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________________ आगम (33) प्रत सूत्रांक || १९५|| दीप अनुक्रम [१९५ ] “मरणसमाधि” – प्रकीर्णकसूत्र १० ( मूलं + संस्कृतछाया) मूलं [१९५]--- पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया JE पइण्णयदसए १० मरणस माही ॥ १०९ ॥ कषायराग | तिहिं गारवेहिं रहिओ होह निगुत्तो य दंडेहिं ॥ १९५ ॥ १४३० ॥ सन्नासु आसवे अ अडे रुद्दे अ तं विसुद्वप्पा रागहोसपर्वचे निनिणिडं सबणोज्जुत्तो ॥ १९६ ॥ १४३१ || को दुक्खं पाविज्जा ? कस्स य सुक्खेहिं द्वेषनिग्रहः विम्हओ तुला? । को व न लभिन मुक्खं? रागदोसा जड़ न हुजा ॥ १९७ ॥ १४३२ || नवि तं कुण अमित्तो सुद्ध विय विराहिओ समत्थोचि । जं दोवि अनिहिया करंति रागो य दोसो य ।। १९८।। १४३३।। तं सुबह रागदोसे सेयं चिंतेह अप्पणो निधं । जं तेहिं इच्छह गुणं तं वुह बहुतरं पच्छा ॥ १९९ ॥ १४३४ ॥ इहलोए आयासं अयसं च करिंति गुणविणासं च । पसवंति य परलोए सारीरमणोगए मुक्खे ॥ २०० ॥ ॥ १४३५ ॥ घद्धी अहो अकजं जं जाणंतोऽवि रागदोसेहिं । फलमडलं कडुयरसं तं चेत्र निसेब जीवो | २०१ ॥ १४३६ ॥ तं जह इच्छसि गंतुं तीरं भवसायरस्स घोरस्स । तो तवसंजमभंडं सुविहिप ! गिण्हाहि त्रिगुप्त दण्डेषु ॥ १९५ ॥ संज्ञासु आभवेषु च आते रौद्रे च त्वं विशुद्धात्मन्! रागद्वेषप्रपंचान निर्जेतुं संत्रण ! उद्युक्तो ( भव) | ।। १९६ ॥ को दुःखं प्रावीत ? कस्य वा सौख्यैर्विस्मयो भवेत् ! को वा न लभेत मोक्षं ? रागद्वेषौ यदि न स्याताम् ॥ १९७ ॥ नेत्र तत् करोति अमित्रं सुपि विराः समर्थोऽपि । यद् द्वावपि अनिगृहीतौ कुरुतो राग द्वेषच ॥ १९८ ॥ तत् मुख रागद्वेपौ श्रेयः चिन्तयत आत्मनो नित्यम्। यं ताभ्यामिच्छत गुणं तस्माद्बहुवरं पञ्चान् भवं ॥ १९९ ॥ इह लोके आवासं अयशश्च कुरुतो गुणविनाशं च प्रमुवाच परलोके च शारीरमनोगतानि दुःखानि ॥ २०० ॥ धिग् धिग अहो अकार्य यन् जानानोऽपि रागद्वेपास्वाम् फलमतु कटुरसं तावेव निषेवते जीवः ॥ २०१ ॥ तद् यदीच्छसि गन्तुं तीरं भवसागरस्य घोरा तर्हि तपःसंयमभाण्डं Far Pal Pal Use Only ~ 41~ ॥ १०९ ॥
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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