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________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदस ------- अध्ययन [३], -------------उद्देशक ----------- मूलं [१७] +गाथा:||८०||------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत सूत्रांक [१७]] गाथा ||८०|| इडीपवित्परे सयलतियणाउलिए। साहीणे जगमणसाचि जे खर्ण लम्हे ॥८॥ सेसि परमीसरिय कासिरीवण्णवलपमाणं च। सामवं जसकित्ती सुरलीगचुए जहेह अवयरिए ॥१॥जह काऊमऽसमये उम्गत देवलोगमणुपते। तित्यपरनामकम्म जह पदंएगाइचीसइचामेसु ॥२॥जहसम्म पर्स सामनाराहणा य अन्नभये। जह तिसलाओ सिदत्यपरिगीचोचसमहासमिणलों ॥३॥जह सुरहिगंधषकरखेन गम्भवसहीए असहमपहरणं। जह सुरनाहो अगुहपमनसियं महंतमत्तीए ॥४॥ अमयाहार भत्तीए देड संधुणहजार व पत्रो।जह जायकम्मविणिजोगकारियानो दिसिकुमारीओ॥५॥सर्व नियकत्तर्ण निमत्ती जहेव मत्तीए । बीमपुरवारिदा गरुवपमोएण सन्चरिबीए ॥६॥ रोमंचकंचुपलड़य| मत्तिम्मरमात्रयस्सगत्ता ते। मते सकयत्वं जम अन्हाण मेकगिरिसिहरे ॥७॥होही खममालियबसरगंभीखंदुहिनिघोस। जयसहमहलमंगलकयंजली जयवीरसलिलण ॥८॥ बहसुरहिगंधवासियकंचनमणितुंग(स्यण)कोहि । जम्माहिसेवमहिमं करेंति (जह) जिनपरो गिरि चाले ॥९॥ जहद वायरणं भय वायरस अहरिसोचि । जह गमन कुमारनं (परिणे मोहिति)जह व लोगंतिया देवा ॥१०॥जह क्यनिस्त्रमणमई करेंति सो सुरासुरा मुश्या। जह अहियासे घोरें परीसाहे दिवमाणुसतिरिच्छे ॥१॥जह पणपाइचाक (कम्म) या पोरतवाणजोगबनीए। लोगालोमपयासं उपाए जहर केपलं नाणं ॥२॥ केवलमाहिलं पुणरवि-काऊर्ण जाह सुरासुराईया। पुति संसए धम्मणी इतमचरणमाईए ॥३॥ अहम कह जिणिको सुरकयसीहासणोचविट्ठो यातं चविहदेवनिकायनिम्भियं, जह पवरसमवसरणं, तुरियं करंति देवा, जं रिदीए जग तुलइ ॥४॥जस्थ समोसरिजो सो भुवणे गुरू महायसो अरहा। अहमहपाडिहेस्यसुचिंधियं हवा य तित्वियं नामं ॥५॥जह निडला असेस मिळतं चिकणपि भवान। पडिबोहिऊण मग्गे ठवे जहमणहरा दिक्वं ॥६॥ मिहंति महामइणो सुत्तं गंयति जहर य जिनिंदो। भासे कसिणं अत्यं अर्णतगमपजहिं तु आजह सिझा जानाहो महिम निशाणनामियं जय। सोवि मुरवरिंदा असंभमे वह विमोचंति ॥८॥ सोमत्ता पगलंसुपोषगडयलसरसाइपबाई । कलुणं विलापसदंदा सामि! क्या अचाइत्ति ॥९॥ जह-सुरहिर्गधगम्भीपमहंतमोसीसचंदणदुमा। कडेटिविहिपुर सकारं सुरवरा सये॥१०॥ काऊ सोगत्ता सुबे बसविसिपहे पलोयंता । जह खीरसागरे जिणवराणं (अट्ठी) पक्वालिऊणं च॥१॥ सुरलोए नेऊणं आलिंपेऊण पवरचंदणरसेणं। मंदारपारियाययसयपत्तसहस्सपत्तेहिं ॥२॥जह अचेऊण सुरा नियनिवभवणेसु जहवय पुर्णति ( सई महया चित्वरेण अरहंतचस्यिाभिहाने) अंतकटदसाणं तं, मज्झाउ कसिण विजेयं ॥३॥ एत्वं पुणजे पर्यवं मोतुं जइमणेज तावेयं। हह असंबद्धस्य गंयस्तय वित्थरमणतं ॥४॥ एयपि अपत्यावे सुमहतं कारणं समुबई । जं वागरिय से जाण मनसत्तामऽणुग्णहवाए ॥५॥जह वा जत्तो जसो मक्लिगइ मोयगो सुसंकरित्रओ। तत्तो तत्तोचि जणे अगुज्यं माणसं पीई ॥६॥ एवमिह अपत्याधि मत्तिभरनिम्मराण परिजोस। जणयह गुरुयं जिणगुणगहणेकरसक्खित्तचित्ताणं ॥७॥एवं तुजं पंचमंगलमहासुबक्खंघस्स वक्तार्ण वं महया पर्वणं अर्णतगमपनहिं सत्तस्स य पिहभूयाहिं निनुत्तीभासचुणीहि जब अणतनाणसणधरेहि तित्पयरेहि वक्लानिय तहेच समासओ बनसाणिज्जतं आसि, अहमया कालपरिहाणिदोसेणं ताउ निजुत्तीभासचुभीजो वोच्छिबाजो।१६।जो यवतणं कालसमएणं महिझ्दीपत्ते पयाणुसारी बइरसामी नाम दुवालसंगसुयहरे समुप्पो, तेणेयं पंचमंगलमहासुपसंचरस उद्धारो मूलसुनस्स मजमे लिहिजओ. मूलमुत्तं पुण सुत्तत्साए गणहरेहिं अत्यत्ताए अहंतेहिं भगतहिं धम्मतित्वगरेहि तिलोगमहिएहिं वीरजिणिदेहि पन्नवियति एस वुझ्दर्सपयाओ।१७। एत्य यजत्य पर्वपएणाणुलन सुत्तालावर्ग म संपजा तस्य तत्व सुयहरेहिं कुलिहियदोसो न दायोति, किंतु जो सो एयस्स अविचिंतामणिकप्पभूयस्स महानिसीहसुयक्बंधस्स पुवायरिसो आसी नहि क्षेत्र संडाखंडीए उडेहियाइएहिं अहिं बहने पत्तगा परिसड़िया तहाचि अचंतसुमहत्याइलयति इर्म महानिसीहसुपक्स कसिणपत्यणस्स परमसारभूयं परं ततं महत्यति कलिऊणं पश्यपच्छउत्तर्ण बहुमत्रसच्चोपचारिक कार्ड तहा बावहियद्वयाए आयरियहरिमदेणं जक्स्यायरिसे बिईत सर्व समतीए साहिऊण लिहियंति, अजेहिंपि सिबसेणदिवाकर बुबवाइजक्ससेणदेवगुत्तजसकालमासमणसीसरविगुत्तणेमिर्चवजिणदासमणिलमगसबसिरिपमुद्देहि जुगप्पहाणसुयहरेहि बहु मन्नियमिणति। १८ा से भयवं! एवं जदुत्तविणओपहाणे पंचमंगलमहासुपपसंचमादिविता पुषाणुपुबीए पच्याणपुचीए अजाणुपुत्रीए सरवंजणमत्तावितपयक्वरविसुर्व चिरपरिचियं काऊणं महया पर्यवेण सत्तत्यं च विनाय वओपन किमहिनेगा?, गोयमा ईरियावहिय, से भय के अद्वेण एवं सुचा-जहा गं पंचमंगलमहासुवासंघमहिमित्ताणं पुणो ईरियावहिर्य अहीए?, गोयमा! जे एस आया से जया गमनागमनाइपरिणामपरिणए जगजीवपाचभूषसत्तार्ण अणोवउत्तपमते संपदणजपदावणकिलामण काऊणं अणालोइयनपटिकते चैव असेसकम्मतबहयाए किंचि चितवदणसझायज्माणाएस अमिरमेजा क्या से एगचित्ता समाही मवेजा ण वा, जओ णं गमणागमणाइमणेगमवावारपरिणामासत्तचित्तयाए केई पानी तमेव भातरमच्छ११२९ महानिशीपच्छेदसूत्रं unav-2 मुनिदीपरतसागर दीप अनुक्रम [५६२] ~277
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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