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________________ आगम (३९) “महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [६], ------------- उद्देशक ----------- मूलं [२...] +गाथा:||२७९|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत मतिमलिया डाला । वेणि गाथा ||२७९|| जोणी समुच्चाला । तस्य किमिएहि दसपरिसे, सदो मरिऊण गोयमा! ॥९॥ उववन्नो बेसत्ताए, नओवि मरिण गोयमा। एगणं जाच सयपार, आमगम्भेसु पचिओ ॥२८॥ जम्मदरिदस्त गेहमि, माणुसतं समागओ। तस्य दोमासजायस्स, माया पंचत्तमुक्मया ॥१॥ताहे महया किलेसेणं, धनं पाउं घराधरि जीवाचेऊण जणगेण, गोउलिस्स समलिओ ॥२॥ तहियं नियजणणिच्छीरं, आपियमाणे निबंधिउं। (छावए) गोमिओ दुहमाणेणं, जब अंतराइयं ॥३॥ तेणं सो लक्खणजाए, कोडाकोडीभयंतरे। जीयो चन्नमलहमाणो . (बजाता रुजतो नियलिजतो हम्मतो दम्ती) विष्ठोइतो बहिडिओ॥४॥ उववन्नोमणुजोणीए, डागिणितेण गोयमा तस्थ य साणयपालेहि. कीलिङ (या) डिड गया ॥५॥ वो उच्चहिनिहई, न लळू माणुसनणं । जस्थ यसरीरवोसेणं, एमइंतमहिमंडले ॥६॥ जामदजामपडियं वा, जो लवं वेरत्तियं जहिया पंचेच उ घरे गामे, नगरपुरपट्टणेसुचि ॥७॥ तत्थय गोयम ! मण्यत्ते, गारयदुस्खाण सरिसए। अणेगे राणरणेणं, पोरे दुस्सेऽणमोनुर्ण ॥८॥ सो लक्सचदेवीजीचो, सुरोहमाणदोसजी। मरिऊण सत्तमि पुडवि, उपचन्नो खडोहणे ॥९॥ नत्य यतं नारिस दुक्खं, तित्तीसं सागरोचमे। अणुभविकर्ण उचगन्नो, झागोणिनगेण य ॥२९॥ खेतखलगाई चमडेती, मंजंती य चरंति या। सा गोणी बहुजणो. हेहि. मिलिऊणागाहपंकवलए पवेसिया ॥१॥ तत्व सुनी जलोयाहि, लूसिनंती तहेवया कागमादीहिं लुप्पंती, कोहाविद्रा मरेउणं ॥२॥ ताहे विजलवाणे रणे, मरुदेसे दिहीविसो। सप्पो होऊण पंचमगं, पुढवि पुणरवि गओ ॥ ३॥ एवं सो लसणवाए, जीवो गोयमा! चिरं। घणघोरतुक्खसंतनो, चउगइसंसारसागरे ॥ ४॥ नारयतिरियकुमणुएस.आहिडित्ता पुणोविह। होही सेणियजीवस्स, नित्ये पउमस्स खुजिया ॥५॥नत्यय दोहम्गखाणी सा, गामे नियजणणीओविय । गोयम ! दिद्वा न कस्साथि, अभडीय रहदा नहिं भवे ॥६॥ ताहे समजणेहि सा, उपियणिजनिकाउणं । मसिगेस्यपिलिसंगा, खरेरुदा ममाटि॥७॥ गोयमा! ओपरखपवेहि वाइयसरविरसहिंतिम । निदारिहि ण अन्नत्य, गामे यहिहिद पविसि ॥८॥ वाहे फंदफलाहास, रन्नचासे चर्सति या। (वठ्ठा) मझुंदरेण वियणता, णाहीए मज्वरदेसए॥९॥ तओ सधं सरीरं से, भरिजंसुदराण या तेहि तु विलुप्पमाणी सा, सहघोरदुहाउरा॥३०॥ बियणना पउमतित्थयरं, तप्पएसे समोसद। पेच्छिही जाच ता तीए, (अन्नेसिमवि बहुवाहिवेयणापरिंगयसरीराणं नदेसविहारिभवसनाणं नरनारिंगणाणं नित्ययरदसणा चेव) सबदुवं विणिविही ॥१॥ताहे सो लक्खणजाए, नहियं खुजियत्ति जिजओ। गोयम ! पोरं तवं चरिडं, दुक्लाण अंतं गच्छिही ॥२॥ एसा सा लावणदेवी, जाजगीयत्वदोसओ। गोयम! अणुकलुसचित्तेणं, पत्ता दुस्सपरंपरं ॥ ३॥ जहा णं गोयमा! एसा, लक्षणदेविमाया तहा। सकलुसचिने गीयत्वे,ऽणते पत्ते बुहाबली ॥४॥ नम्हा एयर पियाणित्ता, समभाषेण सवहा। गीयत्थेहिं भवेयत्रं, काय तु (मुविसुद्धसुनिम्मलविमलनी सार्व) निकलुस मनि बेमि ला पणयामरमस्यमाउडुपुडयलणासायवनजयगुरु!। जगनाह! घम्मनित्यपर, भूयमविस्वबियाणग॥६॥ तवसा निछाड्ढकम्मंस, महवइरवियारण। चउकसाय(दाल)निवण, समजगजीववच्छल आपोरंधयारमिच्छत्तनिभिसतमतिमिरणासण। लोगालोगपगासगर, माहवारिनिसुभण ॥८॥ दूरुज्झिबरामदोसमोहमोस सोमसतसोम सिरकर। अतुलियबलविरियमाहप्पय, तिहुयणिकमहायस ॥१॥ नित्यमरूप अणकासम. सासयसुहमुक्खदायमा सवलक्खणसंपुन, विडयणलच्छिविभूसिया ॥३१०॥ भयवं ! परिवाडीए, सर्व किचि कीरए। अथके हुंडिबुडेणं, कजले कत्थ लम्भई?॥१॥ सम्महसणमेगंसि, वितिये जम्मे अणुपए । ततिए सामाइयं जम्मे. चउत्थे पोसहं करे ॥२॥दुद्धरं पंचमे बभं, छठे सचित्तवजणं । एवं सत्ननववसमे, जम्मे उदिट्ठमाइयं ॥३॥ चित्रकारसमे जम्मे, समणावगुणा भये। एयाएपरिवाडीए, संजयं किंन अवसि?॥ पुण सोऊण मइविगलो, बालयणो (उविषद)। केरिसस्त व सदं उगइ. जउइसिर्ड नासे दिसोदिसि ॥५॥ नमीरिसं संजमं नाह!, सुदाइ लिया उसुमालया। सोऊणपि नेच्छंति,नाणुढींसु कहं पुण? ॥६॥ गोयम ! तित्यंकरे मोनु, अलो दाललिओ जगे। जाइ अस्थि कोइना भणउ, अहाणं सुकुमालओ?॥ जाणं-गम्भस्थापि देविंदो, अमयमंगुहय कर्य। आहार देइ भत्तीए, संचवं सपर्य करे।॥८॥ देवलोगचुए सते, कम्मा से ण जहिं घरे । अभिजाएनि नहिं सय, हिर वणबुडी परिस्साई ॥९॥गम्भावनाण नदेसे. ईई रोगा य सनुणो। अणुभावेण खयं अंति, जायमिताण नसणे ॥३२०॥ आगंपियासणा चउरो, देवसंघा महीहरे। अभिसेय सविइबीए. काउंसत्वामे गया ॥१॥ अहो नव कती, दिती रूर्व अणोवमं । जिणाणं जारिर्स पायगुडगं णतं इहं॥२॥ ससुदेवालोगेसु, सबदेवाण मेलिउँ । कोडाकोडिगुणं कार्ड, जावि उपहालिजए॥३॥ अहजे अमरपरिश्महिया, नाणत्तयसमनिया । कलाकलाबनिलया, जगमणाणंदकारया ॥४॥ सयणवपरियारा, देवदाणवपूर्वया । पणायणपूरियासा, भुवणुत्तममुहालया ॥५॥ भोगिस्सरिय रायसिरि, गोयमा! तं सपजियं । जा दियहा केई मुंजंति, साय ओहीए जाणि ॥६॥ खणभंगुरं अहो एवं, लच्छी पावविवढणी । ता जा तावि किं अम्हे, चारित नाणुचिद्विमो? ॥७॥ जावेरिस मणपरिणाम, तान लोगंतिगा सुरा। मुणिर्ड भर्णति जगजीबहिययं तित्वं पचत्तिहा ॥८॥ताहे वोसङ्कयत्तदेहा, विहां सब११५५महानिशीथच्छेदमूर्ख, -5 अनि दीपरागर दीप अनुक्रम [१२१८] ~303~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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