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________________ इस प्रकाशन (भाग-२७) की विकास-गाथा “सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि" के इस २७-वे भागमें हमने +१ आगमो को शामील किया है | जिसमे एक प्रकीर्णकसूत्र और छह + एक छेदसूत्र है । दश प्रकीर्णको की प्रत संस्कृत-छाया के साथ सन १९२७ (विक्रम संवत १९८३) में आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित हुई, संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब | उन दश प्रकीर्णकमे से ९ प्रकीर्णको २६-वे भागमे हमने रक्खे है | और ये १०वा प्रकीर्णक 'मरणसमाधि' इस २७वे भागमे है | साथमें छह+एक वैकल्पिक छेदसूत्र भी इस भागमे शामिल है, ३४.निशीथ, ३५.बृहत्कल्प, ३६.व्यवहार, ३७.दशाश्रुतस्कन्ध, ३८/१.जीतकल्प, ३८/२ पंचकल्प, और ३९.महानिशिथ. 'मरणसमाधि' सूत्र दश-प्रकीर्णको की प्रतमे है और सभी छेद-सूत्र पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित 'आगममंजुषा मे से यहा शामिल किये है | जिसमे ५ छेदसूत्र सिर्फ़ 'मूल' है, 'जीतकल्प' मे 'मूल+भाष्य' है और 'पंचकल्प'मे तो 'भाष्य' ही है । + हमारा ये प्रयास क्यों? + आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की [पूर्वाचार्य पूज्य श्री के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसमे बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर अध्ययन और मूलसूत्र के क्रमांक आदि लिख दिए, ताकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा अध्ययन एवं सूत्र चल रहे है उसका सरलता से ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके | हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढते हए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में उद्देशक, गाथा और सूत्रो के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस दिए है और जहां गाथा है वहाँ ||-|| ऐसी दो लाइन खींची है या फिर गाथा शब्द लिख दिया है। हमने एक अनुक्रमणिका भी बनायी है, जिसमे प्रत्येक अध्ययन /उद्देशक, मल आदि लिख दिये है और साथमें इस सम्पादन के पृष्ठांक भी दे दिए है, जिससे अभ्यासक व्यक्ति अपने चहिते अध्ययन या विषय तक आसानी से पहुँच शकता है | अनेक पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट भी लिखी है, जहां उस पृष्ठ पर चल रहे ख़ास विषयवस्तु की, मूल प्रतमें रही हुई कोई-कोई मुद्रण-भूल की या क्रमांकन-भूल सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है | शासनप्रभावक पूज्य आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी म.सा. की प्रेरणासे और श्री वर्धमान जैन आगममंदिर, पालिताणा की संपूर्ण द्रव्य सहाय से ये 'सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि' भाग-२७ का मुद्रण हुआ है, हम उन के प्रति हमारा आभार व्यक्त करते है। ......मुनि दीपरत्नसागर. ~12~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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