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________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [५], ------------- उद्देशक ----------- मूलं [७] +गाथा:||९||------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं I STRATIgtobe का गणणापमाणऊणाइरिसरयहरणपतरंगमुहणतगाइउवगरणधार गुरुवगरणपरिभोई उत्तरगुणविराहर्ग मिहत्याउंदाणुविचाइसम्माणपवर पुढवीदमागणिवाऊवणफईचीयकायतसपाणपितिपउप दियार्ण कारणे वा अकारणे वा असती पमायदोसओ संघहणादीसं अदिदोस आरंभपरिग्नहपवितं अदिन्नालोयणं विगहासीलं अकालवारि अपिहिसंगहियापरिक्खियपाविओवहाचियासिक्समियदसविहविणयसामायारिलिगिण इढिरससायागासजायाइमवचउकसायममकारअहंकारकठिकलहसंझाडमररोहनमाणोचगयं अठावियबहुमयहरं देहित्ति निच्छोदियकर पहूदिवसकयलोयं निजामततंतजोगजा(मंज)जाहिजणिकपाकास अढमूलजोगगणिओर्ग दुकालाइआलवणमासन अकापकीयगाइपरिभुजणसील किंचि रोगार्यकमालंपिय निगिच्छाहिणंदणसीलं किंचि रोगार्यकमासीय दिया तुबहणतीलं कुसीलसंभासणाणुवित्तिकरणसील अगीयस्थमुहविनिमयअगदोसपायहिवयणाणुहाणसीलं असिघणुखम्गमंडीवकुंतषकाइपहरणपरिमगहियाहिंदणसील साहुझियजन्नसपरिवनकयाहिंडणसील एवं जावणं अक्षुहाओ पयकोडीओ वापसे गोयमा! असंठियं च गपडं पायरेजा।६।तहा अण्णे इमे बहुप्पगारे लिंगे गच्छस्स गं गोयमा! समासओ पन्नविनंति, एतेयणं एवारिसेर्ण गुरुगुणे विन्नेए जहा-गुरूताच सम्पजगजीवपाणभूयसत्ताणमाया भवाइ, कि पुण गच्छरस,सेणं सीसमणार्ग एनसणं हिय मिर्च पार्थ इहपरलोगसुहाचह आगमाणुसारेण हिजओचएस पयाइसेणं देविंदनारदरिदीभाणपिपपस्तमे गुरुवएसप्पयाणलंभेतचा(सत्ता)णुकंपाए परमक्खिए जम्मजरामरणादीहिर्ग इसे मध्वसत्ता कई गुणाम सिवसह पातित्तिकाऊणं गुरुपएस पयाज, णो णं बसणाहिए जहा णं गहन्यस्ये उम्मले, अस्चिएर वा जहा णं मम इमेण हिओबएसपयाणेणं अमुगहलामं मकेजा. णो णं गोयमा ! गुरु सीसा निस्साए संसारमुत्तरेजा, णो णं परकएहि सबसुहासुहेहिं कस्सइ संपद अस्थि ।। 'ता गोयम! एश्य एवं ठिमि जइ बढचरित्तगीयत्यो । गुरुगणकलिए य गुरुणा भणेज असई इर्म वयर्ण ॥९॥ मिण गोणसंगुलीए गणेहि वा बंतवकलाई से तंतहमेव करेजा कन तुनमेव जाणेनि॥१०॥आगमचिऊ कबाई सेयं कायं मणिज आपरिया। तंतह सदहिया भविया कारणेण तहिं ॥१॥जो गेहद गुरुवयणं मन्नत भावओ पसन्नमणो । ओमहमिव पिजन से सस महामहं हो ॥२॥ पुन्नेहिं चोइया पुरक्खएहिं सिरिभायणं भवियसत्ता । गुरुमागमेसिभदा देवयमिव पजुवासंति ॥३॥ बहुसोक्खसयसहस्साण दायगा मोयगा दुइसयाणं । आयरिया कुडमेयं केसि पएसीय ते हेऊ ॥ ४॥नरयगइगमणपरिहत्थए कए वह पएसिणा रमा। अमरविमाण पत्नं ते आयरियायभावेण ॥ ५॥ धम्ममइएहिं अइसमहुरेहि कारणगुणोपनीएहि । पहायतो हिययं सीसं बोइज आयरिओ॥६॥ एत्वं चावरिाण पणपर्व होति कोडिलक्खाओ। कोडी सहस्से कोडी सोय तह एत्तिए येव ॥ ७॥ एनेमिनामी एगे निमुन गुण(क)गणाइन्ने। सत्रुत्तमभंगेर्ण तित्वयरस्सऽणुसरिस गुरुः ॥८॥सेऽविष गोयम देवयचयणा मरित्यणाई सेसाई। तह आराहेजा जाह तित्थयरे चउनीस ॥॥ सबमपी एल्य पए दुवालसंग सुर्य तु भणिया। भवह नहा अविमिणिमो समाससारं परं भजे ॥२०॥जहा- मुणिणो संघ नित्यं गण पक्षण मोक्खमग्ग एगहा। इसणनाणचरिने घोरुगत पेप गाणामें य॥१॥पपलनि जत्थ धगधगधगम्स गुरुणोषि धोइए सीसे । रागहोसेणं अह अणुसएणत गोयम! ण गच्छं ॥२॥गळ महागुभार्ग तत्व वसंताण निजरा विडला । सारणवारणचोयणमादीहिंण बोसपडिपत्ती॥२॥ गुरुगो वणुपले सुविणीए जियपरीसहे धीरे । णचि थडे णपिउने पविगारपिए न विगहसीले ॥४॥ संत ते मुसे गुते वेरमामग्गमाडीणे । बसनिहसामावारीमावस्सगसंजमुजुले ३५॥ खरफक्सककसाणिहरहनिरगिराइ सबहुतं । निभाणनिवारणमादीहिन जे पओसति ॥६॥जे पण अफिसिजणए गाजसजणए कजकारी य । न च पश्यणुदडाइको ठगयपाणसेसेचि ॥ ७॥ सनायामाणनिरए पोरतपधारणसोसियसरी गवकोहमाणकड्या दृझियरागहोसे य ॥८॥विणोरयारकुसले सोक्सविहरयणभासणाकुसले। मिरवजयणमणिरे यबहुभचिरेण पुणऽमणिरे ॥९॥ गुरुला कलमकले लरककसफरसनिठुरमणिह। मणिरे तहत्ति इमई मणति सीसे तय गच्छ ॥३०॥ दूरुजिाय पत्ताइसु ममतं निषिहे सरीरवि। जायामायाहारे बायालीसेसणाकुसले ॥१॥ तंपि ण कारसत्य मुंजताणं न येव दपाय। अक्खावंगनिमिर्स संजमजोगाण वहणत्यं ॥२॥ षण पेयापचे हरियड्डाए य संजमहाए। तह पाणवत्तियाए उई पुण धम्मथिताए॥३॥ अप्पुनाणमहणे घिरपरिचियधारणेकमुजुले । सुर्त जत्थं उभय जाति अणुद्वयति सया ॥४॥ अहह नाणदसणचारित्ताधारणपकाउकमि । अमिगृहियपालवीरिए अगिलाए धणियमाउत्ते ॥ ५॥ गुरुणा सरफरुसाणिहनिहरगिराए सपर्स । भगिरे को पटियरिति जत्थ सीसे तरं गच्छं॥६॥ तवसा अचितउप्पलबिसाइसरिदिकलिएदि । जत्थ नहीलंति गुरू सीसे संगोयमा! गळं ॥७॥साहितिसयपावाउयाण विजया विद्वत्तजसपुंजे। जय नहीलंति गुरूं सीसे तं गोयमा ! गई ॥८॥ जत्थासलियममिलियं अबाइ पयस्वरविसुदं । विनाओवहाणपुर्व दुवालसंगपि सुचनाणं ॥९॥ गुरुपलगभत्तिभरनिभरिकपरिजोसलबमालाये। अज्झीयंति सुसीसा एगम्ममणा स गोयमा! गई ॥४०॥ सगिलाणसेहवालाउलस गठस्स सनि लिहिणााकीर याच गुरुआपत्तीएं तंगडं ॥१॥ दसचिहसायापारी जत्थ ठिए भवसनसंपाए। सिझति व बुज्जति पण य संडिजायं गई ॥२॥ इच्छा मिच्छा तहकारो, आपस्सिया य निसीहिया । आपुच्छणा य पद्धिपुष्ठा, उंदणा य निमंतणा ॥ उवसषया यकाले सामापारी भये रसविहा उ ॥३॥ जत्थ य जिह कणिड्डा जाणिजह जेहविणवचमाण । दिबसेपनि जो जेट्ठो गोहीलिजइ तयं गई ॥४॥ जत्य व अजाकप पानचाएपिरोस्सुम्भिरसे। णय परिभुजद सहसा गोयम ! मम्मट तय मणिय ॥ ५॥ जत्थय अनाहि सम घेराविण वादति गवदसणा। ग य णिजाति स्वीगोगाईत गच्छ॥६॥जत्य य सन्निहिउक्रवडआइडमादीण नामगहणेऽपि । पूईकम्मा भीए आउना कप्पनिप्पमि ॥७॥ जत्थ य पचंगुम्मटजयजोत्रणमरहदपेणं। वाहिजताचि मुणी णिपसंति तिलोत्तमपितं गई॥८॥ वायामेनेजवि जरथ महसीलस्स निमहं बिहिणा। बहुलविजुषसेहस्सवी कीरह गुरुणा जयं गच्छ॥ ९॥मउए निहुयसहावे हासदयविनिए विगाहमुके । असमं. जसमकरेते गोयरभूमऽङ्क विहरति ।। ५.॥ मुणिनो गाणाभिमहबुकरपच्छित्तमणुचरंताण । जायह चित्तचमक देविदाणपिसं गई॥१॥ जत्य य बंदणपदिकमणमाइमंडलिपिहाणनिउणनू । गुरुणी असलियसीले समय ११३९ महानिशीथच्छेदम Gram मुनि दीपरतसागर दीप POTAT अनुक्रम [६९८] ~287~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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