SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [२] गाथा ||328|| दीप अनुक्रम [१३२०] Pratap “महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं ) अध्ययन [ ६ ], • उद्देशक [-], मूलं [२...] + गाथाः ||३८|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित .......आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ” मूलं - अत्र षष्ठं अध्ययनं समाप्तं - (उडी रिज्जतो) तो णासंतो धावतो, फ्लायंतो दिसोदिसि ॥ १ ॥ उच्छलं पच्छा ही बहुविहं तहि सहतो घाममलहंतो खणनिमिसंपि कत्थई ॥ २ ॥ कहकवि दुक्खसंतत्तो, गुबहुकालेहि तं जलं । अवगाहंतो गज उवरिं, परमिणीसंडपणं ॥ ३ ॥ छिट्ट महया किलेसे लहु ता तत्थ पेच्छई गहनक्सत्तपरियरियं कोमुद्रचंदं खहेऽमले ॥ ४॥ दिष्यंतकु वलयकल्हारं कुमुयसयवलवणफई। कुरुलियते हंसकारंडे, चकवाए सुणेइ ॥५॥ जमदि सत्तसुवि साहासु (अम्भुजं चंदमंडल) । तं दद विहिओ वर्ण, चिंता एवं जहा होही ॥ ६ ॥ एयं तं समताऽहं (बंधवाणं पमोययं) बंधवाणं पर्यसमो बहुकाले गयेसे ते घेण समागज ॥ ७॥ पणपोरंधयाररयणीए मदवन्हि चउदसीहिं तु ण पच्छे जाय तं रिद्धिं बहुकाल निहालिरं ॥ ८ ॥ पुण कच्छभो न जह उ. तहापि तं रिद्धिं न पेच्छ एवं चउगईभवगणे, दुइले माणुसत्तणे ॥ ९ ॥ अहिंसालक्लणं धम्मं, लहिणं जो पमायई । सो पुण बहुभ चलक्ले, दुक्खेहि माणुसणं, निलम्भई पम्मं तं रिद्धि कच्छमो जहा ॥ ३९० ॥ दिवाई दो व तिथि व अदाणं होई जं तु लग्गेण सहायरेण तस्सवि, संबल लेह पविसंत ॥ १ ॥ जो पुणदीपवासो चुलसीई जोणिलक्खनियमेणं तस्स तबसीलमइयं संवयं किं न चिंतेह ? ॥ २॥ जहर पहरे दियहे मासे संच्छरे य बोलेति । नहरे गोयम! जाण दुस्खे आसचयं मरणं ॥ ३ ॥ जस्स न नजाइ कालं न य वेला नेय दियहपरिमाणं नाचि नत्थि कोइवि जग॑मि अजरामरो एल्वं ॥ ४ ॥ पानो पमायवसओ जीवो संसारकजमुज्जुत्तो। दुफ्लेहि न निश्विन्नो सुक्खेहि न गोयमा तिप्पे ॥ ५॥ जीवेण जाणि विसजियाणि जाईसएस देहाणि येवेहि तज संपलंपिणं होत पहिल्यं ॥ ६ ॥ नदंतमुदभमुहक्विकेस जीवेण विषमुकेनि तेमुवि हविज कुलसेलमेरुगिरिसन्निभे कूडे ॥ ७॥ हिमवंत मलमंदरदीवोदहिधरणिसरिसरासीओ अहिवयरो आहारी जीवेणाहारिओ अनंतहुनो ॥ ८ ॥ गुरुदुक्तस्स अंनिवारण जं जलं गलियं तं जगतलाईसमुहमा गवि होला ॥ ९ ॥ आवीयं पणछीरं सागरसलिला बहुचरं होता। संसारंमि अनंते अबलाजोणी एकाए ॥४०० | सत्ताहरिवनकुहियसाणजोगीए मज्झदेसंमि किमियत्तण केवलएण जाणि मुखाणि देहाणि ॥ १ ॥ तेसि सत्तमपुटीए सिद्धिखेनं च या उक्कुरु । चोदसर लोग व अनंतभागेणवि भरेगा ॥ २ ॥ पत्ते य कामभोगे कालम इह सवभोगे अप्पू चि मन जीवो तहनिय विसयसोक्खं ॥ ३ ॥ जह कच्छुतो कच्छ्रे कंडुयमाणो दुहं मुणइ सोक्खं मोहाउरा मथुस्सा तह कामदुहं गृहं विति ॥ ४ ॥ जाणंति अणुभवंति य जम्मजरामरणसंभवे दुक्खे न य विसएमु विरजति (गोयमा) दुइगमण पत्थिए जीवे ॥ ५ ॥ महाणं पभवो महागही सदोपायट्टी कामग्गहो दुरप्पा जेणऽभिभूयं जगं स (तस्स बर्स जे गया पाणी ) ॥ ६ ॥ जाति जहा भोगिदिसपया हमेव धम्मफलं तहवि दढमूढहियए पार्क काऊण दोग्ाई जति ॥ ७ ॥ चबइ खगेण जीवो पित्तानलाउसिंलो मेहि उज्जमह मा विसीयह तस्तमजोगो इमो दुल्हो ॥ ८॥ पंचिदिवत्तणं माणुस आयरिए जणे सुकूलं साहसमागम गुणणासदारोगा ॥९॥ हिसिविमूइयपाणियसत्यग्निसंयमेहिच देहेतरसंक्रमण करेह जीवो मुहतेण ॥ ४१० ॥ जावा सावसेस जा अथ पवसाओ ताव करेज अप्पहियं मा तपिहहा पुणो पच्छा ॥ १ ॥ सुरधविखणदिनसंझाणुरागसिमिणसमं देहं इति तु विल मम्मय व जलभरियं ॥ २ ॥ इय जाव ण चुकसि एरिसस्स सणभंगुरस्स देहस्स उगं करूं पोरं चरतु वर्ष नत्थि परिवादी ॥ ३ ॥ गोयमोनि 'नाससहस्संपि जई काणं संजमंड अंकिलभाव नत्रि सुज्हाइ कंडरी ॥ ४ ॥ अप्येव काले के जहागहियसीलसामना साहंति निययक पॉडरियमहारिसिव जहा ॥ ५॥ ण अ संसारमि गृहं जाइजरामरणदुक्खमहियस्स । जीवस अस्थि जम्हा तम्हा मोक्यो उवाएओ ॥ ४१६ ॥ सबपयारेहिं सहा सबभावभावतरेहिं णं गोयमोति बेमि । महानिसीहसुयक्त्वंचस्स उमज्झणं गीयत्यववहारं नाम सम ६ ॥ भयवं ता एबनाएणं, जं भणियं आसि मे तुमं (जहा) परिवाडीए (त) किं न अक्खसि पायच्छितं तत्य मज्झवी ॥ १ ॥ हवइ गोयम पच्छिलं, जइ तुमं तमालबसि। नवरं धम्मनियारी ते कओ सुविधारिओ कुडो ॥ २ ॥ ण होइ तस्स पच्छिलं पुणरचि पुच्छे गोयमा संदेहं जाय देहत्वं मिच्छतं नाव निष्ठयं ॥ ३ ॥ मिच्छतेवि अभिभूए, तित्ययरस्स विभासियं । वयण लंघितु विपीय वाताणं पविसंति ॥ ४ ॥ (पोस्तमतिमिरबद्दलधारं पाया) व सुविधारि कार्ड, नित्ययरा सयमेव य भनिनं जहा चेव, गोयमा समए ॥ ५ ॥ अयेगे गोयमा पाणी, जे पवजिय जहा तहा अविहीए वह परे धम्मं, जह संसारा ण मुखए ॥ ६ ॥ से भययं कमरे में से विहसीलोगो ?, गोयमा इमे णं से विहीसिलोगो, जहा चिद परिक्रमणं, जीवाइतत्तसम्भावं समिईदियदमगुत्ती कसायनिग्गणमुनओगं ॥ ७ ॥ नाऊण सो बीसत्यो सामाचार किया लोयनीसो आगन्या परमसंविग्गो ॥ ८ ॥ जम्मजरमरणभीओ पडगइसंसारकम्मदहना पइदियहं हियएणं एवं अणवस्य सायंतो ॥ ९॥ जरमरणमयणपरे रोगकिलेसाइबहुहितरंगे कम्मडुकसायागाहगहिरमयजलहिमसंमि ॥१०॥ भमिहामि भट्टसम्मत्तनाणचारितलवरपोज कालं अणोरपारं अंतं दुक्खाणमलमंतो ॥ १ ॥ ता कइया सो दियो जत्थाहं सनु११५७ महानिद मुनि दीपालसागर ➖➖➖➖➖➖ अत्र सप्तमं अध्ययनं/(चूलिका-१)- “एकांतनिर्जरा” आरब्धः ~305~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy