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________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [७] + गाथा ॥१७०|| दीप अनुक्रम [१७७] Sender “महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं ) - अध्ययन [ १ ], • उद्देशक [ - ], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ..........आगमसूत्र - · मूलं [७] + गाथाः || १७० || [३९] छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं नोनियर कहे। राया जीयं निर्कितामि, अह नियदुच्चरिय कह ॥ १७० ॥ पाणेहिंपि स्वयं तो नियदुवरियं कहे तो सहस्वहरणं च रच पाणेवी परिक्षए णं ॥ १ ॥ मयावि जंति पायाले नियदुबरियं कहति नो। जे पावाहम्मदीया, काउरिसा एगर्जमिणो से गोति सदुधरियं नो सम्पुरिसा महामती ॥ २ ॥ सम्पुरिसा ते पण पुम्बति जे दाणवह दुजणे सप्युरिसाणं चरिते मणिया, जे निस्सला तबे रथा ॥ ३ ॥ आया अणिच्छमाणोऽवी. पावस गोयमा ! णिमिदानंतगुणिएहि पुरिने नियदुखिया ॥ ४॥ वाई च झाणसज्झायपोस्तवसंजमेण य निमेण अमाएणं तपसणं जो समुद्धरे ॥५॥ जलोएना गीसह निदिउ गरहि दर्द नह पर पाय जाम करे ॥ ६॥ अचजम्मपत्ताणं, सेनीभूयाणवी दर्द णिमिसदखणमुत्तेणं, आजम्मेव निच्छिओ ॥ ७॥ सो मुझे सांय पुरिसा, सो तपस्सी से पंडिओ संतो देतोय. सहल नस्सेर जीवियं ॥ ८ ॥ सूरो सो सल्लाहो प दो व लगे लगे जो मुद्धाठोपणं देतो, नियदुचरिय कहे कुठे ॥९॥ अयेगे गोयमा पाणी, जे सई अदरदिवं माया ला भया मोहा. मुसकारा हियए परे ॥ १८०॥ नं न गुरुतरं दुक्खं हीणसनस संजणे से चले जाणदोसाओ, गोदरं दुक्खजिहं किल ॥ १॥ चारों दुधारो वा लोस अडिओ सोग स्थाम जंमेगं, अवासीभवे सो ॥ २ ॥ पावसा पुणासंखे, निक्लधारी सुदारुणो भवंतर सर्व सिंदे कुलिस गिरी जहा ॥ ३ ॥ अत्येगे गोयमा पाणी, जे मरायसाहस्सिए सज्झायज्झाणजोगेण घोरतवसंजमेण ॥ ३ ॥ सहडाई उदरेकर्ण विश्याना दुक्खकेसओ पमाया चितिहि पूजिनी पुणविय ॥ ४ ॥ जम्मतरे बस, बसा किम्मणो सदरणस्स सामत्यं भवंती कवि जं पुणो ॥ ५ ॥ तं सामला जे पमायवसं गए। वे मुलिए सहभावणं, कहाणाणं भवे भवे ॥ ६ ॥ अत्थे गोयमा पाणी. जे पमायवसं गए। परं तेवीस पोरं सह गोति सहा ॥ ७॥ यं तत्थ बियाणंति, जहां किमम्हेहिं गोवियं जं पंचोगपालप्पा, पंचेंद्रियाणं च न गोविं ॥८॥ पंचमहालोपाले अप्पा पंचदिएहि य एकारसेहि एहि दिहं ससुरासुरे जगे ॥ ९ ॥ ता गोयम ! भावदोणं, आया बंचिन परं जे चडाइसंसारे, हिटइ सोफ्लेहि चिओ ॥ १९० ॥ एवं नाऊण काय, निच्छियहिययचीरिया महउत्तिमसतकुंतेणं भिदेयता मायास्क्ससी ॥ १ ॥ षट्वेयभावेण निम्हण जगायातीअंकुसैण पुणो माणगर्द बसीकरे ॥ २ ॥ मद्दवमुसलेण वा चुरे, पीसयरि(स) यं जाव दूरओ। ददणं कोहको (लो) हाही (ई)मयरे निंदे संघडे ॥ ३ ॥ कोहो य माणी य अणिग्गहीया. मावा य लोभों य पवइदमाणा । चत्तारि एए करिणा कसाया, पोयंति सद्धे सदुरुदरे बहुं ॥ ४॥ उसमे हमे कोह, मार्च महवया जिणे माये चलवभावेण लोभ संतुट्टियो जिने ॥ ५॥ एवं निजियकसाए जे, सनभयाणविरहिए। अट्टमयविष्यमय देना बालोयणं ॥ ६ ॥ सुपरिफुटं जहावतं स नियदुवियं कहे गीसंकेय असंशुद्धे, निष्मीए गुरुसंतियं ॥ ७॥ भूतो पाले जह पलवे उज्जुए दूरं अधि उप्पनं तदा स आलीय जहट्टियं ॥ ८ ॥ पायाले पविसित्ता, अंतरजलमंतरे या कयम रातोऽयकारे वा जगणएव समं भये ॥ ९ ॥ तं जयन्तं कय, समपि निक्खि। नियदुकियसकियमादी आलायतेहि गुरुयणे ॥ २०० ॥ गुरुतिरभणियं ज तहिं कहे नीतीभवति तं कार्ड ज परिहरह असंजम ॥१॥ असंजम भई पात्र में पाचमनेगा मुणे हिंसा अस चोरि. मेणं तह परिग्गहं ॥२॥ सदाइदियकसाए व मणडे हा एने पाती श्रीसोणी वर्णमये ॥ ३॥ हिंसा पुढवादिमेया अहवा नवदस चोदसहा उ अहवा जगहा या कायदंतरे ॥ ४॥ हिओबदेस पमोनूण, सनमपारमत्थियं तनधम्मस्स सबसावं. मुसाचार्य अणेगहा ॥ १५ ॥ उमग उपासना, बायालीसाए तह य पंचेहि दोसेहिं दुसिये, जं भंडोगरणपाणमाहारं नक्कोडीहिं असु परिभवे ॥६॥ दिवं कामरसुतिविहंनिणि अह उलं मनसा तो अभयारी मुणेय ॥ ॐ नवनरगुती विराहए जो वसा समणी या दिट्टमहवा सरागं पजमानो अइयरे ॥ ८॥ गणणा (१) माणजइरिनं धम्मीयगरणं नहा कसायरमावे. जावाणी कसिया भये ॥ ९॥ सजा हा मुसा मुणे सरकलमनि अदिष्णं, मिन्हे चोरि ॥ २९०॥ मेकरकम्मे, सदादीण विधारणे। परिग्गह जहि मुच्छा, लोहो का ममत्तयं ॥१॥ अजोरियमाकंठं मुंजे राई भीषणं सहस्वाणि इयरस र धफरिसम्स वा ॥ २ ॥ ] रागंण प्यदोवा गच्छेजा खयं मुणी कसागर व चकरस मनसि विज्झायर्ण करे ॥३॥ बुद्धे मणोपकायादंडे को गं पजए अफासुपाणपरिभोगं, चीयकायसंपणं ॥४॥ अहमे पाये गोभी नये एएसि महतपाचाणं देवं जाव कपई ॥ ५॥ एकंपि चिए हम पीसो ताप णो भवे तम्हा आलोय वार्ड पायच्छिन करे एवं निकवनि, नीसह कार्ड त ॥ ६॥ देवे मासे वा तत्तत्युत्तमा जाई. उत्तमा सिद्धिसंपया भेजा उत्तम रूवं सोहम जो तमये ॥ २१७ ॥ तिमि महानिसी सुपक्चस्स पढमं अज्झणं सादरणं नाम १ ॥ एयरस य कुलिपि दोसो न दायको पहरेहि, किंतु जो व एस्स पुत्रारिलो आणि तत्येव कई सिलोगो कई सिलोग कत्थई पमक्सर कस्बाई अक्सरपतिया कत्थई पनगड़िया कत्थई के तिन्नि पसगाणि एवमा बहुगंध परिगलियति 13 निम्मृद्धियर्ण समान गोयमा झाणे पविसेत्तु सम्मेयं पचस्वं पासिययं ॥ १ ॥ जे सम्म जेषि पासन्नी, भडाभडा जे जसे महत्वी निरिया इमिहादिसदिसिं ॥ २ ॥ असन्नी दुनिए वि हिंदी एगिदिए। चिपले किमकुंमच्छादी. पुढवादी एमिंदिए ॥ ३ पशुपक्खीमिगा सण्णी, नेरड्या मनुया नरा भवानवादि अत्येसं नीरए उभयजिए ४ पम्मत्ता जति छायाए, विपलिंदी सिसिराऽऽयं होही सोक्स्ख किलम्हा, ता दुक्ख तमये ५ सुकुमालंग गवता, खणदाहं सिसिरं खणं न इमं अहियासे सकुर्ण एवमादिवं ॥ ६ ॥ मेणकपरागाओ, मोहा अण्णाणदोसओ पुढवादीस गएगिंदी ण पाणंती दुक्खं मुहं ॥ ७॥ परिचाले बेइंद्रियणं केई जीवा न पावेंती केई पुणोऽनादियात्रिय ॥ ८॥ सीउन्नायविज्झडिया, मियपमुपक्खीसिरीसिया सुमिणतेषि न त णिमिति मुहं ॥ ९ ॥ सरफरसतिक्सकरवताइए हिं.. फालिताखणे खणे नियते नारवा नरए, तेसि सोक्खं कुलो भये ॥ १०॥ सुरलोए अमरया सरिसा, सबेसि तत्थिम दुई उदह (डिए वाहणनाए, एगो अग्णी तमादे ॥१॥ समपाणिपादेणं हाहा मे अनवेरिणा। माया१९१८ महानिशीथच्छेद असणे-२ मुति दीपरत्नसागर अत्र प्रथमं अध्ययनं समाप्तं अत्र द्वितियं अध्ययनं- “कर्मविपाक-व्याकरणं” आरब्धः ~266~ ----
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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