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________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [२३९९] दीप अनुक्रम [२३९९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... “पंचकल्प” – छेदसूत्र- ५ / २ ( भाष्य ) भाष्यं [ २३९९ ] [ ३८ / २ ], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं ....आगमसूत्र किंचुक्करेह ? । बेयावचगमागम काले चिंतादि द य ॥९॥ सीसो आयरियस्स उ वेयायचं तु कुणइ जाजीयं जहिं गच्छ तहि यच्चति पेलेइ व जन्म तहिं जाइ || २४०० ॥ क समासमप्येति कयो ऊ नाणादीहिं गुरुणाऽयि ॥ १ ॥ दवे सवितालाभो सीसम्स जो नहिं होति सोचि व जावळीचे सो गुरुयो उ आमचति ॥ २ ॥ कुणी पाढिच्छषि यायचं तु असणमादीहिं वचय पमाणे काले रोयती जाय ॥ ३ ॥ गेण्ड वा जाव ता कुमाई सक्षमेव पाडिच्छो एसो दो बोउं जं आभवती पाडच्छे ॥ ४ ॥ ] होइ नालब अभिसंपात वर्ग एति संदेसविष्णगं वा नामे विधेयकाले य ॥ ५ ॥ वीनंतर संतर अनंतरा उजगा इमे होति माता पिता व भाता भगिणी तो यया ॥ ६ ॥ मातुं माया य पिया भाता भगिणी व एक पिउणोऽवि माउभगिणीचा पूतायुतानपि तव ॥ ७ ॥ पारंपरडि एसा जइ तं धारे पच्छिमस्लेव अह जो जमाती सुगुरुण तो उ आभा ॥ ८ ॥ संगारो पुत्रको पच्छा पाडिन्छओ सो जाओ। तेन निवेदेय उपहिता पुत्रसेहा मे ॥ ९ ॥ एवएहि दिहिं उम्म समासे अवस्स एहामो संगारी एवं कतो विचाणि यसि चिंधे ॥ २४१० ॥ कालेन य चिंधेहि य अभिसंवादीहिं तस्स गुरुणिह कालम्मि विसंबदिए पुच्छिति किं न आओ सि ? ॥ १ ॥ संगारिदिवसेहिं जलादि दीपति तो उ। तस्सेष अह तु भाषो चिपरिणओ पच्छ पुण जाओ ॥ २ ॥ ना होइ गुरुसेव तु एवं सुयसंपदाए भणितं तु दुपमे एतो ला पवक्यामि ॥ ३ ॥ बट्टसु मम सहदुक्ले अहमचि उभे तु एवमुवसंचे पुरपच्छया ऊसो लभती जे य चाची ॥ ४ ॥ तुहदुक्लसपएसा एतो खेलोक्संपदं वोच्छ। खेतोग्गहो सकोसं बाधाए वा अको तु ॥ ५ ॥ पत्ते उम्मद साहारणे य वासे तब उपदेसदासको निशायारण पत्ते उ ॥ ६ ॥ अविजयावाघाने एमत्तिचउनुं वा । होल अकोसो उम्महों अरुणा साहारणं चोच्छे ॥ ७ ॥ साहारण होजाही पढिलेणपुपच्छनिगमणे । पुण्यं पच्छा पत्ते आयरिए सभजजामु ॥ १६६॥ ८ ॥ दुगमादीगच्छा पहिले गणि म्याण सम तु पत्ता लेर्स एसो पदमगमंगो मुणेयः ॥ ९ ॥ सम निम्गम एके पच्छा पत्ता व चितियो मंगो पच्छा निग्गय पुष्वं पवि पच्छा य दुहतोचि ॥ २४२० ॥ पदमगभंगे जो खलु पुचि तु अणुवेति ते खेती समर्ग पुणऽणुन्नचिए सामर्थ होइ दोहपि ॥ १ ॥ वितियगभंगे दप्पेण पुच्चि पत्ता उ ज णऽगुणवंत इयरेसि असदान य अणुनातं तु ॥ २ ॥ पुरनिग्मता कहं पुण पच्छा पत्ता उ ते हविज्जाहि ? गेलणमगपारणचापात अंतर हृषिजा ॥ ३ ॥ गेण्णवाउलाणं तु खेत्तमण्णस्स णो दए। निसिदो समजते तन सम्मती ॥४॥ अंतरवापाएणं पच्छा पत्ताण पुच्चि जे पत्ता असदेहिं अनुन्नवितं पुष्वि पत्ताण तं खितं ॥ ५॥ अह समगमणुनदिए काउ पमादपि तो उ साहारं एवं तु नितियभंगो अरुणा ततियम्मि वोच्छामि ॥ ६ ॥ पच्छावि परिचयाणं सभावसिम्यगतिणो भने खेतं एमेव व आसने दूरदाणा व पत्ताणं ॥ ७॥ भंगे पउपगम्मी पुत्राणाएं असदभावाणं पदमगमंगसरिच्छा आभचणा तत्थ नायज्ञा ॥ ८॥ पुत्रमहिषि उम्महों होति मिलापड़ताए जहियत्रो अह होखा संचरणं कालक्खेवो दुपक्लेषि ॥९॥ पुण्यतिखेसीणं जह आगच्छे मिलाइसणे जइ दोह असंचरण तो निम्गमो सियाणं तु ॥ २४३० ॥ अह दोषि संघरण दोहिवि इच्छति जा गिलाणी उ एते व दुि पक्खा अवा समणा व समणीओ ॥ १ ॥ मिलाण उनही किया भत्तोपहिताऽपिग्मिहितं ती परखे साहमियतेशिया तिविहा ॥ २ ॥ उनही निवडी माया मिलाणणिस्साएं विजमा छ ति खिते मत्तोहिताए ॥ ३ ॥ उनि सुंदरा लाणिपीएं एति तो तत्थ इतरेष मिळाणोजीका त ति खेलाउ ॥ ४ ॥ तेसुं तु निम्बए सवितादीतिविह गेहे तं तेसि होति तेष्णं पच्छिमेव तिहिं तु ॥ ५॥ जे पुण असंपता ऐति नहि सिमा नवे मेरा आयरियपसमा चैव चोच्छे समासेणं ॥ ६ ॥ अच्छेति संचरे सच्चे सभी नीई अपरे जत्य तुला भये दोषि तत्थिमा इति माणा ॥ ७॥ निष्कण्ण तरुण सेहे लुंगियपालनासकरकण्णा एमेव संजणं परं बुड्ढी मा [] ॥ १६८॥ परिवार अणिफनो अच्छति निष्कणतो निम्गच्छे अच्छेति बुद्ध तरुणा यमिति सेहे असेहि ॥ ९ ॥ (मिनि) अच्छेति जुमिता तु गितियरे अजुमिता दोषि थाइला अच्छे अच्छे समणीण तरुणीओ ॥ २४४ ॥ समचाण य समणीय अच्छी संजईड नियमेणं जेण पचवाता अणुकंपा तेण समणीणं ॥ १॥ संधारे मनसंतुडा, तस्स लामम्मि अप्पभूतिमादीएवं स्यंति खित्ती ण ते जेसिं ॥ २ ॥ दुपमादगाणं खिते साहारणम्मि पवित्रे अप्पत्तियपहित्यया ( इ ता )ए मेरा इमा तत्थ ॥ ३ ॥ अस्थि बहु बसभगामा कुदेसनगरोपमा सुहविहारा बहुगच्छ्रयकरा सीमच्छेदेन बसियन्वं ॥ ४॥ आयरियउपज्झाया दुहिं निहिं सहिया पंचओ गच्छ एवं तु गच्छा तिथि उदुमदे संघरे जय ॥ ५ ॥ वासा तिउजुया आयरियनज्म सत्तओ गच्छो एव तु गच्छा तिमि उ बासागुं संयरे जत्थ ॥ ६ ॥ कालयनिवि एवं जहण्णय होइ बासखे तु बलीसं तु सहस्सा मच्छोउकोस उत्समम्मि ॥ ७॥ बहुगच्छ्रयकरा एत्तियमेत्तान जत्थ संघरणं ऊमा अणुवमाहिता सीमच्छेद अओ वोच्छं ॥ ८ ॥ तुमतो मह चाहिं तुम सचित्तं ममेतरं वाचि १११०] कल्पभाष्यं - ---------- ~ 257 ~ -
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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