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________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [२९] + गाथा ॥१५७॥ दीप अनुक्रम [४११] “महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं ) अध्ययन [ २ ], • उद्देशक [३], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित .......आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र - मेडुणपरिणामे तिविहतिभिहेणं मणोवहकायजोगेणं सङ्ग्रहा सबकालं जावज्जीवति ?, गोयमास सहावा ॥ २९॥ से भयवं जेणं केई साहू वा साहुणी वा मेहुणमासे विज्जा से णं दिज्जा ?, गोषमा जेणं केई साहू वा सादृणी या मेणं संयमेव अप्पणा सेवेज्ज वा परेहिं उनसे सेवाविज्जा वा सेविज्जमाणं समजाणिज्ज वा दिवं या माणुस वा तिरिक्खजोणियं वा जाव णं करकम्माई सचिताचितवत्युविसय वा विविहायसाणं कारिमाकारियोवगरणेणं मणला वा वयसा वा कारण वा से णं समणे वा समणी या दुरंतपणे अट्टये अमम्पसमायारे महापावकम्मे णो णं बंदिज्जा णो णं बंदाविज्जानो वैदिजमार्ग वा समणजाणेज्जातिविहंसिविणं ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ - ~ 272 ~ ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ - मूलं [२९] + गाथाः || १५७|| - [६] "महानिशीथ" मूलं विसोहकालंति से मपर्व जे चंदेज्जा से कि लज्जा ? गोयमा जे तं वंदेज्जा से अारसहूं सीलंगसहस्सधारीणं महाणुभागाणं तित्ययरादीणं महतीं आसायचं कुज्जा, जे तित्ययरादीण आसायण कुजा से गं झवता पचा जाव णं अनंतसंसारियत्तणं लभेण्जा ३०। विप्पहिचित्वियं सम्मं साहा मेहुणपिय अत्येने गोयमा पानी, जे जो चयइ परिमाहं ॥ ७॥ जाइये गोयमा नस्स, सचित्ताचित्तोभयतगं भूयं वाऽणु जीवस, भवेज्जाउ परिगई ॥८॥ तानइएवं तु सो पाणी, ससंगो मोक्खसाइयं णाणाइतिगंण आराहे, सम्हा वज्जे परिग्ग ॥९॥ अत्येगे गोपमा पानी, जे पयहिता परिगई आरंभ नो विवज्जे, संपीयं भयपरंपरा ॥ १६० ॥ आरं परिचयस्संगविलजीवस वइयरे संघाइये कम्मं जं पदं गोषमा मुणे १६१ ॥ एगे बेईदिए जीने एवं समयं अणिच्छमाणे वन्यमिओगे हत्येण वा पाएण वा अन्यरेण वा सलागाइडवगरणजाएणं से कई पाणी अगा संप या संपावेल या संपट्टिनमा अगार्ड परेहिं समजानेजा से में गोषमा जया तं कम्म उदयं गच्छेजा तथा महया केसेणं उम्मासेणं वेदिना, गाढं दुवालसहिं बच्छरेहिं तमेव अगाढं परियाजा बासस रसेणं गाढं वसहिं बाससहस्सेहिं तमेव अगाढं फिलामेजा वासलक्खेणं गाढं दसहिं वासललेहिं अड्डा णं उपवेशात वासकोडी, एवं तिचउपचिदिए दयं । २१ मस्त पुढविजीबस्स, जत्येगस्स विराणं। अप्पारंभ तयं बेति गोयमा सङ्घकेवली ॥ २॥ सुहस्स पुढविजीचस्स वाचती जन्य संभवे महारंमं तयं देति गोयमा सकेवली ॥३॥ एवं तु संमिलतेहि कम्प्मुकरहिं गोषमा से सोमे अहिं जे जारंभ पन्त ॥ ४॥ आरंभ माणसदनिकाइ कम् पदं भवे लम्हा लम्हा विज ॥५॥ पुढवाइअजीकार्यता सहभावेहिं सङ्घहा आरंभा जे नियहेज्जा से अइरा ( जम्म जरामरणसशदारिक्याण) विमुच ॥ ६ ॥ नि. अयेगे गोयमा: पाणी, जे एवं परितगृहाच्छे ण मे सम्मम्मवत्तणि ॥ ॥ जीवे मामोहने, घोरपीस्तवं चरे अपयंतो इमे पंच, कुज्जा सर्व निरत्ययं ॥ ८॥ कुसीलोनपासत्वे, सच्छंदे सबले वहा दिट्टीएवि इसे पंच. गोयमा न निरिक्खए ॥ ९ ॥ समुदेसियं मग्गं समदुक्खपणासगं सायागारवर्गुफा, अन्नहा भणियमुज्झ ॥ १७० ॥ पयमनखपि जो एवं सहन्नूहि पवेदियं न रोएज्जहा मासे, मिच्छदिट्टी स निहि ॥ १ ॥ एवं नाऊण संसग्गि दावा चहियाकेसी, सोवाएहि वज ॥ २ ॥ भययं निम्भट्टसीला, दरिसणं तंपि निच्छसि पन्छितं वागरेसीय इति उभयं न जुजए ॥ ३॥ गोषमा भट्टसीलाणं, दुसरे संसारसागरे। धुवं तमणुकंपिता, पायच्चिने परिसिए ॥४॥ मय कि पायच्छित्ते चिंदिज्जा नारगाउयं । अणुचरिण पच्छित्तं बहने दुम्माई गए ॥५॥ गोषमा ! जे समज्जेज्जा अनंतसंसारिणं पच्छित्ते धुवं तंपि छिंदे कि पुणो नरपाउयं ॥ ६ ॥ पायच्छित्तस्स भूषणेऽत्य नासज्यं किंथि विज्जए। बोहित्य पमोत्लू हारियं तं न लम्भाए ॥ ७॥ तं चाउकायपरिभोगे, तेडकायस्थ निष्टियं अयोहिलाभियं कम्मं वज्जए मेहणेण य ॥ ८ ॥ मेहुणं आउका च. काय हेच हात जण ज्ज्जा संजईदिए ॥४९॥ से भयवं गारत्यीणं, सहमेचं परत तो जइ अोही मरेज) एस ओ सिक्लानागुयधरणं तु निष्फलं ॥ १८०॥ गोयमा दुविहे पहे अखाए, मुसमणे मुसाए। महायपरे पदम बीएणुश्यधार ॥ १ ॥ तििितषिण समणेहि सामुज्झि । जावज्जीवं वयं पोरं, पडिवज्जियं मोखाणं ॥ २ ॥ दुहिं पतिविहं या सायं उदिकालियं तु वयं (देण) सबसे गारन्थी हि ॥ ३ ॥ तब तिथितिविहे इच्छारंभपरिग्गदं योसिरंति अणगारे, जिगलिंग परेति व ॥ ४ ॥ इयरे (य) अणुज्झिता, इच्छारंभपरिहं सदाराभिरएस मिट्टी, जिगलिंग तू पूपए (ण पास्यति ॥ ५ ॥ ता गोयमेगदेसस्स, पटिकते गारो भने तँ वयमणुपाठयंताणं नो सि जातायणं भवे ॥ ६ ॥ जे पुर्ण समस्स पटिकते. धारे पंच महदए। जिगलिंगं तु समुबह नं लिगं नो विजए ॥ ७॥ तो महयासायण तसि इपिग्मी आउसेबणे अनंतनाणी जिणे जम्हा, एवं मणसावि गमिलसे ॥ ८ ॥ ता गोयमा साहियं एवं एवं वीमंसिउं दर्द विभावय जई बंधिना गिहिणो न अबोहिलामियं ॥ ९ ॥ संजए पुण निषेधिना एवाहिं देऊहि । आमाइकम वयभंगा, तह उम्मापचतणा ॥ १९४ ॥ मेहुणं पाठकार्य च कार्य तम्हा तितति (जत्ते) लेला सहा मुणी ॥ १॥ जे चरंते व पच्छिम किलिम्सए जह भणियं वाऽह मामु, निरयं सोते बाई ॥ २ ॥ भवं मंदसदेहिं पायच्छिन कीरई अह काहति किलिमणे, ताऽणुकं विरुझए ॥ ३ ॥ नी रायादीहिं संगामे, गोयमा सलिए नरे सदरणे मधे दुक्खं नार्काविरुज्झए ॥ ४ ॥ एवं संसारसंगामे, अंगोष गंनबाहिर भारताण, अणुकंपा अणोपमा ॥ ५ ॥ भयं सहमि देहत्वे, दुक्लिए होति पाणिणो समयं निफिटे सतं तखनासो सुही भये ॥ ६ ॥ एवं पियरे सिदे, साहू धम्मं विधि से अलंक निसिरिएण मुही भये ॥ ७॥ पायच्छित्ते को तत्थ, कारिणं गुणो भने ? जेणं कीचस्सची देखि, दुसरं दुरनुचरं ॥ ८॥ उद्धरिडं गोयमा सह, बणगे जाव णो कये वणपिंडीपबंधं च नाचणं किं पाए ॥ ९ ॥ भास उस पण इमो भयेपच्छितो दुसरोषि पावव लिप्यं परोहए ॥ २०० ॥ भचयं किमजिते सुने जाणिए था? सोहेइ सबपावाई [पच्छित्ते समुदेखिए ? ॥ १॥ सुसाऊ सीयले उदगे, गायमा जाव णी पिए गरे गम्यते ताव तहा न उसमे ॥ २ ॥ एवं जाणित्तु पच्छितं असदमात्रेण जा परे वा तस्स त पानं, बढाए उण हायए ॥ ३॥ भय किसे पहला, पमादेश कत्थई आगयं? पुणो आउनस्स, तेलिये किन ठाय ॥ ४ ॥ गोयमा जह पमाए, निच्छंतो अहिडंकिए। आउत्तरस जहा पच्छा सिं, वह तह पाव ॥ ५ ॥ मयर्थ जे विदियपरमत्ये, सहपच्छितजाणगे ते किं परेसि साहति नियमक जहट्टियं ॥ ६ ॥ गोयमा मत दिय जो कोडिमुवे सेवि दट्टे विणिभिडे, धारियातेहिं महिए ॥ ७॥ एवं सीलुज्जले साहू, पण्डितं न दबाए अन्नेसि निणं (द) साहे, ससी व व्हावओ जहति २०८ ॥ महानिसीयस (२८१) ११२४ महानिछेद अन्वर मुति दीपरत्नसागर
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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