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________________ आगम (३९) "महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [५], -------------उद्देशक ----------- मूलं [७...] +गाथा:||५२||------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं गाथा ||२|| कम्मतबनिरए ॥२॥ जत्थय उ..मादीणं तिथवराणं सुरिंदमहियाणं । कम्महविषमुकाण आणं नसटिवाइस गच्छो ॥३॥ नित्यचरे तित्यपरे तित्यं पुण जाण गोयमा! संघ । संघय लिए गच्छे गपछठिए नाणसणचरिने ॥४॥णादसणस नाणं दसणनाणे भवंति सवत्व । भयणा चारित्तस्स तु देसणनाणे धुर्व अस्थि ॥ ५॥ नानी दसणरहिनो चरित्तरहिजो बभमा संसारे । जो पुण चरित्तजुनो सो सिमा नरिच संदेहो ॥६॥ नाणं पगासय सोहओ यो संजमो य गुतिकरो। लिहपि समाजोगे मोग्लो कस्सपि जमाये ॥ ७॥ तस्सनि यसकंगाई नाणादितिगम्स खंतिमाहीणि । तेति चेकपर्व जस्थाणुढेजइ स यच्छो ॥ ८॥ पुचिदगागणिचाऊपणफई तहसाण विविहाणं । मरणतऽपिण मणसा कीर पीडे जयं गच्छं ॥९॥जय य पाहिरपाणस पिंदुमेनपि गेम्हमावीमुं। सहासोसियपाणे मरणेवि मुणीम इच्छति ॥६॥जस्थ य सूलविसूइय अन्नवरे वा विचित्त-स मायके । उम्पन्ने जलनालणाई ण कति मुणी तयं गच्॥१॥ जत्व य रसहरसे अजाओ परिहरति णाणहरे । मणसा सुगदेवयमिव सामपित्थी परिहरति ॥२॥(र)तिहासखेड्डदपणाहवाई ण कीरए जत्या धावणडेवणलंपण ण मयारजयारउचरणं ॥२॥जस्विस्थीकरफरिस अंतरिय कारणेपि उत्पन्ने । बिहीपिसदित्तम्मीविसंव बजिजइस गच्छो॥४॥ जस्थिस्वीकरफरिस लिगी अरहावि सयमपि करेजा। निथळयजी गोयम! जाणिज्ना मूलमुणवाहा ॥५॥ मूलगुणेहि उखलियं बदगुणकलियंपिलदिसंपन्न । उत्तमकुलेचि जार्य निहाडिजाइ जनियंग ॥६॥जय हिरण्णसुपण्यो धणचन्ने कंसव्सकलिहार्ग । सयणाण आसणाण यनय परिमोगो से तयं गई। ७॥जन्य हिरण्णसुपण हरण परागयपि नो छिप्पे । कारणसमप्पियपिहुखणनिमिसहपित गर्छ॥८॥ दुबरबभवयपालण अजाण चलचित्ताणं । सससहस्सापरिहारठाणवी जत्थन्थि तं गच्छं ॥९॥ जत्युनरबपतिउत्सरेहि अजा उसादुणा सदि। पलयति सुकुम्बासी गोयम! किन गण? ॥७॥ जत्थयागोयमः बहुविहविकणकठोलपंचलमगाणं। अजाणमणुहिजइ भणिय केरिसं गच्च ॥१॥ जत्येकंगसरीरा साह सह साहुणीहि हत्थसया। उइट गच्डेज रहि गोयम ! गडमि का मेरा' ॥२॥ जय अ अजाहिं समं संतालावमाइवमहार। मोतुं धम्मुबएस गोयम! केरिसं गच्छं?॥३॥ भववमणियतविहारं णिययबिहारंग नाव साहणं । कारणनीयापार्स जो सेवेलस्स का पत्ता?॥४॥ निम्ममनिरहंकार उजुत्ते माणसणचरिते । सपलारंभविमुफे अप्पद्विवडे सदेहेवि ॥५॥ आधारमायरने एगखेलेवि गोयमा ! मुणिणो । वाससर्वपि वसते मीयन्ये राहगे मणिए ॥६॥जन्य समुहसकाले माहूर्ण मंडीए अजाओ। गोयम! ठपनि पादे इस्वीरज नसे गई ॥७॥अगर य हत्थसएवि प रयणीचा उन्हमूगाओ। उदद दसहमसइ से (ण) करेंनि अजा जयं गच्छं ॥८॥ अबबाएणचि कारणवसेण अजा वडाहमणाउ। गाऊयमवि परिसकति जस्थन केरिसं गावं ? ॥ ९॥जस्थ य गोयम! साहअनाहि समं पहमि अणा । अचाएपनि मच्छेज तय गचडमि का मेरा ॥८॥ जत्व यतिसदिनेयं वरामगिदीरणि साह । अजाउ निरिक्खेजात गोयम! केरिसं गई? ॥१॥जय य अजाल पटिमादंदादिविविहमुम्मरण । परिभुनासाहित गोयम! करिस गळ?॥२॥आरलाई भेसज पलबुद्धिपियनगंपि पुद्धिकर। अजार भुजद का मेरा तस्थ गमि ? ॥ ३ ॥ सोऊण गई सुकुमालियाए तब ससगमसगमणीए । ताय न बीससिया सेबडी पम्मिओ जावः ॥ ४॥ दयारिनं मोनुं आयरिब मयहरं च गुणरासि । अज्जा | पहायेईने अणमानने गच्छं॥ ५॥ पणमनि(विड)वयकुहाडवेजदुग्गेजममूढहिययाउ । होजा बायारियाओ इल्लीरनं न गच्॥६॥ पचवा सुयदेवी नबलदीए मुराहिवणुयादि। जस्व रिएज्जा कजाई इत्थीरज नतं गच्छ॥ ७॥ गोयम ! पंचमहन्वय गुनीणं लिण्ड पंचसमिईण। दसविहवम्यस्सिक कहवि खलिजा न गच्छ॥८॥ दिणदिक्खियरस बमगरस अभिमुहा अजबंदणा अना। निच्छा आसणगहणं सो विणी सध्यअजाण ॥९॥ वाससदिक्खियाए अजाए जजदिक्खिओ साहू। भत्तिमरनिष्मराए रणविणएग सो पुजो ॥१०॥ अजियला मिदा सएन लाभेण जे असंतुहा। मिक्लायरियामा अभियउन गिराऽऽहंति ॥१॥ गयसीसगण ओमे मिक्सापरियाअपच परं । गणिहिति ने गाये अजियलाभ गवसंता ॥२॥ ओमे सीसपास अप्पडिप अजंगमतं चाण गणेज एगरटेने गणेज वास णिययवासी ॥३॥आनंबणाण भरिओ लोगो जीवरस -: जउकामस्सा जज विष्टलाए नंत आलंवर्ग कुणइ॥४॥जस्थ मुणीण कसाए चमविनंतेचि परकसाएहिं । अच्छेज समुद्देउ सुणिविही पंगुलम तय (गच्छ) ॥ ५॥ धम्मंतरायभीए भीए संसारगम्भवसहीणं । णोदीरिज कसाए मणी मणी सगासीलनवदाणभावश्च उनिहधम्मतरायभमभीए। जत्थर गीयत्वे गोषम ! ग तयं पासे ॥ ७॥ जत्य य कम्मवियागरस चिहियं पउगईएं जीवाणं । पाऊणमयरवेऽची नो पकुणनितंग ॥८॥जन्य य गोयम ! चाह महवि सूणाण एकमवि होना। तं गच्छतिविहेर्ण वोसिरिय बहना जनस्थ ॥ ५॥ सूमारंभपवितं गच्छं वेसुजलं पण पसेजा । जे चारित्तगुणहित उजलंसं निवासेना॥१०॥ नित्थयरसमो सरी जयकम्यहमारापडिमा। आणं अइकमंते ते कापुरिसे न सम्पुरिसे ॥१॥ महायारो सूरी भट्टाचाराणुविक्खजो सूरी। उम्मग्गठिओ पूरी निषिणवि मग पणासंति ॥२॥ उभ्मग्गठिए सूरिमि निण्यं भवसत्तसंचाए। जम्हा तं मम्ममणुसरति नम्हा गत जुर्स ॥३॥ एकषि जो दुहर्त सर्त परिचोहिउं ठवे मगे। ससुरासुरमिवि जमे तेणेई पोसियं अमाचार्य ॥४॥ भूए अस्थि भविस्सनि कई जगपंदनीयकमजुयले । जेसि परहिपकरणेकालक्लाण बोलिही कालं ॥५॥ भए अणाइकाटेग के होहति गोयमा ! सूरी । नामग्गाहणेणचि जेसि होज नियमेण पभिात ॥६॥ एवं मच्छक्वस्थ हुप्पसहाण(क)सरं तु जो संटे। गोयम ! जाण गणि नियोऽर्णनर्ससारी॥७॥ जसपलजीवजगमंगलेककटाणपरमकाला। सिदिपए बोचितपणे पश्चिात् होइन गणिणो ॥८॥सम्हा गणिणो समसतुमिनपाखेण परहियरएणं । कताणसुगा अपणो य आणाणलंघया ॥९॥ एवं मेरा लंघेवानि, एवं गच्यवनय घेतु निमारनेहि पदिषदेसिलाईए गणिणो अजारि पोहिंन पाति ॥११॥जलभेहिंति य अमेजतदुत्तोचि परिमर्म विश्वापागहमनसंसारे चिडिज चिरै सुनुस्खत्ते ॥१॥ पोहसरजूलोगे गोयम ! बालग्गको. डिमेतंपि। तं नरिय पएसं जाय अर्णवमरणे न संपत्ते ॥२॥ पुलसीबजोणिलक्से सा जोणी नस्थि गोयमा ! इहई। जत्यण अगंतनुलो सके जीवा समुप्पना ॥३॥ सूईहिं अग्गिवचाहि. संमिमरस निरंतरं । जावइय गोयमा! बुक्स, गब्ने अहगणं तयं ॥४॥ गम्भाओ निफितस्स, जोगीतनिपीलणे। कोडीगुर्ण तयं दुक्ख, कोदाकोडिगुणपि वा ॥५॥ जायमाणाणजे दुक्ख, मरमाणाण जंतुर्ण । तेण बुक्सविमागे(निदाणे), जाईन सरंति (२८५) ११४० महानिशीथरोदसूत्र, #re ___मुनि दीपरनसागर । दीप अनुक्रम [७४२] ~288~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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