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________________ आगम (३९) “महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूलं) ------- अध्ययन [६], ------------- उद्देशक ----------- मूलं [२...] +गाथा:||२२८||------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं गाथा ||२२८|| जाणं सेवामि मेहर्ण । जसुविणेचि न काय, तं में अब पिचितियं ॥८॥तहा य एत्य जम्मंमि, पुरिसो वाव मणेणवि। णिच्छिनो एत्तियं कालं, सुविणतेचि कहिचिचि ॥९॥ता हाहा हा दुरायारा, पावसीला अहणिया। अहमदाई चितंती, तिस्थयरमासाइमो ॥२३०॥ तित्ययरेणावि अबंत, कई कड्यदं वयं । अइबुद्धरं समादिह, उपगं पोरं सुदुबरं॥१॥ता तिविहण को सक्को, एवं अणुपालेऊण । वायाकम्मसमापरणेपि, गो तस्य मर्म ॥२॥ अहवा चितिजा दुक्स, फीस पुण सुहेण पाता जो मसावि कुसीलो, सकसीलो साकलेसु ॥३॥ ताजं एत्य वर्म सलियं, सहसा तुडिक्सेण मे। आगयं तस्स पच्चित्तं, आलोइत्ता लहुं वरं ॥४॥ सईणं सीलवंतीणं, मजमे पढमा महाऽऽरिया। धुरंमि दीयए रहा, एवं सम्मेवि घूसई ॥५॥ तहाय पायमूली मे, सबोपी बंदए जणो । जहा किल सुजिमजएमिमीए, इति पसिद्धा अहं जगे॥६॥ ताजा आलोयर्ण देमि, ता एवं पपडीभवे । मम भायरो पिया माया, जागिता हुँवि दुक्खिए॥ ७॥ अहवा कदावि पमाएणं, जं मे मणसा विचितिय। तमालोइयं नचा, मज्म वग्गस्स को दुहे? ॥८॥जायेयं चितिउं गच्छे, ताईतीएं कंटगे। कुटियं दसत्ति पाययले,ता णिसत्ता पडुलिया ॥९॥बिते अहो एत्य जम्मंमि, मजा पायमि कटगाण कयाइ सुर्तता कि, संपर्य एत्य होहिई?॥२४॥ अहवा मुणियं तु परमत्थं, जाणगे (मए) अणुमती कया।संघहूंनीए चिप्लीए, सीलं तेण विराहियं ॥१॥ मूबंधकारबहिरंपि, कुई सिडिविडियं विडं। जाप सीलं न संडा, ना देवेहि पुष ॥२॥ कंटग वेव पाए मे, मुत्तमागासगामिय। एएणं जम चुका, तं मे लाभ महतियं ॥३॥ सत्तचि साहाउ पायाले,इत्थी जा मणसाविया सील खंडेई सा णेइ, कई जणणीए मे इम? ॥४॥ ताजंण णिपडई वनं, पंसुचिट्ठी ममोपरि। सयसकर ण कुडहवा, हिययं तं महच्छरगं ॥५॥णवरं जाइ मेयमालोयं, ता लोगा एत्य चिंतिही। जहाऽमुगस्त घृयाए, एवं मणसा अजबसियं ॥६॥ तं नं नहरि पाओगेणं, परक्वएसेणालोइमो। जहा जइ कोइ एयमझवसे, पच्छितं तस्स होइ कि?॥७॥सं चिय सोऊण काहामि, नवेणं तत्य कारण। जं पुण भययाऽऽडह, घोरमचंतनिरं।८॥ तं सर्व सीलचारितं, तारिखं जाच नो कर्य। तिबिहंतिबिहेण णीसाई, ताच पाये णखीयए॥९॥ अहसा परवचएसेणं, आलोएता सर्वचरे। पायच्छितनिमित्तेण, पन्नासं संवच्छरे।।२५०॥छहमदसमदुवालसहि, लयाहिं गइ दस वरिसे। अकयमकारियसंकप्पिएहि. परिभूय(भुज)भिक्खलदेहिं ॥१॥यणगेहिं दुषिवि भुमिएहिं सोलस मासलमणेहि। बीसं आयामायंबिलेहि. आवस्सगं बछडडेती ॥शाचर यजदीणमणसा, जहसा पच्छित्तनिमित्तं। ताहेब गोचमा! चिते. पच्छित्ते कयं तवं.३॥ ता किं तमेषण क(ग)य मे, मणसा अजमवसिय तया? इयरहेवि उ पच्चित्तं, इयरहेब उ मे कयं ।। वा किं ता समायरियं, चिंतेती निहणं गया। उर्ग कई तवं घोर, दुकरंपि चरितु सा ॥५॥ सच्छंदपायच्छितेणे, सकलुसपरिणामवोसो। कुत्विपकम्मा समुपन्ना, बेसाए परिचेडिया॥६॥ खंडोडा णाम घटुगारी, मज्मलहडगवाहिया। विणीया सहवेसाणं, घेरीए य उम्गुणं ॥७॥लावन्नकतिकलियावि, बोडा जाया वहावि सा । अन्नया घरी चिंतेड, मज् घोडाए जारिस ॥८॥ लायन्नं कंती रूपं, नस्थि भुषणेचि तारिस । ता विरंगामि एईए, कन्ने गर्क सहोद्वयं । ९॥ एसा उण जाच चिउप(ज)ने, मम घूर्य कोविणेच्छिही। अहवा हा हाण जुत्तमिणं, घूया तासावि मे गवरं ।।२६०॥ सुविणीया एसावि, उम्पन्नत्य गमिही। ता तह करेमि जह एसा, देसंतरं गयापि य॥१॥ण लमेजा कत्थई बाम, आगच्छा पढिलिया। देदेमि से वसीकरण, गुज्रदेस तु सीडियो ॥२॥ निगहा च से देमि, भमर तेहि नियंतिया।एवं सा जुन्नवेसाजा, मणसा परितप्पिाउं सुने शाता खंडोडावि सिमिणमि, गुज्मं सीडिजंतर्ग। पिच्छा नियडे य दिर्जते, कन्ने नासंचवाहियं ॥४॥ सा सिमिणलं पियारेट, गट्ठा जह कोईण याणइ । कहकहषि परिममंती सा, गामपुरनगरपट्टणे ॥५॥ उम्मासेनं तु संपत्ता, ससंडणाम खेडगं । वस्य वेसमणसरिसविहर दापुत्तस्स सा जुया ॥६॥ परिणीया महिला ताहे, मच्छरेण पजच्छे (ल) वढं । रोसेण कुरकुती सा, जा दियहे केह चिट्ठा॥७॥ निसाए निम्मरं सत्य, संडोडी ताव पिच्छई। बद्धं पाझ्या चुति, दित्तं येनुं समागया ॥८॥ पक्विविऊगं गुज्झते, कालिया जाच हिययय। जाच दुक्लसरकता,बलपुलेवी केसा ॥९॥ता सा पुणो विचितेड, जापजीवंग उ. डए। तार देमी से दाहार, जेण मे भवसएमुचि ॥२७०॥न सरस पिययम काउं, इणमो पढिसमरति या। वाहे गोयम! आणेउं, पक्षियसालाउ अयमयं ॥१॥तावित फुलिंगमेसंत, जोणीए पपिसतं पुस। एवं दुक्सभरता, तत्व मरिऊन गोयमा! ॥२॥ उपचन्ना चकनहिस्स, महिलारयणतेण सा। इस परंतपुत्तस्स, महिला कालेबरं ॥३॥जी. | नियंपिरोसेण, जेतुं सुमुहुमयं सा। साणकागमावीणं, जाव पसे दिसोदिसि मा वाव रैदापुत्तोवि. बाहिरभूमीउआगो। सो य दोसगुणे गाउं, ९ मणसा वियपिउं। गंतृण सा हुपामूल, पचना काउ निगुटो॥५॥ अह सो लक्मणदेवीए, जीचो संटोहीयत्तणा । इत्थीरयणं भवित्तार्ण, गोयमा ! छवियं गओ ॥ ६॥ तमेरुयं महाबुक्स, अघोरै दारुणं नहि। पतिकोणे निरयावासे, सुचिरं दुखेण वे ॥७॥ इहागओ समुप्पयो, तिरिवजोणीए गोयमा!। सागतेणाइ मयकाले, विलम्गो मेहुणे तहिं ॥८॥माहिसिएणं को पाओ, विचे ११५४ महानिसीधछेदसूत्र, DHS मुनि दीपरतसागर दीप अनुक्रम [११६७] परिवविऊन गुनाने का कार्क, इणमो पहिसभामा महिलारयणन्तेण सा वासणे गाउँ, वर्ग ~302~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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