SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [२] गाथा ||३२९|| दीप अनुक्रम [१२६८] “महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं ) अध्ययन [ ६ ], उद्देशक [-], मूलं [२...] + गाथाः || ३२९|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ - ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ ~ 304~ - जगुत्तमं । गोयमा तमिव परिथिया, जं इंदाणवि दुहं ॥ ९॥ नीलंगा उ कई पोरं इदुकरे व भुयणस्सवि उक्कडं समुप्पार्य चरंति ते ॥ ३३० ॥ जे पुण खरहरफुडसिरे, एमजन्मसु सिणो। तेलियानो विहियं ॥ १ ॥ गोयम महुबिंदुस्सेव, जावता सुहं मरणवीन संप करं यत् ॥२॥ अहवा गोयम पञ्चकसं, पेच्छय जारिस नरा दुलह जं निमुनिज्ञान कोद्रवी ॥ ३ ॥ कई कारेंति मासलि हालियोवाल दासलं तह पेसतं, गोड सिप्पे बहु ॥ ४॥ अलग्गं किसिपाणि, पाणथायकिलेसि दत्तिणं केई, कम्म काउण घराधारं ॥ ५॥ असा विगोवेर्ड, डिपिडिणिते अ हिंडिर्ड नग्गुम्पाटकिलेसेणं, जो समजति परिह (हिरणं ॥ ६॥ जरजुन्नस कहकवि ओढणं जा अना किरिमो फता तमचि परिह (पहि) रणं ॥ ॥ तहावि गोयमा बुझ, फुडविडपरिफुर्ट एसि माउ, अनंतरं भणियाग करसई ॥ ८ ॥ लो डोयाचारं च चिचा सवनकिवं तहा भोगोपभोगं दानं च मोनूर्ण कदसणासणं ॥ ९ ॥ चापि गुप्पि सुदरं खिजिक अभिसं काम कामणीकाओ, अ] पाय विसोमं ॥ ३४० ॥ कवह कर्हिचि काले, लक्ख कोटि च मेलिडं जा एमिच्छामई पुन्ना, बीया णो संपनए ॥ १ एरिस लिय सुकुमाल गोयमा ! धम्मारंभंमि संपद, फम्मारंभे न पडे ॥२॥ जेणं जस्स मुद्दे कपलं गंडी जन्नेहि घनए भूमीएन (ठ) पाए पायं इत्बीलक्स कीटए ॥ ३॥ तस्साचिणं भवे इच्छा, अन्नं सोऊ सारियं समुदहामि तं देर्स, अह सो आणं पच्छिउ ॥ ४ ॥ साममेवपयाणाई, अह सो सहसा परंजितं नस्स साहसला. गूढचरिएण पथ ॥५॥ एागी कम्पटीओ, दुग्गा र गिरी सरी चिता बहुकाले, दुक्खदुक्लं पत्तो नहिं ॥ ६ ॥ दुक्ख सुक्खामकंठो सो जा भ्रमडे परापरं जायंतो मम्माई, तत्यज कवि गजए ॥ ७॥ ता जीतो चुके अह पुन्नेहिं समुदरे तओ गं परिवत्तिय देहं तारिखो स मिहे विसे ॥ ८ ॥ को तं सि परियणो सन्ने?, ताहे सो असणाइसु नियचरियं पायडेऊन, जो मण ॥ ९॥ सब (जाण) यामेण खंडाखंडेण जुज्झितं अह तं नरिदं निजिणि अहवा तेण पराजिए २५०॥ बहुपहारगलतरुहिरंगो गयतुरयाउ (ह) अहोमुहो। विहरणभूमीए. गोयमा सो गया तथा ॥१॥ तस्य सुकुमाल कहिं गए? जो केवलं सहत्येणं, अहोभागं च घोषितं ॥ २॥ निच्छंती पायं विडं, भूमीए न कयाइवि एरिसोऽवी स लिओ एात्वागजी ॥ ३ ॥ जइ भन्ने धम्मचिट्ठे ता परिमण न सकियो। तो गोयमा अहन्नाणं, पावकम्माण पाणिणं ॥ ४ ॥ धम्माणमि मई, न कयावि भविस्सए। एएस इमो धम्मो इकजंमीण भास ॥ ५ ॥ जहा संतपियंताणं सर्व अम्हाण होहि ता जो जमिच्छेत तस्स, जइ अनुकूल पवेयए ॥ ६ ॥ ता वयनियमविणावि, मोक्खं इच्छति पाणी एए एते णरुति एरिस चिय कय ॥ ॥ वरं ण मोक्सो एपाणं मुसावार्य व आवई अर्थच रागं दोस च मोहं च मयच्छंदानुवन्ति ॥ ८ ॥ किराणं णो भू णी भवेश गोयमा मुसावार्य न भासते गोयमा तिथंकरे ॥ ९ ॥ जेण तु केवलना, सिक्ख जगं भूयं न भविस्सं च पुन्नं पार्थ तब य ॥ ३६० ॥ किचितिसुवि लोएस पाय पाया अनि उदमुहं सम् एजा अहोमुहं ॥ १ ॥ णूनं तित्ययरम्हभणियं पयर्ण होज न अन्ना नाणं दंसणचारिनं नवं घोरं सदुकरं ॥ २ ॥ सोग्गहमग्गो फुड एस. पती जद्दि अन्ना न तित्थयरा, वाया माणसा व कम्मुणा ॥३॥ भणति जइचि भुवणम्स, पल वनक्ख हि सजगजीवपाणयाण केवलं अणुकंपाए तियरा धम्मं भाति अपिहं ॥ ४ ॥ जेणं तु समणुचिर्ण, दोहम्मदुक्ख दारिदरोगसोगगहन ण भविचा उ पिइएर्ण संताप नहीं ॥५॥ भय णो एरिस मणिमो जहद अणुवस्य गवरमेयं तु पृच्छा, जो सके स तं करे? ॥६॥ गोयमा पेरिसं जुनं लणं मणसा विचिति अह जड़ एवं भरे णार्थ, तावं पारे हर्ज नलं ॥ ७ ॥ घरे खंडराए, एको सकेट साइयं अनो समसमाई, अनो रमिण एरिथर्व ॥ ८ ॥ अो एपिनो सके, अन्नो जोएड पास अन्नो चटपटमुहे एस (अन्नो एपि) भणिण ण सकुणोई ॥ ९॥ चोरि जारि अन्नो, अन्नो किचि सकुलो भोतुं मनुं सरिए सके चिनु मंच ॥ ३७० ॥ मिच्छामि दुकमियं हेत. एरिस नो भणामहं गोयमा अन्नपि भणसि, संपितु कमहं ॥१॥ एत्य जम्मे न कोई, कसि संजम त ज णो सक कार्ड जे, तहवि सोगइपिवासि ॥ २ ॥ नियमं पक्खिी रस्स एवं उपास्यहरणस्सेगियं दसियं, एसियन प (रि) धारिये ॥ ३॥ (सकुणी) एपि न जावजीच पालेडं ता इमस्सवी गोयमा तुम्बुदीए, सिद्धि परं ॥ ४॥ मंडविया भवेयचं, दुकरकारि भवेत्तु य णवरं एयारितं भवियं किम गोपमा पर्व ॥४५॥ पुणो तं एवं मी 'नित्यकरे पन्नाणी ससुरासुर जगपुए निच्छिसिज्झि वितमि जम्मे न अन्नए जम्मे ॥६॥ ( तहाचि) अणिमूहित्ता बलं चिरियं पुरिसधारपरकर्म उम्मे कई तवं घोरं दुकरं अणुचरंति ते ॥ ७॥ ता अन्नसुनि सने पडगसार दुक्खभीएस (जं जब तित्ययरा भणति) तहेव समजुडेय, गोयम सर्व जहट्टियं ॥ ८॥ जे पुण गोयम ते भणियं परिवाडीए कीरह अपके इंटि क लए? ॥ ९ ॥ तत्ववि गोयम दितं महासमुमि कच्छमो अन्नेसि मगरमादीर्ण, संघट्टा भी उपहओ ॥ ३८० ॥ मुनिम्बुड करेमाणो (सबलीसोम्मली पेलापेलीए कत्थई (२८९) ११५६] महानिद मुनि दीपरनसागर 1
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy