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________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [१९] + गाथा ||१०६|| दीप अनुक्रम [५६२] “महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं ) अध्ययन [ ३ ], उद्देशक [-], - मूलं [१९] + गाथाः || १०६ || - मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं - .......... अत्र "वर्धमानविद्या" एवं तत् आराधना विधि प्रस्तुता - ह्रिदय दुज्यसिए भिकाल विर(व) लेजा ताई तस्स फले विसंवादमा, जया उन कहिच अन्नाणमोहमायासेन सहसा एगिरिवादी संघट्टणं परियाणं वा क माछा बुद्ध रूपमन्देहिं पणरागदोसमोहमिच्छत्तअन्नादि अपिरलोपचचाएहिं कूरकम्पनिधिहिति परमसंवेगमावन्ने सुपरिट लोहता नं. दिसा गरहाणं पायच्छित्तमनुचरितार्थ गीसले अमाउलचिते अम्मा कषि आयहि चिदमाइ अनुजा तथा तप चेन उपने से वेला जया से तयत्ये उनसे नवे तथा तराणं परमेग्गचित्तसमाही इवेजा, तथा चैव सजीव पाणभूपसत्तानं जफिलसंपत्ती मजा ता गोधमा अपकिंताए ईरियापहिचाएन कप्प कार्ड किंचिचेहापायं फलासायमनिकंयुगाणं, एएवं अगं गोयमा एवं पुबह जहा गं गोयमा समुत्योभयं पंचमंगलं चिरपरिचियं का तो इंरियासहि १९ से पराए नहीए मरियमही गोषमा जहां पंचमं २० से भयमिरियामिति किमहिने मा सत्ययायं चेदविद्वानं वरं सत्ययं एमेषमेणबत्तीसार आवहिं अरहंतत्वयं एगेण पडत्ये पंचाई आनि उपसत्ययं एमे उन एगेग येणं पणवीसा चिलेात्पर्य एमे चडत्ये पंच आविलेहिं एवं सरपंजणमताविंदुपयच्छेयपयक्खरविमुर्द अधिवामेलियं अहिजिताणं गोषमा त कसिणं सत्यं विन्देयं जत्थ संदेश पुणो २ बीमंसिप गीसंकमधारेऊ संदेहं करिजा । २१ एवं सुत्योभयत्त विदाइ चिहान अहिलेता तो सुपसत्ये सोने तिद्दिकरणमुत्तनक्लजोगलग्गससीबले महासत्तीए जयगुरूणं संपाइयपूजक्यारे पहिलाहियाहुम्मेण य मतिमरनिग्भरेण रोमंचकंचुयपुलमाणत सहरिसविसिवणारविन्देणं सदागवि बेगपरमचेर लगियपणरागदोसमोहमिच्छत्तमलक मुनिम्लविमलशुभशुभ परऽणुसमयसमुततमुपसत्य ज्यावसायगएणं भूषणगुरुजिदपदिमाविणिवेसियणपणमाणसे अनन्यमाणमेगाचितयाए पन्नोऽहं पुन्नोऽहंति जिणनंदासीकयजम्मोति मन्नमा चिरयकरकमलंजलिना हरियाणवीयजंतुविरहियभूमीए निहिजोमयजाणुणा सुपरिचिणीसंकीय हत्यत्तयोभयं पर पर मामा चरितसमयन्युपमावाइ अगगुणसंपवेएर्ण गुरुणा सद्धिं साहसाणीसाहम्मिय असे सर्वपरिचापरिचरिएणं चैव पढमं चेइए दियो तथनंतरं च गुणड्डे व सागोनहा सामियजणस्स में जहासतीए पणिवायजाणं मुहमम्ययमयचोरवयत्यपयानाइमा मामा का एयावसरंमि सुवियसमयसारेण गुरुणा पचेर्ण अक्लेवनिक्ले वाइएहिं पर्वधेहि संसारनिपजणणं सदासगुप्पावर्ग धम्मदेसणं काय २२। ओ परमस दावेगपरं नाऊ आजम्मानि पदाय जहा में सहलीमुलद्मगुस्सभवा भो भो देवामुनिया तर अजयमिए जीवतिकालियं अणुदिनं अतापलेयाचित् एवं इणमेव भो मनुयत्ता असहजसासपणमंगुरा सारंति, तत्य पुत्रहे साथ उदगपाणं न काय आहए साहू व बंदिए, नहा मा तान असणकिरियं न का जाए दिए, तहा रहे चैव तहा काय जहा अदिएहि चेहिं जो सझापामइमेजा । २३ एवं चाभिग्गहबंध काऊन जावजीचाए, ताहे व गोमा इमाए बजाए हिमंतिया सत्त गंधमुडीओ तस्युत्तमं नित्यारगपारगो भवेना सितिउचारेमाणेण गुरुणा सेवाओ, अम्णम भगवो रह ह भए भगवती महाविज्ञाए मजाए जब एनईएमआईए जय जय जयअंतर अपरआजहए आहा, उपचारी पत्ते साहिज, एयाए बिलाए ओ नित्यारमपारगो होइ. उपद्वावणाए वा गणिस्स वा अणुन्नाए वा तत बारा परिजदेवडा नित्यारगपारगो होइ, उत्तमपडिवणे वा अभिमंतिज जराहो भव, वयविनायगा उपसमंति, सूरो संगामे पवितो अपराजिजो न कन्पसमतीए मंगलवणी महणी व २४ वहा साहसाहुनीसमासगसढिगासेसाससाइम्मियजनचटत्रिपि समणसंयेणं नित्यारमपारगो नवेजा, पण समसलखणोऽसि तुमति उचारेमाणं गंधमुडीओ वाओ, तो जगगुरूणं निर्भिदाणं पूएगदेसाओ गंधदामिलाननिहाय सत्येणोभयसंचेसुमारीवयमाणं गुरुगा नीसंदेहमेचं भानिय जहा मो मो जम्मंतरसंचियस्यपुन्नपप्यार! मुलमुत्तिमुसलमनुषजम्म! देवाणुपिया इयं च नरपतिरियगइदारं तुति, अधगोय जयस फित्तीनीयागोत्तकम्मविसेसाणं तुमति, भक्तरगयस्सावि उ इदुलही उज्झ पंचनमोकारो भाविजम्मंतरे पंचनमोकारपमाजो जत्थ जत्थोवा तत्थ तत्युत्तमा जाई उत्तमं च कुलरुवारोग्यसंपयति एयं ते निच्छो भवेजा, अन्नंच पंचनमोक्कारणभावओम भवइ दासतं न दारिददोहाहीणजोगियतं न विगलिंदियत्तति किं बहुए ? गोयमा जे केई एयाए विहीए पंचनमोक्कारादिमुयमाणमहिजित्ताणं तपत्यानुसारेणं पयओ सावस्सगाइणिचाणु विजे अङ्गारससीलंगसहस्सेम् अभिरमेजा से नं सरागताएं जनं निघुडे ती वेत्तरादी चिरममिरमेडगे उत्तमकुलप्पमूई लिगसुंदर सबकलापत्तनम गाणं११३० महानिषच्छेद असर ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ ~278~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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