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________________ आगम (३३) "मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया) ------------ मलं २०२]--------------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३] प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया प्रत सूत्रांक ||२०२|| तूरंतो ।। २०२॥१४३७ ।। बहुभयकरदोसाणं सम्मत्तचरित्तगुणविणासाणं । नहु वसमागंतवं रागद्दोसाण पावाणं ॥ २० ॥ १४३८ ॥ जं न लहइ सम्मत्तं लणवि जं न एइ वेरग्ग। विसयसुहेसु य रजह सो दो. सो रागदोसाणं ॥ २०४ ॥ १४३९ ॥ भवसयसहस्सदुलहे जाइजरामरणसागमत्तारे । जिणवयणम्मि गुणागर! खणमवि मा काहिसि पमायं ॥ २०५ ॥ १४४० ॥ दहिं पजवेहि य ममत्तसंगेहिं मुट्ठवि जियप्पा । निप्पणयपेमरागो जइ सम्म नेइ नुक्खत्वं ॥ २०६॥ १४४१॥ एवं कयसलेहं अम्भितरवाहिरम्मि संलेहे। संसारमुक्खबुद्धी अनियाणो दाणि विहराहि ।। २०७॥ १४४२ ॥ एवं कहिय समाही तहविह संवेगकरणग-16 | भीगे । आउरप चक्खाणं पुणरवि सीहायलोएणं ॥ २०८ ॥ १४४३ ॥ न हु सा पुणरुत्तविही जा संवेगं करेइ भपणती । आउपभक्खाणे तेण कहा जोइया भुजो ॥ २०९ ॥ १४४४ ॥ एस करेमि पणामं तित्थयराणं | सुबिहिन ' गृहाण त्वरमाणः ।। २०२ ।। बहुभयङ्करदोषयोः सम्यक्त्वचारित्रगुणविनाशकयोः । न वशमागन्तव्य रागद्वेषयोः पापयोः २.३॥ यन्न लभते सम्मक्वं लब्धाऽपि यत् नैति वैराग्यम् । विषयसुखेषु च रज्यति स दोपो रागद्वेषयोः ।। २०४ ।। भवशतसहस्रदुर्लभे जातिजसमरणसागरोतारे । जिनवचने गुणाकर! क्षणमपि मा कार्षीः प्रमादम् ।। २०५ ।। द्रव्यैः पर्यायैश्च ममत्वसंगैश्च है। सुप्लपि जितात्मा स्यान । निष्पणयप्रेमरागो यदि सम्यग् प्राप्नोति मोक्षार्थम् ।।२०६॥ एवमभ्यन्सरबासलेखनया कृतसंले घनः । संसारमोक्ष बुद्धिरनिदान इदानीं विहर ।।२०७॥ एवं कथितसमाधिकस्तथाविधसंवेगकरणगंसीरः । आतुरप्रत्याख्यानं पुनरपि सिंहावलोकेन (करोति) २०८॥ नैव स विधिः पुनरुक्तः (स्पाद) यः संवेगं भण्यमानः करोति । आतुरप्रत्याख्याने तेन कथा योजिता भूयः ।। २०५॥ एष करोमि 466-67%% दीप अनुक्रम [२०२] 6-4 अथ आतुरप्रत्याख्यान-आदि वर्णयते ~ 42~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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