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________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [०४४९ ] दीप अनुक्रम [०४४९) मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... “पंचकल्प” - • छेदसूत्र -५/२ (भाष्य) भाष्यं [०४४९ ] [ ३८ / २ ], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं ....आगमसूत्र य कित्ती या संमूलागं वहि यपययणस्स लोगस्स होति संका सबै एयारिसा पूर्ण ॥ ९ ॥ मुको व मोइओ या अहवा पीसज्जितो परिदेणं अडाण परविदेसे दिखा से उत्तिम वा ॥ ४५०॥ बुविहो व होति दुट्टो कसाचो य विसयो प दुविहो कसायदुट्टी संपलपरपलचडभंगो ॥ १ ॥ सासवणाले मुहणंतएव उलुन्छ सिरिणि सपले सासवणाल सुसंमिय एगेण गुरुणमुपणीयं ॥ २ ॥ सवं गुरुणा वइयं इयरे कोनो व खामणा गुरुणा अणुपसमं उ गणे गणि ठवेत्ताऽनहि परिक्षा ॥३॥ पुच्छंतमणक्खाए सोबइ अण्णस्स (सबपातो गंतुक से देहं गुरुणो पुर्व कहिले दाई पडियरण देतो ॥४॥ मुहणंतगस्स महणे एमेव य गंतु गिसिमलम्हणं संमूढेणियरेणवि गए गहिती मया दोषि ॥ ५॥ अर्थ गवि सिकसि उगच्छी उपसणामि तुह अच्छी पढमनमो गरि इह उलुगच्छीउत्ति डॉकेड ॥ ६ ॥ सिहरिणि वेदे गुरू सादितंति उग्मिरणा भन्नपरिण्णा अण्णहिन गग्मड़ती सो इहं णवरि ॥ ७ ॥ परपखम्मि सर्पले उदातिणिवमारतो जह व दुडो सो पवयणरकखणड्डा विच्छुम्भति लिंग हातू ॥ ८ ॥ परपक्व सपकले पुर्ण जडणारायत्र सो तु भवणिजो तं पुण अतिसयणाणी दिर्खेतऽधिगारि पाउं ॥ ९॥ परपले परपले इंडियमादी पड़ परदेसे उवसते वाऽस्थ दमगादि पट्ट भवितो वा ॥ ४६० ॥ निषि य बिसयदुडो सलिंग गिहिलिंग अलिंगेय अहवा सवेवि दुहा सपक्वपरपक्व भंगो ॥ १ ॥ परपक्वविसयदुडो सपस पारंचिओ तु आउझे। अतियम्मिलिंगहरणं एमेव सपल परपवे ॥ २ ॥ परपक्वं तु सपकले विसयपण ते तु दिति सजि(ज्झि) पमादिपदुई ण य परपक्वं तु तत्येव ॥ ३ ॥ दवदिसखेनकाले गणणा सारिय अभिमने वेदे । दुम्माहृणमण्णाणे कसायमत्ते व मूढपदा ॥४॥ दवि दहा महि अंती अंतो पन्नूरगादि वहि धूमो जावदवियं ण याणति घडियावोह दिपि ॥५॥ दिसमूढो पुत्रमवरं मण्णति सम्मि खेतबासं दियरातिविषचासो फाले पिंहारविती ॥ ६ ॥ जह कोई पिंडारो खीर मिसाए पाठ (रति) पागुत्तो अग्मच्छरणे उडिओ मण्णनि जह पहए रती ॥७॥ महिसी जो पविसंतो दिहो लोएण हसियतो ताहे किं एयंतिय भणियं एमादी कालमूडेसो ॥ ८ ॥ ऊणहियं मण्णतो उड्डारूढी व गणणतो मुढो । सारिस थाणुसरिसो महतरसंगादि ॥ ९ ॥ जह एके गामम्मी चोरा पड़िया तु तत्थ जुम्मि सेणावति तहिं बहिओ सारिक्खो महतो व णितो ॥ ४७०॥ तो णीय चोरपति इमरो ददो य तेण गामेणं वेति व चोरे महत हंसणपती तु ॥ १ ॥ तो ते चोरावती महिओ एसो रणपिसायीते तो णासिऊण तत्तो गामगतो वैति तो नियगा ॥ २ ॥ ददो सी अम्हेहिं किं देवेहिं जियावितो तं सी ? इय सारविमूढा दोणिविगामेड़ चोरा ॥३॥ अभिभूतो संमुज्झति सत्यग्गीवात (चोर) साययादीहिं अम्मुदय अनंगरती वेदमी रायदितो ॥ ४ ॥ जह कोति रायपुती बाल अच्छी दुक्समाणागु । मादुगहसारिसरियसफुसण ठितो तु तुष्टिको ॥ ५ ॥ उद्धोपाउन्ति तत्रो एवमभिसं तु ताहे सा कुणति सोऽविय विवद्यमाणो सत्तो तीए तु पासम्म ॥ ६ ॥ तीयवि अनियंचिय पिपरमणे य तस्स रायतं तहविय तं पडिलेवति सचिवादिणिज्झिमाणोषि ॥ ७ ॥ युग्गाहितो परेण कलमकर्जच मुणती जो तु। सो युग्गाहणमूटी दिता दीवजातादी ॥ ८ ॥ पणिवारण पियमहिलो तीय समं गमण वारिजाणे गम्भिणि पोतनिवती समुद्रमज्झे फलगलग्गा ॥ ९॥ अंतरदीयुतिण्णा पसूपदारग विवदितो फमसी । तेण सह लावितिरिच्छता गता सपुरं ॥ ४८० ॥ युग्गाहिय तीय सुतो ण मुणति लोगेण मण्णमाणोऽवि जह जणणि तवेसत्ती जगम्मगमणं ण पट्टति उ ॥ १ ॥ जह वा अलंगण मुणति बुग्गाहियऽच्राहिं तु मित्यणं हियंपी जह वानि सुष्णमारीणं ॥२॥ युग्माहित तु बोदो मा हीरेखा सुवण्णकारणं तुझं तु मोरगाई छाएमी तंबण अहं ॥ ३ ॥ लोगो य तुम मणिहिति हरियाई मोरगाई रोड तु तं मा हु पत्तियाही एवं च मणिजसी लोगं ॥४॥ जो एत्वं भूतत्यो तमहं जाणे कला व मासो व सोऽविय एवं भणती बुग्गाहिय अहव अंचला ॥ ५ ॥ भणिवे सयणासणभत्तवसहिमादीहिं सुपरिग्गतिंपला तेवि पुत्तेण भणिता य ॥ ६ ॥ अयम्मि अंधवासो अहं राया य अंधलगभत्तो इह दुखिय तहिं च ज कयपुष्णीष दियो ॥ ७॥ इय होतुति यहि तुं रतिं तु डोंगर बेटेऊन पुरिलो लावि मम्मिलपट्टीए ॥ ८॥ आणह मे जे अस्थि एत्थ पोराण पनिभयं ठाणे। गण्ड य पत्थर मा पहु कासति देहित्य अहियितुं ॥९॥ मणिहिति चोर तुम्मे केणेते अंधला परागा तु गिरिडोंगरा चढाविय पहलह ते पत्थरेहिं तु ॥ ४९ ॥ इय बोलून पलाओ पितृणं अत्यजातयं तेसिं ते व पभाते दिहा गोवादी एहिं भणिता व ॥ १ ॥ केणेते एव कता इस मुझे पत्थरेहिं ते पहया पनि दितिया दुग्गाहिय एवमादीया ॥ २ ॥ णिमहिल मृद वेयमि य मृदु होति राया ऊ बुग्गाहणमूदा पुण दीवादी सेस दद्देवि ॥३॥ अण्णाणमूढ इणमो दाइतं पि कारणसतेहिं जो सप्पहं वयापति जबंधीचे जह ॥ ४ ॥ कोहादिकसाओयमूढो भवि जाणती माणूसो तु इह व परम्मि य लोए हिताहितं कर्ज वा ॥ ५॥ दचेण प भावेण व दुविहो मतो तु होति णायत्रो मजमदादी द माणविण भावम् ॥ ६॥ मोनू वेदमूढं आदिताणं तु णत्थि परिसेहो बुग्गाहण अण्णाणे कसायमूढी पढिकुट्टो ॥ ७ ॥ सचित्तं च अचित्तं मी जो अणं तु चारेति समान १०७३ष्यं - मुनि दीपरत्नसागर ---------- ~220~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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