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________________ आगम (३८/१) anो मामा भाचार नियो प्रत सूत्रांक “जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [...] ---------------------------------------- भाष्यं [५०१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य का धायसंबडे ॥१॥ वासेन गोलसाइन लामो होजाहि सबिउमारबोकिन्योहमासिगादी विभंगिया अच्छमाण शालयकोपविणत विमूपिया वा सि उद्विता होजा। आयको पा र कोची लयमादी उद्विानोहोजा॥३॥ सिणि तु बारा किरिया तस्स कया णविय उक्समो जातो। जह ओमे कोसलेणं सम्णीण पंच उसयाईसमणीण बाई जयं भतंतु तुक्म बाहामि। लामंतरं चालणं विकिय धर्म ॥५॥ तो गाउ वित्तिई ऊसासणिरोहमादिणि कताणि । अणहीयासन्तेहि सहवेदण ओमि साहुहिं॥६॥ एवं सा कोसलाए अम्मिवि जोमों होज एमेव । सहसा जिन्नाहाणे असिवग्गहिया यकृणाहि ॥आ अभियानो वा चिन गिरिभित्ती कोणगाविस होजा। संबदहत्यपादादयोगबारेण होनाहि ॥८॥ एहि कारणेहि वाघाइम मरण होति गाय। परिकम्ममकाऊर्ण पचक्रवाई ततो मसं॥९॥ अह पुण जदि होजाही पंडियमरणं तु काउ असमस्यो। ऊसास गवपटू रजग्गाहर्णय कुमाहि॥५१०॥ अणुपुषिविहारेणं उस्सग्मणिवाइयाण जा सोही। विहस्तएन सोही मणिता आचारलोचा या ॥१॥ एसो पचक्लाणे आय परे भणिय णिजवाण विही। इंगिणिपायोषगमे बोच्छामी आपणिजवर्ण ॥२॥ परजादी काउंणेत जाव होयऽवोच्छित्ती। पंच तुलेवूण यसो ईगिणिमरणं ववसिओ उ॥३॥ आयपरपरिकम्म भत्तपरिणाएं दो अ. गुण्णाता। परिवनिया य ईगिणि चडचिहाहारविरती य॥४॥ठाण णिसीप तुपट्टण इत्तरियाई जहासमाहीए । सयमेव यसो कुणती उपसमापरीसहऽहियासे ॥५॥ संघयणधितीजुत्तो जब दस पुषा मुतेण अंगा वा।इंगिणिमरणं णियमा पडिवाइ एरिसो साहु ॥६॥ पनजादी कार्ड खेया जाय होयडयोमिछली। पंच तुलेवूण य सो पायोवगम परिणतो य॥७॥ अविहंणायणीहारि पेष तह अणीहारि। पहिता गामादी गिरिकवरमादि गीहारि ॥८॥वयादिसु जे अंलो उडेउममा व ठाय अनीहारि। कहा पादगमण उपमा पादवे त्यं ॥९॥सम विसमम्मि पदियो अच्छति जह पादवो वणिकंपो। णिचलणिप्पदिकम्मो मिक्खिक्ती जंजहि अंग ॥५२०॥ तं ठित होति तह थिय णवरे चलन परपयोगातो। वापाडीहि तस्स्स व पडिणीपादीहि तह तस्स ॥१॥ तसपाणबीयरहिते पिच्चियनियार पंडिल विसुदे। णिहोसे निहोसा उप्रेति अन्भुजयं मरणं ॥२॥ पुषभवियवरेणं देवो साहह कोति पाताले। मा सो परिमसरीरो ण वेदणं किंचि पाविहिती ॥३॥ उप्पणे उपसम्गे दिवे माणुस्सए तिरिचरखे या सव्वे पराजिणित्ता पायोवगया पविहरति ॥४॥ देवणरगतिगउस्से केपी पक्रलेवगं लिया कुजा । बोसट्टचत्तवेहो अहाउर्य कोइ पालिजा ॥५॥ अणुलोमा पडिलोमा दुर्ग तु उभयसहिया निगं होति। अहला चित्तमचिनं दुर्ग तिगी मीसगसमग 2॥६॥ पुढविगगणिमारुयषणसतितसेस कोड साहस । बोसडचत्तदेहो अहाउथ कोर पालेजा ॥ ॥ चितिबल जुत्तेहि तहि उपसम्गा जह सदा उ धीरेहि। णिरिसणा केहनहि वोच्छामि इमे समासेणं ॥८॥ मुनिसुव्ययंतेवासी खंदगमणगार कुमकारकडं। देवी पुरंदरजसा डंडगि पालक मत्रो य॥९॥ पंचसया जनेर्ण कट्टेण पुरोहिएण मलिया उ। रागहोसतुलम्ग समकरणं चितपतहि ॥५३०॥ अंतेहि करकएहि र सत्येहि न सावएहि विबिहेहि। देहे विवंसन्ते ण य ते माणातो फिहति ॥१॥ पडिणीययाएं कोई अम्गि सि पदेज अमुभपरिणामो। पादोवगते संते जह चाणकस्स वा करिसे ॥२॥ परिणीययाएं कोई चम्म से खीलएहि विहणित्ता। महुपचमक्सियदेई पिचीलियाणं तु दिनाहि ॥३॥जह सो चिलायपुत्तो बोसट्टणिसहपत्तवेहो उा सोणियगंधेण पिचीलियाहि जहचालगिा कतो॥४॥ मोगलसेलसिहरे जह सो कालासपेसिओ भगवं खाओ पिडपिऊ देवेण सियालरूलेणं जह सो पंसिपदेसी वोसनिसहचत्तरेहो उसीपत्तेहि चिणिगएहिं आगासमुज्नितो॥६॥ जयंतीमकुमालो बोसट्टणिसपनदेहागो। धीरो सपेशियाए सिवाएं खाओ तिरत्तेणं 130जह ने गोहाणे बोमणिसदुपत्तदेहागा। उदगेऽणुकुम्भमाणा पियरम्मी संकरे लग्गा ॥८॥जह सा बत्तीसपडा बोसङ्कणिसचत्तहागा। धीरा पाएण उदीविएन डिलयम्मि मोलाइया ॥९॥बावीस आणुपुच्ची तिरिचरखमणुयार भसणत्याए। विसवाणुकंपरकखण करेज देवावमणुया वा ॥५४०॥ जहणाम असी कोसा अग्लो कोसा असीवि खलु अण्णो। इय मे अण्णो देहो अण्णो जीवोति मग्णनि ॥१॥ एतणिजरा से दुविहा आराहणा धुचा तस्स। अंतकिरिय वसाह करेज देपोचवली वा ॥२॥ एवं चितिथलजुनो अहियासेनि पडिलोम उपसम्मे। एनो पुण अणुलोमे जह सहती ते तहा बोच्चई ॥३॥ सकारं सम्माणं हाणादीयाणि तत्य कुजाहि। बोसङचत्तबेहो अहाउ कोर पालेजा ॥४॥ पुत्रमबियपेमेन देवो देवकुरुउत्तरकुरासु। कोई साहरेजा सबसुहा जन्य अणुमाया ॥५॥ पुषभचियपेमेणं देवो साहरति णागभषणम्मिा जहियं बहा कता सासहा होति अणुभावा ॥॥पत्तीस-। लक्खणधरो पायोक्मयो प पागडसरीरो। पुरिसोसिणि कल्मा रावविदिग्णातु गिण्हेला ॥७७ मजण गंध पुष्कोचदार परियारणं च कुजाहि।सा पवर रायकण्णा इमेहि जुत्ता गुणगणेहि ॥८॥णक्यंगसोयबोहियाहारसरतिविसेसफुसला तु। चोयडीमहिलगुणा पिउना व निसनरिकलाहि ॥९॥ दो सोय णेत्तमादिग गवंगसोया हन्ति एनेमा देसीभासहारस स्तीपिसेसा उ उगुनीसं ॥५५०॥ कोसाडगेववीसहविहंतु एवमादिएहि तुगुणेहिं । जुनाए रूपजोषणक्लिासलायण्णकालियाए॥१॥ चउकग्णम्मि रहरसे राएर्ण रायदिग्णपसरा(पासा)ए। विमिमगरेहि उदही ण खोभिती जो मणो मुणिणो ॥२॥ जाहे पराइया साण समत्या सीलखंडणं कार्ड। ऊग सेलसिहरं तो सिरमुवरि मुयति तस्स ॥३॥ एगंतणिजरा (२५५) १०२० जीनकापभाष्य मुनि दीपरनसागर हो आउर्थ को पातमा इंडगि चालक मनभाणालो कि अनुक्रम ~166~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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