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________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [८७] -------------- ------------- भाष्यं [२३७१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सूत्रांक 45 [८७] दीप .12 आसियाडेजा। निसारिपटिया गाम बहि ठमेल मिजतो ॥१॥ पुण सग्णादिमतो अदालीओरकोति पासेजा। विय पडो कोलीमणे अहे पालतिकामो॥२॥ससहातो असहातोनि पुग्छितो भणति ता ससहायो। सो कल्प' मा को ठाय पिचासस्स ना अडति ॥३॥ तो अति अग्णपाणं इस मुंजऽमुकंप दाए सुबो तापमं च पुट्टपुट्टो कहति सुदो असदभावो ॥ ४॥ सदबाए पुण दोसो मर्स देनस्स जहर कइयते। आसीआपणहेतुं सोहि इमेहिंतु ठाणेहिं ॥५॥ मते पण्णवण णिगृहणा याबार जपणा वा पत्थवण सर्यहरणे सेहे आत्त बले य॥६॥ गुरुजी चतुला पतगुरु साहु उम्गुरुग छेदमबते । पसे मिक्सुणों मूलं दुर्गतु अमिसेग आयरिए ॥ एवं ता जो णिजति अहिहारेन्तो पुणोवि A जो जाति। सोऽविय लहेब पुट्ठोमगाइ वचामऽमुगमूल ॥८॥ तद व भत्तपाणं पण्णवणा नेच होति एत्यपि। सेसा मिगुहणानी सोचि पथा ण सत्ति इहं ॥९॥ एमेच य इत्वीए णिनंतऽभिचारपति एमेव । वसवताएं गमो दोसो घामे हरंतसा ॥२४३०॥ आणा यऽर्णतसंसारिवत्त मोहीयातमत्तं च । साइम्पियवेण्णम्मी पमत्तछलणाऽहिकरणं च ॥१॥चि. वियपर्य वोच्छेदे पुरगए कालियाणुजोगे या एतेहिं कारणेहिं कप्पति सेहायकारो तु॥२॥ एवं तु सो अवहितो जाहे जातो सयं तु पावयणी। कारमजाए य जया होनाही अवहितो नेष ॥३॥सो ने विय घरनि गणं कालग गुरुम्मितं विहारेन्ते। जापेको णिकरणो साहे से अपणो इच्छा ॥४॥जह हरिए निकारने ताहे पुरिमाण चेन सो जाति: अह अम्भु जयमरणं पविषण्णो गुरुविहारं वा ॥५॥ अण्णम्मि अविर्मते आयरियपदारव्हे तमेव गणं । चारेति जान अण्णो जिम्मातो तम्मि गच्छामि ॥ ६॥ सचिसतेण्णमेयं साहम्मीणं तु एन. शमसात आमवणं दोसा था परचम्मियतेने मोच्छामि ॥ ७॥ परधम्मियानि इरिहा लिंगपविद्वा तदा मिहत्याबा तेसि विपिह लेणं बाहाने उपदि सचित्ते ॥८॥ निक्खुमादीसंख-स हित लिग का भजए लदो। आभोगम्मि उ लगा गुरुगा उसणे होति ॥९॥ कृरणिमित्तं चेच उ अजिबना एते एत्य पाया। अनिविष्णदाणमा खल परयणहीला दुरपति ॥२४०॥ गिहासेपि परागा पूर्व सुएते अविद्धकताणा। गलओ पावर म बलिजो एवेसि सत्युणा चेप ॥१॥ एवं ता आहारे उपहीने पुणो गई होजा। जह कोदि मिष्गाची उजम्मए मोन उपमरण ॥ २॥ भिक्खादिगतो न तू जति गिति चतुलह मवे तस्य । गिक्षण कटण वनहार पच्छकर तह व मिसिए ॥३॥ गिष्हणे गुरुगा छम्मास कड्दण दोभा होनि वाहारे। पठादम्मिा मूळ मिनिसबोटापणे परिमं ॥४॥जन्हा एते दोसा सम्हा जनिरिज्यप घेत्त। उपहीनेणं एवं एलो वोठामि समिते॥५॥ सुइट व बुद्धिाय पा नेति जान पनिछन गुरुगा। बत्तम्मि पत्यि पुछा खेनं बाम च णापूर्ण ॥६॥ लिंगपपिट्टामेवं एमेव तिहा अदिष्ण गिहियाण। गहमादीया दोसा सचिसेसतरा भये लेम् ॥७॥ आहारे पिडादी विरणिय बदल दिया गेहे । गेहूती दिहाविय ता कुसलपरंपरा छुमणा ॥८॥ तहियं हॉति चतुला अणयप्णी य होति आदेसा। एमेष य उपदिम्मिवि सुनही कन्यमादीया ॥४॥जीएहि तु अपिदिणं अपनवयं पुमंग विक्सेनिता अपरिगहम(सु)तो कम्पति तु जदो सदोसहि ॥२॥५०॥ अपरिग्गह गारी पुण गमवति तो सापकपति अधिषणा। सापि य र कार कह जहपउमा भुइमाया वा॥१॥ वित्तियपर्वऽपाऽऽहारे अद्धामोमाइएमु कजेसु । उयहीविवित्तमादिसु आगादे गणमाविदियो ॥२॥ सपढीम नाच पुरका गेहनिनन्य अदलेन्ते। बलमयरडेसे पुष उम्पी वाहे गिति ॥ ३॥ ताहे परलिंगीणचि जातिय पुर्व अदते उष्णम्भिा गारस्थीसुषि एवं आगाडे होति गहर्ण ॥४॥ आहार उपहिम्मिय वितियपदे गहणमेतमपलाया एतो सचित्तमहणं बोच्छामि अदिष्ण वितियपाए ॥५॥णाऊणयबोच्छेयं पुष्वगए कालिआओगे या उक्युमिण पूर्व होहिति जगप्पहाणनि नाहे सदनग सुडी हरेज गिहिणतित्थियाणं वा। साइम्मिजणधम्मिय एवं लेणं समक्सातं ॥७॥ गाहापुण्द्धस्स तु इति एसा अभिहिता पई नेणा। अरणा पठासनगाहास इमाईसाद अह एनो नोचामो हत्वाचालं जहकमे ना किं पुष इत्यायालं? मम्मति णमो पिसामेति ॥५॥ त्या ताले (हत्या अवायाणे यहोनि बोडो। एतेसि गाणसं पोष्यामि जहाणपञ्चीए ॥२४६०॥ इत्येणं जं तालण इत्याचा तग मुणेत । नहिय हरति अदो ग्लोइयनोउत्तरो इणमो ॥१॥ उगिणम्मि य गुरुओ टंटो पटियस्मि होति भतणा ना एवं स लोइयाण लोउत्तरिय अतो बोच्छं ॥२॥ हत्येण व पाएग अण्वप्पो न होति उम्पिाये। पटियम्मि होनि भयणा उनणे होति पारंची ॥३॥ वितियपय खुड विणयं गाइन्ने अहव बोहिगादीम। सावयभवेव घो(चो) वेजाही हत्पत्तालं तु ॥४॥ विगयग्गाहण खुइडे काणामोइस्याहाचपडादी। सावेतो हरवताल दलाइ सम्माणि सलती ॥५॥ परपरिवाषणकरणं चोदेह असायबंधहेउति। न कह तस्सागुणा तुम्नेहि कया? गुग काम परपरितानो असातहेत। जिणेहि पाणलो। आयपरहियकरो तू इचिकना इस्सि(दोस)ले सखल ॥७॥ सिप्पं गेउणिया बापाने सइंति लोया गुरुयो। ते इहलोगफलाणं मडरवियागेस उपमा तु या अहपावि रोगिवस्सा ओसह चादि दिगए पुर। पचहा साडेतुपी देहहिनहाएं दिनति से ॥ ९॥ इस मकरोगत्तस्सवि अणुकूलेन तु सारणा पुर्य। पच्छा पटिफुलेगवि परलोयहियह काया १०५८जीनाममार्य मुगि दीपरजसागर अनुक्रम [८७] 20ARDS ~204~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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