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________________ आगम (३३) "मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया) ------------------------- मूलं [३३९]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया प्रत पण्णय- Iतवसोसियंगमंगो संधिषिराजालपागडसरीरो। किच्छाहियपरिहत्थो परिहाइ कलेवर जाहे ॥३३९॥१५७४क्षामणा दसए १०पचक्खाइ य ताहे अन्नन्नसमाहिपत्तियंमित्ती । तिविहेणाहारविहिं दियसुग्गइकायपगईए ॥ ३४० ॥ १५७ देहादिमरणस- इहलोए परलोए निरासओ जीविए अ मरणे य । सायाणुभये भोगे जस्स य अवहट्टणाऽईए॥३४॥१५७६।। त्यागः माही [निम्ममनिरहंकारो निरासयोकिंचणो अपडिकम्मो । वोसट्टविसटुंगो चत्तचियतेण देहेणं ॥ ३४२ ॥१५७७॥ ॥११९॥ तिविहेणवि सहमाणो परीसहे दूसहे अ ऊसग्गे। विहरि विसयतहारपमलमासुमं विहुणमाणो ॥३४॥ ॥ १५७८ ॥ नेहक्खए व दीवो जह खयमुवणेइ दीववष्टिम्मि (डिपि) । खीणाहारसिणेहो सरीरयहि तह स्ववेइ ॥३४४॥१५७९॥ एव परज्झा असई परक्कमे पुखभणियसूरीणं। पासम्मि उत्तमढे कुजा तो एस परिकम्मं ॥३४५|| सूत्रांक ॥३३९|| C दीप अनुक्रम [३४०] तपशोषितांगोपांगः प्रकटसन्धिशिराजालशरीरः । कृचट्राहितनैपुण्यः (कृच्तैःपूर्णः ) परिहरति कलेवरं यदा ॥ ३३९॥ प्रत्याख्याति च है तदा अन्याऽन्यसमाधिप्रत्ययमिति । त्रिविधेनाहारविधि उदितसुगतिकायप्रकृतिकः ।। ३४०॥ इहलोके परलोके प निराश्रयो जीविते | च मरणे वा । सातानुभवे मोगे यस्य चापहरणा (परित्यजना )ऽतीते ।। ३४१ ।। निर्ममनिरहंकारो निराश्रयोऽकिसानोऽप्रतिकर्मा ।। अत्यर्थ (व्युत्कृष्टं ) विसृष्टांगः त्यक्तप्रीतिना देहेन ।। ३४२ ॥ त्रिविधेनापि सहमानः परीपहान् दुःसहांश्च उत्सर्गवान् । बिहरेत् | विषयतृष्णारजोमलमशुभं विधून यम् ॥ ३४३ ।। कोहक्षये वा दीपो यथा भयमुपनयति दीपवर्तिमपि । झीणाहारनेहः शरीरवति तथा ॥११९।। अपयति ॥ ३४४॥ एवं प्रारब्धः सति पराक्रमे पूर्वमणितसूरीणाम् । पार्थे पत्तमार्थाय कुर्यात्तदा एतत् परिकर्म ॥ ३४५॥12ी AMEReadinamainaissa ~61~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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