्छोलेज वा धोए वा उच्छो वा पोयतं वा सा० ३६० अ० पोइला अभयरणं आणावा लिपेज वा आलित वा चिपिता सा०३७०अच्छि बिलिपित्तातेलेण वा घाण वा बताए वा नवीएम या अम्मा मक्का या मक्तं वा सा० ३८० अच्छि मक्वेता जयरेण भूषणजाएण पूर्वज या पवे वा तं वा पर्वत वा सा० (२९) जे मिक्सू अप्यणो पाउकिमियं वा कुच्छिकमियं वा अङ्गुलिए निवेसिय निवेसिय नीहा नीरं वा सा० ७६ ४० जे० दीहाओ नसिहाओ कप्पेज वा सटवेज वा कम्पवात वा सा० ॥ ४११० दीहाई जमाई । ४२१० पत्यि० ॥ ४३ ॥० [चस्तु ०१४४१०] कक्स० । ४५० मं०] १४६० दन्ते आसेपासे वा आपसंतं वा पचसंत वा सा० ॥ ४७०] उच्छोलेज वा पोजवा उच्छलं या पचायत या सा० ४८० मेज या या कुतं वा रतं वा सा० ॥४९ उडे आज वा ९५१ निशी छेद अल-र
मुनि दीपरनगर
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आगम (३४)
“निशीथ” – छेदसूत्र-१ (मूलं) ---------- उद्देश: [३]
------------- मूलं [५५] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [१] "निशीथ" मूलं
प्रत
सूत्रांक
[५५]
दीप
पमजेल बा, एवं ओढे पायममो भाणियो जाव फुमेज पा रएज वा ।५०.५५॥ जे दीहाई उत्तरोहरोमाई कप्पेज वा संठवेजपा कार्यत वा संठवतपासा.1५६ मच्छिपत्ताई SM अच्छीणि आमजेज वा एवं अचडीस पायगमो मागियो जावरएज बा१८.६३३०दीहा भुमगरोमाई।६।१० पासरोमाई कप्पेज वा संठनेज वा कप्त या संठवतं वा सा.
६५. अमिडमल या काणमल बा दन्तमल पा नहमलं वा नीहरेश वा विसोहेज या गीहरंत वा चिसोहंत चा सा-1६६/ कायाजो सेयं वाजवा पाई वा मल बा०।६७ाजे
मिक्स गामानुगाम दुनमागे अप्पणो सीसनुनारिय करे करत वासादाजे० सणकापासओवा उष्णक या पोटक वा अमिसक०वा कसीकरणसोनिय कोड का पासा०६९ बजे०गिहसिवा गिहमुहसिवा गिहदुवारियसि वा मिहपडिनुचारंसिवा मिहेलयंसिवा गिहंगणसि वा गिहरसि वा उचारं वा पासवर्ण वा परिहवेइ परिद्ववंत मा सा०1७०१०मामगिइंसिवान
मडगच्छारियसि वा महाभियसि वा मडगनासयंसि वा महमलेगसिपा मडगपण्डिसंहिपा महगवणसि पा०1७१मालवाहसि वा सारवाईसिया गायराइंसिवा तुसदाहंसि वा सदाहंसि बा०1७२० मापवर्णसिवा पंकसि वा पणर्गति बा-1७३। नवियासुबा गोमियासु नवियासु वा महिवालाणीसु परिभुजमानियासु वा अपरिजमाणियासुबा. १७४1 उबरवचंसिवा नम्मोहन सिवा आसत्य वा पिलंसु० वा डागावा०१७410इक्सुवर्णसिमा सालिवर्णसि वा कुसुंभवर्णसिया कप्पासवर्णसि०७६/दागवति पा सागपा मूख्य वा कोरबरिया सारया जीरियाबादमणग० वा मण्या पा1७७० असोगवर्णसिमा सत्तिवण्यवर्णसिवा पंपगवर्णसि वा वृषपर्णसि वा अन्नवरेसुवा तहप्पगारेमु पत्तो. पएम पुष्फोपएस परोपएस माओवएम. १०६1८10 सपायसि वा परवायंसि वा दिया वा राओ वा नियाले वा उम्नाहिजमाणे सपाय गहाय परपायंबा जाहता उचारपासवर्ण परिववेत्ता अगाए बरिये एटेड एदी वा सा- ११७' में सेवमाणे आवमा मासियं परिहारहाणं उग्याइयं । ७९॥ वाओ उदेसओ३॥जे मिक्यू राय अलीको अत्तीकरत ना सा,
अधीकरे जबीकरत वा साक, अस्थीकोइ अस्वीकरतं वासा. '२८।१-३॥ एवं राधारविसर्य। ४.६ानगरारक्खियं । ७.९। निगमारविसर्प।१०.१२। देसारक्खिये । १३-१५।। सवारक्खियं '२८।१६-१८ा-कसिणाओ प्रोसहीनो आहारेराहारं वा सा०३७।१९। आयस्विउपमाएहिं अविड विगई आहार आहात वा सा. '६२'२००ठवण. कुलाई अजामिय अपूछिप अगवेसिय पुकामेव पिण्डवायपरियार अगुपचिसह अशुपविसंतं वा सा.'१०९।२१०निग्गन्धीणं उपस्सायंसि अमिहीए अणुपपिसह अनुपविसंत वा सा'२२२।२२०निमन्धीचं आगमणपहुंसि दण्डगंवा सविर्य वा स्यहरणना मुहपोत्रितयंचा अभयरं वा उपगरणजायं ठवेइ ठवतं वा सा• '२३३।२० नवाई जणुपचाई जहिगरणाई उप्पाएर उपायत पा सा. '२५३' २४०पोरालाई अहिंगरणाई खामिवविउसमियाई पुणो उदीर उदीरत का सा० २५८ १२ मुइविकालिय इस इस वा सार '२६३१।२६०पासत्या संपादयं देड पडिछा देत वा पहिचान या सा-२७-२८ा एवं बोसबस्त ।२९-३०।सीलस्स।३१-३२। नितियरस । ३३.३४ा संसलरस २८३' - 1३५-३६१० उबालेण या ससिणिदेण वा हत्येण वा सीए वा मायणेण वा असणं बा. पहिगाहेर पडियाहतं वा सा०1३७ एवं एकवीस हत्या माणिवत्रा (वशव०५.३२. ३३-३४-३५) ससससेण या महियासंसदेण वा ऊसास. वा लोणियसं० वा हरियालसं० वा मणोसिलास वा पग्लियस. बागेश्यसं० वा सेजियस पासोरहियर्स. या विषयक लगसं० वा अजनसंगालोवर्स बाससं० वा पिसं० चा तक्स. या कंवमूलसंवा सिजवेरसं० वा पुणगसंगा उन्हसा हस्पेण वा. '२८९३८ागामारश्लिल अलीकडचीक अत्चीको कल वा सा एवं सोच रायगमो यो । ३९-४१ देशारक्सिय ४२.४४ सीमारक्सिव.४५-४० गारविषय-100.५ समारक्सिय २९.११.५३३० अप्रामसरस पाए एवं तायडेसामेण या जाच गामाणुगाम दुलमानो अचमणरस सीसवारिय करेड करत वा सा. १२९११५४-१.६० सागुणाए उचारपासवणभूमिन पडिलेहेड नपडिलेहत वा सा.'२९५'११०७० तओ उच्चारपासवणभूमीमोन पडिलेड नपडिलेहतं वा सा.'२९९।१०८ सुहागंसि 18 पन्डिसि उच्चारपासवर्ण परिहबह परिहवन वा सा. २०४।१०९० उच्चारपासवर्ण अविहीए परिहने परिवलं पा सा- '३०७१११०० उपचारपासवर्ण परिहवेता न पुन नपुष्मांत मासा.।१११० कडेग पाकलिनेण वा जालियाए पा सरसगाए का पुन्या पुनर्गत वा सा1११२१७ नाथमा नायम वा सा०1११३०० तत्वेषभायमा आधमंद वा सा०1११४१० अतिरे आयमह जायमंतं वा साः।११५। जे निफ्यू पर सिह नाबापूराणं आयमा आयमंतं या सा- २१७।११६/- अपरिहारिए ण परिहारियं पुया-एहिश अजो! तुम च अहंच एगो असणं गा. पहिग्गाहेना तो पच्छा पत्तेयं पत्तेयं भोपसामो वा पाहामोगा, जो तमे वयह वयं वा सात सेवमाणे आवजा मासिय परिहारहाण उग्पाइयं ३२९।११७॥पडत्यो उसओ४. जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलसि ठिचा आलोएज वा पाएज वा बालोचनं बापलीयंत वा साजे. सचित्तरक्समूले ठाणे पाव सेवा निसीहिय पाचशयन पासा.रा.सचित्तमक्समूलसि तिचा असणे चा जाहारेड आहारत मासा 110 उचारपासवर्ण परिहनेह परिहत मासा. '२९' 111० (२२८) ९५२ निशीथ छेवसूर्य उदयो
मुनि दीपानसागर
अनुक्रम [१७२]
अत्र उद्देशक: ५ आरब्ध:
~110~
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आगम
(३४)
प्रत
सूत्रांक [4]
दीप
अनुक्रम [३१८]
です
अत्र उद्देशक: ६ आरब्ध:
“निशीथ" छेदसूत्र- १ (मूलं )
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उद्देश: [५]
मूलं [५]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र [१] "निशीथ" मूलं
सझा करें करें या सा० १५० उद्दिसइ उद्दिस्तं वा सा० ६ ० समुद्दिसह समुद्दिसंतं वा सा० [७] • अणुजाण अणुजातं वा सा० १८] वाएद वायतं वा सा० । ९ । ० पडिच्छड् पढिच्छतं चा सा० । १० । ० परिषद परियतं वा सा० ३६' । ११ । जे भिक्खु अप्पणो संचार्टि अमउत्रिण वा गारत्थिएन वा सिहावे सिकायत या सा० ४५' । १२० अप्पणी संपाडीए दीहसुताई करेइ करतं वा सा० ५० १३ ० पिउमंदपलासयं वा पढोलप वा विप वा सीओवगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा संफाणिय संकाणिय आहारे आहा[] वासा०] [५९।१४० पडिहारियं पायपुञ्छणयं जाइता तामेव स्थनिए पचपिनिस्सामिति हुए पचपि पचपितं वा सा० । १५१० परिहारियं पापपुष्यं जाइला सुए पचपिणइस्लामित्ति तमेव स्वर्णि पचप्पिय पचति वा सा० १६ एवं सागास्विसंविएवि जे पायपुच्छनयं जाइत्ता दो आलावग्गा ।१७-१८ ० पारिहारिण्यं वा लावा ईवा एवं एहि दोहित्र पारिहारि सागारिचं गमएहिं वा १९.२२० पारिहारिय सेासंचार पथप्पिणिता दोपि अनुभव अहि[इ] अहिं वा सा०] '८१' २३३ एवं सामारियर्सतिएवि । २४ जे० पाडिहारियं वा सागारियसंतियं वा सेजासंचारयं अप्पयप्पिणित्ता अनुष्नविय अहिडेड अहित वा सा० ॥ २५॥० सणकल्पासाओ या पोण्डक० वा उष्णक० वा अमिलक० या दीहसुताई करेड करते वा सा० ११२' । २६/० सचित्लाई करे घरेइ परिभुंजा करत या सा० २७-२९। एवं चिताई । ३०-३२ । विचिन्नाणि दारुदण्डाणि वा वेदण्डाणि वा वेत्तदं वा करे करतं वा सा० एवं परे परंतं वा सा० परिभुजइ परिभुजंत वा सा० १२० १३३-३५० जे० नवगनिवेसि गामंसि वा जान संनिवेसंसि वा अनुपविसित्ता असणं वा पढिगाहे पडिमा वा सा० ३६० नवगनिवेसि अयागसि वा बागरंसि वा तडओ वा सीसा हिरणआ० वा सुवण वा स्वन वा बहर वा अणुष्पविसित्ता १२९ |३७| जे मुहवीणियं करेड करत या सा० 1३८० दन्तवी० 1३९ एवं उड़बी |४०| नासाची०४१ कक्ववी० ।४२। हृत्यवी० |४३| नहवी १४४॥ पत्लवी० । ४५ पुष्पावी० ४६ फलवी० ४७ बीवी० ४८ हरियबी० । ४९ । मुहवीणियं जाव हरियवी० वाएवायं वा सा० अण्ण तराणि वा तहापगाराई अणुदिभाई सहाई उदीरे उदीर वा सा० १३२ । ५०-६१० उदेसियं से अणुपचित अणुपचितं वा सा ६२० सपाडुडियं ॥६३ ० सपरिकम् । ६४ । जे० 'नस्थि संभोगवतिया किरियनि वय पयंत या सा० २७५६५५० वत्यं वा पटिम्ग वा कंवलं वा पायपुञ्छर्ण वा अधिरं पूर्व धरण पलिच्छिदिय पलिच्छिदिय परि परियंत या सा० । ६६० लाउवपार्थ वा दारुपायं वा महियापा० वा० । ६७१० दण्ड वा जाव पिप्पल वा पतिमजिय परिहने परिवर्त वा सा० २८१६८१० अरेगपमाणं रथहरणसीसाई घरेह धरतं वा सा० ॥६९ ० सुमाई स्यहरणसीसाई करेइ करतं वा सा० ॥ ७० ॥ स्यहरणस्स एवं बंध दे देतं वा सा० ॥७१ ० स्यहरणस्स परे तिन्हं बंधा दे देथा सा० । ७२ । जेणं अहिए मंच बंधनं वा साः । ७३० कण्डुसगबंधे बंध वचनं वा सा०७४। बोस घरेह धरतं वा सा० १७५] अनिस घरे घर वा सा०1७६1० अभिक्खर्ण अभिवर्ण अहि अहितं वा सा० ॥ ७७७०] उस्सीसमूले ठवह ठवतं वा सा० ॥ ७८० तु तु वा सा० मा आवजह मासिये परिहारद्वाणं उपायं *३११॥७९॥ मी उद्देसो ५७ जे भिक्खु माउग्गामं मेहुणवडियाए विन्नवेद्र वा विष्णवंतं वा सा० "५१' १ जे० माउग्गामस्स मेहुणवडियाए इत्यकम् करेड़ करते वा सा० [२०] अंगादाणं कोण या कलिंचेण वा अंगुलियाए वा संचाले संचालन वा सा० एवं माडग्गामऽभिलाषेण पटमुसाइगमो यत्रो जान सोयसुर्य जे० माउग्गामस्त मेहुणवडियाए अन्नयरंसि अचित्तसि सोयंसि अणुप्यविसित्ता सुकपोग्गले निग्याएड निग्यायतं वा सा० । ३-१० जे० माउणामं मेदुणवडियाए सयं कुज्जा सर्व बूपा करतं वा० सा० ११। जे० माउग्गामस्त मेणवडियाएका कलहं न्या कलहवडियाएं गच्छ गच्छ वा सा० । १२० ले लिहावे हडिया गच्छ गच्छ वा सा० ६९ १३० पि वा सोयंत या पोतं वा महायएण उप्पाएर उप्पार्यतं वा सा० १४० पित वा सोयंत या पोसंतं वा महायेण उप्पाएता सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियद्वेण वा उच्छोलेज या पोएमा १५० पितं वा सोयतं वा पोसतं वा भाडायएण उप्पाएता तेण वा एवं जहा तहए उसाए मंडादीण जो गमो सो चेव इपि योजा अणयरेण जालेबजाए पेज वा पेज वा आलित वा विलितं वा सा० १६ एवं जाय वेज या पधूवेज वा । १७-१८० कसिनाई पत्याई परे परंतं वा सा० १९ एवं अहयाई २०० घोषमलाई २१० चित्ता । २२० विचित्ता । २३० अप्पणो पाए आज वामनेन वा आमजन वापत वा सा एवं उसे जो गमओ सो चेव इह मेणवडियाए यो जान जे माउम्गामस्स मेहुणवडियार गामाणुगामं जमाने अप्पनो सीसद्वारियं करेह करने या सा० २४-७६० खीरं वा दहिं या नवणीयं वा गुलं वा खण्डवा करं वा मच्छण्टियं वा अनवरं वा पणीय आहार आहारेड आहारतं वा साइज ८८' तं सेवमाने आज चाउम्मासियं परिहारद्वाणं अणुग्पाइये ७७॥ उट्टो उरेस ६॥ ९५३ निशी छेद उदो
मुति दीपरत्नसागर
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आगम (३४)
“निशीथ” – छेदसूत्र-१ (मूल) ---------- उद्देश: [७] -------------- ------------- मूलं [१] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [१] “निशीथ" मूलं
प्रत
सूत्रांक
जे माउग्गामस्स मेहुणवडियाए तणमालियं वा मुजवा मेड० वा मयण वा पिंक वा दन्त वा सिंग या संखपाहइड या कट्ठबा पत्ताबा पुष्क० वा कल वा बीया बा हरिखमालियं या करेड करतं वा सा० बरेह परंतं वा सा पिणिपा पिर्णित वा सा०१-३० अबलोहाणिवा तंब० वा तजयबासीसमा बारुपग वा सुचषणलोहागि वा कर करतं वा सा घरेड परंतं पा सा० परिभुजाइ परिमुर्जतं वा सा०॥४-६० हाराणि वा अदहाराणि वा एगावलि वा मुत्तालि बा कनमावलि वा स्वणाचलिया कडमाणि का डि. पाणि वा केराणि वा कुंडलाणि वा पहाणि वा मउढाणि वा पलवसुत्ताणि सुवण्णसुत्साणिवा करेह करतंबा सा घर घरतंबा सा- परिभुजा परिभुजतंबासा०1७-१०आईणाणि वाआईणपाबराणि वा कंबवाणि या कंबलपा० कोयरा(वा)णि वा कोयर(ब)
पाबा कालमियाणि वा नीलमि-सामाणिया महासामाणि चा उहाणि वा उसलेस्साणि वा बग्धाभि वा विवग्याणि वा परवगाणि या साहिणाणि वा सहिणकशाणाणिवा खोमाणिवा दुगुष्ठाणि वापट्टणाणिवा आवरन्नाणिवा बीमाणिवा असुयाणिवा कणगकन्ताणि वा कणगतसि(लाड)पाणि वा कणगचित्ताणि या कणगविचित्ताणि वा आमरणविचित्ताणिवा करे जाव परि जइ परि जंतं वा सा०1१०-१२। जे०माउन्याम मेहुणचडियाए अक्संसि वा ऊरूसिवा उवरसि वा वर्णसि वा गहाय संचालन संचालतं वा सा०।१३॥ जे माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अचमबास्स पाए आमजेज वा पमजेज बा आमजत वा पमर्जत वा सा०,एवं ततियउदेसगमजो यत्रो जायजे-माउग्गामस्स मेहणवडियाए गामाणुगार्म जमाणे अन्नमम्नस्ससीसवारियं को करतंबासा.॥१४-६६.जे.माडगामस्स मेहुणवडियाए अर्णवरहियाए एवं ससिणिवाए ससरस्खाए मट्टियाकडाए चिलमन्ताए पुढपीए निसीयावेज वा त्यहावेज वा पिसीयातं वा तुपाहावेतं वा सा६७-७१० चित्तमन्ताए सिलाए नलेलए १७२-७३० कोलावासंसि वा दामए जीवपाहिए सत्रण्डे सपागे सपीए सहरिए सजओस्से सउदए सउत्तिापणगदगमट्टियमकड़गसतानसि०७४ आगन्तारेसु ना जाब परिवापसहेस वा०1७५० आगन्तागारेसु वा जाप परियाक्सहेसु वा निसीयावेता वा तुपट्टावेता या असणं वा० अणुपासेज वा अणुपाएज वा अणुपासतं वा अणुपायंत वा सा. 1७६ अंकसिबा पलियंकसि वा पिसीयावेताबा तुपहावेत्ता वा जाप साहना ७ ०माउम्गामसमेहुणवदियाए अंकसि वा पलियकसि बाणिसीयावेत्ता वा तुयहावेत्ता वा असणं वा अणघासेजना अनपाएजना अनघासतं वा अणपातंगा सादा जे.माउमामस्स मेरमडियाए अण्णचरं तेवढं आउजाउत वा सा०1७९० अमन्नाई पोमानीहरर नीहरत पा सा1८०० मणुन्नाई पोग्गलाई उपहत उवहरतं वा सा1८१ जे माजग्गामस्स मेहुणवाहियाए अनयर पसुजा वा परिसजाई वा पायंति का पसलसिना पगडंसिवा सीसंसिया गहाय संचाले संचालतं वा सा.८२ सोयंसिकई बा किदिवाअंगुलीयं वा सल्लागंवा अपुग्यसेत्ता संचालेहसंचालतं वा सा०1८३१०
जयं धीतिकर आलिज वा परिस्सएन वा परिवेज वा आलिंगत वा परिस्सावंतं वा परिचुंबन वा सा०1८४ाजे माउमामास मेहुणबडियाए असणं या देह देन्त वा सा० ८०८६एवं वापि दोहिंगमएहि ।८७-८८ा समायपि होहिं । ८९-२०१० अन्नवरेणं इदिएणं आगारं करेड करतं वा सा०.५३' तं सेषमाणे आवजा पाउम्मासिय परिहारडाणं अणग्यालयं ९॥ सलमो उडेसनो जाजे मिक्स आगन्तारेसचा जाच परिवापरहेसुवा एगो एगिरवीए सर्दि जाचकहर्त वा साइजा'८'10 उजागसि वा उजाण. गिहंसिना उनाणसालंसिवा निजागंसि वा निजाणगिहसि वा निजाणसालेसिवा 121 आईसिवा अहालयसि वा पागारंसिया परिसिवा दारंसि वा गोपुरसिया एगो। दसि वा दगमासि वा दमपहंसिया दमतीरसि वा दगठाणति वा एगो०1४१० सुन्नगिर्हसि वा सुन्नसासि वा भिन्नमिहंसिवा मिन्नसासि वा कुडागारंसिवा कोडागारंसि वा 'एगो०।५० सणगिहंसिया नणसालेति वा तुसगिहसि वा तुससासि वा बुसगिर्दसि वा बुससालसि वा एगो।६० जाणसालसि वा जालगिड़सि वा जुग्गासासि वा जुमागिहंसि वा एगो०७1०पणियसासिवा पणियगिसिवा परिवापगिहसि वा परियायसाहसिना नियमिहंसिवा पियसालंसिवा एगोदा गोणसाउंसियागोजागिडंसिवा महाकलंसिवा महागिइंसिवा एगो एगिरथीए सदि विहारं वा करेंड समाये या करे असणे पा.आहार उबारंबा पासवर्ण वा परिहा अभयर वा प्रणारियं निरं अस्समणपाओग कह कहेड कहतं वा सा.'८७१९ राओ वा पियाले वा इत्थीमज्झमए इत्वीसंसले इत्वीपरिबुरे अपरिमाणाए कई कहे महंत ना सा०1१00 सगणिचियाए वा परगणिमि. बाएवा निग्गन्धीए सदिगामाणुगाम तुइनमाणे पुरओ गच्छमाणे पिटुओ रीयमाणे ओहयमणसंकणे चितासोयसागरसंपबिट्टे करतलपन्हत्यमुहे अइज्माणोचमए बिहार करे जाव करतं या सा०।११०नावगं वा जनायर्ग या उवासयं या अणुवासयं वा अन्तो उपस्सयस्स अदं वा राईकसिगंवा राई संवसावेह संबसावंतं वा सा1१२जेतन पडियाइरसह नपडियाइवतं वा सा०।१३। जो न पहुब निक्खमइ वा पविसइ वा० १३६।१४ जे मिक्सू रखो खत्तियाणं मुदियाणं मुदाभिसित्ताणं समवाएमु वा पिडामहेसु बा असणं ९५४ निशीथ रसूर्य उस-12
भूनिटीपरजसागर
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अनुक्रम [४७०]
अत्र उद्देशक: ८ आरब्ध:
~112~
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आगम (३४)
“निशीथ” – छेदसूत्र-१ (मूलं) ---------- उद्देश: [८]------------------------- ------------- मूलं [१५] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [१] “निशीथ" मूलं
प्रत सूत्रांक [१५]]
दीप अनुक्रम [५७६]
पा. परिमाहेइ पडिम्गाहेंतं पा सा०।१५। ० उत्तरसासि वा उत्तरगिईसि वारीयमाणाणं०1१६। हयसालगयाग वा गयसा वा मंतसावा गुज्मसा- पा रहस्ससा. वा मेहुणसा बा १० संनिहिनिचयाजो वीरं वा दहि वा नपणीयं वा सणि वा गुलं वा खण्डं या सकरं वा माण्डियं वा अनयरं वा भोयणजायं पदिगाहेड पडिगाहेत वा सा ॥१८०० उत्सपिंड या संसडपिण्ड वा जनाइपिण्ड वा किक्विपिण्डं वा पणीमगपिण्ड वा पडिगाइडजाब साइजइ'१५५' सेवमाणे आवजाइ चाउम्मासिय परिहारहाण अधुन्धाइये । १९॥ अहमो उदसओ जे निक्यू रायपिण्डं मेव्हा गेष्ठ्त वा सा०1१०० मुंजा मुंजतं वा सा. '१६।२१० रायन्तेपुरं पविसइ पविसंतं वा सा०1३10 राषन्तेषु. रिथ वएना 'जाउसो! रायतेउरिए! नो खलु अई कमाइ रायन्तेपुरं निक्वमित्तए वा परिसित्तए वाइमण्डं तुम पदिग्गहा गहाय रायन्तेपुराओ असणं बा० निहडियंत्राद्ध दल. पाहिजे नं एवं वयह वयं वा सा०1४ाजे मिक्खू य गं रायन्तेउरिया वएना आउसन्तो ! समणा नो खलु तुझं कपड़ रायन्तेपुरं निस्पमित्तए वा परिसित्तए बाहरेयं पतिगहन जाए अहं रायन्तेपुराओ असणं वाणीहडियआर इलयामि' जे एवं पडिसुणे पडिसुणतं वा साक'२९ जे मिक्बू रखो जाप मुद्दाभिसिताणं दुबारियभक्तं वा पसुमन वा भवगमत्तं वा बलमतं वा कयगमतं वा हयमर्स वा गपभपा कन्तारभत्तं वा दुम्भिावभत्तं वा दुकालमतंपा दमगमतं वा गिलाणभतं वा बहनियाभवा पाहुणगमतं वा पटिगाहेइ पडिगाईत वा सा०३६।६। जे मिक्स् रणों सतियाण जाव मुबानिसिचार्ण इमाई उदोसायषणाई अजाणित्ता अभिव्य अगसिप परं चउरायपश्चरायाओ पिण्डबायपडियाए निक्वमह वा पविसइ वा निस्वमन्तं वा पबिसन्तं वा साइनाइसं०-कोहागारसालाणि वा भण्डागारसालाणिवा पाणसालाणिवा स्त्रीरसावा गजसा या महाणसावा. "५२ाजे भिक्खू गणो जाच मुदाभिसिलाणं अगच्छमाणाण वा निम्मचठमाणाण बा. "४८1८1० इत्थीओ समालंकारविमृसियाओ पदमवि चकम्युमणपटियाए गच्छन वा अभिसंधारेइ वा गच्छन्तं वा अभिसंधारेन्तं वा साकारा० मंससाधाण वा मच्छलावा छविला. बहिया निग्गयाणं असणं चा जाच साइजद।१०१० अभय उचहणीय समीहिय १ पहाए तीसे परिसाए अणुट्टियाए अभियाए अमोच्चिाए जे ते अर्थ पडिगाहेर पडिमाहेन्त वा साइजइ, बह गुण एवं जाणेजा 'हज राया वत्तिए परिखुसिए'जे मिक्स्पू ताए गिहाए ताए पएसाए ताए उचासन्तराए वा निहारंबा करेइ सज्मार्य वा जाव कहत वा सा. ६१।११। जे मिक्यू रष्णो खनियाणं जाव अभिसित्ताण बहियाजत्तासठिया असणं वा पहिगाहेइ पहियाहत चा सा ।१२। पहियाजतापडिमियत्तार्ण०।१३। एवं नईजत्तापडिया1१४१० पडिणियत्तानं।१५० गिरिजस्तापडिया1१६10 गिरिजत्तापडिणियत्ताण ०1१७० महाभियंसि बहमार्गसि निफ्लमह वा पविसइ वा निक्खमंतं वा पविसंत वा सा. २०१८ाजे मिक्यू जाप अमिसित्ताणं इमानो इस आभिसेकाओ रायहाणीओ उदिवाओ गणियाओ वञ्जियाओ अंतो मासस्स दुस्सुलो वा विस्तुत्तो वा निक्लमा वा पविसइ वा निमखमन्तं वा पविसन्तं वा साइनइ जहा- चम्पा महरा वाणारसी सावत्थी साएयं कपिल कोसंबी मिहिला हरियणापुरं रायगिई '१००।१९॥ जे मिक्सू रखो. असणं या परस्स नीहट पडिगाहेइ पडिगाहेन्तं वा साइज्जा तक सत्तियाण चा राहण वा कुराहण वा रायसंसियान बारावपेसिवाणा२० नहानपानहाण पाकच्छमाणवा जाताणमा मालाणचा मुड़ियाणा मेलम्बमाण वा कहगाण वा परमाण पालासगाण वा दोक्सल्याण वा छत्ताणुयाम चा०।२१। आसपोसयाण वा हस्थिपो वा महिसपो वा यसहपो वा सीहपो० वा बग्धपो वा अयपो० वा पोयपो वा मिगपो वा मुणहपो. वा सूयरपोवा मेण्डपो वा कुक्कुडगोबा तित्तिरपो० या वयपो० वा लावयपो० वा चीरापोवा ईसपो-या मयूरपो-या सुयपो० वा०।२२। एवं आसदमगाण चा इस्पिद बाबा२३१० आसमिठाण या हस्विमिवा०२४ासरोहाण पाइरिचरो.पा./
२सत्याहाणवा संवाहावयाग या अम्मंगायाण वा सहावयाणा मनाचयाण वा मण्डावयाण वा उत्तम्गादाण वा चामर का हरप्पा वा परियट्टया दीषिय असि० चा धणु पा सत्ति कोन्त, बा०२६। परिसराण वा कानुजाण मा दोबारियाण वा २ दण्डारपिसवान वा०।२७10 सुजान वा चिलाइवानबाबामणीम वा बहमीण पापबरीण या पडसीण वा जोणियाण चा पदवियाण वाइसिणीण बाधासगिणीण बालउसीण या कामीण या सिंहलीण वा आलची(रसी)ण वा पुलिन्दीग वा सबरीण बापारिसीण वातं सेवमाणे आवजइ पाउम्मासियं परिहारहाणं अणुग्याइय'१११२८॥ नवमी उसओ ९॥ जे मिक्स भदन्तं आगाद यह पर्यतं वा सा1१० करसं। २१० आगाढफरस '३५।३० अन्नवरीए अचासायणाए अचासाएर अबासात पा सा०५२।४। जे मिक्स अनन्नकायसंजुल आहारं आहारेड आहात वा सा० ५६।५० आहाकम्मं भुजा भुतं वा सा. १८१।६० पटुप्पन्नं वागरे वागत वा सा०1७10 अगागय निमित्त बागरेइ वागरतं वा सा. ५३ सेह विष्परिणामेड विपरिणामंतं वा सा०1९१० अनहद अवहरंत बा साग१०० दिस बिपरिणामेन्द्र विष्परिणामत वा सान११० अवहस अवहरत वा ९५५. निशीथं छेदम उमे-१०
मुनि दीपरजसागर
अत्र उद्देशक: १० आरब्ध:
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आगम
(३४)
प्रत
सूत्रांक
[१२]
दीप अनुक्रम [६१९]
vadichevssctevtaopohptos
“निशीथ छेदसूत्र- १ (मूलं )
अत्र उद्देशक: ११ आरब्धः
–
उद्देश: [१०]
मूलं [१२]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३४], छेदसूत्र [१] “निशीथ" मूलं
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सा०] १५७१२०] बहियावासिय आए पर तिरायाजी अालेला संवसाचे सेक्सावेत या सा० । १३० साहिगरणं अविओोसपा अकटपायसं वा सा०] [२५३' । [१४] उत्पादयं अणुम्पादयं वयह वयं वा सा १५० अणुग्धाइपं उग्पाइयं० १६० उग्पाइए अम्पादयं दे दे वा सा०] १७० अणुरयाइए उत्पाइयं०।१८। जे भिक्खु उपाय सोचा नया समुद्र संभुज वा सा १९१० उचाइ हे डं० २०] [] उग्पाइयर्स कप्पं०।२१। उपाइ वा उपायहे वा उम्चाइयसंक वा० २२० अपाइयं अणुन्याइयहे अणुरपाइयसंकल्पं अनुपायं वा अणुग्याइहे वा अणुग्धादयसंकल्पं वा०] [२३-२६०० उपाइयं वा अणुग्धार्य वा० २७० उम्चाइय वा अणुम्याइयहे वा २८० उपाइयसंकल्पं वा अणुम्याइयसंकल्पं वा । २९० उपाइ वा अणुग्धादयं वा उपाय वा अणुग्पाइप या उम्पादपसंकल्पना अनुग्याइयसंकणं वा० । ३० जे मिक्यू उम्मयविनीए अणत्थमियमसंप्पे संपडिए निविच्छासमाचन्नेणं अप्पाणं असणं वा पडिगासा मुमुन् वा सा०३ १२० संघ० विनिच्छा ०1३२१० असंपडिए निविष्ठा०३३० असं चिच्छिा (अह पुण एवं जाणेजा- अणुमा हरिए अत्यमिए वा से जंच मुद्दे च पाणिसि च पतिं विगिप्रिय विसोहिय तं परिमाणे नाइकमइ, जो नं भुजइ मुंजन वा साइज्जइ) ३२५ । ३४ । जे भिक्खु राजो वा विधाले वा सपाणं समोयणं उम्माल उम्मिलित्ता पच्चोगिलाई पच्चोगिल या सा० '३५६३५ गिला सोचा न गवेस नगतं वा सा० । ३६ उम्म वा पपिहं वा गच्छ गच्छ वा सा० ३७ क्यापचे अम्भुडियन्स सएम लाभेण असंथरमाणस्स जे तस्स न पति नपतितं वा सा० । ३८गि अडियं लिपाओगे जाए अलमागे जे तं न पडियाइक्लइ नपहियाइयासा '५१२' । ३९। • पदमपाउसंसि गामाशुगामं जनं वा सा० ४० १० वासावा पोवियसि तवा सा० ४१० अपजसपणाए पलोस पोस या सा० । ४२० पोसवणाए न पलोस नपसोसवतं वा सा ४३ पोसवणाए गोलीमाईपि बालाई उदाइगाने उसा ४४ पोसवणाए इत्तिरिचि आहार आहारेद आहात या सा० ४५ जन्नस्थिर्य वा सारथि वा जोसनेह जोस वा सा० ६१० ४६ पदमसमोसरणुदेसपत्नाई पीचराई पडिगाड पडिगार्ड्स बा सा० ६६४ सेवमाने आपला पाठम्मासयं परिहारार्ण अनुपायं ॥४॥ दसम उद्देसओ १०॥ जे मिक्लू जयपायाणि वा स वा तं वा यवारुपा वा जायच वा मणि० वा काय कम वा दन्तः वा सिंग या चम्म० या वेल वा अंकपा वा लेख वा बहर वा करे करतं वा सा० १ घरेह धरतं वा सा० ॥२॥० परिभुज परिभुंजना सा०३ अधाणि वा जाव परधनाणि वा करेद्र करें या सा जाब परिभुं परिभुज या सा० ४.६१०] परं अदजीवणराज पाटिपाए गच्छ गच्छ वा सा ७ परं अजीबणमेराओ सपचचार्थसि पायं अनि आदेशमार्ग परिगाद परिगाह वा सा० २३'८] धम्मस्स अव सा० ॥९० अधम्मस्स ३६१० अनउत्थियरस वा गारपियवा पाए आमा वा आमा मासा एवं उदेगमेण यनपरं अनउत्थियगारत्यियाभिलाया जाय जे गामाशुगामं दृइनमाणे अण्णउत्वियस्स वा गारस्थियस्स वा सीसद्वारि करे करत वा सा०३८ । ११.६३ प बीमा पासा ६४ प ६५० अप्पा चिन्हावेद विदायें [दा सा० ६६० प०६७ अप्पार्ण विपरिवासे चिप्परियासत सा० । ६८० परं । ६९ करेद्र करने पासा ४७० नमणं आगमनं गमणागमण करे जसा ११५७१।० दिवाभोपणस्स अवणं वय पर्यतं वा सा० । ७२० राइसोयणस्स वां०] [१२०७३० दिया असणं वा परिमाता दिया मुंजइ । ७४० दिया परति ७५० र १० दिवा मु० ७६ रन डिगाड र जर्ज [वासा०] १९१७७ अस वा अमागाडे परिवाद परिवासनं वा सा० ७८१०] परिवासियरस असणरस वा तयप्यमार्ग वा मूइ वा आहार आहारेह आहारासा '२०२ । ७९ । सायं वा मन्छाइये वा मंसखलं वा मच्वा आहेणं वा पहेनं वा सम्मेलं वा हिंगोल वा अन्नपरं वा तद्या विहीरमार्ग पेहाए ताए आसाए एपिवासाए स्यणि अन्नत्यागाने उमाणि वासा २१२ ८०० निवेषणपिण्डं मुंजा ० २१५१८११० अहाछन्द पसह पसंत या सा० ८२० चंदवा सा० २२६८३ नाय वा अनायमं वा उपास वा अगुवास वा अलापने पासा० ८४० उबद्वावेह उपाय वा सा '४९१।८५४० नायन वा अनावरण वा उदासरण वा अणुचा वा अगले वेयायचं कारे कार वा सा० ४९६८६० चेले सचेलगाम संवसह संवसंत वा सा० 1८७० असलमा १८८० सा८९ अपेले अ० ५०७१९०१० पारियासिपं पिप्पल वा पिप्पल वा सिंगबेरं वा सिंगवेरपुष्णं वा बिलं या लाउ
लोगं जाहारे जहारने वा सा० ५२०९१
गिरिपडणाणि वा मरुप वा भिगुप वा तरुप वा गिरिपक्वंदणानि वा मरु० वा तक जलपाणि वा जलवा (२३९)
९५६ दिउसो ११
मुनि दीपरखसागर
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आगम (३४)
“निशीथ” – छेदसूत्र-१ (मूल) ---------- उद्देश: [११] --------------------------- ------------- मूलं [१२] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [0] "निशीथ" मूलं
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सूत्रांक
[९२]
दीप
जलपक्वंदणाणि पा जाण. बाविसमक्खणाणि वा सस्थोबाडणाणि या अंतोसामरणाणि या बहाणसाणिवा निडपट्टाणि वा कलयमरणाणि वा जाप अन्नयराणि पातहपगाराणि बालमरणाणि पसंसह पसंसंत बासा. "५३७ सेवमाणे आवजह चाउम्मासियं परिहारहाणं अणुग्धाइयं ।९२॥ एकारसमो उदेसजो ११॥ जे भिक्खू कोलणपडिपाए अन्नयरि ततपाणजाई तपासएण या मुंजपाचा कट्ठपाबा चम्मपा वा पत्नपा. वारपाबा सुत्नपा. वाघा बर्थतं पा सा०।१० मार्ग वा मुया मुर्तपासा. १०।२० अनिक्रवर्ण अभिक्खणं पचपसाणं मज़ा भजन वा सा. '१५।३१० परितकापसेजुनं आहारेड आहारतं वा सा• '२.४ा सलोमाई चम्माई घरेस परत वा सा."१५1५1० नणपीढ़गं वा पलालपीपा उमणपी वा कठपी० वा परबत्थेगोच्छ अहिले अहिले वा सा. ५०/६०निगान्धीए संघाडि अमडरियएण गारस्थिएण वा सिवावे सिवायत पासा. ५31310 पुरवीकापस पा कलमायमवि समारभइ समारभंत बासा एवं जान पायनिकायस्स '६१1८10 सचित्तरकसं एका एहत वा सा• '६६१९० गिहिमने भुजा मुंजतं पा सा.1१10 गिहिवत्यं परिहेड परिहंत वासा ॥१११० गिहिनिसेज बाहेड वाहतं वा सा०।१२। गिहितिमिच्र्ड करे करत वा सा• '८२।१३१० पुरकम्मकोण हत्येण वा मलेग वा इपिएण वा भायणेण वा असणं या पडिगाड पडिगाईत वा सा1१४१.अन्नउत्थियाण वा गारस्थिधाण वा सीओदगपरिभोएण. '१४२' 1१० कट्ठकम्माणि वा चिनक- या पोत्यका वा दन्तक वा मणिकवा सेलकवा गंठिमाणिवा वेदिमाणि वा पूरिमाणि वा संचाइमाणिवा पत्तच्छेजाणिवा विचिहाणि वा बेहिमाणि ना चक्सुसणचडियाए अभिसंधारत अभिसंधार वा सा०।१६० वष्पाणि वा फलिहाणि वा उकलाणि या पारस्पणि वा उमाराणि वा निजमराणि वा चाचीणि या पोक्सराणिवादीहियाणिवा गुजालियाणि वासरागिपा सरपंतियागि वा सरसरपंपा०1१७कच्छामि वा गहगाणि वा नूमाणिमा वाणिवा बणविरमाणिवा पश्याणिवा पायवि०वा. १८ागामाणि पानगराणि वा संहाणि या कापडाणि वामहम्माणि मा दोगमुहाणिवा पदणाणि वा आगराणि पा सम्बाहाणि वा संनिवेसाणि पा०।१९। गाममहाणिवा जाव संनिये. समहाणि बाब२०० गामवहाणिवा जाप सनियसपहाणिवा गामवाहाणिवा जाच संनिवेसदाहाणि वा२१ गामपहामि वा जाप सनिवेसपहाणिवा ॥२२ आसकरणाणि वाहस्थिका वा उहक वा गोणकपा महिसका वा घरका बा२३५० आसजुदाणिवा हरियजुवा उद्दकपागोण महिखजु बा२४० उज्जूहियहाणाणि वाहयतहियड्डाणाणि वा गयजूदियहाणाणि पा०।२५10 अभिसेयहाणाणि या अस्वाइयडागाणि या माणुम्माणियहाा महयापननीयबाइयतन्तीतख्तालतुहियपटुपवाड्यावा.।२६० आषायणाणिवा हिम्माणि पा उमराणि वाखाराणिवा पेराणि पा महाजुदागि वा महासंगामाणि नाकाहाणि या बोलाणिवा०।२७०विरुपावेस महस्सवेस इत्पीणि वा पुरिमाणि वा घेराणि वा मजिसमाणिवा डहराणि पा अणकियाणि वा सुमकियागि वा गायन्ताणि या वायन्नाणि वा नचन्ताणि वा हसन्ताभि वा रमन्नागि वा मोहन्नाणिवा विडलं असर्ग। वा परिभायन्नाभि वा परिभुजन्नामि पासा ॥२८०होशएसना को परलोडएमुना रूपेदिडेस वा अदिउसपा सएसपा अगए वा विनाएगवा अविन्नाए वा रूम सजडरता गिनाड अजमोवजा राजमार्ग चा जाच अज्झोक्वजमार्ण या सा. १६१।२९०पढ़माए पोरिसीए असणं वा पडिगाहेना पस्तिमं पोरिति उपाइणावर उवाणाचतं वा सा- '१८९।३010 पर अवजीवणमेराओ असणं पा० उवाहणावेश उपाषणावेतपासा. २१८।३१० दिया गोमयं पडिगाहेना दिया कार्यसि वर्ण आलिम्पेन वा विरिंगजवा आरिपननाविलियन वा सा दिया गो०प० रनिवणं आलिंक बिलिंपेजवा।३३३० रति गो०प० दिया पर्ण मा.वि. रनिगो.५० रति वर्ग आ-वि०३५/० दिया आन्दवणजार्य पहिगाहेना दिया कार्यसि वर्ण जाप उभंगो २२६।३६-३५ अमउन्थिएण या गारस्थिएण पा उपाहि पहाड पहावासा ४.10 नैनीसाए असणे वादे देतंबासा'२३०।११।जे मिक्स पनिमाजओ महण्णवाओ महानईओ उदिहाओ गणियाओ जियाओ अग्लो मासस समुनोचा निक्खुनो वा उत्तर वा संतरा वा उत्तरन्नं पा संनरन्नासाहला जहा-गंगा जणासरऊ एरावई मही'२७८'सेषमागे आरजा पाउम्मासिव परिहारटमार्ग उम्पादयं ।२॥बारसमो उसओ जे मिक्स अणन्तरहिवाए परीए ठाणं वा सेनं या मिसीहियं वा एव चेतं वासा.जार मकरासनाणगंसि ।१.८० धूर्णसिमा मिहेनुपसिना उमपानसि नाकामना सिर पा९नियतिवा मिनिति या सिनसिपाहेलयति वा अन्तनिकल जापंसिना12610 संसिया कहलिया मजलि वा मन्दसि वा मासिवा पासायति वा तुपदे इपिक्लिने अनिकम्मे पत्यपरे '२२ ११ मि अगास्थिय या मारस्थियं वा लिप्प पा सिलोग वा अहापयं या ककर बाबुरामह वा सलाह (ग) या सल्लाहकढहत्यर्थ वा सिक्स्थावेद सिरसावेत वा सा१२ आगार बयर वासा, फरस, आगाइफस्त. अन्नवरीए अबासाबणाए अबासाएर अया. सा. '३१।१३-१६ भिम् अन्न९५७निशीष रस उसी..३
मुनि दीपरजसागर
अनुक्रम [७४६]
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आगम
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[१७]]
दीप अनुक्रम [८०५]
उत्थियाण पामारस्चियान या कोडगकर्म को करने या सागरमुहकर्म०१८ पसिर्ण कहेड०१७ पसिणापसि०२००ती निमि०२१ लसण।२२२० समिणा२३॥ पिन पाउंजह पाउंजत या सा०५०'१२ एवं मन्त।२५/जोग ।२६ महान मुटाणं विप्परिवासियाणं ममा वा पचेएर संधि या प० मीण वा संधि प. संघीयोबा मग प० पएन वा सा-२० घार्ड पवेएड पोएं बा सा२८ा निहि.६२।२९४ जे मिषनू मचए अप्पाणं देहद देहवं या सा-1३० अहाए।३१॥ एवं असीए।३२॥ मभिए 1३३ उहापाणे।३४॥ो।३५/कारपा)मिए।३६० पसाए '७३३० बम पडिकम्र्म करेह करतं या सा-३८ा-विरेयणं०३९।०वमनविरवर्ण-18010अरोगियं०'८४४१३ ०पासस्थ बंदद परत पासा पसंसह पसंसले बा सा '११९४२-४३॥ एवं ओस ४४-४५ कुसील ४६-४अनिविय ४८-४९॥ संसत । ५०.५१। काहिये । ५२-५३। पासणिय १५४-५५। मामगं । ५६.५। संघसारगं '११९१५८-५९० चाइपिट मुंजा मुंजतं वा सा-1६1 एवं इ०।६१। निमित. ६२। आजीनियः । ६३ावणीममपि०१४॥ लिगिण्ठाया कोहरामाण ६७ामाचा गदालोमा १६९ | विजा130। मन्त०1७१। जोग०1७२ पुण०1७11 अन्तवाण, '२१६'तसेपमाणे आवश जाइ चाउम्मासिय परिहारहाण उम्पादयं । ७४॥ तेरसमो उदेसजो १३॥ जे मिक्सू पहिम्मद किगड किनावेद कीर्य आहद केजमार्ग पहिगाहेर पडि.सा. ११०पामिचेर पाभिचाड पामिनिय २१० परिषद परिषदायेइपरियहि अच्छेनं अनिसिह अभिहई ५१जे निक्यू जहरेग पडिग्गहर्ग गणि उरिसिय गणि समुदिसिय तं गणि अणापुदिश्य अणामन्तिय अनमानस्स वियरह वियर पासा. सुहगरसपा सुटियाएका वेश्मरसवा रिवाए वा महत्वच्छिन्नस्स जपायच्छिन्नरस अनासच्छिन्नस्स अकष्ण-i छिन्नम्स अपोइछिन्नस्स सकारस देव देतं वा सा०६० सुहागरस वा जाप वेरिवाए पाहत्पच्छिमस्सा ओइच्छिमस्स असकस्स न देहनत वा सा.'१५५'अजेनिक्यूपडिग्गाई अणलं अविरं अधुर्व अधारगिज परेड परेंत या सा1८1० अलं थिरं पुर्व धारणिजन घर नपाल वा सा- '१५९९राजे मिक्यू वाणमन्तं पडिग्गा दिया करे कोल का सा 1१०1विषण पटिम्गाह वणमन्त।११॥जे मिक्सू नोनपए मेपहिगाहे लदे तिकटुतेखेगवाघएणना नवणीएणवावसाए वा मासेजमा मिलिंगेजवा मक्खते वा मिलिगंतं वा सा० ।१२।०लोच ना कोण ना मुणोण वा पण या महोलेज या उजलेज वा उहडोलतं वा उपलहितं वा सा०1१३० सीओरगवियडेण वा जाच उसिणोदमानियोग वा उच्छोलेमा बा पोएन पान१४० बहुदेवसिएम तेरोष वा लोणचा सीओदगविषण जाप सा१५-१अजेणवए मे पहिया निह एवं दोगमामाणियहाजे सुस्मिगंधे पहिम्गहे लादेशनिक बहदेवसिएणसीओरमपियरेणना जाच सा1१८-२राजेनोमवए सम्मिगंधणविदोष गमा।जे दुम्मिगंधे पटिम्गहगे लदेनिम्भिगण दो वेव गमा मेयमा'१७४ ।२४-२९। जे मिक्यू अणन्तरहियाए पुढबीए जाच जीवपतिहिते सटे जान ससकमनसि चलाचले सपडिग्गाहर्ग आयावेज वापयामेजबाजाचा पवावंतं वा सा०॥३०-४आएवं जे. कुलियसि पा जापलेल्यसि वा सपदिग्गहरी आया पया साहा४१सजेसंचसि जान पासायसिवाजन्नयरंसि वा अंतरिक्खजायसि सपति- १७९४२२.पतिमाहामओ पुढवीकार्य आउकार्य नेउकार्य नीहरहनीहरपेड नीहरियं आइव देनमार्ण पडिग्गाहेर पडिग्माइल बा सा०1४1०दाणि वा मूलाणि वा पत्नाणि वा पुष्पाणि वा फलाणि मानीवाणि वा०४४ा ओसहिनीयाई ॥४५॥ तसपाणजायं. '१५५'४६जे मिष पडिग्मग णिको णिकोरावह निकोरिच आहद देजमाणं पहिमाहेड पडिगाहनं वा सा० २०.१४ाजे भिक्यू नायबा अनायबा उपासमंवा अगुवासर्गचा गामन्तरंसिपायामपहन्तरसिया पडिग्गाहर्ग मोनालियर जाया जातवासा४८०अणुवास या परिसामजाओ उहवेता २१३१४९जे भिक्यू पदिग्गहगनीसाए उपबं वसा वसंत बासा 11वासाचासं० २१७ सेवमाणे आवजा चाउम्मासिय परिहारहाणं उम्पाइयं ।५१॥ बदसमोर उरेसओ १४॥जे मि मिक्सूर्ण आबादं वह पर्यत वा स्व शएवं करू. आगाढकस० शिवअनपरीए अचासायजाए अबासाएर '२१४ाजे भिषयू सचिन अम्म भुजा मुंजन नासा1५. विसह विसंत वा साना-सचिन जम्ब वा अम्बपतिबा अम्बमित्तं वा अम्बसालगं वा अम्बहालवा अम्बचोयग या मुनमुंजी बा सा०1310 बिरसद विडसन वा सा- सचिनपति अभभुजा एवं सचिनपनिदिएमपि पनारिआन्ठानमा मेवा'२५८९-१०जेमिष अगस्थिएणवागारपिएणमा अप्पमो पाए आमजावेज वा पमजावेज वा आ. प.सा.एवं नपाउसगमओ यत्रो जाच सीसवारियं. जे गामाणुगामं इनमाणे अनउस्थिएन वा गारस्थिएन वा अप्पगो सीसलुनारियं कारपेड कार सा०१३-६५। जे मिक्सू आमन्नारे या जाच महामिद्दसि वा उचारपासवर्ण परिवेश परिहवन या सा- '२६८१६६-७४ जे मिष अन्नउन्धियरस वा गारस्थियस्स का असणं दे पा सा । ७५० पहिला परिच्छत वा सा- 1961 पाय वा पडिग्गहवा कंबलं वा पायपुश्वर्ण वा देश लवासा 13310 पदिच्छाद ९५८ निशीथ वेदमूर्ष उसी-२५
वरतसागर
GAयकाका यसपyavat
अत्र उद्देशक: १५ आरब्ध:
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आगम (३४)
“निशीथ” – छेदसूत्र-१ (मूल) ---------- उद्देश: [१५] ------------
----------- मूलं [७८] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [१] “निशीथ" मूलं
प्रत सूत्रांक [७८]
दीप
पदितं या सा०1७८ जे नित्यू पासस्थम्स असणं या देव देश वा साः पहिच्छति पडि साय, पत्थं वा जाप पायपुमठणं या देति देत वा सा० वरयं वा पटिपाइ १० साlal । ७९-८२॥ एवं ओसमस्स 1८३-८६॥ कुसीलस्स।८७-९०। नितियम्स ।५१-१४। संसलरस '३०४१९५-१८ाजे भिक्यू जायणावस्थं वा निमन्तणावत्थं पा अजाणिय अपु-ब यि अगसिय पदिगाहेड पदिग्गाहेन वा साइजद से य पत्थे चउई अपयरे सिया जहा-निचनियंसणिए मगणिए छणुस्सविए रायवारिए ३९४१९९॥ जे मिक्यू पिभूसापटियाए अपणो पाए आमज वा पमजेज वा आप० साति०,एवं तइयउदेसगमेण जाव जे गामाणुगार्म जमाणे विभूसापटियाए अपणो पाए आमजेज वा पमोजन वासा1१००-१५२१० वर्थ वा पडिमाई वा कम्बई वा पायपुर्ण वा अनयर वा उपगरजायं परेड परंतं वा सा०।१५३१० घायद यो वा सा०३९८'सेत्रमाणे आचअदबाउम्मासिय परिहारहार्ग उम्पाइयं । १५४सवारसमो देसी १५॥जे
निसामाश्चि से उपागम 3.सा..१३३१०साठवगं से अणपविसह अणपविसर्ग बासा. २५६।२० सागणिय से० २९३।३० सचिन उष्ट्र मुंजाइएवं पारसमे उसे अंबस्स हा गमो सो पेव इहपि यत्रो ।४. विटसहा सचिन अन्तराष्ट्रय बा उखटियं वा उष्टचायगं या उन्हमेसीया उपसागं या उडालगवा जापिडसहसचिनपइद्वियं उई जह,विडसइ, अंतराष्ट्यं २९६८-११० जारणामाणं वर्णनयाण अरनीजनासंपड़ियाणं असतं पापडिगाड पट्टि मा १.३११२० सराह अवसराश्य यह पयंत वासा०॥१३॥अवस.स.'४७७११४५० पुसराइयाओ गणाओ अपसराइ गर्ण संकमा कर्मतं वा सा-१५॥ माहवकताण असणे ना देहति वा सा1१६1 पहिण्ड परिमात या सा-१४ा एवं कर पा परिगाहे या कम्पल या पायपुर्ण बा देह तं वा सा-।१८ा परिठद पडि सा1१९ एवं वसहिनि दोहिंगमएहि. देहा२०। पहिण्डा२१ जणुपपिसइ ।२२१० सहाय देव देने या सा- २३० सज्झायं परिन्छ परिसा. "५९५२४० विहं (जरवि) अमेगाहगमणिज अभिसंधारे अभिसा ५८४२५०विरुबरूवाई दस्सुगाययणाई अणारियाई मिलाई पन्तियाई सति साडे बिहासए सबरमाणेम संबसंगजेसु जणपाएमपिहारपहियाए अभिः '६१६१२३ भिठयकुलेमुजसणं या पहिगाहेद पडिगाईत वाय सा०।२७१० पावं या गदिग्गई या कम्बलं या पायपुनमा पा०।२८१० वसहिला २५० सम्माय उदिसइ उदिसतं वा सा०।३० वाएड या वासा 1३११० परिषद पतिमासा०1३२० असणं पा० पदपीए निश्रिश्वट निवासा।३३७ संधारए।३४ हासे० '३२८।३५ अग्नउत्थीहिंपा गारस्थीहिंवा सर्दि अजह अजंतं वा सा३६० आहियपश्चिदिए मजा मन्या सा-३८।३७०जायरियध्वजापान सेनासंमारनपाएसंघडेना स्वग अपनवेशाचारपमाणे गच्छा गच्छनासा६४२३दा पमाणाइरितंबा गणणाइरिन बा उहि परेर यतबासा७४७'१३९। अनन्तरहियाए पुदीए चलाचले उबारपासवर्ग परिवेन परिर्वत या सा-(नाव संचसि.) '७४५' सैसेषमाणे सावनइ चाउम्मासिय परिहारहाणं उम्पादयं ।४०-५० ॥ सोससमो उदेसओ १६॥जे भिक्ट कोऊहापडियाए जन्नयर सपाणजाय नणपासएप पा जाय सुनपास-2 एग या बंघदबंचंतं वा
सान देहग या मयदमयंत या सा-1२० जणमालिय पाजाव हरियमालिय वा पिपदद करेड करें या साल परेड पदा०८१३.५० अयजोहाणिमा जान सुबोहाचिया करेद करेंतवासा परेर परत पासा.परिमजा.स.१.15.
८हासगिया जाप सवाणासनाणिना . परिमजाक पं.स १११९-१११० आणामिका जाप आमरणविभित्ताणिवा को कोतमा सा. परेड कसा परिज.सा.१४।१२-१४ जा निमन्धी निमान्धस्स पाए अनस्थिएणवा गारम्भिरण या जामजावेज वा एवं ननिसोदेसममेण बोया जायजा निग्गन्धी निग्गन्धसागामाणगाम रहलमागम्स अमगार सीसवारिय कारवेद १५६७जे निम्न्ये निगान्धीए पाए सन्नान्विीए या गारन्धिीएका आमनिजवा जाव सा एवं मम्गिाडगमयसरिसं बोया जाप निग्गन्धीए गामाणुगाम दुवामाणीए अन्न गा-सीसदवास्थि कारवेइ २८६८-२२०४जे निम्गन्धे निम्गन्धसमरिसनस्ससन्ते जीवास अग्ने मोवासन देनदेश वा सा-१२२ जा निम्माम्दी निम्मान्धीए सरिसियाए जाब साइजइ ४६।१२२॥जे मिक्स माहट असनादेजमार्ग पहिगाहेर प.मा.१२३कोडाइर्मजसर्ग वा.उपकमिय निकजिय।१२४० महिओलिन असर्ग चाउमिदिव निधिदिय. ५५ १२५ जे मिक्सूजल वा जनवरं पुढीपहियं पडिग्गाहेइ१२६॥ एवं उप०१२ उप-1१२८ा वणस्सहकायप०६२।१२५॥ से मिक्सू जयसिणं असा पासुषेण वा पिहोण वा वासियष्टेण वा पनेण या पनभोग वा साहाए वा साहामण वा पेहगेण या पेहहम्ण वा चलेगा पा चेलकणोण पा इत्पेग वा मुहेण वा कुमिनाया बढ़ताया आहद देजमाणे पशिग्गाहेदपक सामा२३०० असणं वा उसिसिण पहिगाहेदपक सा१३१०० उस्सेवणं वा सेवणं वा पाउलोदगंवा वारोनिशीष दसूत्र, उप-७
मुनि दीपरनसागर
अनुक्रम [९८२]
अत्र उद्देशक: १७ आरब्ध:
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आगम (३४)
“निशीथ” – छेदसूत्र-१ (मूलं) ---------- उद्देश: [१७] ------------------------- ------------ मूलं [१३२] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [१] “निशीथ" मूलं
प्रत सूत्रांक [१३२]
FORPOvyारकरप
दीप अनुक्रम [१०३६]
दगं मा निनोदगं या नुसोदर्ग वाजवादन या भुमोदगं या आयामं पा सोचीरं या अन्यकत्रियं वा सुदपियर्ड या भरणापोय अर्णबिलं अपरिग अबकन्तजी अनिवन्ध परिम्माहेब ५० सा. ३२१ अप्पणी आयरिबनाए लक्खणाई वागरेर वागरन वा सार१३३१० गाएज या बाएज या नोज बा अभिणएजमा हपहेसिव हस्थिगुलाला उमड- 4 सोहनायं वा करेड करने या सा ॥१३४१० मेरीसहाणि वा पलह वा मुस्वः या मुईग- या एवं नंदि० या शसरिया याउरिया उमग या मरस्य या सवय या पएस. या गोलहवा अजयराणि मानहगाराणि वित्याणि सदाणि कापसावपडियाए अभिसंचारेह असा बारसमसममेग या । १३५० मीणामहाणि गाविपतिः बाणा पीसममा बीणाइया तुबपीना या झोराहयक पा रंकूणस या अनयराणिया नहषगाराणि विनयाणि सदामि।१३६ सालसामिया कसतान बालनियावा गोहियामा मकरियया कामि० या महइ वासमालिया वा वालिया वा अनवराणि वानहगाराणि मुसिराणिका १३७१० संससदापि वा सवा वेणु वा खरमुहिः या परिलिक बाद
या या अन्यराणि वा तहणगाराणि शुसिरामिक १३११३८० अध्याणि या कन्विहामि वा जाप इह पर इएस वा सदेस जान अन्नावरजेमाण या सा१४' सेवमाणे आवजा चाउम्मासिय परिहारहाणे उपाइयं ।१३९-१५२० सनस्समो उद्देसओ २७॥जे भित्र अणडाए नायं दुलहा दुरुसा1११ नायें किगह किणावेदकीयमाहा दि. जमान दुरूहा दुरुहर्म या सा-एवं जो चोदसमे उदेसे परिम्गगमा सो पत्रो जाव अगा , गयरं वदतिति माणिया ।२-५० बलाजो नार्य जले ओकसावेह ओ.सा . जनाभो नायले उकसावेत उकसा०1७1. ना उस्विरसादासम्म नार्थ पिलावर पिसापरिणावियं कटर नावाए दहादसा०1१०1० उदगामिणि या नार्य अहोगामिगि वाना एव्हा.मा११० जोषणवेलागामिर्माण कारजोषणकेलागावा नार्य दु०९०मा० १२०० नार्य आकसावा ओकसावेड पेवाड़ खणादा कड़वई०१३1० नार्वजानितएणवा परिफडएपना संगना बनाना चाहेइनासा।१४.नावाओ उदगं भायणेग वा पडिमाण वा मनेण या नावाउस्सिागंण पाउस्जिद उ.सा. १५. ना उनिगेण उवर्ग जासवमाणि उपस्या कजलमाणि येहाय हत्येग या पाएग वा आसन्धपतेण वा कुसपनेण वा महियाए वा चेलकपणेग वा परिपीहेड या सा-९६० नावामओ नावागयम्स असणं वा पहिगाहेदप० सा० '३० एनेण गमेण गापागञोजन्तगतस्सणावागतो पंकगयरस पावागतो बलगतस्स एवंज. याएपनि चनारियकारणविपनारि मनगएणविपनारिमाया ।२७-३२.प किग किनाव कीचमाहट विजमार्ण परिग्गाहर.सा, एवं चोदसमे उसे पतिमाहए जो गमो मणिमओ सोय उपि यग्येण गोपनी जाप वासापासं संवा संव.मानवरं निकोरणं नरिव'३१'सेवमाणे आपला चाउम्मासिय परिहारझर्ण उपाइय 1३३.८८।जहादसमो उदेसओ स्ट जेभियस वियह किया किणार की मार देजमाणं पतिमाहेर प.सालएवं पामिनि पामिचायति पामिचियमिनि 1२० परियति परियडायति परिबहियमिति 1310 अच्छेज अनिसई अभिहई।४.जे.भिक्यू गिलाणस्सऽहाए पर तिन्हं विषदनीगं पडिम्गाहेइ ५० सा1५/वियर महापामाणगाम ददददसा०11० वियर मालेगालावेद गालिय० २६।७1०पउहि समाहि समझाय फरेहकरेन यासानं पाए संझाए पग्थिामाए संमाए अपर मज्जादे अटरनेटाकालियमयस्स पर लिई पुष्ठागं पुष १०सा/दिहिवायरस पर सनष्टं पुष्डाणं पुष्ाद पु०सा ३६११०० अउसु महामहेसुसजमार्य करेह करेंत या सास-इन्दमहे खंदमहे जखम भयमहेशपमहापारिएएसजशकर करेल वासा.तं.सुगिम्तियापादिवए भासादीपा नवय(इन्दमह पा० कति यपा।१२. पोशिस सदाब उबाइगावेद उनासा1१३पाउफार्म सन्झायन करेनक.सा.y'1१1.असम्झाइए सायं करेइ क.सा॥१५अप्पणी असन्माइए सज्झार्य को क० सा० १५२१६० हेहिलाईसमोसरगाई अवाएना उबविताई समोसरणाईया या या सागरनब बचचेराई प्रवाएना बरिमसुर्य बाएव वा बासा० १६९९८अवनं पाएर या सा०।१९।०-वन न पाएननवा-सा/२0) जपनं गाएर वा० सा०।२११० पत्तं न पाएर नया सा- १२१५१२२शदोहपिल
सरिसमा एक संचिकलाचेर एकमसचिलावे एकमाएड एकनवाएनया-सा. '२२१।२५आयरिबउवमाएहि अविदिशं गिरं माइया आईसा०।२४० अनउ-2 वधियं वा मारस्यिय बा बाएइवा. या सा-२५/० पडिया पर सा०।२६१० एवं पासत्य।२७-२८ा ओस । २९-३०॥ कुसीन।२१-२२। नितिय ३३-३४३ संसनं '२४३' ।
मेरमाणे आयजद चाउम्मालियं परिहारहाणं उग्पाइयं । ३५-३६॥ एगुणीसइमो उदेसी १९॥ जे भिमय मासिवं परिहारहाण परिसे बिना आलोएजा अपकिउंचियं आलोएमास मासिपं परिनिपं जाएमागसादरोमासियं एवंहारपत्मरेसममा पो जाय इसममा समना एगलसोबहनोविजाप सामेवं सकय एगलो साहणिना जाए प पडवगाए पलिए निविसमाणए पडिसेचिजा साविकसिया तत्वेन आरहेया सिया '३०९१-२२०० इम्मासिय परिहारहाण पडुलिए अणगारे अंतरा दोमासिब परिहारद्वाग (२४०) ९६०निशीथ दसु उसी-२०
मुनि दीपरनसागर
/05 VIRA
अत्र उद्देशक: २० आरब्धः
~118~
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आगम
(३४)
प्रत
सूत्रांक [२३]
दीप
अनुक्रम [१३९०]
भाग
27
*
“निशीथ छेदसूत्र- १ (मूलं )
उद्देश: [२०]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...
-
मूलं [२३]
...........
.... आगमसूत्र [३४], छेदसूत्र [१] "निशीथ" मूलं
पडिसेवित्ता आलोएजा अहावरा वीसइराइया आरोवणा आइमज्झावसाणे सअहं सहेठं सकारणं अहीणमइरितं तेण परं सवीसइराइया दो मासा | २३|० पञ्चमासियं० एवं चाउम्मासियं एवं तेमा सियं० एवं दोमासि मासियावि० जाव सवीसराइया दो मासा । २४-२८।० सवीसराइयं दोमासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे तेण परं दसराया निष्णि मासा | २९/० सदसरायतेमासियं परिहारद्वाणं जाव तेण परं चत्तारि मासा | ३०/० चाउम्मासियं परिहारद्वाणं जाव तेण परं सवीसराइया चत्तारि मासा । ३११० सवीसराइयं चाउम्मासियं परिहारद्वाणं जाब तेण परं सदसराया पञ्च मासा |३२|० सदसरायं पञ्चमासियं परिहारद्वाणं जाव तेण परं छम्मासा । ३३० छम्मासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे अन्तरा मासियं परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएजा अहावरा पक्खिया आरोवणा आइमज्झावसाणे सअर्द्ध सहेडं सकारणं अहीणमइरितं तेण परं दिवड्ढो मासो । ३४।० एवं पञ्चमासियं चाउम्मासिय तेमासियं दोमासि मासियं परिहारद्वाणं पटुबिए अणगारे विड्ढो मासो । ३५-३९० दिवढमासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं दो मासा |४०| दोमासिय परिहारद्वाणं पट्टचिए अणगारे अइटाइजा, एवं एतो पक्खे २ आरोवेयशे जाव छम्मासा पुण्णत्ति । ४१॥ (० दोमासियं परिहारद्वाणं पट्टविए जाब तेण परं अड्ढाइजा मासा | ४१1३) अड्ढाइजमासियं परिहारद्वाणं पचिए अणगारे तिष्णि मासा । ४२।० तेमासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे अबुट्टा मासा । ४३० अट्टमासियं परिहारट्टाणं पट्टत्रिए अणगारेः चत्तारि मासा ॥४४॥० चाउम्मासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे अड्ढषञ्च मासा ॥४५॥ ० अढपञ्चमासियं परिहारद्वाणं पचिए अणगारे पञ्च मासा ॥ ४६ ॥ पञ्चमासियं परिहारद्वाणं पट्टत्रिए अणगारे० अद्धउडा मासा |४७1० अदछट्टमासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे० छम्मासा । ४८१० दोमासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे अन्तरा मासिय परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएजा अहावरा पक्खिया आरोवणा जाव तेण परं अड्ढाइला मासा | ४९) अड्ढाइजमातियं परिहारद्वाणं पविए अणगारे अन्तरा दोमासियं परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएना अहावरा वीसइराइया आरोवणा० तेण परं सपञ्चराया तिष्णि मासा । ५० । सपञ्चरायं तेमासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे अन्तरा मासियं परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएना अहावरा पक्खिया आरोचणा जाव तेण परं सचीसइराया तिष्णि मासा । ५१ । सवीसइरायं तेमासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे अन्तरा दोमासियं परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएना अहावरा वीसइराइया आरोवणा तेण परं सदसराया चत्तारि मासा । ५२ । सदसरायं चाउम्मासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे अन्तरा मासियं परिहारद्वाणं पडिसेविता आलोएजा अहावरा पक्खिया आरोवणा तेण परं पञ्चूणा पञ्च मासा । ५३ । पञ्चूर्ण पञ्चमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अन्तरा दोमासियं परिहारद्वाणं पडिसेविना आलोएजा अहावरा वीसइराइया आरोवणा तेण परं अछा मासा । ५४ अदछ मासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे अन्तरा मासियं परिहारद्वाणं पडिसेबिना आलोएजा अहावरा पक्खिया आरोवणा लेण पर छम्मासा '३६९ १५५ उपसंहारः ४२५ ॥ श्रीसिद्धाचलोपेत्य कायां शिलोत्कीर्ण सकलागमे आगममंदिरे श्रीनिशीथच्छेदसूत्रं १
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७
निशीथ छेदसूत्र [१] 'मूल' परिसमाप्तः
मूल संशोधकः सम्पादकश्च पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब किंचित् वैशिष्ट्य समर्पितेन सह पुनः संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागरजी
~ 119~
[M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि]
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[३६] श्री बृहत्कल्प (छेदसूत्रम्-२)
नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः
"बृहत्कल्प" मूलं
[मूलं एव]
[आद्य संपादकश्री] पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.
(किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.,श्रुतमहर्षि)
28/07/2017, शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल ५
'सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि' श्रेणि भाग-२७
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आगम (३५)
“बृहत्कल्प” – छेदसूत्र-२ (मूल) ---------- उद्देश: [१] ---------------------------------------- मलं [१] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३५], छेदसूत्र - [२] "बृहत्कल्प" मूलं
प्रत
सूत्रांक
श्रीबृहत्कल्पसूत्रम्
पीठिकाभाप्यगाथाः '८०८ नो कप्पड़ निग्गन्धाण वा निग्गन्धीण वा आमे तालपलम्बे अभिन्ने पडिग्गाहेत्तए '१००२।१। कप्पड़ निग्गन्धाण वा AIR
निग्गंधीण वा आमे तालपलम्बे भिन्ने पडिग्गाहेत्तए १०३६।२। कप्पड़ निग्गन्धाणं पक्के तालपलम्बे भिन्ने वा अभिन्ने वा पडिग्गाहेनए।३।नो कप्पड़ निग्गन्धीण पके नालपरम्बे अभिन्ने पडिग्गाहेत्तए।४। कप्पइ निग्गन्धीणं पक्के तालपलम्बे भिन्ने पडिग्गाहेत्तए, सेऽपि य विहिभिल्ने, नो चेवणं अविहिभिन्ने (परम्बपगरण 2.१०८९)।५।से गामंसि वा नगरंसि वा खेसि वा कम्बईसि वा पट्टणंसि वा मडम्बसि वा आगरंसि वा दोणमुहंसिवा निगमंसि वा रायहाणिसि वा आसमंसि वा संनिवेसंसि वा संवा
हंसि वा घोसंसि वा अंसियसि या पुडभेयणसिवा सपरिक्वेवंसि अबाहिरियसि कप्पड़ निग्गन्धाणं हेमन्तगिम्हासु एगं मासं बथए ।६। से गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा सपरिक्खे - 1- बसि सबाहिरियसि कप्पद निग्गन्धाणं हेमन्तगिम्हासु दो मासे वन्थए, अन्तो एगं मासं बाहिं एगं मास, अन्तो बसमाणाणं अन्नो भिकखायरिया बाहिं वसमाणाणं बाहिं भिकरवा
यरिया । उसे गामंसि वा जाप रावहाणिसि वा सपरिक्वेवंसि अबाहिरियसि कप्पइ निमान्धीणं हेमन्तगिम्हासु दो मासे वथए ।८ा से गामंसि वा जाच रायहाणिसि वा सपरिक्षेचंसि बसबाहिरियसि कप्पइ निम्गंधीणं हेमंतगिम्हासु चत्तारि मासे वत्थए, अंतो दो मासे बाहिं दो मासे, अंतो वसमाणीणं अंतो भिक्खायरिया बाहि यसमाणीर्ण वाहिं भिक्खायरिया,
-२१-३००।५। से गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा एगवगडाए एगदुवाराए एगनिकखमणपबेसाए नो कप्पड निरगंधाण य निग्गंधीण य एगयओ पन्थए।१०। से गामंसि वा जाबरावहाणिसि वा अभिनिगडाए अभिनिद्वाराए अभि(णेग)निक्लमणपवेसाए कप्पइ निर्गवाण य निगांधीण यएगयओ बन्थए २३००।११। नो कप्पड निगांधीणं आवण. ९६१चहत्कल्प:मूत्र, असो-१ .
मुनि दीपरतसागर
अनुक्रम
अत्र उद्देशक: १ आरब्ध:
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आगम
“बृहत्कल्प” – छेदसूत्र-२ (मूल)
(३५)
---------- उद्देश: [१] ---------------------------------------- मलं [१२] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३५], छेदसूत्र - [२] "बृहत्कल्प" मूलं
प्रत सूत्रांक [१२]
सागिहसिया रथामुहंसिया सिड्पावति वा निसिपा चाउसिवा चचरसि चा अंतरावर्णसिवा पत्याए ।१२। कप्पा निर्माचा आपणमितिमा जारतरासिया पत्याए
२३३०१३मोकप्पा निम्गंधीणं अचहगवत्वारिए उपस्सए पत्थए.एगे पत्यार तो किया एणपत्यारं पाहि किया ओहानियचितिमिलियासि एव कप्पर पत्याए '२३५४ १४ा कप्पइ निम्नपाणं अबगुपवारिए उबरसाए पत्याए '२३५६।१५। कप्पन निग्गंधी अंतोलित्तय पढिमत्तयं धारेतए वा परिहरित्तए वा '२३६९।१६।नो कप्पा निग्गचाणं अंतोलिलयं पडिमत्तयं धारेनए वा परिहरिचए वा '२३७११११अकप्पद निम्गंधाण वा निम्गंधीण वा चेलचिलिमिलियं धारेत्तए चा परिहरिसए वा '२३८७११८ानो कप्पा निग्गंधाण वा निग्गयीण वा दगतीरंसि चिहितए पा निसीइत्तए वा तुपहित्तए वा निदाइत्तए वा पयलाइतए वा असणं चा आहारमाहारेत्तए पा उचारं वा पासवणं वा लेलं वा सिंपाणं वा परिहवेलए, सज्झायं वा करेनए, धम्मजागरियं वा जागरित्तए,माणं वा साइत्तए, काउस्मयां वा करित्तए, ठाणं या ठाइत्तए '२४३०।१९।नो कप्पड निर्माधाण वा निम्बंधीण वा सचित्तकम्मे उनस्साए पत्थए।२० कम्पा नियांचाग वा निग्गंधीण वा अपित्तकम्मे उपस्सए पत्थए '२४३८।२१। नो कप्पइ निगयीण सागारियं अनिस्साए बथए।२२। कापड निरगंचीणं सागारियनिस्साए पत्थए '२४५०२३। कप्पा निम्गंधार्ग सागारियनिस्साए वा अनिस्साए वा परथए '२४५३१२४ानो कप्पा निम्गंधाण वा निगयीण वा सागारिए उबस्साए पत्थए, कप्पा निम्गंधाण वा निम्गंधीण वा अप्पसागारिए उपस्सए पत्याए २७५५ ॥२५॥ नो कम्पइ निम्गंधाणं इत्विसामारिए उवस्सए पत्थए २६कप्पड निरगंधाचं पुरिससागारिए उनस्साए पत्थए।२७ नो कम्पा निग्मधीणं युरिससागारिए उबस्तए वत्थए।२८ाकप्पाइ निर्गधीर्ण इस्थिसागारिए उनस्साए बत्थए '२५८७।२९५ नो कप्पद निर्माधाण पडिवहाए तेजाए बत्थए।३०। कप्पद निरगंचीणं पढिवदाए सेजाए पत्थए '२६३३।३१। नो कप्पड निरगंयाणं गाहापाकुलस्स मामोणं गतुं यत्पए ।१२। कप्पा निर्णधीर्ण गाहावाकुलम मॉमन्मेणं गतुं पत्थए '२६८०१३३. भिक्खू य अहिगरणं कटतं अहिगरणं अपिजोसमेत्ता अनिओसविषपाहुयाए पो आवा. एजा इच्छाए परो गो आढाएजा इच्छाए परो अभुढेजा इच्छाए परो नो अमुढेजा इच्छाए परो देना इच्छाए परो नो बवेजा इच्छाए परो समुशेजा इच्छाए परो नो संमुळे. जा इच्छाए परो संवसेना इच्छाए परी नो संवतेजा इबकाए परो उक्समेजा इच्छाए परो नी उपसमेजा, जो उवसमाइ तस्स अस्थि आराहणा जो न उक्समा तस्स नस्थि आराहणा, तम्हा जप्पणा चेव उपसमिया, से किमाहु मते . उक्समसारं लु सामगं '२७३८।३४ नो कप्पड निर्माधाण वा निमांधीण वा वासाचासासुचारए।३५ कम्पा निग्गंधाण वा निमांधीण वा हेमंतगिम्हासु चारए "२७६३१३६।नो कप्पा निगंधाण वा निर्माचीण वा वेरजविरूबरजसि सज गमणं सज आगमन सर्ज गमनागमणं कोतए, जे खालु निग्गधे वा निर्माधी वा बेरजविरुदरजसि सज्ज गमणं सनं आगमणं सज गमणाममणं करेइ करेंतं वा साइनाइ से दुइओ पीइकममाणे आवमा चाउम्मासियं परिहारहाणं अणु-E म्याइयं २७९५।३७ निम्गय चणं गाहापाइकुल पिंडचायपडियार अणुष्पपिडं कई बत्येण वा पडिग्गाहेण वा कम्बलेण वा पायपुतणेण वा उपनितिजा कल्पह से सागारकर्ड महाप आयरियपाबमूले ठमेत्ता दोचंपि उग्नहं अणुभवेत्ता परिहार परिहरिसए '२८१८।३८ा निम्यं चणं बहिया पियारभूमि या विहारभूमि वा निक्वंतं समा केद्र वत्येण वा पडिग्गहंग वा कम्बलेण वा पापडणेण वा उवनिमंतेजा कप्पा से सामारकर्ड. २८१९३९। निम्नचिचगाहावाक पिंडावपडियाए अणप्पविलेषणवरं पतिणीपापमूले ठवेताना निर्माधि चणं बहिया निहारभूमि वा चियारभूमि वा जाय परिहारं परिहरिचए "२८५०१ नो कप्पा निर्माचाण मा निर्माचीण या राजोमा पियाले बाल असणं वा पडिग्गाइचए ।४२॥ ननत्य एगेणं पुवपढिलेहिएणं सेनासंथारएणं २८७३।४३१ नो कप्पा निग्गंधाण वा निग्गंधीण वा राओ का वियाले वा वयं वा पडिग्गाई पा कम्मल वा पायपुन्छणं वा पडियाहेत्तए'३००५१४४ानन्नत्य एगाए हरियाहसियाए,सानिय परिमुत्ता या धोया मारत्तामा पहावा महाना संपमिया या ३०४२१४५ नो कप्पन निग्गन्धाण वा निग्गन्धीण वा राओ वा वियाले वा अदाणगमर्ण एचए '३१४२१४६० संखडिया संखडिपडियाए अदाणगमणं एसए '३२१०'
1 नो कप्पा निम्गन्धस्स एगामियस्स राओ वा रियाले बा बहिया विहारभूमि या पियारभूमि वा निक्लमित्तए या परिसित्तए ना, कप्य से अप्पमियरस वा अन्यतइयरस वा राबो ना नियाले या बहिया निहारभूमि वा विचारभूमि वा निक्लमित्तए वा परिसितए पा '३२२५'४ानो कप्पा निम्मन्बीएएगाणियाए राजोवा विधालेवा बहिया विधारभूमि वा विहारभूमि वा निपसमिनाए वा पविसिलए का, कापा से अप्पतायाए वा अपचउत्पीए वा राओ वा नियाले बामहिया विधारभूमि वा विहारभूमि मा निपसमित्तए वा पनिसित्तए वा १२४३' 1४५। पुरत्पिमेणं कप्पर निगन्याण वा निम्मन्बीण वा जाब अनमगहाओ एत्तए इक्विणेणं-जाव कोसम्बीओ एतए पचत्यिमेण जाच युणाक्सियाओ एसए उत्तरेणं जाव
अनुक्रम
[१२]
मुनि दीपालसामर
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आगम
(३५)
“बृहत्कल्प” – छेदसूत्र-२ (मूल) ---------- उद्देश: [१] ---------------------------------------- मलं [५०] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३५], छेदसूत्र - [२] "बृहत्कल्प" मूलं
प्रत सूत्रांक
[१०]
श्रीप
कुणालाविसमाओ एलए, एचापयाच कपा, एचायाप मारिए खेले, नो से कम एसो बाहि. तेण पर जत्थ जानरसनचरिता उत्सापतितिमि १२९०१५मोजो. सो १॥ उपस्सयस अन्तो पगडाए सालीणि या वीहीणि वा मुग्गाणि या मासाणि वा तिमणि पाकुलायानि वा गोधूमाणि या जाणिवा जवजवाणिया ओकिगाणि या विखिम्माणि वा विकिम्मानि वा विष्पाइल्याणिवा नोकप्पा निम्गन्धाण वा निग्गन्धीण वा बहालन्दमविपत्याए '२०'शह पुण एवं जाणेजा-नो ओकिम्माणि नो विक्सिन्चाई | नो विकिपमाथि नो विपइमाई रासिकडामिया मित्तिकदापि वा पुंजकहाधिवा कुलियकहाणिवा लक्छियाणिमा मुहिमाथि वा पिहियाणि वाकया निग्गन्याम वा निम्मन्धीच
वा हेमन्नगिम्दासु वत्पए '१०३।२। अब पुष एवं जाणेना-नो रातिकमाई नो पुत्रकबाई नो मितिकडाईनो कुलियकबाई कोहाउत्तानिया पाउत्सानि वा मनाउत्तापियार | माताउत्साणि वा जोलित्ताणि वा विलिसाणि वा लमिायाणि वा मुदियाणि वा पिहियाणि वा कप्पद निग्गन्याण वा निग्गन्धीण वा वासाचार्स वत्थए '१८६।३। उपस्सवस्स अंती बगहाए सुराविधकृम्ने वा सोचीरयचियाकुम्भ चा उपनिक्सिसे सियानो कप्पा निग्गन्याम वा निग्गन्धीण वा अहालत्वमवि पत्याए, हुरत्या व उपाय पडिनमाणे मोलमेजा एवं से कयह एगरायं मा बुरायं मा वत्याए, नो सेकपा एगरायाओ वा दुरायाओ या परं वत्यर, जे सत्य एगरायाओ या दुरायाओचा पर बसेजा से सन्तरा छेए या परिहारे वा। उपस्सयस्स अन्तो वगढाए सीओदगवियाकुम्भ वा उसिणोदगचियबकुम्मेवा उपनिक्खित्ते सियानो कप्पा निग्गन्याण वा निगान्धीण वा बहालन्नमावि वत्पए, हरत्या य उपस्सय पडिलेहमाणे नो लमेजा एवं से कप्पड एमरायं वा दुराय वा कल्याए, नो से कप्पाह एगरायाजोवा दुरायानोवा परं वस्याए,जे तस्य एसयाजोवा दुसयाओ वा परं क्सेना से सन्तरा जेएचा परिहारे वा '२२११५ उपस्सयस जन्ती बगहाए सवाए जोई शियाएमा नो कम्पा निम्न्यामा निग्गन्धीण वा बहालतमबि बत्पए.इरत्याय उपसाचे पहिले. हमाणे नो लभेजा एवं से कप्पड एगरायं वा दुराय वा पत्याए, नो से कप्पा एगरायानो वा बुरायाओ या परं वत्याए, जे सत्य एगरायाओ का बुराबाओ वा पर बोजा से सन्तरा जेए वा परिहारे मा २५०।६। उक्स्सयस्स अंतो पगडाए साराइए पर्ववे दिपेजा नो कप्पड निम्गन्याण वा निग्गन्धीण वा अदालम्बमवि पत्याए, हुरत्या य उपस्सायं पडिलेवमाणे नो उभेजा एवं सेकच्या एगरायं वा दरार्य वा बत्थए, मो सेकपा एगरायाजोगा रायाजोगा पर पत्थर,जे तत्व एगरायाजोगा इरापाओगा परं क्सेना से सन्तराजेएमा पहिरे वा '२६३'1७1 उपस्सयस अंतो वगडाए पिण्डए वा लोपए मा खीर या दहिया सर्णिया नववीए वा तेहोवा काणिर्व या पूर्व का सक्कली वा सिहिरिणी वा जोकिग्णाणि वा वि-15 किमाथि वा विइगिग्णागि पा विप्पाहण्याणि वा नो कप्पड निगन्याण या निग्गन्धीण वा महालन्दमवि वस्थए '२६९।८ा अह पुण एवं जागेगा नो ओकिग्गाई रासिकदाथि या पुजकवाणि वा मिसिकहानि वा कुलियकहाणि वा लछियाणि वा मुडियाणि वा पिहियाणि मावा काय निमान्याण वा निग्गन्धीण वा हेमंवमिन्हासुबत्पर '२७२।९राबर पुण एवं जागेमा-नो रासिगवाई जाच नो नित्तिकमाई कोहाउत्ताणि वा पाहाउत्ताणि वा मनाउत्ताणि वा मालाउत्साणि वा कुम्भिउत्ताणि वा करभिउत्साणि वा ओलितामिया बि.12 लिलाणि वा पिडियाणिवा लछियामि वा मडियाणिवा कप्पर निम्नान्याणचा निम्मन्बीण वा वासाचा पत्थए '२७४१०ानो कपर निमान्यीर्ण बर्ड आगमनगिसिवा वियडमिइंसि वा सीमूलसि वा कासमूशिमा अच्भावनासियति वा पत्याए '३०.१११कापड निम्मान्या अहे बागमणगिहंसिवा वियडगिहसिना बेसीमूलेसिया लक्खमूलसि पा अभावगासिसि वा पत्याए '३०८।१शएगे सागारिए पारिवारिए दो तिणि पत्तारिया सागारिया पारिबारिया एणं तय कप्पार्ग ठपवत्ता जपलेसे निविसेजा '३७५ ।१३।नो कप्पड निरगन्याण वा निग्गंधीण चा सागारियपिण्ड पहिया अनीहई असंसह संस? वा पडिग्गाहेत्तए २८६ ॥१४-१५। नो कप्पा निम्न्यान वा निग्गन्धीण पासागास्थिपिण्ट पहिया नीहई असंसई पडिमाइतए ।१६। कप्पा निग्गन्याण या निगचीण वा सागारियपिई बहिया नीइई संसह पडिम्गाइतए । १७। नो कम्पा निग्गन्याणका निर्गवीण पा सामारिवपिण्ई बहिया नीहडं असंबई संसई कोतए, जो खलु निम्न्यो वा निर्मात्री वा सागारिथपिई पहिया नीहई असंसई संसई कोर कोन्तंबा साहना से बहओ वीइकममाणे आफ्नइ चाउम्यासिय परिहारहाणं अणुग्याइयं "१०१।१८ा सागारियरस आइडिया सामारिएणं बडिमाहिता वम्हा दावए नो से कप्पा पडिग्गाहेत्तए।१९॥ सागारियरस आहरिया सागारिएणं अपडिम्महिता तन्हा दावए एवं से कप्पा पडिम्गाहेत्तए '४२० ॥२०॥ सागारियस नीहडिया परेण अपडिम्महिता तम्बा बागए नो से कपा पडिग्गाहेत्तए ।२१। सागारियस्त नीइडिया परेण पडियाहिता तम्हा दागए एवं से कप्पा पडिम्बाहेत्तए "४२८।२२। सागारिवस्त अंसियाओ अनिमत्तामओ अशोणिसामी अबो. महाओ अनिजूबाजी तम्हा दापए नो से कप्पड पडिग्गाहेत्तए।२३। सागास्पिस्स अंसियाओ विमत्ताओ बोष्ठिमाओ योगदाजो निदाजो तम्बा वापए एवं से कमा पहिमा
अनुक्रम
[५०]
मुनि दीपरलसागर
अत्र उद्देशक: २ आरब्ध:
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आगम
(३५)
“बृहत्कल्प” – छेदसूत्र-२ (मूलं) ---------- उद्देश: [२] ------------------------ ------------ मूलं [२४] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३५], छेदसूत्र - [२] "बृहत्कल्प" मूलं
प्रत सूत्रांक [२४]
पि
लिए '४३८।२४ सागारिचस्स पृथाभने उदेसिए चेदए पाहुनिचाए सागारिया उपगरगजाए निहिए निसडे पाविहारिए त सागारिको देश सागारियरस परिजणो देश तन्हा पाए |
नो से कप्पा पडिम्मानिए ''|२५| सागारियल पूषामने उरेसिए नए जाप पारिवारिएतनी सागारिओ देह नो सागारियस परिजणो रेड सामारियरस पृथा देह तन्हा दावर नो से कप्पा ।२६। सामारियरस पूयाभत्ते उदेसिए बेहए पाहुडियाए सागारियरस उपगरणजाए निहिए निसहे अपबिहारिए त सामारिनो देह सामारियस परिजनो बा देह
सम्हा रावए नो से कापा पहिगाहेनए।२७। सागारियस्सा पूयामते जाव अपरिहारिए तं नो सामारियो देह नो सागारिबस्स परिजणो देह सागारियरस पूया देह तम्हा बाबए एवं ससे कप्पर परिमाहेनए '४४४१२८ाकपा निग्गन्धाण वा निग्गन्धीण वाइमाई पत्रावस्थाई धारेसए वा परिहरित्तए वा, अनिए मभिए सागए पोचए तिरीकपड़े नामं पत्रमे
पारशकपा निमन्धान वा निम्नचीण वा इमाई पत्र स्वहरणाई पारितए वा परिहरिसए वा, संजहा-ओग्गिए उहिए सागए पदाधि(विण्यावि)पए माचिपिएनि नाम । पामेनिमिY६४।३०॥बिहजो उसओ२॥नो कप्पा निग्गन्धान निम्गन्धीगं उपस्सयंसि आसत्तए याचिद्वित्तएमा निसीइत्तए वा तुहितएमा निदात्तए या पयलाइत्तए चा असणं वा० आहार आहारतए उचारं वा पासवर्ण वा खेलं वा सिहा वा परिद्ववेत्तए समायबा करेनए साणं वा माइत्तएकाउस्सा ना करेत्तए ठाणं वा ठाइलए '१२३।१।नोश कपद निम्मन्धी निग्गन्धा उपस्सयसि आसइत्तए जाच ठाणं ठाइए '१२६।२।नो कपणा निधी सलोमाइंचम्माई अहिद्वितए '१४०।३। कम्पा निम्मन्याण सलोमाईम चम्याई अहिद्वितए, सेविय परिभूते नोवेव अपरिभूते, सेविय पाडिहारिए नो पेवणे अपडिहारिए, सेविय एमराइए नो चेवणं अगराइए '१६४' नो कन्याह निम्मन्याण वा निम्गन्धीण वा कसिणाई पम्माई चारेसए वा परिहरितएवा १९१।५।कपा निग्गन्धाण वा निर्माचीण बाबकसिणाई चम्माई धारेत्तए वा परिहरितए या '१९८६ानो कप्पद निमान्धाण मा निमन्त्रीण पाकसिचाई पत्याई धारेत्तए वा परिहरित्तए पा, कप्पा निम्मन्याण या निग्गन्धीण वा अकसिणाई वत्थाई धारेनए वा परिहरिलए वा '२३७।७। नो कप्पाइ निग्गन्धाण वा निग्गन्धीय वा अभिभाई पत्याई धारेतए वा परिहरित्तए का, कप्पा निम्मन्याण या निम्मान्धीण मा निघाई क्त्याई धारेनए वा परिहरिलए या '५१७' Icानो कप्पा निमान्धाणं उम्गहमन्त वा उग्गहपन वा धारेत्तए या परिहरित्तए या '४२२।९। कप्पा निग्गन्धीचं उग्गहणन्तर्ग वा ओगाहणपान वा परित्तए वा परिहरित्तए वा "४६५।१०।निग्गन्धीए बगाहावाकुल पिण्डवावपटियाए अणुप्पपिडाए चेलहे समुपजेजा नो से कप्पा अपणो निस्साए बेलाई पहिग्माहेत्तए, कप्पाह से परिणीनिस्साए चेलाई पडिग्गाहेनए, नोबसे सत्य पनिणी समाणी सिया जे सत्य समाणे आयरिए पा उपजमाए या पबत्ती बा बरे वा गनी वा गणहरे वा गणावचोपए वाचणं पुरो कटु विहरति कप्पद से तमीसाए चलाई पदिग्गाहेत्तए १०५।११। निम्मन्या तप्पटमबाए संपवयमाणस्स कप्पद स्यहरणगोच्छगपतिमाहमापाए तिहिय कसिणेहि बत्यहि आयाए संपचालए, सेब पुरोहिए सिवा एवं से नो कप्पड़ रपहरणपडिग्गाइगोच्छगमायाए तिहि य कसिमेहिं वत्यहिं आयाए संपवात्तए, कापा से हापरिमारियाई पाथाई गहायआयाए संपादनए'५५०।१२। निग्गन्धीएपंतपढ़मयाए संवच्चयमाणीए कापासे स्पहरणगोगपहिग्गहमायाए चकिसिगेहि वरचडिआपाए संपातए.सा य पुत्रोचहिया सिधा एवं से नो कप्पा स्वहरणगोठगपदिग्गमायाए चाहिं कसिनेहि पत्येहि आचाए संपाइनए, कप्पद से बहापरिमाहियाई परवाहं गहाथ आयाए संपवताए ५५३११३।नो कप्पर निम्मन्माणमा निग्गन्धीणना पटमसमासराडेसपशाईपेलाई पदिगाहेत्तए,कपा निमान्धाण वा निम्गन्धीण वा दोषसमोसरदेसपत्ताई चेलाई पडित गाहेनए ६२४१४ाकप्पह निर्गचाग वा निधीण वा अहाराइणियाए पेलाइ पडिगाईलए '६८३।१५। कप्पा निग्गंचाण या निर्णधीन पा महाराइणियाए सेज्जासंधारय पहिगाहेनए '७२९।१६/प्पा निम्मंधाण पा निधीण वा बहाराइभियाए किनकम्मं करेत्तए '८५९।१७ानो कप्पद निर्माचाण वा निांचीच वा अंतरनिहसि चिहित्तए वा जासहचए पा निसीहतए पातुबहिलाए या निहारतएवा पयत्वाइलए वा असणं वा. आहारमाहारेलए उचारं वा परिवेसएसझावा करतएमा वा माइतए काउस्सगं वारेनए ठाणं वा ठाइए, जहपुण एवं जाणेजाजराजुण्णे वाहिए घेरे तबस्सी सुब्बालेकिलन्ते जजरिए मुजवा पपडेज वाएवं से कप्पाअंतरमिहसि चिद्विताएवा जाप ठाणे या ठाइनाए '८८१।१८ानो कप्पा निर्मचाण वा निर्माचीच वा अंतरमिहंसि जाव चउगाई वा पंचगाह वा आइक्वित्तए वा विभाबित्तए पा किहितए ना पहचए वा नन्नत्य एगनाएण चा एगवागरमेश था एगमाहाए पा एमसिएच बा, सेविय ठिबा, नो पेव अहिचा '९०५।१९। नो कम्पा निग्गंधाण वा निमांचीण बाजारगिहसि इमाई पंचमहप्रयाई समावणाई आइक्खिनए बाजार पोहत्तएबा ननस्थ एगनाएणवा जाव एगसिलोएक वासेविय ठिबा, मोरगं अद्विचा ९१३।२०।नो कप्पद निर्माधाण वा निम्गवीण पा पारिवारिच सेजासंचारवं भाषाए अपरिहद संपवात्तए १२५।२१।नो कप्पा निधाण वा निर्माचीण वा सामारिवानिव सेजासंचार माचाए अहिगरण (२४१) ९६४ हल्कस्यापूर्व -३
मुनि दीपरतासागर
अनुक्रम
[७४]
अत्र उद्देशक: ३ आरब्ध:
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आगम
“बृहत्कल्प” – छेदसूत्र-२ (मूलं)
(३५)
--------- उद्देश: [३]-------------------------------------- मूलं [२२] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३५], छेदसूत्र - [२] "बृहत्कल्प" मूलं
प्रत सूत्रांक [२२]
दीप अनुक्रम [१०२]
कटु संपवातए, कापड निरगंधाण वा निग्गंधीण वा पानिहारियं वा सागारियसंनियं या सेनासंथारयं आयाए बिगरण कटु संपादत्तए '९३०' २श इह खलु निग्गंधाण वा निर्गसायीण वा पाविहारिए या सागारिवसतिए पा सेजासंचारए विष्यणसेवा (परिभट्टे सिया) से य अणुगवेसियो सिया, से य अणुगसमाणे लभेजा तस्लेव पडि(अणुपादायो सिया, से
पअणुगवेसमाणे नो उभेजा एवं से कप्पा दोचंपि उग्गहं अग्णवेत्ता परिहारं परिहरितए १६५ ।२३। जदिवस चगं समणा निग्गंधा सेजासंचारय विपजहाति सदिवस चणंदा
अचरे समणा निम्गंधा हबमागच्छेजा सष ओम्गहस्स पुवागुणवणा चिहा अहालन्दमावि उम्गहं । २४ा अस्थि या इत्य केइ उनस्सयपरिवाचन्नए अचित्ते परिहरणारिहे सबका व उमाहस्स पुषाणुन्नरणा चिट्ठह अहाकन्दमवि जगह '१०७८२५० से बत्नुस अबाबडेसु जोगडेतु अपरपरिम्गहीएव सचेच उम्महस्स पुवायुन्नवणा चिट्ठा अहासन्दमविउम्गह
२६॥ से वत्यूम बाबडेसु बोगडेसु परपरिमाहीएमु मिक्समावस्स अट्ठाए बोषि उम्गहे अणुन्नवेयजे सिया अहालन्दमवि उन्माई ११०४।२७से अणकरडेतु वा अमुभित्तीसु या अणुचरियासु वा अगुफरिहासु वा अणुपंधेसु वा अगुमेरासु वा सवेव उग्गइस्स पुराणुन्नवणा चिट्ठा महालन्दमवि उपगई '१११०।२८। से गामंसि वा जाव रायहागीए (संनिपेससि) वा बहिया सेणं संनिविड़ पेहाए कप्पइ निग्गंधाण या निम्गंधीण वा तदिवस भिक्खायरिपाए गंतूर्ण पडिनियत्तए, नो से कप्पाइ त त्यणि वस्थेव उवाइणावेतए, जो खलु निर्माचे पा निर्गची बा नै स्वणि तत्व उवाणाचे उपावणात या साइजह से हो वीइकममागे आवजा चाउम्मासिष परिहारहाणं अणुग्धाइयं ११५५।२९। से गामंसिवा जाच संनिससि वा कप्पद निम्गंधाण वा निर्गवीण वा साओ समंता सकोस जोवर्ण उम्गाई ओमिष्हित्ताण चिद्वित्तएत्तिवेमि ११९२।३०॥ ताओ उसो ३॥ो अणुग्धाश्या - पत्ता तंजहा-हत्यकम्मं करेमाणे मेहुणं पडिसेवमाणे राइभोयर्ण भुजमाणे ९२।१। जो पारंचिया पन्मत्ता जहा-दुढे पारंचिए पमते पारंथिए अन्नमन्नं करेमाणे पारंचिए १८१।२। तो अणबहुप्पा पं०० साहम्मियाचं तेन्नं करेमाणे परवम्मियाणं तेन्नं करेमाणे हत्यावास दलमाणे '२६२।३। तो नो कप्पति पवावेत्तए तक पण्डए की वाइए ३१४४ा एवं मुण्डावेत्तए सिक्स्यायेत्तए महावित्तए उबट्ठावेत्तए संभुजिनए संचासिनए '३२१॥५॥ तनो नो कम्पन्ति बाएतए ने अविणीए विगईपडिपो अपित्रोसवियपाएडे, नो कप्पन्ति पाएलए तं०-पिणीए नो विगईपदियदे विओसवियपाहुदे '३३५१६ातजो दुस्सायप्पा पं० सं०-दुद्रेमुढे बुग्गाहिए '३५८1७ओ सुस्समप्पा .. अबढे ।। अमूढे अनुग्गाहिए ३६.'1दानिमार्थ पणे मिलापमाणं माया या भगिणी वा ध्या या पलिस्साएजा तं च निग्गन्धे साइनेजा मेहुणपडिसेवणपते जाकमाइ चाउम्मासियं परिहारहाणं अणुग्धाइयं ।९। निम्माथि चणं गिलायमाणि पिया वा भाया मा पुसेना पलिस्साएजातेच निम्मन्धी साइजेजा मेहुणपडिसेवणपत्ता आवजाइ चाउम्मासियं परिहारहाणं अणुग्याइये ३८७।१०।नो कापड निम्मन्याग वा निम्मान्धीण वा असणं मा० पदमाए पोस्सिीए पडिमाहेला चउत्वं पच्छिम पोरिसि उपाइणावेसए से य आहब उमाणापिए लिया तं नो अग्पणा मुझेजा नो असि अणुपदेजा एगन्तमन्ते बहुपासुए पएसे (पंडिले) पडिलेहिता पमजित्ता परिवेयने लिया, अप्पमा मुजमाणे असि वा दल (अणु. प्पदे मागे आवनइ चाउम्मासियं परिहारहाणं उग्पाइयं ।११।नो कप्पा निम्मान्धाण वा निम्गन्धीग वा असणं गा.परं अवजोयणमेराए उचाइमावेत्तए,से बाहर उचाहणाविए सियानो अप्पणा भरोजानो अमेसि अगणवेजा एगम्तमम् परफासए परसे पहिरोहिना पमित्ता परिवेयो सिवा, अप्पना मन्त्रमाणे अजेसिवा दलमाणे आवजा चाउम्मासिय परिहारहाणं उम्पाइयं “४३९।१२। निम्मान्वेग य गाहाचहकुलं पिण्डवायपडियाए अणुप्परिटेणं अभयरे अचिने अणेसणिजे पाणभोषणे पढिम्माहिए सिया अस्थिय इस्थ केट सेहराए जणवद्वाविषए कप्पा से तस्स दाउंवा अपप्पाई वा नरिव पथ के सेहतराए अपहावियएनेनो अपना मोजा नो अग्नेसि दामए (अणप्पदेजा) एमन्ते बहुकासुए पएस पडिलेहिता पमजित्ता परिहनेयो सिया "४६३।१३। जे कडे कप्पद्वियार्ण कष्पह से अकापडिया नो से कप्पा कप्पदिठयाणं, जे कडे अफप्पठियाणं नो से कप्पट कप्पठियाणं कप्पड़ से अकप्पट्ठियार्ण, कणे ठिया कप्पठिया अकप्पे ठिया अकापट्ठिया '४८६।१४३ मिक्खू य गणाओ अवकम इच्छेना अर्ज गणं उपसंपबित्तार्ण बिहरिनए नो से कप्पा अणापछित्तानं आपरियं वा उनझार्य वा पति वा धेरै वा गर्णिया गणहरवा गमावच्छेदयं वा असं गर्ण उपसंपमित्तार्ण विहरितए, कप्पड़ से आप. डिता आयरियं वा जाव गणापच्छेद्यं वा अर्थ गण उपसंपजिताण विहरितए. ते य से वियरेजा एवं से कप्पइ अन्नं गणं उचसंपजित्ताणं रिहरिलष्ट, ते य से नो वियरेजा एवं से नो काचा अन्न गण उपसंपमित्तानं विहरितए '५७४।१५। गगावच्छेदए य गणाओ अयसम्म इच्छेजा असं गर्ण उपसंपजिलाणं निहरितए नो कपड़ गणावच्या गणा बच्चोइयत्तं अनिक्विवित्ता अन्न गण उपसंपजिताणं विहरित्तए. कन्या से गणावच्छेदयस्य गणाचच्छेदयत्तं निक्सिबित्ता अभं गर्म उपसंपजिताणं विहरितए, नो से कप्पा अणापुच्छिता ९६५ रहल्कापात्र उनी-7
भूनिटीपरमयागार
अत्र उद्देशक: ४ आरब्ध:
~125
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आगम
“बृहत्कल्प” – छेदसूत्र-२ (मूलं)
(३५)
---------- उद्देश: [४] ---------------------------------------- मलं [१६] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३५], छेदसूत्र - [२] "बृहत्कल्प" मूलं
प्रत
सूत्रांक [१६]
22048e4RNAP
कम्पकककककक
आयरिय वा जाच गणापच्छेवयं या अर्ज गर्ग उपसंपजिलाण विहरितए, कप्पद से आपुच्छिला आयरियं वा जाव गणावोदय वा अन्य गण उपसंपजिताण निहारितए, ते पसे पियरेना एवं से कप्पर अर्थ गणं उपसंपजिलाणं पिडरितए, से य से नो बियरन्ति एवं सेनो कम्पद अग्नं गर्ण उपसंपजिसार्ग विहरिसए।१६। आयरियउवमाए य गणाओ । अवरुम्म इमोजा अन्नं गणं उपसंपजिनाणं विहरिनएनी से कपडायरियउक्झायरस आपरिवउपाय अनिपिखवित्ता अन्नं गणं उपसंपमित्तार्ण विहरित्तए.कपडसे आयरिषउक्झायस्स आपरिपउबज्झायत्तं निविसचित्ता अन्नं गर्म उपसंपजित्ता बिहरितए, नो से कप्पह अणापुच्छित्ता आयरिय बाजाचगणावच्छेइयं वा अन्नं गर्ण उपसंपजित्तार्ण बिहरित्तए, फापद से आपुच्छिता आयरियं वा जाच गमावच्छेहयं या अन्नं गर्ण उपसंपजित्ताणं विह रित्तए, ते य से वियरेजा एवं से कापड अनं गणं उपसंपजित्ताणं बिहरितए, | सेब से नो पियरेजा एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं उपसंपाजिनार्ण विहरित्तए '५७७९७.भिक्षु य गणाओ अवकम्म इच्छेना अन्नं गणं संभोगपडियाए उपसंपजिनाणं निहरितए, नो से कप्पा अगापुच्छित्ता आयरियं वा उक्झायं पा पति वा थेरं वा गणिं वा गमहरं वा गणावच्छेदयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उपसंपजिनाणं विहरितए, कम्पहा से आपत्तिा आपरिवंवा जारगणावच्छेहर्या अन्नं गणं संभोगपडियाए उसपजित्तार्ण निहारित्तए, तेचसे चियरेजा एवंसे करपड अन्नं गणं संभोगपडियाए उपसंपजिताणं बिहरित्तए, य से नो पियरेजा एवं से नो कप्पड अन्न गण संभोगपडियाए उपसंपमित्तानं बिहरितए, जत्युत्तरिय धम्मविणयं लभेजा एवं से कप्पड अन्नं गर्ग संभोगपटियाए उपसंपजिनाणं विहरितए, जत्थुत्तरियं धम्मषिणयं नो उमेजा एवं से नो कप्पद अन्नं गर्ग संभोगपडियाए उपसंपजिसाणं विरितए '५९४१८ागणावच्छेहए यगणाओ जनकम्म हुडेजा अन्नं गणं संमोगपडियाए उनसंपजिला चिडस्लिएनोसेकपागनावोपस्सममावन्दप अनिक्लिपित्ताविहरितएकापसे गणापच्छेदयस्स गणापच्छेदयत्तं निक्विचित्ताण अन्नं गर्ग संभोगपडियाए उनसपजित्ताणं बिहरितए,नो से कप्पड़ जणाधुच्छित्ता आयरियं वा जावगणावच्छेद्यं वा अन्न मर्ग संभोगपतियार उपसंपजित्ता विहरितए, कप्पड़ से आपुष्मिता आपरियं वा जाव गणावच्छेदयं वा अन्नं गणं संभोगपटियाए उवसंपजिनाणं विहरिचए, ते य से पियरति एवं से कप्पइ अन्न गर्ण उनसंपजितत्ताण चिहरितए.तेचसे नो पियरति एनसेनी कापड अन्नं गर्ण संभोगपरिवाए उपसंपक्जित्ता निहरितए, जत्थतरिच चम्मविणर्ष लभेज्जा एवं से कप्पा अन्नं गणं संभोगपडियाए उपसंपजिनाणं बिहरितए, जत्युत्तरिय चम्मविषय नोलभेजा एवं से नो कप्पा अर्थ गर्ग संभोगपडियाए उपसंपमित्ताण चिहरितए।१९। आचरियावन्झाए य गणाओ अबकम्म इच्छेना असं गर्ण संभोगपडियाए उपसंपजिताणं विहरितए नो सेकणा जापरिषउपज्झायरस आयरियउवझायतं अनिक्खिवित्ताविहरितए, कम्पह से आयरियउचज्झाया आपरिषउपजमायतं निक्लिपित्ताणं जगणं समोगपडियाए उपसंपलिताण विहरिसएनोसेकापड अनापच्छिता आयरियं वा जाव गणावच्छेदर्य वा असं गर्ण संभोगपडियाए उपसंपतिताणे विहरित्तए, कष्पह से आपुचिता आयरिय बाजाय गणावइयं वा अखं गर्ण संभोगपडियाए उपसंपजिना बिहरितए,ते य से वियरति एवं से कप्पा असं गणं संभोगपटियाए उपसंपजिवाणं विहरिनए, ते य से नो विपरति एवं से नो कप्पद अचं गर्ण संमोगपटियाए उपसंपजिनाणं विहरिलए, जत्युत्तरिय धम्मविणयं लभेजा 3 एक्सेकापड़ ज गर्ग संभोगपडियाए उनसंपन्जित्ता निहरितए, जत्युत्तरियं धम्मविणयंनो लभेजा एवं सेनो कप्पा अगणे संभोगपटियाए उपसंपजिताणं बिहरिसए । २०॥ भिख य इलेजा अ आयरियाउनसायं उडिसावनएनी से कणा अनापत्तिा भापरियं वा जाव गणापच्छेदयं वा अपायरियउवज्झार्य उरिसावेत्तए, कापसे जापत्तिा
आयरियंपा जाच गणावच्छेयं वा अजापरिवडकमा उहिसावेत्तएतेबसेयरंति एवं सेकपा अजापरिया उपशायं उदिसावेतए,सेय से नो विपरन्ति एवं सेनो ग्या असं आयरिपउवमार्य उदिसावेतपनोसेकसि कारण अदीवसा जसं आपरिषउपायं उदिसावेतएकापहरीसिकारणवीरत्ता./२१गणापडएयरपोजा अर्थ आपरिषउपन्माषं उदिसापेत्तए, नो से कप्पइ गणावच्छेइवस्स गमावच्छेदयत्तं अनिनिस वित्ता अचं आयरियवसायं उदिसावेतए, कपद से गणावड़यस गणावच्छेइयत्तं निक्सिविता . उरिसावेत्तए,मोसे कप्पह अणापुत्तिा आयरिब चा जाच गणावच्छेदय या अापरिषउक्झाय दिसावेत्तए, कप्पा से आपुच्छिता आयरियं वा जाप गणावडयं वा अमं आयरियउबझायं उरिसावला.ते बसे पिपरनि एसेप्पा अभापरिपतवार्य उदिसावेत्तए,ते य से नो विचरति एक्से नोकप्पा अन्नं आपरिषउपजमा उहिसावेत्तए, नो से कप्पा तेसि कारणं अदीवेत्ता अर्थ आपरिपतवज्झाचं उदिसावेत्तए, कन्या से तेसि कारणं दीवेता अावरियं वा उपाय वा उदिसावेत्तए '६१७ ।२२। आयरिवउपग्झाए इच्छेला अर्थ आपरिवउक्झायं उदिसावेत्तए, नो से कप्पाइ आयरियटषशायरस आयरियाउवायत्तं अनिक्लिपित्ता अजापरिषउपजमार्य उदिसा९६५महकायमूर्य
मुनि दीपरनसागर
दीप
अनुक्रम [१२६]
AMPORTANP
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आगम (३५)
“बृहत्कल्प” – छेदसूत्र-२ (मूलं) ---------- उद्देश: [४] ------------------------ ------------ मूलं [२३] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३५], छेदसूत्र - [२] "बृहत्कल्प" मूलं
प्रत सूत्रांक [२३]
दीप अनुक्रम [१६५]
वित्तए, कपर से निनिस्ववित्ता, उहिसावित्तए, नो से कप्पड अणापच्छिता आयरियं वा जाच गणापच्छेदयं वा अन्न आयरियञ्चमाय रिसावेतए, कापा से आपुचिता। आयरियं वा जाच गमावच्छेहरं वा अन्न आवरिषउपजमायं उदिसावेत्तए, नेवसे नियति एवं से कप्पड अन्न आयरियावसायं उदिसावेत्तए, ते य से नो बियरंति एवं से नो कप्पा अन्न आपरिवउपचार्य उहिसावेत्तए, नो से कपल नेसि कारण अदीवेत्ता अन्न आयरियाउबझार्य उदिसावेनए, कापड से सेसि कारण दीवेता अन्न आयरियजमजा उदिसावेत्तए '६२१॥२३॥ मिक्सू य राजो बा बियाले या आइय बीमुम्नेजा, संघसरीगं का वेयाचचकरा मियू इमोजा एगंतमते बहुफासुए पासे परिद्ववेनए, अस्थिय इत्य केद सागारियर्सलिए उवगरणजाए अचिने परिहरणारिहे कण से सागारकर्ड गढ़ाय संसरीसंग एगते बहुपासूए पएसे परिद्ववेत्ता तस्येव उपनिक्सपियो सिया '६९०।२४। निवस्य अहिगरण दर्व अहिगरण अपिलीसवेता नो से कन्या माहाकुलमत्ताए या पाणाएगा निक्रसमित्तए या परिसित्तए बा, भिक्खुनो से कप्पा बहिया निवारभूमि वा विधारभूमि ना निक्स पवि० मा, मिक्स-गामामामं दुइजित्तए, गणाओगण संकमित्तए, यासायास वावस्थए, जत्येव अपणो आयरियउकमार्यपासेजा बहुस्सुर्य बझागाम कापद से तस्मन्तिए जाएत्तए पडिकमित्तए निन्दित्तए गरिहिसए विटहित्तए विसोहितए जकरणाए अभुद्धिचए अहारिहं गायत्तिं सबोकम्म पडिवजिताए, से वसूएर्ण पट्टविए आइयो सिया, से य सुए नो पविए नो आइयो सिया.सेयराए पडचिजमाणे नो आइयह निजहियो सिया ७१८।२५। परिहारकापड़िया गंभिक्सा कपा आयरियमझाया गरिव एगगिहसि पिंडवार्य दवावनाए, नेम पर नो से कयह असर्ग वा वार्ड वा अप्पदा मा, कापा से अन्नयर पावलिय कोसए, उहावर्ण । या निसीयावर्ण वा तुमहापर्ण वा उचारपासवगखेलजालसियाणाण विनिचर्य वा विसोहण वा करेगए, जहण एवं जाणेजा जिम्नावाएसु पयेसु तपस्सी आउरे सिलिए पिया-10 सिए दुम्बले फिलते मच्छेगवा पपडेजपा एवं से कप्पर असणं या दावा अणुपदाचा ७/१२६ानो कप्पा निम्मेधाण वा निम्गंधीण वा इमामओ पंच महाचाजो महानईओ उरिडाओ गणियाओ जियाओ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्त्तो वा उत्तरित्तए वा संतरितए बात-गंगा जउणा सरयू कोसिया मही ।२७। अह पुण एवं जाणेजा- 2 एराप कुणालाए, जत्थ चकिया एगे पार्य जले किचाएगे पायं चले किंचा एवं कप्पा अंतो मासस्स दुस्सुत्तो वा तितो या उत्सरितए या संतरितए पा, जस्थ एवं नो पछिया ।। एवं शं नो कप्पद अंतो मासस्स दुमपुत्तो वा तितो वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा '७८८ २८ा से तणेस वा तणपुग्नेस चा पसालेम वा पलाल सु वा अप्पडेस अप्पपासु अप्पबीएसुअपहरिए अप्पोसेसु अन्पतिङ्गपणगदगमडियमकरसंतामएसअहेवणमायाएनो कपानिमान्याणवा निग्गन्धींगवातहप्पगारे उनस्साए हेमन्त निम्हास बत्थए।२४ सेतणेसु या जाच संताणएसु वा उणिवणमाचाए कप्पद निग्गन्धाण वा निग्गन्धीण वा नहष्णगारे उपस्साए हेमन्तगिम्हास पत्याए ।३०। सेनगेसु वा जाप संताणएस आहेस्यणिमुकमउडेसु नो कप्पाइ निमान्थाप या निम्मान्धीग पाहप्पगारे उचस्मए पासाचासंपत्थए।११।सेतणेसुबा जाचताणएस उचिरपगिमकमउस कह निग्गन्माण चा निगंधीग पातहप्पगारे उचस्साए बस्यएतिमि'८०५'शाचउत्थी उसोदेवयस्थिहर्वविदिशा निम्गन्ध परिम्माजातंच निम्गन्धेसाउलेजा मेडणपडिसेवणपने आवजाइ चाउम्मासि परिहारदलाणं अणुग्याइयं । १। देवे य पुरिसरूयं विउविता निग्गन्यि पटिम्गाहेजा तं च निमाथी साइनेजा मेहुणपडिसेवणपता आपजा पाउम्मासियत परिहारहाणं अणुग्धाइयं ।२। देवी पइस्थितं विपिना निमन्ध पडिग्गाहेजातच नियन्ये साइनेजा मेहणपडिमेवणपते आवजह चाउम्मासिय परिहारहाणं अणुग्धाइये।। देवीय पुस्तिक विउवित्ता निम्माधि परिमाहेजातं च निम्गन्धी साइजेजा मेहुणपडिसेवणपत्ता आवाइ चाउम्मासियं परिहारहाण अग्धाइय"४४॥४भिक्खू प अहिगरण कटु अहिगरणं अविभोसवेता इच्छेना अचं गणं उपसंपत्रित्ता निहरितए, कापड तस्स पा राईदियाई छे कट परिणिवविध २ दोचंपि तमेच गणं पडिनिनाएको सिया, जहा या तस गणस पनि सिया १०० भिक्खू व उनाबवित्तीए अणस्थमियसंकप्पे संथदिए निबिगिच्छासमायोण अप्पागे जसणं वा पदिमाहेशाजाहारमाबारेमाणे अह पष्ठा जाणेजा-अणुगए सरिए अत्यमिए वा से जंच आसयंसि जंच पाणिसि जंच पडिग्गाहे त निमित्रमाणे वा निसोहेमाणे वा नो अइकमा त अपणा मुझेमागे अमेसि का बलमाणे सामोषणपहिरोपनपत्ते आपजा चाउम्मालियं परिहारहाणं अणुग्याइयं ।। भिक्खूप उम्गपवित्तीए अणत्यमियर्सकणे संघडिए पिइनिष्कासमायोण अपागं असणं या० पटिम्गाहेना आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणजा-अणुगए सरिए अत्यमिए पा, सेन आसयंसि जंच पाणिसि जंच पटिम्गहे तं विगिजमाणे वा चिसोहेमाणे वा नो आइकमाइ त अप्पणा भुञ्जमाणे अन्नेसि वा दलमाणे राइमायणपडिसेवणपने आचना चाउम्मासिय परिहारदाणं अग्याइयं ।। भिक्खू य उम्मयक्तिीए अणस्थभियसकये ९६७रहत्कल्पः -८
भनिीपरमसागर
अत्र उद्देशक: ५ आरब्ध:
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आगम
(३५)
“बृहत्कल्प” – छेदसूत्र-२ (मूल) ---------- उद्देश: [५] ---------------------------------------- मलं [८] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३५], छेदसूत्र - [२] "बृहत्कल्प" मूलं
प्रत सूत्रांक
असंथदिए निविदगिछसमावण्णणं अप्पाणेणं असणं या पडिग्गाहेना आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जागेजा-अणुमाए सरिए अत्यमिए या, से जंच आसपंसि जंच पाणिसि जंच पदिग्गहे तं विगिजमाणे वा विसोहेमाणे वा नाइकमइ, सं अप्पणा भुञ्जमाणे अन्नेसि वा दलमाणे राइमो० चाउम्मासिथं परिहारहाणं अगुग्याइयं ।। मिक्य उम्गपषिनीए अगत्यमियसंकप्पे असंघटिए विमिच्छासमाचन्नेणं अप्पाणेणं असणं वा पडिम्माहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेजा-अणुग्गए सरिए जत्वमिए वा.से जब मुहेच पाणिसि च पडिग्गहंसिन रिमित्रमाणे वा चिसोहेमाणे वान अइकमाइ, अषणा भुजमाणे अन्नेसि वा बलमाणे सहभोषणपडिसेषणपत्ते आवजह चाउम्मासियं परिहारद्वा अणुग्पाइर्य १४५ १५॥ इह खलु निग्गन्धस्स या निग्गन्धीए या राओ या पियाले या सपा सभोयणे उग्गाले आगच्छेजा ने विगिजमाणे वा चिसोहेमाणे वाड नो अइकमा उम्गिलिना पचोगिलमाणे राइमायणपडिसेषणपने आपना चाउम्मासिष परिहारदा अग्याइयं १७७।१०। निम्मन्यस्स यमाहापडकुले पिण्डवायपडियाए अशुष्पविडम्स अंतो पडिग्गाहंसि से पाणेवा बीए पा रए वा परिवारजेना संचसंचाएर विगिचित्तए वा विसोहित्तए वा तो पुख्यामेव आलोइय२विसोहियरसओ संजयामेव भुजा वा पिएज वा, तं च नो संचाएइ विमित्रत्तए वा विसोहेनए मा नै नो अग्यणा भुनेजा नो असि दाबए एमन्ने बहुफाए पएसे घंटिले पटिलहिता पमजिला परिद्ववेयो सिया २१३' - १० निग्गन्धस्स य गाहापाकल पिण्डयायपडियाए अणुप्पबिगुस्स अंतो पडिग्गाहर्गसि दए वा दगरएवा दमसिए या परियारलेजा से बडसिणे भोवणजाए परिभोत्तो सिया, से बनो उसिणे सीए भोयगजाए तं नो अप्पणा सुभेजा नो अन्नसि दावए एगन्ते बहुपामुए पएसे वंटिले पडिलेहिता पमजित्ता परिवेयो सिया २३५।१२। निग्गन्धीए बराओ । पा पियाले वा उचारं वा पासवर्म या निगिठमाणीए वा विसोहेमानीए वा अन्नपरे पमुजाइए वा पक्लिजाइए वा अन्नयर इन्दियणायं परामुसेजान च निग्गन्धी साइजेजा इत्यकम्पपडिलेवगपत्ता आवजह चाजम्मासियं परिहारहाणे अणुग्धाइयं । १३। निग्गन्धीए य राजओ वा चियाले वा उच्चार वा पासवर्ण या विगिशमाणीए वा पिसोहेमाणीए वा अन्नयरे पसुजाइए पा पपिसजाइए या अन्नवरसि सोयसि ओगाहेमा संच निग्गन्धी साइनेजा मेहुणपडिसेषणपत्ता आपना चाउम्मासिय परिहारहाणं अग्याइयं '
२ १ नो कप्पन निमान्धीएएगाणियाए होतए।१५। नो कप्पा निम्गन्धीए एनाणियाए गाहानाकुल भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा।१६। नो कम्पा निग्गन्धीए एगाणियाए पहिया विधारभूमि या विहारभूमि वा निक्लमित्तए वा पविसित्तए वा।१७ नो कप्पा निमन्धीए एनाणियाए गामाणुगाम जिलाए।१८ानो कप्पा निगान्धीए एमाणियाए वासावास पत्याए '२५१।१९। नो कप्पइ निग्गन्धीए अचेलिवाए होतए '२५६।२० नो कप्पड निग्गन्थीए अपाइयाए होतए '२६०॥२१नो कप्पइ निम्गन्धीए बोसङकाइयाए होतए '२११।२२। नो कम्पा निगान्धीए बहिया मामरस बा जाब संनिनेससा मा उड्दै माहाओ पगिनिमय २ सूराभिमुहाए एगपाइयाए ठिचा जावाषणाए आयापेराए। शकपद से उपरसवरम अंतो बगहाए संघाडिपडियदाए पलंपियवाहियाए समतलपाइयाए ठिया मामायणाए आपातए २६९।२४ानो फापा निम्मान्धीए ठाणाइपाए होताए ।२५ानो कप्पड निमाथीए पडिमाइयाए होतए। २६ । नो कप्पा निम्मन्थीए उकृतियासणिवाए दोनए ।२७। नो कम्पा निग्मान्धीए नेसिजियाए होतए ।२८ानो कपन निग्गन्धीए वीरासणियाए होत्तए । २९ । नो कम्पा निग्गन्धीए दण्डासणियाए होनए । ३० । नो कापड निम्गन्थीए लगण्डसाइयाए होनए ।३१। नो कप्पड निमान्धीए ओमंथियाए होचए।३२॥ नो कम्पा निग्गन्धीए उत्साणिवाए होलाए ।३३। मो कप्पा निग्गन्धीए अम्मसुजियाए होलए।३४ानो कप्पा निगान्धीए एगपाखियाए होलए '२८११३५ नो कप्पर निमन्त्री आउाणपगं धारेचए या परिहरित्तए ना।२६। कप्पद निगन्धा जाउणपहर्ग धारेत्तए वा परिहरित्तए वा । ३७१नो कन्या निमन्धीर्ण सापासि आसनसि विडिलाए वा निसीइनए वा आलइलाए पातुष्टिलाए पा।३८ा कप्पद निग्गन्धाणे सावरसति आसमिचिदिलाएगा निसीए वा आसत्तए | वा तुपट्टित्तए ना।३१। नो कप्पइ निम्मन्दीर्ण सविसाणंसि फरगसि वा पीडसि बा जाच तुबहित्तए था। ४० कप्पा निग्गन्धाणं जाप तुयहितए या '२८९ ४१नो कल्पह निग्गन्धीण सवेण्टय खादय धारेत्तए पा परितरित्तए बासशकपा निगन्याण सपेष्ट्य लाउय पारेनए वा परिहारित्तए वा २९.' १४ानो कप्पड निरगन्थीन सपेष्टया पायकेसरिया पारेत्तए वा परिहरितए वा ।४४ कप्पा निग्गन्यागं सवेष्टया पायकेसरिया धारेतए वा परिहरिलए चा '२९१।४५ नो कप्पर निगान्धीणं दारूवार्य पायपुर्ण धारेलएका परिहरितएवा।४६ाकापड निगान्धार्ण दापदण्ड पायपुरधारेत्तएका परिहरितएवा'२९२४ नोकपा निग्गंधाण वा निग्गंधीण वा अनमस्स मोर्य आइतएवा आपमि. नाए वा नन्नत्यागादानागाडेसु रोगायकेसु ३१२॥४८ानो कप्पा निग्गन्याण पा निम्गन्धीण वा पारियासियरस आहारक्स जाब तपप्यमाणमेत्तमवि मृहप्पमागमेत्तमविबिंदु प्पमासमेतमपि आहारमाहारेतर, मन्नाय आगाटानागादेस रोगायोस ३२८१४९ नो कप्पड निग्गन्धाण वा निग्गन्धीण पा पारिवासिएर्ण बालेवणजाए गाया (२४२)
मुनि दीपरळसागर
अनुक्रम [१५०]
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आगम
(३५)
“बृहत्कल्प" - छेदसूत्र-२ (मूल) ---------- उद्देश: [५,६] ------------- ------------- मूलं [५३, १-२०] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३५], छेदसूत्र - [२] "बृहत्कल्प" मूलं
प्रत
सूत्रांक
[१३]
आलिम्पिनए वा विलिंपिनए वा, नन्नन्य आगाढानागाढेहि रोगायकेहि ३४०।५० नो कप्पड निग्गन्धाण वा निग्गन्धीण चा पारिवासिएग नोडेण वा घएग वा नवीएण वा वसाए वा गायाई अन्भनिए वा मक्खनए वा, नन्नत्य आगादानागादेहिं रोगायङ्केहि (नो कप्पड निगान्धाण वा निग्गन्धीण वा ककेण वा रोडेण वा पधूवणेण वा अन्नयरेण वा आलेवणजाएणं गाया लेनए वा उनए वा, नबन्ध आगाढानागादेहि रोगायकेहि)'३४८५१। परिहारकप्पट्टिएणं मिक्व बहिया घराणं वेयावडियाए गच्छेना.सेय आहब अइकमेजा, नवरा जाणेजा, अपणो आगमेणं अनसि वा अंतिए सोचा, तो पच्छा नस्स अहालहुसए नाम वचहारे पट्टपियो सिया ३६२१५२२ निग्गन्धीए य गाहावहान पिण्डवायपडियाए अणुप्पविट्टाए अभयरे पुत्लागभत्ते पहिम्माहिए सिया. सा य संघरजा कापड से तदिवसं नेणेव भनट्टेणं पन्नोसवेनए, नो से कप्पट दोबंपि माहावडकुलं पिण्डवायपडियाए पपिसिनए.सा य नो संघरना एवं से कप्पड दोबंपि गाहाबड़कुर्व पिण्डवायपडियाए भत्ताए या पाणाए वा निक्समिनए या परिसिनए पनि बेमि ३७५ 1५३। पामो उदेसओ५॥नो कप्पट निग्गन्धाण वा निग्गन्धीण वा इमाई छ अवयणाई बदनए,२०- अलियबयणे हीन्द्रियवयणे खिसियवयणे फसवयण गारन्धियत्यणे विओ। सपियं वा पुगो उदीरेनए ६९ कापस्स पन्थारा पं०२०-पाणाइवायम्स वायं वयमाणे मुसावायरस वायं वयमाणे अदिन्नादाणस पायं क्यमाणे अविरहयवाय वयमाणे अपुरिसवाय पयमाणे दासवार्य वयमाणे, इथेए कप्पस छप्पन्यारे पन्थरेना सम्म अप्पडिपरेमाणे नहाणपन सिया ९९।२।निम्गंधस्स य अहे पायंसि लाणए वा कंटए ना हीरे वा सकरे चा परियावजेजा तव निम्मंधे नो संचाएगा नीहरिनए वा चिसोहनए वा. निग्गयी नीहरमाणी वा पिसाहेमाणी वा नाइकमा । ३ । नियम्स य अदिसि पाण वा बीए
वा रए वा परियारलेजानेच निगधे नो संचाएजा नीहरिनए वा विसाहनए गाने निम्गंधी नीहरयाणी या चिसोमाणी बानाइकमहा४ा निगचीए य अहे पायंसि खाणएगा | कटाए वाहीरे वा सकरे या परियावजेजान चनिम्गंधीनो संचाएना नीहरिनए या विसाहेनए बातच निम्गंधनीहरमाण वा विसाहमाण वा नाइकमह। ५। निम्नचाए व अपिछसि पाणे वा बीए वा रए वा परियावजेजानं च निम्मांधी नो संचाएडनीहरिनए वा विसोहेलए वा.नच निगवे नीहरमाणे या विसाहेमाणे वा नाइकमा ११८।६। नियांचे निधि दुगंसि वा विसमसि पा पश्यसि या पक्सलमाणिं वा पचटमाणि वा गेल्हमाणे वा अवारम्बमाणे वा नाइकमद । निगथे निधि सेयसि वा पंकसि वा पणगसि वा उदयंसिवा ओकसमाणि वा ओबुज्यमाणि वा गन्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइकमइ। दानिगवे निगंधि नावं आरुममाणि वा ओरुममाणिवा गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइकमइ १३१९ खिलथिनं निम्नधि निमगंधे गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नातिकमनि १७८1१रिनचिनं निर्गधि नियमांचे गेल्हमाणे वा मालम्बमाणे वा नाइकमा १५३' १११॥ जक्साइह ।१२। उम्मायपतं ।१३। उचसम्मपनं १४ा साहिगरणं ।१५। सपायचिठनं।१६। मनपाणपडियाइक्विय प्रहजायं निम्गवि निर्माचे मेहमाणे या अबलम्बमाणे वा नाइकमा '२५८१८ाउकापस्स पलिमथ पं. कोकुडए संजमस्स पलिमंचू मोहरिए समवयणम्स पलिम निन्तिणिए एसणागोयरम्स पलि. मंथू चासुलोलुए इरियावाहियाए पलिमंधू इच्छालोमे मुसिमग्गरस पलिमयू भिजानियाणकरणे मोस्वमग्गस्स पलिमंधु, सात्य भगाया अनियाणया पसन्था २८६।१९। उमिहा कप्पदिई पं०२० सामाइयसंजयकापट्टिई छेजोबट्ठावणियसंजयकपईि निविसमाणकप्पठिई निषिद्धकाइयकापट्टिई जिणकापट्टिई घरकापट्टिनिमि '४२८।२०। हो उद्देसओ ६॥इति श्रीवहत्कल्पच्छेदसूत्रसौराष्ट्रमंडहे पादलिमपुर बीसिद्धाद्रितलहट्टिकागतशिलोत्कीर्णसकलागमोपेतश्रीवर्धमानजैनागममंदिरे शिलामामुत्कीर्ण श्रीवीरस्पर५६८
दीप अनुक्रम [१९५से -२१५]
अत्र उद्देशक: ६ आरब्ध: एवं परिसमाप्त:
भाग
बृहत्कल्प-छेदसूत्र [२] 'मूलं' परिसमाप्त:
मूल संशोधकः सम्पादकश्च पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब किंचित् वैशिष्ट्य समर्पितेन सह पुन: संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागरजी M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि) ।
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[३६] श्री व्यवहार (छेदसूत्रम्-३)
नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः
"व्यवहार" मूलं
[मूलं एव]
[आद्य संपादकश्री] पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.
(किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.,श्रुतमहर्षि)
28/07/2017, शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल ५
'सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि' श्रेणि भाग-२७
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आगम
( ३६ )
प्रत
सूत्रांक
[8]
दीप अनुक्रम [3]
अत्र उद्देशकः १ आरब्ध:
“व्यवहार” – छेदसूत्र-३ (मूलं)
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उद्देश: [१]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.
मूलं [१]
..आगमसूत्र [ ३६ ], छेदसूत्र [३] "व्यवहार" मूलं
श्रीव्यवहारच्छेदसूत्रम्ः
१८२' भाष्ये पीठिकागाथाः, जे भिक्खु मासियं परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएजा, अपलिउच्चियं आलोएमाणम्स मासियं पलिउंचियं आलोएमा - 'णस्स दोमासियं '३२२ ' । १ । जे भिक्खु दोमासियं परिहारद्वाणं पडिसेविता आलोएजा अपलिउञ्चिय (प्र०यं) आलोएमाणस्स दोमासियं पलिउंचियर्य आलोएमाणस्स तेमासियं । २ । जे भिक्खु तेमासियं परिहारद्वाणं पडिसेबित्ता आलोएजा अपलिउंचियय आलोएमाणस्स तेमासियं पलिउंचिययं आलोएमाणम्स चाउम्मासिय | ३ | जे भिक्खु चाउम्मासियं परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएजा अपलिउंचिययं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं पलिउंचिययं आलोएमाणस्स पंचमासियं । ४ जे भिक्खू पंचमासियं परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएजा अपलिउंचिययं आलोएमाणस्स पंचमासियं पलिउंचिययं आलोएमाणस्स छम्पासियं तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा '३४३' । ५ । जे भिक्खु बहुसोवि मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएजा अपलिउश्चियं आलोएमाणस्स मासियं पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं । ६ । ९६९ व्यवहारः सूत्रं उदेसो- १
1
मुनि दीपरत्नसागर
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आगम
(३६)
“व्यवहार" - छेदसूत्र-३ (मूल) ---------- उद्देश: [१] ---------------------------------------- मूलं [७] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३६], छेदसूत्र - [9] "व्यवहार" मूलं
पyoratanायतका
एलजे भिषल परसोनि दोमासिब परिहारहाण परिसेविता जालोएमा अपलिजशिय आलोएमाणस दौमासिय पलिशिय आलोएमाणस्थ तेयासिय ७१. बहसोधि मासियं । परिहारहाण पडिसेपिऊण आलोएज्जा अपलिउशिर्य जालोएमाणस तेमासियं पलिउशिय आलोएमाणस्म चाउम्मासिया था. बहुसोषिचाउम्मासिय परिहारहाणं पडिसेविता आलो-8 एजा अपलिजत्रिय जालोएमाणस्स चाउम्मासियं पलिउत्रियं आलोएमाणस्स पञ्चमासियं ।९।० बहुसोषि पञ्चमासिब परिहारार्ण परिसेवित्ता आलोएजा अपलिउन्चिर्य आलोएमाणस पाचमासिय पलितभिर्य आलोएमाणस्स उम्मासियं, तेण परै पलिउत्रियं वा अपलितत्रियं वा ते चेष छम्मासा ।१०। मासिय वा दोमालिय वा मासिया चाउम्मासियं वा पक्षमासियं वा एएसि परिहारहाणार्ण अन्नयरं परिहारहाणं पडिसेबित्ता आलोएना अपलिडशिययं आलोएमाणस्स मासियं वा दोमासियं वा तेमातिर्य वा चाङ मासिय वा पक्षमासिय बा, पलिचिवयं आलोएमाणस्त दोमासिय मा तेमासिय या चाउम्मासिय वा पंचमासिर्व वा छम्मासिय बा, नेण परं पविउचिए वा अपलिउंथिए वा वे पेष सम्मासा। ११.जे. बहुसोषिमालियं या दोमासिथ या उम्मासा ५१०।१२।जे मिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मानिय वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा एएसि परिहारहाणाणं अनावरं परिहारवाणं पडिसेवित्ता आलोएडा, अपलिचियर्य जालोएमाणस्स चाउम्मासियं वा सारेगपाउम्मासियं वा पंचमासिव वा साइरेगपंचमासियं वा पलिडचिययं आलोएमाणस्स पंचमासिय वा साइरेगपंचमासिकं वा छम्मासियं वा, तेण पर पलिथिए वा अपलिउंचिए पा से चेष सम्मासा । १३॥ जे मिक्व सोवि चाउमासिय बा१४१०साइरेगचाउम्मासियंचा। १५० पंचमासिब बा१६सारेगपंचमासियं बारिश एवं माणियां जाम्मासा '५३५११८ाजे मिक्स्चाउम्मासियं वा साजरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा पसि परिहारहाणार्ण अभयर परिहारहाण पहिसेपित्ता आलोएजा, अपलिचियर्य आलोएमाणस उपणि वाता करणि बचावतिय, उपिएवि परिसविया सेवि कसिणे तत्वेष जाव्हेयो सिया. पुनि पटिसेवियं पुरि आलोइय, पुति पडिसेवियं पणा जालोय, पच्या परिसेविय पुस्लिम पच्छा परिसेचिर्य पच्छा आलोहय, अपरिचिए अपलिडचिय, अपरिचिए पलिलीचिय, पलिथिए अपलिडचिय, पलिउँचिए पलिभियं, आलोएमाणस्स सबमेयं तकर्य साहणिय जे एषाए पहवणाए पविए निशिसमाणे पडिसेवेह सेविकसि वपेच आख्यो लिया। १९ । एवं बहुसोधिजे मिक्सू चाउम्मासिथ वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वार साइरेगपंचमासिषं वा एएसि परिहारद्वामाणं जम्पर परिहारहाणं पडिसेवित्ता जालोएज्जा पलिउंपियं जालोएमाणस्स तपणिज ठपइसा करगिज वेवावष्टिय जाच पच्छा पडिसेनिय पच्छा पालोइय जाप पलिडचिए आलोएमाणस सबमेयं सकर्य साहग्गिय आम्हेव सिया, एवं अपलिउँचिए '६०१॥२०॥ जे मिक् चाउम्मासिय मा आलोएजा, पलिम चियं जालोएमाणस्स० पलिउंचिए पलिडचिय, पलिचिर पलिडचिर्य जानोएमागम बायो सिया (२१॥ जे मिक्सू बसोधिचाउम्मासिय वा पहुसोविसाइरेगावा आमहियो सिया '६२६१।२२। पहले पारिहारिया बहवे अपारिहारिवारमा एगयो जमिनिसेवा अभिनिसीहिय वा पासए नो से कप्पा धेरै अगाधुमिता एमयमओ अभिनिसेज का अभिनिसीहिय वा चहत्तए, कणा हरे आपुस्वित्ता एमपओ अमिनिसेज मा अभिनितीहिया पडत्तए, घेरा यार से वियरेणा एवं कमा एगयो अभिनिसे या अमिनिसीहियं या पेजलाए, येरा यई से नो वियरेजा एवंनोकप्पड़ एगयओ अभिनिसेवा अभिनिसीहियं वा इत्तए, जो थेरेहि अविजन अमिनिसेवा अभिनिसीहियं वा एड से सन्तराए वा परिहारे वा ६९३।२३। परिहारकप्पहिए निक्खू पहिया बेशर्ण यावदियाए गमोजा, मेरा व से सरेना कणा से एगरावयाए पकिमाए जणं जपणे विसं अने साहम्मिया विहरति सम्ण सणं दिसे उचलित्तए,मोसे कप्पा तत्थ विहारबत्तिय पत्याए, कापा सेतत्यकारणवत्तिर्म पत्याए, संसिपणं कारगंति मिहिर्यलि पो पएमा 'साहि अजोर एगराय वा दुरायचा' एवं से कप्पइ एगरायं वा दुराय वा पत्याए, नो से कपड़ एगरायामो वा दुराबाओ वा परे पसित्तए, जो गवत्य एम० स० परं पसा से सन्तरा छेए मा परिहारे पा।२४। परिहारकापहिए भिक्खू पहिया मेरा बेयाचडियाए गच्छेजा, घेरा य से नो सरेया, कप्पड से निविसमाणस एगराइयाए पडिमाए जणं जम्दै दिसं जाय तस्य एगरायाओ वा दुरायानोपरं क्सकसे सन्तारा एचा परिहारे या '७६७।२५४ परिहारकप्पहिए भिक्खूबहिया राणं यादतियाए गच्छेजा पेराय से सरेमा गानो सजा वा कम से निविसमापस एगराइयाए जाच ठेए वा परिहारे ना।२६। मिक्स्य राणाओ अपकम्म एगविहारसहिमं उपसंपमित्ताण पिहरेजा, से मान्छेमा बोच पिवमेव गणं उपसंपजिसाणं विहरितए, पुणो आलोएजा पुणो पतिकमेजा पुणो छेयपरिहाररस उपहाएमा ।२७।एवं समारोहए था।२८ा एवं आपरिए । २९ एवं उपाए 1३01 मिक्सूय गणाजी अचम्म पासत्यनिहारे पिहरेगा, सेवामा रोपि तमेव गण उपसंपमित्ताणं पिहरिचए, अस्थि बाईप से पुणों आरोएजा पुणो पश्चिमेला पुनो ९७० व्यवहारे-सूत्र, उमेरो
मुनिटीपरसागर
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आगम
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सूत्रांक [३१]
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“व्यवहार” - छेदसूत्र - ३ (मूलं)
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ३६ ], छेदसूत्र - [३] "व्यवहार" मूलं
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छेयपरिहारस्स उपट्टाएमा ३१ एवं महान् कुसीको ओसो सतो '८९१ । ३२ । भिक्खू व गणाओ जयम्म परपासंडपडिमं उपसंपरित्ताणं पिहरेजा परलिंगं च व्हेजा, से य इच्छेला दोपि तमेत्र गणं उपसंपज्जित्तानं विलिए, नत्थि तस्स तप्यलिय के ए वा परिहारे वा नन्नत्व एमाए आलोयणाए । ३३ मिक्सू व गणाओ कम्म जहाज्जा से प] इच्छेज्जा शेषितमेव उपज्जित्ताणं विहलिए, नत्थि मं तस्स वप्पत्तियं के ए वा परिहारे वा नन्नत्थ एगाए सेहो बहावणाए ९१४ । २४ । मिक्यू य अन्नयरं अफिम्बद्वाणं पहिलेविता इच्छेज्जा जालोएलए, जत्येव अपनो जायरियउवज्झाए पासेज्जा कम्प से तस्मंलिए आलोएलए वा परिक्रमेत्तए वा निन्दित्ता बारहिए या विउहिए या विसोहिल वा अकरणपाए अम्मुल पा अहारिक पाय पति वा नो अपनो आयरिझाए पासेज्जा जत्थे संमो साहम्मियं सूर्य सागमं पाया तस्संलिए कम्प से आलोएलए वा जान पडिवज्जेत्तर वा नो चेव संमोह साहम्मियं वा पाला जत्थेन इयं बहुस्यं वज्झागमं पासेजा कम्प से तस्संलिए आलोएसए वा जाब पबिजेता बानो व अन्नसंमोर्य जत्थेव साचियं बहु बज्झागमं पाप से वरलिए बाल बानो व सारुवियं बहुस्तुयं वज्झागमं पासज्जा जत्येव समयोवास पच्छाकडे ममागमं पासेज्जा कम्प से तत्संवियं आए वा पढि कमेरा वा जाय पायच्छितं पडिवजितएवा नो चैव समास पाक बस्तु सागमं पासेज्जा जत्येव सम्ममावियाई बेहयाई पासेज्जा कप्पाह से वसतिए बालोएनए बाजार पायच्छितं पटिनज्जितए वा नो चेदनं सम्मभावियाई बेहयाई पासेज्जा पहिया गामस्सया जाय संनिवेसरस वा पाणामिमुद्देश या उदीणामिमुण या करपलपरिय हियं सिरसायनं मत्यए अंजलिकट्टु कम्प से एवं एएवइया मे अपराहा एव अपर अहंताणं सिद्धाणं जतिए आएज्जा पडिमेज्जा निन्देज्जा जय पाय पडवजासित्ति बेमि ९७३ ॥३५॥ पढमी उसओ २१|| दो सामिया एगपति, एगे तत्व अपरं अभिवद्वाणं पडिलेचित्ता आलोएजा पनि उपचा करणिया ।१। दो साइमिया एमओ निति दोषि ते अक्षय अभिवद्वाणं परिसेविता जोएजा एवं तत्थ कप्पा ठवता एवं निविलेजा, अह पच्छा सेचि निधितेजा । २। महये साम्यिया एमओ विति, एमे वत्य अचपरं अकिचाणं पडिसेविता आलोजा, उवणि उपसा करण पाटियं ३ पहने सामाि रंति से अक्षय अकिद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएना एतत्य का पता असे निजि अ पच्छा सेऽपि निशिसेना '५७१४] परिहारकम्पडिए भिक्खू विलाय मागे अपरं अकिबाणं पठिता आलासे या उणि उपसा करण यावदियं से यनो संरेखा अणुपरिहारिएणं करणि वेयावडिये से से अणुपरिहा रिणं कीरमाणं यावडियं साइजेज सेवि कसि कत्येष आय सिया '७२' 1५1 परिहारपट्टियं मानो कप्प तस्स गणावच्छेयस निजूहित्तए, अगि लाए तरस करणां वेयापडियं जाय तो रोगापाजो विप्यमुको, तो पच्छा तर अहाललए नाम बारे पविय लिया। अवटुप्प पारशिवं मितुं गिलायमाणं जाव पवित्रेलिया, खित्तचित्तं दित्तचित्त जस्लाइ उम्माय उक्तम्यप०, साहिगरणं, सपायच्छितं मत्तपाणपडियाइसितं, अजायं निपचियये सिया '२२६' । ७-१७। अव अहि नो कप्पर तस्स गणावच्छेदयस्स उपद्वातिए १८ अगष्यं मितुं मिहि कम्पन तस्स गणावच्छेइयरस उपद्वावित्तए । १९। पारथिर्य भिक्खु जगहि नो कप्प तर मणावच्छेद्रय उपात्तिए २० [पारंचियं मिक् मिहिनूर्य कम्पइ तस्स गणावच्छेयस्स उमाविलाए २१० अहिभूयं वा गिहिभूर्य वा कम्प तर गावच्छेयस उपद्वाविलाए जहा तस्स गणस्स पत्तियं लिया २२ पारंचियं मिक्स अगिहियं वा मिहिका कप्पर तस्स गणाच उठाए जहा तस्स गणस्स पत्तियं शिया २५८ । २३। दो साम्बिया एमओ विहरन्ति एतत्य अपरं अकिबट्ठाण परिसेविता 'मते अमुगे साहुया सर्व इमाम व इर्ममय कारणम्मि पडिलेवी' से तत्य पुष्यिष्ये किं पडिलेवी अपडिलेवी ?" से पाएका पडिलेवी' परिहारपत्ते से या पडिसेबी'नो परि हारपत्ते, जसे पमाणं वयइ से पमाणजो बने लिया से किमाइ भन्ते, सबपाहारा २७० | २४| मिक्लू व माओ अपम्म ओहाही लेखा से य इच अगोहाइए, से य इच्छेला दोपि तमेव गणं उपसंपत्तिाणं लिए तत्य राहमेयारूये विचार समुपखित्या इमं णं असो! जाह किं पडिसेविं अपडिसेविं१, से य पुष्य किं पडिलेवी अपविसेषी?' से या 'पडिसेबी' परिहारपत्ते से व एका 'नो पहिलेबी' नो परिहारपले, जं से पमाणे वय से पमानओ पेस से किमाहु मन्ये १, बन्ना बहारा ३१९।२५ एमिक्सुस्त कम्प आयरियउवज्झायाणं इत्तरियं दिसं या अणुदितं वा उदिति वा पारितए वा जहा या तस्स गणस्स पति ९७१ व्यवहारः उदेसी २
मुति दीपरत्नसागर
~ 133~
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आगम
( ३६ )
प्रत
सूत्रांक
[२६]
दीप अनुक्रम [६१]
अत्र उद्देशक: ३ आरब्ध:
“व्यवहार” - छेदसूत्र - ३ (मूलं)
उद्देश: [२]
मूलं [२६]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३६], छेदसूत्र [३] "व्यवहार" मूलं
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~ 134~
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समासे
सिवा ३५५' । २६। बहने परिहारिया पहले अपरिहारिया इच्छेला एगयओएममार्स वा दुमा वा विमासे वा पठमा वा पंचमाया छम्मा या वत्पए से अन्नम अथम नो जन्ति मार्स, तो पच्छासमे एगो जन्ति '३६४' २७ परिहारकप्पट्ठियस्स मिक्सुस्त नो कप्प असणं वा दावा अणुष्पदा वा रा -इता जो तुमं एएसं देहि या अनुष्पदेहि वा एवं से कप्प दावा अनुप्पदा था, कप्पड़ से ले अनुमानावेत 'अनुजा भन्ते लेवाए एवं से कप्प वेलए '३७२' । २८।] परिहारकम्पडिए भिक्यू सरणं पडिम्म बहिया अपनो वेवाडियार गच्छेशा मेरा व पापडिया मोक्लाममा पाहामि या एवं ई से कम्प पडिग्गा त्यो अपरिहारिएवं परिहारियस्स पडिग्गइंसि असणं वा मोतए वा पाय वा कप्पर से सर्वसि या पडित सति वा पलासति सति वाकमदमंसि सति वा सुम्बति सति या पाणियंसि उदद्ध उदट मोचर का पाया था, एस कप्पे अपरिहारियरस परिहारियाओं । २९ परिहारपट्टि मिलू बेरा पड बहिया राम देवाडियार गच्छेजा, रामादि जो तुमपि पच्छा मोक्ला पाहता एवं से कप्पा पडियारत्न परिहारिणं अपरिहारियरस पग्मिसि असणं या मोरया पायाएका कप्प से सति पढिन्स या सर्वसि पलाससि ना पासा उबद्ध उद्ध ओवा पाया. एस कप्पे परिहारियरस अपरिहारियाजोसि बेमि '३७८ ३० ॥ वो उस २॥ निक्खु इच्छेशा गणं धारेलए, मगच से अपने एवं नो से कम्पग धारेल, भग से पलिच्छि एवं से कप्प गर्म पारेतए ११०१ इच्छेजा वर्ग पारेशर, नो से कप्प मेरे मागणं धारेवर कप्प से येरे पुछा गर्न पाए, पेराव से निला एवं से कप्प पारेर वेराय से नो वियरेगा एवं से मोहरे, जयेहि गर्न परेमा सन्तरा एवा परिहारे सम्म उहाए विहरति नत्थि तेर्सि के ए वा परिहारे वा '११६' २ विवासपरिवार सम निर्माचे आधारसले जमले पण पक्ष सिकुसले संगह कुराले उसले अक्स) यायारे अभायारे असलापारे अकिलिहायारचरिते हुए झागमे जमे आयापकष्पधरे कम्प आयरिसाया उद्दि सिसए । ३। सचेषणं से विवासपरियाए समने निर्माचे नो आया जाय किलिडायारपरिने अन्य अन्यागमे नो कप्प आयरियायत्ताए उरित्तिए ॥४॥ एवं पंचपासपरिवाए सम निर्माये आया जाय अकिलिद्वापारचरिते बहुस्युयेागमे जहन्ने इसाकम्पयमहारथरे कप्पर नारियउवज्झायसाए पति उरित्तिए (५) सचेचसे पचासपरियाए समने निम्यन्ये भो आधारसले अपए अप्पागमे नो कम्प आयरिथउवज्झायत्ताए पर उडिसिन | ६| बहुवासपरियाए समने निम्मन्ये आधारकुसने जाणायधरे कप्प से आयरित्ताए उपात्ताए पत्ताए बेरताए गणित्ताए गणावच्छेदयत्ताए उरित्तिए ७ सचेच नं से अनुपासपरियाए समने निम्न्ये मी आधार नो कम्प परियता जाव णायच्छेत्ताए उरित्तिए १८२८ निरुद्धपरिचाए सम निमान्थे कम्प दिवस आयरियउज्झायनर उरिसिए से किमा १ अस्थि रातारूपाणि कुलाई कठानि पत्नियाणि जानिसासियाणि संमयाणि सम्मुकराणि अणुमयाणि मयाणि भवन्ति तेहि कडेहिं नहिं पतिएहिं हिंसासिएहिं हि संमहिनेह सम्मुइरे से निरुद्धपरियाए सम निमान्धे कप्पा आयरियवायत्ताए उदित्तिएर निरुद्धतियासपरियाए समणे निमन्ये पाया रिपवज्झायत्ताए उरित्तिए समुच्चयसि वस्स णं आधारपकप्परस देसे अपए अहिजिए नवइ सेसे 'अहिजिस्सामिति अहिलेजा एवं से कह आयरिया नए उहिसिए से हिस्सा तिनो अहिजेला एवं सेनो परिवउकलायत्ताए उद्दितिए २१६ । १० । निम्गन्धस्त नमस्तस्स आयरिया भेज्जा, नो से कप्पा अणायरिथउपायस्त होताए, कप्प से पूर्वि आयरियं उदिसावेत्ता तो पच्छा उवज्झायं से किमाडु मंते १. दुसंगहिए सम निम्मं परिणय ११ मन्बीए में नहरनियाए जायरिया पणी व पिज्जा, नो से कप्पड़ जणायरियउवज्झाइयाए अपवत्तिणीयाए होए कप से पुि आपरिष उदिसावेसा ती पच्छाउदा त पच्छा पति से कमाने तिसंगहिया समणी निम्बन्धी [सं०] आयरिर्ण उपाए पत्तीए व '२३५।१२। व गणाओ पम्म मेनचम्मं पढिसेवेला विणि संवरा तर सम्पत्तियं नो कप्प आपरिवत्र्त पा जाय गणावच्छेदना उदिति वाचाल या सीि
त्यस संरंसिपट्टियंसि टिपरस उपसन्तस्स उपरवस्त परिविश्यस्स निडिगारस्स एवं से कम्पयरिया जाय गणावच्छेप वा उदिति वा पारेर [व] [२५१' । १३। गणानक्खिविता मे पडिलेवेजा जारजीचाए तरस सम्पत्तिये नो कम्प जायस्थितं वा जाय गनापच्छेउरि या पारे ।१४च्छे गणाच्छे निक्खिविता मेहुणधम्मं पडिवेजा तिमिराणि गणावच्छेयसं परित्ताए मा १५ एवं आरिए उपाए (२४३) ९७२ व्यवहारः देखै-र
मुनि दीपरत्नसागर
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Ateyser
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आगम
(३६)
“व्यवहार” – छेदसूत्र-३ (मूलं) ---------- उद्देश: [३] ------------------------ ------------- मूलं [१७] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३६], छेदसूत्र - [3] "व्यवहार" मूलं
प्रत
सूत्राक [१७]
15. विदो आलापमा '२५६।१६-१७। भिक्प् य गणामी अचम्म ओहाया विणि संवच्छराणि धारेत्तए पा।१८ एवं गणापयोपयत्त अनिक्सिवित्ता औहाएजा जापजीपाए, | निक्विवित्ता विणि संवचाराई-१९-
२एवं आपरिए उवमाएवि'२७५१।२१-२२ भिक्खू प बहुसाए ममागमे बहलो बहुजागाबानागाडेसु कारणेसु माइमुसाबाई असुई पाचजीची जावजीचाए तस्स तप्पत्तिय नोकप्पड आयरिपत्र गाजाच गमावच्छेयपत्री वा उदिसित्तएबा धारेसएबाा२शएवं गणावच्छेदएवि०पारेत्तए वाा२४ाआयरियावज्झाएवि।२५/ बहरे भिवपुणो बहुस्सुपा बज्मागमा बहुसो जीनाए तेसिवपत्ति नोकप्पड़ जाच उरिसित्तए मा पारेसए ना।२६॥ एवं गणावच्छेदयावि, पारेत्तए वा।२७ एवं आयरियउवमायावि, घारेत्तए पारिवा बहने मिक्सुणो महवे गणानछेड्यापहवे आपरिचउपसाचा बहुस्सुया पागमा बहुसोलापरिपतं पा उपज्झायत्तंचा पत्तिया येरतंबा गणपरतंचा गणाबच्छेदपतंचा उरिसितए वा धारेसएका ३६५।२९॥ तो उदेसो ३॥नो कप्पा आयरियउक्झायस्स एनामिया हेमन्तमिन्हासुचरितए । कप्पाजावरिषउपज्झायरस अपवीयस्स हेमन्तगिन्दास चरितए।शनो कप्पड़ गणापच्छेदयस्स अप्पषीयस्स हेमन्तगिम्हामु चरितए।३।कया गणावच्छेदचस्स अपवयमा हेमन्तगिम्हासु चरित्तए। नो कप्पा आपरिषउपज्झायस्स अप्पनियता वासासासं वत्यष्ट।५। कण्या आयरिबउबमायस्का अम्पायरस पासापास बत्त्याए ।६।नो कप्पाइ गणावच्छेद्यस्स अप्पसदयस्स वासाचासंबत्यए।किया गमावच्छेडयरस अपचडत्यस्स पासाबास बस्याए '६५' से गामंसिमा नगरंसिवा जाप संनिवेसिवाणं आपरिषउवमायाणं अपरियाण बर्ण गणावमोइयाणं अप्पतायाणं कप्पा हेमन्तागिम्हास परिसए असमर्थ निस्साए।९।से गामंसि चा जाच संनिससि वा गहूर्ण आयरियउपमाया अन्याया गमा वायाणं अपच उत्थाणं कप्पा वासावासं चरित्तर असमर्थ निस्साए '१६२११०१ गामाणुगाम ददनमागे मिरज पुरजो कर निछरेजा से आहब बीमुम्भेजा अस्थि या इत्य बचे कई उपसंपनणारिहे (कप्पड़) से उपसंपनियो सिया, नस्थि याइस्य बने के उपसंपामणारिहे अप्पयो कप्पाए असमसे कप्पाइ से एगराइयाए पडिमाए जणं जगणं दिसं अनेसाइम्मिया विहरति सणं सम्णं दिसं उवलितए, नो से कप्पइ तत्य विहारवत्तिर्य वत्पए, कप्पड से कारणपत्तियं वत्याए, तंसिंचनकारणसि निद्विपंसिपरो वाना-पसाहि अजो! एगरायचा दुरायं वा एवं से कप्पा एगरायं वा दुरायं वा पत्याए, नो कप्पड एयराबाओ वा दुरायाजो वा परं वत्यष्ट, जे तत्व एमराबाबो वा दुराबाओ ना पर बसाइ से संतरा छेएमा परिहारे या ।११। वासाचास पजोसविए भिक्खूछेए वा परिहारे वा '२६२।१२। आधरिपउबल्झाए गिलायमाणे अनयर पएना-ममंसिर्ण कालगर्यसि समाणंसि जयं समुफसियो, सेय समुच्तणारिहे समुफसियो, से बनो समुसणारिद नो समुसिया, अस्थि या इत्य अमे केइ समुसणारिहे से समुसियो, नस्थि या इत्य अन्ने के समुसणारिह से चेष समुः। कासियो, तैसि चणं समुकिलुसि परो परजा दुस्समुकिट ते अजो!, निक्लिपाहि, तस्स निक्सिपमाणस नवि के छेए वा परिहारे वा, जे ते साहम्मिया अहाकम्पेण नो अति ससि सि वप्पत्तिय गेए वा परिहारे वा '२९०।१३। आयरिबउक्जमाए मोहायमाणे. ओहावियंसिक अयं समुसियो जाब सरेसि सि सप्पत्तिय ए वा परिहारे पा'३०३।१४ापरियउपसाए सरमाणे परं चउरायचराबाओ कप्पागं भिक्षु नो उपहावेड, कप्पाए अस्थि थाई से केद्र माणणिजे कप्पाए, मरिय पाई से केहए या परि-H हारे वा, नवि बाई से फेड माणनिजे कष्पाए से संतरा ठेए वा परिहारे बा । १५/जायरियजरमाए असरमाणे परं चउराधाओबा पंचरायाओ कप्पामेछए या परिहारेबा।१६॥ आयारियउबझाए सरमाणे या असरमाणे वापरं दसरायकच्चामो कपागं निपटुंनो उपहावेह, कम्पाए अस्थि यासे केद्रमाणणिज्नेकपाए नस्थि याई से कह ए वा परिहारे या नस्थि याई सेकेड मागणिकप्पाए संवच्छर तस्स तप्पचियं नो कापाकापरिवर्स चा जाच मनापोयतं वा उरिसित्तए पा.११५१अमिक्खुब गणाओ अचम्म अर्थ गण उपसंपजित्तार्ण बिहरेना, वे च के साइम्मिया पासित्ता पएजा 'जलो! उपसंपमित्तार्ण विहरसिजे सत्य साराइगिए संवएगा, अहमत! कस्स कप्पाए,जे साथ बहुसए संवएना, जवा से भगवं वारयाद तस्स आणाउववायषयणनिहसे चिहिस्सामि ३४६ ११८ामहरे साहम्मिया इमोजा एगयो अभिनिचारिय चरितए, नो र कन्या धेरे अमापुच्चित्ता एमयजओ अभिनिचारियं चरित्तए, कन्चाई धेरे आपुच्चित्ता एमयमओ अभिनिचारियं चारित्तए, बेरा य से वियरेजा एवई कम्पा एगतओ अभिनिचारियं चरितए, येरा यई नो वियरेजा एवं ईनो कप्पड एगयओ अभिनिचारियं परित्तए, जे तत्व बेरेहिं अविडम्ने एगपत्रओ अमिनिचारियं चरति से संतरा छेए वा परिहारे वा । १९॥ परियापपिढे मिक्खू जाच चउरायपशरायाओ घेरे पासेजा सचेव आलोयणा सचेच पदिकमणा सब जग्गाहस्स पुराणुजरना चिड, अहालन्दमावि ओग्गहे।२०। परिवाचबिहे भिक्यू परं चडायपरायाजो मेरे पासेजा पुणो आलोएमा पुगो पटिकमेना पुणो यपरिहारस्स उववाएगा, मिक्खुमावस्स अहाए दोचापि ओग्गहें अनुन्नवेयो सिया कप्पति से एवं ९७३ व्यवहाराम, उसी
मुनि दीवनसागर
अनुक्रम
[८२]
अत्र उद्देशक: ४ आरब्ध:
~135
Page #136
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आगम ( ३६ )
प्रत
सूत्रांक
[२१]
दीप
अनुक्रम [११५]
“व्यवहार” - छेदसूत्र - ३ (मूलं)
उद्देश: [V]
मूलं [२१]
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३६], छेदसूत्र [३] "व्यवहार" मूलं
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अत्र उद्देशक: ५ आरब्ध:
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दिए जाते मिओहं हाउन् पुर्व नितियं निइयं बैठहियं, तो पच्छाया २१ परिवानिय मिक्यू कायफा ४४७ २२.२३ दो सा मिया एगयो विहरति ०- सेहे व राइणिए व तत्व सेतराए पलिच्छिन्ने राणिए अलिच्छिन्ने नृत्य सेहरा राणी उपसंजिव मिक्लोवपाच इलम कप्पा | २४| दो सामिया एगयओ विहति वं० सेहे व राइणिएव तत्थ राइणिए परिच्छिन्ने सेतराए अपलिच्छिन्ने इच्छा राइजिए सेतरावा इच्छा नो उपा इच्छा क्खिोवाल कम्पार्थ, इच्छा नो इलय कप्पा ४६० । २५ । दो निक्खुणी एमयजो विहरति नो ष्टं कप्पइ अन्नमन्नस्स उपसंपत्तिानं विहरिए, कप्पड़ ह आहारादणियाए अन्नमन्नं उपसंजिता विहरिए । २६ । एवं दो गणावच्छेदया। २७। दो आयरियउवज्झाया । २८। बहेब भिक्खुणो हिरिए। २९। बहवे गावच्छेया ३० एवं बहने परिपाया ३१ बहने भिक्खुगो बहवे गणावच्छेया बढ्ने आयरिउवज्झाया नो पं० कम्पइ हितिए ५७४ ॥ ३२ ॥ उत्यो उसजो ४॥ नो कम्पह पत्तीए अपनाए हेमन्तहा चारए १ कप पत्तिणीए अपनाए हेमन्तगिम्हासु चारए २ नो कम्प गावच्छेदीए अपनाए हेमन्तगिम्हामु चारए ॥३॥ कम्प गावच्छेणीए अपवउत्थीए हेमन्तगिम्हासु चारए |४| नो कप्पड़ पवत्तिणीए अपनाए वासावा सत्य ५ कप्पर पदत्तिणीए अप्पत्पीए वासावा पत् ॥६॥ मो कप्पर गणावच्छेणीए अप्पचउत्पीए वासावास पत्याए 31 कप्पड गणावच्छेदणीए अपपंचमी वासावासं वत्थए । ८ से गामसि वा जाव संनिवेसिया बहूणं पवतिणी अप्पतहृयाणं बहूणं गणावच्छेङ्गीर्ण अप्पचउत्पीणं कप्प हेमन्तगिम्हासु चारए जनम निसाए।९। से गामंसि वा जाय संनिवेसि वा बहूणं पवत्तिणी अप्पचउत्प ब गणावच्छेणी अप्पमीण कप्पवासावा असम निसाए १० गामाणुमा दुइजमाणी निगन्धी पजं पुरो कार्ड विजा साया अपि या इत्य काइ जना उपसंपणारहा सा उपसंपजिया नत्थि या इत्य काइ अचा उपसंपणारा तीसे य अपणो कप्पाए असमता एवं से कम एगराइयाए पटियाए जल दिसं अनाओ साहमणीओ चिति दिए वा परिहारे वा ११ वासाचा पचीसविया निग्मन्धी पुरओ कार्ड विलास आमी या इत्य का अभा संपणारा सा उपसंपजिया जाब ए परिहारे वा १२ पवत्तिणीय मागमानी अक्षय जो लगाए समाणीए इयं समुसिया साय समुक सणारा सा समुकसिया लिया. सायनो समुकसणारा नो समुहसिया सिया, अस्थि या इत्व का अण्णा समुकसमारिहा सा समुसिया, नथिया इत्य काई अण्णा समुकराससका चिणं समकिसि परा व दुस्समुक ते अनिखिचाहि, तीसे विमाणीए त्थि के छेए वा परिहारे वा, से जाओ साहम्मिणीजो जाको उपयंति तास सात सम्पत्ति ए वा पहिले वा । १३। पतिथी व ओहायमानी एगयामसि णं अजो जोहाइसिएला समुकसिया समुकसणारिहासा समुकसिया सिया, सायनो० ए वा परिहारे वा ९१४। निम्मन्यरस नगर आयारपकप्पे नाम अझवणे परिम्भट्टे सिया से व पुच्छिय केण ते कार
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! जयापकप्पे नाम अायणे परिमड़े है कि आवाहे उदाहु पमाए ? से बजानो आबाग, पमाएणं जावजीवाए तस्स तप्यति नो कम्प आयरिया ज्ञान गणावच्छेदयत्तं वा उहिसिनाए वा पारेर वा से या आबा, नो पमाएणं' से य 'संवेस्तामीति' संठवेना. एवं से कप्प आयरियतं वा जाब गणाचच्छेय वा उदितए वा धारेलए वा सेय संस्थामीति मोठा एवं से नो प्यछे या उदिसिनए वा पाएका १५ निम्बन्धीए णं नवतरु नियाए आयापकप्पे नाम अन्य परिम सिया सा व पुछिया फेण ते कारणे आधारपणे नाम अपने कि आबानं पाए. सायनो आचा हे पमाए जावजीचाए तीसे तप्पत्तियं नो कप्पड़ पवत्तिणितं ना मगावच्छेदनियतं वा उदितिए वा धारेतए वा सेवा' आबाहेणं, नो पमाएगं सा य संवेस्तामीति एवं से कपपत्तिणीस या गणावच्छेदयितं वा उदित्तिए वा धारेनए बा, साथ संवेस्वामीति नो वेला एवं से नो कम्प पत्तिगीतं वा गणावच्छेणिया उरित्तिए वा धारेलए वा १६ वेरानं रभूमिपलाणं यापक नाम अपरिम सिया कप सि संवेन्तान वा अठवेन्तान वा आयरियतं वा जाय गणावच्छेया उदित्तिए वा पारेर वा १७ पेरा बेरभूमिपत्तानं आधारपकन्ये नाम अन्य परिम सिया कप्पड़ सि निण्णाण वा तुहान या उत्तानपान का पाणि वा आयापकप्पे नाम अजय दोपि तप पछि वा परिसारितए वा '४४' १८ निम्न्यायनी व संमोइया सिया, नो हे कप्पड़ तासि अक्षम अंतिए एसए अस्थिया इत्य केंद्र आलोचनारिह कप्प से सेसि अंतिए आलोएलए नथिया इत्य के जालपारि एवं कप्पा अमर अंतिए जालोएलए '७५।१९। ९७४ व्यवहार उदेखो - ८
मुनि दीपरत्नसागर
~ 136~
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आगम
(३६)
“व्यवहार" - छेदसूत्र-३ (मूल) ---------- उद्देश: [५] ---------------------------------------- मूलं [२१] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३६], छेदसूत्र - [3] "व्यवहार" मूलं
4%
प्रत सूत्रांक
[२१]
जे निग्मन्या व निगान्धीओ यसमोइया सिया नो तेर्सि कप्पह जन्नमन्नतिए वेयाचडियं कोत्तए, अत्विया इत्य केहयापचको फापहनेण वेयापर्ष करावेलए, मस्थि पाइ
इत्य केइ वेयाश्चरे एवं ईकापा अन्नमग्ने पेयापर्य करावेत्तए ९०।२० निमन्च राबो वा चियाले बा दीडपट्टे सोना, इत्थी या पुरिसस्स आमजेमा पुरिसो वाइवीए अआमजेजा, एवं से कप्पा एवं से चिहा, परिहारं च सेन पाउणन, एस कप्पे पेस्कप्पियाणं, एवं से नो कप्पड़,एवं से नो विहार, परिहार चपाडणा, एस कप्पे जिणकप्पियाति मित्र
"१४३२१॥ पंचमो उसो ५॥ भिक्खू याइयोजा नायविहि एलए, नो से कप्पाइ धेरै अणापुत्तिा नापविहिं एसए, कप्पड़ से घेरे आपुच्छिता नापविहि एनए, पेय पसे वियरेका एवं सकपा नायविहिं एनए, मेरा य से नो विवरेजा एवं से नो कप्पा नायचिहि एसए, ज तत्व धेरै अविष्णे नायविहिं एश से सन्तरा छैए या परिहारे वा, मो कपल अप्पासुवस्स अप्पागमस्स एगाणियस्त नायविहिं एनए, कप्पा से जे तत्व बास्सए बझागमे तेण सदि नायविहि एलए, तस्य से पुनागमणेणं पुचाउसे चाउलोवणे पच्छाउत्ते मिलिंगसूवे कप्पड़ से चाउलोदने पटिम्गाहेत्तए नो से कपड़ मिलिंगसूचे पतिबाहेत्तए, वत्व पु-यु.मिलिंगसूवे पणा वाटा कणा से मिलिंक पडिनो से कमाइ चाउ पडि०, तत्व से पुमागमणेणं दोषि पुग्नाउत्ताई कप्पड़ से दोवि पहिगाहेत्तए, नत्य से पुष्वा दोषि पण्डा नो से क० दोषि पढि०, जे से तत्व पुना पुगाउले से कप्पा पहिले से तत्य पुण्या पच्छानो से कप्या पहिग्गाहित्तए '७२।१।आयरियठबनायस्स गर्णसि पंच अइसेसा ५००-आपरिषउनझाए अंतो उनसपस पाए निगिज्झिय २ पकोडेमाने वा पमजेमाणे वा नाइकमा आवरियउपमाए अंतो उसस्सयस उचार वा पासवर्ण वा विमिंचमाणे वा चिसोहेमागे या नाकमा, आयरियावज्झाए पम् च्या वेयावडियं करेजा इच्छा नो करेजा, जापरिषउपजमाए अंतो उवस्मयस्स (उपरए) एगरायं वा दुरायं वा यसमाणे नाइकमा आयरियउबझाए बाहिं उपस्सपस्स एगरायं वा दुरायं वा यसमाणे नाइकमाइ ।२। गणारच्छेदयस्सा गं गर्णसि दो अहसेसा पं० सं०-गणावइए अंतो उपस्सयस्स एगरार्थ वा दुरापं वा यसमाणे नाइकमाइ, गणापच्छेदए बाहिं उवायरस एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नो अदबमा २६१।३। से गामंसि वा जाच संनिसंसि चा एगबगहाए एगनुवाराए एगनिक्खमणक्येसाए नो कम्पन बहूर्ण अगडमुयाण एगपओ वत्थाए. अस्थि याद ण् केद आयरपकप्पचरे नस्पि बाइ र केहडेए वा परिहारे ना, नस्थि बाइ ई केदावारपकप्पचरे सोसि सि पत्तिय ए वा परिहाने वा।४।से गामंसि वा जाप संनिवेसंसि वा अभिनितगडाए अमिनिदुबाराए अभिनित्वमणपपेसगाए नो कप्पह बहुर्ण जगढसुवाणं एगयजो पत्याए, अस्थि पाइन्हं के आधारपकप्पधरे जे त यत्तिय समि संवसइ नस्थि या इत्थं के छेए वा परिहारे वा, नस्थि या इत्य केइ जायारपकप्पयो जे तपत्तिय स्यणि संचलन सयेसि सि नापत्तियं छए या परिहारे वा '२९८1५1 से गामंसि वा | जाव संनिससिया अभिनित्रगडाए अभिनितुनाराए अभिनिक्समनपवेसणाए नो कप्पद बहुसुयस्स बझागमस्स एगाणियस्स मिक्स्स बस्थए, किमंग पुण अप्पमयस्स अप्पागमस्स मिक्सुम्स । ६। से गामसि वा जाब संणिकेससि वा एगवगढाए एगदुबाराए अमिनिपलमणपसाए कप्पड बहुस्सुवा बन्माममस एमानिया मिक्सुस्स बत्थर डाओ। कार भिमाचं पदिजागरमागरस'३५७७अजय एए पहले इत्थीओ अपुरिसाज पन्हायन्ति तस्य से समणे निग्गंचे अभयरसि अचित्तसि सोयसि सुकपोग्गले निम्पाएमाणे हत्यकम्मपडिसेवणपने आवजा मासिय परिहारहाणं अगुग्याइयं, निग्याएमाणे मेहुणपढिसेवणपते आषजइ चाउम्मासिषं परिहारद्वाणं अणुग्धाइयं ३६७1८1नो कप्पा निगंधाण वा निगंवीण वा निमाथि अग्णगणाओ आगयं सुयायारं सबलाया मित्राधारं संकिलिङ्कायारचरितं तस्स ठाणस जणाचावेत्ता अपठिकमानेता अनिन्दावेत्ता अगरहाचेना अविउझावेत्ता अक्सिोहावेत्ता अकरणाए अणभुवेता जहारिहं पायच्चिाल तवोकम्मं अपविजायेचा उबवावेनए वा संभुजिसए वा संबसित्तए गतासि इत्तरिय दिसं का अणुदिसंवा उदिसित्तए वा धारेत्तए बा।९।कपा निर्णयाण वा निम्गंधीण वा निम्नधि अनगणाओ आमर्थ सुपाचार तस्स ठाणस आलोपावेला पक्षिमावेत्ता निन्दावेत्ता गरहावेत्ता विउहावेना विसोहावेता अकरणाए अम्भुटावेत्ता अहारिहं पायचित क्योकर्म परिवजावेसा उबढावेत्तए वा धारेनए वा ३८८1१०1नो कप्पा-निरर्थ सुयायाअणालोयावेत्ता उरिसित्तए वा धारेनए बा ।११। कप्पद आलोयावेत्ता उदिस्सित्तए पा चारित्तए वा । १२॥ छडो उसको ६॥ जे निम्गन्धा य निम्मन्धीओ प संमोइया सिया, नो कप्पा निमन्धीण निमान्ये अणापुरिछत्ता निम्गन्धि अचगणात्रो जामय सुवाचारं सबलायार मित्राचार संकिलिदायारचरितं तस्स ताणस अणालोयापित्ता. पायजित अपहिनजामेता पुग्छिनए पा पाएसए ना उबहावेत्तए वा संभुजिचाए वा संकसित्तए पा तीसे इत्तरिय दिसंवा अदिसंवा उरिसितए वा धारेत्तए पा"जे निग्गन्धा य निग्ग
न्धीओ य संमोहया सिया, कम्पा निग्गन्धीणं निग्गन्थे आपुष्ठित्ता निम्मान्यि जनगणाओ आगयं खुपापार समलामा भिमाचार संकिलिहायाश्चरित तस्स ठाणम्स आलोयावेत्ता नव्यवहारःमूहको
मुनिचरमसागर
ActorateyN
दीप अनुक्रम [१४७]
ARStat
अत्र उद्देशक:
आरब्ध:
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आगम
(३६)
“व्यवहार” – छेदसूत्र-३ (मूलं) ---------- उद्देश: [७] ---------------------------------------- मूलं [२] ----------
मनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३६], छेदसूत्र - [9] "व्यवहार" मूलं
प्रत सूत्रांक
पदिकमायेता जाप उबवावेनए वा संभुजित्तए वा संपसित्तए वा तीसे इत्तरिय दिस वा अणुविसं या उदिसिराए वा धारितए मा।।जे निगान्था य निगान्धीओ य समोरया सिया का बैंकप्पड निग्गन्याणं निम्गन्धीत्रो य आपुष्ठित्ता निग्गन्धी अण्णगणाओ आगयं सुवाधारं जाप तस्स ठाणस जालोयाबित्ता पटिकमायेता जाव उबट्टावित्तए पा संभूजित्तए पात्र
संवा तीसे इत्तरिय धारेत्तए या, तं च निम्मान्धीओ इच्छेना सयमेच नियंठाणं जान उपडावेत्तए पा संभुजित्तए पा संवसित्तए वा सीसे इत्तरिय दिस या अणुदिस वा उदिसित्तए वा धारेनए वा ४४।३।जे निग्गन्याय निग्गन्धीओ य संभोइया सिया, नो व्ह कप्पा पारोक्खं पाडिएक संभोइयं निसंमोग कोत्तए, कप्पड़ गई पचपख पाढिएक संभोइयंट विसंभोग करतए, जत्येव ते अन्नमन्नं पासेला नत्येष एवं वएग्जा आई अगो ! तुमाए सर्दि इमम्मिय२कारणमि पचक्र पाडिएक संभोग विसंमोग कोमिसेय पडितपेजा. IN एक से नो कप्पा पचपस पाटिएक संभोइयं विसंभोग करेनए. से प नो परिवप्पेमा एवं से कप्पा पचवं पाडिएकं समोइयं विसंमोग करेत्तए 'N'TI जाओ निमावीओ ना निग्गन्धा बा संमोहया सिया नो यह कापड निमान्धि पथकले पाटिएक संभोइयं विसंभोग कोत्तए, कप्पा न्हं पारोपसं पाढिएक संभोइयं निसंभोग करेचए, जत्येव नाओ अपणो आयरियउक्झाए पासेना नत्येक एवं वएजा 'अहंगं मंते! अमुगीए अजाए सर्वि इमम्मि कारणम्मि पारोक्स पाटिएवं संभोग विसंभोग करेमि' सा य से पडितप्पेजा एवं से नो कप्पा पारोकसं पाढिएक संभोदय विसंभोर्म करेलए, सा य से नो पहिवरेजा एवं से कप्पा पारोक्वं पालिएक समोइये निसंभोग करेत्तए '५५1५1नो कप्पा निग्गन्याण निम्माधि अप्पणी अहाए पवावेत्तए वा मुण्डावेत्तए वा सिमखाचित्तए पा सेहवेत्तए वा उपहावेत्तए वा समुजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इसरिय विसं या अमुविस चा उदिसित्तए वा धारेचए वा नाकप्पा निग्गन्धाण निम्मन्धि अमेसि बहाए पयावेत्तएवा-धारेत्तए वा ११८७ानो कापड निग्गन्धीतं निग्गम्पि अपणो जहाए पवावेत्तए वा मुंडापेत्तएवा जाव पारितएवादाकापड निग्गंधीण निम्मर्षि महाए पापेत्तए का जाप पारितए वा।९।नो कम्पा निमांचीण विवकिहि दिसंवा अणुदिसंवा उरिसितए वा धारेत्तएवा।१०।। कल्पह निर्माचा विचा०'१४४।११॥नो कापड निम्गंधाणं चिडकिडाई पाहुटाईपिओसवेलए।१२शकप्पाड निरगंवीणं पिइकिदाईपाडाई विओसवेत्तए १७९०१३ नोकप्पा निर्गपाण या निर्माचीण या विद्यकिय काले सकार्य उदिसितए या कोत्तए वा।१४। कन्या निग्गंधीणे विज्ञकिहए काले समायं करेलए निम्गंधनिस्साए "२६५1१५/नो कप्पा निम्गंधाण । पानिमांचीण वा असमाइए सज्झार्य करेगए।१५कामा निर्णयान या निम्गंधीण वा सन्माइए समायं करेलए।१अनो काचा निर्माचाम वा निम्गंधीम या अप्पयो असझाइएर सज्जायं करेनए, कप्पन व्हं अन्नमन्नस बावणे दलहत्तए '५०३।१८ निवासपरिवाए समणे निर्माचे तीसवासपरियायाए समणीए निमांचीए कप्पद उबझायनाए उदिसितए ।१९। पचासपरिवाए समणे निर्गथे सद्विवासपरियायाए समणीए निर्गयीए कम्पन आयरियताए उदिसित्तए ४११।२०। मामाणुगाम डानमाणे निक्यूज आहब वीसुबमेजा,तं च सरीपर्म केह साहम्मिया पासेजा, कप्पा से ते सरीरगं या सामारियमित्तिकद्ध नै सरीनं एते अचित्ते बहुफामुए पंडिले पडि पम परिवेत्तए, अपि वा इत्य केइ साहम्मियसंनिए उपगरणजाए परिशरणारिहे कपड़ ग से सागारकर्ड गहाय दोपि ओगह अणुन्नवेत्ता परिहार परिहरेत्तए "५७२।२१ सागारिए उगस्सयं पकाए पउनेजा, से. बकाइयं वएजा 'इमन्दिय इमन्दिय ओमासे समणा निग्मन्मा परिवति,से सामारिए परिहारिए, से य नो वएना, बकाए गएजा-इमम्मियामम्मिय ओबासेसमणा निम्गन्याय परिवसन्त, से सागारिए परिवारिपदोनितेवएजा-अमंसिर ओमासे समणा निम्नन्या परिवसन्त बानिले सागारिया परिहारिया । २२सागारिए उपस्सयं विक्षिणेना.सेय काय गएला-इमम्हि य इमम्हि य ओबासे समणा नियन्या परिवसन्ति, से सागारिए पारिहारिए,से यमो एवं वएजा, काए बाएजा-अर्यसि २ ओबासे समणा निम्मन्था परिवसन्तु, से सागारिए पारिहारिए दोमि ते पाएना-अयसि २ ओमासे समणा निमन्या परिनसन्तु, बोनि मागारिया परिहारिया ।२३ बिड्मया नायकुलवासिणी सावियायि ओगह अणुसरेया सिवा किमा पुन तप्पिया बा माया या पुणे मा.सेच दोवि ओम्यहं ओगेव्हियावा ।२४० पहिएवि ओग्गह अणुनबेयो ५१७१२५ से रम(राय)परियोस संबढेस बोगटेसुजमोच्छिनेरा जपरपरिम्महिएम मिपसभाबस्स हाए सब ओम्गहस्स पुषाशुन्नमा चिद अहासन्दमपि ओग्गहे । २६॥ से य रजपरियोस असंबडेस बोगस बोकिन्नेस परप. रिमहिएरा मिनसुनावस्स अवाए दोषिजओग्ग अणुन्नवेयो सिया'५४५ ॥२७॥ सत्तमो उसओ७॥ गाहा उदु पजोसहिए, ताए गाहाए खाए परसाए लाए उवासन्तराए जमिण सेनासंधारण लभेना नमिणं ममेम सिया, मेरा प से अणुजाणेजा तस्सेच सिधा, पेरा व से नो अणुजाणेजा एवं कापा आहारामणियाए सेम्जासंधारगं पडिग्गाहेत्तए 1१1से व अहालसर्ग सेनासंधारगं गयेसेजा, जबकिया एगेणं इत्येण ओगिजिमय जान एमाहवा तुपाहं वा लियाई वा अदयार्ण परिवहितए, एस मे देमन्तमिन्हासु भविस्सहसा १२० से बहालहुसन सेनासंधारगं गमेसेजा, जबक्रिया एमेन हत्येर्ण जोगिझिय जाव एमाह वा दुबाहवा तियाहमा अधार्ण परिवहिनए एस में वासाचासासु भनिरसह (२४४) ९७६ व्यवहार:सूर्य उदो -८
मुनि परमागर
अनुक्रम [१६१]
अत्र उद्देशक: ८ आरब्ध:
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आगम
(३६)
“व्यवहार" - छेदसूत्र-३ (मूल) ---------- उद्देश: [८] ---------------------------------------- मूलं [४] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३६], छेदसूत्र - [3] "व्यवहार" मूलं
प्रत सूत्रांक
से अहालसमं सेना चकिया एगेण हत्येणं ओगिजिमय जाब एगाहं वा बुयाह वा वियाह वा चउपाहं या पंचया वा दुस्मवि अदाणं परिवाहित्तए, एस मे बुवाबासासु भविस्साड ९२४ाराणं घेरभूमिपत्ताणं कम्पद वंडए वा भंडए वा उत्तए ना मत्तए वा लडिया वा मिसिया पेलना चेटचिलिमिलिया वा चम्मे वा चम्मकोसए वा चम्मपलियो। यगए वा अविरहिए ओवासे ठवेत्ता माहाकुलं भत्ताए वा पाणाए वा पविसित्तए वा निक्समित्तए वा कम्पह से संनियहचारिस्त बोषि ओम्यहं अणुन्नवेत्ता परिहरिलए ९२३५
गानो कप्पा निग्गन्याण वा निम्मन्बीण वा पाटिहारियं वा सागारियर्सतियं वा सेज्जासंथारग दोपि ओगई अणन्मवेत्ता बहिया नीहरिसए । कप्पा अन्नसा ॥७॥ बानो कम्पा निगन्याय वा निग्गन्धीण वा पटिहारिया सागारिपसंति वा संचासंघारगं पचप्पिणिला दोचापि तमेष ओगई अणगुज्नवेत्ता जाहिद्वित्तए । ८ा कप्पा अणुन्नवेत्ता १९।नो कप्पा निग्गन्धाण मा निमान्धीण वा पुनामेच ओगह ओगिहिता तो पच्छा अशुन्नवेत्तए।१०। कप्पद निम्गन्धाग वा निग्गन्धीय वा पुधामेव ओग्गई अणुभवेत्ता
सो पच्छा मोमिण्डितए, अह पुष एवं जाणेजा-वह खलु निगान्याण वा निग्गन्धीण वा नो मुलने पाविहारिए सेजासंचारएत्तिकटु एवं हकप्पा पुगामेन ओग्गाहं ओमिष्ठित्ता तो पमा असुनवेत्तए, मा महउ अजो ! विड़यं, अग्युलोमेणं अणुलोमेयो सिया १५३।११। निग्गन्धस्स णं गाहायज्ञकुल पिण्डवायपरियाए अनुपवितस्स हालसए उपगरणजाए IM परिभड़े सिया संच केई साहम्मिया पासेवा कपहर से सागारकई गहाय जत्येव ते अन्नमन्नं पासेला तत्वेष एवं वएना-इमे ने अजो! कि परिन्नाए. से यवएजा-परिन्नाए, तस्सेर पडिणिजाएयो सिया,से यबएजा-नो परिन्नाए, नो अप्पणा परिमु जा, नो अन्नौसि दामए, एमति बहुफासुए पहले थण्डिले पदिक पम परिहवेयो सिया ।१२। निग्गन्धस्स णं बहिया पियारभूमि वा बिहारभूमि वा निवतस्स हालहलए परिवेयने सिया।१३। निग्गन्धरला गंगामागुगाम दुइजमाणस अन्नमरे उपगरणजाए परिभ? सिया तंच केई साहम्मिया पासेजा, कप्पा से सागारकडं गहाय दूरषि अदाणं परिवहितए, जत्थेष जन्नमन्नं पासेजा वस्थेक परिमेयो सिया २१०१४ाकप्पा निग्गन्याण वा निगान्धीण वा अरेगपहिगाह अजमन्नस्स अट्टाए दूरमपि अदाएं परिवहित्तए वा धारेत्तए वा परिहरित्तए सो वा गं धारेस्सर अहं या धारेस्सामि असो वा गं धारेसाइ'नो AC से कप्पड़ तं अणापुच्छिय अगामन्तिय अन्नमन्नेसि दाउँ वा जणुग्ययाउँ चा, कापड से से आपुच्छिय आमन्तिप अगमसि दाउं वा अणुपचाउंमा '३०७।१५। अक्कृतिअसमयमाणमेले कवाले आहारं आहारेमाणे निग्गन्थे अप्पाहारे दुवातसकुकुडिमण्डगप्पमाणमेले कवळे आहार जाहारेमाणे निमान्ये अपडतोमायरिया सोलस दुभागपते परबीस ओमोयरिया तिभागपने सिया एगतीसं किंचूगोमोपरिया बत्तीसपमाणपत्ते, एतो एगेणचि कवलेणं उणगं माहारं बाहारेमाणे समणे निम्मन्थे नो पकामरसमोइति वनय सिया ३३०१६ आयुमो उदेसओटा सागारिया आएसे अन्तो बगहाए भुजा निहिए निसढे पाडिहारिए, सम्हा रापए नो से कप्पा पडिगाहेत्तए।१। सामारियस al आएसे अंतो वगढाए भुजा निहिए निसड़े अपाटिहारिए सम्हा दावए एवं से कप्पा पडिगाइनए ।२। सागारियस आएसे चाहिं वगळाए भुजा निहिए निसडे पाडिहारिए तन्हा दाए. नो से कप्पा यहिमाहेनए।३ । सारियस आएसे बाहि बमडाए मुंबइ निहिए निसट्टे अपाडिहारिए तम्हा दायए एवं से कप्पद पडिगाहे गए।४ासारियस्स दासह या पेसेव वा भवएड वा भइगएइ वा अंशो पाटि अंतो पाटि बाहिं पाडि बाहिं अपाहि५-८ा सास्विस्त नायए लिया सारियरस एगवगडाए अतो सागारिया एमपयाए सारिया चोपजीवह तम्हा दापए नो से कप्पह पडिगाहेत्तए।५।सारियस नायए सिधा सारियरस एगवगवाए अंतो सागारियस अभिनिषचाए सारियं बोवजीवन सम्हा दापए, नो से कापड पहिगाहेनाए ।१०। सारियम्स नायए सिया सारियरस एगवगडाए बाहि सागास्थिरस एगपचाए सारिय चोपजीवा तम्हा दायए नो से कप्पड पटिगाहेलए ११२ सारिवस्स नायर लिया सारिपसा एमनगडाए चाहिं सागारिखस्स अभिनिषयाए सारियं घोषजीपद सम्हा दायए नो से कप्पाइ पहिगाहेत्तए।१२। सारियरस नायए सिया सारिवस्त अभिनिवगडाए एगदुवाराए एगनिमखमणपसाए जसो सामारियरस एगपयाए सारिय चोरजीचा समावापए नो से कापड पडिगाहेसए।१३। सारिवस्स नायए सिया सारियरस अभिनिगडाए एगदुवाराए एगनियरसमणपसाए सागारियस्स अनिनिपयाए सागारियं घोषजीवइ तम्हा दाबए नो से कप्पड़ पडिगाईलए।रासारियरस नायए सिया सारियस्ल अभिनित्रयडाए एगदुवाराए एगनिक्वमणपसाए पाहि सामारियस एगपचाए सारियं चोरजीचइ तम्हा दावए नो से कप्पा पडिगाहेत्तए।१५। सारियस नायए सिया सारिपस्स अमि. निधगडाए एगदुबाराए एगनिक्समणपसाए चाहिं सागारियरस अभिनिषयाए सारियं चोवजीवइ तम्हा दाबए नो से कम्पह पडिगाहेत्तए २०१६। सारिपसाबकयहाला साहास्वयषउत्ता सम्हा दावए नो से कपल पहिगाहेत्तए।१७। सास्विस्त पापसाला निस्साहारणावयफउत्ता तमा बापए एवं सेकणव पडिगाईलए।१८ा सारियस्स गोलियसाला. १७७ व्यवहार सूत्रं उसी-5
मुनि दीपरासागर
अनुक्रम [१९०]
vah
अत्र उद्देशक: ९ आरब्ध:
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आगम
( ३६ )
प्रत
सूत्रांक [३०]
दीप
अनुक्रम [२३२]
spape
अत्र उद्देशकः १० आरब्धः
“व्यवहार” - छेदसूत्र - ३ (मूलं)
उद्देश: [९]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित .......आगमसूत्र [३६], छेदसूत्र -
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मूलं [३०]
[३] "व्यवहार" मूलं
बोधसाला दोससाथ सोसियसाला बोडियाला गन्धियसाला एवं से कप्पड़ पडिमा ए १९-३० सामारियस्स सोंदिवसाला ३१-३२ सारियरस जोसहीजो संपाजी, म्हादा, नो से कम्प पढिगानए ३३ सारियरस ओसीओ असंपढाओ, तम्हा दावए एवं से कप्पा पहिगाहेतए ३४ सारियरस अम्बफला एवं से पडिमा '७४' ३५-३६ सत्तसत्तमिया गं मिक्सुपडिमा एगुणपचाए राईदिएहिं एगेनं उचएवं मिक्लास अहामुतं अहाकप्पं अहाम महाल सम्म कान फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए अनुपालिया नगद ३७ अअमिया मिस्सुपडिमा नं परसहीए राईदिएहि दोहि असीएहि मिसाएहि अहा ० अणुपालिया नया ३८ नवनवमिया णं भिक्खुपडिमा एमासीएहिं राईदिएहिं चउहि य पञ्चुतरे मास महासु जाव अनुपालिया मग ३९ ददमिया भिक्खुपडिमा एमेगं राईदिवसणं अदछहि व मिक्वासएहि जातं जा म '८५'४० दो परिमाओ पं० [सं० सुट्टिया चेन मोचपडिमा महलिया चैव सोयडिमा, सुडयन मोपपडिमं पहिचन्नस्स अणगारस्स कप्पर से पदमसरयकालसमसिना परिमनिदानमसि वा बहिया ठाइया गामस्स या जाप संनिवेसस्स वा वसि या दुसया पति वा पश्यचिदुवा, भोबा आमा पोइसमे पारे अमोबा आरुम सोलसमे पारे जाए जाए मोए दिया आगच्छ दिया पेन आइयच्चे, राई आगच्छ नी आइये, सपाने मते आगच्छ नो आइयच्चे, अपाणे मत्ते आगच्छ आइयच्चे एवं सीए ससिद्धेि सरकले मसे आगच्छ नो आइये अबीए अतिथि अस रक्ले मते आगच्छ आइयचे जाए जाए मोए आइय से अवा बहुए वा. एवं सा या मोयपडिमा अहासुतं जाय अनुपालिया भद्द ४१ मो डिमं पटमसर जा पा भोबा पारे, अमोचा आरुमह अहारसमे पारे जाए जाए मोए आइयव्ये आणाए अणुपाला व ४२॥ संखादलियरस में मित्रम्स पहिग्गारिस माहाकुवापडिया अणुपवस्त जातियं २ अन्तो पडिग्गसि उच्च मा साहयाओ दसीओ वत्तनं लिया, तत्य से के छप्पन वा दूसएन वा चालणा अन्तो पग्मिसिउदा साचिणं सा एगा दत्ती बत्तन्वं सिया, तत्य से पहवे मुझमाणा सच्चे ते सर्व सर्व पि साहणिय २ अन्तो पट्टिमास उचिताजा साचिणं सा एगा दतीति तवं सिया ४३ संखादतियरस में मिक्स पाणिपहिग्नहियस्थ जावइयं अन्तो पाणिसि पडिग्गईसि० प सिया ११५४४ ति उपोपडे फाडे सोडे ४५ विहे ओहिए पं० [सं०] चन्दिचसार जंच आसर्गति पनि एमे एमाइंस एगे पुन एवमाह-हे जग्गाहिए पंन्हि जे च आसगंसि पक्लिप १२८ । ४६ ॥ नमो उसओ ९ ॥ दो परिमाओ पं० तं जयमा चन्द पडिमा रमा चन्दपडिमा जनमज्झणं चन्दपडिमं पटिवक्षस्स अणगारस्समा पोसकाए पियसदेहे जे केई उपसमा समुप्यजति तं दिशा वा माणुसमा वा तिरिक्तजोगियाना अलोमा या पढिलोमा वा तत्यालोमा ताना नमसेज या सारे वा सम्मान या मंगदेव या तत् पहिलोमा अन्नयरेण दंडे या अडिया वा जोतेण वा वेलेण वा कसे या काए आउला वा ते सत्रे उप्पन्ने सम्म सहेजा जायजा जनमज्झणं दपदिमं परिपन्नस् अयगारस कपास पानिए कल्प एना दत्ती मोपणस्स पडिमा एगा पाणस्स, सोहि दुप्पयचटप्पयाइएहि आहारकखीहिं सत्तेहि पडिमियतेहिं अन्नाय सु कप्पद से एम प्रमाणस्स पडिगाए नी दोन्हं नो हि नोच नोच नोची नो या नो दार जमानीए नो सेप्पस दोषि पाए साइड लमाणीए परिमाहिनए नो० बाहिं एयरस दोषि पाए साइट दलमानीए पडिगाए एवं जाना एवं पायें तो किया एवं पार्थ माहि किया एवं विसम्भा एपाए एसणाए एसमाणे भेजा जहारेना, एयाए एसएएसमा नो भेजो आहारज्जा, चियाए से कम दोणि दत्तीओ मोपणस परिगालए दोणि पाणस्स कम्प जानो आहारा एवं तहयाए तिमि जार पसरसीए पास, बहुलपलस पाटिचए कति चोट जान चोरसीए एकादसी भोयणस्स एका पाणगस्स सोहि पचपय जा नो आहारा जमावासाए से व अमल मन एवं एसा जनमदपडिमा अहा अहा जाय अणुपाडिया भवति । परमचंदपतिमं पविन्नस अ गारस्समा अहियासेजा, पदपडिमं पविचरस अणगारा बहुल पाहिनए कप्पह पष्णरस दसीओ भोषण पटिमाहित पण्णरस पाणगरस सहिंदुपय चप्पय बीयार से कप्पा चोरस एवं पन्नरसीए एमा दत्ती परिवार से कप्पर दो सीओ बीयाए तिन्नि जान सीए पण्णरस पुग्नमा अमषा एवं एस मज्झचंदपडिमा अहासुतं महाकप्पं जाव अनुपालया ५०२चारे पं० [सं०] आगमे सुए आना धारणा जीए तत्थ जागगे सिया आगमेबारे पविनो ९७८व्या देसी - २०
मुनि दीपरत्नसागर
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आगम
( ३६ )
प्रत
सूत्रांक [3]
दीप अनुक्रम [२५१]
भाग
27
“व्यवहार” छेदसूत्र - ३ (मूलं )
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उद्देश: [१०]
मूलं [३]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३६], छेदसूत्र [३] "व्यवहार" मूलं
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से तत्व आगमे सिया सुए बहारे पट्टचित्रे सिया, नो से तस्य मुए लिया जहा से वन्य आणा सिया आणाए ववहारे पडवेयच्चे सिया, नो से तत्थ जागा लिया जहा से तस्य धारणा सिया धारणाए हारे पवेषच्चे सिया णो से तत्थ धारणा सिवा जहा से तत्थ जीए सिया जीएम बचहारे पडवेयध्वे सिया एएहिं पंचविहारेविहारं पड़ा तंज- आयमे सुए आगाए धारणाए जीए. जहा २ आगमे सुए आना धारणा जीए नहा २ वचहारं पचिज्ञा से किमाहु भन्ते ।१. आगमपलिया समणा निग्गन्या इवेइयं पंच जया २
२ हा २२ अगिरिसजोवस्यिं वमहारं बबहरमाणे सम निम्मन्ये आणाए आराहए भवति '७१५'३ चत्तारि पुरिसाया पं० [सं० अकरे नाम एगे जो मानकरे माणकरे नाम एगे जो अटुकरे एगे अकरेपि मानकरेषि एगे नो अटुकरे नो मानकरे '७२९।४। चत्तारि पुरखायाममकरे नाम एगे नो मागको मानकरे नाम एगे नो गणकरे एमे गणइकरेवि माणकरेवि एगे नो गणडुकरे नो माणकने '७३३।५ बत्तर पुसिया पं० [सं०] गणसंगकरे नाम एगे जो मानकरे मामकरे नाम एगे नो गणसंगकरे एगे गणसंगकरेषि माणकरेषि एगे नो गणसंग्रहकरे नो मागकरे '७३५' । ६ । चत्तारि पुरिसज्ञाया पं० [सं० गणसोहकरे नाम एगे नो मानकरे माणको नाम एमे नो गणसोहकरे एगे गणोरेव माणकरेपि एगे नो गणसोहकरे नो मानकरे। ७। चत्तारि पुरिसजाया पं० [सं० गणसोहिकरे नाम एगे नो मानकरे माणकरे नाम एगे नो गणसोहिकरे एगे गणसोहि करेषि मानकरेवि एगे नो मणसोहिकरे नो माणको ७३९।८। चत्तारि पुरिसजाया पं० तं नायेगे जहर नो धम्मं धम्मं नामेगे जहा नो रू एंगे रुपि जहर धम्मपि जहा एगेनो रूवं जड़ नो धम्मं जहद ७४३ ।९। चचारि पुरिसजाया पं० [सं० नामे जहर नो मणसंहिं गणसंठिई नामेगे जहह नो धम्मं एगे गणसं जहर धम्मंषि जहर एगे नो गणसंठि जहद्द नो धम्मं जहद '७४७।१०। चत्तारि पुरिसवाया पं० [सं० पियधम्मे नामेगे नो दधम्मे दधम्मे नामेगे नो पियधम्मे एगे पियधम्मेवि धम्मेव एगे नो नो दधम्मे ७५१ । ११ । चत्तारि आयरिया पं० ० पाणापरिए नामेगे नो उपद्वावणायरिए उपद्वावणापरिए नामेगे नो पञ्चावणायरिए एगे पडावणायरिएवि उद्वावणारिवि एगेनो पावणावरिए नो उबडावणायरिए, धम्मायरिए '७५६' । १२ । चत्तारि आयरिया पं० त० उद्देसमा परिए नायेगे जो कायणायरिए वायणावरिए नायेगे नो उसगावरिए एगे उद्देसणावरिएवि वायणायरिएवि एगे नो उद्देसणायरिए नो वायणायरिए, पम्मारिए ७५७।१३। चत्तारि अंतेवासी पं० तं पातिवासी नामेगे जो उपावण अंतवासी उपायांतवासी णामेगे णो पाषणअंतेवासी एगे पडा उबडा एगे नो पा० नो उव०, पम्मअंतेवासी ।१४। चत्तारि अंतेवासी पं० [सं०] उदेसणन्तेवासी नायेगे नो वाणन्तेवासी वाणन्तेवासी नामेगे नो उद्देशणन्तेवासी एगे उदेसवन्तेवासीवि वायणन्तेवासीच एगे नो उद्देसणन्तेवासी नो वयमन्तेवासी, पम्प्रन्तेवासी ७५९।१५ । जोरभूमीओ पं० [सं०] जाइयेरे सुयधेरे परियायमेरे, सहवासजाय समणे निम्न्ये जाइयेरे ठाणसमवायपरे समणे निम्नन्ये सुवमेरे बीसवासपरियाए समणे निमान् परियारे '७६४' १६ तो सेहभूमीज पं० [सं० सतराईदिया चाउम्मासिया उम्मासिया, उम्मासिया उकोसिया चाउम्मासिया मसिमिया सतराइन्दिया जहलिया ८०७ । १७। नो कम्प निम्न्याण वा निम्न्धीण वा खुड्डगं वा खुहियं वा उपवासजाय उपडावेत्ताए वा समुत्तिए वा १८ कप्पइ नियाणा निगन्यीण वा खुट्टा लुट्टियं वा साइरेगबासजाय उपावेल या संमुत्तिए वा '८१४ । १९ नो कप्प निम्न्याण या निम्गन्धीण वा मुद्दगस्स वा खुडियाए वा अजनजायस्स आधारपकप्पे नाम अज्झयणे उरित्तिए । २० कप्प निमान्याण का नियमन्धीण वा खुट्टगस्स वा लुटियाए वा वज्रणजायरस आधारपकप्पे नाम अझयणे उद्दित्तिए ८१७ २१ तिवासपरियायत समणस्स नग्गन्धस्स कम्प आयारपकप्पे नाम अन्य उद्दित्तिए । २२ पउवासपरियागस्स समणस्स निमान्यरस कप्पर सूचगडे नाम उहिसिए । २३। पञ्चचापरिया यस सणस निम्न्स कप्पर दसा कप्पववहारा नाम अझपर्ण उहिसिनाए । २४ अवासपरियायत समणस्स निम्गन्यस्स ठाणमा नाम अने उदिसित्तए। २५। दसवा परिया कप विपा नाम अने उदित्तिए । २६। एकास्तवासपरिया कप्पड़ खुडिया विमाणपति महालपरिमाणपविमती अन चूलिया वग्ग (ग) चूलिया विवाहचूलिया नाम अयणे उदितिए २७ वारसवासपरिया कप्पद अरुणोवाए गोववाए परणोबचाए समणोक्याए परोक्वाए नाम अझवणे उरित्तिए । २८ तेरसवासपरिया कप्पर उड्डाणमुए समुद्राणमुए देविदोषचाए नामपरियाणि (ल) या नाम अज्झयणे उरित्तिए । २९) दसवासपरिया कप्पइ सुमिणभावणा नाम अज्झयणे उदिसिलाए । ३० पत्ररसवासपरिया कप्पड़ चारणभाषणा नाम अझ उहिसिनाए ३१ सोलासपरिया कप्प तेयनिसर्ग १३२) सत्तरसवासपरिया आसीसभावना नाम अझयणे उदिसिनए । ३३ । अट्ठारसवासपरिया कप्पह दिडीविसभावना नाम अज्झयणे । ३४ एगुणवीसचासपरिया कप्प विडिवाए नाम बगे उदित्तिए ३५ वीसवासपरियाए समणे
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निम्मान्धे सत्रस्याणुवाई भवइ '८३८ ३६ वसविहे वैयावचे पं० नं० आयरियवेयाचचे उवज्झायवेयावचे थेरवेयावचे तवस्सिवेयावच्चे सेहवेयावचे गिलाणचेयावचे साहम्मियवेयावचे कुलवेवायचे गणयेयावचे सङ्घचेयावचे, आयरियवेयावयं करेमाणे समणे निग्यन्ये महानिजरे महापजवसाणे भवइ० सपवेयावचं करेमाणे समणे निम्ान्धे महानिअरे महापजबसाणे भवइ '८५७' ।३ ७।दसमो उद्देसो १०॥ श्रीव्यवहारच्छेदसूत्रं ३ सिद्धाद्विलद्दिकागतशिलोत्कीर्णसकलागम आगममंदिरे शिलायामुत्कीर्ण वीरविभोः २४६८ मात्रासितदशम्याम्
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व्यवहार-छेदसूत्र [3] 'मूल' परिसमाप्तः
मूल संशोधकः सम्पादकश्च पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब
किंचित् वैशिष्ट्य समर्पितेन सह पुनः संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागरजी (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि]
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[३७] श्री दशाश्रुतस्कन्ध (छेदसूत्रम्-४)
नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नम:
“दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
[मूलं एव]
[आद्य संपादकश्री] पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.
(किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.,श्रुतमहर्षि)
28/07/2017, शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल ५
'सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि' श्रेणि भाग-२७
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आगम
(३७)
Pale
प्रत
सूत्रांक
“दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) ---------- दशा [१] ---------------------------------------- मलं [१]---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
नमो अरिहंताण नमो सिद्धार्थ नमो आयरियार्ण नमो उज्मायाणं नमो लोए सब्बसाहर्ण (राष०) एसो पंचनमुकारो, सबपावप्पणासणो। मंगलाणं |श्रीदशाश्रुतस्कंधसूत्रम्-न
आशापुर ज च सवेसि, पदमं हवद मंगलं (प्र०॥१॥) सुर्य मे आउसतेणं भगया एवमक्वायं । इह खलु थेरेहिं भगवतेहि वीसं असमाहिठाणा पञ्चत्ता, कयरे खल ते थेरेहि भगवतेहिं चीस असमाहिलाणा पं०१. इसे खलु ने थेरेहि भगतेहिं वीसं असमाहिठाणा पं० त० दवदवचारी याविभवति, अप्पमजियचारी याबिक, दुष्पमजियचारी यावि०, अतिरिनसे जासणिए. रायणियपरिभासी. थेरोषघाइए. भूतोवघानिए, संजलणे, कोहणे. पिदिठमंसिए वावि०१० अभिक्खणं अभिक्खणं ओधारित्ता, णचाई अधिकरणाई अणुप्पण्णाई उपाइया पावि०, पुराणाई अधिकरणाई खामितविउसविताई उदीरिना, अकाले सज्मायकारी यावि०, ससरक्तपाणिपादे, सहकरे, संझकरे, कलहकरे, सूरपमाणभोई.एसणाइ असमिए यावि भवनि २०. एते बेहि भगवंतेहि वीर्स असमाहिद्वाणा पन्ननत्ति चेमि।२॥ असमाधिस्थानाध्ययनं १॥ सुर्य मे आउसतेणं भगश्या एक्सक्वायं इह खलु थेरेहि भगवंतेहि एकवीस सबा पं०, कयरे खल..इमे खलुतं-हत्यकम्र्म करेमाणे सरले, मेडणं पडिसवमाणे,राइभोयणं मुंजमाणे, आहाफम्म मुंजमाणे, रायपिंड भुजमाणे, उदेसियं कीर्य पामिचं अग्छिन अणिसिद आहद दिजमाणं भुजमाणे, अभिक्खणं२ पडियाइक्खित्ता मुंजमाणे, अंतो मासस्स तो दगले कोमाणे, अंतो उह मासाणं गणाओगणं संक्रममाणे, अंतो मासस्स तओ माइठाणे करमाणे १० सागारियं पिंड मुंजमाणे, आउट्टियाए पाणाइवायं करेमाणे, आउहियाए मुसाबार्य करमाणे, आउनियाए अदिष्णादाणं गिष्पमाणे, आउटियाए अणंतरहियाए पुढवीए ठाणं वा सेज वा निसीहियं वा चेनेमाणे,एवं ससिणिवाए पुढीए एवं ससरक्खाए, उहियाए चित्तमंताए सिलाए चिनमंताए लेनुए कोलावासंसि वा दारुए जीवपट्टिए सजडे सपाणे सबीए सहरिए सउस्से सउत्र्तिगपणगद्गमहियमकासंताणए तहपगारं ठाणं वा सिन वा निसीहियं वा चेतेमाणे, आउहियाए मूलभोयर्ण वा केवभोयर्ण या (संध०) तया वा पवालभोवणं वा पुष्फभोयणं वा फलभोयणं वा बीयभाषणं वा हरियमोषणं वा मुंजमाणे, अंतो संवच्छरस्स दस दगलेवे करेमाणे, अंतो संवचारस्स बस माइठाणाई करेमाणे, पाउहियाए सीतोदगरय उग्पाइएण हत्येण वा मलेण वा दबीए वा भायणेण वा असणं पा० पडिगाहेत्ता मुंजमाणे २१, एते खलु धेरेहिं भगवतेहिं एकवीसं सबला पचननि बेमि। ३॥ शवलाध्ययन २॥ सुर्य में आउसंतेणं भगच्या एचमक्खायं-बह खलु धेरेहि भगतेहिं तेत्तीसं आसायणाजी पं०, कयरा खलु धेरेहि०,माओ खलु ताओ धेरोहिं भगतहि नेनीस आसायणाओ पं०२०- सेहे रायणिस्स पुरओ गंता भवति आसायणा सेहस्स. सेहे रायणियस्स सपक्वं (पक्सओ) गंता भवति सायणा सेहस्स, सेहे रायणियस्स आसणं गता भपनि सायणा सेहस्स.एवं एएणं अभिलावेणं, सेहे राइणियरस पुरजो चिहिता भवति आसावणा सेहस्स, सेहेराइणिवस्स सपक्वचिद्वित्ता मवति जासायणा सेहस्स, सेहेरायणियस्स पास चिहिना भवति आसायणा सेहस्स, सेहेराइणियस्म पुरओ निसीइना भवति आसायणासहस्स, सेहेरायणियस्स सपक्रस निसीइला भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस आसन निसीहता भवनि आसायणा सेहम्स, सेहे राइणिएण सदिबहिया विधारभूमि निरखते समाणे तत्य पुषामेव सेहतराए आयामतिपच्छा रायणिए आसावणा सेहस्स १० सेहे राइणिएणं सदि पहिया बिहारभूमि वा विधारभूमि वा निक्खने समाणे तत्थ पुछामेव सेहतराए आलोएति पच्छा राइणिए आसायणा सेहस्स, केहराइणियस्स पुत्रसलनए सियान पुमामेव सेहतराए आन्लबद्ध पच्छा राइणिए आसायणा सेहस्स, सेहे रायणियस्स राओ वा चियाले वा बाहरमाणस्स अजो! के सुत्ते के जागरे तत्व सेहे जागरमाणे राइणियस्स अपरिगणिना भपनि आसायणा सेहम्स, सेहे असणं वा० पडिग्याहिजा पुकामेव सेहतरागस आलोएति पच्छा राइमियस्स आसायणा सेहस्स,सेहे असणं वा० पहिमाहिना पुगामेव सेहनरागं पडियसेनि आसायणा सेहस्स, सेहे असणं वा पडिग्गाहिता पुवामेव सेहतरागं उपणिमंतेति पच्छा राइणिए आसावणा सेहस्स, सेहे राबणिएणं सदि असण वा० पडिगाहिना नराइणियं अणापुच्उित्ता जस्स२इण्डति नस्स२खदं२दलयति आसायणा सेहस्स, सेहेराइगिएण सर्दि असणं वा. आहारमाणे तस्य सेहे खई २ डार्य २रसियं २ ऊसद २ मणुष्णं २ मणाम२ निदरलास २ आहारिता भवति जासायणा सेहस्स, सेहे राइमियस्स बाहरमाणस्स अपडिसुणित्ता भवनि आसायणा सेहस्स, सेहे राइणि. यम्स बाहरमाणस्स नत्थगने चेव पडिसुणिना भवनि आसायणा सहस्स२० सेहे राइणियं किंति वत्ता भवति आसावणा सेहस्स, सेहेराइणियं तुर्मति वत्ता भवति आसायणा (२४५) ९८० दशाभूतस्कंधच्छेदसूध, मोना -३
मुनि दीपरनसागर
अनुक्रम
(१)
अत्र दशा-१ आरभ्यते
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“दशाश्रुतस्कन्ध” – छेदसूत्र-४ (मूलं) ---------- दशा [३] ---------------------------------------- मूलं [४] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
प्रत
सूत्रांक
सेहस्स, सेहे राबणियं खर्च २वचा मपति आसावणा सेइस्त, सेहेराइगियंदनाएगंतवायं पडिमणिचा भवति वासायणा सेहस्स, सेहेराइणियस कहकहेमाणस्सा इति एवं वत्ता मति आतापणा सहस्स, सेहे राइमियस्स कई कहेमाणम्स णो सुमरसित्ति पता भवति आसानणा सहस्स, सेहे राइनियस्त कई कहेमाणस्स नो सुमणा भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राबभियस्स कहूं कहेमानस्स परिस मेला मबलि आसायमा सेहस्स, सेहेराइणियस्स कहंकमाणस्स कई माण्डिंदिचा भवति आसावणा सेहस्स,सेहेराइजियस्स कहं कहेमाणस तीसे - परिसाए अणुहिताए अमिचाए अबोमिनाए अयोगटाए दुर्यपि तमेन कहं कहेता मवति भासावणा सेहस्स३० सेहे राइणियसम सेवासंचारगं पाए संघहिला हत्येण अणणुण्यापेक्षा गच्छति आसातणा सेहस्स, सेहे राइपियस्त लेनासंचारए चिहिता वा निसीइना बानुपाहिला वा भवति आसावणा सेहस्स, सेहे राइमियसा उचासगंसिबासमासगंसिवा चिहिता वा निसीइसा या तुयाहिता वा भवति मातारणा सेहस्स, एताजो खलु नाजो बेरेहिमगतेहिं लेतीसं आसायणाओ पग्नताओनि बेमिशा आशातनाध्ययन ॥ सुर्य में बाउति । भगश्या एवमक्खायं-इह खलु परेहि भगवतेहिं अपिता मणिसंपदा पं०, कयरा खल थेरेहिं भगवतेहि अहविदा गणिसंपदा पं० १,इमा खलु परेहि भगतिहिं अहविता गणिसंपदा पं० त०-आयारसंपया सुष सरीर पण बायना मतिः पजोग० संगहपरिम्ना णाम अट्ठमा ।५।से कितं आयारसंपया '.२चउचिहा पं००-संजमधुपजोगजुत्ते पाविमतिर असंपाहिजए अणियता वित्ती बुद्धसीले यावि भवति, सेले आयारसंपदा । कासे किंत मुपसंपदा ?,२चडमिहापं०, बहुमुले याचि भवति विचित्तयुत्ते० परिचितसुते घोसविधिकारएक, सेनं मुयसंपदा । ७से किले सरीरसंपदा?,२ चउचिहा पं०२०-आरोहपरिणाहसंपन्ने बावि भवति जणोनप्पसरीरे चिरसंघयणे बहुपडिपुण्णेदिए यावि भवति, सेले सरीरसंपदा टासे कितं पक्षणसंपदा ?,२ चउचिहापं० सं०-आदिजवषणे वापि भवति मरवयणे अणिस्सियवयणे फुटक्यणे, सेतं क्यणसंपदा ९० से कि संवायणासंपदा ! २५उबिहा पं.त-विजय उदिसति विजयं बाएति परिनिशानिय बाएति अत्यणिजपए यानि भवति, सेने बायणासंपदा ।१०।से किले मतिसंपदा १.२पउचिहा पं०२०- उम्गहमतिसंपदा दहा० अपाय धारणा०, से किन उम्महमइ०१,२सबिहान-खि जोगिनि बहु बहुविह धुर्व अणिस्सियं असवि०से ते उम्गहमती, एवं हामतीवि.एवं अपायमतीपि, से किस धारणामती १.२ उबिहात-बहुं परति बहुविध पुराणं दुद्धरं अपिस्सिर्य० असंदिवं घरेति, से तं धारणामती, सेन मतिसंपदा ॥११॥ से कितपओगसंपदा २चडचिहा प... आय विदाय बादं पई जित्ता भवति परिसं विदाय बादं पउँजित्ता से विदाय बाई वत्थु से ले पजोगमतिसंपदा । १२ से कितं संगपरिणासंपदा'.२ चाउबिहा पं०२०-बहुजणपाउग्मचाए पासायासामु सित पहिलेहिता भवति बहुजणपाओगत्ताए पाडिहारिय सेनासंचारवं ओगिरिहत्ता भवति कालेणं काई समाणात्ता भवति आहागुरु संपूदत्ता भवति, से संग्रहपरिण्णा । १३ । आवरिषतो अंतवासी इमाए पउबिहाए विणयपडिवनीए विगइत्ता णिरिणतं गच्छति, सं०-आयारविणए सुयपिगएर्ण पिसेरणारिणएणे दोसनिग्यायणाविणए, से किस आधारविणए १.२पाविहे पं० २०-संजमसामाचारी याचि भवति तपसामायारी गणसामाचारी एगविहारसामायारी | से न यारविणए, से कि सुपविणए.२ पबिहेत. मुयं बाएनि अत्यहियं निस्सेस०, से ते मुबविणए, मेकित विक्सेवनाविणए,२चडबिहेपत अविट्ठ पाएति दिष्टगत्ताए विणएता भवति, दिद्वपुजगं साहम्मिपत्ताए०. दिवगं सहेनुतं धम्माओ पम्मे ठापित्ता भवति, तस्सेव धम्मस्स हियाए मुहाए समाए निस्सेयसाए आणुगामिवत्ताए अमुढेला भवति, से तं विक्षेपणाविणए. से कित दोसनिग्धायणाविणए १.२पउनिहे ५०० कुवस्स कोहं विणइला भपति, दुस्स दोसं णिगिव्हिता भवति, कलियरस कसं विदिता भवति, आया सुप्पणिधितो यापि भवति, से न दोसनिग्यायणापिगए।१०तस्वंगुणजातीयस अतेवासिस्स मा पापिहा विषयपरिवती भवति तक उबगरणउत्पावणता । साहितता पणजारमता मारपचोरहणता, से कितं उमरणउप्पाषणया १,२ पबिहा पं०१०-अणुप्पमाई उपगरणाई उपाएता माति, पोराणाई उपगरणा सारसिता भवति, संगोवित्ता परितं आणित्ता परित्ता भवनि, जाहापिहि विसंभइना भवति, सेत्तं उगारणउप्यापणया, से किले साहिावया!,२चडबिहा पं०२०-अणुलोमपासहिते यानि भवति अणुलोमकापकिरियता पहिरूकायसंपासणया. सहत्येस अप्पडिलोमया, से तं साहिल्या, से किसेवण्णसंजलणया १.२चउनिहा पं.to-आहातचा वणवाई भवति, अप
चाई परिहपित्ता, पग्णपाई अणुभूहिला, आयत्वासेवी याचिक, सेले चण्णसं जाणया, से किन भारपयोहणता १.२पउबिहा ५०*-असंगहियपरिजण समिनिता भवति । सेहं आयारगोयरं गाहिता भवति, साहम्मियस्स गिलायमाणस्स आहाचामं वेयापचे अभूहिता भवति, साहम्मियाण अधिकरणसि उप्पण्यसि तत्व अणिरिसतोषस्तितो पसतो अप. क्लगाहए ममत्यभावभूते सम्म बाहरमाणे तस्स अधिकरणस्स खामगावउसमणयाए सया समियं अम्मुहिता भवति कई (न) साहम्मिया अप्पसहा अप्पासंमा अप्पकल्ला १८दशाभुतस्कंधच्छेदमूत्र, दसा
अनि दीपरजसागर
अनुक्रम
अत्र दशा- ४ आरभ्यते
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आगम (३७)
“दशाश्रुतस्कन्ध” – छेदसूत्र-४ (मूलं) ----------दशा [४] ------------------- --------------- मूलं [१५] + गाथा:||१-१७||---------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
प्रत सूत्रांक [१५]
49vig
गाथा: ||१-१७||
अप्पकसाया जप्पनुमंतुमा संयमबहुला संघरबहुला समाहिबहुला अप्पमता संजमेण तवसा अप्पार्ण भाचेमाणा एवं वर्ण विहरेला, सेले भारपबोहणता, एसा सवेरेहि भगवहिन अहविहा गनिसंपया पणत्ततिमि । १५॥ गणिसंपदध्ययन ४॥ गुर्य में आउसनेणं भगवया एवमक्साय इह खलु थेरेहिं भगतहि दस चित्तसमाविठणा ०.कबरे खळू ते पेरे#ि०१. इमे खलु से दस चित्तसमाहिठाणा पं० २०. नेणं कालेणं वाणियगाम नाम नयरे होत्या एल्थ नगरपणजो भागियो, तस्मा वाणियगामनगरका पहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसिमाए दृहपलासे नाम चइए होत्या वेश्यपणओ भाणियो, जियसनु राया, तस्स चारिणी देवी, एवं सावं समोसरणं माणिय जाव पुढपीसित्तापहए, सामी समोसदे, परिसा निमाया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया।१६। अजोति समणे भगर्व महापीरे समणे निम्नये निग्गंधीओ यामंतित्ता एवं पयासी-बह खलु अमो! निम्नयाण वा निर्माधीण वा इरियासमियाण भासासमियाण एसणासमियाणं आयाणभंडमत्तनिवसेवणासमियागं उबारपासपणलेलजलसिंघामपारिद्वापणियासमिया मणस पण कायः मणगुत्तामं वयगुवा कायगुत्ताण गुत्तिदियार्ण गुत्तमवारी आपट्टीचं आयहिया आयजोईण आयपरकमार्ग पक्खियपोसहीए सुसमाहीपत्ता नियायमाणानं इमाई वस चित्तसमाहिठामाई असमुप्पणपुलाई समुष्पजिला.. धम्मचिता चा से असमुप्पण्णपुषा समुपजेजा सर्व धम्म जाणेनए, सणिणाणे वा से असमुष्पापुरे सपुष्पाजेना अहं सरामित्ति अपणो पोराणिर्थ जाई सुमरितए, सुमिणसणे वा से असमुषणचे समुपओज्जा आहातचं सुमिणं पासित्तए, देवदसणे वा से असमुप्पण्यापूर्व समुफलेजा दियं देविहिद दिवं देवजुरं वि देवानुमा पासित्तए, ओहिनाणे वा से असमुषणमुचे समुपजिजा ओहिणा लोपं जानित्तार, ओहिसणे वा से असमुप्पामुळे समुष्पजना ओहिना लोयं पासिलए, मणपणनाचे वासे असमुष्पग्णपुरे समुणनेना अंतो मणुस्ससेनेसु अढाइनेगु दीवसमुद्रसु स्त्रीणं पंचिंबियाणे पजनमार्ण मणोगए भाये जामेत्तए, केबलनाणे वा से असमुष्पग्णपुरे समुष्पजेणा केबलकर्ष लोपालोय जागेत्तए, केवलक्षणे वा से जसमुणणापुरे समुपजेजा केवळकर्ण लोयालोयं पासितए, केवलमरणे वा से असमुपण्णपुरे समुपनेजा समनुक्लप्पाहीचाएर 1१७'ओयं चित्तं समादाय, साणं समणुगासति। पम्मे ठिओ अविमनी, निशाणमभिगष्यति ॥१॥ण इमं विसं समादाय, मुजो लोयसि जायति।जप्पणो उत्तम ठाणं, सनीणाणेच जाणति। २॥ अहातचं तु सुपिन, सिप्पं पासति संबुडे । सर्व वा जोई वरति, तुक्सावा या चिमुचति ॥३॥ पंताई भयमाणस्स, विचित्तं सपणासनं । अप्पाहारस्त दंतस्स,
या सनि वाइणो॥४॥ साकामचिरतरस, समतो भयमेवं । नबो से जोड़ी मवनि, संजयस्स तपस्सिणो॥५॥ नक्साऽयहडलेसारस, ईसणे परिसुजाति । उड्ई अहेब तिरिय च रा Sम समपन्सति ॥६॥ सुसमाइलेन्सस्स, अक्तिकस्स मिश्गो । सो चिप्पमुकस्स, आया जागति पमये ॥७॥जया से नाणावरगं, सवं होति खयं गयं । तया लोगमलोमत्र
च, जिनो जापति केवली ॥८॥जया से दसणाचरणं, स होति खयं मर्च। तबो लोगमलोग च, जिणो पास केनली ॥९॥ पडिमाए विसुबाए, मोहणिजे वयं गए। असेसं लोगमोगच. पासति सुसमाहिए ॥१०॥ जहा य मत्थयसूई. दयाए हम्मते तले। एवं कम्माणि हम्मति, मोहणिजे सयं गए ॥११॥ सेणावतिमि णिहते, जहा सेणा पणास्सति । एवं कम्मापणसति, मोहणिजे सर्व गए॥१२॥ महीणो जहा अम्मी, सिजते से निरिधा एवं कम्मानिसीयते, मोहणिजे लयं गए॥१३॥ सुकमूले जहा से, सिच्चमाणे ण. रोहति । एवं कम्मा ण रोहंति, मोहणिजे लयं गए॥१४॥ जहा दडवाण बीमार्ग, न जायंति पुर्णकुरा । कम्मचीए वहा दाडे (३० सुबड्बेसु), न रोहति भकुरा ॥ १५॥ चिच्चा
ओरालियं बौदि, नामयोनंच केवटी। आउर्य वेवपिनच, छिता मपति नीरए ॥१६॥ एवं अभिसमागम्म, वित्तमादाय आउसो ! सेणिसोपिमुपागम्म, आया सोहीमुबागए॥१तिमिलिसमाधिस्थानाध्यक्ष सुर्य मे आउतिर्ण भमरया एवमक्लायं-वह सलमेरोहिं भगवतेहिं इकारस उपासमपडिमाओं पं., कपराओ ललताओ मेरेहि मगवतेहि इकारस उवासमपरिमाओ पं.१.इमा खलनाजो रेहिं भगतिहि कारस उवासमपटियागो पं०1०-अकिरियावादी यापि भवति नाहियवाईनाहियपणे नाहियदिहीनो सम्मावादी नो णितियाचादी नोसंतिपरलोगवादी णस्थि इहलोए गस्थि परलोए णस्थि माया गरिय पिया पत्ति अरिहंता मस्थि पकड़ी गरिव बलदेवा परिष नासुदेवा गरिय नस्यापरिय नेखया णस्थि मुकदुकडाण करवित्तिविसेसे गो मुधिषणा कम्मा सुचिमकला भवंतिणो दुश्चिष्णा कम्मा दुश्चिष्णफला मति अफले करडाणपायए नी पच्चायति जीचा णस्थि निस्या गरिय सिद्धी, से एवंवादी से एवंपणे एवंदिही एवंदराममिणिनि? जानि भवति, सेब भवति महिछे महारंभे महापरिगाहे अहम्मिए अहम्माणुए अहम्मसेवी बहमिडे अधम्मक्खाई अचम्मपलोई अधम्मजीपी अधम्मपलानणे अधम्मसीलसमुदायारे अपम्मेण व वित्ति कणेमाणे बिहरहण जिंद मिंद विकत्तए अंतके लोहिवाणी चंडाला
गुदा साहस्सिया उचंचणमायाणियडिफूडकवासानिसंपयोगबहुला दुस्सीला दुष्परिचया दुरणुणेया दुश्या दुष्पडियाणंदा निस्सीला निग्गुणा णिम्मेरा निप्पचनसाणपोसहोषपासी SI ९८२ दशायुतस्कंघच्छेदमूर्य स-5
मुनि दीपरजसागर
दीप
अनुक्रम [१५]
अत्र दशा-६ आरभ्यते
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आगम
(३७)
प्रत
सूत्रांक
[१८]
दीप
अनुक्रम [३५]
“दशाश्रुतस्कन्ध”
छेदसूत्र-४ (मूलं )
दशा [६]
मूलं [१८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
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मंगणवन्यम
साहू साओ पायाचायाओ अप्पडिविश्वा जावजीवाए एवं जान लाओ कोहाओ साओ माणाओ सहाओ मायाओ लाओ लोमाओ सहाओ जाओ दोसाओ कलहाओ अम्यक्लाणाओ सुनाओ परपरिवादाओं जरतिरतीओ ओ मायामाओमिच्छामो सम्पतिविरया जावजीवा सहाओ कसायदंड (1) कहा दणविलेवणसदफरिसरसरूपगंधाकाराओ अप्पडिनिया जावजीवाए सवाल सगर जुग्गगिडिविलिसी पासंद माणिपासणासावाणमायणपवित्रविधतो अप्पडिक्रिया जावजीवा असमितियकारी साओ जासहत्यिगोमहिसागवेल पदासीदास कम्मकरपुराजी जम्पटिरिया जावजीचाए हाजी निकम्मासमासरूपहाराओ अप्पतिविरया जावजीचाए समाज हिरण्यसुवणपथणमणिमुत्तियसंलसिटप्पाला अप्पडवरपा जावजीचाए साओ हलकूडमाणाओ अन्यडिविया साओ जारंभसमा माओ अप्पडरिया साओ पयणपधारणाओं अपटिरिया साओ करणकारावणाओ उपडिरिया लाओ कुणिताडनपथबंधपरिकिलेसाओ डिपिया जायजीवा जे या पगारा साला अोहिया कम्ता पण परियाका कति तोषि अप्पडिविया जीवा से जहानामए केइ पुरिसे कलमलमासनिफाकुलत्यजलिद्गजवएवमादीहिं जयते कूरे मिच्छा उंज एवामेव तप्यारे पुरिसजाए तित्तिरवाकपोतपलमगमहिवराहगोगोह कुम्मसरीसिचाइएहिं अपने रे मिच्छा पतंजलि, जाविय से बाहिरिया परिसा भवति तं दासेति वा पेसेति वा मतइति वा माइति वा कम्मर वा पुरिति वा शिपय में अनवरत जहालपुसि अपरासि सपमेच दंड नियतेति तं इमं इंडेह इमं मुंडेह इमं सजे इमं सालेह इमं दुबंध करे इमं निबंध इस हडिचर्ण इमं चारबंध इमं नियललकुमोहिमेपादयं इमं कण इमं नवं इमं ओह इसी दमं मुखयं इमं पच्छीयं इस यिउप्पादियं एवं नय पादियं करेह इमं जलंय इमं पंसिव इमं पोलितयं इमं सूइयं इसे मूलानि इमं खारवत्तिय इमं दग्भवत्तियं इमं सीमि
दसवय इमं
इमं (द) इमं काकणिमखातिय इमं भक्त्तपाणनिरुदयं करेह इमं जावजीवबंध करेह इमं अतरेण अमेण कुमारेण मारह, जाविय से अतिरिया परिसात माता या पिता या मायाइ वा महणीति वा भजाति वा ध्याति या सुहाति या तेतिषिय में यरंस अहालसति अवरासि सयमेव रूपं दंड निति सं० सीतोदग यस कार्य बोलता भवति उसिनोद वियोग कार्य जोसिंचिता भवति जगधिकारण कार्य उवडहिया नवति जोरोग वा वेलेण वा शेण व कसेण वा छिवाडीए वा लाए वा पालाई उदालेला भवति दंडे वा अट्टी वा मुट्ठीय वा वा वा वा कार्य आउहिता भवति, तहत्यारे पुरिसाएमा दुम्मणे भवति, तहत्यारे पुरिसजाने विषयसमाणे मणा भवति तपगारे इंडपासी (रुई) दंड दंडपुर अहिए अस्सि लोयंसि अहिए परसिलो ते दुक्खति सोयति एवं जूनि पिक् सोयजूरणतिपचिणपरितप्पणवथबंधपरिक्लेसाओ अप्पदिविरया भवति एवमेतेषामेहिं मुठिया गठिया गिदा असोववरण जाप वासाई चपंचमाई उसमाथि ना अप्पतर वाजतरं वा कालं भुजित्ता भोग भोगाई पसविता रायताई संचिणिता बहुचाई पाबाई कम्माई ओसणं संभारकडेण कम्मुणा से जहानामए अथगोलेति या सेलगोलेति वा उदयंसि पक्खि समाणे उद्गतलमत्ता अपरतिपतिद्वा भवति एवामेव तपगारे पुरिसजाए बहुले पुण पंक० बेर० दंम० नियदि० आसायण० (असाय० ) अपस अप्पत्तिय० ओसणं तसपाणपाती कालमा कार्य किया परमपिता नरमतपतिद्वाने सति ते नरगा तो पट्टा चाहिं चउरसा आहे सुरपसंठाणसंठिया निबंधगारतमसा ववगयगचंदनक्वतजसा मेदवारुहिरपलालिताणुले वणवा असुई वीसा परमदुगंधा काय अगणिवाभा कक्खटफासा दुरद्दियासा नरगा जमुना नरगा असुभा नरगेषु वेदना नो चेचणं नरएस नेरइया निहायत वा पति वा सुतं वा रतिं याचिता मति वा उति ते तत्थ उज्जलं चिडले पार्ट कफकरोद क्स वह नियं तिक्लं तिथं दुरहियास नरएस नेरइया नरवेयण पराभवमाणापिति से जहानामाए रुक्ले लिया जाए मूल निजतो दुर्गा जो सिमं ततो पद्धति एवामेव तपगारे पुरिसजाए गन्नाओ गन्नं जम्मा जम्मं मरणाओं मरणं दुक्खाओ दुखं दाहिणगामिए नेरइए कन्हक्लिए आगमिस्साणं बोधिते यानि भवति से अकिरियाबादी ११८ से किसे किरियाबादी १ २ भवति सं०-आहियवादी आहियपणे आहियदिडी सम्माचाई नियाबाई संतिपरलो यवादी अस्थि होए अस्थि परलोए अस्थि पिया अस्थि माना अस्थि अरिहंता अस्थि चकवी अस्थि बलदेवा अस्थि वासुदेवा कडकडाणं कम्माणं फलवित्तिविसेसे सुचित्रा कम्मा सुचिता मति दुचिया कम्मा दुबिष्णफला मवंत सफले कलाणपाचए पचायति जीवा अस्थि नेरवा अस्थि देवा अस्थि सिद्धी से एवंवादी एवं एवंदी एवं उंदरा९८३ दशकं दसा-5
मुति दीपरतसागर
chesters
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आगम
(३७)
प्रत
सूत्रांक
[१९]
दीप अनुक्रम [३६]
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“दशाश्रुतस्कन्ध” – छेदसूत्र- ४
अत्र दशा- ७ आरभ्यते
(मूलं)
दशा [६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
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मूलं [१९]
गमिनिषिद्धे आपि भवति से भवति महिच्छे जान उत्तरगामिए नेरइए पक्लिए आगमेसा सुलभवोहिए याचि भवति से तं किरियवादी १९ सम्म याचि मचति तस्स बहू सीलगुणत्रयवेरमणपबक्लानपोसोक्साईनो सम्मं पचितपुवाई भर्चति एवं साओ पदमा उचालगपडिमा २० जहाचरा दोना उपासगपडिमा धम्मपा भवति तस्स बहू सीलवयगुणवयवेरमणपञ्चवाणपोसहोवपासाई सम्मं पविताई भवंति से णं सामाइयावासिय नो सम्म अणुपालिता भवति, दोबा उपासगपडिमा । २१ । अहाचा तथा उदासगपडिमा सबधम्म वापि भवति, तस्स णंबई सीलवयगुणश्रमणपचखाणपोसोवासा सम्म पट्टपिता मति से नं सामाइयदेसावासिय सम्मे अनुपालिता भवति से गं चउदसमीउदपुण्णमासिणीस परिपुष्णं पोसहं नो सम्मं अनुपालेता महति तथा उपपडिमा २२ अहावरा पडत्या उपासगपडिमा सह धम्मरु याचि भवति, तस्स में बहू सीलन जान सम्म पचिता मति से सामाइयावगाशिवं सम्मं जपाला नवह से चारसमिरिपुष्पमासिणीस पडि पुष्णं पोसहं सम्मं अनुपालेला भवति से एमराइयं उपासगपडिमं नो सम्म अणुपालेला भवति, यत्या उपासगपडिया २३ अहावरा पंचमा उदासगपडिमा सह भवति, तस्स बहु सीलवय जाय सम्म अणुपालेला ( पडिलेहियाई) भवति से णं सामाइय राहेव से पाउदसि सहेब एगराइयं सम्यं अणुपालेता भवति से अभिणाणए विडभोई मलिकडे दिया भवारी रति परिमाणको से एारुणं विहारेण विहरमाणे जह एमा वा दुवा वा तिया वा उकासेणं पंच मासे विहरिला पंचमा उपास डिमा २४ अहाराझ उपासगपडिमा सबधम्मकई याचि भवति जान से में एमराइयं उपासमपडिमं अणुपालिता भवति से णं असिना विडभोई लीक दिया था ओवा बंगारी, सविताहारे य से परिणाए न भवति से र्ण एयारूपेणं विहारेण विहरमाणे जह० एवाई या दुबाई वा जान उको छम्मासा विहरिजा, छडा उपासगपडिमा । २५ । अहावरा सप्तमा उदासगपडिमा सम्म यानि भवति जाय राज वा नयारी सचिताहारे से परिणाए भवति जारंगे से अपरिणाए भवति से एयारूपेणं विहारे परमाणे जह एमा वा दुपाई वा जान उको तल मासे निहरिजा, सत्तमा उवासमपडिमा २६ जरा अट्टमा उपासपटिमा समस्यावि भवति जाय राजो या भारी समिताहारे से परिणाए भवति आरंगे से परिणाए भवति, बेसारं य से अपरिणाए भवति से गं एयाणं विहारेण विहरमाणे जाएगाई वा दुबाई या जान उको अड मासा विहरि से जमा उपासपटिमा २७ अहावरा नवमा उपासगपडिमा सम्मयी यावि भवति जाय राज (राज) मयारी समिताहारे से परिणाए भवति जारंमे से परिणाए मवति पेसारं मे से परिष्णाए भवति उदिम से अपरियाए नयति से णं एषारूपेण विहारेण विहरमाणे जह एमा वा दुवा या जाउको न मासा हिरिजा से नवमा उपासगपडिमा २८ अहावरा दसमा उपासगपडिमा सम्म यादि भवति जाय उभिने से परिष्याए भवति से सुरमुंड वाला था स् आम (इ) इस्स वा समाभइस्स वा कप्पंति दुवे भासाज मासिए सं०-जाणं वा जान अजाणं वा नो जायं से णं एयारूपेण विहारेण विहरमा जएगा वा दुबाई बाउको दस मासा हिला दसमा उवालगपडिमा २९ अहावरा एकारसमा उपासगपडिमा सम्म जान उभिने से परिष्णा भवति से सुरमुंद वा तरिए या गहिया चारभंडगनेवत्ये जारिसे समणानं नियाणं पम्मे पं० तं सम्मं कारण कामाचे पालेमाणे पुरओ जुनमायाए पेमाणे दट्ट् नते पाणे उबर पाए रीएजा साहर पाए जा वितिरिष्ठं वा पार्थ कट्टु एजा सति परमे संजनामेव परमेा नोउयं गच्ा केवल सेना अभवति एवं से कप्पति नायविहिं एनए, तस्य से पुत्रार्णा चाउमिलिंग कम्पति से बालोद पडिवाहितए नो से कप्पड़ मिलने पडिगाहित्तए तत्य से पुवागाउने मिलिंग उचाउ पति से मिलिंगसूचे पडिगाहिलाए नो से कप्पति पाउलोद पडिगाहिलए तस्य णं से पुष्वागमणे दोषि पुढाउलाई कम्पत से दोषि परिमाहिलाए, तब से पुणे दोन पच्छाउलाई नो से पति दोष परिमाहिनए तत्व जे से शाम उसे कप्पति पडिगाहिए. जे से तस्य वागणं पच्छाउने नो से कप्पड़ पडिगा निएतत् गाहाकुलं विपडियाए अनुपविस कप्पद एवं वलए समणोपासगस्स पडिमा भिक्लं इलय एवा हिरेहरमा के पासिता आउ तुमत्त लिया समोवास पडिमं पडिवजिते जमसीति सिवा से एारुणं विहारेण विहरमा जएगा वा दुयाई वा नियाई वा उक्को एकारसमा विरेना. एगारसमा उपासगपडिमा एताओ ताओ रेहिं भगवतेहि एगारस उपारागपडिमा पण्णत्ताओतिमि ३० ॥ श्रपपतिमाध्ययनं ६ ॥ सूर्य आउ भगवा एवमनखायें- इह तु पेरेहिं भगवते वारस भिक्खुपडिमा पं० कपराओ खलु ताओ जाप ०१ इह वा मासिया मिस्तुपडिमा दोमासिया भिक्खुपडिमा [तिमासिया भिक्खुपडिमा चडमालिया पंचमासिया उम्मासिया सत्तमालिया पढमा सतराईदिया दुधा सतराईदिया तथा सतराईदिया अहोराई (२४६) ९८४ दशनच्छेदसा-89
मुनि दीपरत्नसागर
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आगम
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“दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) ---------- दशा [७] ---------------------------------------- मल [३१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
प्रत
सूत्रांक [३१]
KIरिया एमांदिया निक्सुपडिमा।तामासिवन निरुपहिम पहिचस अगमारस्म नि बोसहकार चियत जे जसमा उपजति --दिशा ना माणसाला तिरिक्त
जोणिया वा ते उप्पणे सम्म सहति समति तितिक्रति अहियालेति, मासिय मिक्सुपडिम पढिवण्यास अणगारस्स कप्पड एगा दत्ती भोषणस्स पडिमाहितए एगा पाणमस्स, अण्णाउंछ सुद्धोपहर निहिता बहवे उपपवउपपसमणमाइणअतिहिकिविणपणिमगा, कप्पा से एगस्स मुंजमाणसा पढिगाहित्तए, गो हुई जो निष्ई यो चउई को पंच जो गुपिणीए पो चालवच्छाए णो दारग पेजमाणीए नो अंवो एनुयस्त दोषि पाए साहद वलमाणीए नो बाहि एलयास दोवि पाए साइर इलमाणीए. एणं पाए अंतो किवा एणं पार्य बाहि किया एल्यं चिपसंभाला एवं दलपति एवं से कम्पति पतिमाहितए,एवं से नो बलबति एवं से नो कम्पाइ पडियादितए, मासिय न मिषसुपडिम पडिषण्णस्स अणगारस सओ गोयरकाला ५०० आदिमे मज्झिमे परिम, आदि घरेजा जी मनो चरिना को चरिमे परिजा, मो चरेना नी आइ परेजा नो चरिमे परेजा, परिमं चरेजा नो आविर्म 151 चरेजा नो मजमे चरेना, मासिय भिक्खुपडिम पडिवण्णास्स अणगारस्स बिहा गोयरचरिथा ५००पेला अवपेला गोमुत्तिया पर्वगवीथिका संयुकासा गर्नुपश्चागया, मासिब
भिक्खुपडिम पडिवण्णस्स अणगारस्स जस्य केद्र जाणति कप्पा से तत्व एगराइयं नासित्तए, जत्य केह न जाणइ से कम्पति तत्य एगरार्य का तुरायं वा वसितए, नो कप्पा एगरायाभोवा दुरापाओ वा परे पत्याए, जसरथ एगरायाओचा दुरायाओ वापरं वसति से संवरा छेदे या परिहारे पा, मासिन भिक्सुपदिम पडिवणस्स कप्पति पत्तारि भासाबोल भासित्तए २० जायणी पुच्छणी अगुणवणी पुदस्स नागरणी, मासियं णं मिक्सुपडिमं पढिवण्णस्स० कप्पति तो उपस्सगा पडिलहितए ने अहे आरामगिहसि वा अहे चियाडमि. हसिवा अहे रुक्समूलरोहंसिया, मासियं णं भिक्षु० कप्पन्ति तो उपस्सगा अणुग्णवित्तए २०-अहे आरामगिह अहे चिवडगिह अहे रुक्लमूलागिह, मासिया कणा ताओ उपस्सया उपायमापित्तए ने चेष, मासिय गं. कापहनजी संचारमा पडिलेहित्तएन०- पुढीसिलं ना कहसिलवा जाहासंघहमेष, मातिय मिक्सुपडिम पडिवण्णस कप्पा तो संघारा अणुव्योत्तएर, मासियंकापति नजओ संधारा ओचायणावित्तए ने चेच, मासियं० इत्थी उवस्मयं उपागछिना से इत्थी एवं पुरिसे गो से कप्पा तं पच निपसमित्तएका परिसि.
नए पा, मासिर्व जाच पडिचण्णास्त के उपस्सर्य अगणिकाएण सामेणा नो से कप्पड़ तं पटुब निक्समित्तए वा पविसित्तए वा, तत्व के धाय असि नहाय आगच्छेजा जाब FI से नो कप्पर पहुच आलंपित्तए पा पलंबितए बा, कापड से आहारिक रीइनए, मासिय मिक्युपडिम जाच पासियावा करए वा हीरए पा सकरा वा अणुपक्सेिजा नो
कपद से नीहरितए वा विलोहितए वा कम्पा से आहारिय रीइतए, मासियं णं जाप अपिंकसि वा पाचाणि वा पीयाणि वा रए वा परियावनिजा नो से कम्पनीहरितएवापिसोल हिनए वा, कम्पह से आहारीय रीइनए, मासियं जस्षेत्र मृरिए अत्यमेज नरव जलंसिया पलंसि वा दुम्मसि वा नियंसि वा पश्यसि चा विसमंसि वा गडाए या वरीए पा कप्पड से तं रणितस्येव उपायणापितए, नो से करपा पदमवि गमित्तए, कप्पह से कल पाउपनायाए रयणीए जाच जलते पाईनामिमुहसा वा वाहिणाभिमुहस्स वा पडीणामिमुहस्स वा उत्तराभिमुहस्स या आहारीय रीइनए, मासिय पं० नो कप्पा अणंतरहियाए पुढवीए निहाइनए वा पयलाइए पा, केवली प्या-बादाणमेयं, से तत्व निहायमाणे पार पवलायमाणे वा हत्येहि भूमि परामसेजा अहाविधिमेव ठाणं ठाइत्तए निक्लमित्तए वा, उचारपासवणेर्ण उम्बाहिजेजा नो से कापड ओगिव्हित्तए, कप्पह से युज्यपडिल्लेहितए थशिले उचारपासवर्ण परिडवित्तए, तमेष उपाय आगम अहापिचि ताणं ठाइत्तए, मासियानो कप्पा ससरक्वेहि पाएदि (काएहिंघ.) गाहापात भत्ताए वा पाणाए वा नि० पवि० जह पुण एवं जाणेजा-स सरक्ले से अत्ताएपा जाएनाए वा मालनाए वा पंकनाए वा विदत्य परिगए) कप्पा गाहापरकुलं मनाए पा पाणाएगा निक्स पवि०, मासिय नोकच्या सीओदगाषिवदेण वा उसिणोदगविषटेण वा हत्याणि वा पापाणि वा इताणि वा अच्हीणि या मुई वा उच्छोलिलए या पचोपित्तए वा गण्णास्थ लेवान्लेवेण वा, मासियं ० नो कप्पड आसस्स वाहत्यिसमा गोणसना महिसरसा फोहत्सवासानस्सा (कोलसुणगस्सा)सवा पायरसना आवमानस्सा पदमपि पचोसफितए, जइस आपनमानसकन्यति जगमित्तं पच्चोसकिनए, मासिय शं नो कप्पा छापाओ सीपति उष्टं इत्तए उच्हाओ उहंति नो छार्य एत्तए, ज जत्थ जया सिपा ने तत्व अहिवासए, एवं स्खल एसा मासिया | मिलनुपडिमा अहासुर्त अहा अहामम् अहान सम्र्मकाएगं फासिता पालिता सोहितातीरिता किहिता जाराहिता जागाए अणुपालित्ता भवति । ३२।दोमासियं णं भिक्युपडिम नि बोसहकाए तंत्र जाप दो दली. तिमासियं निषिण दलीओ चाउमासिय- चनारि वत्तीओ पंचमासियं पंच उनीओ उमासिब छ बत्तीओ सत्तमासियं सत्त दनीनो, जस्थ जत्तिया मासा तत्य तत्तिया बत्तीओ।२३। फार्म सत्तराईदियं णं मिक्लुपतिम पडिवाणस्स अणगारस्स नि बोसिहकाए जाप अहिवासेक कप्पा सेवउत्र्ण ९८५ दशाभूतस्कवच्छेदमूर्व -9
मुनि दीपरलसागर
अनुक्रम
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आगम
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“दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) ---------- दशा [७] ---------------------------------------- मल [३४] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
प्रत
सूत्रांक [३४]
पानाNANDvs0
मत्तेणं अपाणएपण बहिया गामस्स या जाच रायहाणीए या उत्तागमस्सवा पालेमता या नेसज्जियसा वा ठाणे ठाएनए, तत्य दिघमाणुसतिरिक्वजोणिया उपसग्गा समुणजिन्ना, नेणं उचसग्गा पलिज या पबडिज पानो से कापड पयलित्तए मा परित्तए वा, तस्य से उचारपासवणे उम्बावेजा नो से कप्पइ उबारपासपणं ओगिम्हेत्तए, कप्पाह से पुषपडि- टेहियंसि पंडिलंसि उचारपासपर्ण परिवपित्तए, महाविधिमेव ठाणं ठाइनए, एसा खालु पदमा सत्तराईदिया भिक्सुपडिमा अहासु जाच आणाए अणुपालिता भपति, एवं दोबा सत्तराईदियापि, नवरं दंडानियस्स या सगंटसाइस्स वा उकडुवस्स चा ठाणं ठाइनए, सेर्स तं व जाव अणुपालिता भवति,एवं तथा सत्तराईदियाविभवति, नवरं गोदुहियाए वा पीरासणियस्स वा अंवसुजस्सना ठाणं ठाइलए, एनरजाच अपालिता भवति। ३४ाए अहोरातियापि, नवरं छह मनेणं अपाणएणं पहिया गामस्सा जान राबहामियस्सा इंसि दोवि पाए साहट वाचारियपाणिस्ता ठाणं ठाइनए. सेसन र जाच अणुचालिता भवति, एगराई णं मिक्सुपडिमं पडिपमस्स आणगारस्म निचं वोसिहकाए जाच अहियासेति, कप्पड से अहमेण भनेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाप रायहाणीए या इंसिपमारगएणं काएक एगपोन्महिताए विट्टीए अणिमिसनयणे अहापणिहिहिं गत्तेहि साबिबिएहि गुने दोवि पाए साहबद पापारियपाणिस ठाणं ठायत्तए, तत्थ से दिनमाणुसनिरिष्ठजोणिया जाव अहाविधिमेव ठाणं ठाइत्तए, एगराई ण मिपसुपटिम अणपाठमाणस अपगारस्स इमें नओ ठाणा अहियाए असुभाए अलमाए अमिस्साए अगाणुगामिपनाए भति,10. उम्मायं पालभेजा दीहकालियनारोगायक पाडणेजा केवलिपमत्ताओ धम्माजो वा भसेना, एगराइयण भिक्खुपहिम सम्म अणुयालेमाणस अणगारस्स इमे नओ ठाणा हियाए जात आणुगामियसाए भति,०-ओहिणाणे वा से समुपलेजा ममपनपनाणे - वा से समुपज्जेजा केवलनाणे वा से असमुप्पणपुञ्चे समुप्पोजा, एवं खल एसा एगराइया भिक्युपडिमा अहायुतं जहाकपं अहामगं जहातचं सम्मं कारण कासिता पालिता र सोहिता तीरिता किहिता आराहिता आपाए अपालिता पानि भवति, एताओ खलु तानो परेहिं भगवतेहिं चारस मिक्सुपरिमाओ पाताओलि बेमि । ३५॥ निशुमतिमाध्ययन
॥ण कारेण तेणे समएणं समणे भगवं महावीरे पचहत्युत्तरे होत्या त-हत्युत्तराहिए चना गम्भ पकते, इत्युत्तराहिं गम्भालो गम्भ साइरिए, इत्युनराहि जाए, हत्युत्तराहि मुंडे मविना आगाराओ अणगास्यिं पत्रइए, इत्युत्तराहिं अर्णने अणुतरे निवाचाए निरावरणे कसिने पटिपुष्णे फेवलमरनाणसणे समुप्पाने, साइणा परिनिए भवर्ष, जाब मुजो २४ उपदसति बेमि । ३६॥ पर्युषणाकल्याध्ययन वर्ण काले बचानामनगरी होत्या पणजो, पुण्णभदे चेहए, कोगिए राया, धारिणी देवी, सामी समोस, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया, अमोलि समणे भगवं महावीरे बहरे निम्गंधा व निर्याचीओ य आमतता एवं पदासी-एवं खलु जजो तीस मोहणीपहाणामा सीमा पुरिलो पा अभिक्रवर्ण २ आयरमाणे या समावरमाणे चा मोहणिजलाए कर्म पाकरेति, जे केपि तसे पाणे, बारिमो चिमाहिया। उपएमम्म मरिति, महामोह पकुबई ॥ १८॥ सीसारेणी जे केई, आवेटेड अमिक्सणं निवासुमसमाचारे, महामोह.॥१९॥ पानिमा संपिहितार्ण,सोयमाचरिपाणिणाअंती नदत मारो॥२०॥जायते समारुम, बहु मोमिया जणं। अंतो धूमेण मास ॥२१॥ सीसमि जे पहनति, उत्तमंगमि यता विमज मत्थर्य काले ॥२२॥ पुणो २ पणिधीए, इगिता (माले) उपहले जणं । कलेग अनुपा डेण ॥२३॥ टायागी निगृहिला, मात्र मायाए डायए । असचचाई निहाइ ॥२४॥ पसेज जो अभूएणं, अकर्म अक्तकम्युणा । अनुबा तुममकासिनि० ॥ २५॥ जाणमाणो पुरिसओ, सबमोसाइ भासति । अक्खीणझसे पुरिसे ॥२६॥ अणायगस्त नयचे, दार तस्त्र घसिया । पिङलं विसोभइनाणं, कियाण पडिचाहिर ॥२७॥ उचगसंतपि अपित्ता, पडिलोमाहि चाहि । भोगभोगे पिधारेति ॥२८॥ अकुमारभूए जे केह, कुमारभूएतिपए। इत्थीचिसयगेहीए. ॥२९॥ अभयारी जे केई. मयारीविहपए । गहमेव ग मो. विस्तार नदती नद । ३०॥ अपणो अहिए वाले मायामोस बहूं मसे। इत्पीसियगिदीए.॥३१॥ जनिस्सिए उत्रहनी, जसमाऽभिगमेण या तस्स लुम्मा वित्तमि० ॥३२॥ ईसरेण अनवागामेणंअणीसरे सरीकए तरस संपरिगहिवरबहीण)क्स, सिरीजनावमागया॥३३॥ईसादोसेण आइडे कडाउलचेयसे जेअंतरायंचेपासप्पी जहाअंहपई भत्ता जो विहिंसइ। सेणापति पसत्यारं ॥३५॥ जे नापगं च रहस्स, नेवार निगमस्स वा। सेहि बहुसं हता० ॥३६॥बहुजणस नेतार, दी ताणं च पागि एपारिस नरं हता० ॥३७॥ उपड़ियं परिचिस्व, संजय सुसमाहिय। दिउसम्म धम्माओ भंसेति ॥३८॥ नहेबाननाणीयं, जिणार्ग परवसिगं। तेसि अपण पाहे ॥३९॥ पाउपस मम्गरस बडे जपहर(रजा)ती पहुं । तिपर्वतो भारति॥४०॥ आपरिवामझाया, सुर्य विनयं च गाहिए। वेव विंसती चाले. ॥४१॥आयरिजवनमाया, सम्म न पडितपाई। अपरिपूयए पड़े।
४२॥ अपगुस्सएपि (4) ने कई, सएणं पक्कित्थई । सज्जमायचा वदनि०॥४३॥ जतबस्सी बजे केई. तो परिकत्थई । सालोगपरे तेणे साहारणहाजे के, गिलाणमि F९८६ दशाभूतस्कंधच्छेनमू -S
मुनि दीपरजसागर
अनुक्रम
[५१]
B
अत्र दशा-९ आरभ्यते
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आगम
(३७)
“दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) ---------- दशा [९] --------------------- ------------------- मूलं [३७] + गाथा: ||१८-५६||
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
प्रत सत्राक [४५]
गाथा: ||१८-५६||
का उपहिए।पन का कि, मजापिसेकाति। नियविपणाणे, कलुसाउलवेयसे । अपणो यचोही जे महाअधिकरणार. पढने पो षणी साति.
त्याण भेयाए॥४७॥ जेय आहम्मिए जोए, संपठंजे पुणो पुणो। सहादेउं सही ॥४८॥जेय माणुस्सए मोए, अदुना पारसोइए । तेऽतिपर्वतो आलयति ॥४९॥ इड्डी जुत्ती जसी वणो, देवागं बलबीरियं । तेसि अपण्णवं बाले० ॥ ५० ॥ अप्पसमागो पस्सामि, देवे जरखे प मुझगे। अम्मानो जिगपूषही. ॥५१॥ एते मोहगुणा कुत्ता, कम्मत्ता वित्तवरणा। जे उभिन विषनेजा, परित(ज)लगवेसए ॥५२॥ जैपि जागेड जो पूर्व, कियाकिबहुँ जद । चन्ता तानि सेक्जिा , जेहि माघारवं सिया ॥५३॥ आपारगुत्ते सुदपा, धम्मे ठिच्चा अगुत्तरे। तत्तो क्मे सए दोसे, पिसमासीचिसो जहा ॥५४॥ सुझंतदोसे सुबप्पा, धम्मडी विदितापरे । इडेव लमते कित्ति, पेच्चा य सुगति वरे ॥५५॥ एवं अभिसमागम्म, नूरा बढापरकमा। सामोहचिणिन्मुका, जातिमरणमतिण्डिय ५६ सि बेमि ॥ मोहनीयस्थानाध्ययन ९॥ तेणे कालेण रायगिहे नार्म नवरे होत्या पणजो, गुण-3 सिलए पेडए, रायगिहे नगरे मेणिए नाम राया होत्या रायपण्णमओ, एवं जहा ओषाइए जाव चौहपाए सबिपिहरा । ३७। नए णं से सेणिए राया अण्णया कमाई हाए कथ बलिकम्मे कपकोउयमंगलपायण्डिते सिरसाहाते कंठमालकडे आविद्यमणिसुषष्ये कम्पियहारबहाने तिसत्यपालपपलंघमाणकडिगुत्तयमुकपसोहे पिणनगेविने अंगुळेजग जाच कापरस्साए च अलंकियविभूसिए नारिंदे सकोस्टमाइदामेणं उत्तेण धरिजमाणेणं जाव सतित्र पियदसणे नरवई जेणेष बाहिरिया उपाणसाला जेणेष सीहास तेणेव उवागच्छा ना सीहासणवरसि पुरच्छाभिमुहे निसीयदत्ता कोइंघियपुरिसे सदावे सा एवं पदासी-गठहणे तुजसे देवाणुपिया! जाई इमाई राबगिहस्स नगरस्स बहिया तक-मारामाणि व उनागाणि य सणाणि वायतणाणि य देवकुमाणि य सभाओ य पदात्री य पणियागिहाणि य पक्षियसालाजोय हाकम्मंताणि य वाणियकम्मंताणि य एवं कहकम्मतानिय इंगालकमंतागि य वणकम्भवाणि पदमकम्मंतागि यजे सत्येच महत्तरमा जाणता चिइति ते एवं बदह-एवं खलु देवाणुपिया ! सेणिए राया भंभासारे बागवेति-जया में समणे भगर्व महाचीरे आइगरे नित्वगरे जाव संपाचिउकामे पुराणुपुर्वि परमाणे गामाणुगामं दूतिजमाणे महसुइणं विहरमाणे संजमेणं शकला अप्या भाषेमाणे इहमागमछेमा तया देवाणिया: नुमे भगवओ महावीरस्स महापडिरूवं उम्गह अणुजाणहला सेणियस्त रणी मंभासारस्स एयम पियं निवेएह, नए मं ते कोषियपुरिसा सेणिएणं रण्णा भंभासारेण र एवं कुत्ता समाणा इन्तहा जाच हियषा जाप एवं सामिति आणाए पिणएणं वपणं पटियणति त्ता सेणियस रम्णो अंतियाओ पदिनिक्लमंति त्ता रायगिहनगरला मतमन्मेणं निग्गच्छति ना जाई इमाई भवि रायगिहस्स पहिया आरामाणिवा जावजेतस्थ मड्यरमा आण(अण्णता चिहति ने एवं परति जाव सेमियस्स रणों एवमट्टै पियं निवेदिजा में पियं भवतु, दोनपि एवं वदति ता जामेष दिसं पाउम्भुया तामेव दिसं पढिगया। ३८ तेर्ण कालेभ. समगे भगवं महावीर आदिगरे जाव गामाणुगामं जमाणे जाव अप्पार्ण भावेमाणे विहरति, नले पाँ राथमिहे नगरे सिंघाडगतिगचउकचर जाच परिक्षा पडिगया जाच पजुवासति, सते महत्तरमा जेणेच समणे भगवं महावीरे नेगेच उचामच्छतिता समर्ण भगवं महावीर बदनि नर्मसनिचानामगोयं पुण्ठति त्ता नामगोतं पधारेवित्ता एगयो मिल्लविता एगसमक्चर्मति सा एवं वदासी-जस्स गं देवाणुप्पिया! सेणिए राया देसणं कला जस्स देवाणुपिया ! सेणिए राया इस पीहेति जस्स देवाणुप्पिया ! सेगिए गया दसणं पत्येति जस्स देवाणप्पिया! सेगिए राया देसणं अभिलसति जसा देवाण-17 पिया : सेणिए राया नामगोत्तस्सनि सपणयाए हतह जाच भवति से गं सभजे भगवं महावीरे आदिगरे नित्यमरे जाव सबष्ण साहरिसी पुराणधि परमाणे गामानुगाम इनमाणे मुहमहेण विहरमाणे इहमागयाने इह संपण्णे इह समोसढे जाव अप्पागं भावेमाणे विहरति, तं गच्छामो ण देवाणुप्पिया! सेणियस्स रगो एयमई पिथं निवेडेमो पियं मे भप. त्तिकद एपमई अण्णमण्यस्म पडिसुनिता जेगेवरायगिहे नगरे लेणेष उबागच्छतिता राबगिह नगरं मनमज्जो जेणेच सेभियरस रपणो मिहे जेनेच सेमिए राया तेणेष उपामचान्ति ना सेभियरायं करतलपरिग्गहिय जाप जएर्ण विजएणं बराति ता एवं वयासी-जस्सगं सामी ! सर्ण कखतिजाप से णं समणे भगर्ष महावीरे गुणसिलए वेदए जाच बिहरह, जगं देवाणुप्पियाणं पियं निवेदामो पियं में भवतु।३९। तते से सेणिए राया तेसि पुरिसागं अंतिए एपमह सोचा निसम्म हतहजाचहियए सिंहासणाजो अमुडेति ता जहा कोणिजो जापपदति नर्मसति ताते पुरिसे सकारेति संमाणेतिता विउलं जीवियारिदं पीतिवाणं इलपतित्ता पडिविसाउनेडता नगरगुत्तिए सहापेइत्सा एवं बदासी-खियामेष भो देवाणुप्पिया! रायगिह नगरं सम्भितरवाहिरियं आसियसंमविओवलितं जाच पचप्पिगति । ४० । तए णं से सेणिए राया बलचाउयं सहाचेनि ता एवं क्यासी-खिप्पामेव मो देवागुप्पिया! हयगयरहजोहकलियं चाउमिणि सेन समाहेह जाच सेऽपि पचपिणति, तते णं से सेणिए राया जामसालियं सहारेतिता एवं वदासी-खिप्पामेष भो देवाणुपिया! धम्मिय ८७ दशाश्रुतस्कंधष्ठेनमूत्र, दसरा-२०
मुनि दीपरासागर
दीप
अनुक्रम [५४-९३]
अत्र दशा- १० आरभ्यते
~150~
Page #151
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आगम
(३७)
प्रत
सूत्रांक [४१]
दीप
अनुक्रम [94]
“दशाश्रुतस्कन्ध" छेदसूत्र-४ (मूलं )
दशा [१०] मूलं [४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
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~ 151 ~
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जाणकरं जुतामेव उपद्वावेहता मम एयमाणतियं पचविणाहि तते नं से जानसालिए सेजिएवं रण्णा एवं ते समाणे जाहिये जे जाणसाला तेणेव उपागच्छता जाणा अनुपसि सा जानं पशुवेक्स सा पचोरुमति सा जाण संपमाइ ता जाणवं पीनेति सा जान संघ ला दूसंपवणेति सा जाणाई समोह सा जाणार मंडमडिया करे ता जेणेच बाणसाला तेच उपागच्छद्दता बाणसाल अणुपविशति ता बाणाई पशुविनखति ना वाहणाई संपमा सा बाणाई अप्फाल ता वाहणाई नीति ता से पचतिता वाहणाई अलंकारेति ता वाहणाई परामरणमंडियाई करेति ता जान जोएति सा हिमोगाति सा ओमलाई पयोगधरए य सर्व आरोह सा जेणेव गिए राया व उपागच्छ सा करयल जाप एवं वदाली जुते से सामी धम्मिए जाणपवरे, आइडा भदंत गुगाही ४१ व सेलिए गया मासारे जानवालियरस अंतिए एयम सोचा निसम्म हलु जा पर अनुपविसह जाय कप्पखए ये विसिएनजिओ डिनिक्समति त्ता जेणेव बेहना देवी मेच उपागच्छ देवी एवं दासी एवं लघु देवापिए सम मग महावीरे आदिगरे वित्यगरे जावा चरमाणे जाव संजमे तवसा अप्पा भावेमा विहरनि तं महा देवापिए तारूपाणं अरहंताणं जाय तं गच्छामो देवापिए समणं भगवं महावीरं वदामो नमामो सकारेमो संमाणमो का मंगलं देवयं चेयं षाम एवं व्ह भवेय परभये य हियाए सुहाए समाए निस्सेसार आनुगामियत्ताए भविस्सति । ४२ । तते सा फिरणा देवी सेशियल्स रम्णो अंतिए एयम सोचा निसम्म जान पडि सुति सा जेणेव मजमपरे तेणेव उपागच्छता व्हाया कयमलिकम्मा करकोउयमंगलपायचा किं ते १, करपाययत्तने उरमणिमेह-बहाररहय उचिचिकटगस्लदृएगालिकंठमुरजातिसरयतचरलयहेममुत्तवकुंजवियाणणारपणमूसियंगी चीर्णगुयवत्यपवरपरिहिया गुलकुमालकंतरमतिर सोयसुरभिकुसुमसुंदरस्यपलं सोहतकंतरिक संतचित्तमाला वरदणचचिया पराभरणभूसियगी कालागुरुविया सिरीसमाणसा बहूहि जाहि चिलानिया जान महत्तरगादिपरिक्खिता जेणेव बाहिरिया उपद्वाणसाला जेसेजिए राया येणे उपागच्छ । ४३ तए से सेजिए राया चिणाए देवीए सद्धिं परिमयं जानपरं दुरूति सफोटिमदामेण उणं परिलमागेणं उपचाइयगमेणं जाव पास एवं जान महत्तरनादिपरिक्खित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे लेणेच उपागच्छति ता समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति सा सेणियं रायपुरको कार्ड ठितिया पातितणं समने भगवं महावीरे सेणियस्स रण्णो भासारम्स चिलाए व देवीए तीसे महतिमहालियाए परिसाए जइपरिसाए इसि मुनि देव० मणुस्स० [देवी० असा जाव पम्म कहिजो परिसा पढिगया, सेणिओ राया पढिगज ४४ तस्येगतियाणं निग्र्गवाण व निम्न य सेवियं राचिणं देवीं पासिता इमेवारुचे अ थिए जान कप्पे समुपजित्था अहो में सेलिए राया महटिए जान महासोक्ले जे व्हाए कयपलिकम्मे कयको उपाय साकारला देवीए सदि उसलाई भोगभोगाई भुजमाणे विहति न मे दिट्टे देवे देवलोगंमि, सक्ख अयं देवे, जइ इमस्स तवनियमवासरस फलवित्तिविलेले जत्थि तथा वयमवि आगमेस्साए इमाई उरालाई एवारुचाई माथुरगाई भोग भोगाई जमाणा विरामो से साहू, अहो चिया देवी महिदिदया जाय महालोक्खा जाणं व्हाया कलिकमा जान सालंकारविभूलिया सेचिएणं रचा सद्धि उरालाई माणुस्साई भोग भोगाई मुंजाणी विरह, न मे विडाओ देवीओ देवलोए, सक्ख इयं देवी, जइ इमस्स सुचरियरस तवनियमभचेरवास्फतिकिससे अस्थि वयमवि जागमिस्साणं इमाई प्यारुवाई उरालाई जान विरामी से साहूणी । ४५॥ अलोति सम मग महावीरे पहने निधाय निम् पीओ य आमंतिता एवं नवासी मियं रामं हि देवीच पाहित्ता इमे एवारूने अज्झथिए जान समुप्पा अहो लिए या महिदिए जब से हो विद्यादेवी मदिया सुंदरा जाव से तं साणी से पूर्ण जो जत्थे समड़े ? दंता अस्थि एवं खलु समगाउलो मम्मे मे निचे पाय सबै अणुसरे पहिने केलिए समुदे आउट सहमत सिद्धियो मुत्तिमन्ये निजाममोनियाणमध्ये अतिविधि सम्यदुक्खणाणमय इत्यं लिया जीवा सिति युज्यांत ति परिनिव्याइति सव्वदुक्वाणयं करेति जस्स नं धम्मस्स निचे सिखाए उबडिए बिरमाणे पुरा दिविछाए पुरा पिचासा पुरावालाहि पुढेहिं विवरूयेहिं परिसहोषसग्गेि उदयकामा पहिरेगा से य परकमेला सेय परकममाणे पासेला जे इमे उम्गपुता महामाया भोगपुता महामाया तेसि णं अन्यतरस्स अनिजायमाणस्स वा निजायमाणस्स वा पुरओ महं दासीदास किंकरकम्मकरपुरिसपदाय परिक्लितं उत्तभिंगार महाय निमाच्छति तदुतरं न पुरजो महाजासा आसरा उसको तेसि नागा नागवरा पिइओ रथा रथवरा स्थगिती से उदरियसेयले जम्भुग्गयभिंगारे महियालष्टि पविसेय चामत्यालवीयणीए अभिक्खणं २ अतिजातिय सप्पमा, सावरंच महाए कमल जायसवालंकारविभूलिए महतिमहालियाए कृडागारसाला महतिमहालयंस सिंहासनंसि जाव सारातिएण जोड़ना झियायमाणं इत्थमुपरिडे (२४७) ९८८च्छेद दस-२०
मुति दीपरत्नसागर
Page #152
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आगम (३७)
प्रत
सूत्रांक
[ ४६ ]
दीप
अनुक्रम [१०३]
“दशाश्रुतस्कन्ध” – छेदसूत्र- ४
-
दशा [१०]
मूलं [v]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... .....आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
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(मूलं)
-
~152~
महचापनयी पचाइपतीतलतादिषषणमुगमहल वाइपरवेर्ण उसलाई माणुस्तगाई भोग भोगाई भुजमाणे विहर, तरस में एगमानि आममामरस जायाच अता व अतिमाह देवामुनिया कि करेमो ? कि आइरेमी कि उपमेमो? कि आधिामो? किं मे पिच्छ किं ते आसगस्त सदति १ नं पासिता निम्मांचे निदा करेति जइ इमस्त तवनियमन साहू एवं सममाउलो निग्ये निदान किया तस्स टायरस अगालोइयपडिते कालमा कार्य किया अरे देवलो देवताए उपचारो भवति महिदिए जान चिरदिए से सत्य देवे भवति महिदिए जाय चिरडिए, तो देवलगाओ आठवणं अनंतरं पर्यचसा जे इमे उम्मा महामाया भोगपुत्ता महामाया सिगं अन्यतरंसि कुलसि पुसताए पचायाति से गं तत्य दारा भवति कुमालपाणिपाए जाव सुरू, तो से शरए उम्मुला - परिणमते जोगमनुष्यते सयमेव इयं दायं पविति तस्स अजायमाणस्स वा निजायमाणस्स वा पुरओ मई जान दासीदास कि ते आसगस्स सदति है, व पारस पुरिसजायरस तहारूने सम वा माइने वा उनका वलितं धम्मं आइक्लेजा है. हंता आइक्लेजा से पहिला मो इम समझे, अभरिए से त धम्मस्स सणयाए, से य भवति महिच्छे महारं महापरिम्म अम्मिए जाय आगमेसाणं भवोहिए यानि भवति एवं खलु समाउसो तस्स निदान इमेवारूपा विषाणो संचाएति केवलितं चमं पडित ४६ एवं खलु समाउसो भए पम्मे पं० ० इनमेव निम्ये पावणे सजाय सम्रदु करेति जस्त धम्मत निधी सिम्लाए उपड़िया विहरमानी पूरा दिगिछाए उदिष्यकामजाया पिरेशा, साय परकमेला सा प परकममानी पालेजा से जाइमा इथिया मति एमा एगजाया एवामरणािणा तेलपेलाइ संगोरिया बेललाइन परिहिया स्वणकरंगसमाना तीसे में अतिजायमानीए वा निजायमानीए का पुरजो मई दासीदास जाब किं ते सगस सति पासिता निधी निदाणं करेति जति इमस्त तवनियमनचेरा जमानी विहामि सेतं साहुणी एवं खलु समजाउलो निम्यांची निदान किया तस्ठागरस अणालोय अपदिकता कालमा कालं किया अन्तरे देवलोएस देवताए उपचारो भवति मदिए जाप सातत्य देवे भवति जायजमा विद्वन्द, सा ताओ देवलोवाज आउक्साए अनंता जे इमे भवति उता महामाउगा भोगपुत्ता महामाया एतेसि में अतरंसि कुलंसि दारित्ताए पचायाति सातत्य दारिया भवति सुकुमाल जाय सुरुवा, तते में तं दारियं अस्मापिय उम्कामा विययपरिणयमित्तं जोडणरामगुपतं परुिवेणं सुकेणं परुिवस्स भत्तारस्त मारियताए दति खाणं तस्स मारिया मदतिएगा एगजाया इड़ा जाय रयणकरंडनसमाणी, सीसे जाय अतिजामाणीए वा निजायमाणी या पुरजो मई दासीदास जाय किं ते सदति १ ती तप्यगाराए हथियार व्हारूने समये वा माहने या उमजोका केवलिपण धम्मं आलेला ता आलेला सामंते पडिसुजा, जो इमडे सम अनविषाणं सा तस्स धम्मस्स सणया साय भवति महेच्छा महारंभा महापरिमहा जाय दाहियामिए नेइए नागमिस्साए लोहियन्ताए मति एवं खलु समजाउलो !
निदान इमेयाचे पाचफलविया जं जो संचाएति केवलियन्तं धम्मं पडिणित 1४७ एवं खलु समणाउसो भए पम्मे पण इणमेव निचे पाय तह चैव जस्स धम्म निचे सिक्लाए उबडिए पिहरमाणे पुरादिविछाए जान से व परकममागे पासेजाइमा इत्यिका भवति एगा एगजाया जा किं ते सदति पासिता निर्णये निवाणं करेति दुक्खं मला जे इमे उता महामाया भोगता महामाया एवेसिं गं अण्णतरे उच्चायएस महासमरसंयामेसु उच्चावचाई सत्याई उरसि व परिसंवेदेति तं पुमत्तगार इत्यीत साहु जति इमस्स तवनियमचम चेरवासास फलविनिविसेसे अस्थि चयमवि आगमेस्साणं जाव इवाई उसलाई इपी भोगाई भुजिस्सामो साहू एवं समाउस निर्माचे निदान किया तस्स टायरस अणालोपटिकते जाव अपविजिता कालमासे काल किया अन्यतरेतु जान से तत्य देवे भवति महि दिए जाय विहरति से ताओ देवलगाओ जाउलए जाव तरं चइता अन्तरंसि कुलसि दारिया पचायाति जायते से दारियं जाव मारियता इसति सा नंतरस मारिया भवति एगा एगजाया जान तहे सर्व भाषिय, तीसे अतिजायमानी वा जाय कि वे आसमस्त सदति १ सीसे तपगाराए इत्यिकार तहाचे समणे या महा धम्मं आइक्ला ?, ता आइजा जाय कि पडिसुजा १, यो तिष्ण सम, जमविया णं सा वस्स पम्मस्स पढिसपणयाए. साय भवति महिच्छा जायगामिएरइए. आगमिस्सार्ण दुलभमोहिए यानि भवति एवं स समणाउसो तस्स निदाणरस इमेयारूचे पापविद्या भवति पो संचाति केलिपण धम्मं पति ४८ एवं समाउसो ! मए पम्मे पक्ष इममेव निजाम अंत करेति जस्त में धम्मस्त निधी सिक्खाए उपद्विया विहमानी पुरादिनिछाए जान उदिमकामाया पिरेजा, साय ९८९
दरसा-१०
मुति दीपरसागर
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आगम
(३७)
“दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) ---------- दशा [१०] ---------------------------------------- मलं [४९] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
प्रत सूत्रांक
H4tay4Arrav4%Ashev
[४९]
परकममाणी पासेना से जे इमे भनि उम्मापुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया जाय कि ते मासगस्स सदति, पासित्ताणं निग्गंधी नियाणं करेति-शुक्लं खलु इत्यित्तणए दुरसंचाराई बामतराई जाव सनियसतराई, से जहानामए अंबपेसियाति का अंबाउपेसीयाति या माकुलंगपेसियाति या मंसपेसियाति वा उच्छुलंबिवाति वा संवलिकालियाति वा बहु जणस आसासणिजा पत्थगिजा वि(पी)हणिजा अमिलमणिना एकामेच इत्यिकावि बहुजनस्स आसासगिना जाच अभिलसणिजात दुक्ख खलु इस्थित्तणए, पुमत्तमए साह, जड़ इमस्स तवनियम आप अस्थि अहमविजागमिस्साणं इमाई एयाकबाई पुरिसभोगभोगाई मुंजिस्सामि, सेन साहुणी, एवंखल्समणाउसो ! निर्मायी निदाणे किवा तस्स ठाणस | अणासोश्वपटिकता जान अपटिवजित्ता कालमासे काले किचा अण्णतोसु देकलोएम देवत्साए उपचनारो मति,सेनत्य देचे भवति महिडिबए जाच पता नहेब दारए भवति । जाब कि ते आसमस्त सदाति, वरसणं तहण्यमारस्त पुरिसजायस्स जाप अमविए णं से तस्स धम्मस्स सरणयाए, सेयमवति महिच्छे जान दाहिणगामिए मेराए जाच वाहघोहिए यापि भवति, एवं खलु जाप पडिसुणित्तए । ४९एवं खलु समाउसो ! मए पम्मे पामते इणमेष निम्मये पापवणे जाव कहेच, जसणे धम्मस्म निर्माचे वा निर्माची या सिक्रवाए उपढिए बिहरमाणे पुरादिगिंछाए जाव उदिष्णकाममोगे चिहरिना, से य परकमेजा,सेय परिक्रममाणे माणुसहि काममोगेहिं निवेयं ममोजा, माणुस्समा खलु कामभोगा अधुना अणितिया असासमा सहणपडणविसणधम्मा उच्चारपासपणलेससिंघाणवतपित्तमुकलोणियसमुमचा दुरूबास्सासनिस्सासा दुरूसमुत्तरिसपुष्णा पंतासवा पित्तालवा खेला-8 सबा पच्छा पुरं च अवस्स विपजहमिजा. सति उद देवा देवलोए ने तत्व अण्णेसि देवा देवीबो अभिजुजिय२ परियारेवि अन्यथा पेच अप्पा विउत्रित्ता परिवारति अप. णिनियाओ देवीमो अनिजजिय २परियारंति, जति इमरस तवनियम जापतष सम्भानिय जान पयमपि आगमेसाइमाई एवारूया विचाईभोगभोगाई मंजमाणा बिहरामो, सेतं साह,एवं खलु समगाउसो ! निम्नांचे वा निम्गंधीचा निवागं किया तस्स ठाणरस अणालोइयपडिकते कालमासे कालं किया जाणतरेस देवेस देवताए उपवत्तारो मति
-महिदिबएसुजान पभाक्षमाणे, सेणं देवे जय देवं अण्णं देवीं व पेष जाप पवियारेति, सेणं ताजो देवलोगामो भाउक्सएणं न न जाब पुमत्ताए पचायाति जानकितेआसमस्स सदति .तस्स सहप्पगारस्स परिसजायस्सवहारुवेसमगेवामाइणे गाजापपडिसुजा,हंतापडिमुणेजा, सेणं सहजापत्तिएनारोजाणोक्षणसमडे, अभावियेणं तस्सल धम्मस्स सदहणताए०, से भवति महिच्छे शाप दाहिणगाभिए नेहए आगमेस्साए सावभयोहिए यावि भवति, एवं खलु समणाउसो ! तस्स पियाणस्स इमेयारूवे पापफल विधागे जं जो संचाएति केवसिपण्णत धम्म सरहेसए मा पत्तिइत्तए पा रोइलए बा । ५०।एवं स्खलु समकाउसो ! मए धम्मे पाते तब से च परकममाणे माणुस्सएस कामभोगेसु नियंगमजा.माणस्सगा खलकाममोगा अथवा अणितिया ताहेर जाप सति उदंदेवा देवलोगसितेर्णतत्वणोअर्गा देवं मोबसमाजोदेवीमो अमिर्जजियपरिवारैतिअप्पणा
व अप्पाणं विउवित्ता परियारेति ता जाइमरस तपनियम तं व सजाव से णं सरडेजा पत्तिएजा रोएना, णो इणद्वे समडे, अमात्यलाई मायाए से भवति, सेजे इमे आरग्गिया आपसहिया नामनियंतिया किग्रहस्सिया जो बहुसंजया जो बहुपतिपिरवा सापागभूवजीवसलेस अप्पणा सचामोसाई पाउंजता अहण ईतको अण्णे इतमा अईन अनायो अणे अजावेया आईन परिवायत्रो अन्य परियायवाजहंन परिपती अग्ने परिपतवाहन उरवेषो जन्मे उपवेबत्रा, एवामेव इत्यिकामेडिं मुथिया गडिया गिडा अज्मोचवण्णा जाव कालमासे कालं किचा जन्मतराई आमुराई किचिसियाई ठाणाई उपपसारो भवति, ततो मुखमाणा भुजो २एलमूल्यत्ताए पचायंति, नैसल समणाउसो! नम्स निदागम्स जावको संचाएनि केवसिपण धम्म सरहितए पा०५१। एवं ललुसममाउसोमए धम्मे पागले जाप माणुस्सगा सहकाममोगा अपना तहेव सेति उदय देषा देकलोयंसि अग्ण देवं अन्य च देवी अमिज़ुजिय २ परियारैति णो अपणा व अप्पाणं विउविय २ परियारेनि, जति इमरस तपनियम तंत्र जाच एवं सल समाउसो ! निग्गंधो या निम्मांधी वा निदान किया अणालोइयजप्पटियते जाब विहरति, से णं तस्व अम्गे देखें अम्माओ देवीओ अभिजिय २ परियारेति, गो जपणा व अप्पार्थ पिउत्रिय २परियारेगिसे गंवानो देवलोमाजो आउलएणं तहेववत्स गईना सदहिजा पनिएजारोएजा, सेजेसीलवयगुणायचेरमनपचनसागपोसहोचवासाई पविजेनानी इणढे समडे,सेक देसणसाचए भवति अधिगयजीवाजीवे जाप अद्विमिंजपेमाणुरागरते जाब एस अहे० सेसे अणद्वे, सेणं एवारूवेगं विहारेज विहरमाणे बरईपासाईसमणोचासगपरिया पाउनासा कानमाले कालं किया अम्मतरेस देवलोगेसु देवेषु देवत्ताए उच्चत्तारो भवति, तएवं खलु समणाउसी! तस्स निदानस्स इमेवाको पावफलपियाने को संचाएड सीलजयगुणषयरमणपक्रयाणपोहोचचासाई पडिजित्तए।५२॥ एवं खलु समनाउसो! मए धम्मे पते पेव सर्व जाप से य परकममाणे देवमाणुस्सएहि कामभोगेडिं ९९० दशाबुतस्कंधच्छेदमूर्व, दसा-10
मुनि परमसागर
अनुक्रम [१०६]
t
.ANP10
~153~
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आगम
(३७)
प्रत
सूत्रांक
[ ५३ ]
दीप
अनुक्रम
[११०]
“दशाश्रुतस्कन्ध" छेदसूत्र-४ (मूलं )
-
दशा[१०]
मूलं [ ५३ ]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
-
-
..........
निवेदं गच्छेला माणुसमा खलु कामभोगा अधुवा जाव विप्पजहणिजा, दिशावि खलु कामभोगा अधुवा अणितिया असासया चला चयणचम्मा पुणरागमणिजा पच्छा पुर्ण अवस्सविप्पजहणिज्जा, जति इमस्स तवनियम जाव आगमिस्साणं जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया जाब पुमत्ताए पचायति, तत्थ णं समणोवासए भविस्सामि अभिगतजीबाजीचे उचलद्वपुण्णपाचे जाव फायुएसणिजेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिला मेमाणे विहरिस्सामि, से तं साहू, एवं खलु समणाउसो निम्यो वा निम्गंधी वा निदाण किया तस्स ठाणस्स अणालोइय जाव देक्लोएस देवनाए उक्क्त्तारो भवंति से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाब आसगस्स सदति ? तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्स जाव हंता सद हिज्जा से णं सीलवयजावपोसहोचवासाई पडिवलेजा ? हंता पडिवलेजा, से णं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं परइजा ? णो इणट्टे समट्टे से णं समणोवासए भवति अभिगयजीवाजीवे जाव पडित्प्रमेमाणे विहति से णं एयारुवेणं विहारेणं विहरमाणे बहुणि वासाई समणोवासगपरियागं पाउण्ड ता आवासि उप्पण्णंसि वा अणुप्पनंसि वा बह भत्ताइं पञ्चकखाइ ना बहूई भनाई अनसनाए छेदेति ना आलोइयपटिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएस देवत्ताए उपचत्तारो भवति, एवं खलु समणाउसो ! तस्स निद्राणस्स इमेयारूवे पावफलविचागे जंणो संचाएति सङ्घओ मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइत्तए । ५३॥ एवं खलु समणा उसो भए धम्मे पण्णत्ते जाव से य परकममाणे दिवमाम्सएहि कामभोगेहिं निवेयं गच्छेजा, माणुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा जाव विप्पजहणिया, दिवापि खलु कामभोगा अधुवा जाव पुणरागमणिजा, जइ इमस्स तपनियम जाय वयमत्रि आगमेसाणं जाई इमाई कुलाई भवति तं अंतकुलाणि वा पंतकुलाणि या तुच्छकुलाणि वा दहिकुलानिया किविणकुलाणि वा भिक्खागकुलाणि वा एएसि अण्णतरंसि कुसि मनाए पचायति, एस मे आयापरियाए सुणीहडे भविस्सति से तं साहू, एवं स समणाउसो निग्यांची या निधी या नियाण किया तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकने सब नं चैव से णं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पजा ? हंता पड़ला से णं तेणेव भवम्महणेणं सिज्झेला जाब सहदुक्खाणमंत करेजा ? णो तिट्टे समझे, से णं भवति जेमे अणगारा भगवंतो इंरियासमिया जाय भयारिए तेणं विहारेण बिरमाणा बहूडं वासाई सामण्णपरियागं पाउणति ता आवाहंसि उप्पण्णंसि वा जाव भत्ताई पचखाइति ?, हंता पथक्खाईति, बहई भत्ताई अणसणाए छेदेति ? हंता छेदेति छेदित्ता आलोइयपडिकं समाहिपत्ते कालमासे कालं किचा अण्णतरेस देवलोएस देवनाए उपबनारो भवंति एवं समणाउसो तस्स नियाणस्स इमे एयारूले पावफलविवागे जं जो संचाएति तेणेव भवग्गहणं सिज्झेना जान सङ्घदुक्खाणं अंत करेजा । ५४। एवं खलु समणाउसो ! मए चम्मे पण्णत्ते इणमेव निम्गंथे पावयणे जात्र से परकमेच्या सहकामचिरते सरागविरते सङ्घसंगातीते सबसिणेहातिते सचारित्तपरिपुडे, तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दंसणेणं जाव परिनित्राणमध्ये अप्पाणं भावेमाणस्स अनंते अणुत्तरे निबाधाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पलेजा, नते गं से भगव अरहा भवति जिणे केवटी सवष्णू सङ्घदरिसी सदेवमणुआसुराए जाव बहूई वासाई केवलिपरियागं पाउणति ना अप्पणो आउसे आभोएति ता भतं पञ्चकखाइ ना चहुई भत्ताई अणसणाए उदेइ ना तओ पच्छा परमेहिं ऊसासनिस्सासेहिं सिज्झति जान सदुक्खाणमंत करेति एवं समणाउसो तस्स अणिदणस्स इमेयारूये कहाणे फलविया जंतेव भवमाहणं सिज्झनि जान सवदुक्खाणमंत करेति । ५५। तते णं ते बहवे निम्मांधा य निग्गंधीओ य समणस्स भगवओ महावीरम्स अंतिए एवमहं सोचा निसम्म समर्ण भगवं महावीरं वंदति नर्मसंति ना तस ठाणस्स आएनि पडिकमनि जाव अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवर्जति । ५६ । तेणं कालेणं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नगरे गुण सिलए चेइए बहु समणा बहूणं समणी बहूणं सायमाणं चणं सावियाणं बहूणं देवाणं बहूणं देवीणं सदेवमयासुराए परिसाए मझगए एवं आइक्खड एवं भासड एवं पण्णचे एवं परुवेइ आयाति ठाणनामं अज्झयणं सअद्धं सहेउयं सकारण समुत्तं सत्यं सतदुभयं सवागरणं जाव भुजो भुजो उवदंसेनित्ति वेमि ॥५७॥ आया निस्थानाध्ययनं १ ० ।। आयारदसाओ दशाश्रुतस्कंधच्छेदसूत्रं
भाग
दशाश्रुतस्कंध-छेदसूत्र [४] 'मूलं' परिसमाप्तः
मूल संशोधकः सम्पादकश्च पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब
27 किंचित् वैशिष्ट्य समर्पितेन सह पुनः संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागरजी (M.Com. M.Ed., Ph.D. श्रुतमहर्षि
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[३८/१] श्री जीतकल्प (छेदसूत्रम्-५/१)
नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम:
“जीतकल्प" मूलं एवं भाष्यं
मलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण-विरचितं भाष्य]
[आद्य संपादकश्री] पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.
(किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.,श्रुतमहर्षि)
28/07/2017, शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल ५
'सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि' श्रेणि भाग-२७
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आगम
(३८/१)
रुककर
प्रत
सूत्रांक
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मूलं [१] ------------ ---------------------- भाष्यं [१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
कियपवयणप्पणामो पुच्छं पच्छित्तदाणससेष । जीयम्यवहारगयं जीपस्स विसोहणं परमं ।। मूलं १॥१॥ पवयण दुवालसंग सामाइयमाइविं. सभाष्य) श्रीजातकल्पसूत्रम्स
नाविरमंपो जायेशपटियं नाणं जहवा पाय पसत्य पहाण क्यच पवयण नेणा अहव पपत्तयती नाणाई पपयर्णम नेणं ॥३॥ जीवाइपयत्या वा उपदसिजति जत्थ संपुण्णा। सो उचएसो पचयण तम्मि करेत्ता णमोकार या योच्छं पक्वामित्ती पच्छित्तं वसह एव उपरि तु। वण्नेहामि सवित्थर किं भणियं होनि पचिठन ? ॥५॥ पाच लिंदनि जम्हा पायपिछनि भण्णते तेणं । पायेण बावि चित्तं सोहयई तेण पच्छितं ॥६॥ पणगादी आपत्ती णिनिगहमाथि एत्थ दाणं तु । संखेव समासोति व ओहोलि व हानि एगट्ठा ॥ ७॥ किं अत्थी अण्णेऽवी चवहारा जेण जीतगहणं तु?। मण्णति चउरइत्यऽण्णे आगममादी इमे सुणम् ॥८॥ पंचविहो ववहारो दुग्गइभवमूरएहि पञ्चत्तो। आगम सब आणा धारणा य जीए य पंचमए॥९॥ आगमओ पवहारो सुणहजहा धीरपरिसपण्णत्तो। पचक्खो य परोक्खो सोविहारविहो मणेयहो॥१०॥ पक्खोऽविय दापिहो इंदियजो चेच नोयइंदियजो । इंदियपचक्खोऽचि व पंचसु विसएमु णायवो ॥१॥ जीवो अक्सो त पति जं बट्टा तं तु होति पचक्ख । परओ पुण अस्वस्सा बह(च) होइ पारोक्वं ॥२॥'अस पावणे' उ धाऊ अक्सो जीवो उ भष्णए णियमा । जवावयए भावे गाणेणं तेण अक्लोत्ति ॥३॥'अस भोयणम्मि' अहवा सबवाणि भोगमेतस्स। जागती जम्हा पान्लेड य नेण अक्खोनि ॥४॥ कसिंचि इंदियाई अक्खाई तदुबलादि पष्चक्खं । तं तुण जुज्जति जम्हा अग्गाह्ममिदियं विसए॥५॥ रूवादीविसयाणं जीवो खल ईदिएहिं उब. लभगो। जम्हा मग तम्मि जीवे प इंदिया उवलभे चिसयं ॥६॥ तम्हा विसयाणं खलु अग्गाहगमिवियं भवद सिद्ध । जं इंदिएहि नजइ तं नाणं लिंगियं होड़ ॥ ७॥ लिंग चिंध निमिनं कारणमेगट्ठियाई एयाई। जाणाइ दिएहि जीवो धूमेण अमिग ॥८॥ एवं खुईदिएहि नजद लिंगियं तये नाणं । तम्हा सिखं अक्खो न इंदिया पंच सोयाई॥९॥ एत पसंगाभिहित जह कण्हा इंदियाई पचवं । अहणा उईदिएहिणातूणं वचहरे इणमो ॥२०॥ सोईदिएण सोउं तस्सवअण्णस्स बावि पडिसेर्व । चखिदिएण दट्ठं पडिसेवितमण. या॥१॥धुवादि गंधवासे मुनिंगलियावियं व उहवियं। कंदाइ वखर्जतं गंधोवि रसोवि तत्येव ॥२॥ फासेणऽभनियमादि फासतो अप्पमासि णाऊणं । इंदियपचरखेर्ण इयणाऊणं बयहरनि ॥३॥णोडदियपक्खो ववहारो सो समासतो तिविहो। ओहि मणपज्जवे या केवलणाणे य पथक्लो ॥४॥अच्छउ ता ववहारो ओहीमादीण लक्खणं तिष्ठं । संखेवो उ | एवं अस्मन्नत्यं इमं बोच्छ ॥ ५॥ तत्थोहिणाण पदम सामित्ताकमविसुदिओ होइ। तो तं वोच्छ बहुविहं केत्तिय भेया भवे तस्स ॥६॥ संखादीआओ खल ओहीनाणस सापय डीओ। काई भवपनाया खओचसमिया य कायोऽपि ॥ ७॥ किह संखातीयाओ पगडी ओहिस्स? भण्णए जम्हा। अंगुलअसंखभामा आरम्भ पएसवीए॥८॥ उक्कोसेणमसखा
जा योगा हॉनि खेतमाणेणं। काले वाऽऽवलियाए असंखभागाउ आरम्भ ॥९॥ समउत्तरवड्डीए उकोसेणं असंख जाव भये। ओसप्पिणिउस्सप्पिणिसमयपमाणा भवे पगडी ॥३०॥ माय होति असलाजो ओहिण्णाणस सापगडीओ। संखातीतम्गहणा न केवलं हॉतिऽसंखेज्जा ॥१॥ ता होति अर्णताओ पोग्गलकायस्थिकायमहिकिच । संखातीतंति ततोऽसस
अणना य गहिया ह॥२॥ सो पण ओही विहो भवपञ्चाइयो खओक्समिओ या देवाण णारयाण य णियमा भवपच्चयो ओही ॥३॥ उप्पजमाणओ खलु भवपचइओहि जत्तियो निसओ। सा ओभासति ण 3 बढी णेव हाणी उ॥४॥ गणपमायो ओही गम्भजमणुतिरिय संखमाऊण। कम्माण खयोवसमे तयवरणिजाण उप्पजे ॥५॥ अवहीं मनाययो परिमितदात जाणते जे(न)। मुत्तिमदा विसयो ण खलु अरुवीस दस ॥ ६॥ अचंतमणुवलदा ओहीणाणस्स हॉति पचक्खा। ओहीणाणपरिणया दशा असमत्वपजाया ॥७॥
न पुण ओहीणाणं समासतो विहं इम होइ। अणुगामि अणणुगामी बदतय हीयमाणं च ॥८॥ पडिवाति अपडिवाती छविहमेवं तु होति विणेय। अणुगामिओ उ दुविहो अंनगनो चित्र मजगतो ॥५॥ अंतगतोऽपि य तिविही पुरतो तह मम्गतो य पासगो। पुरतो पुण अंतगतं इमं तु बोई समासेणं ॥ ४० ॥ जह कोई तु मणुस्सो उक चुडुलिं व दीव मणि
वाऽऽदी। काउं परओ गच्छर पनाइयंतो वजह पुरिसो ॥१॥मगत अंतगतो ऊ तह चेव य पवार मम्मतो काउं| अणुकदमाणु गच्छति अंतगतो मम्गतो एस ॥२॥ पासमत. ऊतगतो ऊ चइलादि तहेव जाच तु मणिं तु । परिकइदमाण गच्छति अंतगतं एतमिह भणितं ॥ ३॥ जो से कि मागतो? जह पुरिसो (पुरिसो जो) को चलिमादीणि। १०१० जीतकल्पभाष्य- मूलQueir arharuraभूकत्र
मुनि दीपरत्नसागर अत्र मंगल-आदि प्रास्ताविक-गाथा प्रस्तुयते
अनुक्रम
SAP
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आगम
(३८ / १)
प्रत
सूत्रांक
[१]
दीप
अनुक्रम [3]
"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं)
भाष्यं [ ४४ ]
मूलं [...]] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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का सिर गच्छति मज्झगतो एस ओही उ ॥ ४॥ मज्झतगयस्स व ओहिष्णाणस्स को पविसेसो ? पुरतो अंतगाएणं जीवण संला वा ॥ ५ ॥ पुरतो जागति पासति एस विसेलो उ मज्झतमओ एवं तु मग्गतोही पासगतो चेन बोद्धव ॥ ६॥ अणुगामिओ उ ओही एमेसो वणितो समासेणं एलो उ अणणुगामी ओहिष्णाणं इमाऽऽहं ॥ ७॥ जह णाम कोइ पुरिसो एग महं अगणिठाण कार्ड जे तस्सेव व पेरने परिघोलण हिँडमाणो तु ॥८॥ तं चैव अगणिठाणं तस्य गतो पासती ण अण्णत्य एवं जत्पुष्पल तत्प ठितो जाण पासइवि ॥९॥ नवि जान अन्यत्यासंखमले उ जोयणे जो उ ओही तु जयगुगामी समासतो एसमनखातो ॥ ५० ॥ साहिं पसत्यएहिं सुवदमानचारिसे। उवस्वरि सुते समंततो वदए ओही ॥ १ ॥ तत्थ जहणादी तू जाव] उ उक्कोस ओहिणाणं तु ते परिणामे गाहाहिं इमं तु वच्छामि ॥ २॥ जावतिया तिसमयाहारगहमर पणजीवस ओगाहणा जहण्णा जोहीलेतं जणं तु ॥ ३ ॥ सबअगणिजीवा निरंतरं जन्तियं भरे खेतं सदिसागं परमोही खेत गिदिट्टो ॥ ४ ॥ अंगुल मावलियाणं भागमले दोतु संखेजा। अंगुलमाबलियतो आलिया अंगुल ॥ ५॥ इत्यम्मि मुहतो दिवसतो गाउयग्मि बोदशो जोयण दिवसपुहुत पक्वतो पणवीसाए ॥ ६ ॥ मरहम अदमास जंबूदरीचे व साहिजो मासो वासं तु मणुयलोए वासपुचरुयगमि ॥ ७॥ संखेजम्मि उकाले दीवसमुद्दा उ होति संखेजा कालम्मि असंखेजे दीवसमुदावि महया ॥८॥ काले च बुट्टी कालो मइयों खेबुडीए बुद्धीऍ दक्षजव मजिता खेलकाला उ ॥ ९ ॥ सुमो व होति कालो ततो मयस्यं वति खेत्तं । अंगुलीमेने जोसपिणी जो संजा ॥ ६० ॥ तिसमपहारादीनं गाहाणऽदृष्ट्वा सरूवं तु वित्परयो वा जह देहाऽऽवस्सए भणियं ॥ १ ॥ एवं तु इदमाणी ओही समासओ समस्याओ तो परिहार्य ओहाणं इर्म होति ॥ २॥ अवसठाणेहिं अपसत्येहि वमाण चारिते संकिस्समाण चित्ते समंततो हायते जोही ॥ ३ ॥ परिवयमाणो ओही अंगुलमार्ग तु संखया अंगुलमेव तं हृत्य घणू जोजणे तह व ॥ ४ ॥ जोअनसर्व सहस्सं संयमला व जान लोगे तु (तं)। पासित्ताण पडेना ओहीणानंद पडिवाती ॥ ५ ॥ से कि अपडिवात ओहिणानं तु ? जो अलोगस्स आगासपाएसं तू एगमची पासती जान ॥ ६ ॥ अस्संजाय लोए पमाणमेत्ताई टोगखंडाई जाणइ पासति यतहा खेतोही एसमखातो ॥ ७ ॥ एसो अप्पादिवादी ओही तु समासओ समखातो सर्वपेतं चहा दयादि समासतो वो ॥ ८॥ रूपी दो विसतो वोही खेचतो इमाऽऽहं अंगुल असं स्वभाग उद्योग [इ] चोच् ॥ ९॥ अखेरजाई जोगे पमाणमेसाई लोगखंडाई जागड पासति व तहा खेत्तोही एसमखातो ॥ ७० ॥ कालतो ओहिनाणी असेल भागे तु आप लीए सजणं जाणति पासति या सो उ नियमेणं ॥ १ ॥ उस्सप्पिणिओसपिणिकालमतीत अणागतं चेव उद्योग विजाणति पास या एस कालोही ॥ २॥ भावतो ओहि भावे भागं च जाणति पासति य तहा भावोही एसमस्यातो ॥ ३ ॥ ओही भवपवतियो वयोवसमियो य वणिओ दुविहो तस्स उ बहू विगप्पा दवे खेते व काल्दी ॥ ४ ॥ ते मणपजवणाणं दुहिं तु समासतो समखातं उज्जुमती चिम (उ)लमती दवादि चउविदेकं ५ ॥ दवाओं उज्जुमती तू अणतपसे जगतलंधा ऊ जाण पासति ते विवितिमिर तु विलमती ॥ ६ ॥ खेचत उज्जुमती तुहेलोगे जाच स्थणपुढची जाण पासति उपरिमले सुपपरे तु ॥ ७॥ एते वय अन्महिने विलनराएउ मुगइ पासति । सुद वितिमिस्तराए विलमती उज्जमविणो ॥ ८॥ उज्जुमती उडे ऊ जोतिसियाणं तु जाय सबुचरिं जाणइ पासह ते थिय वितिमिरसुद्धे तु विलमती ॥ ९ ॥ गिरि उज्जुमती तु उदहिदुए तह य दीव अदहिए। पंचिदियजीवाणं सण्णीपजत्तयाणं तु ॥ ८० ॥ माने मणोगहगए सहे जाणइ मणिमाणे तु तेन यनिमलवरे नितिमिसुदे तु विलमती ॥ १ ॥ [पर] विसेस तु इमो अढाइ अंगुलेहिं खेतं तु तिमि अहितं चितिमिर तुलमती ॥ २ ॥ कालतों उज्जुमती तू जहण उकोसएवि पलियस भागमसंखेजइम अतीत एस्से व फालदुए ॥ ३ ॥ जाम पास ते तू मणिजाणे सजिवाणं ते वय विलमती वितिमिरसुदे तु जाण ॥४॥ भापतों उज्जु मती अनंता मुणति पासति । सति भावाणं ते वरमगंतभागे ॥ ५॥ ते स विमती नियुतर वितिमिरे तु भावतया जाणति पासति य नहा मणपजवणाण घरभेयं ॥ ६ ॥ तं मणावा जेण विजानाति सणिजीवाणं द मणिजमाने मण माणसं मार्च ॥ ७॥ जाणति पिजणोऽपि फुडमागारेहिं माणसं भावं। एवमात भने दपगासिए अस्थे ॥ ८ ॥ मणवाणं पुण जनमणपरिचितितत्यपागडणं माणुसखेत्तविद्धं गुगपचतितं परिसक्तो ॥ ९॥ उज्जुमती लिमती जे बहती सुतंगवी धीरा। मनपज्जपणाणत्ये जाणसु यवहारसोहिकरे ॥ ९०॥ कलिले पसाओ जह होति कमेण वह इमो जीवो आवरणे शिजते विमुज्झती केवल जान ॥ १ ॥ केवल संभिरणं तू लोगमलोग तु पासती नियमावं गरि ण पासति भूर्त भई भविस्सं च ॥ २ ॥ सहि जियपदेहि, जुगवं जाणति पासई दंसणेण व गाणे पहुंची अम्भमरस वा ॥३॥ अंबरे व तो संतो १०११ जीतकल्पायं -
गुति दीपरत्नसागर
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आगम
(३८/१)
प्रत
सूत्रांक [१]
दीप अनुक्रम [3]
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"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं)
भाष्यं [ ९४ ]
मूलं [...]] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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से सर्व तु पगासती एवं उवणतो होति तं संभिण्णं तु जं वयं ॥ ४ ॥ जंच लोगमलोगं च सहतो पुत्रमादिसु स स तु जे भाषा, दवतो खेतकाली ॥५॥ भावतो व जे भाषा, जे तु पासती अभावा णत्थिताए तु. जाणती पासतीचि य ॥ ६॥ अह सङ्घदह परिणामभावविष्यत्तिकारणमणतं सासयमचाचाहं एहिं केवलणं ॥ ७॥ [सर्व यं चहा एतस्स परूवणट्टयाए तु गाहासुतं वृत्तं अत्ति जं बणितं हेहा ॥ ८ ॥ भिष्णमाहणं खलु कालतो तु सो पेप्पती तु एतेसिं। दवादीण चउन्हें परिणामो पजया जाण ॥ ९ ॥ जीवाण अजीवाण] य उपायष्यधुवत्तपजाया। परपचएण तिन्हं धम्मादीयाण परिणामो ॥ १०० ॥ गतिठितिबवगाहिं संजोगवियोगओ य सो होइ जोवइयादीयाणं परिणामो होइ भाषाणं ॥ १ ॥ एतेसिं चिय दशादियान कालो तु होति परिणामो का पति पति मुहमादिए बणादिपरिणामो ॥ २ ॥ दशादीपरिणाम सर्व जाणाति केवली अखिलं किं अवनी परिणामो एयस्त कारणं इणमो ॥ ३ ॥ बीसलपयोगि अम्मातियाण संघाण बीसमुष्यायो। पण्णरसहा पयोगो तिविहे कालम्मि परिणामो ॥ ४ ॥ जो केवली मणूसो पण सो तु बाहं करेऽण्णसत्ताणं नियमेन अणावाहं पावइ मोक्खं खविध सेस ॥ ५ ॥ जं छउत्थियणानं केवलियो ण खलु चिजए तं तु जम्हा वयोपसमिए पते छाउमत्या उ ॥ ६ ॥ भावे केवल नियमेण खाइए णि ण उ अक्लीणे मीसे खाइयभावस्त उपपत्ती ॥ ७॥ तम्हा एमहिलल केवलणाणं तु होति उवषण्णं जेणाऽऽह केवलम्मिवि छ (गु)पुणाऽणामोहता तेसि ॥ ८ ॥ आदिगरा धम्माणं चरितवरणाणदंसणसमग्गा सङ्घतगणाणेण ववहारं ववहति जिणा ॥ ९ ॥ पञ्चस्वश्वहारो इंदियणोईदिएस खातो जगमजो बहारी पारोक्खं तु इमं वोच् ॥ ११० ॥ पचकलागमसरिसो होति परोक्लोरि आगमो जस्स चंदमुहीच तु सोचि आगमनहारवं होति ॥ १ ॥ नातं आगमियंतिय एगई जस्स सो परायो। सो पारोक्लो वृद्धति तस्स पदेसा इमे होति ॥ २ ॥ पारोक्खं वज्रहारं आगमतो सुतधरा वषति चोदसदसपुत्रधरा व्यवपुत्रिय गंधहस्थी य ॥ ३ ॥ किह आगमचपहारी ?, जम्हा जीवादयों व पयस्था उपलदा तेहिं तु सोहिं नयवियाहिं ॥ ४ ॥ जह केवली विमाणति वर्ष लेतं च काल भावे च तह चलनखणमेतं सुतणाणीवी विपाणाति ॥ ५ ॥ पण मासविवदि मासिगहाणी व पणगहाणी य एगाहे पंचाई पंचाहे पेव एगाहं ॥ ६ ॥ रागोसविषहिंद हाणि वा जातु देति पञ्चाक्खी चोहसपुत्रादीवि तह गाउं देति हीणऽहिये ॥ ७ ॥ यो जगपुच्छा पचक्खनामिणो येवेऽचि कह पहुं देति भणति सुण एवं दितं वाणिएण इमं ॥ ८ ॥ जं जहमो स्वर्ण तं जाणति स्यनधानियो णिउणो घोष तु महास्थवि कासति अप्परसचि पहुं तु ॥ ९॥ अहवावि कायमणिणो सुमहाउस्सावि कागिणी मोठं पहरस तु अप्परसवि मोठं होती सतसहस्सं ॥ १२० ॥ इय मासाण बहुवि रागहोसऽपयाए पोषं तु । रागद्दोसोवचया पणगेवि जिणा बहु देति ॥ १ ॥ पञ्चकली पचलं पासति पडिसेबस्स सो भावं किह जाणति पारोक्खी नातमिणं तत्य धमएणं ॥ २ ॥ गालीपण जिणा उधार करेंति पारोक्ले जइ सो काळं जागति सुए सोहिं तहा सो तु ॥ ३ ॥ जेणं जीवाऽजीवा उबला सहभावपरिणामा तो पुढधरा सोहिं कुति सुज वदेसेणं ॥ ४ ॥ तं पुण केण कतं तू सुतणाणं जेण जीवमादीया कति सहभाषा ? केवलणाची तंतु कतं ॥ ५ ॥ संतेवि आगमम्मी जाहे आलोतियं तु ते भये सम् माऽऽलोएती पडिकजति सारियो जया ॥ ६ ॥ तो तस्स उपच्छिलं जेण विमुज्झति तगं पयच्छति आगम चबहारी उत्रिहोति पठिउंचिएँ न देति ॥ ७॥ आलोतियपडित होती आलोयणा तु नियमेणं अगलोइयम् भवणा कि पुर्ण भरणा भवति तस्स ॥ ८॥ आलोयणापरिणतो अंतर काल करे अभि(वि) मुझे वा अहवावी आयरिओ एमेव य होति संपतो ॥ ९ ॥ जा राहओ तु नहवी जं सम्मालोयणापरिणतो तु। नाराति अपरिणयो एवं भगणा भवति एसा ॥१३०॥ अवराहं विद्याणति, तस्स सोहिं व जदची तहाऽऽऽलोयणा वृत्ता आलो बहुगुणा ॥ १ ॥ दशेहिं पचेहि कमलेले कालभावपरिसुद्धं जालोयण मुणिता तो वहारं पठति ॥ २ ॥ दुबे सवितादी व दहा यह विगप्पेहिं पुापुविमादी कमओ एवं तु आए ॥ ३ ॥ अदा जणवा खेकाले सुभिक्ख दुम्भिक्ते भावे गिलाणे सेविय जह तं तालोए ॥ ४॥ अह्वा सहसऽण्णाणा भीएण व पेडिएण व परेहिं बसणेण प्रमाण व मूद्रेण व रामदोसेहि ॥ ५ ॥ पुषं पासिणं छूढे पायम्मि जं पुणो पासे ण व तरति जियते पायं सहसाकरणमेयं ॥ ६॥ अष्णतरपमाए असंपत्तस्सऽणोषउत्तस्स । इरियाइस भूतत्थे अतो एतदणाणं ॥ ७ ॥ भीओ पलायमाणो अभियोगभएण वावि जं कुजा पढितो व अपडितो वा पहिला पेडिओ पाणे ॥ ८ ॥ गीतादि होति च पंवि तुमने पमादो उ। मिच्छतभाषणातू मोहो वह रागदोसा ऊ ॥ ९ ॥ एतेसि ठाणाणं अण्णय कारणे समुप्पण्णे तो आगमीमंस करेंति अन्तान भएणं ॥ १४० ॥ जदि आगमो य आलोयणा य दोणिवि सम तु निवति एसा खलु वीमंसा जो अ सह जेण वा सुज्झे ॥ १ ॥ नाणमाईणि अण्णा (ता) णि, जेण अत्थे (तो) उसो भये रागहोसप्पीणे वा जे पा चिसोहिए ॥ २ ॥ सुतं अन्ये उभयं आलोयण आगमो इती उभयं जंतं उभयंति वृतं तत्येसा होति परिभासा ॥ ३ ॥ पडिसेवणालियारे जदि नाउ जहरू सच्चे न देती पि आगमवहारिणो तस्स ॥४॥ पडिलेवणातियार जदि आउछ जहकर्म सके। देति तच पच्छितं आगमनवहारिणो तस्स ॥५॥ कहि स जो पुनो, जानमाणोषि गृहनि तस्स (२५३) १०१२ जीतभाये
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आगम
(३८/१)
प्रत
सूत्रांक
[१]
दीप
अनुक्रम [3]
"जीतकल्प”
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- छेदसूत्र -५/१ (मूलं)
मूलं [...]]
आष्यं [१४६]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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देति पछि बेन्ति अण्णत्य सोय ॥ ६ ॥ ण संभरति जो दोसे, सम्भावा ण व मायया पचक्ली साइए ते उ. माइणो उण साहई ॥ ७॥ जति आगमो व आलोयणा य दोणिवि सण त्रिपाई हुदैति उपच्छिलं आगमववहारिणो तम्स ॥ ८ ॥ जति आगमो य आलोयणा य दोष्णिवि समं विताई दिति ततो पच्छिलं जागमववहारिणो तस्स ॥ ९ ॥ को पुर्ण पायच्छिदाय अणरिहो व अरिहो वा ? भष्णइ इणमो पुणसू अरिहो जो वा अणरिहो उ ॥ १५०॥ अङ्गारसहि ठाणेहिं जो होतिऽपरिणिडिओ नलमल्यो तारिखो होति, हारं वदनि ॥ १ ॥ अहारसहि ठाणेहि, जो होति सुपरिद्वितो अलमत्यो तारिखो होति वपहारं क्वहरितए ॥२॥ अहारसहि ठाणेहि जो होइ अपतिद्वितो नऽलमत्यो तारिखो होति वचहा वहतिए ॥ ३॥ अङ्गारसहि ठाणेहिं जो होति सुपतिड़ितो अलमत्यो तारिलो होइ, पत्रहारं वहतिए । ४ वयछक कायक, अकल्पो गिहिभायणं । पलिक(गोयर ) णिसिज व्हाणे, मूसा अहार ठाणेते ॥ ५॥ परिविडियो परिणाया पतिड़ितो जो डिओ उ तेसु हुने अनि सोहि ण पाणति अहितो पुण अण्णा कुता ॥ ६ ॥ बत्तीस तु हिजो होइऽपरिणिडितो मत्था तारिसी होइ पवहार वलिए॥ ७॥ बत्तीसाए तु ठाणेहिं जो होनि परिणिद्वितो अलमत्यो तारिखो होति, बवहारं बबरिनए ॥ ८ ॥ बत्तीसाए उ ठाणेहिं, जो होति अपट्टितो मत्यो तारिसी होति वच्हारं वहरिए ॥ ९॥ बत्तीसाए तु ठाणेहिं जो होति सुपतिडितो अलमल्यो तारसो होति, वत्रद्वार वरिन ।। १६०॥ अडविहा गणिसंपय एकेका चउचिहाउ बोदवा एसा खलु बत्तीसा ते खलु ठाणा इमे हाँति ॥ १॥ आधार मुय सरीरे वयणे वायण मती पतोगमती । एने संपया अमिया संगपरिणा ॥ २॥ एसा अडविहाल एकेकाए चडब्बो मेदो इणमो उ समासेणं वोच्छामी आणुपुथ्वीए ३॥ आयारसंपयाए संजमधुवजोग जुन्या पदमा वितिय असंयाहिया जणिययचित्ती भरे ततिया ॥ ४ ॥ तत्तो य वुडसीले आधारे संपया चउदेसा चरणमिह संजमो तू तहियं शिवं तु उपउत्तो ॥ ५ ॥ आयरिओ अ] स्यनत्र सिजमाइएहि व मदेहिं जो होति अणुस्सितो सो तु असंपाहीउति ॥ ६ ॥ अणिययचारी अणियतविली अग्रिहो य होति जो अणिसोयिसहायच गावोइडसीलोनि ॥ ७॥ बहुत परिजितसुते विचित्तमुत्ते य होति बोद्ध घोसविशुद्धिकरे या चउहा सुतसंपदा होति ॥ ८॥ बहुत जुगप्पहाणे अभ्यंतर बाहिरं च जाणे होति चहाणा चारिपी सुचयं तु ॥ ९ ॥ सगणामं व परिजितं उकमकमयो बहुवि कमेहिं ससमयपरसमएहि उस्सग्गऽववातयोविवि(जितं ॥ १७० ॥ पोसा उदानमादी हि पितुपोपरिद्धं एसा सुतोत्रसंपय सरीरसंपयमतो बोच्छे ॥१॥ आरोहपरीणाहो तह य अणोत्तपया सरीरस्स परिपुष्णिदियमाय संघतणथिरे व बोदो ॥ २॥ आरोहो दिप विभो होति नितिया (पिलया) चेत्र आरोहपरिणाहो य संपया एस नादव्या ॥ ३ ॥ तपु लजाए धातु अणिजो अहीणसव्वंगो होति गोपख अि कहंदी] तु परिपुष्णो ॥ ४॥ पदमादीसंघयणो बन्दियसरी थिरो मुजे एसा सरीरसंपय एतो वयणम्मियोच्छामि ॥ ५॥ आएन महवयणे अणिसियत्रयणे नहा असंदिदे ।' आदिन को अत्यवगार्ट भने महरं ॥ ६ ॥ अहवा अफरसचयणो खीरासदलदिमादिजुतो वा जहवा सूसरम्हगगंभीरजुओ महत्वको ॥ ७॥ णिम्सिओं को हादीहिं रामोसेहि वाजं पय होति अणिस्तियवयणो जो पयती एयवहरितं ॥ ८॥ [असं] अडतं अत्यमहुता व होति संदिद्धं विवरीयमसंदिदं वयणेसा संपदा चहा ॥ ९ ॥ वायणभेदा चतुरो
सिमा समुहसणओ व परिणित्रिया बाए जिवणा चेव अत्यस्स ॥ १८० ॥ तेन गुणेणं तू वायच्या परिक्लितुं सीसा उदिसई विजिणे जे जस्स तु जोग तं तम्स ॥ १ ॥ अपरीणामगमादी वियाणिमभाषणे ण वाएति जह आममहियपडे अंबे व नए खीरं ॥ २॥ जदि छुम्मई विणस्सति णस्सति वा एवमपरिणामादी गोहिस्से छेद समुखियाऽचि तं चेत्र ॥ ३ ॥ परिविविया बाए जत्तियमेतं तु तरति तुपे जागवितेणं परिजिएं ताहृष्ण उद्दिसति ॥४॥ जियो अन्यस्सा जो उपजाति अत्यो गुत्तस्स । अत्येविहित अत्यपि कति जं भणितं ॥ ५ ॥ महसंपय चडभेदा उग्गह ईहा अवाय धारणया उमाहमति उम्मेता तत्य इमे होति उम्मेया ॥ ६ ॥ विखप्य वा मिस्सित तह य होयऽसंदिदं जोगिण्हति एपीहा अवायमिति धारणा चैव ॥ ७॥ परवाइण सिस्सेण व उच्चारितमेतमेव ओगिन्दे तं विप्पं बहु पुर्ण पंचछवसन यसता ॥ ८ ॥ बहुविऽपचारं लिहति पहारए गणेऽचिय अक्वाणगं कहेति इ सहसमूहं वऽणेगविहं ॥ ९ ॥ णवि विस्सरइ पुर्व तं अनिस्सियं ण पोत्यए लिहिन अणुभासिय हति निस्संकित होअसंदिदं ॥ १९०॥ उग्गहियस्स तु ईहा ईहिए पच्छा अनंतर अचायो अबगते पच्छा धारण ईय विलेसो इमो नवरे ॥ १॥ बहु बहुवि पोराणं दुद्धरति नहव असंदिदं । पोराण पुरा वजितं दुदर गयभंगविला ॥२॥ एतो उपयोगमती पबिदा होति आणुपुडीए आय पुरिसं च तं वत्पुपि पतंजए वातं ॥ ३॥ जाणति पयोग मिसजो वाही जे णाऽऽउरस्स छिनति । इय वाज व कहा वा जियसत्ती गाउ कातव्या ॥ ४॥ पुरिसं उदासगाई अवावी जाणगाइयं पुरिसं पुष्षां तु गयेऊन ताई बाओ पाउलो ॥५॥ नं १०१३ जीनभायं -
मुनि दीपरजसागर
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आगम
(३८/१)
प्रत
सूत्रांक [१]
दीप
अनुक्रम [3]
"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं)
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मूलं [...]]
आष्यं [१९६]
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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मालमाई अवा वा साहुमाचियं जं तु जाऊन तहा विहिना बाजो हु तहिं पठत्सब्वो ॥ ६ ॥ वत्युं पुन परचाई बहुजागमिओ न मावि नाऊणं राया व राममबो दारुणभहस्तभावो या ॥ ७ ॥ एसा उपयोगमई एसो मोच्छामि संग्रहपरिष्वं साथि य चव्विगप्पा तीय विभागो इमो होइ ॥ ८॥ बहुजनजोगं पे खेतं वह पीढफलयोगव्हे। बासागु एते दो काले य समाणए काले ॥ ९ ॥ पूए अहागुरुपिय पडत्य एसा उ संग परिष्मा एसो एकेकीय व इमा विमासा मुणेयच्या ॥ २०० ॥ वासे बहुजनजोगं विस्थिन्णं जं तु पायो मां । पडिले बालदुम्बलगिलाणमादेशमादीनं ॥ १ ॥ सेसे बस व गहिसा वाहे गच्छति ते अन्त्य पीढफलगहने व उ महलती निसिजारी ॥ २ ॥ वासामु बिसेसेणं अ कालं तु गमयअन्त्य । पाणा सीयलकुंयादिजा यतो गहण वासासु ॥ ३ ॥ जं जन्म होति काले काय ते समान तम्मि सज्झायपेह उबही उप्पायनमिक्त्वमावी तु ॥ ४ ॥ अहगुरु जे पावित्र तु जस्स व अहीत पासम्मि अहा अहागुरुल हवंति रातिनियतस्था ॥ ५ ॥ तेर्सि अम्मुडाणं दण्डा तह व होति आयारे। उवहीच्हणं विस्तामणं च संपूणा एसा ॥ ६ ॥ एसा खलु बत्तीसा जाणति जो सो पतिद्वितो एवं पहारे अलमत्यो अहयादि मये इमेहिं तु ॥ ७॥ छत्तीसाए तु ठानेहिं, जो होयऽपरिमिडिओ मलमस्यो तारिलो होति ॥ ८॥ छतीसाए उठाई जो होति अपतिडितो मलमत्यो तारिखो होति बचहारं वचहरिए ॥ ९ ॥ छत्तीसाए उ ठाणेहिं जो हो परिणिहितो जलमत्यो तारिखो होति, बहारं वहति ॥ २९० ॥ छत्तीसाए उ ठाणेहिं जो होइ सुपहडिओ अलमत्यो वारितो होति बबहारं महलिए॥ १॥ जा होती बत्तीसा सम्मी छो विजयपडित चतुमे तो होती छत्तीसा एस ठाणाणं ॥ २ ॥ बत्तीस वणिय थिय वोच्छे उमेय पिडिवलि जायरिथतेवासी जडू विमता मये गिरिणो ॥ ३॥ आधारे सुल विए विविणे व होति बोदडो दोसस्स य निग्धाओ विजए चउस पविती ॥ ४ ॥ जायारे विषय व चविहो होति जानुपुत्रीए संजमसामापारी तवे व गणिविहरणा ये ॥ ५ ॥ विहारे या सामायारी य एस चहा तु एते तु विमार्ग वोच्छामि जहानुपुत्री ॥ ६ ॥ संयममायरा सतं परं च गाइड संजम नियमा। सीयंतथिरीकरणं तचरणं उप ॥ ७ ॥ सो सतरसो ढालियाण पट्टपरियाषणोदवणं परिहरिय नियमा संजमया एस बोद्धया ॥ ८ ॥ पहले ये पोसहेतुं कारेति तर्ष सतं करोतिऽचिय। मिक्लायरियाय ता निर्युजति परं सर्व पाषि ॥ ९॥ सम्यम्मि बारसविहे निजति परं सतं उज्जमति गमलामायारीए गणं दिसीयंत चोएति ॥ २२० ॥ पडिले पक्लोटणालगिलानाइवेय सीठा (छाती जुतो तु एए ॥१॥ एगविहारावी पडिमा पडिए सतं पणं पडिका एवं अप्पा परं च विणएति ॥ २ ॥ जायारविनय एसो जरूर्मपणजो समासेणं एतो उ सुतविजयं जहानुपुच्चि पथक्खामि ॥ ३॥ सुतं अत्यंत हितकर मिस्लेसणं च पाए। एसो चउनिहो ल सुतविणतो होति पायच्यो ॥ ४॥ सुतं गाति जुलो अत्यं च सुनाए पयतेनं जं जस्स होति जोग्यं परिणामममादितं तुहियं ॥ ५ ॥ निस्सेसमपरिसे जाब समतं तु ताय पाएति। एसो सुनियो खलु यो विषवणावियं ॥ ६ ॥ अहिं दिख विहं साहमियत्तचिणं तथम्म ठाव घम्मे तत्सेव हित अम्मु ॥ ७ ॥ विष्वाणाभावमिति विवरण' चिलिनु परसमया ससमने गमभष्मे अद्विधम्मं तुदिता ॥ ८॥ धम्म सहायो सम्महंस जेन पुति म उ लई सो होगा विपुण्यमिव ॥ ९ ॥ जह मायरं व पियरंमिच्छापि गा सम्म विद्धं पुष्यं सावग साहम्मि करे पचाये ॥ २३० ॥ धम्मो धम्मो परितम्माओं इंसनाओं या संठावेति तर्हि चिय पुणोषि धम्मे जहि ॥ १ ॥ तस्सली तस्सेव ऊ मिस्स हेतु बारेऽसादी मिह स हिता ॥ २॥ लोए या हितं तं वर्म मुनेत विरसेयस मोक्लो तु अनुगामनुगच्छए जं तु ॥ ३ ॥ विश्लेषणचिणएसो जमे बणितो समासेणं एतो तु परस्वामी विषय दोसान जिन्याते ॥ ४॥ दोसा कसायमाई बंधो अहयादि जट्ट पथडीजो। निययं वयं वा पाय विनासो य एगट्टा ॥५॥ रुट्ठस्स को विणण साय दोसविनय जंतु कंलियकंतु जायननिहाल उसा ॥ ६ ॥ सीयपरम्मिन दाई मंजुललो वजह व उरगविसं टुस्स तहा कोई पविजेती उपसमेतिति ॥ ७॥ दुट्टो कसायविसयाइएहि मामपय (जेम) माडो या तस्स परिने दोतं मासपर पसर वति ॥ ८॥ कंवा उ मलपाणे परसमए अहब कंल एमाई। तस्स पविणे केलं संलडि अन् य देसेणं ॥ ९ ॥ परगाइमाइए तु अहिंसमक्लो अस्थि जा कला उकारनेहिं विजय जह होइ किलो ॥ २४०॥ जो एएस ण वह कोई (कमिषि) दोसे तब खाए सो होति सुप्यनिहिजो सोमणपरिणामत्तो वा ॥ १ ॥ छत्तीलेयाणि ठाणाणि भणितात जो कुसको एहिं तो वहा समस्यातो ॥ २॥ अङ्कद्दि अट्टारसहि यदसहिय ठाणेहिं जे अपारोक्सा जालोयनदोसेहिं उद्दि व अपारोक्स विन्नेया ॥ ३ ॥ आलोयणागुणेहिं छहिं य ठाणेहिं जे अपारोक्खा । पंचाहि य नियंठेहिं पंचहि य चरितमहिं ॥४॥ अट्ठायारवमादी वयछकादी हति बरस इसविपायच्छिते जालोयणमादिए देव ॥ ५ ॥ जालोनोसेहिं आकंपनमाविहि १०१४ जीतकल्पभाष्यं - मुनि दीपरलसागर
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आगम
(३८/१)
प्रत
सूत्रांक
[१]
दीप
अनुक्रम [3]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित
"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं)
आष्यं [२४६]
मूलं [...]]
आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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बसहिं तु । उहिं काहिं एहि व दसहिं पाइलोयण गुणेहिं ॥ ६ ॥ आयार विषयगुण कप्पदीवमा अससोहि उजुमानो अजय मदद अपन तुट्टी पहायकरणं च ॥ ७॥ मिच्छत्ततावारे पढमं जालोयणा तहिं पढमं विषयो विनासणंति व मायाए विनयगुणेो ॥ ८॥ चारित कप्पों नियमा निरतिपारित बिगडिये सो य दीषिय पमासिउत्तिय पासितो वएगा ॥ ९॥ अतियारपंकपंकंकितो य आया विलोहिओ होति आलोइए य आया उजुमाने ठाविओो होइ ॥ २५० ॥ अजवभावे अजय सर्व चियालोइए जो होइ म वेणं पुण अमाण होऊन जालोए ॥ १ ॥ अतियारगुरुमणं तालोविए लड्डू होत दोहंतीय तुडी अतियारुहो प पव्हाणो ॥ २ ॥ जालोयणागुणेसू जे ऊ एवं हवंतऽपारोक्खा । छाणयपदिएहिं छह चैव य जे अपारोक्खा ॥ ३॥ संखादीया ठाणा उहि ठाणेहिं पहियाण ठाणानं जे संजया सरागा एगे ठाणे गियरागा ॥४॥ एआगमचवहारी पण्णत्ता रागदोसाणीहूया आणाएँ जिर्णिदाणं जे वमहारं वहति ॥ ५॥ इय भनिए चोएती से वोच्छिन्मा हू संपदं इइई तेसु य बोच्छिन्ने गस्थि विसुद्ध चरितस्स ॥ ६ ॥ चोदपुष्धराणं योच्छेदो केवलीण वोच्छेदो केसिंचिय आदेसो पायच्छिपि वच्छिन्नं ॥ ७॥ जं जतिएण सुज्झति पावं तस्स तह देखि पच्छिलं जिन चोदतपुण्यधरातविरीता हिच्छाए ॥ ८ ॥ पारगमपारर्ग वा जाणते जस्स जं च करणिनं देति तहा पञ्चक्सी पुणक्खरसमो तु पारोक्खी ॥ ९॥ जा य ऊणाहिए कुत्ता, सुते मग्गचिराणा ग सुज्झे तीइ बेंतो उ, असूयो कंच सोहए? ॥ २६० ॥ ताविण दीसती मासच उम्मासियाओं सोहीओ कुणमानाविय सोहि न पासिमो जो व सिं देना ॥ १ ॥ सोहीए य अभावे देताण करेंतगान अभावे यति संपतिकाले तिल्यं सम्मत्तणाहिं ॥ २॥ विगा य व संती महपुरियाणं तु तेसिं बोच्छेते तव्हा संपयकाले गरिव विशुद्धी सुविहियाणं ॥ ३ ॥ एवं तु चोतियम्मी आपरिओ भगति ण हु तुमे गातं च्छित्तं कहितं तु किं धरती किं १ ॥४॥ अत्यं पहुंच सुतं नातं तु किंचि आमसति अत्योषि कोवि सुतं अणागतं चेद आमसति ॥ ५ ॥ सध्यं चिय पच्छिलं पचनस्वाणस्स ततियवत्थुमि तत्तो विच मिज्जूढं कप्प पकप्पो व बहारो ॥ ६ ॥ तानि परंती अजवि तेसु घरते कह तुमं भणसि बोछणं पच्छिलं? तत्य इमा तू परूषणया ॥ ७ ॥ सपदपरूवण अणुसजणा व इस चोइस दुप्पसहे अस्थि न दीसति धनिए न दिया तित्यं जिव ॥ ८ ॥ पण्णवमस्तु सप पछि पोययस्स तमणि। तं संपयपि विजति जहा तहा मे जिसामेहि ॥९॥ भुजति चकी मोए पासाए सिप्पित्यमणिम्मविए तं रावीणं असिच्छा समुप्पण्णा ॥ २७० ॥ अम्हे कारेमो पा साए एरिसेति इति तेहिं चित्तकरा पेसरिया गिउणं लिहिऊण आनेह ॥ १ ॥ पासादस् य नेमण हारितं तेहिं चितकारेहिं लीलविणं यरिं आगारो होति सो चेव ॥ २ ॥ जह कवादिविसेसा परिहीणा हाँति पागलजणस्स ण य ते ण हाँति नेहा भुजंति य तेसु ते भोगे ॥ ३ ॥ एमेव य पारोक्खी तदाऽणुरूपं तु सोच्य ववहरति । किं पुष्णवति? पायच्छि इमं दसहा ॥ ४ ॥ आलोयण पडिकमणे मीस वियेगे तहा वियोसम्मे। तब छेद मूल अणवया व पारंचिए चैव ॥ ५ ॥ एतुवरिं मणिहिती सवित्रेण तु आपृथ्वी एवं पुण जह धरतीजं जत्था से चिमाहं ॥६॥ दहा अनुसती जा चोहसपुष्यि पढमसंघत तेणारेणऽहनि तित्यंतिम जाप दुप्पसहो ॥ ७॥ तमिकालगाए तित्यं परिसंच योच्छीति ॥ दो तु छणे पोहलपुष्यातिमे य संघयणे तवपारंचऽथवा णचदस पछि पोच्छिन्ना ॥८॥ सेर्स अमति जातित्यं णव इसे य लिंगादी चोदे तंपि न दीसदि एष भगत गुरु भगति ॥ ९ ॥ दोस तु वो अविहं तया करता यणय केयी दीसंती एवं मतस्स चतुगुरुणा ॥ २८० ॥ दो तुच्छ अविहं देतया करेंता य। पच बसंती जहा वहा मे णिसामेहि ॥ १ ॥ पंच नियंतामणिया पुलाग बउला कुसील निम्मंठा तह य सियाओ तेस पछि जहकमं वोच्छं ॥ २॥ आलोयण पडिकमणे मीस विषेगे हा बिजोसम्म तत्तो व तो वे पछि लागे उडप्येते ॥ ३ ॥ उसपडिशेवगाणं पायच्छित्ता इति सोऽपि राम मये कप्पे जिनकप्पे अट्टहा होति ॥ ४॥ आलोयणा विवेगो वा, णियंटस् दुषे भवे। विवेगो व सिणायरस, एमेचा पडिवत्तीओ ॥ ५ ॥ पंचेन संजया खलु नायसुरण कहता जिणवरेण सामाजवादी पछि लेखि गुच्छामि ॥ ६ ॥ सामाइसजताणं पश्छित्ता छेयमूलरहियऽद्ध बेराण जिवाणं पुण तत्वगंत उच्च होति ॥ ७ ॥ दोषद्वावणिए पायच्छित्ता इति सचेऽवि बेराण जिनानं पुण मूलत अहा होति ॥ ८ ॥ परिहारचिडीए मूलता अह होति परिछत्ता पेराण जिगाणं पुण छहिमेतं चिप सर्वतं ॥ ९ ॥ आलोयणा विवेगे च तलियं तु विजाई सुमम्मि संपराए, अहम्लाए प ॥ २९० ॥ बउसपडिलेवया खलु इतिरि छेदा में संजता दोणि । जा तित्यं अनुसांति अस्थि हु तेनं तु पच्छिलं ॥ १ ॥ जदि अस्थि न दीसती के करता ३१ मण्णती सुण दीसंतु उपाए कुता तरिथमं नातं ॥ २ ॥ जह पणियो सावेक्खो जिरवेक्खो येो दुहितु धारनग संतरिम संविभयो यसो दुविहो ॥३॥ संतमियो तु जब मग्मिता देति स जो पुण असंतचिभयो तस्स विसेसो इमो होति ॥ ४॥ निरयेक्लो तिमि चयती असाच धनं च तव धारमयं सावेक्लो पुन रमलति अम्मान धर्म च धारण ॥ ५ ॥ १०१५ जीतकल्पमाये
मुनि दीपनसागर
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आगम
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“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [१...] ------------- ---------------- भाष्यं [२९६] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
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सूत्रांक
जोत असतविमचो बन्म घेण पडा पावेनासो अप्पाम पर्णपिय धारण चेष मासेवि ॥६॥ जो पुष सहती काले सो अन्य यति सति यतयाण किलिम्सा य सनपी एच उवामओ तु सत्य ॥आ जो तु घरेज अपह, असंतविभवो सतं । कुलमानोय कम्मं तु. मिबिसे करिसावर्ण ॥८॥ अचमप्मेण कालेणं, सो नगं तु विमोयए। रितसो मणितो, अत्योरणयो इमो तस्म ॥९॥ संतविमहिला चिनिसंपवणेहि जे उ संपण्या। ते आपल्या सर्व वहति गिरणग्गाहं धीरा ॥३०० ॥ संघयणधितीहीणा असेनविभवेहि होति तुण्डा लु। मिरवेक्सो मवि नेसि देति तयो ने ण सुजमंति॥१॥ते नेण परिवत्ता गिविवेगंतु काउ बर्चति। तिरयुच्छेदो एवं अप्पापिय पत्तणमो उ॥२॥ उद्देशु पलाणा पच्छा एगाणियो नयो होति। ताहे कितुकरेतू? एवं अप्पा परिवत्तो ॥३॥ साविक्खों पक्यणम्मी अणवत्यपर्सगवारणाकुसलो। बारित्तरकवणवा अमोच्छित्तीय तु विमुझे ॥ ४॥ कडाणगमावणे अवरले जहकमेण कार्ड जे। इस कारनि पत्ये सबिउणायंबिल्लतवे य॥५॥ एखासण पुरिमड्ढा णिविगती व विगुणविगुणाओ। पत्तेयासहुदाणं कारंति व सणिणगासंति ॥६॥ पउनिगगयााणा एर्ग कडागर्ग चकारिति। जं जो उतरति तं तस्स पैति असहुस्स झोसेति ॥७॥ एवं सदयं विजति जेणं सो संजमे घिरो होति। ण प सबहा ग दिजा अणवस्थपसंगहोसाओ॥८॥ तिलहारगदिष्टंनो पर्सगरोसेण जह वह पतो। जमणीय यणम्य पत्ता अणिवारयन्ती तु॥९॥णिमस्थणाइ वितियाएं वारिओ जीविआदिआभागी। व य भगवादी पत्ता जगणी य अबराई॥३१॥अणिवारियदोसा संसार तुक्खसागरमुति। विणियत्तपर्सगा पुण करेंनि संसारचोच्छेद ॥१॥ एवं करेंनि सोही देन्त करंताधि एवं वीसति। पिय दसणणाणेहि जाति तित्यति तं सुणम् ॥ २॥ एवं तु भर्णतेणं सेणियमादीवि याचिया समणा । समणस्स उ मुलम्मी णत्थी गरएमु उपवानो ॥३॥ जंपिय र एकवीस वाससहस्साई होहिती नित्या तं मिच्छा सिद्धी वा सव्वागतीसुपि होनाहि ॥४॥ अण्णं चइमो दोसो पन्छिताभावतो तुपा । जहनवि चिट्ठति चरणं नत्य इमं गाहमाहस ॥५॥ पायझिने असंतम्मि, चरिनपि ण चिट्ठति। परित्तम्मि असंतमि, तित्ये गो सचरितया ॥ ६॥ अचरिनयाए तिथे, शार्णपि ण गच्छती। णेबाणम्मि असतम्मि, सबा दिक्सा णिर. स्थिया ॥७॥ विणा नित्यं णियंठेहि. णियंठा व अतिस्थगा। कायसंजमो जाव, ताथ दुष्हाणुसजणा ॥८॥ सत्रमूहि परुपिय सकाय महाया यसमितीजो। सबेव य पणवणा संपयकालम्मि लाहुर्ण ॥९॥तं जो बचा तित्य इसणणाणेहिं एक सितु। णिजमा नोमिाण्णा जंपिय मणि तुणतहा ॥३२०॥ सुण जह णिजगत्थी दीसनि जहा य णितविनंताबा मिहा मिजमा अत्ताण परे यबोबा ॥ १ ॥ पाओवगमे इगिणि दुविहा सल होति आवणिजवगा। णिजवणा व परेण व मतपरिणाएं बोवा ॥२॥ पाओधगम इंगिणि दोषिणवि थिईत ताव मरणा। मत्तपरिषणाएं विहिं बोच्छामि जहाणुपुबीए॥३॥ पबजादी का या नाच जावडयोभिउनी। पंच जुळेनुण यसो भनपरिणणं परिणयो य
॥४॥ सपरकमे य अपरकमे य बाधाय आणखीय । सुत्तधजाणएणं समाहिमरणं तु कालत्रं ॥५॥ मिक्सुवियारसमयी जो अण्णगणं तु गनु पाएनि । एस सपरकमो सल तविषमरीओ भये इयरो ॥६॥ एते विहं मित्राचार्य नहेच वापार्या बापानोविय दुपिहो कालाइधरो। इयरो ॥७॥ सपरकम नुतहिय णिशाचायं तहेच वापातं । वोडामि समासणं
उप(उन्थि) अपरकम रविहं ॥ दाने पुण अणुगेन वारेहि इमेहि आणुपुधीए। गणिसिरणाइएहि मेसि विभाग तु बोयामि ॥९॥ गणणिसिरणा परगणा सिनिसलेहा अगीय भासविणे। एगा भोगण अन्यो अणपुच्छ परिभा आलोए ॥३३॥ ताण बसही पसत्ये शिजवगा दादायणा चरिमे। हाणि परितन गिजर संचारुमतणादीणि ॥१॥ सारेऊण य कार्य । मित्राधाएण पिंधकरणं चा वाघाए जयणा या भत्तपरिणाय कायया ॥२॥ गणणिसिरणम्मि उ विही जो कप्पे पण्णितो उसनविहो। सो पेव मिरवसेसो मनपरिणाएं हपि ॥३॥ अभिणमणिमि इत्तरियपि मिसिरितु गणं तु सो वाहे (पिसिरितु गणं वीरो गंतृण य परगणं तु सो ताहे)। कुणति दापसायो भनपरिणं परिणयो य ॥४॥ किं कारण अबकमणं
राणाहनयोकिलेता ? अम्भुनयम्मि मरणे कालुणिया मा(काल्पनिउत्ता)णचापातो ॥ सगणे आणाहाणी अग्पत्तिय होति एवमादीहि । परगणे गुरुकुलवासी अप्पनियनितो होति SIR६॥ उक्मरणगणनिमित्तं तनुमाही दिस्सवादिगणभेदो बालादी घेराभव उचियाकरणम्मि वाचावो । आसिणेहो पेलये होती, णिग्गए उभयसचि। आइच पावि वाघाए, णो से होड
विउम्भभो ॥८॥दयसिती भापसिती एव्यसिती होड दारणिस्सेणी। भावसिति संजमो जातीय विभंगा इमे होति ॥५॥ संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठितीविससाणं । उपसिधापरकर भावसिनी केवल जाच ॥ ३४०॥ भावसितीअहिगारो चिमुरभावेण तत्य ठातना गहुउदगमणकजे हेद्विाप पसंसति ॥१॥ सलेहला उतिविहा जहण्ण मज्मा नहेत उकोसा। उस्मासा बरिस वा बारस परिसा जहाकमसो ॥२॥चितु जहष्ण मज्झा उकोसं तत्व नाव बोच्छामि। ज संलिहिऊण मुणी साहनी अपणो अई ॥३॥ चत्तारि विचित्नाई विगतीणिनुहिया चत्तारिश दोसुबउत्थायाम अविगिट्ट चिगिट्ट कोटेक ॥४॥ संवन्टराई चउरो त विचिनं चउत्यमादीयं। काऊण सव्वगुणित पारेती उम्गमपिमुवं ॥५॥ पुणरवि चउरष्णा तु विचित काऊण विगतिवर्जन।पारेति सो महप्पा णि पणियं च बजे ॥६॥ अण्णा दोणि समाओ पाउल्य काऊण पारे आयाम। जीएणं तुलयो अण्णे (२५४) १०१६ जीतकल्पभाय -
मुनि दीपरजसागर
अनुक्रम
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आगम
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“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [१...] ------------- ---------------- भाष्यं [३४७] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत
सूत्रांक
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कसम हा कार्डातत्येक सम्मासं चतुत्य ईकार्ड पारेति। आयामेणं णियमा चितिए उम्मासिए चिगिह ॥८॥जाम रसम वासस कार्ड पारे तमेव आचामा अन्योकहायणं तू कोडीसहितं तु काऊ ॥९॥ आयामचडत्यादी काऊण अपारिए पूणो अण्णं । जे कुणयायामादीतं मन्नति कोडिसहित तु॥३५॥ जाषित उसिणोएण पारें हावतो आणुपुरीए। जह दीयतेजपत्तीखो समं तहसरीरायं ॥१॥ बारसमम्मि य परिसे जे मासा उचरिमा उचत्तारि। पारणए लेसित एकतर कर्मचारे ॥२॥ तस्स उ गंडसं जीसहूं जाच खेलसंपुनो।तो णिसिरे खेलमत्ते(से)कि कारण ! मातभरणं तु॥३॥ लुक्सत्ता मुहर्जत मा हुसहेजति तेण धारे । माहुणमोकारस्सा अपचलो सोहोजाहि ॥४॥ उकोसिया तु एसा सलेहा मजिसमा जहण्णा या संयमा छम्मासा एमेष य मासपाखेहिं ॥५॥ एतो एगतरेणं सलेह सवेतु अप्पा कुजा भत्तपरिण मिणि पाओषगम च॥६॥ अग्गीयसगासम्मी मत्तपरिणं तु जो करेजाहि। बउगुरुगा तस्स मवेकिकारण? जेणिमे दोसा आमासेई जगीयत्यो पारंग सबलोगसारंग। गडम्मि पचाउरंगे णमुलभ होति पाउरंग ॥८॥ कि पुणले चाउरंग जगई राह पुगो होति। माणसं धम्मसुती सदा वह संजमे पिरियं ॥९॥ किह गासेति अगीतो पढमविविएहि अहिजो सो उ। ओमासे कालियाए तो निम्मोत्ति दहेजा ॥३६०॥अंतो वा बाहि वा दिया परातो बसो विचित्तोतु। अदुहवसही पडिगमणादीणि कुजाहि॥१॥ मरिऊन माणा गच्छेज तिरिय वणसुरेसं वा। समरिऊण य र परिणीयन करेजाहि ॥२॥ अहवाचि सारीए मोयं देजाहिजायमाणस्त । सो इंडियादि होजा हो साहे जिवाण ॥३॥ कुल्ला कुलाविपत्यार सोस वा कट्ठो नुगच्छ मिच्छन। तप्पचयं तु दीह भमेज संसारकतारं ॥४॥सो दिवो व चिमिचितो संचिग्गेहिं तु अण्णासाहुहि । आखासियमणुसट्ठी मरणबद्ध पुणोधि पडिवणो ॥५॥ एए अण्णे य बहु नहियं दोसा सपचवाया या एएहि कारणेहि अमीय ग कप्पति परिण्णा ॥६॥ सम्हा पंच व उस्सल वावि जोयणसते समहिए वा। गीचत्यपायमूलं परिमग्गेजा अप-5 रिलतो ॥७॥एकब दो व तिमिवउकोस बारसेव वासाई। गीयत्यपायमूलं परिमग्गेजा अपरिनतो ॥८॥ गीतत्पडालभ खलु पहुच कालं तु मगाणा एसा। ते खलु गवेसमाणे खेले। काले य परिमार्ग ॥५॥ तेण य गीयत्येक वयणहियत्वसासारेण । णिजपएण समाही कायमा उसिमम्मि ॥३७०॥ एषमसंविग्गेऽची पटियजंतस्स होति पाउगुरुगा। कि कारणं तु नहियं जम्हा दोसा हवंति इमे॥१॥णासेति असंविग्गो पाउरंग सबलोयसारंग। गम्मि य चाउरंगे महसुलह होति पाउरंग ॥२॥ आहाकम्मिय पाणय पुष्फा सीया य बहुजणे णार्य। मेजा संचारोऽपिय उपहीविय होति अविसुबो ॥३॥ एते अण्णे य तहिं बहवे दोसा सपक्षपाया या एतेण कारणेणं असंविण ण कापति परिष्णा ॥४॥ नम्हा पंचर उस्सल वाविजोयगासने समाहिए था। सविग्गपादमूल परिमग्गेजा अपरिततो ॥५॥ एकब दोब तिषिण व उकोस बारसेच वासा । संविग्गपारमूल परिमागेला अपरितंतो॥६॥ संविग्गउहं खल कालतु पहुच मागमा एसा ने खलु गवेसमा खेसे काले य परिमाणं ॥ ७॥ तेण य सैविग्गेणं पचपणगहियत्पसासारेणं । मिजमण समाही कातमा उनिमम्मि ॥८॥ एगम्मि उणिजपए विराहणा होति कहाणी या सो सहापिय पत्ता पाचवर्ण व उड्डाहो॥९॥ तस्सद्गतोमासण सेहादिभदाणे सो य परिचतो। दातुं अवार्ड पा इति सेहावित | मिदम्मा ॥ ३८ ॥ कृपा अदिजमाणे मारेति बलति पयर्ण चन। सेहा यज पदिगया जणे अपने पयासंति ॥१॥ सबमेवाभोएतुं अतिसेसि णिमिसियो - आयरिओ। देवय
णिये(देण्याइय)पणेण वजहणगरे कंचनपुरश्मिायणपुर गुरुसण्णा देवयरुयणा य पुच्छ कहना या पारणग खीर बहिरंजामंतण संपणासणया ॥३॥ अहवापिसोग परनो पारग | मिमहन पारए गुरुगा। असती खेमसुभिक्खे णिवापातेग पडिवत्ती॥४॥ सतं व चिरावासो, वासावासे तपस्सिन नेणं तस्स विलेसेणं, वासासु परिजर्ण ॥५॥ असियोमावी
एस्तु पडिवते हमे भये दोसा। संजमायबिराहण आणाईया य दोसा उ॥६॥ असिवादीहि बहतात उचगरण संजता पत्ता। उहि विना यहाणे चलो सो पश्यण चेक ॥ आएगो संचारगतो बिनियो सलेह ततिय पडिसहो। अपात समाही तस्स व तेसि व असमाही ॥८॥ हविज जदि वाचानो, विनिय नाय हाथए । चिलिमिलि अन्तरे काउं,S बहिवंदापए जर्ण ॥५॥ अणपुच्छाएं गणमा पहिष्ठए त जती गुरु गुरुगा। चत्तारितु विष्णेया गच्छमनिळत जे पाये ॥३९॥ पाणगादीणि जोग्गाणि, जाणि तम्स समा-3 हिए। अलंभे नस्स जाहाणी. परिकसो य जायणे ॥१॥ असंबरं अजाग्गो बा, जोम्गोही न जामने। एसणादिपरिकसो, जा प तस्स विराहणा ॥२॥ अपरिणमि गुरुगा दोहषि अपणोणगं जहाफमसो। होति विराहण विहा एको एकोप जं पाये ॥३॥ तम्हा परिमाया खलु दो मावे यहोति दोहंपिशवहिवं तु जो परिच्छनि दापरिच्छाएं ते इणमो ॥४॥मादणषयकढियादी आणेह मेतितो उदिते। यदि उवहसति ते तू अहो इमो विगयगेहित्ति ॥५॥ किड मोभिटाक्तिमत्त सेव चयो परिच्छा उ । मावे कसाइजंती तेसि समासे ण पदिवले ॥६॥ अह पुन विरुवको आणीएं दुगुंजए भर्णतण। आगेमोत्ति ववसिए पनिवजाति तेति सो पासे आएवंमासी ते (ता सीते)तू परिच्छए समावयो १०१७जीतकम्पभाष्य -
मुनि दीपरत्नसागर
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आगम
(३८/१)
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सूत्रांक [१]
दीप
अनुक्रम
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"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं)
मूलं [...]] आष्यं [३९८ ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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विहिणा तेवि य तं तु परिच्छेदुविहपरिच्छाएँ इणमो तु ॥ ८॥ कलमोयणो व पयसा अन्नं व सभावयतं तस्स उवणीयं जो कुछ रव्यपरिच्छाएं सो सुद्धो ॥ ९॥ भावे पुण पुग्छिन कि संलेहो कलोति ण कयोति ? इति उदिए सो ताहे इंतूनं अंगुलिं दाए ॥ ४०० ॥ च्छता एवं किं कतो थकतोति एवमुदितम्मि । भणति गुरू ताण तयो एवं चिय ते ण सैलीढं ॥ १ ॥ ] हु] ते दपुच्छे पासामि ते किस कीस ते अंगुली भग्गा १ मार्च हमार ॥ २ ॥ भावो चिय एत्वं तु संलिहियय्बो सदा पयलेणं तेणाय साहे दिर्हतोऽमचकोंकणए ॥ ३ ॥ रण्णा कोकणगायचा. दोऽवि मिसिया कता । दोडिए कंजिये छो, कोंकणो तलना गतो ॥४॥ मणिओ पकाए, अमचो जा मरे तु ता पुष्णं तु पंचाई लिए जिणं गतो ॥५॥ एवं जेहिं तु संलीढो, भावो जे ते तु साइगा। असंलीडे न साहेन्ति, अमबो इस ते खलु ॥६॥ इंदियाणि कलाए य, गारये य किसे कुण न चेयं ते पसंसामो, किस साहू सरीरगं ॥ ७॥ एवं परिचिणं जदि सुद्धो वाहे तं पडिच्छति ताहे व अन्नसोहं करेति विद्विणा इमेणं तु ॥ ८॥ आयस्थिपादमूलं गंतृणं सति परकमे ताहे सण अन्नसोही परसकखीये तु कायचा ॥ ९ ॥ जह कुलो वेजो अष्णस्स कति अप्पनो वाही बेजस व सी सोतुं तो परिक्रम्मं समारभइ ॥ ४१० ॥ जानते एवं पायच्छिन्नविमिप्पणा णिउर्ण तहवि व पागडतस्यं आलोयं होति ॥ १ ॥ छत्तीसगुणसमयागरण तेजवि अवस्स कायशा आलोयण निंदण गरहणा य ण पुणो य वितियंति ॥ २ ॥ किं कारणमालोयण एवं पयतेण होति दायचा? मग सुणसू इणमो आलोयंतस्स जे उ गुणा ॥ ३ ॥ आधार विजयगुण कप्प दीपणा अन्तसोहि उजुभावो अशय मह लाघव तुही पायजणणं च ॥ ४ ॥ पावजादी आलोयणा तु तिन्हं चतुकिय विसोही जह अप्पन्नो तह परे का यता उतिमम्मि ॥ ५॥ निव्हती जाणावी दद्यादि चटक मुणेय जो जतिवारी ने क्यों आलोएति स ॥ ६ ॥ णाणे वितपरूवण जं वा आसेवितं तदद्वाए चेयणमयणं वा रहे सेनावि इमं तु ॥ ७ ॥ गाणणिमित्तं अद्वाणमेति ओव अच्छति तदा। गाणं च आगमेस्सङ्ग कुणती परिकम्मणं देहे ॥ ८ ॥ पडिलेवति विगईओ मेहाद व एसती पियति वायंतस्त्र व किरिया कया तु पणगाविहाणीए ॥ ९॥ एमेव दंसणम्मिवि सणा गरि तत्व नामनं एसइत्पीदोसे वयति चरणे सिया सेवा ॥ ४२० ॥ अहवा लिग सालंगण दशमादी माह (ई) आसेवियं निरालंब व आलो ॥ १ ॥ पडिलेवणातियारा आदि पीसरिया कहिचि होजाहि तेसु कह वट्टियां सादरणम्मि समणेणं १ ॥ २॥ जे में जाति जिणा अवरा जेसु जेसु ठाणेसु तेऽहं आलोएर्ड उप द्वितो सहभावे ॥ ३ ॥ एवं आलएको विसुभाष परिणामसंजुत्तो आराहओ तहनि सो गारवपचिणारहितो ॥ ४ ॥ ठाणं पुण केरिसय होनि पत्यं तु तस्स जे जोगी ? भणति जन्म ण होजा झाणस्स उ तस्स बाधाओ ॥ ५ ॥ धनजस्तऽग्गिकम्मपुरुसेव मन्तिकरयगदेवडडाम्बिल पाडहिय रायप ॥ ६ ॥ चोरगकोइकालकर कर पुष्कदगसमीप आराम विष नागरे मणिएव ॥ ७॥ पढमनितिएस कप्पे उद्देसेस उपस्सपा जे तुहिने मिसिदा तरी भरे सिजा ॥ ८॥ उज्जाणे तक(मल)मूळे सुपर अणिसह हरिय मग्गे य एवंविण ठाय होज समाहीय बाधाओ ॥ ९॥ इंदियपदिसंचारो मणसंलोभकरणं जहि गत्थि पाउस्सालाई दुवे अणुष्णवेऊण ठायंति ॥ ४३० ॥ पाणगजोग्गाहारे तसे तत्यजत् ण उवेन्ति अप्परिणया वसो वा अपक्षय हित्वा ॥ १ ॥ मुलभोगी पुरा जो तु गीयत्योषिय भाषितो संतेसाऽऽङ्गारमे सोचि खियं तु सुमती ॥ २ ॥ पहिलोम अनुलोमा वा विसया जत्य दूरतो ठावित्तातत्य से नियं, कहा जणस्स ॥ ३॥ पासत्योसम्म कुसीलठाणपरिजिया उणिवा पियधम्मभीरु गुणसंपन्ना अपरितता ॥ ४ ॥ जो जारिसतो कालो मरवा होनि बासु ने तारिया या अयालीसा तु विना ॥ ५॥ उदार संचार वादी य जमादारम्मि भत्ते पण विचारे का दिसा जे समस्या य ॥ ६ ॥ बाल एते. एकेके च मये दिसि च पुष्य एकेके, अडपाली गति तु ॥ ७ ॥ एवं लउकोसा परिहार्यतीति दो व दोगी कि मिमि अष्णकरणं जयेणं ॥ ८ ॥ तस्य परिमाहारो हो रायों तया सह परिमका अनीता समुह ॥ ९॥ विगह सत्त ओरण अारस पंज पाणंच अणुपुष्यिविहारीणं समाहिकामान उपहत ॥ ४४ ॥ कालसमाषानुमतो पुष्यज्हसियो ओपो या शोसित सोचता अपनाय हारे ॥ १ ॥ तव्हाण तस्स तहित पत्तर भायो। अव कहिपति एवंतु ॥ २ ॥ किं च तं गोवमुतं मे, परिणामासु सु । दिसा सु झाडू पोयसेवसीययो ॥ ३ ॥ परिमं च एस मुंजति सहाजण च होति उमवि संजयमिहियानं या तो देति इमीयतु विहाय ॥४॥ दुहितु पोसिरिही सोता उच्कोसगाई दबाई मला जयणाए चरिमाहारं पदति ॥ ५ ॥ पासि वाणि कोथी तीरप्पत्तरस किं मयेतेहिं ? वेरयमनुपत्तो संवेगपरायण होति ॥ ६॥ सर्व मोचा कोई चिदीकार इमेण किं मेति । मामनुपत्तो संवेगपरायण होति ॥ ७॥ सह मोबा कोई मनुन्नरसपरिमतो इवेजाहि तं तो देस रोहीया ॥ ८ ॥ विगयीकयानुबंधे आहार२०१८ जीभाष्यं -
मुनि दीपरत्नसागर
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आगम
(३८/१)
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सूत्रांक [१]
दीप अनुक्रम
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"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं)
मूलं [...]] आयं (४४९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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बंधणाएँ बोच्छेदो। परिहार्यमाणदये गुणवदि समाहि अनुकंपा ॥९॥ दवियपरीणामं ता हावेति दिने दिने तु जा तिमि चिन्ति च लभति उदुलभे सुलभम्मिवि होतिमा जयना ॥ ४५० ॥ आहारे ताब छिंदाहि गेहिं तो णं वइस्ससि जं मुलं बहु पुत्रं ते वीरपत्तो तमिच्छसि ॥ १ ॥ बहंति अपरिता दिया व रायो व सबपरिकम्मं पडियरमा मुणिवरमा कम्मर जिरेमाणा ॥ २ ॥ जो जत्य होति कुसलो सो तु न हावे तं सह वलम्मि उज्जुत्ता सति जोगे तस्सवि दीवेति से सहदे ॥ ३ ॥ देहविओोगो लिप्यं व होल अहमाथि कालकरणेणं । दोषि जरा बाणो गच्छो उ एयट्टा ॥४॥ कम्ममसंलेजम वेद अनुसमयमेव आउतो। अन्मयरम्मिवि जोगे सज्झायम्मी विसेसेणं ॥ ५ ॥ कम्म० काउरसम्गे विसेसेच ॥ ६ ॥ कम्म० वैयावचे विसेसेणं ॥ ७॥ कम्म बिसेसतो उत्तिमम्मि ॥ ८॥ संचारो उत्तिम मूमिसिलाफलगमादि नाया। संथारपट्टमादी दुर्गाचीरा ऊ बहू वाषि ॥ ९ ॥ तषि असंथरमाणे कुसमादी तिणि असिरतनाति तेऽसति असंपरने होज सुसिरावि तो पच्छा ॥ ४६० ॥ तच अपर कोतव पावार नवय मूलि भूमीए एमेव अमहियासे संचारगमादि पहलके ॥ १ ॥ पडिलेन संचारं पाणग उब्बत्तनादि निम्गमनं सयमेव करेति सङ्घ असस्स करेंति बन्ने उ ॥ २ ॥ कायोपचितो बलवं क्लिमण पवेसणं च सो कुणति तहविय अविसहमाणं संचारगतं तु संचारे ॥ ३ ॥ संचारो तस्स मडतो समाहिउं तु होति कायोतयि अविसमा समाहि उदाहरणं ॥ ४॥ पीरपुरिसपणले सम्पुरिसमिसे दिए परमरम्मे । घण्णा सिलातलतले गिरावयाला विजति ॥ ५ ॥ जदि ताव सावयाकुलगिरिकंदरविसमकडगो साति उत्तिम धितिधनियसहायगा धीरा ॥ ६ ॥ किं पुण अणगारसहायगेण अण्णोष्णसंग बलेणं । परलोतिए न सका साहे अप्पणो अहं ? ॥ ७ ॥ जिणवयणमप्पमेयं निडणं कण्णादुई सुतेनं सखा हु साहुमज्झे संसारमहोदहिं तरितुं ॥ ८ ॥
सहदाए सहणू सव्वकम्मभूमीसु सम्यगुरु सव्वमहिया सध्ये मेरुम्मि अहिसित्ता ॥ ९॥ सम्याहिंदि दीहिं सम्मेषि परीस पराइता। सच्देवि य तित्थगरा पायोवगमेण सिद्धि गया ॥ ४७० ॥ अबसेसा अणगारा तीयपष्पणऽनागया सब्बे केई पायोरया पथस्वार्थिगिनी केयी ॥ १ ॥ सहाओ अजाओ सहेवि य पढमसंपयणवजा। सव्ये य देसविरमा पण तु मरति ॥ २ ॥ समुपभवाओ जीवियसाराओ सब्बजणयायो महाराज रत व विजए उत्तिमं अण्णं ॥ ३ ॥ सेलेसि सिद्ध विम्माह केवलिओपायए पमोर्ण सच्चे सावत्वं आहारे होंति आयता ॥ ४ ॥ तं तारिखयं स्वर्ण सारं जं सम्बलोगरयमाणं सव्वं परिचइता पाजोया पविति ॥ ५ ॥ एवं पाओगमं निप्पडिकम्मं जिणेहिं पष्यतं । सोऊन परिणी वसायपरिकमं कुणति ॥ ६ ॥ कोई परीसहिं पाउलिओ वेयणहियो पाथि ओमासेज कमाई पढमं वितियं च आसज्ज ॥ ७॥ गीयत्वमनीयत्वं सारे (सोहे) सह विमोहनं काउं तो पडिवोहय छ (त) हे पढमेऽपगए सिया मिलिए ॥८॥ इन्दि दु परीसह चमू जोहता मणेन काएन तो मरमदेसयाले कवयम्भूज तु आहारो ॥९॥ णायं संग्रामदुर्ग महसिलरहमुसलवणणा तेर्सि असुरसुरिन्दावरण बेडग एगो गइ सरस्स ॥ ४८० ॥ महसिलकंटे सहियं ते कृषिओ तु रहिएणं स्वग्गबलोण पहतो पम्मि कणणं ॥ १ ॥ उडिडितुं तो कणओ कवयावरणम्मि तो ततो पढितो तो तरस कोणिएवं फिल्में सीसे सुरम्येणं ॥ २ ॥ दितस्सोवण कवयत्याची इह तहाऽऽहारो। सन् परीसहा खलु आराहण रजपाणीया ॥ ३ ॥ जह बाऽऽउंटियपाए पार्थ काऊन इत्यिमो पुरिसो। आहति तह परिन्नी आहारेणं तु साप्यवरं ॥ ४ ॥ उपगरणेहि बिजो जइ वा पुरिलो साइए । एषाऽऽहार परिणीदिता तरिथमे हाँति ॥ ५॥ लगाए पाए जोहे. संगामे परिचर इय जातुरे सिक्लाए चेव दित समाहिकामे तो ॥ ६॥ रसेनं नाबाए आउछ पहोवाहोस च उबगरणेहिं च विणा जहसत्वमसाइगा सो ॥ ७ ॥ एषाऽऽहारेण विना समाहिकामो न साह समाहिं तम्हा समाहिडेउं दाययो तस्स आहारो ॥ ८॥ पितिसंघयणवितो असमत्यो परीसहिया फिति चंदगविज्झा ते विणा कश्यमणं ॥ ९ ॥ सरीरमुज्झियं जेन को संगो तस्स मोयने ? समाहिसंघणाहट, दिजए सो सि अंतिए ॥ ४९० ॥ सुई एसि ठाति हाणिजो वा दिने दिने पुडुताए उ जयणाए तं तु गोवेन्ति अन्नहि ॥ १ ॥ निचाएवं कालयविचिना विहीपुढं का विधकरण अधिकरणे भये गुरुमा ॥ २ ॥ उपगरण सरीरमिव अधिकरणम्म इंडिओ तहियं मग्गनगनाए नामानं घावणं कुणति ॥ २ ॥ न पगासेज लत परीसह उवएम होज बाधाओं उप्पन्न बाधाए जो गीयस्थाण तु उपाओ ॥ ४ ॥ को गीयाण उपाओ ? सहज बिजए अन्यो उच्छहए जो बन्यो इयरे उ गिलाणपरिकम्मं ॥ ५ ॥ यसमो वा ठाविजति अन्नस्ती सम्मि संचारे। कालगतोलिय कार्ड संझाकालम्मि णीनंति ॥ ६ ॥ एवं तन्नायम्मी इंडियमादीहिं होति जयनेसा सवगमण पेसणं या खिंसण चउरो अनुग्याता ॥७॥ सपरकमेव मणिया
वाचार्य निशापाइम इसरं एतो अपरकर्म वोच्छं ॥ ८॥ अपरकमों बलीयो अन्नगण जाति कुमइ गच्छमि सपरकमो सेसे मिाघाती गतो एसो ॥ ९॥ पापानि आनु पुत्री रोगाऽऽयंकेहिं नगरि अभिभूज बालमरनंपिय सिया मरेश उ इमेहिं ऊहिं ॥ ५०० ॥ वाच्छमचिनयविविमाऽऽर्वकसन्निकोसलए उसासमदरबोमाऽविहि१०१९ जीतकल्पना - मुनि दीपसागर
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आगम
(३८/१)
anो मामा भाचार नियो
प्रत
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“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [...] ---------------------------------------- भाष्यं [५०१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
का धायसंबडे ॥१॥ वासेन गोलसाइन लामो होजाहि सबिउमारबोकिन्योहमासिगादी विभंगिया अच्छमाण शालयकोपविणत विमूपिया वा सि उद्विता होजा। आयको पा र
कोची लयमादी उद्विानोहोजा॥३॥ सिणि तु बारा किरिया तस्स कया णविय उक्समो जातो। जह ओमे कोसलेणं सम्णीण पंच उसयाईसमणीण बाई जयं भतंतु तुक्म बाहामि। लामंतरं चालणं विकिय धर्म ॥५॥ तो गाउ वित्तिई ऊसासणिरोहमादिणि कताणि । अणहीयासन्तेहि सहवेदण ओमि साहुहिं॥६॥ एवं सा कोसलाए अम्मिवि जोमों होज एमेव । सहसा जिन्नाहाणे असिवग्गहिया यकृणाहि ॥आ अभियानो वा चिन गिरिभित्ती कोणगाविस होजा। संबदहत्यपादादयोगबारेण होनाहि ॥८॥ एहि कारणेहि वाघाइम मरण होति गाय। परिकम्ममकाऊर्ण पचक्रवाई ततो मसं॥९॥ अह पुण जदि होजाही पंडियमरणं तु काउ असमस्यो। ऊसास गवपटू रजग्गाहर्णय कुमाहि॥५१०॥ अणुपुषिविहारेणं उस्सग्मणिवाइयाण जा सोही। विहस्तएन सोही मणिता आचारलोचा या ॥१॥ एसो पचक्लाणे आय परे भणिय णिजवाण विही। इंगिणिपायोषगमे बोच्छामी आपणिजवर्ण ॥२॥ परजादी काउंणेत जाव होयऽवोच्छित्ती। पंच तुलेवूण यसो ईगिणिमरणं ववसिओ उ॥३॥ आयपरपरिकम्म भत्तपरिणाएं दो अ. गुण्णाता। परिवनिया य ईगिणि चडचिहाहारविरती य॥४॥ठाण णिसीप तुपट्टण इत्तरियाई जहासमाहीए । सयमेव यसो कुणती उपसमापरीसहऽहियासे ॥५॥ संघयणधितीजुत्तो
जब दस पुषा मुतेण अंगा वा।इंगिणिमरणं णियमा पडिवाइ एरिसो साहु ॥६॥ पनजादी कार्ड खेया जाय होयडयोमिछली। पंच तुलेवूण य सो पायोवगम परिणतो य॥७॥ अविहंणायणीहारि पेष तह अणीहारि। पहिता गामादी गिरिकवरमादि गीहारि ॥८॥वयादिसु जे अंलो उडेउममा व ठाय अनीहारि। कहा पादगमण उपमा पादवे
त्यं ॥९॥सम विसमम्मि पदियो अच्छति जह पादवो वणिकंपो। णिचलणिप्पदिकम्मो मिक्खिक्ती जंजहि अंग ॥५२०॥ तं ठित होति तह थिय णवरे चलन परपयोगातो। वापाडीहि तस्स्स व पडिणीपादीहि तह तस्स ॥१॥ तसपाणबीयरहिते पिच्चियनियार पंडिल विसुदे। णिहोसे निहोसा उप्रेति अन्भुजयं मरणं ॥२॥ पुषभवियवरेणं देवो साहह कोति पाताले। मा सो परिमसरीरो ण वेदणं किंचि पाविहिती ॥३॥ उप्पणे उपसम्गे दिवे माणुस्सए तिरिचरखे या सव्वे पराजिणित्ता पायोवगया पविहरति ॥४॥ देवणरगतिगउस्से केपी पक्रलेवगं लिया कुजा । बोसट्टचत्तवेहो अहाउर्य कोइ पालिजा ॥५॥ अणुलोमा पडिलोमा दुर्ग तु उभयसहिया निगं होति। अहला चित्तमचिनं दुर्ग तिगी मीसगसमग 2॥६॥ पुढविगगणिमारुयषणसतितसेस कोड साहस । बोसडचत्तदेहो अहाउथ कोर पालेजा ॥ ॥ चितिबल जुत्तेहि तहि उपसम्गा जह सदा उ धीरेहि। णिरिसणा केहनहि वोच्छामि इमे समासेणं ॥८॥ मुनिसुव्ययंतेवासी खंदगमणगार कुमकारकडं। देवी पुरंदरजसा डंडगि पालक मत्रो य॥९॥ पंचसया जनेर्ण कट्टेण पुरोहिएण मलिया उ। रागहोसतुलम्ग समकरणं चितपतहि ॥५३०॥ अंतेहि करकएहि र सत्येहि न सावएहि विबिहेहि। देहे विवंसन्ते ण य ते माणातो फिहति ॥१॥ पडिणीययाएं कोई अम्गि सि पदेज अमुभपरिणामो। पादोवगते संते जह चाणकस्स वा करिसे ॥२॥ परिणीययाएं कोई चम्म से खीलएहि विहणित्ता। महुपचमक्सियदेई पिचीलियाणं तु दिनाहि ॥३॥जह सो चिलायपुत्तो बोसट्टणिसहपत्तवेहो उा सोणियगंधेण पिचीलियाहि जहचालगिा कतो॥४॥ मोगलसेलसिहरे जह सो कालासपेसिओ भगवं खाओ पिडपिऊ देवेण सियालरूलेणं
जह सो पंसिपदेसी वोसनिसहचत्तरेहो उसीपत्तेहि चिणिगएहिं आगासमुज्नितो॥६॥ जयंतीमकुमालो बोसट्टणिसपनदेहागो। धीरो सपेशियाए सिवाएं खाओ तिरत्तेणं 130जह ने गोहाणे बोमणिसदुपत्तदेहागा। उदगेऽणुकुम्भमाणा पियरम्मी संकरे लग्गा ॥८॥जह सा बत्तीसपडा बोसङ्कणिसचत्तहागा। धीरा पाएण उदीविएन डिलयम्मि मोलाइया ॥९॥बावीस आणुपुच्ची तिरिचरखमणुयार भसणत्याए। विसवाणुकंपरकखण करेज देवावमणुया वा ॥५४०॥ जहणाम असी कोसा अग्लो कोसा असीवि खलु अण्णो। इय मे अण्णो देहो अण्णो जीवोति मग्णनि ॥१॥ एतणिजरा से दुविहा आराहणा धुचा तस्स। अंतकिरिय वसाह करेज देपोचवली वा ॥२॥ एवं चितिथलजुनो अहियासेनि पडिलोम उपसम्मे। एनो पुण अणुलोमे जह सहती ते तहा बोच्चई ॥३॥ सकारं सम्माणं हाणादीयाणि तत्य कुजाहि। बोसङचत्तबेहो अहाउ कोर पालेजा ॥४॥ पुत्रमबियपेमेन देवो देवकुरुउत्तरकुरासु। कोई साहरेजा सबसुहा जन्य अणुमाया ॥५॥ पुषभचियपेमेणं देवो साहरति णागभषणम्मिा जहियं बहा कता सासहा होति अणुभावा ॥॥पत्तीस-। लक्खणधरो पायोक्मयो प पागडसरीरो। पुरिसोसिणि कल्मा रावविदिग्णातु गिण्हेला ॥७७ मजण गंध पुष्कोचदार परियारणं च कुजाहि।सा पवर रायकण्णा इमेहि जुत्ता गुणगणेहि ॥८॥णक्यंगसोयबोहियाहारसरतिविसेसफुसला तु। चोयडीमहिलगुणा पिउना व निसनरिकलाहि ॥९॥ दो सोय णेत्तमादिग गवंगसोया हन्ति एनेमा देसीभासहारस स्तीपिसेसा उ उगुनीसं ॥५५०॥ कोसाडगेववीसहविहंतु एवमादिएहि तुगुणेहिं । जुनाए रूपजोषणक्लिासलायण्णकालियाए॥१॥ चउकग्णम्मि रहरसे राएर्ण रायदिग्णपसरा(पासा)ए। विमिमगरेहि उदही ण खोभिती जो मणो मुणिणो ॥२॥ जाहे पराइया साण समत्या सीलखंडणं कार्ड। ऊग सेलसिहरं तो सिरमुवरि मुयति तस्स ॥३॥ एगंतणिजरा (२५५) १०२० जीनकापभाष्य
मुनि दीपरनसागर
हो आउर्थ को पातमा इंडगि चालक मनभाणालो कि
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मुलं [१...] ---------------------------------------- भाष्यं [५५५] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
बाएहि आवर्यतेहि
हि पणाले । तिपय महिआ। एनो सुत
प्रत सूत्रांक
thilans
H
से दुविहा आराहणा पुवा तस्स। अंतकिरियावसाहकोज देवोवर्तिवा ॥४॥एमादीहि बहुविह विह विबिहेहि तेमहाभागा। पोरोहिं उपसमोहिं पालिताधि णिहयया ॥५॥ पुत्रावरदाहिनाउनरेहि पाएहि आवर्यतेहिं । जहणवि कंपा मेक तह ते शाणाओं'नचमिति ॥ ६॥ पदमम्मि य संघयणे पाता सेलकुदवसामाणा। तेसिपिच बोचोदो चानसपुत्रीण 12 वोच्छेदे ॥७॥ एवं पाओवगम णिपटिकम्म जिणेहि पण तिस्पयरगणहरेहि य साहिब सेवियमुदारं ॥८॥ एवं जहाणुरुवा संपतिकालम्मि अस्थि जह सोही चिजति य सोहिकरा ते सधेय समक्खायं ॥९॥ एसाऽऽगमवहारो जहोचएस महकमे कहिओ।एतो सुतयवहारं सुण वच्छ ! जहाणुपुछीए ॥५६॥णिजूई चोदसपुषिएण ज भरमाहुणा सुन्। पंचविहो बचहारो चालसंगरस गवणीयं ॥१॥जोसुतमहिनति बहु सुतस्य च णि उणं ण याणाति। कप्पे महारम्भिवण सो पमाण सुपधराण ॥२॥जो सुतमहिमति पर सुत्तत्या चणिउणं वियागानि। कप्पे ववहारश्मि यसो उपमाण सुतघराणं ॥३॥कप्पस य जिजुनि ववहारस्य परमणि उणस्स। जो अत्यजओन जाणति सो पबहारी माणुण्णानो ॥४॥ कप्पस य णिनि बचहारस्सव परमणि उणस्सा जो अत्यतो विजाणति यवहारी सो अणुण्णातो ॥५॥ एसो सुतपचहारो जहोचएस जहकर्म कहितो। आणाए बवहार सुण बच! जहकम बोच्छ॥६॥ समणस्स उसिमडे सादरणकरणे अभिमुहस्स। दूरत्या जत्थ भने उत्तीसगुणा उ आयरिया ॥७॥ अपरकमा मिजातो गंतु जे कारण उप्पणं । अट्ठारसमण्णयरे बसणगने इचिटमो आण ॥८॥ अपरकमो तबस्सी गर्नु ण चतेह सोहिकरमूल। सीस पेसेति नहिं जहिच्छ सोहिं तुमसमीचे॥९॥ सोधि अपरक्कमगती सीस पेसेनि धारणाकुस । णानुनहि जो जोम्मो इमेण विहिणा परिचिता॥५७०॥ अपरक्कमोयसीस आणापरिणाम परिच्छेजारुखेवबीयकाए सुने वाऽमोहऽऽणा(नाss)धारि॥१॥बत महान महारह भगितो मासे विलग्गिनु देवे। अपरिणतो बेति तयो णो यहति रुक्ख आरोई॥२॥ किंवा मारेतको अहतं? तो बेहदेव रुक्सातो। अतिपरिणामो भणनीय होनू अम्हऽवे. सिचठा ॥३॥नि गुरू अह तंतु अपरिगय अरथे अभाससे एवं। किंवमए त भभितो आहरुक्ले तु सबिते?॥४॥तपणियमणाणसं आमहिउँ भवमहण्णवावलं। संसारागदमूल देवेहि मए तुम भणितो ॥५॥ जो पुण परिणामो खलु आम्ह भणितो नुसो विचितेति। णिच्छति पाचमेते जीवाणं वावराणपि॥६॥ कि पुण पंचिकीर्णन भनियोऽत्य का. रणेणं नु। आम्हणवसियन बारेति गुरूजवा बभे ॥७॥ एवायवीयाई भगिते पडिसेह अपरिणामोतु। अतिपरिणामो पोइल बंपूर्ण आगतो तत्थ ॥८॥ पचाह गुरुतंतजहोदियाऽणेह अंबिलीबीये। विरोहसमत्थाई सचित्ताई विमणियाई ॥९॥ परिणामगो दुतस्थवि भणती आणेमि केरिसाईनु। किनियमित्तावा? विरोहमविरोहजोगा?॥५८०॥ सोनि गुरूहि भणिओण नायकज पुणो भणीहामी। हसिओवमए वाऽसी वीमसत्वं च भगिनो सि ॥१॥ पदमक्सरमुदेस संधी मुत्तऽत्य समयं पुहो। अक्सर पंजगमुद कईनि सत्र जहाभणितं ॥२॥ एवं परिचितऊर्ग जोग णाऊण पेसवे तंतुचाहि नस्सगास सोहि सोऊण आगच्छ॥३॥ अहसो गतो उनहियं नम्स सगासम्मि सो करे साहि। निगम ऊविमुदं निविहे काले विगाभायो॥४॥ दुनिहं तु पकाये तिनिह पाणाइणं तु अहाए। दवे खेते काले भावे य बउविहं एवं ॥५॥ विपिह अतीयकाले पचुप्पणे व सेवियं जंतु। सेविस्स वा एस्से पागहभाचो विगहभायो ॥६॥ किं पुण आलीएती? अतियार, सो इमोय अतियारो। बतडकादीजो खलु णानन्यो प्राणपुवीए॥७॥षयाकं कायाक, अकप्पो । गिहिभायणं । पलियंक मिसेजा य, सिणार्ग सोहचजण ॥ ८॥ तं पुण होजाऽऽसेविय दप्पेणं अब होज कप्पेण । दप्पेण दसविह न इणमो बोच्छं समासेणं ॥५॥प अकल्प णिराखचियन अप्पसत्य वीसत्ये। अपरिच्छ अकरजोगी अगाणुताची बनीसको ॥५९० ॥ बायामवग्गणादी निकारण धावणं तु दणो उ । कायापरिणतगहणं अकप्पोजका अगीनेणं ॥१॥ संसारखइडपहिलो णाणादवलंबितुं समुत्तरह। मोरवाई जह पुरिसो बसिबियाणेण विसमाओ॥२॥णाणादीपरिचड्ढीण भविस्सनि में असक्यो बिनियं । नेसि पसंधणाम सालबाणिसवमा होति ॥३॥ जा पुण णिकारणयो अपसस्थालंबणा य सेवा उ। अमुएणचि आयरिय को दोसो वा णिरालय ॥४॥ जमिन नु वितिय गेहष्णादी असंवरनेणं । हहोषि पुणो ने चिय चियत्नकियो णिसेवतो ॥५॥ बलमण्याचहेर्नु कासुयभोईवि होति अपसत्यो। किं पुण जो अविसुद्ध णिसेवए बण्णमावडा ? ॥६॥सर्वतो नुअकि लाए दोउत्तरम्मि य विरुदं । परपक्स सपक्से वा बीसस्थासेवणमलजे ॥७॥ अपरिच्छितुमायनए णिसेवमाणो उ होइ अपरिच्छो। तिगुणं जोगमकाउंपिनियासेयो अकडजोगी॥८॥विनियपर जोन परं नावेला णाणुतपती पच्छा । सो होति अणणुताची कि पूण दपेण सेपित्ता॥९॥करणमएस तु संका करणे कुछ म संका कयाई । बहलोयस्स ण माया परलोए वाऽभया एसा ॥६०७॥ एसा दप्पियसेवा दसभेव समासतो समक्खाया। एनो कम्पियसेयं चउवीसविहा इमाऽऽहंसु ॥१॥ सगणाणचरिते तपपवयणसमितिमुनिहरवासाहम्मियवच्छालेण वावि कुलपो गणस्सेव१०॥२॥ संघस्साऽऽपरियस य असहुस्स गिलाणचालबुड्ढस्सा उदयग्गिचोरसाधयमयताराऽऽवतीवसणे २४॥३॥दसणपभावगाणं सत्याणऽहाए सेवए जंतु। १०२१ जीतकम्यभाष्यं -
मुनि दीपरलसागार
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TARVADATTAT
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [१...] ------------- --------------- भाष्यं [६०४] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
मजमानेर बाहिना
मम्मी मा विक्सितो रविसमा गाएका गीतवानी उ
॥१॥ बाचरिय असहजता मनवमुत्ते पालाए सिरिता
प्रत सूत्रांक
ए
लाये रमक हेवा परस
Motpor4NNOVARPATRE
माणे मुलस्थाणं असंघरासपणे सुबो॥४॥परने एसमोसा इत्वीचोखा यजत्य खेतस्मि । ततो विनिक्लमंतो जसेवेसंघरे सुबो ॥५॥हाविनय काईकए बिगिद्देऽपिलागतरणाती। अभिवायणा पचय विपुला विधानाच॥६॥इविंग सोडासं पासुनिमित किरिया उरीयाए। लित्तादिमीच वाचा अहवाधिइमं तु तदयाए॥ जवाणकपानेसी बम बसिवारिकारनेदितासकियमाई निमेजयमाए पत्थ सुबो व आयाने कइत्यो पमनमानेहिचाहिं जाहा बाइचाचि तरस जहा जोसह किंची करेजाहिक ॥९॥ पंचमिएँ काममादि पंचमा उबारमे किंचि। विगवादि मनबनुले पाकार सिक्तविशादी।६१०॥ च्य बसिबमुंडो, नित्वारियों महबजयारेहि कुरुगनसंघ अभिचाल्गारिया कुमा॥१॥ भापरिच असा अतरापाले पुढे वजेच समाही। जाचितन देन्ती पणनाचीहिंजयणाए॥२॥भिवविक्तिबादि असा मालो मारोग विक्तितो को। बुबहोची कमम्मी जा दिक्खितो रक्सियजेहिं ॥३॥ उदयग्निचोरसावयमएस धमणि पाण कासेवा । तारे पालेभावी वादी आप चहा ॥४कोईतु बियडवाणी गोज्झावी वापि होज विक्संतो। जयणाएं वियागहचं गाएजसगीतयसनी उ॥५॥ एयअमयसमादे सदसणे जाणचरण सालंबो। पहिले कि कबादी होति पसत्थो पसत्येसु ॥६॥ एसा कम्पियसेवाकवीसविहा समासतो कहिता। बहुणा उचारणा तू इनमो बोच्छ समासे ॥७॥ठावेतुपकप्पे डायरस दस पवे ठाये। कप्पाहोचउषीत सिमहबहारस पवा उ॥८पढमस्स बकजस्सा परमेण परेन सेपित होजा। पदमे के अस्मितर व पाम भवे ठाणं ॥९॥ पामरस य फारसा पढमेम पवेग सेवितं होगा। पदमे के अमित ताव जाप णिसिमर्थ ॥६२०॥ पदमस्सयमस्सा पामेच पदेन सेवियं होगा। वितिए के अस्मिता त पार्म मधे ठाणं ॥१॥ पामस्स यकस्सा परमेण परेच सेवितं होजा। चितिए के अस्मिता तुमय जाप साकार्य ॥२॥ ययमस्स यकजस्सा पदमेण पएक सेपियं होगा। साए के अग्मितरं तु काम भये ठाम ॥३॥ परामस्सब कमरक्षा पढमेण पवेज सेवियं होगा। ततिए छके बम्मितरं तुइय जाच तु विभूसा ॥४॥ पडमममुर्चत रितियादीर तु जाव इसमं तु। पढमाचावउ पुणो पुगो चारणिमा ॥५दप्पियसेवाए तरचारिवाणि अहरसा बस अड्डारसमुभिवा बासीयसतं तु गाहा ॥६॥ एवं बीतिमस्सवि जास्सा गार हॉति सच । सबानो माहाजो पत्तारि सतान बत्तीला ॥3॥ चिनियरस यकजस्सा पहमेण पदेन सेवियं होजा। पढमे के अस्मितरं तु फार्म मचे ठाचं ॥८॥ एवं वितियस्ताविकजस्सा एव चेष गाहायो। विविबगा. मिलार्ण समाजो माणियमाओ९॥ पवर्म ठाणे पो दण्य थिय तरस वा भये पवर्म। पढम उमरूपया पाणतिचाबी लाहिं पाम ॥६३०॥ एवं तु मुखाचाची अरत मेहुण परिम्म देवा बितिसके पुखवावी विक्के होवऽकन्यादी ॥१॥ एवं वप्पपयम्मी पेणं चारिया उबहुस्सा एवमकप्यादीसुविएस्केक्के हॉतिमहरत ॥२॥ वितिय कर्म कप्पो पक्षमपर्द सत्य समणिमित्तं। पहम छक्क पाई तत्थवि पढमं तु पाणबहो ॥३॥सण अम्मुयन्ते पुषकमेचारणीया । अहारस ठाणाई एवं माणादि एकेरके ॥४॥पउविस महारसगा एवं एते इति कप्पम्मि। इस हाँति अप्पम्मी सवसमासेण मुण संलं ॥५॥ येणासीयसतं माहाणं कर्षे होति पचारि। बत्तीसायानेते उस्लाय होती तुबारस य॥६॥ सोतृण तस्स पविसेवणं तु आलोयचं कमविहिं।आगम पुरिसमायं परियाग पलं व खेसं ॥७॥जह सो मतो सवेर्स संतस्सालोइयालयं सर्व। आचरिथानकाती परियाग पर्स चखे ॥८॥ सो ववहारविहिष्ण अणुस(म)जिचा सुतोबसे । सीसस्स देन आणं तस्स इमं देव पच्चित्तं ॥९॥ पढमस्स यकस्सा दसविहमालोषण मिसामित्ता। जक्ससे पीला मे सुक्के पचगं तवं कुणद॥ ६४०॥ पढमा सुक्के वसमं तवं कुणह ॥१॥ पदम सुकं पक्ल त कुणा ॥२॥ पदम सुकं पीस सर्व कुण्ड।३॥ पक्षमपणुधीसस कुणह मुबं॥४॥ एवं ता उपधाए अमुचाए एत गाहाजो। गवरं तूअभिलायो किहे पणगावि पत्तो ॥५० पाउमासत कुणह सुक्के ॥६॥ पढमचाउन्मासं कुणह कि॥७॥ पढम छम्मासवर्ष कुणह सुके ॥ ८॥ पदमा उम्मासत कुणा किम्रे ॥९॥ चिंबंतु वतमार्ण गर्छत व तस्स साहुणो मूलं। अमावारा गच्छे अम्बितिया या परिहा ॥६५॥ पणगादि माणछे साहूमूल भवे पुणधरण। पुषमवहाय सर्व पंचाऽऽमवचाउ उरितु॥१॥लिंगावी जो गच्छे जहण उकोसोपमोडबो। उकोस जहष्णो वा विहरउ सोममितीजो उ॥२॥ बितियरस यकजस्सा सहिचावीसन वियाणित्ता। नवकारेणाउत्ता हवन्तु एवं मजासि ॥३॥ एवं गंतृण सहि जहोबएसेण देहि पण्ठितं जाणाचएमझारो मणिए सो धीरपुरिसहिं॥४॥ एसाऽऽणावहारो जोवएस जाकर्म भणितो। धारणवनहार पुण सुण पच्छा जाकम चोच्छ ॥५॥ उदारणा विहारण संधारण संपकारणाचा धारणमा रस्स उ णामा एगद्विता एते॥६॥पाचारण उवेच उदिवषयधारणा उ उदारो। विविहि पगारेहिं धारेषऽत्यं विचारा तु.७॥सं एगीमावम्मी 'पी धरणे' सागि एप भावेणी पारेयऽत्यपयाणि तु तदा संधारणा होति ॥८॥ जम्दा उ संपहारेड, पबहारं पजूंजती । तम्हा उ कारणे वेण, जातवा संपहारणा ॥९॥ धारणयवहारेसो पउँजियहो तु रिसे पुरिसे। १०२२ जीतकरुपमाय -
मुशि दीपनसागर
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [२] ------------- ------------- भाष्यं [६६०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक
भण्णा गुणसंपण्णे जारिसए ने सुणेहति ॥६६॥ पश्यनजसंसि पुरिसे अणुग्यह(हिय)विसारए तबस्सिस्मि । सस्सस बहस्सयस्मि य विवकपरियागविम्मि ॥१॥ एतेस धीरपरिसा पुरिसजाएम किंचिखलिए। रहिए विहासत्ता जहादि देन्ति पच्छितं ॥२॥रहिए णाम असन्ते आतिम्मि वपहारतियगम्मि। ताहे बिहारइत्ता पीमसेतृण जं भणियं ॥३॥ परिसस्स उ अबराहं विधारहत्ताण जस्स जं मणित। न देन्ती पति के देन्ती उसे सुणसु ॥४॥ जो पारिश्रो सुखत्यो अणुशोगविही य धीरपुरिसेहि। आतीणपतीणेहि जतणाजुत्तेहि दंतेहिं ॥५॥ आलीणा जाणादिसु पद पद लीजा उ होन्ति तु पलीणा। कोहावी वा पलयं जेसि गया ते पालीच्या तु ॥६॥ जतणाजुत्तो पयत्तव देतो जो उपरतो तु पावेहि। अहवा दन्ती इंदियदमेण नोइंविएणं च ॥७॥ एरिसया जे पुरिसा अत्यधरा ते मवंति जोगाउापारणक्वहारजू पवहरि धारणाकुसा ॥८॥ अहवा जेणं या विट्ठा, सोही परस्स कीरती। तारितयं च पुणो, उप्पणे कारणं तस्स ॥९॥ सो सम्मिच बरे खिले काले च कारणे पुरिसे। तारिसर्य अकरेन्तोष सो आराहो होति ॥६७० ॥ सो तम्मि घेव बजे खिले काले य | कारणे पुरिसे। तारिसय थिय मूतो कुतोऽऽराहओहोति॥१॥अहवावि इमे अन्णे घारमवहारजोग्गवमुति। धारणववहारेण जे बबहारं क्वहरति॥२॥ याबकरो वा सीसो वा देसहिंडो वापि। दुम्मेहत्ताण तर अवधारे बहुं जो तु॥३॥ जस्स उ उदरिऊन अत्यपयाइंतु देवि बायरिया। जेहि कोहि की ओहारे बाराहि)न्नो तु सो देसं ॥४॥धारणपयहारो। खल जहरूम बणितो समासेणं। जीतेणं वनहार सुनवच्छ! जहरूम बोच्छ॥५॥वसमतपरत्तो बहुसो आसेवितो महाषण। एसो उजीतकप्पो पंचमयो होति ववहारो॥६॥वत्तो णामं एकसि अणुक्त्तो जो पुणो वितियबारे। ववियष्यारपवतो परिग्गिहीनो महाणे ॥७॥बहुसो पहुस्सुएहिंजो पत्तो ग य णिवारितो होति। वत्तणुपपत्तमार्ण जीएण कतहमति एवं ॥८॥ जो आगमे य मुत्ते य सुण्णतो आण धारणाए या सो वहारजीएणं कुणती बत्तामुक्त्तेचं ॥९॥ असुतो असुपत्थकतो जह असुयस्स अमुएण पहारो। असुअत्यषिय तह को असुतो असुएन ववहारो॥६८०॥तवणुकनंतो पवहारविहिं पर्युजति जहुतं । जीतेण एस मणितो बहारो चीरपुरिसहिं॥१॥धीरपुरिसपण्णत्तो पंचमयो आगमो विदुषसत्यो। पियधम्मऽवमभीरूपरिसजाताणुविष्णो य ॥२॥ सो जह कालावी अपटिकंतस्स णिविगायतु। मुहर्णतफिडियपाणगअसंवरेएषमादीम् ॥३॥ एगिन्ति गन्तबजे घट्टण तावेऽणमाद गाडे या णिविगतियमावीर्य जा आयामन्तमुरपणे॥४॥ विगलिंबनवपदमपरियारणगाडगाढवणे। पुरिमाविकमेण उमेत जाव खमणं तु॥५॥ पंचिदिपाहतावणणगाढमाटेतच उडवणे। एगासणमायाम समर्णवह पंचकहाणे ॥६॥ एमाबीजो एसो भायो होति जीयवहारो। अगाविसोहिकरो संविग्गणगारचिण्णोति ॥७॥ जं जीतं सावजण जीएण होति ववहारो। जंजीयमसावतेण उजीएण ववहारो॥८॥केरिस सावज केरिसयं वा मये असावा केरिसयस्सवादिजाति सावज वाचि इयरं वा ॥९॥ खार पबि(बी) हरमाला पोरेण व रिंगणं तु साकन। बसविद पायचित होइ असामाजीचं तु ॥६९०॥ जोसम्णे पहुबोसे निबंधस पक्षपणे य हिरवेपखे। एपारिसम्मि पुरिसे विजाति सावज जीयं तु॥१॥ संविग्गे पियधम्मे य अप्पमते या कामीबम्मिकन्ही पमायललिए देयमसायम जीयं तु ॥२॥जंजीयमसोहिकरण तेण जीएण होति वहारो। जजीचं सोहि तेण उ जीएम चहारो॥३॥ जंजीयमसोहिक पासस्थपमत्तसंजयाचिच्या जवि महापाचिन म तेण जीएण महारो ॥४॥ जंजीयं सोहिकर संकि. मापरायण बंणा एकेणविजाइण वेच उजीएमबहारो॥५॥ एवं जोक्सहस्स पीरविधुदेसितष्पसत्यस्त। निस्संदो वषहारस्स एस कहितो समासेण ॥६॥को विस्परेण यो. सूण समत्यो भिरवसेसए अत्ये। महारो जस्ल ठितं जीवाण मुहे सतसहसं? ॥७॥ किं पुष गुणोक्देसो क्वहारस्स तु विदुप्पसत्यस्त। एत में परिकहियं बालसंगल्स गवणीयं ॥८॥ बम्हारे पंचसुत्री विजत केण तु क्वारेमा बागमनहारेण तस्स अमाचा सुतेच तु॥९॥ सुतवहारजमाने महारं वमहरेज आणाए। जेणे सो उ सुतस्सा अणुसरितो एगदेसेणं ॥ ७० ॥ जाणाएँ अभावामओयवहार बहरेज धरणाए। जेणेसावि सुवस्सा कात एमबेसम्मि ॥१॥धारण गंतर जीयं एवं पुण जीयकष्ये पगर्य तु जेणेसो सावक्खो अणुसमा जाय तिस्पंति॥२॥अण्णचव खेतं काठ भावं पुरिस पडिसेवणासोयाचिति बल संघवर्ण वा बाक्खावि जीयकप्पो उ॥३॥ एस पर्सगामिहितो चोयगवयणाओं अहण जीवरसा वोच्छामि सोहर्ण तृ परमं सुसमाहितो एविं४॥'जीवति पानधारण' पाणा पुण आउमावि मिड्डिा । आबा जीवा जीविस्सा य जीवति हो जिनो ॥५॥होर विसोहण सोहण जह तू वस्वस्स तोयमावहिं। तब कम्ममलखाउरवियरस जीवस्स पच्छितं ॥६॥ एवं पुण पच्छितं परम पहाणति होति एगई। कस्सेयं परमती जीधस्स उ होड पच्छितं ॥ ७॥ संबरविणिजाराओं मोक्खस्स पहो सपो पहो वासि। तसो य पहाणंग पचिठतं जंचमानस्स मू०२॥८॥ संकर घहम पिहणं एगई सो य संक्रो दुविहो। वेसे सो यतहा एमेच य मिनरा विद्या ॥९॥ संबरियासपवारो नपकम्मोषजनमा पुषभितस्स सपर्ण विनिज़ारा सा उ माया ||७१०॥ सेलेसि पनिषत् एचरिमसमयम्मि बामाणे या तह १०२३ जीतकल्पभाय -
गुनि दीपरतसागर
अनुक्रम
~169~
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आगम
(३८/१)
प्रत
सूत्रांक [3]
दीप अनुक्रम [3]
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित
"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं )
अत्र आलोचना- प्रायश्चित वर्णयते
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मूलं [२]
आयं [१९]
आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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सहसंवरो निजरा य अवसेस देसम्म ॥ १ ॥ संवरविणिजराओ उभयमची मोक्सकारणं होति मोक्पो हेतु कारणंति एते उ एगडा ॥ २ ॥ एतेसिं दोन्हवि तू तयो पो हेउ कारणं होति । एतत्सविपच्छित्तं पहाणमंगं मुणेत ॥ ३ ॥ जेण तवो बारसहा पछि वितती तु दसमेदे तेण पहाणं अंग तवस्स तू होति पच्छित्तं ॥ ४ ॥ गाहापच्छदेणं तस्सवि जंभगिय जं च णाणस्स । वस्ततिमाहाए सारे तू तं चिमं आइ ॥ ५ ॥ सारो चरणं वस्सा णिवाणं चरणसाइणत्वं च पंच्छितं तेन तये मेयं मोक्खत्थिाऽवस्सं ॥ मू० ३ ॥ ६ ॥ सामाइयमादीयं सुतणाणं बिंदुसारजन्तं तस्सवि सारो चरण चरणस्तनि होति मेशनं ॥ ७॥ मेाणस्स अनंतर चरणं चरणा अनंतरं गाणं णाणविसुद्दीए पुण चारितविद्धया होति ॥ ८॥ चारितविमुद्धीए णेषाणफलं तु पावती अचिरा सा पुण परिससुद्धी पश्छित्ताहीन भावा ॥ ९ ॥ जन्हा एतेऽत्य गुष्मा पच्छिले गणिया तु सुसंधि। तन्हा गाय दहा मो क्खत्पिणा जहिमं ॥७२०॥ तं दसविहमालप्रेयणपडिकमणोमपविवेगबोसम्या त्वचेदमूलमवयाय पारंचियं देव ॥ ०४॥ १॥ आलोयन अरिहंती का मजाजा लोयणा गुरुलगापाव विगडिएर्ण सुज्झति पछि पढमेयं ॥ २ ॥ मिच्छारूढमेरोष व जं मुज्झती तु पावं तु ष य विगडिजति गुरुयो परिक्रममरिहं इषति एवं ॥ ३ ॥ जइतु अणामो खेलादी णिसिरितं तु होजाहि हिंसाइए य दोसे न य आपल्यो तु किंचिदवि ॥ ४॥ जे पाच सेवितूनं गुरुयो विगदिजती सम्मं तु गुरुदि पश्चिम तदुभयमेतं मुने ॥ ५ ॥ किंचिदहितं जहि अप्पं व अहव ऊनं तु विहिणा तु विचिन्ते पति विवेगजरिवं ॥ ६॥ जंकायचेमेतेन निरोतु सुझती पावं जह दुस्लिमिन्ाषीयं पि वियोसम्मं ॥ ७॥ णिङ्गीतियमादीजो उम्मासंतो उ जन्म दिज तु। एवं तयारि ममितं इदानि छेदारिहं बोच्च ॥ ८ ॥ जेन पडिसेबिएवं सिाह जस्स पृष्ठपरिवाओ। तत्तियमे छिनाइ सेसमपरियारखडा ॥ ९॥ जम्मि पडिसेवियम्मी सर्व सून पुशपरियायं पुष्णरवि महवयाई आरोविनंति मूलरि ॥ ७३० ॥ जम्मि पडिसेवियम्मी अणयो कचि काल कीरतु मूल पंचसु चिन्तनो पछ होतृर्ण ॥ १ ॥ वोसोवरयस्स उ महइयावण कीरती तस्स अन एसो एसी पारंचिये पोच्छं ॥ २ ॥ अंषु गतीपूजनयो पारंच गच्छती तु पारं तु तपमादीन कमलो सो लिंगाह चतुधातु ॥३॥ बालप्रेयममादीनं दसन्ह या एस होति डित्यो साने सहाने विमागतो इनमो वोच्छामि ॥४॥ करणा जोगा तेषयुक्त्तस्स निरतियारस्स छडमत्यस्स विसोही जणो आलोयणा मचिया ॥ मु० ५॥५॥ के पुर्ण करा ? जे तिल्यंकरगणहोगा । सुतानुसारबो तू संजम दुफ्लया हेऊ ॥ ६ ॥ जेतिय जे विदिद्वा जुजि जोगे कामादिवा तिमि । जं जीचे जुजयती पेरवती वा ततो जोगा ॥ ७॥ संचय एते मुहपुतियमादि जाच उत्समो विपरायो (इ)समायारी जा अहिवंत सुतमि ॥ ८ ॥ ते तु जया उदउसो असल करे निरतिचारो व जालोयणमेव च सुदी तु मस्स ॥ ९ ॥ छउ कम्मं सम्म माजावर गावरणं मोहणिय अंतराय चउचि होति नाय ॥ ७४ ॥ ते तु जया कर निजे उपयुक्त करेति निरविवारो य म सत्य का सुद्धी? का व अमुदी १ पोति ॥ १ ॥ गुरुराह तत्यचेा जा किरिया मे आसवेनुं था। अब पमाया मुटुमा अतिचार न जानती छतुमो ॥ २ ॥ ते इयारा हुमा आलोयमेत्तया विज्झति । सा आलोय चोय कर पिजा ती जोगेसु ॥ ३ ॥ को कारयो ? जती तू ज साहू समलियो विनिदियो। पंचम गाइ समता गाई छ इयं वोच्छं ॥ ४ ॥ आहाराईगहने तह पहियाणिमेस मेगे। उधारविहारामणिचेयजइदयादी ॥ ६॥४५॥ आहारो जेसिबी सोचा होइमो उ आहारो म पानं लाइम साहिम होती च तु ६ ॥ आदिग्गणं पुण सेजासंचारच त्थपायड़ा। पाउंछणजट्टा वा ओहोपडा वा ॥ | अब गिलाणस्सा जारिए बाल बुद्ध लगाए या दुष्बल सेहे व महोदरे व आजामा ॥ ८ ॥ एते पाप आहारो अब होन सेजादी ओसहाय एमादी होज अहो उ ॥ ९॥ एवेसिं अाए गुरु पुष्छता गुरूचा सासारजो तु उपयुक्त विद्वीप घेतृणं ॥७५॥ जाती गुरुण जं जह गहियं तु मलमादीयं सुत्तानुसारतो तू आलोयणमेत्तयो सुद्धो ॥ १ ॥ सीसाह जई एवं बहिणं होत एव तु तो गणमेव स आहारावीण मा कुरु ॥ २ ॥ योजग जदि एवं तु संजमजोगाउ हाँति संपुष्णा आहारमाइयाण को नाम परिहं कुल १ ॥ ३॥ अच इमो दोसो अग्गहना पावती महंतो उ जायरियादी पत्ता नागादीगं च योच्छेदो ॥ ४ ॥ तम्हा अवस्समहणं आहारादीन होति बिहिना उ आहाराने एमो पादो समत्तेतो ॥ ५॥ निम्म गुरुलाओ जाओ का इज मेगा निगम कुलादिया इन पोच्छामि ॥ ६॥ कुलमसंचे चेहय तरवविणास दुविमेदे एसि निवारणचा गुरु करे निम्मणं ॥ ७ ॥ संचारादीन अहा अपमा पाडिहारीणं । निग्ामो गुरुमूलाओ सीओ वा करेजाहि ॥ ८ ॥ माहापच्छदेणं जं मणितुकारअयचिसो तु जवणी भूमी अम्यति तेन उ उच्चारभूमीठ ॥ ९ ॥ सझायविहारो तु पणीसहिजो विहारभूमी । इदम गच्छे आसन्न दूरं वा ॥ ७६० ॥ आयरिया तु अपुरा अड्या साडू अतीव संचिया वंदनसंशयहे गच्छे वासच दूरंगा ॥१॥ बादीह पोर्ण पुण सड्ढा सण्णाय अडुव ओसण्या दंसणगाण निम्म्म ओच्छणा ॥२॥ एतेहिं व कमेहिं गुरुला निम्मो उसाहूणं गाहा छ समता अरुणा पुणे (२५६) १०२४ जीतकल्पनाये - मुजि दीपरसागर
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [७] ------------- ------------- भाष्यं [७६३] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
लोएक चमत्तोऽनाल्याएं होती तो बासेविय हरजाहि। विमणि इत्यसथाओं परेण जर
प्रत
सूत्रांक
Tatatist
सनम यो॥३॥जंपन्न करणिज जतिको हत्यसयवाहिरायरिया अनियडियम्मि असुद्धो आलोएतो तय सोम०७॥४॥ जपणं पसंती करणिज त इमंत खेतारी। इत्यसया आरेणं परयोग पवक्खामि ॥५॥ वित्तपहिले पंडिल निक्समर्णबह होज सहस्सा संवर्णकोई आपरिवादीपना तु॥६॥त्यसयाओं परेणं जैआय. रियत होज खेतादी। समितिविमुदिणिमित्त अवस्स आलोय कुमाजाज पुण हत्यसयानो अंतो बासेविय हजाहि। व निगडिना किंची अहवन विगडिमा विधि॥८॥ जह पासवणलेलसिंघाणगाविउक्युले मत्वि आलोया। जालोएश पमतोऽवालोवर होवऽसुबो तुम सत्तम गाइ समत्ता एसो पुच्छामि बहुमं गाह। कारणनिम्नामें जत्य उसपरगणाओ व आगमण ॥ ७७०॥ कारणविनिमयस्स ब लगनाबो परमनागमस्सविय। उसंपया विहारे बालोयनमणाचारस्म ॥ मू.८॥१॥ दुषिको उणिग्गमो खल कारण निकारणोपगच्छाओ। असिवादी कारणिो निकारण बघूमाची ॥२॥अलिये जोमोयरिए रायड भए । मेलम्अहवाचि उत्तम समाहिकामो तगमोजा ॥३॥ आयरियपेसणावी विणिग्गमो गच्छयोग होजाहिराकारणमिम्ममों" एसो निखारनयो इमं बोच्छ॥४॥चके घूमे पडिमा जम्मण मिपसमण जाण णिशाणे। महिम समोसरणे या सणायगवड्यमाबिसु ॥५॥ असमतऽकप्पियाण णिकारण णिमामा मवे एते। एते चिय कारणयो जयणाजुत्तस्स गीतस्स ॥६॥कारणपिणिग्गएर्ण णिस्तीयाराणची अपस्संतु।आलोयण दातमा समितिविमुदीणिमित्तं तु ॥७॥सा आलोयण इविद्या आहेग विमागतो बनाया। ओहो संखेषो ऊ विभागों पुण वित्थरो भणिओ ॥८॥ ओहो तस्य मो खल अर्थ-17 तरमबमासायरस । पविकतस्स य हरिवं साहुसमुरिसणवेला तु ॥९॥ निसंचारो य जती भत्तडीविय हवेज जदि सो तु। ओहेण तत्व आलोतृण तो मंडलि पपिसे ॥ ७८०11 अप्पा मूलगुणेसु विराहणा अप्प उत्तरगुणेसु । अप्पं पासत्वावसु बाणगहर्ण तुओहेसा ॥१॥ अण्णाय उ बेल्लाए विभागाोयणातु वाया। समितिविसुदिणिमित्तं एमेव य पक्त परयोनि ॥२॥ एवं ता कारणिए असिषादीणिम्गयस्स सगणाओ। अतियारविरहियस्सचि आलोयणमेत्तयो सुखी ॥३॥ जे बहियाऽगतसाहू ते विहा होन्ति तू मुतबा। समगुण्णउमणुण्णा या समणुज्य सगच्छतो व ॥४॥ परगणे जे अमणुष्णा ते दुविहा हॉति तू मुणेयका । संविणामसंविग्गा पासत्यावी असंविग्गा ॥५॥ परगणसंविग्गाओ जो साह आगतो उ अण्णगण । तेण अवस्साऽऽलोयण विमागतो होति दावा ॥६॥ उपसंपद पंचविछा सुत सुहाएक्ले य खेत मग्गे या विणयोवसंपयाविय पंचमिया होति नाया ॥७॥ पंचविहाएस नियमा एगविहाएवजत्य उपसंपे। निरतीयारेणविया विमागतोऽनस्सा डावया ॥८॥ विहरन्ति एगसंमोइया उकाडावती उगीतत्या। तत्थामत्य व लेने समगुण्णा एस गमाम्मि ॥९॥एगाह पणग पक्से चाउम्मासेऽपि जयवि मिलति। तत्व विभागालोयण अवरोच्या तेहि दायमा ॥७९॥ आलोयणारिहंति पदम बार इर्य समक्वान। पडिकमणातिमेत्तो वितिय दारं गर्म घोच्छ ॥१॥ गुत्तीसमितिषमत्ता(माए) गुरुणो आसायणाविणयमंगे।इच्छाईणमकरणे लहुसमुसाविष्णमुच्छासु समू. ९॥ निरि(पुख)मखणम्मिगुत्ता ताणि मणादीणि होन्ति विष्णेच तेहि कहिचि पमा साह करेजा मतेच॥३॥ दुधितिय दुम्भासिय दुवेद्विय एसऽगुत्तिया होति। मणमादीगं कमलो एस पमानो उ साहुस्स ॥४॥ गुत्ता होइ कहष्णू मणमाबीहिंतु साहुणो निचं । तस्योबाहरणेत जिणदासादी इमे बोच्छ॥५॥ मणगुत्तीए सहियं जिणवासो सावओ उ सेविसुतो। सो सनराइपडिम पडिवण्णो जाणसालाए ॥६॥ भनुम्मामिगपालंक घेतु सीलनुपमागया तत्य । तस्सेच पायगुरि मंचगपाद ठकेऊन ॥७॥ अणयारमावरती पादो विजो य मंचवीलेणं । तोतं महंतिवियणं अहियासेती सहिंसम्म ॥८॥मणदुबमुप्पणं ण तस्स झाणम्मि मिचलमइस्सा बळूण तीय विलिय इय मनगुत्ती करतण्या ॥९॥ वगुत्तीए साहसण्णायगपति गठए बढ़े। चोरगह सेणाचा विमोइतो मणिउमा साह ॥८००॥ बलिया बजाजत्ता सम्णायग मिलिय अंतराचेवा माइपितिमातिमादी सोवि णियत्तो सम तेहि ॥१॥ तेणेहि गहित मुसिया विट्ठो तो बिन्त सोमो समणी। अम्हेरि गहियमुछो तो बेती अम्मया तस्स ॥२॥ तुम्हेहि गहिय मुक' आम आणेह बेति तरियं । जा जिंदामि वर्णति किती सेणावती भणा ॥३॥ जायजम्म एसो वि अम्तहाविणवि सि?। कह पुत्तोसी आम कह गवि सिहाति धम्मकहा॥४॥आउदो उक्संतो मुका मज्झपितसि मापत्तिा सई समप्पयंती वहात्ती एव कासवा ॥५॥ काइगगुवाहरणं अबाणपवण्णगो जहा साहू। आचासियम्मि सत्ये ण लमति तहि वंडिलं किंचि॥६॥ लबचण किहवी एगो पाओ जहि पाहाइ। ताहिय ठिएगपादो सा राई तहा पद्धो॥७॥ण प ठवितो वेणार्थदिलम्मि होतामेव गुत्तेणं । सुमहन्मएवि आबा साहुगनिदे गई एगो ॥८॥ सकपसमा अस्मारहाण देवागमो विउब्बणया। मंडुलि सुमबह जतणा सो संकमे सणियं ॥९॥हत्वी विगुधिजो या आगच्छति ममातो गुलगुलेंतो।जय कुमति गतीमेवं गएम इत्येण उमादो ॥८१०॥ बेड पडतो मियामिदुर जिब विराहिया मेत्ति। गवि अप्पाणेचिंता देखो को बमसति य॥१॥ गुत्तीका मणिय अगुतगुत्तोषिपसंगेन । समिईदार यो समिती समतिवि(मितिति)माताओ | १०२५ जीतकरूपभाय -
मुनि दीपरतासागर
अनुक्रम
अत्र प्रतिक्रमण-प्रायश्चित वर्णयते
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Page #172
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आगम
(३८/१)
प्रत
सूत्रांक
[९]
दीप
अनुक्रम [3]
"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं )
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मूलं [९]
आयं [८१३]]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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॥२॥ गमण किरिया समिती सामण्णे परिणयरस वा गमणं सम्ममयतित्ति समिती सा पंचह हरियमादीया ॥ ३॥ कह समितीस पमादं साहू करेजा तु? भण्णाए सुणसु उदमुह फहरतो बम्बइ साहू पमाएसो ॥ ४ ॥ सावजभास भासति गारत्थिय टढरं व नासेजा एमादी तु माओ भासाए होति जातो ॥ ५ ॥ हितो गोयरम्मि संकितमादीस जो तुनाऽऽयुतो । मिखाएं गहणकाले एस एसो पमाज तु ॥ ६॥ आदाणमंडणिकस्येवणम्मि जो होइ एत्थऽनाउतो एसो होति पमायो एत्थ पमायम्मि उन्भंगा ॥ ७ ॥ गहनं आदाणती होत जिस नहाऽहित्यम्मि लिन पेरणे व भणितो अहिउक्लेवो तु णिकखेवो ॥ ८ ॥ नवि पेहेण पमजे पनि पेहे पमज्जती तु वितिभंगो पेहे ण पमज नतिजो पेह पमजे त्यो तु ॥ ९ ॥ जो सो सत्य भंगो पेहेति पमज्जती य तस्स पुणो मंगा भवति चउरो दुहदुपमजणे पढमो ॥ ८२० ॥ वितियो दुपहसुपमजणम्मि तहओ सुपेहदुपम सुपाडिलेहियसुपमज्जयमिंगो त्येसो ॥ १ ॥ आदिमभंगा तिणि अपेअपमज्जणे य पदमादी तिणि दुपेहादीविय उन्भंगा होति एते ऊ ॥ २ ॥ उचारे पासवणे खेले सिंघाणमादियाणं च परिठवणे एपि हूपमाइणी होति उम्भंगा ॥ ३ ॥ परिठवणुचारादी उच्चरती तेण होति उचारो। परसवन्ति य तेणें पासवणं भण्णए काई ॥ ४॥ अहनुबाई काइय पाय सवई य पासवणसण्णा। ये उलणाओ खेलो गालिओ सिंघाणो ॥५॥ एस माओ भणितो पंचसु समिसु इरियमादीसु। अहूण पर्सगेणं चिय वोच्छामि अप्पमायं तु ॥ ६॥ जुगमे
दिदी पद पद नसति च च अखितायुतोऽरहणको एत्युदाहरणं ॥ ७॥ अह अरणगसाहू समितीअसमीय गड्ड डेवन्तो उलिओ पादो छिन्यो अण्णाए संधि यात्रिं ॥ ८॥ भासासमिती साहू भिक्खट्टा नगररोहए कोयी जिम बाहिकडाए हिंडतो केणयी पुडो ॥ ९ ॥ केवइय आस हत्यी? पणणिचयो दारुधन्णमादीणि णिचिष्णमणिविष्णुं नगर? तो हम समितो ॥ ८३०॥ बेह ण वाणामोती सज्झायाणजोगवखिता हिंडता जवि पिच्छ नवि सुणह किह हु? तो बेति ॥ १ ॥ बहुं सुणेति कण्णेहिं बहु अच्छी पेच्छति। ण य दिई सुयं सवं भिक्खु अक्साउमरहति ॥ २ ॥ अव व भासति कजे रिजमकारणे ण भारतिय विकविसोतियपरिवजितो जती भासणासमितो ॥ ३ ॥ बायालसणाओ भोयणदासे य जो विसोहति। सो एसणाए समिओ दितो इत्य वसुदेवो ॥ ४॥ वसुदेव अण्णज़म्मे आहरणं एसणाएं समिएणं मगहा दिग्गामे गोयम भिजाइ वक परो ॥ ५ ॥ तस्स] [य] वारुणिभजा गन्भो तीए कमाइ समूओ चिलाइ मतो उम्मासि गम्म घेज्जावणी जाए ॥ ६ ॥ मातुलवण कम्मकरण पेयारणा अलोएर्ण गत्थि तुह एत्थ किंचितो ती माउलो तं च ॥ ७॥ मा गुण लोयस्स तुमं पूषाओ तिष्णि तासि जेवरी दाहामि करें कम्म पक्रयो पत्ते य बीवाई ॥ ८ ॥ साच्च विष्णो माउलओ मणति अष्ण दाहामि। साचि तव यच्तयंती छ य साचि ॥ ९॥ मणि नंदिवदणआयरियाणं सगासि क्खितो जाओ उदुक्खमओ गिष् य अभिग्गहमिमं तु ॥ ८४० ॥ बालगिलाणादीणं वेयावचं मए तु काय तं कुण तिवसा वायजसो सगुणकिती ॥ १ ॥ अस्तरहाण देवस्स आगमो कुणइ दो समणरूले अतिसारगहियमेगो अड वीय ठियो गजो वितिओ ॥ २ ॥ बेति य गिठाणों पडितों यावच तु तह जो उ सो सिन्धं उहेतू सुतं च तं नंदिसेणेणं ॥ ३ ॥ उट्टोववासपारणगमाणितो कवल पेन्तुकामेण तं सुत मोनुं रममुट्टि व मण केण कर्जति ॥ ४ ॥ पाणगदर्श च तहिं जंगीण बेति कति गम्य आहिते असणं कुणति ण य पेले ॥ ५॥ इति एकवार वितियं च हिडिओ लद तयचाराए। अणुकंपा तुरंतो गयो यतो तसा तु ॥६॥ रफल्सरेहिं को सो गिलाणतो कहो दे मंदभग्ग पु(कु)किय सति तं णाममेणं ॥ ७॥ सामृचयारिति तुमं णाम अह तु उरिखि आयो एयाएँ अवस्थाए अच्छसि भलोहिलो ॥ ८॥ अयमन ममाणो तं फलगिरं तु सो ससंभंतो तो खामेनी धुवतिय समन् तिं तु ॥ ९ ॥ उद्वे क्यामोनी नह काहामो जहा उ अचिरेणं होहिह णिरूया तुम्मे देती ण तरामि गंतु जे ॥ ८५० ॥ आरुमा पीए आरूडो ताहे तो पयारं तु परमा दुग्धं मुंचति सो तस्स पट्टी ॥ १ ॥ फल्स बेति दुमुष्टिय नेगविधाओं कनोति दुक्खविओ इ बहुविकसति पदे पदे सोचि भगवंतु ॥ २ ॥ ण गणेनी फरसगिरं नवि अ हु बुद्धिसहममुद्गर्भ च। चंदणमित्र मणतो मिच्छामी दुक] भगति ॥ ३ ॥ चिते कि करेमी कह णु समाही हवेज साहुस्स १ इय बहुविष्यमारं गवि निष्णो जाहे लामे (लोमे) ॥ ४ ॥ नाहे अमिता गतो तो आगयो य इमरोनि आलोएड गुरूहि यपष्णोति तयो समसो ॥ ५ ॥ जह तेण गवि पेत्रिय एस इ एवं साहुणा शिवं जज एमेसा एसणसमिती समक्लाया ॥ ६ ॥ पुचिक्तु परिस्त्रिय पमजिउ जो उपेति गिव्ह ना आयाणभंडनिक्लेवणाएं सो होइ इह समितो ॥ ७॥ एत्यवि ने किय गंगा काया जान होनि अंतिमतो सुप्पडिलेहियमुपमजयं च भगो उत्यो उ ॥ ८॥ एसो गेसो एवं तम्मुवत्तोस होति खलु समितो आहरण गुरुण भणिनो साहू वचामो गामनि ॥ ९. ओगाहिए पट्टिमाह ताहे ठिया कारणेण केणाषि तत्थेगो पेहे मिक्सिक्ती विज पुण आइ ॥ ८६०॥ मेहियमेतं किं पेणा पुणो ? हो एत्य किं सप्पो ? समितिदेवयाविति नत्थ १०२६ जीनकन्यभाये -
मुनि सागर
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [९...] ------------- --------------- भाष्यं [८६१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत
सूत्रांक
तो सप्पो॥१॥ उम्घाहिए यदिडो आउदो बेति मिच्छकार च। समिताऽसमिता एते उकोस जहष्णया होन्ति ॥२॥ उच्चारं पासवर्ण खेलादि अण्णपाणमहिय वा। सुनिइए पदेसे णिसिरंतो होह समिबो॥३॥ इत्यपि ते बिय मंगा तहेव समियो तु अंतिमे होति। आहरण धम्मरुती परिठावणसमितिमुजुनो ॥४॥ काइयऽसमाहि परिठावणे य महितो अ. मिग्गहो तेणं सकपसंसा अस्सरहाण देवागम विडो॥५॥ सुबह पिपीलियाओ बाहाहा याचिकाइयऽसमाही। अण्णो थकाइयाए उपद्वितो यजं असह ॥६॥ जयं तुकाइयाडी
र परिव समाहिमा अच्छा निम्मच णिसिरे जहि जहि पिपीलिया उसरे सत्य ॥७॥ अहसाह किलामिजाताहे पीती य चरिता देवेचा मा मा य णिसिदोजीमा पिय देवो ।
बाजो।दावविच गतो देवी समितीस एवं होति जतिताई। एत पसगाभिहित आसारण म बोच्यामि ॥९॥ गुरुखो आवरिया तणावादीओ उ होड आयारो। आयरण पर सवणया वा सो सिमाजसाणा ॥॥तीय विमासा इनमो वासातण दुपरवयणमेयन्तिा आयो य सातणाव आया उसाडणाजा उ॥१॥सा होती आसातण आओ लाभो.
ति आगमो याचि। जाणावीणं साया सायण सो विणासोसि ॥२॥आतस्स साढणती बकारलोचम्मि होडासयणा । आवरियाणं णमा आसवणा होइमेहिन॥३॥डहरो अकुलीणोतिषम्मेहो एमग मंदबुदिति। अवि अप्पलाभलबीसीसो परिभवा आयरियं ॥४॥ अहवांचि पदे एवं उपदेस परस्स देन्ति एवं तु वसपिह बेयापर्य काया सयंण कुवंति
५॥ अहव तिहा मासायण मणवाकाएण मणपदोसादी। बायाए आसायण अंतरमासादि कुरिना ॥६॥काएणं संपट्टण जमलित पुरतो व पचती पथे। अहना आसायणमो तुसिभीमादी मुणेवा ॥ ७॥आलसे पाहिले वाचारिय पुचिठए णिसट्टे या। गुरुवयणा पंचेते सीसस तु का इमेकेके ॥८॥तुसिणीए हुंकारे कितिवकिपड़गर करेसि?लि। कि णिपुर बदेसी? केवायं वापिरहसिति॥९॥ एवं छा आलले तुसिणीमादी उ हॉति णातबा। बाहित्तादिप उचिव एकेकपयश्मि पोदना ॥८॥ गुरुत्रासायण भणिया एतो वोच्छा| मि विणय गं तुागविह अम्भूठाणे अभिगहे आसणे चेव ॥१॥ आसणवाणं सकारणा य सम्माणणाय कितिकम्मे। अंजलिपग्महणं अणुगती व ठितपनुवासणता ॥२॥ जते पडिसंसाइण आसणमावीदिहोति सकारो। सम्माणो उवहीए जोगं जं जस्स ने कुजा ॥३॥ कप्पो संचारो वा जहिं बेहो अच्छाई तु आपरिजओ। णाचागमस काल पडिलेहिय घेतुन अच्छे॥४॥कितिकम्म परणय हस्युस्सेहो पिडालदेसम्मि। अंजलिपम्हमेत सेसा उपयाहु कठोता ॥५॥ एमादी पिणर्य जोणवि कुणती उपरिषमादीण विणयम्भंगो एसो | सत्तविहो अहवामाणादी ॥६॥माणे सण चरणे मण वह काबोवयार सत्तविहो। एतेसु अपहले समासओ एस मंगो तु॥७॥ विणयम्भंगो एसो ओहेच समासओ समक्खायो। उच्छादी वसहा तूअकरनेणमोतू (णमेते तु)बोच्छामि ॥८॥इच्छा मिच्छा तहकारो, आगसिया य मिसीहिया । आपुच्छणा व परिपुण्डा, दणा य निमंत्रणा ॥९॥ उवर्स-2 पया बकाले गच्छादिअकरणया उ वसहेसा। लहुसमुसाबादादी एतो उसमासतो वोच्चम् ॥ ८९०॥ पयलाउहो मए पथक्साणे य गमण परिवाए। समुदेस संखडीओ मुड्ड्य परिहारिव सहीओ(स्समुही)॥१॥अक्स गमणे दिसाय एमकुले चेव एगदधेयाएमादी तु पदेहि मुसं तुलस गए साहु ॥२॥ पयलासि किं दिवाण पयलामिरहू चिनियणिण्हवे गुरुतो। अण्णबाविय णिचापि बागा गुरुगा बहुतरार्ण ॥३॥णिवणे निवणे पश्चिात बदई ऊजा सपर्य । लहगुरुमासो सुहमो बहुमादी बायरो होति ॥४॥ कि पचसि पासण गचिट गणु पासचिवको एते। मुंजती मिह माया कहति गणु सहगेहेसु ॥५॥ मुंज पथक्खाणं महंसि ताखण प जियो पुट्टो किरण मे पंचविहा पचरखाना अविरतीओ ॥६॥ बचासि ? णाई पच्चे तक्रवण पच्चंत पुचिको भणति । सिद्ध कवि जागहणणु गम्मति गम्ममाण तु॥७॥ बस एयरस य मजा य पुच्छितों परियाग मे तु कलेण । मजा भवति यदिए भणार पंचमा दस उ॥८॥बह तुसमुसो कि अचाह' कत्य' एस गवर्णमि । वहन्ति संखडीओ घरेस गणु याउखंडणया ॥९॥ सुबमजणणी उ मुया परुष्णों ठियात्तिएव मणियमि। माता साजिया भबिसु ने समायाने ॥२०॥ ओसणे बठूर्ण बहा परिहारियत्ति हुकहने। कत्युनाणे गुरुत्री अदिङ बिहे यलगुगा ॥१॥ छात--
गाउ नियने आलोएतम्मि उम्गुरू होन्ति। परिहरमाणा विकह अपरिहारी भवे दो ॥२॥ वाणुगमाई मूल सब्जे तुम्भेऽहंति अणवडी । सचे उबाहिरा पक्यणस्स तुम्मेति पारंची॥३॥मण पय विद्वणियहे आलोपार्मति घोडगमुहीउ। किमगुस्सी सम्वेगो सके बाहिं पवयमस्स ॥४॥ मासो लाओ गुरुओ बउरो मासाहतिगुरुगा। उम्मासा लहुगुरुगा दो मूल ब च॥५॥ गच्छसि मताव गच्छ तक्खण वर्चत पुच्छितो भना। बेला ताबन जाया परलोग वाचि मोक्रस वा ॥६॥ कतरि दिसि गमिस्ससि पुर्व अवर गतो मनति पुहो। विवाहोति पुवाइमा दिसा अवरगामस्स७॥बहमेगकुलं गच्छ वह बहलपवेसने पुहो। मणति कई बोणि कुले एनसरीरेण पविसि ॥८॥ पाह एवं पेभेगमा पुच्छितो भणति। गहर्ष तुलसणं योग्गलान भन्ने सिनेमेगं ॥९॥ पयादी तुपदा खलु एमेवे पग्निया समासेगा लड्गुक्या जाच मुसलासगमेयं मुणे. १०२७ जीतकस्यमाय -
मुनि दीपरासागर
अनुक्रम
परलोग काम गरओ चउरो । सो कार सगुणा
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [१०] ------------- --------------------------- भाष्यं [९११] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत
सूत्राक [१०]]
ला ॥९१०॥ तणढगलकारमागउम्गहमणणुण्णवेतु जो गिरहे । लहुसग अदत्तमेय अहवा रक्खादिस लास ॥१॥ महणंत पायकेसरि पत्तहरण बगोच्यो बेचा लहसपरिमहमेसो मुच्छ करंतस्स साहुस्स ॥२॥ अहवावि इमो अच्नो सम्जातरगोणसाणकागादी। धारण कायङ्कस्स र लखममत्तादि जातु ॥३॥ वितियषयतनिवपंचमलहस्सगा ए हॉति मानना । गाहेसा तु समत्ता गनमी बसमि अतो वोच्छ ॥४॥ अविहीय कासजमियखुपवायाऽसंकिलिकमेम। करपहासचिवदाकसायक्सियाजुसंगे।मू०१०॥५॥ अपिही। हत्यमदा आहवा मुहर्णतयं अदाचूर्ण। जमाइएवि एवं सत्रएपी एच वत्त ॥६॥सुत्ति कत से सुइतं कीयं वा होति ह उसात तु। वायजिसम्मो चिहो उहडे व अहे बनायो ॥७॥ उइट उडडोयादी पायनिसम्मो अहे पुणेतब्बो। मुहर्णतय इत्यं वा उहडोए तस्य जयनाए ॥८॥ पुयकावणा उडे वायणिसम्गस्स होर जयणेसा। यथिरितो जो खलुट अविहीए सो णिसम्मो तु॥९॥यणमेषणमादी असंफिलिद्वे व होडकमंतु। कंदप्पो वायाए कारण यहोति मातनो॥९२०॥हास तुहासमेत विकमा पुणस्थिमाइया पठहा। कोहादी उकसाया विसया सहाया या ॥१॥जातेसि तु पसजण सहसाऽणाभोगयो र साहुणं। सो होति विसयसंगो अविहीगाहा समत्ता उ॥२॥ ललितस्स य समस्यवि हिंस-1 मणावजओ जयन्तस्सा सहसाऽणामोगेण । मिष्ठकारो पदिकमणं मू०११॥३॥ खलमा विहा मणिया सहसाऽणाभोगतो व होजादि।सा काय पुणो विहा' सात्य इन पवक्वामि॥४॥सवएस गति समिती गानादिएमबहवेना । सम्पत्यवि एतेस खलणेसा होति जायच्या ॥५॥ सहसाऽणाभोगेच हिंसमणावजओ जयन्तस्स सहसाणा-2
भोगाणं को गु विसेसोनिचोर॥६॥ आउत्तोऽपिय होतुं कारेन्तोऽपियन याचनीयारं। जहज़ करेमि एवं कए पनार्थ जणाभोगो ॥७॥आउन पुनमासा पडिसेषण सहसास वा एष आ तु भये । ण चतरति णियने सहसकारो भये एसो ॥८॥ सहसाणाभोगा ऊ मनत्य उ पग्निया समासेणं । एस विसोहिहाणं मियाकारो परिकम ॥९॥आभोगेपनि
तणुएमणेहमयसोगबाउसादीमा रिपसोगविगहाविएस गवं पडिकमणं । मू०१२॥९३०॥ आभोगे जाणतो तणुओ बोवे तुहोति णातको। पुण करेज कप्पाइसेजतरसण्णिमाइमा वा॥१॥एमावी हा अंकय कप्पगगादि आभोगा। तस्स तुपायचित्तं मिच्छकारो पटिकम ॥२॥ तणुओ हो मणितो मय सतमिह हम नमोच्छामिबिपरलोगाऽऽयाणे अकर आजीवियऽसिलोए ॥३॥ मरणभयं सत्तमयं एतेसि समासतो विभागों इमो । मणुजा मणुवस्सेव तु देवा देवस्स तिरीउ तिरिए तु॥४॥ बीमा सजाईए लोगभए यहोतिबो
बं। परन्टोगमय विसरिस जह मणुओंबी लिरिदेवा ॥५॥धणमायाण मण्णनितम्भय चोरादियाम बीमे। तस्सेव य रक्खडा पापागाराज कुणति ॥६॥ अणिमित्त अकम्हभयं मवि किंची पासती तहवि भीमे। अहवीए रातीय आजीवमयं जहा अहणो॥७॥ दुकालो आयेसो कह जीवीहति' एस चितेति। मरणभय सिदै थिय मरणमिति मह.
भयं जह॥८॥ असिलोगोलिक अयसो जा एव करिस्स होहि अयसो । असिन्लोगभय एवं वेयणभय होसीयादी ॥९॥सलपिह भयमेवं एएसु उ बहियं तुजे तणुए। तस्स चिसोहिहार्ण मिच्छकारो परिकमणं ॥९४०॥ सोर्ग आभोएणवि चिन्तादि करति विपयोगम्भि। तस्स तु पापभिमान मियकारो परिकम ॥१॥ आभोगमणामागे संबडमसंगो य अहमरमे। पंचविहो बाउसिओ सुहमाभोगेण पगयेत्य ॥२॥ कंदप्पादी तु पदा पृतकमा तु इसमगाहाए। एष जहुरिटेम् तणुए सोही पदिकमणं ॥३॥ वितियार समन पडिकमणारिहमण ततिय तु तदुभयवार गोयं तस्य इमा होड माहातु ॥४॥ संभमभयातुराबतिसहसाणामोगऽणप्पवसत्रो वा। समयातीयारे लाभयमासंकिने व ॥ मू०१३ ॥५॥ संभमेऽणेमविहो खलु हत्यी अगणी उदगमादीओ। भय दसुग मिलमसूबा मालबतेणाइजो पहा ॥६॥ पदमवितीयातिएहि परीसदेहाऽऽतुरो उपहा तुा जावा पहा इणमो समासतो पापखामि ॥७॥ वाचति खेतामा कालापा भाषावई वा दबावती तुजंदुलभ होति साहुस्स ॥८॥विस्थिण्णमडम्बा(पा)दीखेजापति एस होणालया। कालावती तु ओमे माये तु गुरू गिलाणादी ॥९॥ सहसाणामोगा न पृष्वृत्ता अहुल बोमणप्यवसो। मायक्सो उ परवसो सो होनि इमेखि कोहि ॥९५०॥पायपिनियसिमिय अहवाची होज मणिनाएण। एनेहि अणपालो आहवा होजा इमेहि तु॥१॥ जक्खाइहसरीरो मोहणिए अहर होज कम्मरए। एतेहिं अगप्पासो होजाही कारणेति ॥२॥ जहरिद्वेसं संभममादीस कारणेमुं तु । समयायियारं गास तु करेनऽमप्पासो ॥३॥ पुढविजलअगणिमारुयाणस्मती कुज फक्तहणं था। वियनियपाउरो पंचिदिय व साह विरादेना ॥४॥ एष मुसाबादादी अणपको आयरेज साहू तु । पिंडक्सिोहादीणि व संवेजक उत्तरगुणाणि ॥५॥ एमावी आवरणे अतियार विसोहि समय होति। तामय गुरुमालय मियामी पनि ॥६॥आसकिए तदुभयं मूलगुणे उत्तरे य गान । परिच्छिरित गरि सके कलमकर्य एस आसंका ॥७॥ इवितिय एम्मासिय रहिय एषमारियं महा। उपउत्तोविण यापति देवसियातियाराति।मू.१४॥८॥ 'दुत्ति दुगुका धातू संजमउक्रोहि कुष्म्यि होति । तमणसा जामितिय दुधितिय एच मान ॥९॥एवंम्मालियर एवंद्विय एवमेव मातम् । पहिलेहियमादी आदीसहेण बोबा ॥९६०॥ एमादियं तु बहुसो अणेगसो होइइ मणेतः । उपउत्तोविण जाणति मवि समरती उजमणियं ॥१॥ (२५७) २०२८ जीतकल्पभाष्य -
मुनि दीपरासागर अत्र तदुभय-प्रायश्चित वर्णयते
अनुक्रम
[१०]
~174~
Page #175
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [१५] ------------- ---------------- भाष्यं [९७०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [१५]]
आदिम्गहणेणं पुण राज्य पक्खिय तहेव चाउमासे । संवच्छरिए यतहा अतियारा होति बोबा ॥२॥ सासु य वितियपए देसणणाणवरणावराहेसु । आउसस्स तदुभयं सहसकाराणा चेच ॥मू०१५॥३॥ पटम उस्सम्गपदं अववादपयं तु विविययं होति। सवग्गणेणं पुण सावराहा मुयशा ॥४॥ सणणाणचरिते जे अवराहातु होस्ति गीतत्थे। कारणजयणाजुत्ते एवं जयंतस्स जे उमये ॥५॥जह तिक्लउदमनेगे चिसमम्मिचिजश्मि तो। कुणमामोवि पयतं अचसो जहपावए पडणं ॥६॥ तह समणसुविहियाचं सापयत्तेणची जयंतागं।
कम्मोदयपचाइया विराहणा कस्साहवेजा ॥७॥ एरिसजवणाजुले तस्स विलोहीय तनुभयं होति। सहसाविहोइ बनुभयं आवणे सणाईसु ॥८॥ताभयकार सम विवेगदारं A अयो पक्क्वामि। कस्स पुण विवेगो ? तत्व इमा होति गाहातु॥९॥ पिंडोबहिसेजादी महिय कडजोगिणोषयुत्तेगं । पच्छा गायममुख सुबो चिहिणा चिमिचती ॥मू०१६॥९७०॥ E'पिंडि संघाए' धातू पिंडो संघाओं मण्णए तन्हा। सोह सचिताई गवणयमेवो पुणेकेको॥१॥ पुढवीजाउकाएलेऊयाऊवणस्पती येवा इंदियतेवियचउरो पंचिदिया येव ॥२॥
एकेको पुण तिषिहो पुढचीमादी सचित्तमादीओ। सत्तावीसपमेयो पिंडेस समासतो होवि ॥३॥ ओहिय जोकणहिलो उवही दुविहीं समासतो होति। होर विभागेण पुण जह श्रमनिओ ओहजुनीए॥४मणति सिमा बसही आदीसहेण होति डगलादी। ओसहमेमजाणिय बाबीसदेच गहियाणि ॥५॥ कडजोगी गीयत्यो जे मुल होति जो उ गहि-ज
बत्यो। पिंडेसणपाणेसणवत्थेसणसेजमावीणं ॥६॥ अहया छेक्सुयादीमुत्तस्थाहिमितो तु गीयस्थो। गहित तेषुषयुत्तेण जात पच्छा असुदं तु ॥७केण असुब? भणति उम्मअम्पायणेसणाबीहिं। अहवापि संकियादी सो मुजाति विहि चिनिचतो ॥ ८॥कालवाणाऽतिच्छियमणुग्गवत्यमियगहियमसढो उाकारणगहिरिए भलादिविनिचणे सुबो । मू०१७
॥९॥ पदमाऐ पोरिसीए पदिगाहेताण असणपाणाडी। जो तायमनकामे कालातीतं धर्म होति ॥ ९८०॥जदोषणा परेण आणियनीय असणयाणादी। एयवाणातीत सो सट असतो बड़कामो॥१॥ विगहाकिड्डाबीहिं होति सदो एस होति असदो तु। मेलम्णवानहत्ता होमन सागारिया तत्व ॥२॥ पंडिलजमावा बा तेणाहि(दि)मयंपनत्य होनाहि। एमादीकोहि जसदो तू होणायडो॥३॥ एमादी जसदोज विही विनियों होति सुद्धो उ। अणुवित अत्यमिओषा गहियं असदेणिम योच्छ ॥४॥ गिरिराहमेहमाहियापसु. स्थापरिओं होज बा सविया । उम्मयबुद्धी साहू एमेव य होवऽणस्थमिए ॥५॥ पञ्छा मायमणुगाय आइप अत्यमित्रों एस इणि तु। एयण्णायंमिऽसदो सुद्धो तु पिड़ी बिगिचतो
॥६॥ आयरिए य गिलाणे पाहुणए लमग बाल पुढे या एतेसटा गहिसत होती कारणम्महि ॥७॥विहिपरिभुत्तुवरिय विही विनिचन्त होति सूर्य ताएये विवेगवारे एत्तो पोमच्छामि बोसा ॥८॥गमणागमणविहारे सुयंमि सावजसुविणयाविसु या गावाणविसंवारे पायच्छितं वियोसग्गो।मू०१८॥९॥ वसही गुस्मूला वा गमणं अग्णय पुणवागम।
एवं गमणागमणं विहारसज्झायभूमी तु॥९९०॥ तो समायणिमित्तं गमर्म अपत्य होज साहुस्स। गमणागमणविहारं णात होति एनं तु ॥ १॥ समितिविसुद्धिणिमिन एथं पच्छिन्न | होति उस्सगो। होति सुतं सुतणाणं उसगमादि णात ॥२॥ पट्सवणुदिसणे या समुदिसणे तय होतऽनुमाए। कालपटिकमणम्भि य सुपस्स एवं तु उस्सम्गो ॥३॥ पाणतिपायादीचा साक्जो सुमिणतो तु णानयो । आदिग्गहणेणं पुण अणवनउपसत्याएरॉपि गा चस्सदरगाहणाओ एस्सउणा दुणिमित्त गहिया उ। पढमक्यादीएम य सबेमु विसोहि उम्सगो ॥५॥णाचा चउबिहा तू समुरणाविक विग्णि उणदीए। उजाणी ओयाणी तिरिच्छमामी भवे तश्या ॥६॥ जंघडा संघहो णामी लेयोचारिं तु लेखुवरि । बाहोड़पाइओ खलु णविसंतारेगमादीजो ॥७॥णाबाबीहि पएहि जाप तु उडुपाबि संतरतो तु। सत्य तु पच्छित जतणाजुत्तस्स उस्सम्यो ॥भत्ते पाणे सपणासणे य अरहतसमगसेनासु। उबारे पासपणे पणवीस होन्ति उसासा ॥१९॥९॥ मत्त पाण कंठं सपणं सेजा उहोति मातबा। बास उवेसन' धातू उकविसणं आसणं होति ।१०००॥'अरह पूयाए' धातू पूवामरिहंति नेगर अरिहता। अरिहंति बंदण नमसणं चतम्हा तु अरिहंता ॥१॥कोहाई उ अरी ऊ हर रथ काम हो अहनिह। अरिणो करब ईता लम्हा उहति अरिहंता ॥२॥ बयणं सेज पहिस्सय भत्तादी जान होति सेना ऊाहत्यसयाउ परेणं गमनागमणम्मि सबस्य ॥३॥ समितिविदिणिमितं जयनाजुत्तस्स होति उस्सगो। पचीस उस्मासा उचारमयो तु वोच्छामि ॥४॥ उच्चारती उचार परसवती वेण होति परसवर्ण । सन्या काय कमसो आप इमो हो सबत्यो ॥५॥ उच्चरति कार्य तू जम्हा तेणं तु होति उच्चारो। पायं सवती जन्हा नन्हा नू होति पासवर्ण ॥६॥ परिठविएसएमु हत्यसया आरतो परतो वा। सोही काउस्सम्यो पनुनी होति उसासा ॥७॥ हत्यसतवाहिरातो गमणागमणारएस पणवीस । पाणिवहावि सुमिणए सतमहसतं चउत्पम्मिमु.२०॥८॥गाइव पदम कंठ पाणबहे सुमिणसने रातो। कतकारिबाबिएसुं विसोहि सास सतमेग॥९॥ एक मुसाचादाविस उत्सम्मो जाम होति णिसिमतं । सतमुस्सासाण भवे जहमतं पुण पउत्पम्मि ॥१.१॥ देसिय गाय पक्लिय चाउम्यासे बोब बरिसे या सतम तिणि सना पंच सतध्वनर सहसं ॥ ०२१ १०५५ जीतकल्पभाष्य -
मुनि दीपरागर
अनुक्रम
[१५]]
अत्र विवेकाह एवं कायोत्सर्ग-प्रायश्चित वर्णयेते
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [२१] -------------- ------------- भाष्यं [१०१२] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [२१]
दीप
॥१॥ देसियमादिपदार्ण कमसो ऊसासमाणमेवं तुने पुण कह विष्णेया उस्सासा ? नमिह वोच्छामि ॥२॥ लोयम्मुजोयगरा चउरो एगं सतं मुणेपम् । पंचासा दोहि भने तिपिण सया हॉनि बारसहि ॥३॥ पंच सया बीसाए असहस्सं च होति बत्ताए। देसियमाउस्सो होइ एवं तु परिमाणं ॥ ४॥ अहवा-पणुवीस अबतेरस सि लोग पणनार व बोदवा। सतमेगं पणवीसं दो बावण्णा य परिसणं ॥५॥ उदेस समुदसे सत्तावीस तहेक्ऽणुषणाए । अद्वेव य ऊसासा पटुवणापडिकमणमादी ॥ २२॥ ६॥ उसय अजायणे मुतखधे वेब होति अंगे य। उहिसणादिषयाणं सत्तावीस तु उस्सासा ॥ ७॥ पडुबणपटिकमगे अठुस्सासा उ होति उस्सगो। आदिग्गहणेणं पुण पट्टवयंसेवि अणुओगं॥८॥ कालपडिकमणेऽबिय अयसउणे चव होनि सधन्य । उम्सासा जद्द भये काउस्सग्गो मुणेतको ॥९॥ उसय अायणे मुतखधगेम कम पमाविस । कालाइकमणादिसु णाणायाराश्यारेसु ॥ मू०२३ ॥१०२०॥ गाणायारो दृविहो प्रोहण विभागयो य णानयो । उसय अन्झवणे सुवसंधगे विभागोतु ॥१॥ उदेसादिचाउण्डवि अतियारो अहहा मुगेलयो । पलेय पत्तेय कालानि इह परयणम्मि ॥२॥ काले पिणए बहमाणे उपहाणे तहा अणिण्हवणे । बंजण अन्य तदुभए जद्दविहो जाणमायारो ॥३॥ जो तु करेति अकाले सज्झार्य कुणा वा असाए। सम्झाए वा ण कुणनि कालतियारो भये एस ॥४॥ जच्चादिमदुम्मनो यदो विणयं ण कुव्वति गुरुणं हीलयादव जो तु गुरू विणयइयारो भये एस ॥५॥ गुनणाणम्मि गुरुस्मिक भनी बहमाण जो न ण करनि । भनी होयुपयारो बहमाणो गोरखसिणेहो ॥६॥ बहुमाणे अइयारो एमेसो पविणजो समासेणं। उपहाणं होति नबो आयंबिलमादिओ सोय ॥७॥ जो नंगा कुणनि साहू अहवाविण सरहेयमुवहाण। सो उवहाणतियारो गण्डवणेतो पवस्वामि ॥ ८॥ हिण्डवणं अवलवणं अमुगसगासे अहं गहिजामि । अणं जगप्पहाणं आयरियं सो उ उहिमनि ॥५॥णिण्हवणे अनिवारी एमेसा परिणतो समासणं। पंजणमादिपदाणं अतियारमतो पवस्वामि॥१०३०॥ भणितं बंजगमक्खर तपिणफण सुनं मुणेन। पागमणिबदमेयं समयमादी करेजाहि ॥१॥धम्मो मंगलमुकदं दया संपर गिजरा। तस्सेव य अत्यम्सा अण्णाणि य वंजणाणि करे ॥२॥ अहवा मना बि अषणभिहाणेण बाधित अन्य । जिजनि जेण अत्यो पंजणमिति भण्णने सुत्न ॥३॥ बंजणभेदेण उहं अत्यविणासो हवेज तुकयाई। अत्यविणासा चरण चरणविणासे अमोक्लो तुमक्षा मोक्ताभावानो पुण प्रयत्नदिक्खा गिरस्थिया होति। जम्हा एते दोसा तम्हा सुनंण भिदिजा ॥५॥ वंजणभेदो भणिओ अत्थे भेदं अनो पवस्वामि। अस्तु वियप्पनी तेहिं चिय पंजणेहपुर्ण ॥६॥ आयारे मुत्तमिर्ण आरती पंचमम्मि अज्झयणे। आवती के आवंनी लोगसि विपरि( रा )मुसतिति ॥ ॥ अट्ठाएँ अणवाए एनेसु विष्परामुसंती नुएवं गुनं आरिस अत्थ विकणेनिम प्राण ॥८॥ आवंती होनि देसो तत्व नु अरहट्ट कवजा केपा । सा पडिया हेडा तू तं लोगो विश्वरामुखद ॥५॥ अत्यविसंचाएवं तदुभयदारं दम पाखामि । जन्मनु मुनस्या खल बोधि पिणम्सनि न च इमं ॥१०४०॥ धम्मो मंगलमुकत्थो, अहिंसा पचतमस्थए । देवाधिनस्स णस्सनि, जस्स यम्मे सया मती(सी) ॥१॥ जहाकरम रंधति, कडेगु रहकारीडा रणो भनम्मि णो जन्त्य गरभी जन्य दीसति ॥२॥ एसो तदुभयभेदो दोणिविणासंनि एन्य मुनन्था। एवं नुण कात दोसा ने चेच पुत्रना॥३॥गामायारो एसो अविगप्पो जिणेहि पणनो। उडेसगमादीणं पपिउनुदितं इमं कमसा ॥४॥ णिविगतिय पुरिमटेगमन आयंबिल चाणागाटे। परिमादी खमणं आगाढ़े एवमस्थेवि ॥ २४॥५॥ उसे णिविनि पुरिमट सोहि होति अज्मयणे । सुनसंचे एमभनं अंगम्मि यहोनि आयामं ॥६॥ एवं नाऽणागादे गादजोगम्मि होति पुरिमादी। अनम्मि होनि खमण एमेच य होनि अन्धेऽवि॥७॥ सामण पुण मुने मनमायाम चउत्यमत्यम्मि। अप्पत्तापत्तावत्तपायणुदेसगादीस ॥२५॥८॥ ओहो सामणं तू साम्मी चेव होति मुनम्मि। अविसेसिय सुनये आयाम चउरच कमसोतु ॥५॥ अप्पनो दुबिहानमुनेण अस्थेण येव बोडष्यो । पृवित मुक्त अत्थे चिनिय अपनो मुणेतबो॥१०५०॥ निन्तिणिआदि अपत्तो आनो पए गएन णातयो। वायंतस्सव एने गुरुया उहिसादिसु य॥१॥ पत्नमवाएतत्सवि उदिसणादीसु र य पदेसु । चाउगुज्या बोदल्या अनवाए कारणा सुद्धो ॥२॥ कालाचिसजणादिस मंडलिवसु. हाऽपमजणादिस् य । णिवीनिये अकरणे अक्खणिसेना अमत्तहो ॥ २६॥३॥ कालाविसजणानी ण पटिकन त जमिह कालम्स । लिपिहा य होनि मंडली बसुहा भूमी मूगेतम्बा ॥४॥ भोयण सुने अन्धे तिनिहला मंडली मुणेयच्या। कालजविसरजण मंडलिभूमीअपमजणे विगती ॥५॥ सुखे का अन्थे वा ण करि णिसेग्नं च अश्व परएनि। चम्सहेगं बंदण उससम्माण कच्चति चउत्यं ॥६॥ आगादाणागादम्मि सयभंगे य देसभंगे या जोगे उपउत्थं पउथमायंबिल कमसो।। २७॥७॥ जोगो न होनि दुविहो आगाढो चेन नह अणागादो। दुविहऽपि होति भंग सम्वे देसे यणानको ॥८॥ सव्वम्भंगे छह होति बायतु देखें आगा। णामादे तु पठन्य सझे देसे पायाम ॥ ९॥ कह भगो सबम्मी कह ना देसम्म एव चोएति। भण्णानि फरविगडाहि गाहाहिं इस पयस्यामि ॥१०६०॥ विगति अणडा भुजतिन कुणइ आयंबिल ण साहनि। एसो उ सामंगो देसे मंगो इमो होनि १०३१जीनकापमा -
गनिदीपरजसागर
अनुक्रम [२१]
अत्र तप-प्रायश्चित वर्णयते
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [२७...] ------------- --------------- भाष्यं [१०६२] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत
सूत्रांक
[२७]
॥१॥ काउस्सग्गमकार्ड मुंजा भोतृण बा.कुणति पच्छा । संदिसहत्ति व मणती एवं देसे भवे भंगो ॥२॥ णाणायारो भणिो अङ्कविहो एस तू समासेणं । अहणा अहविहो थिय आवारो देसणे होति ॥३॥णिस्संकित विकसित णिपिलिमिष्ठा अमूढविवी या उचचूह थिरीकरणे बच्छाड पभाषणे अड ॥ ४॥ देसणधारो अहह एमेसो होइन समासेन । एतेसि विवक्रतो ऊ अइयारो होति सो य इमो॥५॥ संसयकरणं संका कंस्खा अण्णोष्णसणग्गाहो। वितिगिच्छा अप्पणो उ सोग्गनि होजाण बाविति ॥६॥ जहवा विद्गंा ऊ विउत्ति साहू हवेति णातया। ते उ दुग्छति णिचं मंडलि मोए व जनादी ॥७॥णेगपिहा इदीओ पूयं परतिस्थिवाण दळूण। सोनूणं वा जस्स उ मइमोहो होति मूडेसा ॥८उपयूह होति दुविहा पसत्य अपसथिया य णानष्पा । साहुर्ण तु पसन्था चरगावीणपुण्यसत्या तु ॥९॥ दसणणाणचरिने तवसंजमविणयवेयवचादी। अभुजयस्स उच्छाहवर्ण होति तु पसत्या ॥१०७०॥ अपसस्था उपहा अण्णाणे अविरतीय मिच्छते। परगादी बहते उपहति दुषिह एस गता ॥१॥घिरकरणावि यदुविहा पसत्य इयरा यहोति णातबा। साहुण पसत्यात जाणादीएहि सीयंति ॥२॥बहुदोसे माणुसे मा सीव चिरीकरेनि एवं तु एस पसत्या भणिया अपसत्वेत्ती पक्षासामि ॥३॥ मिष्ठादिद्वीए तू चरगादी थिरिकरेंत अपसत्या। पासस्थादी अहया चिरीकोन्नम्मि अपसस्था॥४॥वच्छाडाविय चिहा पसत्य इयरा यहोति णातहा। आयरियादि पसत्या पासत्यादीण इयरातु ॥५॥ आपरिय गिलाणे या पाहुणए असहुचानुदादी। आहारोपहिमादीण समाहिकरणं पसत्यं तु॥६॥ पासस्योसपणाणं कुसीलसंसत्तणीयवासीणं । अह य मिहत्यादीण एमादी अप्पसत्या तु ॥आ दुविहा पहावणाविय पसत्य इयरा यहोनि णाया। नित्थगरादि पसत्या मिच्छत्तषणाणे अपसत्या ॥८॥ नित्यवर पचवणे बाजाणादी बतिष्णिवी लोए। मग शाणस्स उपभावयते पसत्येसा ॥५॥ मिन्छनणाणादी पभावयतेस होनि अपसस्था। एसो दंसणयारो पच्छित तेसि बोच्छामि ॥१०८०॥ संकादिएम देसे खमणं मिच्छोक्हणादिसु य। पुरिमादी समर्णनं भिक्खुपमितीण य चतुहं ॥ मू.२८॥१॥संकादी अपदा देसे सोय होति पाया। संकादीण चउई देसे खमणं तु णाय ॥२॥ उपहादिचउन्हवि अपसत्ये देसि होयभत्त। सबम्मि हानि मूलं एवं संकाइएमुंपि ॥३॥ एवं ना ओहेणं अविसेसो होति एस पच्छिते। पुरिसविमागेणऽहूणा देसे सोही इमा होति ॥४॥ संकादी असुवी देसे भिक्खुस्स होति पुरिमट । वसभे एकासणर्य आयामं होति उज्माए ॥५॥ आवरिय अभनहो एस विभागेण होर सोही तु। अहुणा उपयहादीण अकरणे सोही इमा जयिणो ॥६॥ एवं चिय पत्तेयंत्र उपहादीण अकरणे जनीणं। आयामंतं णिवीतिआदि पासत्यसाढेसुमू०२९॥ ७॥ एवं थिय पुरिमइद अर्णनदिपुरिसभेएणं। पिह पिड जति ण करंनी उवह पसत्यसाहुणे ॥८॥ एव थिरीकरणं तू बच्छाल पभावणा पसत्येषु । परपणजइमादीर्ण अकरिने तत्धिमा सोही ॥९॥ भिक्खुस्स तु पुरिमर्द नसभा भनेक होनि सोही तु। अभिसेगे आयाम आयरिए होय मनहूँ ॥१०९०॥ गाहापच्छदस्साऽणन्तरगाहाएँ होति संबंधो। एयस्सऽवियन्तपए संबंधोन चिमं वोच्छ॥१॥ परिवारादिणिमित्तं ममतपरिपालणादि पणाले । साहम्मि-1 उनि संजमहे वा सबहि खुदो।मू०३०॥२॥पासत्योसण्णाणं कुसीलसंसत्तणीयबासीणं। जो कुणनि ममतादी परिवारणिमिनहेतुं च ॥३॥ तस्स इम पचिहन निषीयादी तु अं क आयाम।
भिमादीयाणं चउण्ड वा होनिजकमसो ॥४॥ आदिग्गहणेणं पुण सइदा सण्णायगाव सेजतरा। वाहनाऽऽहारादी नेण ममनादि कुजातु॥५॥ अह पुण साइम्मिनी - संजमहेच उजमिम्सति वा। कुलगणसंघगिलाणे नप्पिस्सनि एचबुद्धी तु॥६॥ एव ममत्त करेंने परिवारण अहर तस्स वच्छाई । बढजालंवणचिनो मुजानि सात्य साहनु॥॥ एसो अलवियप्पो अतिपारो दंसणे समक्वानो। चारिने अतियार इणमो उ समासतो वोच्छ ॥८॥ एगिदियाण घट्टणमगादगादपरिनावणोरवणं । णिनीय पुरिम आसणमायामगं कमसो । मु.३१॥९॥एगिदिय पुढवादी जा पत्तेया वनस्सनी होति । एनेसि पंचव्हवि पिह पिह संपट्टणे विगनी ॥११००॥ परियावियऽणागादे पुरिमइदं गा होति भनेक। उडवणे आयाम एतो ताइणं वोच्छ ॥१॥ पुरिमादीसमर्णतं अतविगनिदियाण पत्तेयं । पंचिदियग्मि एकासणादि काडाणगमहगे। मु.३२॥२॥साहारणवणकाए बिय नियमरिदिए य चिगलम्मि। एनति पाउण्हंपी पिह पिह संपट्टणे पुरिमं ॥३॥ परिजापिताणागादे भनेक गाढ़े होनि आयामं । उहवणेऽभनई पंचिदिविसोहिम पोई॥४॥ पचंदियसंघढे एकासमयं तु होति णात । अणगाडे जायाम परिताबिए गादे भन्नई ॥५॥ उडवणे कावाणं एग चिय होति नत्थ णाय। पढमपए सोहेसा पमायसहियम्स णायया ॥६॥ मोसादिसु मेहुजापजिएसु दशादिवत्थुभिगेस्। होणे मझुकोसे आसणायामखमणाई॥३३॥ ७॥ मोसादनादाण परिमाहो व होनि णातबााएते मोसादिनया मेहुणवजा मुना . . नत्य मुसं चउभेदं दो खेने य काल भावे यानत्य तिहा दवमुसं जहष्ण मन तहकोसं ॥९॥ एवं खेनमुसंपी कालमुसा नह य होति भावमुर्स। हीणं मझुकोसं समेदाभिषण मुणे - ना ॥ १११॥ एवमदनपरिगह दबादी चउह होम्ति णायका हीणा मझुकोसा तिनिहं पत्नय पत्तेर्य ॥१॥ मोसम्मि चम्भेदे दबादी हीण मन्म उकोसे। दबावीणं कमसो धर्म १०३१ जीनकन्यभाष्य
मुनिटीपरनसागर
अनुक्रम
[२७]
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [३३] -------------- ------------- भाष्यं [१११२] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [३३]
श्रीप
नु सोहि पचक्खामि ॥२॥ दशमसेन जहणे अनेक मोहोति आचार्म । उकोसेसुपउत्थं एवं लेखारिएभुपि ॥३॥ एवमदनपरिग्गह दमादीनु एस चेव गमो। हीरो मज्भुकोसे आसणायामखमणाई ॥४॥ एष मुसाबायादिमु सोही मणिया समासतो एसा। एसो तुराइमले सोहियोच्छं समासणं ॥५॥ लेबाइयपरिवासे अभतडो सुकसविणहीए या इनराय छद्मनं अमर्ग सेस णिसिमले ॥मू.३४॥६॥ लेवाडय कंठोतं मुंठिबहेदादि अगयमादी था। परिवासेन्ते एसि सोही साहुम्स मलई ॥७॥ इतराय गिलसग्निहि गुलधत. नेदादिया मुणेनच्चा। परिवासने नेसि सोही छई तु साहुस्स ॥८॥ णिसिभत्तसेस तिविहं वियाहय राइभुत्त पदम तु।राजोगह विवभुन गह जणमुभययो रातो ॥९॥तिविहान णिसिभ सोही एन्थं नु अहम होति। तिनिहम्मिवि पत्तेयं एय समतं तु मिसिमतं ॥११२० ॥ उदेसियचरिमनिए कम्मे पासंडसघरमीसे या बादरपाडियाए सपथचायाहडे लोभे ॥३५ ॥१॥अच्छउ ता गाइत्यो एतेसि उम्गमादिअहन्द । लक्षण जावती दाणमेच बोच्छ सवित्यस्तो ॥२॥ सोलस उम्गमदोसा सोलस उम्पायनाएँ दोसा उ। बस एलणाएं दोसा संजोषणमादि पंचेच ॥३॥ सो उगमो चतुदाणामादी तत्य दबिमोहोति। जोतिसतणोलहीण मेहरिणकरेवमादीण ॥४॥अहवाचिलड्डुगादी भावे तिनिहुमामो मुलष्यो। दसण णाणचरिते चरितुम्गमेणऽत्य अहिगारो॥५॥ किं कारणं पारिसे अहिगारो एस्प होति अणितो तु?। चोदग! मुण पारिने जे तु गुणा ते तुहति इमे ॥ ६॥ देसणणाणपमर्थ चरणं मुद्दे नुनम्मि तस्मुदी। चरणेण कम्ममुदी उम्गममुदी चरणसुद्धी ॥७॥ पिंडोबहिसेजाम् जेण अमुबाम चरण णचि सुज्झे । पिंटोवहिसेजाम् सुदामु उ चरणमुखी 3॥८॥ नो चरणमुदिहेतुं पिंडस्स उ उग्गमेण अहिगारो। तस्स पुण उग्गमस्सा सोलस दारा इमे होन्ति ॥९॥आहाकम्मुदसिय पूतीकम्मे य मीसजाये या ठरणा पाहुडियाए पायोचर कीत पामि ॥११३०॥ परियटिए अमिड्डे उमिल्यो मालोहडे या अन्डेज अणिसट्टे अझोपरए प सोलसमे ॥१॥ एने सोलस वारा उरिहमियाणि विवरण बोच्छ। एनेसि पदम आहा नम्स इमे हानि पर दारा ॥२॥आहाकस्मिरणामा एगट्ठा करत वावि किं वापि। परपक्से व सपक्से बउरो गहणे व आणादी ॥३॥ नत्य इमेगामा लल आहाकम्मरस होन्तिच. नारि। आह अहाकम्मे या अहय(यहम्मे अनकम्मे य॥ ओरालसरीराणं उडवाउडवायणं नु जस्सहा। मणमाहिता कुबनि आहाकम्म नयं बेस्ति ओरालगाहणेणं लिरिक्सममुयाइवा मुहुभवजा। उजवणं उत्तामण अतियानविकनिया पीना ॥६॥ कायवइमणा तिष्णि ऊ अहवा देहायुद्धदियप्पाणा । सामिनअनायाने होडनिवाओ ऊ करणम्मि । दिययम्मि समाहेउं एगमणेगे व गाहगे जो तुरवणं करेति दाता कायाण तमाहकम्मत॥८॥ जस्सहात तुकतने जो मुंजनि सतं तु कायवह। अणुमण्णा आहेर यस कम्मबन्ध नमायाए॥५॥ अयि हु विवाहमा (को) मणित मुंजनों आइकम्मं तु। पसिदिलबन्धादीया पगडीओं करोति धणियादी ॥११४०॥ संजमठाणाणं कंडमाण नेसाठितीविसेसाण। मार्च अहे कोनी तम्हातु भने अहेकम्मं ॥१॥सं एगीभावम्मी जम उनरम एगीभाव उबरमणं । सम्म जमो वा संजम मणवाकायाण जमणं तु॥२॥चिट्ठा संजमो जहियं न हो हसंजमम्स ठाणं तुम्नं पुण परिनपजप होन्ति अर्णतेकलागं तु॥३॥ संजमठाणमसंखा उकंडगं कंडगा असंखा उ। इवनि उसाताण ने असरवेज जबम ॥४॥ननो परिहा
यता साकंडा य संजमहाणा। एरिसयाणमसंखा लोमा उहनि ठाणाणं ॥५॥ एसा संजमसेदी नस्य विमुदामु ठाणमादीसु। वहतुकोसागुरठिनिजोगे होतृणं ॥ ६॥ मुंजम अहेकम्म हेटिव हिवेति अप्पाणं । मुने उदियमहे तू करपकरचिोचचिणमादी॥ ॥ धनि अहेभवाउ पकरनि अहोमुहाई कम्मा । पणकरण निषेण उभावेण पयो उवषयों न
दसि गुरुण उदएण अप्पयं दुगनीए पपड़न। ण वएति विहारेउ अहकम्य अण्णए जम्हा ॥९॥ अढाएं अगट्टाए छकायपमरणं तु जो कुणति । अणियाए यणियाए अन्तित दबाऽऽयहम्मंनी ॥११५०॥ जाणतम जाणतो बहेनि णिरिसिय जोहओ यावि। जाणगमजाणए या भणिना णिय अणिय होनेसा ॥१॥दस्वायहम्ममेय भावाया निरिण गाणमारणि परपाणपारणरयो भावाय अप्पणो हति॥२॥ णिच्यणयमा चरणाऽऽयविधाये गाणसणवहाचिवहारम्सचरण हम्मि भयणा उससाणं ॥3॥पायाहम्मग एयं. एनो बाच्छामि अनकम्म नु। जो परकम्म अनीकरेनिनं अनकम्म॥४॥ आहाकम्मपरिणयो फामुयमपि संकिन्निट्टपरिणामी। आनियमाणो बज्मनि जाणम् अनकम्मत ॥॥ परकम्ममनकम्मीकरति जो उ गिहिउ भुजे। चोएति परकिरिया कण्णु अण्णत्व संकमनि? ॥६॥भषण परपउन जह विसमाइयं नमारग होति।जह परकडेऽपि धो परिणामवलेण जीयम्स । बेनी परकडभोयिण नो नुम्भवि एव होनि बंधो उ।जह अन्त्य पउने कूडे जो पनि सो बझं ॥८॥ गुनाह जा पमना जा य अहवास बमएE तथा अपमनो णविवानि नहेब दसलो ब जो होनि ॥९॥ इय जो यु अप्पमत्तो मणवायाकायजोगकरणेडिं। सोनुण बजाति णियमा बज्मनि इयरी परकडेनि ॥११६०० कामं सर्वन कुबनि जाणतो पुण नहानि नग्गाही। बड्देति नापसंग अगिण्णमाणो उ (न)मारेति ॥१॥ नम्हा परकम्मिपि अनीकरणं नहायऽमुहि। मणमाहीहि कई पुण अनिको? भण्णनि इमेहि ॥२॥ पटिसेवनपडिसुणणासंचासऽणुमोयणा चउण्हपि। एएहिं पगारहिं अनिकरे नस्थिमे णाया ॥३॥ पडिसेवणाएं नेणा पडिमुणणाए व रायपुनातु। सेवा- (०५८) १०३२ जीतकल्पनाश्य
मुनि दीपसागर
अनुक्रम
[३३]
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [३५] ------------- ------------- भाष्यं [११६४] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं ।
प्रत
TIST
सूत्रांक [३५]
सम्मि य पहली अणुमोयण रायबुढो उ॥४॥आहाकम्मियणामा एवे पाउरो समासतो भणिया। एगहिताणि अहुणा बोच्छामि समासतो व ॥५॥ एगह एगवंजण एगटुं णाण-El जणं वाणाणड एगवंजण णाणवा जाणवंजणया ॥६॥जह खीर खीरं चिय एगई एगवंजणं विद्वं। एगह णाणचंजण दुद पयो वाल वीरं च॥७॥णाणहमेगवंजण गोमहिसमजाइयाण खीरति । णाणद् णाणपंजण पापडकडसगारहमादी ॥८॥ एवमिहमाहकम्मं आहाकम्मवि पदमत्रा भंगो। आहजहेकम्मादी बितिओ सकिन्द इव भंगो ॥५॥ततितो मंगो न आतकम्ममहकम्म प(म)णगमादी या आहाकम्म पडुबा णियमा सुष्णो चउत्यो उ॥११७०॥ईदत्यं जह सदा पुरंदरादी तु णातिवतंति। अहआहजत्नकम्मा तहा अहे णानिवत्तंति ॥१॥आहाफम्मेण अहे करेंनिजहणति पाणभूयाई। जातियमाणो परकम्म अनणो कुणा ॥२॥ एगद्वितदारमिणं अहुणा कस्स कहमाहकम्म भवे । भण्णति साह-2 मिकटं सो बारसहा इमो होनि ॥३॥णामं ठवणा दचिए खेलेकाले य परयणे लिंगे। दसण माण परिने अभिग्गहे भावणाहिं च॥४॥ गामेणं साइम्मी जाव उ कालेण सहयोदया। परयण लिंगेणं वा साहम्मिय एत्य पउभंगो ॥ ५॥ परयणमणुम्मुयंते दसणमादी उ भावणा जाय। सात्य तु चउभंगा जोएयचा जहाकमसो॥६॥ एवं लिओणंपी नह दसणमादिएहि पउभंगा। भइएसु उबरिमेसू हेद्वितपयं तु छटेना ॥ ७॥ एवं बुद्धीए न सजेचि जहकमेण जोएजा। पउभंग जार परिमो अभिग्गहे भाषणाहिं च ॥८॥ पत्तेययुद्ध - पिष्टय उचासए केवली व आसजा सइयाइए यभावे पहुच भंगे तु जोएबा ॥९॥ जत्थ तु ततिजो मंगो ण तस्थ कप्पति तु सेसए भयणा । तिस्थगर(रि)णिहओवासगादि कप्पे जससाणं ॥११८०॥ कस्सनि जहादिदं एरिस साहम्मियाण पवि कप्पे। किंती? आहाकम्म असणाईये इमत च॥१॥ सालीमाई अगडे कले य मुठी य साइम होति । तम्स कहणिहियम्मि सुदासुद्धे य चनारि ॥२॥ कोदवरालगगामें वसही रमणिज भिक्स सझाए। खेत्तपडिलेह संजय सावयपुच्छज्जए कहणा ॥३॥ जुजति गणम वेतं णवर गुरुणंति पत्थि पायोगा। सालिनि कए रुप्पण परिभायण णियगगेहेसु ॥४॥ वोलता ते व अण्णे जाव तु किमियति कहिय सम्भावे। बजेन्ति एव णाए अहला अश्या वयंती तु॥५॥ एससणे कम्मं तु हवेज कह पाणगे हवेजाहि हातहविय साहु ण ठन्ती साचगपुच्छा वर्ग लोणं ॥ ६॥ अह ताच सावयो त खणेज महुरोडगं नहिं अगडं। अच्छति य दकिएणं जाबाऽऽगय साहुणो तत्व ॥ ७॥ एत्यवि नहेच जाणण बजण तह चेच होति णातमा । एवं खाइम सातिम या जहकमेणं तु॥८॥ ककडिग अंधगा वा दाडिम दक्ला व बीयपूरा वा । एमाइ साइर्मत साइम नह निगआदीयं ॥९॥ किं आहायम्मंती एतं तं वणियं समासेणं। परपक्लसपक्सेती अहुणा दारं अणुपत्तं ॥११९० ॥ परपक्खो तु गिहन्यो समणा समणीय हो तु सपक्खो। एत्य करनिहिएहि चउभंगो होइन वोच्छ ॥१॥ तस्स कड तस्स निद्विय तस्स करामस्स निद्वियं चेष। अण्णकड तस्स निद्विय अण्णकट निद्वियऽणस्स ॥२॥ वावितल्या मलिया कंडित इगण्ड निद्वियं ण सता निघाट निद्विय होन्ती ने रखा दुगुणमहकम्म ॥३॥ कडनिहियाण लक्खणमिणमो तु समासतो मुणेन । कासुकर्डवं पाणि ट्टियमितरं कर्ड होति ॥४॥समगढ़ बावियादी जा दुण्डा एय होति तस्स कर्ड। नस्सह तिकडरद्ध मिद्वितमेसो पदमभंगो ॥५॥ समणहजाच दुङडा परिय नरितिइयाण कारशुप्पणं । तेस निउडरदा वितिभंगो एस णानको ॥६॥जा छटा अत्तट्ठा गवरिय साहू तु पाहुणा आया। तेसद्ध कया निछडा नतिर्भगो एस जातको ॥ ७॥ आया जा रहा आयडा चेव तिहरदा या एस चउत्यो भंगो कतरे कप्पे ण कप्पा वा?॥८॥ पदमततिए ण कप्पे वितियचउत्था उदोणि वा कप्पे। एमेच पाणगेकी सानिम तह साइमे चेष ॥५॥ साहणिमित्ता रदं जायण कासुं कई तुताव कई। फासुकट मिडियं नचाउलधुवणादि पाणम्मि ॥१२००॥ कलमादि विष्णोडिय फासुकई मिहिन मुता। एमेव साइमेषी आजगमादी मुणेना ॥१॥ सायद चतुभंगो जोएजसो जहकर्म होति । एत्यंत परिहरणा विहि अविहीं सर मोदना ॥२॥ कार्यपि विपती केयी फरहेतुगादिनम्मान नुन जुजति जम्हा फपि कप्पे विनियभंगे॥३॥ परपबड्या छाया णविसा रुक्त्तव्य बढिता कना । गण्डाए य एमे कापा एवं भणंतरस ॥४॥ बढनि हायनि छाया नन्थिक पइयंपिप ग कप्पे। ण य आहाप मुरिहिए मियनयती रखी छाया ॥५॥ अपनयनारिममणे लाया गट्ठा दिया पुणों होनि । कपनि णिरायवे गाम आयये तं विवजंतु ॥६॥नम्हा ण एस दोसो तु संभवे कम्मलपखणविहणो। तपिय अतिपिणिवा कोमाणा अदोसिाहा ।। आ परपक्लसपक्सेती एमेयं बगिय समासेगा पाउरोनि बारमहणा वोच्छामि समासनो बेव ॥८॥चउरो अतिको पनिझमे प अतियार तह अणायारा । आहाकम्मे एने पाउरोपि जहकर्म जीए॥९॥नम्स पुण संभवी आहाकम्मरस कह रहोजाहिए। णिदरिक्षण जह भरए सइदा वळूण मस्र्य ॥१२१०॥ महसड्ढादीएमु नेमुवि सदा ततो समुप्पण्णा अम्हेऽपिय साहुणे कोम भन्न नसविसेसं ॥१॥सानीषयगुलगोरस नवेसु वालीफलेसु । जाए। दाणा अभिगमसदी आहाकम्मे निमंतणया ॥२॥ आमंनियपडिसुणणा सबासु सुभो अतिकमो होति। पदभेयाइ बतिकमों गहिए होईयारो॥३॥ मुहदे प्रणायारो १०३३ जीतकन्यभाष्यं -
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“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [३५...] ------------- ------------- भाष्यं [१२१४] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [३५]]
केयी गिलिपम्मि बेन्ति अणबारें। किं कारण हवेची पुणराबत्ती कयाइ भये॥४॥ तो खेलमाइयम्मी जिग्गलाण एवं पत्तोंडणायार। गिलियम्मि अगायारो तस्स णियत्ती तजोर णस्थि॥५॥ सेसेहिणियन्तेजा एग दुग तिगे व एत्य दिढतो। जह विहिागास ठितो पदेहि विनियत्तिजो हत्थी॥६॥चउरो गहणे एवं अतिकमादी तु बष्णिया एते। आणादी चउरोऽविय दारं एतो पवस्वामि ॥७॥आगं साजिणागं गेहूंतोतं अतिकमति कुन्दो। आणं च अतिकम(क)तो कस्साऽऽएसा कुणति सेस ?॥८० एमेण कयमकर्ज करेति तप्पचया । पुणो अन्यो। सायाचहलपरंपर पोपडेओ संजमतवाणं ॥९॥ जो जहवायं ण कुणति मिच्छादिही तओहु को अपणोपडेतिय मिच्छर्न परस्स संक जणेमाणो ॥१२२०॥ दुबिहा चिराहणा खलु संजमतो पेय तह य आयाए। माहाकम्मग्गहणे तस्य इमा संजमे होति ॥१॥ वदेवि तप्पसंग गही य परस्स अप्पणो पेषा सजिपि मिष्णदाढोग मुयति गिई. चसो पच्छा ॥२॥ लदे गिद्धे य कया सुत्ने हाणी तिगिच्छणे काया। पडियरमाण यहाणी कुणति किलर्स च किस्संतो ॥३॥ पाएणऽपकिचेण य आहाफम्मं तु भारियं होति। एसा: आनचिराहण तम्हात तण भोस ॥४॥ अम्भोजे गमणादी पुष्छा दव्य काल देस भाये या एप जयंते छलणा दिईता तत्यिमे दोणि ॥५॥जह यंतादि अभोज जाव य चंदो य सूरउदयं च। उजाणा दोणि भरे सविस्थर सच बोदय ॥ ६॥ जह ते दसणकरची अपूरितिच्छा विणासिया रण्णा । दिद्वेऽपितरे मुका एमेष दहं समोमारो॥७॥ आहाकम्म मुंजति ण पटिकमाए य तस्स ठाणस्स । एमेव अडति बोडो लुकणिको जह करोडो॥८॥ आहाकम्मदारं एवमिणं मे समासतो कहितं। आवत्ती दाणं वा निसोहिमेतेसिमं वोच्छं॥९॥ आहाकम्मे चनुगुरु आवनी दाण होयऽभत्तहूँ। उद्देसियपि दुविद आहे व विभागओ चेव ॥१२३०॥ ओहे मासलहुंतू आपत्ती दाण होति पुरिमइद। होन्ति विभागुडेसे मुलायंइमे निष्णि ॥१॥ उस कडे कम्मे एकेक पत्रिहो भने भेदो। कह होति चउम्मेदो इमाहि माहाहि बोच्छामि ॥२॥ उदेखियं समुदेसियं च आदेसियं समाएसं । एमेव कडे पउरो कम्मम्मिपि होति चत्तारि॥३॥ जातिगमुदेसो पासटीणं भवे समुदेसो। समणाण आएसो जिम्गंथाणं समाएसो ॥४॥ उदेसियस्मि लामो परोय होति पतस ठाणेया एमेय कटे गुरुओ कम्मादिम लहग तिसु गुरुगा ॥५॥ पी (चउ) लजुमासा गुरुगा पाउगुरुगा तिणि तू मुवया । तबकालेहि निसिहा दाणं तु अतो पक्क्सवामि॥६॥ लहुमासे पुरिमड्ढे गुरुमासे होति एगभतं तु । पउलहुए आयामं चउगुरुए होयऽभत्तई ॥७॥ पूतीकम्म दुनिह दवे भावे य होइ णाय (भावि पुण दुविह)। दवम्मि छमणयम्मी मारे दुनिह इर्म होनि ॥८॥ सुहुम नाचादरं वा बिहेयं होति हुमणेतर्व। बाइर पुणरवि दुबिई उवगरणे मनपाणे य॥९॥ इयण गंधे पूमे सुहुमेयं एत्य पत्थि पुडनं। बुल्लक्सलियादीणं उवगरणे पूतियं होनि ॥ १२४०॥ एवं मासलहंतू आवनी दाण होति पुरिमड्ढे । डोए लोणे हिंगू संकामण भत्तपूतीयं ॥१॥ एत्वं मासगुरु तू आचत्ती दाणमेगमत्तं तु । उपगरण भत्तपाणे पतिस्स उलक्खर्ण बोच्छे ॥२॥ सिवातस्मुवगार सिहस्त करेति वावि जदई । तं उचगरणं मष्णति चातुस्खलिदविडोयादी॥३॥ संवहकया चुडी उपवालि डोए नहेच दखी य। सो होनि आइकम्मी पुनीकम्मं इम होति ॥४॥ संघियचिसाडेणं सयडीखडियाइसंठवणं। एमेव उत्खलीयपि कइडगमादी तुजं लोए॥५॥ एवं सतहोतीए दबीए वापि संच दारुणं। अम्मिलिय जदिलाए गंडकलं वावि एगलरं ॥६॥ उवगरणपूति मणिने एतो बोच्छामि भत्तपूर्ति तु। डाए लोणे हिंगू संकामण फोडणं घूमे ॥७॥ अनाद्विय जायाणे डार्ग लोणं व कम्म हिंगं वानि भत्तपाणपुनि फोडणमष्णं व भह ॥८॥ संकामेई कम्मं तेणेव य मापणेण संकामे। सुह(ड) तं पूर्ति अहपा रई वहिं होजा ॥९॥ अंगारभूइ थाली वेसण हेद्वामहीए ज घुमे । संपटकडे तम्मि उजत्न करेन्ले पूतीयं ।। १२५०॥ मीसजायं निविहं जानिगमीत चितिय पासंडे । साहूमीसं तनिय पनि तेसि पोहामि ॥१॥ परमे पाउलयात पितिततिले चाउगुरू मुतबा । जवकान्टेहि पिसिट्टा चमुरुगा होन्ति णायवा ॥२॥ पडलहए आयामं चउगए होति चउत्थं नु। मीसजान मणिनं ठवणाभन अतो नोन्गळं ॥३॥ठवणामत्तं दुविह इनरहनिचं नहेब चिरठवियं । इत्तरठपिए पणगं चिरठपिए होति मासलहूं"४॥ पणगे णिबिगई न लामासे वाण होति परिमइदं। इतर चिरठविए या समासतो लक्षण बोनई ॥५॥ संपादग हिंडते परिवाडिठिएस(तिस्) तु गेहेमु । एको दोमुपयोग करेति भिक्साए गेहेसु॥६॥ चितिओ साणादीणं देयुषजओगं प(पारेनहेम्मि । नेण परेण चउत्थे उक्सित्ता इनाहरिया ॥७॥ चनुपपरानु परेणं चिरठपिया जाब पुत्रकोडी उा एवं ठपियाऽनिहितं एतो वोच्छामि पाहूडियं ॥८॥ सा पाहुडिया दुनिहा मुहमा S नह बादरा य पोवा। ओसरण उसके एकेका सा भवे दुविहा ॥९॥ सुहमाए लहुपणगं आपसी दाण होति णिविगति । बउगुरुग मायराए आपनी दाणामनई ॥१२६०॥ एवं सुहमा न इमा जह काइ अमारि कन्नमाणी उ। मणिया तु बेडरूवेण देहि अम्मो ! मह भत्तं ॥१॥ भणितोहितोनि होही जाया ! कन्तामि ना इमं पेर्छ । जइनं सुणेनि साहूणग
हए तस्य आरंभो ॥२॥ अस्मुडिया भर्णती तुज्यविदेमित्ति किति परिहरति । किह दाणि ण उहिस्से? साहुपभावेण सम्भामो ॥३॥ एवं णाऊण तो परिहरनी एस होनि जोसका। १०३४जीतकरपभागे -
मुनि दीपरतसागर |
रवि का प्रतीकमा म र म
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- छेदसूत्र -५/१ (मूलं)
मूलं [39...] आयं [१२६४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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"जीतकल्प”
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उस्सकण कलंगी मणिना चेण दे भन्नं ॥ ४॥ कन्तामि मणति पेठं तो ते दाहामि पुत्त! मा रोष सा य समत्ता पेलू देही एताहे सो भणति ॥५॥ मा ताव संख पुत्तय परिवाडीए हेहिहा साहू एवमुहिता ते दाहं सोउं विषजेति ॥ ६ ॥ अंगुलिए चालेउं कइति कप्पट्टतो परं जत्तो किन्ति ? कहिए ण यचति पाहुडिया एअ सुडुमा उ ॥ ७॥ वायरपाडुडियाविय ओसक हिसकणे यदुविहा उ कप्पट्टगसंघाडय ओसरणं च णिसो ॥ ८ ॥ जह पुत्तविवाहदिणो ओसरणातिच्छिए मुणिय सड्ढो ओसके ओसरणं संखडिपाहेदवडी ॥ ९ ॥ अप्पत्नम्मी लवियं ओसरणे होहिइत्ति उसके संपागडमितरं वा करेति उज्जूम वा ॥ १२७० ॥ मंगलहेतुं पुण्ण्या व ओसकें तं च उसके किं कारणं?ति पुडो सिद्धे ताहे विवजेनि ॥ १ ॥ पामि भुजति न पडिक्कमए य तस्स ठाणस्स एमेव अडति बोडो कपिलको जह कवो (मे) हो ॥ २॥ पाडुडिया मणितेसा एत्तो पायोवगरण बोच्छामि पादू पासम्म अपगासपासणं जं तु ॥ ३ ॥ पायोकरणं दुविहं पागडकरणं पगासकरणं च । पाटि मासल तू पमासकरणे उ चतुलगा ॥ ४ ॥ लडुमासे परिमइदं चतुलहुए दाम होत आयाम पायोकरणं भणियं कनकमयो न वच्छामि ॥ ५ ॥ कीकडंपिय दुविहं दवे भावे व दुहिमेकेके आयपरकीयमेचं पच्छित तेसि बोच्छामि ॥ ६ ॥ दवायपरकीए दुविहेचि चठाउ मुणेय दाणं आयाम तु भावम्मि अतो परं वोच्छं ॥ ७॥ भावे तु आपकीय चलना एत्य वा मुणेया दाणं आयामं तु भावे परकीय बोच्छामि ॥ ८ ॥ मासमिहानी दार्ण पुण एन्य होनि पुरिमइदं कीयकडेयं भणियं पामिश्रमतो उ वोच्छामि ॥९ ॥ पामिबंपिय दुवई लोइय लोउत्तरं समासेण लोइएं चतुलडुगा तू आवली दाणमायामं ॥ १२८० ॥ लोउनरे मास दाणं पुण एत्य होति पुरिमदं पामिचेयं भणियं परियहियमिणमो बोच्छामि ॥ १॥ परियहियपि दुनिहं लोइय लोउत्तरं समासेणं लोइ उमा आपनी दाणमायाम् ॥ २॥ लोउनरे मासल आवती दाण होति पुरिमदं परियहिय मणिएयं अभिहतदारं अयो योच्छे ॥ ३ ॥ तं होति दुहाऽभिहडं जातिष्णं व नह अणाइणं आइष्ण गोणिसी होनि मिसीहं च दुविहं तु ॥ ४ ॥ उष्णं णिलीह भण्णति पगडं पुण होति गोणिसीहूति एकेक्कं परगामे सम्मामे चैव बोद्ध ॥५ ॥ सग्गामाइड दुइ चेव होयऽणाइणं अणइण्णे मास दाणेत्यं होति पुरिमर्द्ध ॥ ६ ॥ परगामाइड दुविहं सदेस परदेसओ व णाय एक्केक्कं पुण दुविहं जले तह लपणं च ॥ ७ ॥ सपनवाय पिचवाय पुण होनि दुविमेक्वेक्कं संजम आयविराण सपचचायम्मि जोएजा ॥ ८ ॥ परदेस आइटम्मी सपचवायम्मि होन्ति चउगुरुगा पिप्पञ्चवाएं लगा दाणं एसि वोमि ॥९॥ चगुरु अमन दाणमिहं होति तू मुणेय चउलहुए आयाम एमेव य होति सरेसे ॥ १२९० ॥ उम्भिण्ण होति तिविद्धं पिहितुम्भिकवाडभजन पिहिनुभिण्णं न दुविहं फागुरामकामं ॥ १ ॥ फागउगणेणं तू दहरणं च एत्य मासल तहियं पवहणदोसा दाणं पुण एत्थ पुरिमदर्द ॥ २ ॥ अफापुढविमादी सचिन तु जंभवे लिन तहियं उभिन कायाण विराहणा इणमो ॥ ३ ॥ सचित्तपुडविलितं तु सिलं यानि दाउमोलित सचितपुढविलेबो चिरपि उदगं अभिरलिने ॥ ४ ॥ चिरकाय निम्मे दिप्पमाणि आउवहो जउमुरतावणम्मी ऊबाऊचि तत्येव ॥ ५ ॥ पणगनिया वणस्वति तसकुंयुपिपीन्टिएवमादीहिं एने ऊ लिप्यते इमे तु दोसा तु उ ॥ ६ ॥ परम्स नं देनि सए व गेहे ताई व लोग व पयं गुलं या उम्पाडितं तं तु करेयऽवस्सं स विषयं तेण किनाति बणं ॥ ७ ॥ दाणकयविक्रयादी अहिगरणं होति अजय भावस्स । विनि जे य तहिये जीवा मुइयंगमूसादी ॥ ८ ॥ जहेब कुंभादि पुलिले उम्भिजमाणम्मिवि कायद्याओ ओलिप्पमाणेवि तहेब पाओ, उन्मिष्णमेव पिहिपि पुनं ॥ ९॥ आ पनि दाणमेत्य आहे चउलहू मुणेयचा दाणं आयाम तु विभागओ कायनिष्कणं ॥ १३००॥ एमेव कवाडम्मिवि कायवहो होइ ऊ मुणेयो उप्पिहिय पिहिने सविता जन माई ॥ १ ॥ परकोइलारा आवतण पेटियाए हिनुर जिन्ते ठिले य अन्तो डिभारी दोसा ॥ २ ॥ एत्यचि चलगा तू आहेस दाणमेत्यमायामं । होति विभागणं पुण वादीका यणिफणं ॥ ३ ॥ उष्णेियं भणियं अदृणा मालोडं पवक्वामि तं तिविद्धं उद्यम तिरियं मालोद चैव ॥ ४॥ उट भूमादीयं अह उट्टियकोयाइ होति निरि अदमालगादी हत्यपसारा जं मिन्हे ॥ ५ ॥ सर्वपि यनं दुविहं जहण उकोसयं च बोदयं अग्गपएहि जहणं नविवरीयति उकासं ॥ ६ ॥ मालोइड उकोसे आपनी च मुणेतया दाणं आयाम तू जहणमालोडमियाणि ॥ ७ ॥ एत्थ तु मासलत्त आवली दाण होनि पुरिमर्द इस मालोइड भणितं अच्छे अट्टगोच्छामि ॥ ८॥ निविहं पुण पय सामी य एव एक्केके चला दाणं पुण एत्यमायामं ॥ ९ ॥ अणिसिईपि य निविहं साहारण बोलए य जड़डे य निविऽपिय अणिसट्टे चला दाणमायाम ॥ १३१० ॥ साहारणमणिस दाइयमादीण जंतु होजाहि खीरे आपण संलडि दितो गोट्टिभत्तेणं ॥ १॥ सो चोलगोऽवि दुविहो छिष्णमणि समासतो होनि परिष्णिं चिय दिजनि एसो जिणो मुणेो ॥ २ ॥ अच्छिष्णपरीमाणो सोऽवि जिसको तहेब अणिसो णीसट्टो नेसि चिय तृण समप्पिनो जो तु ॥ ३ ॥ आगेनि मुनसेलं जं गहियं एवं होनि १०३५ जीतकल्पाप्यं
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आगम
(३८/१)
प्रत
सूत्रांक
[३५]
दीप
अनुक्रम [39]
"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं)
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आयं [१३१४]
मूलं [39...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
अनिस छिष्णम्मि पोम्मी कम्पनि धेनुं जिस य ॥ ४ ॥ अणिसमगुणायं कप्पति पेतुं तहेब अहि चोग अनिसद्वेय जहणिस तो बच् ॥ ५ ॥ रायकुलो भत्त णीय जस्स तं कप्पति तु सवि पिंटमंतरायं अदिष्णगहणादिदोसा य ॥ ६ ॥ जड्डो व पतोसगतो परिपाडे वसहिमादि मंजिला टॉपस्स संतिओवि हु आदि पती पत् ॥ ७॥ अणिसट्ट भणियमेय एनो अज्झोयरं परखामि अहियं उदरं अज्झोय तु जं सहिमेगम् ॥ ८॥ अहिगं तु दुलादी छुमति अज्झोयरो सो विविहो जाचनिय पा साहू अज्झोरे ॥ ९॥ जातियम्मिलत आपत्ती दाणमेत्य पुरिम पासंडी साहूण य मासगुरु दान मत्तकं ॥ १३२० ।। एसो अलोपस्यो सोलस या उगमस्स दो। कोडी भवति किं भणियं होति कोडिति ॥ १ ॥ कोडिजते जम्हा बहवो दोसा ऊ सहिय एत्थ कोडित्ति तेण भष्यति न कोटीओ इमा ताजी ॥ २॥ हणण णावण अणुमोदणं च पयर्ण पावणऽणुमाया किणण किणावण अनुमोयणं च कोडीउ णव एया ॥ ३ ॥ गव चेवद्वारसगं सत्तावीसा तहेव चटपण्णा गउती दो चेन सा तु सतरा होन्ति कोडी ॥ ४ ॥ ता वय पकोडी राग होसेहिं गुणिय अइरस अण्णाणमिच्छचिरति तिर्हि गुणिए सत्तावीसा तु ॥ ५ ॥ पुढवादी उस संजय उहिं गुणिया होति एस चतृपण्णा स्वती मादीदसहि ऊ. गुणिया पडती तु बोदवा ॥ ६ ॥ णउती तिहिं गुणिया तू दंसणणाणेहिं तह चरिलेणं सत दोषि होन्ति सपरा कोडीनं एस बिन्धारो ॥ ७॥ संखेवेण दहा ऊ उगमकोटी चिसोहिकोटी य उग्गमकोटी उहि विसोहिकोडी अणेगविहा ॥ ८॥ हणणतियं पयणतियं उम्ममकोडी तु उडिहा एसा अहवाचि इमा उहि उग्गमकोडी या ॥ ९ ॥ जहाकम्मुदेसिय पस्मितियं पूति मीसजायं च बादरपाहुडियाविय असोयर व चरिमदुगे । १३३० ॥ एसा विसोहिकोडी उहिया समासतोऽभिहिता एनो उदा युद्धं वोच्च्छामो आणुपुत्रीए ॥ १ ॥ उग्गमकोडी अवयव लेवाले य अकपकाये या कंजिय आयामे चातुलोयसपूती य ॥ २ ॥ सुकेणवि किं तं घोष जहा लोओ। इस सुकेणावि लिकं पोवई कम्मेण माणं तु ॥ ३ ॥ लेवालेवेति जं वृत्तं जपि दशमलेवर्ड पि पेनुं न कप्पेति तकादी किमु लेवडं १ ॥ ४ ॥ कंजियमादीगणं कम्हा तु तं तु भनी गुणम्। साहुस्स उ आहेतुं जं कीरह आहकम्मं तं ॥ ५ ॥ इय नाउमाह कोयी साहुणिमित्ताय ओयणो उकतो ण उ कंजियमादीणि तो बचो ओयणो एगो ॥ ६ ॥ ण उ कंज़ियमादीणि तो म्हणे कते तमेवं तु जदिवि ण दिट्ठा जहा ओदणमट्ठा तहवि बज्जे ॥ ७॥ सेसा चिसोहिकोटी उक्तिगमादी तु जइ वणाभोगा। गहिता हवेज छुदा अण्णम्मी भक्तपा मि ॥ ८ ॥ ताहे तु जहासति विनिचितयं समणपाणं (सं) तु दवादिकमेणं तु इमेण वच्छं समासेणं ॥ ९ ॥ दब्बे तं चिय दस्वं लेतपदेस जेसु तं पडियं काले अकालहीणं जावण्णा मिनल णकमति ॥ १३४० ॥ भावे अरतो असतो जं पासती वर्ग उड्डे अणलसियमीसद सदविवेगोऽवयये सुद्धी ॥ १ ॥ अह पुण ण संघरेजा ताहे परिठावणा तु तम्मतं । इत्थं चभंगो तू सुक्खोहणिवायो इणमो ॥ २॥ मुक्खे सुक्खं पडियं सुक्खे उल्लं तु उले सुक्रवं तु उडे उडं नहा एस चत्वो भवे भंगो ॥ ३ ॥ गुफ्ले सुक्खं पहि पदमगमेदो विमिपति सुहं तु वितियम्मिद छोई गालेति दर्ज करें बाउं ॥ ४ ॥ ततियम्मि कर छोड़ उलिंप ओदणादिजं तरति परिमे सदविवेगी दुलभदवे वाषितम् ॥५॥ एवं चिचिन्तऽसदो जेसु दे तु सुसाए साहू मायावी गवि सुज्झे तम्हा असदेण होय ॥ ६ ॥ एवं गवसणाए उग्गमदारं समासतो भणितं उपायणमना तू समासओऽहं पवक्लामि ॥७॥ सोलस उग्गमदोसे मिहिणो उ समुडिए विषाणाहि उपायणाएं दोसे साहू समुडिए जाण ॥ ८ ॥ णाम ठपणा दचिए भावे उपायणा मुणेयादव सचितादिविहाणचिने दुपपादितिविह इमा ॥ ९ ॥ आयामुपमादीहि बालचितुरंगचीयमादीसु सुपजासमादीर्ण उपायणया तु सचिता ॥ १३५० ॥ कणगरवयाइयाणं धातुविहिता तु अचित्ता। मीसा उसमेडाणं दुपधातुप्पावणा दवे ॥ १॥ भावे पत्थ इयरा कोहाप्यायणा तु अपसस्था कोहादिजुया धायादिणं च णाणादि तु पसस्था ॥ २ ॥ उपसत्वियनायुपायणाएं एवं तु होति अहिगारी सा सोलसहा तुइमा धायादीया मुणेया ॥ ३ ॥ धाती दूती निमित्ते आजीव वर्णीम तिमिच्छाय कोहे माणे माया लोभे व इति दस एते ॥ ४॥ पुषिसंघवामं जीए व उपायणाएं दोसा सोलसमे मूलकम्मे य ॥ ५ ॥ धारयति चीयए या चयंति वा नमिति ते पाती तु जहविभवं आसि पुरा खीराई पंच पानीओ ॥ ६ ॥ खीरे यमजणे मंडणे व कीलाकथातीय घाइतं कुणमाणो एगयरं पातिपिंडो तु ॥ ७॥ तं दुविहं धातितं करणे कारावणे व बोदयं तं पुण दारंगमादी पान कुजाहि ॥ ८ ॥ पंचविधातिपिटे आवती पउल मुणेया दाणं आयामं तु दूतीपिंडं अतो बच्छं ॥ ९॥ सग्गाम परम्गामे दुबिहा दूती तु होति णायचा एकेकाविय दुबिहा पागड उष्णाय गायत्रा ॥ १३६० ॥ पागड निस्संको थिय अप्पान्तो व भगति इयरो वा सेजातरखतिया तू पूया वा अण्णनामस्मि ॥ १ ॥ मिखादी वचतो अप्पाणि नेति संनियाईर्ण। सा ते अमुर्ग माया सो व पिया पागडं भणति ॥ २ ॥ छष्णा पुणाइ दुविहा दूती एत्वं तु होति गायत्रा लोउतरे तत्थेगा वितिया पुण उभयपक्खेवि ॥ ३ ॥ लोउत्तर संघाडग संकंती ताव छष्णवयहिं कह पुण छष्णं? सेजायरीय अप्पाहिओ गं ॥ ४ ॥ संघाटयपचया बेती दूतित्ति अम्ह गवि कप्पे अविकांतिया या ते जावेद इमं भणस (२५९) १०३६] जीतकल्पमध्ये
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सूत्रांक [३५]
दीप अनुक्रम [39]
"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं)
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित
भाष्यं [ १३६५ ]
मूलं [39...]]
आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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तीं ॥ ५ ॥ सावि व भणती होतू पारिजिहिती अयाणिया सा उ लोउत्तरउण्णेसा उमयच्छष्णं अतो वोच्छं ॥ ६ ॥ जामाइतित्यजत्तागतस्स ओवादि पोकडेण कर्त। सो आगतोति धूया उभयच्छष्णं इमं भणति ॥ ७ ॥ एवं भणेज्जहि संती तं फिर तह चैव चितियं जं तु जह पनि संघाटो से अष्णो व वियाणती कोति ॥ ८ ॥ उभयच्छष्णा एसा सग्गामे अमि हिता भवे दूती एमेव परम्गामे दुह दूती कह पुण करेजा ॥ ९॥ गामाण दोन्ह वेरं सेजायरिधूय तत्थ परनामे सामत्थं गामस्स व जह एवं हणियों परगामं ॥ १३७० ॥ संतो तु नित्य पच्छा मिक्लायरियाए तो तु सेज्जतरी अप्पाहेती संतं मम धूप भणेज एवं ॥ १ ॥ जह गामों पडिउकामा साउ भणेजासु मा कुन पमायं तीय कहिये तु तस्सा तेणवि गामस्स ने कहिये ॥ २ ॥ ते व ठिय एगपासे इतरे पढिता कर्त तहि जुद्धं सेज्जातरिपतिपुत्ता जामाता चैव वहिओ उ ॥ ३ ॥ बेति जणो केणेयं कहियति त उनि सेयरी। जामातिपुत्तपतिमारएण संतेण मे सिहं ॥४॥ जन्हा एते दोसा दूति ण कप्पती तम्ह दूती िपटल आयती दाणमायामं ॥५॥ नियमा निकालसियम्म निमित्ते उि भवे दोसा । स तु पमाणो आनुभए तत्विमे जातं ॥ ६ ॥ आपिया णिमिण भोइणी केवती तु लिंगीण भोइचिरगयपुच्छा केवलिकाले एजाहि ॥ ७॥ कां चिय एतत्ती इयरी पडिभणति पचयो को ? तुह गुज्झदेसतिलओ सुचिणाती पचए कहए ॥ ८ ॥ तीय कर्म आउन पेसविजो परिजणी व पचोणी इतरोऽवि अविदिओ थिय पथिसिस् मोइओ चिन्ते ||९|| परवित्तं ता मित्तं दिट्टो उपणिग्गओ य परिवग्गो कह तुम्भे गायली सचिजा भोतिणीए उ॥ १३८० ॥ पुट्ठा य आदिअते (विय ते) तीय व सिहं सहमाणीए समणे तीयभविस्सं जाणइ तिलओ पणे सिद्धो ॥ १ ॥ कोबोलवा च पुच्छितो पंचपुण्डमाहंसु फालन दिट्ठो जदि मे तो अवि तह फतेयं ॥ २॥ लम्हा ण वागरेजा णिमि. नपिंडेस पणिओ तु मए तीतणिमिने उलहु आवती दाणमायामं ॥ ३ ॥ पट्टपण्णऽणागए या चउगुरुगा दाण होयऽमत आजीवपिंडमेनो समासओऽहं पक्खामि ॥ ४ ॥ जाती कुल गण कम्मे सिप्पे आजीपणा उ पंचविहा स्याएं अस्याए व कहेड अप्पाणमेकेके ॥ ५ ॥ जाती पंचविहा एकेके चतुलहूगा आवली दाणमायामं ॥ ६ ॥ जाती माहणमादी मातिसमुत्था व होति बोदशा तहियं स्याए तू जाणावेमेहि अप्पाणं ॥ ७ ॥ होमाइवितहरु जति जह सोतियस्स पुत्तोति बसिनो बेस गुरुकुले आयरियगुणे व एति ॥ ८ ॥ सम्ममसम्मा किरिया अणेण ऊणाहिया व विवरीया समिहामंताऽऽहूति ठाण जाय काले व पोसादी ॥ ९ ॥ बेति कुडं पिय सुकथं असोहणं वादि से कतमिति तहितं महगपंता दोसा इणमो भवंती तु ॥ १३९०॥ मदो म्ह सपक्खो एससी मिक्स देजयस्स पंतो ओभामेती मुहमंगलि कुणति भिक्खड़ा ॥ १ ॥ उग्गाईयं तु कुलं पिवंसादिवत्यवि तहेच माउसरस्सतमादीण जम्पई मंडलपवे ॥ २ ॥ देउलदरिक्षणमासाउवणवणे मण्डवा (लाइ सूएति जंतुपणमादि तु कम्मं तुष्णादियं सिप्पं ॥ ३ ॥ अहवाल आयरितुपदेसतोतयं सिप्प कीरती सयं तु तं कम्म तेसु ससु ॥ ४ ॥ कत्तरिपयोयणा वत्थू बहुवित्परे तह चैव कम्मे व सिप्पे य सम्ममम्मे मृतिजतरा ॥ ५ ॥ सव्ये मद तानियमा दोसा हति विष्णेया आजीवगपिटेसो एतो तु वणीम बोच्च ॥ ६ ॥ किं भणियं वणीमेति भणति पणि जायणम्मि धातू तु वणिमगपायप्पा वणिमोनी भए तुम्हा ॥ ७ ॥ ते पंचहा वणीमंग जायणचित्ती तु होन्ति बोटच्या समणा माहण किवणे अतिही साना व पंचमया ॥ ८ ॥ समणे मारण किवने अतिही साणे य जाण पंचसुवि। पनेयं लगा आवती दाणमायामं ॥ ९ ॥ मयमादिबविणेत आहारमादिलोभेणं अप्पाण समणमाहणकिमिनाऽतिहिसाणभत्ते ॥ १४०० ॥ निग्धसकतावसरु आजीव पंचहा समणा तेसि परिएसणाए लोभेण वणेड़ को अप्पं ? ॥१॥ तब (ब) यदि ते दातुपीतिअनुकूलं साहु तुम विप्प कर्म दाउँ जं देसि एसि ॥२॥ निचितकमट्टियन्यकारणिय दारुणी था। अपि कामगह भेसुबि गरि णासह कि पुण जतीसु ॥ ३ ॥ मिच्छनयिरीकरण उम्ममोसा व ते पुण करेगा। चकारदिष्णदाना पत्विग मा पुणो एंतु ॥४॥ एष माहणेवि दिजतं दिग्स बेति अनुकूल दोन्हं भणियं दाणं समणानं माहणाणं च ॥ ५॥ लोगाणुग्गहकारि भूमीदेवे बहुफलं दाणं अवि णाम कि पुण कम्मणिरए ? ६॥ किमणा कुकिरपाय अमादी जुंगिया जे तु तृण नेसि देन्तं तस्सऽणुकूल इमं भणति ॥ ७॥ किमणे दुम्बले अबंधवाकजुंगियंगे। वाहने लोए दाणायं हरति देन्तो ॥ ८ ॥ ते थिय एपवि दोसा कोई पुण देति दाणमतिहीणं तत्थवि अणुष्पयं तु दाणपतिस्सा इमं भणति ॥ ९॥ पाएण देति लोगो उबगारी परिचिए सिए वा जो पुण अद्धाखिणं अतिहिं पूएति तं दाणं ॥ १४१० ॥ कोइ पुर्ण सागभनो भन्न सामादियाण दिर्जतं तस्स व पियंति भासति नुममेगो जाणसी दाई ॥ १ ॥ अवि नाम होज सुलभ गोणादीनं तणादि आहारो छिच्छकारयाणं ण य सुलभो होति गुणयाणं ॥ २॥ केलासभवणा एने. आगया गुज्झगा महिं चरति पूयाया हिमाहिया ॥ ३ ॥ पूर्वति पूयणिजा पूयाएं हिवाय आगंदा इहई लोगस्स हिता एते पूय बना हिया होन्ति ॥ ४ ॥ अहवान पृयपूया हिताहिता पूतिता हिना होन्ति। अनिना १०३७ जीतकल्पभायं
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“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [३५...] ------------- ------------- भाष्यं [१४१५] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं ।
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I| यअहिता तम्हा खल पूणिज्जेते॥५॥ एमादी अणुकूले भणिते सोसि माहणाईणं । दाता चिंतेति बतो मज्झत्यो एस समणोति ॥६॥ एतेण मन्म भावो विदो लोए पणामहज
म्मि । एकके पुजुत्ता भगताइवा दोसा ॥७॥ दाणं ण होति अफलं पत्तमपले य सण्णिउजवं। इयवि मणिएऽपि दोसा पसंसिमो किं पुण अपत्ते ॥८॥ वणिमगपिंटो भणितो एतो वोच्छ तिगिच्छपि तु । सा दुनिहा तु तिगिच्छा मुहुमा तह वापरा चेव ॥ ९॥ मुहुमाए भासलाई आवती दाण होति पुरिमइद। वाइस्तेगिच्छाए चउलहुगा दाणमायाम ॥१४२०॥ भिक्लादिगतं संतं पुच्छति रोगी तु ओसह किंचि । मणई किमहं मेजो ? पढमतिगिच्छा भये एसा ॥१॥ वेजोत्ति पुच्छियत्रो अस्थावत्तीय सूतिय एयं । अबुहाण बोहणं पा अयाणमाणाण कतमेतं ॥२॥बेतिय एरिस एक्सं अमुएणं ओसहेण पाउणं मे। सहसुपइयं च स्यं वारेमो अहमादीहिं॥३॥ एसा वितियतिमिच्छा दोऽवेयाओतु सुहुमतेगिई। बादरतेगिच्छ पुण सतमेव करेति वेज्जतं ॥४॥ संसोहण संसमर्ण जिवाणपरिवजणं च जत्थ। आगंतुधातुखोमे व आमए कुणति किरियं तु ॥५॥ अस्संजयतेगिच्छे कीरते तह य | मुहमकरणम्मि । तहियं तु अणेगबिहा दोसा इणमो पसनंति ॥ ६॥ अस्संजमजोगाणं पसंजणं कायघाओं अयगोलो । दुबलवग्याहरणं अच्चुदए गिष्णुढाहो ॥७॥जम्हा एते दोसा तन्हा कायरिया गतिमिच्छा। मणितो तिमिच्छपिंटो एत्तो कोहादि वोच्छामि ॥८॥ कोहादीणं कमसो आहरणा होन्तिमे समासेज। हत्याप गिरिफत्तिय रायगिह पर चंपा य॥९॥णगरम्मिहत्यकाये करडगभत्ते उखमओ विहंतो। कोसलदेसे गिरिफुशिमामे वणकोट्टकारम्मि ॥१४३० ॥सारण समुपाये कोणु अर्ज पए त साहुणं । आणेज्य, इहगातो? सुड्डाऽऽह नहिं आई आणे ॥१॥ पतगुजुत्ताविय जहाणिय इहगातुसुइडेणं । सेडंगुलिमादीहिणाएहिं एस्थाऽमत्तई ॥२॥रायगिहे धम्मस्वी आसाढभूती तु सइडओवसा रावणगेहपपिसण संभोड्य मोदए संभो ॥३॥आयरिय उपन्झाए संघाडय अप्पयस्स अट्टाए। भुजो भुजो पविसति काणकुणीसुगरूवेहि ॥४॥ उपरितलत्यो य हो पा 13 सति चिंतेति बुद्धिमं मुठा होज पडो सारिक्सी उवायनो एस पेनबो ॥५॥ चिंतिय उवायमेयं वाहरिया देमि मोदए बहये । मनिओ यतओ एजसु दिणे दिणे जाहे की तुE ॥६॥ यदुर्ग संदिसती हासखेइटपरिहाससंफासे । एतेण समं कुबह जह भजति एस अचिरेणं ॥ ७॥ जदि णाम मिण्हेजा तो केजह मुयसु एस पाजा ताहि तहस्य सभितो 12 स्यहरणं लिंग मुयमुनि ॥८॥ गुरु सिट्ठ मोनुमातो दिण्णा घूया य भणिय मेणं च। एमुत्तमपगतीओ जत्तेर्ण उपयरेजाह ॥९॥रायगिहे व कयाची हिम्महिलं णाडग णडा गच्छी। ताच चिरहम्मि मत्ता उपरिगिहे दोषि पासुता ॥१४४०॥ बाधाएण पबिडो विट्ठ विचेला चिरागमावण्यो। आयरिषगुरुसमी पद्वित दिडो णटेणं च.१॥ इगितगाए या लरंट पेसि. यय जीवणं देहि। देमिति रहपाल गाडग णवीय कुसुमपुरे ॥२॥ कड़गादिअत्यदाणं बहु पदितं तत्थ(नवगम्मि णचंते। मरहोयषणादीया भरहिदी तत्थ पनिषदा ॥३॥इक्लागर्वस भरहो आपसघरे य केवल लोओ। हत्ये गहिओ मा कुण किं भरहो णियत्तों ? पच्चाह ॥४॥ण हु संऽपऽक्लइ एवं बेलचो होति जति गियत्नामि । पंच सता तेण सम पाहता गाइए डहणं ॥५॥ एमादि मायपिडो ण कप्पती वरि कारणे कप्पे। गेलपणखमगपाहुणराबढेक(दाम)मादीसु ॥६॥मायापिंडो भणितो एनो बोच्छामिलोहपिंडतु। सो कोहर्षि टमादिसु सात्वणुपानिजहर इमो ॥७॥लभतपि ण गिण्हति अण्ण अमुर्गति अज पेच्छामि । महरसंति व कार्ड मिण्हनि सदं सिणिवादी ॥८॥ तस्योदाहरणमिणं पंचाएं - म्मि कोवि समतो तु। गेहति अभिमहं सीहसरमोदए घेच्छं ॥ ९॥ भिक्ख पविट्ठी य तयो पडिसेहे अण्ण लम्ममाणपि। सीहेसरमलाईनो संकिस्सनि भापती अहसो ॥१४५०॥ सीहेसरगतचित्तो विसरिसचिनो य धम्मलाभोति। आई सीईसरए सूरस्थमिएवि हिंडइ तु॥१॥ सवदरसकेसरभायणभरणं च पुच्छ पुरिमइढे। उपभोग चन्दजायण साहुनि निगिंधणे जाणं ॥२॥कोहादी कमसो एमेते बग्णिया उ आहरणा। एतेसि थिय कमसो आवत्ती दाण बोच्छामि ॥३॥ कोहे मागे चतुला आपली दाण होड आयामं। मायाए मासगरु आपनी दाण भत्तेकं ॥४॥ लोभे पउगुगा तू आवती दाण होवऽभत्त। संधुणण संचबो तू चुणणा बंदणगमेगटुं॥५॥ दुविहो य संथयो खल संबंधी जयणसंधवो वेव। एकेको पण दुविदो युवि पन्छा यणायचो॥६॥ संबंधे पुर दुनिहो इत्थी पुरिसे यहोति मायबो। एमेव य पच्छावी आपत्ती दाण बोच्छामि ॥७॥ इन्धीए चमुख्या पुरिसेस चतुलह मणेता। बङगुरुएन पाउथं चउलहुए दाणमायाम ॥ ८॥ वयणेनि पुत्र दुनिहो इत्पी पुरिसे यहोति णायो। एमेच य पच्छावी आपनी दाण वोच्छामि ॥९॥ इन्धीए मासग आवनी दाण होति भत्तेका पुरिसे मासलहे न आवत्ती दाण पुरिमइद ॥१४६०॥ संबंधे पुत्रसंथयों मायपियादीनु होति णाययो । सामुयससुरातीओ संबंधीसंघचो पच्छा॥१॥आयवयं च परवयं णाउं संबंधती लयगुरूर्ष । मम माता एरिसिया ससा वधूया पणत्तादी ॥२॥ अदी दिडीपण्ड्य पुच्छा कहणं ममेरिसी जगणी। वणवेषो संबंधी विहवासुण्हाय दान च ॥३॥ एमेव य पुरिसेवि पियभातादीहिं होति संबंधो। एमेष पसंथव अदिति दिवादि पुच्छादी ॥४॥ पच्छासंथषदोसा सासुय विहयादिधूपदाणं च। भजा मम एरिसिया सज १०३८ जीतत्पभाष्य -
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“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [३५...] ------------
------------- भाष्यं [१४६५] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं ।
प्रत
अहि ग सा माणजो किड तामम्मि उदाहरण चाडलिघुत्ते मुरलिया व दवाव दिशा में
सूत्रांक
[३५]]
श्रीप
घातो व म(सं)गो वा ॥५॥ संबंधे संघपेसो एनो बोच्छामि संथर्व वयणे। पुधि पच्छा व तहा संघणणं कणति दाताए ॥ ६॥ गुणसंथवेण पूर्व संतासतेण जो धणेजाहि। दातारमदिन ग्णम्मि सो वयणे संथयो पुधि ॥ ७॥ सो एसो जस्स गुणा पयरति अवारिया दसदिसासु । इहरा कहासु सुवति पचक्र अज विद्रोति ॥८॥ गुणसंधबेस पच्छा संतासतेण जो धुणे. जाहि । दातारं दिण्णम्मी सो पच्छासंथयो क्यणे ॥९॥ विमलीकय णे चक् जहत्यसो वियरिया गुणा तुज । जासि पुराणे संका इवाणि णीसकिय जायं ॥ १४७० ॥ तत्वचि भदगपंता दोसा तह र होति णायचा । भणिएस संधवो तू विजामते अतो वोच्छं ॥१॥ विजामंते चतुला आवती दाण होति आयामं । पिजामंतविसेस उलिंगेऽहं समासणं ॥२॥ विजामंतबिसेसो विशिस्थी पुरिसों होति मंतो तु। जहब ससाहण विजा मंतो पुण पढियसिद्धोतु ॥३॥ विजाए उणिवस्तिर्ण जह कोई भिन्ड्वासयो पन्तो। साहग पिडियागं अहथि
राहायो इमो तत्व ॥४॥इय पंतभिच्छ्वासो साहण ण देति तस्य भणएको । जड इच्छह विजाए पपगुलवत्थाणि दामि ॥५॥ पेच्छामोतिय भणिए गंतुं विजाभिमंतिओ बेति। किमिची पतगुरूवल्याणि दिगण साहरणं ॥ ६॥ अण्णाह य सा भाणी किह ते दिण्णांत भत्तपाणादा । तो बात नगा रट्टा कण हित कण मुद्दा मि? ॥ ७॥ पडिविज थमणादी सो या अण्णो व से करेजाहि । पाचाजीची मावी कम्मणकारी य गहणादी ॥८॥ मम्मि उदाहरणं पाडलिपुत्ने मुरुंडराइस्स । उप्पण्ण सीसवेदण पालित्तयकहण ओमने॥॥ जह जह पदेसिणि जाणुयम्मि पालित्तयो भमाडेत्ति। तह तह सीसे विषणा पणसति मुझंडरायस्स ॥१४८०॥ मंतेणं अभिमंतिय तह व दवाव दिन कोई तु । सत्यपि तेथिय दोसा पडिमनादी इमे होन्ति ॥१॥ पडिमंतभणादी सो वा अण्णो व से करेजाहि। पापाजीवी माथी कम्मणकारी य गहणादी ॥२॥ विजामताभिहिया जहुणा बाच्छामि चुष्णजोगादी। बसिकरणादी चुण्णा अन्तवार्णजणादीया ॥३॥ पुणे जोगे चउलहु जापत्ती दाणमेध आयामं। णिदरिसणं दुण्हंपी उशिजेड समासेणं ॥४॥ दिहतो चुण्णजोगे जह कुसुमपुरम्मि कति आपरिया। जंघाचलपरिहीणा ओमे सीसस्स तु रहन्मि ॥५॥ कहयंति चुपणजोगा अंतदाणादि तस्थ दो सहडा। पमाणठिय णिसामे अवधारे अंजण एक॥ ६॥ पीसजियानि साहू गुरुहिं देसंत खुद्दाग णियत्ता। आयरिएहि य मणिना दुइछ कयं जं णियत्ता भे॥७॥ भिक्खे परिहार्यते थेराणं ओमें तेसि देताणं । कि ओम गुरुणं न कुवामो? लुइट सामन्थे ॥८॥ कुणिमो अंतवार्ण दवे मेलेनु अनियंजणथा । सह भोज चंदगुते ओमोदस्थिाएं दोव्बाई ॥९॥ चाणकपुष्छ इहालपुण्ण दारपिहणं तु धूमो या बटुं कुच्छ पसंसा थेरसमीचे उपालंभो ॥१४९०॥ एवं वसिकरणादिसु चुपण वसीकोनु जो तु परं । उपाएती पिंडं सो होती चुण्णपिण्डो तु॥१॥जे चिनमन्तदोसा तेभियनसिकरणमादिचुष्णेहि। एगमणेगपयोस कुजा पस्चारयो बानि ॥२॥ मणिएस पुग्णपिण्डो जहुणा बुच्छामि जोगपिट तु। नहियं जोग अणेगा इणमो तु संपपपरसामि ॥३॥ सूभगदोभगकरा जोगा आहारिमा यति इयरे या आघसधूवचासो पायपाठेवाविणो इतरे ॥४॥ तत्थाहरणं णमो अणहारिमपाइलेवजोगम्मि। आनीरगविसयम्मी जह कत सुण ताबसेहिं तु॥५॥णदिकव्हवेण्णदीवे पंप सथा तावसाण णिवसंलि । पचदिषसेसु कुलपद पालवे लिंप पाए तु ॥६॥ पाउगदुरूद सलिछप्परेण उत्तरिड एनि गरंति। आउन लोग पृया पबक्सा लेते देवत्ति ॥ ७॥ जण सावगाण खिसण नाहियं न बहरसामिमाउलया। आयरियाजसमिता नेसि च गिवेदिय तेहिं ॥८॥ तेहि मणिया य पचहते मातिहाणि पापलेवेणं। णतिमुत्तरति सगिहे उसिणोएण धोबह नं॥९॥ तेहि य सगिर्द णे पाय बना चोयऽणिच्छमाणाणं। किं जाणति लोगोनी दियं विगएण बहुपलयं? ॥१५००। पडिल्लाभिय बर्चना णिपुरणदिकूल मिलिय समिया या विम्हिय पंच सता तावसाण पञ्चज साहाय॥१॥ एमादीजोगेहि आउद्यावेनु एसली पिंड । सो णवि कप्पे एनो मोच्छामी मूलकमंतु ॥२॥ दुनिहं तु मूलकम्म गम्भादाणे तहेच परिसाडे। हुविहेचि मूलकम्मे पब्उिन होति मूल नु ॥३॥ जादाणं जहिगरण परिबंधो छोभगाविदोला या पाणवह सारणम्मि छोभग पटिणीय उटाहो ॥४॥ इय मूलकम्मेणं पिडो उपादिश्री ण कम्पनि नु। उपातणेस भणिया गवसणा चेव य समना ॥५॥ एवं नुनविहस्सा उम्मम उपायणाविमुदस्स। गणपिसोहिपिसुद्धस्स होनि गहणं तु पिएम्स ॥६॥ उम्गमदास गिहीतो उपायण होइ समण उत्थाणा। गहणेसणाए दोसे आयपरसमुहिए वोच्छ॥७॥ दोणिवि समणसमुत्था संकिन वह भावतोऽपरिणय या सेसा अडवि णियमा गिहिणो न समुहिए जाण ॥८॥ सा गहणेसण चनुहा णाम ठपणा य दधि भावे या दवे वाणरजूहं सर्व पत्ता विस्थस्या दवम्मिएस भणिता भावे महणेसणं तु बोच्छामि।दसहि पदेहि सुई संकितमादी इमेहि तु॥१५१०॥ संकिन मक्खिन णिक्खिन पिहिन साहरण दायगुम्मीसे। अपरिणय लिन्त उडिटय एसणदोसा दस हति॥१॥ संकाए पउभंगा पढमो गह य भोयणे चेच। चितिजो गहण ण भोयण तनिओ पुष सकिनो भोगे ॥२॥णीसंकिओतु चरिमे किह पुण संका हवेज जह कोई। मिक्स पविही सदम्मि हिरिमं मिक्स विगियेति ॥३॥ किष्णु सदा भिस्वा लहाण य तरति पनि ताहिये। हिरिम इति संकाए भुजति इह संकितो व ॥४॥ बीएण गहिय संकिय विगइन्वाने यणपरि संघाडे। २०३९जीतकल्पमाष्य -
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प्रत सूत्रांक [३५]
गयं पहेणगं पा सो णिसकियो मुंजे पाणीसंकगाहियइओ विगहेन्दों जिसम्ममण्णसंपार्ट। संका पुणा जारिस समए अमुगगहम्मि ॥६॥ महती भिक्खा तारिस एते. हिवि लद किष्ण होजाहिराणीसंकिजकाऊ मुंजति तं संकिओ पेष ॥ ७॥ पढमो दोमुनिलम्मो नितिओ पुण गहणे भोवणे तइतो। संक्तिमावणो पणुनीसा चरिमए सुद्धो ॥८॥ उमन्यो सुतणाणी गसती उजुयं पयत्तेणं जावणी पणुवीर्स सुतणाणपमाणतो सुद्धो॥९॥ साहू सुतोवयुत्तो सुतणाणी जइवि गिण्हइ असुई। न केवलीवि मुंजलि अपमाण सुर्य भइहरा ॥१५२०॥ सुप्तस्स अप्पमाणे चरणाभाषी नगो य मोपखस्स । मोरखामावाओ चिय पयत्तदिक्खा णिस्था य॥१॥ सोलस उग्गमदोसा णव एसणदोस संकमेतृण। पणवीसेए दोसा सकियमासंकिओबोच्छ ॥२॥ जइसका दोसकरी एवं सुर्वपि होति तु असुई। णीसंकमेसियंति बजणेसणिजंपिणिहोस ॥३॥ मणति संकियभावो अविसुदो अपरितेकतरपक्से। एसिपि कुणयऽसि अतिपेसि मिसुरो तुम४ाणिस्संक काउ तन्हा मीत्त संकियं भणितमेयं मक्खितमिदाणि बीचई मक्खित जे होति संसत्तं ॥५॥ दुबिह चमक्सितं खल सचिनं न होड अथितं । सचितं तस्य विहा पुढवी आड य बकाए ॥६॥ पुढवीससरपवेणं हत्थे मते व सुक्खें पनगं तु आवती दाणं पुन णिमितियं होति दात ॥ ७॥ कदममस्तियमीसे लहुगो निम्मीसे होन्ति बहुगा तु । लामाले पुरिमा बाजुलहुएहोति आयामं ॥८॥ ससणिबुदडे या पुरपच्छा(पुर पच्छा अणु)कम्म मनिस्वयं चन्हा। उक्कुपिडकक्कुसमविखनमेवादि यणकाये ॥९॥ सप्तणिहत्यमते पणगं आपत्ति दाण णिधिगई। उदवले मासलहुं आपत्ती दाण पुरिमड्द।। १५३०॥ पुरकम्मपच्छकम्मे आपनी चतुलहू मुणेतबा। दाणं आयाम तू पणकाय अतो तु बोच्छामि ॥ १॥ उकपिट्टमक्सिय परिचहत्ये य मत्त सबिने। मासह आपत्ती दाणं पुण होति पुरिगड्ढे ॥२॥ एते | व उ मनिलाएं हत्ये मने यहोन्नऽणन्तेसु । आपत्ती मासगुरु दाणं पुण होति भनेक ॥३॥ छिदंतीए साग छुदतीएवज रसोलितं । उचड्डमक्खिनेतं परित्तर्णनेण या होजा ॥४॥ संसहिन काएहिं नीहिषि नेऊसमीरणतसेहि। सबित्तमीसएक चमक्खित ण चितिनए किंचि ॥५॥ सबित्नमपिसबम्मि उ हत्येमने यहोलि चउभंगो। पदमस्मि दोषि मक्खिय दस्थो विनियम्मि पनि मनो ॥६॥ लिए मतो मक्खितों णवि हत्यो परिमए ण एकोविरा आदितिए पटिसेहो चरिमो भयो अणुष्णातो ॥७॥ अपिलमक्खिन हा माहितरण पानि इतरेण । गरहित होति दुहात लोगे वह उभयपी वाचि ॥८॥ मंसयससोणियाऽऽसबलसुणादी गरहिएस लोगस्मि । मुत्तपुरीसादीहि गरहियमेव भने उमए ॥९॥ दुम्हि न गर-13 हिएत आवनी चालहमणेना। दाणं जाया तू अगरहितेसो पस्खामि ॥१५४०॥ अगरहिष पूरकुसणं गोरसपततेतमादीहिंजता संसत्तमसत्तं दुविहंपिय होति गाय ॥१॥ चिन्नमक्खियम्मी पाउसुवि भंगेसु होति भयणा त। अगरहिएण तु ग्रहणं पडिसेहो गरहिए होति ॥२॥ संसाजिमेहिं बज अगरहिएहिपि गोरसदहि । गधुपाडवोडगुलेहि य: मा मष्उिपिपीलियाचाओ॥३॥ गोरसतंसने या पततेहगुलादिकीरिसंसत्ते। चतुलहुगा आपत्ती दाणे पुण होनि आयामं ॥४॥ोइयगरहितमज्जामंसक्लादीहिं मक्खियं जैतान पुराण भानिज देसि व पटुन गहणं तु ॥५॥ दोहिपि गरहिएहिं मनुशाराई होड अम्गहणं। मक्खित भणितं एवं एनो बोछामि णिक्खिनं ॥६॥णिक्सिन ठवियन्ति य एगई ठाणमम्गणा एव्याज तिथिह होनि ठार्ण सचिनं मीस अभिन्न ॥ ॥ एत्वं चतूभंग नचे सबिनादी अणेमह इमो ता समितं सचिने सचित्त मीसे कऽचिले ॥८॥ मीसं पा समथिले मीस मीस य होनि णिखिने चित्तण मीसेण य एवेकी होति पाउभंगो ॥ ९॥ अगुणा चित्ताचिने चितं नित्तस्मि होति णिक्रयेयो। चिन या अधिनं अपित पित्तोभयापिने ॥१५५० ॥ अरणा मीस मीसे मीसमषिते अचित्त मीसम्मि। अचित्तं अगिने ततिएसो होति चनुभंगो ॥१॥ चतुभंगेसलेम संजोगाऽणेगहा मुणवत्रा। युटादिएसु उसमुवि काएस सहाण परताणे॥२॥सचिनपदविकाए सचिनी व पदवि णिपिसत्तो। सथिले अमिनो अविवापिसचिनो॥2॥अधिने अमिती सदाणे एसटोनिपउभंगो। परठाणे पंचरण आऊमादीसिमे होन्ति सचित्तविकाओ सचिनाउग्मि होति णिक्विनो। सवितो अबिसे अचित्तो चेक सचिने ॥५॥ अचिनो अचिने एवं सेसेगु तेउमादीसं। संजोगार तवा पंचसु परठाणे चाभगो ॥ ६॥ एमेव आउतेउवाउपणसतिनसाण यनुभंगा । एकके विष्णेया उच्चभंगाण संजोगा ॥७॥ चिने सचिनेणं ते उनीस उपनि सजोगा। अनियतमीसएणपि एपनिया र संजोगा ॥८॥मीसे अरिचणवि एचतिय रिचय हवंति संजोगा। तिमिणपि उनीसा न मिलिया अनरसय ४ ॥५॥ अहवण सचिनमीसाय एगया एगयो य अग्यितो। एत्वं चतुमंगो तू नत्वाऽऽदितिए कहा णस्थि ॥१५६०॥जं पुण अविनदवं णिविप्पनि पेयणेम कायसु । सहि मग्गणा न णमो अणंतर परंपरा होति ॥१॥चिनपुटविद अपतर ओगाहिमगाद होति णिपिसना होती परंपर पुण पिडुङगर्य जंतु पुढविठियं ॥२॥ उदगमणना णवर्णीयमादि पारंपर नणाचादी। वे उअणंतर पारंपरे यदुयमा इमे सत्त ॥३॥ विग्याचमुम्मुरिगारमेव अप्पत्तपत्तसमजाले । बोलीणे सत्न दुगा एते तु अर्गनर परे य॥४॥ विझाउति गदसति अगी दीसनिय हंपणे उदे। छारुम्मीसा निगल जगणिपणा मुम्मरो होति । गिजाला हिलिहिलिया इंगाला ते भवे मुणेनबा। होति चउत्थी मंगो ने जान्ताऽपत्नपिहर न ॥६॥ पंचम पना पिहुई उहमि यहोति (२६०) २०४०जीतकल्पनार्थ
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श्रीप
कण्णसमजाला। सत्तमए समतीया अणतरा होति सत्तमुवी ॥ ७॥ पारंपर पिहादिसु अगणीपट्टादि वत्य दोसा । भपणा तु जंतचुलिस इणमो तु नहिं मुणेयत्रो ॥८॥ पासोलित कडाहे परिसाटी गरिय तंपिय विसाल। सोविय अचिरच्दो उच्डरसो गाइउसिणो य॥९॥ गहणमघट्टिय कपणे घट्टित कारादिपडन अग्गिवहो। उसिणोदमस्स गुलरसपरिणामिय गहणणचुसिणा ॥१५७०॥ दुविह विराहण उसिणे उड्डण हाणी व भागभेदो या अचुसिणातोंण घेपनि जंतोलित्तेस जयणा तु॥१॥वाउक्खित्तागंतर पप्पडगादीतु होति । णाया। परिषइनिपूरिओवरिपनि ट्ठिय परंपर होति ॥२॥ हरियादि अणंतर पूरिया पारंपरे पिडमादी । गोणादिपिड पूवादर्णतरे भरगकुतिगितरं ॥३॥ सर्व ग कप्पएवं णिविसत्त समासतो समक्वान । पुटवादीण एनो आवसी दाण चोच्छामि ॥४॥ पुढवादी जाच तसे अर्णतवणकाय मोनु णिक्खिते। संति अजंतर लहगा परंपर होति मासलाई ॥ ५॥ चतुलहुए आयाम मासलह दाण होति पुरिमइटे। एवं सचित्तम्मी मणियं मीसे अतो चोच्छं॥६॥ एतेसु चेव पुढवादिएस मीसे अणंतरे लहुओ। होति परंपर पण दाणं एतो तु वोच्छामि ॥ ॥ लहुमासे पुरिमइडे पणगे पुण दाण होति णिविगति। वणकायमणंतेसु आवत्ती दाण वोच्छामि ॥ ८॥वणकायजर्णतेमु णिक्खित अणंतरे तु चलुगुरुगा। होति परंपरि गुरुओ दाणं तु अतो तुवोच्छामि ॥५॥ चतुगुपए तु चउत्थं गुरुमासे दाणमेगभनं तु । आवत्ती दाणंपिय पिहियम्मि अतो उ बोच्छामि ॥१५८० ॥ पिहिवार्णनाणंतरपरंपरे थेय होति गुरु पणगं। बहुपण तु परिने दोसुपि वाणं तु णिविगती॥१॥ आवत्ती दाणं या पुढवादीणिक्विवंत मणियं तु एनो समासयो बिय पिहिनदार पवस्वामि ॥२॥ सवितादिसु अधिनपिहिय चनुभंग नह य संजोगा। जह भणिया णिक्विले तह चेव य होन्ति पिहितेवि ॥३॥ सवित्त मीस एको एक तोऽचिन एष चउभंगा। आदितु पटिसेहो तनिए भंगम्भिर माणया ॥४॥ अस्मित्त सचिनेणं अतिर सतिरं च जं भवे पिहितं । पुढवादिएसु उस्मुवि लोहादी अतिर पुढबीए ॥५॥ पच्छियपिडडादि निरं ओगाहिमगाविऽणतरं होति । वद. णियादि परंपर अगणिकाए इमं होति ॥६॥ अतिरं अंगाराई सहियं पुण संतरो सरावादी । वत्येव अतिर वायू परंपरो पस्षिणा पिहिते ॥ ७॥ अइरं फलादिपिहियं पणम्मि इतरंतु पछिपिटादी। कच्छव(त्यहसंचारादी अतिरतिर पपिछयादीहि ॥८॥ तइए भंगे मग्गण भणिएस पउत्यभंगभयणा तु। अचिन अचित्तेण पिहिए का भयण ? मुणसु इमा ॥९॥ बनुभंगो पिहिएणं गुरुयं गुरुएण गुरुज लहएणं । लड़यं गुरुएण नहा लहुएण चरिम तहिं गज्मो ॥१५९०॥ पुढवादीणं कमसो आवनी दाणजह तु मिश्विने। आयधिराहण गुरुयनिका गवरं तु चउगुरुया ॥१॥ एत्य उदाण चतुत्वं एनो बोच्छामि साहरणदारं । साहरण उकिरण विरेवणं चेच एग? ॥२॥ मनेण जेण दाहिति नन्य अवेज तु होज जं वर्ष। तं साहरित अपयहि मनेणं देव साहरणा ॥३॥ सा पुण छस् णातवा सचित्त मीसा तहेव अचित्ता। एत्यविजह णिक्खिने मंगा संजोग नह व ॥४॥ सविनमीस आदिशाएम दुसु माथि मम्गण विवेगो। तनियम्मि मग्गणा तू उस भोमादीम साहरणे ॥५॥ चरिमे भंगे भयणा जं दुहमचित्त का तहि भयणा । भण्ड मुणम् तहियं चउभंगो होति णमोतु ॥३॥ सकेसक पदम सुके उाई तु विनियओ भंगो। उाडे मुकं नइओ अ उ पाउत्थो तु॥७॥ एकके पउभंगा मुकादीएसुचाउसु मंगेस्। यो थोपं थोवे बहवं बहु योर बहु बहुगं ॥८॥ जन्यतयोये थोष सुक्खे जा चहुभति तं गर्म। जति ननु समुक्खिनुं थोपाहारं वलड मनं (अन) ॥९॥ सेसेसू नीसुषी दाना भंगम होनि गातयो। थोष बहुं पहुग थोषो यह बहूगो चेर णमो तु॥१६००॥ उक्लेवे णिकसने महाडभानम्मिलना वह डाहो। उकायवहो य सहा अचियर्न चेव बोच्छेदो॥१॥ थोचे यो छुट सुक्खे उप न डा. सुक्लं तु। बहुर्गतु अणाइण्णं कडदोसो सोनि कानूणं ॥२॥साहरणेय भणिय आपत्ती दाण जह तु णिक्विने। दायगदारं जगा समासोऽहं पपखामि ॥३॥बाले बुड्ढे मने उम्मने विए यज जरिए या अंधलए पगलिए आरुढे पाउयाहिप॥॥हत्यदुणियलब विनिए बेच हत्यपाएहि तेरासि गुपिणी बालवच्छ मुंजलि पुसलेली ॥५॥ भजेन्ती यवलेन्ती कडेन्नी
व नह य पीसन्ती । पिजती संचती कलंनी पमरमाणी य॥ ॥ उकायवाहत्या समणा णिक्विवितु ने येव । ने योगाहेन्ती सपनाऽऽभंनी य ॥ ७॥ ससनेण तु वरेण - लिनहत्था य लिनमत्ता या आयत्तन्नी साहारणं च देन्तीय चोरिवयं ॥८॥ पाहुडियं च ठवेन्ती सापश्चवाया परच उदिस। आभोग जणाभोगेण वळती पाणिजा उ ॥९॥ एनेसि डायगाणं गहणं फेसिथि होति भइया । केसिंधी अग्गाहण नप्पडिवावे भवे गहणं ॥१६१०॥ एते दायगदोसा एनेहि दिनमाण णचि कप्पे । जे न अकारणे गेल्हे पस्छिन नेसि | बोच्यामि॥१॥बाले बुदे मले उम्मले वेषिए बजरिए या एतेसि मासला आपत्ती वाण पुरिमइद ॥२॥ अंधेलपगलियादी जापन दानबालवानि । पनेय चतगुस्या दाणं पुण होषऽभत्त९ ॥३॥ भुजण घुमुलेन्लीए आपत्ती चतुलहू मुणेया। दाणं आयामती भजणमादी अनो बोच्छ॥४॥ भजन्नी बदलेली जाच न उकायमगहन्यत्ति । समगट्ठा ते चेव तु णिक्विष ओगाह पहन्ती ॥५॥ एथत विसरिसदाणं पच्छित्तं होति कायणिफण्णं। सेसेमू दारेसु चानुयुगा दाणमाया ॥६॥एने दापम मणिता एनो उम्मीसयं पपरसा१०४१ जीतकन्यभाष्य
मुनि दीपरतसागर I
अनुक्रम
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [३५...] ------------- --------------- भाष्यं [१६१८] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [३५]
| मि। विद सचित्त मीसग अनिचलेणं च उम्मीसं ॥७॥ जह व य संजोयो कायाणं हेहओ तु साहरणे। तह चेव य उम्मीसे होति विभागो गिरवसेसो ॥८॥चोएतिको विसेसो साहरणुम्मीसयाण दोण्हपि । भण्णति साहरणं तू भिक्खडा मचर्य रये ॥९॥ उम्मीसं पुण दायायं च दोवंत मीसितुं देजा। बीयहरियाइएहिं जह ओदणकुसुणमादीर्ण ॥१६२०॥ तंपि य मुक्खे सुक्खं भंगा पत्तारि जह तु साहरणे। अप्पवहुएवि चउरो तहेव चाइण्णऽणाइण्णं ॥१॥ उम्मीस मणियमेयं एत्तो घोच्छामि परिणवं दुविहं । दवे भावे यतहा दझे पुढवादि छक्कं तु॥२॥ जीवत्तम्मि अचियते अपरिणय परिणयं गते जीये। दिद्धतो बुबवही हय अपरिणयं परिणयं व॥३॥ दख्खे अपरिणयम्मी पच्छित होति कायणिष्फरणं । मावे अपरिणतं पुण एत्तो नोच्छं समासेणं ॥४॥ सज्मिालगादिणं तू अहवा अण्णेहि होति सामण्णं । सत्येगस परिणतो भायो देमित्ति साहुस्सा ॥५॥ सेसाण णचि परिणयो अपरिणयं भावतो भये एवं । अहवावि दाणमणं अपरिणय भाचतो होति ॥ ६॥ संघाडग हिंडतो एगस्स मणम्मि परिणय एसी। चितिए ण तु परिणमती संपि अपेत्ता मा कत्रहो ॥ ७॥ पढ. मिल्लम भावम्मी अप्परिणयगेव्हणे तुलडमासो। नस्सारत्ती भवति दाणं पुण होति पुरिमड्ढे ॥८॥मणित अपरिणयमेयं एत्तो बोष्छामि लित्तवारंतुलित्तम्मि जत्य लेबोलाम(मा)ति कुसणादिववस्स ॥९॥ तं खलु जगहियामा वहिय होज पच्छकम्मं तु । सम्दा उ अलेचकर्ड मिष्फावादी गद्देवयं ॥ १६३०॥ इति उदिते चोएई जदि पच्छाकम्मदोस एवं तु। तो णचि भोन चिय जावजीचाएं भणति गुरूः॥१॥ को कालाणं नेच्छति आवस्सगजोग जवि ण हार्यति। तो अच्छतु मा भुंजतु अह ण तरे तत्व भंगऽडा ॥२॥ संसहस्थमने सम्बम्मी साबसेस मंगऽहाागहणे तु सागसेसे संसयभंगेसु भयणा यु॥३॥ संसचहत्यमते लिखे लहगा तुदाणमायामा अवसेस लित्त गुरुमो दार्ण पुण होति पुरिमइदं ॥४॥ लितंति गत एवं एना बोच्छामि उड्डिय अहुणा । तैपि तिह नियंत सचित्त मीसं च जचित्तं ॥५॥ उड्डिएँ चाडलहुगात जापत्ती वाण होति आयाम। अब सचित्तादीणं आवती कायणि फर्ण ॥६॥ सबित्तमीसए या चउभंगो उड्डणम्मि इत्य भये। चउनंगे पडिसहो गहणे आणादिणो दोसा ॥७॥ उसिणस्स छड़डणे देन्नओवडोज कायडाहोबा। सीयपटणम्मिच काया पडिए मविदुनाहरणं ॥८॥छदिव्य मणिर्य एवं गहणेसण एस परिसमत्ता तु । गहितस्स अतो विहिणा घासेसण पत्तमहुणा उ॥९॥ सा चतुहा मामादी सर्व वण्णेनु एत्य दारम्मिा एनस्सेदोवणयं वोच्छामि इमं समासेर्ण ॥१६४०॥ मच्छस्थाणी साह मंसस्थाणी य भत्तपाणं तुरागादीण समुदयो मच्छयवाणी मुणेनचो ॥१॥ जहण छलिओ तु मच्छो उपायगहणेण एप साहुषि। अप्पाणमप्पणविय अणुसासे भुंजमाणो उ ॥२॥ मायालीसेलणसंकडम्मि गेष्हतो जीव ! ण सि छलितो। एहि जह ण उलिनसि भुंजतो रागदोसेहि ॥३॥ पासेसणा तु भावे होनि पसस्था य अप्पसस्था य। अपसस्था पंचविहा सचिवरीता पसस्था तु ॥४॥ संजोइय अइवयं संगाल सघूमयं अणडाए। पंचमिह अप्पसस्था तविकरीना पसत्या तु॥॥ संजोयणेत्थ दुविहा दोभावे पदाधि बहिश्रतो। भिक्सं चिय हिंडतो संजोए बाहिरेसा तु॥६॥लीरदहिकट्टराविण लंभे गुडसालिकरयतमादी। जातिना संध जोए हिनतो तो वोः ॥ ७॥ अंतो निह पादम्मी लंबण वयणे य होइ बोद रसोचकारि संजोययए तुर्व पाए ॥८॥ बालकपदगवाइंगणादि संजोएं लंबणेण सम। जयणम्मि छोटु लंबण वो सालणगं हो पच्छा ॥९॥ दामि एस संजोयणातु संजोएं जंतु दवाई। रसहेउ तेहि पुण संजोयण होति भावम्मि॥१६५० ॥ संजोएलो दवे रागदो सेहि अप्पर्ग जोए। रागदोसणिमित्तं संजोययए तो कम्म ॥१॥ कम्मे हितो य म संजोययए मनातु सुकाण। संजोषयए अप्पं एसा संजोयणा भावे ॥२॥ रसहेउ पडिकुट्ठो संजोयो कप्पए गिलाणा । जस्स व अभत्तछंदो महोइओं अभावितो जो य ॥३॥ अहवण जाई दवे पते व पयादिगावि मेलति । सनुगमादीहि सम मा होतु विगिचणीयंति॥४॥ अंतो पहि नउगुरुगा वितियाएसेण बाहि पाउलहुगा। बडगुरुगेऽभत्तह चउलहुगे होति आयाम ॥५॥ संजोयण मणिएसा जहुण पमाणं भजामि आहारे। जातिय भोला साहहिं जाव. नहाए ॥६॥ बत्तीस किर कवला आहारो कुटिपूरजो मणिओ। पुरिसस्स महिलियाए जद्वाचीस भने कवला ॥ ७॥ चउनीस पंडगस्सा ते ण गहित जेण पुरिसइवीणं । पाजण पंटस्स उ तम्हा ते गो गहित एवं ॥८॥ एत्तो किणापि हीणं अई अडवगं च आहारं । साहुस्स बेन्ति धीरा जायामायं च ओमं च ॥९॥ पक्कामं च णिकाम च जो पणियं भनषाणमाहारे। जतिबदुवं अनिबहुसो पमाणदोसो मुणेयचो ॥१६६०॥ बत्तीसाउ परेण पकाम णिचं तमेव तु णिकाम । जं पुण गलनणेहं पणीतमिति तं बुद्दा ति ॥१॥ अतिपहुयं अनि बहुसो अतिप्पमाणेण भोयर्ण भुना हादेजय बामेज व मारेज व अजीरतं ॥२॥णियमाहारादीयं आइवयं अइबहुसो तिणि वारा उ। तिण्ड परेण तु जंतुन येव अनिष्पमा त॥३॥ अहवा अनिष्पमाणो आतुरभूतो तु मुंजए जंतु । तं होति अतिपमाणं हादणदोसा उ पुजुत्ता ॥४॥ जम्हा एते दोसा अनिरिने नेण हॉनि चनुलहगा। आवनी दाणं पुण: आयाम होति णाय ॥५॥ दोसो अतिपमाणे तम्हा भोतव होति केरिसय ?। भण्मति सुणसू जारिस भोत्त होति साहहि ॥ ६॥ हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे गरा। ण १०४२जीनकापभाष
मुनि दीपरतसागर
अनुक्रम
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आगम
(३८/१)
प्रत
सूत्रांक
[३६]
दीप
अनुक्रम [३६]
"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं )
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मूलं [३६]
आयं [१६६७]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
T
ते विज्ञा चिच्छिनि अप्पानं ते चिमिच्छा ॥ ७ ॥ हितमहित होति दुहा इह परलोगे य होति चउभंगो इलोग हितं ण परे किंचि परे य इहलाए ॥ ८ ॥ किंचि हितमुभयोएणीभयोएचओ भंगो पदमगमंगो तहियं जे दवा होन्ति अविरुद्धा ॥ ९॥ जह वीरदहिगुलादी जसणिजा व रत या मुंजने होति हि इह ण पुणाई परलोए ॥१६७०॥ अमणुष्णेसणसुद्धं पर लोग हिनं ण होति इहलोगे पत्थं एसणसुदं उभवहियं होति शातयं ॥ १ ॥ अहितोभयोगम्मी अपत्य असणजेच अहवावि रतदुट्टो जति एनो मियं बच् ॥ २ ॥ अदमसणस्स सर्वजणस्स कुजा दवस दो भाए वायुपवियारणड़ा छम्मागं ऊणगं कुजा ॥ ३ ॥ सीयो उसिणो साहारणी व काली लिहा मुणेयी एएस तीची आहारे होतिमा मता ॥ ४॥ एगो दवस भागो अवहितो भोषणस्स दो भागात हायंति व दो दो भागा तु एकेके ॥ ५ ॥ एत्य तु ततियचथा दोणिवि अणवद्विता भये भागा। पंचम छड़ो पढमो मितिओ य अवहिता भागा ॥ ६ ॥ एवं तु मियं भणियं एतोषी ही भवे अप्पं एप पमाणाऽभिहितं संगालादी अनोवो ॥ ७ ॥ संगाले च गुरुगा आपली दाण होयमन चलगा तु सधूमे आवली दाणमायामं ॥ ८॥ विकारण भुंजन्ते एत्यचि लगा तु दाणमायामं चितियादेसे लडओ आवती दाण पुरिमर्द ॥ विभुं कारणतो एस्थवि लहुगा उ दाणमाया गालादिण कमलो तरुचमिणमो पवस्वामि ॥ १६८० ॥ जह इंगाला जलिया दहति जं तत्थ इंधणं पडियं। इह विय रागगाला उर्हति चरणिधणं णियमा ॥ १ ॥ रामेण सांगा आहारे मुच्छिओ साहू सु सुमित दिं सुपक सुरसं अहो सुरहिं ॥ २॥ रागग्मीपतिओ भुजतो फापि आहारं । गिरगिलगिर्भ करेति चरणिधणं खिप्यं ॥ ३ ॥ भणितं संगालेयं अरुणा पोच्छे सधूमगं पगते विणते तु धूमायतं तहां उगणं ॥ ४॥ जह वापि चित्तकम्मं धूमेणोरतयं ण सोमइ उ तह धूमदोसर चरणंपिण सोभए महलं ॥ ५ ॥ दोसेन समं तू जे आहारेति साहु दितो विरसमलोग कुहित रोरा भोक्खं (भक्खं ति गण एवं ॥ ६ ॥ दोसग्गीवि ज तो अप्पसियधूमभूमियं चरणं अंगारमेनसरिसं जा न भवति निद्दहति ताय ॥ ७॥ रागेण सगाल दोसेण समर्ग मुणेय रामदोससद्गतं नन्हा तुहोति भो ॥ ८ ॥ आहारति तस्सी विगलिंगाच विगयधूमं च साऽज्झयणणिमित्तं एचएसो पश्यणस्स ॥ ९ ॥ भणितं सधूममेयं एतो पोच्छामि कारणदारे नं पुण पडिकमंतो परिमुस्सी विचिन्तेति ॥ १६९ ॥ भोन कारणामी कि अस्थि अहब नत्थि जड अस्थी तो भुजेला साहू के पुन ते कारणा ? गुण ॥ १ ॥ उहि कारणेहिं साह आहारतो उ आयरति धम्मं । छवि कारणेहि णिजूतो उ आयरति ॥ २ ॥ वेधण बेयायचे इरिपडाए व संजमाए वह पानवतियाए उई पुण धम्मचिन्ताए ॥ ३ ॥ णत्थि छुहाएं सरिसिया विषणा मुंजेज पण छाया तरति कार्ड अयो भुजे ॥ ४ ॥ इरियं च सोती सुहितो नमनीय पेच्छ अन्धारं पामो वा परिहाय पेहादी संजमं तरे ॥५॥ आयुसरीरपाणादि उहि पाणण तरती मो तारण ते भुजेजा पाणवत्तीयं ॥६॥ धम्माणं न तरति चिन्ते पुत्ररतकालम्मि अहवाची पंचविहण तरति समय कार्ड जे ॥ ७॥ एतेहि कारमेहिं छह आहारेति जती नियमा छहिं चैव कारणेहिं णाहारेती इमेहिं तु ॥ ८॥ आतंके उवसग्गे तितिक्खया बंमचेरगुतीए पाणिदया तपऊ सरीरोच्याए ॥ ९ ॥ आयंका जरमादी समुपणे ण भुजे भणितं च सहस्रप्यहया वाही बारेमा अनुमादीहि ॥ १७० ॥ रायासण्णावादी उपसग्गो तम्मियीण मुंजेला सहणा तु तितिक्खा पाहि ते तु सिएहिं ॥ १ ॥ मणितं च जिणिदेहिं अवि आहारं जती हु वोच्छिदे लोगेऽनि भणिय विसया विणिवत्ते अणाहारे ॥ २ ॥ तो भरणा गवि भुजेशाहि एवमाहारे । पाणदय वास महिया पाउसका व गवि भुजे ॥ ३ ॥ तबहेतु उत्पाद जान तु छम्मासियो नयो होति उ णिच्छिण्ण भरो छडेतुमणो सरीरं तु ॥ ४ ॥ असमत्यों संजमस्स उ कोक्स व तो देई उडेमिलिन मुंज सबह वोच्य आहारं ॥ ५ ॥ सोलस उग्गमदोसा सोलस उप्पादणाएँ दोसा तु इस एसजाएँ दोसा संजोयणमादि पंचेन ॥ 5 ॥ सीपाली एते सी पिडिता भवे दोसा जेहि अविमुद्ध पिंडे परणुत्रपातो जतीण भवे ॥७॥ एतदोसविमुको मणिताऽऽहारो जिणेहिं साहूणं धम्मावस्सगजोगा जेण ण हायंति तं कुजा ॥ ८ ॥ उमममादी तू कारणन्तत्यडो एस लक्खण आपत्ती दाणमेव कमसो समक्वायं ॥ ९॥ अरुणा गाहाणं तू बीच्छामी अक्सरत्यमिणमो तू उरेस कम्म मो चरमतियं होति सेसं तु ॥ १७१० ॥ पाडाणं पढमं चितियं समान ततिय साधूर्ण चरिमतियं एवं तु कम्मंती आहफम्मं तु ॥ १ ॥ पाडमीसजाए साहूमीसे य सघरमीसे य बा पाहुडिया विवाह उसकोका ॥२॥ जाड सपचवाय विराणा जन्य होति आयाए लोग जो एसति सो होती लोभपिंडो तु ॥ ३ ॥ समुषि एते उगमादिलोअनंते पत्ते पत्तेर्ष सोही एवं तु भत्तई ॥ ४ ॥ अतिरं] अनंतचिक्तित्तचिहियसाहरियमीसियादीसुं। संजोग सहगाले दुहि निमित्ते व खमणं तु ॥ मू० ३६ ॥ ५ ॥ अतिर गिरंतर भणति अनंतकाय तु होति वनकायो। पूवलिमादी किंची निक्लिने होति एत्यं तु ॥ ६॥ पिहितं अनंतकाए साहरियमर्णतमीसिये दाबि आदिमणं पुण अपरिणएतका १०४३ जीतकल्पभायं -
गुणि दीपरजागर
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आगम
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“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [३६...] ------------- --------------- भाष्यं [१६६७] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
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[३६]
दीप
एचि॥ ७॥ संजोए रसहेउ संगालं रागसहित णेष । पटुपण्णणागतं या दुविह णिमित्य णाताई ॥८॥ सबजरियं दुन्हिणिमित्तादिपनयते । पत्तेयं पनेर्य सोही एल्यं तु अन्नई ॥९॥ कम्मदेसियमीसे पायादिपगासंगारिएपि। पुरपच्छकम्मकुच्छियसंसत्तालित्तकरमत्ते । मू३७॥१७२० ॥ जाति कम्म पद्यमे जातियमीसजायमादि। पंचविह पानिपिंटो खीसदी अंकपनन्ते ॥१॥ आदिमहणेणं पुण दुतीपिडे णिमित्ततीए या भाजीवपणिमपिंटो बादरतेगिच्छणादिं च ॥२॥ कोहे गाणे य सहा संबंधी प्रयणसंथरे वीस विजा मंते चुपणे जोगे एमेत आविषया ॥३॥ पादोकरणपगासे दवे कीए प आयपरकीए । भावे तु आपकीते लोइयपामिबिएच् च॥४॥ लोइयपरियोऽवी परगामे आहटम्मिणिरवाते। पिहिडभिषणसचिने नहया कचाहे बगायो॥५॥मालोहडमुकोसे अच्छेने तह य होति अणिसहे। एमेवेत पगासणमादिषदा होति णाया ॥ ६॥ परकम्मपरकम्मे कृषिकपदवेण मस्सिय जंतु । संलत्सवचलिने हत्ये यने व णात ७॥ एतेसु जहुदिहो कम्मादिसु लित्तपनपसिएम। परोयं पत्तेयं सोही एत्वं तु मायामं ॥८॥ अविरं परिणिक्सिन पिहियसाहरियमीसियादीसु । अइमाणघूमकारणविवजए चिहियमाचामं ॥३८॥९॥ अतिर निरंतर भणितं परितकाए उहोति मिक्खितं । परितेण यवं निहितं साहरियं वा परितणं ॥१७३०॥ मीस परित्तेर्ण चिय आदिग्गहणा परिरालिले वि। परियेसु उड्डियम्मिवि जादिग्गहणा तु एमेते ॥१॥ अइमाण सभूमे या जाहारे कारणे विनवासा। कारणविचजजोन केरिसओ होनिमं योच्छं ॥२॥ आहारेति अकजे ण समुदिसे एक कारणे जोतु। एस विचनो मनितो सहत्यवि सोहि आयाम ॥३॥अज्झोयरकटयूविषमायाऽणने परंपरगए या मीसाणताणतरगतारिए गमासणगं । मू०३९॥ ४॥ पासंबज्झोषरओ साहअन्झोयरो य णायत्रो। होनि कहो चउहा तू जापंनियमादि मिया ॥ ५॥ आहारे पूनियम्मी मायापिडे य होति णायो । सचिसणंतकाए परंपरे जैतु णिक्लिचे ॥६॥ मीसार्णसणंतरणिविखने व होति णापरे। आदिम्गहणे पिहिते साहरिए मीसए पेण ॥ ७॥ गहिताणतपरंपरमीसऽविर पिहियमादि बोदय। एवं जहुदिह्रय सबत्यवि सोहि मस्तेक ॥८॥ओहविभागुदेसोक्करणपूनीअठवियपागडिए । लोउत्तरपरिणहियऽपमिथ्यपरभावकीए य ।मु०४०॥९॥ओदेसविभागे उदेस पाठविहे तुणातले । उवगरणवृत्तिए या चिरतपिए पागटे चेच ॥१७४०॥ लोउत्तरपामिबे परियट्टिय उत्तरे प मायरे। परमापकीयमखादिएम समेसु उदिहो॥१॥ पत्तेयं पत्ते सोही एवं तु होति पुरिमइदं । सम्मामाहडमादी पत्तेएवं पपपरवामि ॥२॥ सग्गामाइड ददर जाहण्णमालोहडोलरे पादमे । सुहमतिमिच्छा संचव निगमक्खियदायगोगहए। मू.४१॥३॥ सम्गामाटददर उभिपणे जहब गहि(गंठि)साहिए तु । मालोहडे जहण्णे उपरो अज्झोयरो होति ॥ ४॥ पटमो जार्वतज्झोयरोतु एसो यहो मणेतयो । मुहमतिगिच्छासंधवपपणे तू होनि गायत्रो ॥ ५॥ कदममक्खिय पुटवीआऊउदयामक्खिए जनु। वणकायपरितेणं उखुढे मस्वियतिगेणं ॥६॥ दायगउपहय एनो दायग से बालादिवरुप जे या एतेसत्यादिगारो ते य इमे होति बालादी ॥७॥ बाले बुड्ढे मत्ते उम्मले पेलिए य जरिए या एने ति तु जंतु नं होती वायगोवयं ॥ ८॥ एनेस जहूदिडेसाड्दमादीम जरिययन्ते । पत्तेयं पत्तेयं सोही एस्थं तु पुरिमददं ॥९॥ पतेयपरंपरठषियपिहियमीसे अणंनरादीम् । पुरिमइट संकाए जसंकट समापसे । मू०४२॥१७५०॥ वणकायपरिनेणं सवित्तपरंपरे तु मिक्खिने। तेणेच य चिहियं न परंपर होति विष्णेयं ॥१॥ एमेष य साहरिए सश्चितपरंपरे पस्तिम्मि। मीसपरिनअर्णतरणिक्खिते होनि णाय ॥२॥ आदिग्गहण न विहिए उ अणंतरे तु मीसम्मिा एमेच य साहरणे मीलेगु अणंतरे होति ॥३॥ ससु जारिद्वेषु सोहि परिमटमेव पनेथ । संकाए संबनि तम्सेवय होनि पन्छिन / ॥४॥ इनरठषिए मुहम ससिणिसरक्समक्सिए थे। मीसपरंपरठवियादिएम वितिएमु पाऽविगती ॥ ४३॥ ५॥ इतरठवणामने पाहुटिया सुहम नह य ससिणि । आयमक्सियमेयं ससररर्ख पुढपिए होति ॥ ६॥ पुनीभाउकाएलेउबाऊपरित्तषणकाए । बेइंवियतेबंदियचउरोपंचिदिएसं च ॥ ७॥ एतेस पुढयादिस मीसे उ परंपरे उ णिपिसने। पलेया पत्तेयं सहपणगं दाण णिधिगती ॥८॥वणकायऽणतमीसे णिक्सिते परंपरं तु सोहीमा। गुरुपणगं आपनी दार्ण पुण होति णिधिगति ॥९॥ चिनियाणताण नाणिपिसने गुरुगपणग:आवत्ती। दाणं णिविगती ऊ परंपरे होति एमेच ॥१७६०॥ चितिवपरिताणतरणिक्सिते लहुगपणगमावती। दाणं णिविगर्य तू परंपरे होनि एमेष ॥ १॥ सहसाणाभोगण वजेस पटिकमणमाहि तेसु । आभोगजोऽवि बहुसो अतिप्पमाणे व णिविगनी ॥.४४ ॥२॥ सहसा अणभोगा तू कुत्ता जेसु जेसु ठाणेमु । सवेसुचि नेमु भये पडिकमर्ण पुरचिहियं न ॥३॥ नेमुत्ति कारणेमु आभोगे इत्व जाणमाणो उ। बहुसो होनि पुणी पुणों अतिप्पमाणेऽपि एमेच ॥४॥ सबस्य तु मिधिगई सोही आभोगनी पुणेता। बहुसोऽपि सोहि एसा अतिप्यमाणेऽपिणानना ॥५॥धावणदेवणसंचरिसगमणकिड्डाकुहावणादीसु। उद्विगीताडेलियजीवस्यादीसु यच उत्थं ॥ ४५॥६॥ धावण गनिमतिरिना पारिनिपटेवणं त उड्वर्ण संघरिसो जमलिओ लू को सिग्धगतित्ति पचति तु॥७॥किट्टा होयडावयचाउरंगाजयमादि णाया। बहादि इंदजाल खड्डा उ कहावणा एसा nanादिगणेषं न समासओ पहेलिया कुटादी। युट्टी पुकारो गीत पुण होइ कंठं तु ॥९॥ छेलिय सेष्टा भषणति संगारो कीरनी तु सा सणा। जीवन मराठी कोइलमाचारणान १७७०॥ (२६१) १०४४ जीतकल्पमाध्यं -
मुनि दीपरतसागर
अनुक्रम
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [४५] -----------
------------ भाष्यं [१७७१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत
सूत्रांक
[४५]
बहिविगिचणियाए भत्ता परिमागऽभत्तहो आविभीतिगं इमं तू
प
धावणमादिपदेसु सव्वेसु अहकमेण विष्णेयं । पत्तेयं पत्तेयं सोही साहुस्सऽभत्तद् ॥ १॥ तिविहोवहिणो विचुतविस्सरितापेहिताणिवेदणए। णिनितियं पुरिमेकासणाइ सव्वम्मि थायामं ॥मू०४६॥२॥ तिचिहोत होति उचही जहष्णो मज्झिमो य उकोसो। चतुबह छबिह चतुभेदयो य कमसो मुणेयो ॥३॥ मुहपोति पायकेसरि पत्तट्टवणं तु गोच्छमओ वेव। एसो जहणीत मजिकामगमतो पवपखामि ॥४॥ पडलय रयतरणं वा पत्तापंधो य बोलपहो या मत्तय स्वहरणं या मज्झिमओ एस जातो ॥५॥ पच्छादतिग पहिगह एसो उकोसओ चउभेजो। ओहोवही उ एसो तिविहो तुसमासतो होति ॥६॥ओवगहिजो तिविहो जहण्ण मझो तहेव उकोसो। सो बण्ययनो जह मणिओं कप्पाजायणे ॥७॥ पिचुत पडियं भषणति पुणरवि लवे जहष्णमादीसु। सोही पमायमूला णिनियमादी य इणमो उ॥८॥णिग्मिगति जहष्णम्मि मज्झिमए सोहि होति पुरिमदर्द। एचासणमुक्कोले सबम्मि य होति आयामं ॥९॥ तिपिहोवहि विस्तारिए णवि पडिलेहद तस्य सोहि इमा। णिनितितं पुरिमेकासणं तु सबम्मि चाऽऽयाम ॥१७८०॥ तिविहोवहि विस्सरिए आयरियादीण जो तुण णिवेने। सोही णिचितियादी आपामंता मुणेवचा ॥१॥ हारिवधोतुम्गमिवाणिवेदणादिष्णभोगदाणेसु । आसणमायामचतुत्थयाई सबम्मि छई तु ॥४७॥२॥ हारेद जहष्णोचहि सोही इकासणं तुदातव्यं । मजिस्मए आयाम उकोसे होयऽभत्तहूँ ॥३॥ सव्योवहि हारेती सोही छईतु होति णायध्वं । एतो धोए वोच्छ सोही उ जहण्णमादीर्ण ॥४॥ धोएं जहण्णेकासण मनिझमए सोहि होति आयाम। उकोसेऽभत्तई धोए सबम्मि छई तु ॥५॥तिविहीबहिमुग्गमित आयरियाणं तु जो ण णिज्येदे। आसणमायामचतुत्ववाई8 सबम्मि उईतु ॥६॥ उपही जहण्णमादी गुरूहि अपिदिण्ण जो तु परिभुजे । सोहिकासणमादी छटुंता होति सबम्मि ॥७॥ अणणुण्णाय गुरूहि उपहि जहष्णादि देति अण्णस्स। सोहिकासणमादी उर्दुतो होति जीएणं ॥८॥ मुहर्णतय स्यहरणे फिटिए णिनिगतियं चउत्थं तु। नासिय हारबिए वा जीएण घउत्थछट्ठाई। मू.४८॥९॥ मुहर्णन फिटिय उम्गह सोही णिनिगतियं तु दायचं। रयहरणे तु चउत्थं फिडिए सोहेस लहम्मि ॥१७९०॥ मुहर्णत पमादेणं हारपिए णासिए व भत्तहुँ । रयहरणे उर्दू तू सोहेस पमादिणो जीए॥१॥ का.
दाणादीए णिविगती समणमेव परिभोगे । अविहिबिगिचणियाए भत्तादीणं तु पुरिमड्ढे ॥४९॥२॥ चिकहादिषमाएणं कालादीयं कोन्ते भत्तादी । सोही णिविगतीन परिभोगे होयऽभन्नई ॥३॥ एषद्धाणातीए अप्परिभोगेवि सोहि गिविगति । परिभोगेऽभत्तट्ठो अविहीय विगिचणे पुरिमं ॥४॥ पाणस्सासंवरणे भूमितिगापेहणे व णिविगती। सनस्सासवरणे अगहणभंगे य पुरिम ॥ मू०५०॥५॥ पाणस्सासवरणे सोही साहुस्स होति णिविगति। भूमीतिगं इमं तु वोच्छामि समासतो इणमो ॥ ६॥ उच्चारभूमि पढमा दितिया पुण होति पासवणभूमी। नइया उकालभूमी सोहेय अपेहणेऽविगती ॥७॥ असगादी चतुभेदो सत्रोऽविय एत्य होति आहारो। तस्स असंचरणम्मी सोही साहुस्स पुरिम ॥८॥ आप णमकारादी पचपसाणं व गेहए सौ । गहितं चा जो भेजति सोही समय पुरिमड्दै ॥ ९॥ एवं चिय सामण्णं तवपडिमाऽभिग्गहादियाणपि । णिवितियादी पक्सियपुरिसादिविभागतो गेयं ।। मू०५१॥१८००॥ एवं चिय पुरिमद सामण्णविसे सिर्थ मुणेषत्र । तवपडिमअभिग्गहें या अगहणभंगे इमं बोच्छ ॥१॥ तचो बारसहा होति, पडिमा नृ एगरालिया। दवाती तु अभिम्गह, अगहणभंगे तु पुरिमट ॥२॥गाहापच्छदस्स तुइमा विमासा तु होति णात्रा। सुहढादी पंचण्हषि णिविगती अन्तऽभत्तहो ॥३॥ चाउम्मासिब खुड्गभिक्यू थेरो उबवा आयरिए। पुरिमट एगमतं आयाम पडत्य उर्छता॥ ४॥ पतिविण पचक्खाणं जहसत्ति अगेण्हणे नुमभहियं । खुड्डादी पंचाहयि एकासणमहमं अंनो ॥५॥ फिटिए सतमस्सारिय भंगे वेगादि चंदणादीसु । णिविगतिय पुरिमेगासणादि सवेसु चायाम ॥ मू.५२॥६॥ पिडितुस्सग्गे एके पमाइणो सोहि होति णिविगति । दोहिं परिमड्ड भये निहिं पिटिए सोहि भने॥७॥ सो काउन्सग्गे फिडिए जुबओ पडिकमे जो तु। सोही पच्छाऽऽयामं उस्सारते इमं वोठं॥८॥सतमुस्सारे एक काउम्सम्मति एल्य :णित्रिगति । दोसुन परिमइट भये एकासणयं भवे तीहि ॥९॥ सवे सतमुस्सारे आयंबिल एत्थ होनि सोही तु । भग्गेऽपि य एस चिप सोही नह यंदणमन्ति ॥१८१०॥ अकएसु तु परिमाऽऽसणमायाम सबसो चउर्थ तु। पुषमपहिरायडिल मिसिबोसिरणे दियासुवणे ॥ मू०५३॥१॥ण करेंतस्सुस्सम्म सोही एवं तु होह पुरिमई। दोहिय एकासनयं निहि अकरणे सोहि आयामं ॥२॥ सर्व चिय आवसयं अकरते सोहि होयऽभनडी। काउस्सगे नह वंदणस्स सोही तहाऽकरणे ॥३॥ गाहापण्यादेश तु पुर्व तु अपेहिए उ भंडिरहे। णिसिपोसिरणे सोही साहस भये जनताई ॥४॥ दियसुवणे शिकारणे सोही साहुस्स होयऽभत्तई। कोहं परिवसमाणे कशोलादीमतो बोच्छ ॥ ५॥ कोहे बहुदेवसिए आसव ककोलगा. दिएस या लसणादी परिमहद तणादीधयणे य॥म. ५४॥ ६॥ पकिरायमतिकामन्तो बहुदेवसिओत्ति एस कोहो नु। अहबाबहदेवसिए चाउम्मासादिरिने नु॥७॥एवं बह 1 देवसिय एत्य उ सोहीन होइ भत्तई। आसवो पियर्ट मष्णति तमाश्यते अभत्तद्वं ॥८॥ ककोलय सेवते सोही साहुस्स होयऽमत्त । पूर्वफलजाईफलालवंगतंयोलमादिसु य ॥९॥ आ१०४ जीतकापमाय -
गुनिटीपरनसागर
अनुक्रम
[४५]
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [१४] ------------
------------- भाष्यं [१८२०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
वभेयं पुणेकेके ॥ ३॥ पोत्यात अप्पटिलेदियदूसे तुली उपहाणए याशिव पंचमं मुणेयव्यं । अब
प्रत
या सम विहार
सूत्रांक
र जीएणं देश एवापस मिनिसामान पणापुच्छाए निश्चित
[१४]
पुणेणं कम्म पलंबावि चाण ॥१८४०॥ सम्योपरिकल्पनाही धोयवसाणे पुरिमलालणारेऽपि दिगए एवं?।
दीप
दिग्गहणेणेत्तो पत्तेयं एत्य सोहऽभत्तई। लमुणादिन्ते(चित्ते)पुरिमं आदिग्गणा पालंडम्मि ॥१८२०॥ तण्णगपंधणमुषणा सोही एल्यं तु होति पुरिमर्द । आदिग्गहणणं पुण हंसमयूरादिएरोपि ॥ १॥ जसिरतणेसु निविगतियं तु सेसपणएस पुरिमळे । अग्पडिलेहियपणए एगासण तसबहे जंच।मू०५५॥२॥ अज्झसिरे तु कुसादी परिभोगा कारणे तु णिधिगति । सेसपणगं तु पंचह सपंचमेयं पुणेकेकं ॥३॥ पोस्थय तणपणगंवा दूसे पणगं च दुष्पडिलेहे। अप्पडिलेहिबसे पंचमयं चम्मपण च॥४॥ गंडी कच्छवि मुट्ठी छिवादि संपुडयपोस्थए वेव। साली बीही कोदव रालग रण्णे तणाई च॥५॥अप्पटिलेहियदूसे तूली उनहाणए यणायचे। गंदुरहाणाऽऽलिंगिणि मसूरए व पोत्तमए॥६॥ पन्हवि कोयवि पाचार पवयए नह य दादियाली या दुप्पडिलेहियदूसे एवं वितियं भवे पणगं ॥७॥गो महिसं अया एलग मिगचर्म पंचर्म मुणेयन । अहवावि चम्मपणन एवं वितियं तु विष्णेयं ॥८॥ सलिगा खडग बज्ने कोसग कती य पंचमं पण। एवे पंच उपणगा सयं च भेया समस्खाता ॥९॥ठवणमणापुच्छाए णिविसणे विरियगृहणाए या जीएणेकासणर्य सेसगमायासु खवणं तु ॥५६॥१८३०॥ ठवणकुल दाणसड्ढादियाइ ताईतु गुरुमणापुच्छा। पविसह णिविसणा तू पटिगाहे जं तु भत्तादी ॥१॥ पिरियं सामत्वं वा परक्कमो चेव होन्ति एगट्ठा। गृहण गोवण नूमण पलियंचणमेव एय९ ॥२॥ एरिसमायासहिए जीएणं देज एगमतं तु।मुयववहारे अण्णह सेसं मायं जयो वोच्छं ॥३॥ भदगंभहगं भोचा, विचणं विरसमाइरे। आयरियाण सगासे, जसोत्थी एव चितए॥४॥ सूहवित्ती महाभागो, एस साहु जितिदिजो। रसचागं करेइत्ती, अंततेहि लाटए॥५॥ दप्पेणं पंचिदियवोरमणे संकिलिहकम्मे या बीहडाणासेपिय गिलाणकप्पावसाणेसु ॥ मू०५७॥६॥ वप्पो वगणचायगडेषणमादीतु होवि जायचो। पंचिंदिययोरमणं उदयण विराहणेगडे॥७॥ कम्मं तु संविलिई करकम्म कुणति अंगदाणे उ। दीहेणऽवाणेणं कम्म पलंबादि बहु सेवे ॥८॥ गेलण्णम्मि तु दीहे आहाकम्मादि सपिणहीमादी। बहुअतियारणिसेवी सोही एत्यं तु अवसाणे ॥९॥ एम्मि जहुहिंडे बोरमणादी मिन्नणपजते। पत्तेयं पत्तेर्य सोही तू पंचकल्लाणं ॥१८४०॥ सव्वोवाहिकप्पम्मि य पुरिमत्तापेहणेय चरिमाए। चाउम्मासे परिसे य सोहणं पंचकाला ॥०५८॥१॥ पाउसकाले सरोवहिम्मि जयणाविऽकप्पिए सोही। पुरिमत्ताएं पमाया चरिमाएँ अपेहिने चेव ॥२॥उवही धोयवसाणे परिमत्ताहणाएँ चरिमाए।पत्तेयं पत्तेयं सोहेवं पंचकसाणं ॥३॥ चाउम्मासिय बरिसे गिरतियारे यऽवस्स दाय। बालोइयम्मि सोही णियमेणं पंचकल्लाणं ॥४॥ किं कारणमिह सोही णिरतियारेवि दिगए एवं पोयग! सहमऽतियारे कएपि णवि जाणति कयाति ॥५॥ अहव ण संभरती तू जह पायोसीय अड्डरत्तीए। बेरत्तिय पाभाइय अग्गाहणा काल अतिवारं ॥ ६ ॥ सुत्तत्यपोरिसीअकरणम्मि दुप्पेहदुष्पमजाम्। एतेण कारणेणं सोही तू पंचकठाणे ॥ ७॥ छेदादिमसरहयो मिउणो परियायगवियस्सविय। छेदातीएऽपि तवो जीएण गणाहिवाणो यम. ५९॥ ८॥ विपुलं तपमकरेतो किह सज्मति छेदमूलमेण ?। गुरुआणामेत्तेणं असदहते तबो देयो॥९॥मतुजोवि छेद मूले व दिनमाणम्मि होविपरितुहो। इहरावि वंदणिजो तिफ्सुत्तो तस्स देह तय ॥१८५०॥ दुविहो या गविओ खलु चिरपरियाओ तहेव तवालिजो। छेदम्मि विजमाणे परियादी गधिजो होति ॥१॥ केत्तियमेत डिदिह' तहप्रचिय तुम्भ होमि राइगिओ। एसो उगविओ स्खल चिरपरियादी मुणेयत्रो ॥२॥ तक्वलिओ देह वर्ष आह समयोचि गपिओ होति। वम्हा वदोसहरं विवरीयं देसि दातव्यं ॥३॥ गणअहिवति आयरियो नस्सपि छेदादि होति पत्तस्स। जष्परिणयसेहादिसुमा होजाहीलगिजोत्ति ॥४॥धीवलसंघयणे वाणातुं कालं च तिचिह गिम्हादी। तम्हा नहोसहरं तवारिहं विजए तस्स ॥५॥जं जंग भनियमिइति तस्साबत्तीय दाणसंखे। मिण्णादिया य वोच्छं छम्मासन्ता व जीएणं ।मु०६०॥६॥ जे जति होति विच्छा णचि भणियमिहति जीवववहारे। पच्छित्तविसोहीत तस्सावत्ती पणगमादी ॥७॥ वार्ण णिचितिगादी मेय विसेसेणमेत्य मणिहामि। संखेपो तु समासो किह णवि जीएण भणितमिहं? ॥८॥कम्ही वा भणियोती गुरुराह णिसीहकप्पवनहारे। सुत्तत्ययो य: भणियं जाणादि सवित्वरेणं तु॥९॥ पगलादीउम्मासानसामाचत्तिचिरपणाओ या गविहा मणिताओ णिसिहाविसु बित्वरेणं तु ॥१८६०॥ इह पुण जीएणंत णिफण्णावनिदान णसखे। भिण्णादी छम्मासा णेदाणजिएणिमं बोळ ॥१॥ मिणो अविसिहो बिय मासो चउरो य उब लहूगुरुगा। णिपिवियादी अहमभत्तन्ता दाणमेवेति ॥ मू०६१॥२॥ पणुवीस दिणा मिष्णो अविसिडो एस गुरु लहू मावि । अबिसेसिजोऽविसिट्ठी एसो तू होति णायचो ॥३॥ मासो लहुओ गुरुओ चतुरो मासाय होन्ति लागुरुया। छम्मास्सा बहुगुरुमा दाणं एनेसि वोच्छामि ॥४॥ पण दस पण्णरस बीसा पणुचीस जान गिविगती। लहुमासे पुरिमड्ढे गुरुमासे दाण भत्तिक ५॥ चउल्हुए आयाम गुरुए होनि दाणऽभनाई। छाइरए गहुँतू छग्गुरुए दाणमहमयं ॥६॥ णिबिगतीमादीयं अहममत्ततमेय दाणति । भिण्णादीणं कमसो ठम्मासंतापसाणाणं ॥ ॥इय सध्यावनीओ नवसो गाउं अहकर्मसमए। जीएण दिन गिन्नीतिगाति दाणं जहाभिहितं ।। मू०६२॥८॥ इय एतेण कमेण एवषगारेण आहब इतिसहो। सवाऽऽपत्ती पणगादिया तु छम्मासपनन्ता॥९॥णियीङ्गमाईओ १०४६जीनकम्पमार्य -
मुनिटीपरतासागर
अनुक्रम
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आगम
(३८/१)
प्रत
सूत्रांक
[६२]
दीप
अनुक्रम
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"जीतकल्प”
आयं [१८७०]
मूलं [६२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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- छेदसूत्र -५/१ (मूलं)
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अपनो होइ सच्चनचो जीएण दिन दानं विथ्वीनिगमादिगं कमलो ॥ १८७० ॥ जहभिहितं जह भणियं तह तह जाहिऽभिहितमेयति सामण्णेणं एवं समासतो होति च्वं ॥ १ ॥ एवं पुण सच्वं चिय पायें सामण्णयो विनिदि दाणं विभागतो पुण दव्यादिविलेसियं जाण ॥ मू० ६३ ॥ २ ॥ एवंति जहुरिडं पुणसरो विसेसणे तु गातशे सव्वं पायच्छितं दानं पाएण बाहुला ॥ ३ ॥ सामण्णं अविसेसित निदि विसेसितं विनिदिई दाणं णिधितिगादी विभागती देश विरथरतो ॥ ४॥ दव्वादीया पविणा तु लतिया तु आ. दिसण होति विसेसेणाऽवेक्खिण दिजाहि ऊपि ॥ ५॥ अहवावि समतिरितं दाणं गाऊन देज जीएणं जहवापि तत्तियं पिय दिजाहि सुयोवदेसेणं ॥ ६ ॥ दच्वं खेतं कालं भाव पुरिस पडिसेवणाओं व नातुमितं चिय दिजा तम्मतं हीणमहितं वा ॥ मू०६४ ॥ ७ ॥ आहारादी दव्वं खितं लुक्लादि काल गिम्हादी हिद्वादी भावं तू पुरिस गीयादि जाणिन्ता ॥ ८ ॥ आउगमादीया परिसेवण होति तु मुतच्या पाऊण जाणितृर्ण इति (६) मिति जए त (यं तु) जीएणं ॥१॥ देजाही तम्मतं ही अहितं वणातु दबाती होणे दवादीए हीणं देजाहिए जहि ॥ १८८० ॥ एसो तु अक्वरत्यो दव्वादीणं तु वनितो कमसो। पुणरवि दवादी विमागतो सूरिमाह ॥ १ ॥ आहारादी दव्यं बलियं सुलभं च गाउमहियपि। देजाहि दुब्बलं च णाऊण हीपि ॥ मृ. ६५॥२॥ आहारो जेसिमादी दच्वाणं ताई होति दव्वाई जाहारादीपाई बलियाई जम्म देसम्म ॥ ३॥ जह अणुवदेस सालीकूरो सभा होति बलिओ तु गुलभो यसो तु निमंसेसा पति एमेव ॥ ४ ॥ एवं गाऊन तहिं जं भणितं दाण जीतवहारे से देश समन्महियं जहि पुण चणवल कलमादी ॥ ५ ॥ कंजि खाहारी दुब्बल दुनो य एवं जाऊन देना सत्यं हीनं जीतमहारभणिवाउ ॥६॥ लक्ख सीतल साहारणं च खेत्तमहितंपि सीयम्मि लुक्सग्मिय होणारं एवं कालेवि तिथिहम्म । ० ६६ ॥ ७ ॥ लुक्वं तु नेहरहितं जे खेतं वायपित्तलं वाचि सीयं बलियं भणति अहया अणुवं भवे सीतं ॥ ८॥ साहारणं समं तू जं गपि णिदं ण वक् निहिं लेते दाणं एतेसि वोच्छामि ॥ ९ ॥ इय एव जीतदाणं गिद्धे खितेऽहियपि देजाहि साहार सम्म लुक्से खेते तु हीणवरं ॥ १८९० ॥ सारी हि लेर्स एवेयं पणितं समासेणं अरुणा तु तिपि कालं गिम्हादि समासतो बोच्छं ॥ १ ॥ गिम्हसिसिरवासासू जमदसमबारसंताई जातु विहिणा णववियुतववहारोपणं मू० ६७ ॥ २ ॥ गिम्हासु देला उपहिमागमे वासा अमं दिया तो एस जहणजो ॥ ३ ॥ गिम्हास छड देना, अइमं च हिमागमे वासामु दसमं देना एस मज्झिमओ तवो ॥ ४ ॥ गिम्हास अट्टम देला, दसमं च हिमागमे वासा दुपालसमं एस उक्कोसतो तवो ॥ ५ ॥ जसले एसो गिम्हादितयो समासतो होति एवं पुण कह दिया ? वविलोव ॥ ६ ॥ सुतयवहारेणऽयाणवभेद हुम जाणित्ता देजाहि तिविकाले महारो सो इमो गया ॥ ७॥ अलग सबसे लहुसोती होति लहुसनलग्मि हुआ हुयतरो लहुजी पक् ॥ ८॥ गुरुयो गुरुयतराओ अहगुरुओ एस होति गुरुपले नविचचारेसो आवती सिं वोच्छामि ॥ ९ ॥ पण दस पण्णरसं वा तिविहंसो होति स पम्म वीसा य पणवीसा तीसादिय दुगपक्लम्मि । १९००॥ गुरुमासी चतुमासी उम्मासा चैव होति गुरुयक्ते नवविह आवत्तेसा नवविहदाणं अतो वोच्छे ॥ १ ॥ णिविगति पुरिम एक्कासणयं क्लम्म आयंबिल या होति लपवले ॥ २॥ अहम दसम दुवास गुरुपले एय होति दातु आपली तवो एसो समासतो वह मखाती ॥ ३ ॥ चहारेसोलहसादिसमासतो समस्यातो पुणरचि आहेण विभागयो व गुरुमाद वोच्छामि ॥ ४ ॥ गुरुजो गुरुगतरातो अहागुरूयो व होनि बहारो लहुओ
एवं
तो हाल पहारी ॥ ५ ॥ लस लसतराओ अहालसोय होत बहारो एएसपच्छित्तं वोच्छामि महाणुपुत्रीए ६ ॥ गुरुओ व होति मासो गुरुयतराज व होति चतुमासो अगुरुओ उम्मासो गुरुप एस पडिवती ॥ ७॥ तीसा व पणवीसा बीसाविय होति लयपनसम्मि पण्णरस दस य पंच य लहुसगपक्सम्म पविती ॥ ८ ॥ गुरु अमं मुख्यतरायं च होति दसमं तु अहगुरूपं वारसमं गुरुपको एस पडिवती ॥ ९॥ उई च चत्वा आयंबिल एगठाण पुरिम णित्रितियं दाय अहलहुसे अव सुद्धोवा ॥ १९१० ॥ ववहारो आरोवण सोही पच्छित्तमेयमेग पोवो तु अहालसो पडवणा होति दाणं तु ॥ १॥ आहे एस मणिओ एतो बोच्च पुणो विभागणं तिग सत्तावीस एकासीती व भेदेणं ॥ २ ॥ गुरुषक्खो लहुपक्खो लहुगपक्खो य निविह एस भये एकेको पुणो तिविहो उकोसादी इमं वोच्छे ॥ ३॥ गुरुपले उकोसा मज् ज इष्णो व एक लए िएमेसी उकोसो मज्झिम जहणो ॥ ४ ॥ गुरुपले उम्मासो पणमासो चेव होति उफोसा मज्झिम तू तेमासो दुमास गुरुमासिव जहणी ॥५॥ लमास मिण्णमासो बीसाविय तिविमेय लपले पष्णरस दस पंचग लहुयुकोसादि तिविहेसो ॥ ६ ॥ आवतितयो एसो गयभेदो वणित समासेणं अरुणा उ सतवीसो दाणतो तस्सिमो होति ॥ ७॥ गुरु लहू लहुसगप से एकेको नवविहो मुणेतको उकोमुकोसो या उक्कोसगमज्झिम महणो ॥ ८ ॥ मज्झिमकोसो या मज्झिमम तहा जणो १०४७] जीवायं
मुनि दीपालसागर
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Praves
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आगम
(३८/१)
P
प्रत
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [६७] ------------------------- ------------- भाष्यं [१९२०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
याहोति जहष्णकोसो जहण्णमजमो दुह जहष्णो ॥९॥ गुरुपस्यो उकोसय उकोसगमजिज्ञामो जहष्णो या मजिनमउकोसो त मज्झिममज्वरो जहष्णो य ॥१९२७ ॥ होति जह- 12 पणुकोसो जहणमझो जहण्णगजहण्णो । णवविहववहारेसो लहुपक्से होति णातब्बो ॥१॥ उकोयुकोसो तू उनकोसगमग्निमो जहण्णो या मज्झिमउक्कोसो त मज्झिममझो | जहष्णो य ॥२॥ होति जहष्णुक्कोसो जहणमझो जहष्णगजहो। जननिहवनहारेसो लहुसगपक्से मुणेतत्रो ॥३॥ बारसमदसमजहमउप्पणमासेसु तिचिह दाणेदं। उतेमासे दसमऽहट्ट उनकोसगाति तिहा॥४॥ एमेयुकोसादी दुमासगुरुमासिए विहा दाणं। अहमछट्टचाउथं णवविहमेयं तु गुरुपक्सो ॥५॥ दसमंअहमछर्दुलहुमासुक्कोसमादि तिह दाण। अट्ठमउडचउत्थं उक्कोसादेय तिह भिण्णे ॥६॥ छहचउत्थाऽऽयामं उकोसादेव दाण वीसाए। पक्खम्मी णवगो बीओ एसो मुणेयशो ॥5॥अट्ठमछदृषउत्थं एकुक्कोसादिदाग पषणरसे । छट्टयाउत्थाऽऽयाम दसम तिविहे तु दाण भवे ॥८॥लमणायामेकासण तिनिहोकोसादि दाण पणगे। लहुसेस नतियणवगो सत्तावीसेस वासासु ॥९॥ सिसिरे दसमादीपुण चारणोदेण सत्सवीसे या ठायंती पुरिमम्मि अड्डोकंनी य तह चेव ॥१९३०॥ अहममादी गिम्हे चारणमेदेण सत्तावीसेण । वह पेवाइटोकती ठायति णिशीतिए णवार ॥२॥ अहुणा उचारणा तु उक्कोमुक्कोसगादि गुरुयादी। वासासू सिसिर या गिम्हे य समासतो वोच्छं ॥२॥ अहगुए वासासू उक्कोसुक्कोसए य बारसमं । उक्कोसमा दसम उकोसजहण्णमहमगं ॥३॥ अहगुए सिसिरे उकोमुक्कोसए य दसमं तु । उकोसमझिमऽहम उक्कोसजहण्णए छई ॥४॥ अहगुरुए गिम्हास उस्कोसुक्कोसमट्टमं दिजा। उक्को समजा उर्दू उकूकोसजहण्णाएँ चउत्थं ॥५॥ गुरुयतरा पासासु मज्झिमाउकोसए व दसमं तु। मजिसममजो अहम मन्मजहणेण छहूं तु ॥६॥ गुरुततरा सिसिरेसुं मजिसमउ|कोसमगम देजा।मनिमममको छट्टुं मज्ज हण्णे चउत्थं तु॥आगुरुततरा गिम्हेसु मज्झिमउकोसे देज छह तामज्झिममज्म चउत्य मज्म जहण्गेण छईत (आयाम) गुरुए वास जहरण उक्कोसे अहम तु देजाहि। उई जहष्णमो होइ चाउत्य बुहजहण्णे ॥९॥ गुरु सिसिरेऽत्य जहणे उकोर्स देज छमत्तं तु। जहणयमजिस पडत्वं दुहयों जहरणेण आयाम | ॥१९४०॥ गुरुए गिम्ह जहणे उक्कोसा देज तू चउत्थं तु । जहणयमझाऽऽयाम एकासणयं दुहजहष्णे ॥१॥ लहुए वासारने उक्कोसुक्कोसगम्मि दसर्म तु। उकोसमजिसमऽहम उकोसजहष्णए छ? ॥२॥ लहुए उकोमुकोसनाम्मि सिसिरम्मि अट्ठमं दिज्जा। उकोसमजा छई उक्कोसजहण्णएँ कउत्थं ॥३॥ लहुपक्खे उकोसे गिम्हम्मी देन उद्धभतं तु । मनिमग तु पडत्वं उक्कोसजहण्णमायामं ॥४॥ लहुयतरे वासासु मज्झिमउकोसमट्टम दिजा । मजिमममजो छहूँ मन्मजहणेणऽभत्तई ॥५॥ लहुयतरा सिसिरसुं मजिसमउकोस देज 1 उर्दु तु। मज्झिममझ बउत्थं मन्मजहणेनमायाम ॥६॥ लहुयतरा गिम्हेसु मजिसमउकोस देजऽभन्नई। मजिममममाया मजाजहणणेण भत्ते ॥७॥ अहलाहुया वासासुस
जहण्णउक्कोस छड देनाहि । मजिझमगम्मि चउत्थं जहण्णगजहष्णमायाम ॥८॥ अहलायग सिसिरेसु जहण्णउक्कोस देजऽभत्तई। मज्झिमगे आयामं जहष्णगजहण भनेक्क T९॥ जहलहुगे गिम्हामु जहष्णगुक्कोस देज आयाम । एक्कासणगं मझे पुरिमइदं दुइजहष्णम्मि ॥१९५०॥ लासग वासामुक्कोसगम्मि उक्कोसमहमं देना । उक्कोसमज्म छह/3
उक्कोसजहण्णएं चउत्थं ॥१॥ लहुसग सिसिरासुमकोसगं तु उक्कोस छह देजाहि । मजिसमग तु चउर्व उक्कोसजहष्णमापाम॥२॥हुसग गिम्हामुक्कोसगम्मि उक्कोस देजा. भनाई। मजिलमग आयामं उनकोसजहण भत्तेफ॥३॥ लहुसतरा वासासु मज्मुक्कोसण उदुमतं तु। मज्झिममा उत्य माजहणेण आयामं ॥४॥ लहुसतरा सिसिरासु मज्मुक्कोसेण देज भत्त। मग्झिममझायाम मज्झजहण्गेण भनेक ॥५॥ लहुसतरा गिम्हेसु मज्मुक्कोसेण वेज आयाम। मजिममममेककासण मन्मजहण्येण पुरिमइई ॥६॥ अहलहसय वासासु जहण्णमुक्कोस देजऽभत्तई। मज्झिमगं आयाम भनेककं दुहजहणणं ॥७॥ अहलहुसग सिसिरार्दु जहष्णमुक्कोस दिन आयामं । जहणगमोक्कासण जहणजहष्णण पुरिमाइदं ॥ ८॥ अहलहसग गिम्हास जहणमुक्कोस देज भत्तेक्क। मज्जिामगं परिमइदं दहयो जहण्णेण णिविगतिं ॥९॥ एतेहि ठाणेहि (एया) आवनिओ सदा जियमा। नोटमा समाओ जसहस्सेक्केककहासणया ॥१९६० ॥ जाप ठियं एककेतकं तपिय हाचिज असहुणो नाहे । दाउं सहाणेच परठाणं देज एमेव ॥१॥ एवं ठाणे ठाणे हेडा. हुनो कमेण हासेत्ता। णेत जाच ठितं पियमा णित्रीबिय एक ॥२॥णपविहववहारेसो आपनीदाणसहितकालती। बुद्धीओ विष्णेजो विभागतो एसमक्खातो ॥३॥ अहव तिमो सहसादी तिनिहादि समास वित्थरे वोच्छ। हीणो मन्मुकोसो तिचिसो होति णायच्चो ॥४॥ लहुसगपकले पणगं बस पक्णर निविह एप णानन्दं । बीसा य भिण्णमासो लहुमासो नियिह सहपासे ॥ ५॥ गुरुमासो पाउमासो उम्मासो पेय एस गुरुपसे । गवविहभावनेसा दाणं णवहा तिनं बोई ॥६॥णिविगतिय पुरिमदा एक्कासण लहसए यहाणति। आयाम नउत्थं वा उई तू लहुगपस्वमि ॥७॥ अहम दसम दुवालस गुरुपक्से एक होति वार्ण तु । णपबिहदाणं एसो जवाऽऽवनी इमा णबहा ॥८॥ पण दस पण्णरस वा सहगुरुगा लसए तु पक्सम्मि। बीसा य भिण्णमासो लङ्ग गुरु लहुओ य मासेक्को ॥१॥ गुरुमासा दुर्णिण भासा लहुगुरुगा लिग चउक्क लहुगुरुगा । पंचग छम्मासा या लहु-(२६२) १०५८ जीतकम्पभाय -
अनि दीपरतसागर
अनुक्रम
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [६७...] ------------- ------------- भाष्यं [१९७०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [4/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
देश भत्तेक जमा
मान आयाम जाणकोसए ।
प्रत
सूत्रांक
[६७]
424ta24NAAD
गुरुगा एस गपहा तु॥१९७० ॥ आपत्सितपो एसो णयमेदो वण्णितो समासेणं । अहणा तु सत्तचीसो दाणतयो तस्सिमो होति ॥१॥ लहसग लहु गुरुपाखो एककेको णवविहो मणेतष्यो। दुइयो जहणो जहणसमझो य जहण्णगुरुकोसो ॥२॥ मज्झिमजहण्णगं तु मजिाममा तु मनिममुककोरा, कोसगे जहणं उनकोसगमझ उनकोसं ॥३॥ बहुसगपक्खे वेयं णवभेद समासती समक्खायं । लहुपक्सेऽपि णपपिहं गुरुपकखे वा मुणेय ॥४॥ वासासु अहाल्नुसो दुरुषो जहण देज भत्तेक । जहणगमझायामं जहमगुरुकोसएं चाय।५॥ लसतरमझिमजहण्णवम्मि पासासु देज आयाम। मज्झिममजो चउत्वं मजिसमककोसए छई ॥६॥ सगउकोसजहष्णमम्मि पासासु देगा। भत्तहुँ । उक्कोसमजा छटुं उक्कोमुक्कोसमहमगं ॥७॥ अहलहुए बासागुं जहणजहणे तु देज आयाम। जहणगमज्म घउत्यं जहणउक्कोसए छई ॥ ८॥ लयतरा वासासु 2 मज्मजहण्णम्मि हवयमत्तई। मज्झिममनो उई मजिसमुक्कोसमद्रुमर्ग ॥९॥ लहुए पासासुक्कोसमम्मि जहणे तु देज छातु । उक्कोसमझमहम उनकोसुक्कोसए दसमंत्र ॥१९८०॥ गुरुपको जहच्मम्मि जहण्ण होती चउत्पमता होनगमो छई जहण्णउकोसमममं ॥१॥ गुरुजतरा बासास माजहणेण देज छाता ममिम अहम मझिमउककोसए दसमं ॥२॥ अहगुरुए वासासु उकोसजहण्णमट्ठमं बेजा। उन्कोसमजा इसम उककोमुक्कोस बारसमं ॥३॥अहलहुसग सिसिरेस जहणजहणेण होति पुरिमड़ई। हीणगमनकासण जहण्णउकोस आयाम ॥४॥ लहसतरा सिसिरेसु मज्झजहण्णण भत्तमेकं तू। मज्झिममझायाम मािमउकोसएँ चउत्वं ॥५॥ लहसग सिसि. कककोसे जहण्ण एवं तु देज आयाम । मज्झिमगं तु परत्वं उककोसुकूकोस उहूं तु ॥ ६॥ अहलायम सिसिरेसुं बहाजहष्णेण देज भतेककं । जहनगममायामं जहण्णमुककोसाएँ चउत्थं ॥ ७॥ बहुसतरा सिसिरेसु मन्मजहणेच देज आया। मज्झिममा पाउत्थं मजिामउक्कोसए उई॥८॥लहुए सिसिकनकोसे होति जहण्णं चतुत्यभन तु। उस्कोसमा छ? उक्कोमुक्कोसमडमर्ग ॥९॥ गुरुए सिसिर जहणे जहण्णएणं तु देज आयामं। जहणगमजा चउत्थं जहण्णउक्कोसए उई ॥१९९०॥ गुरुयतरा सिसिरेसुं मजमजहण्णेण देज. ऽभत्तई। मजिाममनो छद्रं मजिसमउक्कोसममग ॥१॥ अहगुए सिसिरेग उक्कोसजहण्णएण छई तु । उक्कोसमज्झिमऽहम उक्कोमुक्कोसए दसमं ॥२॥ अहल्नुसग गिम्हासु जहणजहणेण होति णिधिगति। हीणगमज्झे पुरिमं जहण्णउक्कोस भत्तेक्कं ॥३॥ लहुसतरा गिम्हेसु मज्मजहण्ोण होति पुरिमदद। मज्झिममोक्कासण मज्झिमउक्कोसमायाम ॥४॥लसग गिम्हक्कोसे जहण्णगे होति भत्तमेकं तु । उनकोसमज्न आयचिलंत उक्कोसएं चउर्थ ॥५॥ अहलहयग गिम्हेमं पुरिमदद होति दहजहण्णेणं । महाजह-15 पोक्कासण जहष्णउसकोसमायाम ॥६॥ लहुयतरा गिम्हेसं माजहष्ण मनमेकं तु। मज्झिममाऽऽयाम मज्झिमउकोसए पात्यालहबम मिम्लुकोसे जहष्णएणं नहोति आयाम । मजिसमर्ग तु बाउत्थं उफकोसकोसए छह ॥८॥ गुरुए गिम्ह जहण्णे जहण्णय होति भत्तमेकं तुाहीणगमनमाऽऽयामं जहणउकोसएं चउत्थं ॥९॥ गुरुजतरा। गिम्हा मज्जहणण होति आयाम । मज्झिममा बउरथं मज्झिमउक्कोसए उई ॥२०००॥ अहगुगए गिम्हासु उनकोसजहण्णए चाय तु। उकोसमजा उर्दू उकूकोराकको. समहमगं ॥१॥णचविह पहारेसो आपत्तीदाणसहियकालजुओ। बुद्धीए विष्णेयो विभागतो एसमकस्सातो ॥२॥ हडगिलाणाभावम्मि देन हदुस्स ण तु गिलाणस । जाधतिय था | चिसहति तं देज सहेज वा काल ।मू.६८॥३॥भावं पहुच जहियं देजाही हवलियणिमयस्स। गिलाणस्स तु उणतरं ण व देज सहेज चा काळ ॥४॥ असुभो सुभोन भावो लेस्साभेदेण होति णायो। तिम्रो तितरो वा वित्रतमो एव मंदोवि॥५॥ पणएऽवि सेवियम्मी चरिमं भावाउ के पावंति। परिमाओ वा पणर्ग एवमिणं भावणिष्फरणं ॥६॥ पुरिसं| परब अहियं ऊणं वा दिज अहव सम्मले। ते पुण पुरिसादीया इमे समासेण णायचा ॥७॥ पुरिसा गीतागीता सहासहा तह सदासता केई। परिणामाऽपरिणामा अतिपरिणामा अपत्थूर्ण ॥ मू०६९॥८॥ केयी पुरिसा गीता कई अमीयत्व होति णातमा। चितिसंघयणादीहिं केइ सहा कहतू असहा ॥९॥मायापी होति सदा असदा पुण उज्जपण्ण णेतमा। परिणामादी इणमो समासतोऽहं परफलामि ॥२०१०॥ परिणाम अपरिणामा अतिपरिणामा य पत्यु चरिमदए। अंबादी बिटुंता होति विभागो इमोसि ॥१॥जो दखेतक-- यकालभावयो ज जहा जिणवाय। ते तहसरहमाण जाणसु परिणाम साहुं ॥२॥ जाणति दब जहाद्विय सचित्तापित्तमीस चेचा कप्पाकप च तहा जोग या जस्स होति ॥३॥ खेले जे काय अडाणे जयण एव सरहति। काले सुमिकतम्भिकलमादिस जो जहा कम्पो ॥४॥भावे हडगिलाणं आगादे जे जहा काय तं सदाहति करेति य एसो परिणामओ साहू ॥५॥जो दव्यखेतकयकालभाचयो जं जहा जिणकरवायं। न वह असहंत अप्परिणामं वियाणाहि॥६॥ जो दखेतकयकालमापयो जं जहा जिणकरवायं। तहसुस्मुत्तमती अतिपरिणाम पियाणाहि॥७॥ परिणमति जहत्येणं मतीत परिणामगरस कनेसु। बितिए ण त परिणमती अहितमती परिणमे नतिए ॥८॥दोस्तु परिणमति १०४५ जीनकल्पभाष्ये -
मुनि दीपरतसागर
अनुक्रम
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [१९] ------------- ------------- भाष्यं २०१९] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक
[६९]
BAHAR
मती उस्सग्गऽवनाययो न पटमस्स। चिनियरस तु उस्सग्गे अतिअक्वाए तु सनियस्स ॥९॥ अंबादीदिट्टनेहिं परिकवा वेसि होति काया। जह कोयि गुरूहि तु भणितो अंबाणि आणेहि ॥२०२७॥ परिणामगोऽस्य भणती कि सञ्चित्तेऽचिते व आणेमि। भाक्तो केवइए वा? किं टाले भिष्णऽभिपणे वा ? ॥१॥ वेति गुरू लद्ध चिय पुणो व वोचिंचमु अहर बीमसा। मणिोऽसित्ती एवं अप्परिणामो इमं वेति ॥२॥ कि ने पित्तपलायो १ मा वितिय एरिसाई जंपाहि । मा णं परोचि सोच्छिति अहंपि णेच्छामि एयरस ॥३॥ अतिपरिणामो मणति कालो सि अतिच्छए अहो तान। कि एचिरस्स पुत्तं? इच्छऽम्हविण रिमो भणितुं ॥४॥ पेतूण भारमागतो भणती अण्णवि किं नु जाणेमि। तो दोऽवि गुरू भणती उजालभन्तो इम नहितं ॥५॥णामिष्णार्य गिण्हसि असमले चेव भाससी वयणे । सुकविलोणकए तिणि अहवावि दोगे ॥६॥ एमेव य रुखेवी मंजिनु आणेह ति अपरिणतो। णिकावादी स्कसे भणामिण दुमे अहं हरिए ॥७॥ एमेव य बीयाई आणेनी आणिए गुरु भगती। अंविलि विद्वत्वाणि भणामि णचि रोहणसमत्थे ॥ ८॥ तह वितिसंघबनोमयसंपण्णा तदुभएण हीणा उ। आयपरोभयणोभयतरगा तह अण्णयरगा य । मू०७०॥९॥ चितिदुबल बेहबली चितिबलिओ वेहदुबली कोई। कोबी दोहिवि बलियो दोहिंपी दुबलो कोई ॥२०३०॥ दोहिवि बलिए सर्व चितिहीणे जत्थ चिति पिती से। आसजन देहवलं देना लहुयं उभयहीणे ॥१॥जहवा पंचविकापा आपतरादी इमे उणाया। पढमो आयतरो तृणो परयो परतरे बितिओ ॥२॥ उभयतरोतु नतिओ णोभयह चउत्यओ उ णायचो। अग्णयरो परयो त पंचमत्रो होइ णानको ॥३॥ आयतरपस्तराणं कोण विसेसो?नि एव चोदेति । आततरा पाउथादी जं दिज्जति तं तु णिस्थरति ॥४॥ यावचकरो तू गच्छस्स उवग्गहम्मि वहति तु एसो तु होति परतर चतुर्भगो एच णाययो॥५॥ वेयावतराणं एककं सकेति दो ण णिस्थरति। पंचमगो तू पुरिसो अण्णतरो एस णातको ॥ ६॥ कापट्टियादयोऽचिय चतुरो जे सेतरा समक्लाता। सावेकखेतरमेयादयो यजे ताण पुरिसाण । मू०७१॥७॥ कप्पहिना परिणता कडजोगी व होन्वि सरमाणा। पढिवतणवि चतुरो अकप्पठियमादिणातबाट पनिट्ठा ठपणा ठवणी, अवस्था संठिती ठिती। अपस्थाणं अवस्था या, एगट्ठा चिठणातिय ॥५॥ सामाथिए व छेदे णिविसमाणे तहेब णिविडे। जिणकये थेरेसु य उनिह कप्पदिठती होति ॥२०४० ॥ सा पुण टिति मजाया णासो कपोय होति कतिहाउ । भण्णति सो दसभेदो इणमो घोच्छ समासेणं ॥१॥ आवेलकुदेसियसेजायररायपिंडकितिफम्मे। पतजेठपरिककमणे मासे पजोसवणकप्पे ॥२॥ कनिहि ठिता अठिता वा सामायिककपसठिता णियमा ?। कतिठाणपतिठो वा छेदोचट्ठाणकप्पो उ? ॥३॥ चतुहि ठिया एहि अठिया सामातिषसंजया मुणेया। दसमुचि णियमा तु ठिता ठेयोचट्ठा मुणेतना ॥४॥ सेजातरपिंडे या किनिकम्मे वेत्र चाउजामे या पुरिसजेंडे यतहा चत्तारि अवडिया कप्पा ॥५॥ आचेलकुदेसियरायपिंडे नहा पडिकमणे। मासं पजोसवणाकप्पे ताणहितो कप्पो ॥६॥ दसठाणठितो कप्पो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्सा आचेलकादीसुतेसिं तु परूषणा इणमो॥ ॥ दुविहा हॉति अचेला संताचला असतबेला या विस्थगरऽसतचेला संताचेला भवे ससा ॥८॥सतेहिवि चेलेहि किह पुण समणा अचेल्या होन्ति?। मणति मुणसू चोदग! जह संतेहि अचेला ॥९॥ सीसावेदियपोनि णतिसंतरणम्मि जमायं बेन्ति । जुण्यहिं णग्गिय म्हि तुर सालिय ! देहि मे पोती ॥२०५०॥ जुण्णेहिं खंटिएहि य असतणुपाउएहि ण य णिचा संतहिपिणिया अचलगा हानि पेलेहिं ॥१॥ एवं दुग्गय पहिया वाचेलया होति ने भवे बुदी। ते खल असंतताए धरति ण तु धम्मसद्धाए॥२॥ सति लामम्मि साहू गेण्हन्तऽमहवणाई ताईतु। ताणिवि खडियमादी घरेन्ति तह धम्मबुद्धीए ॥३॥ आचेलुकको धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स। मजिसमगाण जिणाणं होति सचेलो अचेलो वा ॥४॥ पदिमाए पाउया पाणऽतिकमते तु मनिझमा समणा। पुरिमचरिमाण अमहवणा तु भिण्णाणिमे मोत्तुं ॥५॥णिकबहयलिंगभेदो णिककारणयो ण कप्पये का। किं पुणणियह भणति जहजायलिगं तु॥६॥ जम्म दुविहं होनी मानुकृच्छिम्मि पढम जजम्म। भवसंसारचठक्के णिपिदिए वितिय पानं ॥ ७॥नस्स इमे भेडा खल संघदुपारे य समण पाउरणे। गलक(मेकल)बसे पट्टे लिंगदुवे या इमा भयणा ॥८॥ णिकारणओ लहुजओ निसु चतुगुरुगा य हॉनि बोडवा। गिहिलिंग अण्णलिगे दोमुनि मूलतु बोदा ॥९॥ कुविज कारणे पुण भेद लिंगरिसमेहि कजेहिं । गेलण्णरोगलोएसरीषयावदियमादी ॥२०६० ॥ आसज खेतकर्ष बासालाई अभाविए असह। काले अहाणम्मि य सागरि नेणे य पंगुरणं ॥१॥ असिवे. ओमोपरिए रापट्टे पचापिदुठे ना। आगाढे अण्णलिंग कालक्लेवो व गमणं वा ॥२॥ संघस्सोहविभागे समणा समणी व कुलगणनेन । कडमिह ठिए ण कप्पति अद्वियकप्ये जमुदिस्स ॥३॥ आयरिए अभिसगे भिन्तुम्मि गिलाणगम्मि भषणा उ। तिक्त्त ऽडनिपवेसे नियपरियट्टे तओ गहणं ॥४॥ तिथंगरपडिस्कुट्टो आणा अण्णाय उग्गमों ण मुजो। अविमुत्ति अलाघवया डाइभसेजा ठितुच्छेदो ॥ ५॥ पुरपच्छिमवजेहिं अवि कम्मं जिणवरहिं लेसेणं। भुत्तं विदेहगेहि य ग य सागरियरस पिंटो तु ॥ ६॥ दुबिहे गेलण्णम्मी णिर्म१५० जीतकन्यमाय -
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“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [७१] -------------- ------------- भाष्यं २०६७] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [७१]
वणा दबदमे असिवे। ओमोयरिय पयोसे मए व गहणं जणुण्णातं ॥आ तिक्खुत्तो सक्खेते चउदिसि मग्गिऊण कडजोगी। दास्स य दाङमया सागारियसेवणा दो॥८॥केरिसयो तू राया? मेया पिंडस्स के ? सि दोसाकरिसयम्मि ब को कम्पति? काए व जयणाए?॥९॥ मुदिए मुदऽभिसिले मुदिओ जो होति जोणिसुद्धोतु। अभिसितो व परेहि सर्व व भरहो जहा राया॥२०७० ॥ पढमगभंगे बजो होतुबमा बाचि जे मणिय दोसा। सेसेस होयारिटो जहिं दोसा तं विवजेजा ॥१॥ असणादीया चउरो वस्ये पादेय कंबले चेव। पाउंछणए यतहा अविहो रायपिंडो तु ॥२॥ अहविह रायपिंड अण्णयरायं तु जो पडिग्गाहे। सो आणा अणपत्थं मिच्छत्त विराहणं पाये ॥ ३॥ दोसा इमे सरतलपरमार्डविरहित सत्यवाहेहि। णिन्तेहिं आइन्तेहि ययाघातो होति साहुस्सा ॥४॥ ईसर भोइयमादी तलवरपट्टेण तलवरो होति। वेदुणपहो सेट्ठी पश्चंतणियो उ माडगी॥५॥ जाणिन्तइन्तता अच्छतो |
तु सुत्तादिमिक्खपरिहानी।इरिया अमंगलतिय पतारण्हा)हणना इहरहातु ॥६॥ लोभेएसणघातो संका तेणे गपुंस इस्वी या इचईतमणिचईते चातुम्मासा भवे गुरुगा।आअण्णात्य था एरिस द्वाति गेल्हेजणेसणिजंपि। अण्णचि अवहरिए सकिनति एस तेणोति ॥ ८॥ संका पारियथोरे मुलं हिस्संकिए प अणबडो। परदारि अहिमरे वा णवमं णीसंकित दसमं ।
॥९॥जलभता या विया इत्विणपुंसा पलाचि मिन्हेगा। आयरिय कुलगणेवा संघे ना कुज पत्यारं ॥२०८०॥ अण्णेचि अस्थि दोसा गोम्मियाइण्णरयणमादी या तणीसाए पवि-15 से तिरिस्वमणुया भवे दुहा॥१॥ गोम्मियमहणा हणणा रण्यो व णिवेइयम्मि जं पाये। आदिग्णरतणमादी सत गेल्हेबरोवतणीसा॥२॥ चारिपचोराभिमरा कामी व विसति तत्व तण्णीसा। वारणतरचावग्या मेच्छा य णराव पाएगा ॥३॥ विहे गेलण्णम्मी णिमंतणा नदुतमे असिवे । ओमोयरिय पदोस भए बमहर्ण अणुण्णायं ॥४॥ विखुनो सक्सेने चाउदिसि मग्गिनूग कहजोगी। बस्स य दुभता जतणाए कप्पती वाहे ॥५॥ कितिकम्मंपिय दुविध अभूठाणं तहेब बंदणायं । समणेहि य समणीहि य जहारिह होनि काया ॥६॥ सत्राहि संजहि किनिकम्म संजताण कात। पुरिमुत्तरिओ धम्मो सनजिणाणपि तिस्थम्मि ॥७॥ तुच्छनण गयो जायण य संकते परिभवेणं । अच्चोऽपि होज दोसो थियासु माहुजनासु ॥८॥ अपियर पुरिसपणीतो धम्मो पुरिसो य रक्सितुं सत्तो। लोगविरुव चेयं वम्हा समणाण कात॥९॥ पंचनामो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स व जिणस्स । मज्झिमयाण जिणाणं चातुजामो भये धम्मो ॥२०९०॥ पुरिमाण दुनिसोझो चरिमाणं तुरणपालयो कप्पो। मज्झिमयाण जिणाणं सुचिसोझो सुरणुपान्ये य॥१॥ जदत्तणेण हंदी आइक्सविभागउवणवा दुवं । मुहसम्म(रासस)यदताण य तितिक्ख अणुसासणा दुक्ख ॥२॥ मिच्उत्तगोवियाणं दुधियड्ढमतीण ठाणसीलाणं । आइक्रिसतु :अइदुक्ख उवणेर्ड वापि दुक्खं तु॥३॥ दुक्लेहि मच्छियाण तणुधितिअवलत्तयो य दुतितिक्स। एमेव दुरणसास माणुकडयाच चरिमाणं ॥४॥ एते व य ठाणा सपण्ण उजुत्तण मज्झाणं । मुहउभयचलाण य विमिस्सभाषा भये सुहमा ॥५॥ पुरतरं सामइयं जस्स कर्य जो वतेसुबह(पाठ)वितो। एस कितिकम्मजेहोण जातिमुपयो दुपक्खेऽपि ॥६॥सा जेसि तुबद्दवणा जेहि य ठाणेहिं पुरिमचरिमाणां पंचाया धम्मे आएसनिगं चिमं सुणम् ॥७॥ स चेव उच चतुरो एते खल तिणि होन्ति आदेसा। कतरे हवन्ति बसन' भण्णति गुपया इमे ने तू॥८॥ ततो पारंचिया बुत्ता, अणवट्टप्पाच तिणि तु। समम्मि य वन्तम्मि, चरितम्मि य केवले ॥९॥ अदुना चियत्तकिये, जीवकार्य समारभे। सेहे य इसमे पुने, जस्सोबडावणा भवे ॥२१० ॥ एते दस त बुला अण्णावेसेण होति उत्तु इमे। तिणिनि पारंचेकं अणवहापावि विष्णेकं ॥१॥ सणवन्ते ताए परिनत भये चउत्थे तु। पंचम चियत्तकियो उही सो होउवदुप्पो ॥२॥ एसो वितियाएसो नतियाएसो इमो मुणेयो। चत्तारि व उपठप्पा कयरे तु? इमे मुणेतवा ॥३॥ पारंची अणुवट्ठा सणचरणेसुने पहिठातु। दसणचरितवंता तो दोणते भवन्ती तु॥४॥चियत्तकिचो सेहो य पत्तारते हक्तुबहुप्पा। एते विण्णादेसा उपठवणाए मुणेतवा ॥५॥ केवलगहणं कसिणं जति वमती सणं चरितं या। तो तस्स उपहवणा देसे तम्मि भयमा तु॥६॥ एमेवय किंचि पर्व सुर्य च असुयं च अप्परोसेणं। अविकोविए कहेन्तो चोय आठह सोतु ॥७॥ सो पुण समर्थनो अणभो
गेण तु अहर आभोगा। अगभोगेर्ण तहियं कोयी सड्ढो तुसंवेगा ॥८॥बठूण पिण्हगे तू एते साहू जहुत्तकारिति। णिपसंतो अणभोगा दिदठो अपणेहि साहहिं ॥९॥ मणिोय Sणिण्हगाण कीस सगासे नुमं सि जिनसंतो? तो बेतिण याणामि एयविसेस अहं भंते ! ॥२११०॥ एवमणाभोगेण मिच्छत्तगतो पुणोचि सम्मत्तं। जो पडिवण्णो सो तू आलोतिय
णिन्दिती सुबो ॥१॥ सो चेव य परियायो गस्थि उपहावणा पुगो तस्स ।चिय पच्छित्तं से जै चिय सम्मं तु पडिबजे ॥२॥ जो पूण जाणतो चिय गतो तु होजाहि णिहएन। पुणरागतो व सम्मं तस्स उनढावणा भणिया ॥ छह जीवनिकायाण, जगप्पझो तु विराहओ। आलोतियपडिकतो, सुद्धो हबति संजतो ॥४॥ उष्टं जीवणिकायाण, अप्पज्मो तू विराधयो । आलोवियपडिकतो, मूलमजतु कारए॥५॥ खित्तादिनणयमो अणभोगेण व जो गतो मिच्र्छ। सो तु अपायपिछत्तोऽचिराहती तस्स दिन्तो तु॥६॥ जो तु १०५१ जीतकल्यभाय
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समावष्णो जं पायोग जस्स वत्थुस्स। तं तस्स तु दाया असरिसवाणा इमं होति ॥७॥ अपच्छिते य पच्छिल, पच्छिते अतिमत्तया। धम्मस्सासायणा तिया, मगरस य विराह .
णा ॥८॥ उस्सु क्वहरतो, कम्म पति चिकणं । संसारं च पपइदेति, मोहणिव कुवती॥९॥ उम्मग्गदेसए मादसए माविष्पडीचाए। परं मोहेण रजेन्ती, महामाहं पकाती | ला॥२१२०॥ एवं तु उसहरितो जो पदमपरं तु अहव सामतिए। ठवितो सो जेदुघरो कप्पपकप्पद्वितार्ण च॥१॥ सपडिकमणो धम्मो परिमस्स य पछिमस व जिणसा मजिसम-2
गाण जिणार्ण कारणजाए पतिकमणं ॥२॥गमणागमणविहारे साथ पादो प पुरिमचरिमाणं। णियमेण पटिकमणं अतियारो होउ वा मा वा ॥३॥ अतियारस तु असती गण होति । गिरत्ययं परिकमणं । भणति एवं चोदग! तस्य इमं होति णातं तु ॥४॥जह कोयि इंडिजो तू रसायणं कारवेति पुत्तस्स । तत्थेगो तेगिचडी घेती मन तु एरिसयं ॥५॥ जति दोसे होअगतो अह दोसो णस्थि तो गयो होति।चितिवस्स हरति दोसंग गुर्ण दोसव तदभावा ॥६॥ दोसं इंतूण गुणे करेति गुणमेव दोसरहिएति। तयसमाहिकरस्स तु रसायणं इंडियसयस ॥ ७॥य सह दोसं छिंदति असनी दोसम्मिगिजरं कुगति। कुसलतिगिच्छरसायण उवणीयमिणं पदिकमर्ण ॥ ८॥ जिमधेरअहालंचे परिहारिंग अज मासकप्पो ता खेले कालमुवस्सयपिंडग्गहणे य णाणलं ॥९॥ एतेसिं पंचण्हवि अण्णोष्णस्सा चतुष्पाएहिं तु । खेतादीहि विसेसो जह तह बोच्छ समासेण ॥२१३०॥णस्थि तु खेनं जिणकप्पियाण उड़प मासकालो तु । वासामु चउमासा वसही अममत्तपरिकम्मा॥१॥ पिंटो तु अलेवकडो गहणं तू एसणाचरिमाहि। तथावि कानुमभिमाह पंचण्हं अण्णयरियाए॥२॥राण अस्थि सेन तु उमाहो जाण जोयण सकोस । णगरे पुण बसहीए कालो उउन मासो तु॥३॥ उस्सग्गेण य भणिती अवधाएणं त होज अहिओऽपि । एमेच य वासासुऽपि चतु. मासो होज अहिओ या ॥४॥ अममत्तापरिकम्मो उपस्सओ एत्य मंगया चतुरो। उस्सम्गेणं पढ़मो तिपिण तु अबवायजओ भंगा ॥५॥ मत्तं लेखकई वा अलेवकट बाषि ने तु गेहंति। सनहिवि एसणाहिं सावकलो गच्छवासोति ॥६॥ अहलंदियाण गच्छे अपटिबद्धाण जह जिणाणं तु। णवरं काले विसेसो उदुमासो पणग चतुमासो ॥ ७॥ गच्छे पडियदार्ग अहसंदीणं तु अह पुण विससो। जो नेसि उग्गही खल सो साऽऽयरियाण आइवति ॥८॥ एगवसहीएं पण उनीहीजो य गाम कुवंति। दिवसे दिवसे अण्ण अति वीहि तुणियमेणं ॥९॥ परिहारपिसदी जब जिणकप्पियाण णपरं तु। आयंबिलं तु भन्तं बोदयो थेरकप्पो तु ॥२१४०॥ अजाण परिम्गहियाण उगहो जो तु सो आयरिए। कालतो दो दो मासाला उपदे तासि कप्पोतु ॥१॥ सेसं जह येराणं पिंडो य उपस्सयो य तह तासि । सो सोविय दुविहो जिणकप्पो घेरकप्पोय ॥२॥ जिणकप्पियाहालंदीपरिहारविमुद्रियाण जिण- कप्पो। थेराणं अजियाण य बोदो बेरकप्पो तु ॥३॥ दुविहो उमासकप्पो जिणकप्पो चेव बेरकप्पो थ। गिरणुगहो जिणाणं थेराण अणुम्महत्वत्तो॥४॥ उवासकालऽतीए जिणकप्पीणं तु गुरुग गुरुगा या होति दिणम्मि दिणम्मी थेराणं से शिव लहउ ॥५॥ तीसं पदाऽवराहे पुट्ठो अणुवासिये अणुपसंतो। जे तत्व पदे दोसा ते तत्य नतो समावणो ॥६॥ पण्णरसुमामदोसा दस एसणदोस एय पशुचीसं। संजोयणाह पंच य एते तीस तु अपराहा ॥७॥ एतेहिं दोसेहि संपत्तीएवि लगती णियमा। दिवसे दिवसे सो ऊ कालातीते वसंतो तु॥८॥वासापासपमाणं आयार उदुप्पमाणियं कणं। एवं अणुम्मुयंतो जाण अणुवासकप्पो तु॥९॥ आयारपकप्पम्मी जह भणितं तीय संबसंतोऽचि । होनि अणुवासकप्पो नहर संवसमाण दोसोतु ॥२१५७॥ दुविहं बिहारकाले बासाबासे नहेब सुबडे। मासातीतेऽणुकही वासाईते भने उचही ॥१॥ उउदिएम अहसु तीतेसु वास तस्थ माविकप्पे। घेतुणं उयहि खलु वासासु तु नीत कप्पति तु॥२॥वासउदुमहालंद इत्तरिसाहारणोग्गहपुरते। संकमणट्ठा दो गच्छे पुकाबकिगणो तु॥३॥ वासासु चउम्मासो उउपजे मासोलंद पंच दिणा। इतरिओ स्क्रसमले बीसमणहा ठियार्ण तुमच्या साहारणा उ एने समगठियाणं बहूण गच्छाण। एकेण परिग्महिता सझे बोहत्ति(न्ति)या होन्ति । संकमणण्णोष्णस्स उसंगासे जति उते अहीयते। मुनस्यतदुभवाई सो अहवावि पटिपुच्छे ॥ ६॥ ते पुण मंडलियाए आवलियाए वसंतुगिहेजा। मंडलियमहिजते सचिनादी तुजो लाभो॥७॥ सोनु पर । परएक संक्रमती नाच जाब सहाणं । जाहियं पुण आपलिया ताहियं पुण ठाति अंतरिम ॥८॥ ते पुण जहा तु एकाये यसहीए अहब पुष्ककिण्णा ताजबाचिनु संकमणे दबस्तिणमो विही अण्णो ॥९॥ सुन्तयतदुभयचिसारयाण थोचे असंभतीभेदे । संकमणट्ठा दजे जोगे कग्ये व आचलिया ॥२१६०॥ पुत्रहिताण खेले जति आगच्छेग अण्ण आयरिओ। बहुसुय बहुआगमिओ तस्स सगासम्मि जनि खेती ॥१॥ किंचि अहिजेजाही थोष खेतं चतं जड हवेजाताहे असंवरंता डोपिणवि साह विध(स)लेन्ति ।अण्णोष्णस्स सगासे नेसिपिय तस्थऽहिजमाणाणं आभषणा नह च य जह मणियमणंतरे सुते॥३॥ एवं णिवाघाए मास चनुम्मासिओतु घेराणं । कप्पो कारणयो पुण अणुवासो कारणं जाय॥४॥ एसोन मासकप्पो घेरकप्पो य पणिओषणं । आहुणा ठियमठियं तू घराणं इणमु बोच्छामि ॥५॥ सो बेरकप्यों दुविहो अद्वितकप्पो यहोति ठितकप्पो। एमेव जिणाणंपी ठितमठिनो होति कप्पो तु॥६॥ पजोसवणाकप्पो होति ठितो जडिओ य घेराण। एमेच जिणार्णपी दुह ठियमठिओ य णातो॥७॥ चातुम्मामुकोसो सनरि राईदिया जहणेणं । टिनमट्टिय (२६३) १०५२जीनकन्यभाष्य
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प्रत सूत्रांक [७१]
पावनति जिकिदम्स पायमलामा साविहप पनिळते, सच्चे ते परिणMen आपुयिकऊण
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श्रीएगतरे कारणवचासितऽणयरे ॥८॥राण सत्तरी खल वासासु ठितो उदुपिण मासो तुपचासिजो तु कजे जिणाण णियमट्ठ चतुरो वा ॥९॥दोसासति मज्झिमया अच्छंती जाव
पुत्रकोडीनु। विहरति य वासासुनि अकदमे पाणरहिए उ॥२१७०॥ भिष्मपि वासकार्य करेति तणुर्वपि कारणं पप्प। जिणकप्पियाचि एवं एमेच महाविदेहेचि ॥१॥एवं ठियम्मि मेरे अद्वियकप्पे य जो पमाएति। सो वहति पासरथे ताणम्मि सगश्मि पजेजा ॥२॥ पासत्यसकिलिई ठाणे जिणवृत्त धेरेहियावारिस तु गवेसंतो, सो विहारे ग सुवाति ॥३॥पासस्वनिवर्जतो, सो विहारे सुज्झति॥४॥जो कप्पठितीय सदमाणी करेति सहाणे । सो तारिसं तुमसेजतु गुणाणं अपरिहानी ॥५॥ ठितमठियम्मी वसविह ठपणाकप्पेय। दुविहमपयरे। उत्तरगुणकापम्मि व जो सरिकप्पो स संभोगो ॥६॥ठवणाकापो दुपिहो अपठवणा य सेहठपणा या पढमो अकप्पिएणं आहारादीणि(ण)मिण्हाने आजद्वारसेव पुरिसे वीसं इस्वीण वस गपुसे या दिपखेति जोग एवे सहारणाए सो कप्पो ॥८॥आहारउयहिसेना उम्गमउप्पावणेसणासुदं। जो परिमिष्हति णिय उत्तरगुणकप्पिो स खल ॥९॥ सरिकप्पे सरिउंद वाउचरिने निसिहतरए वा । साहहि संघर्ष कुजा णानीहिं परिनगुत्तेहिं ।।२१८०॥ सरिकरपे । आएज मत्तपाणं सएम लाभेण या तुस्से ॥१॥इय सामा. इयदे जिणधेरार्ण ठिती समक्खाता। एनो णिविसमाणे णिबिढे याचि बोच्छामि ॥२॥ परिहारका बोच्छामि, परिहरित जहा चिद । आदी मजायसाणे य, आणुपुर्वि जहकर्म ॥३॥ मरहेरवयवासेस, जवा तित्थंगरा भये। पुरिमा पग्डिमा वेव, परिहारी नेसु होन्ति तु॥४॥ मज्झिमाण ण संतीत, विस्येसुं परिहारिया। ण याविय विदेहेसु. विजती परिहारिया ॥५॥ केवतियकालसंजोगो, गाडो तू अणुसजती । तित्थंकरेसु पुरिमेसु, तहा पठिमएस य॥६॥ पुषसबसहस्साति, पुरिमस्सऽणुसज्जती। जम्हा ण परियजति दोह गच्छा परेण तु॥७॥ देखणपुषकोडीओ, दो सा दोण्हं ननि तु। दो सा एगणनीसात. तेण ऊगा ततो मो॥८॥वीसम्गसो य यासाई, चरिमस्सऽणुसजए। जाय देसूणगा दोषिण, सया वासाण होति तु॥९॥ पाना अहवासस्स, उपहा णवमम्मि 3। एगणवीसपरियाए, दिहिवाओ य तस्स तु ॥२१९०॥ उहिस्सति परिसेण य, सस्स यसो तु समप्पती । णव बीसा य मेलीणा, ऊणतीसा भवति तु॥१॥ इति एगणतीसाए, सयमूर्ण तु पण्टिमे। एसो दोस तु एतेण, ऋणाई दो सवाणि ॥२॥ पालतित्ता सयं ऊण, ठार्य तेते तु पचिड़मे। काले देसेन्ति - गणेसिं, इति ऊणा उबेसता ॥३॥ पडियजति जिणिदस्स, पायमूलम्मि जे विऊ । ठावयति उते अग्ने, नोतु ठावितठावमा ॥४॥ सरे चरित्तमंता बसणे परिणिद्विया। णवपुत्री जहण्योग, उकास सपियाापंचमिहे सहारे, कप्पे ते दुनिहन्मि या दसविहे व पनिठते, सोते परिणिद्विता ॥६॥ अत्तणो आउर्म सेस, जामिनाते महामणी परकर्म पल विरिया पचवाए नहेच य ।। आ जति जीतपचवाया ग, हॉसि सि तु अण्णतरा । तो तं पडिवजती, बाधाएणं तुने मची ॥८॥ आपुच्छिऊण अरिहंते, मग देसितिने इमापमाणाणि य सम्माणि, म(उ)आहे प बहुविहे ॥९॥ उपहीगमणप्पमाणाणि, पुरिसाणं च जाणि। दब खेतंच कालंच, भावं अण्णे य पजवे ॥२२००॥ ससट्टमाइयाण, सतहं एसणाण तु। आदिताहिक दोहिंतु, जग्गही गह पंचहि ॥१॥ तस्यचि अण्णवरीए एगीए अभिग्गहं तु कातूर्ण । उपहिणो अग्गहो दोसु इयरो एगवरीय तु॥२॥ अहरुमायम्मि सूरम्मि, काप देसन्ति ते इम। आलोइयपटिकतो, ठाययंति तयो गणे॥३॥ सत्तावीस जहणेणं, उकोसेणं सहस्ससो। मिर्गचसूरा भगवंतो, सम्यम्गेण नियाहिया ॥सा सयासी य उकोसा, जहण्ण ततो गणा। गणो यणगो युनो, एमेया पटिनलिओ॥५॥ एर्ग कप्पद्वियं कुजा, पसारि पारिहारिया। अणुपारिहारिया चेच, चतुरो एवेसि ठावए ॥६॥ण तेसि जायते विग्धं, जा मासा दस अट्ट य । ण यणा ग बाऽऽयको, ण वायणे उबदबा ॥७॥ अट्ठारस पुण्णेस, होजा एते उपहचा। ऊणिए ऊणिए यापि, गणे मेरा इमा भवे ॥८॥जतिएण गणो ऊनो, तत्तिए| तत्य पक्खिये। एग दुवे अणेगा या, एस करपेतु अणिए॥९॥ एते अणूणिए कप्पे, उपसंपजाति जो नहि। एगे तुचे अणेगे वा, सि कप्पो इमो भने ॥ २२१० ॥ अच्छंतिता उदिकलंता, जाव पुण्णा तुले गय । पच्छा पडिकनति, जं कप्पं नेसि अंतिए ॥१॥ पमाण कम्पहितो तत्व, वनहारं ववहरितए । अणुपरिहारियाणपि, पमाण होति सेव तु ॥२॥ आलोयण कप्पठिए पचाखाणं तहेब बंदणातच चहने तेन उजाणी एवमणति॥३॥ अनुपरिहारी गोवाललगाव गावीण णिचमुजुना । परिहारियाण मरगतो हिंडती णिचमुजुत्ता ॥४॥पडिपुच्छं वायणं चेच, मोचूर्ण णस्थि संकहा। आलापो अत्तणिदेसो, परिहारियस्स कारणे ॥५॥ परिहारियाण उ तबो वासासुकोस मजिम जहण्यो। बारसमदसमअहम दसमऽहमह सिसिरेसु॥६॥ अहमदचउत्वं निम्हे उकोसमज्झिमजहष्णो। आयंबिलपारण अभिगहिता एसणाएतु ॥७॥ अनुपरिहारीया पुण णिचं पारिति ते उ आयामे। कप्पडिएऽपि ते थिय आणिति अभिमाहीताहि॥८॥ परिहारिय पत्तेयं अणुपरिहारीण तह य कप्पठिए। पंचाहवितेसित संभोगेको मुणेतको ॥९॥ परिहारिएम बूढेसऽणुपरिहारी ततो बहती तु। कपाहियो पच्छा बहती बुढेसु तेगंतु ॥२२२०॥ परिहारियावि उम्मास अणुपरिहारियावि छम्मासे। कप्पद्वितोऽनि उम्मास एते अडारस तु मासा ॥१॥ अणुप१०५ जीतकन्यभाष्य
मुनि दीपरतसागर
अनुक्रम
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [७१...] ------------- ---------------- भाष्यं [२२२३] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [७१]
गहा पुण रतनामा संसारसंभ(समागविहारं ॥ १ ॥ पलास्मि । भणिया
रिहारिया चेब, जब ने परिहारिया । अण्णमण्णेसु ठाणेसु, अबिदा भवंति ते॥२॥ गतेहि हि मासेहि. णिविट्ठा उ भवंति ते । अणुपरिहारिया पच्छा, परिहार परिहरति तु ॥३॥ गएहिं उहि मासहि, णिविद्वाउ भवति । बहती कप्पद्वितो पच्छा, परिहारं अहाविहि ॥४॥ एतेसि जे वहन्ती णिजिसमाणा हवंति से नियमा। जेहि वृद्ध पुण सिहति णिनिकाइया ॥५॥ अट्ठारसहि मासेहि. कप्पो होति समाणितो । मूलङ्कवणा एसा. समासेण विवाहिता ॥६॥ एवं समाणिए कप्पे, जे व सि जिणकपिया। तमेव कप्पं कृणावि, पालए जावजीविय॥७॥ अट्ठारसहिं पुण्णेहिं मासेहि बेरकपिया। पुण गडं णियच्छंति, एसा वेसि जहाविही ॥८॥ तलियचउत्था कप्पा समोअरते तू चिनियकापम्मि। पंचमउठि मी हेडिवाण समोयारो ॥९॥सामाठेदोणिपिसणिबिड एते जिणधेरे ओवरति॥ अहुणा जिनकप्पठिती सा पुर्व मासकप्पसुसम्मिा भणिया सवाई णवरममुण्णस्थ भणति इम
२२३०॥ गच्छम्मिच पिम्माया धीरा जाहे य मुणितपरमत्था। अम्गह अभिम्महे या उर्वति जिगकप्पिगविहारं ॥१॥णवधि जहणणं उकोसे तुरस असंपुष्णा। चोहसपुची निस्थ नेण न जिणकपण पपने शवहरोसमसंपवणा मुत्तस्सऽत्योत होति परमत्यो । संसारसंभ(सभा)वो वा जातो तो मुणियपरमत्थो ॥३॥ अम्गहाँ सतियातीया पडिमाहि गहण मत्तपाणस्स। दोहितु उपरिमाहि गेहती वत्यपायाई॥४॥ दो अभिग्गहा पुण रतणावलिमाइगाइ बोनबााएतेसु बिडितभावो उपेनि जिणकप्पियविहारं ॥५॥ दुविहा अतिसेसाविय तेसि इमे पष्णिया समासेणं । बाहिर अम्भितरमा तेसि पिसेस पक्षलामि ॥ ६॥ बाहिरओं सरीरस्सा अतिसेसो तेसिमो तुपोदो। अडिपाणिपाया बहरोसमसंघतण धीरा ॥७॥ वालिपाखसरिसर्य पाणित सि धीरपुरिसाणं । होति खतोचसमेणं लडी तेसि इमाऽऽहंस॥८॥माएज घरसहसंचारेज बसोतुसागरा सके। जो एरिसलदीए सो पाणिपडिग्गही होति ॥५॥ अभितर अनिसेसो इमो उतेसि समासयो मणिनो। उदहीविच अफ्सोमा सूरोड्य तेयसा जुत्ता ॥२२४०॥ अमावण्णसरीरा वेगंधो ण होति से सरीरस्सा खणमपिण कुच्छ नेसि परिकम्म णनिय कुनि ॥१॥ पाणिपडिग्गहिया तू एरिसया णियमसो मुणेता। अतिसेसे पोछामि अण्णेवि बिसेसतो नेसि॥२॥ दुविहो तेसऽनिसेसो गाणातिसयो नदेव सारीरो। णाणादिसयो ओही मणपजच तदुभयं च ॥३॥ अहवाऽऽभिणियोहीर्य सुतणाण घेवणाणअतिसेसा । तिवली अभिण्णवचो एसो सारीरअनिसेसो ॥४॥ रतहरणं मुहपोनी जहण्णमुवमरण पाणिपत्नस्स । उकोसं कप्पतियं सोविय एस पंचविहो ॥५॥ पडिगड्यारि जहग्लो चहा उकोस बारसचिकप्पो । नेसि एपाणि पिय अतिरंगे पायणि-- जागो ॥६॥ड़ह णयणमुंडो इविही उवही जहष्णो तेसिं। एसो लिंगो वेसिमियापारण णेतबो ॥७॥रवहरणं मुहपोती संखेवेणं तु दुविह उपही तुवापान विगतलिंगे अ. रिसासुबहोति कडिपही ॥८॥ सत्य पडिग्गहम्मी तहरणं चेव होति मुहपोनी। एसो तुणपपिकप्पो उपही पत्तेयबुद्धाणं ॥९॥ एगो नित्यपराण पिक्सममाणाण होति उपही तु। नेण पर णिस्वही जायजीवाए सिस्थगरा ॥२२५० ॥ एसा जिणकपठिती ठाणामुण्णत्वया समक्खाता । विश्थरयी पुण या जह मणिसं मासयप्पम्मि ॥१॥ अहुणा धेरचितीन साचिय भणिता तु पुत्रमेच तु। दारमसुण्णत्यमियं णवरं संखेवतो पोई॥२॥ संजमकरणुमाया गिफायम माणसणचरिने । बीहो व बुढनासो बसही दोसहि य विमुक्का ॥३॥ दोहोनि(वि) बुडवासी घेरा ण तरति जाहे कातु जे। अम्भुजयमरणं वा अवा अन्भुजयविहारं ॥४॥ दीहंपआउगं(जइ) तू. बुड्ढावास नयो बसे। उम्गमादीहि दोसेहि. विष्पमुकाएर वसहीए॥५॥मोजिणकापठिति जा मेरा एस पण्णिता हेडा। एसा तु दुपदजुना होति ठिती बेरकप्पमि ॥६॥ पर्वती उस्सगो अपवाजो वेब होनि योग्णेने। एनेहिं होति जुत्तो णियमा सलु चिरकापोतु ॥ ॥ पारंबानी जाच ठिती उस्सग्गाऽववाइयं करमाणी। अपवाए उस्सगं आसायण दीहसंसारी ॥८॥अह-उम्सो अश्वार्य आवरमाणो विराहओ होनि।
आनाए पण पने उससम्मगिसेयो भहजो॥५॥कर होती मतियो? संपवणचितिजुतो समम्मोन। एरिसतो अपनाए उस्सम्गणिसेवजओ सुबो ॥२२६०॥ इयरी 3 विराई असमस्थो जेण परिसहे सहि। चिनिसंचरणेरितू एगनरेण वसो.हीणो ॥१॥ इति सामाइयमादी छवि कप्पहिनी समपसाया। विस्थि दारं अहणा इणमो बोच्छ समासेणं ॥२॥ परिणनगीनत्वा न पिषसभूषा अपरिणया होनि। करजोगी कमजोगी बनस्थमादीहिं पाया| अकडजोग्गा जोगाविय क्तुस्थादीहिं होन्ति णाया। चितिसंपवणादीहिं नरमाणा होति णाया॥४॥ चिनिसंचयणेणं नृएगयरजुया उ हानि अतरा अहवा दोहि वि जुना अनरमपुरिसा मया ॥५॥ जो जह सनो बहतरगुजोबनस्साहियपि देजाहि। हीणनरे हीणय मोसेज प साहीणस्स ॥ ७२॥६॥ कापडियमानीणं पुरिसाणं जाच उभयहा अनसे। जा जह सनो उ भये तस्स तहा होति दायां ॥७॥ बहुतरगुणसमगोनु चिनिसंचतगादि जो तु संपणो। परिणय कडजोगी या अहवापि हवेज उभयतरो॥८॥ एयगुणसमम्मम्स तु जीयमया अहियगपि देजाहि। हीणस्स तुहीणतरं मुंज व सबहीणस्त ॥ ९॥ एल्थ पुण बहुरा भिक्खुणोनि अकयकरणाणभिगया या जंतेण जीतमममर्ततमधिगनिमादीयं ॥५.७३ ॥२२७०॥ एत्थं इवम्मि जीए बहुतश्या भिक्खुणो भवंती तु। अक१०५४ जीतकन्यभाष्य -
मुनि दीपरम्सागर
अनुक्रम [७१]
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [७३] -------------- -------------- भाष्यं [२२७१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं ।
प्रत
सूत्रांक
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पि
यकरणा उजे तू अणभिगया चेव णायवा ॥१॥ चस्सदेण चिराचिर गहिया तू एत्य तु समासेणं। जनयविहीकमेणं जीयाभिमएण देजाहि ॥२॥ कतकरण अकयकरणा कयकरणा गच्छयासि इयरे या अकरकरणात णियमा णाया गच्छवासी त॥३॥ ते अभिगत अणमिगता अणभिगना विरथिरा यहोजाहि। कतअभिगत जसेचे अणभिगते अस्थिरेशमा ॥४॥ अहवा णिवेक्खियरा इविहा पुरिसा समासतो हॉति। णिस्पेक्खो जिणमादी तेणियमा होति कतकरणा ॥५॥ सावेफ्सा होति तिहा आयरिय उवा भिक्खुणों चेष । कत. करणमकतकरणा आयरिया वृज्झाया ॥६॥ भिक्खू गीयाऽगीया गीयत्व थिराऽथिरा य बोचा। कतकरण अकतकरणा एकेका होन्ति ते दुपिहा ॥ ७॥ अग्गीयावि थिराऽविर कयाऽकया चेव हॉति एकेका। कतकरण अकतकरणा केरिसया हॉनि? मुणगु इमे ॥८॥ छडट्ठमाइएहिं कतकरणा ते तु उभयपरियाए। अभिगत कतकरण जं जोगतवारिहा केवी ॥९॥ शिरपेक्खा एगविहा सावक्रवाणं तु कि णिमित्तेण । तिपिहो भेडो तु कतो आयरियादी? इमं सुणम् ॥२२८०॥ भण्णइ जुक्रायादी पत्युविससेण रंडों जह लोए। तह पत्यु विसेसेणं आयरियादीण आग्वणा ॥१॥ आयरियउवमाया दोण्णिवि णियमेण होति गीयत्था। गीयत्थमगीयस्था भिक्यू पुण हॉति मातथा ॥२॥ कारणमकारणं वा जयणाऽजयणा च मन्याडगीयत्थे। एतेण कारणेणं आयरियादी तिचिह भेदो॥३॥कजाऽकज जयाजय अविजाणतोऽमीयो य ज सेवे । सो होति तस्स दापो गीते दप्पाजते दोसा ॥४॥ अ. प्रिसिद्रा आपनी परिमं सव्वेसि तेण सावेरखे। परिमं चिप कयकरणे आयरिए अकए अणबहो॥५॥ कतकरणउवज्झाए अणचट्ठो होति मूलमायम्मि। भिक्यू गीयचिरम्मी कतकरणे मुलमेव भवे ॥६॥अकयथिरम्मी छेदो अस्थिरकयकरणे होति सो च । अस्थिरकते उ उम्गरु अगीवचिरकरणे ते चेच आजगीत अधिरे अकते छातहुगा होवि तू मुणेतवा। अगीय अधिस्कयकरण माह बडगुरू अकते ॥८॥ एसादेसो एको अयमण्णो बितियओ तु आदेसो। चरिमं चिय आवणे कतकरणगुरुम्मि अणडो॥९॥ अकतकरणम्मि मूल मुलमुबाएं होति कनकरणे। अकतकरणम्मि छेदो इय णेय अनुकतीए ॥२२९० ॥ एमेच य अणबई जावण्णे होति दोषिण आदेसा। णिरपेक्लो ण भणिएत्य जं दोगिण ण होति तस्सेने ॥१॥ अहणा मलावष्णो सम्ने मूलत होति णिरनेक्से। मूलं चेच गुरुत्सवि कतकरणे जकतें छेदो तु॥२॥ कतकरणउवमाए दे सकतम्मि होन्ति उम्मगुरुगा। इय अड्ढो- 18 कंतीए णेयं अयमणों आएसो ॥३॥ सापेखोनिकाउं गुरुस्स कदजोगिणो भवे छेदो। अकतकरणभिम उम्गुरु कतकरण उपजो उग्गुरुगा ॥४॥ अकते छाहगा न हय अड्दो । कतीए तु णातनं । अहणा उम्गुरु तू आदतं ठाइ गुरुभिणे ॥५॥ छायावत्नम्मी ठायति लहुए त भिण्णमासम्मि। पत्गुरुपादनम्मी अमम्मी ठाइ गुरुचीसे ॥६॥ चतुलहुए। बीसाए गुम्मासे ठाति पण्णरसहि तालहुए लपण्णरसे गुरुभिण्णे ठाति गुरुदसहि ॥ आ लहुभिपणे दसहुए गुरुनीसा अंने ठाति गुरुपणए। लहुचीसा आढनं अंतम्मी ठाति लहुपणए - ॥८॥ पण्णरसहि गुरुएहि अंतम्मी अहमम्मि ठायति । पण्णरसहि लहुएहिं अंतम्मी ठाति छम्मि ॥९॥ वलगुरुए आदनं अंतम्मी ठायती चतुथम्मि। दसलहुए आढनं ठायति न अने आयामे ॥ २३०० ॥ गुरुपणए आदत्तं एकासणयम्मि अं लाया तू। हर्पणए आदत्तं अंतम्मी ठाति पुरिमटे ॥१॥ अहमभन्नाऽद्धनं अंतम्मी लायई अ णिविगती। जतविहीपथारो समासतो एसमासातो ॥२॥ एवं तु अजयणाए साविक्साणं तु होति पच्छित्तं । आह गीयत्यो सवे कारण जतणाएं तो मुद्दो ॥३॥ एवं तु कारणम्मी जनणासेविस्स वणिय दाणं। जहवापि हम अण्णं आयरियादी जहाफमसो ॥४॥ आपरिषउपज्माए कतकरणे अकतकरण दुविहा तु। मिक्युग्मि अभिगते या अणभिगते चेष दुविहो तु ॥५॥ अभिगो का अकते या अणमिगते बिर नहेच अधिरे या चिरे कतकरणे अकते अधिरे कतकरणमकए य॥६॥ एते सव्वेऽवेग आपत्ती पंचराहगाऽऽवण्याने पण अपि सिटुं पउत्थमादीहि विष्णेयं ॥७॥ आतरिए कतकरणे ते चिय पण त होति दात। अकतकरणे चढत्यकयकरणे उपजोन चे॥८॥ अकयम्मी आयाम मिक्सुम्मी अभिगतमि कतकरण । आयाम दायां अकयकरणे उ भनेक ॥९॥मिक्सुम्मी अभिगते बिस्कयकरणे य एगमनं तु। अयम्मी पुरिमर्द अभिगए अस्थिरे कतम्मि ॥२३१०॥ पुरि मड्ढो थिय णियमा अस्थिरजकश्मि होति णिविमति। अहवाऽभिगय अधिरे इच्छाएनं च अण्णं वा ॥१॥ एमेवय दसरायं सो आवष्णमेगमावनि। कलकरणे आयरिए दसराय चेन दायां ॥२॥ अकयकरणम्मि पणगं कनकरणे पणगमेबुवझाए। अकतकरणे चउरथं एवं तू अदुकतीए॥३॥ताया कमेणं जाय उ अंतरिम होति पुरिमइद। इय पण्णरसारद्धं ठायद एकासणगमते ॥४॥ वीसारवं ठायति आयामे भिषणमासऽमन । मासारवं पणगे दुमास दसराएं ठायह तु॥५॥नेमासे पगरसे चतुमासे ठानि वीसरातम्मि। पणमासे पणुवीसे छम्मासे मासिए ठाति ॥ ६॥ छेदो दोमासीए मूले तेमासियम्मि ठायति तु। अणवढे चतुमासे पारंचिइए तु पणमासे ॥ ७॥ एए मणिना लहुगा सोऽवि नगरिहा समासेणं । एमेच य गुरुगाची या अहदकंतीए॥८॥ एमेच यमीसा वा अदुकतीए होन्ति तथा । एमेव पंचपंचहि मासादी सातिरंगादी॥९॥जा उन्मासा या नववि उग्पाय तह १०५५जीतकल्पभाष्य -
मुनि दीपरतसागर
अनुक्रम
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [७३...] ------------------ --------------- भाष्यं [२३२०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत
बपि बने।
तालामा
सूत्रांक [७३]
दीप अनुक्रम [७३]
धअणुग्पाया। मीसावित्रणेतमा अड्ढोकतीएं साथ ॥२३२०॥ जहवा वा णिधिगती पुरिमेकास तहेब आयामं । तत्तो चउत्थ पणगं दस पवार वीस पणुवीसा ॥१॥ मासोलह गुरु
चतु उबला गुरुच्छेद मूल अणवट्ठो। पारंथिए य ततो पणयावीहासण नहेब ॥२॥ लहु गुरुग मीसगाविय तहेच एत्वंपि होन्ति णायचा। एवं एवं दाणं बीए होति विष्णेयं ॥३॥ एमेष य समणीर्ण गवरं दुगवजित तुकात। अणवही पारंची एयदुर्ग णस्थि समणीणं ॥४॥ अहवा पुरिसा दुबिहा समासतो होन्तिमे उणालया। एमबिहारी यरहा गणपद्धवि. हारिणो चेव ॥५॥ गच्छा हिणिग्गया जे पटिमापटिलष्णया य जिणकप्पी। जे याचि सयंदा इस एगविहारिणो तिनिहा ॥६॥ णिचमप्पमना जति आवजे कहंचि कम्मुदया। नावणमेव तुरी पवेति णियमायसक्सी वा ॥७॥ संघयणधितिसममा सत्ताहिडियमहन्तजोगधरा । मुचहुंपिहुआवण्णा वहन्ति णिरणुग्गह सच ॥८॥ आलोषणोषयुत्ता तेतून आलोयणाएं मुजाति। तेसि जाय तु मूल करेन्ति सतमेव मुजाति॥९॥ अणिगृहियवलनिरिया जहवादीकारया बसे धीरा। उत्तमसासमण्णागया य सुमंतिते णियमा ॥२३३०॥ गणपडिबदा इबिहा जिणपडिकवी य होति पेराय। जिनपडिरूवी दुपिहा विमुद्धपरिहारहालंदी ॥१॥ ने णिचमपमत्ता जति आवजे कहंचि कम्मुदया। तक्षणमेनं पट्टा वेन्ति कप्पद्वियसगासे ॥२॥ संघयणधितिसममा सत्ताहिडियमहंतजोगधरा । सुबहूपिआपणा पहंति मिरगुग्गहं धीरा ॥३॥ अट्ठविहा पहुवणा तेसि आलोयणाति मूलंता । पट्टनेत धीरा गुन्झनि विसुज्मचारिना ॥४॥रावि विमुद्धतरा तेसुषि जति कोड किंचि आवजे। तक्षणमेव हुतं पट्टाति नियमा गुस्सगासे ॥५॥ एल्थ य पहुवर्ण पति आयरिओ - विहिमिणं अजाणनो। लंड य अप्पाणं तंपिय सीसण सोहेति ॥६॥ पुरिसेति गर्ने दारं इमं तु पडिसेषणं पपक्खामि। सा पुण चतुहा सेवण आउहियमादिमासु ॥७॥ आउट्टियाय दप्पप्पमायकप्पेहि वा णिसेपिजा। दव्यं खेनं कालं भावं वा सेवओ पुरिसो।।मू०७४॥८॥ आउहिया उपेचा दप्पो पुण होति वग्गणादीओ। कंदापादिपमाओ अहा कसावादिओ घोओ॥५॥ कसाय विकहा नियटेदिय गिह पमाच पंचविहो। एस पमायो भणितो कप्पं तु इमं पवस्वामि ॥२३४०॥ गीयस्थो करजोगी उपउत्तो जयणजुता सेवेजा। माहा. पदस्स तु णमो उसयासतो पोई॥१॥द आहारादी खेतं अदाणमादिणातब्ब। कालो ओमादीओ हगिलाणादि भायो तु॥२॥जंजीयदाणमुलं एवं पाल पमायसहिबस्सा एनो चिय ठाणतरमेग पढेज परयो ।मू०७५॥३॥जंजीतदाण मणिय णिब्बीनियमादि अट्ठम अंते। ततियपडिसेषणाए पमायसहिवस्स एवं तु॥४॥ दप्पपडिसेवणाए पुरिमइदादी होति दाय। अते दसम दिजा आउडीए उबोच्छामि ॥५॥ आउट्टियाए ठाणेतर व सहाणमेव वा दिया। कप्पेण पतिकमणं तदुभयमहवा पिणिदिई । मू. ७६॥६॥आउट्टियावराहे एकासणमादि अंत पारसमं । पाणतिपायवराहे सहाण होति मूलं तु ॥७॥ कप्पेण उ सेवाए वह सुद्धो अब मिपकारं तु । अहवा नदुभयमुनं आलोयपडिकमाहिति ॥८॥ आलोयणकालम्मिपि संकसचिसोहि भावतो गातुंहीणं वा अहियं वा तम्मत्तं वापि देनाहि ॥ मू०७७॥९॥ आलोयणकान्सम्मिय गृहनि हवा विकुशनी किशि। सो सकिलिङ्कचित्तो नस्सऽहिन दिन ऊर्ण वा ॥२३५०॥ जो पुण आलोएन्तो काले संवेगमुवगतो जो उ। जिंदणगरहादीहि पिसुदचित्तोतु तस्सएपं ॥१॥ जो पुण आलोएन्नो गवि गृहति णवि य णिदए जो नु। सो मन्त्रिमपरिणामो तस्स उदेजाहि तम्मत्तं ॥२॥ इति दयादिवगुणे गुस्सेवाए यबहूतरं देजा। हीमनरे हीणतरे हीणारं जाप झोसोनि ॥५.७८॥3॥ इति एस दा सेने काले भावेस बहुगुणम् तु गुरुसेवा तु पहाणा एतेसु बहुतरं दिजा ॥४॥हीणतरे हीणतरंतिदेज बादिमाविहीणेहिं । नह नह हीण देजा मोसेज व सत्रहीणस्स ॥५॥ झोसिजतिसुचहुंपिहुजीएणणं तबारिहं वहयो । वेयावबकरस्स य दिजनि साणुगहतरं वा ।। मू०७९॥६॥ सोसण सपणा मुंचण एगहान मुचए कम्स? । अणवचं तु बहते जह पपिए उ उम्मासे ॥७॥ पंचदिणेहिं गएहिं पुणरवि जा सो उ अण्णमापजे । नो से ते सहि उम्मति एवं प्रपणा तु नस्स मवे॥८॥ यावच करेंनो, जनि आवजनिन किचि अण्णतरं । नापतित से दिजति जणिस्थरती तु सो बोईं ॥५॥ काल ठापितु विक्से णिस्थिपणे न तु काहिती सोतु । एय नपारिह भणितं अहुणा उदारिहं वोच्छं ॥२३६० ॥ नवगपिओ नवरस य असमात्यो तवमसरहन्लो या नवसात जो ण दम्मति अतिपरिणामप्पसंगी य॥ मू.८०॥१॥ सुबहुतरगुणमंसी टेदावनिमु पसजमाणो य। पासत्यादी जोऽविय जतीण पदितप्पिओ बसो।मु०८१॥२॥ उकोर्स नवभूमी समतीओ साबसेसचरणो या सर्व पणगादीत पाचनिजा परनि परियाओ। मू०८२॥३॥ नवलिओ देह तयं अहं समयोनि गरिओ एसा नवसमत्व गिलाणों बालादी अहव असमत्यो॥४॥ जो उग सरहसि तवं अहवामी जो नयेण गरि दम्मे। अतिपरिणामो जोन।
पुणो पुणो सेवति पसंगी ॥५॥ उत्तरगुण बहुगात पिंडविसोहादिगा उणेगविहा । भंसनि विणासेती पुणो पुणो जो तु ताई तु ॥६॥ उदावतीतो या परति पसजनी य जो नेसं । 5 अरणा पासस्थादी आदीसरेणिमासु ॥ ७॥ पासत्योसपणो वा कुसील संसन जहर णीओ वा । वेयाचचकराण जतीण पडितप्पिओ बहसो ॥८॥ उकोसा तवभुमी आदिजिणिदास
होति परिसंतु। मजिसमगाण जिणाणं अब उमासा भये भूमी ॥९॥ परिमम्स जिणिदस्सा उकोसा भूमि होनि उम्मासा। एवं तू उकोस समती चरणसेसोय ॥२३७०॥ (२६४) १०५६ जीतकम्पभाग्यं -
मुनिटीपरनसागर
POLY
अत्र प्रतिसेवना एवं छेद-प्रायश्चित् वर्णयेते
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [८२] ------------
------------- भाष्यं [२३७१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
य सह य ॥ मृEM
हामह बहसो व दूस अंजनि
इयम्मि भयणात
प्रत सूत्रांक [८२]
तपत्रणबड़े बूढे पारचितमाम बोई ॥९॥लियाउकोस बहुसो वा
एव जहुदिहाणं नवगवियमादियाण सोसि । छेदं पणगावीयं देजा जा धरति परियाओ॥१॥ आउहियाय पंचिदियधाते मेहुणे व दप्पेणं । सेसेसुकोसाभिनवसेवणादीसु वीसुपि ॥ मू.८३॥२॥ आउहि उवेचा तू पंचिदिवहेति मिहुण दप्पेणं । लेस वय मुसाऽदिन परिम्गहो चेव णादयो ॥३॥ एतेमुक्कोसाथि पटिसेवइभिक्खणं तु मिच्छा तु । एनेसि सजेसि मुलं न होति दातयं ॥ ४॥ नवगपियादिएमु य मूलत्तरदोसबतियरमएसुं । दसणचरितवन्ते चियत्नकिचे य सेहे य ॥ मू०८४॥५॥ नवगवियमादीया जायऽउपरिणाम अतिपसंगिनि। एनजहुहिहार्ण मूलंत होति णात॥६॥ मूलगुण उत्तरगुणे बहुविह बहुसो यस मंजति वा। पतिकरमेयं होती एरिसजुत्तस्स मूलं तु॥७॥णिच्छयनयस्स चरणायविधाये णाण. दसणवहोमि। वपहारस्स तु चरणे हयम्मि भयणा तु सेसाणं ॥८॥चतं जेण दरिसणं चारितं वावि सो तु णातयो। चत्तकियो वेसो चियत्तकियो मुणेतबो ॥९॥ अहवा-संजम सकलं कि जेणं चत्तं स चत्तकियो तु। सेहो अणुवविओ मूलं एतेसि ससि ॥२३८०॥ अतोसम्णेसु व परलिगवेय मुलकम्मे च। भिक्सुम्मिय विहिततवेऽणवठ्ठपारंचिर्य पत्ते ॥मू. ८५॥१॥ ओसपणे पधानिय संविग्गेहि व जप्पमिति तु। ओसग्णयाएं बिहरिओ सो भणितऽयंतयोसण्णी ॥२॥ गिहिलिंग आण्णाउस्थिय परलिंगबु कुणति दप्पण। गम्भादाणे साडण दृषिहमिहंमूलकम्मं तु ॥३॥ भिक्खणसीला भिक्यू विहिततर्व उवणयं तु णात। तपाणबई उपणय पारंचितवं च णात या अतियारसेवणाए पत्ते एयं नुहोति दुविहं च (हन)। एतेसि सबेसि दात होति मूलं तु॥५॥छेदेणापरियाएऽवट्ठपारंचियावसाणे य। मूल मूलाचत्तिय बहुसो य पसजणे भणियं ॥ मू.८६ ॥ ६॥ जिते परियाए जस्स तु डिण्णो हुणिरवसेसो तु। तपअणबडे बढे पारंचितबारसाणेसु ॥ आमूलावत्तिमु एवं पुणो पुणो सजए तु जो सगणे(मणो)। ससुविएतेसुं मूलं होति दाता अणवठ्ठप्पो दुविहो आसायण तह य होति पडिसेवी। आसायणअणवहूं समासयोऽहं इस वोच्छं॥९॥ तिस्थकर संघ सुर्य आयरिषं गणहरं महिवदीयं। एते आसाएन्ले पच्छिने मम्गणा इणमो॥२३९०॥ पढम बिति देस सच्चे गवम सेसेसु उगुरू देसे। पडिसेवणणचहूं अहुणा उइम परक्खामि ॥१॥ उकोसं बहुसो वा पउद्दचित्तोतु तेणियं कुवाति । पहरति जो य सपक्से हिरवेक्खो घोरपरिणामो ।मु०८॥२॥ उकोर्सनु निसिहूं पुणो पुणो एय होति बहुगं तु। कोहादी व अतीव तु पउद्दचित्तो मुणेतव्यो ॥३॥ पडिसेवणअणवट्ठो होती तिविहो इमो समासेणं । साइम्मियाण्णवम्मियतेपण तह हत्यताले य॥४॥ साहम्मितेपण दुविहं सचित्तं तह व होति अचित्तं । अचित्तोचहि भने सचित्त सेहावहारोतु ॥५॥ साहम्मिउनहिहरणं वाचारण सावणा यपत्यवणा । तं पुण सेहमसेहो हरेज अदिड दिहुं वा ॥६॥ सेहोत्ति अगीयत्यो जो वा गीतो अणिहिदसंपण्णो। उपही पुण वत्यादी अपरिग्गड़ पत्थरो तिविहो ॥७॥ अपरिग्महितो नहियं साहम्मी मोनु पयसितो जस्सा ओहरमाणे सोही होति इमो खेत्तणिप्फष्णो ॥८॥ अण्णोचस्सयवाहि निवेस बाडे य गाममुजाणे । सीमाए जा णेवं सहयचि अन्नो' बहिया वा ॥९॥एनेसु तेवणते मासलई आइ काउ जा छेदो। अइडोकती णेर्य अहिडेसा भने सोही॥२४००॥ मासगुरुगादि दिढे मूलं सेहस्स एपणिहाई। अभिसेयाऽऽयरियाणं एकेक ठाणगं बढ़े ॥१॥ एवं तुवस्सयाओ साइम्मीणुपहिमवहस्तस्स । वावारिए दाणि चोच्छ सबमेच मेहन्ते ॥२॥ वावारिया गुरूहि वह आणेह तिचिहमुनहिति। ने लई नत्तो चिय तुममे य अनट्ठी॥३॥ लहुओ अत्तते जति पुण आणेत्तु गुरुणन णिवेदे। तो होती चतुलहुगा अणवटुप्पोप आदेसा ॥४॥ बावारियतण्णेयं अण्णो पुण सावए णिमन्तेन्ते। पडिसिद्धाऽऽयरियेणं दळूणं तस्य गंपूर्ण ॥५॥ वेती शामिय उवही अयं च गुरूहि पेसिओ देह । तो दिण्णो तेहुवही किह पुण सइदेहि सो जातो ? ॥ ६॥ सो त घेतृण गतो गवरं ते आगता गुरुसगास। पुच्छति य ते सहदा उनहि पत्तो पण पाहतो?॥७॥ केवइयं वा दइदं? तो चिन्ति पहनाएर उबहिनि। केण पाणीनो उपही इति सोचा पत्तिमापति ॥८॥ लहगा अणुमहम्मी गुरुगा अप्पलिए मुणेयवा। मुलंच नेणसहे वोच्छेय पसजणा सेसे ॥९॥ एवं ताऽडते अह सब मामितो भये उचही। पेसविओ य गुरूहि सटे तहि अंतरा जोतु ॥२४१०॥ लढे अत्तहेती चतुलहुगा अह गुरूण ण णिविदे। तो चतुगुरुगा सहियं अणवटुप्पो व आदेसा ॥१॥ एवं सामणहेतु अवहारो अहइयाणि पत्थर पिए। आयरियादिण केणति आयरियाणं तु अण्णेसि ॥२॥ उकोसो सणिजोगी पडिगहो अन्तरा तहि लदो। अत्तहुंने लहगा गुरुगाऽदनेऽणबडो वा ॥३॥ एवं ना उबहिम्मी जहणा
भन्नम्मि नेण्ण बोचछामि। जति पचिसेऽसदिट्ठो ठवणकले तो भवे लहगा ॥४॥ अज अहं संदिहो पुढोऽपुट्टो व साहए एवं। पाहुणगिलाणगडा नं च पन्नोति नो बिनियं ॥ ५॥ मायाणिफणं तु एष मणतम्स होति मासगुरू। अहवा आगंतृणं णालोए तहवि मासगु॥६॥ कह पुण हवेज णायं साहहिं नह य तेहिं सड़देहि । जह खलु पविही अण्णो ठवणकुलाई असंदिही' ॥ ७॥ गुरुसंधाडम्मि गए भर्णति गुरुजोग णीयमेनाहे। गस्थि तऽणुग्गहम्मी लहुगा अप्पलिए गुख्या ॥८॥ वोच्छेद गुरुगिलाणे गुमना बहुगा प समगपाहुणए। गुरुगा य बालबुड्ढे सेहे य महोदरे लहुगो॥९॥ भत्तम्मि भणियमेत नेणं भणियं च मेयमचिन्ने । अहुणा सचित्तम्मी सेहे सहीच बोच्छामि ॥२४२०॥ पुण मिजतो वा अमिहारेन्तो १०५७जीनकापभाष्य -
मुनि टीपरनसागर
अनुक्रम
[८२]
अत्र मूलं एवं पाराञ्चित-प्रायश्चित् वर्णयेते
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [८७] -------------- ------------- भाष्यं [२३७१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक
45
[८७]
दीप
.12
आसियाडेजा। निसारिपटिया गाम बहि ठमेल मिजतो ॥१॥ पुण सग्णादिमतो अदालीओरकोति पासेजा। विय पडो कोलीमणे अहे पालतिकामो॥२॥ससहातो असहातोनि पुग्छितो भणति ता ससहायो। सो कल्प' मा को ठाय पिचासस्स ना अडति ॥३॥ तो अति अग्णपाणं इस मुंजऽमुकंप दाए सुबो तापमं च पुट्टपुट्टो कहति सुदो असदभावो ॥ ४॥ सदबाए पुण दोसो मर्स देनस्स जहर कइयते। आसीआपणहेतुं सोहि इमेहिंतु ठाणेहिं ॥५॥ मते पण्णवण णिगृहणा याबार जपणा वा पत्थवण सर्यहरणे सेहे आत्त बले य॥६॥ गुरुजी चतुला पतगुरु साहु उम्गुरुग छेदमबते । पसे मिक्सुणों मूलं दुर्गतु अमिसेग आयरिए ॥ एवं ता जो णिजति अहिहारेन्तो पुणोवि A जो जाति। सोऽविय लहेब पुट्ठोमगाइ वचामऽमुगमूल ॥८॥ तद व भत्तपाणं पण्णवणा नेच होति एत्यपि। सेसा मिगुहणानी सोचि पथा ण सत्ति इहं ॥९॥ एमेच य इत्वीए णिनंतऽभिचारपति एमेव । वसवताएं गमो दोसो घामे हरंतसा ॥२४३०॥ आणा यऽर्णतसंसारिवत्त मोहीयातमत्तं च । साइम्पियवेण्णम्मी पमत्तछलणाऽहिकरणं च ॥१॥चि. वियपर्य वोच्छेदे पुरगए कालियाणुजोगे या एतेहिं कारणेहिं कप्पति सेहायकारो तु॥२॥ एवं तु सो अवहितो जाहे जातो सयं तु पावयणी। कारमजाए य जया होनाही अवहितो नेष ॥३॥सो ने विय घरनि गणं कालग गुरुम्मितं विहारेन्ते। जापेको णिकरणो साहे से अपणो इच्छा ॥४॥जह हरिए निकारने ताहे पुरिमाण चेन सो जाति: अह अम्भु
जयमरणं पविषण्णो गुरुविहारं वा ॥५॥ अण्णम्मि अविर्मते आयरियपदारव्हे तमेव गणं । चारेति जान अण्णो जिम्मातो तम्मि गच्छामि ॥ ६॥ सचिसतेण्णमेयं साहम्मीणं तु एन. शमसात आमवणं दोसा था परचम्मियतेने मोच्छामि ॥ ७॥ परधम्मियानि इरिहा लिंगपविद्वा तदा मिहत्याबा तेसि विपिह लेणं बाहाने उपदि सचित्ते ॥८॥ निक्खुमादीसंख-स हित लिग का भजए लदो। आभोगम्मि उ लगा गुरुगा उसणे होति ॥९॥ कृरणिमित्तं चेच उ अजिबना एते एत्य पाया। अनिविष्णदाणमा खल परयणहीला दुरपति ॥२४०॥ गिहासेपि परागा पूर्व सुएते अविद्धकताणा। गलओ पावर म बलिजो एवेसि सत्युणा चेप ॥१॥ एवं ता आहारे उपहीने पुणो गई होजा। जह कोदि मिष्गाची उजम्मए मोन उपमरण ॥ २॥ भिक्खादिगतो न तू जति गिति चतुलह मवे तस्य । गिक्षण कटण वनहार पच्छकर तह व मिसिए ॥३॥ गिष्हणे गुरुगा छम्मास कड्दण दोभा होनि वाहारे। पठादम्मिा मूळ मिनिसबोटापणे परिमं ॥४॥जन्हा एते दोसा सम्हा जनिरिज्यप घेत्त। उपहीनेणं एवं एलो वोठामि समिते॥५॥ सुइट व बुद्धिाय पा नेति जान पनिछन गुरुगा। बत्तम्मि पत्यि पुछा खेनं बाम च णापूर्ण ॥६॥ लिंगपपिट्टामेवं एमेव तिहा अदिष्ण गिहियाण। गहमादीया दोसा सचिसेसतरा भये लेम् ॥७॥ आहारे पिडादी विरणिय बदल दिया गेहे । गेहूती दिहाविय ता कुसलपरंपरा छुमणा ॥८॥ तहियं हॉति चतुला अणयप्णी य होति आदेसा। एमेष य उपदिम्मिवि सुनही कन्यमादीया ॥४॥जीएहि तु अपिदिणं अपनवयं पुमंग विक्सेनिता अपरिगहम(सु)तो कम्पति तु जदो सदोसहि ॥२॥५०॥ अपरिग्गह गारी पुण गमवति तो सापकपति अधिषणा। सापि य र कार कह जहपउमा भुइमाया वा॥१॥ वित्तियपर्वऽपाऽऽहारे अद्धामोमाइएमु कजेसु । उयहीविवित्तमादिसु आगादे गणमाविदियो ॥२॥ सपढीम नाच पुरका गेहनिनन्य अदलेन्ते। बलमयरडेसे पुष उम्पी वाहे गिति ॥ ३॥ ताहे परलिंगीणचि जातिय पुर्व अदते उष्णम्भिा गारस्थीसुषि एवं आगाडे होति गहर्ण ॥४॥ आहार उपहिम्मिय वितियपदे गहणमेतमपलाया एतो सचित्तमहणं बोच्छामि अदिष्ण वितियपाए ॥५॥णाऊणयबोच्छेयं पुष्वगए कालिआओगे या उक्युमिण पूर्व होहिति जगप्पहाणनि नाहे सदनग सुडी हरेज गिहिणतित्थियाणं वा। साइम्मिजणधम्मिय एवं लेणं समक्सातं ॥७॥ गाहापुण्द्धस्स तु इति एसा अभिहिता पई नेणा। अरणा पठासनगाहास इमाईसाद अह एनो नोचामो हत्वाचालं जहकमे ना किं पुष इत्यायालं? मम्मति णमो पिसामेति ॥५॥ त्या ताले (हत्या अवायाणे यहोनि बोडो। एतेसि गाणसं पोष्यामि जहाणपञ्चीए ॥२४६०॥ इत्येणं जं तालण इत्याचा तग मुणेत । नहिय हरति अदो ग्लोइयनोउत्तरो इणमो ॥१॥ उगिणम्मि य गुरुओ टंटो पटियस्मि होति भतणा ना एवं स लोइयाण लोउत्तरिय अतो बोच्छं ॥२॥ हत्येण व पाएग अण्वप्पो न होति उम्पिाये। पटियम्मि होनि भयणा उनणे होति पारंची ॥३॥ वितियपय खुड विणयं गाइन्ने अहव बोहिगादीम। सावयभवेव घो(चो) वेजाही हत्पत्तालं तु ॥४॥ विगयग्गाहण खुइडे काणामोइस्याहाचपडादी। सावेतो हरवताल दलाइ सम्माणि सलती ॥५॥ परपरिवाषणकरणं चोदेह असायबंधहेउति। न कह तस्सागुणा तुम्नेहि कया? गुग काम परपरितानो असातहेत। जिणेहि पाणलो। आयपरहियकरो तू इचिकना इस्सि(दोस)ले सखल ॥७॥ सिप्पं गेउणिया बापाने सइंति लोया गुरुयो। ते इहलोगफलाणं मडरवियागेस उपमा तु या अहपावि रोगिवस्सा ओसह चादि दिगए पुर। पचहा साडेतुपी देहहिनहाएं दिनति से ॥ ९॥ इस मकरोगत्तस्सवि अणुकूलेन तु सारणा पुर्य। पच्छा पटिफुलेगवि परलोयहियह काया १०५८जीनाममार्य
मुगि दीपरजसागर
अनुक्रम
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आगम
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“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [८७] -------------- ------------- भाष्यं [२४७१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [4/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [८७]
र लिया। तो तमादीहिम गाभिमए सेवा
॥२४७० ॥ इहपरलोगे य फलं विणीतविणयो अणुत्तरं लभति। संबिम्गाइगुणेहिं इमेहि जुत्तो महाभागी ॥१॥ संचिग्गो महरिओ अमुदी अणुयत्तओ विसेसण्णू । उजुत्तमपस्तितो इच्छियमय लमद साह ॥२॥बोहिमयसावयादिसु गणस्स गणिणी व अचए पते। इच्छति हत्ययालं कालाइधरं य सज वा ॥ ३॥ एरिसए आगाढे बोहियमादीय जीयसदेहे। ज जस्स तु सामत्थं सो तु ण हावेति एवं तु ॥४॥ कुणमाणोवि हु करणं कपकरणो णेच दोसमम्मेति। अप्पेण बह इप्याति विसुद्धमालवणो समणो ॥५॥ आयरियस पिणासे गच्छे अहवावि कुल गणे संपे। पंचिंदिययोरमणंपिकातुं पिस्चारण कुजा ॥६॥ एवं तु करेन्तेणं अयोच्छित्तीकया उ तित्वम्मि । जतिवि सरीराचायो तहविय आराहओ सो उ॥७॥जो पुण सन सामत्थे चिजातिसती व अहव सारीरे। एरिसए आगार्ड हत्येन्तों विराहयो मणितो॥८॥एवं हत्यायालं हत्यालंय इम मुता। दुकलेणऽभियाण जसनाणं परित्ताणं ॥९॥ असिवे पुरोवरोहे एमादीचइससेसु अभिभूता । संजायपचया खलु अण्णसु य एवमादीम ॥२४८०॥ मरणभएणऽभिए ते णात तेहिं बानि भणिया तु। पडिम कार्ड मतो चिह(पिच)नि मने परिजन्नी ॥१॥ एतं हत्यालेबहत्याया अयो पर वोच्छ । जो अत्वं उपाए णिमित्तमादीहिमणातं ॥२॥ उजेणी उस्स(ओस)गणं दो बणिया पुच्छिऊण जायरि। ववहार क्वहरती ताहे वेसि सो साहे ॥३॥ तम्स य भगिणीपुत्तो भोगहिलासी तु मुंचए लिंगं । तो अणुकंपा भणती कि काहिसित विणऽत्येण ॥४तो बचते वणीए भणाहिर अन्य पयरहा मज । नेणाऽऽगर्नु भणितो तो सेसि बेनि अह इको ॥५॥ कत्तो जत्यो अह ! कि सउणी रुवाए इहं हगती। बीओ चंगेरि भरेतु णिग्गतो गनुलयाणं तु ॥६॥ मिहसु जावइएहि कजन्ति गहित तेण जावऽहो । नितियम्मि हायणम्मी कि गिव्हामोति ने बेभित ॥ ७॥ भणितो सउणियन्तो तण कई बाथ रूत कप्पाल। मेहगुलधणमादी अंतो णगरस्स ठायहि ॥ ८॥ वितिओ यतहि मणिओ सवादाणेण गिह तणकट्ठणगरबाहिहा ठावय गहिए णपरिच वासासुं॥९॥ उदए गेहेसु पलिते दहद ततो उजगरे। तणकडाणं जो अइच महाघो तुं सो जातो॥२४९०॥ ददमियरस्स सर्व ताहे सो गंतु भगति आयस्यिं । उच्छाइमा अहो हं किह य ण णात समं तुम्भे ॥१॥ कि सउणिया णिमित हयेनि अम्ह?ति भणति मित्ती। होति कयाइ नहपुण्णाह मट्ठ पातुं नयी खामे ॥२॥ एमादिणिमित्तेहिं उच्पाएन्तम्मि अत्ययाण भवे। सो एस्सियों पुरिसो अभुढेजा जइ कयाइ॥३॥ सस्स गुण उपहाणा तम्सिखेसम्मि जाप संचिक्स। एस चिय अगवट्ठी जमणुवठवणा वहिं खेत्ते ॥॥ तूण अण्णखेले तस्स उपहावणात कायाालहि गोषहा सेले कि कारण मष्णती सुगम् ॥५॥ पुषम्भासा मेसेज किंचि गोरख सिमेह भययो वा । ण सहति परिस्सहंपिय गाणे * कच्छलो ॥६॥ तेण तु सहितं चाणे गद्देन्ती तस्स भावलिंग तु। देना पकारणम्मी असिवोमादीसु सप्पिहिति ॥७॥जय मुथति असहातो सहितं पुट्टो तु भणति वीसरिय। जवानि उत्तिमट्ठ देनाही लिया तत्वेन ॥८॥ एवं ता ओसणे मिहत्य
पुण दातभावलिंगाई । दोणिबिणचि विनंती दिनेज व उत्तिमम्मि ॥९॥ एवं अत्यायाणे जे पुण सेसा हवति अणवहा । साहम्मिमणपम्मियनेणादी ते उभयणिजा ॥२५००॥ * का पुण भयणा एत्थं? आहारे उपाहिनेण अचित्ते। लहुगो लहगा गुरुगा अणबहुप्पोकजादेसा ॥१॥ कह पुण आएसेणं अणचट्ठो होइम णिसामेह। अणुवरमंतो कीरति अहवा उस्स-2
दोसोन ॥२॥ अहना भिक्खू पाचति एतेमु पदेसु तिचिह पच्छिल। णवमं पुण बोद्धव्वं अभिसेगे सूरिणो दसमं ॥३॥ तुम्मिवि अवराहे तापमई व दिगए दोण्हं । पारंचिएविणपर्म अभिसगे गुरुल्स पारंची ॥४॥ अहया अभिक्खसेवी अणुवरम पावती गणी णवमं। पाति मूलमेच तु अभिक्खपडिसेविणो सेसा ॥५॥ अत्वादाणे ततितो अणचट्ठो खेनओ समक्खातो । गच्छे बेब बसंता मिहिजति अबसेसा ॥६॥ अहवा-अभिसेओ सबेसु य बहुसो पारंचियाचराहेसु। अणवसृष्णापतिसु पसनमाणो अणेगासु ॥ मू०८८॥७॥ अभिसेगो उज्झाओ पुणो पुणो होति बहुससदो ऊ। पारंचियापराहे आकलति सबसदोतु ॥८॥ अणवठ्ठप्पावत्ती उसेवए णेगसोनि बहसो त। गंतरगाधाए सो अणबडायोनि कीस तु ॥९॥ जुनं नावऽणबड़े दिजति अणचट्ठमेव अभिलेंगे। पारंचियाचराहे पने किह पावती णवम ? ॥२५१० ॥ भणति जहणवदसमे आवष्णस्सावि भिक्गुणो मूल। दिनति नहाभिसेगे परं पदं होति णमं तु ॥ १॥ कीरति अणवटुप्पो सो लिंगमरवेत्तकालयो तवओ। लिंगेण दर मारे भणियो पापणाणरिहो । मू०८९॥२॥ अप्पडिविरयोसष्णो ण भायलिंगारिहोऽणवट्ठयो। जो जेण जत्व सति पडिलिदो नत्य सो खेने।मू०९०॥३॥ जत्तियमेतं कालं तवसा उजहष्णएण उम्मासा। संवच्छरमुकोसं आसानी जो जिणादी ॥ मू० ९१॥४॥ वास बारस वासा पडिसेवी कारणे तु सबोधि। यो योक्तरं वा पहेज मुशेज वा सव्वं । मू०९२॥५॥ बंदातिणय बंदिजानि परिहारतवं सुदुचरं चरति । संघासो से कप्पनि मालवणादीणि सेसाणि ।मु०९३॥६॥ परपक्रख सपक्खे बाणचि चिरयो तेणगादिदोसेहि। अप्पडिचिरयो अहना हत्यायालादिसु पएसु पाओसनमाइया तु अणुक्रया दो सालि. गसहिया ऊ। अणबहुप्पा नेऊ कायदा भावलियोणं ॥८॥ कालता अणवठ्ठप्पो अणउवस्यदोसो जत्तियं कालं। सो अणपट्टो कीरती जनियमेतं तयं कालं ॥९॥ नवमणवडो दुविहो १०५९जीवकल्पमाप्यं -
मुनि दीपरतसागर
अनुक्रम
[८७]
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आगम
(३८/१)
प्रत
सूत्रांक
[९३]
दीप
अनुक्रम [१३]
"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं )
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मूलं [ ५३ ]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
आसायणयाय होति पडिसेबी एकेकोविय दुद्धिहो जहणओ चे उकोसो ॥ २५२०॥ तप जणवडाऽऽसायण जहण छम्मास वरिसमुकोर्स के पुण आसाएंती! जिणमादी जा महि इदीयं ॥ १ ॥ पटिसेवी अणवट्टो जण सरिसं तु नारकोसा। किं पुण पडिसेपनि नृ? तेण्णादीया पदा सच्चे ||२|| कारणमादिपदा तू उवरि बोच्छि अरुण परिहारं बंदणमादी व पदा समासयो है इमं वोच्छं ॥ ३ ॥ परिहरणं परिहारो आलावणमादि दसहि तु पदेहि सेहादिएवि वंदति सो पुण पनि दणिजो तु ॥ ४ ॥ केरिसगुणसंजुत्तो अणवो कीरती? इमं गुणसुः संघननचिरिय आगमसुत्तस्यचित्तीय उपवेया ॥ ५ ॥ उवरिमतिगसंघयणी सत्रगुणो केवल जियणिही देजा से सहल अणव वाचि पारंची ॥ ६ ॥ वदपुष्कत्यो साइब उग्गमधितिकयकरणो । परिणामसमग्गोत्तिय अब सि दायां ॥ ७॥ एवं तु गुणसमग्गो परिनसेडिं तु गड भिरणं वा पौराणियगुणसेटिं निरवयवं सो तु पुरेति ॥ ८ ॥ सो वंदति सेहादिवि परमतितयो जहा जियो चैव विहरति बारस वरिसे जणवटुप्पो गणे चैव ॥ ९ ॥ तस्स व परिहार पडिवजतस्स कीरउस्सग्गो संघारणभीए आसस जसमत्यकरणं च ।। २५३० ।। कि कारणमुस्सम्म ? भणति हाण जाणणड़ाए भयजणणडाय तहा विया ॥ १ ॥ कापट्टितो अहं ते अणुपरिहारी य एस गीजो ते । पुत्रं फतपरिहारो तस्सऽसतिऽण्णोषि दढदेहो ॥ २ ॥ एस तवं परिवजति न कंचि आलवति मा णु आलवा अन्तचिन्तगस्सा पापातो मे ण कायो ॥ ३ ॥ ताहे व परिहरिजति गच्छेणं सोप परिहरति गच्छं । अपरिहरन्ताऽऽरोण सहि पाएहिं इमेहिं तु ॥ ४ ॥ आलावण पडिपुच्छण परियद्वाण बंदणग मने । हण संघाडग भन्तदाण संभुजणे चैव ॥ ५ ॥ जा संघाडी ता तुलओ मासो तु होति गच्छस्स लगा य भगदाणे संभुंजण होतयाता ॥ ६ ॥ संघाओ तु जाव गुरुओ मासो दस तु प्रयाणं भत्तस्स दाण संभुंजणे य परिहारिए मुरुगा ॥ ७॥ कितिकम्मं च परिच्छति परिणा पडिपुच्छ देतिय गुरु से सोऽविय गुरुवचिति उदन्तमवि पुच्छितो कहने ८ ॥ एवं वनाए उविधाएं भयं तु क कि नु मए एक णित्थरिपनि कालो ९॥ नाहे आसासनी आयरिओमा तु एवं सेवी अणुपरिहारी एस य अहवा कापड़िती एसा ॥ २५४० ॥ किंचि पाहि समएस काहिहिंडिसीय अणुपरिहारण बसदि । १ ॥ एवं भणि तु संतो सासति में चाहे रिति किं पुण होआसासो भणति इणमो सिामेहि ॥ २ ॥ जह कोति जगद्रपटि जति भाति एस हा मतो करतो तो मुंचति अंगाई पच्छा मरती य सो ताहे ॥ ३॥ अह पुण भणति एवं मा बी एस आणिया रज्। उत्तारिजसि एवं आसासों से पति नाई ॥ ४ ॥ एवं दिवुज्झते राया रुढी व कारती होता। सोनि जति विषोसिनि भए तो विराएजा ॥५॥ अह भनि मा बीभेराया असमिक्लिए अकले या। गवि किचि करेगी मोइजेहिसि व जाससति ॥ ६ ॥ एवासासो तस्सवि होती आसासियम्स संतस्स इस पविणो सो ऊ बहइ हूँ उम्मं तवोकम्मं ॥ ७ ॥ तो उम्मेण तवेर्ण सो जा लादुम्बनसरी ण नरेद्राणादी कार्ड ताहे इमं मणति ॥ ८॥ उद्वेज निसीएला भिक्स हिडिल मंडगं हे कुविततिबंधवाविव तुसिणी संघाड़ी तो कारे ॥ ९ ॥ वितियपय अच्छा पेसेजा बंद अयातो गेलणे उभयस्स व कुजा करणिज जयणा ॥ २५५॥ गच्छा गुरु गुरुअणुपरिहारिए समप्येति अणुपरिहारी परिहारियरस देतेस जया तु ॥ १ ॥ सोया करेल ते जगाद परंपरेण एमेच गुरुणो एमागिस्स व अण्णऽसतीए करेजाहि ॥ २ ॥ साह निणिकुलादपितो की तु उपठाण न भवे केपी मिहिषेस कानूणं ॥ ३ ॥ मिहिनेतमकाऊ उपवेन्ते होंति चउगुरुगा आणादिणों व दोसा पाव अहवा इमे दोसे ॥४॥ वत्थंएगे व्हाणविवम मेन परिसा धम्मं गुणेश कणा पुणी दिवसा ॥५॥ किं तस्स तु मिहिने किं परथकिंतु किंवा परिसा धम्मो से कहिए त ? ॥ ६ ॥ ओमामिला ण कुञ्चति पुष्णोषि सो तारिखं अनीयार होति भयं नेहाण व गिहिए धम्मया चैव ॥ ७ ॥ नित्यगर पचयण सुतं जायरिय गणहरं महिद्दीयं (दृढाई)। आसाएन्तो बहुसो आभिणिदेसेण पारची ॥ मृ० ९४ ॥ ८॥ हि पुण आसाएती अबाया यह जं सिं केरिस तु अण्णो ? भण्णइ इणमा निसामेहि ॥ ९॥ पाहुडिय उवजीवति जाणतो कि भोगं? अजुस्थित अतिकक्सड देसिया परिया ।। २५६० ॥ अव एवमादी अनि परिमानितिलोग महियाणं जनि भगति कीस कीरति कारमादीयं ॥ १ ॥ जोषियों ने सर्व अति अकुतो चंद्रमादीयं नित्यमरासायना एसा ॥ २ ॥ अनादिसंघमहिला संघपरिणीए अमेि संघा सियाटिकादी ॥ ३ ॥ काया क्या यने थियने व पमाय अप्पमाया य मोक्लाहिगारियाणं जोतिसविज्ञाहिं कि वो? ॥४॥ इडिटरससानगया परोवदेसुजया जहा मखा जत्तपोसणारया आयरिया जह दिया चैव ॥ ५॥ अजय विहारं देसेन्ति परेसि सतमुदासीणा उवजीवंति व इटि भीगा मांनिय भणति ॥ ६ ॥ गणहर एवं महिदी महावस्सी व वादिमादी या तित्थगरपदमसीसा आदिम्हणेण गहिला वा ॥ ७ ॥ सा दुह देस सबै सम्मी एगदेसमादीया जं वयनि सउदो ससि वाच सदेसी ॥ ८ ॥ तित्थकर संघ या देवावि असणं आसाएन्ते चरिमं सेसे तुगुरू देसे ॥ ९ ॥ स वाऽसानो पावनि पारचितं तु सो ठाणं एवं पुण सचरिती से स य (२६५) १०६ जीनकन्यायं -
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भाष्यं [२५२०]
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [९४] ------------- ------------- भाष्यं [२५७०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
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प्रत
सूत्रांक
[९४]
A
अचरिती ॥२५७०॥ तित्यगरपढमसीस एकची सादयंतों पारंची। अस्पस्सेय जिणिंदो पभवो सुत्तस्स सो जेणं ॥२॥ आसायणपारंची एमेसो वण्णितो समासेण। पडिसेवणपारंची एतो वोच्छं समासेणं ॥२॥ जो पसलिंगे दुट्ठो कसायनिसएहिं सववहजो या रायग्गमहिसिपडिसेवजो य बहुसो पगासो य॥ मू०९५॥३॥ पडिसेवणपारंची तिबिहेसो चषिणओ तु सुत्तम्मि। हादीहि पवेहि समासओह पवश्वामि ॥४॥ हो य पमत्तो या अग्गोण्णासेवणापसत्तो उ। एतेसि विभागं तू बोच्छामि जहकमेणेव ॥५॥ चिहो य होति बुडो कसायो य विसयहो या दुविहो कसायदुडो सपकवपरपक्लचतुभंगो ॥ ६॥ सासवणाले मुहर्णतए य उलगच्छि सिहरिणी घेष । एते सपक्खजुहा एतेसि परूषणा इणमो ॥७॥ सासवणाले लखें गुरु उंदिय साय सवितर कोहो । खामण अणुवसमन्ते गणिं ठवेत्तऽण्यहि परिण्णा ॥८॥ पुच्छतमणक्खाए सोधणयों गंतु कत्व से सरीरं ?। गुरु पुषकहित वाइय पडियरणं वन्तभंजणया ॥९॥ मुहर्णतयमालोयण आणियमुकोस गहित गुरुणा या कुविएण णिसी गर्नु गलए लइओ य पासुनो ॥२५८० ॥ सम्मूटेणियरेणचि गलए लइओ उ तो मता दोऽवि। अन्णो पुण सिबतो अत्यमिए गुरूहि जहमणितो ॥१॥ अत्यमियम्मिचि सिसि उलुगसरिच्छछि तो पदे रसितो । नुह उपखणामि अच्छी खामिजतोऽपि पकिन पसिए॥२॥तो ठविय गणिं गच्छे मनपरिष्णं करेति अण्णगणे। जह पदमी णपरि हं उलुअच्छीउत्ति टोंकेति ॥ ३॥ अवरोचि सिहिरिणीए इंदिय सबाइयतों उम्भिरणा। तत्वेष तू
परिण्णा ण गच्छती णकर अण्णस्य ॥४॥जम्हा एते दोसा सम्हा णवि गेण्डियायं गुरुणा। एगरसेव तु सर्व अण्णायायारसीलस्स ॥ ५॥ गहणग्मि विही इणमो जति गहिया मत्तगाल अनुसनेहिं । तेसि णिमंतेन्ताणं अलाहि पजन्तमो ति ॥६॥णिबन्धे योक्यो सबसि गेहए ण एगस्साससिपि ण गेहति मितियाएसेण गहियपि ॥ ७॥ गुरुभत्तिमं जो यमणाणु
कुलो, लो गिण्हति णिस्समणिस्सयो वा। तस्सेष सो गेहति णेतरेसि, अलभगाणस्मि व थोच पोचं ॥८॥ सति लामम्मि न गेहति इतरेसिं जाणितृण णिबंध। मुंची य सायसेस 3 जाणति उक्यारमणियं च ॥९॥ गुरुसंसढ़परिव पालादसतीए मण्डलिं जाति। जो अण्णायारमनग गिलाणनुवरिततेऽपि ॥ २५९० ॥सेसाणं संसाईन एम्भई मंडलीपदिमाहए। पत्ने गहितं छुम्मद उम्भासण लंभ मोचूर्ण ॥१॥ पाहुणगट्टा व तयं घरेनु अधि वाहट विनिचंति। णचि मुंजण विहि अविही गह इति गहणेण दोसते ॥२॥ एते सपक्सडा परपक्से उदायिमारगादीया। परपक्ससपपसम्मि य पालकादी मुणेता ॥३॥पालको तु पुरोहितों संदगपमुहाण जेण पंच सपा। पुधि विराहियेणं ति पीलाविता जतिणो॥४॥मुणिमुख्यतित्वम्मी पाएण पराविजो स पुषितु। संदगरण्णो ताहे पावोस पोसमावग्यो ॥५॥ परपक्सो परपक्से सयादी अभिमरा जहा केति। बहपरिणया ब वहगा भणिता यत्तारि कुट्ठते॥६॥ एतेसि चतुदंपी पच्छित्तमहाविहि परस्सामि। जे सासपणालादी लिंगविवेगो भवे नेसि ॥ ७॥ जोऽपि सपक्सो राधावियाण पहपरिणो व बहनों वा। सो लिंगतो पारंची जोऽपि य परिषदए ने तु॥८॥ सप्णी असणी वा जो परपक्से सपनसे दुडो तु। तस्स णिसिद लिग जइसेसी वापि से देना ॥९॥ परपक्रयो परपक्से रायमादीपड़ों जोऽपि भवे। तस्स सदेसे ग कप्पति कपड़ अण्णम्मि उपसंते ॥२६०० ॥ एसो कसायबुद्धो विसयपदुई ददाणि पोछामि। तसवि सपासपरपसओ प चतुर्भगो तह अंग ॥१॥ संजति कप्पठि पढमो सेनातरि अण्णातिस्थिवी बीजओ। परपकले संजतीए उमयपरो होति उचतुत्यो॥२॥लियोण लिगिणीए संपत्ति जति णिगच्छती पायी। णिस्याउगणिपंप आसायणओ अबोही य ॥३॥लिमेण लिंगिणीए संपत्ति जो णिगच्छती पायो । सजिणाणऽजातो संपो आसादितो तेणं ॥४ा पावाणं पायरो बठूण ण वहाए हु(स)साहूर्ण। जो जिणगुंगषमुरं गामिऊण वमेष परिसनि ॥५॥ संसारमणवयमा जातिजरामरणवेयणापउ। पावमलपडलरमा नमति मुदापरिसणेणं ॥६॥ एसो पदमगमंगो पारचियमेश्य होति पच्छिन। वित्तियगर्भगम्मितहा अणुपरयम्मी भने चरिमं ॥ ७॥जस्थुष्पजति दोसो कीरति पारंचिओ स तम्हा उ। सो पुण सेचि असेनी गीयमगीयो व एमेव ॥ ८॥ यसहि णिवेसण बाड़ग साही तह गाम देस रन या कुल मण संघे णिजहणाएं पारंचिओ होति ॥९॥ उपसंतोऽपि समाणो वारिजति तेमु तेसु ठाणेसु । हंदिर पुणोवि दोस नहाणाऽऽसेवणा कुणति ॥ २६१०॥ जेस बिहरति ताओ यारिजति णवर तेसु ठाणेसु । पढमगर्भगे ताई सेसेसुबिताई ठाणाई ॥१॥ इत्यं पुण अधिगारो पदमगभंगेण उभयबुद्धण। उचारियसरिसाई ससाई विकीवगहाए ॥२॥ इति एस अमिहिओत उभयपाहो य रायपहगो या रायामहि सिपढिसेवो उ अहुणा इमो होति ॥३॥ रायस्स महादेवी अहवा जा जस्स होतिहा। सा तस्स होति अग्गा असा पहाणति एगवा ॥४॥ पडिसेचति जोत पुणों पुणो होति बहुससहो उ। लोगपगासो अहवासो पावति चरिमठाणं तु॥५॥ चस्सदा अण्णाणचि जाहासा हुनेसि होजग्गा। जुपरायादीआर्ण तेसिपि जहेब राइस्स ॥ ६॥ इयरमहिलामु चरिम ण विजनी कीस ! एक चोएति। मण्णइ बहुआऽवाया इत्तराखं अप्पणो व ॥ ७॥ रायस्स अगमहिसीएं अप्पणी कुल गणेवसंधे ना। पत्याराई दोसा पागतमहिलामु तस्लेव ॥ ८॥ वतलोचों सरीरे वा दोला ण हु कुलगणादिपत्यारो।एतेण कारणेणं इतराखण होति परिमपदं ॥९॥ दुखेसो पारंपी १०६१ जीनकायमाय -
अनुक्रम
[९४
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RAatoyotatsA
करू
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"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं )
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मूलं [१५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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भणितो अदुवा पमत वोच्च्छामि सो कलसविकहाविकटे इंदिय विहाय पंचविहे ॥ २६२०॥ कोहाति च कसा विका पुण इत्यिमादिया चउहा पुन्माला पियडं इंदिय सो यादिए पण ॥ १ ॥ पोग्गल मोदग फरुसग दंते वडसालगंजणे चेय बीनदी आहरणा वोच्छामि विभागमेतेहि ॥ २ ॥ श्रीणदिमहादोसा अण्णोष्णासेवणापसत्तीय परिमाणाव नि बहुसोय पजए जो उ । मू० ९६ ॥ ३ ॥ जह उदमम्मि घर वा वीणम्मी गोलम्भए किंचि इदं चित्तं भणति से चीणं तेन भीणी ॥ ४॥ पिसितासि पुचमहियं विगिचियं दिम्स तत्थ णिसि गंतुं । अण्णं तु खायति उवस्सतं स ति ॥५॥ मोद्गमत्तमल मंतु कवाडे परस्स णिसि खाइ माणं च भरतृणं आगजो आवासए विवडे ॥६॥ अपरोऽनि फरसमुंदो मतियपिंडे व छिदिउं सीसे एमन्ते पबिन्धति पासुत्ताणं वियडणा य ॥ ७ ॥ अवरोषि पाडिओ मत्तत्थिणा पुरकवाड मंतृणं तस्खणित दन्ते वसही बाहिं विपडणा तु ॥ ८ ॥ उष्मामग वडाले पट्टिओ कोइ पुर्व वणहत्थी बसालमंजणाऽऽणय उस्सम्गाऽऽलोयण पभाए ॥ ९ ॥ तरसोदयकालम्मी हवती जं केसवरस अदबलं। गवि देति अणनिसेसी लिंग अपि केवली होजा ॥ २६३० ॥ मातम्मि पणजित मुय लिंग णत्थि तुज्झ पारितं । देसवय दंसणं वा गिव्ह इच्छं रमणि ॥ १ ॥ अह च्छति तो संघ लिंग हरई ण हरति सि एगो मा गच्छे पदोस उइडेन्तसती पासुतं ॥ २॥ दिपमत्तो एसो पारंची लिंगतो समक्खातो कुणमान अण्णमण्णं पारंचीय अतो वोच्छं ॥ ३ ॥ करणं तु अष्णमण्णं समणाण ण कप्पती सुचिहियाणं हि करण अष्णमण्णं ? भण्णति इणमो णिसामेहि ॥ ४ ॥ आसयपीसयसेवी केई पुरिसा दुवेदगा होन्ति तेसि लिंगवियेगो कानको होत शियमेणं ॥ ५ ॥ चरिमं अंतं भणति तं पुण पारंचियंति गात पारंचियावराहे पुणो पुणो सजए जो तु ॥ ६ ॥ चीणदिमादियाणं सोहि कोच्छे पुणोवि सज्ञेसिलिंगाणं कमसो एत्वं इमा हाँति गाहाओ ॥ ७॥ सो कीरति पारंची लिंगाओ लेत कालओ तवतो संपागडपडिलेवी लिंगाओ श्रीणगिही य ॥ मू० ९७ ॥ ८ ॥ यहिणिवेसणवाडगसाहिणीओ पूर देसरजाओ। खेत्ताओ पारंची कुगणालयाओ या ॥ मू० ९८ ॥ ९ ॥ जत्थुप्पण्णो दोसो उपस्थिति व जत्थ गाऊ तनो तत्तो कीरनि सेनाओ खेनपारंची ॥ मु० ९९ ॥ २६४० ॥ जन्तियमेतं कालं तवसा पारंचियस्स उ स एव काल दुनिगण्यस्सवि अणवटुप्पस्स जोऽभिहितो ॥ मू० १०० १॥ आसातण पडिसेवण दुह अणव जो भने कालो । पारंचिएव सो चेन होति उकोसग जहणी ॥ २ ॥ पारंचिया उ एते तिष्णिवि सामण्णयो विणिहिद्वा एतो जो जारिसतो बिसेसमेसि चोडामि ॥ ३ ॥ दुद्वे य पमने या अण्णी
सेवणास य एतेसि निहंपी बिसेसमेतो पत्रक्खामि ॥ ४ ॥ तहियं तु विसयदुझे सपक्वपरपक्वतो व जो होजा सो कीरति पारंची सेनेणं नृण लिंगेणं ॥ ५ ॥ अणुवरमंतो कीरति सेसो जियमेण लिंगपारंची से लेण य लिंगेण य पारंची अनिहिता एते ॥ ६ ॥ किं एते चिय भेया पारंबीए उपाहु अण्णेऽवि ? भनि नवपारंची अष्णो हु केरियो स खलु ? ॥ ७॥ इंदियपमापदोसा जो तू अवराहमुत्तमं पत्तो सम्भावसमाउदो ज य गुणा से इमे होंति ॥ ८॥ वइरोसहसंपतणो वितीय जो कुसामाणो णवमस्स नविस्त इत्येहिच जोहो ॥ ९ ॥ खुसीहतवादीहिं भावितो जो य इंदियकसाए णिग्धेत्तृण समत्यो पवयणसारे अभिगतत्य ॥ २६५ ॥ तिस्स सिमेोवि जस्स णय भावो । णिजुहणाए अरिहो ऐसे हिना पि ॥ १ ॥ एयगुणसंपत्ता पावति पारंचियं तु सो ठाणं एयगुणचिप्पमुळे नारियम्मी भये मूलं ॥ २ ॥ पारंचियं तु पावति आसाएन्तो तब पडिसेबी एकेको होति बुढा जहरण उकोसओ चेव ॥ ३ ॥ आसायणो जष्णो उम्मासुकोस पारस तु मासा पास पारस वासा पडिसेवी कारणे भविओ ॥ ४ ॥ जति होला आयरिओ तो गणणिक्लेवमित्रं कर्तुं गंणं अण्णगणं दशादि सुभे विगटणा तू ॥ ५ ॥ एागी खेत्तवहिं कुणति तवं सुविपुलं महासत्तो अनलोचनमायरिओ पतिदिणमेगो कुणति तस्स ॥ मू० १०१ ॥ ६ ॥ ओलोवर्ण गवेसण मायरिओ कुणति चिकाचि खेतबहिचिट्टियस्सा इमेण विहिणा पवच्खामि ॥ ७ ॥ उभयस्मि दातृण स पाढिपुच्छ, वो सरीरस्सय पमाणि आसासनित्ताण तोकिलतं तमेव गच्छं पुणरेन्ति घेरा ॥ ८ ॥ असहू सुतं दाउ दोषि अदा व गच्छति पदेवि संपाडो से मतं पार्थ या गातिमग्गेणं ॥ ९॥ पारं चियस्स तहियं तं वह्माणस्स होत गेलणं ताहे से पडिकम्मं ताहे पयले काय ॥२६६०। आहरति भत्तपाणं उब्वत्तणमाइयंचि से कुणति सतमेच गणाहिबई वेयाचचं जहत्थामं ॥ १ ॥ जो उ उबेहं कुशा आयरिओ केणती पमाएणं आरोगण तस्स भये गिलाणमुत्तम्मि जा भणिया ॥ २ ॥ अह पुण ण तरेश गुरु गंगेलणमादिहिं तहिये। कालुहे दुवा कुलादिकज्ञेणवणेण ॥ ३ ॥ अभिसेयं तो पैसे अण्णं गीयं व जो हि जोग्गो पुट्ठो व अपुडी या सोविय दीवेति तं कज्जं ॥ ४ ॥ सो य समत्यो होजा संपाडेतुमिहं तस्स फणस्स । स्वीरादिलद्धिजुत्तो विज्ञादिगजतिसएहिं च ॥ ५ ॥ जाणता माहत्यं सतमेव गुरू वदंति तं जोगे। अस्थि मम एत्थ विसतो अजाण ते व सो बेति ॥ ६ ॥ अच्च महाणुभावो जहागृह गुणसागरी संघो गुरुपि इमं कर्ज में पप्प भविस्सए लहूयं ॥ ७॥ अभिहाणहेतुकुसलो बहुसु अणिराइओ विदुसमासु मंतृण रायमवणं भणाइमं रामदारिहं ॥ ८॥ पडिहाररूपी ! २०६२जीकायं -
मुति दीपरत्नसागर
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मलं [१०१-१०३] --------------------------------- भाष्यं [२६६९-२७११] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [१०१-१०३]
भण रायरूची, तमिच्छर संजतरूवि बटुं। णिवेचतिताण स पस्थिचस्स, जहिं णिचो तत्य तयं पवेसे ॥९॥ तं पूयतिताण सुहासणस्थं, पुच्छितु राया गतकोउहयो। पण्हे उराले असुए कयाई, स याचि आइक्वति पत्यिवस्स ॥२६७०॥ जारिसया सकादीण आयरक्सा गु तारिसो एसो। तुहराय! दारपालो तपिष चक्कीण पडिरूवी ॥१॥ अहारससीलसहस्सधारया
होन्ति साहुणो अयं । तं पति पडिरूवित्तं अतियारणिसेवणा पत्तो॥२॥ भिजूडो मि परीसर ! खेत्तेवि जतीण अच्छिण लभे। अतियारस्स चिसोहिं पकरेमि पमायमूलस्म ॥३॥ अचम्मकहा आतुहण पुच्छणं दीवणा यकजस्सा कि पुण हवेज कर्ज इमेहिं होजाहि एगतरं ॥४॥ वायपरायणकुविओ चेतियता संजतीगहणे। णिविसयादि चतुहवि कनाममा
हवेज एगतरं ॥५॥ संघो ण लभति कर्ज लवं कर्ज महाणुभावणं । तुम्भति विसजेमी सेविय संपोति पृएति ॥६॥ भणति व राया संघ तुम्भ कार्य करेमि अहमेयं । तुम्भेऽपि कुणा मन्न एयस्सेयं विसनेह ॥ ७॥ अम्भस्थितो सर्य वा रणा संघो विसजए तुहो। आदीमाऽवसाणे सो पावि हवेज सोहीए ॥८॥ देसं च देसदेस सर्व व बहेन अब मुचेना। छ.
भागो से देसो दसभागो देसदेसो तु ॥९॥ उम्मासबारबारसमासाचं बारसष्ट यसमाणं। एके दो वा मासा चउवीसा होति उम्भागों ॥२६८० ॥ अट्ठारस उत्तीसा दिवसा छत्तीस2मेव परिसं च । वावरिं च दिवसा दसभागेणं हवेजा वा ॥१॥ आसायणपारंची जहण्ण उम्मास मासों उम्भागो। छम्भागेण परिसे दो मासा हुंति णातबा ॥२॥ पडिसेषणपारंची भबरिसे दो मास होन्ति छन्भागे। परिमाण वारसद मासा चतुचीस उम्भागे ॥३॥ सभागेणऽद्वारस दिवसा छहं हर्वति मासाण । बरिसस्स तु वसभागे दिवसा छत्तीसई हॉति ॥४॥
परिसाण वारसण्ई बरिर्स बावत्तरि चहोरत्ता । दसभागेण हति हुएसो खलु देसदेसो तु॥५॥ एवं तस्स तु संपो तुडो देस व देसदेसं वा। मुंचेज पहेजा वा अवा सर्व वसोसजा |
॥६॥ अहव अगीयणिमितं अप्परिणामे य तस्स ववहारं । गवविह पत्थारेत्ता गेष्हमु एवं लहुसभत्तं ॥ ७॥ हत्यं तु भमाडेतुं वरिसेतुं जयविहंपि यबहार । ताहे भण्णाति एवं सो गेष्हसु *लहसायं एयं ॥८॥अणचट्ठप्पो तवसा तवपारंची य दोऽपि वोच्छिण्णा। बोडसपुषधरम्मी परेंति सेसा तुजा तित्यं ॥ मू०१०२॥९॥ पारंचिय अगवडा तवसा आरेण भरवाओ।
बोच्छिण्णा दो सि सेसा तु धरैतिजा नित्यं ॥२६९ ॥ लिंगेण खेत काले घरेन्ति पारंचियाऽणवट्ठा जे। लिंगेणं अणुसजाति दो भाचे यजा नित्यं ॥१॥ इति एस जीतकप्पो समासतो मुविहिताणुकंपाए। कहितो देयोऽयं पुण पत्तेसु परिच्छियगुणेमु ॥ मू०१०३॥२॥ इति एस अणंतरवो उडिही होति जीतकप्पो तु । जीतं आयरणिज कप्पो पुण उनिहोर इणमो॥३॥ आजीविषधरणाओ व अहब जीतं इमं मुणेयकं । जीतस्स तस्स कप्पो एवं जो जीतकप्पो सो॥४॥ सामत्येवण्णणाए य, उदणे करणे तहा। ओवम्मे जाहिवासे य, कप्पसहो तु वणितो ॥५॥ छेदणे बनणे चेब, कम्पसहो इहं कतो। जीयस्स पण्मणा जीतकप्पो तह छेदणं चेव ॥ ६॥ एवस्स जीयकप्पस्स समासो इति ई मुणेतबो। संखयो य समासो ओहोसि व होन्ति एगहा ॥७॥ सोमणविही तुजेसि सोमणविहिताबमुविहिता ते तु। तेसिं अणुकंपाए कहितो देयो य पत्तेसु ॥८॥सुतेणवि अत्येणवि जो पत्तो स खल जायफप्पस । जोग्गो भणितो इयरो होति अजोगोति णातको ॥९॥ पुणसहो तु विसेसणे किन्नु विसेसेति तिम्तिणादीय। एते तु विसेसेती विवरीया होन्ति पत्ता तु॥२७०० ॥ संविगऽचजभीर परिणामो जो यहोति गीयत्यो। आयरियष्णवादी संगहसीलो अपरितन्तो॥१॥मेहावी या बहुसुतो गुरुसमयी णिचमप्पमत्तो या एमादिगुणसमग्गो जीतस्स स होति पत्नोति ॥२॥जह तावडेजणिहसे अविकोवि सुवण्णायं मुणेत। तह अविकारी जो खलु आदी मज्मे व अवसाणे ॥३॥ एवं देना सुपरिक्खियस्स गऽनस्स जीतववहार। अणरिह देन्ताऽऽरोचण आणादीच पाचिहिती॥४॥ पंचमहायभेदो छकायवहो य तेणऽणुण्णाओ। सुहसीलणीयगाणं कहयति जो पवयणरहस्सं ॥५॥ आमे पडे णिहितं जहा जलते घड विणासेति। इय सिद्धतरहस्सं अप्पाहार विणासेति ॥ ६॥ मरेज सह विजाए, काले गं आगए वितु । अपनं तुण पाएजा, पत्नं च ण विमागए ॥७॥ वितियपए पाएनाअदाणादीहिं कारणजाए। बहुसो तप्पिस्सति वा व्यावसादिणा अम॥८॥अप्परगंथ मइत्यो इति एसो परिणो समासेणं । पंचमनो बबहारो नामेण जीयकापोनि ॥९॥ कपप्रहाराणं उदहिसरिच्छाण तह णिसीहस्स । मुतरतणविन्दुगवणीतभूतसारस जातको॥२७१०॥ कप्पादीए विणिविजो सुत्तस्येहिणाहिनी णितुणं । णिगदिस्सति सो एयं सीसपसीसाण महुअण्णो ॥२७११॥ जीतकल्पच्छेदसूधसभाप्यम.पीरविभोः२४६८ उपसिबाहि शिलोत्कीर्णसकलागमोपेतश्रीवर्धमानजैनागममन्दिरे शिलायामुस्कीर्ण शोपिनं चाचार्यानन्दसागरेणE
मुनि दीपरत्सागर
दीप अनुक्रम [१०१-१०३]
१०६२ जीतकल्पभाष्य -
भाग
जीतकल्प-छेदसूत्र [५/१] 'मूलं' परिसमाप्त:
मूल संशोधकः सम्पादकश्च पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब किंचित् वैशिष्ट्य समर्पितेन सह पुन: संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागरजी (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि
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[३८/२] श्री पंचकल्प (छेदसूत्रम्-५/२) भाष्यं
नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम:
"पंचकल्प" भाष्यं [संघदासगणिक्षमाश्रमण-विरचितं भाष्य] व्याख्या + महत् भाष्यं + लघुभाष्यं
[आद्य संपादकश्री] पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.
(किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता
परत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.,श्रुतमहर्षि)
28/07/2017, शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल ५
'सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि' श्रेणि भाग-२७
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“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
----------------- भाष्यं [०००१] ---------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [4/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
पेसलमायो त् बाहुजूच्छमा खनु चोस पुजा ल होति शिशूट अनुहाथ से
प्रत सूत्रांक [०००१]
दीप अनुक्रम [०००१]
IFIE
दामि भदवाई पाचरिमसगलसुचनाणी सुत्तत्यकारगमिसि दसाण कणेयवहारे। व्याश्येयं ॥१॥ कति णामणिकपणं, महत्वं पत्तकामतो।। आपकपमापणिज्जहरास भत्तीय मंगलबाएँ संथति ॥२॥ तित्वमरणमोकारो सत्यसा तु आइए समक्खाओ। पुण जेणऽसावर्ण णिजूदं तस्स कीरति तु॥३ सत्याणि मंगलपुरस्सराणि सुहसवणगहणधरणाणि। जम्हा भवति जति व सिस्सपसिस्सेहिं पचयं (साई)च॥४॥ मत्ती य सत्यकत्तरि तनो (तं कर) उवोगगोरवं सत्ये। एएण कारणे कीरा आदी णमोकारो॥५॥ पदि अभिवादयुतीए सुमसदो गहा तु परिगीतो। बंदण पूषण जमणं पुनर्ण सकारमेगहा ॥६॥ महन्ति सुंदरन्ति य तुलस्यो जत्य (स्स) सुंदरा माहासो होति महबाहु मोच्र्ण जेणं तुबालते॥७॥पाएर्ण लक्खिजइ पेसलमावो तुबाहुजुबलस्सा उवषण्णमतो गार्म तस्सेयं भरवाहति ॥८॥ अण्णेषिभरबाहु बिसेसणं गोत्त(ण)गण पाई। अच्नेसि पप्रविसिट्टे (पिय सिदे)विसेसणं परिमसगलसुतं ॥९॥ चरिमो अपच्छिमो खलु चोरस पुमा उहोति सगलसुत । सेसाण दासट्ठा मुत्तकर ज्वायणमे. यस्स ॥१०॥कि तेण कर्य ? सुतं, जे भज्यति तस्स कारतो सो उ? | मनति गणधारी हिंसासुर्य र पुधकतं ॥११॥ सत्तोषिय णिजूद अणुगाहदाय संपपजतीण। सो(तो) मुक्तकारओ खल स भवति इसकपपपहारे ॥१२॥ दिन भगवंत बहुमसुमरसाओमई । पवयणहियसुय(ह) केतु सुवणाणपभाचर्म धीरं ।।...२ लघुभायं ॥१३॥विसदों पुषमणिो नदितीत घेवणाममोहिं । इस्सरिवाइ गुण भगो सो से अस्थिति तो भगवं ॥ ४॥ भई कहाणति य एगह तं च सुपायं जस्स। सो होति सुबहुभदो सोभणमहो सुभदोति ॥५॥ खीरासवमादीणि तु सुभाणि मदाणि तस्स तुबहणि साह परलोए मदं तो सानोमदो॥६॥ जामोसहादितह परलोए होवऽणुत्तरसुरादी। सुकुडप्पत्ती यतओ ततो य पन्छा व जाणे ॥७॥ मातित्ति भइमाइया माई गाणादीएहिं सो जम्हा। सो होति भरणामो कुणेति भदाणि वा जम्हा ॥८॥ पपयन दुवालसंग तस्स हितो जे करेतयोच्छिति। संपो नु परयण तू हितोपदेस जतो तस्स ॥९॥ केतसहो उसिए उसियं तुंग तु तस्स तु सुइंतु। इहलोए परलोए सो भगवं होति परमही ॥२०॥ बायणय पभावणया सुतणावगुणा बजे पदति लोए। विउसपरिसाएं मज्जो सुतणाणपभावणा एसा ॥१॥कि कारण तस्स को महया भत्तीय तू णमोकारो | जम्हा तेणं जूढा अम्ह हिपहाय सुत इमे ॥२॥आया-11 रदसा कप्पो पपहारो णवमपुषणीसंदो। चारित्तरक्षणवा सूबकडस्परि ठविता ॥३॥अंगदसा अण्णावि हु उवासमादीण तेण उ विसेसो। आयारवसा उइमा जेणेत्यं वणियाऽऽयारात्र ॥४॥ दसकप्यावहारा एमसुतासंध केड इच्छति। केई व दसा एक कप्पयवहार बीर्य तु॥५॥ वनागस्थानीयं णवमं पुर्ण तु तस्स णीसन्दो। परिगाल परिस्साबो एते दसकप्परवहारा ॥६॥ किं कारण णिजूदा चरित्तसारस्स स्क्रखणडाए । सलियरस नहिं सोही कीस तो होति निस्वयं ॥ ७॥ सूयकडूवरि ठविता जम्हा तू पंचवासपरिवाए। सूयफहमहिजति न तो जोगो होति सो तेति ॥८॥अणुकंपाऽनुच्छेदो कुसुमा मेरी तिमिच्छ पारिच्छा। कप्पे परिसा य तहा दिईता आदिसुन्नमि॥९॥ ओसप्पिणि समणार्ग हाणि गाऊन आउगालागं । होहिंतुवम्गहकरा पुषगतम्मी पहीणम्मि ॥ ३॥३०॥ खेलस्स य कालस्स य परिहाणि गहणधारणाणं च । बलपिरिए संघयणे सदा उच्छाहतो व॥...४॥१॥कि सेनं कालो या संकृयती जेण तेण परिहाणी। भाइ नसकुयंती परिहाणी तेति तु गुणेहि ॥२॥ मणिय तु समाए गामा होहिति तू मसाणसमा। इस कारण (खेले) गुणहाणी कालेवि उहोतिमा हाणी ॥३॥समए समए गंता परिहार्यते उ पण्णमादीया। दादीपजाया अहोर तत्तियं चेत्र॥ ४ ॥ दूसमजणुभावेन साहुजोग्गा उडामा खेसा । कालेषिय बुम्भि-ल क्वा अभिक्खणं हॉति डमरायल०२॥५॥ दृसमजणुभावेण व परिहानी होति ओसहिबलाणं । तेणं मणुयाणपितु आउगमेहादिपरिहाणील.३॥६॥संघयणंपिय हीयह ततो यहाणी य चितिथलस भवे। चिरिब सारीरवाल सपिय परिहाति सत्तं चला आ हायति यसबाओ गहने परिव(य)वणे य मणुयानं। उच्छाहो उनोगो अणालमत्तं च एगहा ॥ल.५॥८॥इय णा परिहाणि अणुमहद्वाएं एस साहूर्ण। गिजुडणुकंपाए दिद्रुतेहि इमेहि तु॥९॥ पगरणपेडणुकंपा बढविददेहिं होयगारीणं । जहओमें बीयभन्न रच्या दिणं जणवयस्स ।।.:.५॥४०॥ एवं अप्पत्तचिव पुजगत केडमा मरिहंति। तो उद्धरिऊण ततो हेडा उत्नारियं तेहिं ॥१॥मा बहु वोच्छिजिहिति चरणYओगोत्ति तेण निजूढान बोभिपणे बहु तम्मी चरणाभाचो भवेजाहि ॥२॥कह पुण तेण गहेर्नु दिष्णाई तस्चिमी तु विडतो । जह कोई दुरारोहो मुसुरभिकुसुमो तु कप्पदुमो ॥३॥ पुरिसा केड असत्ता तं आरोदण कुसुमगहणडा। तेसिं अणुकंपट्ठा कोई मसत्तो समाजो॥४॥घेनुं कुसुमा सहमहलहेतुगं गंपिउंदले तेसि। तह चोहसवत आरुडी भवाहतु॥५॥ अनुकंपडा गचित्रं सूयगडसमुपरि ठवे धीरो। तं पुण मुतोचएसेण च गहितंग समाए॥६॥ अण्णह गहिए दोसो असाह होति णाणमाईर्ण । केसबमेरीणातं चक्रवात पुषसामाए॥७॥ अहवा तिमिच्छओ तुऊणहिय बावि ओसहं दिजा। तेहिं तु (वहिंतू) कजसिद्धी सिद्धी विवरीयए भवति ॥८॥ पारिच्छ परिच्छितू पकापमादी दलनि जोगारसा परिणामावीणं तु दारु
गमादीहिंणावहिं॥..६॥४९॥ पारिच्छ आदिसुत्ने पुर्व भणिया तु जाउ बिहिसुने। सेलधणादी परिसा पूरताईय भणिहिती ॥५०॥ परिसादार मणि कापहार कमेण (२६६) । १०६५पत्रकापमाबा
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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक [००५१]
दीप
अनुक्रम [००५१]
“पंचकल्प” छेदसूत्र -५/२ ( भाष्य )
भाष्यं [००५१]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...... ...... आगमसूत्र [ ३८ / २], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
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इदाणिं किं पुन उकमकरणं बहुवत्तति णाऊणं ॥ १ ॥ किं पुण कप्पज्झयने वनिजति भण्णती सुणसु ताव जे अभिहिता उ जत्था वहियं ते ऊ समासेणं ॥ २ ॥ कप्पे पकप्पिए चैव कप्पणितिआवरे फासुए एसपिजेय, संजमे इत्तियावरे ॥ ७॥३॥ बालए बागए चैव चम्मए पहए तहा पम्हए किमिए चेव, धातुए मीसतेति य ॥ ८ ॥ ४ ॥ उवसंपया चरितस्स चरिने कवि इय? नियंठा कति पण्णत्ता ?, कहं समोतारणातिय ॥ ९ ॥ ५ ॥ ववहारे कस्स पण्णत्ते? कह पडिसेबणाविय ? देशभंगे कहं कुत्ते ?, भंगेतियाबरे ॥ १० ॥ ६ ॥ पच्छत् कइविहे कुत्ते, छट्टाणिलियावरे पंचाणे पहाणे, विद्वाणे इतियावरे ॥ ११॥७॥ उड्डाणे दंसणे वत्से, संजमे इतियाकरे। गाहणा य परितस्स, एमेता पडिबत्तिओ ॥ १२ ॥ ८ ॥ कप्पो उ होति दुविहो जिणकप्पो चैव थेरकप्पो व दुविहो उ कपिओ खलु दवे मावे य णायशो ॥ ९॥ आगमणोआगमओ दवम्मी कपिओ भवेदुविहो । आगमतोऽवणोआगमतो इमो होति ॥ ६० ॥ जाणगसरीर भविए तबतिरिते य होति णायको जाणग मयगसरीरं भविओ पुन सिक्खिही जो तु ॥ १ ॥ बतिरित्तो एगभवो बदाऊ अभिमुद्दों व बोदशे भावेवि होति दुविहो आगमणी आगमे चैव ॥ २ ॥ आगमओ उपउतो गोआगमओ य पिंडमाईणं गहगंमि कम्पिओ खलु पावेतुं च हाणं ॥ ३ ॥ जं जंजोग जतीर्ण आहारादी तहेब सेहा । एवं तु कप्पणिजं अपरिमाणा अकप्पम्मि ॥ १३ ॥ ४ ॥ आहारि पलंबादी सलोममजिणादि होति उवहीए। सेजाए दगसाला अकल्प सेहा व जे अन्ने ॥ ५ ॥ केरिसयं कप्पणिजं ? फायगं फामुयं तु फेरिसगं ? जीवज जं दक्षं तंपि य ज एसणिनं तु ॥ ६ ॥ दसदोसविप्यमुकं गहिय चसरेण उम्ममादीवि एवं तु साजोगं गिव्हंतो सजतो होति ॥ ७ ॥ अहवा सत्तरसविहो संजम जं वावि मुत्तछंदेणं मुंजति आहाराती विवरीयमसंजमो होइ ॥ ८॥ आहारस्स उ भेदा असणादी उबहिणो उ बालादी एसि तु परूवण बालयमादीणिमा होति ॥ १४ ॥ ९ ॥ बालेहि निष्कणं यालयमाणोट्टियादिर्ग होति बकेहि तु चिष्णं वागज सगनकमादीगं ॥ ७० ॥ चम्मं चम्म पीए पट्टो उण होतिमो मुणेयवो पत्थोग्गपट्टा तिरीउपट्टो य एमादी ॥ १ ॥ पहज हंसगम्मादि अवा कप्पासियं मुणेय कोसेजपट्टमादी जं किमियं तु पञ्चति ॥ २ ॥ भति सकरियो कंमिनि देसंमि तरुणते घड़ाए वह तो पूरयती ते घडयं चिपिए तंमि ॥३॥ संकोऊन कणयं हि तम्हा उ किजए सुतं ते वयं जं वत्यं भणति तं धातुतं णाम ॥ ४ ॥ दुगसंजोगादीहिं एएसि चैव पालयादीनं तं मीसयति भण्णति जह ऊमक्खो (दुहं खो० ) म्हियादीयं ॥ ५ ॥ वत्तव चसदेणं मेयपभेदा उ जेत्तिया तेसि । सुदेहेतेहि तू उपसंपण्णो हु सचरिती ॥ ६ ॥ अहवा पंचविहतो उपसंपय होतिमा समासेर्ण सुय सुहदुक्खे लेते मग्गे विणए व बोदशा ॥ ७ ॥ अहवा तिविवसंपय गाणे तह दंसणे चरिते थे। परितं च कतिविहं तू पंचविहं तं इमं होति ॥ ८॥ सामइयं वाणं च परिहारमुद्धियं चैव ततो यमुडुमरागं अहवायं चैव बोद्धवं ॥ ९॥ जहना वयसमिनादी सराग तह वीतरागमचाचि । वाइग खओवसमित उपसमियं वा भवे तिविद्धं ॥ ८० ॥ भेदा उ चसदे होति इमे णाणदंसगाणं तु खाइय खओवसमियं दुविहं णाणं मुणेयवं ॥ १ ॥ खइयं केवलनाणं खओवसमियाई सेसणाणाई । खइयं खओवसमियं उक्तमियं दंसणं तिविहं ॥ २॥ कस्तं चारितं नियंठ तह संजयाण, ते फतिहा? पंच नियंठा पंचैव संजया हॉतिमे कमसो ॥ ३ ॥ पुलए बस कुलीले होति नियंडे तहा सिनाए थे। एएस एकेको पंचविहो होति बोदडो ॥ ४ ॥ नानपुलाए वह इसने व चारित लिंग अहमुहमे एसो पंचविहख पुलयनियठो मुण यत्रो ॥ १ ॥ आभोगमणाभोगे वह संडे अहाहमे एसो पंचविहो नृ बसणियंठी मुणेयो ॥ २॥ दुविहो होति कुसीलो पडिलेवणया नहीं कसाए य एकेको पंचविशेपबना तेसिमा होति ॥ ७ ॥ णाणपटिसेवणाए दंसण चरणे व लिंग अहहमे पहिरणाकुलीला पंचविहो एस गायो ॥ ८ ॥ पाण कसायकुसीले दंसण चरणे व लिंग अहमुमो एस कसायकुसीलो पंचविहो तू मुणेयो ॥ ९ ॥ पदमगसमयनियंडे अपदम चरिमे व तह अचरिमेय ततो व अहामुदुमे पंचमए होति णायते ॥ ९० ॥ पंचविहे सिणाए तू अच्छी तह असले अकमंसे दणाणदंसणघरे य होती चाउथे तु ॥ १ ॥ अरहा जिणे य केवल अप्परिस्सावी य होति पंचमए एते पंच किया सिणायस्स तु होति गायत्रा ॥ २ ॥ पंचविह संजावी सामाइय छेउवड परिहारे सहमे य अहखाए एकेके ते पुणो दुबिहा ॥ ० १७० ॥ ३ ॥ इतरिए आवकही सामाइयसंजए मने दुबिहो दुविहे व छेउब सतियारे णिरतियारे य ॥ १७१ ॥ ४ ॥ परिहारविमुडीए णिविसमा तहेब निविट्टे दुविहे य मुदुमरागे संकिस्संते विमुज्झते ॥ ० १७२ ॥ ५ ॥ अहवाओविय दुवो उम त्यो चेव केवली चैव। एसो तु संजतो खलु पंचविहो होति गावो ॥ ० १७३ ॥ ६ ॥ सामाइयम्मि उकए चाउजाम अनुत्तरं धम्मं तिविहे फासयनी सामाइयसंजतोस ॥ ल० १७४ ॥ ७ ॥ छेत्तृण तु परियागं पोराणं तो ठवेति अप्पाणं धम्मम्मि पंचजामे ओवद्वावणो स खलु ॥ ० १७५ ॥ ८ ॥ परिहरति जो विसुद्ध पंचा अणुत्तरं धम्मं तिथिहेण फासतो परिहारियसंजतो स खलु ॥ ० १७६ ॥ ९ ॥ लोभमणुं वेदितो जो खलु उक्सामज न खनओ वा सो मुहुमसंपराओ अहलाया ऊणओ किनि ॥ ० १७७ ॥ १०० ॥ १०६५ कायं
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [०१०१] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
(Aary479
प्रत सूत्रांक [०१०१]
दीप अनुक्रम [०१०१]
-उवसते खीणम्मि व जो खलु कम्मम्मि मोहणिजस्मि । उउमत्योव जिणो वा अहखाओ संजतो स खलु ॥ ल०१७८॥१॥ एतेसि समोतारो दुविहो सहाण वह परहाणे। बोच्छामि
आणुपूर्षि जो जत्य समोयरति तेसि ॥२॥ जहणुवसंपनणता सचेसि व पुच्छियथा उ। वाकरण जहाकमसो तेसि इणमो उ वोच्छामि ॥३॥ पुलगो तु पुलागतं जहमाणो जहद सो पुलागतं । उपसंपणे असंजम अहवावि कसाबसील तु॥४॥ उसो उबउस्सत्तं जहूती पडिसेवणं कसायं वा। संजमऽसंजम असंजमं च पडिबजती सोतु ॥५॥ पडिसेवणाकुसीलो विजहति पढिसेवणाकुसीलतं। बउस कसायकुसीलं पडिवज असंजम बाचि ॥६॥ अहवावि संजमासंजमं तु पडिवज्जती ततो सो उ । जोषि कसायकुसीलो चिजहति सो त कसायनं ॥७॥ पुलाव बाउसंवा अहवा पडिसेक्णाकुसीलं तु। पहिवन णियंठवा अहवावि असंजमं वाचि ॥८॥ अड्चा संजमसंजय उवसंपजे तु सो चुतो तत्तो। णिग्गंठे उणियंठत्त विजहति तत्तो चुनो संतो ॥९॥ उपसंपज कसायं सिणाय अहवा असंजमं वाचि। विजहति सिणायगत्तं सिणायगो ऊचुतो तत्तो ॥११०॥ उपसंपजाति तत्तो सिद्धिगति सो पहीणकम्मंसो । एसो तु नियंठाणं समुयारो संजयाणेत्तो॥१॥ सामादिसंजतो तु सामइयत्तं जहन्त किं जहति। किवा उपसंपजे? एवं पुच्छा उसबेसि ॥२॥ सामइयत्तं जहतीसामाइयसंजते चुते तत्तो। छेबुबठावणियं वा पडिवजाति सुहुमराग वाल०१७९॥३॥अहवावि संजमासंजमंच अस्संजमं च पटिबजे । छेदुवठवणीए पुण पिजहति से छेसुबहवणं ॥ ल० १८०॥४॥ परिहारविमुद्धीय अहवाची सो तु सुहुमरागं तु । जसंजम संजमऽसंजमं च पटियजती अहवा। ल० १८१॥५॥ परिहारविमुद्धीओ विजहति तत्तो चुतोविन चेच। उपसंपजति छेद अहवाचि असंजर्म सो तुल०१८२॥६॥ विजहति सुटुमसरागो ततो चुतो सुहमसंपरायसं। उपसंपञ्जति सामातिसंजमं छेदमहवाविल०१८३॥७॥ अहब अहक्सायन अस्संजममहब सोतु पटिवजे । अहखातसंजमो पुण अहवायत्तं विजहमाणो ॥ ल. १८४ ॥ ८॥ जहति जहफ्लायर्न उपसंपजाति सो चुतो तत्तो। सुहमंच संपरागं अस्संजम सिदिगतिमहना ॥ल०१८५॥१॥ एस समोवारो खलु अहवावि णियंठसंजएसंतु। संजयनिगंथेसु य अवरोप्परतो समोवारी ॥१२०॥ पुलगबउसाण दुण्हवि सामइच्छेवेमु त समोतारो। ओतरति कुसीलो पुण आदितसं चऊसुंपि ॥१॥ पिगंधसिणाता पुष समोतरते तु ते अहक्खाले। एवं तु णियंठा तु ओतरिया संजतेसु तु ॥२॥ पुलबउसकसी. लेसु सामइछेदा समोतरती तु। परिहारसुहमरामा ओतरति कुसीलएVतु ॥३॥ ओवरति अहस्खाओ णियसिणातएसु दोसुंपि । एमेव समोतरिता अण्णोष्णेसु जहाकमसो॥४॥ उत्तारे सबमहश्याणि णियमा नु सबदसु । ण तु सवपनवेहिं जम्हा सामादिए उदितं ॥५॥ पदमम्मि सबजीचा बीते चरिमेय सादवाई। सेसा महाता पुण (खल) तदेकदेसेण दव्याणं ॥६॥ एतेसि णियंठाणं आवष्णा तु संजयाणं च। ववहारो होनि दुहा पच्छिते आभवते य ॥७॥ पच्छिते पंचविहो आगममादी उ होति णायव्यो। कस्साभवति जनाधी? सचित्तादीन आभयो ॥८॥सावरा हिस्स ववहारो, अपराहो पटिसेवणा। पढिसेचणा य कतिहा. तीसे भेदा इमे भये ॥९॥ दप्पिया कषिया इनिहा पटिसेवणा। जपणाऽज. यणा कप्पी, जयना सुदो तु सेवतो ॥१३०॥ जयणासेची कप्पो दप्पो जयणाएं अजयगाए य। आवजति सदाण वरिणजति वित्थरो कप्पे ॥१॥ पडिसेवगस्स होती देसम्भंगो य सबभंगो य। अपराहे केरिसाए देसे सवेऽवि सो होतिः ॥२॥ पणगावी जाहेदो एलो खलु होति देखभंगो तु। मूलादि उपरिमेमू णायको सहभंगो उ ॥३॥ तस्स उ निमुदिहेत पण्ठिनं तस्स केत्तिया भेदा'। उहाणादीया खल परूवणा तेसिमा होति ॥४॥ उसु काएसुवएसु य छविह एगिदियादि पंचविहं । संघण परितावण उडवणे व निष्फर्ण ॥५॥ चहातु याणवते सणवते परितवंत य । तत्तो चियत्तकिये अहना बसाइयं चाहा ॥६॥ अहवा अतिकमादी चहा कोहाइयं च चवदाताणाणादिवारमादी होती तिचिहं च पग्निं ॥ ७॥ अहवा आहारोचहिसिजतियारे य होति तिषिहं तु । उग्गम उपायण एसणा यतिविहं तु एकेके ॥८॥ आलोषण पडिकमणे तदुभयमे न होति निचिहता सचिनाचित्तमीसम विविहं चेदं मुणेय ॥ ९॥ आवा सत्तविह नब दसहा बानि होनि पच्छिन । आलोय पडिकमणे मीस विवेगे य बोसग्गे ॥१४०॥ छग नवे यातना सबे तुबसिड सत्तम छेदो। अह विह छेद दुविहाँ देसे सने य बोडवो ॥१॥णयविह सबच्छेदो दुहर्सजमुबइपिजती मूल। काललरमित्तरे पुष खेतों बहिं च सभेदं ॥२।। अहवाष्णह दुविहेदं एगविहं वावि होज णाय । रागदोसा दोणी एगविहोऽसजमो होति ॥३॥ छहाणे इंसणेनी जो काए छबिहे ण सहहती। णस्थिण णिचादी वा छबिहमेयं तु मिच्छन्नं ॥४॥ धम्मस्थिकायमादी कालतारित उत्तु दवाति । जो नाईण सरहती उषिहमेयं तु मितं ।। II संजमों सतरसविहो उ सामाइयमादि अहव पंचविहो । गाहणता व परिनस्स गहण थिय गाहणा होति ॥६॥ किह पुण चरित्तगहर्ण होनाही? भषणती इमेहिं तु । वरम्गेणं आहवा मिच्छता होइ सम्मत्त ॥७॥ सम्मत्ताड चरितं अहना होजा इमेहि गर्ण नासवणे गाण विणाणे एमादी गाहण चरिने ॥८॥ अहवावी उबएसो एगह होति गाहणाउत्ति। तह उपदिस्सति जह ऊ चारित गेण्हती सो तु ॥९॥ अविराइणम्मि य गुणा दोसा य विराहणे चरित्तस्स । तह गाहि. १०६६ पजकल्पमाप्यं -
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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक [०१५० ]
दीप
अनुक्रम [०१५० ]
"पंचकल्प” छेदसूत्र -५/२ ( भाष्य )
भाष्यं [०१५० ]
[३८ / २ ], छेदसूत्र - [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित
आगमसूत्र
जति जतं (तू) ओगादो होति चारिले ॥ १५० ॥ णाने वह दंसणे व जातिग्राहण संसुया एया। एयातिं गाहिते गाणता वण्णिता एसा ॥ १ ॥ एमेता जा भणिता अहवा अहारणे चसदो तु। पडिवत्ती उनगारो वागरणं काचि पडिवत्ती ॥ २॥ एवं कप्पे वणिजती उ अ य बहुविहा जत्था अत्थेसु अणेयेसु य कप्पभिधाणं मुणेयवं ॥३॥ सामत्ये वण्णणा काले छेवणे करणे हा ओवमे अहिवासे य, कप्पसदो वियाहिओ ॥ १५॥ ०६ ॥४॥ सामत्ये अट्ट मासे वत्तीकप्पो तु होति गम्भगतो। वण्णण अज्झयणं तू कप्पिय जहमेगसाहूणं ॥ ५ ॥ काले हेमंताणं जह तु दसरायकप्पतिकंते छेदने जह केसे तू चउरंगुलवज कप्पेहि ॥६॥ करणे वत्तीकप्पिय अहो इमे जहा तु पुरिसेणं आइबचंद कप्पा हवंति जहसाणा धम्मी ॥ ७॥ सोहम्मकप्पवासी अहिवासे जह तु होति देवा तु । एते सामत्यादी जोएयथा इहं कप्पे ॥ ८॥ कप्पज्झयणमधीतुं अतियारविसोहणं समत्ये उ कतिविद्यायच्छत्तस्स परूवणा वण्णणा होति ॥ ९ ॥ काले उडुबदाणं वासावासं च बुद्धवासं वा वसती जहाहिं खलु उत्साववायसंत्तं ॥ १६० ॥ तक्सोहिमविकतं छिंदति पणगादिएहिं परियागं । कुणइय तहा पयत्तं जह तं दिष्णं वह सम्मं ॥ १ ॥ ओवम्मे जिणकप्पो जाणणगहणे य सो हवति गीतो अहिचासे मासादिमु ऊगतिरिते विमासा तु ॥ २ ॥ ससि कप्पाणं पण्णवर्ण परूवणा उ णवमंमिजासन उ सोयारं पुचगते या इहं वावि ॥ १६ ॥ ३ ॥ एतेसिं सम्वेसि उष्विह कप्पाइयाण कप्पानं पण्णवण परूवणता नवमे पुष्यम्मि णिहिद्वा ॥ ४ ॥ सोतारं पुण आसन होज इह कप्पि अहव नवमम्मि धारणगहणसमत्ये तहितं असमत्ये इह तु ॥ ५॥ कप्पानं वक्खाणं पुष्यगते वणितं समत्तं तु इह थोवगन्तिकार्ड न हु बहुमाणो ण काययो ॥ ६ ॥ दव्ये खेत्ते काले उम्महसंघयणधारणगुरूणं तंपी बहु मणि जं एगपदे पदं अस्थि ॥ १७ ॥ ॥ दुस्समजणुभावेणं हाणी विरियस्स ओसहीणं तु । दुलभाणि यदवाई जाई जोगाई तनुभावे ॥ ८ ॥ खेत्ताणि प (य) हाती बिहारजोगाई तदणुभावेण दुष्क्खपरकालो तेणणुभावेण मनुयानं ॥ ९ ॥ लदी उग्गहणम्मी संघवर्ण धारणा य परिहाति ण य सीसायरियाणं सत्ती वतुं च सोतुं वा ॥ १७० ॥ ण य संति बहू गुरवो जे बत्तारो य हुति अत्यस्स तेवि ण सव्यस्त हुं पसादसुमा (मुदा) भती तु ॥ १ ॥ इय जातुं परिहाणीं जं एगपदेवि एगमत्थपदं बहु मंतव्वं तंपि हु किं पुण संतेसु गेगेसु ॥ २ ॥ तो ण पमाएयव्यं ण य भत्ती तु तर्हि कायच्या सुठुतरं उजोगो कायवो तम पित्तये ॥ ३ ॥ सो पुर्ण पंचविकप्पो कप्पो इह बष्णिओ समासेणं वित्यस्तो पुण्यगतो तस्स इमे होति भेदा तु ॥ ४ ॥ उहि सत्तविहे य दसविह बीसतिवि य बायाले जस्स तुस्थि विभागो जयकारो सो ॥ १८ ॥ ५ ॥ विभयण विभाग भणति जहेरियो उडिहो य सत्तविहो णामादिविभागो वा जस्सेसो न विदितो होति ॥ ६ ॥ सुबन्त सुट्ट तं तस्स नियुङ्गस्स या जलमगाहे होती सचक्यस्सवि जहंधकारो मणुस्सस्स ॥ ७ ॥ अहवा जलंधकारो मेहोत्वयमि होति गगणम्मि जहवा जलंधकारो जत्थादियों न दीसति तु ॥ ८ ॥ एवं अंधकारो कप्पपकप्पं पच तस्स भये अहवा सो व जलो भवइ य से अंधकारं तु ॥ ९॥ छविहरूप्पस्सिणमो णिक्लेवो उडिहो मुणेयो णामं ठपणा दचिए लेते काय नाय ॥ १८० ॥ जेण परिग्ाहिएणं दणं कप्पी होति णाऽकप्पो तं दव्यमेव कप्पो कारणकजोक्यातो ॥ १ ॥ सो तिथिहो बोद्धव्यो जीवमजीवे यमीसतो चैव। एतेसि तु विभागं वोच्छामि अहाणुपुब्बीए ॥ २ ॥ तिविहो य जीवरूप्पो दुपय चउपय तहेब अपदेहिं अहिगारो दुपदेहिं तत्यदि य मणुस्सदुपदेहिं ॥ ३ ॥ तत्थवि य कम्मभूमसंखिजगवाउहि तु कामएहिं तत्यवि तु होति अहिगारो ॥ ४ ॥ सो होति छविहो तू बोद्धव्यो मणुयजीवकप्पो तु वच्छामि तस्स इणमो मेदविकल्पं समासे ॥ ५ ॥ पञ्चावण मुंडावण सिक्खाव मुंज संसणा एसो त् (तु) जीवको उम्मेदो होति गायो ॥ १९ ॥ ०७ ॥ ६ ॥ जन्भुवगम पावण मुंडावण होति लोयकरणं तु गहणासेव सिव सिक्खावितंम सिक्खचणा ॥ ० ८ ॥ ७ ॥ वयठवणमुचडवणा संमुंजन मंडलीऍ सह मोगो एगततो सह वासो संवसना होति णाया ॥ ० ९ ॥ ८ ॥ ना वाचित मुंडावणातु ण यमुंडिए तु सिलवणा एमादी तु विभासा पद्मावयती तु केरिसगो १ ॥ ९ ॥ सुत्तत्यतदुभयविसारयस्स संगहउवायकुसलस्स कप्पति पावेतुं संवेगसुबद्धतमतिस्स ॥ २० ॥ १९०॥ मुत्तत्वेण विसारएं चउमंगो एत्थ होति काय तं चेन तदुभयं खलु विसारतो जाणतो तस्स ॥ १ ॥ दद्दे माने संगह दो आहारमादिएहिं तु सिक्ख वर्ण अगिला गेलणे यावि करणं तु ॥ २॥ भावम्मि संगहो खलु णाणादी तं तु होति बोद्धव जाणइ वहावेतुं गच्छंतु उपायकुसलो तु ॥ ३ ॥ संसारभउडियो संग्ोि सो तु होइ मायो। एतेसि तु पदानं चभंगो होति एकेके ॥ ४ ॥ तदुभयविसारदो खलु ण सँग कुसलों एत्य पठसंगो तदुभयउवायकुसलो एत्यंपि तु होति चभंगी ॥५॥ तदुभयसंवि मोहिविगो एवं होति कायव्यो। एवगुणजातियस्सा पच्वावेतुं तु कप्पति तु ॥ ६ ॥ पञ्चाचिंता मनिता अडणा पावणिज वोच्छामि पहजाए जोम्मा जे या होती अजोगा तु ॥ ७ ॥ पञ्चावणारिहा खलु जाती कुलरुवणियसंपण्णा तचिवरीयगुणा खल होंति अपावणाजोग्गा ॥ ८॥ तेसिं तु जे विवक्खा तविरीया इति ते नियमा अयानि इमे बीस बजा १०६७ भाष्य -
मुनि दीपरत्नसागर
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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक [०२००]
दीप
अनुक्रम
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“पंचकल्प” – छेदसूत्र- ५ / २ ( भाष्य )
भाष्यं [०२०० ]
.... आगमसूत्र [ ३८ / २], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...
सेगा जोग्गा ॥ ९ ॥ बाले बुड्ढे नपुंसे व जड्डे की य वाहिए। तेणे रायावगारी य, उम्मते य असणे ॥ २१॥ २००॥ दासे दुडे य मूढे य, अणत्ते जुंगिनेद्र य ओषदए य भयए, सेहणिफेडितेति ॥ २२ ॥ १ ॥ गुडिणी वालवच्छाय, पद्मावतुं न कप्पए एसि परूचणा दुबिहा, उस्मानचायसंजुता ॥ २३ ॥ २ ॥ कारणमकारणे अहच कारण जयणेतरा पुणो दुविहा। एस परूवण दुविहा एतो बालादि वोच्छामि ॥ ३ ॥ तिविहो य होति बालो उकोसो मज्झिमो जहण्णो य एतेसि तिष्हंपी पत्तेय परुवर्ण बोच्छे ॥ ४ ॥ सतडुगमुकोसो उप्पण मज्झो य चतुतिय जहणणो एवं नयनिष्कण्णं समायज होति गय भेदा ॥५॥ जहणो जहणसभावो मज्झसभावो तहेब कोसो एवं मज्झिम तिणी उकोसावी भवे तिष्णि ॥ ६ ॥ छिंदमछिंदता तिनिपि हरितादि वारिता संता पुणरविय छिंदमाणा जति दिन गुरुण बण्णेन ॥ ७ ॥ उकोसो दट्ट्र्ण मज्झिमतो ठाति वारितो संतो जो पुण जहणालो हत्ये गहिओवि गवि ठाति ॥ ८ ॥ दाहिणकरम्म गहितो नामकरणं स छिंदती ताई मंडलम व धरितो चिट्ठा एवं भणितो तु ॥ ९ ॥ जह मणितो तह तुठितो पढमो बीएण फेटियं ठाणं तहओ न ठाति ठाणे अह सम्भ (व्यति विस्सरं रूपति ॥ २९० ॥ एवेसि बालाणं पव्याक्तिस्सिमं तु पच्छित्तं तिव्हपि कमेणं तू कोच्छामी आणुपुथ्वी ॥ १॥ अ तीसा बीसा उवीसाचेय तिविहवालम्मि तव छेद बीस पढमे बिति मिस्सा ततिय छेदाती ॥ २ ॥ उणत्तीस दिवसे सिक्खावितस्स मासियं लहुर्य ॥ उकोसम्म बाले सोचे असिक्ख गुरुगो ॥ ३ ॥ अण्णे अउणत्तीस गुरुजो सिक्ले असिक्सि चउलहुया पुणरवि अउणती लडुगा सिक्खेवरे गुरुगा (गुरुगा सिक्खे य उहुगा ) ॥ ४ ॥ अपने अउणती गुरुगा सिक्ने असिक्सि उडुगा (अण्णे उ अउणतीस सिक्खाविंतस्स होति पच्छित्त) उडुगा सिक्लम्मि य असिभिल गुरुगा अउणतीसं ॥ ५ ॥ अण्णे सिक्खासिक्खे उम्गुरु तब छेद छग्गुरू चैव मूलऽणव पारंचिगं च एकेक तत्तो ॥ ६ ॥ अहवा सो चेव तवो छेदादी मासमादिया होति सिक्खार्जितमसिक्ले मूलेकदुगं तहे ॥ ७॥ अहवा सो तो छेदोपणगादि जान उम्मासा सिक्वाविंतमसिक्ले लहु गुरु एकेक उगृतीसा ॥ ८ ॥ मूलण च तओ पारंचियमेव होति एकेकं सिक्लासिक्खपणारा उकोसे होति वालेते ॥ ९ ॥ अहवा सो चेव गमो दिहिं सिक्खितरवजिए होति मासादितवच्छेदा मलाईचा दिनेकेकं ॥ २२० ॥ एमेव मज्झिमेऽवी नवरं दिवसा तु बीस बीस तु एमेव जहणणेऽवी उबीबीस दिवसा तु ॥ १ ॥ अहवा मझे मीसा जहणछेदादि अन्नपरिवाडी तबछेदेगंतरिया मज्झि जहणे तु भयणाए ||२|| मज्झमि वीस लहुआ सिक्वमसिक्सस्स मासिओ उदो वीण छेद लहुओ सिक्स सिक्से गुरुग तवो (गो जो ) ॥ ३ ॥ अदोनी एवं तयछेदेगंतरा तु यष्या जा उम्मासा ताब तु परजो मूलादि एकेकं ॥ ४॥ अणावीस जगे सिक्खाक्तिस्स मासिओ] छेदो। सो थिय जतिक्खि गुरुओ जा उग्गुरु तिष्णि परज तु ॥ ५॥ अहवा ण होइ छेदो ठाणे चिप मूल तह य अगवट्टो पारंचिए य तनो एवं भयणा जहणस्स ॥ ६ ॥ अहवा पढमे छेदी सहिवसे चैव हवई मूलं वा एमेव होति बीए तइए पुण होति मूलं तु ॥७॥ किं कारण सोधेसा? दोसा तहियं हमे समक्खता पाच ते तु उड्डा हाई मुणेच्या ॥ ८॥ [भस्त वयस् फलं जयगोले चैव हाँति उकाया णिसिमन्तमंतराए चार जजसो य पटिबंधों ॥ २४ ॥ ९॥ लोगो बेली पेच्ह इणमो भवईण तू फलं तु गोलवितो ही सो जिनिए मुकी ॥ २३० ॥ मत्त जिसि ममामाणे दिले तू रातिभतभंगो तु हव अदितम् तराइ बेड लोगो य ॥ १ ॥ चारपाला हु इसे जेबालाई तु एवं भंति लोगे जायति अजसो अहो इमे गिरणुकंपत्ति ॥ २ ॥ तेग व परिबंधे पडिमा पनि कहिंचि विहरति । जे दोस णीयासे ते पावतेय अच्छा ॥ ३ ॥ ऊपड़े पत्थ चरणं पव्वावितोऽवि भस्सई चरणा मूल्यबराहिणी खलु णारभते पाणिओ चे ॥ ४ ॥ उपायमग्पार्थ पाऊणं व तयोकम्मं एमेव उद उहि जिनवादसविए दिखा ॥२५॥५॥ उग्पायमणुग्पातो मासो पर उब उहि तवेसी एमेन उम्मिहोचिय दो सेसाण एकं ॥ ६ ॥ एवं पायच्छितं गाउ ण परवानएनओ बालं वर पावती जिण चोरसपुच्चअतिसेसी ॥ ७ ॥ ने जाणि गुणागुण बहुगुण पाऊण ते दिवखति के पुण जिणमादीहि दिक्विय बाला ? इमे सुणसु ॥ ८ ॥ सत्थाए अनिल मणओ सिनंभषेण पुच्यविदा अतिसेसिणा व बतिरो उम्मासो सीहरिणानि ॥ ९ ॥ एते अव्यवहारी जह पच्चाविती गच्छवासी तु एवं इच्छं गाउं भण्णनि इणमो जिसामेहि ॥ २४०॥ उसने व महाकुले जातीय व सनिसिजतरे अाकारणजाते वाले पचणाया ॥ २६॥ १॥ पाएँ] परिणए बिलकुले त बाल होजाहि मा सकि
॥ २ ॥ णामय नहीं देव(घेर) गमादी मयम्मि संतमि जणवादरक्खतो सारखे जाणवलाई ॥ ३ ॥ एवं सचितराणवि अज्ञायविटिटिबंध परिणीए कर्ज करेमि सचिवो जदि से पन्चायतह बालं ॥ ४ ॥ एतेहि कारणेहिं पचाविज्ञाहि गच्छवासी तु पावियाणसि इमेण विहिता सारवणा ॥ ५॥ अन्ते पाणे घोषण सारणया वारणा निओजण्या चरणकरणसज्झायं गायत्रो पयते ॥ २७ ॥ ६ ॥ निहुरेहिं आउं पुस्सति देहम्मि पाटचं मेहा अच्छति जन्य गणज्जति सट्टादिसु पीहगाडीया ॥ ७ ॥ ठावेनिसालवाडा पडले हृणमादिसारणमभिक्वं वारिजए अभिक्तं हरियादी छिंदमाणी व ॥ ८ ॥ सामायारि सर्व सज्झायं चेव ऊ पयलेणं गाहिजति सो एवं जयणा एसा तु वास्स ॥ ९ ॥ (२६७)
१०६८ पकल्पभा
मुनि दीपरलसागर
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [०२५०] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत
तह चेप विभागो न कह बालाण
सूत्रांक
2.२९१ म आवस्मय सालवणा ? भण्णति इणमो णिसामेहि ॥ २०॥ आपदाम्म पत्तेयं तबछेदा पढने चिति मीस वपदा ॥ से महका चिरपुराणति जम्हे मोज ड्याएं सो बुझ्दो । ठक्काय ण सरहती बतास काया कुसत्य खोए व भिकरण पलिमंथो
[०२५०]
दीप अनुक्रम
तिविहो य होह बुढो उकोसो मजिनमो जहष्णो या एतेसिं तिष्हंपी पत्तेय परूवणं बोच्छं॥२५०॥ दस आउविवागदसा दसभागे आउयं विभतिकणं। दसभागे दसभागे होति इसा ना इमा होति ॥१॥बाला किड्डा मंदा बला य पण्णा य हायणि पर्वचा। पम्भार मुम्महीविय सयणी दसमा य गायच्या ॥..२८॥२॥ तहियं पढमदसाए अहमयस्सिादि होति विक्खा तु। सेसासु उसुपि दिक्खा पन्भारादीसु सा ण भवे ॥३॥ बुड्ढाडदयुकोसो मज्झो णवमि दसमी य तु जहण्णो। जंतुपरि तं हेडा भयणाऽप्पचलं समासज ॥४॥ केसिचि पपंचादी बुड्ढो उकोसगो उजा सत्तार। अहवसाए मजनो णयमीदसमीसु य जहष्णो ॥५॥ कुरुकुयमादि णिसिहो जह मा बीयं करेदि एवंति । पुणरवि पकरेमाणो विट्ठो साहिं। वाहे तू॥६॥ उक्कोसो दठूर्ण मज्झिमओ ठाति वारिओ संतो। जो पुण जहष्णबुड्ढो हत्ये गहिजो गवरि ठाति ॥७॥ ठाणे य चिट्ठसत्ती जह मणियो तह ठिो भये पढमो। बीएण फेटियंत तइजो णवि ठाया हाणे ॥८॥एगणतीसा चीसा अउणाचीसा यतिविह बुइदम्मिा पत्तेयं ववछेदा पढमे चिति मीस वपछेदा ॥९॥ तह चेव विभागो तू जहवालार्ण तुहोति तिष्हपि । किं पुण एसाऽऽस्वणा ? भणति इणमो णिसामेहि ॥२६०॥ आवस्सय छकाया कुसत्य सोए य भिक्स पलिमंयो। चंडिल अप्पडिलेहा पमज पाढे करणजड्डो | ॥:.२९॥१॥ आवस्मयं ण सको गाहेतुं जइब्याए सो कुड्दो छकाय ण सरहतीण तरति ते याचि परिहरितुं ॥२॥ कुदिविकृसत्येहिं तु भावितो निच्छए वर्ग मोतुं । लोगस्स अणुमाहकरा चिरपुराणत्ति अम्हे मो॥३॥ अतिसोयबादएणं पुर्वि गिति बहुं दवं छड्डे। अपरीहत्यो मिक्वायरियं पलिमंथ पानवहो ॥४॥ पंडिाई णचि पासह दुन्बलगहणी व गतुम ण थएइ। अण्णस्सवि वरखेचो चोदण इहरा विराहणता॥५॥ पडिलेड ण गिरोहति पमजणे याचिसो भवति जड्डो। नवि तीरति पाडेतुं दुम्मेहो जड्डबुद्धी य॥६॥ भंजनि अभिक्समालाचगं च अण्णेसि बावि पलिमंचो। उपही बीसारेती उड्डेड व पंथि वर्णतो ॥७॥ उद्वितणिवेसिते चंकम्मते अबाउदिबदोसा । चरणकरणसझाए दुक्ख बुददो ठवे जे॥८॥ उम्पायमणुग्पायं छविह पच्छित कारणे तेणं । तम्हा बुढ ण दिक्ले जिणचोहसपुषिए दिक्सा ॥९॥ पवार्षिति जिणा खलु बोडसपुत्री य जे य अतिसेसी। जिणमादीहिं नहिं कयरे ते रिक्सिया पुददा ॥२७० ॥ सत्याए पुत्रपिता पोरसपुत्रीण जंगुणा सपिता । तंमम्मेणं जणतो तु दिक्खितो रक्सियजे ॥१॥ एते आहारी इच्छामी णात अणतिसेसी य।। जह दिखते ? भष्णति मुणम् जह तेवि दिक्वति ॥२॥ उवसंते व महाकुले णातीचो व सणिसेजतरे। अजाकारणजाते बुड्ढो भये दिक्खा ॥३॥जह चेव य बालस्सा विभास नह चेव होति युइटस्स । पर इमो बिसेसो अजाणं कारणा होति ॥४॥ अजाण णस्थि कोवी संचारितो तु खेत्तमादी तु। तेणं तेसिऽद्वाएद संकप्प(इतसंक)पहावे ॥५॥ एतेहिं। कारणेहिं जति णाम होज दिक्खितो वुइरो । ताहे य तस्स सारण काय इमीय तु विडीय ॥६॥ भने पाणे सयणासणे व उपही तहेब बंदणए। चरणकरणसमायं अणुयत्तणया पर गाहणता॥:.३०॥७॥ जारिसतभत्तपाणेण समाही दिजते सि वारिसगं । सयणीय महा(समा)भूमी पाउंउणमादि आसमयं ॥८॥ जतिय तरए वोढुं सीयत्ता व जत्तिएणं से। वत्तियमेत्तो उपही दिनति सेऽशुमाहहाए ॥९॥दणए अनुकंपा कीरति ग य सारियम्मि बंदा।चरणकरणसमार्य अणुकुरले परण गाहे ॥ २८॥ उपउंजिउ णिमित्ते दोन्हंपियन कारणा दुबग्गाणं । होहिति जुगप्पपरा दुल्हवि अड्डा दुवग्गाणं ॥ .:.३१॥१॥ ओहि मणो उपउंजिय परोक्खणाणी णिमित्त चित्तूर्ण । जदि पारगतो दिक्सा जुगप्पहाणा व होहिति ॥२॥ दोणित्ति बालुददा पुणरवि दोवा इस्थिपुरिसा या सुत्तत्यदुगढाए कालियपुधगयअट्ठा वा ॥३॥ पुनरवि दोवग्ना खलु समणा समणीय होति णाया। सेसि अट्ठा दिती आहारो नेसि होहिति ॥ एतो पुच्छणपुंसं सो किह णजेज जहणपुंसोति । भण्णति ण च कम्पति दिक्खितु विहि अजाणते ॥५॥ तम्हा दिक्ला गीते दिकलते चउगुरू अगीयस्स । गीतेवि अपच्छित्ता गुरुगा पुच्छा उवाएर्ण ॥६॥ अम्हं गपुंसगादीण कप्पते एव भणिते साहेना। को वा णिवेदो ने भणिज भगचं ! अहं ततिओ ॥७॥ अहपाविय मेत्ता से मिदं पुछिया हु साहेजा। अहवादिलक्खणेहि मेहिणार्ड परिहरेना ॥८॥ महिलासभाषो सरवण्णभेदो, में महतं मउया य वाणी। ससदगं मुत्तमफेणगं च, एताई छप्पा
गलक्सणाई ॥९॥ गती भये पचवलोइयं च, मिदुत्तदा सीतलमत्तया या धुर्व भने दुक्खरणामधेजो, संकारपचंतरिओ दकारों ॥२९॥ गतिहत्ववत्थकडिभुमयभासविट्ठीय केसाई ना कारी पच्छामजणाणिय पाण्णतरं चणीहारो॥३२॥१॥ मंदा गती विक्खि दामहत्थं, वेणियंसेति जहेच इत्थी। कडियमगं वाचि करे अभिक्स, सचिम्भमं उक्सिचए भूमात्रओ ॥२॥ भासतो यानि कर वरिष णिवेसेति इत्थिया चेचाहीणस्सरी बजायइ दिट्ठी व सविस्भमा तस्सा ॥३॥ केसे इत्यी वजहा आमोडानि इस्थिमंटणं चैव। व्हायति एगने या पड़ आयरुचारं ॥४॥ पारसेम भीक महिलासु संकरो पमयकम्मकरणो या एवं वाहिरलक्रमण गपुंसवेदो भवे अंतो ॥५॥ सो पुण गपुंसवेदो लिंगे तिबिहेचि होति बोबनो। का लिंगलिए? भण्णति एत्यं एकेक वेदलिग ॥ ६॥ उस्सग्गलक्वर्ण खलु धीपुरिसणपुंसगाण वेदाणं । फुमदवम्गिमहणगरदाइसस्सिा जहाकमसो ॥ ७॥ एकेके तिह भयना इत्यी थीसरिस भा१०६९ पत्रकन्यभाग्य -
अनि दीपरनसागर
Mysterकम्मरकर
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [०२९८] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प” संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत
सूत्रांक
[०२९८]
दीप अनुक्रम [०२९८]
thyopda grat
पुरिस अपुमे या इय पुरिसणपुसे या एकेके होति पेदतिगं॥८॥ सो पुण णपुंसगो तू सोलसहा होति तू मुणेयको। पंढग की वानिय कुंभी ईसाल साउणीय ॥९॥ ताम्मसेवि पक्खियमपक्विए तह सुगंधि आसिने। विद्धित चिप्पिय मंतोसहीहि या उपहए जे य ।।३०७ ॥ इसिसत्त देवसते एतेसि परूवणा इमा होति। बहियं पंडो तिविहो लक्षण दुसी च उपपाओ ॥१॥ पंडगलवण जस्ता जायाअवलोयणेण तु गहा(ग्गाह) । सो लक्खणतो पंडो दूसीपंद्रो इमोहोति ॥२॥ दृसियवेदो इसी दोसुब वेदेसुसज्जते दुसी दो सेवइ वा दे दोमु च दृसिनदी दूसी ॥३॥ सेति सेसए वा सो दुह आसितो तह प तूसित्तो। सावबो आसित्तो अणवची होति ऊसित्तो ॥४॥ उपपाजोविय दुविहो वेदे य तहेब होति उपकरणे। वेदो। बघायपंडो णमो वाहियं मुणेयहो । पुलिं दुचिण्णाणं कम्माणं असुहफलविवागाणं । उदया हम्मति वेदो जीचा पानकम्माण ॥६॥जह हेमकुमारो तू इंदमहे मालियाणिमित्तेणं। मुच्छिय गिहो अतिसेवणेण वेदोषपात मतो ॥..३३॥ एपस्स विभास इमा जद्द एगो रायपुत्त पणेणं तषियवरहेमसरितो तो सेनामं कतं हेमो || सो अनदा कदाई इंदमहे इंवठाणपत्ताओ। नगरस बालियाओ पुकावीहत्य वर्ण ॥९॥ पुच्छति सेवगपुरिसे कि एया आगता उ इहइति? । ते बिती सोहग मग्गंतेता परस्थीओ ॥३१॥ तो बेई एयासिर देण वरोहु दिण्ण अहमेषा पेतूणं ता तेणं छूदा अंतेउरे सव्वा ॥१॥ तो गागरगा ष्णो उपद्विता मोववेह एताउ । तो पेति मम पुत्तो कि जामाता ग सखे मे॥२॥ तो तासु अतिपसनस्स तस्स णिग्गलियसनचीयरस । वेदोषघातो जातो सागारीर्य ण उद्देति ॥३॥ तो ताहिं रुसियाहि सो अदागेहि पातितो ताहे । वेदोषपातपंडो एसोऽभिहितो समासेणं । ॥४॥ उवहन उवगरणम्मी सेजारभूणियाणिमित्तेणं । वो कविलगस्स वेदो खतिओ जातो दुरहियासो ॥..३४ा उवयाउनगरणम्मी एवं होना णपुंसवेदो उदोसास बेदुदिण्णं | पारेन चयन णायमिणं ॥६॥ जह पदमपाउसम्मी गोणो धातो तु हरिवगतणस्स। अणुमजति कोटिचं बाषणं दुम्मिगंधीयं ॥ ७॥ एवं तु केद पुरिसा मोनूर्ण भोयर्ण पतिबिसिहूं। वापण भवनि तुहा जाय ण गडिसविसओ वेदो ॥८॥ लक्खणदृसियउवधायपंडगं विविहमेव जो दिक्के । पच्छित तिसुवि मूलं दोसा ताहियं इमे होनि ॥९॥ तरुणादीहि सह गओ चरितसमेरिणी करे विकहा। इस्थिकहाउ कहित्ता नासि अवष्णं पगासेड ॥ ३२०॥ समलं आचिलाधि लेदो य ण ताणि आमए होति। सागारिय णिरिस्पड मनिस हत्येहि जिम्परा य॥१॥ पुच्छनि सोऽपि पपुल्यो णमुसगो णमिति अनिमुहं एवं। जासय पोसे य नहा दुहाचि सेवी अई पेय ॥२॥ एवं पुच्छिन्तु नो अहवाचि पुच्छिऊण सह सेचे । गेण्हेगा ही समणं तेग कहेयच्च तो गुरुगं ॥३॥ईदियकहिय गुरुर्ण जो म कहेति कहिएचि य उबेहि । परपक्स सपकले चार्ज काहिति सो तमावने ॥४॥ सोसमणमुविहिएहिं पबियारं कन्यती अलभमाचो। तो सचिन पातो गिहिणो वह अतिथी च ॥५॥ अजसो प अकित्ती पतंमूलार्ग नहिं पश्यणस्स । तेसिपि होति संका सव्ये एतारिसा मणे ॥६॥ एरिससेवी एता। रिसाविएतारिसो चरति सहो । सो एसोवि अग्गो असंवर्ड पोडमादीहिं॥ ७॥ जम्हा एते डोसा नम्हाणवि विक्लणिजो पंडो हु। एसो पंडोऽमिहिओ एनो किन्लिवं पषासामि। ॥८॥फिलियस गोयाणाम तदभिप्पाजो कलिजए जस्स। सागरिय से गलती किलिवोत्ती भण्णती तम्हा ॥५॥ सो हणिकम्भमाणी कम्मदएणंत जायए नाओ। तस्मिनि सो नेप। गमो पच्छिनं पेवजह पंडो॥३३०॥ उदएण वातियस्सा सविगारं जाण होति संपत्तीतचणियअसंखुड़ित दिदुनोतथिमो होनि ॥..३५॥१॥ नानारूडो नचणितो तु द] असं
दमगा। ओचतिओ परिसहि मारित्ति धारिजमाणोऽपि ॥२॥ एलो तु बातिगो हू अलमनो सचिन जणाया। कालंतरेण सोऽपि र णसगनेण परिणमनि ॥३॥ दुपिहो यहोति कुंभी जानीकुमी य वेदकमी या जातीकुमी वायव्हिओएसी मदएं दिखाए ॥४॥ होइ पुण बेदकभी अलेवो मुज्झते सि सागरिय। सोऽपिय थिरुहवन्धी पसगनाएं परिणमति ॥५॥ दुकानाईलालगो हुसेविजमाण बठूर्ण। ण चएनी धारेनु णिम्भमाणो मवे सतितो ॥६॥ सउणी उकडवेओ चडओर अभिक्स सेवए जोतु। सोऽविषणिन्दवस्थी गापु समताएं परिणमति ।। 30 नवम्मपि जो खलु सेवियतचेच लिहति सामनसोऽपिय त्रपडियरतो णपुंसगत्ताएं परिचमति ॥ ८॥ एगे पारवे उदओ एगे पश्याम्मि जस्स अप्पो dl नु। सो पक्सपक्खिओ एसोषिणिकन्हो भये अपुम ॥ ९॥ सागारियस्स गंध जिपति सोगंधिो भवे स खला कान्तरेण सोऽवी आलभतो परिणमे अपुमं ॥ ३४॥ निमाह अणुप्पये। सिब अच्छति सागारियसि आसत्तो। ण प से भानोवसमो अलमंतो सोचि जपुम मये ॥१॥गालिय दो भाऊगा जस्स हुसो बदिओ मुबच्चो। चिप्पिय बालरसेव तु चिप्णिन पिराहिनो जस्स ॥२॥ मंतेगुवहनवेदो अपाची ओसहीहि जस्स मवे। इसिसत्तदेवसत्ता इसिणा देवेग वा सत्ता ॥३॥ बदियमादि उपरिमा रहच णपुंसा हनि भयणिजा। जदि पडिसेविण विक्से अह नानि पडिसेचि तो दिक्ते ॥४॥ आदिउँसु दसमुवि पथ्यावितो पापए मूल। जो पुण पप्पावेहा पढ़तेवं तस्स बरगुरुगा ॥५॥ जे पुण उन्नुपरिममा पवा-18 वितरस पडगुरु तेसु । परमाणेऽविध गुख्या कि बदतेसो इमं सुगसु ॥६॥ चीपुरिसा जह उदय धरिति माणोचनासणियमेहि। एवमर्मपि उदयं घरेज जदि को तहि दोसो ? ॥ ७॥ २०७० पत्रकापभाष्य -
मुनि दीपरतसागर
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
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प्रत सूत्रांक [०३४८]
PARAN
दीप अनुक्रम [०३४८]
अहना ततिए दोसो जायति इयरेसु किन सो भवति । एवं सुनस्थि दिक्ता सवेदगाणं ण वा तित्वं ॥८॥ भण्णति धीपुरिसा खल पत्तेयं दोसरहियठाणेसु । णिवसंती इयरो पुण कहिं शुम्भति दोसुपी दोसा ॥९॥संवासकासविट्ठीदोसा हु तस्स उभयसंबासे । अप्पत्यवगदिहुंत जह राय मनी अवारंतो ॥३५०॥ एत्वंयगदिईतो अहया जह वच्छा मातरं चटखें। अभिलसती मायाविय वच्छ दठूण पहुयति ॥१॥ अंबं वा खज्जतं दहँ अहिलासों होति अण्णस्स । सागारियादि बढ़ एव णपुंसे भवे दोसा ॥२॥ तम्हाहुण दिक्विजा एवं पाऊणमेत दोसगण । बितियपदे दिक्खिज्जा इमेहि अह कारणेहि तु ॥३॥ असिवे ओमोदरिए राबड्ढे भए जागादे। गेलन उत्तिमढे गाणे तह ईसण चरिते।..३६॥शारायदु हुभयेसु ताण णिवस्स चेव गमणवा। वेजोव सयं तस्सव सप्पिस्सति वा गिलाणस्स ॥५॥ पहिवरगस्सऽसतीए एमागी उत्तिमपडिवणे। अहवाची अ(क)सहाए यावाहुना दिवसे ॥६॥ गुरुलो अपणो वा जाणादी गिण्हमाणे तपिहिति। अचरणदेसाणिते तप्पे ओमसिवेहि वा ॥ एतेहि कारणेहिं आगादेहिं तु जो तुणिक्यामे। पंडादी सोलसर्ग कवकजविनिचणडाए ॥८॥ तस्स विही होति इमो दिपिलर्जतस कारणजाए। सो पुण जाणिमजाणी जाणनि जाणी सहा नतिओ ॥५॥णविकापति दिक्खेतुनमुबहिन पण्णवेनि अह एवं । तुज्मण कम्पति दिक्सा नाणादिविराहणा मा ते॥३६०॥ जो पुण न जाणएवं तस्स विही होतिमा करेयवा। जणपचयताए जाणतमजाणए नावि ॥१॥ करिष मंड छिहली कत्तरिसर लोय परमतं पाढे। धम्मकह सभिराउल पपहार चिगिंचणं कुजा॥..३॥२॥ कटिप भंट छिहली कीरतिण विधम्म अम्ह वासी। कलरि सुरेणऽणिच्छे हाणी एकेक जा लोओ॥३॥ लोएवि कए पच्छा भिसुगमादीमताई पादिति। तंपिय अणिच्छमाणो पादिती छलियकमाई॥४॥ ताणिवि अनिउमाणे धम्मकदा ताऽपि अणिपाईने। परतिषियवत्त दिजति ताहे ससमएपि ॥५॥ तंपिय अनिच्छमाणे उकमतो तस्स दिजए सुर्त। अण्णण्णसुत्नपातच पुनापरओ असंघर्ष ॥ ६॥ पीयारगोबरे धेरसंजुनी रनि दरि समणाणं । गाहेह मर्मपि ततो बेरा जत्तेण माहिति ॥७॥ बेरमाकहा विसयाण णिदणा उडणिसियणे गुत्ता। चुकवलितम्मि बहुसो सरोसमिव तजए वरुणा ॥८॥ कतकजा से धम्म कहिति मुंचाहि लिंगमेयंति। माइण एएपिसोए अणुनता तुज्झ णो दिक्खा ॥९॥इय पण्णविओ संतो जइ मुंचति लिंग तो उ रमणिज। जह पनि मुंचति नाहे मेसिजति सो इमे हितो॥३७॥ सणि सरकग्मितो वा मेसेड को इस किचियो । नेसासति रायफुले यदि सो वनहार मम्गिजा ॥१॥ एतेहि दिपिसोऽहं जतिविय लोगो ण याणते कोति। जह एतेहि दिक्खितातो ते बितीण विक्लेमो ॥२॥ अज्माविमोविएतेहिं देव पहिसेह किंबहीयं ते?। छलियकहादी कइदति कत्थ जई करब इलिताई? ॥३॥ पुधावरसंजुनं बेरग्गकरं सप्तमविरुवं । पोराणमदमागहमासानियतं हवति सुत्नं ॥४॥जे मुत्तगुणाऽभिहिता तविपरीयाई गाहिओ पुत्रिं । नेहिं चेष विवेगो जह एरिसयं भवति सुतं ॥५॥ णिवयडह बहुपक्सम्मि वाविपुदउंचगम्मि पाइए। बोसिरणं बोछामी विहीएं जद्द कीरए तस्स ॥६॥ भिषणकहाओ भ? बितीण पदति इह एरिसर्य। परतिस्थिगादि पयय जदि बेती तुज्झ समयंति ॥७॥श्य होतुत्ती बोचूण णिम्गतो भिक्खमाविलक्खेणं । मिक्सुगमादी छोटू विपलायंती पुणो तत्तो॥८॥काबालिए सरसखे तपणियलिंगमादि वसमानुानं किंतु देउलादिसु सु हिडतु समेन्ति ९॥ तिचिहो दोति यजइडी भास सरीरे य करणजड्डी याभासाजोपउहाजल एलग मम्मण बुहो। .:.३८॥३८॥जह जलवुड्दो | बासति जलमूओ एव भासद अवर्स। जह एलगोत्र एवं एलगमूगो बलबलेति ॥१॥ मम्मनमूजो बोबडखलेड बाया हु अविसदा जस्स । दुम्मेहस्सण किंची पोसंतस्सावि ठायहर ॥२॥ दसणणाणचरिते तवे य समितीसु करणजोगे या उवाईपिण गेण्हनि जलमूगो एलमूगोय॥३॥णाणादिडा दिक्खा भासाजइडो अपचली तस्सा सो य पहिरो य णियमा गाहण उइडाह अहिकरणं ॥४॥तिविहो सरीरजड्डो पंचे मिक्ले तहेव बंदणए। एतेहि कारणेहिं सरीरजइडण दिक्तेजा ॥५॥अदाणे पलिमंथो मिक्लायरियाए अपरिहत्यो य। उहदुस्सासऽपरकम अहिअमीउदगमादीसु॥६॥ आगादगिलाणस्स य असमाही पापि होज मरणं वा। जहडे पासेचि ठिए अण्णे व भवे इमे दोसा ॥ ७॥सेदेण कक्समादीकुच्छण धुवणुपिलावणे दोसा । नस्थि गलओ य चोरो णिवियमुंडा य जणवादो॥८॥णेगे सरीरजड्डे एमादीया हवंति दोसा तु । नम्हातं णवि विक्से गच्छ महते पाणुण्णाए ॥९॥ इरियासमिईभासेसणासु आवागसमिइगुत्तीसु । णवि ठाति परणकरणे कम्मुवएर्ण करणजद्दी ॥३९॥ जलमूग एलमूगो अतिथूरसरीर करणजड्डो य। विक्संतस्सेले खल चउगुरु सेसेसुमासलह ॥१॥ भासाजहड मम्मण सरीरजइट चजातिधुरं चजावजिय परियडू करणे जड तु उम्मासे ॥२॥ मोनु गिलाणकजे दुम्मेह वापि पादि छम्मासे। ताहे से दुम्मेह जोऽपिय करणम्मि सो जटो ॥३॥ उन्हुपरि तेसि दोहचि आयरिजओ अण्ण गाहे छम्मासा। पच्छा अण्णो ततिओ सोऽविय उम्मास परियड़े ॥४ाजोऽपिय ते गाहेतीश
सिस्सोतसेच सोहपति ताहे। सहविण मिण्हे जदिह कुलगणसंपे विगिंपणता ॥५दुनिहो यहोति कीयो अभिभूजो चेच अणभिभूतो या अभिभूतोऽविय दुविहो जालिबनिमंतणाकीचोर शा१०७१पञ्जकल्पमाप्यं -
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
------------------ भाष्यं [०३९७] ---------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [4/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [०३९७]
दीप
॥ दुबिहोय अणभिभूओ विडीकीयो य सदकीयो या एतेसि विसेसमिणं वृच्छामि अहाणपुषीए ॥७॥आलियो जो णिचटति इत्थीहिं एस पदमओ कीवो। जो पुण पडति निमः निउ सो होति णिमंतणाकीवो ॥८॥दुनिषडणिसष्ण णिमिणमनाचारसेनिणि बावि। बठूर्ण जो खुम्भति दिट्टीकीय तयं विति॥९॥जह साहम्मीनं तहणधम्मिणं अहव वावि मिहियाणं। इत्थीओ बठूर्ण खुम्भति बिडीय कीयो सो ॥४०॥ मासाभूरण वह गीतसद परियारसहमहवावि । सोकर्ण जो मुम्मति सो भण्णवि सड़कीयोति ॥१॥ मोटुकडताए ते करेज दोसे इमे णिरंभता । सज्ज इस्थिम्गहर्ण मरण अहवावि ओहाण ॥२॥ आलिहणिमंतणविहिसरकीबाण होति जावणा । चउगुरु छन्गुरु छेदो मूल वजहकमेणं तु॥३॥
3MTARISHNUTERSION एत्थं दो आदिहले जदि विक्से तो हुएष परियडू। जावनी पियमियचरित्तसंचातसहिएहिं ॥४॥ दिट्टी य सदकीयो णवरं दिक्लेज उत्तिमहम्मिअपणहणतेसि दिक्खा एवं कीवो समस्खातो रोगेण व वाहीण व अमिभूयस्सा म कप्पती दिक्खा। गंडीकोटादीओ सोलसहा हवति रोगो उ ॥६॥ वाही पुण अहविहो कोहा(दादीओतु होति णायो। रोगवाहिपत्थं दिक्खते ऊइमे डोसा ॥ ७॥ उक्कायसमारंभो णाणचरित्ताण घेव परिहाणी। पंसण पीसण फ्यणं बोसा एवंविहा होति ॥८॥जाता अणाहसाला समणाविय इक्सिया विगिच्छंता । वेविय पठणा संता होज व समणा ण पा होज्जा ॥९॥ अतिओ य वेणो पागइओ गामदेसअहाणे। तकरखाणगतेणो परूवणा तेसिमा होति ॥४१०॥ अतिमओ अहाहा पागइओं छिराय अहव पागतिणं । हस्ती गामाईणं अंतर अहवाचि तेसि तु ॥१॥ तेणेच तु कम्मेणं जीचति णऽण्णेण तकरो स खलु । सत्ताइं जो खणती खाणगतेणो भवे स सल ॥२॥ सो पुण तेणो चउहा दवे खिते य काल भावे य। एवेसि चउच्हंपी पत्तेय परुवर्ण वोच्छं ॥३॥ सचित्ते अचित्ते मीसेऽबिय होति दबतेको हुासभित्ते दुपयादी पदे दासाइयं होति ॥ ४॥ गोमादी व पउपय अपदं फलधण्णमादियं होति। अबित्त हिरण्णाची जुपयादि सभंट मीसम्मि ॥५॥ एमादि दवणो साहम्मियअण्णधम्मियनिहीण । तेणितो सो तिविहो उकोसो मनिझम जाहण्णो ॥६॥ हवगतमाणिकाणि य वेणितो तेणतो उ उक्कोसो । खत्तखणकण्हवभियगोणीतेणो नुमज्झिमजो॥ ७॥ गंठीभेदग पहियजपदवहारी जहणतेणो तु । एकेकस्स य एतो पहिच्छगपडिच्छगो चेच ॥८॥ सगदेसपरबिदेसे अंतर तेणे य होति खित्तम्मि । राईदियावि काले भावम्मि यजाणतणादी ॥९॥ गोविंदसो णाणे - दसण सुत्त हेतुसहा वा। पारंचिगउपचरमा उदायिवहगादजो चरणे ॥४२०॥ दवादितण एसो पश्चायतुं ण कप्पए समो। समणाण व समणीण व पनावित इमे दोसा ॥१॥धण रोहण वालण दासत्तं मारणं च पाविजा । णिमिसयं परिंदो करेज संचपि सो रुहो ॥२॥ अजसो य अकित्ती या मूलार्ग सहि पवयणरस । ताति मिहीणधि एवं सव्ये एयारिसान मष्णे॥३॥ सम्मामपरम्गामे सदेसपरदेस अंतो वाहिया। दिद्वमविठ्ठकोसा मजिसमजहणे इमा सोही ॥४॥ मूलं छेदो टम्गुरु राजपचारि लहुगगुरुगा य । मुख्य सहगो य मासोएएसि चारणा उइमा ॥५॥ सम्मामंतो विढे उकोसो मूल डेदों अरिहे। बाहिबिट्टे छेदो अदिहाति छन्गुरुगा॥६॥ परमार्मतो दिवे उकोसो लेदों गुरुमदिहे। बाहि बिट्टे उम्गुरु अदिडे होति उलहुगा ॥७॥सदेखतो विढे उम्गुरु अदिहें हॉनि छलहुगा। बहिबिडे उत्तरगा अहिडे होति चउगुरुगा ॥८॥ परवेसतो दिडे छाबमा अदित होति चतुगुरुगा । बहि-- दिडे चतुगुरुगा अदिडे होति पाउलहमा ॥९॥ एवं ता उकोसे मज्झे छेदादि ठाति गुरुमासे। उम्गुरुगादि जहणे ठायद अंतम्मि सहुमासे ॥४३०॥ वितियपद मुकमोचिय अहवा वीसजितो परिंदण। अवाण परविदेसे दिक्सा से उत्तिमई वा ॥१॥ रखो उपरोहादिसु सेबवे सह पदवजोगम्मि। अम्भुडिओ विणासाय होत राबावकारीतु ॥२॥ सचित्तअचिनमीसममवकारे दूनलेह उपकरणं । समणाण व समणीण बन कप्पते तारिसे दिक्खा ॥३॥ आसो हस्थी सरिया बाहीत कलकतं च कणगादी। अहया समंडमना सरियादी अवहिता होजा॥४॥ दोचविरुवं च कर्त होजाहि पउत्तकूडव्हो या। पिउपुत्तमाउगादी कोई पहिजो बसे होजा॥५॥तंतु अमुदियदे जो पत्रावेति होति मूल से। एगमग पोसा होजा पस्चारदोसा वा ॥६॥ मितियपद मुकमोचिय अहवा बीसजिनो णरिंदण। अदाण परविवेसे विक्सा से उत्तिमढे वा ॥ ॥ उम्मादोखलु दुविहो जस्खादेसो य मोहणिजोय। दुनिहंपिक विक्सिना दोसा तु भवे इमे तस्स ॥८॥ अगणी आलीवणता आपणयविराहणा य उड्डाहो। उकायण सरहती सझायज्माणजोगे य॥९॥ पहिलेहणादि वितई करेनिया समितीसु असमितया पावि। उपादिद्यपि ण मिण्डति तम्हाणवि विक्खें उम्मत्तं ॥४४०॥ दुनिहो असणो खलु जातिउ उपचाततो यणायचो। उपधातो पुण तिविही बाही उवपाउ अंजणता ॥१॥ एवषसंगणं पिय अवरो वीणदिजो मुणेयत्रो। एतेसिं सोहि इमा जहकमेणं मुणेयवा ॥२॥ उदियणयणे यह सेसएसुधीणदितो तु कमसो त । उम्गुरु चउगुरु चरिमे दोसा सहि दिक्सिते इणमो ॥३॥ छकायबिउरमणता आवडणं साणुकटमादीसु । दिलअप्पडिल्वा अंधस्स ण कम्पती दिक्ला॥४॥ आवहति महादोस देसणकम्मोवएण थीणदी। एगमणेगपओसे काही तं तु आवजे ॥५॥ गन्ने कीए अणए दुरिभक्खे सावराहि रुवे या एमादि हॉति दोसाक कप्पती वारिसे दिक्सा ॥६॥राया व रायमचो किति-SI कम्मं संजताण कुर्वतो। बठूण दुबक्सरयं सके एयारिसा मण्ये ॥७॥ वह उदवर्ण सिंसण दासत्तमेच पावेजा। णिबिसयंपि णरिंदो करेज संघपि सो कडो॥८॥ अजसो (२६८ मुनियनसागर १०७२पाकस्पभावं.
अनुक्रम [०३९७]
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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक [०४४९ ]
दीप
अनुक्रम [०४४९)
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...
“पंचकल्प”
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• छेदसूत्र -५/२ (भाष्य)
भाष्यं [०४४९ ]
[ ३८ / २ ], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
....आगमसूत्र
य कित्ती या संमूलागं वहि यपययणस्स लोगस्स होति संका सबै एयारिसा पूर्ण ॥ ९ ॥ मुको व मोइओ या अहवा पीसज्जितो परिदेणं अडाण परविदेसे दिखा से उत्तिम वा ॥ ४५०॥ बुविहो व होति दुट्टो कसाचो य विसयो प दुविहो कसायदुट्टी संपलपरपलचडभंगो ॥ १ ॥ सासवणाले मुहणंतएव उलुन्छ सिरिणि सपले सासवणाल सुसंमिय एगेण गुरुणमुपणीयं ॥ २ ॥ सवं गुरुणा वइयं इयरे कोनो व खामणा गुरुणा अणुपसमं उ गणे गणि ठवेत्ताऽनहि परिक्षा ॥३॥ पुच्छंतमणक्खाए सोबइ अण्णस्स (सबपातो गंतुक से देहं गुरुणो पुर्व कहिले दाई पडियरण देतो ॥४॥ मुहणंतगस्स महणे एमेव य गंतु गिसिमलम्हणं संमूढेणियरेणवि गए गहिती मया दोषि ॥ ५॥ अर्थ गवि सिकसि उगच्छी उपसणामि तुह अच्छी पढमनमो गरि इह उलुगच्छीउत्ति डॉकेड ॥ ६ ॥ सिहरिणि वेदे गुरू सादितंति उग्मिरणा भन्नपरिण्णा अण्णहिन गग्मड़ती सो इहं णवरि ॥ ७ ॥ परपखम्मि सर्पले उदातिणिवमारतो जह व दुडो सो पवयणरकखणड्डा विच्छुम्भति लिंग हातू ॥ ८ ॥ परपक्व सपकले पुर्ण जडणारायत्र सो तु भवणिजो तं पुण अतिसयणाणी दिर्खेतऽधिगारि पाउं ॥ ९॥ परपले परपले इंडियमादी पड़ परदेसे उवसते वाऽस्थ दमगादि पट्ट भवितो वा ॥ ४६० ॥ निषि य बिसयदुडो सलिंग गिहिलिंग अलिंगेय अहवा सवेवि दुहा सपक्वपरपक्व भंगो ॥ १ ॥ परपक्वविसयदुडो सपस पारंचिओ तु आउझे। अतियम्मिलिंगहरणं एमेव सपल परपवे ॥ २ ॥ परपक्वं तु सपकले विसयपण ते तु दिति सजि(ज्झि) पमादिपदुई ण य परपक्वं तु तत्येव ॥ ३ ॥ दवदिसखेनकाले गणणा सारिय अभिमने वेदे । दुम्माहृणमण्णाणे कसायमत्ते व मूढपदा ॥४॥ दवि दहा महि अंती अंतो पन्नूरगादि वहि धूमो जावदवियं ण याणति घडियावोह दिपि ॥५॥ दिसमूढो पुत्रमवरं मण्णति सम्मि खेतबासं दियरातिविषचासो फाले पिंहारविती ॥ ६ ॥ जह कोई पिंडारो खीर मिसाए पाठ (रति) पागुत्तो अग्मच्छरणे उडिओ मण्णनि जह पहए रती ॥७॥ महिसी जो पविसंतो दिहो लोएण हसियतो ताहे किं एयंतिय भणियं एमादी कालमूडेसो ॥ ८ ॥ ऊणहियं मण्णतो उड्डारूढी व गणणतो मुढो । सारिस थाणुसरिसो महतरसंगादि ॥ ९ ॥ जह एके गामम्मी चोरा पड़िया तु तत्थ जुम्मि सेणावति तहिं बहिओ सारिक्खो महतो व णितो ॥ ४७०॥ तो णीय चोरपति इमरो ददो य तेण गामेणं वेति व चोरे महत हंसणपती तु ॥ १ ॥ तो ते चोरावती महिओ एसो रणपिसायीते तो णासिऊण तत्तो गामगतो वैति तो नियगा ॥ २ ॥ ददो सी अम्हेहिं किं देवेहिं जियावितो तं सी ? इय सारविमूढा दोणिविगामेड़ चोरा ॥३॥ अभिभूतो संमुज्झति सत्यग्गीवात (चोर) साययादीहिं अम्मुदय अनंगरती वेदमी रायदितो ॥ ४ ॥ जह कोति रायपुती बाल अच्छी दुक्समाणागु । मादुगहसारिसरियसफुसण ठितो तु तुष्टिको ॥ ५ ॥ उद्धोपाउन्ति तत्रो एवमभिसं तु ताहे सा कुणति सोऽविय विवद्यमाणो सत्तो तीए तु पासम्म ॥ ६ ॥ तीयवि अनियंचिय पिपरमणे य तस्स रायतं तहविय तं पडिलेवति सचिवादिणिज्झिमाणोषि ॥ ७ ॥ युग्गाहितो परेण कलमकर्जच मुणती जो तु। सो युग्गाहणमूटी दिता दीवजातादी ॥ ८ ॥ पणिवारण पियमहिलो तीय समं गमण वारिजाणे गम्भिणि पोतनिवती समुद्रमज्झे फलगलग्गा ॥ ९॥ अंतरदीयुतिण्णा पसूपदारग विवदितो फमसी । तेण सह लावितिरिच्छता गता सपुरं ॥ ४८० ॥ युग्गाहिय तीय सुतो ण मुणति लोगेण मण्णमाणोऽवि जह जणणि तवेसत्ती जगम्मगमणं ण पट्टति उ ॥ १ ॥ जह वा अलंगण मुणति बुग्गाहियऽच्राहिं तु मित्यणं हियंपी जह वानि सुष्णमारीणं ॥२॥ युग्माहित तु बोदो मा हीरेखा सुवण्णकारणं तुझं तु मोरगाई छाएमी तंबण अहं ॥ ३ ॥ लोगो य तुम मणिहिति हरियाई मोरगाई रोड तु तं मा हु पत्तियाही एवं च मणिजसी लोगं ॥४॥ जो एत्वं भूतत्यो तमहं जाणे कला व मासो व सोऽविय एवं भणती बुग्गाहिय अहव अंचला ॥ ५ ॥ भणिवे सयणासणभत्तवसहिमादीहिं सुपरिग्गतिंपला तेवि पुत्तेण भणिता य ॥ ६ ॥ अयम्मि अंधवासो अहं राया य अंधलगभत्तो इह दुखिय तहिं च ज कयपुष्णीष दियो ॥ ७॥ इय होतुति यहि तुं रतिं तु डोंगर बेटेऊन पुरिलो लावि मम्मिलपट्टीए ॥ ८॥ आणह मे जे अस्थि एत्थ पोराण पनिभयं ठाणे। गण्ड य पत्थर मा पहु कासति देहित्य अहियितुं ॥९॥ मणिहिति चोर तुम्मे केणेते अंधला परागा तु गिरिडोंगरा चढाविय पहलह ते पत्थरेहिं तु ॥ ४९ ॥ इय बोलून पलाओ पितृणं अत्यजातयं तेसिं ते व पभाते दिहा गोवादी एहिं भणिता व ॥ १ ॥ केणेते एव कता इस मुझे पत्थरेहिं ते पहया पनि दितिया दुग्गाहिय एवमादीया ॥ २ ॥ णिमहिल मृद वेयमि य मृदु होति राया ऊ बुग्गाहणमूदा पुण दीवादी सेस दद्देवि ॥३॥ अण्णाणमूढ इणमो दाइतं पि कारणसतेहिं जो सप्पहं वयापति जबंधीचे जह ॥ ४ ॥ कोहादिकसाओयमूढो भवि जाणती माणूसो तु इह व परम्मि य लोए हिताहितं कर्ज वा ॥ ५॥ दचेण प भावेण व दुविहो मतो तु होति णायत्रो मजमदादी द माणविण भावम् ॥ ६॥ मोनू वेदमूढं आदिताणं तु णत्थि परिसेहो बुग्गाहण अण्णाणे कसायमूढी पढिकुट्टो ॥ ७ ॥ सचित्तं च अचित्तं मी जो अणं तु चारेति समान १०७३ष्यं -
मुनि दीपरत्नसागर
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“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
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प्रत सूत्रांक [०४९८]
PygAttit
दीप अनुक्रम [०४९८]
समणीण पण कप्पते तारिसे विकूसा ॥८॥ अयसो य अकित्ती या मूलार्ग तहि परयणस्स। जगचोप्परसंमडिया सो एतारिसा मणे ॥९॥ बितियपद दाणतोसिय अहवा बीसज्जितो पभूणं नुा अहाण परक्दिसे दिक्सा से उत्तिमढे या ॥५०॥चउरो य मुंगिया खलु जाती कम्मे य सिप्प सारीरे। जातीय पाणवडाडाचाणिकारमादीचा ॥१॥ पोसगसं. वरणलखवाहसोयरियमच्छिगा कम्मे। पटकारा य परीहरसह) रजगा कोसेनगा सिप्पे ॥२॥ करपादकपणणासियोट्टविहया य वामणा वडमा। खुजा पंगुलकुंदा काणा एते अ. दिक्खेया ॥३॥ पच्छा य हॉति विगला आयस्वित्र्तण कपए तेसि। सीसो ठावेयही काणगमहिसोब णिपणम्मि॥४॥जे पुण जातीजुंगित कम्मे सिप्पे व तिषिणविण दिखे। बि. नियपदे दिवसेजा एएहि कारणेहि तु॥५॥ जाहे व माहणेहि परिभुत्तो कम्मसिम्पपटिविरतो। अद्धाण परविदेसे दिक्खा से अश्मणण्णाया ॥६॥कम्मे सिप्पे विजा मंते जोगेण चेन ओबई। सममाण व समणीण व ण कपए वारिसे दिक्खा ॥७॥ कम्मं तु उड्डमादी सिप्पं सिकिसज्जते गुरुविवेसा । लोहारादी तं पुण विजकलालेहमादीलो ॥८॥ अहया विज ससाण मंती पुण होति पदियसिदो तापसिकरणपाइलेवादि ततो उ जोगा मुणेयवा ॥ गोवालादी कम्मे ओबदा छिण्णछिष्ण कालेणं । विणा अविष्णमतिया दिण्णभतीया ग कप्पंति ॥५१॥ सिप्पादी सिक्वतो सिक्वाचितस्स देनि जा सिक्ला। गहितम्मिचि सांपी जचिरकाले तु ओच्दा ॥१॥ध बहो रोहो वा हरिज परिताच संकिलेसो बा। ओपन गम्मि दोसा अवच सुते य परिहाणी ॥२॥मुको पमोइसो वा अहया वीसजितो गरिदेण । अहाण परविदेसे दिक्ला से अम्मणुमाया ॥३॥ दिवसमयए व जत्तामतीय कबाल भयग उगते । भयओ चतुविही खल ण कप्पते वारिसे दिक्सा ॥४॥ दिवसभयो उ पिप्पह छिपमेण धणेण दिवसदेवसिय । जन्नात होति गमणं उभयं वा एतियधणेणं ॥५॥ कबाल उइडमादी हत्यमित कम्ममेसियषणेनं। एचिरकाले प(व)ले काय एलियधणेणं ॥६॥ कतजनगहियमोठं विक्से अकयाय होति पडिसहो। पापिते गुरुगा गहिए उजाहमादीणि॥७॥ विष्णमठिणे य धणे बाबारे काल इस्सरे चेच। सुत्तस्थजाणएणं अप्याबहुतु माया ॥८॥ वाचारे काल धणे छिण्णमछिन्ने यहाति भंगड्डा साहिय गहिते य कते मोतु सेसेसु दिक्लेति ॥५॥ गहिए अगहिते वा छिनधणे साधितेण दिक्वंति। अच्छिण्णधणे कापति महिते य अगहिते वापि ॥ ५२० ॥जस्थ पुण होति छिष्णां घोचो कालो व होति कम्मस्सा तत्व अणिस्सरविक्सा इस्सरोंबंधपि कारेना ॥१॥ घेत्तुं समय समत्यो रायकुले अत्यहाणि कढ़ते । फेवरस ते ण कप्पति रोहोरसपीरिए भयणा ॥२॥ सहस्सा णिफेडिय जो सेह घेतु आसियादेति। सो पुष यतेण फेरिसोंग कप्पती आसियाडेतुं ॥शा अपडुपण्णो बालो सोलसवारिसूचों अहम अणिबिहो। अम्मापितुअविदिण्णो ण कप्पती तत्य पाण्णास्यासतियवतजतीयारो मिष्फेडण नेणसह भइणिज्जो तेणेय तेणतेणे पविभागपहिच्छगे पउहा॥५॥ ततियवतस्सऽतियारो जिपखातिस्स सेहमविदिणं । भयणा तेणगस होती णमो समासेणं ॥६॥जो सो अप्पडपण्णो बिरहपरिसूण अहव अगिविट्ठो। दिक्खितऽचिदिग्णं तेणो परतो अवेणी तु॥७॥ अहवामुदित ससिहे भइयत्रो होति तेणसहो । एकेकस्स व इत्तो पार्भगो होडमो कमसो ॥ ८॥ मुंडपभुपेलाए या चउभंगो पदमवतिय अण्णाया। तेहरमाणों असेलो सेसेस नेपओ होलि ॥९॥ एष पमससिहपिलग चउभंगो गुण एल्यवि तहेवा एतेण कारणेणं देणगसदी वहिं भजितो ॥५३॥ अहवडण्णो चउभंगो ससिहेगं एकोणेति इतिएको । असिहम्मि होति चितिओ तेणा
पत्तारि तत्व इमे ॥१॥जो गन्तु सयंती सो तेगो होति लोगउत्तरिओ। मिक्खादिगते तम्मितुहरमाणो तेणतेणोतु ॥२॥ तं पुण पहिच्छमाणो पहिच्छो तस्स जो पुणो मूला। मिति एतरित्रो पढिनागपतिळगो ससा ॥३॥ तायताइयारो एवं णितस्स होड सेहत। अण्णे परमे दोसा महणादीया भवे स म्मापितरो कस्सति विपुल पण अत्यसारं तु।रायादीर्ण कहते कहियम्मिय गिण्हणादीया ॥५॥ विपरिणमे व सण्णी केई संबंधिणी भवे तस्स । विपरिणया व धम्म मुएज जापमहणावी ॥६॥ आयरियउबझाया कुल गण संघो तहेच धम्मो या सोवियपरिचत्ता सेहं गिफेडवतेणे आवम्हातुण हायको चितियपदेणं हरेज व कयादि। होही जुगप्पहाणो ण यादोसा तस्य केति भवे ॥८॥तो अतिसेसी दिक्से ओहीमादी अमूहहत्यो वा। बिरहस्योग अमूढो विक्सेना सो तहि चेव ॥५॥ केति पुण मंदधम्मा चितियपदणिसेवियं ववदिसंति। बहपादचोविच जहा मूलविणहाणहविलगा ॥५४०॥णिफेडियमिच्छता रक्खियमालेबर्ण पचदिसति । मूलविणदोष बडो जह चिडति लम्गपादेस ॥१॥ एवं तु मूलसूतं उडेतू तेतु लग्ग साहासु। साकारण णिती निकारणओ प पटिकुट्टो ॥२॥जे के सेहदोसा बालादीता मए समक्खाता। ते चेव य सविसेसा गुधिणि सह पालवच्छासु ॥३॥ कहते तु संभवती गम्मम्मी तम्मि व बाले या विद्वा तु पालदोसा होज कदादी गसो वा॥४॥ एवं अवसेसावी णवरं मोसूणिमे सहि अगले। युदं जहडसरीरं तेणं रायावकारि च॥५॥ दासमणतं चहा ओपवं भतम सेहमिफेडिं। अक्सेस अगलदोसा भइयवा गुत्रिणीए उ॥६॥ अहवापि मुक्षिणीए अपने दोसा इमे भती। कायमवस्थो बिच चविकिति वयणम्मि य मेरेजा ॥७॥ १०७४ पत्रकापभाष्य
मुनि दीपरत्नसागार
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आगम
(३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [०५४८] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [०५४८]
दीप अनुक्रम [०५४८]
कीवे तेणे रायानकारि दुडे य सेहणिप्फेडे । गरिणीए य जहकम वोई आरोवर्ण इणमो॥८॥ मूलं चतुगुरु पारंचिया दुबे चउगुरूं तो मूलं । अहवाऽवकारि मोत्तुं सह वा सेस मूलं
॥९॥ पारंची मलं वा अवकारिए सेहे होति पगरुमा । सेसेस ठाणएस चस्या हमणेयवा ॥ ५५०॥ बाले बुड्ढे कीये जो मते असणे चेवा करमादिगिए वा जदि पच्ठा । सीहोज णिक्खंतो ॥१॥ गच्छे संगहियान संचासो तेसि होति णिहिडो। न चिरा (उ)त्ताणं णियमा एगहाणे य पाएण ॥२॥ होजाहि गुधिणीयचिजह पउमबतिक मुटमाया बा।
तू उपस्सयम्मी भावियसदेसु वा गोये ॥३॥ जिणपवयणपडिकुट्टो जो पञ्चावेति लोभदोसेणं । चरितहितो तबस्सी लोवेड तमेव तु चरितं ॥४॥ पवाविओ सियत्ती सेसं पणगं अणाबरणजोग। अनुचा समायरले पुरिमपदाणिवारिया दोसा ॥५॥ पवावण मुंडावण सिक्खावणुबह मुंज संबसणा। पढमपदहीण सेसा पंच पदा वेहिं वजेन्ति ॥६॥ परजा तुअभिहिया 0 सा पुण होजा कहं तुपानातं वत्तुमणाऽऽयरिओ गाहासुतं इम आह 10 छंदा रोसा परिजुगा, सुविणणाणा पहिस्सुता । सारणिया रोगिणिया, अणादिया देवसपणती॥.:३९
१०॥८(प)छाणुबंधिया (१०) अजणियकणिया बहुजणस्स सम्मुदिया। अक्खाता संगारा बेयाकरणे सर्ययुद्धा॥..४०॥ ११॥९॥ पछि सुराऽभय देवी बड़ तेवलि मूग वासुदेवे य। उदायण मण (१०) केसी जंधुपभव मावि सोम जिणा..४१॥ल०१२॥५६॥गामेगो चोर पडिया वत्थहिरण्णादि गेण्हितुं ते यासंपट्टितेय पतिरूववती महिलिया भणति ॥१॥किन हरह महिलाओ? चोरा चितंति इच्छिया महिला। णेतुं पाडीचतिणो उवणीया तेण पडिवण्णा ॥२॥तीय धयो सपणे भणितो किंबंदिगंज मोएसि?। गंतृण चोरपति थेरी ओलम्गए पयओ॥३॥ किं लग्गसि पुत्ता! चोरहि भारिया इहाणीया। विरहे तीएँ कहती इहागतो तुज्म भति॥४॥ कहिए तु पोरनहिवम्मि पउत्थे भणति अन रत्तीए। पविसतु चोरहिवोर्क पबिडे (पच्छा)सेणाचती आओ पाहेडा आसंदिपचेस चोरहि भणति धुत्ति इणमोतु । जदि एजमझ भत्ता तस्स तुम किंकरिजासि?॥६॥ चोराहिवाइ सकारत्त तुम देज तो करे मिउडिं। आह ततो चोरहियो दारे यंभम्मि आईये ॥७॥ वदेहि येडेजा तुहा सणेति हेड संदीए। णीणेतुं चोरहिवो संभे कडेहि बेटेड ॥८॥ मुणएण खाइय बढे पासुत्ताणं च चोरहिवस्स। सगअसिणा छेत्तूर्ण सीसं गहित्यिो मण(चल)ति ॥९॥णीणीनंती सीस चोरहिवस्सा तु सा गहेऊणं । गालंती ऊ रहिरं बह गच्छति मम्मतो तस्स ॥५७०॥ जाहे जातभासं ताहे सीसं वयं पमोत्त। दसियाचीराईणि य साहिति य जाति चिंधडा ॥१॥ जाहे य णिहिताई ताहे तणपुलियाओं बंधती। वचति अब-17 पपखंती पुणो पुणो मम्गतो सातु ॥२॥ गोसे य पभायम्मी सेणहि पाइयं ततो दहूं। लम्मा कुटेग थोरा पासंति य ताणि चिंचाणि ॥ ३॥ हिरदसिगादियाई अणिच्छिया गिजाति मण्णता। तुरियं पाये कुड़िया नाणिपिय पभायकालम्मि ॥४॥ पंधस्स एगपासे ठियाणि कुटिएण जाच दिहाई। लेखीलेहि वितदिव्य महिलं घेतूण से य गता ॥५॥ते चोरा तं णे घोराहियभाउगस्स उपणिति। सा तेणं पढिवण्णा चोराहिवपहबंधम्मि ॥६॥ इतरोवि खीलएहिं वितहडिजो अच्छती त अरबीए। जहाहिणिजदो अह एति अजीहतो सहियं ॥७॥131 तो कवितो दठूर्ण कहि मण्णे एस विठ्ठपुमोति। चितेकणं सुचिरं संभरिता णियगजाती तु ॥८॥ अहमेतस्स तिगिष्ठी आसि पिसाडोसहीय ने मोए। सरोहिणीए तत्तो सरोहेना वणे तस्स ॥९॥लिहतिऽक्सरा अणिजओ सोऽई बेजो तयासि पुरनवे । संभारिय संभिषणाणऽतो उ तो वाणरो कहते ॥५८०॥जह जूदा णिढो साहिज मजा कुणसु परमित्ता। आमंति नेण मणितो जूहं गंतृण ते लग्गा ॥१॥ दोह निसेसमणातुं ण किंचि कासीय सो साहिणं । णट्ठो लत्तविलत्तो लिहति ततो अक्सरा पुरतो ॥२॥कि साहिजण कत? पुरिसाह ण जाण दोन्हषि विसेस । तो हो वाणरतो पणमाल अप्पणो क्लिए॥३॥ लम्मे सेग पहारेण मारितुं चोरपतिमतिर्गत रति मारिव चोराहिवं तु तं गिव्हितं इत्थिं ॥४॥ सम्गामं आणेला इस्थि उपणेति सबणयम्गस्स: वेरम्गसमाजुत्तो चिरस्थ इत्थीइ जो भोगो । मजार अच्छत सयणो जंपति तुझाचसे किष्ण १५ किंवाऽसि कद्वकामो' भणती ।। काहरुप्पणी ठेवं ॥६॥ राणतिय धम्म सोतुं परजमम्भुवेसी या एसा उंदा भगिता अहुणा रोसा तु पाजा॥७॥सीसारक्सो रण्णो धम्म सोऊण सावजी जानो। मा मारेही कंची उज्झिनु असि पर दार ॥८॥ तप्पटिणिरायकहिए पिच्छामि असिति सावएणुतं । सम्मदिट्ठीदेवयसारक्खिजोत्ति तो कई ॥५॥ दिनप्पभावमायसमयं तु दळूण कुदो तो राया। मिजति पचणीए सड्ढो तेसि तु रक्सट्ठा ॥५९०॥ वेति गरिद अह सोमा एतेसि तुरूसहा तुम्ने। जजंपियमेतेहिं तं सर्व परपर! तहेव ॥१॥ ताहे डोदूण पुणो णिकुट्ट असी तु णवरि दारुमओ। दिहोणरवसमेण विम्हइओ वेति किं एवं? ॥२॥ जंपति सड्ढो ताहे जारवर! देवप्पसाद बसो। पावविवजी उणरा हवंति देवाणऽवी पुजा ॥३॥ तो तुडो भणति णिची सेवसु एमेव दारुजसिणा उ। कडगादीहिय पूजितों पावितों सुमहंतमिस्सरियं ॥४॥ कालगयम्मि य सड्ढे पुत्तोणामेण चंदकण्होति। पहियष्णो भोगं सामंत पुणऽणर्मवम्मि॥५॥ पेसेति चंडकण्ह गनुर्ण घेनु सजियमाणेति। तुडो य भणतिराया किदेमि जहाद सो इणमो॥६॥ जं खजपेजभोज मेण्हेज पुरिमित सुग्गहिये। इय होतुनि य १०७५पत्रकायभायं
मुनि दीपरत्नगागर
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आगम (३८/२)
प्रत सूत्रांक [०५९७]
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [०५९७] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य | भणिए पारुणिपाणप्पमादेणं ॥ ७॥ रनिचिरस सगिह आगच्छति मजमातरो तरस । दुहिया जगंतीओ उएिकदा अण्णदा रति॥८॥ चिरकत दारं पिहए अह वदती आगतो न
सो दार। उम्घाईतो जमणि वएंसु जस्थेरिसे बेले ॥९॥ उग्पाडिय दाराई सहियं वयति मातु रुसितो तु। सो हुग्धाडियदारूति गन्तु साहुणमाहियओ ॥६000 पावेह कोई नेऽपिय समतोशिकातु वाखे । बिती गोसम्मम्मी पभाते पत्राचइस्सामो॥१॥सयमेव कुणति लोयं नाहे लिंग इलेति जतिणोतु। पचार्विती विहिणा एसा रोसानु पाजा॥२॥ वमर्ग भइयं
कम्म कुणमाण बदलू सावओ पुच्छे। केवतिभतीय कम्मं करेसि' पाएण पश्चाह ॥३॥ दाहामी पतिदिवस तव पाई गंतु साहूणो हि। सावेण पेसिओह करेजाणवे साहू ॥४॥ साह भणंति दमगं जो पइट करेति कम्मऽम्हं । तं कारचेमण गिहि पबदओ ववओ नाहे ॥५॥ साहू भणति दिवसं पवियचं जंच देमु उपएस। एवं कम्म अम्हं सिक्सं दुविपि गाहिति ॥ ६॥ कतिपय दिवस गतेहिं अह सड्ढो भणति तं भति मेण्ट । उकोसगमत्तेणं सुहितो रत्तो लवे इणमो ॥ ७॥ अच्छतु तुम्भ हत्थे जति ना मग्गे तदा दलेजाहि । कतिपय दिवसेहि ततो अभिगयधम्मो उपद्विषो । परिजुष्णेसा भणिता सुविणे देवीएं पुष्कचुलाए। नरमाण दंसर्ग पवजाऽऽचस्सए नुत्ता ॥९॥ चतुरो तु गोणपाला सन्था हीणं जति नु अडीए। पडिलामिति पहड्डा दोहिं दुगंछाइयं तहियं ।। ६१०॥ दियलोगगता तत्तो यह दुगुंछा इसण्णि दासनं तत्तो मिगा यहंसा सोनागा चित्तसंभूता॥१॥ अनुगडी तिस्थगरें पुण्ठति कि मुलभदुलमयोहीऽहे। नित्थंकराह विग्यं अम्मापितरो कोहिति ॥२॥ तो ओहिनाण पासिनु माहणपुत्तत्त णगरमुसुगारे। सो माहणो अपुनो पुच्छति णेमिनिए पहवेस ॥३॥ते काउ समणरूर्व उसुगारपुरस्मि आगता कहए। बहुजण नीताचीणि तो पुच्छे माहणो ने उ॥४॥होजऽम्ह किं चऽवचं पचाह चुपा दिया त होहिति । दो जमलदास्गात कुमारगा पधहस्संति ॥५॥ मा नेसि करेजासी पिम्पमयस्सं च तेसि पञ्चजा। होही बोलूण गता चहउँ उपनया तेसिं(सु)॥६॥ बालनऽम्मापितरो भणति समणाण सरिसरुवेणं।
लस माणुससागा भमंति बढ़ण ते पुत्ता ! आमा तेसि अलिएजह दुरंडरेण परिहरिनाह। मा भक्खेजा ने भेनेसि वयर्ण पटिमुति ॥८॥रस्थादि जत्थ पासंगि संजते ने तो पलायति । अह अमया नगर पहिचेटे पासति बदते ॥९॥ विति य अम्मापितरो दिद्वऽम्हे पेट बंदमाणातु । णवि समणरुवि रक्सस भक्सिंति व चेहरूबाई ॥ ६२०॥ चिते-- ताम्मापितरो अतिचीसन्या इमे हु जायनि । मा पत्रएज इहति अल्लियमाणा तु समणाणं ॥१॥ साउबझाया एने वयं णिजंतु तत्वऽहिजतु। इय संचितेऊणं वयं णीता ततो तेहि ॥२॥ पदयाएं समीयम्मी मणाभिरामो नुअस्थि पहलाखो। अह अण्णदा कदाई ले नु स्मंता गता ताहियं ॥ ३॥ सत्या हीणा य जती तिसियकिलता त आगता तहिया एव करेमो । भिक्खं बरहेट्टा पहिता तत्तो ॥४॥ तो ते भयाभिभूता घेउ बिलगा तमेव बडरक्सं। जतिणोऽविय तस्स हेडा ठा परिसंति मिक्वद्या ।। णवरि पत्तिति गुरु तहियं अज्जायण णलिणगुम्मंति। ता ते सरति जानिओयरिन दिन विति॥६॥ अम्मापितरो पुषितु पव अध्भुवमो सेस तु। जह उसुगारज्झयणे पासात सुत्तमालाचे ॥७॥ एसा पहिस्सुता खलु पाजा सारणी तु णालेसु । चोरसमे अज्झवणे जह तेतलि पोझिला बोहे ॥८॥ पतिठाणे जुबराया राहायरियाण पासि णिक्वंतो। तगराएं तस्स भगिणी विणा जितसत्तरायरस ॥९॥तगरगताण कदापी उजेणीओ य आगतो साह। राहगुरुपुच्छणाचाहति वाहेति रायसुतो।।६३०॥ पुत्ती पुरोहियस्सय दोऽते णिवपरमि पाहतातं सोतुं जुषणिपमुणी
ती मम ननुजो सोतु॥१॥ सासेमि तं दुरर्ष आपुच्छिय गुरु मतो उउजेणिणिरुवसम्मत पहात चेत्र कहिति से जतिणी ॥२॥मिक्ख णिमायम्मि य भणितो अच्छाहि आणा. स्सामो। भत्तट्ट अत्तलाभीति नि सेहणियओ॥३॥दसेतृण भियत्तो सुडो इयरोवर्मनु गियओक। सरेण महंतेणे अह कुणती धम्मलाभ तु॥४॥ सो तेहिं सोतु विडो परितुहेहि चणेहिं सो महिओ। मणिती तणचसुतीय होनू वेण ते भणिता ॥५॥ गायह तुम्मे हि ततो ते तु पगीता पणमिओ साहाता ते उपदचित्ता साधुणा खिलिया दोषि ॥६॥ पुणरवि ती गायमुनुमंतु अम्दे उ णथिमो इन्हि । इय होतुत्ति य मणिते पणचिता ताहे ते दोषि ॥ ७॥ पुणरविय विहवेता गोपालग! विवेह किं एवं । मणिला ते सापूर्ण विति य कि सबसि ने अम्हे ? ॥८॥ देहि जुर्द अन्द हविता साहुण दोषिणवी समगं। आगच्छत्ति सिग्पं तो ते आधाविता तुरितं ॥९॥ आधाता यतत्तो पेनुं वाहामु दोवि साहुणे।। सह विहुताऽणेण दुनं जाह संधि विसंचिता सो ॥ ६४०॥ उत्ताणए महीए पाडेतं णिमातो तुसो तत्ती । उजाणं गंतूर्ण झायति झार्ण गुणसमम्मो ॥१॥ अह ते दह्र णिहते संमंती | परिजणो कहे रजो। रायाचिय संभतो आगंतु नियच्छती ते तु॥२॥ पुच्छे तेऽपीय जती विति य त्वरम्ह पविसते कोई। णपरिको पारणओ जागतोय तु जाणामो॥३॥ साहे उताणादिसु रण्णा गनिसाविजओ य दिडो या गंतूण सर्व राया चलणेसु णिवडिओ जतिणो ॥४॥ येई य ज इमेहि अवरवं तं समाहिसी भंते! जंपति साधू जदि णिस्लमंति मोक्सामि तो णवरं ॥५॥सण्णाओ अपरेहि एस कुमारस्स माउलो सो उबहुसो निबंध को पटिवण्णा जाहे ते दोपि॥६॥ताहे गतृण तहि दोषिणवि पेतुण नेण बाहासु। तहणं खलखतीकित जह संधी सि पुणो लगा ॥७॥णिक्वामेतुं दोष्णिवि सुरिसगासं तु णीणिया तेणं । चितेइ रायतणओ साधु कतं मातुलेग मम ॥८॥ मम हियमिच्छतेणं (२६९)
मुनि दीपरतसातार
दीप अनुक्रम [०५९७]
Pare4KAVARTA
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
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कद बुझेजामिति य? मणितो कोसीपमा
ते तम्मि व किलापूर्ण साह समायलिला भवोही ली ग
सय किच्छप्पाणा व होहिलिगामति भणति सो देयो। अहम
प्रत सूत्रांक [०६४९]
कदमाणे पीहकोष बालम्सा नहमी सेयन्ती अनिवारविषजितो विहरे ॥९॥ इतरो जातिमदेणं अविणयमादीणि अविगडेतार्ण। बाममोहीय चितुगतो तु दियलोयं ॥६५॥ कोसंबीइ य इणमो सेट्ठीणामेण तापसो णाम । मरिऊण सूपरोरग जातो पुत्तरस पुत्तो तु॥१॥ जातो जाति सरतो विचिंतती किण सुण्ड अम्मति। पुत्तोऽविय पापोती भणामि मूयत्तण बरं मे ॥२॥ मरनेको निस्थको पुच्छति फिर सुलभकुलभषोहीऽहं ?। भणितो दुभवोही सी गुरुपरिभवकएण ॥३॥कह पुज्जामिति य? भणितो कोसंविमूगमातूए। उपजिहिसी तहियं भूगा जम्भुस्थिती पोहो॥४॥ताहे आगेतृर्ण साह समायति (गामंति) भणति सो देवो। अहर्ग पाऊण इतो तु मातुएँ उदरम्मि ॥५॥ उववजीह अहरा होहिति अंबेहि डोहलोऽकाले। अविमिजते तम्मिय किच्छपाणा य होहिनि तु॥६॥ अहगं गिरिणीतये सबोतुय अंवर्ग करेहामि । अंचालभे पजसि दे अंबे देह जदि गम्भ । अम्भुनगते ससाखे ये देजासि पालनाये यासाहुणं चलणेसुं पाडेजाही अणिपि 100 किंबहुना तह कुजा जहऽहंसात्तणे वढी होमि। संबोहिकारओ खलु लमति अजमेण चोहिं तु ॥९॥ मूगेण अभुषगति देवो णमिऊण सालयं पत्तो। पाऊण य उपवनो कुण्डीए मूगमाऊए ॥६६॥ अंबगडोहल जाते अविणितम्मि देहहाणीए । अण्णपरिजणाणं मूगो लिहतसराणिणमो ॥१॥जदि देह मेय गम्भं मझ तो अंबगाणि आणेमि। देमिति अम्भुपगते ससक्खमाणेति अंचाई ॥२॥ तो पुण्णडोइलाए जातो दिण्णो यताहे से नस्स । उत्नाणसाय ने जतिणो पादेस पाडेति ॥३॥ अतिपिस्सरं परोच्छी जाहेविय पाडियो उ पादसु । सहचलणेसु जतीणं मूगेणुत्तो तुणेच्छीया ॥४॥ पेनु गीचाएं तओ मूगेर्ण E पारिओ से बहुसो। परिलंतु ततो मूओ निसंतोगतो व दियलोपं ॥५॥ ओहीए बठूर्ण सुविणादिसु बोहिओ जति ण पुन्झे । ताहे करेति रोगी देवोऽपि च पेजरूण ॥ ६॥ जदि वहति सस्थकोस भमनि मए पाविजदि समं एसो। तो पीरोग करेमी पढिवणों कतो यणीरोगो ॥७॥ पेण संपयाओ गुरुर्ग से सत्यकोसर्ग दावे। ते वजभारगुरुगं बेली ण नरामि पोहूंजे ॥८॥ईसेनि साधुरूर्व बेनि जदि मिक्समाहि तो तेहिं । मुंचामि विमुंचेमियरोगा परिचण्ण तो मुको॥९॥णिक्वते तो तम्मी देवोवि ततो तु सालवं पत्तो। कालेणुप्पा सपर संपड़ितो अह सो॥६७०॥ देवेण पलायंतो दिवो विगुरुपिऊण तो अडवित काउंमणुस्सरूवं जह अडर्षि पहितो तत्तो ॥१॥ लवति ततो दुबोही कि इच्छसि अप्पगं विणासेतुं ? जंजासि अडवितो देवोषिततोगु पचाह ॥२॥ पुण विजाणमाणो परमादीदुक्खसंकिलेस तु। किं णितुं तत्तो पुपरवि दुक्खारविमतीसि ॥३॥ अगणितो तं पयर्ण सघर अह आगतो नतो सो तु।रोगाणं साहरणं भूओ विजागमो दिक्खा ॥४॥ कालेण केणइ पुणो लिंग मोनूण पहितो सगिह। देवेण पुणो दिहोगामपलित्तईतरा कुणति ॥५॥ पुणरवि मणुस्सावी तणभारेणं तु विसति तं गामा बढ़ लवे पुराणो किच्छसि अप्पणो णासं? ॥६॥ जंतणभारेण तुम विससि पलितं ततो लवे देवो । एव तुम जाणतो जरमरणपलित्त संसार ॥ ७॥ पविसंतिसि णासं मुंचसि जं दुक्खलदियं दिक्स । अगणितो पचति घरं गतस्स रोगं पुणो कुणति ॥८॥ पुणरवि तहेब दिक्ला उपाए यसपरहुत्तम्मि । संपाहिएं जीए तस्स पहे तरपडिमं ॥९॥कातुं जमण देवो अचितमहितो तु पडति देहमुहो। पुणरवि समुहवेतुं व्हरियचिओं सो पुणो पदितो॥६८०॥ एवं पुणो पुणोविय अधियमहितोधि बहुसा पड़े जाहे । यति ततो दुबोही कि वरठाणे ण ठाएसो? ॥१॥ देवाह जहासि तुम बरठाणेवि ठविमोऽपिण रमेसि। पत्र मोतुणरगादहठाणं पुणषि अमिलससि ॥२॥ लखति पुराणो को तुम? देवो दसति मगन से । देवतं पुत्रभव संगारं चावि संभारे ॥३॥ती संभरितुं जाति संवेगमुचागतो भणति दे । इच्छामो अणुसहि जातो पिरो संजमे ताहे ॥४॥रोगिणिय एस दिक्खा अणादिया रामकाहपुरमयी। उदावणसंयोही पभावती देवसग्णसी ॥५॥ वच्छऽणुबंधी मणको कण्णाएँ अजणिओ तु केणहवि । पुत्तो जायति जो तू सो होती अजणकाणी उ॥६॥ णिवतियुतानि दोनिवि मिक्संताई तु भानुभंडाई। अण्णद रायसुतो तृणिसाएँ लोयऽप्पणी कुणति ॥७॥छडेहामि पभाते चलणाहो काल पडियर सीए। पोग्गल वेदागमणं अह नियति तेसु वालेगु॥८॥वीसरिया से तस्स य सिरोरुहा सम्मि पेच ठाणम्मि। तस्य यपवित्तिणी उ अहागता गाम गंतुमणा ॥९॥अहतीए रायदु. हिया से बदितु सा पदेसे अह संसि। उवविद्द गवरि तीए य मोउर्ग सहसमोगाई ॥६९०॥ लजाए सह घेर्नु तेसि जे सुकपुग्गलाइये। गुज्झम्मि सनिवेसिय अहसुकं जोणिमोगाद ॥१॥ तो गमो आहुतो अह पोई बदिउ पयतं चामुणिया व सुविहिवाहि पुट्टा ती तुणपि जाणे ॥२॥ अतिसयणाणी घेरा य पुचिडता तेहिं सिह जपते। होही जुगप्पहाणो रक्सहणं अप्पमादेणं ॥३॥ जम्मं सइटकुलेय स परिढतो गोण्णणाम कत केसी। एसा तु अजणकाणी पाजा होति णायका ॥४॥ बहुजनसमुतियाए णिक्खमण होति जंचुणामस्स। अक्खायाए जंबू धम्मं अक्खादि पनवस्स ॥५॥ संगार माविणाते सत्त णिवा कासि जह तु संगारं। वेयाकरणे सोमिल पुच्छा जह पाकरे भगवं ॥६॥ सयबुद्धा तिस्थगरा सोलसहा एस होति पाना। पुच्छापरिसुद्धम्मि तु अम्भुचगते होति पाजा आगोचरमचित्तमोयणसज्झायममाणभूमिसिजाती। जम्भुषमपम्मि रिक्सा दवादीसु पसस्थाटालगाविस १०७७पत्रकापभाप्यं -
मुनि दीपरनसागर
दीप अनुक्रम [०६४९]
जालमा
मुसि क्लयो अश्चितमहितो 10 देवाह जहासि भारत जाति से
दिया
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [०६९९] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [०६९९]
दीप अनुक्रम [०६९९]
तरते अणकले रिजते अहाजात सयमेव चिरहत्यो गुरु जहण्येण तिहमा ॥९॥ जनो वा चिरहस्थी सामाइम तिगुण अहाहणं चा निर्ण पारक्सि णिस्थारम गमगणे - बुद्धी ।। ७०० ॥ फासुय आहारो से अणहितं च गाहए सिक्ख । ताहे य उबटुवर्ण छजीवणियं उपत्सस्स ॥१॥ अप्पने अकहेता अणभिगवऽपरिच्छतिकमे पासे । एकेके बउग कंगा विसेसिया आदिमा चउरो।।..४२॥२॥ अप्पसं तु सुतेणं परियाग उबडुपिनु चाउमुख्या। आणादिणी व दोसा बिराहणा छण्ड कायाण ॥३॥ मुतत्य अकदेता जीवाजीचे व बंधमोसं च। उवठवणे पउगुरुगा विराहणा जा मणिय पुर्व ॥४॥ अणहिगतपुण्णपावं उबटुक्तिस्स बडगुरू होति। आणादिणो य दोसा मालाए होति दिनो ॥५॥ ससरक्तदगजलऽगणीपतिहिते हरितवीजमादीसुहोति परिक्सा गोयर किं परिहतीण बावित्ति।..४३॥६॥ उचारादि अथंडिल बोसिर ठाणादि वावि पुढचीए । णदिमादिदगसमीचे खारादीदाह अगणिम्मि ॥ ७॥ विजणऽभिधारण पाने हरिए जह पुढवीत तसेसुंच। एमादि परिक्सित्ता बतदाणमिमेण विहिणा सो॥८॥दवादि पसत्यें पता एकेक तिगुण णोवार हेडा। दुविहा तिनिहाय दिसा आयंबिल णिविगतिगो वा॥९॥ पितपुत्तागं जुबला दोणि तुणिपसंत तत्व एगस्त । पत्तो पिताण पुत्तो एगस्स उपुत्तों णतु धेरो ॥ ७१०॥ ताहेतु पण्णविनति दंडियणायं तु कातु भण्णाइतामा गेह असम्गाहं रातिनिओ होति एसविता ॥१॥ एवं सो पचवितो जदिइच्छे तो उपहवेती तुच्छते पंचाई ठती दो तिग्णि वा पणमा ॥२॥ वत्युसमावासजवजाऽधीतं तावतं पडिमईति। एवं रायअमचे संजतिमझे महादेवी ॥३॥राया रावाणो वा दोणिवि सम पत्त दोसु पासेस। ईसरसेडिअमचे नियमपडाकुल दुवे मुड्डे ॥४॥ समयं तु अणेगेसु पत्तेमुंजणमिओगमापलिया। एगता हती ठविता समराइणिता जहाऽऽसणं॥५॥ इसिं अणोयाइत्ता वामे पासश्मि होति आचलिया। अहिसरणग्मिय बद्दी ओसरणे सो व अण्णो वा ॥६॥ उपठावियरस एवं संभुंजणता तहेष संवासो। चिनियपद संबंधी ओमादिसु माहुपहिया ॥७॥ मुंजीसुमए सदि इयाणि णेण्डति मा तु पहिभा। अहिसायनिक ओमे पच्ने जेण मुंजंति ॥८॥ एमादिणा तु भावं ता अप्पन अहवऽपत्तं चा। उपठाचेतु मुंजवि अपरिणते चित्तरक्तवा ॥९॥ उपठा
पिय संभुने संचासो एस्य होति कायो। बितियपाएं संवसेजा अवविधपिमेहिं तु॥२०॥ अण्णस्थ णस्थि ठाओ अहवा होजाहि सोऽपि एगानी। ण प कप्पनि एगरसा संचासो पण संचासो ॥१॥ सचिनदमियकप्पो एमेसो पनिओ महत्यो नु। अचित्तदवियक एसी बोण्ठं समासेणं ॥२॥ आहारे उपाहिम्मि य उपस्सए वह य पस्सवणए या सेज णिजहाणे
दंडे यम्मे चिलिमिणीय (१०)।..४४॥ २२॥शा अवलेहणिया देवाण घोषणे काहसोहणे चेय। पिपलग मूति मक्खाण छेदणे चेष सोलसमे॥..४५॥ २३॥४॥आहारो खलु दुविहो लोइय लोउत्तरो यणायत्रो। तिनिहो य लोइजो खलु तत्य इमोहोइणायत्रो॥५॥ भायणे भोवणे पेव, मुंजियो तहेच या भायणे तुइमं बेरा, माहासुत्तमुवाहरे ॥ ६॥ सुवष्णरजते भोज, मणिसेले पिलेपण। (अविदाही) पतमायास पर्वती, पाणसुदं च मिम्मते ॥ सूचोदणं जवणं तिथिय मंसाणि गोरसो जूसो। भक्सा मुललावशिया मूल फलं हरियगं डागो 11..४६॥८॥ होइ रसालो यनहा पार्ण पाणीव पाणगं चेष। सागं पऽद्वारसहा जिकबहतोलोगपिंडो सो॥...
४९॥ मूरगहणेण गहिता वंजणभेदा उ जत्तिया लोए। ओदणगहणेणं पुण सतपिहो ओदणी होति ।। ७३०॥ जानु जपण्णं भष्मति तिथि तु मंसाणि जलयरादीणं । गोरसों सीसी उ मुग्गपडोलादि जूसी तु॥१॥ भावविहि सुक्खा गुलकत तह लायनीत बोदवा। मुहमजतगमाची मूल अंबादिम कल तु॥२॥ हरितग मूलकुढेश्म भूयणगादी यहोति णाययो। सागो पगोरसको पजेवणावी बहुविहाणी ॥३॥ दो पतपला म पल दहिस्स अवादगं मरिय वीसा। खंड तुलावसभामो एस रसाल णिवतिजोग्गो ॥४॥ खंड तुलारसभागो दस खंडपला इति णाया। वे सम्मि पक्सिचित्ता मस्जियणाम रसालोति ॥५॥ पानं मनविही उपाणीय घारपाणियादी। दक्खादिपाणगाई सागेणं बंजणा जे तु॥६॥ एवं अट्ठारसहा णिस्वहतो बड़वमादिपरिहीणो। ण प उनहम्मति जेणं रसादि देण दोणं ॥ ७॥ परिसुख दाहिणतो पाणि समाणि वामतो कुजाणिवमहुराणि पुर्व मन्झे अंदर्यताणि ॥..४८ परिसुक्खं सालणगादि ने गिण्ह सई तु दाहिणकरणं । बामेण पाणगादी वेण तयं वामपासम्मि ॥९॥ अप्पाइजति देहं पुर्व तू णिमहुरदवहिं। पेताबीहि णियमा केवइयं वं तु भोत्ता ७४०॥ जहमसणस्स सर्वजणस्स कुजा दवस्स दो भाए । पातपरियारणका उम्भार्ग ऊणय कुजा ॥१॥ पुण एयपमाणं आदी मज्झे तहेब अवसाणे। केरिसर्य भोत तस्स इमं गाहमाइंसु ॥२॥ असतामिव संजोग पण्णा भोवणविदि उपदिसंति एक्सं वायसाणं मजा विचितं महुरमादी।..४९॥३॥ असता असजणादुजणा य एगडिताणि एयाणि । तेहिं समं जा मेती संजोगेसो तुणायचो ॥ल०१३॥ गुलमहुरा उहाचा तेसि पुर्व करिति य पियाइ। मो य होति मज्झा महुरा विगतिंच दाएंति ॥ल-१४॥५॥ कुर्वति प मासति य अवसाणे वारिसाणिं जेहिं तु। जिज्मति सासुकतं एवं किर भोयर्ण मुंजे ॥ल०१५॥६॥ आदीएं मिदमहुरै मज्म विचितं दवलक्ख अवसाणे। तेणं विपागमेती दुजण तीच अवसाने ल०१६॥७॥ कुसला१०७८पकम्पमाप्यं -
मुनि दीपसागर
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [०७४८] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प” संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
म
..१०॥२॥ तेइच्चियपत
त्य
पूया राया बेती अहिजऊ सत्य
समाहिति बराई। मिससत्य
ह
प्रत सूत्रांक [०७४८]
दीप अनुक्रम [०७४८]
या मिहिएणं पण त भोलय दमण पिहिणा तु। असुरसुरं अथवचर्य अबातमविलंबियं चेव ॥८॥ अयमन्नोऽनि विही खल भोपणजायम्मि होति णायन्यो । जारिसयं ण भोत्तव्य दोसा
जे यापि भुनस्स ॥९॥ अचुहं हणा रस अतिजब इंदियाई उपहणति। अतिलोणियं च वावं अतिनिई मंजते गहणि ॥ ७५० ॥ आहारियम्मि एवं जीहारेण अवसस भवियर्थ । वस्थणधारे वेग दोसा य इमे धरिते ॥१॥ मुत्तणिरोहे चपखं पचगिरोहे य जीवियं हणति। उड्ढगिरोहे कोई सुतगिरोहे भये अपुमं ॥..५०॥२॥ तेइच्छियघृताए जाहरणं तत्व होइ कायव्यं । तेइच्छि मते राया पुषति पुत्तरिय णस्थिति? ॥३॥णस्थिति जत्यि घूया राया बेती अहिजऊ सत्या पिउसंविओ य भोगो तह चेय तीवऽणुष्णातो॥४॥ मच्छरिता विजपणे ती कि एस माहिति पराई। मिससत्य अहवा से परिच्छिउँ दिज अह भोगे॥५॥ सदावतुं पुडा किमधीतं तेति' तेसिसा पुरतो। वो जाए वातकम्मं सदेण कत हसे पिजा ॥६॥ तो भणति णि सात एते वेजा ण चेवन गरिंदा ! य जाणती सत्वं कहति? बेती इमं सुगम् ॥ ७॥ तिणि सत्ता महाराया, अस्सि देहे पहड़ितााबाउमुनषु रीसाण, पनवेगण धारए॥८॥णिम्मुहिकता तु बेजानीए साऽविय पविद्विता सहिय। सम्हान धाराएं पेग पायातीणं तु सोसि ॥९॥एवं भुते समाणे जति वातादी पकोय गच्छे जा। जाणेज सि वेलं पचूसादी इमं तहियं ॥७६०॥ सिंभो महति पचूसे, पदोसे पित्तमहारत्तम्मि । मज्झतिए यवाओ, बड्दति पुवावरण्हे य॥१॥ तस्य ण वेजो पुच्छिजती तु तेसिं तु वेल सवा कुविवाण अवेलाएपेच्छे(पत्ये)किरिया इमा तेसि । तित्तकडुएहि सिमंजिणाहि पित्तं कसायमहुरेहि। णिचुण्हेहिय वार्य सेसा पाही अणसणाते ॥३॥ केरिसए कालम्मी आहारों केरिसोतु पुरिसेणं । आहारेयत्रो खलु तस्य इमो चणितो सोय ॥ासीले उहं पविसेजा, उन्हें सीयं पवेसए, वर्च। णिदे रख पविसेजा, हुक्खे निई पवेसए ॥५॥ जो वाही मिदेणं समुद्वितो तस्स लुक्सकिरियाए। मुस्खेण मुट्ठियस्स तु काया णिवकिरिया तु॥६॥ एसोतु लोइओ खल पिंडो तू बग्निी समासेणं। लोउत्तरिए पिढे पण्णिमति पिंडणिज्जती ॥७॥ पिटे उम्मम उपायणेसणा जोयणा पमाणे या इंगाल घूम कारण अहविहा पिंडणिजुत्ती॥.::५१॥ ८॥ पुढवाईया भेदा पत्ता जहकमेण पिंडस्स। गविसणमादीयाविय एसणभेदा यह चेच ॥९॥ उम्गममादी दोसा सोय जहकमेण बत्तवा। जह भणिय पिंडजुत्तीय गरि इमो पुतिएं पिसेसो ॥७७० ॥ संचय कोहग दास्य : दाए तह गोरसे य लोणे या लंबण गेहे हिंगू दालिम तह तित्तए चेव ॥५२॥१॥ अगदाराम पुत्ते तुंचे फलही तहेच गाजो पाएतारिसमुप्पण्णे गहणं किं कस्स केरिसर्य ? ..५॥२॥ भत्तस्स उपनखेयो गोरसमादी तु संचतो होति। सो संपहा ठवितो भाये अपोच्छिणि अग्गियो (अविगिहो)॥३॥ अत्तद्विय परिभुत्ते कप्पति मावम्मि ताहे वोचिडण्णे। कह योच्छिजति मायो' सोतूण अफासदोस तु ॥४॥ कोहग दुल तिखडा समगडा सि कहाण कति । अह दुखद संजयहा आयडीवक्खडा कप्पे ॥५॥ आवडाए दुख्दा संजयबहाए । तिछट ण कणे। जविषिय आयडाए आरंभो होति तेसितु॥६॥ एमेच दारुसागाइयाई जाई अफासुदवाई। असहणिद्विताई कापे समण पवि कप्पे ॥७॥ गोरसहिंगूतेशादि दालिमे नित्तकडुपदशाई। ररवण गुलो य भण्णति संचियमेवादि संघट्टा ॥८॥ कासुगदवा जेतु अनोच्छिणम्मि भावेण तु काये। उपखडिया वत्तहा वोच्छिष्णे भाये कयति॥९॥ अगई पखणेजाही आराम बानि अब रोवेजा। संजणिमित्त कोई पाणफलाई च दाहंति ॥ल०१७॥७८०॥ तत्ववि संजयजोग्गा संजयबहा कया ण कम्पति। अत्तद्वाएं कता पुण कापती संदुला जह तुल०१८॥१॥ पुतं जणेज कोई आयरिओ महा अपरिचारोत्तिा तेसि सहावो होहिति पवावेत तु सो कप्पे ॥ ल०१९॥२॥मायणअट्ठा तुंबिओं वावे फलही य वत्यमातद्वारा संजयठाए जा सुत्त अत्तवियम्मि पुण कप्पेल.२०॥३॥ रूतो संजयठाते आतडा सुत्तमादिकण कणे।जम्हा गहणअजोग्गोत संजतहाए कारिततो ॥४॥ संजनजट्ठा वियितो आवद्वोपद्वितोय कत्तो याकम्पति जम्हा य कतो संजवजोगो तु आता एवं गावीओपी कोइ किनिजाहि संजयहाए। आवट्ठ दूर कप्पेसमणहा दूढ णो कप्पे ॥६॥ एसो पूतिविसेसो भणितो पुर्व तु पिंडजुत्तीए। एनो उपहीकप्पं वोच्छामि गुरूवएसेणं आ दुनिहोय होति उपही पत्ते वत्येव ओवम्महिए। जिणवेरजाण तहा बोच्छामि अहाणपुजीए॥८॥ पाए उम्गमउपायणेसणा जोयणा पमाणे या इंगाल धूम कारण अडपिहा पातणिजुत्ती॥९॥ जहसंभव णेयवा पिंडगमेण तु पातमिजुत्ती । स तु उम्गमादी जहा जहा जे तु जुजति ॥७९॥ पासपमाणं तु इम पमाणदारम्मि होवि वत्त। मज्झजहष्णुफोर्स बोच्छामि अहाणपुरीए॥१॥ तिणि विहस्थी चउरंगुलं च माणस्स मज्जिरम पमाण। एत्तो हीण जहचं अतिरेगतरं तु उकोसं ॥२॥ उकोसतिसामासे दुगाउअदाणमागतो साहू । मुंजति एगहाणे एवं किर मत्तगपमाणे ॥३॥ एयं चेष पमाण अतिरेगतरं अणुगह पवत्तं । कतारे इम्भिाले रोहगमावीसु भाव ॥४॥ पई समचाउरंस होति चिर थावरं च वणं चा९र्ड वाताइ भिण्णं च अधारणिजाई ॥५॥ संठियम्मि भवे लाभो, पतिडा। सुपतिहिए । पिपणे किसिमारोग, सम्बणे गणमादिसे ॥६॥ बस्थे उम्गमउपायणेसणा जोषणा पमाणे या इंगाल घूम कारण अहविहा परवणिती ॥७॥ एत्वविध जहासंभव १०७९ पत्रकल्पभायं -
मुनि दीपरतसागर
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आगम (३८/२)
प्रत सूत्रांक [०७९८]
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
------------------ भाष्यं [०७९८] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
पोसेयवाई सबदाराई। पहलादिपमाणाणी पमाणदारे समोतारो॥८॥ गिम्हसिसिवासामु पडला उकोसमज्झिमजहना । पणेऊणं कमसो पष्ठादा पुरिस पोष्छामि ॥५॥ एमेष यय पच्छादा पुरिस सेनं च कालमासज। तिष्णादी जा सत्तनु परिजुष्णा पाउणेजाहि ॥८००॥ पुरिसा असह कालो सिसिरी खेल च उत्तरपहादी। गिम्हेऽपि पाउणेजा तारिसर्य देस. मासज॥१॥ एवं तु उग्गमादिरा सुबो समोपि एस उपही उा पारेयचो णियते अहाकटो चेच जहविहिणा ॥२॥ असतीने पुण जुत्तो जोगो ओहोयही उपग्महितो। छेदणमेदणकरणे जा जहिं आरोवणा भणिता ॥३॥ तिचिह असतित्तिजा सा दवे काले यहोति पुरिसे या दबम्मि णस्यि पातं ओमोदरिया य कामम्मि ॥४॥ पुरिसो य उगमंतो ण विजनी एस : परिसअसती तु। अहवा अणलं अधिरं अधुर्ण सन्तासती तिविहा ॥ ५॥ अहवा तिगति असती अहाकटाणं तु अपपरिकम्म । तस्सऽसति सपरिकम्मं ते तु विहीए इमाए तु ॥...५४
॥ चत्तारि अहागडए दो मासा हॉनि अप्पपरिकम्मे । तेण पर विमम्गेजा विवड्दमासे सपरिकम्मं ॥७॥ पुणताहो तिक्खुत्तो विमग्गियात होति एकेक। एवं तु जुत्तजोगी अल. भंते गिण्हती ततियं ॥८॥ अहना असिचोमेहिं रायढे व से गुरुणं वा। सेहे चरित्तसावयभए य तहिपि गिण्हेजा ॥.:.५५३९॥ असिवादी पुष्य भणिता गुरूवमम्मे गुरू भ. मिजाहि। अच्छाहि ताव अजो! तस्य तुने कारण विदनि ।। ८१०॥ एतेहि कारणेहि अहगटचजेण दोन्ह गहितार्ण । उदगमादी कु जयणाए ताहे सुद्धा तु ॥१॥णिकारणमहणे | पुण चिराहणा होति संज्ञमायाए। छेदणमादीएसं जा जहिं आरोषणा भणिवा ॥२॥ तं पुण सपरीकम्मं जयणाए होति लिंपियनं तु। एतेण तु लेसेणं लेवग्गाहणं तु यण्णेझं ॥३॥ हरित बीजे चले जुने, पच्छे साणे जलहिते। पुढवी संपाइमा सामा, महवाए महिया इमे ॥४॥ एवं लेवम्गहर्ण जहकमं वणितं समासेणं । ओहोबहुवम्महितं उचिंगेऽहं समासेणं | ॥५॥ जिणकपरकप्पअजाणं घेच ओहुवम्गहित । बोच्छामि समासेगं जहण्णर्ग मज्जिामुकोसं ॥ ६ ॥ पत्तै पत्ताबंधो पायट्ठवणं च पायकेसरिया । पटलाई रयत्नाणं च गोच्छओ | पायणिजोगो॥७॥तिपणेच य पच्छागा स्यहरणं पेव होइ मुहपोती। एसो दुवारासविही उपही जिणकप्पियाणं तु॥८॥उकोसिओ उचउहा मज्झिमग जहष्णगोऽपि पउहाउ। पच्छादतिग उम्गहाँ जिजाण अह होति उकोसो ॥९॥ पडलागि रवत्तास्यहरणं पत्नबंध मज्झिमगो। गोच्छा पत्तवर्ण मुहर्णतग केसरि जहष्णो ॥८२०॥ जिणकप्पियाण एसो सेसाण चिणिमायाण एसेय। बेरार्ण अतिरेगो मनो तह पोलषदो य॥१॥ उसोस जहनो तू जोगिय जिणकप्पियाण सो वेव। मझिमए अतिरेग मनो तह पोलपहोय ॥२॥ एसेच चोदसविहो चोलाणम्मि णवरि कमदं तु अजाण इमो अण्णो ओहोचहि होति गायत्रो ॥३॥ उम्गहणतग पहो अबोका चलणिया य बोदया। अमितर बाहिणियंसणी य तह कंचए चेव॥४॥ उकच्छिय चेकच्छिय संघाडीचेच संधकरणी या ओहोवहिम्मि एसो अजाणं पण्णवीस तु ॥५॥ उकोसो अहविही मज्झिमतो होति तेरसविहो तु। चउहजहाणो र सोचिय जो जिणकप्पे समस्याओ॥६॥ पच्छादतिय उम्गहों जिसमाऽम्मतरीय बाहिरिया। संघाडि संधकरणीय अहहा होति उकोसो ॥ आपनाचो पहला स्यहरणं पानपुंडणं | वेषामने य कमट उम्माह णते तह पट्टए चेष ॥ ८॥ जजोए चलणिमा कपुर उपकच्छि वह चिकच्छी या एसों तु तेश्सपिहो मज्झिम उबही तु अजाणं ॥९॥ एसोतु ओहिओनहि | एनो सेसोतु होनुपग्गहिओ। संथारपट्टमादी तु गहा होति णायचो ॥ ८३० ॥ दुविहोवहीवि एसो जहकर्म गणितो समासेणं । एनोउ उवेसणयं योच्छामि अहाणपतीए॥१॥ भिसिगादि उवेसणर्य वासारते उपाणयहेतुं। बेहासडा धिप्पाहतं चिय सानेगपरसवर्ण ॥ २॥ विस्समणाराण पेप्पती एनों चोच्छ सेनासेजा संचासे या एगई होति णाय ॥३॥ सर्बगिया प सिजा होति असबंगितो तु संयारो। एमंगि अणेगंगी परिसाही अपरिसाडी य॥ २१॥४॥ एतेसिं सोसि अट्ठहिंदारहिं मम्गणा होति। पिडणिजुशिगमेणं
यं जहसभव सा ॥५॥णिसिपणहेतु णिसेना स्वहरणपमाणो गहेगा। किं पुण पिप्पा सा न भण्णाति सुण कारणमिमेहि ॥६॥ पुरिसे पुद्धपि सरस्पे पण्डाफमे रहेग अभियते। बाउसपरिहरणाए संचारणिसेजऽणुण्णाता॥..५६॥७॥राजादी पाइओभूमीएं अणंतरं णिवेसंतो। विपरिणमेज तेणं संधारणिसेज पष्णता ॥८॥मीससचित्तधराए अहाणाडीम मा विराहणता । उम्हाए पुढबीए तेण मिसेजा य संथारो॥९॥ एमेव य ससरवले सचित्ते संतरं भवे जयणा। सागारियं च इहरा पूलीउडियसरीरो॥८४०॥ कजेण गिहिणिसेजागतस्स बस्यम्मि मइलिए गिहिगी। उष्फुसणघोषणादी कारेना पच्छकम्मं तु ॥१॥ अचिततं वा सि भवे धूलीउम्गंधि पुते (२) णिविम्मिअहवा बाउसदोसा पष्फोडिने धुर्वते वा ॥२॥ठाणं तिविहं मणिनं उड़द णिसीयण तुपहठाणंचा उदं काउस्सग्गो णिसीयण णिवेहठाणं च ॥३॥होति तुबह णिवष्णं पडिलेहपमजियाण काया। सेवाणिसेजार्ण या ठाणं अहवाचि ठाणं तु ॥४॥लही जातपमाणा बिलद्वि चउरेगुलेण परिहीया। दंतों बाहुपमाणो विवंटो कच्छगपमाणो ॥५॥ बुट्ठपसुसाणसावदबिजलविसमेसु उदयमम्गेसु । लट्ठी सरीररक्सारपसंजमसाहिगा भणिता ॥ ६॥ चम्मे पहियखाइगरवादी होज चम्मगहणं तु । अस्पुरणपावरफ्रखा कुटिए वह संपणवादी ॥ ७॥ अरिसमगदलका रुपति गिताति
अत्युरणगं तु दुबलपाए वाम् अदाणादीसु तलिया तु ॥८॥ कुडियविपिचणइंगुलिरक्खड्डा खालकोसमा होति । बज्मा ऊ संधणद्वा अदाणादीस छिण्णा य ॥९॥ (२७.) A.८०.पाकव्यभाष्य -
मुनि दीपरत्नसागर
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दीप अनुक्रम [०७९८]
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [०८५०] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [4/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [०८५०
दीप अनुक्रम [०८५०]
रजुमयी पोत्तमयी कंचलमयि तह व दंडकटगमधी। पंचविह चिलिमिणीजो वण्णिता एस पुर्व तु॥८५० ।। उड़बड़े स्यहरणं पासावासासु पाइलेहाणिया। वर उंबरे पिन्दिर नम्स आलंमम्मि चिंचिणिया ॥१॥ उभओ णहसंठाणा सचिनाचिनकारणा मसिणा। सचिनेगेण कुसे पासेणेगेण अचितं ॥२॥ कण्णाण सोहणं पुण कण्णाण मलेण संथिएणं तु। दुम्सेज जस्स कपणा नसणेजसोतु गिण्हेना ॥३॥ पचिरलदतो धेरो सित्यादीर्ण तु दंतलगा। लेवाइजरतिसारियसखडा गिव्ह सोहणयं ॥४॥ अवाणोमादी पिप्परलो बिकरणद्व कंदाणं । माणाहिगवस्थादी पगासमुह भाण करणद्वा॥५॥जुण्णाण संधणडा मई णखखवणं तु कंटा(ठाणं । उद्धरणढणहाण य छेदणहेतुं गहेय ॥६॥ उच्चारमत्तगादी अपणोपिय पविहायगारोतु। जोचाहिओ भणिओ उवगहा महाणस ॥ ७॥ सबोधि एस उवधायदोसपरिचजिओ घरेयहो। वीसतिधा उपधातो तस्स इमो होति णायबो ॥ २४॥८॥ उमाम उप्पायण एसणा य परिकम्मणा य परिहरणा अचियत्त (विइब)वतीयारे तहेव परियाणा विदिया ।..५आल०२५॥९॥ उग्गमम्मि यमण्णाति, पामि य पचाहणे। वेरिच्छयाहए पेच, नहा तेणाहति या..५८ाल०२६॥८६०॥ अण्णाणीवह , मालोहर अरक्खिए। कते य कारिसे वेष, बंधणे व पिराहणे ॥.:५९॥ ल०२७॥१॥ विवनकरणे चेच. एमेता। परिवनिओ। एने पत्नेय उवपातो, उपहिस्स पीसती॥.:.६०॥ल.२८॥२॥ उमामेणं तु अस्मुर्द, तहा उप्पावणेसणा। उवहिं उपहनं जाणे, वीच्छामि परिकमणे॥..६१शाल०२९ | ॥३॥ परिकम्मणे चउभंगों कारणे निहि वितिओं कारणे अपिही। निकारणम्मि य विही पाउस्य निकारणे अविही ॥७.३०॥४॥ गमगरवंडीवेलतिगलीलगमादी य होति अविही उ। निकारणम्मि तीय तु परिकमेयम्मि उपधातो ॥५॥ माणस विपरिकम्म निम्मोयनलेवसिवणादी या णिकारणमविहीए कुणमाणो होति उपपातो॥ल.३१॥६॥अम्भितरंतु चाहि बाहिं अभितरं करेमाणो। परिभोगविषजासे उपपातो होति गायव्यो । ००३२॥७॥णियगोवहिपरिभोगं समणुण्णाणं ण देति कजम्मि। जो मंडमचारीयनणेण उपहिस्स उचपातो ॥ ०३३॥८॥ पतियारे परिहारिय वत्वं पादं च जो गहेऊणं । पुण्णेचि तम्मि काले अणपुच्छ धरेंत उपपातो ॥ल.३४॥ ९॥ लोहय लोउत्तरियं परिपट्टिय जो तु गिण्डती उनही । उम्गमदासमुदं च उवाहत तं तु णायव ॥ १०३५॥८७०॥ अण्णगणमागतम्स तु जस्स उ उबहिस्स उम्गामी णजे । सोकर्ण परि जति उपायंते व णायम्मिान || ३६॥१॥ पामिश उवर्ग उभिडणं वेब होनि णाय। लोइय होउत्तरियं तु उवहतं तं वियाणाहि ॥ल०३७॥२॥ अण्ण यहते असते दिपणे साहुस्स अण्ण जदि बाहे। तं तु पवाह
पडोसा उवही तू उनहतं जाणे ॥९०३८ ॥३॥ सुणएण बाणारेण वजह रूवगमादि हरितुमानीतं । णरतेणाणीतं (दिजनमदिन) वा गेण्हतं उपहयं जाणे ॥३९॥४॥ अण्णाॐणोपहतो खलु कन्यादि अकप्पिएण जो महिओ। मालोहडो तु उपही ओलइओ जो तु बेहासेल.४०॥५॥ अणरक्सिजोत्ति सुग्ण उपही मोजूण जो उ गच्छेजा। भिक्खादीणड--
हाए सोविय उपहिस्स उपपातो ॥१०४१॥६॥ सयमेव करे उबही मिसेजादी सोऽपि उपहतो होति । कारेड व अण्णणं उपधातो सोऽपि बोबो ल०४२॥ ७॥ धनि भिणं 1 अविही भिण्णं व धरति सोऽपि उपधातो । सुचणं च दुवणं करेज मातं तु हीरेन।ल०४२॥८॥ दुरणं सुवर्ण विभूसहेतुं तु जो करेजाहि । उवहिउपधात एते अवा अण्णऽविमे होति ॥ १४॥९॥पंचाडप पण्णरसा सोला दस वेब होति ठाणागि। चत्तारि एकगानिबारस बीसं च ठाणाई॥..६२साल.४५॥८८०॥ दो खेने काले भाचे पुरिसे य होति पंचेव। एतेसिं पंचापि पावणा होति कायवाल०४६॥१॥ दो अणलं अचिरं अधुर्वचनहा अधारणिशं च। एतेसु पाउसुंपी गेण्हते भंग सोलातु ॥ ४७॥२॥ अहया महणाई लिने काले य अचितं जंतु।भाये जहा गिलाणो मुंजे अगिलाणों तह चेव ॥ ०४८॥३॥ पुग्मि असह तु जहा सहूवि परिजूंजने नहा उवहीं। रायादी पाइयो अहवा पुरिसो हवेजाहील.४९॥४॥ अहवा मारवमुच्छा अपिइनऽतिरित्त पाउसर्त च। पंचेते उपहिम्मी समणाणसया ण कायना ॥ल०५० ॥५॥ जोगमकातुमहागडे जो गेहति अप्प सपरिकम्मं वा। अहया अमग्मिकर्ण अयं गिण्हे सपरिकम्मं ॥७०५१॥६॥ अप्पडिलेहिय गारख मुच्छ विमासा य होति सत्तमए। अचियत्तेतमा मे कोई टिपतुत्ती (होति) अट्ठमए ॥ल०५२॥७॥ पण्णरसुग्गमदोसा अज्झोयरमीसजायमेगं तु। उच्चायणसोलसर्ग एसणदोसा य दसगं तु ॥ल. ५३॥८॥ संजोयणा पमाणे इंगाले व होनि घूमे य। चत्तारिएकमा खलु एते ते होति णायच्या ल०५४॥॥वारस ठाण इमे खलु वेदणमादी त हुँति उडाणा। आयंकादी छविय अधरण धरणा य उवधातील०५५॥८९०॥ वेयण बेयानये इरियडाए य संजमहाए। वह पाणवत्तियाए उ8 पुण धम्म (१०००)चिताए॥१॥ आर्यके उपसग्गे तितिक्खता भचेरगुत्तीसु । पाणिदया नवहेतुं सरीरवोच्डेयणवाएगा बीस पुण पुजुत्ता ने चेष य उम्गमाविणो होति। एते सो मिलिया णउतिं खलु होति उवधाता ॥3०५६॥३॥ आसीनं ठाणसतं जस्स विसोहीए होति उपलब। सो जाणती विसोहिं उपपाने बानि उबहिस्स ॥ ०५९॥४॥णउनि उपचाता खलु वत्तियमेत्तापि अणुवघाताचि । एए दोणिपि मिलिना आसीन होति ठाणसतं ॥ ल०५७॥५॥ एवं चिय आसीयं सयं १०८पाकल्पभाष्यं -
भूनि दीपरनसागर
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [०८९६] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प” संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [०८९६]
AMAVARNER
दीप
नजिगरजउयहीहि गणिते होम संसा जहकमे तु ठाणा | स०५८॥६॥ दो चेव सहस्साई ससर्व चेव जस्स उस सो जापती विसोहि उपधातं बावि जिणकरपे॥७॥le दो ठाणसहस्साई पंचेव सयाई होति वीसाई। सोजागती विसोहिं उपधातं चाविषेरार्ण ॥ ८॥ यत्तारि सहस्साई पंचेव सयाई होति पणाई। सो जाणती पिसोहि उपघातं येन अजाणं ॥९॥ एसो उ सोलसचिहो जजीवकप्पो समासतो मणिनो। एनो य मीसकप्पं बोच्छामि अहाणुपुत्रीए ॥९००॥ एतो छहिं सोलसहि य दोहिवि निष्पजवी तु जो कप्पो। दुगसंजोगादीओ सधो सो मीसओ कप्पो ॥१॥ पवावण मुंटावण सिक्लोपडे य भुंज संचासे । एते उपणायचा आहारुबहादि सोलसयं ॥२॥ दुगसंजोगादीया सवित्तचित्तमीसकप्पाण। पत्तेय मीसगाबिय णेयच्या जाणुषचीए॥३॥ ययाये मुंडावे पकाये पेय वय सिक्खाये। पय्यावे उवठावे पथ्याचे पेष समुंजे ॥४॥ पथ्याचे संपास एवं मुंडायणा हुचरिमेहि। णेया। दुगसंजोगा एवं सेसायि संजोगा ॥५॥ विचउपणछकजोगा एते सबित्तदपियकप्पम्मि। पत्तेयं संजोगा एनो अचित्त पोच्छामि ॥६॥ आहारे उबाहिम्मि य आहार नह उपस्सए वेव। एवं जाणक्सछेदण ता आहारेण चारेजा ॥ ७॥ एवं अपसेसासुचि उवधावीएसु उपरि उवरितु । गेया बुगसंजोगा जा पच्छिमो सूयिणहछेदो ॥८॥ एमेव सेसगावी तियगाईयापि सवसंजोगा। णेया जा सोलसगो एते पत्तेय अचित्ते ॥९॥ चित्तेतराण होण्हवि एत्तो संजोगता मुगेयवा। मीसगकप्पे या दुगमादी सनसंजोगा ॥९१०॥ पप्या आहारंपि देड पच्चानिएऽपि उबहिं च। पच्याचे उपस्समर्ण एवं जखठेवणं जाच ॥१॥ एतेण कमेणेवं दुगतिगमाची तु सब्बसंजोगा। बच्चा जा पच्छिमा बावीसमो होइ संजोगो ॥२॥ एतेसि सम्वेसि संखाणवणम्मि आणणोचाओ। पत्तेयमीसगाण य इमो तु कमसो मुणेवव्यो ॥३॥ एगादेगुत्तरिया पदसंखपमाणओ ठवेयव्या। गुणगारमागहारा तेसि हेडा उ बिसरीया ॥४॥ पदम रूर्व गुणए भागं च हरे हवेज जलद । तम्मिचि पहिरासितगुणितमाइए जं भये लवं ॥५॥ एवं ठाणं ठाणं पतिरासियाणितभजियलदाई। एगादीसंजोगाण होति संख. प्पमाणाई ॥६॥ एकादीसंजोगाण होति एवं तु सपखणं दिई । एते सधे मिसिता तेसहि होति संजोगा ॥७॥ एकगसंजोगादिसु उप्पजने उ जत्तिया मंगा । तेसि संसाणवणे करणं तु इमं मुणेया ॥ ८॥ एकागसंजोगाविम जत्तियमित्ता हर्षति ठाणा उ। तत्तियमेत्ता दुयगा ठायेयका कमेणं तु ॥९॥ पढिरासिय पडिरासिय अण्णोषणेणाऽम्भसाहि ते दुयगा। जावं तिई ताणं गणिएवं जाम सखा ॥ ९२०॥ एकगसंजोगादिसु एकेके भंगसंख सावतिया। सञ्चिय एकादीहि पुणरपि संजोगसंगुणिता ॥१॥ पत्तेय पत्तेयं एकागमादीण समजोगाणे । सा होति भंगसंखा जहकमेणं मुणेवा ॥२॥ कह भंग भवतेय? भण्णति दिक्लेक अब बहुया उ।मुंडाचमादि एवं दुतिचउमंगारिचारणिया ॥ ३॥ पश्यहेतु नहिय पत्यारो होति पत्थरेयो। इमिणा उपसणेणं तमहं पोई समासेणं ॥४॥ भंगपमाणायामो गुरुओ लहुओ य अक्सपिक्सेनो। मत्ता दुगुणा गुणो पत्यारे होति णिसेवो ॥५॥ एवंनाच परथरिए पिळसु एकादिए उ संजोगे। जे जत्व उणिवर्टति पवस ते नहि सन्ने ॥६॥ उकगसोलसगाणं जीवमजीवाण दोण्ह कप्पाणं । एकगसंजोगादीण संसपमाणं इमं होति | ॥ ॥छ बेग्य पण्णरसा पीसा पण्णरस उक एकोया एकगसंजोगादी विहसचित्तकम्पम्मि ॥ ८॥ सोलस कीसं च सय पचेर सवाई होति सहाई । अवारस पीसाई नेवाले असहाई ॥५॥ अव सहस्साई अहियाई अजीयउडम्मि । एकारस य सहस्सा चत्तारि सपा तहा चत्ता ॥९३०॥ पारस बेच सहस्सा अडेय सया उसत्तरा होति। अहमसंजोगम्मिपि उकमतो एप जानेको ॥१॥ सचिनदवियकप्पो तेपदी हो सासंजोगा। पंच सता पणतीसा पण्णाडि सहस्स अबिते॥२॥ सचिसअथितार्ण एवं भणिया नुसब्यसंजोगा। पत्तेयं पत्तेयं 4 एनो मीसाण वोच्छामि ॥३॥ अधिनायकवे संजोग पिहप्पिहे ठवेतृण । जितकापेक्कगसंजोग गुणित तेसि फलमिर्ण तु॥४॥ उण्णउति संजोगा दुगसंजोगश्मि मीसए कप्पे। सन सता पीसहिगा तिवसंजोगाण बोदवा ॥५॥ तिनीसं चेव सता सहहिया नू चउकसंजोगे। दस चेच सहस्साई गव वीसहिया य पंचमए ॥६॥ उत्ती(जी) सहस्साई दो बेवसताई अमहियाई । अडयाले च सहस्सा अढताला होति सचमए॥७॥ अद्विसहस्साई उचेष सताई होति चत्तारि। सननरिं सहस्सा दो व सया भये बीसा ॥८॥ एमेव उकमेणवि गवमाउ परेण हॉति योदया। उन्हती जासोले छचेच पदा मुणवत्रा ॥९॥ एवं पण्णरस यवीस यपीसएण पणरस छकएकेण। पत्तेय पत्ते गुणिएणं रासिणो मुणसु॥९४०॥ होणि सता यत्नाला अहार सया य हानिणापव्या । जहु सहस्सा उसय ततिए मीसम्मि संजोगा ॥१॥ सत्तावीस सहस्सा विपिण सता येय होति णायया । पण्णद्विसहस्साई पंच नया वीस अहिया य॥२॥ एकं च सयसहस्सं पीस सहस्सा सर्व चवीसहियं । एकात्तरि सहस्सा लाखेको उस्सता चेव ॥३॥ एकच सतसहस्सं तेणउन सहस्स नह व पण्णासा। उकमनो सत्तेव य ठाणाई सतोय पण्णरस ॥४॥ तिणी सता तु बीसा दोणि सहस्साई चउसयजुवाई। एकारस य सहस्सा दोषिण सता च णायचा ॥५॥ उनीस सहस्साई चाउरो य सता हवंति णाया। सत्तासीति सहस्सा तिणि सता पेष सहहिता ॥६॥ एकच सनसहस्सं सहि सहस्सा सयं च सदी या दो लक्ला अडवीसा सहस्स अद्वेष व सपाई ॥७॥ दो। १०८२ पजकल्पमाप्यं -
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [०९४८] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [4/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [०९४८]
व सबसहस्सा सत्तावणं भवे सहस्साई। पाउरो सप अट्ठमए ठाणा सत्तंतिमे वीसा ॥८॥जह पदमे वह पंचमे जहबीए तह चउत्पए रासी । एकगगुणकारे पुण सोलसमादीन जाचेको॥९॥ अचित्तदविषकप्पे संजोगा सवपिडिता कातुं। जितकप्पेकादीहि गुणिते फलासिणो मुणम् ॥ ९५०॥ तिम्णेच सतसहस्सा ठाणसहस्सा हवति तेणउती। दो य सया य दसहिता एअगसंजोगसंगुणिता ॥१॥पर्व चेव सयसहस्सा लेसीति सहस्सतह य पणुचीसा। बियसंजोगचाउकेवि एत्तिया चेवणायवा॥२॥ सत्त सय दससहस्सा तेरस लक्सा य नियमसंजोगे। पंच व पढमसरिच्छा अचित्तपिठो उ अंतिमए ॥३॥ जियपिंडेच पिंडो अजीवकप्पस्स संगुणा नियमा। सो होति पिडा तस्स उ संखा इमा होति ॥४॥ याला सतसहस्सा अट्ठावीसं भने सहस्साई । सत्त सता पंचहिया ठाणार्ण मीसकायम्मि ॥५॥ जियअजिषमीसगाणं कप्पाणऽण्णेऽवि भंगसंजोगा। पत्तेय मीसगाविय यत्रा आणुपुबीए ॥६॥ पञ्चायेको एक एको अणेगा अणेग एकंचा गाणेगे य तहा चउभंगो एव एकेकेआएवं एक एकसि एकमणेगेवि एत्यऽपि तहेवा पाउभगो यलो एस्केरके हत पदाणं ॥८॥ एक्केक्कसि पयाचे मुंडापेक्कतु एक्कसि चेवा एत्य तु दुगसंजोगो चउभंगो होति णायचो ॥९॥ एवं दुततिषचतुर्पचक्कजोएहिं जसिया जेतु। संजोगा भगायत ने सब्बे हॉति णायचा ॥९६०॥ पथ्याचे मुंडेग पच्यापेगं च मुंड गे या गो एक्कं च तहा गाउणेगे य एमेच॥१॥ एमेव सेसगाची एगतिगचउपचछक्कसंजोगा। बुद्धीयऽणुगनव्या सव्वेवि जहक्कमेणं तु ॥२॥अबिनेऽपिय एवं एपको एक्कस्स देति आहार। एवं उपहीमादीसु सव्वेसुनि हाँति बउभंगा ॥३॥ दुगमादी संजोगा एत्यपि नहेब ९ति विष्णेया एमेक्को एकसि आहारादीणि देजाहि ॥४॥ एवं एगमादीया या एत्यपि सम्पसंजोगा। एवं ता अनिचे मीसेऽविय बुद्धिए जोए ॥५॥ एक्को पध्यायेक्कं आहारादी व देति एववि तहेव । संजोगा यम्या जागतिया समवे तत्व ॥६॥ एसो तुदवियकप्पो तिपिहोवि समासतो समक्खाती। एत्तो समासतोऽहं चोचछामि उखेतकायं तु ॥ ॥ देवलो. गसरिसं खिनं णिप्पचवातिय संच। एसो खेतकापी देसा खलु अबछच्चीसं ॥ल.६०॥८॥रायगिह मग चंपा अंगातहनामलिनि पंगा यायणपुरं कलिंगा वाराणसि चेष कासी य॥५॥ साएय कोसला गतपुरैच कुरु सोरिय कुसहा या कंपितं पंचाला अहिछत्ता जंगला चेव१॥९७०॥ वाचती व मुरहा मिहिल विदेहा यवच्छ कोसंपी। दिपुरं संदिग्भाभहिलपुरमेव वलयाय ॥१॥ वयराट वच्छ वरणा अच्छा तह मत्तियावति इसण्णासोत्तियमतीय चेती वीतिभयं सिंधुसोचीरा २०॥२॥महरा य मूरसेनापाचा भंगी यमास पुरिरहा। सापस्थी य कुणाला कोडीपरिसं चलाढा य॥३॥ सेवपियाऽविय णगरी केवतिअचआरिय मणितं । जत्थुष्पत्ति जिणाणं चक्कीणं रामकिण्हाण ॥४॥ एनेसु बिहरियव्यं खेने साहुभाषिएग नु। जस्य य गुणा इमेत खेमाईया मुणेयच्या ॥५॥खेमो सियो सुभिक्खो अप्पाषाणो उपस्सयमणुष्णो । एसो तु खेत्तकप्पो (पाखंडखेदमुको) गामजमरपट्टणाइण्णो ॥..६३॥ल०६१॥६॥ सेमो डमरविरहितो रोगासिवविरहितो सिपो होति। पउरष्णपाणदेसो होइ सुभिक्खो मुणेयचो ल०६२॥७॥जलमासंलणममुहंगपिसुगमसमादिविरहितो जो तुासो होति अपपाणो अप्प अभावम्मि धेवे य॥ल.६३ ॥८॥समभूमिरेणुवनियरितुम्खमोपस्सया मणुष्या उ। गामा गगरापि य बहु पाउग्गा मासकापस ल०६४ ॥९॥ सज(व्य)णजणो य भहो जहियं च मणुष्णसाहुजोजीओ। तारिसए खेतम्मी समणुण्णाओ विहारो तूल.६५॥९८०॥ सेमो य सियो यतहा खेमों सुमिपखो य एव संजोगा।
या उसु पदेस सनसु वा आणुपुरीए॥१॥अहवोदयग्गिसापदतकरपालभयवजिओ रम्मो। हिरवेक्लोऽविध जहियं समणगुणपिवू य जय जणो॥ ६६॥२॥ एताणि चेच समाइयाणि आरीयसेलसहियाणि। पुष्वमणियाणि जाणि तुताई खलु सत्त उहवंति ॥३॥ णाणस्स सणस्स य चरणस्स य जस्थ णस्थि उपपातो। एसो उखेतकापी जहियं च अणायणा णस्यिल०६७॥४॥ उदगमयबुज्मणादी जद्द कोंकणसिंधुतामलितादी। णथि जहिं अग्निभयं निरगिसाहम्मियगिहा बा ॥५॥ जहियं च सापयमय सीहादीणं ण विजए देसे। जहियं च गस्थि चोरा देहुवहीपंथमोसादी॥६॥ वाला उसप्पगोणसमादी बोहिगभयं च णस्थि जहि । मणसो समाहिकारो सोरम्मो होति णायको आमूरो अणण्णगम्मो जत्य गरिदो नहिं मुहविहार। साहाणे व चियापति कुणति यसाहूण जो रक्ख ॥ ८॥ अहिरणसुवष्णेते छज्जीवणिकायसंजमे णिरता। जाणति जणो य एवं जस्थ तु सारण गुणणिहसं ॥ल.६८॥५॥ सझाओ जहिं सुज्झति कुदिहागिनीज याविजो होति। एसण इत्थी सोहीय जत्थ वहिवं णिवासेतु ॥९९०॥ जहितंच अणायतमा ण संति के पुण अणानणा भणिता ? | साहम्मि निष्णचित्ता मलत्तरदोसपडिसेवी ॥१॥एतेहिं जो देसो आइयो तह य अचतित्वीहिं । मच्छयवाहगामा पुलिंबदेसा अगायतणा ॥२॥ एतारिसम्मि
खेने अप्पडियदेण विहरियातु।आलंबणाई केदतु इमाणि काउंण पिहरंति ॥३॥ सही संचारो मत्त पाण वत्थे पडिग्गहे सेहा। सइदा य पुत्रसंधुय असरहतेयपटिबंधो॥..६४॥ लफामुषा एसगिना घ, जिवावा य रितुक्समा। एरिसा साहुपाउम्गा, वसाही जमणहि ॥५॥ एमेव य संचारा कंवलदम्मादिचस्युनिष्कला। सयणासणाय जहियं सलमा जोगमा या १०८३ पाकम्पभाष्यं -
मुनि दीपरजसागर ।
ROMANCE
दीप अनुक्रम [०९४८]
LOPM
E
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आगम (३८/२)
प्रत सूत्रांक [०९९६]
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [०९९६] ---------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [4/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
साहणं ॥६॥ मतं मलम मणुपणं च एरिस गस्थि अण्णाहिं तस्य । जैशियभंगियमादी नहु सुलभा अहिं वत्था ॥७॥ पडिगहगाऽविय सुलभा सेहा यऽनत्थ नरिथ खेतम्मिा अण. भस्थ उभा तेण तु एत्वं बहुमुणं तु ॥८॥ सइदा आहारादी दिति य जोग्गाणि संधुता चेव । पुरपच्छ विद्वमट्ठा व जपणहि णस्थि एरिसगा ॥ ९॥ उडवतमासकप्पेण विहारो तंण
सरहामेहि। संजमातविराहण पर्यते गामअणुगाम ॥१०००॥णाणावीण यहाणी जोग्गं खेतं तु मगमाणाणे । खेत्ताजोऽपिय खेल संकमणे पुषमसनमाओ॥१॥ जे णीयत्ते दोसा मासंतो परिखसेण ते चेन । एवं मासबिहार मण्णतो पापिहे दोसे ॥२॥णो सदहति विहारं तेण तु ण विहरेति तस्स आणादी । मासोपरि चलाओ णीयावासे यजे दोसा ॥३॥ ते सो पानति सजे एतेहालंधणेहिं अच्छतो । किं एगणेवं? ण विसेसो भषणती सुणसु॥४॥णिकारणम्मि एवं पडिबंधो कारणम्मि निहोसो। ते बेर अजयणाए पुणोऽनि सो पावती दोसे ॥५॥ काणि पुण कारणाई जेहि चिढेज एगठाणम्मि?। भण्णवि पुबुदिट्ठा जे खेमसिवादिया दारा ॥६॥वेसि विथ पडिवक्ता अक्खमे असिव वह य दुरिभक्खे। बहुपाणुवस्मनो वा जमणुण्णोतु इयमादी॥७॥ एतेहिं कारणेहि एगदाणम्मि अच्छमाणा उ। जदि जयण ण कुवंती ते बिय णीयादिया दोसा ॥८॥ का पुण जयणा तहियं ? भण्णनि तिहि कारणेहि उठितस्स। अण्णावस्सयमिक्खादिया तु जयणा मुणेयवा ॥धा अक्खेममादिएसुवि अक्खेतेसुंतु कारणवसेणं । चिटुंताणं तहिये इमातु जयणा मुणेया॥१.१०॥ अक्लेमेचि सति परं संबई वापि आसयंती उ। अक्खेमं चऽणस्था तहिं खेम तो मणिगच्छे ॥१॥जदि असि तु बहिदा तइया अच्छति ते वहिं चेय। दुम्मिक्लेशविण णितिय अवा सनत्य दुम्भिकलं ॥२॥ दुम्भिकलें जयण नहियं अच्छते बानि जयण तह चेय। बहुपाणे आउत्ता चंकमते तु जयणाए ॥३॥ उबस्सएँ आउत्ता कुडमुहभूतीत वावि ल. संता । अण्णाए बसहीए ठंति पमजति य अमिक्वं ॥४॥ जा जत्थ जयण जुजति अमगुण्णे उपस्सयम्मि तं कुजा। कयवरसोहणमादी दुग्गंधे गंध पकिरती ॥५॥ उदगमए थलगामे बलेच बसही तहि तु गिहति। अस्मिाभएँ मालपदे हम्मिततलगम्मिय वसति ॥६॥रोगबहुले जपुच्छा णिनेजए चोरकिपणे ण तु विहरे । सत्येण बाबि गच्छे ठायंतिम जस्थ गिरवायं ॥७॥जहियं सावयदोसा (शा) तहियं एगाणितो ण गच्छेजा। गण्ड पसहिच गुचं गामस्स तु मायारम्मि॥८॥ विज्जामंतादीहिं वाले गीगति रातो गवि गच्छे। रायं च पण्णविती साहुगुणमजाणमाणं तु ॥ ९॥ जत्थ जणो णनि जापति साहुगुणे तहिं कहंति साहुगुणे। परिभोग अकालम्मी रत्ति कुर्वति सज्झायं ॥१०२० ॥ दूरेण कृतित्वीए बजेती एसणं च पण्णपए । कुल(त्या)डाइत्थीपरियाझ्या य वनंति चरणहा॥१॥बोज अणायवणा णाणादीणं च जस्व उवघातो। एवं जहसंभव वे करेज जयणं णिवसमाणो ॥२॥ एसोनु खेत्तकपी उस्समवायसंजुलो भणितो । एतो उ कालकप्प बोच्छामि जहकमेणं तु ॥३॥ मास पजोसपणा वृद्धापास परियायकप्पो य । उस्सा पतिक्रमणे कितिकम्मे येच पडिलेहा ॥..६५॥४॥ सज्झायझाणभिक्ले भत्तरियारे तहेच सज्झाए। णिक्खमणे य पवेसे एसा सल कालकप्पविही ॥ .:.६६॥५॥ पुर्व तु मासकप्पो पवितो सो णिसीहणामम्मिा गरि तु महारवणा वणिजति मासे अतिरंगे ॥६॥ मासातीतं बसतो क्सहीए तीऍ व मासलई। तह भिक्खायरियाएबीयारे तह विचारे य॥ ७॥ परिसाडी संचारे
सबसतेस होति मासलाई । चत्तारिच उपचाता संधारे अपरिसाडिमि ॥८॥ पंचेते मासिया खलु चाउम्मासं च मिलिय सोते। जय मास मासऽतीए उपदे संबसंतस्स ॥९॥ लहंगा सतु वासऽतीले वसहीते सेस होति से चेष ।भिपखापरिचादीसुंजे भणिता मासऽसीतम्मि॥१०३०॥आरोषणा उ एसा कालवे यष्णिता अणिताम् । एत्तो पजोसवणासामायारिपक्क्लामि
॥१॥ पजहेतु बासजोगं बहिया अच्छति वासुदिक्खना। जे अंतरातु गिण्हे तं सर्व तेसि खेत्तीणं ॥२॥ अह पुग वर्षताणं पासाजोगं तु अंतरा पार्स। आरव हरगामे ण पहुथति एगवसही य॥३॥ अण्णोण्णसद्वितार्ण बहवो सागारिया ण तीरति। परिहरितु ताहेबजे गुरुसागरियं गवरि एक ॥४॥ अबसेस समायारी पजोसवणाए परिणय णितीहे। सचेच गिरवससा इमम्मि बारस्मि णायबा ॥५॥ युदस्स तु जो चासो बढी रगतो तुकारणेणं तु। एसो तु बुझ्दवासो तस्स तु कालो इमो होलि ॥4॥ अंतीमुहत्त कालं जहरणमुक्कोस पुत्रकोडीतु। मोनु गिदिपरिया जं जस्सप आउगं तित्ये॥७॥मरणे अंतमहत्तो देसूणा पुषकोटि कह होजा। जो वरुणो शिय समणो असमस्थो विहरितुं जाती॥८॥ कदा-विना चस्थि लायचोए तपस्सी, तत्ती वो देसितों सिदिमन्यो। अहाविहं संजम पालदत्ता, दीहाउणो वुडवासस्स कालो॥.:.६७॥९॥ चिजा तु वारसंग करणं तस्स गहर्ण मुणेयः सुनं चार समाओ तनियमेशा य अस्थेचि ॥१०४०॥ चिनुं सुत्तस्थाई वार समा देसदसणंच की। परियं भवेगहुँ लापविएणं तु विचिहणं ॥१॥ उपकरणसरी रिदिय एवं तिपिइंतु लापर्व होति। उपकरणऽरतही घरेनिणय गिहए अहिवं ल०६९या संपवणचितीजुत्तो अकिसोपतु बरवेहसारीरोपिस्सिदिओ जयस्सी चावमादी नवोचिसोरो)।०७०॥३॥ कुचंतेणं अछित्ति णाणादी देसिओतु मोक्सपहो। मुत्तत्युबदेसेणं संजमियं संजमेनं च ॥४॥ काऊग अबो(वयो)च्छितिबारस बासाईणियमुनुलो। बीहाउतो तु सरी पहिबजेऽभुजयविहारं ॥५॥ अम्भुजयमचयंतो अगीयमीसो रगच्छपडियदो। जच्छति जुण्णमहाडो कारणती बावि अनोवि ॥६॥जंघाबले रखी मेलाले सहायतोपदोचाई। (२७१) १०८ पत्रकल्पमाष्यं
सुनिटीपरसागर
तल चरणका ॥ २ जातकमण न " से एका
दीप अनुक्रम [०९९६]
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [१०४७] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [4/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
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प्रत सूत्रांक [१०४७]
दीप अनुक्रम [१०४७]
- अहवावि उत्तमढे णिप्फती व तरुणाणं ॥ ७॥ खेताण व अर्लभे कयसलेहे व तरुणपरिकम्मे । एतेहि कारणेहिं बुड्ढावास बियाणाहि ॥८॥ केवतियं तु वयंतो खेत कालेण विहरिनु
अरिहो। केवतियच अणरिहो बलहीनो पडदवासी सानिविदाऊण दुवे सुनंदातृण मुत्तवनं चाएवं दिवइदमेग अनुकंपादीची जतणा..६८॥१०५०॥ दोणिनि सुत्नत्थाई दुवेत्ति जो जाति गाउए दोषिण । जाव तु भिक्खावेला एस तु सपरकमो येरो॥१॥ एमेव अदाऊणं अत्यं अहचा अदातु दोषिणविता दो गाउयाई दोणी पुष्णाए भिक्खवेलाए ॥२॥ एवं दिवइटमेगं च गाउय तिथि होंति एक्केरके । गमया तु मुणेया विहरणअरिहोस मेरो तु॥३॥ एस सपरक्कमो तू जो पुण दाऊण उभय मुत्तं वा । गच्छेज अबगाउय | सपरक्कमों होति एसोवि॥४॥ सोते विहरती एतेसु गाउयं दिवइदं वा। जे जति गाउयं विष तिव्हंतेसि बुदाणं ॥५॥ जेऽपिय गाउयमदं उभयं सुत्तं च दातु गच्हति । तेसगुकंपा तुमो कायव्वा होति तिविहा उ॥६॥ विस्सामज उपकरणे भने पाणे असंत्रणे वा तं च विजाणति काल गंतु बाएनि जो जत्य ॥ ७॥ जयणा मुद्धालभे पणगादी सा तु होति णाया। अपरकमं तु धेरै एत्तो बोनई समासेणं॥८॥ खेतं तु अगाउय कालेणं जाच होति दिवसो उ। खेतेण य कालेण य जाणसु अपरकर्म परं ॥९॥ अण्णो जस्स ण |
जायति दोसो देहस्स जाव मज्झन्हो। सो विहरति सेसो पुण अच्छति मा दोण्हषि किलेसों ॥१०६०॥ भमोवा पित्तमुच्छा वा, उसासोबसुन्भति। गतिचिरिए बसतम्मि, एवमादी श्रीगरीयति॥१॥गच्छपरिमाणतो तु सहायगा तस्स हॉनि काया। सत्तेव जहण्योग तेण परं होन्ति मेगापि ॥२॥ चउभामतिभाग सबेसि गच्छनो परीमाणं। संतासंतासंती |
बुइटावासं वियाणाहि ॥३॥ अट्ठावीसं जहाणेण, उक्कोसेणं सतम्गसो। गच्छं गच्छं समासन, चतुमागी विभायए॥४॥ जदिहाति अहवीसं चतुहा गच्छो तु तो विभजति तु। सत्त | उघउभागेणं ते दिज्जती सहाया तु ॥५॥ पुष्णम्मि मासे ते मिति, सत्त अपणे उति तु। एवं अतिति णिति य, मास मासंमि सत्त तु ॥६॥ एवं दोसा ण हॉनी तु. उवहाणादि जे भने। ते तु अट्टवीसाए, चउभागा विष(म)जिता ॥ ७॥अट्ठावीस ऊणा दुहासतीए उवे हवेजाहि। संताअसति अगीया बाला बुडदा अजोग्गा वा ॥८॥संतासतीए पुर्जति तत्तिया तेण निषिण दुण्णिको।भामा उ विभइयवा इगचीसाचोइसत्तष्हं ॥९॥ दो संघाड अहंती भिक्स एकोय गेहए उवहिबेर दुषेणीणे सत्तसु जायणेसा लिल(मिक्ख)मादीम् ॥१०७०॥ बुड्ढाचासे - जयणा खेते काले बसहीय संथारे। सित्सम्मि णवगमादी हानी जापेकभागो तु॥१॥ धीरा कालच्छेदं करेंति अपरक्कमा तहि घेरा । कालं च अविपरीय करिति तिपिहा तहि जयना ॥२॥ कालच्छेदो मासं अण्णा वसही तु भिक्समादीणि । अइस उहुबदेसुं चउमासे सेक्कवासासु ॥३॥ कालं अविवरीय उपदे वासवासियं ण करे। बासाबासे य तहा उडबई वापि म करिति ॥४॥ विविह जयति इणमो तिपिहऽणुकंपा तु होति बुढस्स। जह कायदा इणमो तमहं बोच्छ समासेणं ॥५॥आहारे जवणा कुत्ता, तस्स जोगे य पाणए। णियया मज्या घेव, उऽयेताऽणेसणादिसु ॥६॥ काणि पक आमे पिंटचरे व तह पदारुपरे। कडगे कडगतणपरे बोचरये होति पाउगुरुगा ॥७॥ कोहिमघरे वसंतो आलितमि ण डजाते | तेणं । काणिहगादिगहण सखा य णिचातसही तु॥८॥ वसहि णिवेसण साही दुराणयणम्मि जो उ पाउम्गो । असतीष पाटिहारि मंगलकरणम्मि णीणेति ॥९॥ सही व अहासंथड पगपट्टी व चम्मकक्लो बा । घिरमाओ संथारो असतीय णिवेसणाठाणे ॥१०८०॥ जसतीइ साहिवाडग(गड) सम्गामे घेच तह य परगामे। कोसद्धजोयणादी बत्तीस जोषणा जाच॥१॥ चिरमउओं अपविहारी पेत्तत्रो तस्स असति पडिहारी। पितिपजयादिफलग मंगलबुद्धी घरे जंतु॥२॥ केइ मिहत्या तं उस्सवादि अचिंति ण परिभुजति। तं पणइया तु गिहिणो विति य एअम्ह मंगतं ॥३॥देजह नचर उणम्मि अनियमहितं पुणोषि जाहात घेतर्ण कला उस्सपदिवसम्मि पेसति ॥४॥ पुण्णम्मि अग्पिर्णनी अण्णस व वृदयासिणो देति । मोनूण गुड्दवासं आपनति चतुलहू सेसे ॥५॥ पटियरति गिलाण वा सर्व गिलाणोवि तत्थवि तहेव। भाषियकुलेमु अच्छति असहाए रीयो दोसा ॥६॥ ओमादी तवसा या अपएंतो दुबलोचि एमेव । पहिवन उत्तिमढे पढियरगा वापि तष्णिस्सा ॥७॥ तरुणाणं मिष्फत्ती आततरे वेब होति णाया। कालियसुप विहिवाए सि कालोऽयमुको सो॥८॥ संबचउर पसरले पारस बासाई कालियसुतस्स। सोलस य दिडिवाते एसो उकोसतो कालो ॥९॥ बारस वासे गहियं तु कालिय सरति परिसमेगंतु । सोलस भूताचाने गहणं शरणं दस दुवे य॥१०९०॥ गहणझरण कालियसुते पुधगते य जदि एतिओ कालो। आयारकप्पणामे कालच्छेदो तु कतरेसि? ॥१॥ आयारकप्पणामंति मिसीह तत्व मासमुहुपरे। बासासुचउम्मास एसो कालो त कतरेसि ॥२॥ मणिओब-येरेण समाणेणं कारणजातेण एत्तिजी काली। अजाणे पण पुण णवगरगहण तुसेसाणं ॥३॥ जिम्मपणवा एनेसि चेष एयं तु कारणज्जायं। जेहि उगुणेहि जुत्ता दिन वे इमे होति ॥४॥जे गिहिउँ धारपिउंच जोग्या, थेराण ते दिति बिइजए तु। मिष्हति ते ठाणठिता सहणं, किचंचबेरस्स करेंथि स॥५॥ जासज खेत्तकालं बहु पाउग्गा ण संति खित्ता उगिच विभत्ताणं सच्छंदादी बहू बोसा ॥६॥ जहचेच उत्तिम कसलेहस्त ठाति एमेचा तरुणपडिकम्म पुण रोगविमुके १०८५ बापामूकमारकाचर्कanka
मुनि दीपरासागर
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
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प्रत सूत्रांक [१०९७]
दीप
बलविवइडी ॥ ७॥ वुडवावासातीए कालादी तेण उम्गाहो तिविहो। जालंबणे विसुद्धे उम्गहों तकजि वोच्छेओ ॥८॥जकारण वुइलीगतो वासो ताहि कारणे अतीयम्मि। मति पतिभम्मा जे उ आयरिए उग्गहो णस्थि गा दुनिहेचि कालतीते मासे चाउमास उम्गहे ठिण्णे । सबित्तादी छिष्णो जालंबणे तम्मि डिण्णम्मि ॥११००॥ कारणसमत्ति पुरसओ जोअ च्छति उम्गहे वहिं होति। सचिवादी तिपिहे ण तस तहियं इर्म णातं ॥१॥आगासकुच्छिपूरो उम्महपडिसेहियम्मि जो कालो। होति उम्महो सो कालानुगे वा अणुष्णाओ॥२॥ जहणाम कोति पुरिसो छाओ आकासकुन्डिपूरिच्छे । ण होति सोवि नित्तोऽमुत्तत्ता उवणओ एवं ॥३॥ कालवेलि अणुष्णा गिम्हाए जस्थ चरममास कतो । अण्णस्खेतऽसतीए तत्थ ठियाणीग्गहो होति ॥४॥ एमेव पासतीते दस राया तिणि जाव उफोसो। वासणिमित्तठितार्ण उम्महोम्मास उनकोसो॥५॥क्कजसमत्तीएविरायडपरचक्र असिवादी। एतेहिं कारणेहि तु उमाहो होतऽतीतेऽपि ॥६॥ एतेसु उम्महेसु आमवणमबवित्त मणिएसा । अयमणो तु पगारो आभामणामयते य ॥ ७॥ सुहसीलडणुकंपातडिएयर संबंचि खक्म गेलाणे । सबिते ससिहाए पाहिए धारण दिसासु ६९ादातणुयपि णेच्छए दुक्स, सुहं चालती सदा। सुहसीलो एस असाओ, सातागास्वणिस्सितो॥॥सहसीलवाए सेहं कोई पेसेज अण्णासाहुणे। पलिमर्थ मण्णंतो एक्सं खू सारखे जे ॥१११०॥ असहायरस पदेना कोई अणुकंपचाएं सेहतु। आयडीण व कोई पेसिजा धम्मसदाए ॥१॥ विजा सिणेहो या संबंधी अस्स फोति सचित्तं। समगी सयंब होजा खमगरसव पेसवेजाहि ॥२॥ देव व गिलाणगस्सा बेयाचबहुताए असहाए। अहवा सयं गिलाणो अचएंतो सारने जे ॥३॥ पेसितस्स उससिहो असिहो पुण जस्स पेसिओ तस्स । एवं असंघरेणवि पेसियओजह गिलाणेणं ॥४॥ कह दातु पुणो मग्गति जम्हा सो अप्पभू तु दाणस्स। | नम्हा तस्सायरिमो मम्मति सज्झनियादी बा ॥५॥जहबा जाहे सर्व चिय सो सेहो जाच होति गीयत्थो। तो जाणति आभत्रो अहयं पुषितयाण तु॥६॥ उडवासबुझ्दवासे एसो भणितो तु कालकापविही। परिचायकालकप्पं एत्तो वोचई समासेणं ॥७॥को राविणितो होती? कोबाची होति ओमराइणिओ। मष्णति सुणसु बिसेर्स रातिणियओमरातीणं ॥८॥ संजमसेढी अंतो जो उठितो सो भये दुरायणिओ। जो पाहिं सो ओमो एवं अतिसेसितो जाणे ॥ल०७१॥९॥ तम्हा छतमत्वाणं जो पुर्व ठावितो पएसंतासो होतीराइंणिओ जो पच्छा सो भवे जोमोल०७२॥११२०॥ सामइयसंजयाणवि सामइयं जस्स पुत्रमुचरितं । सो होती रातिणितो इतरो ओमो मुणेयो।ल. ७३ ॥१॥ अद्धस्सास जहनो काउस्सम्यो उ होति बोबनो। असहस्मुक्कोसो अहवा संवचार वाचि ॥२॥ पढिकमर्ण देसिराइय पक्खिय चउमासि तय परिसे या एतेसिं वक्खाणं पुर्व आचस्सए भणितं ॥३॥ कितिकम्म काय काहे कति बानि होनहारते?। एतेसि माणसं बोच्छामि अहाणुपुरीएपडिकमणे समाए काउस्सग्गावराह पाहुणए।आलोयण संवरणे उत्तिम य दणय | ॥५॥चत्तारि पदिकमणे किडकम्मा तिषिण हॉति सज्झाए। पुषण्हे अपरण्हे किइकम्मा बोदस हर्वति ॥ ६॥ गुरुगते जिणार्ण पडिलेहणियाए आवरणकालो । राणऽणुमायम्मी उबहिणा सो तुलेयत्रो ल०७४॥॥ पढमचरिमासु णियमा सझाओ पोस्सीसु दियराओ। साणं तुजस्य(डड)पोरिसि वितियाए सेतु दिवसस्स ल०७५॥८॥तियाए पोकसीए मिक्सग्गहर्ण त होति कायम्। सेसं च पमाणादी होति इमं तू समासे(णा)णं ॥6०७६॥९॥ पमाण काठे आवस्सए व संघाडए य उचगरणे। मत्सग काउस्सम्गे जस्सय जोगो सपरिवक्सो॥११३०॥ भत्तहीणंपि जोहे जहमणित तहेव हॉति एस्बंपि। एक बेल भत्तं रति च ण कपए भोतुं॥१॥ कालस्त पडिकमितुं मजझन्हे ताहे होति गंतवं। पीयार भोलुण बसेस अकालो उ बीयारे ॥ल.७॥२॥ पाउसंक्षासु ण कप्पति सज्माओ तासिमं तु कायर्य: पुवापरासु दोसुचि काउस्सम्यद्विता शत्ति ॥8.७८॥३॥ दिणमज्झाए मिक्लं शाति अभत्तट्टितो तु जो साह। राओ मदिराडाओ णिहामोक्स करिती ॥९० ७९॥४॥ मिक्लमणं खलु सरए पाउसकाले पनेस पुञ्चुत्तो। एसोतुकालकप्पो माये कणं अतो पोचा ॥५॥ दंसणणाणचरिते तवसेजमसमिपंच(गुत्ति)हिं गुत्तो । हतरागदोस निम्ममखमदमणियमडिओ मिर्च ॥...७०॥६॥ अणिगृहियबलपिरितो परकमति जो जहुत्तमाउत्तो। अत्तहुकरणजुत्तो गुणमावणभावणिकपी ।।..७१ 10 रितीदि कुलिंगीणं ण य देवातीहिं जस्स तू भायो। दसणविगलो जायति सणमाराहि तेणे ॥८॥णाणं दुवालसंग ते पेष य पपवर्ग तु संघो वा। गहणम्मी उजुत्तो परतो तह पच्छलोयावि ॥९॥चरणे मिजुत्तो मूलगुणेसु सउत्तरगणेसु।णय अतिवारं कुणती पचिडते व सोहिकतं ॥११४०॥ वववारसंगजुत्तो समितीसहितो तिगृत्तिमुत्तो या रागदोसणिस्ता णिम्ममों णियले सरीरेऽपि ॥१॥ कोहं जिणति समाए मदवमादीहिं सेसकलसेऽवि। दमणियमा दोऽवेक इंदियणोड़ दिया हॉति ॥२॥णाणादिएहिं अणिगृहितो तु कम्मरस णिजहाए। उजमति परकमती पडदत्तिय हॉति एगड्डा ॥३॥जह सुत्ते णिदिडो तह कुवति जोतु अप्पमाएंतो। सो जहुत्तो साहनूर्ण मतिमं नियाणिजा ॥४॥अत्तहा मोक्खड्डाण तुमलोगादिहेतुगं कुणति। करण जोगतिएणं जयणाजुत्तोत्ति अपवादे ॥५॥ मूलगुण उत्तरे या भावण पण१०८६ पत्रकल्पभायं
मुनि दीपरतसागर
अनुक्रम [१०९७]
रिद्धीहि कलिंगी मममस्मरमणियमडिओ बिए पाउसकाले पचेस पुष
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [११४६] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [4/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [११४६]
दीप
विवीस अणिचबादीया। मेसीपमोयकाराणमझत्यादीहि णिकंपोल.८०॥६॥ एसो अभावकप्पो अहवा जाणादिओ पुणो तिविहो। सण पडर्म भण्णति जाणवरिता सदायना
ला ॥७॥तो सणस व तुजेहिं पदेहित होति उपपातो। ताई इमाई वोच्छ णिश्वमणादीणित कमेण ॥८॥णिसमण गमण मुंजण सरियवयणे य एकवायणिए। सणणाणाभिगमे रायकुमारे गणहरे य॥७२॥९॥ निक्खमणे चिंतऽहं (अ)धो य(वा)हाएतुणाततो भगवं। एरिसएमिण दिक्खे मिक्खने जेण साहणं ॥११५०॥ पूजासकाररुपी तेण पवनति कीस वापि जाणतो । तारिसए जिक्वते जेणुदिवो होति सरकारो॥१॥ण एवं पत्त सो गिय भगवनु जापए एवं । ण हु भाणुपमा नीर खजोयपभाहि अतिसति ॥२॥ गमणे तुरितं साह गति अहो मुदिङ मिट्टणं । सनियं वयंति मेवं वनदेवं तु भाविना ॥३॥ ने लोगरंजणडा सणियं गच्छेण धम्मसदाए । ण प जुगपेहाए । खलु विचरीयं साहुनी माये ॥४॥ जंपि कहिंचि सतुरितं तंपिय गेलपणमादिकनेसु। गच्छंती तु सुनिहिता बहुतरमा मुनेऊणं ॥ल८२॥५॥ मुंजनि चिनकम्महिता व सकादि बोडियादी याण तहा साहू एवं भासने दसगविरोही ॥६॥ कुकुटताए मोर्ण करति जणरंजगट्टताए । भावेय एवं साधू पुण णिजहाए॥७॥ जपिय भासति जती तंपिय कजम्मि थोष जयणाए। इम मुंब चिट्ठा पा गुरुमादीणं च पाउम्गं ॥८॥ सकयपादो गुरुगो दियाण एसा तु देविका मासा । समणाण पागयं तू थीभासाए उणिवद ॥ २० ८३॥५॥ तत्वपि सदियययणं सदिया चेषणपरि जाणंति। सबेमुऽणुग्गहवा इतरं धीवालबुड्ढादी ॥११६०॥ दिद्रुतो सिणपाडीणिवाणकरण होति कायो । एकेण कतो अगडो वावि ससोगाण वितिएणं ॥ ०८४ ॥१॥ ततिएण तलागं तू तत्वगटे केवघटियमादीहि । तीरति उवभो जे वितियं तुपदाण अभिगम ॥ ल. ८५॥२॥ दुपदयउपदमादी सवेसि तलाग होति अभिगम्भ। इस सवडणुम्महत्यं सुत्तं गहितं गणहरेहिं । ल० ८६॥३॥ सव्वत्थ वेदसत्यं चरणे करणे य पदम (एग)वादणियं । विचरीयं समगाणं भाषितो दसणचिराही ॥४॥ तस्यपि भाषेयध्वं सो चिय अस्थो तु होति सव्या(क)सि । सामुदसिंघवादी जह लवणसहाय सव्वेवि ॥५॥ दसणपभावगाई अहवा जाणे अहिनमार्ण तु। अत्तड परहा बा जहलभं गेण्ह पणहाणी ॥६॥ भिक्खुनि जं पदम्मी भणितं जं वापि तणिमित्तेणं । गणतो कि सेवे? असदहतो अणाराही॥ ७॥ पवन अप्पपंचम रायसुतस्स तु दाइगभएणं । राजा उसमणुजाणति अंते परिणीतों सो तेण ॥८॥ तत्वविय कामुमोती सुत्तत्थाई करेंत अच्छति । जणइनु सुतेक्कक्के अमूडलक्सासु इत्थीम् ॥९॥ते रग्नेसुं ठाबिय पुणरवि गच्छति गुल्समी तु। आलोदय णिस्साला कवपत्तिाण तो तेसि ॥११७॥ संकप्पियाणि पुधि आयरियादी पदाणि गुरुणा तु । पच्छागताण ताण य तहिवर्स चेष डिषणाई ॥१॥ परियाय-16 म्मिणिरु गं दिण्ण तगंतु जो न सदहति। सुहसमुदितस्स जं वा कीरति तू रायपुत्तस्स ॥२॥ तस्यपि भावेशवं पत्सिकडाई तु तेहि राणा रायमुतदिक्खितेण य उम्भाषण पचवणे होनि ॥३॥ असहस्स जंच कीरति अजसमुदस्स पेव गुरुणोतु। एवं असादहते विराहणा ईसणे होति ॥४॥ सस्थपि भावेया जेणायनं कुल तु तं रखे। अचस्सपि काय गिलाणगरसेस उपदेसो ॥५॥ इति एस समासेणं नसणकप्पो तु आहितो एनं। एतो तुणाणकर्ण वोच्छामि अहाणपुषीए ॥६॥ सुतुदेसे वायण पदिष्ठ पुच्छ पस्विट्ट अनुपेहा। आयस्विरबज्माया अह होनितु मुत्तकप्पचिही।..७३॥आआधारमादि कासुर्य तुजा होति दिद्विवादो ताजंगाणगपबिई कालिपमुकालियं चेपाटात पुण सबंपिनये संवादसमुट्टियं वणिमूद। पत्तेयत्वभासित अब समत्तीय होचाहि ॥ ९॥ ससमयवाद संवादमाह जह केसिगोयमिजाती । पाणवणावसकालियजीयाभिगमादि णिजुडं ॥ ११८० ॥ पत्तेयबुद्धभासियइसिभासियमादिगं मुणेषवं। केवलणाणसमतीय भासिता चोइस उ पुथा ॥१॥ एतं सुतं तुज जस्य सिक्सितं जेण जह तु जोगेणं । तं तह थिय दायर्ड एसो खल अजायणकप्पो ॥२॥ एवं पुण सुनगाणं चायणजोगं तुजारिस होति । संवोच्छामी जहणा मुत्तस्स प सक्सणं जंतु ॥ ३ ॥ जित परिजितं अमिलित अविचाभेलियं अगायिहं । घोस णिकाइय ई-16 हिय मुषिमग्गिय हेतुसम्भाष... फुडविसदसुद्धवंजणपदमस्वरसंधिकारणमणूणं पादप्पयाणुलोमं पिउनसुतेत्ति सुबकप्पो ।...|| निपुणं विपुलं सुई णिकाइयं अ-E स्थती सुपरिसर । दिणिस्सेसका दिवढणं फलमदारजुतं ।।...७६॥६॥ सगणामं व जितं खलु परिजिय देवरि उपरितो हेडा। मिलिते उधणणानं विचामेली उ अण्णोण ॥७॥ अनायडेसाणं सुने मीसेति कोलिपयस वा। सं वय हेदवारि वापिढे आपलीणावं ॥८॥ घोस उदत्तादीया णिकाइयचखेवसिवि(ड)परिसुद्धा हित सयं मतीए विचारित एपणेयनी ? ॥९॥ साहम्मिययेहम्मियहऊहि मग्गिओ उ सम्भायो। जस्स तु सुत्तस्स भवेतं होति सुदिसम्भावं ॥ ११९० ॥ णिसंदिव फूट खलु संजुन बाषि पुश्मवरे चरमे) , विसद अणिगृढत्य वंजणमुदं सउपयारं ॥ १॥ अत्युबलबी जत्थ तुत होति पद तु अस्परा वा । संघी संबंधो खलु मुना मुत्तस्स जो कोति ॥२॥ एतेहि गृणमहित पादा त सिलोगमादिणं होति। गजम्मि य पदसंखा अनुलोम जपण पडिलोमं ॥ ३॥ पुग्विाल परिक्षणं जंग विरुज्वाति तु तंतहा ताहियं । अस्वेण जोइयं तू गिउत्तमेतारिस होति ॥४॥णयहे१०८७पत्रकल्पमाप्यं
मुनि दीपरनसागर
अनुक्रम
[११४६]
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [११९५] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [4/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
यो पनिउणं तु विस्थित्यं विडल
माहितं तु इहलोयपरलोए ॥७॥ आइप
दिए अवहिते उदिसते चतु
प्रत सूत्रांक [११९५]]
दीप अनुक्रम [११९५]
नुवादभंगियगणिवादी अस्थओ व गिउणं तु।विस्थिणत्वं विउल मूगादीवायणाहिच ॥५॥ सुईतु सुग्गिहीतं अलियादीदोसवन्जिय वामि। अस्ये मि(न)काइयं सल णिकाइय अहव
घेणं ॥६॥ अविरुदों अक्सरहिं जस्सऽत्यो तह य समयमविरुदे। तं अस्थतो विसुद्ध हिवं तु इहलोयपरलोए ॥७॥ अहियं सेवकर तू णिस्सेसकर तयं मुणेयम्। उप्पत्तीमादीण य घीण विवर्ण जंतु ॥८॥ तस्स फालतु उदारं अभाबाई अगोचमं सोक्खं । एसो तु मुत्तकप्पो एत्तो योच्छामि उस ॥९॥ उदिसिया उपद्विएं अणुपद्विते उदिसते चतुलहुगा ।
अणलोइएऽवि लहुगा तम्हा आलोइउदिसणा ॥१२००॥ आलोयणा व विणए खेत्त दिसामिगहे य काले या रिक्तगुणसंपवाऽपिय अभिचाहारे य अट्ठमए॥..७॥१॥ अण्णगणागत पुच्छे केवइय सहायगा गुरुणं तु?। एवं पुट्टो सोऽविय वदेन एमादिय इमे उ ॥२॥ एगे अपरिणते या, अप्पाहारे यथेरए। गिलाणे बहुरोगे य, मंदधम्मे य पाहे ॥३॥ एतारिस विउसने आगतते सोहि होति पुयुत्ता। आयारकप्पणामे सीस पडियछै य आयरिए ॥४ाएपहोसविमुक्कं तु आगतालोइए पदिच्छति तु। आलोयणा तु एसा सेसा दारा जहाऽऽबासे ॥५॥णरि कालदारं गुणदारं पेव ईसि मासिस्स। अंगसुयक्वंधाणं उदेसा सुक्खपक्खम्मि ॥६॥ पण्णत्तिमहाकप्पे मुतादि सरवे सुभिक्खकालम्मिा मित्तियादि पुच्छिय उदिदा सणा होति काया॥७॥ सेसं कालविहाणं पशुत्तं तं तु होति णाय । केहि गुणेहि जुनस्स तु उदिसिया इमे सुणम् ॥ ८॥ अयोच्छित्ती संवेगविणयउक्वेयबजमीरुस्स । पुत्रहे जोगसमुद्वितस्स उदसणाकप्पो ॥ ९॥ वायगयाइज्जते गुणा तु बायणविहिं च योच्छामि। पायगयादिजते गुणाण बारा इमे होति ॥ १२१०॥ अप्पणो य ददा रक्या, विपुलो य तहाऽऽममो । सुवणाणस्स व पूजा, जिणाण छिदय(गापंतपतो..७८॥१॥ उम्मगं नबंतो अप्पा रक्सिजते तु णियमेणं । सुण्डादितेणं सुतबाचारोचओगेणं ।।..७९॥२॥ उवउतस्स तबड़े णिजस्लाभो वयो य विउलो उ। इंदियपणिही य सहा पसात्याझाणीवओगों य ॥३॥ जं अन्माणी कामं सवेह बहुयाहि वासकोटीहि । तनाणी विहिं गुत्तो समेह उस्सासमेनेणं ॥४॥ बारसचिहम्मिचित समितरवाहिरे कुसलदिडे । णवि अस्थि णचिव होही सन्झायसम तवोफम्म ॥५॥ सुयणाणुपदेसेर्ण माईतेणं च गिण्हगेणं च। सुतपूजा होति कया संचजित होति वार्यते ॥ ल०८७॥६॥ सुवपूजाए व पुणो सुतोवएसेण बहमाणेण । बाएंतम(ग)हिजते आणा तु कता जिणिदाणं ॥७॥ सुयणाणुपदेसेणं बायंता गिण्हतो य पतेहि। ण चइजति गर्नु नंतरमादीहि देवेहि ॥८॥ बायणगुणा तु एते समासओ बष्णिता मए कमसो। बायणविहित एतो वोच्छामि अहाणुपुबीए ॥९॥ अत्ताण परिस पुरिसं हितऽणिस्सिय परिजित जियं काले। विद्वरयं कुडपंजण मिशाषण मित्रहणसुद।.:.८॥१२२०॥ तनुसी गंधियपुत्तो रखो स्वणपरिए पओमासे। देवीआभरणविही दिहता होति आयरिए ॥.:.८॥१॥ अत्तार्ण तु तुलेती सत्तो मिण बत्ति बायर्ण दातुं । जाणेजा पुरिसेऽपिय जो घेर्नु जत्तिय तरति ॥२॥ बहुवं घेत्तु समत्वे बहु देती अप्प मिण्हते अपं । विचामेलणदोसो अतिबहुते वस्स दिजते ॥३॥ परिणाम अपरिणामा अतिपरिणामा य तिनिह पुरिसा तु। णाऊणं छेदसुर्व परिणामगे होति दाय ॥४॥ह परलोगे व हितं अणिस्सियं जंतु गिजरहाए।न उ बाइ गारवेणं आहारादीनदहाए॥५॥ उकाइतोवइयं परिजियं तु जिय एव अगुणयंतेवि।कालित्ति कालियादी कालो जो जस्स ते नाहियं ॥६॥ जस्सवि जाणति अत्यं विद्वत्वं न तु भण्णती सुत। फुडविपडपंजर्ण तू वयणविसुद्ध मुजेयः ॥ ७॥ ते होती णित्रवर्ण जो बाएंतो तुम्हादि उप्पाए। णिजहणसुत्तमेयं जो अक्सित्तो उणियहति ॥ ८॥
उसारामे तउसे पुर्वण पालाएँ आगते फाए। जाप परलोए ताप तु का विपरिणत अपहिं गिण्हे॥९॥ एवं जो आयरियो पहो संतो विचितयति अत्यं। विपरिणमिर्नु नस्स तु सीसा भी वर्चति अन्नत्य ॥१२३०॥जह मुलमणाभागी आरामी सो नहिं तु संयुत्तो। तह णिज्जरमणभागी आयरिओ होति एवं तु॥१॥जेण पुण पुरविहा उसा आरामिएण होति नाहिं। सो देति लई तउसे मुवस्स व होति आभागी ॥२॥ एवं आयरिएणं जेणइत्यो पुति चितिम्रो होति । सो पाएविलालई णिजरभागीय होएवं ॥३॥ एमेष गंचिपुते जाणमजाणे य गंधभाणे ता आभागी अणभागी उबसंधारोऽबिच नहेच आशा सेमियनियरस इत्थी संलयमच्छेण गहिओं जलमजो। सिरिघरिओं दोभासं मम्मिाओं णवि जाणि करच कजो?॥५॥ जा मम्मति ता हत्थी पडितो रण्णा विणासिजो परिओ। वितिओ मगितो दिमि तपसणा मोश्ते पूया ॥६॥ एमेचायरियम्मिवि उपसंचारो तहेव कायो। चितणसमपाकरणे णिजरला जलाय॥७॥रयो दो देवीजो पेसाती पाठभी य हायति। पेसाठी हारावे आभरणे बाडभीए तु॥८॥ जहचेही आभरणं आचासे वह इर्मपि गाय। उपसंचारो तह चिय आयरिए होति कायो॥९॥एवं ना पाएंतो भणितो अहुजा पढिच्छी घोच्छ। जारिसगुणेहिं जुत्तो पाएयचो तु सो होति।१२४०॥ अणुरत्तो भतिगतो अतितिणो अचवलो
अलबो या अवपिसत्ताउलो कालण्णू पंजलिउडो य॥..८॥१॥ संनिम्मो महविओ अमुती अणुवत्ततो विसेसण्णू। उजुत्तमपरितंतो इच्छितमत्वं लमति साहु ॥...८३॥२॥ जोन | अवाइनंतो ग रुज्म(रुसती जह मम ण बाएति। सो होई अणुरत्तो भत्ती पुण होइ सेवा उ ॥३॥ मज्म न देइसिन जो तिंबुरुक व तडतडे दिवसं । न य आहारादीसुं तदभायोडतितिणो एसो॥४॥ गइठाणभाषमासादिएहिं नपि कुणाचंचलतं तु । गागंगणिजो न भये अचंचलो सो मुगेयत्रो ॥५॥आहाराकोसे जो लदपूर्ण तयं न अनडे। एस (२७२) १०८८ पवकल्पमाय
- मुनि दीपरनसागर
व पोलियो पुष्टि गहि
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आगम
(३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [१२४६] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [१२४६]
दीप अनुक्रम [१२४६]
मसुद्धो बखेवणा तु सदादिविसएम् ॥६॥लीहालेढुगमादी जो य पढ़तो ण करति बक्सेन। जबक्सित्तो एसो आउत्तों अणष्णमणसो तु ॥ ७॥ आहारादी काले कालण्ण होति Bउवणयंतो उ। मुत्तत्यं गिण्हतो कुण अंजलि पंजलिकडो तु ॥८॥ संविग्गो दो मिगो भावे मूलत्तरे तु जयंती। मदविओ जोऽमाणी अमुयी विसमतणेऽवि जो ण मुए ॥९॥ आगा
रइंगितेहि णातुं हियइच्छितं उपबिहेति। गुरुवयर्ण चऽणुलोमे एसो अणुवत्तओ णामं ॥ १२५० ॥ जाणति तु जो विसेस हिनाहिवादीण सो विसेसण्ण। णवि होति णिबिसेसो समचंदणलेट्ठचिक्लाहो ॥१॥ उजुत्तो उ अणलसो अप्परिर्ततो तु पूलभर इन। सुत्तत्वणिजराजो मोक्लो वा इच्छियत्यो तु॥२॥ पुच्छणकप्पो अहुणा जाति पुच्छिज संकियादितु। ताति भण्थति इणमो अहकम आणुपुचीए ॥३॥ पदमस्वरमुद्देस संधी सुत्नत्य तदुभयं चेष । पोत णिकाइन ईहित सुविमग्गिन हेतुसम्भावं..८॥४॥ पदमादी जा घोसो पुनस्या होति एते सोगि। हिययम्मिणिकाएउ पुच्छति तु णिकाइयं एवं ॥५॥ पुछाचरेण ईहित एप मर एवं होति ण व होति । हेतृहि कारणेहि न सुचिमग्गिय एव तु मएत्ति ॥६॥ सम्भाचो अत्यो खलु संदिदाई तु पुच्छते ताई। एयाई चिय कमसो परियडू व अणुपेहे ॥ ७॥ अहणा तु अहीय केरिसयार्ण समीये समणेणं । आयरिउमझायाण तमहं बुच्छ समासेणं ॥८॥ उग्गमउम्पायणएसणाएँ णिरक्खों णीवपडिसेबी। सुत्ने अदिइसारो आयरिशोण कप्पती सो उ॥९॥ उगमउपायणएसणाइ साविक्यों णितियपरिकजी । सुनस्मि दिसारी आयरिश्री कप्पई सो उ....८५॥१२६०॥ सुत्तस्स सारों अत्यो सो विडो होति जेण बुद्धीए । सो होनि विडसारो आयरिओ तू मुणेषग्यो । २०८८॥१॥ एमेष उबझाओ गुणेहिं जुत्तोतु होति माययो । एतेसि तु सकासे सुत्तत्या होति पेत्तव्वा ॥२॥ आयस्थि उपज्झाया जाणुष्णाया जिणेहि सिप्पड़ा। गाणे चरणे जोयाचगति तो ते अणः । ग्णाता ॥३॥ एसो दुणाणकप्पो जहकम पण्णिवो समासेण। एत्तो चरिसकप्पं योच्छामि अहाणपुषीए॥४॥ जम्हा चरिजते तू चरिवं वा तेण तो चरितं तु ।तपुण अप्पडिसपे सबमसुदं तु पडिसेंवे ॥५॥ पडिसेवणा तु विहा कप्पे पेव होति णायचा । एतेसि तु विमासा जह भणिय णिसीहणामम्मि ॥६॥ एसो चरितकापो बिहकप्पो य एस अक्सा
ओ। सत्तविहकप्पमेतो वोचहामि अहकमेणं तु॥७॥ ठितमट्टितजिणधेरे लिंगे उपही तहेच संभोगे। एसो तु सत्तकप्पो यथ्यो आणुपुच्चीए॥..८६३८॥ ठियमहितकापाणं होति पिसेसो इमो मुणेयव्यो । पुरपचिठमाण व ठिओ अठिी पुण मझिमजिणाणं ॥९॥ कतिठाणेहिं ठितो खलु ठितकप्पो होति तू मुवयो। काहि व अद्वितकप्पो' ठिताठितो. होति चोदनो ? ॥१२७०॥ दसठागठितो कप्पो पुरिमस्सय पच्छिमस्स बजिणस्सा कतरे दस ठाणातू? माणति आबेलगाइ इमे॥१॥ आचेलाल)कोडेसिय सेजातररायपिंडकिनिकम्मे। जेट्टपडिकमणे मासं पज्जोसणाकये।..८७॥२॥ एतेहिं दसहि ठितो ठिवकप्पो होति तू मुणेययो। चडहिं ठितो उहि अठितो अद्वितकापो पुण इमेहिं ॥३॥ सिज्जातरपिंडे या कितिकम्मे चेच चाउजामे या राइमियपरिसजेडो चउसुपि एतेसु होति ठितो ॥४॥ आचेलक्कुदसिष नियपिंडे व तह पडिकमणे। मास पजोसपणा उप्पेतःणवहिता कप्पा ॥५॥ दुविहो होति अचेलो संताचेलो यऽसंतचेलोय। तित्यकरऽसंतचेला असतबेला मवे सेसा ॥६॥ विहो होइ अचेलो पढिमाचेलोसहा परिजुण्णो। पडिमाचेलो दुनिहो साचेक्खो चेव पिरवेक्लो॥आणिगणो अचोटपही हिरवेक्खो सो भवे अचेलो उाणिगणो सचोलपटो सापेक्खो सो पुण अचेलोटाणिगिणो गिवसणो अवसणो अचेलो य अकडिपहो य । पडिमाचेलिस्सेए नामा एमडिया हॉति ॥९॥ उम्ममउपाथणएसणाए जदि हुँति अपरिसुबाई । मोडगरुवाणि ताणि तु अपरिजुण्णाई पेलाई ॥१२८०॥ उम्ममउपायणएसणाए जदि. इंति सुपरिसुदाई। मोजलपाणि ताणि तु परिजुष्णाईतु चेलाई॥१॥ एत्तो सारजाई चेलाई संजमोषधातीणि। जित्ता विहरतो होइ अचेलो अपरिजुषणी ॥२॥णिग्गहितरागदोसो अणवजेहिं अहापरिहिं । अग्यहिनि विहरतो होति अचेलो उपरिजुण्णी ॥३॥ गिरवहनलिंगभेदे गुख्या कप्पइय कारणजाते। गेलण्णरोगलोए सरिरविवेगेय कितिकम्मे ॥४॥ असिने ओमोदरिए रायरहढे पचादिवे पा। जागाढे अण्णलिंग कालक्लेवो पगमर्ण वा ॥५॥ सालीपतगुलगोरस णवेसु बालीफले जातेसु । दाणड करणसइदा जाहाकम्मे णिमंगणता ॥६॥ आहा अहे य कम्मे आवाहम्मे य अत्तकम्मे याने पुण आहाकम्म गाय कप्पती कस्स?॥७॥ संघस्स पुरिमपच्छिमसमणाणं तह य चेष समणीणं। चाउरो उचासगाणं पच्छा सण्णायगागमणं ॥८॥संघस्स मज्झिमे पथिहमे यसमणाण तह य समणीर्ण। चाउरो पहिस्सताणं पच्छा सणायगागमणं ॥९॥ उजुयजइदा सो पुरिमा चरिमा य बकाइडा उ। तम्हा तेसि संरक्षण सर्व पडिकाई।१२९०॥ अवगतजड्डा मज्झिमसार तह व ते परिणमंति। कप्पाकप्पं इंसिय तेसि बन्च पडिकुहूं ॥१॥ पुरिमाण दुधिसोझो चरिमाण(मो पुणगुरपालओ कप्पो । मझो विसुदचरणो एवं कप्पोऽणुगतब्बो ॥२॥ आयरिए अमिसेगे मिक्सुम्मि गिलाणगम्मि भयणातु। विक्खुनो अडविपचेस पउपस्थिझे तो गहणं ॥३॥ असिवे ओमोदरिए रायडे पवादिड्डेवा। अदाणे गेलणे आहाकम् तु जयणाए॥४॥ जदि सव्वे गीयत्या ताहे आलोयगोग्गहे मणिना। १०८९ पाकल्यभाव्य
सुनिटीपरळसागर या
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [१२९५] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [१२९५]
दीप अनुक्रम [१२९५]
होति मीसमजणी पायश्चित्तं तपोकम् ॥५॥ चतुरो उत्थमने आयामेगासणेय पुरिमड्ढे। णिच्चिइयं दायव्यं सतंच पुच्चोगह कुजा ॥६॥ संपस्सोहविभागो समणासमणी चकुलगणस्सेय । कडमिह ठिते ण कापड अद्वितकप्पे जमुदिस्स ॥ ७॥आयरिए अमिसेमे भिक्खुम्मि गिलाणगम्मि भयणा । अडविपवेसे असती नियपरियहे वो गहणं ॥८॥ विस्थगरपतिकहो आणा अजायउम्गमोऽपियन मुज्ने । अविमुत्ति अलापक्ता दुलमसेज्जा चिउच्छेदो॥९॥ विहे गेलण्णम्मी णिमंतणे दव्यासो असिवे । अवमोदरिय पदोसे भए य गहणं अणुण्णायं ॥१३००॥ विपसुत्तोष ससिने परिसिं जोवणम्मि कहजोगी। दमस्सय दुइमता सागारियसेवणा ॥१॥ मुदित मुदमिसिले मुदितो जो होति जोणिसिहोतु। अमिसित्तो प परेहिं सर्वप भरहो जहा राया ॥२॥ ईसरतलवरमाईविएहिं सेट्ठीहि सत्यवाहेहिं । णितेहिं अतितेहि य पापातो होति साधुस्स ॥३॥ लोभे एसणपाने संका तेणे चरित्तभेदे यावच्छतमनिच्छते चाउम्मासा भये गुरुगा॥४॥ अण्णेचि ९ति दोसा आइण्णे गुम्म रयण इत्थीए। तपिणस्साएं पपेसो निरिक्रसमणुया मये दहा ॥५॥ दुबिहे गेलग्णम्मिपि णिमंतणा दा दालमे असिचे। ओमोदरिय पोसे भए य गहणं अणुमायं ॥६॥ पदम अम्मुडाणं कितिकम्म अजसेवियमदार। काय करसव केण वाचि काहेपकड़सुत्तो?॥७॥विणओ सासणे मूल (आप.१२२८)॥८॥जम्हा विणयति कम्म० (आव० १२२९)॥९॥ पुषामेव य विणी .(१) गाहा ॥१३१०॥आयार पिणय कप्प गणदीवणा अत्तसोही उजुभाषो। अजव मदव लाघव तुही पहायकरणं च ॥१॥ राहुओ गुरुओ मासो लहुमा गुरुमा भवे चउम्मासा। सुहग भिक्खू वसमे आयरिए अदुव विवरीयं ॥२॥ जदिखुत्तो जदिवेल मिक्समए मिक्समिसुवा एति। तदिखुनो तवेलं सो गुरुणो समुइति ॥३॥वसहीय भित्रमासो काइयभूमीय मासियं उदयं पत्तारि य सुकिलया ओ. गाईतस्स बहियाए॥४॥ भिक्खू पसभापरिया अगा ओवासगा य इस्पीओ। बादी राया संघो राया संघो उभवओवि (संथारो य संघाड विभय लह)॥५॥ उदुमओ गुरुओ मासोई लहगा गरुमा भवे चतुम्मासा। उम्मासा लागुरुगा छेदो मूल तह दुर्ग च॥६॥ पंदण चिति कितिकम्मं प्याकम्मं च विणयकम्म चा काय कस्सप फेण पापि काहेर कतिसुत्तो? ॥७॥कतिओणय (आव०१११५)॥८॥सेदीसमतीवाणं किनिकम्म जे य हॉनि सेविगता। सेटीयचाहिराणं कितिकम्मं होति मइया ॥९॥ आवरिषउपज्झाए पचित्ति पने-8 यद्ध पक्षधरे। केवलणाणधरम्मि य काय गिजरहाए॥१३२०॥ सेटीठाणे सीमाकने पत्तारि बाहिरा हाति। सेटीहाणे दुगभेद पाय पत्तारिखी भाया ॥१॥ पत्तेवचुद जिणकपिया य मुदपरिहारिया अहालंदा । एते चतुरो दुगदुग मेया कजेसु बाहिरगा ॥२॥ अंतोचि होति भयणा ओमे जावण्ण संजती सेहे। बाहिपि होति भयणा अतिवा(पा)लग वायए सीसो ॥ ३॥ हेनद्वाणठितोऽविहु पावयणि गणहिताए अवमिमा कमजोगि सगिसेवनि आदिणियंठोग सो पुजो॥४॥ संकिण्णवराहपदे अणाणुताची य होति अपराहे। उनरगुणपटिसेवी आलेषणपजिजो वजो ॥५॥ गच्छपरिरक्षणहा अचागतं जाउवाचकुसलस्स । एसा गणाहिपतिणी सहसीलगनेसणा मणिता ॥ ६॥ विहे कितिकम्मम्मी बाउलिया मो णिसद्धीया। आदिपडिसेधियम्मी उपरि आलोचमा बहुला ।।आमुरुपराए(स) (आप.११३८) वायाए णमुकारो० (जाच-११३५)॥९॥ एतातिं अकुर्वतो (आच०११४०)॥१३३०॥ परिवाच महादुस्खे मुण्डामुळे य किश्वपाणे याकिस्सासे य तद्दा समोहने व कालगते ॥१॥ चत्वारि छथ लहु गुरु दो मूलच होति बोड। अणदृष्ये य नहा पाति पारंचियाणं ॥२॥ परियार परिस परिसं खेतं कालागर्म पणाकणं। कारणजाए जाए किदकम्मं होड कायावं ॥३॥ सगनाणचरितं तपरिणयं जत्थ जिनियं जागे । जिणपास भत्तीएं पृथए तंतहा पायं ॥४॥ सावनजोगविरति संजमो तेण होइ एगविहो । रागहोसनिरोहोनि नेण इविहो मुणेयत्रो ॥५॥ मणक्यणकायजोगाण णिरोहो तेण होति तिपिहो तु। कोहमयमायलोभुक्रतोति उहा स यत्रो॥६॥पंच क्यइंदियाणि य पंचह सराई विरति उकायाातकायजकप्पकप्यादी अडारसहा मुणेयत्रो जोगे करणे सण्णा इदिय भोमादि समणधम्मे या अहारससीलंगसहस्स संजमो होइ णावण्यो। ल०८९॥८॥कितिकम्यपि य दुविहं अम्भुहाणं नहेब बंदणय । समणेहि यसमणीहि य जहक्कम होनि काय ॥५॥ सब्बाहि संजतीहि कितिकर्म संजताण कायन। पुरुसुत्तरित्री धम्मो सव्वजिणाणपि तित्वम्मि ॥१०९०॥१३४०॥ पंचनामी य धम्मो पुरिमस्सय पच्छिमसस य जिणस्स । मजिजामयाण जिणाणं चातुजामो मवे पम्मो ॥१॥ पुरिमाण दुनिसोजसो परिमाणं दुरणुपालओ कप्पो । मजिसमगाण जिमार्ण सुपिसोझो सुरणपालो य॥२॥ पुर्व तु उपहापिओ जस्सव सामाइ कतै पुर। सो होती जेडी खलु जो पच्छा सो कणिहोतु ॥३॥ पुचीवडो जेहो होइनी इत्य होति पुच्छा उ । उबठापणा तु कतिहि | ठाणेहिं इमा भये दसहा । ल.९१ ॥४॥ ततो पारंचिता चुना, अणयप्पा तु तिणि तु। दसणम्मि य वंसम्मि, चरितम्मि य केवले ॥ल० ९२॥५॥ अदुवा चियत्तकिये, जीवकायं समारभे। सेहे व दसमे पुत्ते, जस्सुबहाषणा भणिता ॥ ९.५३॥६॥ अड्या पारंचेको अणवद्गुप्पो व होति एकोय। दसणवतो ततिओ चरिते य चतुत्यो पल.९५॥७॥ पंचमो ३.९०पाकल्पमाप्य
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [१३४८] ---------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [१३४८]
दीप अनुक्रम [१३४८]
चियत्तकिमो सेहो उट्टो यहोनि बोक्यो। एसो यछविहो खलचत्रिहो वा इमो अपणो ल०९५॥८॥सणम्मि य तम्मि. चरिनम्मि य केपले। चियन किये सेह य, उपट्टप्पा तुआहिया ॥९॥ सणचरित्नवंने पारंचडणपट्टओपि पषिसंति। ने जेण भयंनी उ एवंएसा भवे चाउरी॥१३५०॥ ईसणवते यनहा जीवणिकाया य जो समारभए। उद्यापणाएं भयणा एतेसि होनि दोहपि ॥१॥ अगाभोएण मिच्छ, सम्पत्तं पुणरागते । तमेव तस्स पच्छित सम्म (संजम) पविजए ॥२॥ आभोगेण 3 मिन्हतं. संमन पुणरामने। जिणथे. राण आणाए, मूलच्छेनं तु कारए॥३॥ उहं जीवणिकायाणं, अप्पझो तुचिराहतो। तिबिहेण पडिकते, मुलच्छेनं तु कारए॥४॥ उहं जीचणिकायाणं, अणपज्योतु पिराहनो। आटोक्यपरिकतो. मुखो वति संजतो ॥५॥ जीवणिकायारमे दसणवते य भणिय पच्छितं । तं देय सुत्तपिहिणा अण्णह देते इसे दीसा ॥६॥ अपमिछने य पच्छिन, पण्डिते अनिमलया। धम्मस्सासायणा तिवा, मग्गरस य चिराहणा ॥ उस्मतं महतो, काम बंधति चिकणं। संसारं च परदेति. मोहणिज चकुवति ॥८॥ उम्ममादेसणाए. मग विपरिचायए। पर मोहेण रंजनो, महामोह पकुवति ॥९॥सपडिकमणों धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स या जिगस्स। मन्दिरमयाण जिणाणे कारण जाए पडिकमणं ॥१३६०॥ इरिहो य मासकप्पो जिणकप्पो पेय पपिरकम्पो या एकेकोऽपिय पिहो अहितकच्यो य ठिपकप्पो ॥१॥ पजोसवणाकप्पो होनि ठितो अहिओ य थेराणं । एमेव जिणाणपी कप्पो ठितम-३ द्वितो होति ॥२॥ चातुम्मासुकोसो समरि राईनिया जहणणं । ठिनहितमेगतरे कारणयचा(बा)सितषणतरे ॥ ३॥ ठियमद्वितीय कप्पो एसो मे (मे) चणिओ समासेण । अह एनो जिणकप्पं वोच्छामि अहाणपूरीए ॥४॥ गम्मि य णिम्माया थेरा जे मुणितसवपरमस्था। अम्गह अभिग्गहे या उति जिणकप्पियविहारं ॥.:.८८॥५॥णपविजहनेणं उकासेणं नु दस असंपुण्णाा चोहसपुती तिर्थ नेणत जिणकपण पबजे ॥६॥ पयरोसभसंघयणा मुत्तस्सऽत्यो नुहोति परमत्यो। संसारसभाची वा णाओ तो मुणितपरमत्थो ।॥ ७॥ दोहामाह नतियादी पटिमाऽभिग्गहण मनपाणम्स । दोहिन उपरिमाहि गिव्हते पत्थपाताई ॥८॥ दवादभिग्गहा पुण रयणापलिमादिगा प पोजवा। एनेसु पिदितभाषा उनि जिणकपियविहारं ॥९॥ परिणाम जोगसोही उपाहिविषयो य गणविवेगी य (यणिक्खेदो)। सेजासंधारचिसोहणं च विगतीविवेग च॥..८९॥१३७०॥ गणहरठवणं च नहा अणुसट्ठी पेय नहाय सीसाणं । सामाचारी य नहा पत्ता होति जिणकप्पे ।..॥१॥ अणुपालिओ यदीहो परिवाओ पावणानि मे दिना। अभूजयाण दोण्हं उबेमि कतरपरिणामो ॥२॥ सोहिणिमिन जोगाण भाषणा साइमा तु पंचविहा । नव सन सुनेगने वाले य नह पंचमा होनि ॥३॥ एतेसिं तु विभासा उवार भणिहिनि मासकप्पम्मि। सेसाई दाराई वोच्छामि समासनो णमो॥४॥ पुश्पहिस्स विष का गेण्हति अहगई उवहिं । अभिगहियमेसणाहि उपादे सर्व ॥५॥ गणसपणास करेती जो जहिं ठाणद्वितो तु पुचम्मिानं तस्येष ठवेनी गणणिक्से व इत्तरिय ॥६॥सेजाएं अपरिभुत्ने ठायति नहियं तु एगदेसम्मि। संथारं उप्पादे अहाकई एसणविस ॥७॥विगतीओ पण गेहति मेहति भत्तं च सो अटेवाई। इय भापिओं हु जाहे नाहे ठपती गणहरं तु ॥८॥ गणहर गुणसंपर्श पामे पासम्मि ठापहनाण। चुनानिछानि सीसे सचित्तादी य अणुजाणे ॥९॥ठायेऊण गणहरं आम-- नेऊण नो गणं सर्व। निबिहेण समावेनी सचालन उलं गच्छं ॥१३८०॥ संगजणियहासा सुनस्थविसारना पवणुकम्मा। चितेति गर्ग धीरा णितापिने जिणाणाए ॥१॥ मिदमहानि सेस परलोगहिनं गुरूण अणुरूव। अणुसहि देवि नहिं गणाहिपनिणो गणस्से ॥२॥नवणियमसंपउना आपरसगझागजांगमहडीणा । संजोगविपजोगे अभिग्गहा जे समन्धाण ॥३॥ गुपने मिसिरहिं गणोपी चितिओ हपनि सो उणिवाए दिडीए आन्दोए नं गर्ण सर्व ॥४॥चायाए महराए आसासे अपरिसेस णिस्सेस । गुरु अणुरुव जहरिहंत सवारनुस्टानि रानिणिए ॥५॥पो होनि चारसचिहो दह णियमा दिओ य णोईदी। आवाससमापारी पोदधा चकवाला ॥६॥ मुनन्धमाजोगे आतीणा नेगु होइ जुना उ। सवेपिय संजोगा णियमा ऊ विपओगता ॥ ७॥ नह उपहीडापायण दवादीया अभिगगहा जे तु । सनि सामये नेमविमाएपमार्य करनाऽण ॥८॥ अधपा अभिम्गहा ऊ कुर्वनि जिणा पजे समस्या या एवं सासिनु गर्ण नाहे गणहारि अप्पाहे ॥ ५॥ गणसंगहवम्गहरासणे नुमं मार काहिसिपमाद। ठितकप्पो जिणाण गणघरपरिवारिया गण्डे ॥१३५०॥ मजाररसियस रिसोरम नर्म माह काहिसि बिहारं। माणासेहिसि पोलिंगपि अपाणं चेच गळच॥१॥पद्दतओ विहारो जिणपण्णनो दुबालसंगम्मि। जह जिणकप्पियपरिहारियाण सेसाणवि नहेव ॥२॥ परिवढमाणसइदो जह जिणकप्पो नहा करिनासी। अकस्लिमपणा ऊण ठचे अण्णं इमं गाउं ॥३॥ जो सगिह न पहिलं जलसो तुण विज्झने पमाएणं । सो णपि सहियच्चो परचरवाहापसमणम्मि॥४॥णाणं अदिजिऊणं जिणवयर्ण दसणेण रोएनााणपएनिजी घरेलू जमाण गणं ण गणहारी ॥५॥णार्ण अहिशिकणं जिणवपणं दसणेण रोएना। बाएनि जो घरेलु अप्पाण गण स गणहारी॥६॥णाणं अभिज्झिऊ जिणचवणं देसणेण रोएना। नचएनि जो ठो अपाण गणं न गणहारी॥3॥ १०९२पत्रकन्यभाष्य -:
मुनि दीपनवसागर म
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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक [१३९८]
दीप
अनुक्रम
[१३९८]
渋沢
“पंचकल्प” – छेदसूत्र-५/२ • छेदसूत्र -५/२ (भाष्य)
तु दुहि उप हिस्गा सरीरस्सा अतिसेसो
१०९२ पञ्चकन्यायं -
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......
"माण अभिशिक जिगन दंसणेण एता चाए जो अप्पा गणं सो गणहारी ॥ ८॥ पाणग्मि समय चरिने व समणसारम्मि ण चए जो ठाण गण गणहारी ॥ ९ ॥ णाणम्मिदंसणम्मिय तवे परिने य समणसारम्मि चानि जो अप्पा गणं स गणहारी ॥ १४०॥ एसा गणहरमेरा आवा रांगगृहाणुगतां अप्पच्छंदा जहिन्छाए ॥१॥ सुपदनिहादि विसय तेसि तु जे भवे रता अप्पा ने ऊ. विहारोण तु नेणाओं ॥ उगम उपाय रिम्स खोए। पिंड उबहिं से सोहिंती होति सचरिती ॥ ३ ॥ सीतापनि बिहारं सुहसीन्दते जो अदीओ सो नगरि लिंगसारो संजमसारम्मि गिम्हारो ॥ ४ ॥ नित्यगरी सुरमहिनो सिज्झियधुवम अणिगृहयविरिओ नववाणम्मि उज्जमति ॥ ५॥ कि पूण अवसेसेहिं दुक्खक्खयकारणा सुनिहिएहि होनि उज्जमिव सपचवायम्बि माणुस्से ? ॥ ६ ॥ संख्यित्ताविव पवई जह पद्धति वित्थरेण पयहंती उदर्धिते च गड़ी तहसीलगुणेहि बड्डाहि ॥ ७॥ कुणमप्पमाय आवस्सएहिं संजमनाहि णिस्सारं मामला विचाणिना ॥ ९० ९६ ॥ ८॥ तिकसायपरिणता परपरिवादं च मा करेला अचासायणविरता होह सदा संजमरता ॥ ९७ ॥ ९ ॥ सा गुरूणं - यता विषयजुत्ताय सज्झाए जाउता साहूण चिं ॥ ९८ ॥ १४१० ॥ एस अखंडितील बहुस्तो अपरोवतावीय चरणगुणमुट्टियति यचष्णी (ण) परी (नि)पोसण ॥ १ ॥ चाति माणिक एवं मंगत पता आनंदसुपाई मुचति गुणे सरता से ॥ २॥ कतरे गुणा उ नम्सा जे सुमरंता तु तस्स ने सीसा ? अनि इमो सुण ते ते समासेणं ॥ ३ ॥ ससदायगाणं सममुहदुक्खाण शिष्पकंपानं दुक्तं सु विसहि जे निरपवास गुरुणं च ९९ ॥ ४॥ सदगुण दि एय अपरोक्ती पसंहिं एहिं देखा ते खंडिया होति ॥ ६० १००॥५॥ अणुसद्धि दाऊ तहि सत्यमितिहिमुदुम्मि अह समिहिन संघ असति गणं नं समाय ॥ ६॥ जिनवर पादमी पबिजे गणधराण व समीपे चोदपुत्री तह चेइए य असतीय परमादी ॥ ७॥ चामाचचासाविहारविदा कार्ड महणं गाणं चैव सुनन्यशरियतारा गेष् भिम धीरा ॥ ८ ॥ णिकपाउमा अभिग्गा गिण्हती पण अन्ना उ जिकण्णी केरिसस्सा कम्पनि परिवजिर्ड? गुणसु ॥ ९ ॥ कपे सुनत्यवितारयम्स संघयणविरियजुनस्स एवारिस कम्पपिडित होति जिनको ॥१४२॥ जिकणं भणितं पदमं तु होति नियमेण विरियं तु भनि चिनी ती तो कुसमी ॥ १ ॥ कोनि पुण परिसी पुण नियमाठ कारणेहिं तु काणि पुर्ण कारणाणि य इमाई नाई जिसमे | २ ॥ देहस्स दुच्चन्दनं आयरियाणं च सादा रोग परिबंधन सहति सीउन्हावी पहिभागी ॥९१॥२॥ सुनत्यानिवि पेतुं दुच्चलदेह तु तं चाति च अणणुकूलत्तणेण वाराहिओ सूरी ॥४॥ आयरिया अपसण्णा गुनपसायं तु कुनि पाहीन ते सुजान ॥ ५॥ सविगाणं अवा गार्ड दिए । गाधी होज ने य इमे पण्णिता रोगा ॥ ६॥ कासे सास जर दाहे जोणी मदले अ रिसा अजीरए दिडी मुदते अकार ॥ ७॥ अडवण तह कष्णवेणा कंडु फोद दमऊ (सर)। एते ते सोलची समासतो परिणता रोगा ॥ ८॥ अण्णो परिणं गुरुवा साहिजति ऊके पुण पडिबंधिमे गुणसु ॥ ९॥ सो गामो साया मम जो जन्म एनाई संतो गुरु ॥ १४३ ॥ सकारी समणी जम भइओ नहि गाये आयरिज महतरजो एसता से (मेसह सदा ॥१॥ णणि दहिसरच्छेदपियस्सय मा मे सविएगामी ॥ नः २०१२॥ एहि अभागी सीलाई देति उ उरंतु तो पाहिजन सो ऊ गुरुकुलवास असेतो ॥ ३ ॥ एहिं ण पडिले असट्टी दारिचं परिसम का पूर्ण सामाचारी जिणय होनिमा सातु ॥ ४ ॥ होने का परिने तिरथे परियाग आगमे वेदे कप्पे लिये लेस्सा गणणा झा पनिगाहे ॥ ५ ॥ पादाण मणाऽऽसेि अपना कारण कि पंथीय ततियाए ॥ ६ ॥ एसो जिनको खलु समासतो दण्णितो सविभवेणं एलो उ धेरकप्पं समासओ मे शिसामेहि ॥ ७ ॥ विहिम्मिसंजमम्मि उ होति कप तु सामइयछेदपरिहारिए यतिविम्मि एयम्मि॥ठिय अडिए कप्पे सामाइयसंजमा (ओ) मुणेय छेदपरिहारिया पुणे विमाओ होति ठिक ||१|| थेरपीज कापीण अम्माही दोन महण चभिस्गहाणं पंचहि दोहिं तह ॥ १४४ ॥ त्राले पुढे हे अत्थे माणदंसणप्पेही संपणम्मि पण भणिता ॥ १ ॥ जहसंभवं तु सेसा खेतादि विभासिया द्वारा उ उचरिं तु मासको स्थिरतो विभासते तेति ॥ २ ॥ इति एस थेरपी एसो बोलतु । मी जिणकप्पे भवती तु ॥ ३॥ रुदनकरण (णि) पण मुंडो दुबिहो वही जहणो सिं एसो वा गायी ॥४॥ स्यहरणं मुहपोसी से चिकितलिगे अरिस मेहे उ कडिपो ॥५॥ दुबिहा अतिसाविप तेसि इमे वण्णिता समासेणं बाहिरना सिखा६ ॥ सिमी उपोयो अछिपाणपाती परीसमसंपणारी ॥ ७॥ अभंतरमतिसेसो इमो उ स समासतो भणिओ उपोभो (२७३) मुनि परसागर
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.... आगमसूत्र
आयं [२३९८ ]
[ ३८ / २], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [१४४८] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प” संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
प्रत सूत्रांक [१४४८]
दीप अनुक्रम [१४४८]
सूरो इव तेयसा जुत्तो ॥८॥ अमावणसरीरो पदगंधी ण भवते सरीरस्स। खतमविण कुच्छ कच्छसि परिकम्मणविय कुषति ॥९॥पाणिपडियाहधारी एरिसया णियमसोमणेयवा। अतिसेसे बुच्छामि अण्णेऽपि समासतो तेसि ॥१४५०॥ दुविह अतिसेस तेसि णाणानिसयो तहब सारीरो। णाणातिसतो ओही मणपजय नदुमयं चेव ॥१॥ आभिणियोहियणाणं सुतणाणं पेपणाणमनिसेसो । निमन्त्री अभिष्णवचा एसो सारीरमइसेतो ॥२॥रयहरणं मुहपोनी जहणोवहि पाणिपत्नयस्सेसो । उकोस निषि कप्पा स्यहर मुहपोनि पणगेनं ॥३॥ णवहा पटिम्गहीणं जहष्णमुकोस होति बारसहा। नेसिऽनेयाणि चिथ अइरेगो पायनिजोगो॥४॥ उबट्टणसणमजणा बननयणदंतसोमा या एते उघाया खन हनि जिणकापलिंगस्स ॥ ५॥ उबहवाइयाई उवगरणं पेपरकप्पीणं। मइयों लिंगकप्पा गेलनाईहिं कहि ॥६॥ कमम्मि गिलाणाइसु उबरणमाइया अणुचाया। गणो चउम्गणी या कारणओ होइ उबही 3 ॥९०१०२॥ रुदणहकास्वणि(ण)यणो मुंदो दुविहोपही समासेणं । एसो तु लिंगकप्पो कारणचासि नाण्णवरो टालोय खर कत्तरीय मुंड तिषिहं न हो। थेरा। असिवादिकारणेहि कुज विषजास लिंगस्त ॥९॥ निरूहयलिंगमेरे गुरुगा कापड य कारणजाते। गेटमरागलोए सरीखेयाचडियमादी॥१४६७ ॥ वासनाणेणाविहुभेदो लिंगल्स तं अण्णानं। चाउम्मासुकोस सनारि राइदिय जहन ॥१॥ एयं तु दवलिंग भावे समणनणं नु णाय । को उ गुणो दवलिंगे ? भण्णनि दणमा सुणाम पोडं ॥२॥ सकार पंदण णमं-14 स पूजा कहणा य लिंगकप्पम्मि। पत्लेयबुदमादी लिंगे उउमथ नो गहर्ण ॥..५२॥३॥ बत्थासण सकारो बंदण अभुट्टणं तु गाया। पणिवादो नु णमसण संतगुणकिनणा पूया या बट्टण दन्टिग कुर्वतवाणि दमादीवि। लिंगमि अविजी णो णजति एस विरतोनि ०१-३॥ ॥ सहितो समणलिगेणं, धम्म संम(ज)तो भये। अलिंग बेनि ने कीस, जाणतो ण | करे नुमं? ॥६॥ पत्नयबद्धो जाय उ गिहिलिंगी जब अण्णलिंगी। देवाविना ण पूनिमा पुर्ज होहिनि कुलिंग॥७॥ण यण पुच्छति कोती केरिसओ होइ तम्भ धम्मोति?ण:य सडिंगविहर्ण छउमस्या जाणे पिरोनि ॥८॥ एसो तु लिंगकप्पो अहुणा बोचहामि उवहिकप्पं तु । जो जस्स भवे उवही जिणधेराणं जहाकमसो॥९॥ ओहे उनम्गहे या दुविहोर उबही न होनि णाययो । ओहोवही तु निष्ह ओबगहियो भने दोण्हं ॥१४७०॥ जिणकप्पे बेरकप्पे कप्पातीते य विष्हमोपो तु। थेराणमुषग्गहिओ साहणे संजतीणं च ॥१॥ वारस चोहस पणुचीस व य एको य णिस्वही चय। जिणधेरअनपत्यद्धतिस्थकरनित्यकरे ॥२॥ पाणीपडिगाहीता पहिगहधारी य होति जिणकप्पे । धेरा पडिगहधरा कप्पाडीया उal भजियचा ॥३॥ वियनियचाउकयगए णच दस एकारसेव चारसगं । एते अह किप्पा उचहिम्मिपि होति जिणकप्पे ॥४॥ जया दुर्गच पणगं उचहिम्स उहानि दोनिवि चिकप्पा। पाणिपटिग्गहियाणं अपाउयसपाउयाणं च ॥५॥स्यहरणं मुहपोती एवं दुर्ग अपाउयंगाणं । स्वहरणं मुहपोती निनिय पच्छाद इतरेसिं ॥६॥ उराहधारीणपिय दुपिहो उपही समासओ होति। गवविह दुवालसचिहो अपाउयसपाउयानं च ॥७॥ पत्तं पत्ताधो पायट्टवणं च पायकेसरिया। पहलाई रयत्नाणं च गोचडओ पायणिजोगो ॥८॥स्यहरणं मुहपोनीट गवहा एसो अपाउयंगाणं । इयरेसि एसेष य अतिरेमा तिमि पच्छामा ॥९॥ एते चेच दुबारस मत्ता अतिरेग चोलपट्टी या एसो य चोदसपिहों उपही सलु धेरकप्पम्मि ॥१४८॥ अजाणं एसेप य चोलस्थाणम्मि णवरि कमदं तु अतिरेग अंगलग्गा इमे उसने मुणेयवा ॥१॥ उम्महणंतग पट्टो अढोग चलणिया व पोदया। अभितर पाहिनियंसनीय नह | कंचुए चेव ।।२। उचिट्य पेकच्छिय संघाडी व संधकरणी या ओहोबहिम्मि एते अजाण पणावीस तु ॥३॥ सन य पडिग्गहम्मी स्यहरण व होति मुहपानी। एसो तुणपविकप्पो उपही पनेयबुदाणं ॥४॥ एगो तिस्थगराणे मिक्सममाणाण होह उवही उणि परं णिरुपहि ऊ जावजीचाए तिस्थगरा ।।स.१०४॥५॥ जिणा चारसरुवाई. थेरा चो. इसरूविणो। अजाणं पण्णवीस तु, अतो उड्ढे उचगहो॥ ६॥ एसो उनहीकप्पो समासओ बनिओ जहाकमसो। संभोगकापमहणा समासतो में णिसामेह ॥ ७॥ संभोगपरूषणया | सिरिधर सिर(न)पाढे य संभुत्ते। दसणनाणचरिने तवहे उत्तरगुणेसु॥..९३॥८॥ओहअभिग्राहदाणमाहणे अणुपासणा य उपचाए। संचासम्मिय उद्दो संभोगविही मुणेयशो ॥५॥ उवही मुब मनपाण, अंजलीपगहे या दावणा य निकाए य, अम्भुहाणेलियावरे ॥..९४॥१४९०॥किडकम्मरस य करणे, वेषापचकरणे इय । समोसरण सपिणसेजा, कहाए
य पर्वधना ॥..९५॥१॥ उगम उपाएसण निवेय परिकम्मणा य परिहरणा । संजोगविहिरिमना उचहिम्मिवि होनि उडाणा ॥२॥ वायण पुचड़ण परिपुण्ड चिन परियणा य का कहणा य । संजोगविहिविभत्ता सुबठाणे होनि ठट्टाणा ॥३॥ उम्गम उपाएसण लोयण संभुंजणा मिसिरणाय । संजोगविहिपिभना य भनवाणे य उडाणा ॥४॥ बंदिय पणमिय
अंजलि गुरुजालोये अभिमाहि णिसेजा। संजोगविहिविभत्ता अंजलिकम्मेवि उहाणा ॥५॥ सेनोवहि आहारे सीसगणाणुप्पयाण सज्झाए । संजोगविहिविभत्ता दावणाएवि उडाणा भा॥६॥ सेजोचहि आहारे सीसगणाणुप्पयाण सज्झाए। संजोगविहिविभत्ता निमंतजाएनि उहाणा ॥ ७॥ अम्भुहासण जंजलि किंकर अमासकरणमपिभनी। संजोगविहि१०९३पशकल्पमाप्यं -
मुनि दीपरतसागर
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [१४९८] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [०००१]
दीप अनुक्रम [०००१]
विभत्ता अमुहाणेपि उहाणा ॥८॥ सुत्तायाम सिरो णय मुद्धाणं सुत्तवजियं पेष । संजोगविहिविभत्ता कितिकम्मे हॉति उहाणा ॥९॥आहारउवाहिमनग अहिगरणविभोसणा य सु(य)महाए। संजोगविहिविभत्ता देयायचेऽवि गहाणा ॥१५००॥ वास उडु अहालंदे पुहत्तसाहारणोग्गहित्तिरिए। युवावासोसरणे छहाणा होति पविभत्ता ॥१॥ परिपट्टणाऽणुओगे वागरणे परिच्छणा व आ(पुच्छ परिच्छणासोए। संजोगविहिविभत्ता समिसेजाए उदाणा ॥२॥ वादो जप्प चितंटा पदणियाऽणिच्छिया कहा होति। संजोगविहिधिभत्ता कहापर्वोऽपि उट्टाणा॥३॥रागेणे दोसणं अजाणाविरईय मिष्ठते । कोमामाटोमासवदारेहि तु राइडेहिं ॥४॥ अविश्वस्त वाचत्तरिविहो. एसा चावत्तरी दोहिं गुणिया रागदोसेहि बोयानं सयं अण्णाणातीहिं २१६ कोहादीहि २८८ आसबदारहि ३६० राइभोयणलहेहि ४३२। 'बारस य चाउमीसा उत्तीसा अड्याळमेव सट्टी य। बायनरी उ एसो संजोगविही मुणेयम्बो ॥५॥वारस य चाउमीसा उनीसऽडयालमेव सही या वायनरी विगुणिया चोयालसवं तु संजोगा ॥ ६॥ वारस व चवीसा उत्तीसऽध्याल व सट्टी या पावसरि उगणिया। चनारि सया उ पत्नीसा ॥ ७॥ जस्सने संजोगा उक्लदा अस्थतो य विष्णाया । सो जाणती विसोहिं उनघायं चेच संभोंगे ॥८॥ जस्सेते संजोगा उपलदा जत्वतो व विनाता । णिगुहि समन्थो णिजूढे यावि परिहरि ॥९॥ सरिकप्पे सरिछंदे तुडचरिने विसिद्धतरए का। आयत्ति भत्तप्पाणं सएण लाभेण वा नुस्से ॥१५१०॥सरिकप्पे सरिमंडे नुहाचरित्ने । विसिहतरए बा । साहहिं संथप कुजणाणीहिं चरित्तगुत्तेहिं ॥१॥ ठिक्कप्पम्मि दसबिहे ठवणाकप्पे व दुविहमण्णवरे। उत्तरगृणकप्पम्मि य जो सरिकप्पो स संभोगो॥२॥ सनधिहकप एसो समासओ वषिणो सविभवेणं । एत्तो वसबिहकार्य समासओ मे निसामेह ॥३॥ कण पकप्प विकप्पे संकप्पुषकप्प तह य अणुकप्पे । उकप्पे य अकप्पे नहा दुकापे मुकप्पे य॥९॥४॥ गच्छाओं निग्गयाणं जिणकप्पियमादियाण कप्पो उ।तच समासेण अहं उचिगेहामि इणमो उ॥५॥ पिंटेसण पागेसग उम्गह उहिड भावणा चेचा चारस य भिक्षु पहिमा एवमादी भवे कप्पो॥९॥६॥ पिंटेसण पाणेसण पंचुबरिमया सभिग्गहेगा या सेसामु य अग्गहणं सेनोग्गह उपरिमा दोसु ॥ उद्दिहिती देहा जिणकप्पविही उ जो समक्खाओ। सेते कालचरिते इयाइनहेब इहईपि ॥८॥ पणुवीस भाषणाओ महरयाण नुहोति पंचाएं। वारस अणिबयादी वक्त्तादीय पंचेच ॥९॥एचाहिं भाषणाहिं भावेंनी ते उ नियमपाण। सोऽपि गच्छनिमाय पेरम्गपरायणा धीरा ॥१५२०॥ बारस भिक्युपडिमा आदिपाहणेण लंदिया चेव। तह मुदपारिहारी समोऽवेसो भवे कप्पो ॥१॥ नित्य निरास निम्मम निरहंकार परमहबढजोगी। चत्तसरीरकसायो इंदियगामा य निम्नहिया..९८॥ज चष्ण एचमादी सम्मणयविहाणमागमविसुद्ध। कप्पोतिनाणदसणचरितगुणमायहं जाणे.:.९९ ॥३॥ निष्ठ्यमतिणो णिच्छयणयडिया उडिता तु बहारे। अहवापि णिच्छजो तू णाणादीयं भवे वितयं ॥४॥णासंसह इहलोयं परलोयं वापि एस उ निनासो। निम्ममता तु ममनं ण करेती अपिय देहऽपि ॥५॥ण करे अहंकार एरिसओं अहति उत्तमगुणोघो। णित्राणं परमडो तस्साहणता उ बढजोगी ॥ ६॥ णिप्पदिकम्मसरीरो यत्तसरीरो उ होड़ पायो। गाडवणेतऽछिमलादिविसंलिखमो उज्झियकसानो॥७॥ सोइंदियमादीमय विसयपयारेसु सहमादीसु । ण उबेड रागदोसे इंदिवगामा य निगहिया ॥८॥ सधणयापी दुपिहा नाणे करणे य हाति बोदवा। सपणयार्णऽपेयं मतं तुज (जो) सुहितो चरणे ॥९॥ कप्पो णामं भष्णति जो आवहती उनाणमादीणि। बुदि वापि करेती सबो सो होइ कप्पो उ॥१५३०॥ कम्पो उ एस मणिो अटूणा एनो पकण पोषहामि । उस्सारकापमादी जहवम आणुपुत्रीए॥१॥ उस्सारकप्प लोगाणुजोग परमाणुओग संगणी। संभोग सिंगणाइय एषमादी पकप्पो 3 ॥२॥ आचारविहिवादत्वज्ञानए परिसकारणविहण्ण । संघिग्गमपरितंते अरिहति उस्सारण काउंशाकारणे-अभिम्गते पहिबदे.संदिग्गे यसलदिए।अहिए यपरिज्मी , गुरुजमुईजोगकारए ॥ ४॥ गण्डो व अलंदीओ ओमाण चेव जणहियासो य । मिहिणो य मंदधम्मा सुझं च गयेसाए उवहिं ॥ ५॥ एएहि कारणेहि उस्सारावारिहो उ बोदयो। उस्सारो दिहियादे धम्मकहा गंडियनिमिन ॥६॥ उम्सारकप्प एसो समासो बपिणओ मए एवं । योगाणुओगमिनो बोच्छामि अहं समासेणं ॥ ७॥मेहाबी सीसम्मी ओइमिए कालगन राणं । सन्मतिएण अह सो खिसतणं इर्म भणिो ॥८॥अनिपत नेऽधीतं ग य णातो वारिसो मुहतो उ। जत्थ थिरों होड सेहो निक्सतो अहोर वोटा (नं)॥९॥ तो एप सउमर भणिओ अह गंतु सो पतिक्षण। आजीविसगासम्मी सिक्वति वाहे निमित्तथं ॥ १५४०॥ अह ताम्मि अहीयम्मी बदहेड निविद अनय कया(कष्णया का)नि। सालाहणो णरिदा पुच्छतिमा तिम्णि पुच्छाओ॥१॥ पमुलिंडि पदमयाए वितिय समुदेव केत्तिय उदय । ततियाए पुच्छाए महुरा य पडिज बग बत्ति ? ॥२॥ पढमाए वामकटगं देइ तहि सयसहस्समुतंतु। चितियाए कुंडलं नू तलियाएंवि कुंडलं चितियं ॥३॥ आजीविता उपद्वित गुरुदक्खिनु एब अम्हनि। तेहि तय त् गहित इयरोचित कालकनं
तु॥४॥णझुम्मि उ सुन्नम्मी अस्थम्मि अणट्टे वाहे सो कुणालोगगुजोगं च तहा पढमणुओगं च दोऽए ॥५॥ बहुहा निमित्त ताहियं पढमणुओगे यहोति चरियाई । जिगच|१०९४ पनकल्यभाप्यं -
मुनिटीपरलसागर
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [१५४६] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प” संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत
सूत्रांक
[१५४६]
दीप अनुक्रम [१५४६]
किदसाराणं पुन्वभवाई निवदाई॥६॥ ते काऊणं तो सो पाडलियुत्ते उपहितो संघ । बह कर्त मे किंची अणुग्गहहायतं सुणह ॥ ७॥ तो संघेण पिसंत सोऊण य से पढिपिछतं तं तु। । तो तं पतिहित तू मगरम्मी कुसुमणामम्मि ॥८॥ एमादीणं करणं गहणं णिजूहणा पकप्पो ऊ। संगहणीण य करणं अप्पाहाराण तुपकप्पो ॥९॥ संभोगो संगमनगहता य बच्छाव | पीड बहुमायो।साहारण कुलगणसंपठवण अणविकमणमेय.१०१०१५५०॥ मुत्तत्यतभयादी हिं संगहोवाहो उ भत्तादी। बच्छत मुकगिलागे एचमादीसु जहकमलो ॥१॥ एगस्य भोवणं पीती भवतिकमाणजिमितत्ति । बहुमानापिय कुबति सहापगतं च तेणेष ॥२॥ केई बलविसंता ण सर्मति सलविया विय लमंति। ज लवं सामर्थ संभोगामितो ताई. ति॥३॥ कुटमणसंपत्पेरा मज्जायाओ ठनि हिंडता। जह सकुले परितामों (कुसलेऽव परिणा) मत्थी उचसंपया ॥४॥ कुलमणसंपतषणा जाजोवकताओं सहिंतु घेरेहि। कुलबहुमनायाविव वाओ यमाकमिनति ॥५॥कलेस सिंगभूतं कर्म तू सिंगणाइयं होड। तं बतिसाहुसंजा होनाहि सगन्यापरमच्छे॥६॥ पुण होजाहिकतं कोइ भणेजाहि
संजर जवा। मजस दुनसरी कहति सो पुच्छिओ आह॥७॥कीतो मेर पडो हार्डवा आणिो घरेलू वा । वारे वा से जातो अहवा सजाइपलाची ॥८॥ अकमिऊणं जानुं वासाणि करेउ अहा लोभे । पत्यासणमादीहिनत्य पमादोण कायद्यो॥९॥ गठस्स स्क्खणड्डा चारिसठिते अपरा काय पहरा तू मजाला गच्छरस उ फेडिया होड
॥१५६०॥ आणाएँ जिमिदाणं अणुकंपाए पचरमजुत्तार्ण । परमच्छे बसमच्छे सापयत्तेग काय अणवस्थचारणहा उपविद्वतजो कुसीलेऽपि। लिग अणुम्मुर्वते जीवहितऽ. बुबधम्मो य॥२॥ अगुसही धम्मकहापनविजओ जहन मुंचती पायो । लाहे अतिसत्तीए इमाई कुजा उ करणाणि ॥३॥ अंतवाणी जोसोपनी व पासायकंच यालं । अभिओगS पंम संकम जावेसण वेयणकीय।..१०२४ा अंतवानं कार्ड हरेति ओसोवर्ण चकाऊणं। वेवालमुहवेट मेसेति तग अमुचंत ॥५॥ अमिनोग पसीकरणं विना संकामणं च अन्नत्या
भस्स कंपणं वा आवेसे मेसेति ॥६॥साहम्मियवच्छ कुणमाणेणं तु एवं कत होहअण्णे य गुणा उइमे हति ते मे निसामेह ॥ ७॥मिच्छत्ता संमतं सम्मदिही चरितओस भा चरितहिते चिरतं मलणा य पभावणा तित्ये ॥८॥ तम्हा साहुनिमित्त सापयतेण एव काय । अहुणा चेतिनिमित्तं जं काय वगं वोच्छं ॥९॥चोदेड चेदयार्ण खेचहिरणे
बगाममाचादी। लगतस्स पजाइणो तिकरणसोही कहं भवे?॥१५७०॥ मन्नाह एत्व विभासा जो एवाई सय विमम्मेजा। तस्सग होती सोही अह कोई हरेज एयाई ॥१॥ तत्य करेंत उबेहं जा सा भणिया उ तिमरणविसोही। साबण होइ अमत्ती य तस तम्हा निवारेजा ॥२॥ सवस्यामेण सहि संपेणं होलमिया तु।सचरितऽचरिताण तु सबेसिस एवं कर्ज तु॥३॥ तत्व पुष कयादि मियो जन्नत्य हचिन तत्व उपर्यतो। लिंगत्येहि समयं का मजाता भवे नहियं ॥४॥ भत्ते पाणे सयणास पसेजोपहीए सज्झाए।वायणपडिमाणासु य सुहसीले अत्तसंहारो॥५॥ जहिवं तु साक्यादी कोई कोजाहि संघम तुसहियं नुन मेण्हेजा क य वस उदिसेनासु ॥६॥ पाणभत्तादीसंग व संपादोज याचि ने सुसे। बाहितिजासचिव जयंती एव उसो ॥ असेज मे उपहिण देति मेहति पाप संघाई। समायपि ण मेल्हे म पहिच्छे चोयए वापि ॥८॥ मोतं राउलाज उपएसंवा मुएजजव एवं। अन्नत्य उदासीणो एसो खल म(अ)नसंचारो ॥९॥ परिवार दिति नहिं रायकुले विन्नविनितेष । जदि वा होज समत्वो मंतजा तो सयं चेव ॥१५८०॥ जो पुण बंधनहाविस उरणचरितमंसरोहे वा। णित्रणो समस्योग करेइ नहि विसंभोगो ॥१॥ कोई पहचादी साहुम करेज अहव देवकुल। पारिज परिमभंगच करेजा कोइ पडिणीओ ॥२॥ अहवापि निमित्त अकहेमाणोतु कोई मिजा। मिरलंपणमगिलाणो ओरसक्जिादिसु समस्यो ॥३॥ जइच्छति मोदेठे समसभोर्य करेति तो(यो) समणं । | परितावणादि जैते पाती तेच पाचद य॥४॥ केनाइयं पुण काल संधादिगताण तेसिसमणाणं। काय तुमइमता? भनाइणमो निसामेह ॥ मजायसंक्रत्ते चिरमचि कायवमयरिततेण। मनायविपरणे सउवालंम सतिं करणं ॥६॥ जदि अपराहे महिओ भण्मति मोएम जदि पुणो ण करे। एसियमम्भुनगते मोवेर्ड पधुवालमे॥७॥ इहपरलोग चाकुवंवेतारिमाणिजे इहई। ते पाविताई पोय लोए दुइसयाई॥८॥ एवं उचालभेत्ता मोदउँ जइ पुणो कोमाणो। पेषेज उदासी हकेज ते बाहि(रि)या समणा ॥९॥ एवं तु समासेर्ण एस पकप्पो मए समक्खाओ। एतो उसमासेणं वोच्छामि विकल्पमहणा उ॥१५९०॥ अतिरेग परिकम्मण तह मंडपायणायचोदया। एमादि विकप्पी उसस्थजरेगे हम हो ॥१॥ एगेण अलेषकर्डकयो संघाडलेवम पकप्पो। तिप्पमितविकम्पो मत्तमभोगो यऽणवाए।...१०३३२॥ पादेगेण अलेख गन्हे जिनकप्पिया उसो कप्पो।राण दोषि पादा संघाडेर चरितारातत्वेगपडिग्गहए मत लवादपि मेड़ति। एमत्य व मत्तम दोपी रित्तम पकायो॥४॥ तिप्पमिति हिंस्ती निवारण मत्तएम वा मिले। सो होट किप्पो वत्व य सोही इमा होई॥५॥जदिमायणमावहती सति मासा अविदिशा उजागेती। वाचाया तमामा चिनियाए रोषणा भणिया ॥६॥समणीण तिन्ह कप्पो पउपचन भ१०९५पत्रकल्पमाष्य -
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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक [१५९७]
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अनुक्रम [१५९७]
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“पंचकल्प” – छेदसूत्र- ५ / २ ( भाष्य )
भाष्यं [ १५९७ ]
[ ३८ / २ ], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
....आगमसूत्र
निओ पकप्पो | तेण परेण विकल्प एसो उहि तु वच्छामि ॥७॥ तिचि उ भणिया कप्पो अतरंगा विपणा पकप्पविही। उप्पायगवजाणं तिट्टाणारोवणा भणिया ॥ १०४॥ ८॥ गणनाथ पमाणेण य उपपिमाणं दुहा मुणेय मगणाएं जिणा तू एको दो तिणि या कप्पा ॥ ४० १०५॥९॥ दो पनी संडासो सोत्थीओ नावि होति आयामोहंदा दि ए माया ॥ ० १०६ ॥ १६० ॥ दो सोमिओन्निएको वेराणं निष्णि हाँति गणणाए आयामायपमाणा दुहत्य अहं च विच्छिन्ना ॥ ० १०७ ॥ १ ॥ एसो उ भवे कप्पो को मिलाए गुरूणं या पटसन यात्रि पाउण माणऽतिरितं च धारेजा ।। ० १०८ ॥ २ ॥ कारणे पप्पी होती विकल्पो निकारणे मुणेयो उप्पायगो पचिली साबतिरंग घरेजाहि ॥ ३ ॥ गणणाएं पण गडाए तं पमोत्तृणं जो अण्णी अतिरेगं परेइ सोही उ तस्स इमा ॥४॥ चाउम्मासुकोसो मासिय मज् य पंच व जहणणे तिचि हम्मिपि उबहिम्मि अतिरेगारोवणा भणिया ॥ ५ ॥ अतिरेगउवहिदारं संखवेणोदितं अह इयाणि परिकम्मदार बच्छं अपरिकम्मो जिणावधी ॥ ६ ॥ कारणविही पप्पी घेराणं अविहीए विकल्पो उ। परिकम्मणा उ एसा मंडपायं तो वो ॥ ७॥ गाग महणं ज् व जहासंखेणिमे गुणायचा पुरिसे पडिमा उवही तिथि तिगा भावसुदाई॥१०५॥३८॥ गागो यो पुरिसो नियमेण होइ गायडो उहिमादियाहिं महणं परिमाहि भणितं तु ॥ ९ ॥ तवो वही खलु निणिनाऽऽहारउबहिसिजति तिष्णिवि निविसुद्धा उगममादीहिं नियमेणं ॥ १६१०॥ एगेण चैव गहणं कप्पी दोहि भयेको निष्पभिति तु विकल्पो भन्ने पाले नहा उपही ॥ १ ॥ आदितिएण उ ग्रहणं वितियद्वाणम्मि अण्णा । हंदि परिहारको (हाकरो ॥१०६॥ २॥ आदिनि होनि कप्पो निगतिगआहारउपजाओ तु होनि तिहिं उम्मममादी तिगत्रिसुदं ॥ ३॥ वितियद्वाण पक तत्व गिरमेव तव असतीय अण्णा पहाणीए असुपि ॥ १०९ ॥ ४ ॥ केण पुचकारणे उम्गमादीहि पेप्पति भण्णनि गुणस् कारणमिणमा समासे ॥ ११० ॥ ५ ॥ स्यणाकरोड जम्हा जागरो होइ सुक्खाणं नाणादीण य पनवा ततो य मोक्खो व तो रक्खे ॥ ७० १११ ॥ ६ ॥ आइना महाणो का सिम सप ओदो मादी ) सो आदिनिगर्भगगेणं महणं भणितं पप्पम्मि ॥ १०७॥ ४० ११२ ॥ ७॥नियनमा अणुवासी व कारणनिमिनं परिकम्मण परिहरणे उबही अतिरिनगपमाणो ॥ ८ ॥ गच्छ साली गिलाणसेहादिएहि आनिष्णो एसो व महाणी तू नस्स तु दुर्लभं निगदिदं ॥ ९ ॥ कालो सिमी दुक्तिमादि दोसा सपक्लओ उ इमे पासरवादी बने ओमाणतो त होति ।। १६२० ॥ अव असंविग्गाची जह महराको हाइगा केई मायाए उगमती सदा अविकवि नवि जाणे ॥ १॥ एएहिं कारणेहिं अलते जाइतिगर्भगगणं तु आदितिगामादी भंगो तू संसणा होनि ॥ २ ॥ कारणतो निविपी माणं तु अतिकमेज कदादि किं पुण तिहि मार्ग ? भन्नति इणमो निसामेह ॥ ३ ॥ वति पमाणपमानं तपमानं व कालमाणं च एवं विवि प्रमाणं अनिकमो सिमी होति ॥ ४॥ अनिरंग पमाणेण नि परे (य के पि णाम गिजा सेन अतिकमो तू परतोषि दुगाउया मध्ये ॥ ५ ॥ कापमाणानिकमे कुला पाउरण अकालेऽवि वसती कालानी अभिवादवासणं एवं ॥ ६ ॥ परिकम्मणमविहीए बलियऽहम्बलग्मि कुजाहिदा सीतेण अदिओ उक्षिय पैनो ॥ ७॥ अतिरितपमान वा धारिज कारणेहि एएहिं सो सो को निकारणओ विकल्प ॥ ८ ॥ संकल्प इदाणि सोय पोय पोय एसि दोन्ही पण होनिमा कमसी ॥९॥ दणाण चरिने पाटण पत्थणा पसरथो इंद्रियविसयकसाएस अप्पसन्धी संप्पी १०८ १६३० ॥ समभावमा सम्बाई कम है जो (ईएस संकल्प दंसणे होनि ॥ १॥ नाणइयारंण करे कच नाणं अहं अहिलेला इति नाणे चारिते सुद्धपरिनो कह [होना]!] ॥ २ ॥ उन्नरउरिएहि पारिनगुणेहिं कह णु विहरेज्या ? एसो तु परिम्मी को सत्यगो भणिती ॥ ३ ॥ सदादिदियत्थान पत्थना नह व रागगम कोहादिकसाया होति अपत्यं ॥ ४ ॥ एसो को एनामऽहं तु उपकरणं उपकप्पती करेति उपणे व होति एमट्ठा ॥ ५ ॥ मते व पाणेण व उपकरणेण व उपग्ग कुगतिक गुणधारी उवकल्पं तं वियागाहि ॥ ६ ॥ सुहिओ पिवासिओ वा सीनभिभूतो व तरती पढिनुं तस्स करेइ उवग्ग पटवकूटस्स वा घृणा ॥ ७ ॥ जो उप्पाएँ समाहि चहि नाणदंसणे चरणे। तत्तो य तवसमाहि नरस समे निजरा होति ॥८॥ पणे उपकरणे व उग्गहितदेहो जो कृणइ सि समाहि तस्मावरणं हृणति दाता ॥ ९ ॥ भत्ता व पाणस्स व उपकरणस्स व उपग्रम्स जो कुण अंतराय नसावरणं पवइनि ॥ ० ११३ ॥ १६४ ॥ एवकप्पी मणिओ एतो वो अहं तु अणुकल्पं । अणुसदो तू नहियं पच्छामा मुणे ॥ १॥ नाणचरण इदयाणं पुढायरियाण अणुकिति कुणइ अणुच्छ गणधारी अणुरूपं तं वियाणाहि ॥ २ ॥ गुणसयसकलियाण गुणुअमिता जे खेतालाला जोमाणि भवे ॥ १०९ ॥ ३॥ गुणयदि जम्मो मोखो व गुगुरी मुणे पो सामापारीहाणी तु जोगहाणी मुणेयच्या ॥४॥ सेनाऽसती अदाण उचखिनम्मि काल निक्ले भावे गेलणादिसु सुद्धाभावे तु जदसुद्धं ॥ ५ ॥ गेहेजाऽऽहारादी नानादी व उज्जमण कुजा असणमादी व सर्व (२७४) १०९६ भाष्य -
मुनि दीपरजसागर
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [१६४६] ----------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
हर
प्रत
..
सूत्रांक
[१६४६]
अफरेमाणस्स साहस्स ॥६॥ गंतणिज्जरा से जह भणिया सासणे जिणवराण । जोगनियत्तमईण सहसीलाणं तबो छेदो ॥७॥ सहलीलबुलसीला तेसिं अफासु गेल्हमाणाणं । जं आयने तहियं तवं च छेद च तं पाये ॥८॥ उकप्पो वयाणि उड़द कप्पोऽचि होड उक्कयो। अहवावि छिन्नकप्पो उकप्पो अहवण अवेतो॥९॥ उग्गमउपायणएसणासु निस्वेक्खों कंदमूलफले । गिहिवेयावदियासु प उपप्पं तं वियाणाहि ॥ १६५०॥ गामणि यमणि रेसणि वेयाली पेष अदयाली ।आदाणपाडणेसु य अण्णेमु य एवमादीम् ॥११॥१॥ तसएगिदियमुच्छणसंसेइममच्छमरणमभिओगे। रोहाहाण तह संभवंड थंभे य अगणिस्स..१११॥२॥णामणि कक्रवफलाणे परिमाण देउल्लाण घुमादी। मणि पदमचि ण चलति सणि लेसेति अंगाई॥३॥ चिडिहाण य आणणि अहव मिलकावणम्मि बेयाली। उद्यविऊण णिवाओ नपखण एसऽदवेयासी ॥४॥ गम्भाणं आदाणं करेति नह साढणं च गम्भाणं। अभिजो. ग पसीकरणे विजाजोगादिहिं कुणइ ॥५॥ विभिगमच्छिगभमरे मंडुके मण्ठए वहा पक्खी। समुच्छापेमादी जो जोणीपाटेणं च ॥ ६॥ पशुउदवियं जाग आहाण मंत रोहकम्मे या कोहादि भदंडो धमणि अगणिस्स मंतेणं
आ एमादि अकरमिज निकारणे जो करेइ त भिनलू । सो सो उकप्पो एनों अकप्यं तु बोच्छामि ॥॥ निकिवणिरणुकंपो पुष्पपलाणं च साढणं कुणद। जं वन एवमादी सर्व तं जाणमु अप्पं...११२४९॥ जो उकिवं ण करेई दुक्खनसुतु सबसत्तेसु । निरवेक्खोरीयादिसु पवलाई निकियो सो उ॥१६६०॥ सहसा य पमाएण व परितावणमादि बिदियाईणं । काऊण णाणुतप्पड गिरणुकंपो हकद एसोल०११४ ॥१॥ सत्तहमठाणेस सहाणा. सेवणाएं सट्टाणं । गण्डागाडग्मि उकारणम्मि चितिर्य भये ठाणे ॥२॥ सत्तहमठाणाई उकप्पो व तह अकप्पो या ते निकारणसेवी पावर सट्टाणपच्छितं ॥३॥ पत्तम्मि कारणे पुण रायद्वादिषम्मि आगाटे । जयणाएं करे। माणो होति पकप्पा ठि(वितिहाण ॥४॥ दसणनाणचरिने नवविणए निकाल पासत्यो। णिचं चणिविजओ पवयणम्मि नं जाणसु बुकप्पं ॥५॥ दुकप्पबिहारीणं एगंतासायणा य बंधो य। आसायणाय बंधेण येव दीही नु संसारी ॥६॥दसणनाणचरिने तबविणए नियकालमजुनो। निचं पसंसिओ पपयणम्मितं जाणसु सुकप्पं ॥ ७॥ सुकप्पविहारीगं एगंताराणाय मोक्सो या आराहणाइ मोक्लेण चेच चिनो य संसारो॥८॥ वुत्नो बसचिहकप्पो हुना पीसतिविहं न वोच्छामि। तस्स उदारा इणमो संगहिया नीहिगाहाहि ॥९॥कप्पेस णामकप्पो ठपणाकापो य दवियकप्पो याखिने काले कप्पो दसकप्पो य सपकप्पो .१११६७०॥ अज्झयण चग्निम्मिय कप्पो उनही नहेब संभोगो। आलोयण उपसंपद तहेव उसऽणुण्णाए..११४॥१॥अदाणम्मिय कप्पो अणुवासे तह य होइ ठितकप्पो। अहितकप्पो य तहा जिणधेरष्णुवालणाकप्पो ॥..११५॥२॥ जो बेच दपियकप्पो उनिहकप्पंमि होनि वक्खाजो। सो या निवसेसो जो य विसेसोऽत्य ने बोच्छ ॥३॥ एस पुण तिचिहकप्पो अब इस भाषणमायणं । सर्व वा सुयनाणं दायों केरिसे होइ ? ॥४॥ सुपरिच्छियगुणदोसे सेलघणादीहि त परिच्छाहि। मुषिसोहियमिष्ठमाले उडि-1नभोम्मादिणाएहिं ॥५॥ सपिय सुयनाणं सुनत्थी सहिदए ण उ असढी। अह पुण को परमत्यो बिसेसओ पवयणरहस्सं? ॥ ६॥ पपयणरहस्समेवाभि चेच भति दमुत्ताणि । नाणिण दायव्याणि भाति मनम्मि को दोसो ? ॥७॥ अप्पंपिय त बर्ग अरहस्समपारधारए पुरिसे। तुम्गतगमाहणेविष जाहवइस्गहीरगादीया ॥८॥जह फेडमाहणेणं रत्याए बहरहीरतो न्यो। सो अणस दरिसिओ नेगवि अण्णरस सो सिहो ॥॥ एवं परंपरेन रन्नो कन्न गा नु सो नाहे। नाहे दडिओ रन्ना हडो यसो बहरहीरो से॥१६८०॥ एवं अपरिणयस्सा किंची अववादकारणं सिद्ध। सो कड्यति अन्नेसि परंपरेणं चरणणासो॥१॥ तम्हा परिच्छिऊर्ण देयं विहिसुत्नपदपेटस्स। परिणामगरस जहणो न उ देयं अपरिणामस्सा दवियकप्पों समभिगओं ण भणिय जे हेहतं भजामिति । सो भन्नती विसेसो इणमो वोच्या समासेणं ॥३॥ दांतु गेण्डियां सुदं गविसिय गवसणा दुषिहा। अविहीय विहीए या अचिहीय इम मुणयन्त्र ॥ ४॥ वाणि जाणि काणिवि गहरी लोए उति साहणं । तेसिं तु संभवं मग्गमाणे म उ साहते अत्यं ॥५॥ अविहीय दोस पिंडबहिसेजसमायनिक्समापसे । जबकगहनुयचाउके एने सखे ग पावेनि..११६॥६॥ सालीगंधीमादी आहारे फलिहमादि उबहिम्मि । रुक्खा पुण सेनहा एमाधिगमो हुसाहूर्ण ॥ एयाई पुच्छिऊण करय पदण्णाणि ? नहि तहि गच्छे। अविहिगवेसण एसा जह भणिया पिंटजुनाए 100 आहारोपहिसेजाण नाण. बग्नेहि होइ निष्फनी। वेसणमिरिएपिप्पलिहगषयतेगुलमादी ॥९॥ हिमवत पिप्पलीओ मलए मरिचाण होइ निष्फनी। हिंगुस्स रमदषिसए जीरगमादी य जो जत्थ ॥१६९०॥ मा अम्हं अट्टाए गावो कीना हटा व दूढा वा। फरमादी मा कक्लो बरोपितो जम्ह जहाए॥१॥ एमादि विमगतो पभवं नाणादियाण परिहाणी। तह वत्यपायसनाण मरेलि सो अंतरा चेप ॥२॥ एवं सो हिडतो भन्नं पाणं च ठाणमुबहि च। कह उग्गमेउ कह वा सजमार्थ कुमाउ हिंडतो? ॥३॥जो निक्खमणपसे कालो मणिनी उबासाहुक्दो पाउ उद्यबद्ध विहारों हेमंतगिम्हासु ॥ ल०११५॥४॥ गमो वासाचासे एसो कप्पो जिणेहि पन्नतो। एयरस संस्खमाण वोच्छामि अहं समासेणं ॥७० ११६॥५॥ दोनि सया चत्ताला उपदे एलिओ विहारो उ। वासामू पणासा पण पणगं इसति एर्ग ॥६॥ पुरपछिमममाण ससि एस कालबोच्यो । णिचं हिटतण निराहिलो होनि सो नियमा॥॥ नम्हा खल उप्पत्ती न एसिया उ तेसि दवाणं । जस्सहा निष्फत गत एसए महम ॥८॥ अइचय दालभ वा गाउं दबकुलवेसमावे या पुच्छति सुबमसुदं ताहेगहर्ण अगहणं वा ॥९॥जहवा पुढो भणेजा समणादिकय व अहव निक्विना पक्खिन बावि भवे तस्य उ दारा इमे हॉति ॥ १७००॥समणे समणी सावय साविगसंबंधि इहिट मामाए। राया तेणे पक्सेवे या निक्लेक्यं कुजा ॥१॥ दमए भगे मो. समणे छो य नेगए। ण यणामण वना, दुई रुढे जहा चयणं
॥२॥ एनेसि दाराणं विमास भगिया जहा य कप्पम्मिा सबेच निरवसेसा गायका सदसु ॥३॥जं पुण जत्थाइणं दो खित्ते य होज काडे या तहियं का पुच्छा ऊजह उजेणीए मंडेसु?॥४॥एमेच माहमासे किसराए संखशाहीएं का पुच्छा ?। विभिड़ने वकुलम्मी पहुए रश्मि का पुन्हा ॥५॥ तम्हा उगहणकाले मूलगुणे व उत्तरगुणे या सोहेजा दास्स उन मूलओ लस्स उत्पत्ती॥६॥किये पामिचे हिजए य निष्फनिओ य निफाणे। कर्ज
निष्पनिमय समाणिते होति निष्फ ॥ ७॥ कंडितकीतादीया तंदुलमादी तु होण समणहा। निष्कत्ती सा उ भवे आयड्डा कामु निष्फणं ॥८॥ तं होड़ कप्पणिगं जं गुण समणट्ट होज निष्फणं । न तु ग कप्पनि एग्थं च चोदए BR०१७ पञ्चकम्पमाप्य -
मुनि दीपानसागर
दीप अनुक्रम [१६४६]
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आगम
(३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [१७०९] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [१७०९]]
दीप
चोदओ इणमो ॥९॥ निष्फनिमओ व निफष्णो व गहणं तु होज समणस्सा निष्फलिओ असुदे कहष्णु निफण्णते सोही? ॥१७१०॥ एवं गवेसियो कि एगहाण परिचर्स । भणति अफासदमेण पर गहणं व साह 2017 तो तेणं साहणं कि कर्ज होइती विगप्पे(सुगबिडे )णं । अन्यपिय एगफुरले ण हुआगरों सध्यदव्याणं ॥२॥ सिकदुयमादीया सनदवाण संभवेगकुले । ताणि य गनेसमाणे हाणी सपनाणादी ॥३॥ नम्हपर्ण परिहर अप्पापविनो विचजति र अप्याप सानो विवजनिण पसाहेति ॥४॥ निष्फत्ती समणवा समणहा जच होति निष्करण। गहिय होज जयंतण तस्य सोही कह होइ? ॥५॥ सुपणाणपमाणेण ऊ उपउत्तो उजुयं गवसतो। मुनो जाइ बावण्णो खमओ इय सो असदभाको ॥ ६॥ जो पुण मुकधुराओ निरुणामो जइपि सो उ णापण्णो। तहक्यि आवष्णो थिय आहाफम्म परिणजओच ॥ ७॥ एयस्स साहणटुं अहया अपि भनए एन्य। कारगमनं इणमो तमहं वोच्ई समासेणं ॥८॥ अंगम्मिचि चितिए ननियमम्मि जे अब कुसाजिणादिद्वार एतेसु जुतजोगी विहरतों अहाउयं (जुज्झे ।..११७१९॥ अंगरगहणा पढर्म आचारो तस्स बितियमुयर्स। तस्सविबीयज्झयणे उद्देसे तस्स ततिपम्मि ॥१७२०॥ जन्य सुनं खलू से य अवसण होज सुलमो उ। अहवाचितईएनी अज्झयणम्मी तज्जम्मि ॥१॥ तस्सवि नतिउडेसे आदीसुसम्मि ज समक्खायं । जदि संकमो अमदो ताहे जयणाएं जुनो उ॥२॥ देसूर्णगि कोडिं जप्तो सो विसुन्दरती णियमा। जम्हा निसुबमाचो सुज्झति नियमा जिणमयस्मि ॥३॥ बाहिरकरणे जुनो उपजोगमाहिडिओ सुतधराण । जदोस समापण्णोपि णाम जिणवयणजो सुडो॥४॥ दध्येण य भावेण यमदमसदेय होइ बभंगो । नइओ बोम चिसो चउत्पओ उभयह असुद्धो ॥५॥ चितिओ भावविसुद्धो दबविसुद्धोय पढमजओ होइ। अहवावि दोसकरण दोभा यहि तुम६॥भापषिद्धाराह(हार)को दवाओं मुदो व होतऽमडो या जे जिणदिदा दोसा रागादी नेहिंग उ लिये ॥७॥ एतेसामध्यतरं कीयादी अणुवउत्तों जो गिहे। नहाणगावराहे संवदिटयमोऽवराहाणं ॥८॥ आवण्णे सहाणं विजड अह पुण पटू तु आवष्णे । नहियं कि दाय? भण्णइ इणमो सुणह बोई॥९॥नहियं कि दाया? तो पछेदो तहेव मूल वा । कस्येयं भणियंती' मण्यति तु णिसीणामम्मि ॥१७३०॥ वीसहमे उसे मास चउम्मास वह य छम्मासे। उम्पालमणुग्घायं भणियं सवं नहाकमसो॥१॥ एसो उ दपियकापो जहकर्म करिणी समासेणं । एनो य लेत्तकर्ष बोच्छामि गुरुचएसेणं ॥२आदी छकनियत्ती उपणिया जम्मि जम्मि खेतम्मि। एतेसि सनिकासे सालचो मुणी बसे खेते॥११॥३॥हतिदकप्पो आदी तह जारिसमा मिसेविया खेता। अस्मासिषमादीण कापती तारिसे वासो॥४॥ खेमादि अलम्भंतो पडिकुडेहिपि वसति जयणाए।बुयगादी संजोगा वक्तार्ण समिकासस्स ॥५॥ अक्लेमे असिपम्मि य असि बजे रसिज अफ्लेमे। तहियं उपहिविणासो असिवे पुण जीवणासो उ॥६॥ एवं जोमादीसं संजोगा तिमचउकगादीया। पसिया जेमु जहा तमहं वोई समासेणं ॥ ७॥ कहजोगि सनिकासे बहुतरगं जत्थुवाहं जाणे। थोचनरियं च हाणि तत्थाऽभयरे दुबिहकाने ॥८॥ एतेसामनयर आरंबणविरहिओ वसे खेले। कालबबुयापराहे संवडियमोऽवराहाणं ॥९॥संबडियावराहे तबो वडेवो नहेब मूलं वा । आयारपकरपे जपमाण माण परिमम्मि
७४०॥ एसो उखेतकापो अहुणा बोरठामि कारकर्पत। जावातुन तु मीणं अणुपाले ताच सामने ॥१॥गीयसहाओ विहरे संविग्गेहिं व जवणतो उ। असतीवि मग्गमाणे सेले काले इमं माणं ॥२॥ पंचय छ सनसने अनिरेग वापि जोयणाणं तु । मीयस्थपादमूल परिमारिगना अपरितंतो ॥१० ११७॥३॥ एक व दो व तिषिण व उकोसं बारसेव पासाई। गीयस्थपादमूल परिमरोजा अपरितंतो ॥९०११८॥४॥ पंचवडसन सने अनिरग वापि
जोयणाणं तु । संदिग्गपादमूल परिमगिजा अपरितो । एकंपदोच तिषिण व उकोस पारसेव वासाई । संविग्गपादमूल परिमग्गिजा अपरितंतो ॥६॥ संविग्गो गीयत्यो मंगचाउके उपदममुपसंपा। असतीद ननिय बितिए नउत्थर्ग दाणो उ जसपे ॥७॥ उकमजोसल लहगा पनुरोडगा पडत्यभंगम्मि। जस्सऽडा उपसंपद तं नस्थि पाउत्थभंगम्मि ॥एतेसि तु अलंभे एगो थामावहारमकरेती। विहरेज गुणसमिदो अणिदाणो आगमसहातो ॥५॥ काम्मि
संकिनिहे कायदयावरोपि संविम्मी । जयजोगीण अलंभे पणगाण्णनरेण संचासो ॥१७५०॥ पणगऽण्णतरं पासस्थमादिर्मगे बउत्थए जयणा । जत्थ बसंती ते ऊ ठाति तहि वीसु वसहीए ॥१॥ तेसि णिवेदेऊणं अहनत्व ण होण अननसही 3।ण बहेन वा उदत बसेजनो एकरसहीए ॥२॥ अपरीभोगोगासे तत्व ठितो तू पुगोविय जएगा। आहारमादिएदि इमेण विहिणा जहाकमसो ॥३॥ जाहारे उबहिमियगेन्दाणागाढकारणे पापियामापहारपिजदो असती जुनी ततो गहण ॥४॥ आहारउयहिमादी उपादे अषणा विमुदं तु असती सतलामस्सा जो तेसि साहुपक्लीओ॥५॥ सो उ कुलाई पुस्तितते र दाएति वापि सो तेसि । नहनी अलभतो जयनी पणहाणिक जा बहुगा ॥६॥ संविग्गपस्यसहिनो नाहे उत्पादएज सुदं तु । असनी पगहाणीए जइत्तु अपे पटिगहणं ॥७॥ तह असती तम्मायणमाणीयं गिव्हती तहि येव। नियगेऽपि पटिमहगे गेहति पासस्थपाया ॥८॥ उहि पुराणगहिन अप्परिभुनु गिण्हनी नेसा असतीनएवरचिव अदि य गिलाणो भये तस्य ॥९॥ तस्थवि जाइज एवं असनी सबपि से करेजितरे। अहबा तेवि गिलाणा हज नाहे कोसोऽपि ॥१७६० ॥ एतत्वं अच्छिजनि गच्छे अण्णोपणजनु साहिजा कीरनिण पमाओ सन्टु लम्हा गटाणे कायरो ॥१॥ दोहोरमाहतो या कम्मोदयजी हवेज आतंको। मडहो अदिग्घरोगो तत्रिवरीओ भवे इसरो ॥२॥ कालचउर्क वा खलु काय होइ अपमनेणं । उपदे नासासु अदिय राउ पाउकमेन तु ॥३॥ जिनमयणभासियम्मी निजर गेलाणकारणे विउला। आतंकवउस्ताए कतपडिकइया जहनेणं ॥४ा जह भमरमहुयरिंगणा णिवयंती कुसुमिमम्मि गणसंडेश्य होइ निवइयर्व गेराणे कदयजटेण ॥ १२९ ॥५॥ सयमेव दिपादी करेंति पुरतऽजाणमा पेज। विजाण अगं पुण गायत्रामिण समासेणं ॥६॥ संनिगमसेविगे दिहत्ये लिगि सानए सनी। अस्सगि सणि इतरे परतिस्थिय कुसल तेहगढ़।। ७॥ पइदिणमरम्भमाणे पत्थु ठपियवर्ग भये किचि । तस्य उमणेज कोई सुकंतु ठो दवे दोसा ॥८॥संसतंपि य मुक्खं तू, अणिहूं च सुसाइर्ग । सुसारस्थ तग होह, इतरे दोसा बहु मे ॥५॥नि दवे (निदोवए) पणीए अपमजण पाण तक्कणाऽऽयरणा। एए दोसा जम्दा तम्हा उदवंगठाविजा ॥१७७०॥ भण्णइजेणं कर्जतं ठावेजा तहिं तु जयणाए। आतंकविवजासे चउरो बहुगा य गुरुमा य॥१॥जंसेवियं तु किंची गेडन्ने तंतु जो २०५८ पत्रकम्पमाप्यं
मुनि दीपरतसागर की
अनुक्रम [१७०९]
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आगम
(३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [१७७२] ---------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प” संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत
सूत्रांक [१७७२]
दीप अनुक्रम [१७७२]
पउणोऽत्रि। आसेचते उ साहू रसगिद्धो सेलो चेन ॥२॥ तंबोलपत्तनाएण मा हु सेसापित पिणासिना । निहती तं तु मा अण्णोऽत्री वहा कुजा ॥ ३॥ कालकप्पाहिगारे पस्थिए होतिमोऽवि तस्सरिसो। कालविकल्पोऽत्री असिपादीओ मुणयष्यो । असिवे ओमोयरिए रायढे पवादिहे पाआगाढे अन्नलिंग कालक्खेषो व गहण च॥.:.११९॥५॥ असिवे जति जतिपंता लिंगविवेगेण तक्सणं गच्छे। सम्वत्थ नावि असिचे कालक्लेचो चिचेगेर्ण ॥६॥ आमेऽवेवं कुजा पवादिबुद्वेण बुद्धिणो णातं। तस्यापिय अण्णहिम गिहिलिग वापि भासेजा ॥ ७॥ एवं चिय आगाई बहना देहस्स जा उवापत्नी । णिचिसयाणतीण व भत्तस्स णिसेहणा च ॥८॥ एतेसामन्नतरं अणगादि लिंगि(ढालंच)णो ण सेवेजा। तहाणताचराहे संवदित्यमोऽचराहा ॥९॥ संबहिवतापराहे तवी व दो तहेव मूलं च। आयारपकणेज पमाण जिम्माण चरिमम्मि ॥१७८०॥ एसी उकालकप्पो एलो वोच्छामि देसणे कार्य। सरह जलवणं जिणोवास मासु ॥१॥ उक्रयाकायस्सपि आयरियपरंपरागते अत्ये। आगाढकारणेसुं सदहसु गिसेवर्ण तत्व ॥२॥ उकाए सदहिगमन पुणोषि साहेवई। आगादमणामा आयरिया तुज तत्व ॥३॥ दो खेते काले भावे पुरिसे तिगिरिछ असहाए। एएहि कारणेहि सत्तविहं होइ आगाट ल०१२०॥४॥ एमादीया बुड्ढी एगुत्तरिया य होइ वाण। ओमत्वगपरिहाणी दयागाद बियाणाहि ॥ ल०१२१॥५॥ जपंति पुणो विना सचिनं दाइभव दया। अप्पडिहणतों अच्छड उहिसिडं जाच सो ठाति ॥६॥जाहे उदिडहाणी ताहे ओमस्थहाणिए मणति। अम्हे करेमों जोगं अलमें एयस्स किं कुनिमो? ॥७॥ एवं तुहावयंता लेने का व भाचमाखज। ना जूहंती जाब उलमे जेसि तु दवाणं ॥८॥ अह पुण भनेज एवं अवस्समेतेहिं कल दवेहिं । एवं दवागाट नहिं जए पणनहाणीए॥९॥ खेत्तामादं नमो असती खेत्ताण मास जोगाणं । असि वा अन्नत्या णदीय का होग बा उल०१२२॥१७९०॥ जायरियादिजगारग जहवा अनत्य सावया होजा अंतर जहिंच गम्मइ वाला तहतेणखुभियं वा ॥१॥ एएहि कारणेहि खेतागादम्मि एरिसे पत्ते। अच्छंति असदभावा एगवलेतेऽपि जयणाए ल०१२३ ॥२॥ कालरस वावि असई वासावासे विधारणा नस्थि। एएहिं कारणेहि कालागाद वियाणाहि ॥ ल०१२४ ॥३॥ वासाजोगं खेले पहिलेहेतु कालों ण पत्तो। पचंताण प अंतर पार्स नू निवडियं पायं ॥४॥ बहरं वईतरखेत ताहेत चेष पुत्रलेतं तु । गंतु वसती वास समतीते बीतदसरातं ॥५॥ अतिउकडं व दुक्खं अप्पा वा पेदणा सवे आउँ। एएहिं कारणेहि भाषागाई बियाणाहि..१२०॥६॥अचुक्ट सूलादी अहिटकाई उ वेदणा जप्पा। नत्याऽग्गिताषणादी देहच्छेदो व गाढाडी ॥ ल०१२५ ॥७॥ जम्मि पिणढे गच्छस्स विणासो वह य णाणचरणाणं । एएहि कारणेहि पुरिसागार्ट वियाणाहि ॥ २०१२६॥८॥ तस्स उ मुद्दालंभे जावजीव तु(वि) होता. मुझेण। काय तू नियमा पुरिसागाद भवे एनं ॥ १२॥९॥ जेण कुलं आवतंतं पुरिसं आयरेच रक्खेजा। ण हुतुंचम्मि विणढे अश्या साहारमा होति॥१८००॥ संजोगविद्वपादी फासुगउपदेसणासु जो कुसलो। एवारिसस्स असती गायब तिमिच्छमागाई ॥3०१२८ ॥१॥ मजणतृलिविभासा असणे पाउरणए य पाणे य । केवडियाण पदाणे अण्णहचित्तो गिलाणो वा ॥२॥ होजपसहायरहिओ अन्नत्ता वापि अहव असमस्या। एय सहायागाई नम्हा 3 मणी गविहरिनाल.१२९॥ ३॥ जाति परयणम्मी पटिसचा मूल उत्तरगुणेन । ता सत्तसु सुबेसू सुद्धमसुद्धा बऽसुबेसु ॥ ल०१३०॥४॥ आगाढमणागादे एवं जंजस्थ होइ करणिज । तनह सरहमाणे देसणकापी हवह एसो॥५॥ एसो सणकप्पो अहणा सुतकप्पमो उ बोच्छामि । जे तस्थ हॉति विहयो अहिजते जेण वा विहिणा ॥६॥ दुनिहम्मि आगमम्मी सुने अत्थे व जे जहि भाषा । सुन्नमसुनकहाणं पवित्थर ताण अत्येण ॥७॥ विचारो णाम सुत्तम्मि, गहिए अत्यो ऊ दिजती। मुत्ते अहिज्जियने तु. मजादा ऊइमा भये ॥८॥ पडिलेहण काऊणं सायं पहबेउवट्ठादी। आयरियादिणिसेज करेड पच्छा य समायं ॥९॥ पोरिसि सान सायं (काउं) चरिमाए पदिय पत्त पडिलेहे। ताहे य अत्थपोरसि इमिणा विहिणा करती ऊ॥१८१०॥ काउस्सग्गे वक्खेवणाउ विकहाविसुत्तिया पयतो (ता)। अभुट्टाणे चा कालणाय अक्सेप साहरणा॥१॥ अण्णोषिय सुयकप्पो सोय मंड लीय राइणिए। अणुओगधम्मयाए किहकम्म होह काय ॥२॥ वक्खाओ सुतकप्पो एती बोच्छामि अजायणकप्प। दावा जेण विहिणा जग्गुणजनम्स वा तंतु॥३॥ जोए परिवाए अणरिहे य अरहे एपिणयपडिवणे। सुत्तत्यनभएसं जे जायणेसु अणुभागास..१२१॥४॥ जस्सागादो जोगो से आगादेण चेत्र दायां । अगगाढे अणगार्द एनो चोच्छामि परियागं ॥५॥ संखपरीमाणं भगिर्य सुत्तम्मि तिवरिसादीयं । नेणं माणेणं उहिसियतं भवे सनासडिटयरिमाणपविभनिमादिदीहवियन चित्तपरिवाए। पिरिजती अणरिह अमरिहते तुइमे होति ॥ ७॥ तितिपिए चलचिले मागणिए यसलचरिले। आपरियपारिभासी नामा य पिसणे य॥८॥ आदीअदिदभावे अफसमापारिए तरुणधम्मे। गति(सिंह)य पदण गेडा ठेवमए पलए अत्यं ॥५॥डहरो अकुलीणो चि(ति)य दुम्मेहो दमग मंदबुदिनि। अपियपहाभारदी सीसो परिभवा आयरिए ॥१८२०॥ सोऽपि य सीसो विहो पछापियओ य सिक्खिओ चेष । सो सिक्खिोऽपि तिविहाँ सुत्ते अरये तदुभए व॥१॥ एतेसि अणरिहार्ण जे पटिनक्सा उ होति सोसि । परिणामगा य जे न ते जरिहा होनि णायचा ॥२॥ एनारिसे विणीए सत्ते अत्ये य जनिया भेदा अज्झयणुदेसेषु य ने सो असेसिए विजा ॥३॥ एसजायणे कापो एत्तो योच्छं चरितकर्ष तु। जे तु विहाण परिते क्वेसु गुरुलापर्व चेव ॥४॥ पंचविहम्मि चरित्नम्मि बणिया जे जहि अणूभाषा। एसो
चरिनकप्पो जहरूम्म होडविणेओ॥५॥ सामाइयादि पंचह अणुभागा तेसि जत्तिया भेदा। जयपंचगश्मि कतर भारियरं लहुतरं किंवा? ॥६॥सागुरूगी यऽहिंसा नीसे सारक्खणह सेसाणि । बभपत चतनो ततो अदत मुसं मजतो ॥१३१॥ ७॥ सबलहुओ परिम्गहो सको वस्थादिरागनिम्हण। लोगे पुण गुरुगतरो सोसि भवे मुसाचादो ॥ल. १३२॥८॥काऊणवि संवरणं मुसबजाणं तु सामंगेऽपि । ण भवति पाणलोगो तेण मुसं भारिवं लोए
॥९॥ जहणगा उ केती अचयंता मुसित मिमपिहारे। णियडीयति धम्म सुणेमु अह भिगे ते य॥१८३०॥ सोउं मिटवतारा विणचं काऊण मिए आह । अजप्पमिई अम्ह मुबो सत्था चते देह ॥१॥ मुसमजा चाएमो धारेमो गहिउ बते तेणा। पीसत्यभिडगाणं मुसिउ विहारं समादत्ता ॥२॥मिच्छू लवति तेणे घेर्नु सिक्लावयाणिमा अज्जो। भंजह वदति तेणा नहुपचक्लाय मुस अम्हे ॥३॥ गुरुलापरवक्वार्ण एवं तू सोहिकारणा १०९९ परकम्पमाप्यं -
मुनि दीपारनसागर
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [१८३४] ---------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [१८३४]
या पातु माह कणा ताथमिटसेसु ॥७॥ एवं परिणि ठाम आवश्यं गच्छमावती में सामान आण उ पाहाण
च्छाइयं । ओहं तु जमाव नित्थाश्यम्मि पसे जयणाएं निसेष सरकारमेन बोगटियं म..१२२६ा हिंसा
दीप अनुक्रम [१८३४]
भिहितं । पत्तम्मि कारणम्मि उलयतरं पुत्र सेविजा ॥ल. १३३ ॥४॥ काणि पुण कारणाणि जेसु उ पत्तेसु जयणपडिसेवा । भाइ वाणि इमाई कित्तेजं में समासेणं ॥५॥ गच्छाणकंपयाए आयरिय गिलाण आवतीए या यापटिसेवा खाल भणिया एने खल कारणा ते उ ॥६॥ पोहियतेणावीस गण्डरसट्ठा णि(बाण)सेषणा होइ। आवरियाण व अट्टा विमास वित्थारओ एत्वं ॥७॥ गाउँ तुंबविणासं अरगा साहारगा ण एवं ना आयरियस्स पिणासे गच्छविणासो धुर्व एवं ॥८॥आगादे गेलणे कंदाति विभास भापती पठहा। दबावति सित्तावह काले तह भावजो येय ॥९॥ एएहि कारणेहि अप्पत्तेहिं तु जो उसेविजा। सुहसीलयाए जो (सो)जारजतिणविय सुज्झतिर ॥१८४०॥जो पूण पने कारणे जपणा आसेपर्ण करेजाहि । तस्स चरितविमुद्री जह भगति जिणो हिवं इणमो ॥१॥ गच्छाणुकंपयाए आयरियगिलाणाचदि विदिण्णे। जत्येव य पडिसेहो सपरिनासेवणा तथा ॥२॥ पुरि
मस्स पच्छिमस्स य मन्झिमगाणं तु जिणपरिवाणं । आसेक्ना यसचरित्तया य अत्येण अणुगम्मे ॥३॥षयभंगपि करेंतो जह सचरिती कहं तु अत्येणं । जणुगंत एवं' भन्नइ आगादकारणो॥४॥ जे केअपराहपदा किव्हा व समका भये पपयनम्मि । णिपरिसपरिच्छणाए एगठाणेणं मुगेयवा । पडिसेहोऽणुण्णा पा पायच्छिते य ओह निच्छाए। ओहेण उ सट्ठाणं अत्यविरेगेण बोगटियं ।।..१२२॥६॥ हिंसादवराहपदा फिण्हे अणुघाति सुकिल्ला सहगा। भगिपरिसपरिच्छणा खलु जह कणगे तापणिहसेसु ॥७॥ एवं परिच्छिक आयवयं गच्छमावती जंतु नित्थारयम्मि पने जयणाएँ निसेव सचरिती ॥साहाणा महत्तर पे अजए यहोइ पडिलेहो। कलेजयणा (पु)त्ता जो पुण निकारणासवे ॥९॥ पायच्छितं पापति तं दुविहं ओहियं वणेच्छदय। ओह तु जमावणं तं दिजति तम्मि सट्टार्ण ॥१८५० ॥ पिच्छदय अत्येणं वीमंसित्ता उ विजनी जंतु। एवं अल्पविरेगं बोकडियं उविहं णमो ॥ १॥ कस्स | कहं कहिं नपा कदिया णु कम्मि केचिरं हो? । उहाणपदपिमर्त जत्थपद होइपोगडियं ।।...१२३॥२॥ कस्सति गीतागीतस्स वाविकह जयण अजयणाए वा कहिं जवाण वसते कतिया णु समिक्सभिक्खे ॥३॥ अहला दितास राओ ना कम्हिन्ती कारणेपारे पाा कम्हि पुरिसजाते आयरियादीण अण्णतरे ॥४॥ केचिर कतिनारे खड़ केवाकाल व सेवियं होजा । एवं छहाण एवं सुदासुद्धे असुहियरे ॥५॥ संघयणचितिजुवाणं सहूण अरहं तु विजए नत्य । जसअथिरादीणं दिजति पाएति जं वोढुं ॥ ६॥ सोऊण कम्पियपदं करति आलेषणं महविहूणा। रहसं च जणरहस्स करेड मइयो पुरिसो ॥ ७॥ माइट्टाणविमुको अकप्पियं जो उ सेपने भिषाबूतं तस्स कप्पियपद मायासहिते चरणभेदो॥८॥ एसो चरितकप्पो एनो पोषठामि उपाहिकप्यं तु । सो पुण पुयानिहितो ओहुम्गह(जुत्तओ चेच॥५॥जो उ विसेसो एल्थे न नपर यह अहं तु वक्खामि । सुग्गमादिएहि पारेयत्रो जहाकममा | ॥१८६०॥ फासुयमकामुए यावि, जाणए या अजाणए । ओहोचहुक्म्महिते, धारणा कस्स केचिरं ? ॥१॥ जइ फागुपही कारणे गहिओ तू जाणएण तो धारे । जो जुण्णोऽजुमोवि अपको तु कुम्भति हु॥२॥ फासुगे अजानगएणं कारणगहिओ धरेजते ताच । जावाणो उप्पण्णो ताहे उ विगिचए नु॥३॥ अह पुण अफासुओ ऊ जाणगगहिओ उ कारणे होगा। जागीयाचा सो तो धारेती उजा जिष्णो ॥ ४॥ अस्मीतविमिस्सेहि अणपस्मिक
न विगिचंति । अह पुण अफासुओ ऊ कारणे गहिजो अगीनेणं ॥५॥ उप्पण्णे उप्पणे अण्णम्मि विगिंचती ऊसो ताहे। एवं चउर्भगण धारणता वा परिडवणा ॥ ६॥ सो पुण दुविहो उपही वत्यं पानं प होइ बोडकं । बत्थं तु बहुविहाणं पाता पुण दो अणुण्णाता ॥७॥ चोदेती चण्हं किमपि एगो पडिग्गहो होइाता दो एकेक्कस्स ऊ' भण्णइ ण पहुचए एवं ॥८॥ तो चउ तिन्ह हुपन्हं अहवा एककतस्स एकेका मण्णा पाहुणगादिसु ताहे किं काहि | तेकेणं' ॥९॥ अण्णा परो परयणं जीवनिकाया पचत्त हनिपं । पारत्तगदितो तम्हा दो दो उपेत्तया ॥१८७०॥ भणति जडेवं तेणं जिणकप्पी एगपातओ कम्हा ? अण्णा कारणमिणमो सुणसू जेणेगपादो उ॥१॥ संगहियकु
जिस पगहिय अपाहारे चियत्तदेहे य। णासम्णेऽणाचाते णातिणिरुले ठरिष भाण ॥..१२४॥२॥ निकली अभिनयमो कंकरगहणी य संगहियकुमठी। जोषणमवि गच्छिजा सचाडो पंडिलस्सऽसती ॥३॥ जसकारि पक्ष्यणस्सा । मजेणाजसो होइ तंतुम करेति। परगहियएसणाहि यण याचि सुलभो में आहारो॥४॥ जदिविय हु कुच्छिपूर लमति कदानी पहुस्स कालस्स। तंपिय से विडंसद ननकटिबडेवजह चिटु ॥५॥ तेणऽयं पचं से तो गमछति जाच
सास्थि नत्थिान व पाहा उपजति चनं च सरीरगं तेणे ॥६॥णास जाइ पीडित, जाचात निपमेण उचिचिउर्ज दूरमोगा, समदोसचिवलियं ॥ ७॥ निक्सिणि पडिग्गाहर्ग बोसिरि यसो उ णिहवेचे। एएण कारणे जिणफपिड एगपाती 300 पातदुगम्स उगहण कारणमेत समासओऽमिहित । अहुणा तु चोदयंती किं घेणा वत्थमतिरेग? ॥२॥कि लिहिण पटुप्पेमा एकणाच्छादणा पकप्पम्मिा गच्छे सकारणेनिय वोच्छेदको पसंगम.१२५ ॥१८८० ॥ चोदेनी कि निष्हं गहणं ' ऊणेहि जंण संघरति । भषणति एकेणाबि हु संघरवि पुगाह तो सूरी ॥१॥ छावणतो णासणो उणेण कता भने पक्कापस्स। मा हु पसंगविवढी ऊगऽहित नेण धारनि ॥२॥ गच्छो सकारणोनी मिलाणबुड्ढे य बालमसहादी। तेसऽहा अविरेग पेप्पड़ मा होज दुलमंति ॥ ३॥ सीतादिभावियाणं माहुणाणादिवाण परिहाणी। होजाहि तेज गेहति सबरती जापवीएणं ॥४॥ जदिएपविण्यहणा नानियमगुणा भवे निस्वसेसा। आहारमादियाणं को नाम परिम्मई कजा॥५॥ पंचममओपघाती चोदेती वत्यमादिगणम्मि। एमबओवपाए घातो पंचहवि बयाणं । ल० १३४॥६॥ एवं तु चोदितम्मी ति गुरूग उ परिन्गही सो । सजमगुणोक्कारा उवधाति परिगहो होइ।। ७॥ जम्मि परिग्माहियम्मी तसचावरचातणा पत्त्तति । गहणे महिए धरणे सो नाम परिग्गही होइ । ल०१३५॥८॥ गहणे पुरकम्मादी गहिए पुण होति पच्छकम्मादी। धरणे अपः। दिलेहा कीरति मुच्छातजानाथ॥९॥ जम्मि परिगहियम्मी तसयावरसंजमा पवत्तति । महणे गहिवे धरणे सो तू(गुणकारमओ)ण परिम्गहोहोह ॥१८९०॥रागादिविरहिओ ऊ आहारावीण जंकुगह भार्ग। गहु सो परिगाहो ऊनो कि गुरुमादिणं पूया ॥ ल०१३६॥ १॥ कीरति आहारानिहि ? मनति भणिता उ नियमसो सा उ। नित्यकरहिं चेव उ तेण उ सा कीरए नेसि ॥२॥ तो कि पूबाहेउं पवनयंतीह नित्यगर नि ?/अह कम्मरबहे उं? पट्टो एवं इम आह॥३॥आहारस्वहिपूजादिकारणा ण उ पवितं तित्थं । णाणचरणाण अट्ठा तित्थं देसिंवि तिस्थकरा ॥४॥ तित्वं चहा संघो तस्स य देसंति नाणमादीणि । नित्यगरणामगोनस्स खपट्टा अविय सामया ॥५॥ नाणे चरणे गुणकारगाणि आहारउयहिमादीणि । एतेण जणुष्णाना तहिं ठिताणं तु तो पूजा ॥ल १३७॥६॥ एसो उपहीकप्पो पनियजो वित्यरं पमोचूर्ण । संभोगप्पमेनो चोच्छामि अहं समासेण ॥ ॥ पुत्रमणिो विभागो (२७५) ११०० पाकल्पनाव्य
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“पंचकल्प” – छेदसूत्र-५/२ ( भाष्य ) भाष्यं [१८९८]
...... आगमसूत्र [ ३८ / २] छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित....
हि दोहि ठाणेहिं
संभोगविही य दोहि ठाणेहिं। दोचि पसंगदोसा से से अतिरंग पन्नवाए ॥ ८॥ दसवित्तविहहिं दोमुत्रि पसंगदोसा ण भुजए असंभोई ॥ ९ ॥ जन्हा उण णांनी उगममादी 3 जे भने दोसा। एएण अपरिभोगो अमणुष्णे होइ बोदशी ॥१९००॥ जं तत्य ण पतं तू तमहं वोच्छामि एतमतिरंग जे उ गुणा संभोगे ते ऽहं समासे ॥१॥ अणुकंपा संग चे लाभालाभेऽविदायता दाह य गेलणे. कंतारे अंचिए गुरु ॥ .. १२६ ॥ २ ॥ बालादणुकंपणट्टा असह अतरंतसंगहाए। केइ सलदी अलदी वेसि साहितयहाए ॥३॥ उप्पण्णे अहिगरणे काहिति विओसणं तु अविदाही ग य गच्छे बहिभाव उप्परओऽहंनि परिभूते ॥ ४॥ म अक्कागोतिफा मा एस पे (ग)च्छती पुषि जन्य उ कुले महाड़े लम्मति भिक्खा महली ऊ ॥ ५ ॥ तम्हा उ दवदवस्सा पुष्टिं गच्छामहं तु ने गेहूं एले ऊ परिहरिया दोसा उ भवनि संभोगे ॥ ६ ॥ एनस हिडिये आणि तु अण्णेहि । मोक्खति सवग्गो तारे आणित सहहिं ॥ ७॥ एमेव चिनी गुरूचि मिन्हे अन्नमन्नस्स। एको पुर्ण परितम्मति बाहिरभावं वगला ॥८॥ एने एवमादी संभोगम्मि उ गुणा भवती । तम्हा लुकाय संभोगो गुणन्निएण समं ॥ ९ ॥ एपाई ठाणाई जो तु सह होतो पमादेति अग्गे आतित्ती घेणं जं वर्त केई ॥ १९१० ॥ सेसाण पाळणा तो मैं उम्मंडल करती है। जड़ आउन जति ना मेलि पुणेोऽयि ॥ १ ॥ अह पुण चोइनो बहुसो गाउए उतं दो सति लाभलदिजुत्तो निती उवं ताहे ॥ २॥ अह मंदलालदी ण य जोगं जुजती अहल्यामं । सो हि खरंटेकणं मेलिन मंडलीए ३ ॥ ३ ॥ कि कारण णिजुहणा? जे साहूणं गुणत धराणं ण करे ते मिणा तस्स ॥ ४ ॥ एवं आयरिएन उ जोगो स्पोडो दिन गए इत्थं इमो होइ ॥ ५॥ जह गयकुलसंभू गिरिकंदरचितमको परिवहति अपरितो नियमसरीरुम्माने देते ।।न्द० १३८ ॥ ६ ॥ तह पवयणभत्तिगओ साहम्मियवच्छलो असदभावो। परिवहति अपरितो खिनविसमकालदुमे ॥ २० १३९ ॥ ७॥ जइ एकभाणजिमिता गिहिणोऽविय दीहमेनिया होति णिचयणहि स्मृता धम्मं पुत्रं प्रयाणंता ॥ ० १४० ॥ ८ ॥ किं पुण जगजीवमुदाहेण संभुजिऊन समषेणं सको हु(न) एकमेको नियओचिव रक्खि देो ॥ ० १४१ ॥ ५॥ केरिस संजे केरिसय वादि ऊ संभुजे । भण्णइ उग्गमसुद्ध भुजे असुद्ध भुजेा । १९२० ॥ चोदे आहारादी उम्गममादी असुद्ध मा मुंजे जं पुण अपेहनादीकालाचीहि उच्यं तु ॥ १ ॥ नं पुण सुदोबहिणा मा समयं एकहिं तु पंजा संपास नम्स उपाओ मा हु सुदस्स? ॥ २ ॥ मंन्नति सुद्धस्स जती संपासेणं तु होइ उवघातो सुद्देण असुदे ( दस्सा ) ऽपि पावर सुद्धी तब मरणं ॥ ३ ॥ अह उपपातानि मतं संकासेन उमता विसोही ते गणु ने इच्छामेनन व इच्छामिनओ सिद्धी ॥४॥ उपपातो चिसोही वागन्ध य जीवभाव एसी उपधानो विसोही वा परिणामपसेण जीवस्स ||५|| तस्सेव पसत्यस्स उ परिणामस्स अह रक्लनडाए कीर संभोगविहीनी मा गच्छे ॥६॥ संभोगकदार एवं खयं मए एवं। आलोयणकप्पविहिं एलो दोच्द्रं समासेणं ॥ ७॥ दुहिपटिसेवाए दोड्डाण दुयागताण ठाणाणं जस्सेव अभिह आजा नहाए १२ ॥ दलिया कविया चैव दुहि पडिसेषणा। दुनियाए उ दोहाना, मूले तह उतरे ॥ ९ ॥ कपियाए एमे दो ठाणा उ वियाहिया जयणा अजयणा चैत्र, एकेका व विवाहिया ॥ १९३॥ जस्सेप अभिमुहांनी चैत्र काठ चिरने पुरतो विज्झाया नस्तु आलोए ॥१॥ सेति मूलगुणे चे उत्तरगुणे व पाणतिवातादीसु य एतं तं तहाऽऽलोए॥ २॥ अव मोक्खामिमुह मोक्खडाए उ कम्माणं अगदोइए मुंचति कम्हा? इणमो निसामेहि ॥ ३ ॥ वियत गुणजुनो होइ मणुस्सो अणुरियो करेति दुस्खमोक्खं समुद्धरणे पततिय ॥ ४ ॥ तं पुण केरिसगस्स उ वियडेय तु? जाणतो जो तू अधिजाण कम्पनि अजाणतो जो अगीयत्थो ५ ॥ पायच्छिन्नमयात ठाणे ठाणे अहाविहि। आलोयणाए उपसंपपाए म हु होति पाउग्गो ॥ ६ ॥ किं कारणं याति सोहि साइस्स सोहिकामस्त ठाणे ठाणे पुढवादिएस मसरे वापि ॥ | पाणनिधानादीसु य कारण निकारणे व जयणाए । आलोदणगुणदोसदरिसणेणं हु पाउग्गो ॥ ८ ॥ गुण अभिमूहियमादी दोसा पुण गृहणादिया हाँति एते ण याने जगतो तम्हा उ इमस्साए ॥ ९॥ पायच्छिनं विद्याणतो. ठाणे ठाणे अहाविहि आपणाए उपसंपयाए सो होइ पाउग्गो ॥ १९४ ॥ पविणऽतियारे हे काले पच्छे एक उम्र आलोयण मा पहिच्छाहि .. १२८॥ १॥ पडिलेवणाऽतियारा दुवा मूलगुण उत्तरगुणेय परिसेवकालोऽयि दुहि उपवासे ॥ २ ॥ अपबंध परीयं तु हो काकाकयादी उकमेकं ॥ ३ ॥ अप्पादिकमिर्ण अकल्प मिहिभावणं च पतिको त य मिहिणिसिजा होइ सिगाणं च सोभा व ॥४॥ एसि छक्का एक्केवर्क जं तु होइ आयण्णो से आलोएं नहा पच्छिल यावि आयरिज ॥ ५॥ आटोपणचवहारो संवासिपवासिया ऊ अवराहा संवासिया उपासिता कारणगतम् ॥६॥ अहवा जा अणवो ना संवासी तु हाँति अपराहा। पारंचीय पचासी पवसति गच्छाओं जे तु ॥ ॥ पंचविहो सज्झाओ दाणग्गणम्मि भइओ संचासे पाचासिए ण दिजति न य ग हो काय ॥ ८॥ वपरिहरिए अणवडे चैव दोषवेनेसि गवि दिजति विप्पति सेखाण दाण ग्रहणं च ॥ ९ ॥ जालोयणाएं कप्पो एसो मणिओ मए समासेणं । उवसंपयाएं कप्पं एलो उ समासज वोच्छं । १९५० ॥ दुहिम्मि आगमम्मि उपरुचणा चेत्र आवरणया । पण्णवणण अणुपालणाएँ उपसंपया होइ ॥ १ ॥ आगम उपसंपदा उ स प आगमो भवेदुविहो सुतं अत्यो प नहा पारगए तत्य उपसंपा ॥ २ ॥ दो आयरिया पारंग कल्प उपसंपदा नहि कुला? जो पितरं भासति अह निउ दोषि मासति ॥ ३ ॥ सामा यारी पहिणादि जो तत्थ आपरावेति दोषि समुज्जते जो हियं धम्मकहिओ ॥ ४॥ तापि य हु सिक्लिया सज्झायस्सेव जेण तं अंगे दो पम्मकी जो नहि गाहो होइ ॥ ५ ॥ गाणनिजुनेद अभी कन्य होति उपसंपा? अरंत विसेसओ जो उ पालेति ॥ ६॥ एते विसित अमाहितोऽरिहाइ उसपे इतरो होइ अजोग्गो जत्रिय सो होइ गीयत्यो ॥ ७ ॥ जो उ असंचियां पुण पण्णवणाकोविदोतिकाउ उपसंपल बालो तस्स हमे होत दोसा ॥ ८ ॥ सीहमुहं वयमुहं उपविपत्ति व जो पहिले असि अपमोपरियं पुर्व सि अप्पा परिचत्तो ॥ ९॥ तह चरणकरणही पास जो उपविते भिक्खु जयमाने जो
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [१९६०] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
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ठाणे परिचयनि निणि ॥१९६०॥ एमेव अहाईवे कुसीक ओसनमेव संसले। जे निनि परिचयंनी नाणं नह देसम चरिनं शक पुण उपसंपने? गस्थ इमे गच्छ होनि पत्तारिश एगो देहलाएरय चितियो देईन गेहा उ॥२॥ ननिओन देति गिहाण यदेड ण गेल्ही पडयो 3। पढमे उपसंपजइसेसा उनओ णऽणुण्णाया ॥३॥ चितिए गिजरलाभ न लमति गेलनमादिकमेसु । ततिए गिलाणकारण अहवसझे मरणदीसा ॥मा दोणिऽविचउत्थे दोसा होड अनन्यु य तेण सो नम्हा। परमम्मि जे गुणा सह बनिने में निसामेह ॥५॥ भत्तोपहिसयणासण दाणाहणे(लो) य एकमेकस्सा हगिलाणे कयकारितेय अणहकमो ज(जोऽस्य ॥६॥ जो पुणते संतो करे उपसंपदं असुबेसु । निहाणगामिलासी बहन पोसहुतिहाणी ॥ ७॥ किण टिओ सि नहिं चिय' युट्टो जपेइ नस्सिमे दोसा । अप्पिषसज्झायादी गस्थिय ते वापि जतितस्स ॥८॥दोसं आभासतिने दोसं अप्पणा समायजे। जोवि पदिच्छदसोऽवियन चेष आवजे ॥९॥उस जोपसं असुद्धमापाती नगं सोर्ड। जो पुण पडिप्ठमाणो अविणीयादीहिं दोसेहि।१९७७॥ दूसेडग पहिच्छति न संति ते यापि तस्स जदि दोसा। वाहे जं सो बदतीत दोस अप्पणाऽऽवजे ॥१॥ जयसुद परिवहति रागेणं नस्स जे भने दोसा। वोसतिगडाणादि ने उसी अपणा पावे ॥२॥ अव्हा अणरह उवसंपदा य मणिया उ हॉति दोऽयेते। अयमण्णो उ अणरिहो मुरी उपसंपदाते 3॥३॥ आहारे उवहिम्मि य पगासणा होइ गरिहमसइटे। एतणिजारा संविग्गजनम्मि उरेखो।..१२९॥४॥ आहारउपाहिसेजालभिहामी नेण संगई कुणति। होहामि वा पगासो होए ऊ निजरहाए॥५॥ एए होति अरिहा निनिणिचालचिनमाविणो जे य । अहवाचि मंदसाढे आकहिविकहिए वापि ॥६॥ जो पुण इमेहि पंचहि ठाणेहि वा सो भवे अरहो। संगहुवम्गहणिजरसुनपजवजातनोतिनी ॥ ७॥ तस्स पुण गिजरहा पाईतम्स नियमेण मूरिन्स । आहारोवहिपूजापगासणा येव भवती नु ॥८॥ विणएगाहारादी उकोसा लम्स हॉनि दायबा। काले कारणुरूवा जे वापि सभावनगुरुवा॥९॥ उच्छूटसरीरो उजदपिय सो मंडलीय मुंजति जातहविय मनः मगहरी सीसपटिगडेहि काया ॥१५८०॥ एस अणुधम्मना ऊजह गोनमसामि सामिणो गेण्हे । हिंईतस्स पुण इमे तस्स उ दोसा भयंती उ॥१॥ पाए पिने गणालोए, कायकिलेसे अचिनता। मेदी जकारए वाले, गणचिताचहिमादिणो ॥२॥ एतेसिं दाराणं वाखाणुपरि चिनिजाउदेस। पपहारे भणिहिती विस्थरो इह समासणं ॥३॥ भत्तीएन गुणाणं पगासणा तस्स तेहि कायना । एवारिसो महप्पा उनुना अणजकालीओ॥४॥थामावहारविजडो तपसजममुहिजो जियकसाओ। बहुमुष पहुआगमिओ मनीए पगासए एवं॥५॥ एखूपसंपदकप्पो वोच्छ उदेसकपमहणा उ। उदिसण चायणतिय पादणया पेप एगहा ॥॥ सुनस्थलभयाई पवायते नाप जाव संघा(सहा)
। बहुपशपाययाए विजदे मजियं न संचा(सहा)..१३०॥ ७॥संधाणमंतामणं असिपाई पचवादणेगविहा। विजटेनी निक्खिने जोगे भइओ पुणुक्सेपो ॥८॥जइ कारणेण फेणई निक्खिनी तो सि उक्सिन पुणोपि। अह दप्पा णिविसनो तो ण उ उक्विपनी भुजो ॥७॥ उडिडम्मिय अंग सुपसंचश्मि बन अज्झयणे। आसज पुरिस कारण तिहाणे होड पटिसेहो। १३१॥१५९०॥ अंगादी उहिडे परिसं इटलण अपरिणामादी। अच्छति पसारा (या दिदि अविणीयानी राणाऊणं ॥१॥नाहे निनिसपनि ऊ तिहाणे जंतु भणिय पडिसहो । तं मुत्तमत्यतदुभय एतेसि विण्ड पडिसहो॥२॥ एसुदेसणकप्पो अहुणा पांच अणुण्णकाता कम्ही काले गहर्ण वत्यादीर्ण अण्णानं? ॥३॥ वयंपादगाहणे वासापासस निग्मामो सरदे। निगपणासनयनूगाउयमि अप्पोदगं जाणे ॥..१३२॥४॥ बत्थाचीणं गहणं वाणुग्णानं न होइ वासाम्। वासादीएं परेणं दुमासे अण्णे उ गेहति ॥५॥ वेसि पुण
नाणं सरदे जा दोण्ह गाउयाती। वगसंघह जहणेण तिणि पंचेच मज्झिमगा ॥ ६॥ सत्तेन उ उकोसा गिम्हग्मी तिष्णि पंच हेमते । वासास य सान भवे परेण सिनं णण्णा ॥ ॥ अप्पोदगति मगा जरीयास परिणय पुधि । तं अबदे जोपण गपट्टा जाप समेष ॥८॥ वयंपायग्गाहणे वसंवरणम्मि पदमठाणम्मि। एलो वइनकमम्मि उ सट्टाणासेषणा सुखी ॥,.१३३॥ ९॥ पढम ठाणुस्सम्मो नेणं तू नवसु होइ खिनेसावत्यादीगं गहण तस्येव य होइ उ बिहारो ॥२०४०॥णवठाणाइकमे पृण हरती सहाणो विसुद्धो 3। कि पुण ने सहाणं अवपादे असति नो होइः ॥ १॥ अवपादेणं महर्ण उससम्मो पेप होइ सो नाई। गण्तस्स उ कारणे मही सह व पोवा ॥२॥ जह गिहनुस्सगे सुदी हिस्स एवं चिनिएणं। गेहतस्स विमुदी साणं एवमक्खानं ॥३॥ ब्रह्मावि इमे अग्ने, जब उडाणा विवाहिया। दवाईया उइणमो. गोष्ठामि अणुपुषसा ॥४॥दो सेने यकाले य, पसही मिक्समंतरे। सज्झाइए गुरू जोगी, एने लाणा विवाहिया ॥ ५ ॥ दवाणाहारादिणि जादि नु सुलभाई तस्मि खेनम्मि । खितं विष्टिय स्खलु वनेंतसुणेतगगणस्स ॥६॥ वनण परिवहनी सूर्णति अत्यं गगो उपालादी। तसा पहुबति खेल आहारादीहि संचरण ॥ ॥ काले ननियाएं वेल्टा बसही जोगाओं भिक्ख मुलभनि। ण विगिट्टमनराविय सजाओ मुजाति जहि ॥८॥ सुलभ आयरियाणं जो जोगीण सुलभ पाउगाएते ने नब ठाणा जहिं उमसम्मेण गहण नु॥९॥ उसमेण विहारो संघरमाणाण पचन खिने तो सनुपादुवही नवि पोडे पापि दगपाहे ॥२०१०॥णपि नूरे गच्छंती पबमस्स असंभने चिनियठाणं । दगपहे बहुएपी पेहले दुरपि गच्छेजा ॥१॥ कुलभम्मि क्यापाए उमहिएमपि नवस गपिछला। एमेष विहारोषि र खेत्ताणऽसनी मुणेययो ॥२॥ आलंधणे विमुद्दे गुणं तिगुणं चउम्गुणं चापि । खेनं कालानीने समणुण्णानं पकप्पम्मि ॥३॥ एस अगुण्णाकप्पो अहुणा अबाणकप्प पो. बड़ामि। जेहि च कारणेहि अदाणं गम्मए इणमो ॥४॥ असिवे ओमायरिए रायडु भए आगाढ़े। देमुदाणे अपरकमे य अडाणओ पणगं ॥ ५॥ उदर मुभिकले अदाणपजणं तु दर्पण । दिवसाची बठलडुगा बउगुरुगा कालगा हॉति ॥६॥ उगम पावणएसणाएं जे लल चिराले ठाणे। तनिष्कन्न तस्स ऊ पायच्छित नुदाय ॥७॥ पुढवी आऊ लेक चेष वाऊ वनस्सनि तत्ता प । गनिम परिनेस य ज जाहिं आरोषणा मणिया ॥८॥लडओ गुरुत्रो लहुगा गुरुमा चनारि उच लहया या गुरुप छेदी मून जणवहप्पो य पारंची ॥९॥ असिवे ओमोदरिए सबढे भएर आगादे। गीयत्या ममत्था सस्थस्स गोसणं कुजा ॥२०२०॥ कान्दमकाले मोती जाऊण य अहिवति अणुण्मरणा। मिड्यमिच्छाविट्ठी धम्मकहाए निमित्ने य॥१॥ सनुयसमए संखडि पत्थय(रिष्ठ)णे खलु तहेव पोम्मलिए। पम्मकदनिमिनेणं वसहा पुण दवलिंगेणं ॥२॥ सत्ये पंथे तेणे पंचविहो उगहोयाण। ११.२ पत्रकल्पभाष्य -
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“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [२०२३] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत सूत्रांक [२०२३]
सुजग्गामे दाम्गहणं जयगाए गीयत्या ॥३॥ तवरे फटे य पने गोमहिसे सवरा य हत्थी या आतवमणाय थिय जपणाए जाणगे गहणं ॥४॥ पिप्पारगमतियारिगणनखवणतलियपुडगाजी या कनियकनरिसिक्कग संवट्टग लाउए थेव॥५॥ वाइयपत्तियसिभियगलिगाणं अगदसरथकोसे या पाणुषणहकरगं गिण्हह अडाणकप्पम्मि ॥६॥सीहाणुगा य पुरतो वसभाणू मम्मतो समणिति। पंचे पिय जंता धरैतिजा अपजनी॥ ॥ दंडियमि मारिही समुदाणनिवारणं प.निसिए। सारूचिसमिमा बसभा पुण दालिगणं ॥८॥ उपकरणचरिताणं विलोषणा सरीरलोयाणामादे। चम्मकहनिमिनेणं पुन्टागकजेण आगाढे ॥ ५॥ असिवादिकारणेहि अदाणपरजण अणुण्णा। उवकरणपुत्रपटिलेहिएण सत्येण गंत ॥२०३०॥ वचंताणं असह कोई ण तरिज गंतु पादेहि । अपरक्कमो हुनाहे तचियं तु इमे विमग्गेजा ॥१॥ एगपुरे य दुसरे बुपए अणुये नह य अणुरंगा । अह भदए भिजापति | असती अणुमहिमाडीहिं ।।..१३४॥२॥ एगपुरा जासाती दुसरा उहादि दुपय जइहादी। अणुधंधी सकड़ादी अणुरंग पिसी उ(सिविय) बोदवा ॥३॥ एतेसि पुत्रवट्ट सुरादि जाइनु सिद्धपुनादी असतीय मुहडतो वा लिंगविगण कइदनितु॥४॥ आचासियम्मि सत्ये तस्सेच तगपि अधिणनि पुणो। अह भणहगता संता अपेजाहनिमम एवं ॥५॥ ताहे पच्छकडादी चारती तेसि असड़ उमड्डो। लिंगविवेग काउ यारेनिजा गतहाणं ॥६॥ एवं दम. रानीमुवि जपणा जा जत्य सा उ काया। मुत्तस्थजाणएण अप्पावट्यं तु गायत्रं ॥ ॥ एतेसामनतरं अणगाढालवणे णिसेचिना। तहाणगावराहे संबट्टियमोऽबराहाण ॥८॥ संवट्टियापराहे नवो व छेदो तहेव मूत्रं वा । आयारपकप्पे जं पमाण णिम्माण परिमम्मि ॥९॥ अदाणकप्पो एसो अहणा अणुवासणाए कप तु । बाच्छामि गुरुबएसा अणुग्गहवा सुविहियाणं ॥२०४९॥ अणुवासम्मि उकप्पे पण्णवग पटुब बहुविहा अस्था। अणुचासिवाएं पगयं सुद्धा य नहा असुद्धाय॥१॥ अणुचासत्यो बहहा उड्चासे चसण अहन असिवादी दादीचासो वा अहना अणुवसनमणुचासो ॥२॥ बसिउँ पुगोवि यसती अणुवासिग सहि सामइगी समा। तीवहिगारो एवं सा दुजा मुदऽमुद्दा ना ॥३॥ पट्टीसादीहिं सगकलादिएहि तह वा होइ असुद्धा पसही मुलगुण उत्तरगुणे य॥४॥ कालवातिरितं अविसुद्धासुंचतासु नसमाणो। पावनि पायच्छिन्नं मोनुर्ण कारणमिमहिं॥५॥ असिवे ओमोयरिए रायडे मए व आगा। गेला उनिमढे चरित्न सानातिने असनी ॥६॥ बाहिं सबस्याऽसि तत्य सियं तेण कालबुयगम्मि। पुण्णेवि ण णिग्गच्छे अणु पच्छामाय अणुवासी ॥७॥ आलंधणे विसुदे सुत्नदुयं परिहरे पयनेण। आसन उ परिभोग भयणा पडिसेचसकमणे ॥.:१३५॥८॥ असिवादीहि संते सुदाए वसहीएं से साहू। सुदासतीए जतती विसोहिकोटीएं पुर्व तु॥श्रा भयणनिय मणिनं पुत्रऽपतराऽत्य जे उजे दोसाले ने पुत्र सेवे संकमणेऽची इमा मयणा ॥२०५०॥ अप्पाचहुं नुलेनु जस्य गुणा तू भविग बहुतरगा। गच्छे गच्छताण पर्व व वहिं करेजा उ ॥१॥ असिवादिणिहिए पुण अप(पुत्र)क्लेवेण संकमे तत्तो। सत्यं तु पहिच्छतो जह अच्छे नत्थ मुदी उ॥२॥ एननतरविणं अणुवासिय जे उ अणुबसे कार्य कालदुपाचराहे संबद्यमोचराहाणं ॥३॥ संचडियाचराहे तबो व छेदो तहेच मूल बा। आयारपकापेज पमाण णिम्माण चरिमम्मि ॥४॥ अणुवासियाए कप्पो एमेसो चषिणो समासेणं । ठिकापमो उ तत्तो चोच्छामि गुरुपएसेणं ॥५॥ गच्छापवाए सुतस्याक्सिारए य आयरिए। आगाढ़े पढमसंजत ओवग्यहिए पप्पडए॥६॥ गच्छो जदि हीरेजा आयरियं वारि वायने कोई । एरिसए आगादे जस्स उजा होइ नदी उ॥ ७॥ सोनं न पमाएई पदमनियंठो पुलागलडीओ। गच्छोयग्गाहहे कारण पकप्पविअणुण्णा ॥८॥ दुपएनि साहुसाहुणि नदहेतुं तु एवं मूलगुणे। भणिया सेवा एसा सीसो पुच्छड र अहणमो ॥९॥जह कारणम्मि मणिया मूल्गुणेसंत एव परिसेवानिह होज कारणम्मी पडिसेवा उतरगुणेचि? ॥२०६०॥ गुरुयतरएम एवं मूल्यणेसुं तुजा भवेऽणुग्णा। उत्तरगणेसु तत्तो लहयतरेखें ततोऽणुणा ॥१॥ हितकप्पेसो भणिजओ णा बीयामि अद्विनं कापासलेपपिडितयं जह मणियमणतनाणीहिं ॥२॥ वत्वे पादग्गहणे उकोसजहणगम्मि अठिओ 3। ठितमहिते बिसेसो पवितो संपकप्पम्मि ॥३॥ वत्याणि य पायाणि यमग्निमतियकरण काप मिमा बहुमोडाणिवि गिण्डा अहियाप्पो समासाओ ॥४॥ मोलगायपि पस्थं अट्ठारसपणितरूपग जहणं । एत्तो य सयसहस्सं उकसमोलंतुणाय ॥५॥ उगगनद्वारसगं पत्थं पुण साहुणो अणुण्णानं। एनो पहारिनं पुण माणुण्णानं भवे वय ल०१४२॥६॥जिणचेराण कार्य अहमा बोच्छामि आणुपचीए। जंजय जहा निषयति समासतो ते सहा सुणम् ॥७॥ जिणवेराणं कप्पो जम्हा उठितम्मि अहिए । ठितअहितकापाणं जम्हा अंनग्गना एनेसाजो 3 दिसेसो एवं तंतुसमासेण गरि वक्खामि । जिणवेराणं काये जिणकप्पे ता इमं वोच्छं ॥९॥ दुयसत्तए नियबाउकगस्स अबदएगदेणं । अनि होज कालकरणं पुणरापत्ती नविय तेसिं।..१३६।२०७०॥ पिंडेसणा उ सन उहति पाणेसना दुसए। पर सेजवस्थपाए निष्णेने पटकमा होति॥१॥ दोपणादिमा उ सत्तसुअवणेड सेस उचरिमा पंच। अबदहति दे दो दो अपणे पडकेय ॥२॥ गेहनि उपरिमासु नत्थ अविपेन अण्णनरिपाए। हेडिाडामण मेल्हनि जइवि करे कालकिरिय तु॥३॥ अभिमाहेण पिता गेण्हेति विही उ एस जिणकप्पे। अहुणा उ बेरकप्पे वोच्छामि विहि समासेणं ॥४॥ गहणे पडपिहम्मि विनिए महर्णन परमजलेणं । जे पाणचीयरहित हविज तरमाणए सोही ।।..१३॥५॥ गहणं चडमिहंनी पत्थं पायं च सेज आहारो। एनेसि जसतीए गहर्ण पढमं तु बीयस्स ॥६॥ बितियं पातं भवति किं कारण तस्स गहन पढमनु । तेण विण पोडिपडिमा गिहिभायणभोगों हाणी य॥७॥ अहवा पाउमिहंतू असणादी तत्व होजगहणं तु। तस्य उ वितिय पाणं तस्स उगहणं पढमताए । ल०१४३॥८॥ असतीच फासुपस्सा तससहिए कंदवीयसहिए था। कि कारण? नेण पिणा आसू पाणक्सी होनाल०१४४॥९॥तरमाणों गव्हती सुद्ध, अतरो पाले तह संघरे। संपरंतो उ गेण्हतो, पाचति सहाणपच्छित ॥२०८०॥ सत्तदुए दसए वा अणेगठाणेण वा भने गहण। एनो निगातिरिनं गयो महणं तु भइयां ॥१॥ पिंडेसण पाणेसण समागे सेतु होडणाया। दसगं एसणदोसा गट्ठा(हाणुगमे दोसा ॥२॥ एलो तिगातिरितं उम्गमउपावणेसणाऽसुई। मजियति कापतिती तस्सऽसतीए अमुबंपिएसो उ बेरकप्पो चोच्छ अणुपालणाए कप तु। अणुपालेति सुचिहिया गच्छं विहिणा उजेणं तु॥४॥ परियही परियईतओ य दुविहो पुणोषि एकेको । उक्सग्गस्खेतकालावसेण अजाण परिवही ।।..१२८॥५॥ परिवहिवायं खलु परिवही वेब ११.३ पजकल्पमाप्यं -
मुनिटीपरनमागर
RstAyshchayari
दीप अनुक्रम [२०२३]
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [२०८६] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
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h
.14.
प्रत सूत्रांक [२०८६]
1.5
दीप अनुक्रम [२०८६]
होद एगई। समणा समयी ओ वा दुविहं परियहियावं तु ॥5॥ समणपरियह दुषिहो आयरिओ बीयत्रो उबज्झायो। संजइपरियडो पुण निपिहोनु पचनणी तइया ॥ ॥ समणिपरियटि दुविहा विहिपरियट्टी य अपिहिए चेष। जनिणि य परिपहिया निपमेण कारणेणिमिणा ॥८॥नाओ बहुवसम्मा तेणादिसंचराणि खेत्ताणि! कालपसेण य संपति जायति डोगरस पंवत्त ॥९॥ तम्हा सवपयनेण रक्सिया उताओ नियमेन । णविसतिरा मोत्तशमा होजानासि उविणासी ॥२-५॥ संदिग्गगीवपरिणी नासि परियो अणुण्णाओहोह पुण अपरिहो खलु परियडी ऊदमा तासि ॥२॥ अबसुए अगीयस्ये, तरूणे मंदचम्मिए। कंदप्पी सीलणडाए. अरिही दाणे व गहने यम..१३९|| बहुमुवमीय जहन्नो आवासगमादि जाव आयारो ने अग्गीमचस्मुत विण्ह समाणारतो तरुणो ॥३॥जो उनोर्ग ण कुणति चरणे सो होइ मंदधम्मो उ। अणिहुयउतावादी सरीरकुवि स्ट)ी य कंदापी॥४॥ निकारण प्रणहा संजनिासही उवचए जो उानिकारणमविहीए जो देनी गिण्हनीवाचि॥५॥ एयारिलो उजजाणं, परिपट्टी उण कप्पति। कारणहिं इमेहित, गम्मद जनाणुवस्सयं ॥ ६॥ उबस्सए बगैलपणे. उत्रही संप पाहणे। सेहवण उसे, अणुषणा भरणे गणे॥ ॥अणपज्म अगणी आऊ, बी(नी)यारे पुनसंगमे। संदेहणे पोसिरणे, पोसट्टाणे ठिते तहि ॥८॥ अरिहो अपरिहो यात्रि, परियट्टी एवमाहिजी। अहुणा पविनिणी ताति, अजोगा उइमा भो ।९॥चासम्गामविहारे पीयारादेक दहिया। अजुनोपहि अगाउत्ता. अपवाय काहिता ॥..१४०॥२१॥ पडिणीयपदमुहसीला, गिहियापचकारिता। संसत्तठवियभत्ता य, बाउसी अप्पणहिता ॥१॥ जणायतणग. बसायलणंगाणं पोरया । जा यष्ण एवमादी य, अजा सा णाणुकड़िडता ॥..१५१॥२॥ आहारे उपहिमि य गतीएं सयणासणे सरीरे य। भासाएँ पाउसाणं जा जहि आरोषणा भणिया॥३॥ पासावास वसतिनु एविया तह य गामणगाम । इननी क्यिारे पिहार भिखारिएका य॥ ५॥ दीहं करे मोयर दोषमुकरसगाणि मगंती। चित्तलियादिनियंसण अजुन उपही भवति एसा ॥ ५॥ इरिषभासणादाणनिकले निसिरणे अणाउत्ता। अणपुष्टाए गाद स्थिमाए य साईदा ॥६॥ महेय मिहम्वाण गण कहा कहति काहीया। नरुणाडी अहिबईने अणुजाणति जाउ सा पदिणी ॥७॥ यदा जबाइमयाइएहिं सहसील दुहसीलत्ति। सिागपंधणमादिसु बेयापचं गिहाण करे ॥८॥ उकसावन्यपनादिएहि ससनमार संसना। अहवापि मिहत्येसं पाउरणादी अविमनी ॥९॥ भन्नं वा पाणं वा निक्लिपती पाउसा उजा भूपति । अमिक्सं तु हल्लपादे करततरगुज्झमादीणि ॥२११०॥ सच्चिारिसनिथए ष कुणाजा अपणो प्रणाए। अनादि अणडा संचये जा य करणं तु ॥१॥ जनादिसाल तह पट्टको एमेव सोर ठाणाणि। जा गल्छइ एतेसं अगायतणगसिता सा उ ॥२॥ गुज्जलंगाणि पलोए अपणों अहवाचि जा 3 पुरिसाणं। उकासगमाहा एमनि पहिचउकोसे ॥३॥ गति सबिलासगनी समिज सतूलिय सचिब्योर्य। उबडेड सरीरं सिणाणमादी र जा कुणति ॥४॥भमुहक्खेवादीहि सविकारं भासनी य सबिलास। एमादि अमरिहान पण्ठि पारि सहाण ॥ ५॥ सत्य पूर्ण नाव इणमा पच्छिनं भषणई समासेणं । देंगधरेवगा अगीतमादीण दोण्हपि ॥६॥ अबहूमते अगीयत्वे णिसिरेज गर्णतु अहव पारेजा।नदेयसिनं तस्स 3 मासा चनारि भारियया ॥७॥ सत्तरन नयो हाइ नसो दो पचावनी। छदेग टिनपरिताए, नतो मूल नतो दुगे॥८॥ एककं सन दिण दाउ तऽनिष्टिए तो उदो जनो तो आरतो पणमादिकडो प जहि केंद्र ॥९॥ नाला चेन य ठाणा पदार्ग यहाइव)ति दोहंगि। पणगादिवसगवती दोहति उम्मास निवणा ॥२१२०॥ किं कारणं न पति गणहरो अबस्सुती अगीयस्थो । मण्णासो पनि जयण चण जाणए काउं॥१॥दिहतो गट्टणं अजाणमाणेण जाणएवं बाकायदा इस्य इणमो परवणास्सिमा होद ॥२॥ गेपम्मि अहि गम्मि य सरसंघाराण कुहरणामु च । कुणा विश्वास खलु जह मट्टमसिनिरखतो णडो॥ ३ ॥ तह कृणति विषयासं अग्गीनो साकरणजोमेस । सुनस्थमजाणतो नाणे नह देशण चरिने॥४॥जह नहगीयपाइयपिजाणो जूजए समं ताले सुनं तु विजाणतो नह कुणती सम्मकरणं तु ॥५॥ कि पुण सो नदि जाणाज कुणती सबहि विवमास ? । भण्णा गुण इणमा जंकणतीमा विषयास॥६॥ठाणणिसीयतयणपहणवफोरणे नहा सय भासा मुदम्गहणजे अण्ण परुपिया ठाणा आउदिसि पचिजाणासामापारिठाणमादी। अजाविजा अगीताण जाणए सा1ि3 तह बेव ॥८॥ अप्पडंदिओहो, परिमओय पस्थिओ । बहलोहमोहसगी, अजायगो दूरगुकरतो ।।...१४२॥९॥ पाएगमपाळदा महम्पदाण होमित अकि । कुनि उगलियाविव परिभूतानो यसपस्म ॥२१३०॥15 मसादिपेसियायिय संजविवग्गो पन्धणिनो उचिजारयनिही बहसं वहाहसम्माजी ॥१॥ मनायविप्पहने मजायाए य संपाउनम्मि। पडिसेहोऽष्णा कमगधर पिन्टोमना चउरा ॥२॥ जम्ह। उ दुपरियटो अजाम्गो । उनेण पटिसेहो। परिपट्टणे अनाममायाविषहणम्स ॥३॥मजायसंपाउना अनापरिवहओ अणुणाओ। परिषहए अजोमे उबहिए बमुक सोही ॥४॥ मगधरी अपरिमी सा पुण सिटिलेदजी उ मजाय । तस्सबदेसी कीर मजायाए दढी हो ॥५॥ उपदेससार पडिसारणा य तेण पर निणि मास महा उंद जनगमागं अपष्ट विषजए॥5॥दिता य इमेसि पदमा मासासहगावि दिजनि। उगीतरायणअपराहे सरिय कमेणं ॥ ७॥ आवरणे उचदेसी अकप्पपहिसेषणे य उपदेसो। चिकहादिषमाएमयमा पदह एस उपदेसो ॥८॥ णिहाइपमावाजम सई तु सन्टियरस सारणा होदापण कहिय। पमाया मा सीइस्तेसुजाणंनी ॥५॥तहिवसं बीए या सीबतो या पणो सायं। अपणे वेलण सजा निक्खपणादीटिंसंस ॥२१४ा फहरसे अविपनं गोणी उदितोवमा पेडिजाा सज्झ अजोण भन्न पसन्नचिनेननी सारे॥१॥ भणनिविण्याबदेसोरम पिनियंचमारिसर. महि। एगमराहो ते सदा वितिय पुण ने पिसहामो ॥२॥नाहे पुणोऽवराहे कम्मि पचिठन नि मासलाई। नणाय सुणेहेत्वं दिहतो नेगएम तु॥३॥ गोगादिहरणमहिओ मुको व पुणो सहोद संगहिनी। उरलोडळगणहारी न मुचती जायमानोऽपि॥४॥ पुणरवि कतापराहे मासलहुं च देति से सोही। भग्ननि पहित चान)कस्य दुद वह तुर्मपि ॥ ५॥ पुणरवि अवरदाम्म मासो थिय तेसि विजने वंडी। पाणो सो संपतो अहमियम वार्य ॥६॥ तेण पर णिन्म वर्ण कुलगणरादि तस्स कुवंति। अयमणोऽयी णियमो भण्णइन जस्सिमे दोसा ।। आ अयच्छवियर, मिलान दुपडिजाग। वाम समषित था, संवासोडविण कापनि ।।...१४३॥८॥ उम्मग्गवसणाए संतस्सव छायणाएं मग्गस । माधरउवालभे मासा चत्तारि भारियया ॥५॥ आपरिवाणं टवे ण करनी अप्पडदिनो सो ३ । आहाराकोस कद अत्तहि लदो उ॥२१५०॥ जो 3 गिलाणों अपर मम्गासो होस (२७) १९०५ पत्रकल्पभाष्य -
मुनि दीपरमसागर
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आगम
(३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [२१५१] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [4/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत
सूत्रांक
[२१५१]
दीप अनुक्रम [२१५१]
दुपडिजम्गो उठाइसु मणिमो पर पत्तिय तह नामोसो॥१॥ जच्चादिमाविएहिं करेति गई त परिभवति अर्चनाणादरीया मम्मो परुणा असहा तेसि ॥२॥नाणादिस सीबतो न सुद्धमग्गं तु जो परूवेति। एसो मग्मच्छादो वइयती दाहसंसारं ॥३॥ एनेसित बिवेगो मग्गधरा खलु कुलादिया थेरा । तेहिं उपल्याण उवावियाणं गुरु चाउरो (मासा) ॥४॥ वाला बुदाणं मिक्समाईण पेस सबसि । संखवेण महत्थो उपएसो कीरई इणमो ॥५॥ कप्पे सुत्नत्यविसारएण धामावहारविजदेण । भत्तादिलभालने सकारजण होय ॥..१४४॥६॥ कति बेरकप्पे सुत्नत्यविसारएण साहूण। सत्रत्येसू सबलं ण गृहिया समस्येण ॥ ७॥ आहारमादिएहिं उठें धीयारमादि पूजते । साहू अपुजमाणे ण एवं मणमा विचितेजा ॥८॥ पूजती अजया वयं तु साण्णुमरगमोइण्णााहा कहणुन पुजामो? न करे मणदुकर्ड एवं ॥९॥ सकारपुरकारे परीसहे उ अहियासक एवं । जूरते गहियासिजों तम्हा सुमणेण होय ॥२१६०॥ बीसइचिहकप्यो ऊ एसो खल वणिओ समासेणं। बाबालकप्पमहुणा गुरूवएसेण वीच्छामि ॥१॥ दवे भावे तदुभय करणे वेरमणमेव साहारो। निवेस अंतर णयंतरे य ठिय अहिए १०व।...१४५॥२॥ठाण जिण बेर पजुसणमेव सुते चरित्तमायणे । उदेस यायण पडिच्छणा य२० परिवहष्णुप्पेहा ।।...१४६॥३॥ जायमजाए विष्णमचिणे संघा(ठाणमेव चयण य। उववाय णिसीहे या ३० ववहारे खेत्तकाले य...१४७॥४॥ उचही संभोगे लिंगकप्प पडिसवणा य अनुवासे । अणुपालणा अशुष्णा ४० ठपणा काये ४२ य योद्ध।..१४८॥ एतेसिं तु पयाणं पत्तेय परूवर्ण पवस्वामिासहियं तु दवकप्पो दणमो उसमासओहोति ॥६॥ पंचण्हं असणादीण पणुचीसति हि भवे विसोहीओ। अहवापि उ चउदसया एनो निगवदिया सोही असणं पाणं बत्थं पार्य सिज्जा य पंच एनेसि । मुदी पचीसच्या उम्गम नह एसणाए य॥८॥ सुयणाण. पमाणेण उ गहिय असुपि होइ सुदो उ। अहवाविउ उसया सोसस उपायणादोसा ॥९॥ एएसि सबेसि हणपयणकिमादिणवहिं कोडीहिं । कयकारियाणमोदिन एसा निगरदिढया सोही ॥२१७॥ दसणनाणचरिने नवपक्यणसाम(ब)समिनि तिहिं गुनो।हतरागदोसनिम्ममखमदमनियमडिओ निचं॥१॥ तभयकापो अरणा एने चिय दवभावकप्पा उ। दोणिवि मिलिया एते तदुभवकषो इमो सो या आहारे अविहे सेनोचहि पंच पंचग विसोही । ईसणचरिनगुत्तो नपसमितिगुणेहि सोहे(हो)नि॥३॥ असणादीओ पहा उपकारि चाबिहो य तस्सेव। एसडविहाहारो परुवणा तम्सिमा होइल०१४५॥४॥ असणं तु ओदणादी तदुवकारी उसीरकुसणादी। पाणं तु पाणमेव उ कष्परादी 3 उवकारीला १४६॥५॥ साइम कलाइयं न सुनारण्ठा)दी होनि नदुपकारी उ। साइम तयोलादी चुण्णादी नदुवकारी उ ॥ ०१४७॥६॥ एवं आहारादी उम्गमउपायणेसणासवे । उपाए दसणादीहि जुनो अहवा तदहाए ॥७॥पिरती प अपिरती या विस्याविरती व तिचिह करणं तु । एकेक होइ दहा ओहे य अनिग्गहे चेय।.१४९॥८॥ चिस्तीकरण आहे पंचेच महत्या भयंती उाहोनि अभिमहकरणं पिंडविसुदादि रोगविहं ॥५॥ जहवा आहे संजमा विभागओ होइ सनरसभेदो। अविरति असंजमोहे अद्वारस अभिग्गहे इणमो ॥२१८०॥ पाणइचाए मोसे अदन मेहुण परिगहे चेन। कोहमाण(मय)मावलोभे पेजे दोसे तहा कलहे ॥१॥ अभक्खाणे पेखुन्न अरति ई पेप मायमोसे या मिठाईसगसते अद्वारस अभि माहे एस ॥२॥ विस्ताविस्तीए पुण ओहेण अणुण्या भवे पंच। उत्तरगुणा अभिग्गह दति सिक्खावता सत्त॥३॥ एल्यं पुण अहियारो विस्तीकरण हो दुषिहणं । जह तेसु अतीयारोन होति तह ऊ पयतिय ॥४॥ उज्जामरक्सियाण महामार्ण कओ हपनि पीला ? मनति आहारादिहि निहिं पीटा होतऽसदेहि।।.१५०॥ल.१४८ ॥५॥ उजम उनोओ खल एणं रक्सियाण उपवान। पीला उपचाजो साल भवति कह पुच्चाती सीसो ॥६॥ भण्णति आहारोवहिसेजा एतेहि लिहि असदेहि। उमामदोसादीहि उ पीला संजायनि बयाणं ॥ तम्हा उ उम्गमादीदि पिसुद्धाऽऽहारमादिया कजा। वेरमणकप्प एसो एती साहारणं बोउं ॥॥ सेजुबहिज्झाय आहारमेव साहार नह य अणुकंपा। आदिपणगं तु नातं भाइयं अणुसासणाए उ॥...१५१॥९॥ सेजुबहिसायजाहार पसिवा एने हॉति चत्तारिश साहारणकापी पुण मूलगुणा उत्तरगुणा य॥२१९० ॥ साहारणनि किं पुण से जादुप्पाद गाण सोसि। सामग्णगुणा ने ऊ सम्हा साहारणं जाम ॥१॥ आदिपणगं तु तानि जाण सेजाति जाब साहार। ठियमद्विवाण दोण्हवि एए खलु होति तुला उ॥२॥ अहया निपणग मूल्यण पंचेते होति दीड तासा उ। समणान व समणीण व तम्हा साहारणं जाणे ॥३॥ मायमणुसासमंती अणुकंपऽणुसासणन्ति एगद्वारा कोई कदाइ अणिउणो ण तरति अणुसासणं काउं॥४॥ सुहमारिवत्तर्ण होति बिसुद्धो य अंतरप्पा से। तस्सदिहाति बताई पंचविसाहारणाई तु॥५॥ आणा नित्यगरार्ण सामण्णा संजयाण ससि। सहमेविनापमाए अणुसासणय कुणड जो उ॥६॥ तेण अणुकंपिया णिच्छएण जम्हाणुस(उउ)द्विता होति। तेणऽणुकंपऽणुसही (सऽणुसणुकंपा) एमट्ठा होति नायबा ॥७॥ साहारकप एसो बहुणा बोच्छामि णिपिसणकर्ष । जह निषिसति समणा सम्मं गुरुवाएसेर्ग ॥८॥ नाणं च दसर्ण वा तहा परित्तं च समितिगुत्तीजो। एकासीतिपदेहि निविस निवेसणाकप्पो १०५ पत्रकापभाष्य -
मुनि दीपरनसागर
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [२२००] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प” संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
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प्रत सूत्रांक [२२००
क
दीप अनुक्रम [२२००]
॥९॥छमिहकायादीया बायालंता उ पंचवी एते। मेलीणा उ मवंती एकासीयं भवे मेवा ॥२२००॥ नवरं छबिहकप्पे बीसतिकप्पे च णामठवणाओ। मोतुं सेखा सरे एकासीई तु मेळीणा ॥१॥ एए सो सम्मं निविसमाणस निषिसमकप्पो। एतेसि पुण कतरो महिडिओहोद सझेमि? ॥२॥ सवेऽविहुचरणचिसोहिकारगा तहवि अस्थि विसेसो। सरहणा. चरणाए महतं पुण पालणाए उ॥३॥ सहहणाकम्पो या आचरणा व दो पहाणतरा। अहवा सहण बिय सदहिउं जो ण आयरति ॥४॥ मइयमणुपालणत्ति य सहहिउर्णपि ण ताई कोई। अशुपालेउ अजा तम्हा खलु सोण पहाये ॥५॥ णिविसणकम्पों एसो एलो वोच्छामि जंताराकायं। संखेवपिंटियर्थ गुरुपएसं जहाकमसो ॥६॥ पंचट्ठाणमसंवा पारसगं
र तिम्णिवि तियाण अत्यनाणकरणद्वयाएँ सो अंतराकम्पो ।.१५२॥७॥सामादिसंजतादी पंचह चरणं तु तेसि एकेका संजमठाणमसंवा एकेके तत्व ठाणम्मिा होति अर्णता चारितपजचा ताणऽसखगुणियाणिा एक संजमर्कदम कंडगसखा यछदाणा ॥९॥छट्ठाणाऽसखेगा संजमसेदी उहोर मोबासामादिदसंजमठाणा असंखेजा ॥२२१०॥ परिहरिसंजमठाणा ताहे लगति तेऽविउ असंखा। गंतृण हॉति छिचा ताहे तत्तो पुणो परजो॥१॥ बड्दंति जा असंला सामाइयाछेदसंजमडाणा सामादिछेवठाणा ताहे छिना मर्वती उ॥२॥तो सहमरागठाणा तेऽपि असंखेज गंतु मोडिना । तस्स अपश्चिमठाणं अर्गतगुणवहिदयं नियमा ॥३॥ एक परमचिमुच होड अहक्खायसंजमड्डाण। पंचमसखति गतं | बारसगं बार पडिमानो॥४॥ सुबपरिहारचउरो अणुपरिहारीवि णवम कम्पठितो। एते विधि तिया खलु एतेसि एकमेकस्स ॥५॥ अंतरसंजमठाणा होति असंखा उतेसि समेसि। होड इचिहाउसोही करणे अमात्यो पेष ॥६॥ता दोषियकायमा नाणडाए सुतोषउत्तेण । एसो अंतरकप्पो णयकप्पमियाणि बोच्छामि ॥७॥ससिपि गपाणं आदेसणर्यतरपि सहाणे। एस नयंतरकप्पो पुषगतविसालमादीसु॥..१५३॥८॥ सोविजेगमादी आदिस्सति जो गयो उ साऽऽवेसो। णयतो अनओपिनो गयंतरं होड नाय ॥९॥सहाणे सट्टाणे सके बलिया इति सविसते। एसो गयकप्पो ऊ पुषगवम्मी समक्खाजो॥२२२०॥ उप्परपुल विसाळले आदि काउसव्वपुष्वेसु । मणिमओ य णयविभागो एवं चोदेति अह| सीसो॥१॥कहा कालियसुतेन नपापि समोयरति ? कह वाणयविगल होति साइण मोक्सस्स उ१ मणति सुणाहि॥२॥ जयचजिमोनिअल दुरखक्सयकारओ जहजणस्सा चरणकरणाणुजोगो तेण उ पढम कर्य दारं ॥३॥ आधारपकप्पपरी कम्पनवहारपारओ अनो!। जयसुत्तमिजोऽपि गणपरिषट्टी अणुण्णाओ ।।..१५४॥४॥ पच्छिनक रण अणुपालणा य मणिया उपचपहारे। एएण अत्यचारी गणधारी जो चरणधारी ॥५॥ अजोती आमंतण निदेसे वा यस्स मुत्ताई। जाई तु दिहिचाते पण्डित दिजए वह उ॥६॥ तेहि पिणावि जागा आयारपकपधारजो जहा। तन्हा उ अणुचाओ गणपरिबट्टी उ सो नियमा ॥७॥करणाणुपालगाणं तु पनवकसिणं समासओ मार्ग। करणाणूषालणतं पजवकसिणं भवे तिचिह..१५५दा दुतिपणयककमयंतरेसुसोलसहवंति ठाणाई।करणहाण पसत्या करणड्डाणा उजपसस्था...१५६॥९॥एवाई ताणाई दोहिविगाहाहि जाईमणियाई। तेसि पकवणमिगमो समासो होइबोदरं ॥२२३०॥करणं तु किया होई पदिलेगमादि सामयारी उापालिजइनानेणतं च दुविहं मुणेय ॥१॥ पजवकसिमसमासो पजवकसिणं तु चोरस उ पुरा। सामाइयं पकायो होइसमासो मुणेयरो॥२॥ गजवकसिणं तिविह खुत्ते अत्येतदुभए वा एमेव समासोऽचि हुतेहिउ पालिजए चरण ॥३॥ तस्स णएहिं मग्गण ते उ समासेण होति दुविधा उ। दधद्विपजवहित गया तु अविसे सितविसिद्धा ॥४॥ षण्णादिसमुदियं तु दाही दयमिए णियमा। चेप पजवणो दवाइवि. सेसियं इच्छे ॥५॥ अहवारि तिमिविया दबद्वित पनवहित गुणही। पजावविसेसश्चिय सुहमसरामा गुणा होति ॥६॥ एगगुणकालगादिसु परिसंलगुणद्विो उपायो। बाजो गुणाऽणपणे गुणा विसेसत्तिएगहा॥७॥आदिडा तिषिण णया एको भितिजो यहोइ उजुसुओ। सहादि तिणि वेको तिषिण गया होति एवं वा ॥८॥अहवापि निगमसंगहववहा. कल्सएँ होति परे । सरणय तिथि एको पंच गया होनि एवं तु॥९॥ अहवापि होज छ जिगमो संगाहिजो असंगाही । संगाहितों संग त पवहार पविद्धसंगाही ॥२२४०॥ सम्हा उसंगहलो पहारो पेष होइ उजुसुओ। सही प सममिरुदो एवंभूजो य उकणचा ॥१॥ एते पुण सोनी एग तिग पण उक मेलिया संता। सोलस जयंतराई समासओ होति एयाई ॥२॥ जा कुणह दवियकम् एतेहिं णयंतरेहिं त चिसुदं। करणड्डाण पसत्या वे खलु होती मुणेयचा ॥३॥अकरेंवे अपसत्या करपे सणयंतरे समक्खाओ। कणे ठितमठिते पुण बोच्छामज्हुणा समासेणं ॥४॥ संघयणनिमोनिक्सक्खयकारओ पणम जाओ। संघयणसमगस्सवि अजाय पाउरो अमोक्लाए ॥५॥ पंच उ महायाई पण तेसि तु जो करे पयर्स। जाओ जो निष्फमो अजाओ पियमा अनिकरणी ॥६॥ठितमहिते व कप्पे संघपणेणापि जो निहीणो उ। सो कुणा एक्समोक्लं जो पुणण करे पयतं तु॥७॥पंचसु महपएसं संघयणेनं तु जइवि संपयो। सो चउगइसंसारे भमई ण व पावई मोक्वं ॥८॥अहुणा उठाणकप्पो उबहाणाइओ मुणेयो। ठियकप्पसंजयस्सविडणुण्णाओ अद्वितस्मावि ११०६ पशकल्पमाप्पं -
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आगम
(३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [२२५०] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत
सूत्रांक
[२२५०]
दीप अनुक्रम [२२५०]
॥९॥एवं जिणकप्पोथि उठितकप्पे अहिए यऽशुण्णाओ। एमेव थेरकप्पो ठितमठिते होतिऽगुणाओ॥ २१५० ॥ पजवासणकप्पो मुत्ते कम्पो तहा परिने य । अझयणुदेसम्मि चकप्पो वह वायणाए य॥१॥कप्पो पहिच्छणाए परियाऽणुपेहणाएँ कप्पो या ठियमडिएसु दोसुषि एते स भवे कप्पे ॥२॥ जावमजाओ अहुणा दोषिणवि एते समं तु वति। जायं निष्कर्षतिय एगई होइनाय॥३॥ जातमजातं करणं जाते करणे गती तिहा डिण्णा। अजाते करणम्मि उ अनतरीतं गतीं जाइ॥४॥ जायं खलु निष्फर्म सुत्तेणऽत्येण ता. भएणं च। चरणेण व संजु बारित हो जातं ॥५॥ जातकरणेण शिन्ना नरगतिरिक्खा गती उ दोन्नि भवे । अहना तिहाउ छिन्ना णरगतिरिक्खा मस्सगती ॥६॥ देवेमुवि 2 तिणि गती छिन्ना वेमाणिएमु उत्पत्ती। चाउमुनि गतीम् गच्छति अन्नतरि अजातकरणेणं ॥७॥ एसो जातमजाए कप्पोऽनिहितो इदाणि बक्खामि । आइण्णमणाइन्ने कम्यं तु गुरुपएसेणं ॥८॥आहारचाउके करण फासणे खेतकालउवगरणे । आइपणे आइन्न तविवरीए अणाइण्ण ॥ .:.१५॥९॥आहारचउकसलु असणादीयं तु होडणायचा करणार आयरणं तू तस्स उजंजस्य आइणं ॥२२६० ॥ पिसि सिंधूविसए डाई(य) पुण उत्तराबहाइणं । तंबोलं दमिलेसु एमादी सेनमाइर्ण ॥ ०१४९॥१॥ काले दुभिक्खादिसुन पलंधमादी तु सध्यमाणं । उपगरणे आइणं बोच्छामि अओ समासेणं ॥ ल० १५० ॥२॥ सिंधू आउलियाई काला कप्पा सुरनिसर्यमि। दुगुवादि पुंटपदणि महरहेमुं च जलपूरा ॥ ०१५१॥३॥ एवं जत्वाइणं तहियं तू कप्पती उआवरिउ । इतरस्य कारणम्मी फासण गहणं च परिभोगो ॥ ल०१५२॥४॥ आइण्णे चउपग्गेण य पीलाकारको पक्यणे या य मालगा पवयणे णाइण्णं आयरे कप्पं ..॥५॥ आहार उपहि सेवा सहा चउक्गो होइ गायत्रो । पपयणपीलबचाओ पिसियाई मजपाइति ॥६॥ चोदेड का मइलणा? भण्णइ पटिसेहियाणि ज सेये। सा होइ महलणा ऊ जो पुण सुपरिडिओ चरणे ॥ ७॥ तण्णाउ सलाहेड वष्णेड गुणेहि एस जुत्तोति। सुदढ़ करे अपहितं जो पुण करणे अजुत्तो 3॥८॥ तं बदछ संदेहो उपजा किष्णु एस सच्छंदो। आओ गं उपएसो एरिसओ देसिओ समए? ॥९॥ आह जिगकप्पियाणऽनि आइणं किंचि अस्थि अह नस्थि। भष्ण न अस्थि कि पुण आषरें जिणकप्पियाइण्णं ॥२२७०॥ आहारउबहिनेहे निररेक्लो नपरि निजरापेही । संघषणविरिखजुत्तो आइणं आयरह कप्पं ॥१॥ दसणनाणचरिने तये य तह भावणासु समितीसु। छल्हपि तिप्पणारं सरह संधाण साहणता ॥२॥ सदहति सम्मदसण आयरति परुवणं च कुणमाणो। संधाणकप एसो एवं सेसाणची मेयं ॥३॥ संघाणकप एसो भणिो उसमासओ जिणवाओसिसेक्समुदित एलोवोच्वं चरणकापा आहार उपहि सेजा निकरणसोहीएं जाहि परिर्ततो। परिगहितविहाराओ तो पवती विसयपहिवदी.१५८॥॥ | कोई विसेस बुज्झति पसत्यठाणा अहं परिभहो। अंधत्तेणं कोई ण पुज्सए मंदधम्मत्ता ॥६॥ दवे मावे अंधो दब्वेचक्यूहि भावे ओसणो। संविगतं ग रोपति णितियाण पहाममिच्छतो ॥७॥ जुत्तो जुत्तविहारी वेष पसंसाए सुलहबोही। ओसनविहारं पुण पसंसए दीहसंसारी ॥८॥आहार उवहि सेनानीयावासेऽपि तिकरणऽविसोही। तह भावंधा केई इम पहाणंति पोसति ॥९॥नीयाइपिहारम्मिचि जइ कुणती निम्ह कसाया। नसा हुभवते सिद्धी अवितहसुने भणियमेयं ॥२२८०॥ बहुमोहेमिर पुलिपिहरेना संबुडे करे कालं। सो सिसह अविय इमे पुरिसजाया भये चउरो ॥१॥नाणं संपण्णो णो उचरिण एस्थ चउभंगो। तेणेसेन पहाणो एवं भासंति निदम्मा ॥२॥ तन्हा उण एयाई कुजा आलंपणाई. मइम तु। जाहि पसत्याति इमाई आलंपणाई तु॥३॥ तित्वमराणं चरिब चरिय कसिणंगपारगाणं च। जो जाणइ सदहनी ओसन सो न रोएड।..१५९॥ ४॥ धुरसिमियत्रगम्मिवि विस्थगरो जानवम्मि उजमति । कि पुण तपउजोगो अपसेसेहिंण कायद्यो? ॥५॥ चोदसपुत्री कसिगंगपारगा तेसि जो उ जोगो । तं जो जाणइ सो खल संविग्गविहारसरहतो ॥६॥ एमादी आलंबण का संविगतं न रोएति। को पुण ओसन्न रोएती? मचा इमोतु ॥७॥ मुत्तत्थतदुभए अकरजोगि ओसरोयओ होजा। अहवा दुग्गहिवत्यो अहवाची मंदधम्मत्ता ॥..१६०॥८॥ अनाणियऽकहजोगी दुग्गहियस्थो उजेण अववादो। गहिओ णवि उस्सग्गो महिने बा मंदधम्मो उ॥९॥सो रोए ओसणे इति एसो पनिओचयणकप्पो । उववादकप्पमहुणा बोमडामि जहकमेणं तु ॥२२९० ॥ पंचहि ठाणेहिं वियहिऊग संदिग्गसढ़याजुत्तो। अम्भुणतं पिहार उपेइ उपवायकप्पो सो॥..१६१ ॥१॥ उपययणं उपवातो पासस्थादीय पंच ताणाओ। तेसु विचिहं तु बदिसतों पियहितो होहणायचो ॥२॥ संवेगसमावष्णो पच्छा उ उबेड उजयविहार। एस उपचायकप्पो णिसीहकप्प अओ बोच्छ ॥३॥चउहा निसीहकप्पो सरह अनुपालणा गहण सोही। सदहणापिय दुविहा आहे निसीहे विमागे य॥..१६२४ा ओहेति हत्थकम्म कुणमाणे राममूलिया दोसा। मिनमादि विमागे अहचोहो होइ उस्सम्यो॥५॥ अववादो विभागो सबसेयं तु सहइतस्स । सदहणाए कप्पो होइ अकयो पुण इमोर ॥६॥ मिच्ात्तस्सुदएणं ओसन्नचिहारताएँ सहहणा। गणहरमेरं ओहंग सबहती जो मिसीहंतु॥७॥ओसन्नाण विहारं सदहति सुविहियाण गणमेरे । न उ सरहती जो खलु एस अकप्पो उसरहणे ॥८॥ जाणि ११०७ पजकत्वमाय
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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक
[२२९९]
दीप
अनुक्रम
[२२९९]
“पंचकल्प” छेदसूत्र -५ / २ ( भाष्य )
भाष्यं [ २२९९ ]
....आगमसूत्र [ ३८ / २ ], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...
मणिचाणि सुते पुशागरमाहियाणि बीसाए तांनि अनुपालयतो साणि निसीहरूप्यो उ ॥ ९ ॥ मुत्तत्यतदुभयाणं महणं बहुमाणविणयमच्छेरे चोरसपुचनिषदे कप्पे हियमि गणहारी ॥ २३० ॥ तिविहो य पण्पधरो मुझे अत्ये य तदुभए चैव सुतपर मोतु तदओ बितिजो वा होइ गणहारी ॥ १ ॥ लिग पग पग एकं अडगावच जस्स उपल करणं दणंच सोड सोही विद्यालाहि ॥ १६३॥२॥ नानाई तियगं पण करहारों होइ पंचविहो। चितिय पण पंच बता एक पुर्ण होति छकाया ॥ ३॥ आलोयणारिहगुणे अ उ अाप सोहि अवहा आलोयणवादीयं मूलंत जाणती जो तु ॥ ४॥ जालोयणमादीयं अणवतं तु वहिं होति पारंचितमहवा दसहि होती पसदेणं ॥ ५ ॥ ठपणारोकरण सफला मासा करेतु जो जाने सो होति दानअरिहो तशिवरीओ अणरिहो ॥ ६ ॥ किह पुण तं दाय पायच्छितं तु? पुए सीसो मण्ण इमेन चिह्निणा दाय जाकमत्तो ॥ ७ ॥ जोग सहाणं सायविभागता पवित्वारो पछिपरिसहेड किति? संती चरणमादी ॥ ८॥ आहे सहाति यजह ठगुरु होइ रायपिंडम्म सहाविभागे सरमादी मुणे ॥ ९ ॥ जह या करकम्मम्मिय आहेणं होइ मासगुरु तु होइ विभागसंगो दिहाड़ीओ मुणेो ॥ २३१० ॥ पुरिसजातं गाउं च दिजए जंच जार गुरुमावलिलानादिजं जो ॥१॥ हेऊ कारण निकारणे व जयगादिसेवियं जह उ चोदेति किंनिमित्तं पतिं दिखाए? सुण ॥ २ ॥ पायच्छिते असंसम्म पनि चिए परिसम्म असंतम्मि तित्ये जो सचरितया ॥ ३ ॥ तित्यम्मिय असंतरिम वाणं तु न गच्छती वाण असंतम्मि सवा दिवखा निरस्थिया ॥ ४ ॥ एवं निसीका वणिज समासे वबहारकन्पमणा गुरुवाले बोच्छामि ॥५॥ हारेको मिक् सत्तिमिवानिदमहुरेहिती वारंवत सो संघमज्झ ॥ ६ ॥ कोइ भिक्खु अपुजनगरम्भिकंचि हा गाए छिंदिता इत्यच्येहिं पमाणकतो ॥ ७ ॥ अह पच्छा सचित्तं खुड्डाई तस्स केणई दिष्णं सही पाउरणं वा म्ह पक् चरे ॥ ८ ॥ पयतिवादी मिदं खंडगुलादीहि माथि संगहितो सथाहि (जम्बालि) एहि नाहे मरए पलवाएणं ॥ ९ ॥ दुवचारिएण को णिसेहिज? तो बड़े संघ एव संपली कीर इणमा सर्प (सं) पत्तो ॥ २३२ ॥ अण्णो तहिं तु गीतो संघसमतीए तिमि बारा उ उचारे सिपुत तत्थ य मेरा इमा होइ ॥ १॥ पुम्मि संघसदे धूपोऽवि जो ण एजाहि कुलगणसंघसमाए लाइ गुरु व चमासे ॥ २॥ काहिति अकलं तं पावति सति बले अगच्छंती अम्मा (आमा) या वाणादिसि च जं कुला ॥ ३ ॥ सोऊन संघस लीजवि होति आगमणं पूपनिमित्तं वपहारों उबहिती होई ॥४॥ सोऊन संपली. आगीसंतो वित ववहारमाणे साहू समएण वारे ॥५॥ निद्धं महूर निवार्त किनिकम्म विजाग जपतो सतत मी अत्यधर गिोड दिसणं ॥ ६ ॥ भिक्य मुसावादी चहारे इयमम्मि उद्देसे। सुप्तं उच्चारती पक्खा इमं होइ ॥ ७॥ रागेण व दोसे व पक्वमम्मि एकमिकल्स कजम्मि कौरमाणे कि अच्छा संघ मावो ॥८॥ रागेण व दोसेण व पक्खमाण एकमेकस्स कलम कीरमाणे अण्णोऽपि ममेड ता कोई? ॥१९॥ कुलगणसंघवर्ण इन यानामि देखिजी मि अहंता के कम्प ग्रह जप किमि ॥२३३॥ संग अ पति सीता गुणसमोरील मातीत संयं ॥ १ ॥ संघो महाणुभाषी अहं वेदेखि भते समिति जाने तं मे स ( समामि ॥ २ ॥ ऐसे ऐसे ठपणा अशा अमाप होइ समिती व गीयत्येऽभिणारं विदेसिजोऽहं ण जाणामि ॥ ३ ॥ अनुमान एवं वाहेगुणाए पर इमो परिसाहारीण व इमे गुणे ऊ समासे ॥ ४ ॥ परिसा पहारी या मान्या रागदा जति होति दोषि पारिडं तो मुहं होति ॥ ५॥ नेत्यपरे अनि उ पहारिणो उपेक्षा नृर्ण तुम्हे सति ॥ ६ ॥ सेसा मुसावादी सचपरिमगा कि सवे? मग सुह एवं भूतत्यमिव समासेयं ॥ ७॥ समपरण करणे सथनहारता दुलदहिया चरणकरण जोहर आहे ॥ ८ ॥ जया अप अपण नाचरितं तया तस्स परे अणुकंपा नस्थि जीवे ॥ ९॥ सहसभाओ जस जस्स न जातं दुखं न तस्स दुक्ख परे दुहिए ॥ २३४ ॥ जयारे वहती आधाररूपणे संकिय आधारपरिम्मी परदेस महओ १५४ ॥ १ ॥ गिरे भगवते जगजीवनयाए तिलगुरु जो न कति सुराणं ॥ २ ॥ तिवरे भगवंते जगजीतोगगुरू जो करेति प्रमाणं सो उपमाणे सुध[रा ॥ ० १५५ ॥ ३ ॥ संघो गुणसंपातो संघीय रामदोसविमुको होड समोसा ॥ १५६ ॥ ४ ॥ परिणामियबुदीए उसे होइ समसंची उ कजे वितिकारी सुपरिच्छिकार संघ ॥५॥ एकसि दुवे तिण व सचिए परिभवेणं तु जाणाइकमणिगाउ आउवहारो ॥ ६ ॥ सासो पासो सीतपरसमो होतिमा माती (हि) अम्मापीतिसमाणो संघो सरणं तु ससि ॥ ७ ॥ सीसो पडिच्छजो या आयरिओ वा न सोम्मई गति जे समकरणजोगा ते संसारा चिमोति ॥ ८ ॥ सीसो पछि वा आरोपाच ते इई लोग जे चकरणजोगा ते संसारा चिमोति ॥ ९ ॥ सीसो परिच्छओवा कुलमणसंघा सोगई ति जे बरजोगा ने संसारा (२७७)
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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक [२३५० ]
दीप
अनुक्रम [२३५०]
“पंचकल्प” छेदसूत्र -५ / २ ( भाष्य )
भाष्यं [ २३५० ]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित .........आगमसूत्र [३८/२], छेदसूत्र [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
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विमानि ॥ २३५० ॥ सीसो पच्छिलो वा कुलगणसंघ व एनि इहलोए जे साकरणजोगा ने संसारा विमोनि ॥ ० १५७ ॥ १ ॥ सीसे कुलियाएँ गणिबाए व संधिचाए य समद्रिसी। वषहारसंययेसु य सो सीतपरोषमो संघो ॥ २ ॥ मिहिसंघानं जहि संजमसंघातं समुपगम्य नाणचरणसंघात संघाएन्तो हवइ संघो ॥ ३ ॥ णाणचरणसंघातं रागोसेहिं जो सिंघा सो पाए अहो गिहिसंपातम्मि अप्पाणं ॥ ४ ॥ नाणचरणसंघातं रागदोसेहि जो विसंघाए। सो भमिही संसारं चउरतं तं जणवयम् ॥ ५ ॥ दुक्खेण लमति चोि नलने चरितं तु । उम्ममादेखणाए नित्यगरासायणाए ॥ ६ ॥ उम्मग्गदेसणाए संतस्सय छादणाए मग्गस्स पंचकम्मरयमलं जरमरणमत पोरं ॥ २० १५८ ॥ ७ ॥ पंचहिं उपसंपद नाऊणं खेसका तो संपमझयारे वहरिय अणित्सानं ॥ ८ ॥ निदरिसणं तत्थ इमे नगराणगरीय सोसायरिया अण्णायणायकारी तत्पहार अट्ट इसे ॥ ९ ॥ मा कि कंकडु कुणिमं पक्कुत्तरं च चहा (बा) बहिरं च गुंठसमण अंबिलमणं च निम्मं ॥ २३६० विमासो सिद्धिं उवेति तस्स ववहारी कुणिमणिहो वसुदुच्छ एव वितियस्स ॥ १ ॥ पक्कुडाव भवाओ कजपि ण सेसतं उदीरेति पादेणं आउत्तिय उत्तरसोवाहणेति ॥ २ ॥ रोमंचयते कर्ज चा (बच्चा) दी नीटसंवि समेति कहिए को संते पहिरो व भणाति ण सुतं मे ॥ ३॥ मरहलादपुच्छा केरिसया लाड मुंड साहिस्से पाचारभंडिभणं दसियागणणं पुणो दानं ॥ ४ ॥ गुंठादि एवमादीहिं हरति मोहितु ते तु बनहारं अंबफरसेहिं अप्पो ण नेति सिद्धिं च ववहारो ॥ ५ ॥ एते अकबकारी नगराए जसि तम्म उ जुगम्मि जेहि कता बहारा खोडिजनप्रजेयु ॥ ६ ॥ इन्दोम्म अकिनी परोए दुग्गई युवा तेसिं अणणाएं जिगिदाणं जे बवहारं वचति ॥ १५९ ॥ ७ ॥ बत्तीस तु सहस्सा गच्छोउकोसओ व उसमि बहुहरा इत्तियमिताण जन्य संचरणं ॥ १६० ॥ किलेऽहं पूतमित्तं धीरं सिवको अजा (झा) सं अहरणग पम्मण वंदिल गोविंददन्तं च ॥ ८॥ एते कनकारी नगराए आसि म जुगमि जेहिं कता वच्हारा अक्लोमा अक्षरजे ॥ ९ ॥ इहलो कित्ती परलोगे सुमाई घुषा सिं आणाएं जिपिदार्थ जे चहारं चति ॥ २३७० ॥ तहियं पुण केरिसएण जंपियतु होइ समणेण । भण्णइ सुणम् इणमो जारिसएवं तु वीत ॥ १ ॥ पारायणे समते चिरपरिवादी पुणोवि संविग्गो जो निग्माओ विष्णे गुरूहि सो होति बहारी ॥ १६४ ॥ २ ॥ मूल पारायणं पढमं वितियं च दु(बहु) मेतिमं ततियं च निरक्सेस, जइ मुज्झेति गाहगो ॥ ३ ॥ सुनत्वो खपटमो चितिओ निनिमीसओ भणिओ। निओ य निरवसेसो एस विही होइ अणुजोगे ॥ ४॥ परिणीय मंदधम्मो जो निमाओं अप्पणो सम्मेहिं ण हु होइ सो प्रमाण असमतो देसनिग्गमणे ॥ ५॥ आयरियादेसायारिएण सन्येण गुणित (स) रिएण तो संघमज्झयारे वहरिवं अणिस्साए ॥ ६ ॥ जायरियणादेसा वारिएण सउंड बुद्धिरनिएणं सबिनखिनमसे जो वहती सो ॥ ७ ॥ सो अभिमुद्दे दो संसारकडिगम्मि अप्पानं उम्मग्गदेसणाए तित्वगरासायनाए व ॥ ८ ॥ उम्मग्नदेवनाए संतस्स व छायणाएं मग्गस्स उम्मग्गरेसगम्सा मासा चनारि मारिया ॥ ९ ॥ परिवार बुद्ध धम्मक यादि समए तहेब नेमिती विजा राइणिया इटिगारको अइहा होइ ॥ २३८० ॥ एमादिगारहि अकोविया से उतन्य मासिखाते बनवा णमो न तुज्झ भागो इह बोनुं ॥ १ ॥ बहुपरिवारो भवति जय परिवारेण होज कजं तु तह (प) परिवारं दिज्जम बुटो पुर्ण भाई इणमो ॥२॥ गेण जन्य समयं महारयं तु तन्य हि तत्थ तुम जिस धम्मकी मण्ण इमं तु ॥ ३ ॥ जहियं धम्मकहाए कर्ज तहियं तुमं भणिजाति वादी जन्य वादियओयण तन्य मासिजा ॥ ४ ॥ खमगो भन्न इणमो देवयकजं जहिं भविताहि असिवादिकारणेहि तत्थ तुमं तं करिजासि ॥ ५ ॥ विनासिदो मण्णा पिलाए जन्य संघकम्मि कर्ज हो करेज] रायणि भाइ इमं तु ॥६॥ किनिकम्मस्स उ अणुवईताण चंद म्हं कु(लि)जाहि तुम गंतु वह पुर्ण गीयरस चिसो उ ॥ ७॥ ण हू गारयेण सक्का बवहरि संघमज्झयारम्मि पास अगीयों अप्पा येन गच्छं ॥ ८ ॥ णासेई अगीयत्यो चउरंग सबलोगसारंग मि य चउरंगे हु सुन्न होइ परं ॥ ९॥ चिरपरिचाहिए संविग्गणम्यकरेहि जम्मि मासिक अणुओगे गंधहत्थीहि ॥ २३९०॥ मादी य मुसावादी वितियं ततियं वयं च लोवेति माची व पावजीवी असतील कणगदंडे ॥ १ ॥ भवते पहिरोसमासतो भवे दुविहो। दोसु य पणगं पण जमते अहीकारो ॥ २ ॥ सचिनो अचित्तो व मीसओ खेत्तकालनिष्कष्ण पंचविहारी आती उपाययो ॥ १६५ ॥ ३ ॥ सम्म उ सचिन अनि नित्यमादीओ मीसो सर्भडगाणं लेत्तम्मि उ गाममादीहिं ॥ ४ ॥ नगरादससिले पुण बसहीए तत्थ मरगणा होइ फाले उदु वासायु व भरणा होइ गायब्वा ॥ ५ ॥ अहचाऽऽभवनमणी उपसंपयखेत्तकालपव्वज्जा नाऊण संपमझे वहरियव्वं अणिस्ताणं ॥ ६ ॥ सुन महदुक्ले खिने मग्गे विणए य पंचहा होइ सावि स एयाओ सुयणाणमणुप्पवत्तीओ ॥ ७॥ जन्म उ सुखोपसंपद तत्थ उसका हति (चि होन्ति) एवाओ। अहदा सुचदिद्वा तु सेच्छाए हवनेया ॥८॥ गुम्सीसपच्चिहाणं निहवि को कस ११०९ पद्मकल्प भाष्य -
भुति दीपरत्नसागर
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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक [२३९९]
दीप
अनुक्रम [२३९९]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...
“पंचकल्प” – छेदसूत्र- ५ / २ ( भाष्य )
भाष्यं [ २३९९ ]
[ ३८ / २ ], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
....आगमसूत्र
किंचुक्करेह ? । बेयावचगमागम काले चिंतादि द य ॥९॥ सीसो आयरियस्स उ वेयायचं तु कुणइ जाजीयं जहिं गच्छ तहि यच्चति पेलेइ व जन्म तहिं जाइ || २४०० ॥ क समासमप्येति कयो ऊ नाणादीहिं गुरुणाऽयि ॥ १ ॥ दवे सवितालाभो सीसम्स जो नहिं होति सोचि व जावळीचे सो गुरुयो उ आमचति ॥ २ ॥ कुणी पाढिच्छषि यायचं तु असणमादीहिं वचय पमाणे काले रोयती जाय ॥ ३ ॥ गेण्ड वा जाव ता कुमाई सक्षमेव पाडिच्छो एसो दो बोउं जं आभवती पाडच्छे ॥ ४ ॥ ] होइ नालब अभिसंपात वर्ग एति संदेसविष्णगं वा नामे विधेयकाले य ॥ ५ ॥ वीनंतर संतर अनंतरा उजगा इमे होति माता पिता व भाता भगिणी तो यया ॥ ६ ॥ मातुं माया य पिया भाता भगिणी व एक पिउणोऽवि माउभगिणीचा पूतायुतानपि तव ॥ ७ ॥ पारंपरडि एसा जइ तं धारे पच्छिमस्लेव अह जो जमाती सुगुरुण तो उ आभा ॥ ८ ॥ संगारो पुत्रको पच्छा पाडिन्छओ सो जाओ। तेन निवेदेय उपहिता पुत्रसेहा मे ॥ ९ ॥ एवएहि दिहिं उम्म समासे अवस्स एहामो संगारी एवं कतो विचाणि यसि चिंधे ॥ २४१० ॥ कालेन य चिंधेहि य अभिसंवादीहिं तस्स गुरुणिह कालम्मि विसंबदिए पुच्छिति किं न आओ सि ? ॥ १ ॥ संगारिदिवसेहिं जलादि दीपति तो उ। तस्सेष अह तु भाषो चिपरिणओ पच्छ पुण जाओ ॥ २ ॥ ना होइ गुरुसेव तु एवं सुयसंपदाए भणितं तु दुपमे एतो ला पवक्यामि ॥ ३ ॥ बट्टसु मम सहदुक्ले अहमचि उभे तु एवमुवसंचे पुरपच्छया ऊसो लभती जे य चाची ॥ ४ ॥ तुहदुक्लसपएसा एतो खेलोक्संपदं वोच्छ। खेतोग्गहो सकोसं बाधाए वा अको तु ॥ ५ ॥ पत्ते उम्मद साहारणे य वासे तब उपदेसदासको निशायारण पत्ते उ ॥ ६ ॥ अविजयावाघाने एमत्तिचउनुं वा । होल अकोसो उम्महों अरुणा साहारणं चोच्छे ॥ ७ ॥ साहारण होजाही पढिलेणपुपच्छनिगमणे । पुण्यं पच्छा पत्ते आयरिए सभजजामु ॥ १६६॥ ८ ॥ दुगमादीगच्छा पहिले गणि म्याण सम तु पत्ता लेर्स एसो पदमगमंगो मुणेयः ॥ ९ ॥ सम निम्गम एके पच्छा पत्ता व चितियो मंगो पच्छा निग्गय पुष्वं पवि पच्छा य दुहतोचि ॥ २४२० ॥ पदमगभंगे जो खलु पुचि तु अणुवेति ते खेती समर्ग पुणऽणुन्नचिए सामर्थ होइ दोहपि ॥ १ ॥ वितियगभंगे दप्पेण पुच्चि पत्ता उ ज णऽगुणवंत इयरेसि असदान य अणुनातं तु ॥ २ ॥ पुरनिग्मता कहं पुण पच्छा पत्ता उ ते हविज्जाहि ? गेलणमगपारणचापात अंतर हृषिजा ॥ ३ ॥ गेण्णवाउलाणं तु खेत्तमण्णस्स णो दए। निसिदो समजते तन सम्मती ॥४॥ अंतरवापाएणं पच्छा पत्ताण पुच्चि जे पत्ता असदेहिं अनुन्नवितं पुष्वि पत्ताण तं खितं ॥ ५॥ अह समगमणुनदिए काउ पमादपि तो उ साहारं एवं तु नितियभंगो अरुणा ततियम्मि वोच्छामि ॥ ६ ॥ पच्छावि परिचयाणं सभावसिम्यगतिणो भने खेतं एमेव व आसने दूरदाणा व पत्ताणं ॥ ७॥ भंगे पउपगम्मी पुत्राणाएं असदभावाणं पदमगमंगसरिच्छा आभचणा तत्थ नायज्ञा ॥ ८॥ पुत्रमहिषि उम्महों होति मिलापड़ताए जहियत्रो अह होखा संचरणं कालक्खेवो दुपक्लेषि ॥९॥ पुण्यतिखेसीणं जह आगच्छे मिलाइसणे जइ दोह असंचरण तो निम्गमो सियाणं तु ॥ २४३० ॥ अह दोषि संघरण दोहिवि इच्छति जा गिलाणी उ एते व दुि पक्खा अवा समणा व समणीओ ॥ १ ॥ मिलाण उनही किया भत्तोपहिताऽपिग्मिहितं ती परखे साहमियतेशिया तिविहा ॥ २ ॥ उनही निवडी माया मिलाणणिस्साएं विजमा छ ति खिते मत्तोहिताए ॥ ३ ॥ उनि सुंदरा लाणिपीएं एति तो तत्थ इतरेष मिळाणोजीका त ति खेलाउ ॥ ४ ॥ तेसुं तु निम्बए सवितादीतिविह गेहे तं तेसि होति तेष्णं पच्छिमेव तिहिं तु ॥ ५॥ जे पुण असंपता ऐति नहि सिमा नवे मेरा आयरियपसमा चैव चोच्छे समासेणं ॥ ६ ॥ अच्छेति संचरे सच्चे सभी नीई अपरे जत्य तुला भये दोषि तत्थिमा इति माणा ॥ ७॥ निष्कण्ण तरुण सेहे लुंगियपालनासकरकण्णा एमेव संजणं परं बुड्ढी मा [] ॥ १६८॥ परिवार अणिफनो अच्छति निष्कणतो निम्गच्छे अच्छेति बुद्ध तरुणा यमिति सेहे असेहि ॥ ९ ॥ (मिनि) अच्छेति जुमिता तु गितियरे अजुमिता दोषि थाइला अच्छे अच्छे समणीण तरुणीओ ॥ २४४ ॥ समचाण य समणीय अच्छी संजईड नियमेणं जेण पचवाता अणुकंपा तेण समणीणं ॥ १॥ संधारे मनसंतुडा, तस्स लामम्मि अप्पभूतिमादीएवं स्यंति खित्ती ण ते जेसिं ॥ २ ॥ दुपमादगाणं खिते साहारणम्मि पवित्रे अप्पत्तियपहित्यया ( इ ता )ए मेरा इमा तत्थ ॥ ३ ॥ अस्थि बहु बसभगामा कुदेसनगरोपमा सुहविहारा बहुगच्छ्रयकरा सीमच्छेदेन बसियन्वं ॥ ४॥ आयरियउपज्झाया दुहिं निहिं सहिया पंचओ गच्छ एवं तु गच्छा तिथि उदुमदे संघरे जय ॥ ५ ॥ वासा तिउजुया आयरियनज्म सत्तओ गच्छो एव तु गच्छा तिमि उ बासागुं संयरे जत्थ ॥ ६ ॥ कालयनिवि एवं जहण्णय होइ बासखे तु बलीसं तु सहस्सा मच्छोउकोस उत्समम्मि ॥ ७॥ बहुगच्छ्रयकरा एत्तियमेत्तान जत्थ संघरणं ऊमा अणुवमाहिता सीमच्छेद अओ वोच्छं ॥ ८ ॥ तुमतो मह चाहिं तुम सचित्तं ममेतरं वाचि १११०] कल्पभाष्यं -
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [२४४९] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [4/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत
सूत्रांक
[२४४९]
दीप
वागंतुयवस्यमा चीपुरितकुलेशप विसेसो ॥९॥ गो सकोसजोषण मूलनिर्वधे अणुम्मयतेण। सचित्ते अचित्ते भीसेविय दिग्णकालम्मिम ॥ २५५०॥ सेसत्ती निस्साहारणमि मूलवेत्त शिवर्णमुर्वतर्ण हो सकोर्स जोयण दिसविदिसासु तु सातो॥१॥एवं खेतओं एसो कालओं उददि होडमासो उाबासास चउम्मासो एकतिकालो विदियो 3॥२॥ एपहकाल12
पिदिग्गं पुण्णे निकारणम्मि तेण पर। म उवगहो विविष्णो मोत्तूर्ण कारणमिमेहिं ॥३॥ असिचादिकारणेहिं दुविहानतिरंगेऽवि उग्गहो होइ । जा कारण तु डिग्य तेण परं उग्गहोगा भवे ॥४॥जा होर खेत्तकप्पो असती खेत्ताण होजबहुगावि। खेत्तेण व कालेण यसबस्सपि उम्गहो णगरे ॥५॥ सति लंभे खेत्ताणं जोम्मा जो उ जस्य संघरति। सो नहियं संचिक्ले लेताण असती पुण पहुँपि ॥६॥ एगस्य उगामादिसु जहियं तू संवरंति नहिं अच्छे । सनेसि नहिं उम्महों साहारण होति जहणगरे॥७॥ एसा लेनुनसंपद पुरपच्छासंधुएध ठमति एत्य। तह मित्तवयंसा या जंचलम सुलोवसंपयो ॥८॥मग्गोवसंपदाए मग देखेद जाव सो तस्सा लमती दिट्टामट्ठादि जो य लामो पुरिलाण ॥९॥ विणओसंपदा पुण कुवति विणयं तु जो उरावणिए। स तस्साभवती जो उ उपहायती तस्स ॥२४६०॥ उपसंपद इन्चेला पंचविहा पणिया समासेणं । खेतम्मि परे खिले मिक्समिओ जो उ होनाहि ॥१॥ काले उतु वासं वा बसिऊर्ण निग्गयाण जो अयो। पदमविवियदिवसेस निक्खामे कालो एसो ॥२॥ इवेसो पंचविहो क्यहारो आभतिओ णार्म । पपिछले पचहारो जह बस-- (पट)मुद्देस ववहारे ॥३॥ अहमा उ खेतकाला तेवि उतत्येव मणित बसहारे । जं तस्थ उ तस्सेसं तमहं वोच्छ समासेणं ॥४॥ दुविहे विहारकाले तिनिहा सोही उ उवहिमता। विष्णे जतंत सोही अविदिष्णद्वाएं आपणे..१६८। उदुबद्ध पासामु य विहारकालो उ होइ दुबिहेसो। उग्गम उपायण एसणा य एसा तिविह सोही ॥६॥ उदुवद मासवासामु हाति चउरो चिदिन्नकालो उ। एल्प जयंता जानिए आपने नहपि सुदा उ॥७॥ मासा चउमासा पुण संवसमामा उ तत्प अतिरित। म(ल)यति जयंताविहु किमु अजयंता उ? किपडणं ॥८॥ उदुपदवासवासं अणुवसमाणो असुबभत्तुपही। आयरियप्पमाणा गुणप्पमाणं च समणाणं॥९॥ उम्मममादी दोसा असेषमाणोपि सो उ आवष्णो । जम्हा दोसायनणं उरम्मि यावेतु संवसति ॥२४७०॥ कल्येयं मणियंतिय ? मन्नति आयरिएण किमायारे? आचारपकप्पे ऊआयारिभवंतु आयारी ॥१॥ जे मिक्स्सु णितियवासं वसइनी एस्थ भणिय सुत्तम्भि। एवं पमाण उभये अइरिने याविजे दोसा ॥२॥ जदि पुण बहिया हाणी वहि पहिट गुणाण तस्य अच्छति। के पुण गुणादि मणिया' भन्नति नाणादिया होति ॥३॥ कालातीते दोसा दशक्तओं होड अच्छमाणाणं । तम्हा उग चिहिना अतिरित्तं दुनिहकालम्मि ॥४॥ नित्य अणुकंपाए गिहिर्ण तो णाम ण बसहा तुम्मे । भण्णति ण होति एवं - मा साहुणं चरणभेदो ॥..१६९॥५॥ चोदेसाहारादिसु सुज्यवसूनि णाम जं वीए। तत्थ ण चिह तण्णाम णित्यत्तेण गहियाणं ॥६॥ मा पाविहिति धम्म गिहिणो साहूण कासुवागणं। इस णिश्यता अहना इहलोगणुकंपया तेसिं॥७॥मा दल्नलओ होही जणुवासे णिचसाहुदाणेण। इय अणुकंपिहलोए भन्मइन उ एवमादीहिं ॥८॥मा होज चरणभेदो पुष्णातीतमि संवसंताण। अतिचिरसंवासेणं सिणेहमादीहिं दोसेहिं ॥९॥ एसो उकालकप्पो एवं नक्सामिओ समासेणं। अहणा उनहिकर्ण गुरुपएरोण पोष्ठामि ॥२४८०॥ उष- गेहाति उपकार करेर उपहीयतेण उवही उ। किं कारणं तु उपही उदिसिओ' भष्णती सुणसु॥१॥जीवाणऽणुमाहा एवं खलु पनिओइई वित्ये। काऊणऽणुग्गहपद परिणीयपदे जभाचो उ॥२॥ स्सयावणुकंपट्टा अगणीमादीण चेच स्क्लट्ठा। असहणऽणुकंपट्टा य उपहीगहनं जिणा बैंति ॥३॥ जाह जहऽणुग्गहवा बत्यादीगण देसियं समए। नो असरणं कहा बीपरिमोगो गाऽणुग्णाओ?॥४॥ भण्णइ पवित्ति कम्हिवि कम्हिवि पुण होति अपवित्ती उसंजमपटिणीयत्ता मेहुणमादीण नाणुष्णा या नाणचरणद्वियार्ण उवगह कु. पति नाणचरणाणं। आहारउपहिलेजा तेण उ उनहित्तर्ण बेति ॥ ६॥ जस्स पुणोवहि गहिता उवपातकरी उ तस्स उपधाती। कह उपधात करेती? अहरितगहो य मुच्छा य॥७॥ संघरमाणो गेहति अतिरितं उवहि जो भये समणोपण्णादिजुते मुच्छति इवाहारे धुवस्से ॥८॥ एतेसु अणिडेसु य जो दुस्सति से करे उवपात। नाणादीणं तिष्हं तम्हा ने बजिए हेतू ॥९॥जो जत्य जदा जहियं उपही परिभोगओ अणुग्णाओ। सो तत्य अणइचारो अणYण्णावे चरणमेदो ॥२४९०॥जह सिंधुजो कप्पो ओराला उणिया अण्णाता। पि. सियादीण यमहर्ण लीरादीनं चगुण्यातं ॥१॥ अतिहिमदेसे ब तहा कारणितगताण सिसिस्कालाग्मि। परिमुंजताण य को विवाद? चरणे अणुवघातो ॥२॥ दक्सियादिएK एवेसिव मोतु पडिसेहो। पडिसिबे परिभोर्ग कुणमाणो मंजती चरणं ॥३॥ नाणेपि उ सो जिंदा उवदेसं जेण ण कुणती तस्सा जनाणपुर दसण देसणभेदोचि तो तेणं ॥४॥ निवदिक्खितमतरताविएसकनेसु होइ परिभोगो । समजाओ कसिणादियाण इहरा अणुनभोगो ॥५॥ एसोउ उबाहिकप्पो अहुणा संमोगकप्प बोच्छामि। तस्स पसाणहेर्ड गाहामुर्त इमं आई॥६॥णमिराया गवि दोसा संभोगविही उ पग्णिओ सुते । नाणचरणट्ठियाणं मणिय सुचनाणपुरिसहिं॥:.१७०॥७॥ रामेणं संमुजति सिहजो नेहिं सदि ११११ पत्रकल्पमाष्य -
मुनि दीपारवसागर
अनुक्रम [२४४९]
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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक
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“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------------- भाष्यं [२४९९] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
मम पीती जमावणुक्समेनपदोसणेवंण संमुंजे ॥८॥नाणचरणे स्याण एसपदेसो उपण्णिाओ सत्या।सं गणहरेहिं गहिये तो ते सुतनाणपुरिसा उ॥९॥कि कारणं अण्णा ? संभो. गविही उ एस साहुर्ण । भण्णा नाणादीर्ण परिवहढी एच होहिति तु ॥२५०० ॥ अण्णोऽष्णस्स समासे नाणमहीहितिजं च तं गहिता । होहिंति घिरा चरणे काहिति गिलाणकि 15 ॥१॥ जति संभोगगुणा ते ता सो कीस ग परिमुगति। मण्णति सरिसहिगेहिं व संभोगो ण पुण होणेहिं ॥२॥ अस्थि पुण केह पुरिसा निमंतिगेण पमाय कुवंति। आहारजयहि सेजा जुत्तो समुंजणायंघो।..१७१॥३॥ आहारादीतिय उम्गममादीजसुद्धगहणेणे । जे कुति पमाद तेसिसंचासदोसेन ॥४॥अणुमोवणपचतिओ माबंधो होहिनिति तेणं तुाणपिकीर संभोगो तेविय चगि(निगला बरं होता ॥५॥णणु रागदोसियत से जण एग एगऽसंमोगे?। मण्णति ण रागदोसा सुणसू जे कारण एवं ॥६॥ संमुंजणा विसुद्धा उनम्गह कुणा नाणचरणाण। संभुजमा असुबा परिसद वियाचाहि॥७॥ भोगेण पमाएर्ण तदोसाणं त हो समग्णा । एवं चरितभेदो कि पुण सो कुवति पमा ॥८॥ पूधारसपटिवदो मुब असुर्व करेह संमोग। अहवापि अजाणतो संभोगविहीए गुणवोसे ॥..१७२॥९॥ पूजाहेत पमादी सेवनि रसहेउगं च तस्सेवी । नाणादिलदकायं कुणह असुदं तु सो एवं ॥२५१०॥बारस मूलपदा खलु संभोगविहीय पणिया सुते। जत्तो पावादाणं मणितं हुदाण उक्सेपो ॥१॥ उबहिसुतमत्तपाणे, अंजलीपरगहे इय। पायणाय णिकाए य, अम्भुहान सियाचरे ॥ल०१६१॥२॥किइकम्मरस य करणे, पेयायचकरणेहय। समोसरण समिसेजा, कहाए य पधणे ॥ळ०१६२॥३॥ एते चारस भेदा संभोगविहीय समक्खाया। पावादार्ण तेसुथ इमेहिं ठाणेहि णायल०१६२॥४॥रागहोसाणुमओ जो संभोगं तु पालए पतं । सोहो गायबो तस्क्ले वो विसंभोगो ॥५॥ अहव इमेहि कारणेहि नियमा मवे विसंमोगो। संभोगविहिजो त चिवरीय आयरिजाहि॥६॥ उपरिम मज्झिम हेहिम संभोगड्डाणगं तिहा विभए। पडिसेहे पडिसेहो समणुण्णे होड समगुण्यो ।...१७३॥ ७॥ उपरिमएत्ति अहागढ मज्झिममा होति अप्पपरिकम्मा। सपरिकम्मा हिडिम संभोगविही तिहा एसो॥८॥ अहाकहा मिलति अहाकडेसु, भत्तं च पाणं तह घोषणं या। जहाकडा गच्छति हिटिमेसण हिहिया उम्भ अहाकडेसु ॥९॥ मज्झिमिता हिहिमते एम्मान हिद्विमा उपरिमेसुं। एसो तिविहोउ भवे संभोगविही समासेणं ॥२५२०॥ पडिसह पडिसहो सपरिकम्मं तु होड पटिप तस्स पुणो पडिसेहो उवरिछे मेलणा जाउ॥१॥ पडिसेहो वेदतुवरि उपरितो हिडिमे अणुण्णाओ। अह पटिसेहि अणुष्णा हॉति इमा त मुणेया ॥२॥ जो पडिसिद्ध एवं आयरती तस्स होइ पडिसेहो। पडिसेहो विगुत्ती अवितहकरणे अणुणा उ ॥३॥ केरिसएणं तु सम संभोगो तेसि होइ काययो । अहवाचिण कायचो' भण्णइश इणमो निसामेहि ॥४॥णचि एस मंदधम्मे ण मिहत्येसुन चेव अजाय। वायत्तरीविभत्तोऽवितरे पडिसेहणं जाणे...१७४॥५॥ दिनइ पेप्पइयवहा केसिपीण दिजए ण पेप्पर उाणपिरिणति पतित पनि दिनति पविउ घेपा नू॥६॥ संविम्गसंजयानं दिजइ पेप्पड य पढमभंगो उा संजतिनम्मे दिनविणपि पेप्पा कारणे नितिओ ॥१.१६४॥७॥ गिहिणनिस्थियाण पवि दिजा पेन्याई उनवरं च। नचि दिजति नवि पेपद पासस्थादीण सम्बेसि ॥१.१६५॥८॥ बावत्तरीविभत्तत्ति एस बारसविहो उसंभोगो। उहि गणित्रो बापतारि संभोगाणं पुणेयना ॥९॥बावत्तरी उ एसा एगतिगचउपचठकसंगणिया। जाचक्ष्य हॉति मेदा वेसु विसुबेसु संभोगो ॥२५३०॥ पडिसेहो असुदेसु कापो संभोग एस बक्लाओ । अहुणा उलिगकर्ण बोच्छामि जहाणपुपीए॥१॥जो युधिवक्ताओ जिणवेराणं तु बोहवी कप्पो । रुदणहकक्खमादी सोचेच हपि णायबो॥२॥ इति एस लिंगकप्पो पोम पडिसेवणाएँ कप्यं तु जारिसय सेविति सुबममा समासेर्ण ॥३॥गहणपरिझुंजणाए निवापाए तहेव बापाए।वापाए दुषगहणं निवापाएय नियमहर्ण ।..१७५॥४॥ पडिसेवणा उचिहा महणे परिझुंजणे य नायत्रा। एकेकाविय पिहा निवाचाते य बापाते ॥५॥ वाचासम्मी सुदं गेह असुदं च एतयमहर्ण। परिभुजनीवि एवं निचापातम्मि वोच्छामि ॥६॥ उमाममादीमुई गेण्हनि परिमुंजती य तियमेयं । अह पुण को पापातो' पकवणा नस्सिमा होइ॥७॥ असिवे ओमोदरिए राबडे भए आगादे । एकायतुगम. बादाय बाघाते नियधाते य ॥८॥ सुबमसुदंच जाहिं अहवा सबित्तमीसग वाचि । एतेसि दोहं तू मापाते गहण भोगे य॥९॥णिवाघाए छल्हषि अमिताणं तु गहण कायार्ण गहिबस्स य परिमोगो तसेच य होड़ कायको ॥२५४०॥ परिभोगे वाचाते गहिए पड़ा तु होज ने णात। जहाहाकांनी ताहेय तयं ण परिभुजे ॥१॥ वाचाते सेवतो अफिचमेयं तु चिंतए साहा होडतहा निजरतो जो पुण इणमो समायरति ॥२॥ पूजारसपडियदो ओसण्णाणं वाणुयत्तीय। चरणकरणं निगृहतितं जाणऽणुयत्तियं समणं ।।...१७६॥३॥ पूजारसहेवा बेईजह किनमेष एवं तु ।मा मे ण देहिति पुणो जह एसोऽकियकारित्ति ॥ ४॥ अहवा ओसवाणं तु अणुयत्तीय चेति को दोसो। आहाफम्मादीसु? गवरं मा कीरउ सयं तु ॥५॥सो गृहति चरणादी एवं तुच्छ सुतस्स साम । वम्हा उपहलेजा मुई मम्गंतुकिंचाणं ॥६॥णिस्साणपदं पीहइ अणिस्सविहरतयं ण रोएति। तं जाण मंदधम्म इहलीगगसर्ग
समणं ॥७॥ अहवा उम्मग्गो खलु णिस्साणं तु पीहए जो उ। तस्स उठेवसुतत्यं ण कई दोसा इमे तहियं ॥८॥ पंचमहायमेदो उकायवहो य तेणऽणुणाओ। (२७८) PA२११२ पञ्चकन्यभाष्य -
मुनि दीपरत्नसागर
दीप अनुक्रम [२४९९]
~259~
Page #260
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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [२५५०] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [4/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
प्रत
सुत्रांक
[२६११]
दीप अनुक्रम [२६११]
साहसीकवि(वि)यचार्ण का जो पपयनरहस्सं ॥९॥पतिसेवकप एलो आहुणा योच्छमणुवासणाकाप । अणुवास मासकप्पो वासाचासो हमेसित ॥२५५०॥ जिण बेर अहालंदे परिहरित अन मासपो । सेने कालमुवस्सय. पिंडरगहणे यणाणतं ॥१॥ एएसि पंचव्हषि अण्णोष्णस्स उ चउपदेहि ताखेतादीहि विसेसो जह तह वो समासेणं ॥२॥णस्थि उ खितं जिणकप्पियाण उकड मासकायो उ। पासा पाउमासा यसही अममनपरिकम्मा ॥३॥ पिंडो तुअलेक्कडो गहण तू एसणाहुरिमाहिं । तत्पवि काउममिगह पंचण्डं अण्णतरिवाए॥४॥राण अस्थि लेतं तु उग्गही जाच जोषण सकोस । णगरे पुण पसहीए विकाले उदि मासो 3॥५॥ उससम्मेणं भ. गिको अपचाएर्ण तु होज अहिजोषि। एमेव य मासासुविचठमासो होज अहिओपि ॥६॥ अममचनपरिकम्मो उवस्सओ एत्व भंग चउरो उ। उस्सग्गेणं पढमो तिषिण उ सेखाऽपादेणं ॥ ॥ मनं ठेवकई बाइलवकर पालिने उगेति। सत्तादिवि एसथाहिंसाविकसो गच्छवासोति ॥८॥ अहलंदियाण गच्छे अपडिहाण जह जिनाणं तु । गवरं कालविसेसो उचासे पणगचाळमासो ॥९॥ग पडिपाणं अहलदीणं तु अह गुण विसेसो। उम्गहों जो वेसि तूसो आचरियाण जामवति ॥२५६०॥ एगवसहीएं पण उनीहीओवगाम कुवंति। दिवसे दिवसे अण्ण अहति बीही नियमेणं ॥१॥ परिहारविसुदीर्ण जहेब जिणकषियाण गपरं ना आयथिल नु मनं गिण्हनी वासकाप च॥२॥ अजाण परिग्महियाण उग्गहो जो उसो तुजायरिए। काले दो दो मासा उपदे तासि कप्पो उ॥ ल०१६६॥३॥ सेसं जह राणं पिडो उपस्सओ यतहतार्सिा सो सरोपिय दक्हिो जिणकप्पो वेरकप्पो य॥४॥ जिणकप्षियनालंदियपरिवारसिदिवाण जिणकप्पो । राणं अजाण यमोसो धेरकप्पो उ॥५॥ दुविहो यमासकप्पो जिणकप्पो चेच बेरकप्पो या निरगहो जिणाणं घेराण अणुग्गहपवनो ॥६॥ उदवासकास्तीते जिनकपीण
गुरुग गुरुया या हॉति दिनश्मि विमम्मी राणं ते बिय लहुजओ (चिराण ते चिय बहुगलहूगा) ॥७॥तीसंपदावराहे पुट्टो अगुवासिय अणुवसंतो। जे जत्थपदे दोसा ते तत्ययगो समावणे ॥८॥पण्णरसुगमदासा दस एसणदोस. एते पणुचीसं। संजोयणादि पंच य एते तीस तु अकराहा ॥९॥ एएहिं दोसेहिं जइ असंपत्ति लमाती तहनि। वियते दिवसे सो खलु कालातीते वसंतो उ॥२५७०॥ वासावासपमाणं आयारे उप्पमाणिनं कप। एवं प्रणम्मुर्यना जाण अणुवासकार्य तु॥१॥ापारपकप्पम्मी जहमणितं तीति संचसतोचि। होइ अणुवासकप्पो तह संचसमाणऽदोसा उ॥२॥ दुविहे विहारकाले वासावासे तहेच उदरहे।मासानीने अनुपहिवासातीने भो उपही ॥३॥ उद्ध पदिएसबसु तीतेखं वय वासण उकये। घेचूर्ण उपही खलु पासातीतेसु कप्पतितावासउदुमहालंदे इसरि साहारणे पहले या उम्गहसंकमणं वा अण्णोपणसकासऽहिजते ।..१७॥५॥ वासासुपडम्मासो उबुन मासो सिंद पंच विणा । इसरिउ स्क्समूले वीसमणहा ठिता तु॥६॥साहारणा उ एने समडि(मगठि)याणं बहूण गच्छाण। एकण परिगहिया सवे पोहित्तिया होति। आसंक्रमणमष्णमयरस सकासे जाउने अधीयते । सुतायतदुभयाई मधे: अहवावि पडिपुच्चो ॥८॥ ते पुण मंडलियाए आवलियाए पतं तु गिण्हेजा। मंडलियमहिनले सचित्तादी उजो लाभो ॥९॥ सोउ परंपरएणं संकामति ताप जाच सहाणं । जहिय पुण आवलिया बहियं पुण अंतरे ठानि ॥२५८०॥ वे पुण ठित एकाए सहीए अहव पुष्ककिष्णा उ। अहवावि उ संकमणे दवस्सिणमो पिही अण्णो ॥१॥ सुत्नत्वननुभयचिसारयाण थोचे असंतईभेदे। संकमणदरमंडलिजापलियाकापअणुदासा ॥२॥ पुत्रद्विताण खित्ते जदि भागच्छेग अण्ण आयरिओ। बहुराय बहुआगमिजो तस्स सगासम्मि जइ सेत्ती ॥३॥ किचि अहिजेजाही यो सेतं पतंजदि हरिजाताहे असंघरता दोपिणऽपि साह विसति ॥४॥अपणोण्णरस सगासे तेसिपिय तस्य विजमाणाण। आमपणा तह चेव य जह भणियमनतरे सुने॥५॥ एवं नित्रापाते मास पठम्मासिओ उ राण। कप्पो कारणओ पुण अणुचासो कारण जाच ॥ ६॥ एसडणुवासणकप्पो अहणा अणुपालणाएं कापता ससेवसमृदिई बोच्छामि अहं समासेमं ॥७॥ मोहतिमिच्छाएं गते गडे सेनादि अहप कालगने । आयरिए नम्मि गणे पीलादिस्खणहाए..१७८ाल०१६४ाटाको उगणी वणिजो? माणद जद तस्स कोशि सीसो उसुत्तत्यतदुभएहि णिम्माओ सो ठवेयहो।ल. १६८॥९॥ असतीय तस्स नाहे ठावेपया कमेणिमेणं ना पाजकुले नाणे खेने सुहदक्खि सुत सीसे । ०१५५॥२५९० ॥ गुरुगुरु गुरुण तू वा गुरुसज्झिलओ पतरस सीसो वा परजाएगवासी एमादी होइनायतो॥१॥ असतीएं कुलियो वा तस्सऽसतीए गएमपसीओ। खेने उपसंपणे तस्सऽसनीए अयत्रो ॥२॥ सहक्लियस्स असनी नस्सऽसतीए सुओषसंपणो। एवं तु पियाण नहि सीसम्मि उ मगाणा नत्यि ॥३॥पादिष्टगणधरे पुण ठपिए तहियं तु मम्मणा इणमो । सुनस्थमहिलेले अणहिजते इमें विभागा ॥४॥ साहारणं तु पढमे पिलिए सेनम्मि नतिएं मुहबुक्से । अहिजते सीसे सेसे एकारस विमामा ॥५॥ द्विगणस्स उ पट्टि पवाययंतस्सा संवण्यरश्मि पढमे पडिपाए जनु सचिन ॥६॥ पुर्वपंदि पदिष्ठए जंतु होइ सथितं। संवघरश्मि चितिए त सब पचायतस्स ॥७॥ पुर्वपट्टेि सीसश्मि उजत होह सचित्त । संवारम्मि परमे तसा गणस्स आभवति ॥ ८॥ पुबुदिहगणस्सपि पदिई पाययंतस्स । संवच्चरम्मि बितिए सीसम्मिनुजेनुसभित्तं ॥९॥ पुर्वपरिडे सीसम्मित होति सचिसं। संबछरश्मि ततिए सब पवाययंतस्स ॥२६००॥ पदिहे गच्छे पाहिह पवायवंतस्स। संवष्ठरम्मि पढमे सिस्सिनीए जंतु सबित ॥१॥ पुर्वपदि सिरिसणीए जन होइ सबिता सपथरश्मि पितिए तं सब पवाययंतस्स ॥२॥ पुर्वषदि पहिन्टियाए उ जैन सचिनं । संवचटरम्मि पढमे ते सब पवाययंतस्स ॥३॥सेतुपसंपावरिओ सुहदुक्खी चेव जति तु संठपिजी। कुलगणसंचिचो वा नस्स इमो होनि 3 विवेगो॥४॥ संवष्ठराणि ति(इ)नि उ सीसम्मि पदिष्टयम्मितदिवस। एवं कुलिचगणिचे संवार संच इम्मासा ॥५॥ तत्वेषय गिम्माए अनिम्मए निग्गएइमा मेरा सकुले तिमि तियाई गणदुग संवच्छर संपे॥६॥ओमानिकारणेहि दुम्महत्तेण वाण निम्माए। काऊण कुलसमार्य कुलयरे वा उपईति ॥ ॥ गय हायणाई ताहे कुल न सिक्खाबए पयत्तेणाशय किंचि तेसि गिव्हइ गणो दुर्ग एग संपो उ॥८॥ एवं तु दुवालसहि समाहि जनि जत्थ कोइ निम्मानी। नाणेति अणिम्माए पुणो कुलादी उपहाणा॥९॥ तेणेव कमेणं तू पुणी.समाजोदपति चारस उ। निम्माए विहरती बाहर कुलादी पुणोवट्ठा ॥२६१०॥ तहविय चार समाओ निम्माओ सो सि गणहरो होइ। नेम परमनिम्माए इमा पिही होइ सि तु॥१॥ उत्तीसाइकते पंचविहुवर्मपदाएं १११ पत्रकत्यभायं
मुनि दीपरतसागर
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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक [२६१२]
दीप
अनुक्रम [२६१२]
भाग
27
Stitchessgvvvvv
“पंचकल्प” छेदसूत्र -५/२ ( भाष्य )
भाष्यं [ २६१२]
[३८/२], छेदसूत्र [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
१११४ भाष्यं
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...
..... आगमसूत्र
तो पच्छा पतंतुवसंपादे पञ्च तु एगपक्लम्मि ॥ २ ॥ पहलाएं सुतेन य चतुमंगो होति एमपक्लम्मि पुशाहिदवीसरिए पढमासति ततियभंगेणं ॥ ३ ॥ सहस्सवि कायां निच्छयोकिं कुठं व अकुलं वा? कालसभाषममते गारवखाएँ] काहिति ॥ ४ ॥ एसऽणुपाणकप्पो अडणाऽणुष्णातो दिसुतेहि सिद्धो अणुतकप्पो णवरेगद्वाणि योच्छामि ॥५॥ किमणुन ? कस्सऽणुता? केवतिकाल पत्तियाऽणुचा ? आपरियन्त सुतं वा अणुष्णच जं तु सागुना ॥ १७९ ॥ ६ ॥ कस्सी सीसस्स गुरुगुणजत्तस्स होयऽणुष्णा उ केवइकालपविती आदिकरेणुसभसेस्स ॥ ७ ॥ एगडियाणि तीय उ गोचाई हवंति नामभिजाई बीस तु समासेणं पोच्छामी ताणिमाई तु ॥ ८ ॥ जणुष्णा उष्णामणा णमण णामणि ठवणा पभावना बिदा (ता) रे। तदुभयहिय मज्जाता कप्पे समय पाए य ॥ १८० ॥ ९ ॥ संग्रह पर निजर थिरकरणमच्च्छेद जीव (त) बुढिपयं एपचरं चैव तहा वीस अणुष्णा णामाई ॥ १८१ ॥। २६२० ॥ अणुणवतऽणुष्णा उष्णामिय उसिमंति उष्णमणी गिहिसाहिं णमिज तम्हा ऊ होइ नमणिन्ति ॥ १ ॥ सुतधम्मचरणथम्मे णामपती जेण णामणी तुम्हा ठपिओ आयरियन्ते जम्हा उ तेण उणन्ति ॥ २॥ विज गणाहिवत्ते होइ पमू तेग पमयो सबेसिं नागादी होती पत्र पति एमा ॥ ३॥ आयरियते पमविए वेन वियारो दिजइ गमो से तदुभयहियति नभइ इहपरलोगे व जेण हियं ॥ ४॥ गणधर मे घरेली जम्हा ऊ तेण होनिक कप्पोतियप्पो कसमणे (करण) गं ॥ ५ ॥ नामादि मोक्खमग्गो सुत्त (सोव)म्मि तितोति तो भवति मग्गो जम्हा उ माचकारी गाओ वा एस तो जातो ॥६॥ दवे भावे संगहो दहे आहास्यस्वमादीहिं। भावे नाणादीहि उ संगैव्हति संगही तेण ॥ ॥ दुविहेण संचरेण इंडियनोईदिएहिं जम्हा उ अप्पाण गणं च वहा संचरयति संचरो तम्हा ॥ ८॥ गणधारणमागिलाए कुणमाणो निजरेड कम्माई अन्य निजरावे तम्हा ॐ निरा होइ ॥ ९ ॥ वारिता उता इव पर्कपमाणाण तरुणमादीर्ण होइ चिरादईयो त थिरकरण ते तु ॥ २६३० ॥ जम्हा उ अवोच्छिती सो कुणई नापचरणमाईणं तम्हा ललु अच्छे गुणप्पसिद्धं हषति णामं ॥ १ ॥ तित्यकरेहिं कयमि गणधारीणं तु तेहिं सीसाणं ततो परंपरेण आयमिगं तण जीयं तु ॥ २॥ ब य नामचरणे गणं तु जम्हा उ तेग बुद्धिपदं परं पहाणमेयं सचेसिं रायदेवाणं ॥ ३ ॥ इति एसऽमुलकप्पो जहाविही बचिओ समासेणं ठवणाकणं एतो वोच्छामि महाणुपुत्रीए ॥ ४ ॥ तिविहोठवणाकप्पो कुले गये चेत्र तह व संधे थे। एतेसि रुपयं वच्छामि जाणुपुत्री ॥ ५॥ कुलमेरेहिं गणेण व जा मेरा ठापिता भये नियमा सो कुलवणारूप्पो एवं गणे होइ संघे ॥१८२॥ ६ ॥ केरिया पुण बेरा कुलगणसंघाण होंति उ पमाणं ? भण्णइ गुणसू इणमो जेहिं गुणेहिं तु ते जुत्ता ॥ ७॥ कप्पाकप्पविहिष्णु सुत्तत्यविसारया मुतरहस्सा जे चरणकरणजुत्ता ते सुद्धनयाण उपमानं ॥८॥ कप्पाकप्पविहिष्णू सुतत्यविसारया सुपरहस्सा जे चरणकरणहीणा ते सुद्धणयाण मइया ॥९॥ नेवा खलु क (अ)जा असती परणहियाण पेराणं होणोषि सुसमिदो मज्झत्यो होइ उ पमानं ॥ २६४ ॥ कह पुण ठापिते ते उ पमाणं तु ते ठाणे कुलगणसंघा पेरा ? मग इणमोनिसामेहि ॥१॥ इच्छंकारनित्तो पियधम्म तिन्ह कोइ एकतरो सो होति विगत्येरो तिमचरितवियाणओ वी (पी) रो ॥२॥ नाऊण गुणसमिदं जोगं तु कुलादिये ठाणस्स काऊणिच्छाकारं कुलादिनो बेति तो इणमो ॥ ३ ॥ उन्मे हो पमाणं कुरा राणोगं तु एवं तु कुलादीहिं तिगवेरा ऊ ठक्जिति ॥ ४ ॥ तिगचरितं जाणइति चरित मजायमेव एगडा तं तु तहाविहि जाण तिपि कुलादिणाणं ॥ ५ ॥ पासपोसकुसीलठाणपरिरक्खतो दुपक्वेषि सो होति निगत्येरो तिमथेरगुणेहिं उक्उत्तो ॥ ६ ॥ पासत्यादीठाने पती एस रक्खाओ होइ अहवा सति सदा (यससी) ए पासस्यादीचि पालेह ॥ ७॥ परिजने रागादि रखने साहुसाहुजिदुपले अहवा अप्पाण परे तिगधेरो संघधेरो उ॥ ८ ॥ एसो ऊ लिमयेरो तिमथेरगुणेहिं होति संपन्नो अडणा वीसुं वसुं कुलादियेरे पक्क्वामि ॥ ९ ॥ चरणकरणे समम्यो जो जन्य जदा कुलपहाणो । सो होइ कुलत्थेरो कुलपरियवियारओ धीरो ॥ २६५० ॥ पासत्यासन्नकुसीलठाणपरिरक्खतो दुपकखेवि सो होइ कुलत्ये कुलथेरगुणेहिं उडतो ॥ १ ॥ चरणकरणे समम्गो जो जत्य जरा गणपाणो । सो होइ गणत्थरो गणचरियवियाणओ बीपी)ओ ॥ २ ॥ पासत्यासन्नकुसी उठाणपरिरक्लओ दुफ्क्लेचि सो होइ गणत्वेरो गणयेरगुणेहिं उपउत्तो ॥ ३ ॥ चरणकरणे समग्गो जो जन्थ जदा जुगप्पहाणो । सो होइ संघधेरो सीनपरसमो पुरिससीहो ॥४॥ एसो उ मूलसंघों आपुच्छणगमणकरणसहित निस्सेसको कुलप्पणी देव ॥ ५ ॥ दंसणनामचरिते जा पुत्र परूवणाऽऽपरण्या व एसो उ मूलसंघो तिविहा मेरा करणजुता ॥ ६ ॥ विपि प विजा आयारादीसुविचारितं सम्ममापरतो बति तु संचों तहा बेरी ॥ ७॥ जो सो हीण परितो अण्णस्स असतीत पुष्ठभणितो कुहयेराति उज्जिति तस्वदेसो इमो होइ ॥ ८॥ हो पसणसंपतो सरीरमार्थकता अस हुओ वा । चरणकरणे असतो सुद्ध मगं परुविना ॥ १८३ ॥ ९॥ वस बाजीमादी मूलजरादी तु होइ आतंको घितिसारीरवलेणं हीणी असह मुणेयो || २६६० ॥ एएहि कारणेहिं अकम्पपडिलेवणं करेंलो | सुद्धा परुये अप्पाहणिया अजो एन्तो ॥ १ ॥ कापपणयस्त भेदा सोचा गया तब चेन्नूगं चरणकरणे विशुद्धे आवरणपरूवणं कुह ॥ २॥ आयरिसमासाओ सोचा गया य चेतुमत्येणं हियए क्वत्थयेउं आयरण परूषणा कुजा ॥ ३ ॥ कम्पपणगस्स भेदो परूविओ मोक्खसाहसाए चरिकण सुविहिया करेति दुक्खक्स्वयं धीरा ॥ ४॥ पंचविहमुत्तकप्पाण विभासा वित्यरं पमोत्तूर्ण गहिया सीसहिया अोच्छिलया चेव || २६६५ ॥ समूहमयी वामकरम्महियपोत्थया देवी। जक्लकुहंडीसहिया दंतु अधिग्धं माणं ॥ १ ५०॥ ) जैनसाहित्यसुधापानपीन श्रीपुष्यविजयजी विहितादर्शात्कीर्णमिदं पंचकल्यच्छेदभाग्यं सिद्धातिलहडकागत श्री आगममंदिरे वीरविमोः २४६९ मुनि दीपसागर
पंचकल्प छेदसूत्र [५/२] 'मूल' परिसमाप्तः
मूल संशोधकः सम्पादकश्च पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब किंचित् वैशिष्ट्य समर्पितेन सह पुनः संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागरजी [M.Com. M.Ed., Ph.D. बुतमहर्षि
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[३९] श्री महानिशीथ (छेदसूत्रम् - ६)
नमो नमो निम्मलदंसणस्स
पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित - सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः
“महानिशीथ” मूलं
[मूलं एव]
[आद्य संपादकश्री]
पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.
(किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह )
पुन: संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.,श्रुतमहर्षि)
'सवृत्तिक - आगम - सुत्ताणि' श्रेणि भाग-२७
28/07/2017, शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल ५
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आगम
(३९)
प्रत
सूत्रांक
[8]
+
गाथा
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दीप अनुक्रम [3]
Sexscev
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं )
DARKSTA
-
• उद्देशक [-], - मूलं [१] + गाथा ||१|| -
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"महानिशीथ" मूलं
अध्ययन [ १ ],
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ....... ....आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६]
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ॐ नमो तिवस, ॐ नमो अरहंताणं सूर्य मे आउसंतेगं भगवया एवमक्वायं इह खलु छउमत्यसंजमकिरियाए बट्टमाणे जेणं केई साहू वा साहनी वा से णं इमेण परमननसारसम्भूयत्यप महा में मा
अणुसमयमहष्णिसमणालसत्ताए सययं अणिविष्णे अणूण (गण) परमसदासंगरामागए विनियाने अणिगृहियवलपिरियपुरिसकारपरकमे जगिलाणीए बोसट्टचतदेहे सुणिच्छिए एगम्मचिने अभिनवणं अभिरमा १ णो णं रामदोसमोसियायनाणावणाणेगप्पमायइरिससायागारवरोऽज्झाणविगहामिच्छन्नाविरहदुजोगजणाययणसेवणाकुसीलादिसंसग्गीसुण भक्लाणकलह जातादिमयमच्छरामरिसममीकार अहंकारादिअणेगनेयभिष्णतामसभावकलुसिएणं हियएवं हिंसालियचोरिकमेहुणपरिहारंभसंकप्पादिगोयर जज्जावसिए पोरपड महारादपणचिणपावकम्ममललेवसलिए अबुदासदा । २ एकमुतणिमिसणिमिसमंततरमवि स विरतेजा जहा ३ उचलते सबभावेण चिरते व जया भवे सत्य सिए आया, रागेतर मोहरजिरे ॥ १॥ तथा संवेगमावणे, पारलोइयत्तणि एगोणेसती समं. हा म कल्प गच्छ ॥ २ ॥ को धम्मो को बज नियमो को तवो मेऽणुविडिओ कि सीलं धारिये होग को पुण दाणो पर्याच्छिओ ? ॥ ३ ॥ जस्साणुभावजोऽण्णत्य हीणममुत्तमे कुठे सग्गे वा मणुयलोए वा सोक्खं रिद्धिं जहं ॥ ४ ॥ अहवा किंच विसाए? सर्व जाणामि अन्तियं दुधरियं जारिलो वाऽहं जे मे दोसा प जे गुणा ॥ ५॥ घोरंधयारपायाले गमिस्सेऽहमणुत्तरे जन्य दुक्खसहस्सा ऽणुभविस्सं चिरं वह ॥ ६ ॥ एवं सवं चियाणते, धम्माधम्मं सुहा जायेगे गोयमा पाणी, जे मोहाऽऽयहियं न चिए ॥ ७॥ जे यावाऽवहियं कुजा करथई पारलोइयं मायाडंभेण तस्सावी, सयमवी (पी) तंन भाव ॥८॥ आया ममेव अन्तार्ण, निउणं जाये जहट्टियं आया चैव दुष्पि धम्मदिय ॥ ९ ॥ जं जस्साणुमयं हि सो तं ठावे सुंदरपए। सद्द्द्ल नियतणए तारिस कुरेवि मा बिसि ॥ १० ॥ अततीयाऽसमिया सलवा (यज) णिनो कप्पयंतऽप्पणण, दुई क्कायचे मणसि य संजय तेचते निहोस तं च सिडे बनगयकले पक्खचायं विमुचा विक्ततपाचं कलुसियहियये दोजाहिं गई ॥ १ ॥ परमत्वं तत्तसिद्धं सम्भूयत्यपसाह नभणियाणुहाणेणं, ते आया जिए सकं ॥ २ ॥ सु नर्म भये धम्मं उत्तमा उपसंपया उत्तमं सीलधारित उत्तमा य गती भवे ॥ ३ ॥ अत्येगे गोयमा पाणी, जे एरिसमवि कोडि गए ससा चरवी धम्मं, आयहियं नावमुज्झई ॥ ४ ॥ ससो जवि कट्टुग्गं पोरं वीरं तवं परे दि वाससपि ततोऽवी तं तस्स निष्फलं ॥ ५ ॥ सपि भन्नई पात्रं, जे नालोइयनिंदियं न गरहियं न पण्डितं कथं जंजय भाषियं ॥ ६ ॥ मायाममत महापच्छन्नपाच्या अयजमणाचारं च साई कम्मसंगहो ॥ ७ ॥ अजमं अहम् च निसीताविय सकसत्तमसुद्धी य, सुकयनासो तद्देवय ॥ ८ ॥ दुइगमणऽणुत्तारं दुक्खे सारीरमाणसे अच्छि य संसारे, विग्गोषणया महंतिया ॥ ९ ॥ केसिं विरुरुवतं दारिदय (रं) दोहगया हाहाभूयसवेयणया परिभूयं च जीवियं ॥ २० ॥ निधिण नितिंत कुरतं निदय निकिवयायियजित गूढहियत्तं वकं विवयचित्तया ॥ १ ॥ रागो दोसो य मोहो व मिच्छतं घणचिकर्ण संमग्गणा तय, एजस्सित्तमेव ॥ २ ॥ जाणाभंगमवोही व सत्ता व भवे भवे। एमादी पाचसहस्स, नामे एगडिया बहू ॥ ३ ॥ जे सहियहिययस्स, एगस्सी बहु भवंतरे सगोवंगसंपीओ, पसांति पुणो पुणो ॥ ४ ॥ से दुि समक्लाए, सहदे सहमे य चायरे एकेके तिविहे ए. पोरुम्गुग्गतरे तहा ॥ ५ ॥ पोरं चउविहा माया, पोरगं माणसंजया माया लोभो य कोही य, घोरुगुग्गयरं मुणे ॥ ६ ॥ समवायरमेएणं, सप्पमेयंपिमं मुणी अइरा समुद्धरे लिप्यं, ससाको णो वसे वर्ण ॥ ७॥ खुडलगिलि अहिपीए. सिद्धत्यय सिही संपलये लयं पनि पुढे बिजोटई ॥ ८ ॥ एवं तमुतणुयरं पावसमशुद्धियं भवभवंतरकोडी, बहुसंतावपदं भवे ॥ ९॥ नयवं सुदुद्धरे एस. पावसह उद्धरिपि ण याणती, बहवे जहमुदरि ॥ ३० ॥ गोयम निम्मूलमुद्धरणं, निययमेतस्स भासियं सुदुद्धरस्सावि साइरस, सगोवंगभेदिनी ॥ १ ॥ सम्मदंसणं पढमं सम्मं नाणं विज्जियं तच सम्मा रितं एभूयमिमं तिगं ॥ २ ॥ खेती भूतेवि जे जित्ते (जीए), जे गूढेऽदलणं गए। जे अस्थी ठिए केई, जेऽस्थिमज्झ (भं) तरं गए ॥ ३ ॥ सर्वगोचंगसंखुते, जे सम्भंतरबाहिरे सांति जेण सती ते निम्मूले समुद्धरे ॥ ४ ॥ ह ना कियाहीण, या अाणतो किया पासंतो पंगुलो दो यात्रमाण अंधओ ॥ ५ ॥ संजोगसिद्धी अउ गोयमा फलं न एगचकेण रहो पयाइ अंधो य पंगू य वणे समिया, ते संपत्ता नगरं पचिट्टा ॥ ६ ॥ नाणं पयासय सोहओ संजोय गुप्तिकरोतिषि समाओगे गोयम मोक्खो न अण्णा ॥ ७ ॥ ता णीसाडे भवित्ताणं, समसाविवजिए। जे धम्ममणुचेना, सबभूकंपना ॥ ८ ॥ तस्स तम (सं सफल होगा, जम्मजमंतरेसुवि। विलास (प) रिदीप लभेजा सास सुहं ॥ ९ ॥ सामुदरिङका मेणं, खुपसत्धे सोहने दिने तिहिकरणमुहते नक्खते, जोगे लग्गे ससीपले ॥ ४० ॥ कायडायविलक्वमणं, दस दिने पंचमंगलं परिजवियष्वऽसयं(पहा), दुवरं अट्टम करे ॥ १॥ अममतेन पारिता काऊणाविलं तो पेय साहू व बंदिता करिज संतमरिसिये ॥ २॥ जे केंद्र तु संलते, जस्सुवरि चितिये जस्सय कथं जेणं, पडि वा कथं नये ॥ ३ ॥ तम् सहसतिबिहे, बायां मनसा य कम्मणा। णीस सबभावेण दार्ड मिच्छामिदुकडं ॥ ४ ॥ पुणोवि बीयरागाणं, पडिमाओ यालए। पत्ते संपुर्ण वंदे, एगग्गो भतिनिम्नरो ॥ ५ ॥ वंदित्तु चेइए सम्म, उमत्तेन परिजये। इमं सुदेषयं विणं, लक्खा पाए ॥६॥ उपसंतो सब्दमात्रेणं, एमचित्तो सुनिन्छ। आउत अब्यवखितो रागरइअरइयजिओ ॥४७॥ अण्अम्ओ उडण्अम् अउम्मओ अण्डा रणजम् अउम्ण्जम्ओ स्म्म्हणसउण्अम् अउम्ण्जम्ओ ससबलदण्अम् अउम्णम्ओ सम्बउसहिल ईण्यम् अम्जम्ओ अण् अम् अद् आणस् अरण्यम् अउम्ण्अम्ओ भगवओ अरहओ महइमहावीरवद्धमाणस्स धम्मतित्यंकरस्त अम्णम् सम्वधम्मवित्वकराणं अउम्णम् सम्यसिद्धाणं अरम्णम् सव्वसाहूणं अउम्णम् भगवतो महणजणस्स अमणमओ भगवजो सुयजणस्स अम्णम्जो भगवओ १११५ महानिदसूत्र अस
मुनि दीपनगर
अत्र प्रथमं अध्ययनं “ शल्यउद्धरणं” आरभ्यते
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Steve
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आगम (३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूल) ------- अध्ययन [१], -------------उद्देशक [-],---------- मूलं [४] +गाथा:||४८||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
गाथा
||४८||
अउहाण आणस्सअउम्णम्जओ भगवओमणपजवण्आपस अउम्णम्ओभगवओकएक्लपआणस्स आउम्णम्ओ भगवतीए सुयदएवअआए सिज्मउमए मनाहिया(एसा महा)विजा अउम्णमओ भगवओ अउम्णम्ओअम् अउम्णजम्मो अमनाउअम् अत्रमाउसम्णम्ओ माऊलभिवतीलवणं सम्मईसणे जउमणमओ अदज्ञास्त्रसूईल अगसहस्साहिहिवस्स ईअम्ग पदपण्इजाण पईसात सयसनगनण सब्बरवणिम्महणपरमनिपुर्दकारस्सर्ग पश्यणस्स परमपविसुत्तमस्सेति ।४ाएसा पिंजा सिद्धतिएहि अक्सरहिं लिखिया, एसा य सिद्धतिया लिपी अमुणियसमयसम्भावाणं सुधरेडिंग पण्णवेवडा तहय कुसीलाणं पा५माए पपरचिजाए. साहा। अत्ताणर्ग। अहिमतऊण सोविज्ञा. संतो दतो जिइंदिनी ॥४८॥ गवरं सहामुह सम्म, सुविणगं समचारए। ज तत्वसुविण (मे) पासे, तारिसर्ग तं तहाभये ॥९॥ जहणे सुंदर पासे, सुमिणगं तो इमं महा। परमस्थतनसारन्थ, सादरणं मुणेतुणं ॥५॥ देवा आलोयणं सुई, अट्टमयठाणविरहिओ।म)जतो घम्मसिस्थयरे, सिद्धेशोगासंठिए ॥१॥ आलोएताण णीस, सामण्णेण पुणोविया वंदिता पेहए साहू.विहिपुषेण समापए॥२॥ खामिना पायसहस्स. निम्मूलदरणं पुणो। करेना विहिपुरंग, रंजली ससुरासुर जगं ॥३॥ एवं होऊण निस्सायो, सबभावेण पुनरनि। चिहिपूर्व चेहए बंद, खामे साहम्मिए तहा ॥४स नवरं जेण समं बुच्छो, जेहिं सहि पषिहरिओसिरफुल चोपनी जेहि सर्व वा जो व बोइओ ॥५॥ जोऽविय कजमकने पा, मणिो खरकमसनि। पटिमणिय जेणवी किचि, सो जा जीव जद मो॥६॥ खमियत्रो सब(क)मावेण, जीयती जन्य मिई । ताप गंण पिणएण, मोऽवी साहसक्खियं ।। आ एवं-खामणमरिसामणं काउं, तिहयणस्सवि भावओ। सुद्धोमणवइकाएहि.एवं पोसिन निच्छओ॥८॥ समावेमि अहं सो, सोजीचा खमंतु मे। मित्नी मे सबभूएस. वरं मनाण केणई ॥९॥ खमामहपि सबेति, सामावेण सबहा। मचे मसुचि जंतूणं, बाबा मणसाब कम्मुणा ॥६॥ एवं बंदिजा चेइय, साहू सक्लं विही यऽओ। गुरुस्सानि विही पूर्व सामनमरिसामर्ण करे।।१॥ समावेनुं गु सम्म, नाणमा हिम समत्तिओ। काऊण दिऊण च, विहिपुर्ण पुणोऽपिय ॥२॥ परमत्यततसारस्थ, सावरणमिमं मुणे । मुगेला तहमालोए (जह आलोयतो चेय), उप्पए केवल नाणं ॥३॥ विजेरिसभापत्येहि. नीसाडा आलोयणा । जेणालोयमाणेण चेच, उप्प नरवेष केवल ॥४॥ केसिचिसाहेमो नामे, महासत्ताण गोयमा। जेहिं भावेणालोययंतेहि केवलनाण समुपाइयं ॥५॥हाहा बुख कटे साहु.हाहा बुद्ध विचितिरे । हाहा हुदद मागिरे साह, हाहा दुट्ठ मणुमते ॥६॥ संवेगालोयगे नहय, भानालोयणकेवली। पयलेनकेकाही चेच, मुहर्णतगकेवली तहा ॥७॥ पछिलकेवरली सम्म, महाचरम्गकेवली। आलोवणाकेवली तहय, हाडं पारित्ति केली ॥८॥ उम्मुनुस्मरणपत्रपए. हाहा
अणयारकेवली। सावन न करेमिति, अपसंडियसीलकेवली ॥९॥ तवसंजमवयसरपसे, निंदणे गरिहणे तहा। सबतो सीलसंरक्खे, कोहीपच्छित्तएऽपिय ॥ ७॥ निप्परिकम्मे अकंदवणे, अणिमिसच्चडी य केवली। एगपासिन पदो पहरे, तह मूणायकेवली ॥१॥नसको काउ साम, अणसणे ठामि केवली। नवकारकेवली तहय, तिघालोयणकेनली ॥२॥ निस्सलकेवली तहय, साबरणकेवरही। धमोमित्ति संपुणे, सताहंपी किन केवठी ॥३॥ ससतो
हं न पारेमि, पलकहपयकेवळी । पक्खमुदानिहाणे या बाउम्मासी य केवली ॥४॥ संवच्छरमहपषिकले, हाचलं जीवियं नहा। अणि सणपिदंसी, मणुयत्ते केपली तहा ॥५॥ आलोयनिंदवंदियए, पोपव्हिनदकरे । उक्सी बसगपत्नेि , समहिवासमकेवली ॥६॥ इत्योसरणनिवासे प, अबकवलासिकेवठी। एमसिस्थगपच्छिन्ने, बसवासे केवली तहा ॥ ७॥ परिउत्तानगे चेब, पच्छितदयकेवरही। पच्छित्तपरिलमत्ती य, अहसाउकोसकेबली ॥८॥ नमुद्धीचिन पचित्ता. ता वरं सिप्यकेचाही। एग काऊण पच्छित, वीर्य न भवे (जहेब) केवली ॥९॥तचापरामि पन्छि, जेणागच्छद केवली। तं चापरामि जेण तसं सफल होह केवरही ॥८॥ कि पचिनं चतोऽहं. चिई जो तप केली। जिनाणमाणं णलपेजपाणपरिचयणकेवाडी॥१॥ अहोही सरीर मे, नो घोही चेष केपली। सुरुदमिणं सरीरेणं, पायणिरहण केवली ॥२॥ अणाइपावकम्ममल, निडोरेमीह केबी।बीयं तं न समायरित्र, पमाया केवळी तहा॥2॥हेलोप(पओ) सरीरं मे, निजरा भवओ केवली। सरीरम्स संजर्म सार, निकलकतु केवली ॥४॥ मणसापि संदिए सीहे, पाणे ण घरामि केवली। एवं बाकायजोगेणं, सीट रक्से अहं केवाली ॥५॥ एवं मया अगादीपा. कालाने पुणो मुणी। केई आलोषणासिदे, पचिहत्ता केई गोषमा! ॥६॥ खवा दंवा विमुता य, जिईदी सामासिगो। उकायसमारंभाउ, चिरते तिचिहण उ॥७॥ निवडासनसंवरिया. इन्धिकहासगवलिया। इत्थीसलापविश्या य, अंगोगणिरितखणा॥८॥ निम्ममता सरीरेपि, अप्पडिपदा महासया (यसा)। भीया इस्थिगम्भवसहीणं, बहुदुक्लाउ भवाउ वहा॥९॥ता एरिसेणं मानेण, वाया जातोयगा। पश्चिानंपिय काय नहा जहा वेब एहि कर्ष ॥५०॥न पुणो नहा आलोएयर,मायामेण केणई। जह आरओएमाणेण, चेव संसारखुददी भवे ॥१॥ अर्णतेऽगाइकालाउ, अनकम्मेहि दुम्मई।बहुविकप्पकालोले, जालोएताची अहो गए॥२॥ गोषम! केसिचिनामाई. साहिमोस निबोधय। जेसालीयणपच्छिते. भाषदोसिवाकलुसिए॥३॥ ससाहे पोरमहं दुस्सं, रहिआर्स सुसह। अणुहविनिचिहति, पावकम्मे नराहमे॥४॥ गुरुमासंजमे नाम, साह निबंधसंतहा । विही वायाकुसीले य, मणकुसीले नहेपाय॥५॥ मुहमालोयगे नहय, परवचएसालोयगेतहा। किकिचालोयगा तह य,ण किंचालोयगे वहा ॥६॥ अकयालोयणे वेब, जगरंजवणे नहा । नाई काहामि पहिल. इम्मायणमेच य ॥ ७॥ मावादमपांची य, पुरकहतमचरणकहे। पठितं नस्थि मे किचिन कयालोवणुगरे ॥८॥ आसणारतीयणक्खाइ, लहुपच्छिलजायगे। अम्हाणालोदवर्ण चेहे. सहचालोयगे तहा॥५॥ गुरुपतिनाहमसके प. गिल्डाणावर्ण कहे। आरमदालोयगे साह, सुग्णासुनी तहेव य॥१०॥ निच्छिमेचि य पश्उित्ते, न काहं डिजायगे। रंजवणमेत लोगाणं, पायापभिडले नहा ॥१॥ पडिक्नणपच्छिते, चिरयालपवेसगे नहा । अणणुहियपायनिडने, अणनणियामहायरे तहा ॥२॥ आउदीय महापावे, कंदापा दपेनहा। अजयणासेषणे नह य, सुयायपप्छिने नहा ॥३॥ विद्वपोस्वयपच्छिते, सयपत्तिकणगे। एपाय इत्य पच्छित्त, पुवालोइयमणुस्सरे ॥४॥जाईमपसकिए चेब, कुलमयसंकिए नहा। जातिकुलोभयमयासंके, मुतलाभेस्सिरियसकिए नहा ॥५॥तयोमए संकिए चेव, पंदिवमयसंकिए नहा । सकारमयकुचे य, गारचसंचूसिए तहा ॥ ६॥ अपुजो पाविहं जमे, एगणमेप चिंतगे। पापिड्डाणपि पावतरे, सकलुसचित्तालोयगे ॥ ७॥ परकहानगे चेच, अविणयालोयगे तहा। अविहीआलोयगे साहू, एनमादी गुरप्पणो दाअणतेऽणाइकालेणं, गोयमा! असदुक्सिया। अहो अहो जाव सत्तमियं, भावनोसको गए॥९॥(२७९) । २११६ महानिशीयाडेदस्व अन्सर
मुनि दीपरजसागर।
दीप
अनुक्रम
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आगम
(३९)
"महानिशीथ" - छेदसू ------- अध्ययन [१], ------------- उद्देशक [-], ---------- मूलं [६] +गाथा:||११०||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
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गाथा
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गोयमऽणते चिट्ठति जे, अणादिए ससतिए। नियमापदोससाताण, मर्जत विरस फल ॥११०॥चिहासंति अजावितेण सण सथिए। अगंतंपि अणागयं कालं, नम्हा साहं न धारए।१११॥ वर्ण मुणिनि बेमि। गोयम ! समणीण, णो संखा जाओ निकलुसनीसाइविसुबसुदनिम्मलक्यणमाणसाओ अजमपविसोहीए आलोहचाण सुपरिफड नीसंक निखिल निरवयव नियबस्थिमाइयं सर्वपि भावसार अहारिह नको कम्मं पायनिहलमणुचरिनाणं निदोषपावकम्ममलवकर्मकाओ उप्पणदिवबरकेबाटणाणाओ महाणभागाओ महायसाजो महासत्तसंपात्रो मुगहियनामधेयाओ जगंतुनमसोक्खमोक्खं पनाओ।६। कासिचि गोयमा' नामे, पुषमागाण साहिमो। जासिमालोय. मागीणं, उपग्णं समणीण केवलं ॥११२॥हाहाहा पाक्कम्माह, पाचा पावमती अहं । पाविट्ठाणपि पावरा, हाहाहा दुहि चिंतिमो ॥३॥ हाहाहा इस्थिभाव मे, नाविह जमे उपट्टियं । नहावी गं पोरवीरगं, कई नवसं जम घर ॥४॥ अर्णतपावरासीओ. संमिलियाओ जया भवे। ताया इत्यित्तर्ण सम्मे, मुर्द पाचाण कम्मणा ॥५॥ एनत्यपिढीभूताण, समुदये तणुतं तह । करेमि जहन पुणो, इत्थीऽहं होमि केवली ॥६॥ दिट्टीएविन खंडामि, सील हंसमणिकेली। हाहा मगेण में किपि, युदई विचितियं ॥ तमालोइया लहुँ सुदि. गिण्हेऽहं समणिकेवली। बठूण मज्या लावणं, रूर्व कतिदिति सिरियामा परपयंगाहमा जंतु, खयमनसणसमणी य केवली। वानं मोनृण नो अनो, निमा(छियं महसणु चिठवे ॥९॥ यकायसमारंभ, न करेऽहं समणिकेचली। पोग्गलकालोम्मुज्सतं. गाहिजहणतरे तहा ॥१२०॥ जणनीएविण सेमि, सुसंगुनगोचंगा समणीय केवली। बहुमनतरकोडीओ, घोरं गम्भपरंपरं ॥ १॥ परियहतीए मुख्य में, गाणं चारितसंजय । माणुसजम्मं ससंमत, पाचकम्मक्खयंकरं ॥२॥ता सा भावसात, आलोएमि खणे खणे । पायश्चित्तमहामि, पीयन न समारों ॥३॥ जेणागच्छद पछिल, वाया मणसा य कम्युणा। पुदविदयागणिवाऊहरिबकायं तहेव य॥४॥ बीयकायसमारंभ, बितिचउपचिदियाण या मुसाणंपिन मासेमि, ससरस्वपि अविनयं ॥५॥न गिरोह सुमणतेवि, ग पत्य मणसावि मेहर्ण। परिगहन काहामि, मूलनरगुणरवालणं तहा ॥६॥ मयभयकसायदंडे, गुत्तीसमितिविएस या नह अट्ठारससीलंगसहस्साहिटियता समापनमाणजोगे, अभिरमं समणिकेवली। तेलोकरस्रवणक्वंभधम्मतिथंकरण जंटा नमहं लिंग धरमाणा, जापिजते नितीलिङ । मनमोममीय दो खंडा, फालिजामि तहेव य ॥९॥ अह पक्खिप्पामि दित्तगि, अहवा छिने जई सिरे। तोऽवीऽहं नियमपयोंर्ग, सीलबारितखंडणं ॥१३॥मणसाची एकजम्मकए. कुर्ण समणिकेली। खासागजाईसु. सरागा हिंडिया अहं॥१॥ चिकम्मपि समायरिये, अणते भवभयंतरे । तमेच खरकम्ममहं, पचनापडिया कुणं ॥२॥ धोरंधयारपायाला जा(जेणं णो णीहरं पुणो । वेदिय हे माणुस जम्म, नंच बहुदक्समावर्ण ॥३॥ अणिचं स्वविसी, बहुदंड दोससकरातत्यादि इत्थी संजाया, सयललोकनिदिया गया वहाविधावियं(3) धम्म, णिनिग्यमणंतराइयं । साहं तं न पिराहामि, पाचदोसेण केणई ॥१५॥ सिंगाररागसपिगार, साहि लास न चिहिमो। पसंताएवि रिडीए, मोनु धम्मोपएस ॥६॥ अर्थ पुरिस न निमार्य, माल समणिकेवली । तं वारिस महापा, कार्ड अकहणीययं आते सातमपि उप्पी, जहदनालोयणसमणिकेवली । एमादिअर्णनसमभीत्री, वार्ड सुबालोवर्ण निसाना ॥८॥ फेवलं पाप सिद्धाओ, अनादिकालेण गोयमा। खंता देवा विमुत्ताओ, जिइंदिजाउ सबभागिरीजो ॥९॥ छकायसमारंभा, विस्या तिबिहेण उ। निदेशासपसंयुना, पुरिसकहासंगपनिया ॥१४०॥ पुरिससाबविश्याओ, पुरिसंगीचंगनिरिक्समा निम्ममत्ताउ ससरीरे,अप्पहिनदाउ महायसा ॥१॥ भीया बीगमवसहीर्ण, बहुदुक्खाउ भवसंसरणी तहाता एरिसेणं भावेणं, दापचा आलोयणा ॥२॥ पायच्छितंपि काय, तह जह एपाहि समणीहि कर्य । ण उणं नह आलोएया, मायादभेण केणई॥३॥जह आलोयमानी, पापकम्मनुइदी भवे। अणताणाइकालेणं, मायादमछम्मदोसणं ॥४॥ कनहालोयणे काउं. समणीजो ससाताओ। आमिओगपरंपरेणं, छद्रिय पुनर्षि गया ॥५॥ कासिंचि गोयमा! नामे, साहिमोतं निबोधय । जाउ आलोयमाजीओ, भावदोसेण सुदढ़तरगं पाचकम्ममलखनलिये ॥६॥नह संजमसीन्लंगाण, णीसार पसंसियं । नं परमभावविसोहीए, विणा लणपिनो भये ॥ ७॥ तो गोवमा ! केसिमित्वीर्ण, चित्तचिसोही सुनिम्मला। भवंतरेचि नो होही, जेण नीसातया भवे ॥८॥ छहमदसमदुवालमेहिं सुक्खंति केचि समणीओ।नहानिय सरागभाष, णालोयंनी ण उड्डति ॥९॥ बहुषिहविकपकासोलमालाउकलिमाहिणं । वियरत तेण लखेजा, दुस्वगाहमण(म)सागरं ॥१५०॥ ने कड़मालोयणं देंतु, जासि चिनपि नो बसे पासतजा नाणमुदरए, स बंदणीओ खणे खणे ॥१॥असिणेहीइपुषण, धम्मज्माणुलसानिया सीलंगगुणहाणेस, उत्तमेसुंधरेड जो॥२॥हत्वीबहुचणा विमुकं, मिहकलत्तादिचारगा।सुचिसुबमुनिम्मळ चित, जीससो महायसो॥शादयो पदणीओय.देविदाणं स उत्तमो। दीण(कय)न्धी समपरिभूय, विरहाने जो उत्तमे घरे ॥४॥णान्छोएमि अहं समणी,दे कहं किचि साहुणी। बहुदोस न कई समणी, जवि समणीहिं न कहे ॥५॥ असावनकहा समणी, बहुआनंबणा कहा । पमायरसाममा समणी, पाचिट्टा बलमोटीकहा ॥६॥ रोगविस्वकदा तह य, परवचएसालोयनी। सुवपच्छित्ता तह य, जायादीमयसंकिया ॥७॥ मूसागारभीरुया घेच, गारवतिय दृसिया तहा। एषमादिअणेगमावदोसपसमा पावसातेहि पूरिया ॥८॥ अर्णना अर्णनेण कालसमएण, गोयमा! आतेण अर्णताओ समणीओ, बहुदुक्खावसह गया॥९॥ गोयमा! अर्णताजोचिट्ठति, जाऽणादी सप्तसतिया।भावदोसेफसाडेहि (मुंजमानीओकदुविरस) पोरगुग्गरं कन्हें ॥१६॥चिवस्सनि अनावि, तेहि साडेहि सशिया। अर्णतपि अनामयं काल, तम्हा सई सुहममचि,समणी को धारणा खणति॥१॥धगधगधगस्स पजलिए, जालामालाउले बढायचहविमहाभीमे. सरीरं उमए महंगशापयतंगाररासीए.एगसि संप पुणे जन्छे । यहितो सरितो सरिय, जे मरिजिउँपि सुकरं ॥३॥संडियस्स सहत्येहि. एकेकमंगावययं । जे होमिना अम्मीए, अणुविषहपि सुकरं ॥४॥ सरफरूमतिक्खकरवत्तदंतेहि फालाविडं। लोणूससजियासारं, पना ससरी अचं. तमुकरें। जीवतो सयमपी सक, सातं उतारिऊण ण॥५॥ जवस्तारहलिहादिहिजे आलिये नियं तणु। मर्यपि मुकरं छिदेऊण, सहत्येणं जो पेत्ते सीस नियं ॥६॥ एयंपि सुकरमलीह. दुकर नवसंजर्म। नीसतं जेण तं मणिय.साड़ो य नियक्खिओ ॥७॥ मायामेण पच्छनो, ते पायदिउँण सकए। राया दुचरिय पुच्छे, अह साहइ देहसास II सबस्सपि पाएमा उ, नो नियबरियं कहे। राया दुचरिय पुच्छे, साह पहईपि देमि ते ॥९॥ पुहई रजनणं मन्ने, १११७महानिशीचच्छेवस्त्रं. अत्र
मुनि दीपरनसागर
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दीप अनुक्रम [११५]
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आगम
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सूत्रांक
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गाथा
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दीप
अनुक्रम [१७७]
Sender
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं )
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अध्ययन [ १ ], • उद्देशक [ - ], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ..........आगमसूत्र -
· मूलं [७] + गाथाः || १७० || [३९] छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
नोनियर कहे। राया जीयं निर्कितामि, अह नियदुच्चरिय कह ॥ १७० ॥ पाणेहिंपि स्वयं तो नियदुवरियं कहे तो सहस्वहरणं च रच पाणेवी परिक्षए णं ॥ १ ॥ मयावि जंति पायाले नियदुबरियं कहति नो। जे पावाहम्मदीया, काउरिसा एगर्जमिणो से गोति सदुधरियं नो सम्पुरिसा महामती ॥ २ ॥ सम्पुरिसा ते पण पुम्बति जे दाणवह दुजणे सप्युरिसाणं चरिते मणिया, जे निस्सला तबे रथा ॥ ३ ॥ आया अणिच्छमाणोऽवी. पावस गोयमा ! णिमिदानंतगुणिएहि पुरिने नियदुखिया ॥ ४॥ वाई च झाणसज्झायपोस्तवसंजमेण य निमेण अमाएणं तपसणं जो समुद्धरे ॥५॥ जलोएना गीसह निदिउ गरहि दर्द नह पर पाय जाम करे ॥ ६॥ अचजम्मपत्ताणं, सेनीभूयाणवी दर्द णिमिसदखणमुत्तेणं, आजम्मेव निच्छिओ ॥ ७॥ सो मुझे सांय पुरिसा, सो तपस्सी से पंडिओ संतो देतोय. सहल नस्सेर जीवियं ॥ ८ ॥ सूरो सो सल्लाहो प दो व लगे लगे जो मुद्धाठोपणं देतो, नियदुचरिय कहे कुठे ॥९॥ अयेगे गोयमा पाणी, जे सई अदरदिवं माया ला भया मोहा. मुसकारा हियए परे ॥ १८०॥ नं न गुरुतरं दुक्खं हीणसनस संजणे से चले जाणदोसाओ, गोदरं दुक्खजिहं किल ॥ १॥ चारों दुधारो वा लोस अडिओ सोग स्थाम जंमेगं, अवासीभवे सो ॥ २ ॥ पावसा पुणासंखे, निक्लधारी सुदारुणो भवंतर सर्व सिंदे कुलिस गिरी जहा ॥ ३ ॥ अत्येगे गोयमा पाणी, जे मरायसाहस्सिए सज्झायज्झाणजोगेण घोरतवसंजमेण ॥ ३ ॥ सहडाई उदरेकर्ण विश्याना दुक्खकेसओ पमाया चितिहि पूजिनी पुणविय ॥ ४ ॥ जम्मतरे बस, बसा किम्मणो सदरणस्स सामत्यं भवंती कवि जं पुणो ॥ ५ ॥ तं सामला जे पमायवसं गए। वे मुलिए सहभावणं, कहाणाणं भवे भवे ॥ ६ ॥ अत्थे गोयमा पाणी. जे पमायवसं गए। परं तेवीस पोरं सह गोति सहा ॥ ७॥ यं तत्थ बियाणंति, जहां किमम्हेहिं गोवियं जं पंचोगपालप्पा, पंचेंद्रियाणं च न गोविं ॥८॥ पंचमहालोपाले अप्पा पंचदिएहि य एकारसेहि एहि दिहं ससुरासुरे जगे ॥ ९ ॥ ता गोयम ! भावदोणं, आया बंचिन परं जे चडाइसंसारे, हिटइ सोफ्लेहि चिओ ॥ १९० ॥ एवं नाऊण काय, निच्छियहिययचीरिया महउत्तिमसतकुंतेणं भिदेयता मायास्क्ससी ॥ १ ॥ षट्वेयभावेण निम्हण जगायातीअंकुसैण पुणो माणगर्द बसीकरे ॥ २ ॥ मद्दवमुसलेण वा चुरे, पीसयरि(स) यं जाव दूरओ। ददणं कोहको (लो) हाही (ई)मयरे निंदे संघडे ॥ ३ ॥ कोहो य माणी य अणिग्गहीया. मावा य लोभों य पवइदमाणा । चत्तारि एए करिणा कसाया, पोयंति सद्धे सदुरुदरे बहुं ॥ ४॥ उसमे हमे कोह, मार्च महवया जिणे माये चलवभावेण लोभ संतुट्टियो जिने ॥ ५॥ एवं निजियकसाए जे, सनभयाणविरहिए। अट्टमयविष्यमय देना बालोयणं ॥ ६ ॥ सुपरिफुटं जहावतं स नियदुवियं कहे गीसंकेय असंशुद्धे, निष्मीए गुरुसंतियं ॥ ७॥ भूतो पाले जह पलवे उज्जुए दूरं अधि उप्पनं तदा स आलीय जहट्टियं ॥ ८ ॥ पायाले पविसित्ता, अंतरजलमंतरे या कयम रातोऽयकारे वा जगणएव समं भये ॥ ९ ॥ तं जयन्तं कय, समपि निक्खि। नियदुकियसकियमादी आलायतेहि गुरुयणे ॥ २०० ॥ गुरुतिरभणियं ज तहिं कहे नीतीभवति तं कार्ड ज परिहरह असंजम ॥१॥ असंजम भई पात्र में पाचमनेगा मुणे हिंसा अस चोरि. मेणं तह परिग्गहं ॥२॥ सदाइदियकसाए व मणडे हा एने पाती श्रीसोणी वर्णमये ॥ ३॥ हिंसा पुढवादिमेया अहवा नवदस चोदसहा उ अहवा जगहा या कायदंतरे ॥ ४॥ हिओबदेस पमोनूण, सनमपारमत्थियं तनधम्मस्स सबसावं. मुसाचार्य अणेगहा ॥ १५ ॥ उमग उपासना, बायालीसाए तह य पंचेहि दोसेहिं दुसिये, जं भंडोगरणपाणमाहारं नक्कोडीहिं असु परिभवे ॥६॥ दिवं कामरसुतिविहंनिणि अह उलं मनसा तो अभयारी मुणेय ॥ ॐ नवनरगुती विराहए जो वसा समणी या दिट्टमहवा सरागं पजमानो अइयरे ॥ ८॥ गणणा (१) माणजइरिनं धम्मीयगरणं नहा कसायरमावे. जावाणी कसिया भये ॥ ९॥ सजा हा मुसा मुणे सरकलमनि अदिष्णं, मिन्हे चोरि ॥ २९०॥ मेकरकम्मे, सदादीण विधारणे। परिग्गह जहि मुच्छा, लोहो का ममत्तयं ॥१॥ अजोरियमाकंठं मुंजे राई भीषणं सहस्वाणि इयरस र धफरिसम्स वा ॥ २ ॥ ] रागंण प्यदोवा गच्छेजा खयं मुणी कसागर व चकरस मनसि विज्झायर्ण करे ॥३॥ बुद्धे मणोपकायादंडे को गं पजए अफासुपाणपरिभोगं, चीयकायसंपणं ॥४॥ अहमे पाये गोभी नये एएसि महतपाचाणं देवं जाव कपई ॥ ५॥ एकंपि चिए हम पीसो ताप णो भवे तम्हा आलोय वार्ड पायच्छिन करे एवं निकवनि, नीसह कार्ड त ॥ ६॥ देवे मासे वा तत्तत्युत्तमा जाई. उत्तमा सिद्धिसंपया भेजा उत्तम रूवं सोहम जो तमये ॥ २१७ ॥ तिमि महानिसी सुपक्चस्स पढमं अज्झणं सादरणं नाम १ ॥ एयरस य कुलिपि दोसो न दायको पहरेहि, किंतु जो व एस्स पुत्रारिलो आणि तत्येव कई सिलोगो कई सिलोग कत्थई पमक्सर कस्बाई अक्सरपतिया कत्थई पनगड़िया कत्थई के तिन्नि पसगाणि एवमा बहुगंध परिगलियति 13 निम्मृद्धियर्ण समान गोयमा झाणे पविसेत्तु सम्मेयं पचस्वं पासिययं ॥ १ ॥ जे सम्म जेषि पासन्नी, भडाभडा जे जसे महत्वी निरिया इमिहादिसदिसिं ॥ २ ॥ असन्नी दुनिए वि हिंदी एगिदिए। चिपले किमकुंमच्छादी. पुढवादी एमिंदिए ॥ ३ पशुपक्खीमिगा सण्णी, नेरड्या मनुया नरा भवानवादि अत्येसं नीरए उभयजिए ४ पम्मत्ता जति छायाए, विपलिंदी सिसिराऽऽयं होही सोक्स्ख किलम्हा, ता दुक्ख तमये ५ सुकुमालंग गवता, खणदाहं सिसिरं खणं न इमं अहियासे सकुर्ण एवमादिवं ॥ ६ ॥ मेणकपरागाओ, मोहा अण्णाणदोसओ पुढवादीस गएगिंदी ण पाणंती दुक्खं मुहं ॥ ७॥ परिचाले बेइंद्रियणं केई जीवा न पावेंती केई पुणोऽनादियात्रिय ॥ ८॥ सीउन्नायविज्झडिया, मियपमुपक्खीसिरीसिया सुमिणतेषि न त णिमिति मुहं ॥ ९ ॥ सरफरसतिक्सकरवताइए हिं.. फालिताखणे खणे नियते नारवा नरए, तेसि सोक्खं कुलो भये ॥ १०॥ सुरलोए अमरया सरिसा, सबेसि तत्थिम दुई उदह (डिए वाहणनाए, एगो अग्णी तमादे ॥१॥ समपाणिपादेणं हाहा मे अनवेरिणा। माया१९१८ महानिशीथच्छेद असणे-२
मुति दीपरत्नसागर
अत्र प्रथमं अध्ययनं समाप्तं
अत्र द्वितियं अध्ययनं- “कर्मविपाक-व्याकरणं” आरब्धः
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आगम (३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [२], ------------- उद्देशक [१,२,३], ---------- मूलं [१] +गाथा:||१२|| -------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
गाथा
||१२||
भेण विदिदि, परितप्पेद आया चिओ ॥२॥ सहेली किसिकंमतं, सेवाचाणिजसिप्पयं । कुनाऽहनिस मणुया, धुष्यंते एसिं कजो सह ? ॥३॥ परधरसिरीए दिहाए, एगे जति चालिसे। अमे अपहुपमाणीए, अन्ने खीणाह सच्छिए॥४॥ पुन्नेहिं वनमाणेहि, जसकित्ती लमही य पढाई। पुन्नेहि हायमाणेहि, जसकित्ती लच्छी य खीबई ॥५॥ वाससाहस्सियं केई, मन्नते एगविणं (पुणो)। कालं गति दुखेहि. मणुया पुन्नेहिं उझिया ॥६॥ संलेदेथमिम भणियं, सोसि जगजंतुर्ण । एक्सं माणुसजाईण, गोयमा! जंतं निचोधय ॥७॥ जमणुसमयमणुभवताण, सयहा उनेवियाणवि। निविग्नापि दुक्सेहि, वेरगं न तहावि भवे ॥८॥ दुनिहं समासजओ मणूएस.. दुक्ख सारीरमाणसं । घोर पचंडमहरोई, तिपिह एकेक भो ॥९॥ पोरं जाण मुहुरंत, घोरपडति समपनीसाम। पोरपयंडमहारोवं, अणुसमयमविस्सामगं मुणे॥२०॥ घोर मणुस्सजाईणं, घोरपयंड मुणे विरिष्ठीसु। पोरपयंडम. हारोड, नारयजीचाच गोचमा ! ॥१॥ माणसं तिविहं जाणे, जहनमज्झतम दुई । नन्धि जहनं तिरिन्ठाण, दुबमुकोस तु नारवं ॥२॥जं तं जहन्नग दुवं, माणुसं तं दुहा मुणे । सहमपावरमेएण, निविभागे इतरे दुवे ॥३॥ संमृभिड़मेसुं मणूएसं, सुदुम देवेन पावरं । चाणकाले महिदी, आजम्मं आभिभोगाणं गा सारीरं नवि देवाणं, दुक्खेणं माणसेण या अइबलिय बजिम हियर्य, सयसंट जनपी फो॥५॥णिविभागे व जे भणिए, दोचिड मजात्तमे बुहे। मणुयाण ते समपलाए, गम्मपतियाण उ॥६॥ असंखपाउमणुयाण, दुस्लं जाणे विमझिम संसेभाउमणुस्साणं तु, दुक्खं कुक्कोसगं । असोक्खं चेयणा वाही, पीडा दुक्समणिपुई। अपरागमरई केस, एसमादी एगडिया बहु ॥८॥सारीरेयरमेदंति, भणिये ते पवाखई। सारीरं गोयमा एक्सं, सुपरिषडं तमधारस॥९॥ बालम्माकोटिलपसमर्थ, भागमित्तं किये धुवे। अविरजणण्णपदेससरं, कुखुमणहविसि खणं ॥३०॥ तेणवि करकत्तिसाउं, हिययसुरम)दसए तणू । सीयंती अंगमंगाई गुरू, उवेइ सबसरी सम्भतर, पे थरथरस्स य॥१॥ कयुपरिसियमेत्तस्स, जं सलसलसले तणं । तमवसं भित्रसवंगे, कलयलडातमाणसे ॥२॥ चितंनो हा कि | किमेयं, चाहे गुरुपीडाकर शादीहहम्कनीसासे, बुक्स दुक्तेण नित्थरे ॥३॥ किमेप कियचिरं चाहे ?, कियचिरेणेव णिहिही। कई वाद विमुचीसं, इमाउ दुक्खसंकडा॥४॥ गच्छचे? सुर्व उई. पाणासं पलामि उ। के दुगयं ? कि व पक्खोर्ड १.किंवा पत्थं करेमिऽहं ॥५॥एवं निवग्गवाचारतियोगदुस्ससंकटे। पविट्ठो बाद संखेजा, आपलियाओ किलिस्सियं ॥६॥ मुहमेस कंटू मे, अण्णहाणो उपस्समे। ना एक्सपसाएण, गोयम ! निसु
मुजं करे ॥ ७॥ अहले बाचाए, जन गो अन्नत्व गयं भवे । कंड़यमाणोऽह मिनादी, अमुषसमाणो किहिस्सए॥८॥जइया वाक्जत कुंथु, कंड्यमाणोपाइयरहा । तो तंजइरोदशामि, पपिडं णिच्याओ मुणे ॥९॥ अह किसमेतउभयपणे, रोदनमाणेयरस्स उ। कंड्रयमाणस उण देह. खुबमझाणं मुणे ॥४०॥ समयो रोदज्झागडो, उकोस नारगाउय। दुभगिरथीपंडतेरिण्ट, अहज्माणो समजिणे ॥१॥ कुथुपदफारिसजणियाओ, दुक्खाओ उपसमत्थिया। पच्छ हातफलीभूते, जमवत्वंतरं वए॥२॥विषण्णमुहलावष्णे, अइदीणा विमणदुम्मणा। सुणे पुणे य मूढे से, मंददरदीहनिस्ससे ॥२॥ अविस्सामदुखहेऊहिं,जमुहं वेरिच्छनारय। कम्म निघाइत्ताणं, भमिही भवपरंपरं ॥४॥ एवं सोचसमाओ, कुंथुपइयरज दुहं। कहकहवि बहुकिलेसेणं, जद खणमेक उपसमे ॥५॥ता महफिलेसमुत्तिन्न, सहिय से अत्ताणर्य। मन्नतो पमुइओ हिहो, सस्थचित्तो पिचिटई ॥६॥ चितई किलन नियुओमि अहं. निहलियं दुक्खपि मे। कंडयणादीहिंसयमेष, न मुणे एवं जहा मए॥७॥रोदनमाणगएणं दई. जहाणे नहब या संचमहत्ता उसे दुक्सं, अताणतगुर्ण कडं ॥८॥ वाणुसमयमणवरयं, जहा राई तहा दिणं। दुहमेवाणुभषमाणस्स, बीसामो नो बसे भये)ज मो॥९॥खपि नस्यतिरिएम, सागरोचमसंखया। रसरस रिलिजए हिवयं, जंवा इच्छंतताणवि ॥५०॥ अहचा कि कुंजणियाउ, मुको सो दुक्खसंकटा। खीणहकम्मस-A | रिसा मो. मोज जणुमेतेणेव उ ॥१॥ कंधमुक्लपवणं इहई. सर्व पथक्खं दुक्खद। अणुभवमाणोविजं पाणी,ण याणती तेण क्क्सई ॥२॥ अनेवि उगुरुपरे, दुस्से सजेसि संसारिणी सामने गोयमा! ना कि, तस्स नेणोदए गए? SI॥३॥हण मरहं जम्माजम्मेसु, बायाविउ केइ भागिरे। तमवीह फर्क देजा, पावं कम्म पजय ॥४॥ तस्या बहुभवम्गहणे, जत्य जत्योववजह । तत्प तस्य स हातो, मारिजंतो भमे सया॥५॥जे पुण अंगउर्ग ना. | अक्सि काणं च पासिया कडिजहिपडिभग वा, कीरपयंगाइपाणिनं ॥६॥ कर्य वा कारिय वापि, कर्जत माह अणुमयं। तस्सदया चकनालिवहे. पीठीही सो तिले जहा।। आइकंवा णो दुवे तिष्णि, वीसं तीस न पापिया संखेजे। वा भवग्गणे, लभते दुक्सपरंपरं ॥८॥ असूया मुसाऽनिहुपयर्ण, जंपमायअनागदोसओ। पंरपनाहवाएणं, अभिनिवेसेण पा पुरो(णो)॥९॥ मणिय मणावियं वापि, भत्रमाणं च अणुमय। कोहा लोहा भया हासा, तस्मुदया एवं भने ॥६॥ मूगो पूडमूहो मुक्खो, काइबिलाडो भवे मवे। पिहलवाणी सुषहोचि, सबस्थऽभक्खर्ण लभे॥१॥अचितह भणिय नुस, अलिययणपि नालिय। जे उनीपनियायहिय, निदोस सर्व तयं ॥२॥ एवं-चोरिकादिफल सर्व, कम्मारंभ किसादियं । लबस्सावि भवे हाणी, अनजम्मकथा इदं ॥३॥ एवं मेहुणदोसेग, वेदिता थावरत्तर्ण। केसि ममर्णतकालाउ, माणुसजोगी समागया ॥४॥ दुक्खं जरति आहार, अहियं सित्यपि भुजिये। पीडं करे नेसि तु, नण्हा वाहि (बाहे) खणे खणे॥५॥ अदाणं मरणं तेसिं, बहुजप कट्टासणं थाणुवार णिपिन्नाणं, निदाए जति णो चणि ॥६॥ एवं परिगहारंभदोसेणं नरगाउयं नेतीससागरूकोसं, इत्ता इहमागया। ॥ उहाए पीडिअंति, जनमुनुपरेऽविय। परंता हत्तिसंतत्ति, नो गच्छती परसे जहा॥८॥कोहाबीणं तु दोसेणं, चोरमासीविसत्तणं। बेइत्ता नारय भूओ, रोदमिष्ठा मयंति ते॥९॥ बडकूटकवनियडीए, डंमाओ सदर गुर। वेइना चित्ततेरितं. माणुसजोणि समागया ।। ७०॥ केई पहुचाहिरोगाण, दुससोगाण भायण। दारिदकलहममिभूया, लिंसमिना भतिह ॥१॥ तकम्मोदयदोसेणं, निचं पजलियोंविण । ईसापिसावजालाहिं, धगधगधगधगस्स (य)॥२॥ जेमंपि गोयमा ! पाले, बहुदुहसंधुफियाण य । तेसिं दुबरियदोसो, कस्स रुसंतु बह ? ॥३॥ एवं वयनियमभंगेणं, सीलस्स उसंदणेण वा । असंजमपचत्तणया, उस्मुत्तमम्गावरणा ॥४॥णेगेहिं वितहायरणेहि. पमापासेषणाहिय। मणेगं अहबा वायाए, अहपा काएण कत्थई, कवकारगाणुमएहिं वा, पमायासेवरेण य॥५॥ तिविणमणिदियमगरहियमणालोइयमपटिकसमकयपायपिउनमचिसुबसयदीस ससले आमगम्मेसु पनिय अवसो पियलंते | १९१९ महानिशीचच्छेदसूत्रं aurarer-R
मुनि दीपरतसागर
दीप अनुक्रम [२३७]
तर अणितकाला परिया
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आगम (३९)
"महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूल) -------अध्ययन [२], ------------- उद्देशक [३], ---------- मूलं [२] +गाथा:||७६|| -------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
गाथा
||७६||
धतियचउपचाउई मासाणं असंवाही करसिरचरणवी।पादेवि माणुसे जम्मे, कुमादीचाहिसंजए। जीर्यते चेष किमिएहि. सर्जती मच्छियाहिय, अणुदियह खडसंडेहि. स हडस्स सडेनगु ॥६॥ एबमादीदुक्खामिभूपए,
पलमणिजे खिसणिने, निदणिज्ने गरहणिजे, उसेयणिजे अपरिभोगे, नियहिसयणधवाणपि भवतीति दुरप्पणो ॥७॥ अज्मवसायविसेस में पहुंचा कंद वारिस । अकामनिजराए उ, भूयपिसायमणं लभते ॥८॥ पुषसाडस्स दोसेर्ग, बहुमतरछाइयो।अमवसायविसेसं ते, पाबा केई तारिसं ॥९॥ इससुचि दिसामु उबुडो, निबदूरप्पिए बड़। णिस्त्याइनिरुत्सासो, निराहारेण पाणएस८॥संपिडियंगमंगोय. मोहमदिराए पुम्मारिए। अदिदग्गमणअस्थमणे, भषे पुढवीए गोलया किमी ॥१॥ भवकाहितीए वेएला, तं तहि किमियत्तणं । गद कहावि महति मणुयत्न, तो उतो हुँनि गपुंसगे ॥२॥ अ सायषिसेसं न. पवईते जइकूरपोरकम् । नारिसे महसंधुफिया, मरितुं जन्म जति बणस्सा ३॥ वणस्साई गए जीवे, उपाए अहोमुहे। पिचिटुंति अर्णतयं कालं, नोटभे बेइंदियनर्ण ॥४॥ सबकायाहितीए एना. तमेगविनियरिदियत्तम्। तं पुषसाउदोसणं, नेरिन्डेसूवनि ॥५॥ जइणं भये
महामन्छे, पक्लीवसइसीहादजओ। अजमवसायविसेस ने, पटुब अर्जतकरयरं ॥६॥ कुणिममाहारनाए, पंचदिवबहेण या अहो अहो पविस्संति, जाच पुढची उसत्तमा ॥७॥ तारिसं महापोरं. दुस्यमणुभवि चिरं। पुणोनि कर. अतिरिएस. उक्वजिय नस्र्य वए ॥८॥ एवं नरपतिरिच्छेमुं, परिवहतो विचिहई । पासकोडीएमि नो सका कहिउँ, जं न दुवं अणुभषमाणगे ॥१॥ अह खमबहाउस, भवेजा तम्मतरे। सगराइट्टा(बाइट)णभरवणसुनुण्हसीयाय |
॥१०॥ महर्षवर्णकणणासाभेदणिठणं तहा। जमलाराईहिं कुबाहिं कृषिजताण य, जहा राई नहा वियह, सबद्धा उसुदारुणं ॥१॥ एचमादीदुक्खसंघह, अणुहनि चिरेण उ । पाणे य एहिति कहकहषि, अहनमाणदुहहिए ॥२॥ अज्झवसायपिसेस में पहुंचा कडकहनि लभते माणुसत्तण। सपुषसाउदोसणं, मानुसनेचि आगया ॥३॥ मति जम्मदारिदा, वाहीखसपामपरिगया। एवं अविद्वकसाणे, सबजनस सिरि हाइ॥४॥ संतपते दर्द मणसा, अकयभवे णिहणं वए। अावसायक्लेिसं तं. पडवा केहतारिसं ॥ ५॥ पुगोवि पुचिमाई मुं, भमनी ने चुतिबाउसेपंचेविएम वा। तं तारिस बहादुक्खं. मुरुई घोरदारगं ॥ ६॥ उगइसंसारकतारे, अणुभवमाणे सदसह । भवकायद्विनीए हिंडते, सबजोणीसु गोयमा:॥आचिट्ठति संसरेमाणा जम्ममरणचवाहिवेपणारोगसोगदालिहकलहष्भक्खाणसंमचि(वावि)गम सादिदुस्ससंधुकिए गप्पुषसाादोसणं निशाणाणंदमहसपथामजोग्गबहारससीलंगसहस्सा-- हिहियरस सवामुहपावकम्मरासिनिहहणअहिंसालाखणसमणधम्मरस बोहिंगो पातिनि।२।'अज्झवसायविसेसं तं, पड(म)बा केई तारिस । पोग्गलपरियङ्कलक्सेस, बोहि कहकहवि पाचए॥८॥एवं सुदाइह गोहिं. सबक्खखयंकर। लणं जे पमाएजा.महू सो पुणो पाए ॥५॥ तासु तासुंच जोणीसु, पुनेण कमेण 31 पये तेणई पेप, दुलै ते चेच अणुभवे ॥१०॥ एवं भत्रकायझिलीए. सत्रमावहिं पोग्गले । सो सपजए होए, सम्मपन्नंतरहि य॥१॥ गंधत्ताए सत्ताए, फासत्ताए संताणत्ताए। परिणामेला सरीरेणं, बोहि पाविज वाण वा ॥२॥एवं चयनियममंग, जे कजमाणमुक्खए। आह सील खडिजन, अहा संजमचिराहणं ॥३॥ उम्मम्गपवनणं बावि. उस्मुत्तावरणपि वा। सोऽविष अर्णतरुण, कमेणं चउगई भये(मे)॥४॥ स तुसओ परो मा वा, पिसं वा परियत्तमओ।मासियवाहिया भासा, सपक्सगुणकारिया ॥५॥ एवं रसदामपि मोहि. जइथे तो भइ निम्मता। ता संवडासपदारे (पगइजिपएसागुमावियचो) नेहो सो नो य निजरे॥६॥ एमादीघोरकम्मडजालेण कसियाण भो। सोसिमवि सत्ताणं, कुजो दुस्वपिमोयर्ण?॥७॥ पुर्वि दुकयविणाण हुपतिताणं निययकम्माणं ण असे. इया मोक्लो घोरतपेण असोसिधाण वारा अणुसमयं चच(बन्ध)ए कम्म, णस्थि अचंचो उपाणिगी। मोनु सिदा याजोगी य, सेलेसीसंठिए तहा ॥८॥ मुहं महजमसाएणं, असुहं पसायो। विजयरेणं तु तियर, मरं मंदेश सचिणे ॥९॥ससि पापयम्माण एगीभूयाण जेसिव रासि भवे तमसंखगणं क्यतवसंजमचारित्तसंबनविराहणं उस्सुनमम्गपन्नवपत्तण आयरनोवेश्रवणेण य समजिये।४। 'अपरिमाणगुप्तुंगा, महंती पणनिरंतरा। पापरासी लयं गच्छे, जहात समा बाहिरवाहिय)मायरे॥११०॥ आसपदारे निमित्ता, अप्पमादी मने जया चिमणं पहूं बेटे, जइसम्म सुनिम्मः ॥१५ आसपदारे निसंमेत्ता, आणं नो संडए जवादिसणनाणचरिनेस, उजनो जो वः भवे ॥२॥नया बेए खर्ण बघि, पोराणं स स । अणुइनमपि उईरिता, निजियपोरपरिसहो ॥३॥ आसपदारे निमित्ता, समासायणविरहित्रो। समायझाणजोगेसु, धीरवीर नये रओ ॥४॥ पालिना संजम कसिण, वाया मणमा उकम्मणा । जया तयाण चिना, उकोसमर्णनं च निजरे॥५॥ समावस्सममुजुत्तो, सबालपणविरहियो। चिमुचो सबसगेहि समरम्भसरेहि य ॥६॥ गयरागदोसमोहे य, निग्नियागो भये जया। नियत्तो सि-E यतत्तीए, मीए गम्मपरंपरा ।। 90 जासबदारे निमित्ता, संतादी यमेवि संठिए । सुकमाणं समारहिय, सेडेसि पहिषजए॥८॥ तया न पंचए किचि, चिरपदं असेसंपि निदहिय माणजोगजगीए भसमीकरे ददलचक्लागिरणमिलेग कालेण भगोषमाहियं । ५। एवं-'जीववीरियसामरथा, पारंपरएण गोयमा। पविमुककम्ममलकपया, समए जति पाणिणो॥९॥ सासयसोरखमणाचाह. रोगजस्मरणविरहियं । अहिदुत्सदारिम, निचाणंद सिवालवं॥१२०॥ अस्यगे गोयमा! पाणी, जे एयमणुपवेसिया आसनवारनिरोहादी इयराहयसीक्संचरे ॥१॥वा जाव कसिणहकम्माणि, पोरवयसंजमेण उणो णिहाइडे सुहं नाय, नत्यि सिविणेऽपि पाणिण ॥२॥ तुक्लमेवमविस्साम,सनेसि जगजेतृणं । एकसमयं न समभावे, जे सम्म अहियासियंतरे ॥३॥ येवमवि बेवसरे, येवयरस्सावि वयं । जेणं गोयमा वा पेश कुथु तरसेप य गंगणू ॥४॥ पायतलेसुन नस्सापि, तेसिमेगदेसमणु । करिसतो
यजेणं, चरई करसह सरीरंगे ॥५॥धुणं सयसहस्सेणं, तोलिय गो पढ़ भने। एगस्स कित्तिय गतं?.किवा तुतं भवेज से ? ॥६॥ तस्स य पायवालदेसेणं, तस्स फरिसिउ तमकत्यंतरं । पुएर्स गोयमा गच्छे, पाणी नाणं इस मणे ॥ ७॥ ममतसंचरंतो प, हिटियो मइले तणू।न करे भूखयं वार्ण, पियवासीय चिरं बसे ॥८॥अह चिट्ठे खणमेनं तु. बीयं नो परिवसे खणं । अह बीयपि चिरतेजा, ता जुनउऽयं तु गोयया ॥९॥रामेणं नो पोसेणं, मच्छरेण न केणई। न यापि पुत्ररेणं, खेड्डानो कामकारो॥१३॥कुंधू कस्सइ देहिस्स, आरुदेइ खर्ण तणु । वियलिंदी भूण पाणे वा, जलतगि बाची विसे ॥१॥न चिते तं जहा मेस, पुत्रवेरीहया सही ताकिची मम(ह) पाय पा. संजणेमि एयस्सऽहं ॥२॥ पुरकडपावकम्मरस, विरामे पुजतो फले। तिरिउड्दाहविसाणुदिसं, कुयू हिंडे बराय से ॥३॥ चरते प महावाए, सारीरं दुक्खमाणसं । कुभूचि दूसह जत्ते, रोज्माणवढणं ॥४॥ (२८) ११२० महानिशीयकोदसूत्रमार
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दीप अनुक्रम [३०१]
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आगम
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“महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [२], -------------उद्देशक [३], ---------- मूलं [५] +गाथा:||१३५||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
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गाथा
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ना सामारभेनाण, मणजोगायरेण वा। समयावलियमुहर्न बा. सहसा तम्स विवागयं ॥५॥ कह सहिहं बहुभवग्गहणे, दुहमणुसमयमहण्णिसं । घोरपपई व महारोई हाहाऽऽकंदपरायणा ॥६॥ नास्पनिरिच्छजोणीस. अन्झा(ना)णासरणोऽविय । एमागी ससरीरेण असहाया कडु विरस पणं आअसिषणपेपरणीजते. करवने कृष्टसामलिकुंभीयवायसा सीह, एमादी नारए दहे ॥८॥ गन्धकणवह य. पाकनचिकनणं । सगडाकडदणभरवणं, जमला य नन्हा उहा॥९॥ परमरचमणसत्यम्मीलोभणंजणमाइए। परयत्नाऽवसणिनिसे, दुक्से रिच्छे तहा॥१४॥ कुंथुपयफरिसजणयपि, दुवं नहियासिई तरे। तानं महदुक्खसंघई. कह नित्थरिहि सुदारुण ? ॥१॥नास्थनेरिनुक्साउ, कंजणियाउ अंतरं। मंदरगिरिमणतगुणियस्स, परमाणुस्सानि नो घटेचिरवाले संमुहं पाणी, करसनो आसाए निय(किछ)ओ। भवे दुस्समईयपि, सरंतोऽतस्विनओ ॥३॥पहुकससकडन्य, आपयालकस. परिगए। संसार परिवसे पाणी. अर्थडे महुचिदु जहा ॥४॥पन्यापत्य अयाणते, कलाकगं हियाहियं । सबासबमसचंच, चरणिजाचरणिनं नहा ॥५॥ एवइयं वइयर सोचा. दुक्ससंतगरेसिणों । इत्थीपरिम्महारंभे, वेजा पोरं । न चरे ॥६॥ चियासणन्या सपिया परंमुही, सुबलंकरिया वा अनलंकिवा वा। तिरिक्खमाणोपमया हि दुबल, मणुस्समालेह गवावि करिसई ॥ ७॥ चिनभिनिन निझाए, नारिं वा सुयकियं । भक्खरंपिय बठूर्ण, विहिपटिसमाहरे ॥८॥ हत्यपायपदिन्छि, कानासोवियप्पिर्य । सडमाणी कुहवाहीए. (तमविस्थीर्य दूरवरेणं)भयारी विवउनए ॥९॥ रमना य जा इत्थी. पर्चगुमडजोषणा । जुनकुमारि पडत्यनाइय, बालविहवं नहेब य॥१५॥ अतेउरवासिणी चव, सपरपासंडसंसियं । दिक्खियं साहुणी चापि, वेस तय नपुंसग ॥१॥ कहि गोणि सरि चेच, बडवे अविर अवि तहा । सिप्पिन्थि पंसुलि वापि, जमरोगमहिलं नहा ॥२॥चिरसंसहमबिस्वल, पमादी पाविधिओ। पगमती जन्य रयणीए, अपहरिके दिणस्स वा ॥३॥ तं वसहियं संनिवसं वा, समोवाएहिं सबहा । दूरपरं सुदरदुरणं, अभयारी विजए॥४॥ एएसि सदिसला. अदाणं वापि मोयमा! । अन्नासु बावि इन्धीस. सगर्दपि विवजए॥१५॥५॥ से भया ! किमित्वीयंणो णे णिजसाएजा, गोयमा! णो णं णिज्झाएजा, से भयचं ! किं मुणियत्वं चत्वालंकरियविहसियं इत्वीय नोगं निझाएजा उयापूर्ण विणियंसणि. गोयमा! उभयहाविण गोणं णिजमाएजा.से भयचं ! किमिन्थीयं नो आलवेना, गोयमा ! नो णं आलवेजा, से भयवं ! किमिस्थीसु सदि खणहमविणो संवसेना',गोयमा नो ण संबसिजा से भयचं ! किमिटीम सद्धि नो अडाण परियजेजा”. एमे संभयारी एमिलीए सर्दिनो पडिचनेजा।६। से भवन कर्ण बडेणं एवं वृचह-जहा शं नो इत्यीणं निझाएजा नो णमालवेयता नो नीए सदि परिवसेना नो णं अदाणं परिवजेजा, गोयमा ! सापयारेहि णं सविन्थीयं अनन्य गाउनाए रागणं संधुनिमाणी कामम्गीए संपलित्ता सहावा पेच निसएहि पाहिजइ, तो सबप्पपारहिं पाहिलमाणी असमय सबदिसिविदिसामु णं सत्रय विसाए पत्थिना. जाच सवय विसाए परियजा नाव ण सम्बत्य पयारेहि ण सय्यहाचि पुरिसे संकणेगा, जायणं पुरिस संकप्पज्जा ताप णं सोईदिओपोगनाए पारिदिजोपाओगनाए रसणिदिओचओगनाए पाणिदिओपओगनाए फासिदिओपओगनाए जाप णं कई परिसे | कैतोड़ वा अनरुवेइ या पटुप्पाजोलणेइ ना अपप्पाजोवणेइ वा विपन्नेह वा अविडपब्वेइ वा इढिमतेइ वा जणिमितेश पाइटिपनेइपा अणिढिपनेइ पा पिसयाउरेड या निबिनकामभोगेइ वा उदयोंदीएडवा अणुदयबादीएइ वा महासनेहवाहीणसनेदपा महापुरिसदपा कापूरिसद पा समणेशा माहणेन वा अनवरे वा निंदियाहमहीणजाइए वा तन्थ हापोहबीमंस पउंजिना संजोगसंपनि परिकप्पेन्जा, जाच गं संजोगसंपत्ति परिकल्फेजाताच णं से पिने संखुबे भवेजा, जाप से चिले संखुदे मोजावावगं से चिने विसंवएग्जा, जायण से चिने निसंचएजाताच से देहे सेएणं अहासेजा, जाप णं से देहे सेएर्ण अदासेजा नाचणं से दरपिदरे इहपरलो. गाचाए पम्हसेजा, जाव णं से दरविदरे इहपरलोगापाए पाहुसेना ताप वा लज भयं अवर्स अकिनि मेरै उमट्टाणाओणीयहाणं ठाएजा, जायणं उबढाणाओ नीचट्ठा ठाएजा नापण पचेजा असंखेजात्रो समयापलियाओ जापर्ण निजनि असंखजाओ समयापलियाओ नापजं परमसमयाओ कम्महिइयं न पीयसमयं पडुन तयादियाण समयाण संखेनं असलेलं अणनं वा अगुकमसो कम्मठिई समिणिना, जार अणुक्रमसो अर्णतकम्मद्वि सनिणरनार असंखेनाई अपसपिणीकोडिलक्लाई जाहएणं कारेण परिचननि नाचार्य का वो परनिरवनिरिहास गतीसं उकोसडिझायं कर्म जासकलेजा जायणे उकोसटिनिय कम्ममासंकरेजा नावण से विवगाजनिविष्णकनिविचलियालायणसिरीय निहदिनितेयं चांदीमला, जावणं न्यतिधावण्णसिरीयं मिनेयं चोदी मोजा नावण से सीइजा फरिसिदिए,जावणं सीएमा फरिसिदिए नाव सम्पहा पिवजा सवय चाररागे. जाय गं सन्चत्य विपहेजा चक्रामे नाच रामारुले नयणजयले भवेजा. जाव रागारुणे नवजुयले मोजा ताप णं रागचनाएप गणेजा सुमहंतगरूकोसे वयभगे न गणेना मुमहनगरदोसे नियमभगेन गणेजा समई-2 नपारपावकम्मसमायरणं सीलसंडण नागणेजा समईतसचमुरुपानकम्मसमायर संजमविराहणं न गणेजा पोरंथयारपरगदुक्सभयं न गणेजा आर्यन गणेजा सकम्मगुणहाणगं न गणेमा समरामुरम्सापिगं जगम्स अलंप मिर्ज आणं न गणेना अचंतनो युलसीइजोणिटकरखपरिपत्नगमपरंपर अलहणिमिसबसोक्खं बाउगइसंसारबुक्संग पासिजाजपासणिज पासेजा जं जपासपिनं सबजनसमूहमज्झसंनिचिहिया णिवनकमियनिरिक्सिजमाणी वा रियतफिरणजालदसदिसीपवासियतचंततेबरासी सूरीएपिनहाविण पासेमा सुधयारे सम्बदिसामाए.जाधणं रामंधनाएण गणेजासुमहागुरुदोसवयभग सीटवरणे संयमनिराहणे परयोगभए आणाभंगाइकमे अणं. नसंसारमए पासेना अपासगिने समजणपयढदिणबरविणं मनेजा सुगंधयारे सो दिसाभाए ताप गं भवेना अननिम्भहसोहम्बाइसए.विच्छाए रागारुणपरे दुईसगिने अणिरिक्सणिजे यणकमले मोजा, जाचण अचंनिभट्ठ जाच मजा नाच गं कुरुकरेजा सणिय सणि पोहुपुडनियंवरच्छोरहवाहुलदउरकंठपएसे, जार फुपुरति पौडपुटनियंचवच्छोरहवाहवलयउरकंठप्पएसे ताव मोहायमाणी अंगपाडियाहि निरुपदकसेवा सोचलकर वा भजेजा सबंगोगे, जाप मोडायमाणी अंगपालियाहि भेजेजा सवंगीचंगे तापणे मयणसरसमिसाएणं जजरियसभिले(निमे)सबेरोमको नणू मवेजा.जावणं मपणसरसनिवाएणं चिदलिए बोंदी मोजानापणं ११२१ महानिधिच्छेदसूत्र iaNP
मुनि दीपरतसागर
दीप अनुक्रम [३६५]
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आगम
(३९)
प्रत
सूत्रांक
[७]
+
गाथा
॥१५५||
दीप
अनुक्रम [३८७]
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं )
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अध्ययन [ २ ], उद्देशक [३], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र
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- मूलं [७] + गाथाः || १५५...||
[३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
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हा परिणमेजा त जहा मार्ग पति पाओ, जाव णं णगं पयलंति पातुओं ताव णं अत्यं पाहिजति पोग्गलनियोरुबाइयाओ, जाव णं अत्यं बाहिनइ नियंव तावदुकले घरजा गनहि जा धरेागसहिताय से गोवलकलेजा अनीय सरीरावत्थं जाणं गोलजा अत्तीयं सरीरावत्यं तावणं दुबालसेहिं समएहिं दरनिचिट्ठे नवे बोंदी, जाय गं दुवालसहि दरनिबिडे बोंदि भजा ताणं परिखा से ऊसासनीसास, जब पहिलेना उसासनीसासे नाव मंद मंद उससेजा मंद मंद नीससेजा जाय गं एयाई इनिवाई भावंतर अत्यंतराई बिहारेखा नाय जहा महम्वत्थे केंद्र पुरिसेड वा इथिए वा चिलाए पिसायाए भारतीए असंबद वियना एवं सिया इत्वीय सिमान्तमोहमम्मणाला पुरिसे दिवे वा दिवा वेद वा अवरुद्र यागयजीवणे वा पप्पनजीवणे वा महासतेंद्र वा हीणसतेद वा सप्यु रिसेा वा जाव अपरे वा केई निदियाह महीमजाइए वा अझ सझसे आमनेमाणी उद्याना जाय संखेन भेदभिषेणं सरागेणं सरेण दिडीए या पुरिसे उड़ाया जिन असलेलाई अवस विणी उस्सग्विणीकोटिटलाई दो नश्यनिरिधा गवी कोसद्वितीयं कम्म कलिये आसितं निबंधन करेगा, सेऽवि णं समयं पुरिसन्स णं सरीरावयचफरिणामिमुह भजा गोणं करिलेला तंसमयं
कम्मदिकाननानि अएयावसरम्मि उ गोयमा संजोगेणं संजुनेजा, सेऽविणं संजोए पुरिसायने, पुरिसेऽनि जे जुने से धन्ने संजु से अटा से भय एवं दुखाइ जहा पुरिसेवि में जे थे न जुज्ञे से धन्ने संजु से अपन्ने ? गोयमा जे गं से तीए इपीए पानाए कम्म चिड़ से णं पुरिससंग निकाल, ते तु निकाए कम्मेण सा बराई ने नारि सायं पट्टचा एगिदियनाए पृढवादीसुं गया समाणी अणतकालपरिषद्वेगवि णो पावेजा बेदियन्त एवं कवि बहुसेन अणताओ एगिदियन लविय बेदियन इंद्रियनं चरिदियनमवि केसेणं वेयइना पंदित जागया समाणी दुगित्पिर्य पंडरिष्ठं वेपमानी हाहाभूपकटुसरणा सिविणेवि अदिसोक्खा नियं संतानुवेनिया सुहिमश्वविज्जिया आजम्मं कुधाणिजं गरहणि निजि सिणि बहुकमत अगषासहि दरभरणा सोगपरिभूया चडाईए संसा, अन्नं चणं गोयमा जावइयं तीए पाइपीए निकाय कम्मदियं समजिय नावइयं इथियं जमिसकामे पुरिसे उक्कियर अतं कम्म
निकाय समजा एते अहे गोपमा एवं युवाइ जहा पं पुरिसेऽवि णं जेनो संजु से गं धन्ने जे संजुज्जे से अपने मर्च (केस) पुरिसेसणं पृच्छा जानवासी गोषमा उहे पुरिसे नये तंजामाहमे अमे मजिसमे उनमे उत्तमुत्तमे सनमे १० तत्थ जे सनमे पुरिसे से र्ण पर्वगुम्भजवणसमुत्तमरूपलावण्ण कंतिफलियाएव इपीए नियंवा वाससपि डिजा णो णं मणसाचि में इि ११] तु से उत्नमुत्तमे से कवि तुहिनिहाएणं मणा समयमेकं अभिसे तहावि पीयसमए मर्ण संनिरंभिय अत्ताणं निदेला गरज. पुणी बीएणं मे इत्थीयं मनसापि असे जे से उत्तमे पुरिसे से अकवर्ण वा इथियं कामिनमाथि देखि अभिला जाव में जार्म वा अदा या इथीए समं विकम्मं समारेला १२ जणं भयारी कयमाणाभिग्गहे, जानो भारी नो तो निकले यणा. न उनि कामे असमविज्ञातस्स एयस्स णं गोयमा अस्थि थे कि तु संसारिणं नो निबंध १३ मे से निकलते सदि चिप इर्म समायरेजा, णो णं परकलतेर्ण, एसे य णं जइ पन्छा उम्ममयारी नो भवेजा तो गं जावसायविसेस में तारिसमंगीकाऊ अनंतसंसारियनणे भयणा, जओ णं कई अभिगयजीवापयन्थे इस आगमाणुसारेण साहूणं धम्मोपमदाबाई दानसीलवभावणामइए चम्मचे समजा से गं जइकवि नियमभंग न करेजा नओ सायपरंपरा माणुसनसुदेवत्ताए जाव ण अपरिवटियसम्मने सिमेण वा अभिगमेण वा जाव अट्टारसीगंगसहस्वारी भविताणं निरुद्धा सवदारे चियरमले पाय कम्मं वसानं सिज्झिना १४ जे यणं से अहमे से णं सपरदारासनमाणसे असमयं कृरवसाय वसियथिनेहि सारंमपरिहाइगु अभिरए भज्जा, गहाणं जे य से अमाह से महापावकम्मे साओ इस्वी ओ वाया मनसाय कंमुना तिविहंतिविद्वेषं अणुसमयममिसेज्जा तहा अर्थतज्सवसाय अज्झसिएहि चिनेहिं सारंभपरिहासने कागमेज्जा. एएस दोषि गोयमा अर्णसंसार १५ बजे से हमे ऽविणं से अहमाहमे पुरिसे तेसि च दोष अनंतसंसारिवणणं समवाये तो अहमे एगे अहमाहमे एतेर्सि दोह पुरावस्था के पचसेसे गोषमा जेणं से अहमपुरिसे से जहपि उ सपरदारासनमाणसे रासायनसिएहि चिनेहिं सारंभपरिहासतचित्ते महावि नं दिविखयाहि साहुनीहि अक्षय (हिंसावासनियाहि याहि गारपीहिं या सदि पियातिए समाणे यचियमसमायरेजा. जेवणं से अह्माहमे पुरिसे से णं नियजणणिषभिई जाय णं दिक्खियाहि साहूणीहिपि समं चिपमं समायरिजा. ते चेत्र से महापावकम्मे सबाहमाहमे समस्ताए से णं गीयमा पविसेसे नहा व जेणं से अमपुरिसे से अवर्ण का बोहि पावेजा, जे य उण से अमामे महापावकारी दिक्खियाहिंपि साणीहिपि समं चियमंत्र समायरिया से तोचि जनसंसारमाहिनिपाजा. एस णं गोयमा चितिए पविसेसे । १६। तत्थ में जे से समुत्तमे से छउमत्यवीरागे गये, जेणं तु से उत्तमुत्तमे से अणिनिपभिनीए जा उपसमगे या खाए या नाम निओनीए जेणंच से उनमे से अप्पमनसेज ए. एवमेएसि निरूपणा कुजा । १७ जे उण मिच्छदिडी मविऊ उभारी भवेज हिसारंमपरिगहाण विरए से मिट्टी गी णं सम्मदिडी, चिणं वेदयजीवापयत्यसम्माचाणं गीयमा नोणं उत्तमते अभिनंदनले पनि वा भइ जओ णं अनंतर मचिए दिषोसलिए विसए पत्येजा, अनं च कयादी विदिविधियाओ चिलिया न या परिसिजा नियाणकडे वा वेण्या | १८ जेवणं से निमज्झिमे से णं तारिमज्यायसायमंगीकिचाणं विरयाविरए दहचे १९ तहा गं जे से हमे सहा जेणं से जमाहमे सि तु एमने जहा इत्थी नहा ११२२ महानिशीथच्छेदसूर्य, ज्य-२
मुनि दीपरलसागर
プロジ
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आगम
(३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूल) ------- अध्ययन [२], ------------- उद्देशक [३], ---------- मूलं [२०] +गाथा:||१५६||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
सत्राक
[२०]
गाथा
||१५६||
मेए जाय गं कम्महिाय समजेग्जा, गवरं पुरिसस गं संचिक्खणगेसु पच्छहोवरितलपक्सएम लिंगे व जहियबरं रागमुपज्जे. एवं एते चेन परिसविभागे । २० कासिचवीण गोषमा ! भातं सम्मत्लव अंगी. काऊणं जायसन्युत्तम पुरिसविमागे ताप गं चितणिज्जे, नो सेसोसिमित्यी ।२१। एवं तु गोथमा ! जीए इस्थीए तिकालं पुरिससंजोगसंपत्तीण संजाया अहा गं पुरिससंजोगसंपनीएवि साहीणाए जाच गं तेरसमे चोरसमे पजारसमेच समए गं पुरिसेणं सर्दिक संजुत्ता णो चियमंसमाचरिय से गं जहा पणकहुतणदारसमिदे केहगामेड वा नगरेइ वा रमेह वा संपलिते चंडानिलसंधुपिखए पलिताण २णिज्झिय २चिरेणं उपसमेज्जा एवंत नं मोयमा! से इत्थीकामम्मी संपलिता समाणी मिडजिमय २ समयचाउकेणं उबसमेज्जा, एवं इगवीसइमेवाचीसदमे जायणं सत्ततीसइमे समए,जहाणे पदीयसिहा वायना पुणरवि सर्व वा तहाविहर्ण चुन्नजोगेण वा पयलेग्जा एवं सा इत्पी पुरिसवंसग मा पुरिसालानगकरिसमेण पा मदेणं कंदापर्ण कामनीए पुणरवि उपयलेज्जा ।२२। एत्थं च गोयमा! जमित्वीय भएणवा लज्जाए या फुलकुसेण वा जाप णं धम्मसदाए वाले वेवर्ण अहियासेज्जा नो चियमसे समापरिन्जा से धन्ना से गं पुन्ना से बणं वंदा से गं पुज्जा से गं बहवा से पं सालक्समा से सबकातामकारया से णं सव्युत्तममंगलनिही से णं सुपदेच्या से णं सरस्सती से ण अपहुंटी से णं अचुया से जंदाणी से णं परमपविलुत्तमा सिबी मुत्ती सासया सिवगइत्ति।२३। जमिस्थित वेयर्ण नो अहियासेजा चियमंस समायरेजा से अधमा सेणं अपुष्णा से गं अवंदा से णं अपुजा सेणं अवहमा सेणं जलक्खणा से गं भग्गलकवणा से णं सबजमंगलअकालाणमायणा सेन महसीला से गं महायारा से परिभट्टचारित्ता सेगं निंदणीया से गं खिसणिज्जा से ण कुच्छणिता से गं पाया से गं पावाचा सेणे महापाचपाचासे अपवित्ननि, एवं तु गोषमा! बडुलत्ताए भीमत्ताए कायरत्ताए होलताए उम्मायओवा कंदपजोबा दप्पो वा अणप्पवसओवा आउहियाए पा जमिस्थिय संजमाजो परिभस्सियं दुरदाणे वा गामे वा नगरे वा रायहाणीएवा बेसम्महर्ण जगछडिय पुरिसेण सद्धि चियमसमायरेज्जा मुजो२ पुरिर्स कामेज वा रमेज्ज वा अहा तमेव दोपवियं कज्जमिह पक्खियेत्ताणं तमाईचेज्जा,तचेच आईचमानी पस्सियाणं उम्मायओ या पोवा कंदापओ वा अपप्पसओ वा आउहियाए वा केह आयरिएर वा सामग्नसंजएर वा रायससिएडवा बायछबिजुत्तेइ वा चिन्नाणलदिनेइ वा जुगापहाणेह वा परयणप्यभावमेह वा तमित्थियं अन्नं वा रमेज्ज वा कामेण्ज वा अभिलज्ज वा भुजेज्जवा परिभुजेज्ज चा जाचणे चियमंसमायरेज्जा सेणं दुरंततलक्खणे अहन्ने अर्व अवह अपस्थिए अपत्ये अपसत्ये अकाहाणे अमंगते निदणिज्जे गरहणिज्ने सिंसणिज्ने कुच्छणिज्जे से पाये सेणं पाचपावे से गं महापावे से महापावपावे से गं भइसी से महापारे से णं निभचारिसे महापावकम्मकारी, जया णं पायचिठत्तममुहिना तो णं मंदतरंगेर्ण बारेणं उत्तमेणं संघपणेणं उत्तमेणं पोरसेणं उसमेणं सत्तेणं उत्तमेणं तत्तपरिचत्तणेणं उत्तमेणं पीरियसामत्येणं उत्समेण संवेगेणं उत्तमाए धम्मसद्धाए उत्तमेणं आउक्सएणं पायश्चित्तमणुचरेजा, तेणं तु गोयमा! साहुणे महानुभागाणं अहारसपरिहारहाणाई गाव बंभचेरगुतीओ नागरिजति । २४ा से भय ! कि पचित्तेणं सुजमेना', गोयमा अत्येगे जेणं सुजोजा, अत्यंगे जेणं नो सुनोजा, भय । केणं अडेणं एवं नुबइ-जहाणं गोयमा ! प्रत्येगे जेणे सुज्जा अत्यगे जे शं नो सुजिमजा?, गोयमा अत्येगे निवडीपहाणे सदसीले कंकसमायारे से ण ससा आलोहतार्ण समले चेच पायच्छित्समणुचरेना, से गं अविसुबसकलसासएको सुज्जा , अत्यगे जे गं उपजुपरबसरलसहावे जहावत्तं णीसहई नीस सुपरिट आलोइत्तार्ण जहोचाई पेव पायच्छिसमगुहिला से निम्मलनिकलुसविसुद्धासए विसुजोना, एतेणं अडेणं एवं पुचाइ जहा गं गोयमा! अत्यगे जे में नो सुज्झेजा अत्यगे जे णं सुजोना। २५। तहा गं गोयमा इत्थी य गाम पुरिसाणमहम्माण सापाव कम्माणं वसुहारा तमस्यर्पकवाणी सोग्गइमम्गरस गं अग्गला नरयावयारस्स णं समोयरणवत्ती अभुमयं क्सिकंदलिं अनग्गिय बलि अभोवर्ण विचइयं अजामियं वाहिं अवेयर्ण मुळ अगोवसम्मि मारि अणियलिं गुनि अरज्जए पासे अहेउए मयूव्हा पण गोयमा ! इस्थिसंभोगे पुरिसाणं मणसावि अथितिणिजे अमावसणिज्जे अपत्यणिज्जे अणीहणिज्जे अपियप्पणिज्जे असंकप्पणिज्जे अणमिलसणिज्जे असंभरणिग्जे तिविहंनिषिहणनि. जत्रोण हत्यीण नाम पुरिसस्स गोयमा ! सपनारेहिपि दुस्साहियं विज्जपिय दोसुम्पायर्ण सरमसंजणगंपिय अयुद्धधम्म खलियचारित्नपिच अणालोइय अणिदियं अगरहियं अकयपायपिछत्तनमवसायं पड़च अर्णतसंसारपरिय। हर्ण दुस्वसंदोह कयपायच्छित्तचिसोहियपिच पुणो असंजमाचरणं महंतपावकम्मसंचयं हिंसपिच सयललेलोकनिदियं अदिहपरलोगपचापं पोरंधयारणारयवासोच गिरंतराणेगबुक्सनिहित्ति, 'अंगपचंगसंठाणे, वास्तवियपेहिये। इत्पीचं तं न निजमाए, कामरागविपदणं ॥१५६॥ तहा य इत्थीको नाम गोयमा ! पळयकालस्यनीमिव साकाई तमोपलिनाउ भवंति विज्जु च खणविहनपेम्माओ भवंति सरणागयचायगो इव एकजमियाओ नक्वणपसुयजीवंतसूबनियसिसुभक्सीओ इब महापाचकम्माओ भवंति खरपवणुचालिबलवणोबहीवेलाइच बहुविहविकप्पकहडोलमालाहि सर्णपि एगस्थ असंठियमाणसाओ भवंति सयंभुरमणोदहीमिप दुरखमाहकहतवाओ भनि पक्षणो इस पलसहापाजो भवति अम्मी इस सबमक्खीओ पाऊब साफरिसाओ तकरो इव परत्यलोनाओ साणो व दाणमेलमित्तीजो मच्छो व हापरिचत्तनेहाजो एपमाइअणेगदोसलक्सपटिपण्णसांगोवंगसम्भतरचाहिराणं महापाक्कम्माण अविणयविसमंजरीणं वत्युप्पन्नअणत्वगन्मापसूईणं इत्थीणं अणवस्यनितिनुगंधासदाविलीणकुच्छमिननिदणिज्जसिसणिजसवंगोवंगाणं सम्मंतरवाहिराणं परमस्यओ महासत्ताणं निवित्रकामभोगार्ण गोयमा! सम्वुत्तमुत्तमपुरिसाण के नाम सयले सुविधायधम्माहम्मे खणमपि अभिलासं गच्छिना।२६। जासिप अभिलसिउकामे पुरिसे तजोगिसमुच्छिमपंचंदियाण एकपसंगेण चेच णवह सयसहस्साणं णियमा उपरक्गे भवेजा, तेय अर्थतग्रहमत्ताउ मंसचाणो ग पासिया।२७ एएणं अहेणं एवं बुबह जहा से गोषमा! जो इत्थीर्य आलबेजा नो खेलनेजा नो पेजा नोइस्वीर्ण अंगोगाई संणिरिक्खेजा जाप शं नो इवीए सदि एगे बंभयारी अडाणं पडियनेजा । २८ासे भय ! किमित्वीए संलामुतागोवंगनिरिक्खणं कनेता उमाह मेहुर्ण १, मोयमा। उमयमवि से भयवं! किमिस्थिसंजोगसमावरणे मेहुणे परिवञ्जिया उपाहुणं बहुबिहेसु सचित्ताचित्तवत्युविसाए। ११२३महानिशीपच्छेदसूत्र,odnaR
मुनि दीपानसागर
दीप अनुक्रम [३८७]
~271
Page #272
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आगम
(३९)
प्रत
सूत्रांक [२९]
+
गाथा
॥१५७॥
दीप
अनुक्रम [४११]
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं )
अध्ययन [ २ ], • उद्देशक [३], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित .......आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र -
मेडुणपरिणामे तिविहतिभिहेणं मणोवहकायजोगेणं सङ्ग्रहा सबकालं जावज्जीवति ?, गोयमास सहावा ॥ २९॥ से भयवं जेणं केई साहू वा साहुणी वा मेहुणमासे विज्जा से णं दिज्जा ?, गोषमा जेणं केई साहू वा सादृणी या मेणं संयमेव अप्पणा सेवेज्ज वा परेहिं उनसे सेवाविज्जा वा सेविज्जमाणं समजाणिज्ज वा दिवं या माणुस वा तिरिक्खजोणियं वा जाव णं करकम्माई सचिताचितवत्युविसय वा विविहायसाणं कारिमाकारियोवगरणेणं मणला वा वयसा वा कारण वा से णं समणे वा समणी या दुरंतपणे अट्टये अमम्पसमायारे महापावकम्मे णो णं बंदिज्जा णो णं बंदाविज्जानो वैदिजमार्ग वा समणजाणेज्जातिविहंसिविणं
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~ 272 ~
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- मूलं [२९] + गाथाः || १५७||
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[६] "महानिशीथ" मूलं
विसोहकालंति से मपर्व जे चंदेज्जा से कि लज्जा ? गोयमा जे तं वंदेज्जा से अारसहूं सीलंगसहस्सधारीणं महाणुभागाणं तित्ययरादीणं महतीं आसायचं कुज्जा, जे तित्ययरादीण आसायण कुजा से गं झवता पचा जाव णं अनंतसंसारियत्तणं लभेण्जा ३०। विप्पहिचित्वियं सम्मं साहा मेहुणपिय अत्येने गोयमा पानी, जे जो चयइ परिमाहं ॥ ७॥ जाइये गोयमा नस्स, सचित्ताचित्तोभयतगं भूयं वाऽणु जीवस, भवेज्जाउ परिगई ॥८॥ तानइएवं तु सो पाणी, ससंगो मोक्खसाइयं णाणाइतिगंण आराहे, सम्हा वज्जे परिग्ग ॥९॥ अत्येगे गोपमा पानी, जे पयहिता परिगई आरंभ नो विवज्जे, संपीयं भयपरंपरा ॥ १६० ॥ आरं परिचयस्संगविलजीवस वइयरे संघाइये कम्मं जं पदं गोषमा मुणे १६१ ॥ एगे बेईदिए जीने एवं समयं अणिच्छमाणे वन्यमिओगे हत्येण वा पाएण वा अन्यरेण वा सलागाइडवगरणजाएणं से कई पाणी अगा संप या संपावेल या संपट्टिनमा अगार्ड परेहिं समजानेजा से में गोषमा जया तं कम्म उदयं गच्छेजा तथा महया केसेणं उम्मासेणं वेदिना, गाढं दुवालसहिं बच्छरेहिं तमेव अगाढं परियाजा बासस रसेणं गाढं वसहिं बाससहस्सेहिं तमेव अगाढं फिलामेजा वासलक्खेणं गाढं दसहिं वासललेहिं अड्डा णं उपवेशात वासकोडी, एवं तिचउपचिदिए दयं । २१ मस्त पुढविजीबस्स, जत्येगस्स विराणं। अप्पारंभ तयं बेति गोयमा सङ्घकेवली ॥ २॥ सुहस्स पुढविजीचस्स वाचती जन्य संभवे महारंमं तयं देति गोयमा सकेवली ॥३॥ एवं तु संमिलतेहि कम्प्मुकरहिं गोषमा से सोमे अहिं जे जारंभ पन्त ॥ ४॥ आरंभ माणसदनिकाइ कम् पदं भवे लम्हा लम्हा विज ॥५॥ पुढवाइअजीकार्यता सहभावेहिं सङ्घहा आरंभा जे नियहेज्जा से अइरा ( जम्म जरामरणसशदारिक्याण) विमुच ॥ ६ ॥ नि. अयेगे गोयमा: पाणी, जे एवं परितगृहाच्छे ण मे सम्मम्मवत्तणि ॥ ॥ जीवे मामोहने, घोरपीस्तवं चरे अपयंतो इमे पंच, कुज्जा सर्व निरत्ययं ॥ ८॥ कुसीलोनपासत्वे, सच्छंदे सबले वहा दिट्टीएवि इसे पंच. गोयमा न निरिक्खए ॥ ९ ॥ समुदेसियं मग्गं समदुक्खपणासगं सायागारवर्गुफा, अन्नहा भणियमुज्झ ॥ १७० ॥ पयमनखपि जो एवं सहन्नूहि पवेदियं न रोएज्जहा मासे, मिच्छदिट्टी स निहि ॥ १ ॥ एवं नाऊण संसग्गि दावा चहियाकेसी, सोवाएहि वज ॥ २ ॥ भययं निम्भट्टसीला, दरिसणं तंपि निच्छसि पन्छितं वागरेसीय इति उभयं न जुजए ॥ ३॥ गोषमा भट्टसीलाणं, दुसरे संसारसागरे। धुवं तमणुकंपिता, पायच्चिने परिसिए ॥४॥ मय कि पायच्छित्ते चिंदिज्जा नारगाउयं । अणुचरिण पच्छित्तं बहने दुम्माई गए ॥५॥ गोषमा ! जे समज्जेज्जा अनंतसंसारिणं पच्छित्ते धुवं तंपि छिंदे कि पुणो नरपाउयं ॥ ६ ॥ पायच्छित्तस्स भूषणेऽत्य नासज्यं किंथि विज्जए। बोहित्य पमोत्लू हारियं तं न लम्भाए ॥ ७॥ तं चाउकायपरिभोगे, तेडकायस्थ निष्टियं अयोहिलाभियं कम्मं वज्जए मेहणेण य ॥ ८ ॥ मेहुणं आउका च. काय हेच हात जण ज्ज्जा संजईदिए ॥४९॥ से भयवं गारत्यीणं, सहमेचं परत तो जइ अोही मरेज) एस ओ सिक्लानागुयधरणं तु निष्फलं ॥ १८०॥ गोयमा दुविहे पहे अखाए, मुसमणे मुसाए। महायपरे पदम बीएणुश्यधार ॥ १ ॥ तििितषिण समणेहि सामुज्झि । जावज्जीवं वयं पोरं, पडिवज्जियं मोखाणं ॥ २ ॥ दुहिं पतिविहं या सायं उदिकालियं तु वयं (देण) सबसे गारन्थी हि ॥ ३ ॥ तब तिथितिविहे इच्छारंभपरिग्गदं योसिरंति अणगारे, जिगलिंग परेति व ॥ ४ ॥ इयरे (य) अणुज्झिता, इच्छारंभपरिहं सदाराभिरएस मिट्टी, जिगलिंग तू पूपए (ण पास्यति ॥ ५ ॥ ता गोयमेगदेसस्स, पटिकते गारो भने तँ वयमणुपाठयंताणं नो सि जातायणं भवे ॥ ६ ॥ जे पुर्ण समस्स पटिकते. धारे पंच महदए। जिगलिंगं तु समुबह नं लिगं नो विजए ॥ ७॥ तो महयासायण तसि इपिग्मी आउसेबणे अनंतनाणी जिणे जम्हा, एवं मणसावि गमिलसे ॥ ८ ॥ ता गोयमा साहियं एवं एवं वीमंसिउं दर्द विभावय जई बंधिना गिहिणो न अबोहिलामियं ॥ ९ ॥ संजए पुण निषेधिना एवाहिं देऊहि । आमाइकम वयभंगा, तह उम्मापचतणा ॥ १९४ ॥ मेहुणं पाठकार्य च कार्य तम्हा तितति (जत्ते) लेला सहा मुणी ॥ १॥ जे चरंते व पच्छिम किलिम्सए जह भणियं वाऽह मामु, निरयं सोते बाई ॥ २ ॥ भवं मंदसदेहिं पायच्छिन कीरई अह काहति किलिमणे, ताऽणुकं विरुझए ॥ ३ ॥ नी रायादीहिं संगामे, गोयमा सलिए नरे सदरणे मधे दुक्खं नार्काविरुज्झए ॥ ४ ॥ एवं संसारसंगामे, अंगोष गंनबाहिर भारताण, अणुकंपा अणोपमा ॥ ५ ॥ भयं सहमि देहत्वे, दुक्लिए होति पाणिणो समयं निफिटे सतं तखनासो सुही भये ॥ ६ ॥ एवं पियरे सिदे, साहू धम्मं विधि से अलंक निसिरिएण मुही भये ॥ ७॥ पायच्छित्ते को तत्थ, कारिणं गुणो भने ? जेणं कीचस्सची देखि, दुसरं दुरनुचरं ॥ ८॥ उद्धरिडं गोयमा सह, बणगे जाव णो कये वणपिंडीपबंधं च नाचणं किं पाए ॥ ९ ॥ भास उस पण इमो भयेपच्छितो दुसरोषि पावव लिप्यं परोहए ॥ २०० ॥ भचयं किमजिते सुने जाणिए था? सोहेइ सबपावाई [पच्छित्ते समुदेखिए ? ॥ १॥ सुसाऊ सीयले उदगे, गायमा जाव णी पिए गरे गम्यते ताव तहा न उसमे ॥ २ ॥ एवं जाणित्तु पच्छितं असदमात्रेण जा परे वा तस्स त पानं, बढाए उण हायए ॥ ३॥ भय किसे पहला, पमादेश कत्थई आगयं? पुणो आउनस्स, तेलिये किन ठाय ॥ ४ ॥ गोयमा जह पमाए, निच्छंतो अहिडंकिए। आउत्तरस जहा पच्छा सिं, वह तह पाव ॥ ५ ॥ मयर्थ जे विदियपरमत्ये, सहपच्छितजाणगे ते किं परेसि साहति नियमक जहट्टियं ॥ ६ ॥ गोयमा मत दिय जो कोडिमुवे सेवि दट्टे विणिभिडे, धारियातेहिं महिए ॥ ७॥ एवं सीलुज्जले साहू, पण्डितं न दबाए अन्नेसि निणं (द) साहे, ससी व व्हावओ जहति २०८ ॥ महानिसीयस (२८१) ११२४ महानिछेद अन्वर
मुति दीपरत्नसागर
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आगम
(३९)
"महानिशीथ" - छेदसू ------- अध्ययन [३], ------------- उद्देशक -, ---------- मूलं [१] +गाथा:||१|| -------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
कम्मनिचागपागरणं नाम पापमळायणं । एएसित दोण्हं अजायणाणं विहीपुरगेणं समसामर्थ वायर्णति ।३१।'बबो पर चटकन्न, सुमहत्याइसयं परं। आणाए सहया, सुत्सत्यं जं जहहियं ॥१॥जे उम्पाई परुज्जा , देना वसुजोगम्स उपाएज अचमचारी ना. अविहीए अणुदिपि वा ॥२॥ उम्माय बलभेज्जा रोगायकर पाउणेदीहं। मंसेज संजमाजो मरते ना पयाचि आराहे ॥३॥ एवं तुजं बिहीपुर्व, पढमायणे परूबियं। बीए चेच विही एवं. गाए सेसाणिमं पिहि ॥४॥ बीयजायणेऽपिले पंच, नबुढेसा तहिं भवे । ताइए सोलस उद्देसा, अह सत्येव अंपिले ॥५॥ जंतइएवं चउत्येऽपि, पंचमंमि छायचिले। छहे दो सनमे तिन्नि, अहमे आयंषिले दस ॥६॥ अणिक्विनभत्नपाणेण, संपणं इस महा। निसीहरं मुयलध, बोडव्वं च आउत्तगपाणगेणंतिआगंभीरस्स महामानो उ.संजुयस तचोगुणे सुपरिक्लियरस कालेणं, सयममेगस्स बायणे टासेत्तसोहीए नियंत. उपउत्तो भविया जया। नया बाएज एवं नु, अचहा उलिजद ॥९॥ सैगोवंगमुपस्सेष, णीसंदं वत्तं परं। महानिहि अविहिए, मिष्हतेणं उलिगाए ॥१०॥ अहवा सबाई सेयाई. बहुरिग्याई भवंति उ। सेयाणं तु पर सेर्थ, सुयकसंध निविग्पं ॥१॥जे पर पुणे महाणुभागे से वाहया. 'से भय केरिस तेसिं, कुसीयादीण लक्लणं? सम्मं विधाय जेत. साहा ते विववए॥२॥ गोयमा! सामनओ तेसि, लक्षणमेचे नियोधमा जनच्चा तेसि संसगी, सपहा परिषजए ॥३॥ कुलीले नाच दुस्सयहा. ओसने दुषिहे मुणे। पासवेनाणमादीणं, सब बावीसतीविहे सातत्य जे ते उ दुसयहा उ, वोच्छं ते ताव गोयमा! । कुसीले जेसि संसम्गीदोसेणं मस्सई मुणी खणे ॥१५॥ तत्य कुसीले नाव समासो दुविह णेए-परंपरकुसीले पऽपरंपरकुसीनेय,तास्थ णजे ते परंपरकुसीले ते विहे जेए-सत्तगुरुपरंपरकुसीले एगदुतिगुरुपरंपरकुसीले याराजेविय ते अपरंपरकुसीले तेचिउदुबिहे गेए-आगमओणोआगमओयाशतत्य आगमओ गुरुपरंपरिएणं आपलियाए ण केई कुतीले आसी उ ने फेच कुसीले भवंति शिनोआगमओ अणेगविहा, तंजहा-माणकुसीले दसणकुसीले चारितकुसीले तस्कुसीले वीरकुसीले शतस्य गंजे से नाणकुसीले सेणं तिबिहे गेए पसत्या. पतत्वनागकुसीले अपसत्यनाणकुसीले सुपसत्यनाणकुसीले। सातत्य जे से पसत्यापसत्यनाणकुसीले से दुविहे गेए-आगमओ नोजागमजओ य, तत्य आगमओ विहंगनाणीपणचियपसत्यापसत्यपयत्यजालजमवणऽज्झावणकुसीले, नोआगमओ अणेगहा पसत्यापसस्थपरपासंडसत्ययजालाहिजणऽज्झायणचायणाणुपेहणकुसीले ।६। तत्य जे ते अपसत्यनाणकुसीले ते एगणतीसइविहे दहब्वे, तंजहा-सावजवायविजामंततंतपउंजणकुसीले १ विजमतताहिजपाकुसीले २(विजामनप्ताहिनझावनकुसीले) गहस्पिसचारजोइसत्यपउंजणाहिजणकुसीले३निमित्तलक्षणपउंजणाहिजणकुसीले४ साउणलक्खणपउँजणाहिजणकुसीले५ हस्थिसिक्लापउँजणाहिजणकुसीले६ घणुव्वेयपउंजणा. हिजणकुसीले अधचयपउँजणाहिजणफुसीलेट परिसित्चीलावणपउंजणकापणकुसीले कामसत्वपउंजणाहिजणकुसीले १० कुहुनिंदजालसत्यपउंजणाहिजणकुसीटे११आलेक्सविजाहिजणकुसीले१२लेल्पकम्मविजाहिजणकुसीले १३वमणपिरेयणबहुवहींदजालसमबरणकहनकाहणवणस्सहमतिमोडणवच्छणाइबहुदोसपिजगसत्यपउंजणाहिजणझावणकुसीले १४एवं जा(पंज)१५जोगचुन्न १६वनचाउचाय१रायदंडणीई१८सत्यवऽसविपनत्र १५ऽच्छकड२०रयणपरिक्खा२१सचेहसत्व२२अमचसिक्रवा२३ गूदमंतर्तत२४कालदेसरसंधिविग्गहोचएस२६सत्य२७मम्म(ग)२८जाणवहार२५निरुवमरथसत्यपउँजणाहिजमनपसत्यनागकुसीले, एसमेएसि चेव पावसुयाण वायणापेणापरापत्तणाअणुसंधणासपसायमणअपसत्यनाणकुसीले । तत्यजेय ते सुपसत्यनाणकुसीले तेविय दुबिहे गेए-आगमओणोजागमजोय, तस्य आगमओ सुपसत्य पंचप्पयारं गाणं आसायंते सुपसत्यनाणधरेवा आसायंते सुपसस्थनाणकुसीले । दानोआगमओय सुपसत्यनाणकुसीले अहहागए, जहा-अकालेणं सुपसत्यनाणाहिजणझाषणाकुसीले अविणएणं सुपसत्यनाणाहिजणझापणाकुसीले अबइमाणेणं सुपसत्यनाणाहिजणकु. सीले अणोरहाण सुषसत्यनाणाहिजमझायणकुसीले जस्स य सयासे सुपसत्यं सुत्तत्योभयमहीय निण्हवणसुपसत्यनाणकुसीले सरपंजणहीणक्यारियचावरियहिजणजमावणसुपसत्यनाणकुसीले विवरीयमुनत्योभवाहिजणजमावणसुपसत्यणाणकुसीले संदिवसत्तरथोमयाहिजणझावणसुपसत्यनागकुसीले।९। तस्य एएसि अहंपि पयाणं गोचमा! जे केई अगोनहाणेणं सुपसत्यं नाणमहीयंति वा अन्झापयति पा जहीयत वा अमापर्यतं वा
समणुजाणति ते णं महापावकम्मे महती सुपसस्थनाणस्सासायर्ण पकुवंति।१०।से भय ! जह एवं ता कि पंचमंगलस्सणं उपहाणं काय?, गोयमा! पदम नाणं तो दया, दयाए य साजयजीवपाणभूयसत्ताणं अत्तसमदAरिसितं, समजगजीवपाणभूयसत्ताणं अत्तसमदसणाओ य तेसि व संघहणपरियाणकिलापणोडावणाइदुक्खुष्पायणभयविक्मणं तओ अणासयो अभासचाभी व संवुढासवदार संडासवदारतेषं च दमोपसमो तओ य समसनु
मितपक्सया समसलुमितपक्खयाए य अरागदोसतं तओ य अकोहया अयाणया अमायया अलोभया अकोहमाणमायालोभयाए व अकसावत्तं तओ व सम्मत्तं सम्मत्ताओ य जीवाइपयत्यपरिमाणं तजो सात्य अपटिचरचं सात्यापडिबदनेण यजमाणमोहमिडलक्सर्व वओ विवेगो विवेगाओ य हेयउपाएपचत्युचियालगतबदलाख तओ य अहियपरिबाओ हियायरणे व अचंतमध्भुजमो तओ य परमस्थपविनुत्तमलतादिवसविहजहिंसाल. | क्सणधम्माणुहागिककरणकाराषणासत्तचित्तया तओ य संतादिवसबिहअहिंसालपसणधम्माणुहाणिककरणकारावणासत्तचित्तबाए बसव्युत्तमासंती सध्युत्तम मिउत्तं सप्युत्तम अजवभावरी सम्मुत्तमं समझतस्सवसंगपरिचागं सम्वुत्तमं सपनाम्भतरवालसविहजचंतधोरचीसमककृतवचरणाहाणाभिरमण सबुत्तमं सत्तरसचिहकसिणसंजमाणुहाणपरिपालणेकरडलक्स सम्वृत्तम सचुम्मिरण छकायहियं अणिगृहियचलबीरियपुरिसकारपरचमपस्तिोलणं च सनुत्तमसज्माबजमाणसलिलेण पावकम्ममललेवपक्वालगंति सन्नुत्तमुत्तमं आकिंचर्ण सन्युत्तमं परमपवित्तसाभावंतहिं गं सुविसुबसम्पदोसपियमुकनवगुत्तीसणाहजहारसपरिहारद्वाणपरिवडियसरबरपोरबमवयधारणति,
सओ एएणं पेष सम्युनमसंतीमदवअजयमुत्तीतवसंजमसचसीयजाषिणमुतुबरसंभषयधारणसमुहाने च सन्चसमारंभविषजर्ण, तओ य पुरवितमामणिवाऊपणफइचितिचउपबिंदिया तहेव अजीवकायमसमारंभारंभाचं अचमणोपडकायतिएणं विविहंतिबिहेण सोइंदियादिसंवरणआहारादिसणाविप्पजदत्ताए वोसिरणं, तओ य अ(मलिय)द्वारससीलंगसहस्सधारितं अमलियअट्ठारसतीलंगसहस्सधारणेणं च अस्खलियअसंडियामिलियअविराहियम११२५ महानिशीषमछेदसूर्य, अwant-2
मुनि दीपरनसागर
दीप
अनुक्रम [४६७]
अत्र द्वितियं अध्ययनं समाप्तं
अत्र तृतीयं अध्ययनं- “कशील-लक्षणं" आरब्ध:
~273~
Page #274
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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [३], ------------- उद्देशक [-1,---------- मूलं [११] +गाथा:||१५||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
R
प्रत
सत्राक
[११]
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गाथा
दमणगयरविषितानिगाहनियाहर्ण, तो य सुरमयतिरियोईरियपोरपरीसहोवसम्माहियासणं संमकरणेण, सोय अहोरायाइपडिमासु महापयर्स तमओ निषडिकम्मसरीस्या निम्पडिकम्मसरीस्ताए य सकमाणे निषकंपत्त, तत्रोव अणावमपरंपरसंचिवजसेसकम्मट्टरासिवर्ष अणतनाणदसणधारिनं च चाउगइभवचारमाओ निष्फेट सल्बबुक्सविमोक्र्स मोक्खगमणं च, नत्य अदिट्टजम्मजरामरणाणिसंपभोगिढविओयसतायुगजयसऽमक्खाणमहवाहियणारोमसोगदारिददुक्खमयमणम्सनं, तओ अ.एगतियं अर्थतियं सिवमयसमक्खयपुर्व परमसासयं निरंतर सत्रुतमसोक्वंति, ना सध्यमेवेयं नाणाजो पपनेजा, नागोयमा! एगनियअनियपरमसासतपुवनिरंतरसत्तमसोक्खकखुणा पदमयरमेव नाचापरेर्ण सामाइबमाइयोगबिंदुसारपनबसाणंदुवालसंग सुपनार्थ कारबिलादिजननिहिणाबहाणेणं हिंसादियं च तिविहंतिविहेण पदिकोण य सरबजगमनापियक्सरा. पूणर्ग पयघठेवघोसण्यापुबि पुवाणुपुवित्रणाणुपुब्बीए सुविसुदं अचोरिकायएण एगलेण सुविनेयं, तेच गोयमा ! अणिहणणोरपारसुविष्टिनचरमोयहि षिव य सुदुरखनाहं संपरसोक्खपरमहेउभूयं च.तस्स य सयनसोख हेउभूयाओ न इदेवयानमोकारविरहिए कई पारं गच्छेजा, बहादेवयाणं च नमोकारं पंचमंगलमेच गोयमा !, णो णमन्नति. ना णियमओ पंचमंगलसेन पटम ताच विणीवहार्ण कायध्वनि।११।से भय कयराए बिहीए पंचम गलस्स णे विणमओपहाणं काय?, गोयमा! इमाए बिहीए पंचमंगलस्सनिण ओबहाणं काय जहा- सुपसत्ये पेव सोणे लिहिकरणमुहुननस्यनजोगलसगससीचले विष्पमुकजायाइमयासंकेण संजायसदासंवेगसुनिष्पलरमहनाडसंतमुहजायसायाणुगवभत्तीबहुमाणपुष्यं णिणियाणं दुवालसभनहिएणं चेहयालए जंतुविरहिओगासे भत्तिमरनिम्भादसियससीसरोमाबलीपष्फत्तण(ब)पणसयवनपसनसोमाथिरदिट्ठीणपणपसंचेगसमुच्छलतसंजायपहव्यनिरंतरअचितपरमसुहपरिणामनिसेमुदासियजीवनीरियाणुसमयविपदतपमोयसुबमुनिम्मलविवढपरंतकरणेण खितिणिहियजाणिसिउत्तमंगकरकमलमजलसोहंजलिपटेणं सिरिउसभाइपवरवरथस्मतिथयरप डिमाधिविणिवेसियणयणमाणसेगमतगयन्सवसाएक समयष्णुदरचरितादिगुणसंपओक्वेयगुरुसत्याहाणकरणेकपदलक्खनचाहियगुरुवयमविणिमायं विजयादिपरमाणपरिओसाणुकंपोवरदं अगसोगसंतानुवेगमहावाहिवियणाचोरतुस्खदारिदकिलेसरोगजम्मजरामरणगम्भवासाइ सायगापमाहभीमनमोदहिवडगभूर्य इणमो समस्यागममज्झबनगरस मिसात्तदोसोक्यविसिहदीपरिकम्पियमणियअपरमाणजसेस हेउदिईनजुनीनिसनिकपचलपोहस्स पंचमंगलमहामुयसंधस्स पंचायणेगचूलापरिक्सिनस्स पवरपत्यणदेवयाहिडियरस तिपदपरिचिटशेगालावगसनक्सरपरिमाणं अर्णनगमपजयस्थपसाहगं सममहामंतपवरचिजाणं परमपीयभूयं नमो अरहनाणंनि पढमजायणं अहिजेय, सदिय यायचिलेणं पारियां, नहेब बीयदिणे अणेगाइसयगुणसंपओक्षेयं अणंतरभणियस्थपसाहर्ग अगंतस्तेणेच कमेणं दुपयपरिच्छिन्नेगालावगपंचक्रवरपरिमाणं नमो सिद्धार्णनिधीयजायण अहि. जेया, तहियहे य आयंबिलेण पारेया, एवं अणंतरमणिएणेष कमेणं अर्णतस्तत्वपसाहगं तिपदपरिच्छिन्नेगालावत सत्तक्सरपरिमाणं नमो आयरियाणति तश्यमायणं आवंचिटणं अहिनियत्रं, नहा अर्गतरुत्तत्यपसाहगे। तिपयपरिचिन्नेगालागं सत्तक्सरपरिमाण नमो उज्झायाणति चउत्थमज्नयणं अहिजेव, तडियहे व आयचिटण पारेया, एवं गमोलोए सबसाहुर्णति पंचममायण पंचमदिणे आयचिन्टेण, नहेब जयस्थाणुगामियं एका. रसपयपरिच्छिन्नतितयालायमतितीसाखरपरिमाणं एसो पंचनमोकारो, सवपावणणासगो। मंगलाच सबेसि, पढम हबइ मंगरमितिचूलंति छद्रुसत्तममविणे नेणेच कमविभागणं आर्थचिरडेहि अहिजेया, एपमेयं पंचमंगलमहामुपक्रबंध सरवन्नपयसहियं पपक्वरचिमत्ताविसुदं गुरुगुणोपयगुरुवई कसिणमहिजित्ताणं वहा काय जहा पुषाणुपुत्रीए पच्छाणपुत्रीए अणाणुपुत्रीए जीहम्मे नरेजा,मओ नेणेयानरमनियतिहिकरणमहत्तनपखलजो. गलम्पससीचटजंतुविरहिमोगासचेहवालगाइकमेणं अहममनेणं समजाणाषिकर्ण गोयमा! मया पण सुपरिफुट पिउणं असंदिदं सुनर्थ अणेगहा सोकणावधारेय.एवाए बिहीए पंचमंगलस्सणं गोपमा विणओचहाणो काययो ।१२। से भय ! किमेयरस अचितचिंतामणिकप्पभूयस्सणं पचमंगलमहास्यसंघरस सुनत्वं पन्ननं १. गोयमा ! एमाइयं एयरस अचितचितामणिकम्पभूपस्सणं पंचमंगलमहासुयक्संघसणं सुनत्य पणन.नंजहा. जेणं एस पंचमंगलमहासुवक्स सेणं सपलागमंतरोववनी निलतेलकमलमयरंदम्य सचालोए पंचस्विकायमिवजहत्यकिरियाणुराया(गए)सम्भूयमुनकिनणे जहिटियफलपसाहगेचेच परमथुरवाए.सा य परमभुई केसिकायचा. सध्वजगतमाण, सयजमुत्तमुत्तमे व जे केई भूए जे केई भविस्सनि ने सच्चे पेप, अरहंतादओ ने चेच, णो णमन्नेनि, ते य पंचहा अरहते सिदे जायरिए उवज्झाए साहयो य, तथ एएसि व गमत्वसम्भागी इमो तंजड़ा-सनरामससुरसणं सध्यस्सेब जगरस अहमहापाटिहेराइपुयाइसओक्लनिसर्व अणण्णसरिसमचितमाहप्पं केवलाहिडियं पचरुन अरहतित्ति अरहंता, असेसफम्मक्खएणं निददभवंफरताउन पुणे भवंति मंति उपचति वा जगहता पा, जिम्माहियनियनिहलियविस्टीयनिवियअभिभूयसुदुजयासेसबहुपयारकम्मरिउत्ताओ वा अरिहंतति वा, एवमेते अणेगहा पन्नकिति पविगंति आपविनंति पट्टविनि सिजति उपदसिजनि, नहा सिहाणि परमार्णवमहसवमहाकालाणनिस्वमसोक्साणि चिप्पकंपमुफझापाशचितसनिसामत्यओ सजीवधारिएणं जोगनिरोहाणा महापयतेणिति सिद्धा, अहषवारकम्मखएण पा सिदं सज्जरमेतमिति सिबा, सिय मायमेसिमिति पा सिंदा, सिदे निहिए पहीले सबठपोषणवायकवंधतेसिमिनि सिदा, एवमेने इत्थीपुल्सनपुससलिंगाणलिंगगिहिलिंगपत्तेयबुदबोहिय जायण कम्मस्वसिद्धाइभएहि अणेगहा पन्नविजवि.नहा अहारससीलेंगसहस्साहिद्वियतणू छत्तीसइविहमायारं जहडियमगिलाए अहन्निसाणुसमर्थ आवरवित्ति परतयंतित्तिआयरिया, परमप्पणो अहियमायरतित्ति आपरिया, सासत्तस्स सीसगणागंवा हियमायरति प्रायरिया, पाणपरिबाएउनि उ पुढवादीण समारंभ नायरति गारमति नाणुजाणति वा आयरिया, सुलुमवरदेविण कस्सई मगसापि पावमायरतित्ति वा आयरिया, एवमेते णामठवणादीहिं जगहा पनविनति, नहा मुसंडासपदारे मणोवयकायजोगत्तउवउत्ते बिहिणा सर्वजणमत्तापियावरविसुदपालसंगसुयनाणज्झयणझावणेणं परमप्पणो अ मोफखोचाय झार्यतित्ति उक्झाए, चिरपरिचियमणंतगमपजवस्थेहि वा दुवालसंग सुयनाणं चितंति अणुसरंति एगग्गमा१९२६ महानिशीथप्छेदमूर्य, अत्या -३
मुनि दीपरजसामर 4
||१५||
दीप अनुक्रम [४९२]
E
KARAYA
~274~
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आगम
“महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [३], ------------- उद्देशक [-1,---------- मूलं [१३] +गाथा:||१६||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
हानिशी दिसून
(३९)
प्रत
सूत्राक [१३]
गाथा ||१६||
णसा मायतिलिचा उपज्झाए, एपमेतेहिं (मेएहिं) अणेगहा पन्नचिजति, नहा अतकहउम्गग्गयरपोरतश्चरणाई अगषयनियमोपचासनाचाभिमाहविसेससंजमपरिवालणसम्मपरीसहोवसम्माहियासणेणं सबस्वविमोक्वं मोक्खं साहयंतिमि साहनी, अयमेव इमाए चलाए भाविनइ-एतेति नमोकारो एसो पंचनमोकारो, कि करेजा. सर्व पार्व-नाणावरणीयादिकम्मविसेस ने परि(अपरिसे सेणं दिसोदिसंणासया सापाचपणासणो, एस चलाए पढमो उसओ, एसो पंचनमोकारो सापाचप्पणासणो किविहो उ.मंगो-निब्याणसहसाहणेकरखमो सम्मदंसगाइाराहो अहिंसालालणो धम्मोतं मे लाएजति मंगल, ममं भवाउ- संसाराओगलेना- तारजा वा मंगल, बहपृट्टनिकायहायगारकम्मरासि मे गालिजा-विटिजननि या मंगल, एएसि मंगला अमेसिन मंगलार्ण सवेसि कि?, पदम आदीए अरहतार्ण युई पेच हवा मंगल, इनिएस समासस्थी, विस्थरस्थं न इमं तंजहा-नेणं कालेणं अर्ण समएम गोयमा ! जे के पुश्माननियमहत्ये अरहते भगवत धम्मतित्वगरे मवेजा सेणं परमपुजाणपि पुणवो भवेजा,जओ गते सोऽपि एवलक्मणसमभिए भवेना,नंजहा- अतिअप्पमेयनिश्वमाणग्णसस्सिपचरवरुत्तमः गुणोहाहिटियलेणं तिण्हंपिटोगाणं संजणियगुरुयमहंतमाणसाणंदे, तहा यजमंतरसंचियगुरुयपुष्णपरमारसंचिद्वत्ततित्थयरनामकम्मोदएणं दीहरगिम्हायरसनापकिलेतसिहिउलार्ण र परमपाउसधारामस्वरिसनपणसंपायमिव परमहिलोपएसपयाणाइणा पणरामदासमोहमियानापिरहपमापदुइकिलिहावसायाइसमजियासुदपारपाचकम्मापसंताचस्स पिण्यासगे भवसनाणं सान्न अणेगजम्मनरसंपिटनगुरुयपुत्रपामारासयबारेण समत्रियाउलबलवीरिएसरियसनपरकमाहिडिवतणू मुतदिनचारपायगुहमाझवाइसएकसयलगहनक्खनचंदपंतीणं मूरिए इव पर्यडप्पयावरसदिसिपयासविपुतकिरणपामारण णिवतेयसाचिनहाय सबलाणवि विनाहरणरामरीणं सदेवदाणविंदार्थ सुस्लोगाणं सोहम्मकनिदिनिलायमरूपसमयसिरीए साहावियकम्माखवजणियदिवकरपचरनिरुवमाणजसरिसविसेसाइसवाइसयलक्खणकलाकल्यानपिच्छपरिसणे मवणपदवाणमंतरजोइसपेमाणियाहमिंदसईदच्छरा किन्नर गरविनाहरस्स ससुरासुरस्सारिणं जगरस अहो ३ अज अविठ्ठपुर्व विद्यमम्हहिहणमो सविसेसाउत्तमहंताचिंतपरमच्छेस्यसंदोहंसमम्गलमेवेगसमुदयं दिहति तवणउपनयणनिरंतरवहलपमोया चिनयनो सहरिसपीवाणुराययसपवि. यमंताणुसमयअहिणवाहिणवपरिणामविससनेणमहमहतिजपिरपरोप्परार्ण विसायमुनगयहहहधीधिरत्युनधनाऽपुनाचयमिइणिदिरअत्ताणगमणतरसंहियहिययमुचिकरसुरदयणसुपुण्णसिदिग्लियसगाउँपण पसरणों उ में सनिमेसाइसारीरिवाचारमुकफेवल अणोक्सक्सक्वलंतमंदमंददीहइंकारविमिस्समुकदीहउहाहलनीसासगनेणं अइअभिनिविजुद्धीसुणिच्छिवमणस णं जगस्स. किं पुणनं नवमणुचिडेमो जेणेरिस पवररिदिलभिजनितमायमणसणं देसण घेच णियणियचच्छस्थालनिहिनततकस्बप्पाइयमहतमाणसचमकारे, ता गोयमार्ग एवमाइअणतगुणगणाहिडियसरीराणं तेसि सुगहियनामजाणं अरहतार्ण भगताणं धम्मनिन्थगराणं संनिए गुणगणों इस्यणसंपाए जहन्निसाणुसमयं जीहासहस्सेणंपि पागरवो सुरवईपि अन्नयरे वा केई चउनाणी महाइसई य उमत्ये सयंभुरममोवहिस्सइव वासकोटीहिपि णो पारं गच्छेजा, जओ अपरिमियगुणरयणे गोवमा : अरहते भगवते धम्मस्थिगरे भति, ता किमित्य भनाउ, जत्ययर्ण तिलोगनाहाणं जगगुरूर्ण भुषणेकर्षपूर्ण तेल्लोकतम्गुणखंभपवरधम्मतित्थंकराणं केई मुरिदाइपायगुडग्गएगदेसाउ अणेगगुणगणालंकरियाउ भनिभरनिभरिकरसियाण | ससिपि वा सुरीसाणं अणेगमतरसंचिवजणिहहहकम्मरासिजणियदोगचहोमणस्सादिसयलक्सदारिहकिलेसजम्मजरामरणरोमसोगसंतानुयवाहिवेषणाईण खयहाए एमगुणस्साणनभागमे भणमाणाण जमगसमगमेच दिशयरको इच अणेगगुणगणोहे जीहग्गे विफरंति लाई पन सका सिदावि देवगणा समकालं भणिऊणं, किं पुण अकेवली मंसचक्षुणो ?, ता गोयमा! णं एस इत्यं परमन्ये वियाणेया, जहाण जइ नित्यगाणं संनिए गणगजोहे तिन्थयरे चेन वायरति. ण उण अमेजओगं सातिसया तेसि भारती,अहवामोषमा! किमित्ययभूयबामरणेण ?,सारव मचाए। जहा-नामंपिसवलकम्मट्ठमलालकेहि नियमुकाणांतिसिंदवियचलणाण जिणवरियाण जो सम॥१६॥विविहकरणोषउत्तो खणे खणे सीलसंजमुलुतो। अविराहियवयनियमो सोऽविहुइरेण सिझेजा ॥१॥जो पुण दुबउबिग्गो सुहतबहाल अलिश कालवणे। यययुइमंगलजयसवाक्डो रणझणे किंचि ॥१८॥ भविभानि भरो जिमचरिदपायारबिंदजुगपरओ।भूमिनिट्टपियसिरो कयंजलीचावडो चरित्तडो॥१९॥एकपि गुणं हियए धरेन संकाइसबसम्मत्तो अवसंडियवयनियमो नित्ययरत्ताएसोसिझे ॥२०॥ जेसिचणं सुगहियनामग्गहणाणं तित्ययराणं गोयमा ! एस जगपापटमहडेश्यभूए भुषणस्स वियट्पायरमहंताइसवपरिषभो, जहा-सीणट्टपावकम्मा मुकाबहुदुनखगम्भवसहीणं । पुणरविज पत्तकेवलमणपजपणाणचरिननणू ॥२१॥ महजोइणो चिविहदुस्तमयरमयसागरस उधिग्गा । इठूण ऽरहाइसए भवनमणा खणं जंति ॥२२॥ अहवा चिट्ठल नाव सेसवागरणं गोयमा! एवं चेष धम्मतिस्थगरेति नाम समिहिर्यपवरक्समबर्ण तेसिमेव सुगहियनामधिनाणे भूषणपूर्ण अरहनाणं भगवंताण जिणवरिंदाणे धम्मतित्थंकराणं उने,ण अन्नेसि, जओ यगजमतरपुदमोहोचसमसंवेगनिवेषणुकंपात्रस्थित्ताभिवत्तीसलवखणपचरसम्मईसणुसंतविरियाणिगृहियउम्मकहपोरखकरनवनिरंतरजियाउनुगपुन्नसंघसमुदयमहपाभारसंचिद्ध
तउत्तमपकरपविनाविस्सकसिणधुणाहसामिसालमतकालयसभषमावणच्छिन्नपावधणेकअपिशजतिस्थयरनामकम्मगोयणिसियसुकतदिनचाररूवबसविसिपयासनिरुवमलपसणसहस्समंदियजगुनमुनमसिरी निवासवासवाबीच देवमणुयदिडमेत्ततखर्णतकरणलाइयचमकनयणमाणसाउलमहंतपिम्हयपमोयकारया असेसकसिणपाचकम्ममलकलेकविप्पमुक्कसमचरंसपवरपत्मकजारिसहनारायसंघयणाहिडियपरमपचिनुनममनिधरेने चेष भगवते महायसे महासते महाणुभागे परमिट्टी सदम्मतित्यको भवंति।१४अन्नंच सयसनरामरतियसिंदसुंदरीरुवतिलावन्न। सर्वपि होज जब एमरासिण संपिण्डिय कहनि॥२३॥पजिणचारणमुहम्मकोडिदेसेगलक्सभामस्सासनि. मिन सोहाजह छारउड कंपणगिरिस्स ॥२४॥ति, 'जहवा नाऊण गुर्णतराई अन्नेसि ऊण सरत्या तिस्पयरगुणाणमणंतभागमरम्मंतमन्नस्य॥२५४ाज तियणपिसयल एगीहोऊणमुम्भमेगदिसि भागे गुणाहिओऽम्हं तिस्पयरे परमपुणे ॥२६॥ ति, तेविषअचे दिए अरिहं गहमइसमन्ने जम्हातम्हा ते चेव भावओणमह धम्मतित्थयरे।।२७आलोगेविगामपुरनगरनिसमजणवयसमगमरहस्सा जो जित्तियस्स सामी नस्सासिने कति॥२८ानवरं गामाहिचई। ११२७ महानिशीपच्छेदसूध, मन्स -३
मुनि दीपस्नसागर
दीप
अनुक्रम [४९४]
~275~
Page #276
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आगम
(३९)
प्रत
सूत्रांक
[१५]
+
गाथा
||२९||
दीप अनुक्रम [५१०]
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“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं )
अध्ययन [ ३ ], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित
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- मूलं [१५] +माथाः ||२॥
उद्देशक [-], आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
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सुट्टे एकगाममन्झाओ कि देश? जस्स नियमे तेलीए एसियं पुढं ॥ २९ ॥ चहरो डीए सुयेपि द न हु मन्ने [ते व कमागयगुरुदरिनाम समासे ॥३०॥ (सयलबंधुवग्गस्सप्ति) सो मंता चछह करो इनणं करते। इदो तित्पयरे उण जगस्स जहि ॥३१॥ तन्हाईदेहीवि कंलिजई एमबदललेहिं अइसानुरामहियएहिं उत्तमं तं न संदेहो ॥ ३२॥ तो सगलदेवदानवहरखरिदमा तित्यपरे पुजवरे ते बिय पार्ष पणाति ॥ ३ ॥ खिय निगमहियाण धम्मनित्यंकराण जगगुरूणं मागदाबणभेदेन दुचणं भणियं ॥४॥ [भाषचण चारिताणुद्वाणकग्ाघोरतव चरणं दण पिरयाविश्यसीला सकारदाणादी ॥५॥ ता गोपमा एसेम परमत्ये तंजा 'भावयणमुग्ाविहारया यदन्यचणं तु जिणपृथा पढमा जईण दोनिवि गिहीन पदमचिय पसल्या ॥६॥ एवं च गोवमा केई जमुनियसमयसम्भावे ओसनविहारी नियवासिणो पिरलोगपबचाए सयंमतीद रससायगारवाइमुछिए रामदीस मोहा कारममी काराइ सुपरिषदो कसिन जमसम्म परमुहे नियनित्तिसनिग्पिणफणनिकिचे पावापरणे अभिनिविद एगंले अइथंडरोहरा मिग्ाहिए मिच्छट्टिणी साव जोगपणे विप्यमुकाससंगारंभपरिगई तिनितित्रिणं पविचसामाइए बदम्बनाए, न भावत्ताए, नाममेव मुंडे अणगारे महत्वयधारी समनेऽपि भवित्ताणं एवं मन्नमाणे सहा उम्मणं पवनंति जहा कि अम्हे जर हंताणं भगवंताणं गंधमापदीसंमणोपलेवणविचित्तवत्थवलिवाइए प्यासकारेहिं अनुदिवमन्यचणं पकुवाणा तित्युच्छप्पर्ण करेमो तेचो तहत गोषमा तं वायाएव णो णं तहत समजाला से म अर्ण एवं जहा नहनि समणुजाता ? गोयमा तपत्यानुसारेणं असंजमचा च मूलकम्मासनाओं प अवसार्थ पडुच वूलेयर सुहासुहरूम्मपयटीबंधो समाजविरयाणां च गो मंगेशं च आणाइकमे आणाहमेनं उम्मम्मगामितं उमामि च सम्यगविफलोवर्ण उम्मम्मपपतनसम्मग्गविप्पलोयणं च जणं महती आसाणा, ओ अ अनंतसंसाराहिंडणं, एए अद्वेणं गोयमा एवं इजहा गोषमाणो तहमा १५ दव्यत्वाभावत्वं तु दवयव बहुगुणो भव तम्हा अजामुदी उकापहियं तु गोयमाऽणु ॥ ७॥ अकसिणपत्रलगाणं क्रियाविश्याण एस जुनो जे कसि मजमविक] पुण्डादीन कप सि तु ॥ ८ ॥ किं मन्ने गोषमा एस. पत्तीसिंदाणुचिडिए जम्हा लम्हा उभयंषि अनुत्यं तु बुज्झसी ॥ ९॥ विणिओगमेयेतं तेसि, भावत्ययासंभवो तहा। भागवणा प उत्नमयं (दसन्न मण) उपाहरणं तच य ॥४०॥ चकहर माणूस सिदलदमनादीहिं विभिदिसे पृच्छते गोषमा ताथ, जं मुरिदेहिं मसीओ ॥ १ ॥ सविटिए अण्णसमे प्यास+कारे य कए ता किं तं सव्वसानं निहिं रिएऽिहितं ॥ २ ॥ उपासनामे सहा अविरएस उ णणु मयवं सुवरिदेहि सम्यधामे सहा ॥३॥ अरिएहि सुमतीए पूयासकारे कए ताज एवं तज मुज्झ, गोयमेमं नीसेस, देसविरय अविरयाणं तु विणिओगमुभयत्यपि ॥४॥ मेरे गोयमा समायरिये कणिकम्मखयकारयं तु भावत्ययमणु ॥ ५॥ भवती उगमागम रिसणाईपमदणं जत्य सपरऽहिजोवरयाणं न मपि पचतए तत्य ॥ ६ ॥ ना सपरऽहि ओवरएहिं उपरएि सा वि जं परमसारभूयं विसेसर्वतं च अणुदेयं ॥ ७॥ ता परमसारम्यं पिसेसर्वतं च अणष्णस्स एर्गतहियं पत्थं हा पयपरमत्यं ॥ ८॥ जहा- मेरुतुं मणिगणमंडिएककं चणमए परमरंमे नयणमणानंदयरे पभूयविद्यामसाइए ॥९॥ सिलसिलदमुचितमुनिवेसे बहुपिपाचपाउले पपरतोरणसना ॥ ५० ॥ सुविसाल सुविपिए पए परिचय (च) सिरीए मपमपमगपूरचंदाओए ॥१॥ पुमाया सुपुथ गचपणञ्चिरणादयस्याउले महराले ॥ २॥ कुतरायणसमाउले जिनका खिलचिने पकगणचंतच्छत्रा)गंधरनिग्पीसे ॥ ३ ॥ एमादिगुणां एपए पर हमे नियमुनिपुचलिए नायागरण अत्येन ॥ ४॥ चणमणिसामाणे सहस्मूसिए सुवतले जो कारवेज जिणहरे तोचि संजय अनंतगुणो ॥ ५ ॥ स तपसेजमेण बहुभवसमजिय पात्रकम्मल निषिण अझरा असो व सोर्स ॥ ६ काउंपि जिणाययणेहिं मंडियं सहमेहणी व दाणा चटणं सुषि गच्छे अनुषगं ॥ ७॥ ण परओ गोयम मिहिति जता समरविमाणवासीवि परिवर्तसुरासे चितित संसारे सास कपर? ॥ ८॥ कहतं भइ सुक्स सुधिरेणवि जत्य दुक्खमलिय जं च मरणारसाणेसु क्षेत्रकालीय तुच्छं तु ॥ ९॥ सणं चिरकाले सयलनरामराण हुई सुई नं न पड सुयमणुभूय मोक्खमुलस अभागेपि ॥६०॥ संसारियोक्लाणं सुमहतापि गोयमा मेगे मज्झे दुक्खसहस्से पोरपर्यण पुर्जति ॥ १ ॥ ताई च साययेओयाएण न याति मंदबुद्धीए मणिकणगलमयोगंगली जह बनिया ॥ २ ॥] मोहन्स धम्मं सदेवमणुयामुरे जगे इत्थं तो मानिसका नगरगुणे जप पुलियो ॥ २ ॥ कह तं मन्त्र पुन्नं सुधिरेणनि जस्स दीसए अंत जं च विरसावसाणं संसाराधि ॥४॥ नं सुरवि मानपि चितिपचवणं च देवलगाओ। असिकयचिय हिययं जनसिसिकरं जाइ ॥ ५ ॥ नरएस जाई अहदुस्सहाई दुखाई परमतिक्खाई को बन्नेई ताई जीवंत दासकोपि ॥ ६॥ ता गोयम! दसहिधम्मपोरतवर्सजमाद्वाणस्स भावत्यचमिति नाम तेणेव लभेज अस्लयं सोचसं ॥ ७॥ ति नारगभवतिरियमने अमरमचे सुरवल वादिनो से लम्म गोयम जत्य व तत्थ व मणुवजम्मे ॥ ८ ॥ सुमहचंतपणे संजमावरणनामसु । ताई गोयम पानी भावत्ययजोग्गयमुने ॥ ९ ॥ जम्मंतरसंचियस्यपुत्रपन्चारसंविदत्तेनं माणूसजंमेण विणा णो लम्भइ उत्तमं पम्मं ॥ ७० ॥ जस्सानुभाव सुपरियन्स निस्सामाहियस्स उम्मत अस्वयतोतिलोम ॥ १ ॥ तं बहुमचियतुंगपायकम्मरासिडहणल माणुसजम्मं विवेगमाईहिं संजुतं ॥ २ ॥ जो न कुणइ अन्तहियं सुयानुसारेण आसचनिरोह उत्तिगसीलंगसहस्साधारणं तु अपमने ॥ ३ ॥ सो दीयो पोक्लमिदावलिओ उबोसतो अशी बहुका ॥ ४ ॥ दुग्धामेज्झविलीणसारपित्तज्झसिमपहित्ये यस जपूयदुद्दिनचिहिषिले हिरचिखले ॥ ५ ॥ कढकढकदंत चल चल चलदलदलदलस रतो। संविडियंगमंगो जोगी जोगी बसे मन्ने एकेकगम्मवासेस जंतियं पुणरवि नमेज ॥ ६ ॥ ता संतापजन्मजरामरणगन्धवालाई संसारियदुक्खाणं विचित्तरूवाण मीएणं ॥ ७ ॥ भावत्यवाणुभावं असे भयभय यंकर नाउं तत्येव महता उनमेण दडमचंतं पयइययं ॥ ८॥ इस विजाहरकिरनरेण ससुरासुरेणापि जगेण संयुते दुहित्यहिं ते तिहुनुकोसे ॥ ९ ॥ गोयमा धम्मनित्यंकरे जिसे अरिहंतेसि, अ तारिसेवि (२८२ ) १९२८ महानिशीथच्छेदसूत्रं झण मुनि दीपरत्नसागर
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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [३], -------------उद्देशक ----------- मूलं [१७] +गाथा:||८०||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत सूत्रांक [१७]]
गाथा ||८०||
इडीपवित्परे सयलतियणाउलिए। साहीणे जगमणसाचि जे खर्ण लम्हे ॥८॥ सेसि परमीसरिय कासिरीवण्णवलपमाणं च। सामवं जसकित्ती सुरलीगचुए जहेह अवयरिए ॥१॥जह काऊमऽसमये उम्गत देवलोगमणुपते। तित्यपरनामकम्म जह पदंएगाइचीसइचामेसु ॥२॥जहसम्म पर्स सामनाराहणा य अन्नभये। जह तिसलाओ सिदत्यपरिगीचोचसमहासमिणलों ॥३॥जह सुरहिगंधषकरखेन गम्भवसहीए असहमपहरणं। जह सुरनाहो अगुहपमनसियं महंतमत्तीए ॥४॥ अमयाहार भत्तीए देड संधुणहजार व पत्रो।जह जायकम्मविणिजोगकारियानो दिसिकुमारीओ॥५॥सर्व नियकत्तर्ण निमत्ती जहेव मत्तीए । बीमपुरवारिदा गरुवपमोएण सन्चरिबीए ॥६॥ रोमंचकंचुपलड़य| मत्तिम्मरमात्रयस्सगत्ता ते। मते सकयत्वं जम अन्हाण मेकगिरिसिहरे ॥७॥होही खममालियबसरगंभीखंदुहिनिघोस। जयसहमहलमंगलकयंजली जयवीरसलिलण ॥८॥ बहसुरहिगंधवासियकंचनमणितुंग(स्यण)कोहि । जम्माहिसेवमहिमं करेंति (जह) जिनपरो गिरि चाले ॥९॥ जहद वायरणं भय वायरस अहरिसोचि । जह गमन कुमारनं (परिणे मोहिति)जह व लोगंतिया देवा ॥१०॥जह क्यनिस्त्रमणमई करेंति सो सुरासुरा मुश्या। जह अहियासे घोरें परीसाहे दिवमाणुसतिरिच्छे ॥१॥जह पणपाइचाक (कम्म) या पोरतवाणजोगबनीए। लोगालोमपयासं उपाए जहर केपलं नाणं ॥२॥ केवलमाहिलं पुणरवि-काऊर्ण जाह सुरासुराईया। पुति संसए धम्मणी इतमचरणमाईए ॥३॥ अहम कह जिणिको सुरकयसीहासणोचविट्ठो यातं चविहदेवनिकायनिम्भियं, जह पवरसमवसरणं, तुरियं करंति देवा, जं रिदीए जग तुलइ ॥४॥जस्थ समोसरिजो सो भुवणे
गुरू महायसो अरहा। अहमहपाडिहेस्यसुचिंधियं हवा य तित्वियं नामं ॥५॥जह निडला असेस मिळतं चिकणपि भवान। पडिबोहिऊण मग्गे ठवे जहमणहरा दिक्वं ॥६॥ मिहंति महामइणो सुत्तं गंयति जहर य जिनिंदो। भासे कसिणं अत्यं अर्णतगमपजहिं तु आजह सिझा जानाहो महिम निशाणनामियं जय। सोवि मुरवरिंदा असंभमे वह विमोचंति ॥८॥ सोमत्ता पगलंसुपोषगडयलसरसाइपबाई । कलुणं विलापसदंदा सामि! क्या अचाइत्ति ॥९॥ जह-सुरहिर्गधगम्भीपमहंतमोसीसचंदणदुमा। कडेटिविहिपुर सकारं सुरवरा सये॥१०॥ काऊ सोगत्ता सुबे बसविसिपहे पलोयंता । जह खीरसागरे जिणवराणं (अट्ठी) पक्वालिऊणं च॥१॥ सुरलोए नेऊणं आलिंपेऊण पवरचंदणरसेणं। मंदारपारियाययसयपत्तसहस्सपत्तेहिं ॥२॥जह अचेऊण सुरा नियनिवभवणेसु जहवय पुर्णति ( सई महया चित्वरेण अरहंतचस्यिाभिहाने) अंतकटदसाणं तं, मज्झाउ कसिण विजेयं ॥३॥ एत्वं पुणजे पर्यवं मोतुं जइमणेज तावेयं। हह असंबद्धस्य गंयस्तय वित्थरमणतं ॥४॥ एयपि अपत्यावे सुमहतं कारणं समुबई । जं वागरिय से जाण मनसत्तामऽणुग्णहवाए ॥५॥जह वा जत्तो जसो मक्लिगइ मोयगो सुसंकरित्रओ। तत्तो तत्तोचि जणे अगुज्यं माणसं पीई ॥६॥ एवमिह अपत्याधि मत्तिभरनिम्मराण परिजोस। जणयह गुरुयं जिणगुणगहणेकरसक्खित्तचित्ताणं ॥७॥एवं तुजं पंचमंगलमहासुबक्खंघस्स वक्तार्ण वं महया पर्वणं अर्णतगमपनहिं सत्तस्स य पिहभूयाहिं निनुत्तीभासचुणीहि जब अणतनाणसणधरेहि तित्पयरेहि वक्लानिय तहेच समासओ बनसाणिज्जतं आसि, अहमया कालपरिहाणिदोसेणं ताउ निजुत्तीभासचुभीजो वोच्छिबाजो।१६।जो यवतणं कालसमएणं महिझ्दीपत्ते पयाणुसारी बइरसामी नाम दुवालसंगसुयहरे समुप्पो, तेणेयं पंचमंगलमहासुपसंचरस उद्धारो मूलसुनस्स मजमे लिहिजओ. मूलमुत्तं पुण सुत्तत्साए गणहरेहिं अत्यत्ताए अहंतेहिं भगतहिं धम्मतित्वगरेहि तिलोगमहिएहिं वीरजिणिदेहि पन्नवियति एस वुझ्दर्सपयाओ।१७। एत्य यजत्य पर्वपएणाणुलन सुत्तालावर्ग म संपजा तस्य तत्व सुयहरेहिं कुलिहियदोसो न दायोति, किंतु जो सो एयस्स अविचिंतामणिकप्पभूयस्स महानिसीहसुयक्बंधस्स पुवायरिसो आसी नहि क्षेत्र संडाखंडीए उडेहियाइएहिं अहिं बहने पत्तगा परिसड़िया तहाचि अचंतसुमहत्याइलयति इर्म महानिसीहसुपक्स कसिणपत्यणस्स परमसारभूयं परं ततं महत्यति कलिऊणं पश्यपच्छउत्तर्ण बहुमत्रसच्चोपचारिक कार्ड तहा बावहियद्वयाए आयरियहरिमदेणं जक्स्यायरिसे बिईत सर्व समतीए साहिऊण लिहियंति, अजेहिंपि सिबसेणदिवाकर बुबवाइजक्ससेणदेवगुत्तजसकालमासमणसीसरविगुत्तणेमिर्चवजिणदासमणिलमगसबसिरिपमुद्देहि जुगप्पहाणसुयहरेहि बहु मन्नियमिणति। १८ा से भयवं! एवं जदुत्तविणओपहाणे पंचमंगलमहासुपपसंचमादिविता पुषाणुपुबीए पच्याणपुचीए अजाणुपुत्रीए सरवंजणमत्तावितपयक्वरविसुर्व चिरपरिचियं काऊणं महया पर्यवेण सत्तत्यं च विनाय वओपन किमहिनेगा?, गोयमा ईरियावहिय, से भय के अद्वेण एवं सुचा-जहा गं पंचमंगलमहासुवासंघमहिमित्ताणं पुणो ईरियावहिर्य अहीए?, गोयमा! जे एस आया से जया गमनागमनाइपरिणामपरिणए जगजीवपाचभूषसत्तार्ण अणोवउत्तपमते संपदणजपदावणकिलामण काऊणं अणालोइयनपटिकते चैव असेसकम्मतबहयाए किंचि चितवदणसझायज्माणाएस अमिरमेजा क्या से एगचित्ता समाही मवेजा ण वा, जओ णं गमणागमणाइमणेगमवावारपरिणामासत्तचित्तयाए केई पानी तमेव भातरमच्छ११२९ महानिशीपच्छेदसूत्रं unav-2
मुनिदीपरतसागर
दीप अनुक्रम [५६२]
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आगम
(३९)
प्रत
सूत्रांक
[१९]
+
गाथा ||१०६||
दीप
अनुक्रम [५६२]
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं )
अध्ययन [ ३ ], उद्देशक [-], - मूलं [१९] + गाथाः || १०६ || - मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
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अत्र "वर्धमानविद्या" एवं तत् आराधना विधि प्रस्तुता
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ह्रिदय दुज्यसिए भिकाल विर(व) लेजा ताई तस्स फले विसंवादमा, जया उन कहिच अन्नाणमोहमायासेन सहसा एगिरिवादी संघट्टणं परियाणं वा क माछा बुद्ध रूपमन्देहिं पणरागदोसमोहमिच्छत्तअन्नादि अपिरलोपचचाएहिं कूरकम्पनिधिहिति परमसंवेगमावन्ने सुपरिट लोहता नं. दिसा गरहाणं पायच्छित्तमनुचरितार्थ गीसले अमाउलचिते अम्मा कषि आयहि चिदमाइ अनुजा तथा तप चेन उपने से वेला जया से तयत्ये उनसे नवे तथा तराणं परमेग्गचित्तसमाही इवेजा, तथा चैव सजीव पाणभूपसत्तानं जफिलसंपत्ती मजा ता गोधमा अपकिंताए ईरियापहिचाएन कप्प कार्ड किंचिचेहापायं फलासायमनिकंयुगाणं, एएवं अगं गोयमा एवं पुबह जहा गं गोयमा समुत्योभयं पंचमंगलं चिरपरिचियं का तो इंरियासहि १९ से पराए नहीए मरियमही गोषमा जहां पंचमं २० से भयमिरियामिति किमहिने मा सत्ययायं चेदविद्वानं वरं सत्ययं एमेषमेणबत्तीसार आवहिं अरहंतत्वयं एगेण पडत्ये पंचाई आनि उपसत्ययं एमे उन एगेग येणं पणवीसा चिलेात्पर्य एमे चडत्ये पंच आविलेहिं एवं सरपंजणमताविंदुपयच्छेयपयक्खरविमुर्द अधिवामेलियं अहिजिताणं गोषमा त कसिणं सत्यं विन्देयं जत्थ संदेश पुणो २ बीमंसिप गीसंकमधारेऊ संदेहं करिजा । २१ एवं सुत्योभयत्त विदाइ चिहान अहिलेता तो सुपसत्ये सोने तिद्दिकरणमुत्तनक्लजोगलग्गससीबले महासत्तीए जयगुरूणं संपाइयपूजक्यारे पहिलाहियाहुम्मेण य मतिमरनिग्भरेण रोमंचकंचुयपुलमाणत सहरिसविसिवणारविन्देणं सदागवि बेगपरमचेर लगियपणरागदोसमोहमिच्छत्तमलक मुनिम्लविमलशुभशुभ परऽणुसमयसमुततमुपसत्य ज्यावसायगएणं भूषणगुरुजिदपदिमाविणिवेसियणपणमाणसे अनन्यमाणमेगाचितयाए पन्नोऽहं पुन्नोऽहंति जिणनंदासीकयजम्मोति मन्नमा चिरयकरकमलंजलिना हरियाणवीयजंतुविरहियभूमीए निहिजोमयजाणुणा सुपरिचिणीसंकीय हत्यत्तयोभयं पर पर मामा चरितसमयन्युपमावाइ अगगुणसंपवेएर्ण गुरुणा सद्धिं साहसाणीसाहम्मिय असे सर्वपरिचापरिचरिएणं चैव पढमं चेइए दियो तथनंतरं च गुणड्डे व सागोनहा सामियजणस्स में जहासतीए पणिवायजाणं मुहमम्ययमयचोरवयत्यपयानाइमा मामा का एयावसरंमि सुवियसमयसारेण गुरुणा पचेर्ण अक्लेवनिक्ले वाइएहिं पर्वधेहि संसारनिपजणणं सदासगुप्पावर्ग धम्मदेसणं काय २२। ओ परमस दावेगपरं नाऊ आजम्मानि पदाय जहा में सहलीमुलद्मगुस्सभवा भो भो देवामुनिया तर अजयमिए जीवतिकालियं अणुदिनं अतापलेयाचित् एवं इणमेव भो मनुयत्ता असहजसासपणमंगुरा सारंति, तत्य पुत्रहे साथ उदगपाणं न काय आहए साहू व बंदिए, नहा मा तान असणकिरियं न का जाए दिए, तहा रहे चैव तहा काय जहा अदिएहि चेहिं जो सझापामइमेजा । २३ एवं चाभिग्गहबंध काऊन जावजीचाए, ताहे व गोमा इमाए बजाए हिमंतिया सत्त गंधमुडीओ तस्युत्तमं नित्यारगपारगो भवेना सितिउचारेमाणेण गुरुणा सेवाओ, अम्णम भगवो रह ह भए भगवती महाविज्ञाए मजाए जब एनईएमआईए जय जय जयअंतर अपरआजहए आहा, उपचारी पत्ते साहिज, एयाए बिलाए ओ नित्यारमपारगो होइ. उपद्वावणाए वा गणिस्स वा अणुन्नाए वा तत बारा परिजदेवडा नित्यारगपारगो होइ, उत्तमपडिवणे वा अभिमंतिज जराहो भव, वयविनायगा उपसमंति, सूरो संगामे पवितो अपराजिजो न कन्पसमतीए मंगलवणी महणी व २४ वहा साहसाहुनीसमासगसढिगासेसाससाइम्मियजनचटत्रिपि समणसंयेणं नित्यारमपारगो नवेजा, पण समसलखणोऽसि तुमति उचारेमाणं गंधमुडीओ वाओ, तो जगगुरूणं निर्भिदाणं पूएगदेसाओ गंधदामिलाननिहाय सत्येणोभयसंचेसुमारीवयमाणं गुरुगा नीसंदेहमेचं भानिय जहा मो मो जम्मंतरसंचियस्यपुन्नपप्यार! मुलमुत्तिमुसलमनुषजम्म! देवाणुपिया इयं च नरपतिरियगइदारं तुति, अधगोय जयस फित्तीनीयागोत्तकम्मविसेसाणं तुमति, भक्तरगयस्सावि उ इदुलही उज्झ पंचनमोकारो भाविजम्मंतरे पंचनमोकारपमाजो जत्थ जत्थोवा तत्थ तत्युत्तमा जाई उत्तमं च कुलरुवारोग्यसंपयति एयं ते निच्छो भवेजा, अन्नंच पंचनमोक्कारणभावओम भवइ दासतं न दारिददोहाहीणजोगियतं न विगलिंदियत्तति किं बहुए ? गोयमा जे केई एयाए विहीए पंचनमोक्कारादिमुयमाणमहिजित्ताणं तपत्यानुसारेणं पयओ सावस्सगाइणिचाणु विजे अङ्गारससीलंगसहस्सेम् अभिरमेजा से नं सरागताएं जनं निघुडे ती वेत्तरादी चिरममिरमेडगे उत्तमकुलप्पमूई लिगसुंदर सबकलापत्तनम गाणं११३० महानिषच्छेद असर
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आगम (३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [३], ------------- उद्देशक [-1, ---------- मूलं [२५] +गाथा:||१०६...||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
व मयनाणमहिमिणेषगरमा सुयनाणस्स पढमचरिमजामसाहजिहाजणा का उण सारंभपरिण्महे अविणओचहाण
प्रत
सूत्राक
[२५]
गाथा ||१०६||
यारिवत्तर्ण च पाविऊणं सुरिंदोषमाए रिडीए एतेणं च दयाणुकंपापरे निचिन्नकामभोगे सम्ममणुढेऊन विद्यस्यमले सिजोजा । २५ से भय ! कि जहा पंचमंगलं नहा -1 सामाजयाइयमसेसपि सुपनाणमाहिनिया १. गोयमा ! तहा चेन विणओबहानेणमहीएया, णवर अहिजिणि उकामेहि अवपिह पेष नाणायारं सापयण कालादी रक्तिमा, अन्नहा महयाऽऽसायणत्ति, अर्मच-दुवालसंगस्स मुयनाणस्स पदमचरिमजामअहमिसमायण-मावर्ण पंचमंगलस्स सोलसद्धजामियं च अन्नंच-पंचमंगलं कयामाइए वा अकयसामाइए वा बहीए सामाजयमाइयं तु सुर्य चत्तारंभपरिगहे जावजीवकयसामाइए अहिजिणइ, ण उण सारंभपरिम्महे अकयसामाइए, नहा पंचमंगलस्स आलावगे २ आयंबिर्न
हा सकरवाइसुवि, दुवालसंगस्स पुण सुयनाणस्स उद्देसगजमवणेसु ।२६।से भय ! सुदुकर पंचमंगलमहामुयक्तधस्स विणओचहाणं पन्ननं, महती य एसा नियंत्रणा कहं बालेहि कमर', गोयमा जे णं केई गइच्छेना एवं नियंतणं अविनाओबहाणेणं चेच पंचमंगलाइसुयनाणं अहिजिणे अनमावेड वा जमावयमाणस्स वा जणुन्नं वा पयाइ सेणं ण
मपिजा पियधम्मे ण होना दढयम्मेण भवेजा भतीजए हीलिजा मुत हीलेला अत्यं हीलिजा मुत्तत्वउभये हीलिजा गुरु. जेणं हीलिना सुनत्योभए जाव णे गुरु से थे आसा. दएमा अतीताणागयवहमाणे तित्पयरे आसाइजा आयरिया उपसायसाहुणो, जे आसाइजा सुयणाणमारिहंतसिद्धसाह से वस्स मुदीहयालमणतसंसारसागरमाहिंडेमाणस तामु नाम संडवियजाम कुलसीडलक्सपरिसंसाणामुसीओसिणमिस्स जोणीमु तिमिसंथयारदुम्गंधऽमिज्झक्लिीणसारमुनोजमसिभपटिहत्वपसाजकुल(स)पूयहिणचिरिचिावहिरचिवदुरस
जंचालकवीमच्छपोरगम्भवासेसुकदकटकटेंपलचलचलस्सटलटलटलस्सरजंतर(जत)सपिडियंगमंगस्स सुदरं नियंतणा, जे जण एवं विहि फासमा नो णं मणयपि अइयरेना जहुवातपिहाणेणं व पंचमंगलपभिहसुयनाणस विणओबहार्ण करेजा से गं गोचमा ! नो हीलिजा सुतं नो हीलिजा अत्यं णो हीलिजा मुत्त्योभए से नो आसाइना निकालभावी
तित्वको णो आसाइजा तिलोगसिहरवासी विद्यस्यमले सिद्ध णो आसाइजा आयरियउवज्झावसाहुणो मुठ्ठयर चेव भवेना पियधम्मे दधम्मे भतीजते एगंतेणं भवेना मुन| स्याणरंजियमाणसे सदासंवेगमावन्नो, से एस गंण लभेजा पुणो २ भवचारगे गम्भवासाइयं अणेगहा जंतणति ।२७। णवर गोयमा! जेणं चाले जान अविन्नायपुन्नपाचा विसेसो तारण से पंचमंगलसणं गोयमा ! एगतिणं अओगे, ण तस्स पंचमंगलमहासुवासंधस्स एगमपि आलावगं दाय, जो अणाइभवंतरसमजियासुहकम्मरासिदहणमिण लमेनार्ग | नवाले सम्ममाराहेजा लहुलं च आणेइ. ता तस्सा केवलं धम्मकहाए गोयमा ! भत्ती समुप्पाइजा, तओ नाऊणं पियधम्म ददधम्म भनिजुन ताहे जावइयं पणखाणं निशाहर समात्यो भवह नाचइयं कारनेजा, राइभोवर्ण च दुनितिचिहपडरिहण वा जहासत्तीए पबक्साविजइ ।२८। ता भोयर। ' णं पणयालाए नमोकारसहियाणं चउत्वं पचीसाए। पोस्सीहिवारसहिं पुरिमदेहि दसहि अबदेहि लिहि निधीहएहिं चाहिं एगहाणगेहिं दोहिं आयंबिलेहिं एगेनं सुबच्छायंबिलेणं, अनाचारलाए रोजाणविगहाविरहिवस्स सझाएगगचित्तस्स गोयमा ! एगमेवायचिलं मासलमणं विसेसेजा, नो य जाचइयं तचोरहाणगं पीसमंतो करेजा तापदय अणुगणेऊण जाहे जाणेजा जहाणं एनियमिनेण तवोचहाणेणं | | पंचमंगलस्स जोगीभूओ ताहे आउत्तो पादेजा, ण अन्नहत्ति ।२९। से भयवं! पभूयं कालाइकामं एवं, जड़ कया अनंतराले पंचत्तमुपगच्छे तओ नमोकारविरहिए कहनिम? साहेना, गोयमा ! अंसमयं च मुत्तोषधारनिमित्तेणं असदभावत्ताए जहासत्तीए किचि नवमारभेजा संसमयमेव तदहीयमुत्तस्योभयं वर्ष, जओ से सोते पंचनमोकार मनत्थी-12 भयं ण अविहीए गिल्हे, किंतु नह गेहे जहा भवंतरेमपिण विपणस्से, एवजावसायत्साए आराहगो भवेजा।३०।से भय ! जेण पुण अग्नेसिमहीयमाणा सुयावरणक्लजोक्समेण कणहाडिलक पंचमंगलमही भवेजा सेविय कितपोपहाण करेजा. गोयमा! करेजा.से भय केणं अडेणगोयमा! सलमजोहिलाभनिमिण एवं बाई अफर प्रमाणे जाणकुसीले गए।३१। नहा गोयमाणं पवनादिवसप्पमिईए जहुत्तविणओबहाणेणं जे केई साहू वा साहुणी वा अपुवनाणमहर्ण न कुजा तस्सासयिं विराहियं सुनन्योभयंभ | सरमाणे एगम्गचिले पदमचरमपोरिसीम दिया राजो यणाणुगणेजा से गं गोयमा! णाणकुसीले ए, से भव ! जस्स अइगरुयनाणावरणोदएणं अनिसे पहोसेमाणस्सण संवर मावि सिलीगमपि चिरपरिचिय(ण)भवेजा(से किकुजा.)तेणाविजावजीवामिगहेणं सज्झायसीला वेवावचं तहा अणुदिणं अड्डाइजेसहस्से पंचमंगलार्ण मुभाथोभएसरमाणेगम्ग-1 माणसे पहोसिजा, से भय के अटेण ?, गोयमा जे
मिजावजीवाभिग्गहेणं चाउकालिय बायणाइ जहासत्तीए सज्झायं न करेजा से गं णाणकुसीले गए।३।अन्नंच-जे केई जायजीवामिम्महेण अपुर्व नाणाहिगर्म करेजा तस्सासत्तीए पुवाहियं गुणेजा, नस्सावि याससीए पंचमंगलाणं अदाइजे सहस्से परावते सेवि आराहगे, चनाणावरणं सवेत्तार्ण तित्ययरेड वा गणहत वा भवेत्ताण सिमेजा।३३१ से भयवं! केणं अद्वेणं एवं बुचा जहाण चाउकालियं सज्झायं काय?, गोयमा! 'मणक्षणकायगुत्तो नाणाचरणं सवेइ अणुसमय। से १९३१ महानिशीथच्छेदसर्व र
दीप
अनुक्रम [५९८]
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आगम (३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [३], -------------उद्देशक , ---------- मूलं [३४/१] +गाथा:||१०८||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
A GA4
प्रत सूत्रांक [३४/१]
गाथा ||१०८||
समाए तो लणे सणे जाइ बेस्मा ॥८॥ उड़दमहे तिरियमि य जोशसवेमाणिया व सिदीय सो लोगालोगो सज्मायषिउस्स पचासं ॥९॥वालसपिडमिति तये सखि 191 प्र वाहिरे कुसलदि ।णवि अस्थि पविय होही सज्झायसमं तपोकम् ॥११०॥एगदुतिमासक्समर्ण संवचारमपिय अगसिजो होना। समायाणरहिनो एगोवासकलंपि ण लभेजा
॥१॥ उगमापायणएसणाहिं सुदं तु निच मुंजतो। जइ तिबिहेणाउत्तो अगुसमय मवेज सज्झाए ॥२॥ तास गोयस एगग्गमाणसत्संग उपमिउं सका । संपच्छरलपणेणविजेण साहिणिजराऽर्णता ॥३॥ वचसमिओ तिगुतो खंतो दंतो य निजरापेही । एगममाणसो जो करेज सजाय मुजीमले (सुणिमतो) ॥४॥ जो नागरे पसत्यं सुचनाणं जो सुणे । मुहमानो। ठायासववार तकालं गोयमा ! दोन्हं ॥५॥ एगपि जो बुहर्त सत्तं पटिमोहिउँ ठबई मरगे। ससुरासुरमिति जगे तेणेह पोसिओ अमाधाओ ॥ ६॥ धाउपहाणो फषणमा नय गच्छई कियाहीणो। एवं समोविजिगोपएसहीणो नकोना ॥७॥ गयरागदोसमोहा धम्मकहं जे करेंनि समयन्नू । अणुदियहमचीसंता सापाचाण मुचंति ॥८॥निसुगंति र अभवणिज एतं निजरं कहताणं । जब अन्नहा ण मुत्तं अत्य वा किंचि बाएजा ॥११९॥ एएणं अद्वेण गोयमा! एवं पुथा जहाण जारजी अभिग्गण पाउकालिय समाय कायच्वंति, सहाज गोत्रमा जे मिक्सू चिहीए मुषसत्यनाणमहिनेऊण नाणमयं करेजा सेवि नाणकुसीले, एपमानाकुसीले अणेगहा पन्नविनति । ३४ा से भय ! कतरे ने दसणकुसीले, गोचमा! ते सणकुसीले विहे नेए आगमओ गोआगमओ अतत्य आगमजो सम्मदसमं सकते करते विगुते दिहीमोहं गईले अगोमूहए परिचडियधम्मसदो सामनमुज्झिाउकामाणं अधिरीकरणेणं साहम्मियार्ण अवच्छत्तर्ण अप्पमावणाए, एतेहिं अहहिं पाणंतरेहि कुसीले गए।३५) गोभागमओय दसणकुसीले अणेगहा, नंजहा. चमकतीले चाणकुसीले सपणकुसीले जिम्माकुसीले सरीस्कुसीले, तत्प बसुकुसीले तिविहे ए, जहा-पसत्वचमत्कुसीले पसत्यापसस्थचक्कुसीले अपसत्यचमुकुसीले,
तत्य जे के पसत्वं उसमादितित्यपरकिंध पुरजो चक्खुमोबरडिज तमेव पासेमाणे अन्य कपि मणमा पसत्यमारसे से गं पसत्यचकसुकुसीले, नहा पसरवापसस्थयककसीले 2शतित्वयरपिंच हियएणं अच्डीहिंप(पासेमाणे) अ किंपि पीहिमा से ण पसत्यापसत्वचपसुकुमीले, नहा पसत्यापसस्थाई दवाई कागधगदफनिनिरमयूराई मुकतरिनिविय वा
बठूर्ण तयारी पक् विसले सेचि पसत्यापसत्वचाकुसीले, नहा अपसत्वचासुकुसील तिसझेहि पयारेहिं अपसत्या सरागा चक्यूनि, से भय : कपरे ने अपसरचे निसट्ठी चम्| भेए?, गोयमा ! इमे जहा-सह कक्खडहरला(कसा) वारा मंदा मदलसा का विर्वका कुसीला अडिक्खिया काणिक्सिया १० मामिया उम्भामिया पलिया बलिया चलबलिया 5 अमिशा मिलिमिला माणुसा पसना पाला २० सरीसवा असता अपसवा अचिरा बहुविगारा सागुरामा रोगोईरणी रोगजमाऽऽमयुपायणी मयणी ३० मोहनी भईरणी भयजन्ना मर्यकरी हिवयमेडणी संसबाहरनी चित्तचमकप्पायणी णिवदा अतिवडा ४० गया आगया गयागययचागमा निदाउनी अहिलसणी अरइकराइकरा दीणा यावमा मुराधीराहमणी५०मारणी तावणी संतापणी कुदा पकुदा पोरा महापोरा चंदा कदा सुदा हाहाभूयसरणा६० रुल्ला सणिवा कारपसणिदति,महिलाणं चालणंसुद्धकोटिनऽद्धकरसुपिलिहियं l दिन्नालसं गार्यपगई मणिकिरणनिषवसकचा कुम्मन्नर्य चलणं समग्गनिमगवगूढ जाणं जंघा पिलकड़ियडभोगा जहणणिवणाहीपणामांतरकासयलहीजो अहरोइरसः । गपंतीकन्ननासनवणजुबलभमुहानिालाइसिरव्हसीमंतयामोत्यपेटतिलगकुंटलकवोलकजलतमालकलाबहारकटिसुनमणे उस्वाहरक्सगमणिस्यणकड़गकंकगमुदियाइसकंतदिनाभर. गतवसणनेवत्या कामगिसंपुषसनी निस्पतिरिवगडसं अणंतदुक्खदायगा एस साहिलाससरामदिति एस चासुसीले । ३६ सहा घाणसीले जे केई सरहिवेरा संग गड - दुरहिगंधे गुंछ से गं चाणकुसीले, सहा सवणकुसीले दुविहे गेए पसरले अल्पसर य, वत्थ जे मिक्यू अल्पसत्याई कामरागसंपत्तणुदीषणुणालणसंदीपणाई गंधानहवणुधेयहस्थिसिक्खाकामरतीसत्या सुणेऊन जालोएजा जाप को पावच्छित्तमचरेमा सेणं अपसत्यसवणकुसीले जेए, तहा जे मिफ्यू पसस्थाई सिबंताचरियपुराणधम्मकहाजी व अन्नाई चधम्मसत्थाई सुणेत्ताणं न किंचि आयहियं अणुहे जाणमयं च करेत से पसत्यसपमफुसीले जेए, तहा जिम्माकुसीले सेणं अगहा तंजहा-तित्तक/यकसायमहुरंचिललवणाई। रसाई आसायंते अदिवासुबाई शहपरलोगोभयनिख्वाई सदोसाई मयारजयास्चारणाई अयसम्मपलाणासतानिओगाईपा भणते असमयधम्मदेसणापपक्षण प जिम्माकुसीले
ए, से भयर्व ! किंभासाएविभासियाए कुसीलतं भवति, गोयमा! भवन, से भवर्ष जइ एवं ताव चम्मदेसर्ण न काया', गोयमा: 'सावजाणवनार्ण क्षणाणं जो न जाणा बिसेस। पुलुपि तस्सम समं किमंग पुण देखणं काउं? ॥१२०॥३७॥ नहा सरीरकुसीले दुबिहे थेए-वाकुसीले विभूसाकुसीले य.नत्य जे मित्र एवं किमिकुलनिलयं सउणसा. गाइनल साणपणनिसणधर्म असई जसासयं असारं सरीरगं आहारादीहि मियं चेडेगा णो ण णमो भवसयसलदानालसणाइसमभिएणं सरीण अचंचोरवीगाकडपोरतासंजममरेगा सेपेडाकुसीले, नहा जेण विनूलाकुसीले सेऽपि अणेगहा, तंजहा-तेहा गणविमाणसंवाहणसिणावाणपरिहसनतंबोलवणयासणसणुग्पसनसमा- (42) १९३२ महानिशीवच्छेदमूत्रं -३
मुनि दीपरतसागर
4
दीप
अनुक्रम [६०८]
%A0%AMAR
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Page #281
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आगम
(३९)
ཎྜཡྻཱ + ཛིལླཱཡྻ
[३८]
अनुक्रम [६२७]
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं )
अध्ययन [ ३ ],
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित
-
- मूलं [३८] + गाथाः || १२९ ॥ -
आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
-
• उद्देशक [-],
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॥ ९ ॥ न
पुष्फोमा के ससारणसोवाहणदु विपद्गद् मजिरह सिर उवाबिटट्टि यसभित्र स्त्रियत्रिभूसावनिसविगारणीयंसणुन्नरी पपाउरण दंडग ग्रहणमाई सरीरविभूसालीले ए. एने य द्वापरे दुरंतपणे प्रदशे महापावकम्मकारी विभूसाकुसीले भवनि, गए दंसणकुसीले ३८ नहा पारिनकुसीले अणेगा मूलगुणउतरणे तस्य मूलगुणा पंच महयाणि राइभोषणच्छामि ते जे मते भवेजा तन्य पाणावा पुढचीदगागणिमारुवणस्स वितिचउपचिदियाईण संघट्टणपरियावणकलामणवणे मुसावार्य हुवा परं च तत् पयाम एवमादी बाद कान्डीगादि अदिवादाणं ममं बादरं च तत्थ सुमंतरागादीनं महणे. पायरं हिरण्णवण्णादीण मेहुणं दिवोरालियं मणोषयकायकरणकारावणाणुमइभेदेव अट्ठारसहा तहा करकम्मादी सचितामित्तभेदेवं गुनीविराण वा विभूतानि वा परिमा सुमवायच. त कप्परक्लणममनो बादर हिरणमादीण गहने धारणे वा राईभोवणं दियागहियं दिवानं एवमादि, उत्तरगुणा पिंडस जा विसोही समिती भावना यो दुविहो। पडिमा अभिमाहाविय उत्तरगुणम बियाणाहि ॥ १२१ ॥ तन्ध चिसाही सोलस उम्गमदोसा सोलस उपायणाय दोसा उ दस एसणाय दोसा संजोयणाचे ॥ २॥ तत्थ ग्रामदोसा- आहाफम्मूसिय पुर्वकम्मेपमीसजाये थे टवणा पाहुडियाए पाओयर कीय पामिचे ॥ ३ ॥ परियहिए अभिडे उम्मिन्ने मान्ग्रेहडे इय अच्छिले अणिसट्टे असोयर य सोलसमे ॥ ४ ॥ इमे उप्पायनादोसा-पाई दुई निमिने जीव वर्णीम तिमिच्छाए। कोहे मागे माथा लो हति दस एए ॥ ५ ॥ चिपच्छायन विज्ञा मते व चुण्णजोगे ध उपायणाय दोसा सोलसमे मुलकम्मे ॥६॥ एसजादोसा संकियमक्लियनिक्लिनपियिसाहरियदायी अपरिणयन्निडिय एसणदोसा दस हवंति ॥ ७ ॥ तन्युग्ममदो मन्यसमुत्थे उत्पादोंसे सासमुल्ये एसणादोसे उभयसमुत्थे, संजोयणा पमाणे इंगाल धूम कारण पंच मंडलीय दोसे भनिन् संजोयणा उजगरण भनपाणसर्भनरवाहि मेएण. पमा बनी फिर फबने आहारो कुच्छपूर भणिओ रागेण सइंगाल दोसेण सधूमति नाय ॥ ८॥ कारणं 'यण याव इरिपट्टाए य संजमाए। तह पाणवनियाए पुण धम् छुहाइ सरिसिया बिया जिज नप्पमणड़ा छाओ वेयायचं तरह कार्ड अओ भुजे ॥ १३० ॥ इरिपि न सोहिम्स पेहाईये च संजम काई धामो परिहाइ गुणप्सु य असना ॥ १ ॥ पिंडविसोही गया. इयाणि समितीओ पंच तंजा- ईरियासमिई भासासमिई एमणासमिई आदाणमंडमननिक्लेवणासमिई उच्चारमासवण उपिाणापारावयासमिना गुप्ती निमि-मणगुती वयगुती कायगुती, तहा भावणाओ दुबान्डस जहा- अनिभावणा असरणभावणानावा अभावा विचित्तसंसार भावणा कम्पासवभावणा संवरभावणा चिनिजभावणा लोगवित्यरभावणा धम्मं युक्तायं सुपननं नित्ययरेहिंति तत्नचिताभावा वोही सुलभा जम्मंतरकोडीहिविति भावणा एवमादियानंतरे जे पमार्थ कुजा से गं चारिनकुलीले गए। ३९। नहा नक्कुसीले दुबिहे अभिय जे केई विचितणराण उणोदरिया वित्नीसंखेचणरसपरिचायकाय किसीणयति उड्डाणे न उज्जमेना से नवकुसीले तहा जे केई विनिच्छितविजयवेयावज्झायाणउसम्म ए उद्वासु न उनमेजा से णं अभितरवकुसीले ४० तहा परिमाओ बारस तंजा-मासादी सत्ता एगदुगनिगसनराइदिण निम्नि अहरानी एगराती मिप डिमाण बारसगं ॥ २ ॥ तहा अभिग्गहा बभनओ कालो भाषओ, तत्थ दवे कुम्मासाह एवं महेय खेन गामे बहिं या गामस्स फालओ पदमपोरिसीमाई भाष कोमाइन देहि मे महिस्सामि एवं उत्तरगुणा संखेचओ समत्ता, समो य संवेवेणं परिलायारो, तयापारोऽपि संखे येणेहतर. नहा बीरियायारो एएस चैव जा अहाणी, एए पंचसु आयाराइयारेज आउहियाए दप्पओ पमाया कप्पेण वा अजयणाए वा जयणाए वा पडिसेबिलोना मावि गुरु उपसंति तं तहा पाय नाचरे एवं अडारसहंसाजन्य पए पमने भवेजा से णं णं णं पमायदोणं कुसीले ए ४१ नहा ओसने जाणे, पित्व लिन पासत्ये णाणमादीनं सच्छंद उनमागामी सत्यं लिहिज्जति यचिन्थरभयाओ, भगवया उण एवं पत्याचे कुसीनादी महापणं पद्मविए एथे च जा जा कत्थई अण्णावणा सासुसमयसारहितो पसे (जे) या जत्रो मूलादरिसे चैव बहुगं विषण नहिं च जन्म २ संबंधासंत्तत्थहुए सुबहरेहिं संमिलि संगोगलगा यसराज अभंगगयसंध अायणसगाणं समुचिणिऊण किंचि किंपि संज्झमाणं एत्थं निहियंति ण उण सकर्ष कयंति। ४२ पंच मुमापाचे जे बजे गोयमा वादीहिं कुसीलादी, नमिही सो सुमनी जहा॥ १३३ ॥ भवकायठिनिए संसारे, पोरदुक्खसोत्थओ अलहंनो दसविहे पम्मे, बोहिमहिंसाइलक्खणे ॥ ४ ॥ एवं तु फिर दिन गुरास रिसिभिलासमासे विकणं गीयमा सुणे ॥५५॥ तम्हा कुसीलसग्गी, सोचाएहि गोयमा बजियाऽऽयहि पाली, अंडजदितजाण ॥१३६॥ १९३३ महानिशीषच्छेद ३ मुति दीपलाग
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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [४], ------------- उद्देशक -1,---------- मूलं [१] +गाथा:||१||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
||१||
महानिसीहमयासंघम्स नइयमझयण ३॥ सेणं भया ! कई पुष तेण सुमहणा कुसीलसंसम्मी कावा आसी जाए अएयारिसे अइदारुणे अवसाणे समक्खाए.जेण भयकायद्वि ईए अगोरपार भवसायरं भमिही से पराए दुकवसंतने अलभते सत्रणुपएसिए अहिंसालकवणे संतादिदसबिहे धम्मे मोहिति?, गोयमा! इमे तंजहा-अस्थि हेच भारहे वासे मगहा नाम जपओ, नन्थ कुसत्यले नाम पुरं, संमिय उपलब्पन्नपावे सुमुणियजीवाजीवादिषयस्ये सुमइणाइलणामधेने दुवे सहोयरे महड्डीए सहदगे अहेसि. अहउन्नया - नसबकम्मोदएणं नियन्लिवं बिहब नेसि, ण उण सत्तपरकमे, एवं तु अचलियसत्तपरकमाणं तेसि अचं परलोगभीरु विस्यकूडकवढालियाण पटिवन्नजहोपडदाणाइपउक्संघ. उवासमधम्माणं अपिसुणामण्डरीणं अमायावीणं, किंबहूणा, गोयमा! ते उकासगाणं आवसहा गुणरयणार्ण पमना खंतीए निचासे सुपणमेसीणं, एवं सिंबहुनासरवन्नणिनगुभाग्यणापि जाहे अगुहकम्मोए ण पहुपए संपया ताहे ण पहुप्पति जवाहियामयामहिमादजो दवदेवयाण जहिच्किए प्रयासकारे साहम्मियसमाणो बंधुयणसंबवहारे य।। अहन्नया अपठेनेस अतिहिसकारेसु अपरिजमाणेसु पणइयणमणोरहेसं विहर्डलेसु य सुहितपणमिनबंधनकलनपुत्तमनुपगणेसु विसायमुवगएहि गोषमा! चितियं तेहि सदगेहि, नंजहा- जानिहचो ना परिसस्स होइआणापटिन्छो लोओ।गलिउदयं वर्ण विजुलावि दूरंपरिचयइएवं च चिनिऊण परोप्परं भणिउमारडे, तत्य पढमो-पुरिसेण माणधणजिएण परिहीणभागनेणं ने देसा गंनवा जन्य सवासा ण दीसंति ॥२॥ नहा बीजो 'जस घणं तस्स जणो जस्सऽत्यो तस्स बंधवा बहवेधणरहिओ उमणुसो होइ समो दासपेसेहिं ॥३॥ अह एवमपरोपरं संजोनेड. संजोजेऊण गोयमा ! कर्य देसपरिचायनिच्छय तेहिनि जहा पचामो देसंतरंति, नत्याग कयाई पुर्नति चिरचितिए मणोरहे हद पवजाए सह संजोगो जद दिवो बहु मन्नेजा, जावणं उरिशऊर्णन कमागय फुसत्यलं पहिवन्न विदेसगमणे । २। अहऽनया अनुप्पाहणं गच्छमाणेहि दिहा तेहिं पंच साहुणो छई समणोचासगंति, तओ भणियं णाइलेण जहा भो भो सुमती! भरमुह ! पेच्छ केरिसो साहुसरयो',ता एएणं चेव साहुसत्येणं गच्छामो, जइ पुणोचि चूर्ण मेत नेण मणिय-एवं होउन्सि, तो संमिलिया नन्य साये, जाव णे पयाणगमेगं वहति तावर्ग भणिओ सुमती गाइलेणं, जहा भरमहा मए हरिवंसतिलयमरगयच्छविणो मुगहियनामजस्स वाचीसहमतित्वगरस्सणं अरिद्वनेमिनामस्स पायमूने गहनिसम्मेणं एमपचारिब आसी, जहा जे एवंविहे अणगाररूवे भवंति ने य कुसीले, जेय कुसीले ते विहीएवि निरिक्खिन कर्षति, ता एते साहुणो तारिसे, मणार्ग न कप्पए एतेसि समं अम्हाण गमणसंसमी, ना वयं एते, अम्हे अप्पसत्येण र पइस्सामो, न कीरत तित्वयरचयणस्सातिकमो, जो ससुरासुरस्साधि जगस्त 15 अलंपणिहा नित्ययवाणी, अन्नंच जाच एवेहि समं गम्मद ताव णं चिहाउ ताप दरिसणं, आलावादी णियमा भनि, ता किमम्देहि विस्मयरवाणि चित्ताणं गन', एवं तमणुभाविऊर्ण ने सुमति हत्ये गहाय निवडिओ नाइलो साहुलत्याओ।३। निविडोयसुचिसोहीए फासुगे भूपएसे, नओ भणियं सुमहणा, जहा-'गुरुणी मायापितरस जेहभाया नहेब भइणीणं । जत्युत्तरं न दिजा हा देव ! भजामि किं तत्व ॥४॥ आएसेऽपि इमाण पमाणपुर्व तहनि ना(का)या। मंगुलममंगुलं वा नत्य विचारी न कायत्रो ॥५॥ गवरं एत्थ या मे अज दाया अजमुनरभिमस्सा सरफरसफकसाणिनिठुरस्सरेहित ॥६॥ गहना कह उच्छल जीहा मे जेहभाउणो पुरओ?। जस्मुष्ठगे विणियंसपोह रमिजोऽसुइपिलिनो ॥ ७॥ अहवा कीस ण लजा एस सर्व चेन एन पभणंतो?। जंतु कुसीले एते दिडीएची दहने॥८॥ साहुणोत्ति, जाब न एक्इयं वायरे नाच इमियागारकुसलेणं मुणियं MORN
॥ दबा कह पाइलेणं, जहाण अलिबक्साइओ एस मणगं सुमती, ता किमहं पहिमणामित्ति चितिउं समाढतो जहा कोण विण अकंटे एस पविमो दुताव संचिढ़े। संपत अणुणिजनो ण याणिमो किं च बर मन्ने?॥९॥ ताकिं अणुणेमिमिणं उयाहु पोलड सणवतालंपा। जेणुवसमियकसाओ पदिपजाइनं नहा सर्व ॥१०॥ अहना पत्याचमिण एयरापि संसर्य जयहरेमि। एसण पाणइ महो जाब विसेसं गऽपरिकहियं ॥१॥ निवितेऊन मणिउमादत्तो-नो देमि तुम दोसंग पावि कालरस देमि दोसमह। जहियमुदीएं सहोयरावि भणिया पकुष्पति ॥२॥ जीवाणं चिव एवं दोसं कम्मडजालकसियार्ण। जचाउगइनिष्फिडणं हिमोचएस न कुमति ॥३॥ पणरागदीसकुम्गहमोहमिहत्तखवलियमणाण। भाइ विसं काल-- उट हिजोचएसामयप्पाइभ ॥१४॥ ति, एवमायग्निऊण तजओ मणियं सुमहणा, जहा तुम वेव सबवावी भणसु एवाई, पर ण जुनमेयं जं साहुणं अवन्नचार्य भासिजइ, अन्न तकि तं न पेच्छसि तुम एएसि महाणुभागाणं चिहिय?, छहदमदसमदुवालसमासलमणाईहिं जाहारगहणं गिम्हामु यारणहा पीरासणउकडयासणनाणाभिग्गहधारणेण चकतवोऽणुचर - गेणं च पसुपर्स मंससोनियंति, महाउवासगो सि तुमं महाभासासमिती विझ्या वए जेणेरिसगुणोचउत्तार्णपि महाणुभागाणे साहुण कुसीलत्ति नाम संकप्पियंति, तो भणियं नाइलेणं-जहा मा पच्छ! तुम एतेणं परिजोसमुपयासु, जहा अहयं आसवारेणं परामुसिओज, कामनिजराएवि किचि कम्मखयं भवइ, किं पुणजे पालतवेण', ता एते चालतय१९३४ महानिशीथचोदसूत्र -3
मुनि दीपरनसागर | अत्र तृतियं अध्ययनं समाप्तं
अत्र चतुर्थ अध्ययनं- "कशील-संसर्गी" आरब्ध:
ण गमणसंसार, कहा से एवंविहे अगामामह ! सए हरिवंसानिलयमा. जइ पुगोपि पूर्ण च एतेहि सम गम्मता पर्यंत एते. अन्हे अप्पमात्याने या कुसीले. जे प फुसीला
दीप अनुक्रम [६५४]
STATE
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आगम
(३९)
प्रत सूत्रांक [४]
+
गाथा
||१४||
दीप
अनुक्रम [६७७]
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं )
अध्ययन [ ४ ], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित
-
• उद्देशक [-], - मूलं [४] + गाथाः || १४ ||
आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
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सिणो दहते, जओ णं किं किंचि उत्तमम्ययामित्तमेसिन पईसे, अन्नंच-वच्छ सुमइ मत्थि ममं इमाणोवरिं कोषि सुमोषि मणसावि उपओसो जेणाहमेएसि दोसगहणं करोमि, किंतु मए भगवओ तित्ययरस्स समासे एरिसमवधारियं जहा कुसीले अदबे, ताहे भणियं सुमहणा, जहा जारिलो तुमं निम्बुद्धीओ तारिलो सोबि तिस्थयरो जेण तुझमेयं वायरिति तओ एवं भणमाणस्स सहत्येणं झंपियं मुहकुहरं सुमइस्स णाइलेणं, भणिओ व जहा महमुह मा जगेकगुरुणो तित्ययरस्सासावणं कुणसु. मए पुर्ण मणसु जहिनाते किंचि भिणामि, तत्र भणियं सुमहणा. जहा जइ एतेवि साहुणो कुसीला ता एत्य जगे ण कोई सुसीलो अस्थि, तजो भणिय गाइलेणं, जहा भरमुह समझ इत्यं जयापणिजवकस्स भगवओो वयणमाययवं जं पथिकयाए न विसंबला. णो णं बालतवस्तीण चेट्टियं जजो णं जिणइदययणेण नियमओ नाव कुसीले इमे दीसंति, पण पण दीसए एसि, जेण पिच्छ २ तावेयस्स सादु विजय मुहणत दीसह ता एसवाय अहिगपरिग्मादोसेगं कुसीलो एवं साहून भगवाई जमहिपरिहविचरण करे ता च्छ सहि नो एवं मनसाऽज्झवले जहां जइ ममेयं मुहणंत विष्वणस्सिहिता बीर्य करावे ? नो एवं चिंने मूढो जहा अहिगाणुओ गोवही धारणेणं मां परिग्गहवयस्त भंग होही अहवा कि संजमेऽभिरओ एस मुहणंतगाइस जमोव ओगधम्मावगरणेणची सीएला ? नियमओ ण बिसाए. वरमत्ताणर्य हीणसतो. ऽहमिह पाडे उम्मम्मापरणं च पर्वसे पवयणं च मइलेइति, एसा उण पेच्छसि सामवना, एएणं कई तीए चिणियंसणा इत्थीए अंगयहिं निज्झाइऊण जं नालोइयपडित त कि नए विन्नाय १ एस उण पिच्छेति पदविष्फोटननिम्हियाणणो १ एते संपर्क पाए सहत्येण मदिनारगहणं कथं तएव दिमेति एसो पेन्स संघाटिए कले एएणं अनुग्गए मुरिए उद्देह पचामो उम्मर्थ सूरिति तहा विहसियमिर्ण, एसो उपेच्छसीमेसि जिसेहो एसो अस्थीए वो पसुनो विजुकाए फुसिओ, ण एतेर्ण कम्पग्रहणं कर्य, तहा पाए हरियतणं वासाकप्पंचलेणं संपट्टियं, तहा माहिरोदमस्स णं परिभोगं कर्म बीयकायस्सोप्परेण परिसकियो, अविहीए एस लाडिलाओं महुरं पंडिल संकमिओ, तहा पडिवलेणं साहुणा कमसवाइकमे इंरिव पडिकमियां तहा चरेयां तहा चिट्टयां नहा भासेयचं नहा सएव जहा छकायम गयार्थ जीवाण मनावरप तापजत्तगमागमसब जीवपाणभूपसत्ताणं संघट्टणपरियावणकिलामणीदवर्ण ण भवेजा, ता एलेसि एवइया एयस्स एकमवि ण एवं दीसए, जे पुण महत परिमाणो अज मए एस पोइजो जहा एरिस पडिले करेसि जेण वाउकाय फडफडस्स संघट्टेला सरियं च पडिलेनाए संतियं कारणंति, जस्सेरिस जयनं एरिसं सोओगं बहु काहिसि संजय ग संदेह जस्सेरिसमा उत्तत्तणं तुज्यंति एवं चतएऽहं विनिवारिओ जहां णं मृगो ठाहि ण अम्हाणं साहू समं किंचि नयां कप्पे, ता किमेयं तं वसुमरिय? ता भद्रमुह एए समं संजमस्थातराणं एगमवि णो परिरस्त्रियं ता किमेस साहू भन्नेजा जस्सेरिस पमत्तत्तणं ? न एस साहू जस्सेरिस सिंपल (ब) महमूह पेच्छ २ सुणी इव सिसो छकायनिमरणो कहाभिरमे एसो ? अहवा वरं सुणो जस्समम नियमभंग णो भवेजा, एसो उ नियमभंग करेमाणो केणं उपमेया?, ता च्छ सुम मदमुह ण एरिसकारणाओ भनि साहू एतेहिं च कहिं नित्ययस्वयणं सरमाणों को एतेसिं दम करेना १, अमंच एएस संसोणं कमाई अम्हाणंपि चरणकरणे सिटिलतं भजा जे पुणो २ हिडेमो घोरे भवपरंपरं तओ भणियं मुमहणा, जहा जह एए कुसीले जइ वा सुसीले तहापि मए एएहिं समं पजा काया, जंपुर्ण तुमं करे (हे) सितमेव धम्मं व को जल से समापरि सको ? ता मुय करें. मए एतेहि समं गंत जाव को दूरं वर्यति सानोति तत्र भणियं णाइलेणं महमूह सुमहण काणं एतेहिं समं गच्छ माणस ते तुति, अयं चतुभं हियवयणं भणामि, एवं ठिए जं चैव बहुगुणं तमेवाजुसेवय, बाहं तए दुक्खेण घरेमि, अह अभया अगोवाहिपि निवारिजनो न ठिजी गओ सो मंदगी सुमती गोमा पाइओ प, अह अन्नया पचतेणं मासपंचगेणं आमओ महारोयो दुवाललंयच्छरिओ दुष्मिक्खी, तो ते साहु कालदीसे अणालोपपडिता मरिणोवनचा भूयजक्सक्ससपिसायादीणं वाणमंतरदेवाणं वाणत्ताए, तो पविऊ मिच्छजातीए कुणिमाहारकूरज्झवसाय दोसजो सत्समाए, तो उपऊिणं तयाए चडवीसिगाए सम्म पावेदिति त य सम्मतलभभवाओ भने चउरो सिज्झिहिति एगो ण सिम्झिदि जो सो पंचमगो सबजेहो, जओ में सो एनमिच्छदिडी अभी से भय जे सेमी से उबाहु अभ? गोयमा म से भयर्थ ज णं न ताणं मए समाणे कहिं समुप्यते ? गोयमा परमाम्मियासुरे । ४ से नयनं किं भजे परमाहम्मियासुरे समुप गोयमा जे केई घणरागदोसमोहमिच्छत्तोदणं वचसि ( कहि) पंपि परमहिओएस अनमनेत्ताणं दुबालसंगं च सुयनाणमप्पमाणीकरि य अयाणिमाण व समयसभा अणायारं पर्ससियाणं तमेव उच्छप्पेजा जहा सुमहणा उच्छप्पियं न भवति एए कुसीले साहुनी, अहाणं एएऽवि कुसीले तो एवं जगे न कोई सुसीली अस्थि निष्क्रियं मए एतेहि १९३५] महानिशीथ सूर्य अजाण मुनि दीपरत्नसागर
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आगम
(३९)
प्रत
“महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) ------- अध्ययन [४], -------------उद्देशक ----------- मूलं [५] +गाथा:||१४...||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं समं पाजा कायवा, तहा जारिसो त निशुद्धीओ तारिसो सोऽपि तित्ययरोत्ति एवं उच्चारेमाणेणं, से णं गोयमा! महंतपि तक्मणद्वेमाणे परमाहम्मियासुरे उपवजेजा, से भयव परमाहम्मियासुरदेवाणं उस समाणे कहि उपयजे?, भगवं! परमाहम्मियसुरदेवाण उबड़े समाणे से सुमती कहिं उपयजेजा ?, गोयमा! तेणं मंदभागेणं अणायारपसंसुच्छपणं करेमाणेणं सम्ममापणालणं अभिणंदियं, वकम्मदोसेणं अणतसंसारिबचणमजिय, यो केत्तिए उववाए तस्स साहेजा ? जस्स णं अणेगपोग्गलपरिवहेसुषि णस्थि चउगइसंसारानी - वसाणति तहामि संखेचजो सुणसु, मोयमा ! इनमेन जंबुदीपदी परिक्लिपिऊगं ठिए जे एस लवगजलही एयरसणं जंठामं सिंपूमहानदी पविट्ठा नपएसाओ दाहिनेणं दिसाभाएणं पणपनाए जोयणेसुं वेश्याए मज्झंतरे अस्थि पदिसतावदायगं नाम अडतेरसजोयणपमाण हरियकुंभायार पलं, तस्स ब लबणजलोदएणं अबुद्धजोयणाणि उस्सेहो, नहि च णं अर्थतपोरतिमिसंघवाराउ घडियालगसंठागाउ सीयालीसं गुहाजो, नासु चणं जुग जुर्ग अंतरंतरे जलयारिणो मणुया परिवसति, वे य बजारिसहनारायणसंपयणे महाबलपरकमे अद्धतेरसरयणीपमागेण संजनासाऊ महुमजमसप्पिए सहाचओ इत्थीलोले परमदुचनउमालजणिसरमसि(क्सि)पत मागचइक्यमुहे सीहोरदिट्ठी कर्यतमीसणे अदावियपट्टी से असणिव निरपहारी दप्पुबरे व भवति, तेसिति जाओ अंतरंगगोलियाओ जाओ गहाय चमरीण संसिएहि सेयपुच्छवालहिं गुथिकणं जे कई उभयको निबंधिऊण महरपुत्तम-3जबरयणवी सागरमणुपपिसेना से णं जलहस्थिमहिसगाहगमयरमहामच्छतंतुसंसुमारपभितीहिं बुद्धसावतेहि अभेसिए चेन सर्वपि सागरजलं आहिडिऊण जहिन्छाए जचरय-18 गसंगई करिप अहयसरीरे आगच्छे, ताणं च अंतरंटगोलियाण संबंधेण ते पराए गोषमा! अणोवर्म मुधोरं दारुणं दुक्स पुरजियरोदकम्मक्सगा अणुभवंति, से भया! केणं अट्ठणे :१. गोयमा! तेसि जीवमाणाणं को समजे ओ गोलियाओ गहे जे १.जया उण ने पेति तया बहुविहाई नियंतणाई महया साहसणं समवपदकरवालकुंतचकाइपहरणाडोबेहि बहुसूरधीरपुरिसेहिं बुद्धिपुगेणं सजीवियबोलाए पेप्पति, तेसिंचविष्यमाणार्ण जाई सारीरमाणसाई दुक्साई मति ताई ससुनारयदुखेसु जाह पर उपमेजा, से भव ! को उण ताओ अंतरंगोलियाउ गेहिजा, गोयमा ! तत्व लवणसमुदे अस्थि स्थणदीव नाम अंतरदीवं, तस्सेच पडिसंतापदायगाओ यलाओ एगतीसाए जोयणसएहि निवासिणो मनुया, भय! कपरेणं पाओगेण १. खेत्तसभापसिदेण पुषपुरिससिदेणं पापिहाणेणं, से भयो! कवर उण से पुषपुरिससिद्धे विही तेसिंति , गोयमा! तहियं स्यणदीचे अस्थि वीसएगणवीसनद्वारसबसनुसत्तधणूपमाणाई परहसठाणाई परिकहरसिलासपुडाई, ताई च विघाडेऊन ते स्पणदीवनिवासिणो मया पुसिद्धखेत्तसहापसिदेणं व जोगेर्ण पभूय मच्छिया महजो असं तरे बचंतलेबाबाई काऊणं वओ लेसि पकसलडाणि बहुणि जयमहुमजमंहगाणि पक्विवंति, जो एवाई करिव सुरुवदीहमहमकडेहि आरुमेत्ता सुसाउपोराणमनमजिगामच्छियामयपडिपुओं बहुए लाउगे गहाय पहिसंतापदायगवलमागच्छंति, जाच तत्थागए समाणे ते गुहाबासिणो मणुया पेच्छति ताप गंतेसि रणयदीवगणिवासिमणुयार्ण बहाच पडियाति, वओ ते सिं महुपतिपुर्ण लाउन पछिऊर्ण अन्नत्यपजओगेणं ने कहजागंजाइणयरवेग दुर्व सेविकर्ण रयणदीवाभिमुहे पचंति. इयरे यान महमांसादीयं. पुणो सुवरं तेसि पिडीए (विक्सिरमाणा) धाति, ताहे गोषमा! जाप गजचासो भवंति तापणं सुसाउमगंधरवसकारिय पोराणमजलाउगमेग पमुजूण पुमोवि जहणयरवेगेर्ण स्वणदीवहुत्तो पर्चति, इयरे यते सुसाउमहुगंधदनसकरिब पोराणमजमांसाहय, पुणो सुरक्खयरे तेसि पट्टीए धावंति, पुमोवि तेसि महुपतिपुचलाउगमेन मुंचंति, एवं ते गोयमा! महुमनलोलिए संपलगे तावाणयति जाच ते परहसंठाणे पाइरसिलासंपुढे, ताजावणं तावड्यं मूमार्ग संपरायति ताच णं जमेवास बारसितासंपुर्द जनावमाणपुरिसमुहागार विहाडि बिहा तत्वे जाई महुमजपटियुनाई समुदरियाई सेसलाउगाई नाई नेसि पिचठमाणा देतस्थ मोजूणं नियनियनिलए पर्चति, इयरे य महुमजलोलिए जाच गं तत्व पविसंतिताव गोषमा! जे ते पुषमुके पकर्मसखंडे जेय ते महुमजपटिपुन्ने मंहगे जंचमहुए पालितं सर्वतं सिलासंपुढे पेपरसंति ताच तेसि महत परिमोसं महई तुही महंत पमोद मा एवं तेसि महुमजपकर्म परिभुजेमामार्ण जाप गच्छति सत्तट्ट बसपंचेव वा दिणाणि तावते यणदीवनिवासी मणया एगे समसाउहकरमा पारसि वेदिः । ऊग सत्तपतीहि ठति, अन्ने त घरहसिलासंपुडमायलित्तार्ण एमई मेलति, तमिअ मेलिजमाणे गोयमा ! जइ कहिंचि तुटितिभागो तेसि एकस्स दोण्हपि वा णिकेट म-- वेजा नओ तेसि रयणदीवनिवासिमणुयाण सविडविपासायमंदिरस्स उप्यायणं, तक्षणा घेवतेसि हत्या संघारकालं भवेजा, एवं तु गोयमा! तेसि तेणे बनसिलाधरहसंपुढेणं गिलियापि तहिय वेच जाच साहिए बलिकर्णण संपीसिए सुकमालिया व (ग)तावणे तेसिणो पाणाइक्कम मवेजा, ते य अट्ठी वारमिव दुरले, तेसि तु तरथ य पारसिलासपुर्द कर
गोणगेहि आउत्तमादरेणं अरहस्यहरसहिमचक्कमिव परिमंडलं भमालिय नाचणं संहति जाच गं संवच्छर, ताहेतं तारिसं अचंतपोरदारुणं सारीरमाणसं महादुक्खसन्निवार्य समणुभवमाणाणे पाणाकर्म भक्डवहारि वे तेसि अट्ठीउ णो फुडति, नो दोफले भवंति,गो संदलिजति, णो पपरिसंति, नवरं जाई काइवि. संधिसंघाणबंधणाई ताई सबाई (२८४) ११३६ महानिशीथच्छेदसूत्र, -7
अभिटीपरमागर
गाथा
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दीप
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आगम (३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [४], ------------- उद्देशक [-1, ---------- मूलं [५] +गाथा:||१४...||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
निहगाणं पसंत करना चकहरे महासंघया पुरोहिए. सोषि समासाई, तोपि मा
गाथा
व एवार्य संसामा का अभिमुहमगाव अशा निविसका
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बिच्छुडेताणवि जजरीभवंति, नत्रो ण इयश्वलपरहस्सेच परिसवियं चुण्णमिव किंचि अंगुलाइयं अद्विखंड बठूर्ण ते रयणदीचगे परिमोसमुहतो सिलासपुडाई उचियाडिऊण ताओ अतरंगोलियाओ गहाय जे तस्य तुमाहणे ने अणेगरिन्यसंघाएणं पिकिर्णति, एतेणं विहाणेणं गोयमा! ते रयणदीवनिवासिणो मनुया ताजो अंतरंगोलियाओ गेण्हनि, से भय ! कई ते पराए तं वारिस अचंतधोरदारुणसुदूरसह दुक्खनियर पिसहमाणे निराहारपाणगे संव. च्छर जाच पाणे विचारयति', गोषमा सकयकम्माणुभावाजो, सेसं तु पण्डवागरणनुबविवरणादचसेयं पा से भयर्व ! तओऽवी समए समाणे से सुमती जीवे कहिं उनकायं लभेजा, गोयमा! तस्येव पडिसंतापदायगवले, नेणेच कमेणं सत्त भक्तरे, नमोवि साणे तोचि कहे तोवि वाणमंतरे, तोचि लिंबताए वनस्साए, तोपि मणुएम इस्थित्ताए, तोचि उडीए, तोधि मणुबत्ताए कुडी, नोपि पाणमंतरे, गोपि महाकाए जहाहिवती गए, तोचि मरिऊर्ण मेहुणासत्ते अणंतवणफतीए, सोवि अर्णतकालाओ मणुएम संजाए, तनोविमणुए महानेमिती, तोचि सत्तमाए, सोवि महामच्छे परिमोयहिमि, नमओ सनमाए, नमोचि गोणे, तोचि मणुए, तोधि बिडवकोइलियं, तोपि जोय, तोचि महामच्छे, तोचि नंदुलमच्छे, तओवि सत्तमाए, तोपि रासहे, तोचि साणे, नोवि किमी, सोवि दरे, वमोवि वेउकाए, तोचि कुंपू, सोधि महुयरे. तओविचंडए, नओवि उद्देहिय, तोचि पनफईए, तोचि अर्जतकालाओ मणुएम इत्वीरवणं, तो छडीए, तो कणेक, नजो वेसामंडियं नाम परणं तस्योपज्झायगेहास लिंब(पत्त)नेण वरसाई, नजोषि मणुएस सुजित्थी, तोधि मणुबत्ताए पंडगे, तओवि मणुपनेर्ण दुग्गए, तोचि दमए, ओवि पुढवादीसुं भक्कायद्विईए पलेयं, वो मणुए, तो चालतबस्सी, वजो वाणमंतरे, तोचि पुरोहिए, सोषि सत्तमीए, तो मच्छे, तो सत्तमाए, तोपि गोणे, तओपि मणुए महासम्मरिही अविरए पकहरे, तो पढमाए, तोचि इच्ने, तोवि समणे अणगारे, तोचि अणुत्तरसुरे, नओविचकहरे महासंघयणे भपिशाणं निविणकामभोगे जहोपाई संपुर्ण संजम काऊच गोयमा ! सेणे सुमाइजीचे पडिनिडेजा।६।हा बजे भिक्खू पा मिक्सुणी वा परपासंडीणं पसंस करेजा जे पारिणिहगाणं पसंसं करेजा जेणं निहगार्थ अनुकुल भासेजा जेणं निहगाणं आयवर्ण पवेसेजा जेणं निमार्ण गवसत्यपयक्रसर वा परुजा जेण निगाणं संलिए कायकिलेसाइए तवेइ वा संजमेह वा नाहवा विमाणेइ वा सुएइ वा पटिहवा अभिमुहमुबपरिसामागए सलाहेजा सेऽविय ण परमाहम्मिएस उपरजेजा जहा सुमती। 1से भवर्ष: तेणं सुमाइजीवेणं तकाले समणनणं अणुपालिय नहानि एवंचिहेहिनारयतिरिवनरामरविचित्तोबाएहिं एवइयं संसाराहिंडणं, गोयमा ! जे आगमचाहाए लिंगम्हर्ष कीरइत हंभमेव केवलं सुदीहसंसारहेउभूध, गोतं परियाय लिक्खा नेणेष संजर्म एकर मन्ने, अन्नंच-समणताए से य पदमे संजमपए जे कुसीलसंसगीणिरिहरणं, अहाणं णो मिरिहरे ता संजममेव ण ठाएगा, ता तेणं सुमहणा तमेवायरियं तमेव पसंसिर्य नमेव उस्सपियं तमेव सनाहियं तमेवाणुडियंति, एवं च मुलमहकमित्तार्ण एवं पए जहा सुमतीनहा अमेसिमविसंवरविडरदसणसेइरणीलमदसभोमेयखग्गधारिणगसमणदुईतदेवरक्खियमूणिणामाडीर्ण को संखाणं करेजा,ना एयमह वित्ताणं कुसीलसंभोगे सबहा कजनीए । दासे भयचं ! किं ते साहुणो तस्स गाइलसढगस्त उंदेणं कुसीले उया आगमजुत्तीए , गोयमा! कहं सड्ढगस्स परायसेरिसो सामस्थो जेणं तु सच्वनाए महाणुभावाण सुसाहणं अवनवार्य भासे, तेनं सइदगेणं हरिसविलयमरगयच्छविणो बानीसइमधम्मतित्ययरअरिङ्गनेमिनामस्स सयासे चंदनपत्तियाए गएणं जायारंग अर्णतगमपनवेहि परिजमार्ण समपधारियं, तत्य य उनीसं आवारे पनषिजति सि चणे जे केहसाह वा साहुणीना अभयरमायारमहकमेजा से णं गारस्थीहि उपमेयं, अहऽन्नहा समणुहे वाऽऽपरेजा वा पण्णविना वा तओणं अर्णनसंसारी मवेजा, ता मीयमा! जेणं तुमुहर्णन अहिगं परिमाहियं तस्स ताप पंचममहायस्स मंगो, जेणं इत्थीए अंगोवंगाई णिमाइऊण जालोइयं तेणं तुमचेरगुत्ती विराहिया, तमिराहणेणं जहा एगदेसदइदो पडो बढो मन्ना नया पडत्यमहवयं भर्ग, जेण यसहस्वेणुप्पाऊणादिमा भूई पडिसाहिया तेणं तु तव्यमहार्य भी, जेण य अणुग्गओ मूरिओ उम्मओ भणिो तस्स यनीयवयं भर्ग, जेण उण अकासुमोबगेण अच्छीणि पहायाणि तहा अविहीए पहबंदिता संकमण कयं बीयकायं च अर्थतं वासाकप्पस्स अंचलगेणं हरिय संघहियं विजूए फुसिओ मुहर्णतगणं अजयमाए काफहस्स पाउकायमुदीरिय तेण तु पढ़मवयं भर्ग, तभी पंचन्हंपि महामार्ण मंगो की, ता गोयमा: आगमजुनीए एते कुसीला साहुणो, जो उत्तरगुणाणपि मंगै गइहकि पुण जे मूलगुणार्ण, से भय वा एवणाएनं पियारिऊर्ण महराए घेतो?, गोयमा! इसे अहे समहे,से भय ! केणं अडेणं', गोयमा! सुसमणार वा सुसावएइ वा, ण नइयं भयंतरं, अहवा महोवाई सुसमणनमणुपालिया अहा गं जहोपाई मुसावगत्तमणुपालिया, णो समणो समणत्तमहवरेजा नो साचए सावयत्तमइयरेजा, निरहवार पर्व पर्ससे, तमेष य समणुढे,गपरं जे समणधम्मे से णं अनपोस्तुबरे तेणं असेसकम्यक्खये, जहने गंपि अद्भवम्भतरे मोक्खो, इयरेणं तु सुदेणं देवगई सुमाणुसतं पा सायपरंपरेणं मोक्यो, नवरं पुणोनि सेजमाओ, ताजे से समणधम्मे से अधिारे सुपियारे पण( पुण्ण )वियारे नहनिमणुपालिया, उनासगाणं पण सहस्साणि विधाणे जोजे परिचाले तस्साइयारं वन मवेतमेव गिहे।।से भय! सो उण गाइलसइदगी कहि समुप्पन्नो'. गोयमा! सिबीए, से भय कई ?. गोयमा! तेर्ण महाणुभागेण सि कुसीलाणं णिउद्देऊणं नीए वेव बहुसापयतकसंबसंकुलाए पोरकंतारादईए सापाचकलिमलकलंकविष्णमुकं तित्ययस्वयणं परमाहियं सुदाई भवसएमुंपित्ति कलिकणं अचंतनिसुवासएणं कायदेसमि निप्पटिकामं निरहयारं पहिचन्न पायवोनगमणमनसगति, अह अन्नया तेणेन पएसेच विहरमाणो समागमओ तित्ययरो अरिङ्कनेमी तस्स ज अणुग्गहवा एतेतच अचलियसत्तो भग्वसनोतिकाऊणं, उनिमपसाहणी कया साइसया देसणा, नमायन्नमाणो सजलजलहरनिनायदे.
बढुंदुहीनियोस निरचयरभारई सहज्मवसायपरो आरुदो खपगसेडीए अउपकरणे, अंतगडकेवली जाओ, एतेणं अहणं एवं बुबह जहा मोबमा ! सिद्धीए, ता गोषम! कुसीलसंसमीए विपहियाए एवायं अंतरं भवति भ।१०।महानिसीहस्स चउत्यमायणं ४॥अत्र चतुर्याध्ययने बहनः सैद्धांतिकाः केचिदालापकास सम्यक बावस्येव, तैरवदयानरस्माकमपि न सम्यक अदधानं इत्याह हरिभद्रमूरिः, न पुनः सामवेद मनुष्ययन, अन्यानि IA ११३७ महानिशीथच्छेदसूत्र, murareer
मुनिटीपारजसागर
दीप अनुक्रम [६७८]
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आगम
(३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [५], ------------- उद्देशक -, ---------- मूलं [१] +गाथा:||१|| -------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
जहालगीए अहातमाए एतिण धम्मत।
रोयमा ! अत्यनाए गणी ॥१॥ से भय
वा अध्ययनानि, अस्यैव कतिपयैः परिमितराखापरखधानमित्यर्थः, यत् स्थानसमवायजीपाभिगममज्ञापनादिषु न कथंचिदिदमाचल्ये यथा पतिसंतापकस्थलमस्ति, सद्गुहापासिनस्तु मनुजास्तेषु च परमाधार्मिकाणां पुनः । पुनः सपाष्टवारान् यावदुपपातः तेषां च तदारुणेनजशिलापरहसंपुरैमिलितानां परिपीड्यमानानामपि संवत्सरं यावरयाणण्यापत्तिर्न भवतीति, रहवादस्तु पुनर्यथा तावदिदमार्ष सूत्र, विकृतिन तायदन पविष्टा, प्रभूताधात्र बुतस्कंधे अर्थाः, सुष्चतिशयेन सातिशयानि गणधरोक्तानि चेह पवनानि, वदेव स्थिते न किंचिदाशंकनीय ।११॥ एवं कुसीलसंसम्गि, सबोवाएहिं पयहिउँ । उम्मग्गपहियं ग जेबासे लिंगजीविणं ॥१॥ से गं निपिग्धमकिटिहं. सामन्नं संजर्म लोग उमेजा ने सिया भावे, मोक्ये दुरयरं ठिए ॥२॥ अत्येगे गोपमा ! पाणी, जे ते उम्ममापट्टियं । गच्चई संवासइत्ताण, भमती भवपरंपरं ॥ ३॥ जामदजाम दिणपसं, मासं संवपरपि वा। सम्ममापहिए: गच्छे, संवसमाचस्स गोयमाः॥४ालीलायलसमाणस्स, निरुण्याहस्स धीमगं । पक्लोचेकसीय बन्नेए. महाणुभागाण साहुणं ॥५॥ उजम सचामेरा, पोरसीरतपाइयं । ईसक्सासंकभयलजा, तस्स वीस्थि समुच्छले ॥६॥ वीरिएणं तु जीवस्त, समुच्चलिएण गोयमा!। जमतस्कए पाये, पाणी हियएम निहये ॥ ७॥ तम्हा निउर्ण निमाले, गई सम्मपट्टियं । निक्सेशातत्य आजम्म, गोयमा ! संजए मुगी 1 से भयर्व ! कयरेण से गयो जे ण - वासेना एवं तुमच्छरस पुच्छा जाच णं ययासी, मोयमा! जत्य णं समसन्तुमितपस्ये अनसुनिम्मलविसुद्धतकरने आसायणाभीरू सपरोक्यारमभुजए अचंत उन्हीचनिकायवच्छले सवालंबणविणमुके अर्थतमापमादी सबिसेसचेतियसमयसम्मापे रोडमाणषिणमुके सत्य अणिगृहियचलनीरियपुरिसकारपरकमे एमनेणे कंजरंकाष्पपरिभोगनिरए एगणं धमतरायभीरू एगंतेर्ण त(स)तरुदै एगंतेणं इथिकहामत्ताहातेमकहारायफहाजणवयकहापरिमहावारकहा एवं विचिलियाहारसबनीसविचितमपमेयसबविगहापिप्पमुके एगतेणं जहासनीए अट्ठारसण्डं सीलंगसाहस्साणं आग्रहगे सयलमहणिसाणुसमयमगिलाए जहोवदहमग्यापरूपए बहुगुणकलिए महिए अखलियसीलेगमहायसे महासत्ते महाणुभागे नाणसणधरणगुणोजपए गणी ।। से भय ! किमेस चासेजा, गोयमा ! अत्गे जे णं वासेजा जत्थेगे जे नं को वासेना, से भयो ! केणं अट्टेण एवं पुषद जहा गं गोयमा : अत्येगे जेणे वासेना अत्यये जेणं नो वासना, गोषमा! अत्येगे जेथे आणाए ठिए जत्थेगे जे गं आणाचिराहगे, जेणे आणाठिए से गं सम्पदसणनाणचरिताराहगे, जे णं सम्मासणनाणचरिनाराहगे से गं गोपमा ! अचंतबिऊ गुपचायहकहजए मोक्सममो, जेय उण आणानिराहगे से जर्णताणुचंधी कोहे सेणं जर्णताणुपंधी माणे से गं अगंतापंधी कइयो सेणं अणताणुधी लोभे, जेणं अणंतागुचंधीकोहाइफसायपरके से गं पणरागदोसमोहमि
छनपुंजे जेणं घणरागदौसमोहमिळतपुंजे से णं अगुत्तरपोरसंसारसमुदे जेणं अणुत्तरपोरसंसारसमुद्र से ण पुणो २ जमे पुणो २ जरा पुणो २ मच जेणं पुणो २ जम्मजरामरणे से गं पुणो २ पहुभक्तरपरावने जे पुणो २ पर्वतरपरापने से गं पुणो २ चुलसीइजोणिलक्समाहिंट जे गं पुणो २ चुलसीइजोगिलक्समाहिंडण से गं पुणो २ मुसहे पोरतिमिसंधयारे गहिरचिलिबिले वसपूतपित्तसिमाधिस्वतदुग्गंधासुहविटीनचालकेयकिषिसखरंटपरिपुग्ने अणिउत्रियणिजपोरचंडमहारोहदुपदारुणे गम्भपरंपरापर्वसेजे ण पुणो २ दारुणे गम्भपरंपरापसे से गं दुक्ले से या केसे से रोगाके से णं सोगसंतापुत्रेयगे जे गंडक्रसकेसरोगायकसोगसंगापुरगे से णं अणिउनी जे ग अणिवत्ती से णं जहडियमणोरहाणं असंपत्ती जे गं जहट्टियमणोरहाणं असंपत्ती से पं नाव पचप्पयार अंतरायकम्मोदए जत्थ पंचप्पयारकम्मोदए एल्थ णं सबटुक्खाणं अग्गणीभूए पढमे नात्र दारिदे जेणं वारिस से अयसम्मकाणअकिनिकटकराती मेलावमागमे जेणं जपसमक्खागजकित्तिकलंकरासीणं मेवगागमे से गं सयजनकनणिजे निदणिले गरहणिजे लिसगिजे दुछिणिजे सापरिभूषजीविये जे र्ण सत्रपरिभूयजीपिए से णं सम्मरसणनाणचरितारगुणेहिं सुदूरपरेण विष्पमुळे वेव मणुषजम्मे अन्नहा या सापरिभूए येवणं भवेजा, जे सम्मईसणनाणचरित्सागुरोहिं सुदूस्वरेणं विष्पमुफे पेण, न भवे से णं अणिरुजासबदारए पेत्र, जेणं अनिरुदासबहारते क्षेत्र से गं बहलमूलपाचकम्माययणे जेण बहलथूलपायकम्माययणे से गं बचे से णं पंधी से णं मुत्ती से ण चारगेसेज सामकहानमगारजाले दुविमोक्ले कक्खडपणवरपुडनिगाइए कम्मर्गती जे गं कक्खयणपद्धपहा निगाइयकम्मगंठी सगं एगिदियनाए मंदियनाए नेइंदियनाए चरिदिबचाए पचिनियत्ताए नारयनिरियाकमाणुसेम अणेगविहं सारीरमाणसं दुक्रमणुभवमाणेणं देइयो, एएणं अटेणं गोयमा ! एवं युवा जहा अस्थेगे जेणं वासेना अत्यगे जेण नो वासेजा।श से भयर्य! कि मिच्छनेणं उच्छाइए केइ गच्छे भवेजा, गोयमा ! जे से आणानिसहमे मच्छे भनेजा से गं निन्छयो पेन मिच्छनेणं उच्चाइए भवेना, से भयर्ष! कयरा उण सा आणा जीए ठिए गच्छे राहगे भवेजा, गोयमा : संसाइएहि मार्गतरेहि गच्छस जाणा पचना जाए ठिए गच्ने आराहगे मवेजा।३। से भय किनेसि संसानीतागं गण्डमेरायाणकराणं अस्थि कह अभयरे पाणनरेजे गं उससमोण वा अवधाएग या कहनि पमापडोसेणं जसई अदकमेना, अइस्तेण वा आराइने भवेजा, गोयमा पिच्छयोनस्थि, से भया ! के जहणं एवं मुबह जहाण निच्छपजो नन्धि, गोयमा विस्थयरे पंताच नित्यपरे नित्य पुण चाउचन्ने समणसपे, में गं गच्छेसु पइहिए, गच्छेमुषिणं सम्मदेसणनाणचरित्ते पाहिए, ते य सम्मदसणनाणयरिसे परमपूजाणं गुजयो परमसरपणाणं सरणपरे परमसेवाग से धयरे, नाई व जन्य गं गच्छे अन्नयरे ठाने कत्यद विराहिजतिसेणं गच्छे सम्मन्गपणासए उम्मगदेसए जेणं गच्छे सम्मम्गपणासए उम्मग्गदेसए से णं नियत्रोचेब आणानिराहगे. एएणडे गोपमा एवं युवा जहाग संखादीयाण गच्छे मेराताणनराणं जे गं गमछे एगमन्नयरहाण जइकमेना स.एमतग पे आणाचिराहगे।४ासे भयवं! केवइयं कालं जापगडस्स ण मेरा पन्नविया केवइयं कालं जावगं गचडरस मेरा गाइकमेयनार, गोषमा जागणं महायसे महामने महा. शुभामे तुप्पसहे अगगारे सार गंगठमेरा पचपिया जाप से महायसे महासले महाणुभागे दुष्पसहे अणगारे ताच णं गच्उमेरा नाहकमेयवा से भवयं कयरहिण लिंगहि गरकमियमेरे आसावणाचल उम्मम्मपट्टियं गई
वियाणजा, गोयमा ! जे असंठवियं सच्छंदवारि अमुणियसमयसम्भावं लिंगोपजीवि पीताफलगपडिपदं अफासुचाहिरपाणपरिभाई अमुणियसत्तमंडलीयम्मं समाचस्सगकालाइकमयारिं आवस्सगहाणिकर ऊणारिनावस्मगपवन - ११३८ महानिशीपच्छेदसूध, 10-4
मनि दीपरनसागर
||१||
दीप अनुक्रम [६८४]
144ther4SAPएक
अत्र चतुर्थ अध्ययनं समाप्तं
अत्र पंचम अध्ययनं- “नवनीत-सारं" आरब्ध:
~286~
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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [५], ------------- उद्देशक ----------- मूलं [७] +गाथा:||९||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
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गणणापमाणऊणाइरिसरयहरणपतरंगमुहणतगाइउवगरणधार गुरुवगरणपरिभोई उत्तरगुणविराहर्ग मिहत्याउंदाणुविचाइसम्माणपवर पुढवीदमागणिवाऊवणफईचीयकायतसपाणपितिपउप दियार्ण कारणे वा अकारणे वा असती पमायदोसओ संघहणादीसं अदिदोस आरंभपरिग्नहपवितं अदिन्नालोयणं विगहासीलं अकालवारि अपिहिसंगहियापरिक्खियपाविओवहाचियासिक्समियदसविहविणयसामायारिलिगिण इढिरससायागासजायाइमवचउकसायममकारअहंकारकठिकलहसंझाडमररोहनमाणोचगयं अठावियबहुमयहरं देहित्ति निच्छोदियकर पहूदिवसकयलोयं निजामततंतजोगजा(मंज)जाहिजणिकपाकास अढमूलजोगगणिओर्ग दुकालाइआलवणमासन अकापकीयगाइपरिभुजणसील किंचि रोगार्यकमालंपिय निगिच्छाहिणंदणसीलं किंचि रोगार्यकमासीय दिया तुबहणतीलं कुसीलसंभासणाणुवित्तिकरणसील अगीयस्थमुहविनिमयअगदोसपायहिवयणाणुहाणसीलं असिघणुखम्गमंडीवकुंतषकाइपहरणपरिमगहियाहिंदणसील साहुझियजन्नसपरिवनकयाहिंडणसील एवं जावणं अक्षुहाओ पयकोडीओ वापसे गोयमा! असंठियं च गपडं पायरेजा।६।तहा अण्णे इमे बहुप्पगारे लिंगे गच्छस्स गं गोयमा! समासओ पन्नविनंति, एतेयणं एवारिसेर्ण गुरुगुणे विन्नेए जहा-गुरूताच सम्पजगजीवपाणभूयसत्ताणमाया भवाइ, कि पुण गच्छरस,सेणं सीसमणार्ग एनसणं हिय मिर्च पार्थ इहपरलोगसुहाचह आगमाणुसारेण हिजओचएस पयाइसेणं देविंदनारदरिदीभाणपिपपस्तमे गुरुवएसप्पयाणलंभेतचा(सत्ता)णुकंपाए परमक्खिए जम्मजरामरणादीहिर्ग इसे मध्वसत्ता कई गुणाम सिवसह पातित्तिकाऊणं गुरुपएस पयाज, णो णं बसणाहिए जहा णं गहन्यस्ये उम्मले, अस्चिएर वा जहा णं मम इमेण हिओबएसपयाणेणं अमुगहलामं मकेजा. णो णं गोयमा ! गुरु सीसा निस्साए संसारमुत्तरेजा, णो णं परकएहि सबसुहासुहेहिं कस्सइ संपद अस्थि ।। 'ता गोयम! एश्य एवं ठिमि जइ बढचरित्तगीयत्यो । गुरुगणकलिए य गुरुणा भणेज असई इर्म वयर्ण ॥९॥ मिण गोणसंगुलीए गणेहि वा बंतवकलाई से तंतहमेव करेजा कन तुनमेव जाणेनि॥१०॥आगमचिऊ कबाई सेयं कायं मणिज आपरिया। तंतह सदहिया भविया कारणेण तहिं ॥१॥जो गेहद गुरुवयणं मन्नत भावओ पसन्नमणो । ओमहमिव पिजन से सस महामहं हो ॥२॥ पुन्नेहिं चोइया पुरक्खएहिं सिरिभायणं भवियसत्ता । गुरुमागमेसिभदा देवयमिव पजुवासंति ॥३॥ बहुसोक्खसयसहस्साण दायगा मोयगा दुइसयाणं । आयरिया कुडमेयं केसि पएसीय ते हेऊ ॥ ४॥नरयगइगमणपरिहत्थए कए वह पएसिणा रमा। अमरविमाण पत्नं ते आयरियायभावेण ॥ ५॥ धम्ममइएहिं अइसमहुरेहि कारणगुणोपनीएहि । पहायतो हिययं सीसं बोइज आयरिओ॥६॥ एत्वं चावरिाण पणपर्व होति कोडिलक्खाओ। कोडी सहस्से कोडी सोय तह एत्तिए येव ॥ ७॥ एनेमिनामी एगे निमुन गुण(क)गणाइन्ने। सत्रुत्तमभंगेर्ण तित्वयरस्सऽणुसरिस गुरुः ॥८॥सेऽविष गोयम देवयचयणा मरित्यणाई सेसाई। तह आराहेजा जाह तित्थयरे चउनीस ॥॥ सबमपी एल्य पए दुवालसंग सुर्य तु भणिया। भवह नहा अविमिणिमो समाससारं परं भजे ॥२०॥जहा- मुणिणो संघ नित्यं गण पक्षण मोक्खमग्ग एगहा। इसणनाणचरिने घोरुगत पेप गाणामें य॥१॥पपलनि जत्थ धगधगधगम्स गुरुणोषि धोइए सीसे । रागहोसेणं अह अणुसएणत गोयम! ण गच्छं ॥२॥गळ महागुभार्ग तत्व वसंताण निजरा विडला । सारणवारणचोयणमादीहिंण बोसपडिपत्ती॥२॥ गुरुगो वणुपले सुविणीए जियपरीसहे धीरे । णचि थडे णपिउने पविगारपिए न विगहसीले ॥४॥ संत ते मुसे गुते वेरमामग्गमाडीणे । बसनिहसामावारीमावस्सगसंजमुजुले ३५॥ खरफक्सककसाणिहरहनिरगिराइ सबहुतं । निभाणनिवारणमादीहिन जे पओसति ॥६॥जे पण अफिसिजणए गाजसजणए कजकारी य । न च पश्यणुदडाइको ठगयपाणसेसेचि ॥ ७॥ सनायामाणनिरए पोरतपधारणसोसियसरी गवकोहमाणकड्या दृझियरागहोसे य ॥८॥विणोरयारकुसले सोक्सविहरयणभासणाकुसले। मिरवजयणमणिरे यबहुभचिरेण पुणऽमणिरे ॥९॥ गुरुला कलमकले लरककसफरसनिठुरमणिह। मणिरे तहत्ति इमई मणति सीसे तय गच्छ ॥३०॥ दूरुजिाय पत्ताइसु ममतं निषिहे सरीरवि। जायामायाहारे बायालीसेसणाकुसले ॥१॥ तंपि ण कारसत्य मुंजताणं न येव दपाय। अक्खावंगनिमिर्स संजमजोगाण वहणत्यं ॥२॥ षण पेयापचे हरियड्डाए य संजमहाए। तह पाणवत्तियाए उई पुण धम्मथिताए॥३॥ अप्पुनाणमहणे घिरपरिचियधारणेकमुजुले । सुर्त जत्थं उभय जाति अणुद्वयति सया ॥४॥ अहह नाणदसणचारित्ताधारणपकाउकमि । अमिगृहियपालवीरिए अगिलाए धणियमाउत्ते ॥ ५॥ गुरुणा सरफरुसाणिहनिहरगिराए सपर्स । भगिरे को पटियरिति जत्थ सीसे तरं गच्छं॥६॥ तवसा अचितउप्पलबिसाइसरिदिकलिएदि । जत्थ नहीलंति गुरू सीसे संगोयमा! गळं ॥७॥साहितिसयपावाउयाण विजया विद्वत्तजसपुंजे। जय नहीलंति गुरूं सीसे तं गोयमा ! गई ॥८॥ जत्थासलियममिलियं अबाइ पयस्वरविसुदं । विनाओवहाणपुर्व दुवालसंगपि सुचनाणं ॥९॥ गुरुपलगभत्तिभरनिभरिकपरिजोसलबमालाये। अज्झीयंति सुसीसा एगम्ममणा स गोयमा! गई ॥४०॥ सगिलाणसेहवालाउलस गठस्स सनि लिहिणााकीर याच गुरुआपत्तीएं तंगडं ॥१॥ दसचिहसायापारी जत्थ ठिए भवसनसंपाए। सिझति व बुज्जति पण य संडिजायं गई ॥२॥ इच्छा मिच्छा तहकारो, आपस्सिया य निसीहिया । आपुच्छणा य पद्धिपुष्ठा, उंदणा य निमंतणा ॥ उवसषया यकाले सामापारी भये रसविहा उ ॥३॥ जत्थ य जिह कणिड्डा जाणिजह जेहविणवचमाण । दिबसेपनि जो जेट्ठो गोहीलिजइ तयं गई ॥४॥ जत्य व अजाकप पानचाएपिरोस्सुम्भिरसे। णय परिभुजद सहसा गोयम ! मम्मट तय मणिय ॥ ५॥ जत्थय अनाहि सम घेराविण वादति गवदसणा। ग य णिजाति स्वीगोगाईत गच्छ॥६॥जत्य य सन्निहिउक्रवडआइडमादीण नामगहणेऽपि । पूईकम्मा भीए आउना कप्पनिप्पमि ॥७॥ जत्थ य पचंगुम्मटजयजोत्रणमरहदपेणं। वाहिजताचि मुणी णिपसंति तिलोत्तमपितं गई॥८॥ वायामेनेजवि जरथ महसीलस्स निमहं बिहिणा। बहुलविजुषसेहस्सवी कीरह गुरुणा जयं गच्छ॥ ९॥मउए निहुयसहावे हासदयविनिए विगाहमुके । असमं. जसमकरेते गोयरभूमऽङ्क विहरति ।। ५.॥ मुणिनो गाणाभिमहबुकरपच्छित्तमणुचरंताण । जायह चित्तचमक देविदाणपिसं गई॥१॥ जत्य य बंदणपदिकमणमाइमंडलिपिहाणनिउणनू । गुरुणी असलियसीले समय ११३९ महानिशीथच्छेदम Gram
मुनि दीपरतसागर
दीप
POTAT
अनुक्रम [६९८]
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आगम
(३९)
"महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [५], -------------उद्देशक ----------- मूलं [७...] +गाथा:||५२||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
गाथा
||२||
कम्मतबनिरए ॥२॥ जत्थय उ..मादीणं तिथवराणं सुरिंदमहियाणं । कम्महविषमुकाण आणं नसटिवाइस गच्छो ॥३॥ नित्यचरे तित्यपरे तित्यं पुण जाण गोयमा! संघ । संघय लिए गच्छे गपछठिए नाणसणचरिने ॥४॥णादसणस नाणं दसणनाणे भवंति सवत्व । भयणा चारित्तस्स तु देसणनाणे धुर्व अस्थि ॥ ५॥ नानी दसणरहिनो चरित्तरहिजो बभमा संसारे । जो पुण चरित्तजुनो सो सिमा नरिच संदेहो ॥६॥ नाणं पगासय सोहओ यो संजमो य गुतिकरो। लिहपि समाजोगे मोग्लो कस्सपि जमाये ॥ ७॥ तस्सनि यसकंगाई नाणादितिगम्स खंतिमाहीणि । तेति चेकपर्व जस्थाणुढेजइ स यच्छो ॥ ८॥ पुचिदगागणिचाऊपणफई तहसाण विविहाणं । मरणतऽपिण मणसा कीर पीडे जयं गच्छं ॥९॥जय य पाहिरपाणस पिंदुमेनपि गेम्हमावीमुं। सहासोसियपाणे मरणेवि मुणीम इच्छति ॥६॥जस्थ य सूलविसूइय अन्नवरे वा विचित्त-स मायके । उम्पन्ने जलनालणाई ण कति मुणी तयं गच्॥१॥ जत्व य रसहरसे अजाओ परिहरति णाणहरे । मणसा सुगदेवयमिव सामपित्थी परिहरति ॥२॥(र)तिहासखेड्डदपणाहवाई ण कीरए जत्या धावणडेवणलंपण ण मयारजयारउचरणं ॥२॥जस्विस्थीकरफरिस अंतरिय कारणेपि उत्पन्ने । बिहीपिसदित्तम्मीविसंव बजिजइस गच्छो॥४॥ जस्थिस्वीकरफरिस लिगी अरहावि सयमपि करेजा। निथळयजी गोयम! जाणिज्ना मूलमुणवाहा ॥५॥ मूलगुणेहि उखलियं बदगुणकलियंपिलदिसंपन्न । उत्तमकुलेचि जार्य निहाडिजाइ जनियंग ॥६॥जय हिरण्णसुपण्यो धणचन्ने कंसव्सकलिहार्ग । सयणाण आसणाण यनय परिमोगो से तयं गई। ७॥जन्य हिरण्णसुपण हरण परागयपि नो छिप्पे । कारणसमप्पियपिहुखणनिमिसहपित गर्छ॥८॥ दुबरबभवयपालण अजाण चलचित्ताणं । सससहस्सापरिहारठाणवी जत्थन्थि तं गच्छं ॥९॥ जत्युनरबपतिउत्सरेहि अजा उसादुणा सदि। पलयति सुकुम्बासी गोयम! किन गण? ॥७॥ जत्थयागोयमः बहुविहविकणकठोलपंचलमगाणं। अजाणमणुहिजइ भणिय केरिसं गच्च ॥१॥ जत्येकंगसरीरा साह सह साहुणीहि हत्थसया। उइट गच्डेज रहि गोयम ! गडमि का मेरा' ॥२॥ जय अ अजाहिं समं संतालावमाइवमहार। मोतुं धम्मुबएस गोयम! केरिसं गच्छं?॥३॥ भववमणियतविहारं णिययबिहारंग नाव साहणं । कारणनीयापार्स जो सेवेलस्स का पत्ता?॥४॥ निम्ममनिरहंकार उजुत्ते माणसणचरिते । सपलारंभविमुफे अप्पद्विवडे सदेहेवि ॥५॥ आधारमायरने एगखेलेवि गोयमा ! मुणिणो । वाससर्वपि वसते मीयन्ये राहगे मणिए ॥६॥जन्य समुहसकाले माहूर्ण मंडीए अजाओ। गोयम! ठपनि पादे इस्वीरज नसे गई ॥७॥अगर य हत्थसएवि प रयणीचा उन्हमूगाओ। उदद दसहमसइ से (ण) करेंनि अजा जयं गच्छं ॥८॥ अबबाएणचि कारणवसेण अजा वडाहमणाउ। गाऊयमवि परिसकति जस्थन केरिसं गावं ? ॥ ९॥जस्थ य गोयम! साहअनाहि समं पहमि अणा । अचाएपनि मच्छेज तय गचडमि का मेरा ॥८॥ जत्व यतिसदिनेयं वरामगिदीरणि साह । अजाउ निरिक्खेजात गोयम! केरिसं गई? ॥१॥जय य अजाल पटिमादंदादिविविहमुम्मरण । परिभुनासाहित गोयम! करिस गळ?॥२॥आरलाई भेसज पलबुद्धिपियनगंपि पुद्धिकर। अजार भुजद का मेरा तस्थ गमि ? ॥ ३ ॥ सोऊण गई सुकुमालियाए तब ससगमसगमणीए । ताय न बीससिया सेबडी पम्मिओ जावः ॥ ४॥ दयारिनं मोनुं आयरिब मयहरं च गुणरासि । अज्जा | पहायेईने अणमानने गच्छं॥ ५॥ पणमनि(विड)वयकुहाडवेजदुग्गेजममूढहिययाउ । होजा बायारियाओ इल्लीरनं न गच्॥६॥ पचवा सुयदेवी नबलदीए मुराहिवणुयादि। जस्व रिएज्जा कजाई इत्थीरज नतं गच्छ॥ ७॥ गोयम ! पंचमहन्वय गुनीणं लिण्ड पंचसमिईण। दसविहवम्यस्सिक कहवि खलिजा न गच्छ॥८॥ दिणदिक्खियरस बमगरस अभिमुहा अजबंदणा अना। निच्छा आसणगहणं सो विणी सध्यअजाण ॥९॥ वाससदिक्खियाए अजाए जजदिक्खिओ साहू। भत्तिमरनिष्मराए रणविणएग सो पुजो ॥१०॥ अजियला मिदा सएन लाभेण जे असंतुहा। मिक्लायरियामा अभियउन गिराऽऽहंति ॥१॥ गयसीसगण ओमे मिक्सापरियाअपच परं । गणिहिति ने गाये अजियलाभ गवसंता ॥२॥ ओमे सीसपास अप्पडिप अजंगमतं चाण गणेज एगरटेने गणेज वास णिययवासी ॥३॥आनंबणाण भरिओ लोगो जीवरस -: जउकामस्सा जज विष्टलाए नंत आलंवर्ग कुणइ॥४॥जस्थ मुणीण कसाए चमविनंतेचि परकसाएहिं । अच्छेज समुद्देउ सुणिविही पंगुलम तय (गच्छ) ॥ ५॥ धम्मंतरायभीए भीए संसारगम्भवसहीणं । णोदीरिज कसाए मणी मणी सगासीलनवदाणभावश्च उनिहधम्मतरायभमभीए। जत्थर गीयत्वे गोषम ! ग तयं पासे ॥ ७॥ जत्य य कम्मवियागरस चिहियं पउगईएं जीवाणं । पाऊणमयरवेऽची नो पकुणनितंग ॥८॥जन्य य गोयम ! चाह महवि सूणाण एकमवि होना। तं गच्छतिविहेर्ण वोसिरिय बहना जनस्थ ॥ ५॥ सूमारंभपवितं गच्छं वेसुजलं पण पसेजा । जे चारित्तगुणहित उजलंसं निवासेना॥१०॥ नित्थयरसमो सरी जयकम्यहमारापडिमा। आणं अइकमंते ते कापुरिसे न सम्पुरिसे ॥१॥ महायारो सूरी भट्टाचाराणुविक्खजो सूरी। उम्मग्गठिओ पूरी निषिणवि मग पणासंति ॥२॥ उभ्मग्गठिए सूरिमि निण्यं भवसत्तसंचाए। जम्हा तं मम्ममणुसरति नम्हा गत जुर्स ॥३॥ एकषि जो दुहर्त सर्त परिचोहिउं ठवे मगे। ससुरासुरमिवि जमे तेणेई पोसियं अमाचार्य ॥४॥ भूए अस्थि भविस्सनि कई जगपंदनीयकमजुयले । जेसि परहिपकरणेकालक्लाण बोलिही कालं ॥५॥ भए अणाइकाटेग के होहति गोयमा ! सूरी । नामग्गाहणेणचि जेसि होज नियमेण पभिात ॥६॥ एवं मच्छक्वस्थ हुप्पसहाण(क)सरं तु जो संटे। गोयम ! जाण गणि नियोऽर्णनर्ससारी॥७॥ जसपलजीवजगमंगलेककटाणपरमकाला। सिदिपए बोचितपणे पश्चिात् होइन गणिणो ॥८॥सम्हा गणिणो समसतुमिनपाखेण परहियरएणं । कताणसुगा अपणो य आणाणलंघया ॥९॥ एवं मेरा लंघेवानि, एवं गच्यवनय घेतु निमारनेहि पदिषदेसिलाईए गणिणो अजारि पोहिंन पाति ॥११॥जलभेहिंति य अमेजतदुत्तोचि परिमर्म विश्वापागहमनसंसारे चिडिज चिरै सुनुस्खत्ते ॥१॥ पोहसरजूलोगे गोयम ! बालग्गको. डिमेतंपि। तं नरिय पएसं जाय अर्णवमरणे न संपत्ते ॥२॥ पुलसीबजोणिलक्से सा जोणी नस्थि गोयमा ! इहई। जत्यण अगंतनुलो सके जीवा समुप्पना ॥३॥ सूईहिं अग्गिवचाहि. संमिमरस निरंतरं । जावइय गोयमा! बुक्स, गब्ने अहगणं तयं ॥४॥ गम्भाओ निफितस्स, जोगीतनिपीलणे। कोडीगुर्ण तयं दुक्ख, कोदाकोडिगुणपि वा ॥५॥ जायमाणाणजे दुक्ख, मरमाणाण जंतुर्ण । तेण बुक्सविमागे(निदाणे), जाईन सरंति (२८५) ११४० महानिशीथरोदसूत्र, #re
___मुनि दीपरनसागर ।
दीप अनुक्रम [७४२]
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आगम (३९)
“महानिशीथ" - छेदस -------अध्ययन [५], ------------- उद्देशक [-1,---------- मूलं [८] +गाथा:||११७||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
गाथा
||११७||
अत्तणि ॥६॥ नाणाविहासु जोणीसु, परिममंतेहिं गोयमा! तेण दुक्खविवागेण, संभरिएण णवि जियए॥७॥जम्मजरामरणदोगरवाहीओ चितुवा । उजेजा गमवासेणं, कोणबुद्धी महामई? ॥ बहुरूहिरपहजबाले, असुईकलिमलपूरिए । अणिट्टे य दुभिगंधे, गम्मे(ता) को पिई लभे? ॥९॥ ता जत्य दुक्खचिक्तिरण, एर्गतसुहपावणे । से आणा नो खंडेजा, जाणाभंगे कुओ सुहं ? ॥१२०॥ से भयर्व! अबव्ह साहूणमसई उस्सग्गोण या अक्याएणवाचाहिं जणगारेहि समगमणमागमणं निसेहियंतहा बसण्हं संजईणं हेहा उस्सग्गेणं चउण्हं तु जमाये अपवाएणं हत्यसयाउ उदगमणं णाणुण्णायं जाणं वा अइकमंते साहवा साहुणीओ वा अणंतसंसारिए समस्वाए ता से दुष्पसहे अणगारे असहाए भवेता साविय विन्दुसिरी असहाया पेप मजा एवं तु ते कई आराहगे मवेजा ?, गोयमा! गं दुस्समाए परियंते ते चउरो जुगप्पदाणे खाइगसम्मत्तनाणदसणचरित्तसमन्निए भवेजा, नत्यनजे से महायसे महागुभागे दुप्पसहे अणगारे सेणं अञ्चतविसुद्धसम्मईसणनाणचरित्तगुणेहि उनए सुदिहसुगइमम्मे आसाषणामी अर्थतपरमसदासवेगवेगसम्मगहिए णिरम्भगयणामलसरपकोमुईसुनिम्माईदुकरविमलपरपरमजसे वंदार्ण परमचंदे पुजार्ण परमपुजे भवेन्ना, तहा साचिय सम्मतनाणचरितपडागा महायसा महासत्ता महाणुभागा एरिसगुणजुत्ता चेष सुगहियनामज्जा विण्डसिरी अणगारी भफेजा, तंपिणं जिणदनफम्गसिरीनाम सावगमिहुर्ण बहुवासरवाणिजगणं घेव भवेजा. तहा तेसि सोलस संवपटराई परमं आउं अह य परिवानो आलोइयनीसाहाणं च पंचनमोकारपराणं चउत्थमनेणं सोहम्मे कप्पे उक्साजो, तयर्णतरं च हिहिमगमणं, नहावि ते एयं गच्छवपर्य गो निलंचिम्टा से भय केणं अट्टेणं एवं बुबइ जहाणे नहानि एवं गच्छयत्वं गो चिटचिंसु, गोयमा! इजो आसनकालेणं चेव महायसे महासने महाभागे सेजभवे जामं अणगारे महातपस्सी महामाई दुवारसंगमयपारी भवेजा, सेणं जपकरपवाएणं अपाङक्से भासत्तेमय जतिसएणं विन्नाय एकारसण्हं अंगाणं चाउदसहं पुधाणं परमसारणवणीयभूयं सुपणं सुपहरण(यघरोज्जो)सिदिमागं दसवेयालियं णाम मुयालंध णिऊहेजा, से भयचे ! कि पटुब ?, गोयमा ! मणगं पहुंचा, जहा कई नाम एवस्स णं मणगस्स पारंपरिएग बेवकालेणेव महतघोरखक्वागराओ चाउगइसंसारसागराओ निफेडो भवतु ?, सेऽविण विणा सामुयएसेणं, से य समनुपएसे अणोरपारे | दुरपगाढे अर्णनगमपनवेहि नो सका अपेणं कालेगं अवगाहिउँ, नहा णं गोयमा! अइसएणं एवं चिंतेजा. एवं से णं सेशंभवे जहा अणंतपारं बहुजाणिया, अप्पो कालो पहले अविग्ये। सारभूत गिन्हिया, हंसो जहा खीरमिधुमीसं ॥१२१॥ तेर्ण इमस्स भवसत्तस्स मणगस्स तत्तपरिमाणं भवउत्तिकाउणं जावणं दसवेपालिय सुबक्संचणिक(ब)हेजा ने च योनिच्छन्नेणं तकालदुचालसंगणं गणिपिरोणं जाच र्ण समाए परियंने दुप्पसहे नाय णं सुना स्वेणं पाएजा.से असपलागमनिस्संदं बसवेयालियसुवसंघ मुनओ अज्मीहीय गोयमा ! सेणं दुप्पसहे अणगारे, नजो तस्स णं दसवेवालियसुत्तस्सागुगयस्थाणुसारेणं वहा चेव पवासिना, णो णं सच्छंदवारी भवेजा, नस्य दसवेवालियसुसंवे तमासमिनमो दुवालसंगे सुवासंघे पदहिए भवेत्रा, एएणं अगं एवं युबइ जहा नहावि गोषमा! ते एवं गच्छववत्वं नो विलंघिसारासे भय! जाणं गणिणोषि अतविसुदपरिणामस्सपि फेड दुस्सीले सच्च्छंदत्ताएड या गारवत्ताएर वा जायाइमयत्ताएड पा आणं आइफमेजा से णं किमाराहगे भवेजा. गोयमा! जे णं गुरू समतनुमिनपाखो गुरुगणेसु ठिए सययं सुशाणुसारेण पेत्र विसुदासए बिहरेजा तस्साणमइ
तेहि णवणउएहि पाहि सएहिं साणं जहा तहा ये अणाराहगे भवेनासे भया ! कयरेणं ते पंचसए एकविनजिर साहूर्ण जेहिं चणं तारिसगुणोक्येयम्स महाणुभागस्स गुरुगो आणं अहमिळणाराहिय?, गोयमा! गं इमाए अब उसमचाउची सिगाए अनीनाए नेपीसइमाए चउवीसिगाए जावणं परिनिबुझे पपीसइमे अरहा नाव अदक्कतेणं केवइएणं कालेणं गुणनिष्फन्ने कम्मसेलमसमूरणे महायसे महासने महाणुभागे सुगहियनामधेने। बहरे वाम गच्छाहिबई भए. तस्स में पंचसयं गनई निम्गंधीहि विणा, निर्माचीहि समं दोसहस्सेय अहेसि. नामोपमा ताओ निग्गंधीओ अचंतपरल्लोगनीरुबाउ मुनिसुद्धनिम्मलंतकरणाओ खंताओ दवाओं सुनाओ जिइंडिया.
ओ अचंतमणिरीओ नियसरीरस्साविय कायवालाओ जहोवाट्टमचंतपोस्थीरतवचरणसोसियसरीराओं जहा गं तिस्थायरेणं पनवियं तहा चेव अदीणमणसाओ मायामयहंकारममकारह(२)तिहासखेड्डकंदपणाहवायचिप्पम्काओ तस्सायरिषस्स सपासे सामन्नमणुचरति, तेय साहुणो सोचि गोषमान तारिसे मणागा, अहऽनया गोयमा ! ते साहुणोतं आयरियं भणति जहा जहणं भयवं! तुम आणवेदिवा णं अम्हेहि तिश्ययन कारिय चंदप्पहसामियं वंदिय धम्मचकं गणमागवडामो. ताहे गोयमा! अदीणमणसा अणुचावलगंभीरमहुराए भारतीए भणियं तेणायरिएणं जहा इच्छाबारेण न कप्पद नित्थयत्तं गं मुबिहियाण, ना जायणं पोलेन जनं नाप णं अहं तुम्हे चंदप्पह यंदावहामि, जन्नच-जत्ताए गएहि असं जमे पङिजइ. एएर्ण कारणेणं तित्थपत्ता पडिसहिजड़, नओ तेहि भणियं-जहा भव! केरिसो उण तिथयनाए गच्छमाणाणं असंजमो भवड , सो पुण इच्छायारेणं, चिचजबार एरिसं पाडावेजा बहुजणेणं बाउलम्गो भग्निहिसि, ताहे गोयमा:चितियं तेणं आयरिएणं जहाणं ममं बड़कमिय निच्छयो एएगच्छिहिति नेणं तु मएसमयं बरबट्ट)तरेहि वयंति, अह अन्नया सुबहूं मणसा संधारेऊर्ग व मणिय तेण आयरिएणं जहा गं तुम्ने किचिपि सुतस्य पियाणह चिय तो जारिस तित्ययत्ताए गच्छमाणाणं असंजमं मचइ तारिस सयमेव पियाणेह, कि एष बहुपलबिएणं?, अन्नंच-विदियं तुम्हेहिपि संसारसहावं जीवाइपयत्वतनंच, अहऽन्नया बहुउवाएहि चिणिचारितस्सवि तस्सायरियस गए येव ते साहुणो कुदेणं कयंतेणं परियरिए तित्यवताए, सेसि च गच्छमाणाणं कस्बइ असणं कत्था हरिबकायसंघहणं कस्बाह बीयकमणं कत्थान पिपीलियादीणं नसाणं संपणपरितावणोदवणाइसंभवं कत्थर बइपटिकमण कत्थइण कीरए चेव चाउकालिय सझार्य कल्याण संपाडेज्जा मत्तभंडोवयरगरस पिहीए उभयकालं पेहपमजणपटिहणपक्खोदणे, किंबहुगा'. गोयमा कित्तियं भनिहिड? अवारसव्ह सोलंगसहस्साणं सत्तरसविहस्स णं संजमस्स दुवालसविहस्स सम्भंतरवाहिरस्स तबस्स जाव ण खंठाइअहिंसालक्खणस्सेप य वसचिहस्साणगारधम्मस्स जत्थेककपर्य चेष सुघडएणपि कालेग चिरपरिचिएण दुचालसंगमहासुपरसंघेणं बहुभंगसयसंपत्तणाए दुक्खं निरहयारं परिवालिऊण जे, एवं च सर्व जहाभणियं निरखवारमगुहेयंति, एवं संभरिऊण चिंतिय तेण गच्छाहिनाणा-जहाणं मे विपकरखेण ते ११४१ महानिशीथच्छेदसू, errul-
मुनि दीपानसागर
दीप अनुक्रम [८०७]
~289~
Page #290
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आगम
(३९)
प्रत
सूत्रांक
[११]
+
गाथा
॥ १२२ ॥
दीप अनुक्रम [८१७]
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“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं )
-
- मूलं [११] + गाथाः || १२२ || -
अध्ययन [ ५ ], उद्देशक [-1. मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
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दुसीसे मज्जणाभोगपचएणं सुचहुं असंजम काहति तं च सर्व ममच्छति होही जओ णं हूँ तेसिं गुरु ताई तेसि पट्टीए गंतू पहिजागरामि जेणामित्व पाए पायच्छिते को बज्नेति वियपिऊ गओ सो जाय रिजो वेसि पट्टीए जाव णं दिट्टे तेणं असमंजसेण गच्छमाणे, ताहे गोयमा! सुमहरमंजुलालावेगं भणियं तेगं गच्छाहिणा जहा भो भो उत्तमकुलनिम्मल सविभूषणा अमुगअमुगाइ महासत्ता साहू पपड़ियन्नाणं पंचमडयाहिट्टियतपूर्ण महाभागाणं साहसादुणी सत्तावीसं सहस्साई पंडिलाणं सबसीहिं पन्नलाई, ते य उपउत्तेहि विसोहिजति ग उ अन्नो उत्तेहि, ता किमेयं मुन्नामुन्नीए अणो उत्तेहिं गम्मद, इच्छायारेण उपओगं देह, अन्य इमो सुत्तत्थं किं तुम्हाणं विसुमरियं भवेजा जं सारं परमतताणं जहा 'एगे बेईदिए पानी एवं सयमेव हत्येण वा पाएण वा अन्नयरेण वा सलागाइ अहिगरणभूओवगरणजाएवं जेणं केई संघना वा संघाला वा एवं संपट्टियं वा परेहिं समजाणेजा से णं तं कम्मं जया उदिन्नं भवेजा तथा जहा उच्छुटाई जति तहा निप्पीविजमाणा उम्मासेर्ण लवेजा, एवं गाडे दुवालले संचरेहिं तं कम्मं वेदे एवं अगादपरियावणे दाससहसं गाढपरियाणे दाससहस्ते, एवं अगाडकिलामणे वासलक्स गाडकिलामणे दसवासलाई उदवणे पासकोडी, एवं दिवापि यं ता एवं च विषाणमाना मा तुम्हे मुज्झहत्ति एवं च गोवमा सुत्तानुसारेणं सारयंतस्सावि नारियल ते महापावकम् गमगमले ह्योइली एवं वं आयरियाणं वयणं असेसपावकम्मदुक्ख विमोय जो बहु मन्नति, ताहे गोयमा मुणियं तेणायरिएणं जहा निष्ठयजी उम्मापट्टिए सपगारेहिं चैव मे पासी, तामिममिमेसि पट्टीए लडीबागरणं करेमाणोऽगच्छमाणो व सुक्लाए गयजलाए नदीए उबुज्नं, एए गच्छंतु ददुवारेहि, अयं तु तावायहियमेवाचिडेमी, किं मां परकएणं सुमहंताच पुन्न मारेण वमवि किसी परित्ताणं भवेना ?, सपरकमेणं चेत्र मे आगमुत्ततवजमाणुाणेण भयोयही वरेयो, एस उण तित्ययराएसो जहा 'अपहिये काय जसका परहियं च पयरेजा अन्तहियपरहियाणं अन्तहियं कायां ।। १२२ ।। जन्नंच जइ एते तवसंजमकिरियं अणुपालिहिति तो एएसि चैव सेयं होहिद, जइ ण करेहिंति त एएसि पेत्र दुग्गइगमणमतरं वेजा, नवरं तहापि मम गच्छा समप्पिओ गच्छाहिचई अहवं भणामि, अन्नं च-जे तित्थयरेहिं भगवंतेहिं उनीस आयरियगुणे समाइ तेसि तु अहह्यं एकमबि माइकमामि जव पाणोवरमं भवेजा, जं चागमे इहपरलोगविरुद्ध तं पायरामिण कारयामि ण कलमाणं समजाणामि, ता मेरिसगुणजुनस्सावि जइ भणियं ण करेंति तामिमेसि सग्गणं उदालेमि एवं च समए पत्ती जहाजे केई साहू वा साहूणी वा वायामितेनावि अजममणुचेडेजा से णं सारेजा चोएजा पडिपोएजा से णं सारेज वा चोया पहियाइते वा जेणं तं वयणमत्रमत्रिय अलसायमाणे वा अभिनिविडे वाण तहन्ति पडियजिय इच्छे पजित्ताणं तत्य णो पडिकमेजा से णं तस्स वेसम्म उहालेना, एवं तु आगमुत्तणाएवं गोयमा जाय तेणायरिएन एगस्स सेहस्स वेसग्ग्रहणं उदालियं नाव णं अवसेसे दिसोदिसं पण, ताहे गोयमा सो य आयरिओ सणियं नेसि पट्टीए जाउमारो णो णं तुरियं २ से कम तुरियं २ णो पयाइ, गोयमा खाराए भूमीए जो मडुरं मेजा महराए खारं किन्हाए पी पीयाजो किन्हं जलाजो पल मलाओ जलं संमेजा तेणं विहीए पाए पमजिय २ कमेययं णो पमजेना तओ दुबालसवच्छरिय पच्छित्तं भवेजा, एएणमद्वेण गोयमा सो आपरिओ पण तुरियं २ गच्छे अऽनया सुयाउत्तविहीए पंडिल कम करेमाणस्स णं गोयमा तस्सायरियस्स आगओ बवासरापरिगयसरी विदाकर्यंतभा पलयकालमिव पर केसरी, मुणियं च तेण महाणुभागेणं गच्छाविणा जहाज दुयं गच्छेता चुकिन इमस्स वरं दुर्य गच्छमाणाणं असंजय ता वरं सरीरबोडेन असेजमपरत्तर्णति चितिऊण बिहीए उचट्टियस्स सेहस्स जमुदालियं सम्हणं तं दाऊण ठिओ निप्प टिकम्मपायचोचगमणाणसणेणं, सेऽपि सेहो तब अहलया अर्थतविद्धंतकरणे पंचमंगलपरे सुहसवसायत्ताए दुष्णवि गोषमा दावाइए तेण सीहे अंतगडे फेवली जाए अप्पयारमटकलंकमुके सिद्धे य, ते पुण गोयमा एकूणपंचसए साहूणं तकम्मदोसे जं दुक्तमणुभवमाणे चितिजं चाणुभ्यं जं चाणुभविहिति अतसंसारसागरं परिभमंते तं को अपतिणपि काले मणि समत्यो ? एए ते गोयमा एगुणे पंचसए साहूणं जेहि चणं नारिस गुणवचेत महाणुभागस्स गुरुणी आणं अइकमियं णो आराहियं अनंतसंसारिए जाए। ११ से भयवं कितित्ययरसंतियं आणं बाइकमेजा उयाहु आयस्थिसंनियं? गोयमा चचिहा आयरिया भवति, तंजा-नामायरिया ठवणायरिया दडायरिया भावायरिया, तत्व जे ते भाषायरिया ने तित्वयरसमा चैव दवा, तेसि संवियाणं (ना) इमेजा १२ से भयवं कचरेण ते भावायरिया भन्नंति ?, गोषमा जे अपदवि आगमविहीए पर्य पणाचरंति ते भाषायरिए, जे उण वाससपदिक्सिएचि हुत्ताणं वायामेत्तेपि आगमजो पाहिं करेति ते वामनाहिं णिजइयचे से भय आयरियाण केवइयं पायच्छिनं भवेजा, जमेगस्स सानो तं आयरिथमयहरपबत्तिणीए सतरसगुणं, अहा णं सीलखलिए भवति नओ गुणं अक्क न करें, तम्हा सा सप्पयारेहि आयरियमहयरपदचिणीए ज अत्तानं पायच्छिन्नम्स संरक्लेय, अक्ललियासीलेहिं च भवेय । १३ । से भय! जे गुरू सहसाकारेण अन्नपरहाणे चुकेज वा खलेज वा से आरागेण या गोयमा ! गुरुणं गुरुगुणे यमाणो अक्सलियसीले अपमादी अणालस्सी सवालचणचिप्यमुळे समसमेत पक्से सम्मापाए जावणं कामणिरे सद्धम्म जुत्ते भवेजा णो णं उम्मग्गसए अहिमाणरए भवेजा, सट्टा सम्रपयारेहिं णं गुरुणा ताव अप्पम लेणं मवियमं णो णं पम लेणं, जे उण पमादी नवेखा से णं दुरंतलक्खणे अट्टने महापावे, जह सत्रीए हवेशा ता णं निययदुचरिवं जहावत्तं सपरसीसगणाणं एक्साविय जहा दुस्ततलखणे अदवे महापावकम्मकारी सम्मन्यपणास अति एवं निंदिताणं गरहिताणं आलोइत्तानं व जहामणियं पायच्तिमचरेला से किंचुड़ेसेणं जराहगे भवेज्जा, जइ नीसले निपटीचिप्यमुक्के, न पुणो सम्मणाओ परिभसेज्जा, अहाणं परिमस्से तओ पाराहेइ १४ से भयवं केरिसगुण जुत्तस्स गुरुणो गच्छनिक्वेवं काय? गोयमाणं सु जेणं सुसीले जे गंदइए जे गं बढ़चारिते जेणं अणिदियंगे जे णं अरहे जे णं गयरागे जे णं गयदोसे ज णं निडियमोहमिच्छत्तमलकलंक जेणं उपसते जेणं सुविन्नायजगहितीए जेणं सुमहावेगमगमहीने जेणं इत्थी१९४२ महानिशीषच्छेद अन्तर-५
मुति दीपला
~ 290~
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आगम
(३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूल) ------- अध्ययन [५], ------------- उद्देशक [-1, ---------- मूलं [१५] +गाथा:||१२२...||-------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
1844045
सत्राक
[१५]
गाथा ||१२२||
कहापरिणीए जे गं भत्ताहापटिणीए जेणं तेणगकहापरिणीए जेणं रायकहापडिलीए जेणं जणवयकहापडिणीए जेणं अचंतमणुकंपसीले जेणं परलोगपचवायभीक जे कुसीलपडिणीए जेणं विग्नावसमयसम्भावे जेणे गहिपसमयपेयाले जे गं जहन्निसाणुसमयं ठिए खंतादिअहिंसालालणदसबिहे समणधम्मे जेणं उजुत्ते अहनिसाणुसमयं दुवालसबिहे नबोकम्मे जे गं मुडबउत्ते सययं पंचसमिईसजेणं मुगुने सपर्व तीसु गुत्तीमुंजे गं आराहगे सससीए अट्ठारसह सोलंगसहस्साणं जे गं अविराहगे एगंतेणं ससनीए सतरसविहस्सगं संजमस्स नेणं उस्सग्गरुई जे गं तनरई जेणं समसनुमेनपक्से जे णं ससमयट्ठाणविष्पमुके जेणं अट्ठमयडाणविप्पजड़े जे णं नवण्हं बंभचेरगनीणं विराहणाभीरु जे णं पहुए जे ण आयरियकुलप्मने जे अदीणे जे णं अकिविणे जेमं अणालसिए जेणं संजईचम्गस्स पडिवावे जेणं सययं धम्मोवएसदायगे जेणं सपर्य ओहसामायारीए परुवगे जे ण मेरा बहिए जेणं असामाबारीभीरुजेणे आलोषणारिहपावन्छिनदाणपयरुपलमे जे गं बंदणमंडलिविराहणाजाणगे जे पटिकमणमंडलिविराहणजाणगे जेणे समायमंडलिचिराहणजाणगे जे गं वत्स्वाणमंडलिपिराह्मजाणगे जेणं आटोयणामंडलिचिराहणजाणगे जेणं उसपंरलिविराहणजाणगे जे णं समुहेसमंडलिविराहणजाणगे जेणे पानाचिराहणजाणगे जेणं उचट्ठावणाविराहणाजाणगे जेणं उद्देससमुदेसाणुचाविराहणजाणगे जे र्ण कालक्खे. नवभावभावतरंतरबियाणगे जे गं कायखेनदवभावान्लेषणविष्णमुके जेणं सवालवृदगिलाणसेहसिक्खगसाहम्मिगअनावहावणकुसले. जेणं परूवगे नाणदसणचारिततयोगुणार्ण जेणं बरए घरए पभावगे नाणसणचरिततोगुणाणं जेणं ददसम्मने जेणं सययं अपरिसाई जे णं पीदम जेणं गंभीर जेणं मुसोमसे जेणं दिणवरमिच अणभिभवणीए तवतेएणं जे णं ससरीरोवरमेऽपि उकायसमारंभविषनी जे ण तपसीलदाणभाषणामयपवियम्मतरायभीत जे णं सधासायणामी जेणं इडिडरससायागारबरोइज्माणविषमुके जेणं सबापस्सगमुजुने जे णं सपिसेसलद्धिजुत्ते जेणं आपडियापिडियामंनिओचि पायरेजा अयज जेणं नो पनिहोजे णं नो बहुभोई जेणं सवारस्सगसम्झायज्माणपडिमाभिमहपौरपरीसहोवसग्गेम जियपरीसमे जेणं मुपत्नसंगहसीले जेणं अपत्तपरिछावणपिहिजेणं अण(गुड)पोंदी जे णं परसमयससमयसम्मवियाणगे जेणं कोहमाणमायालोभममकारादितिहा. सखेडकदापणाहवायविषमुके थम्मकही संसाखासचिसयाभिन्यासाठीणं वेरगृपायगे पटिचोहगे भनसत्ताणं से गं गच्छनिकसेवणजोग्गे से गं गणी से गं गणहरे से नित्ये सेणं तिस्थयरे से ण अरहा से ण केवटी से णं जिणे सेणं नित्थुम्भासगे से गं यदि से गं पुजे से णं नमसणिजे से णं दवे सेर्ण परमपविते से गं परमफलाणे से णं परममंगले से णं सिद्धी से णं मत्नी से णं सिवे से णं मोक्र से णं नाया से संमग्गे से णं गती से णं सरने से णं सिहे मने पारगए देवे देवदेवे, एयरस ण गोयमा! गणनिरपेव कुला एषस्सण गणनि-वे कारवेजा एयरस ण गणनिकवेवकरणं समजाणेजा, अचहार्ण गोयमा ! आणाभगे।१५ से भय केवइयं का जाय एस आणा पर्वइया..गोयमा ! जाच गं महापसे महासने महाभागे सिरियमे अणगारे.से भगवं! केवडएर्ण कालेणं सिरियने अणगारे भोजा?.गोयमा ! होही दुरंतपतलखणे अदावे रोहे घंटे पर्य? उमापयंडारे निम्मेरे निकिवे निग्धिणे निनिसे कूरयरपापमई अणारिए मिडदिट्टी ककी नाम रायाणे, सेणं पावे पाहुडियं ममाडिउकामे सिरिसमणसंघ कयस्थेजा, जायणं कयत्येइ नाव णं गोयमा! जे केई वन्य सीलड्ढे महाभागे अचलियसने तपोहणे जणगारे नेसिं च पाटिहेरिवं कुजा सोहम्मे कुसिलपाणी एसत्रणमामी सुखरिद एवं च गोषमा देविदर्वदिए निपबएण सिरिसमणसंधे मिहिजाण पुणए पासंड्यामे, जाच गं गोयमा! एगे अचिहजे अहिंसालवणसंतादिवसविहे धम्म एगे अरहा देवाहिदषे एग जिणालएएगे वंदे पूए दक्पे सकार सम्माणे महायसे महासते महाणुमागे दवसीलवयनियमचारए नोहण साह, नास्थ णं चदमिव सोमलेसे मुरिए इयतयनेयरासी पुडपी इस परीसहोचसम्गसहे मेग्मंदस्वरे च निष्पकपे लिए अहिंसालक्खणसंतादिदसबिहे धम्मे, सेणं सुसमणगणपरिखुरे निरभगवणामलकोमुईजोगजुने व गहरिक्सपरियरिए गहबई हे अहियवरं चिराइजा, गोषमा! सेसिरिप्पभे अणगारे, जो गोचमा: एबतियं कालं जाव एसा आणा पइया।१६। सेमय: उड्ढे पुच्छा, गोयमा! तओ परेण उदहापमाणे कालसमए, नस्य गंजे के कापसमारंभविषजी सेणं धने पुन्ने पुए नर्मसणिजे मुजीवियं जीवियं नेसि । १७असे भय ! सामन्ने पुच्छा जायण यासी. गोयमा! अत्यगे जेणं जोगे अत्येगे जेणं नो जोगे, से भयन : केण अडेग एवं बुबह जहाणं जत्येगे जानजेणं नो जोगे?, गोयमा! अत्यगे जेसि णं सामने पडिकुढे प्रत्येगे जेसिं चणं सामन्ने नो पडिकुडे, एएणं अटेणं एवं शुभह जहा णं अस्थगे जेणं जोगे अस्थगे जेणं नो जोगे, से भय ! कयरे ने जेसि णं सामने पतिकडे, कयरे वा ते जेसिं च णं सामने नो पडिफडे, एएणं अटेणं एवं बुधाः जहाणे अन्धेगे जे विरुद्ध अत्यगे जेणं नो विरुदे. जे से विरुद्ध से गं पतिसहिए.जेणं से णो विरुदे से गं नो पडिसेहिए.से भव ! के णं से विस्वे के वा गं अविस्टे? गोयमा! जे जेर देस दगंडणिजे जे जे देसे दुछिए जे जेसु देसमुं पडिकुद्दे से ण तेसु देसमुं विरहे, जे यणं जेसु देसमुंणो दुगुंडणिजे जे यणं जेसुं देसेसु नो दुगुछिए सेयजेसं देसेसु णो पडिकुडे से णं सुं देससु नो विरुदे, नाथ गोयमा जेणे जेसुंरदेसमु पिस्छे । से गं नो पाए जे गंजेसु २ देसमुंणो पिस्बे से णं पायए. से भय से कस्य देसे के पिछे के बाणोनिको', गोयमा! जेणे परिसहबा इथिएइ वा रागेण वा दोसेण वा अणुसएण वा कोहेण वा लोभेण वा अपराहेण वा HA समणं पा माहणं वा मायरं वा पियरं वा भावरं वा भइणि वा भाइणेयं वा सुयं वा सुयसुर्य वा पूर्व वा गनुयं वा सुई वा 'जामाउयं वा दाइयं वा गोनियं वा सजाइयं वा विजाइयं वा सपणं वा असायणं वा संबंधियं वा असं चिये ना सणाहं या असणाई या इढिमंतं वा अणिढिमंतं या सएसियं या पिएसियं या आरिवं वा अणारियं पाहणेन या हणावेज पा उदपिज या उदयापिज पा से गं परियाए अओग्गे, से णं पाये से णं निदिए सेनगरहिए से णं दुछिए से गं पटिकुडे से णं पडिसेहिए से णं आवई से णं विग्धे से णं अबसे से णं अकित्ती से णे उम्मम्मे से गं अणायारे. एवं रायदुहे. एवं तेणे, एवं परजुवापसते, एवं अपयरे चा के वसणानिभूए, एवं इस किलिडे एवं छहाणडिए एवं रिणोपबुए अविनायजाइकुलसीलसहावे एवं बहुवाहिवेयणापरिगयसरीरे एवं रसलोलुए एवं बहुनिदे एवं इतिहासखेड्डकंदप्पणाहबायकजरिसीले एवं बहुकोउले एवं बहुपेसापमो जाचणं मिच्छादिद्विपति१९४३ महानिधीयछेदमूर्व अ wol-4
मुनि दीपरनसागर
दीप अनुक्रम [८२१]
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आगम
(३९)
དྡྷིཙྪིཡཱ + ཛཡྻཱཡྻ
||१२३||
[८२४]
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं )
अध्ययन [ ५ ], उद्देशक [-], · मूलं [१८] + गाथाः || १२३|| - मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
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नकुलुप वा से गोयमा जे केई आयरिएह वा मयहरएइ वा गीयत्वे वा जगीयत्वे वा आयरियगुणकलिएड या मयहरगुणकलिए वा भविस्सापरिएड वा भविस्समयहरएड वा लोभेण वा गारवेण या दोन्हं गाउपसयाणं अभ्यंतरं पडावेजा से गोयमा पक्कमियमेरे से णं पयणवनिकारए से णं तित्यवोच्छित्तिकारए से णं संपत्तिकारए से यणाभिभूए से णं अदिपरलोगपबनाए से णं णायारपरिने से णं अजवारी से णं पा लेणं पायपाये से णं महापावपावे से णं गोषमा अभिग्गाहियचंद कूरमिच्छादिडी १८ से भय के अर्ण एवं बइ, गोयम! आयारे मोक्तमगे णो णं णायारे मोक्खमग्गे एएणं अडेग एवं वुबई से मय कमरे से र्ण आधारे कमरे वा से णं अथाबारे ?, गोयमा! आयारे आणा, अणायारे गं नप्पडिवक्खे, तत्य जेणं आणापडिक्क्ले से णं एतेणं सङ्घपयारेहिं सहा बजाणिजे, जे गंणो आणापडिया से एगणं सपयारेहि सहा आयरणि नाणं गोपमा जं जाणिजा जा एस णं साम राजा से सावित्रा १९ से भय कह परिक्खा, गोयमाणं जे केइ पुरिसेइ वा इत्थियाओ वा सामर्थ परिवसिकामे कंपेज्जा या परहरेज पा निसीएज्जा उटि वा पकरेज्ज सगणे वा परगणे वा आसाएड वा साए वा तदहुतं गच्छेज्जा वा अलोइन वा फ्लोइज्ज वा सगह दोइजमाणे कोई उपाए या अहे दोनमने वा भला से णं गीयन्ये गणी अन्नयरे वा मयरादी महया नेउन्नेणं निरूवेजा, जस्स नं एयाई परं तजा से गं को पद्मावेजा से गुरूपडिणीए विजा से णं निम्मसब भजा सम्या से पधारे केवल एगते अकरणजए भवेजा से जेवावा व विणेण वा गारचिए भवेज्ञा से नं संजईम्स चउत्पचपडणासीले भवेज्जा से बहुरुवे भवेजा | २० से भयवं कमरे से बहुरूपे युद्ध ? जे आसन्नविहारीणं ओसने उज्यविहारीणं उपधिहारी निद्धम्मसबलाणं निद्धम्मसकले बहुरूपी रंगगए चारणे इव गडे 'खणेण रामे यखणेण लवणे, खणेण दसगीवरावणे लगेणं। टप्पयरकनदंतुरजराजनगर सर्वच भरिए विदू ॥ १२३ ॥ खणेणं निरियं च जानी, मंनकेसरी जाणं एस गोषमा तहा णं से बहु ॥ १२४ ॥ एवं गोवमा जे असई कमाई केइ चुकखलिए पढावेजा से णं दृरदाणवपहिए करेजा से णं सन्निहिए गो घर से आयरेगणी जावेजा से णं मनोवगरणे नो पहिनेहा से न सत्यं तो उदिसेज्जा से तस्स गयसत्यं नो अणुजाणेला से णं तस्स सर्दि गुज्रहस्वा णो मंतिया एवं गोयमा जे केई एदोसविप्यमुक्के से णं पाजा नहा नं गोयमा मच्छप अनारियणी पवावेज्जा एवं सामु न पडावेजा एवं गणना एवं विग एवं विकपियकरचरण एवं छिन्नकन्ननासी एवं कुवाहीए गन्न्रमाणसह एवं पंग सूयबहिरं एवं अकडकार्य एवं बहुपास एवं पणरामदास मोहमिच्छनमनत्यवलियं एवं उज्झितयं एवं पोराणनिक्स एवं जिनालगा इव देवचीकरणभौयं परं एवं चरणन (मार) चारण एवं बज चरणकर मज जडकाणी पाज्जा एवं तु जा नामहीण धामहीन जाइहीणं कुलहीणं बुद्धिहीणं पन्नाहीणं गामउमपहरे या गामडहर वा अपचा निदियामीजाइयं वा अविनायकुसहा गोयमा स दिखेोपावा एएसि तु पया अन्नपरपए खलज्जा जो सहसा देणपुषकोडीन गोयम २१ एवं हनिपातं तहब (ज) जहा (भणियं) स्यमनमुको गोयम! मुक्लं गएऽर्थतं ॥ १२५ ॥ गच्छेति गमिस्संतिय समुरासर जगणमंसिए धीरे भुकपापजसे जहणिवगुणहिए गणिनी ॥ १२६ ॥ से भयवं जे पी कई मुणियसमयसम्म होल्या चिहीएड वा अविहीएड वा कस्स रामंधम्मस् वा उनीसहित सप्पमेयनानदंसण चरिततीरियाचारस्सामाणसा या बायाएका कारण वा कहिचि अक्षरे ठाणे के साहिबई जायरिए वा तदपरिणामेव होता अस पोकेज वा खवा]माणे या अणुमा वा से आहगे उषा जणाराहगे ? गोयमा अणाराह से भवयं के अड़े एवं पुबइ जहाँ गं गोधमा अगाराने गोयमाणं इमे दुवा] सुनाने अणय अणानि सम्भूयत्यपसाने अणाइससिदे से णं देवददा अतुलवीरएसरियसत्तपरकममा पुरिसायारके तिदितिलाच साइकल या अनागीण समुदाणं निवणं अणादसिद्धाणं अपना माणसमयसिज्जामाणार्ण अन्नेसि य आसन्नपुरकडाणं अनंताणं सुमहिनामधेनार्थ महायसाणं महासत्ताणं महाणुभागाणं तिषणिक लोकनाहाणं जगपचराणं जमेकपूर्ण जगगुरूणं णं सद रिसी परवश्यम्मतित्राणं अरहंताणं भगवंताणं भूयभविस्साईयणागपट्टमाणनिखिलासेसक विदियसम्भावार्ण असहाए पर एक सेणं सुननाए अन्थनाए बनाए सिपि में जडिए वपन्न जड़िए पनि जहडिएव मासज्जे जड़िए चैव वाणिज्जे जहडिए रुज्जिहड़िए चैव वायर जडिएकहज्जे से में इसे दुवाल चिपि पि ददाणं णिखिलजमचिदियस सजग आग (इति) हासबुद्धिजीचाइतले जानए वत्सहाचा अणिजे अइक्कमणिज्जे अणासायनिज्जे नहा चेपइमे दुवासंगे सुचना सहजगज्जीपण भूयसत्ताणं एते हिए महे समे नीसेसिए जणुगामिए पारगामिए पसत्ये महत्वे महागुण महाणुभावे महापुराणुचिन्ने परमरिसिदेखिए दुक्लक्लवाए कम्मक्खयाए मोक्खयाए संसारुनारयाएनिकट उपसंपरिजनानं विहरिं किमुतमन्नसिंनि, नागोयमाणं के अमुचियसमयसम्भावे वा विश्यसमयसारे वा अविहीएड वा गच्छाहिवई वा आपरिएड या अंतोविदपरिणामेव होत्या. गच्छावारमंडलमा उत्तीसही आगारादि जाव णं अरवा आ गाइकरणिजरस पत्रयणसारम्स असती चुके वा खले या ते गं हमे बालसंगे सुचनाणे असा पथरेजा, जेणं हमे दुवासंगपणाणनिवदंतरोग एवं पयअक्वरमपि अमहा पयरे से गं उम्म पसेजा, जेणं उम्मग्गे पपसे से थे अणाराहगे भवेज्जा, ता एएवं अद्वेणं एवं बुवाई जहा णं गोवमा एतणं अणाराह २२ से अथ कई जणमिणमो परमगुरुणपी अलंणिज्जं परमसरणं फुटं पड़े पदपय परमका कसिणकम्महदुक्खनिषणं पण अइमेज्जा पकमेज्ज वा पेज वा खंडेज्ज वा विराज्य या आसाइज्ज या से मणता वा वयसा वा कायसा या जाय णं पयासी १. गोयमाणं अपनेणं कालेन परिवमाणं संपयं दस अच्छे तत्थ असलेले अभ असंखेज्जे मिच्छादिट्टी असंलेज्जे सासायने लिंगमासीय सच्छंदत्ताए डंभेण सक्कारिते एच्छेए पम्मिगतिकाऊ पहने अकिलाने जणं पयणमरम्मति (२८६) १९४४ महानिशा मुनि दीपनसागर
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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [५], -------------उद्देशक [-],---------- मूलं [२३] +गाथा:||१२६||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूल
प्रत सुत्रांक [२३]
हाय सेवेहा धुक्येस मिमा मज्जा
गाथा
||१२६||
तमन्मुक्गमिय रसलोलताए विसयलोलताए दुईतिदियदोसेणं अणुदियह जहद्वियं मग्गं निद्भवंति उम्मग्गं च उस्सप्पयंति, ते य स तेणं कालेणं इमं परमगुरुणपि अलंघणिज पवयर्ण जावणं आसायंवि।२३॥ से भयवं! कयरेऽणतेणं कालेणं दस अच्छेरगे भविंसु?, गोयमा ! णं इमे तेणं कालेणं ते अणे दस अच्छेरगे भवंति, तंजहा-तिस्थयराणं उक्सग्गे गम्भसंकामणे वामातित्थयरे तित्थयरस्स में देसणाए अभत्रसमुदाएर्ण परिसार्वघे सविमाणाण चंदाइचाणं तित्थयरसमवसरणे जागमणे वासुदेवाणं संखमुणीए अभयरेण या रायकउहेणं परोप्परमेलायगे इह तु भारहे सेने हरिवंसकुलप्पत्तीए चमरूपाए एमसमएणं अहुसयसिद्धिगमणं असंजयाणं पृयाकारगेति ।२४ से भय ! जे णं केई कहिचि कयाई पमायदोसओ पपयणमासाएजा से णं किं आयरियपर्य पावेज्जा ?, गोयमा! जे णं कई कहिषि कयाई पमायदोसओ असई कोहेण वा माणेण वा मायाए या लोभेण वा रागेण या दोसेंग वा भएण वा हासेण वा मोहेण वा असाणदोसेण वा पचयणस्स णं अनयरहाणे नइमिनेणंपि अणायारं असमायारि परवेमाणे वा अणुमनेमाणे वा पचवणमासाएजा से णं घोहिंपिणो पाये, किमंग आयरियपयलंभं?.से भय ! कि अमवे मिच्छादिही वायरिए भवेज्जा, गोयमा! भवेम्जा, एवं चणं इंगालमहगाई नाए. से भययं ! कि मिच्छाविट्ठी निक्वमेजा, गोयमा ! नित्वमेजा, से भययं ! कयरेणं लिंगेणं से ण वियाणेजा जहा णं धुवमेस मिच्छादिवी', गोयमा! जेणं कयसामाइए सवसंगषिमुले भवित्ताण अफासुपाणं परिभुजेजा जेणं अणगारधर्म परिवजिताणमसई सोईरियं वा तेउकार्य सेवेजबासेचाविज वा सेचिजमाणे अने समणुजाणेज चा तहा नवळं बंभचेरगुत्तीर्ण जे केई साहू वा साहुनील वा एकामवि खंडिज वा किराहेज वा संडिज्जमाणं ना बिराहिज्जमार्ण बाभचेरगुती परेसिं समजाणज्जा या मणेण वा वायाए वा कारण वा से णं मिच्छादिही. न केवल मिच्छा-16 दिदी अभिगडियमिच्छादिदी बियाणेजा।२५। से भयर्ष जेणे कई आयरिएइ वा मयहरएड वा असई कहिचि कयाई तहाविहं संविहाणगमासज इणमो निर्णय परयणममहा 14 पखवेना सेणं कि पावेजा,गोयमा! जे सावजायरिएर्ण पापियंसे भय ! कयरेणं से सावजायरिए? किं वा तेर्ण पावियंति?, गोयमा! णं इओ य उसमादितित्यकरपउबीसिगाए अर्णतेणं कालेणं जा अतीता जला पउवीसिगा सीए जारिसो अहयं वारिसो चेव सत्तरवणी पमाणेणं जगच्छेत्यभूओ देविंदविंदर्वदिओ पवरवरचम्मसिरिनाम परमधम्मतित्थंकरो अहेसि, तत्व व तिथे सत्त अच्छेरगे भूए, अहऽनया परिनिबुडस्स तित्थंकरस्त कालकमेणं असंजयाणं सकारकारवणे णामऽच्छरगे बहिउमारदे, तस्य णं लोगाणुवनीए मि. महत्तोपहर्य असंजयपूयाणुरयं बहुजणसमूहंतिपियाणिऊण तेणं कालेणं सेणं समएणं अमुणियसमयसम्भावहिं विगारपमहरामोहिएहिं णाममेसजायरियमयहरेहि सवाईर्ण सयासाओ दविणजायं पटिम्गहियरथमसहस्सूसिए सकसके ममत्तिए चेइयालमे कारानिऊण ते चेव दुरंतपंतालकलणाहमाहमे आसईएहि ते चेव चेहयालयोनीसीय गोपिऊर्ण चपलबीरियपुरिकारपरकमे संते बले संते पीरिए संते पुरिसकारपरकमे चइऊणं उम्गाभिग्गहे अणिययविहारं णीयावासमासइत्ताणं सिडिलीहोऊणं संजमाइसु ठिए, पच्छा परिचिचाणन इहलोगपरलोमावार्य अंगीकाऊण य सुदीहं संसार तेचेच मटदेवउलेसुं अचत्वं गधिरे मच्छिरे ममीकारहंकारेहि अभिभूए सयमेव विचित्तमावदामाईहिंणं देवश्चर्ग काउमभुजए, जं पुण समयसारं परं इमं सबसवयर्ण तं दूरसुदूरवरेणं उझियति तंजहा-सवे जीवा सो पाणा सो भूया सो सत्ताण हंतत्राणअनावेयवाण परिवायाण परिघेत्तयाण विरावधानकिलामेया ण उहवेवा, जे केई सुहमा जे कई बायरा जे केई तसा जे केई थावरा जे केई पजना जे केई अपजना जे केईएमिंदिया जे केई दिया जे केई दिया जे केई चढ-- रिदिया जे केई पंचिदिया तिविहंतिविहर्ण मणेणं वायाए काएणं जं पुण गोयमा: मेहुणतं एगतेणं ३ णिच्छयो ३ बादंइतहा आउतेउसमारंभ च सबहा सापयारेहि सय विषमजा मुणीति एस धम्मे धुने सासए पिइए समिब लोग खेयहि पइएति।२६। सेभयचं! जेणं केई साहू या साहुणीवा निगये अणगारे प्रत्ययं कुजा सेणं किमालवेजा, गोयमा! जेणं केई साहू पा साहुणी वा निग्गंथे अणगारे दबत्थर्य कुजा से णं अजयएइ या असंजएड वा देवमोदएइ वा देवचगेड वा जाचणं उम्मम्मपरहिएड चा वृझियसीलेड वा कुसीलेड वा सम्उंदयारिएइ वा आलबेज्जा । २७॥ एवं गोयमा! तेसिं अणायारपबित्तार्ण बहुर्ण आयरियमयहरादी] एगे मरगयच्छपी कुवलयपहाभिहाणे णाम अणगारे महानवस्सी अहेसि, तस्स णं महामहंते जीवाइपयस्ये सुत्तस्थपरिन्नाणे सुमहंत चेव संसारसागरे तासु तामु जोणीसु संसारणभयं सनहा सापयारेहि णं अचं आसायणाभीस्पनर्ण, नकालं तारिसेऽवी अ. संजमे जणायारे बहसाहम्मियपत्तिए तहाची सो तित्ययराणमार्ण गाइकमेड, अहऽन्नया सो अणिगृहियबलवीरियपुरिसकारपरकमे मुसीसगणपरियरिओ सान्नुपणीयागमसुन स्थाभवाणुसारेण वषगयरागदोसमोहमिच्छत्तममकाराहंकारो सनत्य अपठिवडो, कि बहुणा ?, सबगुणगणाहिडियसरीरो अणेगगामागरनगरखेडकम्बडमहंबदोणमुहाइसन्नियेसबि. सेसेर्मु अणेगेमुं भवसत्ताणं संसारचारगविमोक्वणि सहम्मकह परिकहेंतो विहरिंसु, एवं व वचंति दियहा, अन्नया गं सो महाणुभागो विहरमाणो आगओ गोषमा ! तेसि णीयविहारी. ११४५ महानिशीपच्छेदमूत्र, अन्न
मुनिटीपरमागरा
दीप अनुक्रम [८३४]
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आगम
(३९)
प्रत सूत्रांक
[२८]
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गाथा
||१२७||
दीप
अनुक्रम [८३९]
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं )
किकम्मासनपवाणाणा समुचिएवं एवं च मुनिसन्न, चिट्टिनाणं धम्मकहाणारिणी पुणो गोतामणि
अध्ययन [ ५ ], उद्देशक -J. - मूलं [२८] + गाथाः || १२७|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं मावास तेहि च महानदी का सम्माणि सो महाणुभागी गोयमा तेहि जीवहिं मायावतऽभिग्गहीयमिच्छादिडीहिं. जहा णं भयवं जइ तुममिह एक पासारतियं चाउमासिय जियो मे एनिगे चेहयाल मत पूर्ण झालीए, ना कीरओ अणुग्ाहृत्यमम्हाणं हेच चाउम्मासि ताई मणिय तेण महाणुभागेणं गोयमा जहा भो भौ पियं जब जिणाए हावि साजमिणं गाई वायामितेऽपेर्य आयरिजा एवं च समयसारपरंतन जहट्टियं अविवरीयं शीतक भणमाणेण नेसि मिच्छादिडीलिंगीणं साधारण म गोपमा आसकलियं तित्ययरणामकम्मगोयं तेणं कुवलयप्पभेणं, एगभवावसेसीकओ मनोयही तत्य प दिवो अविज्ञनामसंघमेव असि सि च वह पापमहिं लिंग शियाहि परोपरमेगमचं काऊ गोयमा ताल दाऊणं विप्लोइयं चैव तं तस्स महाणुभागसुमहतवस्णिो कुवलयापहामिहाणं कथं च से सावजापरियामिहाण सदकरणं, गर्म च पसिदीए, एवं सहिजमाणोऽवि सो पापसत्यसादकरणेणं तद्वावि गोयमा इंसिपि ण कुप्पे । २८ अन्नया तेसिं दुरापाराणं सद्धम्मपरंमुहाणं अंगारधम्माणमारधम्मोभयमद्वाणं लिंगमेनामपत्रयाणं कालमे संजाओ परोप्परं आगमवियारो जहा णं सड्डगाणमसई संजया च महदेले पहिजागरेति खंडपडिए व समारावयति, अन्नं व जाव करणे प समारंभ कलमाणे जहस्सावि में पत्थि दोससंभवं एवं च केई भणति संजम मोक्खनेयारं, जन्ने भति-जहां णं पासायवसिए पुयासकारवलिविहाणाई तित्युच्छपणा व मोक्त्वगमणं, एवमेसिमविद्दयपरमत्याणं पावकम्माणं जं जेण सिहं सो तं चेदमुस्सिवलेणं मुहे पलवति, ताहे समुट्टियं वादसंव, नरिथ य कोई तत्य आगमकुलो सिमझे जो तत्थ जुत्ताजु चियारे जो प पमाणपश्मुचइसइ. सहा एगे भणति जहा अमुगो अमुग त्यामि विद्वे, अन्न भणति अगो, अन्ने भांति किमित्य बहुणा पलविएणं १. ससिसम्हा सारिओ एत्य पमाणंति तेहि भणियं जहा एवं होउन्ति हकारावेह लहु नओ हकाराविओ गोयमा सो तेहि सावजायरिओ, आगओ दूरदेसाओ अप्पदिवदत्ताए विरमाणो सन्तहिं मासेहि जान णं दिडो एगाए अजाए. साप तं दुग्गतचचरणसोसियसरीरं चम्मट्टिसेसनणुं अनंतं तवसिरीए दिष्पतं सावजापरियं पेच्छिय सुविहियं तकर(ख) विक्कि पत्ता अहो कि एस महाणुभागे णं सो रहा कि या णं धम्मो चैव मुनिमंतो, किंबहुना नियसिंदवंदापि बंदणिपायजुओ एसति चितिऊण मनिभर निम्भरा आयाहिणपयाहिणं काऊ उत्तमं संघट्टमानी सहित विडिया चलणे गोयमा तस्स नं साजापरियन्स, दिडी यसो हि दुराबारे पणमित्रमाणो अन्नया सो तित्थ जहा जयगुरू उपहासानुसारेणं आणुपुत्रीए जहडियं गुत्तत्वं वामरेड तेऽवि तहाचे सदति, अन्नया ताब बागरियं गोवमा जाणं एकारसष्ठ्मंगाणं चोदसण्डं पुत्राणं दुबालसंग णं सुयनाणस्स णवणीयसारभूयं सयलपावपरिहारकम्पनिम्महणं आगयं इणमेव गच्छ मेरापन्नवर्ण महानिसीहसुयधस्स पंचममज्झ
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एथे गोमातावणं वमवायिं जाव णं आगया इमा गाहा जल्पित्पीकरफरिस अंतरियं कारणेवि उत्पन्ने अरहाऽवि करेल सर्व तं गच्छे मूलगुणमुकं ॥ १२७ ॥ नजी गोयमा अप्पसंकिएणं चैव चितियं ते साजापरिए जइ इ एवं जहिये पन्नयेमित जं मम वंदन दाउमाणीए नीए अनाए उनिमंत्रेण चलनग्गे पुढे तं सर्वेपि दि मेएहिति ता जहा मम सावजायरियाभिहाणं कर्म नहा अन्नमपि किंपि काहिति जेणं तु सोए अज भविस्सं ता अमन्ना सुनत्यं पन्नवेमि ? ताणं महती आ साया तो किंरिमेति ? किं एवं गाई परुचयामि किंवा ण? अन्नदा या पन्नयेमि ? अहवा हाहा ण जुत्तमिणं उभयद्वाचि अर्थनगरहिये आयहिवहीनमेयं, जओ णमेस समयामियाओ जहाजे व दुपालसंगस्स णं सुयनाणम्स जसई पुकखलियपमाया संकादीसमयलेणं पयस्वरमत्ताविदुमवि एवं पविना अन्ना या पन्ना संदिदं वा तत्थं वक्खाज्जा अहिए ओगल्स वा वक्खाज्जा से मिलू अतसंसारी भवेज्जा ता किं एत्वं जं होही नं च भव, अद्वियं गुरुसामुसारेण मुत्तत्वं पपक्खामिति चिति गोपमा पक्खाया गिखिलावयवविमुद्धा सा तेण माहा, एयावसरंसि चोदओ गोयमा सो तेहि दुरंत जहाज एवं ता तुमपिता मूलगुणहीनो जाणं समस्तु से जं तदिपसे सीए अज्जाए तु वंदन दाउकामाए पाए उत्तमंगेणं पुढे, ताहे इहलगायसी सरसत्य (मच्छ) हओ गोयमा सो सावारिओ विधिनिओ जहा जं मम सावलायरियाभिहाणं कथं इमेहिं नहा तं किंपि संपर्क काहिति जे तु सबलोए अपुरो भविस्सं ता किमित्यं परिहार दाहामिति तिमाणे संभरियं नित्ययस्वर्ण, जहाजे के आयरिएड वा मयहरएड वा गच्छाहिवई सुपहरे भवेज्जा से अंकिंचि सङ्घन्नुर्णतनाणीहिं पावावयाचाणं पहिलेहियं तं समुयानुसारेण विन्नाय सहा सारेहिं मे णो समायरेज्जा णो णं समायरिज्जमानं समजाणेजा से कोहेण वा माणेण वा मायाए वा लोभेण वा भएन वा हासेण वा गारवेण वा दप्पेण वा समाएण या असती चुकखलिएण वा १९४६ महानिछेद अस सूनि दीपसागर
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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [५], -------------उद्देशक [-],---------- मूलं [२९] +गाथा:||१२८||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
गोयगयरस वर्ग मे पाबाहमाममा यदुरवस्स भागीभविहामिमा भणिय नहि हदस
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सूत्राक
[२९]
गाथा
||१२८||
दिया या राओ या एमओ या परिसागओ या मुत्ते वा जागरमाणे वा तिविहंतिबिहेणं मणेणं वायाए कारणं एतेसिमेव पयाणं जे केई विराहगे भवेजा से णं भिक्खू भुजो २ निंदणिजे गरहणिजे खिसणिजे दुग्छणिजे सबलोगपरिभूए बहुवाहिवेयणापरिगयसरीरे उकोसठिईए अर्णतसंसारसागरं परिभमेजा, तस्थ णं परिभममाणे खणमेकंपिन कहिचि कदाच नियुई संपावेजा, तो पमायगोयरगयस्स मे पाचाहमाहमहीणसत्तकाउरिसस्स इहई चेन समुडिया एमहंती आबई जेण ण सको जहमेत्थं जुनीखम किंचि पडिउत्तरं पयाउँजे.नहा परलोगे य अर्णतभवपरंपरं भममाणो घोरदारुणाणतसो य बुक्सस्स भागीभविहामिऽहं मंदभग्गोनि चितयंतोऽवलक्खिओ सो साक्नायरिजो गोयमा ! तेहिं दुरायारपाक्कम्मदुइसो. यारेहिं जहाणं अलियसरमच्छरीभूओ एस, तओ संसदमण खरमच्छरीभूयं कलिऊणं च भणियं तेहि छहसोयारेहिं जहा जावणं नो छिनमिणमो संसय ताच णं उर्दू वक्तार्ण अस्थि, ता एल्य त परिहारगं वायरेजा ज पोदजुत्तीखर्म कुमाणिम्मणपचति, तो तेण चितियं जहा नाहंजदिन्नेणं परिहारगेण चुकिमो मेसि, ता किमित्य परिहारगं बाहामित्ति नियंतो पुगोवि गोयमा! मणिो सो तेहिं दुरायारेहिं जहा किमह चिंतासागरे निमजिऊणं ठिओ, सिग्यमेत्य किंचि परिहारगं वयाहि. बरं तं परिहारगं भणिज्जा जं. जहुनस्थीकि(स्थिक)पाए अवभिचारी,ताहे सुदरं पस्तिप्पिऊणं हियएणं भणियं सावनायरिएणं जहा एएणं अत्येणं जगगुरूहि वागरिय अओगस्स मुत्तत्व न दायर, जओ 'आमे पडे निहतं जहा जलं ते पर्ट विणासेइ। इय सिद्धनरहस्सं अप्पाहार विणासेइ ॥१२८॥ नाहे पुणोचि नेहि भणि जहा किमेबाई अरडबरडाई असंबदाई दुम्मालियाई पल्लबह ?. जा परिहारगण दाउं सके ता उफिड मुयास ऊसर सिग्य इमाओ ठाणाओ. किं देवस्स रुसेजा जत्य तुर्मपि पमाणीकाकणं सबसंपणं समयसम्भावं वायरठ जे समाइहो ?, ओ पुणोषि मुहरं परितप्पिऊणं गोयमा अन्न परिहारगमलभमाणेणं अंगीकाऊणं दीहसंसार भणियं च सावजायरिएणं जहा ण उस्सग्गाचवायेहि आगमो ठिओ. तुम्भे ण याणहेयं, एननो मिन्टन, जिणाणमाणामणेगतो, एवं चबयणं गोयमा! गिम्हायरसंताविएहि सिहिउलेहि व अहिणवपाउलसजलपणोरडिमिय सबहुमार्ण समाइच्छिय तेहिं दुहसोयारेहि, नओ एगवपणदोसेणं गोयमा! नियंधिमार्णले संसारियन अपडिकमिऊणं च तस्स पावसमुदायमहासंघमेलावगम्स मरिऊण उपचन्नो नाणमंतरेसु सो सावजायरिजो, नो चुओं समाणो उतरन्नो परसियभत्ताराए पडिलासुदेवपुरोहियधूयाए कुग्छिसि, अहऽन्नया चियाणिर्ड तीए जगणीए पुरोहियभजाए जहाणं हा हा हा दिन्नं मसिकुक्षयं सानियकुलस्स इमीए दुरायाराए मज्झ घूयाए साहियं च पुरोहियरस, नजओ सतप्पिऊण सुइरं बहुं च हियएण साहारेउं निविसया कया सा नेणं पुरोहिएणं, एमहंता असझदुन्निवारश्यसभीरुणा, अहऽन्नया वकालंतरेणं कहिचि याममलममाणी सीउण्डवायविज्झटिया मुस्का(हछा)मकंठा भिक्खदोरोर्ण गबिट्टा बासत्ताए रसवाणियगरस गेहे. नस्य य बहूर्ण मनपाणगाणं संचियं साहरेइ जणुसमयमुचिट्ठनि, अग्नया अणुदिणं साहरमाणीए तमुधिहगं दठूणं च बहुमजपाणगे मनमाषियमाणे पोग्गलं च समुरिसने तहेव तीए मजमंसस्सोबार दोइलम समुप्पन जावणं तं बहुमजपाणं नटनट्टनचारणभटोइडचेडतकरासरिखजातीमु पुज्झिर्य खुरसी सपुतकमाडिमयगयं उचिई पब्लू(अ)रखंड न समुदिसिउँ समारता, ताहे नेसु उचिट्ठकोडियमेसु जंकिंचिणाहीए मा विवकं तमेवासाहउमारवा, एवं च कड़वयदिणादयामेणं मजमंसस्सोपरि ददं गेही संजाया, नाहे तस्सेन रसबाणिजगस्स गेहाउ परिमुसिऊर्ण किचि सदसदविणजायं अन्नत्य विकिणिऊणं मनं समंस परि जड, नाचणं चिन्नार्थ नेण रसवाणिजगण, साहियं च नस्वहणी, नेणावि वा समानहा, लस्थ पराउले एसो गोयमा । फुलधम्मो जहाणं जा काइ आवन्नसता नारी अवराहदोसेणं सा जायणं नो पसूया तावर्ग नो पावाएपचा, नेहिणि उत्तगणिगितगेहि सगेहे नेऊण पमूह समय जाब णितिया रक्सेषवा, अहऽन्नया णीया तेहि हरिएसजाईहिंसगेहि. कालकमेण पस्या य दारगं तं सापडायरियजीवं, नसो पसूयमेला चेवनं चालयं उशिऊण पट्टा मरणभयाहितस्था सा गोयमा । दिसिमेकं गंतृणं, वियाणियं च तेहिं पावेहिं जहा पणा सा पावकम्मा, साहिवं च नरवालो सूणाहिनहिं जहा गं देव ! पणदा सा दुरायारा कय लिगमोचम दारगमुज्झिऊन, रन्नावि पडिमणिय-जहाणे जइ नाम सा गया ता गच्छउतं वालगं पडिवानेजामु, सबहा नहा काय जहान बालग ण वाचने, निष्हेगु इमे पंचसहस्सा दविणजायरस, तओ नरवाइणो संदेसेणं सुयमिव परिचालिओ सो पंसुलीतणजो,अन्नया कालकमेणं मओ सो पाचकम्मो मुशाहिबई, गोरखा समजाणिो नस्सेव बालगस्स घरसार, कओ पंचण्ड सयाणं अहिवाई. तत्य व सुगाहियइपए ठिओ समाणो ताई तारिसाई अकरणिज्जाई समगुद्विनार्ण गओ सो गोयमा! सत्तमाए पुढनीए अपाहाणनामे निर। याचासे सावज्जायरियजीवो, एवं तं तस्य तारिस घोरपडरोर सुदारुणं दोक्सं नित्तीसं सागरोचमं जाप कहकहषि किलेसेणं समणुभविऊण इहागजो समाणो उववन्नो अंतस्दीचे एगोरुयजाई. तओपि मरिऊणं उबवन्नो तिरियजोणीए महिसत्ताए, सत्य य जाई काईपि णारगदुस्साई तेसि तु सरिसनामाई अणुभपिऊर्ण उहीसं संबच्छराणि नजो गोयमा! २१४७ महानिशीथ छेदसूत्र, muavarance
मुनि दीपरतसागर
दीप
अनुक्रम [८४३]
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आगम
(३९)
प्रत
सूत्रांक [२९]
गाथा
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दीप
अनुक्रम [८४३]
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं )
अध्ययन [ ५ ], उद्देशक [-], - मूलं [२९] + गाथाः || १२८|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
अत्र पंचमं अध्ययनं समाप्तं
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मओ समाणो उववन्नो मणुए, तज गज वासुदेवत्ताए सो सावजायरियजीवो, तत्यवि अहाऊयं परिवालिऊणं अणेगसँगामारंभपरिग्गदोषेण मरिण गओ सत्तमाए, वजवि उरिकाला उचन्नो गयकन्नो नाम मणुयजाई, तजवि कुणिमाहारदोसेणं क्रूरज्झवसायमई गओ मरिकणं पुणोषि सनमाए वहि चेव अपड्डाणे निश्चाचासे, नओ उच्चद्विणं पुणो उपन्न तिरिए महिसत्ताए तत्यवि णं नरगोवमं दुक्खमणुभवित्ताणं मजो समाणो उपपन्नो बालविवाए पंमुलीमाहणपूयाए कुच्छिसि जहन्नया निउत्तरच्छन्नगम्भसाडणपादणखारजुण्णजोगदोसेणं अणेगवाहियणापरिगयसरीरो सिडिडितो कुडवाहीए परिगलमाणी सलसलत किमिजालेन वज्र्जतो नीहरिजो नरओवमघोरदुक्खनिवासाओ गन्भवासाओ गोयमा सो सावज्ञायरियजीवो, तओ लोगेहिं निंदिनमाणो गरजमाणो दुगुजिमाणो खिसिजमाणो लोगपरिभूजी पाणखाणभोगोपभोगएविज्जिओ गम्भवासपभितीए चेन वित्तिसारीरमाणसिगघोक्तत्तो सत्त संवच्छरसवाई दो मासे य चउरो दिने य जाच जीविऊर्ण मजो समाणो उपपन्नो वाणमंतरे तज जो उववन्नी मणुए पुणोषि सूष्णाहिवत्ताए तजवि तकम्मदोसेणं सत्तमाए ओषि उबऊणं उपबन्नो तिरिए पकिपरंसि गोणत्ता, तत्थ य चक्रसगडलंगलायङ्गणेणं अक्षिसं जुधारोवणेणं पचिऊण कुहियउत्रिये समुच्छिए य किमी ताई असमीपं जुयधरणस्स विष्णाय पट्टीए वाहिउमारदो तेणं चक्किएणं, अहन्नया कालक्रमेणं जहा वा पचिऊण कुहिया पट्टी, तत्थानि समुच्छिए किमी. सडिऊण विगयं च पश्चिम् ता अकिंचियरं निष्पजोषति णाऊण मोकलिओ गोयमा तेणं चक्किएणं तं सललितमिजालेहिं णं वजमाणं व सावजायस्थिजीवं वओ मोकलिओ समाणो परिसडियपट्टियम्मो बहुकायसाणकिमिकुलेहिं सपज्झन्तरे विलुप्पमाणो एकूणती संवच्छराई जाव आउ परिवाले ऊ म समाणो उपचणो अभेगवाहियेयणापरिगयसरीरो मणुए महाधण्णस्स नं इम्भस्स गेहे तत्य व दमणचिरेणवारकतित्तकसायतिलागुग्गलकाढगे आदीयमाणस्स निचविसोसणाहिं च असझावसम्म पोरदारुणदुक्लेहि पालियरसेव गोयमा ! गजो निष्फलो तस्स मणयजम्मा एवं च गोषमा सावजायरियजीवो चोदसरजुयलोग जम्म मरणेहिं णं निरंतरं पडियरि(डि) ऊणं सुदीहातकालाओ समुप्पो मनुयत्ताए अरविदेहे तत्य य भागवसे लोगाणुवतीए गजो तित्ययरस्स वंदणबतियाए पटिबुडो व पइओ, सिद्धो अइह तेवीसमनित्ययरपासणामस्स काले एवं तं गोयमा सावजायरिएण पावियं से भयवं किंपञ्चइयं णाणुभूयं एरिसं दूसई पोरदारुणं महादुक्स्वसंनिवायसंपट्टमित्तियकालति, गोयमा जं भणियं तकालसमयं जहां णं 'उत्सगाचचाएहि आगमो ठिजो एगंतो मिच्छतं जिणाणमाणा अणेगतोति एयवयणपचइयं से भययं किं उत्सगाववाएहिं णं नो ठयं आगमं ? एतं च पद्मविज, गोयमा उस्सग्गाक्याएहिं चैव पचयणं ठियं, अगं च पवन णो णं एतं वरं आउकायपरिभोगं तेउकायसमारंभं मेहणालेषण च एते तओ घाणंतरे एते ३ निच्छपओ ३ बाट ३ सहा सबपधारेहिं णं आयहिषीर्ण निसिद्धति एत्वं च सुताइकमे सम्मग्गविप्पणासणं उम्मापयरिक्षणं तओ य आणाभंग आणाभंगाज अणतसंसारी से भयवं किं तेण सावजायरिएणं मेहूणमासेवियं ? गोयमा सेवियासेवियं णो सेपियं गो असेवियं से भवयं के अद्वेणं एवं दुबइ ? गोयमा जं तीए जाए तकालं उत्तिर्मगे पाए फरिसिए, फरिसिजमाणे य णो तेण आउंटिय संवरिए एएवं अद्वेणं एवं गोयमा दुबइ से भयवं एदहमेत्तस्सावि में एरिसे पोरबुडिमोक्रले पदपुनिकाइए कम्मबंधे ? गोयमा एवमेयं ण अत्ति से भय तेण तित्यथरणामकम्मगोयं आसकलिये एगभवावसेसीकओ आसी भवो वही ता किमेयमतसंसाराहिंडणंति ?. गोमा निययपमादोलेणं, तम्हा एवं विद्याणित्ता भवविरहमिष्टमा गोमा सुदिहसमयसारेणं गच्छाहिबणा सङ्ग्रहा सपयारेहिं णं सत्त्वामेसु अनंत अप्पम लेणं भवियति मि । २९ ॥ महानिसीहमुपसंघस्स दुबालसंगमुनाणस्स णवणीयसारनामं पंचमं अज्झयणं ५ ॥ भयवं जो रसिदियहं सिद्धन पढ सुमेह वक्लाणे चित सततं सेो किं अणावारमापरे, सिद्धतगमेपि अक्सर जो वियाणई सो गोयम! मरणविणाचारं नो समायरे १ से भयवं ता कीस दसपुत्री मंदिसेणे महायसे पत्र चिया गणिकाइ गेहूं पविट्टो य दुबई ?, गोयमा' 'तस्स पसिदं मे भोगलं खलियकारणं भवभयभीओ तहाचि दुर्य, सो पद्मजमुवागओ ॥ १॥ पायानं अवि उदमुहं सगं होजा अहोमुहं ण उणो केवलिपन्चर्स, वयणं अजहा भये ॥२॥ अर्थ सो बहुवाए वा सुपनिषदे वियारिडं गुरुणो पामूले मोतृणं, लिंग निसिओ गओ ॥३॥ तमेव वर्ण सरमाणो, दंतभग्गो (दसमंगो) सकम्पुणा । भोग कम् वेदे निकायं ॥ ४ ॥ मयचं ते केरिसोचाए, सुपनिषदे विधारिए। जेणुज्झियसु सामनं, अजचि पाणे परे सो ? ॥५॥ एते ते गोयमोवाए, केवलीहि पहए जहा विसयपराभू ओ, सरेजा सुत्तमिमं मुणी ॥ ६॥ तंजहा- तत्रमुद (मह) गुणं पोरं, आढयेजा सुदुकरं जया बिसए उदिजति, पडणासण बिसं पिबे ॥ ७॥ उच्चधिकणं मरिय, नो चरितं विराहए। अहू एवाई न सकेजा, ता गुरुणं लिंग समाप्पिया ॥ ८ ॥ विदेसे जत्य नागच्छे पडती तत्व तूर्ण अणुवयं पालेजा, णो णं भविया गिद्धं ॥ ९॥ ता गोयम दिसेणेर्ण, गिरिपडणं जाय पत्थुर्य। तावायासे इमा वाणी, पडिओवि णो मरिज तं ॥ १० ॥ दिसामुहाई जा जाए, ता पेच्छे चारणं मुर्णि अकाले नत्थि ते मनू. विसमविसमादि गओ ॥ १ ॥ (२८७) ११४८] महानिशीथ अजयमुनि दीपरसागर
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अत्र षष्ठं अध्ययनं "गीतार्थविहार" आरब्धः
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आगम
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“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [६], -------------उद्देशक ----------- मूलं [१] +गाथा:||१२||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
peratorey
चा, दरमहरूस सुभासिया बाया. दम्महेण (ह भणे) जहाँ त सम्मपासहि नदोऽपिसाबमा
गाथा ||१२||
ताहेवि अणहियासेहि. विसएहि जापपीडियो। ताव चिंता समुप्पना, जहा कि जीविएण मे ॥२॥ कुदेन्दुनिम्मलपराग, तित्व पाचमती अहं । उहबाहिंतोऽह सुमिस्स, कत्थ गंतुमणारिओ!॥३॥ अहवा सलंडगो चंदो, कुंदरस उण कापडा। कलिकलसमलकलंकेहि. बजियं जिणसासणं ॥४॥ता एवं सबलदारिदुइकिलेसपखयंकर। परयणं खिसावितो, कत्थ गंतृण सुज्झिाई ? ॥५॥ दुग्गटक मिरि रोद्, अत्ताणं चुनिमो धुर्वे । जाब विसयवसो णाहं, किंचिऽत्थुड्डाह करें ॥६॥ एवं पुणोविआरोद्, रंकुमित गिरीय । संबरे किल निरागार, गयणे पुणरवि भाभियं ॥ ७॥ अथाले नस्थि ते मथ, परिमं तुम्भ इमं नणं। ता बहपुढ भोगहलं, बेइत्ता संजमं कुरु ॥८॥ एवं तु जाय ये वारा, चारणसमणेहिं सेहिजो। ताहे गण सो लिंग, गुरुपामूले निवेदिउं ॥९॥ सुत्सत्यं सरमाणो. दूर देसतरं गओ। तत्थाहारनिमित्तेर्ण, पेसाए घरमागओ ॥२०॥ धम्मलाभं जा भणई, अस्थलाभ विमग्गिओ। तेणावि सिद्धिजुनेणं, एवं भवउनि माणियं ॥१॥ अतेरसकोटीओ. दचिणजायस्स जा नहि। हिरण्णविढि दावेडं, मंदिरा पहिगच्छद॥२॥ उत्तुंगधोरचणवट्टा, गणिगा आलिगिउँदद। भन्ने कि जासिम दविणं, अविहीए दाउ? चालगा! ॥३॥ तेणनि मरियायं एवं, कलिऊणेयं पभाणिय। जहा जा ले विही इट्टा, तीए दत्रं प(आ)यच्छम् ४ा गहिऊणाभिग्गहूं ताहेब पविडो तीइ मंदिरं। एवं जहा न ताव अहर्य, मोयणपाणविहिं करे ॥५॥ दस दस ण चोहिए जाच, दियहे २ अणूणिगे । पइन्ना जा न पुन्नेसा, काइपमोक्वं न ना करे ॥ ६॥ अन्न चन मे दायका, परजोपद्वियस्सवि। जारिसगं तु गुरुलिग, मवेसीसपि तारिस ॥ ७॥ अस्वीणत्यं निहीकार्ड, लुधिजो खोसिजोवि सो। तहाऽऽराहिओ गणिगाय, बद्धो जह पेमपासेहि ॥८॥जालाबाओ पणजो पणयाउ रती रतीड पीसंभो। बीसंभाओ हो पंचविहं वट्टए पेम्मं ॥५॥ एवं सो पेम्मपासेहि. बदोऽपिसाचगनर्ण। जहोयर्ल्ड करेमाणो, बस अहिए बा दिणे दिणे ॥३०॥ पडियोहिऊण संपिग्मगुरुपामूले पपेसाई संपर्य बोहिमओ सोधिरणी).उम्महेण (ह भणे) जहा तुम ॥१॥ धम्म प्रेगस साहेसि, अत्तकमि मुसासि ।णूणं विकणयं धम्म, जं सयं णाणुचिट्ठसि ॥२॥ एवं सो बयणं सोचा, दुम्मुहस्स सुभासियं। थरथरथरस्स कंपतो. निदिउ गरहिउ चिरे ॥३॥ हा हा हा हा अकल मे, भसीलेण किं कर्य । जेणं तु मुत्तो-E उपसरे, गुंडिओऽसुइ किमी जहा ॥४॥धी धी बी पी अहन्नेणं, पेच्छ ज मेऽणुचिट्ठियं। जबकंचणसमऽत्ताणं, जसुइसरिसं मए कयं ॥५॥ खणभंगुरस्स देहस्स, जा विपत्ती ण मे भये। ता तिस्थयरस्स पामलं. पायचिठन चरामिह ॥ ६॥ एसमागमती एल्यं, बिनाणेव गोयमा । घोरं चरिऊण पायपिटल, संवेगाऽम्हे हि भासिय ॥७॥ घोरवीरतवं कार्ड, अम्ल हकम्मं सवेनु या सुकज्ज्ञाणं समाहिउँ, केवलं पाप सिझिही॥८॥ता गोयमेषचाए.बहु उपाए पियारिया। लिगं गुरुम्स अप्पे, दिसेगेण जह कयं ॥९॥ उस्सरगं ता तुम पुन्म, सिदंतेयं जहट्टियं । तवंतराउदयं तस्स, महंत आसि गोयमा ! ॥४०॥ तहावि जो विसउदन्ने, तवे घोरमहातब। अडगुण नेणमणुचिन्न, नानि विसए ण णिजए ॥१॥ ताहे
पिसभक्खणं पडणं, अणसणं तेण इच्छियं । एयपि चारणसमणेहि बेचारा जाच सेहिओ ॥२॥ ताव य गुरुस्स रपहरणं, अप्पियतं देसतरंगो।एते ते गोयमोबाए.सुयनिषदे बियाणए 3॥३॥ जहा-जाव गुरुणो न स्यहरणं, पाजा बन अलिया। तावाकनं न काय, लिंगमपि जिणदेसियं ॥ ४॥ अवस्थ ण उनिमय, गुरुणो मोनूण अंजलिं। जर सो उपसामि
सको, गुरू ता उपसामई ॥५॥ अहअन्नो उपसमिई सको, तोऽवी तस्स कहिजई। गुरुणावि तयं णाऽन्नस्स, गिरा पेय कयाइची ॥६॥जो भवियो बीयपरमहो, जगडिवि. याणगो। एयाई तु पयाई जो. गोयमा ! णं विरंपए ॥७॥ मायापपंचदमेणं, सो ममिही आसटो जहा। भय न बाणिमो कोऽपि, मायासीलो हु आसडो? ॥किंवा निमित्तावचरिओ, सो भमे बहुदहडिओ। चरिमस्सऽन्नरस नित्यमि, गोषमा ! कंचणच्छवी ॥९॥आयरिओ आसि भूइक्सो, वस्स सीसोस आसडो। महापाई पेचूर्ण, अह मुत्तस्य अहिजिया ॥५०॥ नाव कोऊहलं जायं, णो णं विसएहि पीडिओ। चिंतेड य जह सिद्धते, एरिसो दंसिओ विही॥१॥तो तस्स पमाणेणं, गुरुयणं रजिउँ दर्द । तवं पऽवगुणं कार्ड, पडणाणसणं विसं ॥२॥ करेहामि जहाऽहंपि, देवयाए निवारिओ। दीहाऊणस्थि ते मयू, भोगे मुंज जहिच्छिए ॥३॥ लिग गुरुस्स अप्पेठ, अन्न देसतरं वय। भोगहलं वेश्या पच्छा, घोरवीरन चर ॥४॥ अहया हा हा अहं मूढो, आयसाहेण सतिओ। समणाचं रिस जुत्तं, सयमवी मणसि धारिङ ॥५॥ पच्छा उमे पन्छिन, आलोएता लहूं घरे । अहवर्ण णं आलोउं, मायाची भन्निमो पुणो ॥६॥ता दसवासे आयाम, मासखमणस्स पारणे। पीसायंबिलमादीहिं. दो दो मासाण पारणा ॥ ७॥ पणुचीसं वासे नस्य, पंदायणतयेण या बहुहुमवसमाई, अहवासे यऽणूणगे ॥महपोरेरिसपचिडतं, सयमेवेस्थाणुचरं । गुरुपामूलेऽपि एस्थेयं, पायच्छिन मेण अम्माल ॥ ९॥ अहवा तिथवरेणेस, किमढ बाइजो बिही।
जेणेयमहीयमाणोऽहं. पायच्छित्तस्स मेलिओ?॥६०॥ अहवा-प्लोचिय जाणेज सवन्न, पच्छितं अणुचराम्यहं । जमित्य इचितिययं, नस्स मिथळामि दुबई॥१॥ एवं तं कई | घोरं, पायच्छितं सर्वमती। काऊपि समतो सो, पाणमंतरिय गजओ ॥२॥ हिडिमोवरिमगेवेयविमाणे वेण गोयमा ! । वनो आलोहना, जाने पश्विन कुत्रिया ॥३॥ वाणमंतर११४९ महानिशीधच्छेदसूर्य अन्न-5
मुनि दीपरवसागर
दीप अनुक्रम [८५८]
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(३९)
“महानिशीथ" - छेदस -------अध्ययन [६], ------------- उद्देशक [-1,---------- मूलं [१...] +गाथा:||६४||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
गाथा
||६४||
देवत्ता, चहऊर्ण गोयमा!ऽऽसडो। रासहताएं निरिच्छेसं, नरिंदघरमागओ॥४॥ निचं तत्य वढयाणे, संघट्टपदोसा नहिं । बसणे वाही समुप्पण्णा, किमी एल्थ समुच्छिए॥५॥ तओ किमिएहिं खजतो, वसणदेसंमि गोयमा!। मुकाहारो खि लेडे, वियपत्तो ताव साहुणो ॥६॥ अरेण पोलते, बठूर्ण जाई सरेनु य । निदिई गरहि आया, अणसण पडिज्जिया ॥ ७॥ कागसाणेहि खर्जतो, सुदभावेणं गोयमा!। अरहताणंति सरमाणो, समं उग्मिय सं वर्ण ॥८॥ कालं काऊण देपिंदमहापोससमाणिओ। जाओ त विसं इडि. समणभोर तो चुजो ॥९॥ उपवनो सत्ताए, जा(न)सा नियटी ण पटिया । तोचि मरिकणं बहू, अंतर्पते कुलेऽटिओ ॥ ७० ॥ कालकमेणं महराए, सिपादस्स रियायो । राजी होऊर्ण पडिबुद्धी, सामों का निगुडो ॥१॥ एवं ने गोयमा ! सिई, नियडीपुंजं तु आसई । जे य सानुमुहमणिए, पयर्ण मणला चिर्डपए ॥२॥ कोइलेणं सियार्ण, उणं दिसएहि पीडिए। सच्छंदपायच्छिण, ममिओ भवपरंपरे ॥३॥ एवं नाऊणमिकपि, सितिगमालावर्ग। जाणमालो हु उम्मग्गं, कुजा जे सेविया ण हि ॥४॥ जो पुण सायन्नार्ण, अईस पा पवर्णपि वा। णचा पएज मग्गेणं, तस्स अहो ण बाई, एवं नाऊण मणसावि, उम्मगर्ग नो पञ्चत्तए ॥५॥ति बेमि, 'भय! अकिचं काऊण, पश्चिम जो करेजवा तस्स । लट्टयर पुरओ, जं अकिञ्च न कुबई ? ॥६॥ ताऽजुलं गोयमा ! मिणमो, ययर्ण मणसावि धारिउँ । जहा काउमकत्तव्यं, पच्छितेणं तु सुमिह ॥ ७॥ जो एवं व्यर्ण सोच्चा, सहहे। अणुपरेइ पा। भहसीलार्ण सचेसि, सत्यवाहोस गोयमा ! ॥८॥ एसो कार्यपि पश्छित्त, पाणसंदेहकारणं। आणावराह दीवसिहं, पविस सलमो जहा ॥९॥ भया ! जो पालं पिरिय. पुरिसवारपरकम । णिगृहंतो न घरह, पण्डिनं तस्स किं भवे ॥८॥ तस्सेय होइ पच्छितं, असदभावस्स गोयमा! । जोन धाम बियाणेत्ता, वेरी सन्तिमपेक्सिया ॥१॥जो पलं 17 पीरिय सन, पुरिसयार निगृहए। सो सपचिछत्तपछित्तो, सदसीलो नराहमो ॥२॥नीयागोयं दुई धोरनरए सुशोसियहिति देतो तिरिजोणीए. हिंडेला चउगाएं सो ॥३॥से & भया! पावयं कर्म, पर वाय समुद्धरे । अणणुभूएण गो मोक्वं, पायच्छितेण किं तहिं ? ॥४॥ मोयमा! बासकोटीहि अणेगाहिं संचियाले पमित्सरवीपई, पार्य तहिण व पिरतीयह ॥५॥ पणपोरंपयारतमतिमिस्सा, जह सूरस्स गोयमा ! | पायच्छित्तरविम्सेयं, पावं कम्मं पणस्सए ॥६॥णवरं जहत पवितं. जह भणिय तह समुबरे। (बलपीरिय) असढभाषी अणिगृहियपुरिसपारपरकमे ॥ ॥ अन्नं च काउ पच्छिन्नं, सब णमणुबरे जो। दरुवियसाडो यपुष्पेसो. बीह चाउम्गाइयं अटे ॥८॥ भययं ! कस्सालोएना?. पच्छिल को व देज बा| कस्स व पण्ठितं देजा, आलोयावेज वा कह?॥९॥ गोयमालोयणं ताव, केवलीण बहसुवि। जोयणसएहिं गंतूण, सुद्धमावेहि दिनए ॥९॥ पउनाणीगं नयाभावे. एवं ओहि मईसए । जस विमलयरे नस्स, नास्तम्मेण दिजाई ॥ १ ॥ उस्सगं पन्नर्वितस्स, उस्सम्गे पड्डियरस य । उस्सगणो वेव, सवभावसरेहि ॥२॥ उपसंतस्स तस्सी संजयस तपस्सिणी समितीगृत्तिपहाणस्स, दढचारिनस्सासम्माविणो ॥३॥ आलोएजा पटिन्जा , दिजा दाविज पा परं। अहन्निर्स तदुहि. पायधिस अणधरे ॥ ४॥ से . भया ! किनिय तस्स, पश्छिल हबद निच्छियं?। पायच्छिनस्स ठाणाई. केवइयाई ? कहे हि मे ॥५॥ गोयमा ! जे सुसीलाणं, समणाणं दसव्ह उखलियागयपति , संजई नव-21 गुण ॥६॥ एका पावड पच्छित्तं, जासुसीला श्या । अहसील विराहेजा, ता तं हवइ सयगुर्ग | आतीए पंचेंदिया जीवा, जोणीमो निवासिणो। सामर्श नव लक्साई, सोम पासति केवाही ॥८॥ केवलनाणस ते गम्मा, पोऽकेवली ताई पासती। मोहिनाणी बियाणेए, णो पासे मणपजयी ॥९॥ता पुरिस संचईती, कोण्हगंमितिले जहा। सोस सुसरावे. तुं मत्ता महानि(ति)या॥१०॥चकम्मतीव गाढाई.काइयं बोसिरतिया। बाबाइजा यदो तिनि, सेसाई परियाबई ॥१॥ पायप्लिम्स ठाणाई, संखाईयाई गोयमा ! अगालोइतोह एपि, समवसरणं मरे ॥२॥ सयसहस्सनारीणं, पोई फालिन निग्विणो । सत्तमासिए गम्भे, परफटते णिगिताई ॥३॥ ज तरस जत्तिय पाचतित्ति । नवं गुणं । एकसि स्थीपसगेणं, साह बंधन मेहुणे ॥४॥ साहुणीए सहस्सगुण, मेहुणेकसि सेबिए । कोडीगुणं तु विजेणं, तहए मोही पणस्सई ॥ ५॥ जो साह इस्वियं ददळ, निसपही रामेहि बोहिलामा | परिजनी कर पराओस होही? ॥६॥ अथोहिलाभियं कम्म, संजो अह संजई। मेहुणे सेविए आऊोउकाए पपंधई ॥ ७॥ जम्हा तीसवि एएस. अबरजती र गोचमा। उम्मम्ममेव सहारे, मार्ग निहबद सबहा ॥ ८॥ भगवं ! ता एएण नाएणं, जे गारन्थी माउकाडे । रतिदिया ण छड्डति, इत्थीयं तस्स का गई ? ॥९॥ ते सरीरं सहत्येणं, विदिऊणं । तिलनिलं । अग्नीए जाविहोमंति, तोऽपि सुदी ण दीसई ॥११०॥ तारिसोचि णिनिति सो, परवारस जई करे। सावगधम्मच पालेख, गई पावेह ममिमं ॥१॥ भय सवारसंतोसे. LM
जा भो मजामं गई। ता सरीरेऽयि होमतो, कीस सुदि ण पावई ? ॥२॥ सदारं परदारं वा, इत्थी पुरिसो य गोयमा! । रमतो बंधए पार्य, णो णं भवद अबंधगी ॥३॥ साराधर्म जहुनं जो, पाले परदारगं चए।जाचजीच तिनिहेर्ग, तमणुभावेण सा गई ॥ ४॥ मनरं नियमविहूणस्स, परदारगमण(ग)स्स या अणियत्तस्स भवे मंच, णिविनीए महाफलं ॥५॥ २१५०/महानिशीपच्छेदसूत्रं, मन्न -5
मुनि दीपरनसागर
दीप
अनुक्रम [१०००]
... अत्र सूत्र-क्रमांक ९०९ एव वर्तते, परन्तु मया स्खलनत्वात् १००० लिखितं | ...(मैने मेरे मूल संपादनमे भूलसे ९०९ के स्थानमे १००० लिख दिया था, आगे भी सूत्र-क्रमांक १००१, १००२, १००३...इसी तरह छपे थे, इसिलिए सभी प्रकाशनोमे यहीं गलति जारी रक्खी है।)
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“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [६], ------------- उद्देशक ----------- मूलं [१...] +गाथा:||११६||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
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गाथा ||११६||
सवाणपि निवित्ति, जो मणसावि विराहए। सो मओ एगई गच्छे, मेघमाला जहजिया ॥६॥ मेघमालजिय नाहं. जाणिमो भुवनबंधच! । मणसावि अनिवत्ति, जासंडिय दुग्गई गया ॥ ७॥ वासुपूजस्स तिर्थमि, भोला कालगच्छवी। मेघमालजिया आसि, गोयमा! मणदुबला ॥८॥सा-नियमोगासे पक्वं दाङ, काउं मिक्खा व निग्गया । अपओ एस्थिणीसारमंदिरोगरि संठिया ॥९॥आसनमंदिरं अन, कैपित्तागंतुमिच्छगा।मणसाऽमिनंदेवं जा(व), ताव पजलिया दुवे ॥१२०॥नियमभंग तयं सुहम, सीए तत्थ ण णिदियं । तनियमभंगदोसणं, इज्निता पदमियं गया ॥१॥ एवं नाउँ सुहमंपि, नियमं मा विराहिह । जेच्छिया अपवयं सोमवं, अणतं च अणोवम ॥२॥ तसं जमे वएसंच. नियमो दंडनायगो । तमेव खंडमाणस्स, ण वए णो व संजमे ॥३॥ बाजम्मेणं तु जं पार्व, पंधेजा मच्चाबंधगो । बयभंग काउमणस्स, ने चेवऽहगुणं मुणे ॥ ४॥ सयसहस्सं सलडीए, जो
सामिनु निक्समे।वर्य नियमखईतो, जंसोतं पुनमजिणे | पबित्ता व निवित्ता य, गारथी संजमे तवे। जमणुडिया तयं लाभ, जाप दिक्खा न गिहिया ॥६॥ साहुसाहुणीनम्गेणं, विनायमिह गोयमा!। जेसि मोनूण ऊसासं, नीसासं नाणुजाणिय ॥ ७॥ तमपि जयगाए अणुमायं. विजयणाए ण सत्रहा। अजयणाइ ऊससंतस्स, कओ धम्मो? कओ तो॥८॥भय ! जावावं दिई. ताचइयं कहऽणुपालिया। जे भने अचीवपरमत्ये. किबाकिचमयाणगे?॥९॥एगणं हियं ययणं, गोयम! दिसति केवली। णो बलमोडीह कारेंति, हत्ये पेनूण जंतुणो ॥१३०॥ नित्थयरभासिए बयणे, जे नहनि अणुपालिया। सिंदा देवगणा तम्स, पाए पणमंति हरिसिया ॥१॥ जे अविदयपरमस्थे, किबाकिधमजाणगे। अंधोअंधीए तेसि सम, जलथलं गठिकरं ॥२॥ गीयत्यो य विहारो,बीओ गीयत्वमीसजओ।समणुग्नाओ सुसाइणं, नस्थि तइयं विषप्पणं ॥३॥मीयत्ये जे गुसंचियो, अणालस्सी बढ़पए। असलियचारिते सययं, रागोसबिनजए॥४॥ निषियहमयड्डाणे, समियकसाये जिइंदिए। बिहरेजा तेसिं सहिंतु, ते छउमस्थेवि केवली ॥५॥ सुहमस्स पदवीजीवस्स, जत्थेगस्स किलामणा । अपारंभ वयं ति, गोयमा ! सबकेवली ॥६॥ सुहमस्स पुढवीजीवत्स, पावती जत्य संमव । महारंभ तयं विति, गोयमा ! सबकेवली ॥ ७॥ पुढवीकाइयं एकदरमलेंतस्स गोयमा । जस्सायकम्मबंधो हु, दुनिमोक्से ससहिए ॥८॥ एवं च आऊनेऊलाऊ तह वणरसती। नसाकाय मेहणे तह, चिकणं चिणइ पावगं ॥९॥ तम्हा मेहुणसंकायंस पुढवादीण विराहणं । जावजीवं दुरंत फलं, सिविहतिविहेण पजए॥१४०॥ ता जेऽविदियपरमत्ये, गोयमा ! णो यजे मुणे । नम्हा ते विचनेजा, दोम्गाईपंचदायगा ॥१॥ गीयत्वम्स उपपणेणं, विसं हलाहलंपिये। निधिकप्पो पभक्खेजा,नक्सणा समुहवे ॥२॥ परमस्थओपिसं तोस(नोत), जमयरसायर्ण सुतं। णिविकप्पंण संसारे, मओपि सो अमयस्समो ॥३॥ अगीयस्थस्स ययणेणं, अमर्यपि ण पोहए । जेण अपरामरे हविया, जह कीला णो मरिजिया ॥४॥ परमस्थओ ण त अमयं, संविसं ते हलाहलाण तेण अपरामरो होजा, भक्सगा निहर्ण बए ॥५॥ अगीयत्वकुसीलेहि संग निविहेण बजए। मोक्समम्मस्सिमे विग्धे, पहमी तेगगे जहा ॥६॥ पजलियं हुययह बटुं, णीसंको तस्य पविसिडं। अताणपि डहिजासि, नो कुसीले समलिए ॥ ७॥ वासलपि मूलीए, संभिको अपिछया सुह। जगीयत्येण सम एक. खणदपि न संवसे ॥८॥विणापि ततमंतेहि. घोरविहीविसं अहिं । उसंतपि समाडीय, णागीयत्य कुसीलाहम ॥९॥ निसं लाएज हलाहल, किर मारेइ तासणं। ण करेऽगीयत्यसंसम्गि, पिढवे लक्वंपिजं ताहि १५०॥ सीहं वग्यं पिसायं वा, पोररूवभयंकरं । ओगि. लमाणपिडीएजा, ण कुसीलमगीयस्थं तहा ॥१॥ सत्तजम्मंतर सर्नु, अवि मनिला सहोयर । वयनिवमं जो विराहेजा, जणर्य पिक्खे नयं रिउ ॥ २॥ वरं पविठ्ठो जलिय हुयासणं, न यावि नियमं सुहुर्म निराहियं । बरं हि मच्च सुविसुबकम्मुणो, न यानि नियमं मंतृण जीवियं ॥३॥ अगीयस्थत्नदोसेण, गोयमा ! ईसरेण उ। पतं तं निसामेता, बहु गीयस्थो मुणी भवे ॥४॥से भयब ! णो वियाणेऽहं. इसरो कोवि मुणिवरो। किंवा अगीयत्यदोसेणे, पत्त नेण? कहेहि णो ॥५॥ पडवीसिगाए जनाए.एत्य भरहमि गोयमा!। पदमे तिस्थकरे जड़या, विहीपण निबुडे ॥ ६॥ नइया निमाणमहिमाए, कतरूपे सुरासुरे । निवयंते उप्पयंते प, दटुं पचंतपासि ॥७॥ अहो अच्छेरयं अज, मबलोयमी पेच्छिमो। ण इंद जाला सुमिण बानिदिई कत्थई पुणो ॥८॥एवं बीहापोहाए. पुनि जाई सरिनु सो। मोहं गंतृण खणमेक, मारुयाऽऽसासिओ पुणो॥९॥ परवरपरस्स कंपतो, निदिउँ गरहिउ चिरं। अनाणं गोयमा! धणियं, सामनं गहिउमुजओ ॥१६०॥ अह पंचमुहियं लोयं, जावाढवड महायसो। सविणयं देवया तस्स, स्यहरणं ताच दोयई ॥१॥ उम्ग कई नवचरणं, तस्स बठूण इसरो। लोओ पूर्व करेमाणो, जाच उ गतृण पुच्छई ॥२॥ केण तं दिक्खिओ? काय?, उप्पलो को कुलो तब? । मुत्तस्थं कस्स पामूले, साइसयं हो समजिय? ॥३॥ सो पचएगबुदो जा, सच तस्स चियागरे। जाई कुल दिक्सा सुत्तं, अत्यं जह य समाजियं ॥४॥ सोऊण अहलो सो, इमं चितेह गोयमा!| अलिया अणारिओ एस, लोग डंभेण परिमसे ॥ ५॥ ता-जारिसमेस भासेइ, वारिस सोऽवि जिपवरो।ण किचित्य बियारेणं, तुहिकेई चिरंठिए ॥६॥ अहवाणहि गहि सो भगध !, देवदाणवपणमिओ। मणोगपि जं मन, पिच्छि११५१ महानिशीयमादसूत्रं सम
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गाथा
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न्निज संसयं ॥आतावेस जो होउ सो होउ, किंपियारेण एत्य मे अभिनंदामीह पानं, सबदोक्स(स)विमोक्तणि दाता पडिगो जिणिदस्स, सयासे जाने क्लई। भुषणेसं जिणवरं वाय, गणहरसामी पयहिओ ॥९॥परिनियंमि भगवंते, धम्मतिथंकरे जिणे। जिणाभिहियसुत्तत्वं, गणहरो जा पहनाई ॥१७॥तावमालावर्ग एवं, पक्वाणमि समागये। पुढवीकाइगमेग जो, वाचाए सो असंजओ॥१॥वा इसरो पिचिंतेई, सुहमे पुढविकाइए। सनत्य उदकिनति, को ताई रक्सिडं तरे? ॥२॥हलईकरेइ अत्साणं, एस्य एस महायसो। असदेयं जणे सहल(यले), किमत्येवं पक्क्सई? ॥३॥ अचंतकदवर्ट एवं वाखाणं तस्सवी फुट। कण्ठसोसो पर लाभे, एरिसं कोणचिहए। ॥४॥ता एवं विप्पमोचन साम किंचि मझिम । जवानं या कहे धम्मं, ना लोउऽम्हा ण उहाई ॥५॥ अहया हा हा अहं मूढो, पाचकम्मी णराहमो। णवरं जाणाणुचिट्ठामि, अमोऽहती जणो ॥ ॥ जेनेयमलनाणीहि. साहि पवेदिय। जो एहिं अनहा पाए, तस्स अहोण बजा(विज)ई ॥आताहमेयस्स पच्छित्त, पोरं महतुकरं परं । लहु सिग्य सुसिम्पयर, जाप मधून मे भये ।। आसायणाकर्य पात्र, आर्सजेण बिकुत्र(किंत)ती दिव याससयं पुन्न, अह सो पच्छित्तमाचरे ॥९॥ तारिस महापोरं पायश्चित्तं सर्यमई। कार्ड पत्तेयववस्स. सयासे पुणोपि गओ ॥१८०ातत्यावि जा सुणे पक्खा, तापऽहिगारमिमागयं । पुदवादीण समारंभ, साह तिबिहेण बजए॥१॥ बढमूढो हुत्य जोईता,इसरो मुखमम्भुओ।चितेत जहिस्य जाए. कोणता समारभे?॥२॥ पुढबीए ताव एसेन,समासीणोविचिदई अम्गीए रवयं साधाइ.(सर्व बीयसमुम्भव)॥३॥ अन्नंच विणा पाणेणं, खणमेकं जीवए कहता किंपिनं पचासेस, जं पत्यमत्वंतिय ४ाइमस्सेय समागच्छे, ण उणेयं कोह सदहे। ता बिहउ नाय एसेत्य, वरं सो चेव गणहये ॥५॥ अहवा एसोन सो मझ, एकोवि भणिय करे। अलिया एवंविह धम्म, किंचुसेर्ण तंपिय॥६॥साहिजई जोसुपे किचि, ण तुणमचंतकत्यई। अहवाचितुतायेए, अयं सयमेव वागरं आसुहंसहेणं जं धम्म, सबोविअणुइए जणोनि कालं कडपडसाज, धम्मस्सिति जाव चिंता ॥८॥धडहडितोऽसणी ताच, शिवडिओ तस्सोपरि। गोयम! निर्ण माओ ताहे. उवपनो ससमाएँ सो ॥९॥ सासण(मण्ण रायनाणसंसम्मपतिणीयताए ईसरो। तस्य दारुणं दुरसं, नरए अणुमपिट चिरं ॥१९॥ दहागओ समुदंमि, महामच्छो भयेउणं। पुणोषि सत्तमाए य, तित्तीस सागरोचमे ॥१॥ दुविसहं दाकर्ण दुस, अणुहविऊणिहागओ। तिरिवपक्खीसु उवपन्नो, कागत्ताएस ईससे ॥२॥नओवि पदमियं गतुं, उसहिता इहागओ। दुइसाणो भवेत्ता, पुणरचि पडमियं गजओ ॥३॥ उमहिला तओ बहई.. खरो होउ पुणो मओ। उववन्नो रासहत्ताए, उम्भवगहणे निरंतर ॥ ४॥ ताहे मणुस्सजाईए, समुप्पन्नो पुणो मजो । उपचन्नो गणपरत्नाए. माणुसतं समागओ॥५॥ तओऽनि मरिसमुपन्नो, मजारने स ईसरो। पुणोषि निरए गंतुं. (इह) सीहतेणं पुनो मओ॥६॥ उवजिउंचउत्थीए, सीहतेग पुणोऽपिह। मरिऊगं पडस्चीए, गंतु इह समागमओ आतओवि नरयं गंतुं, चकियत्तेण इसरो। तओवि कुट्टी होऊर्ग, पदुक्खादिमो मजो॥८॥ किमिएहि खजमाणस्स, पन्नासं संवच्छरे। जाऽकामनिजरा जावा, तीए देवेसुक्वजिउँ॥९॥ नओ इह नरीमन, लवूर्ण सत्तमि गओ। एवं नरगतिरिच्छेसु, कुच्छियमणुएम ईसरो॥२००॥ गोयम ! सुदरं परिभमिर्ड, पोरदुस्खमुक्तिओ संपा गोसालओ जाओ, एस सजेवी. 122 सरजिओ॥१॥तम्हा एवं बियाणेत्ता, अचिरा गीयरये मुणी । भवेजा विदिवपरमस्ये, सारासारपरिन्नुए ॥२॥ सारासारमपाणेत्ता, अगीयस्थत्तदोसओ । वयमेत्तेणाविरजाए, पावर्ग जे समनियं ॥३॥ तेणं तीए अहलाए, जा जा होही नियंतणा। नारयतिरियकुमाणुस्से, ने सोचा को थिई लभे? ॥४॥ से भय ! का उण सा रजिया किंवा तीए अगीयो. सेणं वयमेनेनपि पावकम्म समलियं जस्सण विवागर्य सोऊणं णो थिई लभेना, गोषमा! णं इहेव भारहे वासे मदो नाम आयरिओ अहेसि, तस्स व पंचसए साहणं महाणुभागाणं दुवालसलए निम्गंधीण, नत्थ य गच्छे पउत्थरसिव जोसावणं तिवंडोषितं च कविउवम् विग्यमोनूर्ण चतत्य न परिभुजा, अभयारणानामाए अनिवाए पुश्कयामहपाचकम्मोदएर्ण सरीरमं कुडचाहीए परिसडिकणे किमिएहि समुरिसिउमारवं. अहान्नया परिगलंतपूइलहिस्तणू त रजनिय पासिया ताओषसंजाओ भणति जहा हलाहला दुकरकारने! किमेयंति,नाहे गोयमा! पडिभणिय तीए महापायकम्माए भग्गलक्खणजम्माए जजियाए, जहा एएण कासुगपाणयेण आविजमाणे विगई मे सरीरगति, जावेयं पलवे तान गं समुहियं हिमयं गोयमा समसंजईसमूहस्स, जहा गं निवजामो कासुगवाणगंति, तओ एगाए तत्थ चिनियं संजईए-जहाणं जइ संपर्य चेव ममेयं सरीरगं एगनिमिसम्मतरेणेव पडिसडिऊण खंटरवंटेदि परिसडेजा तहावि आफासुगोदगं इत्य जमेण परिभुंजामि, फासुगोडगं न परिहरामि, अच-कि सबमेयं कासुगोदगेर्ण इमीए सरीरग विणई, सबहाण सबमेयं, जाओ णं पुषकयअसुहपावकम्मोदएणं सबमे विहं हवइत्ति सठ्ठयर चिति पयत्ता, जहाण भो पेच्छ २ अशाणदोसोवाड्याए दढमूदाहिययाए वियतलनाए जमीए महापा. वकम्माए संसारपोरदुक्खदायगं केरिसं दुषयणं गिराइयं, जं मम कविवरसुपिणो पविसेजत्ति, जओ भवंतरकएणं असुहपावकम्मोदएणं जंकिंचि दारिदबुक्सदोहग्गअयसम्म क्साणकुटाइबाहिकिलेससन्निवार्य देहमि संभवा न जन्नहत्ति, जेणं तु एरिसमागमे पढिना, तंजहा-को देव कस्स देजइ विहियं को इस हीरए कस्स है। सयमप्पणो (२८८) ११५२ महानिशीपच्छेदमूर्य, renul-5
मुनिटीपसागर
दीप
अनुक्रम [११०४]
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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [८], ------------- उद्देशक [-], ---------- मूलं [२] +गाथा:||२०५||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
व गछे एत्तिए सए साहुला माहिणितसिपापगलालप्रेलियथयणस्मण समवयाए, जहा साहुगे सारणी
गाथा
||२०५||
विटतं अडियह दुहपि मुक्वंपि।२०५॥ चिंतमाणीए चेव उप्पन्नं केवलनाणं, कया य देवेहि केवलिमहिमा, केवलिणावि णरसुरासुराण पणासियं संसयतमघडलं अजियाणं च, तओ भत्तिभरनिभराए पणामपुर्व पुट्ठो केवली रजाए, जहा भयकं ! किमहमहं एमहंताणं महावाहिवेवणाणं भायर्ण संवृत्ता, ताहे गोवमा ! सजलजहरसुदुंदुहिनिम्पोसमणोहारिगंभी. रसरेण मणिय केवलिणा-जहा सुणसुदुकरकारिए! जंतुन सरीरविहरणकारणंति, तए रत्तपित्तदृसिए अम्भतरो सरीरगे सिणिवाहारमार्कठयए कोलियममीसं परिभुतं, अन्नंच. एल्थ गच्छे एत्तिए सए साहुसाहुणीणं वहाचि जावइएवं अच्छीणि पक्खालिगंति ताबइयपि बाहिरपाणगं सागारियडाइनिमित्तेणापि णो णं कयाइ परिभुजह, तए पुण गोमुत्तपडि. गणगयाए तस्स मच्छियाहि भिणिहिणितसिंपाणगलालोलियमयणस्स गं सदगसुयस्स बाहिरपाणगं संघटिऊण मुहं पक्वालियं, तेण य पाहिपाणयसंपट्टणविराहणेणं ससुरासुरजगवंदाणपि अलंघणिजा गच्छमेरा अइकमिया, तं चण खमियं तुझ पचवणदेवयाए, जहा साहुणे साहुणीणं च पाणोवरमेविण छि(क)पे हत्येणाविजं कूवतलावपुत्रवरिणिसरियाइमतिगयं उदगंति, केवलंतु जमेव बिराहियं पचगवसपलदोसं फासुगं तस्स.परिभोगं पनतं बीयरागेहि. ता सिक्खयेमि एसा दुरायारा जेणऽमावि काविण एरिसमाबारे पयत्ते. इति चितिऊर्ग अमुग२चुपणजोगं समुदिसमाणाए पक्खित्तं असणमामि ते देवयाए, संच ते गोवलक्खि सक्रियति देवयाए चरिथ, एएण कारणेणं ते सरीरं विहडियंति, ण 17. उण फासुदगपरिभोगेणंति, ताहे मोयमा! रजाए विभाचियं जहा एवमेयंग अन्नहत्ति, चितिऊण विनविजो केवली-जहा भय ! जड़ अहं जातं पायचित्तं चरामि ता कि पमप्पड़ म एवं वणुं. तओ केवलिणा भणियं जहा जड़ कोड़ पायन्छिनं पबच्छदवा पन्नप्पा, रज्जाए भणियं-जहा भय ! जहा तुम चिय पायच्छिनं पयच्छसि, अन्नो को एरिसमहर प्पा, तो केवलिणा भणियं-जहा एकरकारिए! पयच्छामि अहले पच्छिन्नं नवरं पच्छित्तमेव णस्थि जेणं ते सही भवेजा.रजाए भणिय-भय ! कि कारणंति?. केवलिणा भणियं. 15 जहाजं ने संजइवंदपुरओ गिराइयं जहा मम फासुयपाणगपरिभोगेण सरीरगं बिहडियंति, एयं च बुडपापमहासमुदाएकपिलं तुह बयणं सोचा सखुदाजो समाओ चेव इमाजो संजईओ. चितियं च एयाहि-जहा निच्छयत्रो विमुचामो फासुगोदगं, यज्नवसायस्सालोइयं निंदियं गरहियं याहि. दिलं च मए एयाण पायच्छि, एत्वचएण तवयणदोसेणं जंग से समनियं अचंतकविरसदारुणं बद्धपुट्ठनिकाय तूंग पावरासितच तए कुडभगंदरजलोदलाउमुम्मसासनिरोहहरिसागंडमालाहि अणेगवाहियणापरिगयसरीराए वारिहदुक्लदोहाअयसभरवाणसंतायुवेगसंदीवियपजालियाए अर्णतेहिं भवग्गहहिं सुदीहकालेणं तु अहमिसाणुभवेय, एएणं कारणेणं एसेमा गोयम सा रजजिया जाए अगीयत्यत्तदोसेण बायामेतेणेच एमहतं दुक्सदायगपावकम्मसमजियंतिा। अगीयत्यत्तदोसेणं, भावमुदिण पावए।विणाभाचत्रिसुदीए, सकलसमणसोपुणी भये॥२०६४ अणुचेयकलसहिययत्तं, अगीयत्वसदोसओ। काऊण उपवणजाए, पत्ता दुस्वपरंपरा ॥७॥ तम्हा नं णाउ बुद्धेहि, समभावेण सबहा। गीयत्येण भवित्ताणं, काय निकलुस मणं ॥८॥ भयर्थ : नाहं पियाणामि, लक्षणदेवी हु अजिया। जा अकलसमगीयत्वत्ता, काउ पत्ता दुक्लपरंपरा ॥९॥ गोयमा! पंचसु भरहेसु एचएस उस्सप्पिणीओसप्पिणीएएगेगा सबकालं चउचीसिया सासयमयोछित्तीए ‘भूया तह य भविस्साई अणाइनिहणाए सुपूर्व एत्था जगठिद एवं गोयम! एयाए चउयीसिगाए जा गया ।।२१०॥ अतीयकाले असीइमा, तहियं जास्सिगे अहयं । सत्तरयणी पमाणेण, देवदाणवपणमिओ ॥१॥ तारिसओ चरिमो तित्थयरो, जया तया जंबुदाडिमो। राया भारिया तस्स, सरिया नाम बहुसाया ॥२॥ अबया सह दहएण, धूयत्व बहुउचाइए करे। देवाणं कुलदेवीए, चंदाइबगहाण य ॥३॥ कालकमेण अह जाया, पूया कुपलयलोयणा। बीए तेहिं कर्य नाम, उवणदेवी अहऽन्नया ॥४॥ जाव सा जोवर्ण पत्ता, ताप मुका सयंवरा। परियं तीये वर पवर, णयणाणंदकलालयं या परिणियमेत्तो मजो सोवि भत्ता, 'सामोहं गया पयल तं, सुयणेणं परियणेण यातालियंटवाएणं, दुक्खेर्ण आसासिया ॥६॥ ताहे हा हाऽऽकर्द करेऊन, दिययं सीसं च पिहिउँ। अत्ताणं चोहफेटाहि. पट्टियुं दसदिसासु सा ॥ ७॥ तुहिका बंधुवम्गस्स, पपणेहि तु ससज्झर्स । ठियाऽह कड़वयदिणेमुं. अनया नित्थंकरो ॥८॥ बोहितो भरकमलवणे, केवलनाणदिवायरो। विहरतो आगओ तत्व, उजाणमि समोसदो॥९॥ तस्स बंदणभनीए, संदेउरबलवाहणी। सचिड्ढीए गओ राया, धम्म सोकण पत्राओ॥२२॥ तहि संतेउरसुयधूओ, सुहपरिणामो अमुच्छितो। उम्गं कई तवं घोरं. दुकर अणुचिदुई ॥१॥ अन्नया गणिजोगेहि. सोऽवी ने पवेसिया। असारलिये काउंलपवणदेवी ण पेसिया ॥२॥ सा एतेवि चिटुंती, कीते पक्खिलए। बढणेयं विचिड, सहलमयाण जीवियं ॥३॥ जेणं पेष्ठ चिदयस्स, संपती चिलिया। समं पिषयमंगेसं. निबुई परमं जणे ॥४॥ अहो तिस्थंकरेणऽम्ह, किमई चसुदरिसणं? | पुरिसेस्वीरमंताणं, सपहा चिणिचारियं ॥५॥ता णिदुक्खो सो अबेसि, सुहदुक्खं ण याणई। अग्गी दहणसहाओवि, दिहीविडोण मिड्डहे ॥६॥ अहबा न हि न हि भगवं! तं, आणाविर्तन जनहा। जेण मे दण कीडते, पक्खी पक्युभियं मणं ॥॥ जाया पुरिसाहिलासा मे, ११५३ महानिशीपच्छेदसूच, rarlia-s.
मुनि दीपरतसागर
दीप अनुक्रम [११४२]
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आगम
(३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [६], ------------- उद्देशक ----------- मूलं [२...] +गाथा:||२२८||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
गाथा ||२२८||
जाणं सेवामि मेहर्ण । जसुविणेचि न काय, तं में अब पिचितियं ॥८॥तहा य एत्य जम्मंमि, पुरिसो वाव मणेणवि। णिच्छिनो एत्तियं कालं, सुविणतेचि कहिचिचि ॥९॥ता हाहा हा दुरायारा, पावसीला अहणिया। अहमदाई चितंती, तिस्थयरमासाइमो ॥२३०॥ तित्ययरेणावि अबंत, कई कड्यदं वयं । अइबुद्धरं समादिह, उपगं पोरं सुदुबरं॥१॥ता तिविहण को सक्को, एवं अणुपालेऊण । वायाकम्मसमापरणेपि, गो तस्य मर्म ॥२॥ अहवा चितिजा दुक्स, फीस पुण सुहेण पाता जो मसावि कुसीलो, सकसीलो साकलेसु ॥३॥ ताजं एत्य वर्म सलियं, सहसा तुडिक्सेण मे। आगयं तस्स पच्चित्तं, आलोइत्ता लहुं वरं ॥४॥ सईणं सीलवंतीणं, मजमे पढमा महाऽऽरिया। धुरंमि दीयए रहा, एवं सम्मेवि घूसई ॥५॥ तहाय पायमूली मे, सबोपी बंदए जणो । जहा किल सुजिमजएमिमीए, इति पसिद्धा अहं जगे॥६॥ ताजा आलोयर्ण देमि, ता एवं पपडीभवे । मम भायरो पिया माया, जागिता हुँवि दुक्खिए॥ ७॥ अहवा कदावि पमाएणं, जं मे मणसा विचितिय। तमालोइयं नचा, मज्म वग्गस्स को दुहे? ॥८॥जायेयं चितिउं गच्छे, ताईतीएं कंटगे। कुटियं दसत्ति पाययले,ता णिसत्ता पडुलिया ॥९॥बिते अहो एत्य जम्मंमि, मजा पायमि कटगाण कयाइ सुर्तता कि, संपर्य एत्य होहिई?॥२४॥ अहवा मुणियं तु परमत्थं, जाणगे (मए) अणुमती कया।संघहूंनीए चिप्लीए, सीलं तेण विराहियं ॥१॥ मूबंधकारबहिरंपि, कुई सिडिविडियं विडं। जाप सीलं न संडा, ना देवेहि पुष ॥२॥ कंटग वेव पाए मे, मुत्तमागासगामिय। एएणं जम चुका, तं मे लाभ महतियं ॥३॥ सत्तचि साहाउ पायाले,इत्थी जा मणसाविया सील खंडेई सा णेइ, कई जणणीए मे इम? ॥४॥ ताजंण णिपडई वनं, पंसुचिट्ठी ममोपरि। सयसकर ण कुडहवा, हिययं तं महच्छरगं ॥५॥णवरं जाइ मेयमालोयं, ता लोगा एत्य चिंतिही। जहाऽमुगस्त घृयाए, एवं मणसा अजबसियं ॥६॥ तं नं नहरि पाओगेणं, परक्वएसेणालोइमो। जहा जइ कोइ एयमझवसे, पच्छितं तस्स होइ कि?॥७॥सं चिय सोऊण काहामि, नवेणं तत्य कारण। जं पुण भययाऽऽडह, घोरमचंतनिरं।८॥ तं सर्व सीलचारितं, तारिखं जाच नो कर्य। तिबिहंतिबिहेण णीसाई, ताच पाये णखीयए॥९॥ अहसा परवचएसेणं, आलोएता सर्वचरे। पायच्छितनिमित्तेण, पन्नासं संवच्छरे।।२५०॥छहमदसमदुवालसहि, लयाहिं गइ दस वरिसे। अकयमकारियसंकप्पिएहि. परिभूय(भुज)भिक्खलदेहिं ॥१॥यणगेहिं दुषिवि भुमिएहिं सोलस मासलमणेहि। बीसं आयामायंबिलेहि. आवस्सगं बछडडेती ॥शाचर यजदीणमणसा, जहसा पच्छित्तनिमित्तं। ताहेब गोचमा! चिते. पच्छित्ते कयं तवं.३॥ ता किं तमेषण क(ग)य मे, मणसा अजमवसिय तया? इयरहेवि उ पच्चित्तं, इयरहेब उ मे कयं ।। वा किं ता समायरियं, चिंतेती निहणं गया। उर्ग कई तवं घोर, दुकरंपि चरितु सा ॥५॥ सच्छंदपायच्छितेणे, सकलुसपरिणामवोसो। कुत्विपकम्मा समुपन्ना, बेसाए परिचेडिया॥६॥ खंडोडा णाम घटुगारी, मज्मलहडगवाहिया। विणीया सहवेसाणं, घेरीए य उम्गुणं ॥७॥लावन्नकतिकलियावि, बोडा जाया वहावि सा । अन्नया घरी चिंतेड, मज् घोडाए जारिस ॥८॥ लायन्नं कंती रूपं, नस्थि भुषणेचि तारिस । ता विरंगामि एईए, कन्ने गर्क सहोद्वयं । ९॥ एसा उण जाच चिउप(ज)ने, मम घूर्य कोविणेच्छिही। अहवा हा हाण जुत्तमिणं, घूया तासावि मे गवरं ।।२६०॥ सुविणीया एसावि, उम्पन्नत्य गमिही। ता तह करेमि जह एसा, देसंतरं गयापि य॥१॥ण लमेजा कत्थई बाम, आगच्छा पढिलिया। देदेमि से वसीकरण, गुज्रदेस तु सीडियो ॥२॥ निगहा च से देमि, भमर तेहि नियंतिया।एवं सा जुन्नवेसाजा, मणसा परितप्पिाउं सुने शाता खंडोडावि सिमिणमि, गुज्मं सीडिजंतर्ग। पिच्छा नियडे य दिर्जते, कन्ने नासंचवाहियं ॥४॥ सा सिमिणलं पियारेट, गट्ठा जह कोईण याणइ । कहकहषि परिममंती सा, गामपुरनगरपट्टणे ॥५॥ उम्मासेनं तु संपत्ता, ससंडणाम खेडगं । वस्य वेसमणसरिसविहर दापुत्तस्स सा जुया ॥६॥ परिणीया महिला ताहे, मच्छरेण पजच्छे (ल) वढं । रोसेण कुरकुती सा, जा दियहे केह चिट्ठा॥७॥ निसाए निम्मरं सत्य, संडोडी ताव पिच्छई। बद्धं पाझ्या चुति, दित्तं येनुं समागया ॥८॥ पक्विविऊगं गुज्झते, कालिया जाच हिययय। जाच दुक्लसरकता,बलपुलेवी केसा ॥९॥ता सा पुणो विचितेड, जापजीवंग उ.
डए। तार देमी से दाहार, जेण मे भवसएमुचि ॥२७०॥न सरस पिययम काउं, इणमो पढिसमरति या। वाहे गोयम! आणेउं, पक्षियसालाउ अयमयं ॥१॥तावित फुलिंगमेसंत, जोणीए पपिसतं पुस। एवं दुक्सभरता, तत्व मरिऊन गोयमा! ॥२॥ उपचन्ना चकनहिस्स, महिलारयणतेण सा। इस परंतपुत्तस्स, महिला कालेबरं ॥३॥जी. | नियंपिरोसेण, जेतुं सुमुहुमयं सा। साणकागमावीणं, जाव पसे दिसोदिसि मा वाव रैदापुत्तोवि. बाहिरभूमीउआगो। सो य दोसगुणे गाउं, ९ मणसा वियपिउं। गंतृण सा
हुपामूल, पचना काउ निगुटो॥५॥ अह सो लक्मणदेवीए, जीचो संटोहीयत्तणा । इत्थीरयणं भवित्तार्ण, गोयमा ! छवियं गओ ॥ ६॥ तमेरुयं महाबुक्स, अघोरै दारुणं नहि। पतिकोणे निरयावासे, सुचिरं दुखेण वे ॥७॥ इहागओ समुप्पयो, तिरिवजोणीए गोयमा!। सागतेणाइ मयकाले, विलम्गो मेहुणे तहिं ॥८॥माहिसिएणं को पाओ, विचे ११५४ महानिसीधछेदसूत्र, DHS
मुनि दीपरतसागर
दीप अनुक्रम [११६७]
परिवविऊन गुनाने का कार्क, इणमो पहिसभामा महिलारयणन्तेण सा वासणे गाउँ, वर्ग
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आगम (३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [६], ------------- उद्देशक ----------- मूलं [२...] +गाथा:||२७९|| ------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
मतिमलिया डाला । वेणि
गाथा ||२७९||
जोणी समुच्चाला । तस्य किमिएहि दसपरिसे, सदो मरिऊण गोयमा! ॥९॥ उववन्नो बेसत्ताए, नओवि मरिण गोयमा। एगणं जाच सयपार, आमगम्भेसु पचिओ ॥२८॥ जम्मदरिदस्त गेहमि, माणुसतं समागओ। तस्य दोमासजायस्स, माया पंचत्तमुक्मया ॥१॥ताहे महया किलेसेणं, धनं पाउं घराधरि जीवाचेऊण जणगेण, गोउलिस्स समलिओ ॥२॥ तहियं नियजणणिच्छीरं, आपियमाणे निबंधिउं। (छावए) गोमिओ दुहमाणेणं, जब अंतराइयं ॥३॥ तेणं सो लक्खणजाए, कोडाकोडीभयंतरे। जीयो चन्नमलहमाणो . (बजाता रुजतो नियलिजतो हम्मतो दम्ती) विष्ठोइतो बहिडिओ॥४॥ उववन्नोमणुजोणीए, डागिणितेण गोयमा तस्थ य साणयपालेहि. कीलिङ (या) डिड गया ॥५॥ वो उच्चहिनिहई, न लळू माणुसनणं । जस्थ यसरीरवोसेणं, एमइंतमहिमंडले ॥६॥ जामदजामपडियं वा, जो लवं वेरत्तियं जहिया पंचेच उ घरे गामे, नगरपुरपट्टणेसुचि ॥७॥ तत्थय गोयम ! मण्यत्ते, गारयदुस्खाण सरिसए। अणेगे राणरणेणं, पोरे दुस्सेऽणमोनुर्ण ॥८॥ सो लक्सचदेवीजीचो, सुरोहमाणदोसजी। मरिऊण सत्तमि पुडवि, उपचन्नो खडोहणे ॥९॥ नत्य यतं नारिस दुक्खं, तित्तीसं सागरोचमे। अणुभविकर्ण उचगन्नो, झागोणिनगेण य ॥२९॥ खेतखलगाई चमडेती, मंजंती य चरंति या। सा गोणी बहुजणो. हेहि. मिलिऊणागाहपंकवलए पवेसिया ॥१॥ तत्व सुनी जलोयाहि, लूसिनंती तहेवया कागमादीहिं लुप्पंती, कोहाविद्रा मरेउणं ॥२॥ ताहे विजलवाणे रणे, मरुदेसे दिहीविसो। सप्पो होऊण पंचमगं, पुढवि पुणरवि गओ ॥ ३॥ एवं सो लसणवाए, जीवो गोयमा! चिरं। घणघोरतुक्खसंतनो, चउगइसंसारसागरे ॥ ४॥ नारयतिरियकुमणुएस.आहिडित्ता पुणोविह। होही सेणियजीवस्स, नित्ये पउमस्स खुजिया ॥५॥नत्यय दोहम्गखाणी सा, गामे नियजणणीओविय । गोयम ! दिद्वा न कस्साथि, अभडीय रहदा नहिं भवे ॥६॥ ताहे समजणेहि सा, उपियणिजनिकाउणं । मसिगेस्यपिलिसंगा, खरेरुदा ममाटि॥७॥ गोयमा! ओपरखपवेहि वाइयसरविरसहिंतिम । निदारिहि ण अन्नत्य, गामे यहिहिद पविसि ॥८॥ वाहे फंदफलाहास, रन्नचासे चर्सति या। (वठ्ठा) मझुंदरेण वियणता, णाहीए मज्वरदेसए॥९॥ तओ सधं सरीरं से, भरिजंसुदराण या तेहि तु विलुप्पमाणी सा,
सहघोरदुहाउरा॥३०॥ बियणना पउमतित्थयरं, तप्पएसे समोसद। पेच्छिही जाच ता तीए, (अन्नेसिमवि बहुवाहिवेयणापरिंगयसरीराणं नदेसविहारिभवसनाणं नरनारिंगणाणं नित्ययरदसणा चेव) सबदुवं विणिविही ॥१॥ताहे सो लक्खणजाए, नहियं खुजियत्ति जिजओ। गोयम ! पोरं तवं चरिडं, दुक्लाण अंतं गच्छिही ॥२॥ एसा सा लावणदेवी, जाजगीयत्वदोसओ। गोयम! अणुकलुसचित्तेणं, पत्ता दुस्सपरंपरं ॥ ३॥ जहा णं गोयमा! एसा, लक्षणदेविमाया तहा। सकलुसचिने गीयत्वे,ऽणते पत्ते बुहाबली ॥४॥ नम्हा एयर पियाणित्ता, समभाषेण सवहा। गीयत्थेहिं भवेयत्रं, काय तु (मुविसुद्धसुनिम्मलविमलनी सार्व) निकलुस मनि बेमि ला पणयामरमस्यमाउडुपुडयलणासायवनजयगुरु!। जगनाह! घम्मनित्यपर, भूयमविस्वबियाणग॥६॥ तवसा निछाड्ढकम्मंस, महवइरवियारण। चउकसाय(दाल)निवण, समजगजीववच्छल आपोरंधयारमिच्छत्तनिभिसतमतिमिरणासण। लोगालोगपगासगर, माहवारिनिसुभण ॥८॥ दूरुज्झिबरामदोसमोहमोस सोमसतसोम सिरकर। अतुलियबलविरियमाहप्पय, तिहुयणिकमहायस ॥१॥ नित्यमरूप अणकासम. सासयसुहमुक्खदायमा सवलक्खणसंपुन, विडयणलच्छिविभूसिया ॥३१०॥ भयवं ! परिवाडीए, सर्व किचि कीरए। अथके हुंडिबुडेणं, कजले कत्थ लम्भई?॥१॥ सम्महसणमेगंसि, वितिये जम्मे अणुपए । ततिए सामाइयं जम्मे. चउत्थे पोसहं करे ॥२॥दुद्धरं पंचमे बभं, छठे सचित्तवजणं । एवं सत्ननववसमे, जम्मे उदिट्ठमाइयं ॥३॥ चित्रकारसमे जम्मे, समणावगुणा भये। एयाएपरिवाडीए, संजयं किंन अवसि?॥ पुण सोऊण मइविगलो, बालयणो (उविषद)। केरिसस्त व सदं उगइ. जउइसिर्ड नासे दिसोदिसि ॥५॥ नमीरिसं संजमं नाह!, सुदाइ लिया उसुमालया। सोऊणपि नेच्छंति,नाणुढींसु कहं पुण? ॥६॥ गोयम ! तित्यंकरे मोनु, अलो दाललिओ जगे। जाइ अस्थि कोइना भणउ, अहाणं सुकुमालओ?॥ जाणं-गम्भस्थापि देविंदो, अमयमंगुहय कर्य। आहार देइ भत्तीए, संचवं सपर्य करे।॥८॥ देवलोगचुए सते, कम्मा से ण जहिं घरे । अभिजाएनि नहिं सय, हिर वणबुडी परिस्साई ॥९॥गम्भावनाण नदेसे. ईई रोगा य सनुणो। अणुभावेण खयं अंति, जायमिताण नसणे ॥३२०॥ आगंपियासणा चउरो, देवसंघा महीहरे। अभिसेय सविइबीए. काउंसत्वामे गया ॥१॥ अहो नव कती, दिती रूर्व अणोवमं । जिणाणं जारिर्स पायगुडगं णतं इहं॥२॥ ससुदेवालोगेसु, सबदेवाण मेलिउँ । कोडाकोडिगुणं कार्ड, जावि उपहालिजए॥३॥ अहजे अमरपरिश्महिया, नाणत्तयसमनिया । कलाकलाबनिलया, जगमणाणंदकारया ॥४॥ सयणवपरियारा, देवदाणवपूर्वया । पणायणपूरियासा, भुवणुत्तममुहालया ॥५॥ भोगिस्सरिय रायसिरि, गोयमा! तं सपजियं । जा दियहा केई मुंजंति, साय ओहीए जाणि ॥६॥ खणभंगुरं अहो एवं, लच्छी पावविवढणी । ता जा
तावि किं अम्हे, चारित नाणुचिद्विमो? ॥७॥ जावेरिस मणपरिणाम, तान लोगंतिगा सुरा। मुणिर्ड भर्णति जगजीबहिययं तित्वं पचत्तिहा ॥८॥ताहे वोसङ्कयत्तदेहा, विहां सब११५५महानिशीथच्छेदमूर्ख, -5
अनि दीपरागर
दीप
अनुक्रम [१२१८]
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आगम
(३९)
प्रत सूत्रांक
[२]
गाथा ||३२९||
दीप
अनुक्रम
[१२६८]
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं )
अध्ययन [ ६ ], उद्देशक [-], मूलं [२...] + गाथाः || ३२९|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
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जगुत्तमं । गोयमा तमिव परिथिया, जं इंदाणवि दुहं ॥ ९॥ नीलंगा उ कई पोरं इदुकरे व भुयणस्सवि उक्कडं समुप्पार्य चरंति ते ॥ ३३० ॥ जे पुण खरहरफुडसिरे, एमजन्मसु सिणो। तेलियानो विहियं ॥ १ ॥ गोयम महुबिंदुस्सेव, जावता सुहं मरणवीन संप करं यत् ॥२॥ अहवा गोयम पञ्चकसं, पेच्छय जारिस नरा दुलह जं निमुनिज्ञान कोद्रवी ॥ ३ ॥ कई कारेंति मासलि हालियोवाल दासलं तह पेसतं, गोड सिप्पे बहु ॥ ४॥ अलग्गं किसिपाणि, पाणथायकिलेसि दत्तिणं केई, कम्म काउण घराधारं ॥ ५॥ असा विगोवेर्ड, डिपिडिणिते अ हिंडिर्ड नग्गुम्पाटकिलेसेणं, जो समजति परिह (हिरणं ॥ ६॥ जरजुन्नस कहकवि ओढणं जा अना किरिमो फता तमचि परिह (पहि) रणं ॥ ॥ तहावि गोयमा बुझ, फुडविडपरिफुर्ट एसि माउ, अनंतरं भणियाग करसई ॥ ८ ॥ लो डोयाचारं च चिचा सवनकिवं तहा भोगोपभोगं दानं च मोनूर्ण कदसणासणं ॥ ९ ॥ चापि गुप्पि सुदरं खिजिक अभिसं काम कामणीकाओ, अ] पाय विसोमं ॥ ३४० ॥ कवह कर्हिचि काले, लक्ख कोटि च मेलिडं जा एमिच्छामई पुन्ना, बीया णो संपनए ॥ १ एरिस लिय सुकुमाल गोयमा ! धम्मारंभंमि संपद, फम्मारंभे न पडे ॥२॥ जेणं जस्स मुद्दे कपलं गंडी जन्नेहि घनए भूमीएन (ठ) पाए पायं इत्बीलक्स कीटए ॥ ३॥ तस्साचिणं भवे इच्छा, अन्नं सोऊ सारियं समुदहामि तं देर्स, अह सो आणं पच्छिउ ॥ ४ ॥ साममेवपयाणाई, अह सो सहसा परंजितं नस्स साहसला. गूढचरिएण पथ ॥५॥ एागी कम्पटीओ, दुग्गा र गिरी सरी चिता बहुकाले, दुक्खदुक्लं पत्तो नहिं ॥ ६ ॥ दुक्ख सुक्खामकंठो सो जा भ्रमडे परापरं जायंतो मम्माई, तत्यज कवि गजए ॥ ७॥ ता जीतो चुके अह पुन्नेहिं समुदरे तओ गं परिवत्तिय देहं तारिखो स मिहे विसे ॥ ८ ॥ को तं सि परियणो सन्ने?, ताहे सो असणाइसु नियचरियं पायडेऊन, जो मण ॥ ९॥ सब (जाण) यामेण खंडाखंडेण जुज्झितं अह तं नरिदं निजिणि अहवा तेण पराजिए २५०॥ बहुपहारगलतरुहिरंगो गयतुरयाउ (ह) अहोमुहो। विहरणभूमीए. गोयमा सो गया तथा ॥१॥ तस्य सुकुमाल कहिं गए? जो केवलं सहत्येणं, अहोभागं च घोषितं ॥ २॥ निच्छंती पायं विडं, भूमीए न कयाइवि एरिसोऽवी स लिओ एात्वागजी ॥ ३ ॥ जइ भन्ने धम्मचिट्ठे ता परिमण न सकियो। तो गोयमा अहन्नाणं, पावकम्माण पाणिणं ॥ ४ ॥ धम्माणमि मई, न कयावि भविस्सए। एएस इमो धम्मो इकजंमीण भास ॥ ५ ॥ जहा संतपियंताणं सर्व अम्हाण होहि ता जो जमिच्छेत तस्स, जइ अनुकूल पवेयए ॥ ६ ॥ ता वयनियमविणावि, मोक्खं इच्छति पाणी एए एते णरुति एरिस चिय कय ॥ ॥ वरं ण मोक्सो एपाणं मुसावार्य व आवई अर्थच रागं दोस च मोहं च मयच्छंदानुवन्ति ॥ ८ ॥ किराणं णो भू णी भवेश गोयमा मुसावार्य न भासते गोयमा तिथंकरे ॥ ९ ॥ जेण तु केवलना, सिक्ख जगं भूयं न भविस्सं च पुन्नं पार्थ तब य ॥ ३६० ॥ किचितिसुवि लोएस पाय पाया अनि उदमुहं सम् एजा अहोमुहं ॥ १ ॥ णूनं तित्ययरम्हभणियं पयर्ण होज न अन्ना नाणं दंसणचारिनं नवं घोरं सदुकरं ॥ २ ॥ सोग्गहमग्गो फुड एस. पती जद्दि अन्ना न तित्थयरा, वाया माणसा व कम्मुणा ॥३॥ भणति जइचि भुवणम्स, पल वनक्ख हि सजगजीवपाणयाण केवलं अणुकंपाए तियरा धम्मं भाति अपिहं ॥ ४ ॥ जेणं तु समणुचिर्ण, दोहम्मदुक्ख दारिदरोगसोगगहन ण भविचा उ पिइएर्ण संताप नहीं ॥५॥ भय णो एरिस मणिमो जहद अणुवस्य गवरमेयं तु पृच्छा, जो सके स तं करे? ॥६॥ गोयमा पेरिसं जुनं लणं मणसा विचिति अह जड़ एवं भरे णार्थ, तावं पारे हर्ज नलं ॥ ७ ॥ घरे खंडराए, एको सकेट साइयं अनो समसमाई, अनो रमिण एरिथर्व ॥ ८ ॥ अो एपिनो सके, अन्नो जोएड पास अन्नो चटपटमुहे एस (अन्नो एपि) भणिण ण सकुणोई ॥ ९॥ चोरि जारि अन्नो, अन्नो किचि सकुलो भोतुं मनुं सरिए सके चिनु मंच ॥ ३७० ॥ मिच्छामि दुकमियं हेत. एरिस नो भणामहं गोयमा अन्नपि भणसि, संपितु कमहं ॥१॥ एत्य जम्मे न कोई, कसि संजम त ज णो सक कार्ड जे, तहवि सोगइपिवासि ॥ २ ॥ नियमं पक्खिी रस्स एवं उपास्यहरणस्सेगियं दसियं, एसियन प (रि) धारिये ॥ ३॥ (सकुणी) एपि न जावजीच पालेडं ता इमस्सवी गोयमा तुम्बुदीए, सिद्धि परं ॥ ४॥ मंडविया भवेयचं, दुकरकारि भवेत्तु य णवरं एयारितं भवियं किम गोपमा पर्व ॥४५॥ पुणो तं एवं मी 'नित्यकरे पन्नाणी ससुरासुर जगपुए निच्छिसिज्झि वितमि जम्मे न अन्नए जम्मे ॥६॥ ( तहाचि) अणिमूहित्ता बलं चिरियं पुरिसधारपरकर्म उम्मे कई तवं घोरं दुकरं अणुचरंति ते ॥ ७॥ ता अन्नसुनि सने पडगसार दुक्खभीएस (जं जब तित्ययरा भणति) तहेव समजुडेय, गोयम सर्व जहट्टियं ॥ ८॥ जे पुण गोयम ते भणियं परिवाडीए कीरह अपके इंटि क लए? ॥ ९ ॥ तत्ववि गोयम दितं महासमुमि कच्छमो अन्नेसि मगरमादीर्ण, संघट्टा भी उपहओ ॥ ३८० ॥ मुनिम्बुड करेमाणो (सबलीसोम्मली पेलापेलीए कत्थई (२८९) ११५६] महानिद मुनि दीपरनसागर
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आगम
(३९)
प्रत सूत्रांक
[२]
गाथा
||328||
दीप
अनुक्रम
[१३२०]
Pratap
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं )
अध्ययन [ ६ ], • उद्देशक [-], मूलं [२...] + गाथाः ||३८|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित .......आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र -
[६] "महानिशीथ” मूलं
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अत्र षष्ठं अध्ययनं समाप्तं
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(उडी रिज्जतो) तो णासंतो धावतो, फ्लायंतो दिसोदिसि ॥ १ ॥ उच्छलं पच्छा ही बहुविहं तहि सहतो घाममलहंतो खणनिमिसंपि कत्थई ॥ २ ॥ कहकवि दुक्खसंतत्तो, गुबहुकालेहि तं जलं । अवगाहंतो गज उवरिं, परमिणीसंडपणं ॥ ३ ॥ छिट्ट महया किलेसे लहु ता तत्थ पेच्छई गहनक्सत्तपरियरियं कोमुद्रचंदं खहेऽमले ॥ ४॥ दिष्यंतकु वलयकल्हारं कुमुयसयवलवणफई। कुरुलियते हंसकारंडे, चकवाए सुणेइ ॥५॥ जमदि सत्तसुवि साहासु (अम्भुजं चंदमंडल) । तं दद विहिओ वर्ण, चिंता एवं जहा होही ॥ ६ ॥ एयं तं समताऽहं (बंधवाणं पमोययं) बंधवाणं पर्यसमो बहुकाले गयेसे ते घेण समागज ॥ ७॥ पणपोरंधयाररयणीए मदवन्हि चउदसीहिं तु ण पच्छे जाय तं रिद्धिं बहुकाल निहालिरं ॥ ८ ॥ पुण कच्छभो न जह उ. तहापि तं रिद्धिं न पेच्छ एवं चउगईभवगणे, दुइले माणुसत्तणे ॥ ९ ॥ अहिंसालक्लणं धम्मं, लहिणं जो पमायई । सो पुण बहुभ चलक्ले, दुक्खेहि माणुसणं, निलम्भई पम्मं तं रिद्धि कच्छमो जहा ॥ ३९० ॥ दिवाई दो व तिथि व अदाणं होई जं तु लग्गेण सहायरेण तस्सवि, संबल लेह पविसंत ॥ १ ॥ जो पुणदीपवासो चुलसीई जोणिलक्खनियमेणं तस्स तबसीलमइयं संवयं किं न चिंतेह ? ॥ २॥ जहर पहरे दियहे मासे संच्छरे य बोलेति । नहरे गोयम! जाण दुस्खे आसचयं मरणं ॥ ३ ॥ जस्स न नजाइ कालं न य वेला नेय दियहपरिमाणं नाचि नत्थि कोइवि जग॑मि अजरामरो एल्वं ॥ ४ ॥ पानो पमायवसओ जीवो संसारकजमुज्जुत्तो। दुफ्लेहि न निश्विन्नो सुक्खेहि न गोयमा तिप्पे ॥ ५॥ जीवेण जाणि विसजियाणि जाईसएस देहाणि येवेहि तज संपलंपिणं होत पहिल्यं ॥ ६ ॥ नदंतमुदभमुहक्विकेस जीवेण विषमुकेनि तेमुवि हविज कुलसेलमेरुगिरिसन्निभे कूडे ॥ ७॥ हिमवंत मलमंदरदीवोदहिधरणिसरिसरासीओ अहिवयरो आहारी जीवेणाहारिओ अनंतहुनो ॥ ८ ॥ गुरुदुक्तस्स अंनिवारण जं जलं गलियं तं जगतलाईसमुहमा गवि होला ॥ ९ ॥ आवीयं पणछीरं सागरसलिला बहुचरं होता। संसारंमि अनंते अबलाजोणी एकाए ॥४०० | सत्ताहरिवनकुहियसाणजोगीए मज्झदेसंमि किमियत्तण केवलएण जाणि मुखाणि देहाणि ॥ १ ॥ तेसि सत्तमपुटीए सिद्धिखेनं च या उक्कुरु । चोदसर लोग व अनंतभागेणवि भरेगा ॥ २ ॥ पत्ते य कामभोगे कालम इह सवभोगे अप्पू चि मन जीवो तहनिय विसयसोक्खं ॥ ३ ॥ जह कच्छुतो कच्छ्रे कंडुयमाणो दुहं मुणइ सोक्खं मोहाउरा मथुस्सा तह कामदुहं गृहं विति ॥ ४ ॥ जाणंति अणुभवंति य जम्मजरामरणसंभवे दुक्खे न य विसएमु विरजति (गोयमा) दुइगमण पत्थिए जीवे ॥ ५ ॥ महाणं पभवो महागही सदोपायट्टी कामग्गहो दुरप्पा जेणऽभिभूयं जगं स (तस्स बर्स जे गया पाणी ) ॥ ६ ॥ जाति जहा भोगिदिसपया हमेव धम्मफलं तहवि दढमूढहियए पार्क काऊण दोग्ाई जति ॥ ७ ॥ चबइ खगेण जीवो पित्तानलाउसिंलो मेहि उज्जमह मा विसीयह तस्तमजोगो इमो दुल्हो ॥ ८॥ पंचिदिवत्तणं माणुस आयरिए जणे सुकूलं साहसमागम गुणणासदारोगा ॥९॥ हिसिविमूइयपाणियसत्यग्निसंयमेहिच देहेतरसंक्रमण करेह जीवो मुहतेण ॥ ४१० ॥ जावा सावसेस जा
अथ पवसाओ ताव करेज अप्पहियं मा तपिहहा पुणो पच्छा ॥ १ ॥ सुरधविखणदिनसंझाणुरागसिमिणसमं देहं इति तु विल मम्मय व जलभरियं ॥ २ ॥ इय जाव ण चुकसि एरिसस्स सणभंगुरस्स देहस्स उगं करूं पोरं चरतु वर्ष नत्थि परिवादी ॥ ३ ॥ गोयमोनि 'नाससहस्संपि जई काणं संजमंड अंकिलभाव नत्रि सुज्हाइ कंडरी ॥ ४ ॥ अप्येव काले के जहागहियसीलसामना साहंति निययक पॉडरियमहारिसिव जहा ॥ ५॥ ण अ संसारमि गृहं जाइजरामरणदुक्खमहियस्स । जीवस अस्थि जम्हा तम्हा मोक्यो उवाएओ ॥ ४१६ ॥ सबपयारेहिं सहा सबभावभावतरेहिं णं गोयमोति बेमि । महानिसीहसुयक्त्वंचस्स उमज्झणं गीयत्यववहारं नाम सम ६ ॥ भयवं ता एबनाएणं, जं भणियं आसि मे तुमं (जहा) परिवाडीए (त) किं न अक्खसि पायच्छितं तत्य मज्झवी ॥ १ ॥ हवइ गोयम पच्छिलं, जइ तुमं तमालबसि। नवरं धम्मनियारी ते कओ सुविधारिओ कुडो ॥ २ ॥ ण होइ तस्स पच्छिलं पुणरचि पुच्छे गोयमा संदेहं जाय देहत्वं मिच्छतं नाव निष्ठयं ॥ ३ ॥ मिच्छतेवि अभिभूए, तित्ययरस्स विभासियं । वयण लंघितु विपीय वाताणं पविसंति ॥ ४ ॥ (पोस्तमतिमिरबद्दलधारं पाया) व सुविधारि कार्ड, नित्ययरा सयमेव य भनिनं जहा चेव, गोयमा समए ॥ ५ ॥ अयेगे गोयमा पाणी, जे पवजिय जहा तहा अविहीए वह परे धम्मं, जह संसारा ण मुखए ॥ ६ ॥ से भययं कमरे में से विहसीलोगो ?, गोयमा इमे णं से विहीसिलोगो, जहा चिद परिक्रमणं, जीवाइतत्तसम्भावं समिईदियदमगुत्ती कसायनिग्गणमुनओगं ॥ ७ ॥ नाऊण सो बीसत्यो सामाचार किया लोयनीसो आगन्या परमसंविग्गो ॥ ८ ॥ जम्मजरमरणभीओ पडगइसंसारकम्मदहना पइदियहं हियएणं एवं अणवस्य सायंतो ॥ ९॥ जरमरणमयणपरे रोगकिलेसाइबहुहितरंगे कम्मडुकसायागाहगहिरमयजलहिमसंमि ॥१०॥ भमिहामि भट्टसम्मत्तनाणचारितलवरपोज कालं अणोरपारं अंतं दुक्खाणमलमंतो ॥ १ ॥ ता कइया सो दियो जत्थाहं सनु११५७ महानिद मुनि दीपालसागर
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अत्र सप्तमं अध्ययनं/(चूलिका-१)- “एकांतनिर्जरा” आरब्धः
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आगम
(३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [१] +गाथा:||१२||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
Maray
प्रत
A
RE
गाथा ||१२||
मित्तलमपकलो।नीसंगो विहरिस्स मुहमाणनिरंतरों पुणाऽभपढें ॥२॥ एवं चिरचिंतियभिमुहमणोरहोगसंपत्तिहरिसमाइसिजो। भत्तिभरनिभरोणयरोमंचचपलदयंगो ॥३॥ सीलगसहस्सहारसह धरणे समोच्छवक्खंयो। छत्तीसायाकंठनिश्चिासेसमिच्छत्तो ॥४॥ पढिकने पवणं विमुक्कमयमाणमच्छरामरिसो। निम्ममनिरहंकारो चिहिणे गोयमा विहरे ॥५॥ विहगड्यापटिबडो उजुत्तो नाणसणचरिते । नीसंगो घोरपरिसहोवसम्माई पजिणंतो ॥६॥ उम्पअभिग्गहपदिमाइ रागदोसेहिं दूरतरमुको । कदहशाणवियजिजो य विगहासु अ असनो ॥ ७॥ जो चंदणेण बाहुं आलिंपह वासिणा व जो तच्छे। संधुगड जो अनिवइ समभावो हुज दुष्टंपि॥१८॥ एवं अणिगृहियकर विरिअरिसकारपरकमो सममणतणममिलिट्ठकंचणो (केका) परिचत्तकललपुत्तहिसवणमेतबंधषधणधन्नसुवन्नहिरण्णमणिरयणसारभंडारी अचंतपरमयेरम्गवासणाजणियपवरमहज्जावसायपरमधम्मसदापरो अकिलिट्टनिकलुसनदीणमाणसो पय(क्य)नियमनाणचारित्ततवाइसपलभुषणिकमंगलअहिंसालक्षणसंताइदसविहधम्माणुहाणेकनबद्धलक्सो समावस्सगतकालकरणसज्झायज्माणमाउ. नो संस्खाईयअणेगकसिणसंजमपएसु जविसलिओ संजयविश्यपडिहयपबक्सायपाचकम्मो अणियाणो मायामोसविजिओ साह वा साहुणी वा एवंगुणकलिओ जा कहषि पमायदोसणं असई कहिचि कथइ वायाइ वा मणसाइ वा कायेणे या तिकरणषिसुद्धीए सबभावंतरहिं व संजममायरमाणो जसंजमेणं उलेजा नस्स थे चिसोहिपयं पायच्छित्तमेव, नेणं पायच्छिनेणं गोयमा तस्स निमुदि उपदिसिजा, न अन्नहन्ति, तत्व ण जे जेसुं ठाणेमुं जत्थ जत्थ जावइयं पठितं तमेष निकियं पहिलं भन्नाह से भय ! केगमद्वेणं भन्नइ जहाणं तमेव निहकिर्य भन्ना, गोषमा! अर्णतरार्णवरकमेणं इणमो पच्छित्तमुत्ता, अणेगे भासत्ता पउगासंसारचारगाओ बडपुट्ठनिकाइयधिमोक्खधोरपारद्वकम्मनिबढाई संचुन्निऊण अचिरा चिमुचिहिति, अन्नंच-इणमो पच्छित्तसुतं अणेगगुणगणाइन्नस्स ददश्वचरितस्स एगले जोगरसेप विवक्खिए पएले चउकन्नं पन्नवेया, नहा य जस्स जापइएणं पायच्छिणं परमविसोही भवेजा ने तस्स गं अणुपत्तणाविरहिएण धम्मेकरसिएहिं वयणेहिं जहद्वियं अणूचाहिये नावइयं च पायच्छिन्नं पयजा , एएणं अटेणं एवं बुबइ जहा र्ण गोयमा! तमेव निकिर्य पायच्छित्तं भनाइ । १ । से भयवं! कइविहं पायच्छित्तं समुवइ ?, गोयमा ! दसविहं पायच्छित्तं उपइहतंच अणेगहा जाच गं पारंचिए। से भय ! केवइयं कालं जाय इमस्स णं पायच्छित्तमुत्तस्साणुहाणं वहिही?. गोयमा ! जापर्ण कफी णामे रायाणे निर्ण गछिय, एकजिणाययणमंडियं नसुहं सिरिपने अणगारे, भय ! उइट पुच्छा, गोयमा ! उद्दं न केई पुष्णभागे होहि जसस गं इणमो मुयसंध उवासेजा।३। से भयर्ष ! केवइयाई पायच्छिनस्स ण पयाई?, गोयमा ! संखाइयाई पायपिछलस पयाई से भय ! तेसि ण संखाइयाण पायश्चित्तपयाणं किं तं पढमं पायच्छित्तस्स णं पर्य?, गोयमा! पइदिणकिरिब, से भय ! किले पाइदिणकिरिय?, गोयमा ! जमशुखमयाहन्निसा पाणोचरम जावाणुढेयवाणि संलेवाणि आवस्सगाणि, से भयचं ! केण अद्वेणं एवं बुबह जहा णं आवस्सगाणि ?, गोयमा! असेसकसिणढकम्मक्खयकारिउत्तम सम्मईसणनाणचारिशचंतपोरवीरगकढ़एदुसरतवसाहपट्टा सुपरूविगंति नियनियविमनुदिपरिमिएर्ण कालसमए पर्यपयेणाहन्निसाणुसमयमाजम्मं अवस्समेच तिस्थायराइसु कीरति जणुडिजति उपइसिजति परुपिजति पन्नविजति समय, एएणं अद्वेणं एवं बुबह गोयमा ! जहाणे आपस्सगाई, लेसि च णं गोयमा ! जे भिक्खू कालादकमेणं बेलाइकमेणं समयाइकमेणं अलसायमाणे अणोवउत्तपमते अविहीए अन्नेसि च असई उपायमाणो अन्नयरमावस्सर्ग पमाइय संतेणं बलपीरिएणं सातलेहडनाए आलंवर्ण पा किचि घेतृणं चिराइयं पउरिय णो णं जहुत्तयाल समणुढेजा से णं गोयमा ! महापायच्चित्ती भवेना ।४ा से भया ! किन बिडयं पायश्चित्तस्स णं पर्य?, गोषमाबीयं तदय चउत्यं पंचम जाब मं संखाइया पायच्छित्तस्स गं पयाई तारणं एत्यं चेच पदमपायच्छित्तपए अंतरोवगयाई समणुपिंदा, से भय ! केणं अटेणं एवं बुखद?, गोयमा! जजोणं सत्रावस्सगकालाणुपेही भिक्षु णं रोहझाणरागदोसकसायगारवममकाराइसणं अणेगपमायालंबणेमुं च सबभावभावतरंतरेहिं अचंतविष्पमुको भवेत्रा, केवलंतुनाणदसणचारित्त नबोकम्मसमायज्झामसम्मानसाणे(स्सगे गुजचंतअणिगृहियबलपीरियपरकमे सम्म अनिरमेजा, जाच गं सद्धम्माचस्सगेसुं अभिरमेजा गाव गं सुसंपुडासपदारे हवेजा, जाव णं हवेजा ताव । सजीववीरिएणं अणाइभवगणसंचियानिकम्मरासीए एगंतभिट्ठवणेकत्यदलालो अणुक्रमेण निरुबजोगी भवेत्ताणं निदइडासेसकम्मणो विमुकजाइजरामरणचडगइसंसारपास. बंधणे व लबडक्सविमोक्सनेलोकसिहरनिवासी मचेजा, एएणं अडेणं गोषमा ! एवं बुबह जहा णं एवं चेच पदमपए अवसेसाई पायच्छिन्नपया अंतरोधगयाई समणुविंदा ।५।से भय ! कयरे वे आवस्सगे?, गोयमा! गं चिइवंदणादो, से भयवं! कम्हि आवस्सगे असई पमायदोसेणं कालाइकमिएका चेलाहकमिए बा समयातिकमिए वा अणोवउत्तपमत्तेहि अविहीए या समगुडिएछ बा जो णं जहुत्यालं विहीए सम्म अणुद्विए वा अर्सपडि(डिएर वा वित्यपटिएड वा अकएइ वा पमाएइ वा केवइयं पायपिछत्तमुवइसेना, गोयमा ! ११५८ महानिशीषपठेवसूर्ण Garault-da
पदम पायदि
इष्टदकारतावमाणि आवरसगाणि
दीप अनुक्रम [१३६८]
मुशिदीपरळसागर
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आगम
(३९)
प्रत सूत्रांक
[६]
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गाथा ||१८||
दीप
अनुक्रम [१३८० ]
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं )
अध्ययन [ ७/ चूलिका-१], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ....
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मूलं [६] + गाथा ||१८|| ...आगमसूत्र - [ ३९ ], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
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जे केई मिक् या भिक्खुणी वा संजयविश्यपटियपचरखायपायकम्मे दिखादियाप्पभिईओ अणुदियहं जावजीवाभिग्गहेणं सुवसत्ये भतिनिग्भरे जत्तविहीए सुत्तस्थमणुसरमाणो अणण्णमाणसे गग्गचित्ते तम्मायमाणसमुह झवसाए धयहिं ण तेकालियं चेइए वंदेखा तस्स णं एगाए बाराए खवर्ण पायच्छित उपइसेजा बीयाए छे तहयाए उबडावर्ण, अविए चेहयाई दे तो पारंचियं, जओ अविहीए बेहयाई वंदेमाणो अन्नेसिं असद संजईइकाऊ, जो उण हरियाणि वा बीमाणि वा पुण्काणि वा फलानि वा पूयाए वा महिमाए वा सोनडाए या संपद्वेज या संपावेज या छिंदिन वा छिंदावेल या संघट्टितानि या छिंदिजंताणि वा परेहिं समणजाणेज या एएसचे उपायणं समणं चत्वं आयंबिल एकास निगइयं गादागादमेदेणं जहासंवेगं गेयं ६ जेणं चेइए वंदेमाणस्स वा संणेमाणस्स वा पंचप्पयारं सज्झायं वा परेमाणस्स वा विग्यं करेजा या कारेश या कीरतं वा परेहिं समजाज वा से तस्स एए दुवाल छड एकासणगं कारणिगस्स, निकारणिगे अनंदे संच्छर जाच पारंचियं काऊ उबवेजा 31 जे गं पडिकमणं नो पटक मेजा से णं तस्सोवहावणं निदेसेजा, वटुपडिकमणं खमर्ण, सुखासुखीए अणोवउत्तपमत्तो या पडिक्कमण करेजा दुवाल, पडिक्कमणकालस्स बुक्क अकाले पडिक्कमण करेजा च काले वा पक्किम णो करेजा चटर्थ, संचारगओ वा संथारगोवविडो वा पडिक्कमणं करेजा दुवालसमं, मंडलीए पक्किमेजा उपद्वावणं, फुसीलेहिं समं पडिक्कमणं करेजा उपद्वावणं परिभवंभरवाएहि समं पडिकमेजा पारंचियं सस्स समणसंघस्स तिविहतिविहेण लमनमरिसामण अकाऊण परिक्रमण करेला उपावर्ण, पर्यपणाविनामेलियं पडिकमणमुतं पण परहेजा पडत्यं पडिमणं ण काऊ संचारगेइ वा फलहगे वा तुला समर्थ दिया तुयहेजा दुवाल, पडिकमणं कार्ड गुरुपामूलं सहि संदिताचेत्ता व पप्येह पडत्वं वसहिं पचुप्पेहिणं ण संपवेला उ बसहिं असंपवेत्ताणं स्वहरणं पप्पेहना पुरिमदं स्यहरणं निहीए पशुप्पेहित्ताणं गुरुपामूल मुद्दांत अपचुहिय उपहिं दिसावेजा पुरिव (म), असंदेसावियं उबहिं पशुप्पेहिला पुरिव, अणुवडत्तो उवहिं वा कसहिं वा पशुप्पेहे दुवाल, अविहीए सहि वा अन्य वा भडतोचगरण जायं किंचि अणोवउत्तपमत्ती पप्पेहिजा दुचालस, वसहिं वा उचहिं वा मंदमत्तोचगरणं वा अपटिलेहियं वा दुप्पटिलेहियं वा परिभुजेजा दुबालसं वसहि वा उपि वाटतोरणं वा परविहिजा उपाय एवं वसहिं उबहिं पच्युप्पेहित्ताणं जम्ही पएसे संचारयं जम्ही उपरसे उपहीए पप्युप्पेहणं कयं तं वामं णिउणं ह दंडापुंडणगेण वा स्वहरणेण वा साहरेत्ताणं तं च कयवरं पच्चुप्पेहित्तु उप्पइयाउन पडिगाहिजा दुवाल, छप्पइयाओ पढिगाहित्ताणं तं च कथवरं परिवेऊन ईरियं ण पटिकमेजा उत्थं पहियं कयवरं परिवेजा उपहायणं, जइ णं उप्पइयाओ हवेजा जहा णं नत्थि तो दुवाल एवं सहिं उबहिं पच्युप्पेहिऊणं समाहिं खइरोड पण परिपेला उत् अणुए सूरिए समाहि वा परोल वा परिवेजा आदि हरियकायसंसते वा वीकायसंसते वा नसायचेइंदियाईहिं वा संसने पंडिले समाहिं वा लहरोहडगं वा परिवे अक्षरं वा उच्चाराइयंवा बोसिरिजा पुरिम एकासणगायंबिलमहकमेणं जइ णं णो उदवणं संभवेजा, अहा णं उदवणासंभाविए नओ खमणं तं च पंडिलं पुणरवि पडिजागरिऊणं नीकं काऊ पुणरवि आलोएत्ताणं जहाजोगं पायच्छित न परिमाहिजा तो उपद्वावणं, समाहिं परिमाणो सामारिएर्ण संचिक्लीयए संचिक्लीयमाणो वा परिजा प अपच्युप्पेयिथंडिले किंपि पोसिला तो उडावणं, एवं वसहिं उवहिं पशुप्ताणं समाहिं खइरोगं च परद्ववेत्ताणं एगग्गमानतो आउतो विहीए मुत्तस्थमणुसरे मानो ईरिय न परिक्रमेजा एकासन, मुहणतगेणं विना ईरियं परिकमेना बंद पडकमणं वा करेजा जंभाएज वा सज्झायं वा करेजा बायणादी सवत्व पुरिम एवं च ईरियं पडिकमित्तार्ण कुमालपोप्पनविकि अदिदं दंडापुच्हणगेणं वसनि पमजे एकासणगं, बोहारियाए वा बसहिं बोहारिया उपद्वावणं, बसहीए दंडापुंग दाऊ करंण परिवेज्जा उत्थं, अपमुपेयिववरं परिवेजा दुवाल, जइ णं उप्पइयाउन हवेला अहवा णं हवेजा तो गं उवहावणं, बसहीसंठियं कयवरं पशुप्पेमा जाओ छप्पइयाओ तत्व अन्नेसिणं २ समुचिणिय २ पडिगाहिया ताओ जइ णं ण सति भिक्खूर्ण संचिमणं देना तओ एकासणर्ग, जइ सयमेव अन्तणा ताओ छप्पयाओ पडिग्गाहिजा अह संविभइ दिना ण म अण्णष्णो पहिगाहेजा तो पारंचियं एवं वसहि दंडापुंणगेणं विहीए य पमजिक कपवरं पप्पेहेऊणं छप्पइयाओ संविभातिऊणं च तं कयवरं ण परिवेला परिहवित्ताणं च सम्म विहीए अबतोवउत्तएगम्यमाणसेण पर्यपणं तु सुत्तस्योभयं सरमाणे जेणं भिक्खुण ईरियं पडिक्कमेजा तस्स अ आयंबिलं समणं पच्छि निदेसेजा एवं तु कमिजा णं गोयमा किंचूणगं दिवदं पडिगं पुष्ठण्डिगस्स णं पढमजामस्स, एयावसरम्ही उ गोधमा जे गुरूणं पुरो विहीए सज्झायं संदिसाचिऊर्ण गाचि सुयाउने दर्द धीइए घडिगोणपदमपोरिसी जानजीनाभिमाणं अणुदियहं अपुत्रणाणगहणं न करेया तस्स दुबालसमं पच्छितं निदेसेजा, अनाणाहिजणस्स असई ११५९ महानिशीथच्छेद मुति दीपरत्नसागर
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आगम
(३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक [-1, ------- मूलं [८] +गाथा:||१८||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
गाथा
||१८||
जमेव पुमाहिनियंत सुतस्थोनयमणुसरमाणो एगग्गमाणसे न परावतेजा भत्तित्वीरायतकरजणवयाइविचित्तविगहामु अणं अभिरमेना अर्वदणिज्जे, जेसि च णं पुवाहीयं सुतं पत्येव अउव्यनापामणस्सर्ग असंभवो बातेसिमवि घडिगुणपदमपोरिसी पंचमंगल पुणो २ परावतणीयं, जहाणे णो पराबत्तिया निगई कुम्बीया वा निसामिया वा सेणं अर्वदे. एवं पटिगुणगाए पदमपोरिसीए जे मिक्स एगम्गचित्तो सज्झार्य काऊगं नजो पत्नगमत्तगकाढाई मंडोवरणस्स गं अपस्सित्ताउलो बिहीए पश्यपहणं ण करेजा तस्स र्ण चउत्पच्छितं निदिसेजा, भिक्युसदो पत्तिसहो जइमे सास्य पदपर्य जोजणीए, जाइ णं मंडोवगरणं ण मुंजीया अहाणं परिभुजे दुवालसं, एवं जनता पढमपोरिसी, बीयपोरसीए अत्यगहणं न करेजा पुरिमइद, जहणं वाखाणस्स ण अभावो. अहा गं नक्खाणं अत्वेचन ग सुणेजा जनादे, बासागस्सासंभवे कालवेले जाव बायणाइसजायन करेजा दुपालसं, एवं पत्ताए कालवेलाए जंकिचि जइयराइयदेवसियाबारे निदिए गरहिए जालोइए पडिकते किंचि काइर्ग वा वाइर्ग या माणलिग वा उस्मुत्तायरणेण वा उम्मागायरमेण वाकणासेवणेण या अकरणिज्जसमायरणेण वा दुजराइएण या दुविचितिएण वा अणायारसमायरणेण वा अणिन्छियासमायरणेण वा आसमणपाउग्गसमायरणेण वा नाणे दसणे चरिने सुए सामाइए विण्ई गुत्तिपादीणं चउहं कसायादीण पंचण्डं महण्यादीण उण्डं जीवनिकायादीण सत्तण्हें पिंटेसणमाईणं अहहें पवयणमाइयाईणं नवहं मचेरगुत्ती(नाई दसविहस्स पं समणधम्मस्स एवं तु जाच गं एमाइजणेगालायगमाईणं खंडणे पिराहणे या जागमकुसलेहि गं गुरुहिं पायच्छितमुबइई ननिमिनेणं जहासत्तीए अणिगृहियबलबीस्विपुस्तियारपरकमे असदलाए अदीयमाणसे अणसणाइ सबझंतरं दुवालसविह नवोकर्म गुरुणमंतिए पुगरवि णिकिऊणं सुपरिकुई काऊणं तहति अभिनंदिनाणं संडाखडीविभतं वा एमपिटट्टियं वा ण सम्ममणुचेंडेजा सेणं अबंद, से भय ! केणं अडेणं खंडाखंडीए काऊणमचिद्वेजा. गोयमा जे भिक्खू संवच्छरदं चाउम्मार्स माससमचा एकोलग काऊणे न सम्मोह तेणं छहहमदसमबुवालसदमाससमणेहिले पायचिठन अणुपवेसेइ. अन्नमवि किंचि पायशिवाणुगयं एतेणं अढणं संशसंडीए समणुचि , एवं तु समोगा किचूर्ण पुरिमट, एयावसरेमि उजे ण पडिक्कमतेइ वा बंदतेड या सज्झायं करतेन वा परिभमतेत वा संचरंतेज या गएड बा ठिएर या बालगेड या उद्रियरगेड या तेउकाएममा कुसिलियालगे भवेना से णं आयंचिऊणं ण संवरेजा जो चउत्थं, अनेसि तु जहाजोगं जहेब पायचिताणि परिसंति,नहा ससत्तीए सपोकम्मं णाणुढे तजो बउग्गणं पायच्दिनं तमेव बीयदिबहे उपइसेजा, जेसिच बताण वा पडिक्कमचाण वा दहिं वा मजारं वा छिदिऊणं गये हवेजा तेसि च प लोयकरणं अशस्थ गमणं
मार्ण उम्मतवाभिरमण, एवाई ण कुर्वनि सो गया . जेणं तु महत्वसमासाहग उणावगं दुन्निमितममंगलापदं हपिया. जेणं पदमपोरिसीए वा बीयपोरिसीए या चकमः । णियाए मा परिसफकएना अगालसन्मिहीर या उड्डी को वा से णे जइ बउबिहेणं ण संवरेजा नओ छई, दिया पंडिले पडिलेहिए राओ सन्नं चोसिरेना समाहीए पा एगासणं गिलाणस्स. अन्नेसि तु उहमेय, जाणं दिया ग दिलं पचुप्पेहिवं गो णं समाही संजमिया जपचुप्पेहिए पंडिले अपेहियाए पेच समाहीए स्पणीए सन्न वा काइयं वा बोसिरिजा एगासणग गिलाणस्स. सेसाणं दुवालसं, जहाणं मिलाणस्स मिक्कई बा, एवं पदमपोरिसीए बीयपोरिसाए या सुलत्याहिजणं मोनुर्ण जेणं इत्यीकहं वा मनकहं पा देसकहं या रायकर या लेणकर्ज चा गारस्चियकहं वा अन्न वा असंबद रोदष्टज्माणोदीरणाकई पत्यावेज या उदीरेन ना कहेंब चा कहावेज वा से ण संवधरं जाव अवदे, बहाग पदमबीयपोरिसीए जइणं कयाई मह्या कारणवसेणं (पडिगं वा) अहपडिगं वा सज्झायं न कयं तस्य मिच्छकई गिरठाणस्स, अमेसि निविगइय, ददनिदट्टरनेण वा गिलाणेण या जन कहिंथि केणइ कारणे जाएणं जताई गीयत्यगुरुणा अणणुमाएर्ण सहसा कयादी महकपतिकमर्ण कर्य होना तो मासं जाब अर्यदे, चउमासे जाच मुणवयं च, जेणं पदमपोरिसीए अणाकंताए तइयाए पोरिसीए जइकताए भनवा पाणं या पडिगाहेग वा परिमुंजेन वा तस्स से पुरिमाएदि अदिएविं उद्योग करेजा मुरिमाद, गुरुणो अंनिए णोपत्रोमं करेगा पठत्य, अगएण उपजोगेणं जैकिंचि पटिगाहेजा नउत्थं, अविहीए उपजोगं करेणा खपण, मनहाए वा पाणडाए या सकनेण या गुरुकजेण वा बाहिरभूमीए निमाने गुरुणो। पाए उत्तिमंगेण संघहनाणे आपस्सियं ण करेजा पपिसी पंपसालाईसु णं बसहीदुनारे मिसीहियं ण करेजा पुरिमहर्ट, सनन्द कारणजायाणमसई बसहीए बहि निम्गच्छे गन्डरको रामा गोषदापर्ण, अगीयस्थस्स गीयत्यसमा संकभिजत्स वा पाणं वा नेसनं या पत्थं वा पत्तं वा दंडगं वा जविहीए पडिगाहेम्जा गुरुणं च णालोहम्जा नइयायस छेद मास जाच अचंदे मूगायच, मत्नहाए वा पाणहाए या भेसनहाए जा सकतेण बा गुरुकजेश या पचिट्टो गामे चा नगरे वा रायहाणीए पा निगचउकचबरपरिसागिहेड यानन्य परवा चिकहं वा पस्थायजा उबट्टावणं, सोबाहको परिसकेज्जा उबट्टावणं, उपाहणाउ पडिगाहिज्जा खवर्ण, मारिसे णं संविहाणगे उपाहणाउ ण परिभुजेज्जा स्वर्ण, गओवा। ठिलो वा केणइ पुडो निउणं महुरं थोचं कजापडियं अगनियमतुच्छ निहोस सपलजणमणार्गदकारचं इहपरलोगमहामहं पयर्ण ण भासेना अर्यदे, जाणं नाभिमहिमो. (२९७) १९६- महानिशीथदसूध, laura
अनि दीपरतसागर |
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“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [८] +गाथा:||१९|| ------
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गाथा
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सोलसदोसविरहियंपी ससावज भासेजा उबट्ठावणं, बहु भासे उबहावर्ण, पडिनार्य भासे उबवावणं, कसाएहिं जि(ज)ने अर्यदे, कसाएहि समुइनेहि मुंजे स्वणि वा परिक्सेना मास जाच मूणबए अवंदे व उपहावर्ण च, परस्स या कस्साई कसाए समुदीरजा दरकसायरस वा कसायबुडिंद करेजा मम्मं वा किचि वाले(आल)मा एतेसं गच्छवझो, करुसं भासे दुचालस, कसं भासे दुवालस, खरफल्सककसणिठुरमणिहूँ भासेज्या उबदावणं, दुबो देइ खमणं, किलिकिलिकिय(4)कलह झंझ टमरं वा करेवा गच्छवझो, मगारजगारं या बोडे सवर्ण, बीयवाराए अवंदे, वहतो संघरझोहणतो संघरझो, एवं सर्णतो मंजतो हसतो लडितो जलिंतो जालाचतो पर्यतो पयापर्वतो, एतेसु सबेसु पत्तेग संपवझो, गुरूपि पडिसूरे जा अवा मयहराइयं कहिचि हीलेजा गच्छायारं या संपायारं वा बंदणपडिकमणमाइमंडलीयम्म वा अइकमेजा अविहीए वा पवावेज वा उवहावेज वा अओगस्स चा मुत्तं वा अस्थं वा उभयं वा परवेजा अपिहीए सारेज वा बारिज पा पाएन वा पिहीए वा सारणवारणचोवणं ण करेजा उम्मम्मपहियरस वा जहाविहीए जापगं सबलजपसमिझ परिचादीएणं मासेजा अहियभास सपक्सगुणाचहं. एतेसु सप्रेम पत्तेर्ग कुलगणसंघबझो. कुलगणसंघबझीकवस्खणं अर्थतघोरवीरतवाणुहाणाभिस्यस्साधि णं गोयमा ! अप्पेही, तम्हा कुलमणसंघवमीकयस्तर्ण खणखणपडिगदपडिगचा ण चिट्ठयांति, अपचुप्पहिए पंडिले उचारं वा पासवर्ण वा खेलं वा सिधाणं वा जाई वा परिहाचेना निसीयंतो संटासगे ण | पमज्जा निविगइयायंबिलमहकमेणं, भेटमत्तोषगरणजार्य अंकिंचि दंडगाई ठक्तद वा निक्सिवेद वा साहरतेइ वा पटिसाहरतेइ वा गिण्हतेह या पडिगिण्हतेह वा अविहीए उबेजा वा निक्सिचेज वा साहरेज वा पटिसाहरेन बा गेण्हेज वा पडिगेण्हेज वा, एतेमु असंसत्तखेत्ते चउरो आयंबिले, संसत्तखिने उवट्ठावर्ण, दंडगं वा स्यहरणं वा पायपुंडण वा अंतरकप्पगं पा चोलपहर्ग वा वासाकार्य वा जाप णं महर्णतर्ग वा अभयर वा किंचि संजमोवगरणजायं अप्पडिलेहियं वा दुष्पडिलेहियं वा ऊणाइरितं गणणाए पमाणेण वा परिभुजे सवर्ण साथ। पत्तेग, अविहीए निर्यसणुत्तरीयं स्यहरणं दंडगे बा परिभुजे चउत्थं, सहसा बहरणं बंधे निक्खिबह उबढावणं, अंग वा उवर्ग या संवाहावेजा खवणं, स्वहरणं सुसंघहे पाउत्थं, पमत्तस्स सहसा महणताइ किषि संजमोषगरणं विप्पणस्से तस्य णं जाय खमणोयट्ठापणं, जहाजोगं गवेसणं मिच्छुकडं पोसिरणं पदिगाहर्ण च, आउकापतेउकायस्सणं संपणाई एमतर्ण णिसिद्धे. जो उण जोईए अंतलिक्सविंदुबारेहि वा आउत्तो वा अणाउत्तो वा सहसा फुसेजा तस्स र्ण पकहियं चेवायंबिलं, इत्थीर्ण अंगावयवं किंथि हत्येण वा पाएण वा दंडगेण या करवरियकसम्गेण वा लणखवएण वा संघहे पारंचियं, सेसं पुणोवि सस्थाणे पण माणिहिद, एवं तु आगयं मिक्खाकालं, एयावसरम्ही उगोषमा! जे भिक्खू पिटेसणाभिः हिएणं विहिणा अदीणमणसो 'वजेतो बीयहरियाई, पाणे व दगमट्टिय। उचचार्य विसमलाj, रनों गिहबईणं च ॥१९॥ संकटाणं वियज्जंतो पंचसमितिगृत्तिजुतो गोयरचरियाए पाहुडियं न पडियरिया तस्स गं पउवं पायच्छित्तं उपइसज्जा जाणं नोजभत्तही, ठवणकुलेसु पविसे खवणं, सहसा पडिवुर(वरy)पटिगाहितं नक्सणाण परिचे निरोबरवे पंडिले खवणं, अकप्पं पडिमाहेज्जा चउत्थाइ जहाजोग, कर्ष वा पढिसेहेइ उचट्ठावणे, गोबरपबिट्टो कहं वा विकर्ह या उभयकहं वा पत्यावेज्ज या उदीरेज्ज या कहेज वा निसामेग्ज वा छई. गोयरमागओ य म मा पाणं या मेसज्ज वा जं जेण दिनयं जहा य पडिग्गहियं तं वहा सणालोएज्जा पुरिषद, इरियाए अपटिकताए भन्नपाणाइयं आलोएज्जा पुखिइट, ससस्तेहि पाएहि अपमज्जिएहिं इश्यिं पडिकमेज्जा पुरिच(म)इ. इरियं पडिकमिउकामो तिनि वाराउ चलणगाणं हेडिमं भूमिभागंण पमज्जेज्जा णिविइग, कमोडियाए वामुहर्णतगेण वा विणा इरिय पटिक्कमे मिछुपकर्ड पुरिमइट वा, पाहुडियं आलोइत्ता सज्मायं पडवेतु तिसराई धम्मोमंगलाई ण कडेढज्जा घउत्थं, धम्मोमंगलगेहिं च र्ण अपरियहिएहि चेदयसाहुहिं च अवदिएहिं पारावेजा पुरिवह, अपारापिएणं भत्तं वा पाणं वा भेसम्जं वा परिभुजे पउत्थं, गुरुगो अंतियं ण पारावेज्जा नो उपओगे करेजा नो णं पाहुडियं आलोएज्जा ण सज्झाय पदवेज्जा, एतेयं पत्तेयं उबट्ठावणं, गुरुवियजेणं नो उपउत्ते हवेज्जा से गं पारंचिर्य, साहम्मियाणं संविभागेर्ण अविहोणं किंचि भेसम्जाइपरिमुंजे उई, संजते या परिसंतिए वा पारिसाडियं करेजा उदलं, तित्तकरयकसायंबिलमहरल्लवचाई रसाई आसाइते चा पलिसार्यते वा परिभुजे चउत्थं, तेसु बेच रसेसुरागं गमछे खमणमा ट्ठमं वा, अकएण काउस्सग्गेण विगई परिभुजे पंचेच आर्थविलाणि, दोन्हं विगईनं उइट परिभुजे पंच निवाइयगाणि, अकारणियो विगइपरिभोग कुजा अदठम, असणं वा पाणं ना मेसज वा गिलाणस आइमाशुपरियं परिभुजे पारंचियं, गिलाणाणं अपडिजागरिएणं मुंजे उवट्ठावणं, सबमचिणियकत्ता परिचिच्चा गिलाणकल न करेजा अवदे. गिलाणकत्तामालंबिऊण निययकत्ता पमाएजा अर्थद. गिलाणकर्ष ण उत्तारेजा अहम, गिलाणेणं सदि एगसदेण गंतुं जमाइसे तं न कुजा पारंचिए, नवरं जाणं से गिलाणे सत्यचित्ते,
अहाणं सचिवायादीहि उम्भामियमाणसे हवेजा तो जमेव गिलाणेणमाइह तं न काययं, तस्स जहाजोगं काय, ण करेजा संघबनो, आहाफम्म वा उसिर्थ वा पूईकर्म का P११६१ महानिशीषच्छेदसूत्र, marwal-s
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“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक -------- मूलं [८] +गाथा:||१९...||------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
गाथा
||१९||
मीसजावा ठवर्ण वा पाइडियं वा पाजोपरं पाकीय वा पामिर्च चा परियाहियं वा अभिहर्ट वा उब्भिनं या मालोहरपा अच्छेज वा अणिसईया असोयर वा धावानिमित्तेणं 8. आजीवयणीमगतिगिच्छाकोहमाणमायालोभेणं पुलिसबवपच्छासंथविज्जामंतचुनजोगे संकियमक्खियनिक्सित्तपिहियसाहरियदायगुग्मीसे अपरिणयलित्तछटिययाए बाया
लाए बोसेहिं अक्षयरदोसेण दृसियं आहारं या पाणं वा भेसज्जंचा परिभुजेज्जा सध्यस्थ पचेगंजहाजोगं कमेणं खमणायंबिलादी उपइसेन्जा, उण्डं कारणजायाणमसाई मुंजे अहम, समं सईगालं मुंजे उबहावणे, संजोइय २जीहालेहडताए मुंजे आयंबिलखवणं, संते बलवीरियपुरिसयारपरकमे अमिचउदसीनाणपंचमीपज्जोसवणचाउम्मासिए पउत्थहमछड़े ण करेजा सवर्ण, कर्षणावियर करत्यं, कप्पं परिवेज्जा दुवालस, पत्तगमत्तमकमढर्ग वा अनयर वा मंडोजगरबाजार्य अतिप्पिऊर्ग ससिणिवं या असिणिदं वा अणुहियं ठवेम्जा उत्थं, पत्ताबंधस्स ण गंठीउ म छोटिज्जाण सोहेज्जा चउत्वं पच्छितं, समुदेसमंडलीउ संघहेज्जा जायाम संपईया, समुदेसमंडलि छिपिऊण दंडापुंछणार्ग न देम्जा निविइय, समुद्देसमंडली छिबिऊर्ण दंडापुंछणगं च दाऊणं हरियं न पडिक्कमेम्जा निखिइय, एवं इरियं पटिस्कमितु दिवसावससियं ण संवरण्जा आयाम, गुरुपुरओ ण संयरिज्जा परिमळ, अविहीए संवरेज्जा आयंबिलं, संवरित्ताण चेश्यसाहूर्ण बंदणं ण करेजा पुरिमइट, कुसीलस्स बंदणगं दिज्जा अनंदे. एयावसरम्ही उ बहिरभूमीए पाणियकरजेणं गंपूर्ण
जायायामे ताप णं समोगादेज्जा किचूना तइयपोरिसी, तमवि जाय गं इरियं पडिक्कमित्ताणं बिहीए गमणागमणं च आलोइऊणं पत्नगमत्तगकमढगाइयं भंडोजगरण नि| सिवइ नाच गं अणुणाहिया सहयपोस्सिी हवेम्जा, एवं आइस्कताए तइयपोरिसीए गोयमा! जे णं भिक्खू उवहि पंडिलाणि विहिणा गुरुपुरओ संदिसावित्ताणं पाणगस्स य संबरे. ऊर्ण कालबेलं जाव सज्झायण करेजा तस्स गं छड़े पायच्छित्तं उपहसेज्जा, एवं च आगयाए कालयेलाए गुरुसतियं उयहि पंडित बंदणपडिक्कमणसजमायमंडलीजो वसहिप पचुप्पेहिताण समाहीए खबरोयमे य संजमिऊणं असणगं उपाहि पंडिले पचुप्पेहित्तु गोयरपरिषं पटिक्कमिऊणं कालो गोयरचरियापोसणं काऊण तओ देवसियादयारविसोहिनिमित्तं काउस्सा करेजा, एएसं पोगं उदावणं पुरिमड्डेगासणगोचडापर्ण जहासलेणं णेयं, एवं काऊणं काउस्मग मुहर्णतणं पषुप्पेहे बिहीए गुरुणो किकम्म काऊणं किंचि कत्थर सूरुगमपभिए चिट्ठतेण वा गच्छंतेण वा चलनेण वा भमंनेण वा संभ(म तेण वा पुढवीदगअगणिमास्यवस्सदहरियाणवीयपुष्कफलाकिसलयपवालंकुरदलवितिय उपंचिंदियाण संघहणपरियायणकिलापणउरवर्ग वा कार्य हवेज्जा तहा तिण्हं गुत्तादीणं चउहं कसायाईणं पंचण्डं महायादीणं उण्हे जीवनिकायादीणं सत्तण्डं पाणपिटेसगाणं अट्ठाहं पक्ष्यणमायादीण नवव्ह बभचेरावीणं इसविहस्स समणधम्मस्स नाणदसणचारितार्ण बजे खंडियं जं विराहिय ते निदिऊर्ण गरहिऊणं आलोइऊणं पायच्छितं च पडिवग्जेऊणं एमगमाणसे सुत्तत्योभयं धणियं भावमाणे पदिक्कमणे ण करेज्जा उक्दठावर्ण, एवं तु असणं गओ सरिओ, चेहएहि अचंबिएहि पडिकमेज्जा पाउत्थं, एत्थं च अपसरं विजेयं, पटिकमिऊणं च बिहीए बनीए पदमजामं अणुणगं सज्झायन करेग्जा दुवालसं, पदमपोरिसीए अगइरकताए संघारगं संदिसावेजा छठं, असंदिसापिएणं संचारगेणं संथारेजा पाउl अपचुप्पेहिए यदि संधारेड दुवालसं, अविहीए संधारेना चउत्प, उत्तरपट्मेणं विणा संधारे चउत्थं, दोउई संचारेजा पाउन्यं, मुसिरे सणप्पयादी संधारेजा सयं आयंबिलार्ण, समस्त समगसंघस्स साहम्मिया(गमसाहम्मिया)णं च समस्सेय जीवरासिस्त सम्भावमातहिणं तिनिहतिबिहेण खामणमरिसावणं अकाऊ चेइएहि तु अबंदिएहि गुरुपामूलं च उपहिदेहस्सासणादणंच सागारेणं पवस्वागणं अकएर्ण कवियरेसुंचकापासरुवेर्ण तुह(अट्ठ)इएहिं संथारम्हीठाएज्जा,एएसं पत्तेगं उबट्टावणं, संचारगम्ही ठाऊणमिमस्सगं धम्मसरीरस्स गुरुपारंपरिएणं समुबलदेहिंतु इमेहिं परममंतकवरेहिं दसमुचि दिसामु अदिहरिपतवाणमंतरपिसाचादीर्ण रक्खण करेजा उनहावर्ण, दसमुचि दिसासु खख काऊन दुवालसहि भावणाहिं अभाषियाहि सोचिना पणुचीसं आयंबिलाणि, एक निदं मोजणं पडिदे ईरियं पढिकमेतार्ण पटिकमणकालं जाव सहाय न करेजा दुवालसं, पसुने दुसुमिणे या कुसुमिणं वा उग्गहेजा सएण ऊसासाणं काउस्सरगं, रपणीएटीएज या लासेज या फलहगपीढगदंडगेण वा खुडक्कगं पतरिया रमणं, दिया बा रामो वा हासखेड्डकंदपणाहवाय करेजा उपहारणं, एवं जे गं भिक्पू सुलाइफ्फमेणं कालाइक्कमेणं आवासगं कुधीया तस्स कारणिगस्स मिकई गोषमा! पापविन उवासेना, जे प णं अकारणिगे तेसि तु गं जहाजोगं पउत्थाइ उवएसे, जे गं मिक्स सदे करेज्जा सरे उचइसेवा सहे गाडागाउसदे य सात्य पदपर्य पत्नेयं सक्षपएसुं संबावेयजे, एवं जे णं भिक्खू आउकायं या लेउकार्य वा इत्यीसरीरावयचं या संघहेजा नोणं परिभुजेजा से णं तस्स पणुवीसं आयंबिलाणि उवाइसेजा, जे उण परिभुजेना से गं तुरंतपतलक्षणे अपहले महापानकम्मे पारचिए, अहाणं | महातपस्सी हजा सत्तरं मासलमणाणं सबरि अदमाससमणाणं सरि दुबालसाणं सपरि बसमार्ग सबरि अदमाण सरि छहाणं सरि चउत्थाणं सरि आयंबिलार्ण सरि एग. ११६२ महानिशीपच्छेदसू rarel
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सूत्रांक
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गाथा ||१९||
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“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं )
अध्ययन /लिका-११.
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ....
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उद्देशक [-], मूलं [८] + गाथाः || १९...||
"महानिशीथ" मूलं
...आगमसूत्र [३९] छेदसूत्र [६]
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द्वाणानं सपरिं सुद्धायामेगासनाणं सपरि निडिगइयानं जाव णं अणुलोमपडिलोमेणं निदिसेज्जा एवं च पायच्छित्तं जे य णं भिक्खु अविस्संतो समणुडेजा से गं आसण्णपुरक्ख नेये । ८| से भयचं ! इणमो सयरिं सारं अणुलोमपडिलोमेणं केवइयं कालं जाव समणुडिहिद ?, गोयमा जाव णं आयारमग्गं वा (ठा) एज्जा, भयवं उई पुच्छा, गोयमा उहाँ केई समणुडेज्जा केई को समज्जा, जेणं समणुट्टेज्जा से णं वंदे से णं पुज्जे से णं दबे से गं सुपसत्यसुमंगले सुगहीयणामभेज्जे तिपि लोगानं वंदनिज्जेत जेणं तु जो समजुड़े से णं पावे से णं महापावे से णं महापापा से णं दुरंतपंतलक्खणे जाव णं अदद्वप्रेति । ९। जया णं गोवमा इणमो पतिसुतं बोन्डिजिहि तथा णं चंदाइयगक्खितारगाणं सन्त अहोरते तेयं णो निरेजा । १० । इमस्स णं योच्छेदे गोयमा कसिणसंजयस्स अभावो, जओ सहपापवि चेय पच्छिते, सस्स णं तवसंजमाणुाणस्स पहाणमंगे पर मविसोहीपए, पवयणस्सावि णं णवणीयसारभूए पत्ते ११ इणमो समवि पायच्छिते गोयमा जावइयं एगत्य संपिंडियं हवेच्या तावइयं चैव एगस्स णं गच्छाहिणो मयहरपणी यचउगुण उवइसेजा, जओ सबमचि एएस पर्यसि हवेजा, जहा णमिमे चैव पार्थ गच्छेला तो अनेसि संते पीली रिय(ए) सुट्ट तरागमन्भुजम ह (हा) वेज्जा, जहा णं किंचि सुमहंतमवि तजोऽणुद्वाणमन्भुज्जमेज्जा ताणं न तारिसाए धम्मसदाए, किं तु मंदुच्छाहे समगुडेज्जा, भग्गपरिणामरस य निरत्यगमेव कायकेसे, जम्हा एवं तम्हा उ अविवाणंतनिरणुर्वधिपम्भारेण संभु (जुज्जमाणेवि साहूणो न संजुज्जति, एवं च समवि गच्छाहिवडयादीण दोसेणेव पवत्तेज्जा, एएर्ण पचइ गोयमा जहां न गच्छाहिब पाई इणमो सहमचिपच्छिल जावइयं एत्थ संविडियं हवेला तावइयं चैव चगुणं उपइसेजा । १२ । से भययं जे गणी अप्पमादी भवेत्ताणं सुयानुसारेण जत्तविहाणेहि व सययं अजितं गच्छं न सारवेजा तस्स किं पायच्छित्तमुवइसिजा?, गोयमा अप्पत्ती पारंचियं उवइसेज्जा से भयवं जस्स उण गणिणो सहपमायालवणचिप्यमुकस्साचिणं सुषाणुसारेण जत्तविहाणेहिं चैव सवयं अक्षिसं गच्छ सारवेमाणस्स उ केई तहाविहे दुइसीले न सम्ममा समायरेजा तस्सवि किं पन्छित्तमुवइसेजा, गोयमा ! उपसेना से भय के अद्वेणं, गोयमा जओ णं तेणं अपरिक्खियगुणदोसे निक्समानिए हवेज्जा एएणं, से भययं किं तं पायच्छित्तमुवइसेज्जा ? गोयमा जेणं एवंगुणकलिए गणी से जया एवंविहं पावसीलं गच्छतिविहतिविणं बोसिरिताण आयहियं नो समणुट्टेला तथा णं संघवज्झे उबइसेज्जा से भयवं जया गणिना गच्छेतिविहणं बोसिरिए हज्जा तया मच्छे आइरेना ?, जइ संविग्ो भवेत्ताणं जहुत्तं पच्छित्तमणुचरेता अनस्स गच्छाहिवइणी उपसंपजित्ताणं सम्मम्ममणुसरेजा तो णं आयरेगा, जहा णं सच्छंदलाए तहेव विद्वे तओ णं चउहिस्सावि समणसंपस्सव तं गच्छ णो जायरेजा १३ से भय जया गं से सीसे जहत्तसंजम किरियाए वहति तहानिय केई कुगुरू सि दिक्लं परुवेज्जा तथा गं सीसा कि समणुट्टेज्जा १ गोयमा घोरवीरतयसंजम से भयवं कहं? गोयमा अनुगच्छे पविसेत्ताणं, वस्त संतिएणं सिरिगारेणं अलिहिए समाणे अच्छे पर्वसमेव ण लभेजा तया णं किं कुबिज्जा ? गोयमा सङ्घपयारेहिं णं तं तस्स संतियं सिरियारं फुसावेज्जा से भयवं केण पयारेण तं तस्स संतियं सिरियारं सङ्घपयारेहिं णं फुसिय हजा ?, गोयमा अक्सरे, से भय कि णामे ते अक्सरे ?. गोयमा जहां णं अपडिगाहे कालकालंतरेपि अहं इमस्स सीसाणं या सीसणीगाणं वा से भयवं जया णं एवंविहे अक्खरे पवादी? गोयमा जया णं एवंविहे अक्सरे ण पयादी तया णं आसन्नपावणीनं पहिला चडत्यादीहि समकमित्ताणं अक्सरे दावेजा, से भयवं जया णं एएणं पयारे से कुगुरू अक्सरेण पदेजा तया कि कुज्जा, गोयमा जया णं एएणं पयारे से णं कुगुरू अक्खरे नी पयच्छे तथा णं संपवले उपइसेज्जा से भयवं केणं अद्वेणं एवं बुचर ?, गोयमा ! सुट्ट पट्टे इणमो महामोहपासे गेहपासे तमेव विष्पजहित्ताणं अपेगसारीरिंगमणोसमुत्यचउगहसंसारदुक्लभयभीए कहकहनि मोहमिच्छत्तादीणं खओवसमेणं सम्म समोगलभित्ताणं निविनकामभोगे निरणुबंधं पुत्रमहिजे, तं च तवसंजमाणुडाणेणं, तस्सेव तवसंजमकिरियाए जाव णं गुरू सयमेव विग्यं पयरे अहाणं परेहिं कारये कीरमाणे या सम सुवेक्वे सपक्लेण वा परपचखेण वा ताव में तरस महाणुभागस्स साहूणो संतियं विजमाणमचि धम्मनीरियं पणस्से जाव णं धम्मवीरियं पणस्ते ताव णं जे पुलमागे आसन्नपुरखडे चैत्र सो पणस्से, जड़ णं णो समलिंग विप् ताहे जे एवंगुणोववार से णं तं गच्छमुज्झिय अन्नं गच्छे समुप्पयाड, तत्यवि जाव णं संपदेस न लभे ताव णं कमाइ उप अविहीए पाणे परहेजा कमाइ उणमिच्छत्तभावं गच्छिय परपासंडियमासएना कवाह उण दाराइसंग काऊ अगारवासे पविसेला अहा में से ताहे महातवस्सी भवेत्ताणं पुणो अतवस्सी होऊ परकम्मकरे हवेजा जाय णं एवाई न हवंवि ताव णं एतेणं बुटि गच्छे मिच्छत्ततमे जाव णं मिच्छत्ततमंधीकए बहुजणनिवहे दुक्खेणं समगुडेजा दुग्गइनिवारए सोक्ख परंपरकारए अहिंसालक्लणसमणधम्मे, जाव णं एयाई भर्वति तान णं तित्यस्सेव वोच्छिती, ताय नं सुदुस्वचहिए परमपए, जान णं सुदुस्ववहिए परमपए ताव में अनलिए स १९६३ महानिशीथच्छेद
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"महानिशीथ" - छेदसू ------- अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक -1, ------- मूलं [१४] +गाथा:||२०||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं संघाए पुणो चउगईए संसरेजा, एएणं अद्वेणं एवं बुचड़ गोयमा ! जहा णं जे ण एएणेव पयारेणं कुगुरू अक्सरे णो पएज्जा से ण संघवज्झे उपइसेजा ।१४। से भय ! केचइएण कालेणं पहे कुगुरू मविहिनि?, गोयमा! इजो य जद्धतेरसण्हें वाससयाणं साइरेगाणं समइकतार्थ परजो भनिसु. से भय के अद्वेण ?, गोयमा! तशालं इड्डीरससायगावसंगए ममीकारबहकारम्गीए अंतो संपातबादी अहमहतिकयमाणसे अमुणियसमयसम्भावे गणी भपिंसु, एएणं अद्वेणं, से भय ! किग्णं सोऽवी एवंचिहे तत्काल गणी मधींसु,गोयमा! एगतेणं नो सके, कई पुण तुरंतपतलक्सणे अददठने एगाए जणणीए जमगसमर्ग पसूए निम्मेरे पाचसीले दुजायजम्मे सुरोपयंडाभिग्गहियतरमहामिमहरिदठी भर्विस से भय ! कह से समुपलक्खेजा ?, गोयमा! उस्मुत्तउम्मग्गपपत्तणुदिसणअणुमइपचएण । १५1 से भयन ! जे गं गणी किंचियावस्सर्ग पसाएजा, गोयमा! जे गं गणी अकारणिने किंची खणमेगमवि पमाए से थे अबंदे उवासेना, जेतु सुमहाकारणिगेवि संते गणी सणमेगमवीण किंचिणिययावस्सगं पमाए से गं ये पूए दो जाप णं सिद्धे पुढे पारगए खीगडकम्ममले नीरए उपइसेना, सेसं तुमहया पर्वणं सत्याणे पेच भाणिहिद।१६। एवं पच्छित्तविहि, सोऊण गाणुविद्वती। अदीणमणो, गुजह य जहधाम,जे से आराहगे मणिए॥२०॥ जलजलणदुहसावयपोरनरिंदाहिजोगिणीण भए।वह भूयजक्रवरक्खसखुदपिसायाण मारीणं॥२१॥कलिकलहविधरोहगर्कताराइसमुहमजोया दुर्मितिय अपसाडणे संभरियाचा बहर इमा विजा ॥२२॥ अमएकजनामदेणउजमनगमाणइउम्मएटामतइपरकमउणआदइएइम्पवानजागउदहअण्हरचाहममहमुउमणउमयावएसजाणअमरउण्हमदमसुखकजल्अम्पएहपडसस्अम्बाउ(पत्यंतरे पाएमईजनजमहनउजमनामनाउममएहइम्नाइकम्उन्आहएडइम्पवानगोहाभरपहरउपउदुइममहसउडअणउमघाइदएओजनमतउएहमदमवधसइखकअउल अमथएहवइसम्अम्तउ)एयाए पवरविजाए विहीए अत्ताणगं समहिमंतिऊर्ग इमेए सत्तक्लरे उत्तमंगोभयरबंधकुष्ठीचलणतलेमु सणिसेजा
जहा अउम उत्तमंगे कउयामसंधगीचाए उवामकृपडीए कउ वामचलणयले ल्ए दाहिणचलणयले मना दाहिणकुष्ठीए दा दाहिणसंधगीवाए।१७। समिणमिमिले गहपी. दुवसम्ममारिरिद्वभए। वासासणिविज्जूएवायारिमहाजणविराहे ॥२३॥जंचऽस्थि भयं लोगे, तं सर्व निहले इमाए विजाए।सत्यपहे (सरना)सन्हे मंगलयरे पापहरे सयलवरऽक्सयसो. क्सदाई काउमिमे) पच्छिते, जाणतुण सम्भये सिज्दो ॥२४॥ ता लहिऊम निमार्ण (ग) सुकूलुप्पत्ति दुयं च पुण बोहि । सोफ्सपरंपरएणं सिको कम्मद्धस्यमलविमुक्के ॥२५॥ गोपमोति बेमि। से भय! कि प(ए)याणुमेनमेव पनिवनविहाणं जेणेवमाइस्से?, गोयमा! एवं सामनेणं दुवालसम्ह कालमासाणं पइदिणमहग्निसाणुसमर्थ पाणोपरमं जायसवाल. पुढसहमयहररायणियमाईणं, तहा य अपडियायमहोऽवहिमणपजवनाणीउ छउमत्यतित्ययराणं एगतेणं अभदठाणारिहावस्सगसंबंधियं व सामण पछि समाइदठ, नो णं 13 एयागुमेनमेष पच्छिल, से भयर्व! किं अपडियायमहोऽवहीमणपजवनाणीउउमस्यधीवरासयलावस्सगेसमगुठीया, गोयमा! समगुठीया, न केवलं समणुदठीया जमगसमगमे. वाणवरयमणुदठीया, से भयवं! कह?, गोयमा ! अचिंतबलपीरियबुद्धिनाणाइसयसत्तीसामत्येणं, से भय ! केणं अठण ते समणुठीया'. गोयमा! मा उसानुम्मापानणं मे | भवउत्तिकाऊणं । १८ा से भय। किले सविसेस पायच्छिल जाच गं वयासी ?, गोयमा ! वासारनिय पंथगामियं वसहिपारिभोगियं गच्छाचारमाकमणं संचायारमहकमर्ण गुनीभेस पपयरणं सत्तमंडलीधम्माइकमर्ण जगीयस्थगण्उपयाणजार्य कुसीलसंभोगजं अविहीए पहज्जादाणोबट्ठावणाजायं अउम्मस्स सुनस्थोभयपण्णवणजायें जणाणवणिक्कऽक्लरविधरणाजाय देवसियं राइयं पक्खियं मासिय नाउमासिब संबच्छरिब एहिय पारोदय मूलमुणविराहणं उत्तरगुणविराहणं आभोगाणाभोगयं आउहिपमायदपकप्पियं वयसमणधम्मसं. जमतचनियमकसायदंदगुतीय मयभयगारपदिय वसणाइकरोघटनाणरामदोसमोहमिच्छत्तद्द्वकरज्यवसायसमुत्यं ममत्तमुष्ठापरिगहारंभ असमिइनपदठीमसामित्तधमंतरायसनायुधेवमासमाहाणुप्पायर्ग संसाईया आसायणा अनपरासायणयं पाणवहसमुत्य मुलाचायसमुत्थं अदनादाणगहणसमुत्य मेहुणसेवणासमुत्थं परिगहकरणसमुत्थं राइभोयणसमत्वं माणसिय पाइय काइयं असंजमकरणकारखणअनुमाइसमुत्य जाच गंणाणदंसणवारिताइयारसमुत्यं, कि यहणा ". जावइयाई तिगालचिदणादओ पायचित्तठाणाई । पाताई तावदयं च पुणो विसेसेण गोयमा! असंवेयहा पन्नविनि (अओ) एवं संधारेजा जहा गं गोचमा! पायनियुत्तस्स णं संखजानो निज्जुनीओ संखेजाओ संगहणीओ संखिजाई अणुजोगदाराई संखेने अक्सरे अणते पजने जान पं देसिज्जति उबदसिजति आपविजनि पन्नविजति परुपिजनि कालाभिग्गहनाए वाभिमाहत्ताए खेतानिगहनाए भाषाभिग्गहत्ताए जाप णं आणुपुटीए अणाणुपुषीए जहाजोगं गुणठाणेसुंवि वेभि । १९ । से भयब ! एरिसे पच्छित्तयाहुले से भय ! एरिसे पच्छिलसंपर्ट से भयवं! एरिसे पच्छित्तसंगहणे अस्थि केई जे आलोइत्ताणं निदिलाण गरहिताण जाच गं अहारिहं तपोकम्म पायत्तिमणुचरिताणं सामनमाराहेजा परयणमाराहिजा जाब णं आयहियट्याए उपसंपगिचाणं सकर्जतमई आराहेजा,गोयमा ! णं वउविहं आलोयर्ण विंदा, संजहा-नामालोयर्ण ठरणालोयर्ण दजालोषण मावालोयर्ग, एते चउरोऽवि (२९१) ११६४ महानिशीथच्छेदसूत्र, अवraula
अनि परनसागर का
गाथा ||२०||
दीप अनुक्रम [१३९०]
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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [२०] +गाथा:||२६|| ------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत सुत्रांक
[२०]
गाथा ||२६||
पए अणेगहावि चउधा जोइम्जंति, तस्य ताव समासेण णामालोयर्ण नाममेतेणं, ठवणालोयणं पोस्थयाइसुमालिहियं, बालोयणं नाम जै आलोएनाणं असदभावनाए जहोचाई पायचित्तं नाणुचिढ़े, एते तोऽविपए एगतेणं गोषमा अपसरथे, जेणं से चउत्थं भाषालोयर्ण नाम ते तु गोयमा ! आलोएताणं निदित्ताणं गरहिनाणं पायच्छिन्नमणुचरिनाणं जावणे आपहियट्ठाए उपसंपजित्ताणं समजुत्तममई आराहेजा.से भयन ! कयरे से चउत्थे पए,गोयमा! भावालोयणं, से भयर्ष! किंतं भावान्दोयणं?, गोयमा! जे णं भिक्खू एरिसे संवेगवेरगगए सीलनवदाणभाषणयउसंघमुसमणधम्ममाराहणेकंवरसिए मयभयगारवादीहिं अचंतविप्पमुके समभावभावंतरेहिं णं नीसाडे आलोइत्ताणं विसोहिपयं पदिगाहिताणं तहत्ति समणुठीया सत्रुत्तमं संजमकिरियं समणुपालिजा।२०। जहा-कयाई पाबाई साहि. जे हिजट्ठी ण बज्मए। तेसि नित्ययस्वयणेहि. सुद्धी अम्हाण कीरो ॥६॥ परिचिचाणं नवं कम्म, पोरसंसारदुक्लद। मणोनयकायकिरियाहि.सीलभारं घरेमिऽहं ॥७॥जह जाणइ साह, केवली तित्थंकरे। आयरिए चारिसबढे, उवज्झायसुसाहुणो॥८॥ जह पंच लोयपाले य, सत्ता धम्मे य जाणते। नहाऽऽलोएमिऽहं सर्व, तिलमित्तपिन निहवं ॥९॥ तस्येव जपायच्छिन, गिरिवरगुरुयपि आवए। तमणुबरेमि दे सुदि, जह पाये अनि पिलिजए॥३०॥ मस्किर्ण नरयतिरिएसं. कुंभीपाएमु कत्थई। करथइ करवत जतेहि. कत्थइ भिन्नो उ मूलिए॥१॥सणं घोलणं कहि मि, कन्धा छैयणभेयर्ण । बंधणं लंघर्ण कहिमि, कन्थइ दमणमकणं ॥२॥ गन्धर्ण याहर्ण कहिभि, कन्थाइ बहणतालणं। गुरुभारकमणं कहि चि, कस्बइ जमलारर्विधर्ण ॥३॥ उत्पद्विअविकडिभगं, परक्सी तण्हं छुहं । संताबेगदारिदं. विसहीहामि पुणोविहं ॥४॥ता इहई पेप सबंपि, नियरियं जहदिठयं । आलोइना निदिना गरहिता, पायचिकन चरितुणं ॥ ५॥ निहामि पाचयं कम्म, सत्ति संसारदुक्खयं । अन्भुदिठत्ता नवं घोरं, धीरचीरपरकम ॥ ६॥ अचंतकटयडं कठे, दुकरं रणुचरं । उग्गुग्णयरं जिणाभिहियं, सयलकडाणकारम् ॥ ७॥ पायच्छित्तनिभिनेणं, पारसंथारफास्यं । आयरेणं तवं चरिमो, जेणुभ सोक्सई नणं ॥८॥ कसाए विहलीकटुं. इंदिए पंच निम्गह। मणोवईकायदंडाणं, निग्गहं पणियमारभे ॥९॥ आसपदारे निरभेत्ता, चनमयमच्छरजमरिसो । गयरागदोसमोहोई. नीसंगो निप्परिगहो॥४०॥ निम्ममो निरहंकारो, सरीरमचंतनिपिहो । महरयाई पालेमि, निरइयाराई निच्छिओ ॥१॥हदी धी हा अहमोऽहं, पाचो पाबमती अहं। पाविठो पाचकम्मोऽहं पापाहमाहमयरोऽहं ॥ २॥ कुसीलो भट्ठयारिनी, भिवसूणोपमो अहं । चिलातो निकिलो पाथी, कूरकम्मीह निम्धिणो 2 ॥३॥णमा दाभ मिठ, सामनं नाणदसणं । पारितं वा विराहेता, अमालोइयनिदियागरहियअकयपच्छिनो, वाजतो जई जहं ॥४॥ना निच्छयं अणुतरे, घोरे संसारसागरे। निबुड्डो भवकोडीहि. समुत्तरंतो ण वा पुणो ॥५॥ ताजा जराण पीडेह, वाही जाव न केई में। जाबिंदिया न हायनि, ताव पम्मे परेऽहं ॥६॥ निदहमाइरेण पावाई, निदिउं गरहिउँ चिरं । पायनिन चरिताणं, निकलको भवामिई॥७॥ निकलुसनिकलकाणं, मुहभानाण गोयमा ! तिम्रो नई जयं गहियं, सुरमथि परिचलितुर्ण ॥८॥ एबमालोयणं बाउं, पायच्छिनं चरिनुण । कळसकम्ममलमुकं, जइ णो सिजिाज नम्वर्ण ॥९॥ता वए देवलोगमि, निजोए सयंपहे । देवदुर्दहिनिग्पोसे, अच्छरासयसंकुले ॥५०॥ तओ चुया दहागंतु, मुकम्पत्ति लमेनुण । निविभकामभोगा य. तवं काउं मया पुणो॥१॥ अणुत्तरविमाणेसं, नियसिऊणेहमागया। हयति धम्मतित्थयरा, सयलतेलोकर्वधया ॥२॥ एस गोयम! - विशेये, सुपसन्थे चउत्थे पए। भावालोयणं नाम, जापयसिवसोवदायगो ॥३॥नि बेमि, से भय ! एरिस पप्प, विसोहि उत्तम वरं। जे पमाया पुणो असई, कत्था चुके खलिज वा॥४॥ तस्स किं भवे सोहिपर्व, मुविसुद चेच लविखए। उपाहुणो समुसिक्ले?, संसयमेयं नियागरे ॥५॥ गोयमा ! निदिउँ गरहिउ सुहरं, पायपिछत्तं चरितुणं । निक्खारियवस्थमिवाएण संपर्ण जो न रक्सए॥६॥सो सुरहिगंभिषणगंधोदयविमलनिम्मलपविते । मजि खीरसमुहे, असुईगट्टाए जइ पटइ ॥ ७॥ एता पुण तस्स सामग्गी, (सनकम्मक्सयंकरा)। अह होज देवजोग्गा, असुईग सदुदरिसं ॥८॥ एवं कयपच्चिने, जे उजीवकायषयनियमं । इसणनाणचरितं, सीलंगे वा भवंगे वा ॥९॥ कोहेण व माणेण ब, मायालोमे कसायदोसेणं । रागेण पओसेण प, (अन्नाण) मोहमिच्छत्तहासेणं (वादि) ॥६०॥ (भएणं कंदापदपेणं) एएहि य अन्नेहि य गास्वमालंबणेहिं जो खडे । सो सबहुवि माणे. पत्ने अत्ताणगं निरए ॥१॥(खिये)से भयर्व ! किं आया संरक्रपेयजो उयाहु छजीपनिकायमाइसंजमे संरक्वेयो ?, गोयमा ! जेणं छकायसंजर्म रक्से से र्ण अर्जतदुक्खपयायगाउ दोग्गइगमणाउ अता संसखे, तम्हा छकायाइसंजममेव ससेयत्र होइ । २१ । से भय ! केवतिए असंजमट्ठाणे पनते , गोयमा ! अणेगे असंजमाणे पक्षने, जाव णं कायास-2 जमहागा, से भय ! कयरे णं से कायासंजमहाणे'. गोयमा ! कायासंजमहाणे अणेगहा पत्ता, तंजहा-'पुढविदगागणिवाऊवणकई तह तसाण विविहार्ण हत्येणवि करिसणया बजेजा जावजीचंपि ॥२॥सीउषहसारतत्ते अम्गीलोस अंबिले मेहे। पुढवादीण परोपर खर्यकरे वज्रसत्येए ॥३॥ण्डाणुम्मदणसोमणहत्यंगुलिअक्खिसोयकरणेणं । आचीयते १९६५ महानिशीपच्छेदसूत्र
मुनि दीपरतसागर
दीप
अनुक्रम [१४०२]
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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदस अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [२२] +गाथा:||६४|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत सुत्रांक
[२]
A
गाथा
||६४||
अर्णवे आऊजीये खयं जति ॥४॥ संधुकणजलगुजालमेण उनोचकरणमादीहिं। बीयफमणउम्भावणेहि सिहिजीवसंघाय ॥५॥ जाइ खर्य अमेऽपिय जीवनिकायमइगए जीये। जलणी सुदुइजोविर्संभक्खाइ दसदिसाणं च ॥६॥वीयणगतालियंटयचामरतक्रसेवहत्यतालेहि। धावणडेवणलंघमऊसासाईहिं पाऊणं ॥७॥ अंकुरकुहरकिसलयपालपुष्कफलकदलाई। हत्यफरिसेण बहले जतिसर्य पणफई जीवे ॥८॥गमणागमणनिसीयणसुयणुद्धाणअणुषउत्तयपमत्तो । वियतिति विविपापदियाण गोयम ! सर्व नियमा॥९॥पाणाइ. पायविर्स सिक्कलया गिहिऊण ता धीमं । मरणावयमि पत्ते मरेन चिन खंडेजा ॥७॥ अलिययणस्स चिरई सावर्ज सबमविन भासिजा। परदब्रहरणविरले करेन दिन्नेचि । मा लोभं ॥१॥ धरणं दुद्धरमवयस्स काउं परिग्गहणायं । राईभोयणबिरई पंचिंदियनिग्रहं विहिणा ॥२॥ अन्ने य कोहमाणा रागदोसे य (आ) लोयणं दाउँ। ममकारअहंकारे पयहियो पयनेणं ॥३॥जह नवसंजमसज्झायमाणमाईसुसुदभावहिं। उनमियाई गोयम! विजुलयाचंचले जीवे ॥४॥ किंबहुणा' गोषमा! एस्थ, दाऊणं आलोयणं । पुढविकार्य निराहेजा, काय गंतुं स सुज्झिही? ॥५॥ किंबहुणा गोयमा ! एत्यं, दारुन आलोयण बाहिरपाणं ताहि जम्मे, जे पिए कत्थ मुज्निही ? ॥६॥ कि उण्हवा जालाई जाओ.फसिओ 13 वा कस्थ सुझिही? 10 कि० बाउकार्य उदीरेजा, कत्थ गंतृण सुजिाही? ॥८॥कि०। जोहरियतणं पुष्कं बा, फरिसे कत्थ समझिही? ॥९॥फि० अकमई बीयकायं जो, कत्थ सज्ािही ॥८॥
किंचियालेदी (बितिचड) पचिदिय परियाये, जो कस्य स सुज्झिहि ॥१॥ कि०। छकाए जो न रक्खेजा, सहमे कत्यस सुज्झिही? ॥२॥किंबहुणा गोयमा ! एत्थं, दाऊण आलोयर्ण । तसचापर जो न रक्से, कत्थ गंतुं स सुजिमही?॥३॥ आलोइयनिंदियगरहिजोपि कयपायच्छितणीसत्रो। उसमठाणमि ठिओ पुढचारंभ परिहरिजा॥४॥ आलोइ। उत्तमठाणमि ठिओ, जोईए मा फुसावेग्जा ॥५॥ आठोइ० संविग्गो। उत्तमठामि ठिओ,मा वियावेज अत्तार्ण ॥६॥ आलोइ० संविग्गो। छिपि तणं हरियं, असई मणगं मा फरिसे ॥७॥ आलोइया संचिगी। उत्तमठामि ठिओ, जावजीचंपि एतेसि ॥ दियतेंदियाउरोपंचिदियाण जीवाणं । संघहणपरिवाचणकित्सवणोदयण मा कासी॥५॥ आलोइ. सैविम्यो । उत्तमठाणमि ठिो, सावज मा भणिजासु ॥१०॥ जालोइय० संविग्गो। लोयत्येणपि भू महिया मिहिउक्तिविउ दिना ॥१॥ आलोइनीसाहो । जे इस्थी संलविना, गोयम ! कस्य स सुज्विाही ? ॥२॥ आलोइया संचिम्गो। चोदसयम्मुवगरणे, उद मा परिगह जा ॥३॥ तेसिपि निम्ममतो अमुभिधी अगदिदो र दद हरिया। अह कुना उममता सुदी गोयमा! नस्थि ॥४॥ किंबहुणा' गोयमा! एवं दाऊणं आलोयण रयणीए आलिए पाणं, करच गंतुं स सुमिही?॥५॥ आलोइयनिदियगरहिओवि कयपायच्छित्तनीसतो। छाइकमे ण स्ले जो, कत्थ सुदिलमेज सो ॥६॥ अपसत्ये यजे भावे, परिणाम य दारुणे । पाणाइवायरस बेरमणे, एस पढमे अइकमे ॥७॥ तिवरागा यजा भासा, निदरसरफरसकासा । मुसावायरस बेरमणे, एस बीए अइकमे॥८॥ उपमाहं अजाइत्ता, अचियत्तमि उपगहे । अदनादाणस्स बेरमणे, एस तहए अहकमे ॥५॥ सदा रूया रसा गंधा, फासाणं परियारणे। मेहुणस्स बेरमणे, एस चढत्ये अइकमे॥१०७॥ इच्छा मुच्छा य गेही य, रखा लोभे य दारुणे। परिमाहस्स बेरमणे, पंचम गेसाइकमे ॥१॥ अहमताहार होइत्ता. सूरक्षितमि संकिरे। राईभोषणम्स वेरमणे, एस छहे अइनमेशा आलोइयनिदियगरहिओवि करपायश्चित्तणीसहो। जयणं अयाणमाणो, मयसंसार भमें जहा सुसदो॥१०॥ भया को उण सो सुखदो? कयरा या सा जयणा' जमजाणमाणसणं तस्स आलोइयनिदियगरहिलो(वरसा)वि करपायपिछलस्साचि संसारं णो विणिहियंति?, गोयमा! जयणा गाम अट्ठारसद सीलंगसहस्साणं सत्तरसविहस्सणं संजमस्स चोदसण्इं भूयगामार्ण नेरसम्म किरियाठाणार्ण सपज्झम्भनरस्स गं दुवालसविहस्स वोऽणुद्वाणस्स दुवालसन्हं भिक्षुपडिमाणं इसपिहस्सा णं समणधम्मस्स णपणहं पेष भगुत्तीणं अट्ठण्हं तु पपयणमाईणं सन्नाह चेव पाणपिंटेसणाणं छहं तु जीवनिकायाण पंचवहन महायाण सिहं तु घेय गुत्तीर्ण जायणं तिण्हमेच सम्मासणनाणचरितार्ण भिक्खू कतारभिक्लायंकाईमुणं सुमहासमपन्नेस अंतोमहलायसेसकंठगयपाणेपिणे मणसापि उसंदणं निराहणं ण करेजा ण कारवेजा ण समणुजाणेजा जाचणं नारभेजा न समारंभेजा जाकजीवाएत्ति, सेणं जयणाए भत्ते से गं जयणाय धुवे से जयणाएपदक्खे से जयणाए पियाणएत्ति, गोयमा ! सुसढस्स उण महती संकहा परमपिम्हयजणणी या२२ चूलिया पढमा एगंतनिजरा, चू-१०७॥ से भयर्थ! केणं अडेण एवं बुबह, तेण कालेण 1 तेणे समएणं सुसढनामधेजे अणगारेह भूय, तेणं च एगेगसणं पक्सस्संतो पभूयवाणियाओ आलोयणाओपिदिन्नाजी सुमहंताई चअबंतचोरसुबुकराई पायश्चित्ताईसमणुचिन्नाई तहावि तेणं वरएणं विसोहिपयं न समुबलदंति, एतेणं अद्वेणं एवं बुधइ, से भयर्व केरिसा उणं तस्स सुसहस्स बत्तत्रया ?, गोचमा! अस्थि इह चेव भारहे वासे अबसी णाम जणवओ, तत्व | य संयुके नाम खेडगे, तम्मि य जम्मदरिद निम्मेरे निकिने किविणे णिराणुकंपे अाकरे निकलुणे नित्तिसे रोहे चंडरोपयंडवंडे पाये अभिग्गहियामिच्छादिट्ठी अणुचरिखनामधेजे ११६६ महानिशीपच्छेदमत्रं, aint-s
मुनि दीपरतसागर
सलामणे, एल
दीप अनुक्रम [१४४३]
9
अत्र सप्तमं अध्ययन/(चूलिका-१) समाप्तं
अत्र अष्टम अध्ययन/(चलिका-२)- "सुषढ-अनगार कथा" आरब्धः
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आगम
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूल) ------- अध्ययन [८/चूलिका-२], --------उद्देशक [-1, ------- मूलं [१] +गाथा:||-11------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
मुजासिवे नाम चिनाइ अहेसि, तस्स य धूया मुज्जसिरी, सा य परितुलियसयलतियणनरनारीगणा लावन्नतिदित्तिरूचसोहम्गाइसएर्ण अणोचमा अत्तमा, तीए अन्नभयंतरंमि इणमो हियएण दुथितियं अहेसि, जहा ण-सोहणं हवेजा जइणं इमस्स बालगस्स माया वावजे तओ मज्म असवकं भवे, एसो य बालगो बुजीविओ भयह ताहे मज्जा सुयस्स रायलच्छी परिणमेजति, तकम्मदोसेणं तु जायमेत्ताए चेव पंचत्तमुचगया जणणी, तओ गोयमा ! तेर्ण मुजसियेणं महया किलेसेणं छंदमाराहमाणेणं बहूर्ण अहिणवपसूबवतीर्ण पराघरि बन्न पाऊण जीवानिया सा बालिया, जहनया जाच गं बालभाषमुनिन्नासा सुजसिरी ताप णं आगयं अमायापु महारोवंदुवालससंवारियं दुरिभक्तति, जाव फेहाफेडीए जाउमारदे सयलेविणं जणसमूहे. जहन्नया बहुदिक्सखुहतेणं विसायमुवगएणं तेण चितियं जहा किमेयं वाचाइऊर्ण समुदिसामि किंवा णं इमीए पोमालं चिकिणिऊणं चैव अन्न किंचिति वणिमगाउ पडिगाहिताण पाणवित्ति करेमि, णो णमन्ने केई जीवसंधारणोचाए संपर्य मे हरिजनि, ब्रह्मा हवी हा हा ण जुत्तमिति, किंतु जीवमाणि येव विशिणामित्ति चिंतिऊणं चिकिया सुनसिरी महारिवीजयस्स चोदसविनाठाणपारगरसणं माहणगोविंदस्स गेहे. तो बहुजणेहि घिद्धीसदोपहओ तं देसं परिचिचाणं गओ अन्नदेसतरं मुजसिनो, तत्थापिणं पयहो सो गोयमा ! इत्येव विन्नाणे जायणं अन्नेसि कन्नगाओ अबहरितार्ण अवहरिताण अन्नत्य विकिणिऊण मेलियं सुजसिबेण बहुं दविणजार्य, एयावसरमि उ4 समदकते साइरेगे असंवच्छरे दुभिक्सस्स जाप णे विचलियमसेसविहवं तस्साचि गं गोविंदमानस्स, तं च चियानिऊण विसायमुपगएणं चितिय गोयमा! नेणं गोविंदमाहणं, जहाणे होही संघारकालं मम कुटुंबस्स, नाहं निसीयमाणे बंधये खणडमनि बढणं सकणोमि, ता किं काय संपयं अम्हेहिति चितयमाणस्सेव आगया गोउलाहिवरणो मजा सइयगविकणणस्य तस्स गेहे जायण गोविंदस्स भजाए नंदरामागेण पदिगाहियाउ चउरो घणविगईमीससइयगकगोलियाओ, तेच पडिगाहियमेतमेव परिभुतं डिंभेहिं भणियंस चमहीयरीए-जहाणं महिदारिगे। पपछाहिणत अम्हाणं संतुलमार्ग चिरं कहे जेणऽम्हे गोउलं बयामो, तओ समाणता गोयमा! सीए माहणीए सा सुजसिरी जहा णे हला! ते जम्हा णरपणा णिसावर्य पहियं पहियं तत्य जंतं तंदुरामागं तं मग्गाहि लहुं जेणाहमिमीए पषच्छामि, जाव टंटवसिऊण नीहरिया मंदिरं सा मुनासिरी नोवललं तं तंतुलमार्ग, साहियं च माहनीए, पुणोवि मणिय माहणीए-जहा हला! अमुर्ग धाममणुदद्या अनेसिऊगमाणेह, पुणोचि पयहा अलिंदगे जाव गंण पिच्छे ताहे समुडिया सवमेव सा माहणी जाव गं नीएपि ण दिले पुण, सुविम्हियमाणसा णिउणमसिउँ पयत्ता, जाय गं पिच्छे गणिगासहाय पदमसुयं पथरिके ओवर्ण समुदिसमाण, तेणापि पडिबढ़ जमणी आगच्छमागी चितियं अहलेणं-जहा पलिया अम्हाणं ओयणं अवहरिउकामा पायमेसा, ता जड़ इहासनमागविही तओऽहमेयं वाचाइस्सामिति चितवंतेणं भणिया दरासमा चेच महा. सदेणं सा माहणी जहाणं भहिदारिगा! जब तुम इहयं समागच्छिहिसि तओ मा एवं तं पोलिया जहा णंगो परिकहियं, निच्छय अयं ते बाबाएस्सामि, एवं च अणिद्वयर्ण - सोचाणं बजासणिया इव धसनि मुग्छिऊणं निवटिया धरणिवढे गोयमा! माहणित्ति, तओनं तीए महीवरीए परिचालिऊणं किंचि कालक्वर्ण वुत्ता सा मुनसिरी जहा णं हला! P कमी! अम्हा णं चिरं ता भणस सिग्य नियजणणि जहा णं एह लहं पयछ तुममम्हाणं तंदुलमानगं अहा गं तंदुलमतग विपनई तओ मुम्गमागमेव पवच्छ, ताहे पविट्ठा सा सुजसिरी अलिंदगे जावणे बठूर्ण तमवत्वंतरगय माणी महवा हाहारवेणं घाहाविडं पयत्ता सा सुनसरी, चायनिऊणं सह परिवग्गेणं घाइओ सो माहणो महीयरी अ.तो पणजलेण आसासिऊणं पहा सा नेहिं जहा महिदारिंगे ! किमेयं किमेयंति?, वीए भणियं-जहाणं मामा अत्ताणर्ग दरमएणं दीहेणं खानेह, मा मा विगयजलाए सरियाए उम्भेह. मा मा अरजुएहि पाहि नियंलिए मजा(ज)मोहेणाऽऽणप्पेह, जहाणं किल एस पुत्ते एसा घूया एस णगे एसा सुण्डा एस जामाउगे एसा माया एस णं जणगे एसो भत्ता एस णं इट्टे मिट्ठ पिए कंते मुहीयसयणमित्तधुपरिवग्गे दहई पचवमेयं विदि अलियमलिया चेव सा बंधनासा, सकजत्थी चेव संभयए लोजो, परमत्यओ न केह मही, जाच णं सकज वाय माया तार जण नाव धया नाव जामाउगे ताव णं यत्तुगे ताव णं पुत्ते ताप गं सुण्हा ताप गं कंता वाचन हे मिहे पिए को सहीसपणजणमित्त घुपरिवम्गे, सकनसिदीपिरहेणं तुज कराई काइ माया न कस्सई केड जणमेण कस्सई काइ धूया ग कस्सई के जामाउगे ण कस्सा के पुसे ण करसई काइ सुण्डा न कस्सई केह भत्ता कस्सई के कंताण कस्सई केह इडे मिटे पिए कते मुहीसयणमित्तधुपरिवग्गे, जेणं तु पेच्छ पेच्छ मए अणेगोवाइयसउबलने साइरेगणवमासकुन्डीएवि धारिऊर्ण च अगमिट्टमहरउसिणविक्समुलुमलियसणिवाहारपयाणसिणाणुबहणधूपकरणसंवाहण(धण)धन्नपयाणाईहिणं एमहंतमणुस्सीकए जहा किल अहं पुत्तरन्नमि पुन्नपुन्नमणोरहा सहसणं पणइयणपूरियासा कालं गमीहामि, ता एरिसं एवं वइयरंति, एवं च णाऊण मा धवाईसुं करेह खणदमवि अपि पहिबंध, जहाणं इमे मा सुए संयुले तदान गई गेहे जे ११६७ महानिशीपच्छेदमत्र अन्याय
मुनि दीपानसागर
अनुक्रम [१४८४]
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आगम
(३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक -, ------- मूलं [१] +गाथा:||१|| ------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
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को भए जे के याति जे के भर्विसु एए नहा णे एरिसे, सेऽवि बंधुवो केवल तु सकलदे व पडियामहत्तपरिमाणमेव कथि काल भएजावा, नाभो भो जणा! ण किंचि कर्ज एतेणं कारिमबंधुसंताणेणं अणंतसंसारपोरदुस्खपदायगणंति, एगो व वाहजिसाणुसमय सययं सुविसुदासए भयह धम्म, धम्म धणं मिडे पिए कंते परमत्थसही सयणजणमित्तचेअपरिवम्गे, पम्मे य णं दिष्टिकरे धम्मे पण पुद्धिकरे धम्मेय गं बलकरे धम्मे यर्ण उच्छाहको धम्मे यणं निम्मलजसकित्तीपसाहगे धम्मे य णं माहपजणगे धम्मे यणं मुट्ठसोक्तपपरदायगे से ण से से आराहणिजे से थर्ण पोसणिने से य गं पालणिजे से यणं करणिने से यण चरणिजे से यणं अशुद्विजे से यणे उचास्सणिजे से यण कहणिजे से यण भण. णिजे से य पन्नवणिजे से यणे कारवणिजे से यणं धुवे सासये अक्सए अबए सयलसोक्खनिही पम्मे से यणं अलमणिजे से यणं अउलबलबीरिएसरियसत्तपरकमसंजए पवरे वरे
हेपिएको पाए सयलऽसोपसदारिदसतायुवेगमयसम्माखाणलमजरामरणाइसेसभयनिन्नासगे अणण्णसरिसे सहाए तेलोकेशसामिसाले, ता अल सहीसपणजणमित्तधरगणपन्नसुबाहिरण्णरपणाहनिहीकोससंचयाइ सकचाचविजुलपाडोचचंचलाए मिणिदजालसरिसाए खणविट्ठन गराए अधुनाए असासयाए संसारहिकारिगाए णिरया
पधारहेउभूपाए सोग्गासम्मविग्यदायगाए अणंतदुक्खपयाचगाए रिद्धीए. मुद्दालडाउ बेलाउ भो धम्मस्स साहणी सम्मईसणनाणचरिताराहणी नीकत्ताइसामग्गी अणवस्यमहन्निः आसाणुसमएहि संडासंडेहिं तु परिसडइ अदढयोरनिरासम्भचंडाजरासमिसग्णिवायसंचुण्णिए सबजारमंडएइव अकिंचिको भाउ दियहाणदियहे हमे तण, किसलयाल..
गपरिसंठियजलबिदुमिचाटे निमिसबभतरेणेच लहुं टला जीविए, अविदत्तस्स परलोगपत्ययणाणं तु निष्फले चेच मणुषजम्मे, ता भोग समे तणुयतरेवि सिपि पमाए. जी IS एवं खल सनकालमेर समसनुमित्तभावेहिं भवेय, अप्पमत्तेहिं च पंचमहबए पारेयवे, तंजहा-कसिणपाणाइवायविरती अणलियभासित दंतसोहनमित्तस्सवि अविन्नस्स बजणं मणोवयकायजोगेहि तुजलंटियमविराहियणचगुतीपरिपेदियस्स परमपवित्तस्स सबकालमेच दुबखभचेरस धारणं पत्थपत्तसंजमोवगरणेसुपि जिम्ममत्तया असणपाणाणं तीन पहिणेवराईभोयणचाओ उम्गमउपायणेसणाईसुणं सुविसुपिंडराहणं संजोयणाइपंचदोसविरहिएणं परिमिएणं काले तिजे पंचसमितिचिसोहणं तिगतीगलया रियासमिमा. देउ भाषणाओ अणसणाइतबोचहाणाणुहाणं मासाइभिक्खुपडिमाउ विचिसे दवाईअभिग्गहे अहोरहाणे भूमीसपणे केसलोए निप्पडिकम्मसरीरया समकालमेर गुनिओगफरणं महापिवासापरीसहाहियासणं दिवाइउपसम्गचिजओ लवाचलदचित्तिया, किं बहुणा?, अचंतबहे भो बहियो अचीसामंतेहिं बेच सिरिमहापुरिसन्टे अहास्ससीलंगसहस्सभारे तरिया म भो चाहाहिं महासमुहे अविसाईहिंपणं भो मक्खियोणिरासाए वालुयाकवले परिसोय च भो णिसियसुविक्खदारुणकरवालधाराए पाया यणं भो सुययवहजालावलीमरियो णं भो सहमपपणकोत्थलगे गमियां च भी गंगापवाहपटिसोएणं तोलेयर्व भो साहसतुलाए भंवरगिरि जेयवे यण भो एमागिएहि चेय धीरशाए सुरजए पाउरो बले विधे. यहाण भो परोपरविचरीयममंतबद्यकोपरिवामचिम्मि उंची(उधी)उलिया गहेयवाणं भो सबलविद्यणविजया णिम्मळजसकित्ती जयपडागा, ना भो भोजणा एयाओ धम्माणुहापाओ सुरकर जस्थि किंचिमति, 'मंति नाम भारा ते बिय पुमति बीसमतेहि। सीलभरो अजगुरुत्रो जावजी अविस्सामो ॥१॥ना उभिऊण पेम्मं घरसारं पुत्तरविणमाईय। | णीसंगा अपिसाई पपरह समुत्तमं धर्म ॥२॥णो धम्मस्स भडका उऊंचण बंधणा य ववहारो। णिच्ढम्मो तो धम्मो मायादीसाइरहिओ उ ॥३॥ भए जंगम मुवि पंचेंदि । पत्तमुकोस। तेसरिजमाणुसतं मणुयले आरिओ देसो ॥४॥ देसे कुलं पहाणं कुले पहाणे य जाइमुकोसा । तीए रुक्समिदी रूचे व बल पहाणपरं ॥ ५॥ होइपले चिय जीर्थ जीए य पहाणयं तु विनाणं। विषाणे सम्मत्तं सम्मने सीलसंपत्ती ॥६॥ सीले खाइयभावो खाइयभावे व केवलं नाणं । केवलिए पडिपुन्ने पने अयरामरो मोक्खो॥७॥णय संसारंमि सुई जाइजरामरणासगहियस्मा जीपस्स अस्थि जन्हा तम्हा मोक्लो उबाएओ ॥८॥ जाहिंडिऊण मुहरं अगंतहलो हु जोणिलक्खे। नस्साहणसामग्गी पत्ता मो मो बहानि ॥९॥ तो एत्व जन्न पलं नइत्य भो उनमं कुणह तुरियं । विहजणणिदियमिणं उज्माह संसारअणुबंध ॥१०॥ हिउ भो धम्मसुई प्रणेगभवकोडिलक्खसुविचुलहं। जहणाणुह सम्मंता पुणरवि दुलह होही॥१॥लदेडियं च मोहिं जो णाणुढे अणागर्य पत्ये। सो भोजन्नं बोहि साहिही कपरेण मोहवणं? ॥२॥ जाच गं पुबजाईसरणपचएणं सा माहणी एनियं नागरेर ताचणं गोयमा ! पडिदमसेसपि बंधुजणे बहुणागरजणीय, एवाक्सरंमि उ गोयमा ! मणिय सुनिदियसोग्गइपहेग नेणं गोविंदमाहणेणं-जहाणं चिदिदि वंचिया एयावन्न काल, जती वयं मुटे अहो गं कहमन्नाणं दुनिन्नेयमभागधिनेहि महसत्तेहिं अविठ्ठपोरुग्णपरतोगपचवाएहि अतनाभिणिपिट्टविट्टीहि पक्खयायमोहसंधुक्रियमाणसेहि रागदोसोवयबुद्धीहि परं तत्तधम्म, अहो सजीवणेष परिमुसिए एपइयं कालसमय, अहो किमेसणं परमप्पा भारिबाउलेगासिउ मा गेहे उदाह गं जो सो मिच्छिमओ मीर्मसएहि सान्न सोभिएस परिए
इव संसयतिमिराबहारितेण लोगाचभासे मोक्समग्गसंदरिसणथं सयमेव पायडीहए, अहो महाइसयत्ययसाहगाउ मज्म दइयाए बायाश्री, भो भो जणवत्तविण्हुपन-(२९२) Lal ११६८ महानिशीवच्छेदमूर्व. amail
मुनि दीवानसागर
दीप अनुक्रम [१४८५]]
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आगम
(३९)
प्रत सूत्रांक
[3]
+
गाथा
||१२||
दीप
अनुक्रम [१४९७]
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं )
अध्ययन [ ८/चूलिका-२], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ....
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उद्देशक [-1. मूलं [१] + गाथाः ||१२|| ...आगमसूत्र [ ३९ ], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
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जष्णदेवविस्सामित्तसुमिचादओ मज्झ अंगया! अम्बुद्वाणारिहा ससुरासुरस्सावि णं जगस्स एसा तुम्ह जणणिति भो भो पुरंदरपमितीउ खंडिया वियारह णं सोवज्झायभारियाओ (ए) जगत्तपाणंदाओ कसिणकिसिद्दिणसीलाओ वायाओ पसनोऽज तुम्ह गुरू आराहणेकसीलाणं परमप्पलं जजनजायणज्झयणाइणा छकम्माभिसगेणं तुरियं विनिहि पंचे दियाणि परिचयहणं कोहाइए पावे विषाणेह णं अमेज्झाइ जंचालकपटिपुष्णामुती कलेवरपचि (वे) समोणतं इच्चेयं अमेगाहिवेरमाजणणेहि सुहासिएहिं वागतं चोदविजाठापार भो गोयमा ! गोविंदमाहणं सोऊन अर्थात जम्मजरामरणभीरुणो महने सम्पुरिसे समुत्तमं धम्मं विमरिसिउं समारडे, तत्य के वयन्ति जहा एस धम्मो पवरो, असे मत जहा एस धम्मो पवरो. जाव णं सहिं पमाणीकया गोयमा सा जातीसरा माहिणिति, ताहे तीय संपवक्वायमहिंसोलसियमसंदिदं ताइदसविहं समणधम्मं दितहिं च परमपर्य विणीयसि तु तत्र यने में माणि सन्तुमिति काऊ सुरइयकरकमलंजलिगो सम्मं पणमिण गोयमा तीए माहणीए सद्धि अदीणमणसे बहने नरनारीगणे चेला सुहिवजन मित्तबंधूपस्विग्गगिनिसोक्खमप्यकालिये निक्खते सासयसोक्स्खमुहाहिलासिणो सुनिच्छियमाणसे समजतेण सलगुणोहधारिणो चोदसपुतपरस्त परिमसरीरस्स णं गुण धरथविरम्स सयासेति एवं च ते गोयमा अनंतपोरवास्तवसंजमामुडाणसज्झायाणाईमु णं असेसम्मक्लयं काऊ तीए माहणीए समं विदुयश्यमले सिदे गोमाहादओ मरणारिंगणे सवेऽवी महायसेलिवेमि १ भयवं किं पुण काऊ एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधिज्ञा माहणी जाए एयावइयाणं भवसत्ताणं अनंतसंसारपोरसुक्खर्सतत्ताणं सद्धम्मदेसणाइएहिं तु सासमुहपयाणपुराम भुदरण कयंति, गोयमा जं पुत्रं सदभावभावतरंतरेहिं णं णीसले आजम्मालोयणं दाऊणं सुदभावाए जहोव पायच्छि कर्य, पायच्छित्तसमतीए य समाहिए य का काऊ सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमणुभावेणं, से भयवं किं से णं माहणीजीवे तन्भर्वतरंमि समणी निग्गंधी अहेसि, जे समालत्ताणं जहोब पायच्छित्तं कर्वति, गोयमा जेणं से माहणीजीचे से गंजम्मे बहुलद्धिसिद्धिए महिड्दीपले सबलगुणाहारभूए उत्तमसीन्सहियित महातपस्वी जुगपहाणे समणे अणगारे गच्छाहिवई अहेसि णो णं समणी से भयवं ता कयरेण कम्मविवागणं तेणं गच्छाहिवणा होऊणं पुणो इत्थित समजियन्ति ? गोयमा मायापवणं, से भयवं! कयरे में से मायापचाए जेणं पयणी (नू) कयसंसारेच सयलपाचोपणावि बहुजननिदिए सुरहिरहदापयखंड चुणसंकरियलमभावपमाणागनिष्फलं मोयगाव सङ्घस्स भक्त्रे सयलदुक्खकेसाणमालए सयलमुहासणस्स परमपविनुत्तमस्स णं अहिंसालवणमधम्मस्स विग्ये सम्माग्लानिरयदारभूये सलअप अकिलकलंककलिये राइपावनिहाणे निम्मलस्स कुलस्स णं दुद्धरिसअकलकलहमसीसंपणे तेणं गच्छाहिबणा इत्यीभावे वित्तिएत्ति, गोयमाणो णं गच्छाविइत्तठिएवं अणुमवि माथा कथा से नया पुवई पकहरे भवित्ताणं परलोगभीस्ए णिक्षिकामभोगे तिणमिव परिचाणं तं तारिस चोदस रयण नव निहीनो बोसडीसहस्स पर जुवईण बत्तीस साहस्सी ओजणादिवरनरिंद] [छन्नउई गामकोटीओ जाव णं उपखंड मरवासस्स में देवेंदोचमं महारायलच्छ तीयं बहुपुन्न चोहए नीसंगे पइए अ. धोकाले सयलगुणोहधारी महातपस्सी हरे जाए, जोगे नाऊण सुगुरूहिं गच्छाहिक समणुष्णाए, तहिं च गोयमा ते सुदिप जोव समणधम्मं समणुट्टेमाणेणं उम्गाभिम्महविहारिताए पोरपरीसहोपसग्माहियासणेणं रागदोसकसायचित्रमेणं आगमानुसारेण तु विहीए गणपरिचालणं आजम्मं समणीकपपरिभोगवजण उकापसमारंभविवजण ईसिपि दिशेोरालियमेहुणपरिणामविप्यमुकेणं इहपरलोगासंसारणियाणमायाइसविप्यमुकेण णीसत्तालोयणनिंदणगरहणणं जहोवइपायच्छित्तकरणेणं सत्यापविद्धलेणं सपमायाचणविष्पमुद्देण अणिददअक्सेसीफए अणेगभवसंचिए कम्मरासी, अणभवे ते माया कया तप्पचएणं गोयमा एस विवागो से भयवं कबरा उण अनभवे तेण महाणुभागेणं माया कया जीए गं एरिसो दारुणो विगो, गोयमा तस्स णं महाणुभागस्स गच्छाहिवद्दणो जीवो अणूणाहिए लक्लइमे भवग्गणे सामग्रनरिदरसणं इत्यत्ताए घूया अहेसि, अनया परिणीयात मओ भत्ता, तो नरवणा भणिया जहा भदा एते तुम्भं पंचसए सगामाणं, देसु जहिच्छाए चाणं विगलाणं अर्थगमाणं जगाहाणं बहुवाहिवेयणापरिगयसरीराणं सहलायपरिभूयाणं दारिददुस्खदोहम्गकलंकियाणं जम्मदारिदाणं समणाणं माहणाणं चिलियाणं च संबंधिबंधवाणं जं जस्स हई भत्तं वा पार्ण वा अच्छायणं वा जान घणघणसुवनहिरणं वा कुणमु य सयलसोक्खदायगं संपुष्णं जीवदयंति, जे णं भवंतरेसुंपि ण होसि सयलजणमुहाप्पियगारिया सङ्घपरिभूया गंधमतंबोलमाल हाइजच्छियभोगोपभोगबजिया हयासा दुजम्मजाया दिद्वाणामिया रहा, ताहे गोषमा सा तहनि पडिणि पगलंतलोय सुजलनिदोषकबोलदेसा उसरसुभमणुपपरसरा भणिउमादत्ता- जहां णं न पाणिमोऽहं पभूयमालबित्ताणं णिगच्छावेह लहूं कट्टे रएह महई चियं निदमि अत्ताणगं न किंचि मए जीवमाणीए पावाए. माऽहं कइिचि कम्मपरिणइवसेनं महापादित्थी चवलसहाय१९६९ महानिशीथच्छेद, अन्य
C
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“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक -------- मूलं [२] +गाथा:||१२...||------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
लग
हाणं स्वणमवि विलविर पायोगस्य अहो एकजम्माभिभिविचित्तया हाजिमोक्रये पाचचंधणसंपाए घिविली प्रसाद पण्टिन, जाप शंका
गाथा ||१२||
ताए एतस्स तु असरिसनामस्स निम्मलजसकित्तीभरियभुषणोयरस्सणं कुलस्स संपणं काह.जोण मलिणीभवेजा सत्रमविकलं जमाति.सओ गोयमा।वितिय तेण परवाणाजहा गं अहो पलोई जस्स अपुत्तस्साविध एरिसा धूया अहो विवेगं वालियाए अहो बुद्धी अहो पना अहो वेरम् अहो कुलकलंकभीण्यत्तणं अहो सणे सणे बंदणीया एसा जीए एमहन्ते गुणे ता जाच गं मज्य गेहे परिवसे एसा ताचणं महामहंते मम सेए, जहाविवाए संभरियाए सलावियाए व सुज्मीयए इमीए, ता अपुत्तस्सण मज्जा एसा व पुत्तताइत्ति थिंविऊणं मणिया गोयमा ! सा तेण नरवणा- जहा ण न एसो कुलवामो अम्हाण वच्छे ! जं कट्ठारोहण कीरइति, ता तुम सीलचारित्नं परिचालेमाणी दाणं देसु जहिच्छाए कुणसुबम पोसहोववासाई विसेसेणं तु जीवदय, एवं रज तुज्नति, ता गं गोयमा! जणगणं एवं भणिया ठिया सा समप्पिया य कंचुईणं अंतेउररक्तपाल्याणं, एवं च वर्चतर्ण कालसमएणं तओ गं कालगए से नरिदे, अन्नया संजुजिऊणं महामाईहिंर्ण मनीहिं को तीए चालाए रायाभिले ओ, एवं च गोयमा! दिबहे दियहे देइ अत्याणं, अहऽग्नया तत्थ णं पहुचंदचहामहवडिगकप्पडिगचउरवियपरतणमंतिमहतगाइपुरिससयसंकुलअत्याणमंडरमसंमि सीहासमोवविद्वाए कम्मपरिणाइक्सेणं सरागाहिलासाए चक्सूए निझाए नीए सत्रुतमरूपजोवणलावणसिरीसंपओचवेए भावियजीवाइपयत्ये एगे कुमाश्चरे, मुणियं च नेण गोयमा ! कुमारणं-जहाणं हा हा मर्म पेच्छिप गया एसा वराई पोरंचयारमणतदुक्लदायगं पायालं, ताल अहोऽहं जस्स णं एरिस पोग्गालसमृदाए तणू रागर्जतं, किंमए जीविएणं?, दे सिग्धं करेमि अहं इमस्त णं पाचसरीरस्स संथारं, अब्भुडेमि णं सुदुकरं पच्छितं, जाप णं काऊण सपत्संगपरिचार्य समण्डेमिक सयलपावनिहलणं अणगारचम्म, सिदिल्लीकरेमि णं अगभवंतरविदने सुधिमोक्खे पापधणसंपाए, चिनिजी अवस्थियस्सणं जीवलोगस्स जस्स | एरिसे अणप्पवसे इंदियगामे अहो अदिहपरलोगपचवायया लोगस्स अहो एकजम्माभिणिविचित्तया अहो अविण्णायकनाकजया अहो निम्मेरया अहो निप्परिहासया अहो परिचतलजया हा हा हा न जुत्तमम्हाणं खणमवि विलंबिर्ड एवं एरिसे सुदुनियारसजपावागमे देसे. हा हा हा पहारिए। जहन्नेणं कम्मदरासी जमदरिय एकए रायकुलबालियाए इमेणं कुछपायसरीररूपपरिदसणेणं गयणेतुं रागाहिलासे, परिचिचार्ण इमे विसए नजो गेहामि पाजति चितिऊणं भणियं गोषमा! तेणं कुमारवरेणं, जहाणं संतमरिसियं णीला तिषिहतिविहण तिगरणसुदीए सास अत्याणमंडरायउलपुरजणस्सेति मणिकर्ण विणिग्गओ रायठलाओ, पतो य निययावास, तत्व ण गहिये पत्यवर्ण, दोसटीकाऊण वासिय केणावलीतरंगमउर्य सुकुमालवयं परिहिएणं अवफलगे गहिएणं दाहिणहत्येणं सुषणजगहियए इच सरलवित्तलयलंडे, तओ काऊणं तिहुयणेकगुरुणं अरहताणं भगवंताणं जगप्यारागं चम्मवित्थंकराणं जहुचविहिणाऽमिसंचवर्ण पंदणं, से णं चलचलगई पत्ते गं गोयमा ! दूरं देसंवरं से कुमारे जाप णं हिरण्णुकरडीणाम रायहाणी, नीए यहाणीए पम्माय| रियाण गुणविसिट्ठाण पडत्ति जन्मेसमाणे चितिउं पयत्ते से कुमारे- जहा जान गंण केई गुणनिसिढे धम्मापरिए मए समुबलदे ताविहई चेव मएवि चिट्ठिया, तो गयाणि फइन-- याणि दियहाणि, भयामि गं एस बहुदेसविस्वायकिती णरवारिंद, एवं च मंतिऊगं जावणं दिवो राया, कयं च काय, सम्माणिजो यमरणाहेणं, पडिण्डिया सेवा, अनया लया. बसरेणं पुट्टो सो कुमारो गोयमा ! तेणं नरवडणा-जहाभो भो महासत्ता ! कस्स नामालकिए एस तुझं हत्यमि चिरायए मुहारयणो?, को वा ने सेपिओ एवायं कालं, केवा - बमाणए कए वह सामिणचि?.कुमारणं भणियं-जहा णं जस्स नामालकिए थे इमे मुहारवणे से णं मए सेपिए एवइयं कालं, जेणं मे सेविए एवइयं कालं तस्स नामालकिए इमे मुहारयणे, तओ नरवहणा भणियं-जहाणे किं तस्स सरकरणति ?, कुमारेणं मणिर्य-नाहं अजिमिएणं तस्स चक्खुकुलीलाहम्मस्स. सहकरणं समुबारेमि, तओ रग्या म. णियं-जहा गं भो भो महासत्त: केस एसो चासुकुसीलो भण्णे किंवा अजिमिएहि तस्सदकरणं नो समुचारियए.कुमारेण भणियं-जहा णं चामखुकुसीलोति सहाए, पाणंतरेहितो जइ कहा(दाद इहवं विद्वपचयं होही तो पुण वीसत्यो साहीहामि, जं पुण तस्स जजिमिएहिं सदकरण एसेणं ण समुचारीयए, जहाणं जा कहा(बा) अजिमिएहि वनस्स
चक्कु सीलाहम्मत णामग्गहर्ण कीरए ताणं गस्थितमि दियहे संपनी पाणभोयणसत्ति, वाहे गोयमा! परमविम्हिएणं रन्ना कोउहतेण लई हकाराविया रसबर्ष, उपविहो भोषणमंडबेराया सह कुमारणं असेसपरियणेणं च. (आणापिय) अद्वारसखंडवनयवियप्पं णाणाविहमाहारं. एयावसरमि मणियं नरवहणा-जहाणं भो भोमहासत्त! मणसु पीसको तुम संपर्य तस्सणं चरखुकुसीलस्सणं सहकरणं, कुमारणं मणिय-जहा नरनाह! मणिहामि भुतुत्तरकालेणं,गरवहणा मणियं-जहाण भोमहासत्त! दाहिणकरचरिएणं कालेण संपर्य चेव भणसु जेणं सुजाइ एवाए कोडीए संठियाणं केई विग्ये हवेजा तानमम्हवि सुदिपचए संते पुरपुरस्सरे तुझाणचीए अत्तहियं समचिट्ठामो, तओण गोयमा ! मणियं तेण कुमारेणं-जहा
एवं एवं अमुगं सहकरणं तस्स चक्कु सीलाहम्मरस णं दुरंतपतलक्षणादायुनायजन्मस्सत्ति, ता गोयमा ! जाय णं पेचवर्य समुतने से गं कुमारवरे ताबणं अमोहिपवित्ति११७० महानिशीपच्छेदसूर्य, असा
मुनि दीपालसागर
दीप अनुक्रम [१४९८]
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आगम
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“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक [-1, ------- मूलं [२] +गाथा:||१४||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
Aroy45e495
गाथा ||१४||
एगेव समुदासियं वासणा परचकेणं तं रायहाणी, समुद्धाबए गं सन्नवदुखए णिसियारवालातविष्फुरतचकाइपहरणाडोक्यम्गपाणी हहणणरापभीसणा पहुसमरसंघहादिण्णपिट्ठी जीयंतकरे अउलवलपरकमेणं महाबले परवले जोहे, एयापसरम्हि य कुमारस्स चालणेसु निवडिऊर्ण विद्वपचए मरणभयाउलताए अगणिपकुलकमपुरिसयारं विपणासे, दिसिमे. कमासत्ताणं सपरिगरे पणद्वे से नरपरिद, एत्यंतरमि चितिय गोयमा ! तेणं कुमारेणं-जहाणे नो सरिस कुलकमेऽम्हाणं जे पहि दापिना, णो गंतु पहरिया मए कस्सापिगं अ. हिंसालक्खणधम्म बियाणमाणेणं करपाणाइयायपचखाणेणं च, ता किंकरेमिणं, सागारे भत्तपाणाईणं पचखाणे अहवा गं करेमि', जो बिडे णं नाव मए विट्ठीमितकुसी लस्स गामाहोणावि एमहतसंविहाणगे, ता संपर्य सीलस्साविणं एवं परिक्सं करेमिति चितिऊर्ग मणिउमाढते गं गोयमा! से कुमारे-जहाणे जड अहयं पायामिणावि फुसीलो ता गं मा णीहरजाह अक्सयतणू खेमेणं एयाए रायहाणीए, अहा गं मनोवइकायतिएणं सापयारेहिणं सीलकलिलो तामा पहेला ममोपरि इमे सुनिसिए राहणे जीतकरे पहरपणिहाए, णमो २ अरहताणति भणिऊणं जाव णे पपरतोरणदुबारेणं चलचवलगाई जाउमारखो, जावणं पडिकमे थे भूमिमार्ग साच मेहताविय कम्पडिगवेसेणं गच्छह एस नरवासिकाऊणं साहस हण हण मर मरति भणमाक्सित्तकरचालादिषहरणेहिं पवरबलजोहेहिं. जावणं समुदाइए अब भीसणे जीतकरे परवलजोहे साप णे अविसणअणुदयाभीयतत्यादीणमाणसेण गोयमा! भणिय कुमारण जहा णं भो भो परिसा ! ममोरि चेह एरिसेणं घोरतामसभावेण अन्तिए, असइंपि सहज्ज्ञवसायसंचियपुण्णपम्भारे एस अहं. से तुम्ह पडिसत्तू अमुगो गरवती, मा पुणो मणियासु जहाणे जिलको अम्हाणं भएणं, ता पहरेजामु जइ अस्थि बीरिवति, जावेत्तिय भणे लावणे सक्रवणं पंव थभिए ते सचे गोयमा ! परवलजोहे सीलाहिद्वियत्ताए तिवसायि अलंघणिजाए तस्स भारतीए, जाए य निबलदेहे. नओ गाणं घसत्ति मुग्छिऊर्ण मिचिद्वे णिवडिए परणिबढे से कुमारे, एयाचसरम्ही उगोयमा! तेण णरिवाहमेणं गृहियमायाविणा पुत्ते धीरे सनत्याची समस्ये सवलोयभमंते धीरे भीरू वियक्रवणे मुश्खे मूरे कावरे चउरे चाणक्के बहुपचभरिए संधिविग्गहिए निउने छहले पुरिसे जहागंभो भो (गिण्डेहरियं रायहाणीए बजिवनीलससिसूरकतादीए पवरमणिरयणरासीए हेमनुगतननीयजंबूणयसुवयभारलासा,किंबहुणा', विसुद्धबहूजचमोतियविमलास्लिक्सपरिपुचरसणं कोसस्स चाउरंगस्स(य)बलस्स, विसेसओणे तस्स सुगहियनामगहणस्स पुरिससीहस्स सीलसुदस्स कुमारपरस्सेतिपडनिमाणेह जेणाहं णिप्युओ भवेयं, नाहे नरवाणो पणामं काऊर्ण गोयमा ! गए ने निउत्तपुरिसे जावणं तुरियं चलचवलजाइणकमपवणवेगेहि गं आकहिऊगं जबतुरंगमेहि निउंजगिरिकंदमहेसपहरिकाओ खणेण पत्ते रायहाणि, दिडो व तेहि पामवाहिणभुयाए पालवेहिं क्यणसिरोरहे विलुप्पमाणो कुमारो, नस्स य पुरओ सुक(प)लाभरणणेवत्या दसदिसासु उज्जोयमाणी जयजयसदमंगलमुहला स्वहरणबामडोभयकरकमसपिरहयंजली देवया, च ददठूण विम्हयभूयमणे लिप्पकम्मणिम्मविए(ठिए), एयाचसरम्हि उगोयमा! सहरिसरोमंचकंचुपलायसरीराए णमो अरहताणति समुचरिऊण मणिरे गयणद्वियाए परयणदेवयाए से कुमार-तंजहा जो दलद मुद्विपहरेहि मंदरं धरह करयले वसह। सनोदहीणविजल आयरिसह एकपोहणं ॥१३॥ टाले सम्पाउ हरि कुणा सिर्च नियणसविखणेणं । अपराडियसीलाण कुत्तोऽपि ण सो पहुयेजा ॥४॥ अहवा सोथिय जाओ गणिजए तिहुयणस्सविस बंदो। पुरितो व महिलिया वा कुलमाउ जो न खंडए सील ॥५॥ परमपवितं सप्पुरिससेपियं सयलपावनिम्महणं । सत्रुतमसोक्सनिहिं ससरसविहं जयह सील ॥६॥ विभाणिऊण गोयमा ! सचिमुका कुमारस्सोपरि कुसमवृद्धि पचयणदेवयाए, पुणोऽपि भणिउमादत्ता देवया-जहा 'देवस्स देति दोसे पर्वचिया अत्तणो सम्मेहिाण गुणेसु ठचित मुहाई मुखाए जोएंति॥१७॥मन्सत्यभाववत्ती समदरिसी सबलोयींसासी । निफ्लेवयपरियन दियो न करेइ ढोए॥८॥ता बुझिऊण सबुत्तमं जणा सीलगुणमहिवदीयं । तामसभा चिबा कुमारपयपंकयं णमह ॥ १९॥ नि भणिऊणं अहंसर्ग गया देवया इति, ते वारिसे लहुं वगंतृणं साहियं तेहिं नरबहणो, तो आगो बहुविकल्पकाडोलमालाहिणं आऊरिजमाणहिययसागरो हरिसमिसायरसेहि भीउड्ड(ह)पा तत्वचकियहियाओ सणियं गुज्झसुरंगखडकियादारेणं कंपंतसागतो महया कोउहातेणं, कुमारदसणुकठिओ य नमुरेस, विडो य तेणे सो सुगहियणामधेनो महायसो महा सनो महाणुभावो कुमारमहरिसी, अपरिचाइमहोहीपचएणं साहेमाणो संखाइयाइभवाणुहयं दुक्खसुहं सम्मत्ताइलंभ संसारसहावं कम्मचहितीविमोक्खमहिसालवणमणगारे क्यखध गरादीणं मह मिसनो सोहम्माडिवाइयरिउवरिपंडरायचत्तो, नाहे य नमविद्वपुरमच्छेग बण पटिदो सपरिग्गहो पाओ य गोयमा ! सो राया परचकाहिबईवि, एन्वंतरंमि पहयस्सरगंभीरगहीरपंदुभिनिग्घोसपुत्रेण समुग्पुढे चउधिहदेवनिकाएणं, जहा-'कम्मगुगंठिमुसमूरण, जय परमेद्विमहायस। जय जय जयाहि पारितसणणाणसमष्णिय ! ॥२०॥ सचिव जणणी जगे एका, पंदणीया सणे २। जीसे मंदरगिरिगाओ, उबरे पुच्छो तुर्म महामुणि॥२१॥ति मणिकर्ण विमुंघमाणे सुरभिकुसुमबुद्धि मसिमरनिभरे विशयकरकमलं. ११७१ महानिशीवच्छेदसूत्र, जात-<
मुनि दीपरजसागर
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आगम
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“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [२] +गाथा:||२१|| ------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
हीए सहमालोइयं तीसरकारिए: जेणं तुम्ह सत्तावनावतिरण गोयमा ! भणियं तीए .
गाथा
||२१||
जली उत्ति निवडिए ससुरीसरे देवसंपे गोयमा! कुमारस्स णं चलणारविंदे, पणचियाओ देवसुंदरीओ, पुणो पुणो मिस युणिय णमंसिय चिरं पलुवासिऊर्ण सत्यागेसु गए देवनिवहे १२ से भव: कहं पुण एरिसे सुलभवोही जाए महायसे सुगहियणामधेजे से णं कुमारमहरिसी, गोयमा! तेणं समणभावहिएणं अमजम्मंमि पाचावंडे पडले अहेसितंनिमित्तेणं जायजीव मूणाए गुरुपएसेणं साधारिए, अच-तिम्नि महापाचवाणे संजयाणं तंजहा-आऊ तेक मेहणे, एते य समोवाएहिं परिवजिए. तेण तसे एरिसे सुलभगोही जाए. अ. हाम्नया र्ण गोयमा! बहुसीसगणपरिगए सेणं कुमारमहरिसी पस्थिए सम्मेयसेलसिहरे वेहचायनिमित्तेणं, कालकमेणं तीए पेषवत्तणीए(गए)जत्यण से रायकलवालियापारिदेवासकुसीले, जाणाविर्य व रायउले, आगओ य यंदणवत्तियाए सो इस्पीनरिंदो उजाणवरंमि, कुमारमहरिसिणो पणामपुत्रं च उपविट्ठो सपरिकरो जहोइए भूमिभागे, सुणिणापि पर्वघेणं कया देसणानेच सोऊण धम्मकहावसाणे उवहिजो सपरिपम्मी जीसंगत्ताए, पवइओ गोयमा! सो इत्थीनरिंदो, एवं च अपंतपोरवीरुमाकहकरतवर्सजमाणुहाणकिरिवामिरयाणा ससिपि अपठिकम्मसरीराणं अपठिनदविहारत्ताए अचंतणिप्पिहाणं संसारिए चकहरसुरिंदाइइदिवसमुदयसरीस्सोक्पेसं गोयमा! यह कोई कालो जाच ण पत्ते सम्मेवसेलसिहरम्भासं, तओ भणिया गोयमा। तेण महरिसिणा रायकुलमालियाणरिदसमणी-जहा णं दुकरकारिंगे ! सिग्य अगुइयमाणसा समभावभावंतरेटिंग सुविसुई पयच्छाहि ण णीसानमालोयणं, आटवेयवा य संपर्य सनेहिं अम्हेहि देहचापकरणेकबदलक्खेहिणीसाठालोइयनिदियगरहियजहुचसुदासयजहोवाइकयपच्छिन्तुवियसाहिं च कुसलदिवा सलेहणत्ति, तओणं जहत्तविहीए सबमालोइयतीए रायकुलवालियाणरिवसमणीए जाच संभारिया तेणं महामुनिणा जहा गं जह में क्या रायस्थाणमुननिहाए नए गारत्वमामि सरागाहिलासाए संचिक्खिओ अहेसि तमालोएहि एकरकारिए! जेणं तुम्हें सबुत्तमविसोही हवइ, ओण तीए मणसा परिवपिऊर्ण इचवलासयनिवडीनिकेयपावित्वीसभापत्ताएमा मं चपस्सीलत्ति अमुगास घूया समणीणमंतो परिवसमाणी भग्निहामिनि चितिऊण गोयमा ! मणिय तीए अमागधिजाए-जहा भगय ! ण मे तुम एरिसेणं अटेणं सरागाए विट्ठीए निमाइओ जजोणं जहयं तं अहिलसेना, किंतु जारिस णं सुब्भे सघुत्तमरुवतारुण्णजोषणलापन्नतिसोहग्गकलाकलाबविण्णाणणाणाइसयाइगुणोहविच्छड्डमडिए होत्या विसएसं निरहिलासे सुविरे ता किमेवं तहत्ति किया णो ण तहत्तित्सि तुझ पमाणपरितोलणस्थ सरागाहिलासं च पउत्चा, णो णं चाभिलसिङकामाए. अहना इणमेत्य चेवालो. इयं भवउ किमित्य दोसंति, मज्झमवि गुणावहयं भवेना, किं तिथं गतव मायाकपडेग, सुवष्णसयं के पयच्छे, वाहेबगंजबंतगव्यसंवेगमावन्ने] विदिहसंसारचलित्थीसभावस्स गति चितिऊणं भणिय मुणिवरण जहाणं विदिदित्य पावित्पीचलस्समावस्स जेणं तु पेच्छ २ एहमेशाणुकालसमएणं केरिसा नियही पउत्तति', अहो खलिस्तीर्ण चाउचचलबलपचलमिट्टी(न)एगट्ठमाणसा खणमेगमविदुजम्मजायाण अहो सयलाकनमंडोइलियार्ण अहो सबलायसकिनीबुटिकराणं अहो पावकम्माभिणिविहजनवसायाम् अहो अभीयाणं परलोगगमर्णवचारपोरदारुणयुक्तकंहकदाहसामलिकुमीपागाइरहियासाणं, एवं चबई मणसा परिवप्पिकण अणुयत्तणाविरहियधम्मिकरसियरपसंतवयण पसंतमहस्लरेहिं गं धम्मदेसणापुत्रगेणं भणिया कुमारणं रायकुलबालियानारिंदसमणी गोयमा ! तेणं मुणिकरेणं जहाणं दुकरकारिए' मा एरिसेणं मायापर्वघेणं अर्थतपोरवीगाहसबुकरतबसंजमसमायज्माणाईहिं समभिए निरणुवंधि पुणपरमारे गिफले कुणसु, ण किचिएरिसेणं माथाभे अणतसंसारदायगेणं पोषण, नीसकमालोहत्ताणं णीसालमत्ता कर, अहवा अंधयारणहिगाणहमिय घथि(मि)पसुवण्णमिव एकाए पूया(फुका)एजहा तहा णिस्त्वयं होही तुझेयं वालपाडणभिक्खाभूमीसजावावीसपरीसहोलसम्माहियासणाइए कायकिलेसेनिनओ भणियंतीए भग्गलक्सणाए- महा भगवं! कितुम्हेहि सविछम्मेणं उत्साविजा, विसेसेणं आलोषणं दाउमाणेहिणीसंकं पत्तिया, णो णमए तुम तकाल अभिलसिउका. माए सरागाहिलासाएबक्खुए निझाइउत्ति, किंतुतुज्झ परिमाणतोलणत्थं निज्माइओति भणमाणीव निर्णगया, कम्मपरिणइवोर्ण समजिनाणे बदनिकाइयं उकोसहि इत्थीदेय कर्म गोयमा ! सा रायकुलबालियान रिदसमणित्ति, तओय ससीसगणे गोयमा ! से महच्छेरगभूए सर्यबुद्धकुमारमहरिसीए विहीए समिहिऊ असाण मासं पाओगमण सम्मेयसेलसिहरमि अंतगजो केवलित्ताए सीसगणसमष्णिए परिनिबुडेति।३।सा उण रायकुलवालियाणरिदसमणी गोयमा ! तेण मायासाउभाषदोसेन उपमा विजुकुमारीणं वाहणत्ताए नउलीरुनेणं किंकरीदेवेमुं, तो चुवा समाणी पुणो २ उनबर्जती पावजंती आहिंडिया माणुसतिरिच्छेयं सयलदोहम्मदुक्सदारिपरिगया सबलोयपरिभूया सकम्मकलमणुभवमाणी गोयमा! जाव णं कहकहषि कम्माणं सजोक्समेणं बहुभवंतरसुवै आवरियपयं पाक्किण निरइयारसामनपरिवालणेणं सात्यामेसं च सापमायावणरिष्पमुकेणं तु उजमिऊणं निदढावसेसीकयभकरे तहानि गोयमा ! जा सा सरागा चक्खू नालोड्या तया तकम्मबोसेणं माहणित्वीत्ताए, परिनिटे गं से रायकुलबालियाणरिदसमणीजीये।४ासे भयर्य ! जेणं कई सामण्णमम्मुडेजा से णं एकाइ जाव णं सत्तहमवंतरसु नियमेण सिज्झिजावा किमेयं अणूचाहियं लक्वनतरपरियडर्णति?, गोयमा! जेनं कई निरख्यारे (२९३) ११७२ महानिशीथच्छेदमत्र Malhade
मुनि दीपरमसागर
दीप
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गाथा
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“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं )
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अध्ययन [ ८/चूलिका-२], उद्देशक [-1. - मूलं [५] + गाथा ||२२|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... ...आगमसूत्र - [ ३९ ], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
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सामने निबाहेजा से णं नियमेणं एकाइ जाव णं अनुभवंतरेस सिझे, जे उण सहमे वायरे या केई मायासले वा आउकायपरिभोगे वा तेडकायपरिभोगे वा मेहुणक वा अपरे या केई आणाभंगे काऊ सामण्णमइयरेजा से णं जं लक्खेण भवग्गणं सिज्झे तं महद्द लाने, जओ में सामक्षमइयरिता बोहिपि लभेजा दुक्खेणं, एसा सा गोयमाणं माइनीजीवेगं माया कया जीए व एरहमेसाएविएरिसे पावे दारुणे विवागिति । ५) से भयवं किं तीए महीयारीए तेहि से दुलमा पच्छिए कि या साथि य महवरी तत्येव तेर्सि(हि)सम असेसकम्मक्लयं काऊ परिनिकुडा हवेजत्तिः, गोयमा तीए महियारीए तरस णं तंदुल महडगस्सऽडाए तीए माहणीए व्यत्ति काऊ गच्छमाणी अवंतराले चेष अहरिया सासुजसिरी, जहा गं मां गोरसं परिमोनूर्ण कहिं गच्छसि संपयन्ति, आह पचामो गोडलं. अण्णंच-ज तुमं मां विणीया हवेला नाहेऽहं तु अहिच्छाए कालिये बहुगुणं अणुदिप पायसं पर्याच्छिहामि जाव णं एवं मणिया ताव णं गया सा सुजसिरी तीए महयरीए सदिं, तेहिंपि परोगाणुाणेहवसायक्लिनमाणसेहि न संभरिया ता गोविं दमाहाईहिं एवं तु जहा भणियं मयहरीए तहा चैव तस्स पयगुलपायसं पयच्छे, अनया कालकमेण गोयमा बोच्छिर्ण दुबालसंयच्छरिए महारोरवे दारुणे दुष्क्खे जाए य णं रिद्धिस्थिमियसमिद्धे सोऽवि जणवए, अहमया पुण वीसं अणग्पेयाणं पथरससिसूरकंताणं मणिरयणाणं पेत्तृण सदेसगमणनिमित्तेनं दीहदाणपरिखिन्न अंगड़ी पह डिवलेणं तत्येव गोउले भविययानियोगेणं आगए अणुचरियनामधे पानमती सुजसिये, विद्वा यते सा कक्षगा जाव णं परितुलियसचलतियणणरणारी रूपकविलाण्णा तं सुजसिरिं पासिय चलत्ताए इंदियाणं रम्याए किषागफल्लोयमाणं अनंतदुक्खदायमाणं सियाणं विभिजियासेसतियणस्स णं गोयरगए मयरकेणी, भणिया में गीयमा सा सुजसिरी तेणं महापावकम्मेणं सुजसिवेणं जहां णं हे दे कक्षगे ज इमे तुज्झ सन्तिए जणणीजण सममन्नति ता तु अयं तं परिणेमि अन्नंच करेमि सपि ते मदरिति तुज्झमपि पासियमणसुवन्नस्स तो गच्छ अइरेणेव साहस मायावितानं तत्र गोधमा जान पडतुडा सा गुजसिरी तीए महयरीए एयवइयरं पकड तावणं तक्खणमागंतृण भणिजो सो महयरीए-जहा भो भो पसेहिणं जंते मज्झ धूयाए सुनपलस किए, ताहे गोयमा पर्यसिए वेण पवरमणी, तज भणियं महयरीए-जहा सुवास दाएहि, किमेएहिं डिंभरमणगेहि पंचिद्वगेहि ?, ताहे भणियं मुज्जसियेणं-जहां णं एहि वचामो नगरं दंसेमिणं जहं तुज्यामिमाणं पचिगाणं महत्य, तजो पभाए तृण नगरं पर्वतियं ससिसूरकंतपचरमणीवलगं तेणं नरवइणो णरवहणावि सदाविऊणं भणिए पारिक्खी- जहा इमाणं परममणी करे मुहं तु न सकिरे तेसि मुहं काऊ, ताहे मणिया नरवणा- जहा में भो भो माणिकखंडिया णत्थि के इत्य जेणं एएस मुलं करे तो गिन्ह णं दस कोटीज दक्षिणजास्त. सुजसिवेर्ण भणियं महाराओ पसाय करेति णपरं इणमो आसनपायसथिहिए अम्हाणं गोडलं तस्य एवं च जोयणं जान गोणी गोवरभूमी तं अकरभर से विमुंचति तो नरवणा भणिय जहा एवं उत्त एवं गोममा समदरिमकरभर गोठलं काऊ ते अणुवरियनामजेण परिणीया सा निययध्वा तुजसिरी सुसिषेण जाया परोपरं तेसि पीई, जाव णं नेहाणुरागरंजिय माणसे गर्मिति कार्ड किंषि नाम णं दतूर्ण गिहागए साहुणी पडिनियले हाहाकंद करेमाणी पुडा सुजसिषेणं सुजसिरी- जहा पिए एवं अदिपु मिक्लायरयल किमे या गया सि, वो वीए मणियं जहा मज्झ सामिणी एरिसी, महया भक्वन्नपाणं पत्तभरणं करियं तव तुङमाणसा उत्तमंगेणं चलो पणमयंतीता, मए ज एएस परिदंसणेणं सा संभरिवति, ताहे पुणोषि पुट्ठा सा पावा तेषं जहा णं पिए का उ तुझं सामिणी अहेसि ? तमो गोयमा युवतीए समगग्गर विपुलंगगिराए साहियं सर्वपि वियतं तस्सेति, ताहे विष्णार्थ तेण महापावकम्मेण जहा णं निच्छयं एसा सा ममंगया सुजसिरी ण अण्णाय महिलाए एरिसा चकंतीदिलीलावण्णसोहासमुदयसरी भवेजति पनि मणिउमाडतो- तंजा 'एरिसकम्मरयार्थ न पडे पर्यव (गुण इमे) चिंते सोचि जहिल्वीट चिओ मे कत्था ? ॥ २२ ॥ ति मणिऊ चिति पत्तो सो महापाववारी जहां णं किं छिंदामि अयं सहत्यहिं विलंति सगतं किंवा तुंगगिरियडाउ पक्खिविद संइणमो अनंतपादसंधायसमुदयं बु? किंवा संतृर्ण लोहारसाला मुतलोहखंडमिव धनाहिं पुणावेमि रमताणगं? किंवा फालावेऊन मज्झोमसीए तिक्खकरवतेहिं अताणगं पुणो संभराचेमि अंतो सुकदियतउवर्तकंसोलोससजियाखारस्स ? किं वाणं सहत्येणं छिंदानि उत्तमं ? किंवा गं पविसामि मयरह? किंवा णं उभयरलेस अहोमुहं विनिबंधाविणमत्तान हेडा जलायेमि जल १. किंबहुना ? मिमि कहिं अत्ताणगंति चिंतिऊन जाय मसाणभूमीए गोयमा चिरया महती थिई, ताहे सलजनसन्नि सुनिदिऊण अनाग साहियं च क्लोगस्स जहा गं मए एरिसं एरिस कम्पं समायरिति मणिऊन आरुडो चियाए, जाय गं मवियत्रयाए निजोगेणं तारिसद चुन्न जोगाणुस ते सा ११७३ महानिशीथच्छेद अc
मुनि दीपरत्नसागर
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आगम
(३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [६] +गाथा:||२३|| ------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
गाथा
||२३||
4हा
फूडजमाणेवि अणेगपयारेहिं वहाविण पयलिए सिही, तमोय चिदिकारणोवहओ सयललोगवयणेहिं जहा भो भो पिच्छ पिच्छ हुयासपि ण पजले पावफम्मकारिस्सत्तिम-1 श्रमिकर्ण निवाडिए ते बेऽनि गोउलाओ, एवापसमि उ अण्णासन्नसग्निवेसाओ आगए णं भत्तपाणं गहाय देणेच मग्गेणं उजाणाभिमुहे मुणीण संघाडगे, वंच बठूर्ण अणुमम्मोणं
गए ते बेऽपि पावितु, पत्ते य उमार्ण जाप ण पेच्छंति सयलगुणोहचारिपउनाणसमश्रियं बहुसीसगणपरिकिन देविंदरिद दिनमाणपायारविर सुगहियनामधिज जगाणंदं नाम अणगारं, तेच बठूण चितिय तेहि-जहाणंदे मम्मामि विसोहिषयं एस महायसेत्ति,चिंतिऊणं ती पणामपुजगेर्ण उपपिढे जहोदए भूमिभागे पुरओ गणहरस्स, भणिओ य सुजसिबो तेण गणहारिणा-जहाण भो भी देवाणुपिया! जीसतमालोएताण लहुं करेसु सिग्पं असेसपाविदकम्मनिद्रवर्ण पायश्चित्त, एसा उण आवनसत्ता एवाए पायच्छिन्नं गत्वि जायणं णो परुथा, ताहे गोयमा! सुमहतपरममहासंवेगगए से पं सनसिने, आजम्मओ नीसवालोयणं पपछिऊणं जहोषाई पोरं सफर महंत पायचित अणुचरिताण 131 तो अबंतविसुद्धपरिणामो सामण्णमम्मुद्रिकणं मीसं संवच्छरे तेरस य राईदिए जयंतपोरवीरुगककरतवसंजर्म समगुचरिऊर्ण जाचणं एगदुनिषउपंचछम्मासिएहि खमणेहि सयेऊन निप्पनिकम्मसरीरनाए अपमाययाए सात्यामेमु अनवरथमहन्निसाणुसमयं सययं सझायन्झाणाईसुणं मिहिऊर्ग सेलकम्ममलं जउवकरणेणं खवासेटीए अंतगडके. बाली जाए सिदेय।६। से भय सेवारिसं महापावकम्मं समापरिऊर्ग तहानी कहं एरिसेणं से सुजसिये लहुं घेवेर्ण कालेणं परिनिदेति', गोयमा! तेर्ण जारिसमावहिएणं आलोयणं विहन्न जारिससनेगगएणत तारिस धोरखकर महतं पायच्छितं समद्वियं जारिस सुपिसदसहजावसाएणं तं तारिसं अयंतचोरवीसम्मकसदकरमवसंजमकिरिवाए पहमाणेणं असंडियअविराहिये मूलत्तरगुणे परिपालयतेणं निरइयारं सामनं णिचाहिये जारिसेणं रोरङ्गज्माणविष्पमुकेगं णिडियरागदोसमोहमिच्छत्तमयभयगारवेणं ममत्वभावे अदीणमानसेण दुवालस पासे सठिहण काऊण पाओगममणसणं पवियन वारिसेणं एगंतसुहपावसारण म केवल से एगे सिजमा जहण कयाई परकयकम्मसकम भजाता सोसिपि । भश्वसत्ताणं असेसकम्ममखयं काऊणं सिज्झिज्जा, परं परकयकम्मं ण कयादी कस्सई संकोजा, जं जेण समनियंत नेणं समभवियति, गोयमा ! जया णं निरुबजोगे हचेजा नया गं बसेसपि कम्मरासि अणुकालविभागेणेव णिवेना. सुसंवृद्धासेसासपदारे जोगनिरोहेणं नु कम्मरखए दिहे. ण उण कालसखाए, जजोगं 'कालेणं तु सवे कम्म, कालेणं तु पबंधए । एगं बंधे खवे एणं, गोयम ! कालमणतगं ॥२३॥ णिस्बेहि तु जोगेहि. वेए कम्म ण मंधए। पोरानं तु पहीएजा, पवगस्साभावमेव उ ॥२४॥ एवं कम्मपवयं विदे, ण एवं कालमुरिसे। अजाइकाले जीवे य, तहवि कम्म ण णिहए ॥५॥ सजोषसमेण कम्माण, जया विरई समुच्छले। कालं खेतं भयं भावं, दा संवष्य जाच तया ॥६॥ अप्पमादी खो कम्म, जे जीवेत कोटि पड़े। जो पमादी पुणोऽर्णतं, कालकम्मं णिबंधिया। णिवसेजा चउगाईए उ, सबदाऽयंतक्खिए। लम्हा कालसेनमय, मार्च संपप्प गोयमा!, महर्म जहरा कम्म खर्य करे ॥२८॥ से भय ! सा सुजसिरी कहि समुचना?, गोयमा ! उडीए परमपुटवीए, से भय ! केणं अद्वेण ?, गोपमा! जीए पडिपुत्राण साइरेगार्ण गवण्हं मासाणं गया णमो विचिन्तियं जहाणं पसे गम्भं पहायमित्ति, एक्मावलमाणी चेव बालय पस्या, पस्यमेता य लक्षणं निहतं गया, एनेक अडेणं गीयमा ! सा राजसिरी कहियं । गयत्ति, से भयर्थ! जन बालगं पलविऊर्ग मया सा सुजसिरीजीविय किंवा ण बत्ति ?, गोयमा ! जीविय, से अपर्व! कह', गोयमा पसूयमेन बालग सारिसहि जराजरजल. सर्जालपूदरहिरखारदुगंधासुईहिं विलित्तमणाहं विलयमार्ण बठूर्ण कुलालचकस्सोपरि काऊणं साणेणं समुदिसिउमारवं, तावणं दिई कुलालेणं, नाहे घाइओ संघरणिो कुनालो, अपिणासियमालतणू णटो सागो, तओ कारुष्णहियएणं अयुत्तम गं पत्तो एक ममं होहित्ति नियपिऊर्ग कुलालेणं समप्पिो से बालगो गोयमा ! सदइयाए. सीए य सम्मावणेहेणं परिवालिऊणं माणुसीकए से बालगे, कयं पनामं फुलालेण लोगाविसीए सजणगाडिहाणेणं जहा णं सुसटो, अन्नया कालकमेणं गोयमा ! सुसाहुसंजोगदेसणापुरेणं पतिबुद्धे णं सुसढे पबइए य, जायणं परमसवासवेगवेरगगए अतिधोरचीसम्मकसुद्धकरं महाकायकेसं करे। संजमजयणं ण याणेइ, अजयणादसेणं तु समस्या असंजमपएसु णं अवरो, तओ तस्स गुरूहि भणियं-जहा भो भो महासत ! लए जाणदोसओ संजमजयणं अयाणमाणेणं महंते कायकेसे समादले, णवरं जा निमालोयणं दाऊणं पायपिछलण काहिसि ता सबमेवं निष्फल होही, ता जावणं गुरूहि चोइए तावणं से अपवरयालोयर्ण पबच्छे, सेऽविणं गुरू तस्स नहा पायपिउने पयाइ जहा संजमजयनं भूवर्ग, तेणेच अहमिसामुसमयरोइज्माणाइविप्पमुक्के सुहावसाये निरंतरं पविहरेजा, अहऽनया गं गोयमा से पारमती जे केडण्डहमदसमदुवालसदमासमासजावगंछम्मासखवणाइए अन्नयो चा सुमहं कायकेसाणुगए पचिहत्ते सेणं तहत्ति समणुढे. जेय उण एर्गतसंजमकिरियाणं जायणाणुगए मनोवइकायजोगे सयलासवनिरोहे समायजमाणावरसगाइए असेसपावकम्मरा
सिनिदहणे पावच्छिते से गं पमाए अवमो अवहेले असदहे सिदिले जाव णं किल किमित्य दुकरति काऊ न तहा समनुढे, अन्नया गं गोषमा! अहाउथ परिचालेऊणं से सुसढे 14 ११७४ महानिशीपच्छेदसूत्र, मree
मुनिटीपरनसागर
दीप
अनुक्रम [१५१७]]
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आगम (३९)
“महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक [-1, ------- मूलं [७] +गाथा:||२९||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
काम
गाथा
||२९||
मरिऊणं सोहम्मे कप्पे ईदसामाणिए महिदी देवे समुप्पन्ने, तओविचविऊण इहई वासुदेवो होऊणं सत्तमपुदवीए समुपन्ने, तओ सो समाणे महाकाए हत्थी होऊण मेहुणासत्तमाणसे मरिऊर्ण अर्णतवणस्सतीए गयति, एस गं गोयमा! से सुसढे जेणं 'आलोइयनिंदियगरहिए णं कयपायश्चित्तेचि भक्त्तिा । जयण अयाणमाणे भमिही सुरंतु संसारे ॥२९॥ से भय ! कयरा उण ते जयणा ण विन्नाया जओ ण तं तारिस दुकरं कायकेस काऊणपि तहाविणं भमिहिन सुइरे तु संसारे?, गोयमा! जयणा णाम अद्वारसण्हं सीलंगसहस्साणं संपुन्नाणं अवंडियविराहियाण जावजीचमहन्निसाणुसमयं धारण कसिणसंजमकिरिय अणुमनंति, तंच नेण न पिन्नायंनि, नेणं तु से जहन्ने भमिहिन सुदरं तु संसारे, से भय ! केण अद्वेतंच नेणं ण विनायति', गोयमा ! तेणं जावइए कायकेसे कर तावइयरस जहभागेणेषजह से बाहिरवाणगं विजेन्तोता सिदीएमणुवर्वतो, नवरं तु नेण बाहिरपाणगे परिभुते, बाहिरपाणगपरिमोइसणं गायमा! पहुएनिकायकेसे णिरत्यगे हवेना, जओ णं गोयमा! आऊ तेऊ मेहुणे एएतजोऽवि महापाबडाले अबोहिदायगे एगतेणं विचजियो एगनेणं ण समायरियो सुसंजएहिति, एतेणं अट्ठणं,च नेणं ण विण्णायन्ति, से भयो ! केणं अद्वेणं आऊऊमेहुणति अयोहिदायगे समक्खाए?.गोयमा ! सबमपि छकायसमारंभे महापावडाणे, किंतु आउनेउकायसमारंभेणं अणवसत्तोवधाए, मेहुणासेपण तुसंखेजासंखेजसत्तोवघाए घणरागदोसमोहाणुगए एगंतअप्पसत्यवसायत्तमेव, जम्हा एवं तम्हा उगीयमा! एतेसि समारंभासेवणपरिभोगादिसु वट्टमाणे पाणी पढममहायमेष ण धारेजा, तवभावे अवसेसमहायजमाणुद्वाणस्स अभावमेव, जम्हा एवं सम्हा सबहा चिराहिए सामणे, जजो एवं तमोणं पविलियसम्मग्गपणासित्तेणेच गोयमा! न किंपि कम्मं निधिजा जेणं तु नश्यतिरियकुमाणुसेसु अर्णतखुनो पुणो २चम्मोनि अक्सराई सिमिणेऽविण अलममाणे परिममेजा, एएणं अडेणं आऊतेऊमेहूणे अबोहिदायगे गोयमा! समक्खायत्ति, से भयवं! किं छहमदसमदुवात्सदमासमासजावणम्मासखवणाईणं अचंतधोरखीकागकट्ठसुकरे संजमजयणापियले सुमस्तेऽवि उकायकेसे कए णिरत्यगे हजा?, गोयमा ! पंणिरत्यगे हवेजा, से भय ! केणं अडेणं', गोयमा जओ गं खट्टम हिसगोणादोऽवि संजमजयणावियले अकामनिजसएसोहम्मकप्पादिसु वयंति,सओऽपि भोगखएणं चुए समाणे तिरियादिसु संसारमणुसरेना, सहा य दुगंधामिजाविलीणवारपित्तोमसिमपरिहत्ये बसाजसपुपडिणिपिलिपिले रहिरचिखते दुईसणिनीमच्छतिमिसंधयारए गंतुबियणिजगमपवेसजन्मजरामरणाईअणेगसारीरमणोसमुत्थमुघोरदारुणदुक्खाणमेष भाषणं भवति, ण उण संजमजयणाए निणा जम्मजरामरणाइएहि पोरपयंटमहारददारुणदुक्खाणं पिहरणमेगतियमचंतियं भवेजा, एनेणं संजमजयणापियले सुमहतऽवीकायकेसे पकए गोयमा! निरत्यगे भनेजा, से भय ! किं संजमजयणं समु(मणू) पेहमाणे समणुपालेमाणे समणुढेमाणे आइरणं जम्मजरामरणादणं विमुचेना', गोषमा! अत्येगे जे गंण अरेणं विमुज्जा अरथेगे जेणं अडरेणं चिमुचेजा, से भयचं! केणं अद्वेण एवं पुण्या-जहाण जत्येगे जेणं णो अहरेणं विमुचेना अत्यगे जे गं अरेणं विमुना, गोयमा ! अत्येगे जेणं किंचि उसिमणगं अत्याणगं अणवलक्सेमाणे सरागससाले संजमजयणे समणुढे जे गं एवंविहे से गं चिरेणं जम्मजरामरणाइजणेगसंसारिपदुक्खाणं निमु. बेजा, अत्येगे जेणं हिम्मूलबियसासारे निरारंभपरिगहे निम्ममे निरहंकार वगयरागदोसमोहमिधानकसाबमलकलंके सबभावमातरहिं गं सुविसुबासए जीणमाणसे एगनेणं निजरापेही परमसदासंवेगवेगगए चिमुकासेसमयमारवपिचित्ताणेगपमायालंबणे जाप निजियघोरपरीसहोक्सग्गे ववगयरोदहाणे असेसकम्मलयद्वाए जनसंजमजय स-- मणुपेहिजाअणुपालेजासमणुपालेजा जावणं समणुदेना जेणं एवंचिहे से अरेणं जम्मजरामरणाइअगसंसारियसुचिमोक्खदुक्खजालस्सणं विमुचेना एतेणं अद्रेणं एवं पुबह -जहाणं गोयमा! अस्थगे जेणं णो अरेण चिमुचेना अत्येगे जे वर्ण अहरेणेव विमुचेना.से भयन ! जम्मजरामरणाइजणेगसंसारियदुनखजालचिमुके समाणे जंतू कहि परिचसेजा, गोयमा! जयण नजरान मजून वाहिओणो अयसमक्खाणसतावेगकलिकलहदारिददाइपरिकसं ण इपिओगो, किंबहुना?.एगंतेणं अक्खयधुवसासयनिरुवमर्णतसोपवं मोक्वं परिवसेजति बेमि आमहानिसीहस्स बिझ्या लिया।जदासमत्त महानिसीहसुपरसंघ॥ॐनमोपउवीसाए तिथंकराण नमो तित्यस्स नमोसुयदेवयाए भगवतीएनमो सुपकेबलीर्णनमो सासाहणं नमो समसिदाणं नमो भगवत्री अरहओ सिजाउ मे भगवई महद महाविजा बहरए म अवारए जयपाइरए मएणडारए पशम्अअणडइरए बामजमणारए जपए गाजपए जयजन्नए अपर अजाए मरमअअअ, उपचारो वउत्यानेणं साहिता एसा विजा, समग इत्यागनमारगमा होड, उबढ़ अअवण्अअअ गणस्स या अणुउनणजाए एसासत बारा परिजनेया,मिन्धारगपारगो होड.जिनकप्पसम(संपत्तीए चिजाए अभिमंतिऊण(ए)विग्यविनायगा जाराहंति, सूरे संगामे पषिसंतो अपराजिओ होड.जिणकप्पसमत्तीए विजा अभिमंनिऊणं खेमवाणी भवाचनारि सहस्साई पंच सयाओ सहेब चलागि एवंच सितोगाविध महानिसीहमि पायए।३०।।
मुनिटीपरमसामर अत्र अष्टमं अध्ययन/(चूलिका-२) समाप्तं वितीभोजमज्जर
दीप अनुक्रम [१५२६]
AN4000
भाग
महानिशीथ-छेदसूत्र [६] 'मूलं' परिसमाप्त:
मूल संशोधकः सम्पादकश्च पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब किंचित वैशिष्ट्य समर्पितेन सह पुन: संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागरजी [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि]
27
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भाग
01
02
03
04
05
06
07
08
09
10
सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि भाग १ से ४० में कहां क्या मिलेगा?
इस भागमे समाविष्ट आगम के नाम और आगम-क्रम
आगम ०१ आचार मूलं एवं वृत्ति भाग - १ श्रुतस्क्न्ध-१, अध्ययन- १,२
आगम ०१ आचार मूलं एवं वृत्ति, भाग-२ आगम ०२ सूत्रकृत मूलं एवं वृत्ति, भाग - १ | आगम ०२ सूत्रकृत मूलं एवं वृत्ति, भाग-२ आगम ०३ स्थान मूलं एवं वृत्ति, भाग-१
भाग-२
| आगम ०३ स्थान मूलं एवं वृत्ति, | आगम ०४ समवाय मूलं एवं वृत्ति.
| आगम ०५ भगवती मूलं एवं वृत्ति,
| आगम ०५ भगवती मूलं एवं वृत्ति,
श्रुतस्कन्ध-१, अध्ययन- ३ से ९, श्रुतस्कन्ध- २ श्रुतस्कन्ध-१, अध्ययन- १ से १३
श्रुतस्कन्ध- १, अध्ययन १४ से १६, श्रुतस्कन्ध-२ स्थान- १ से ४
स्थान- ५ से १० संपूर्ण
भाग-१ शतक- १ से ६
भाग-२ शतक- ७ से ११
| आगम ०५ भगवती मूलं एवं वृत्ति,
| आगम ०५ भगवती मूलं एवं वृत्ति,
आगम ०६ ज्ञाताधर्मकथा मूलं एवं वृत्ति.
आगम-७,८,९,१० उपासकदशा, अंतकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण मूलं एवं वृत्ति.
भाग-३ शतक- १२ से २०
भाग-४ शतक - २१ से ४१ संपूर्ण
11
12
13
14
15
16
17
| आगम १४ जीवाजीवाभिगम भाग - २ मूलं एवं वृत्ति. [ प्रतिपत्ति-३ - अतर्गत ] सूत्र - १३९ से प्रतिपत्ती - १० संपूर्ण
18
आगम १५ प्रज्ञापना भाग-१ मूलं एवं वृत्ति. पद- १ से ५
19
आगम १५ प्रज्ञापना भाग-२ मूलं एवं वृत्ति. पद- ६ से २२
20
आगम १५ प्रज्ञापना भाग-३ मूलं एवं वृत्ति. पद- २३ से ३६ पूर्ण
21
| आगम १६ सूर्यप्रज्ञप्ति मूलं एवं वृत्ति.
आगम-११, १२, विपाक, उववाई मूलं एवं वृत्ति.
| आगम १३ राजप्रश्नीय मूलं एवं वृत्ति.
आगम १४ जीवाजीवाभिगम भाग-१ मूलं एवं वृत्ति. [ प्रतिपत्ति ३ अतर्गत सूत्र- १ से १३८
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कुलपृष्ठ
३१४
५८६
४९८
३९२
५९४
४९४
३३८
५९२
५५२
५१४
३८४
५२२
५३८
३८४
३१४
४८०
४८८
४२६
५१४
३३६
६१०
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________________
कुलपृष्ठ ६१४ ३७६
४२६
३४४
३१२
27
३३०
४६६
४४२
सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि भाग १ से ४० में कहां क्या मिलेगा? भाग
इस भागमे समाविष्ट आगम के नाम और आगम-क्रम आगम १७ चन्द्रप्रज्ञप्ति मूलं एवं वृत्ति. आगम१८ जंबूद्विपप्रज्ञप्ति भाग-१ मूलं एवं वृत्ति. वक्षस्कार- १ एवं २. | आगमा८ जंबूदविपप्रज्ञप्ति भाग-२ मूलं एवं वृत्ति. वक्षस्कार- ३ एवं ४. आगम१८ जंबूद्विपप्रज्ञप्ति भाग-३ मूलं एवं वृत्ति. वक्षस्कार- ५ से ७. आगम १९-३२ निरयावलिका, कल्पवतंसिका, पुष्पिका, पृष्पचूलिका, वृष्णिदशा, चतुःशरण, आतुरपरत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान,
___ भक्तपरिज्ञा, तंदलवैचारिक, संस्तारक, गच्छाचार, गणिविध्या, देवेन्द्रस्तव मलं एवं छाया आगम ३३ थी ३९ मरणसमाधि मूलं एवं छाया, निशीथ, बुहत्कल्प, व्यवहार, दशाश्रुतस्कंध, जीतकल्प/पंचकल्प, महानिशीथ मूलं एव 28 आगम ४० आवश्यक मूलं एवं वृत्ति, भाग-१, नियुक्ति-१ से ५२१ 29 आगम ४० आवश्यक मूलं एवं वृत्ति, भाग-२, नियुक्ति- ५२२ से ९५१
आगम ४० आवश्यक मूलं एवं वृत्ति, भाग-३ नियुक्ति- ९५२ से १२७३ अपूर्ण, [अध्ययन- १ से ४ अपूर्ण] आगम ४० आवश्यक मूलं एवं वृत्ति, भाग-५ नियुक्ति- १२७३ अपूर्ण से १६२३, [अध्ययन-४ अपूर्ण से ६ संपूर्ण) | आगम ४१/१ ओघनियुक्ति मूल एवं वृत्ति.
आगम ४१/२ पिंडनियुक्ति मूलं एवं वृत्ति. | आगम ४२ दशवैकालिक मूलं एवं वृत्ति. 35 आगम ४३ उत्तराध्यन मूलं एवं वृत्ति, भाग-१, अध्ययन- १ से ५ 36 | आगम ४३ उत्तराध्यन मूलं एवं वृत्ति, भाग-२, अध्ययन- ६ से २१ 37 | आगम ४३ उत्तराध्यन मूलं एवं वृत्ति, भाग-३, अध्ययन- २२ से ३६ 38 | आगम ४४ नन्दिसूत्र मूलं एवं वृत्ति. 39 | | आगम ४५ अनुयोगद्वार मूलं एवं वृत्ति. 40 | कल्प[बारसा]सूत्र... चतुःशरण, तन्दुलवैचारिक, गच्छाचार मूलं एवं वृत्ति.
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नमो नमो निम्मलदसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः
आगम.[33-39]
पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधिता: संपादिताश्च
३३.मरणसमाधि (मूलं+छाया), ...३४.निशीथ, ३५.बृहत्कल्प, ३६.व्यवहार, ३७.दशाश्रुतस्कंध, ३८/१.जीतकल्प, ३८/२.पंचकल्प-भाष्य, ३९.महानिशीथ.(मूलम्)
(किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता: [१] प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं एवं छाया) नामेण (तथा)
[१-६] छेदसूत्राणि (मूल) नामेण परिसमाप्तानि
"सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि" श्रेणि, भाग-27
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ਗੁਣਾ ਬਹੁਤ ਜਰਸ ਨੇ ਰਸ ਨੂੰ ਮਰਨ
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ਹਰ ਵਾਰ ਉਸ ਨੇ ਸਾਲ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਤੇ ਕਰ ਸਸ ਮਲ ਭਾਰਤ ਦੀ
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आगम
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नमो नमो निम्मलदसणस्स
सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि
मूल संशोधक
अभिनव-संकलनकर्ता
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पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज
आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि]
प्रत-प्राप्ति और पेज सेटिंग कर्ता : के चेरमन श्री प्रवीणभाई शाह, अमेरिका
मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस अमदाबाद Mo 9825598855798253062751
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ईस प्रोजेक्ट के संपूर्ण-अनुदान-दाता
श्री आगम मंदिर
पालिताणा
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TOTTOli-OTotal
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________________ आम आजमा मूल संशोधक श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब आजमआजम आजमा आजम आजम आजम आगम 33-39 33. मरणसमाधि-प्रकीर्णक [मूलं एवं संस्कृत-छाया] ३४.निशीथ,३५.बृहत्कल्प,३६.व्यवहार,३७.दशाश्रुतस्कंध,३९.महानिशिथ [५-छेदसूत्राणि मूल], ३८/१,जीतकल्प-मूलं+भाष्य, ३८/२.पंचकल्प-भाष्यं. आजमराज अभिनव-संकलनकर्ता आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी __[M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] आजम आगम आगम आगम आगम आगम आगम ~330~