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________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------------- भाष्यं [०८९६] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प” संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [०८९६] AMAVARNER दीप नजिगरजउयहीहि गणिते होम संसा जहकमे तु ठाणा | स०५८॥६॥ दो चेव सहस्साई ससर्व चेव जस्स उस सो जापती विसोहि उपधातं बावि जिणकरपे॥७॥le दो ठाणसहस्साई पंचेव सयाई होति वीसाई। सोजागती विसोहिं उपधातं चाविषेरार्ण ॥ ८॥ यत्तारि सहस्साई पंचेव सयाई होति पणाई। सो जाणती पिसोहि उपघातं येन अजाणं ॥९॥ एसो उ सोलसचिहो जजीवकप्पो समासतो मणिनो। एनो य मीसकप्पं बोच्छामि अहाणुपुत्रीए ॥९००॥ एतो छहिं सोलसहि य दोहिवि निष्पजवी तु जो कप्पो। दुगसंजोगादीओ सधो सो मीसओ कप्पो ॥१॥ पवावण मुंटावण सिक्लोपडे य भुंज संचासे । एते उपणायचा आहारुबहादि सोलसयं ॥२॥ दुगसंजोगादीया सवित्तचित्तमीसकप्पाण। पत्तेय मीसगाबिय णेयच्या जाणुषचीए॥३॥ ययाये मुंडावे पकाये पेय वय सिक्खाये। पय्यावे उवठावे पथ्याचे पेष समुंजे ॥४॥ पथ्याचे संपास एवं मुंडायणा हुचरिमेहि। णेया। दुगसंजोगा एवं सेसायि संजोगा ॥५॥ विचउपणछकजोगा एते सबित्तदपियकप्पम्मि। पत्तेयं संजोगा एनो अचित्त पोच्छामि ॥६॥ आहारे उबाहिम्मि य आहार नह उपस्सए वेव। एवं जाणक्सछेदण ता आहारेण चारेजा ॥ ७॥ एवं अपसेसासुचि उवधावीएसु उपरि उवरितु । गेया बुगसंजोगा जा पच्छिमो सूयिणहछेदो ॥८॥ एमेव सेसगावी तियगाईयापि सवसंजोगा। णेया जा सोलसगो एते पत्तेय अचित्ते ॥९॥ चित्तेतराण होण्हवि एत्तो संजोगता मुगेयवा। मीसगकप्पे या दुगमादी सनसंजोगा ॥९१०॥ पप्या आहारंपि देड पच्चानिएऽपि उबहिं च। पच्याचे उपस्समर्ण एवं जखठेवणं जाच ॥१॥ एतेण कमेणेवं दुगतिगमाची तु सब्बसंजोगा। बच्चा जा पच्छिमा बावीसमो होइ संजोगो ॥२॥ एतेसि सम्वेसि संखाणवणम्मि आणणोचाओ। पत्तेयमीसगाण य इमो तु कमसो मुणेवव्यो ॥३॥ एगादेगुत्तरिया पदसंखपमाणओ ठवेयव्या। गुणगारमागहारा तेसि हेडा उ बिसरीया ॥४॥ पदम रूर्व गुणए भागं च हरे हवेज जलद । तम्मिचि पहिरासितगुणितमाइए जं भये लवं ॥५॥ एवं ठाणं ठाणं पतिरासियाणितभजियलदाई। एगादीसंजोगाण होति संख. प्पमाणाई ॥६॥ एकादीसंजोगाण होति एवं तु सपखणं दिई । एते सधे मिसिता तेसहि होति संजोगा ॥७॥ एकगसंजोगादिसु उप्पजने उ जत्तिया मंगा । तेसि संसाणवणे करणं तु इमं मुणेया ॥ ८॥ एकागसंजोगाविम जत्तियमित्ता हर्षति ठाणा उ। तत्तियमेत्ता दुयगा ठायेयका कमेणं तु ॥९॥ पढिरासिय पडिरासिय अण्णोषणेणाऽम्भसाहि ते दुयगा। जावं तिई ताणं गणिएवं जाम सखा ॥ ९२०॥ एकगसंजोगादिसु एकेके भंगसंख सावतिया। सञ्चिय एकादीहि पुणरपि संजोगसंगुणिता ॥१॥ पत्तेय पत्तेयं एकागमादीण समजोगाणे । सा होति भंगसंखा जहकमेणं मुणेवा ॥२॥ कह भंग भवतेय? भण्णति दिक्लेक अब बहुया उ।मुंडाचमादि एवं दुतिचउमंगारिचारणिया ॥ ३॥ पश्यहेतु नहिय पत्यारो होति पत्थरेयो। इमिणा उपसणेणं तमहं पोई समासेणं ॥४॥ भंगपमाणायामो गुरुओ लहुओ य अक्सपिक्सेनो। मत्ता दुगुणा गुणो पत्यारे होति णिसेवो ॥५॥ एवंनाच परथरिए पिळसु एकादिए उ संजोगे। जे जत्व उणिवर्टति पवस ते नहि सन्ने ॥६॥ उकगसोलसगाणं जीवमजीवाण दोण्ह कप्पाणं । एकगसंजोगादीण संसपमाणं इमं होति | ॥ ॥छ बेग्य पण्णरसा पीसा पण्णरस उक एकोया एकगसंजोगादी विहसचित्तकम्पम्मि ॥ ८॥ सोलस कीसं च सय पचेर सवाई होति सहाई । अवारस पीसाई नेवाले असहाई ॥५॥ अव सहस्साई अहियाई अजीयउडम्मि । एकारस य सहस्सा चत्तारि सपा तहा चत्ता ॥९३०॥ पारस बेच सहस्सा अडेय सया उसत्तरा होति। अहमसंजोगम्मिपि उकमतो एप जानेको ॥१॥ सचिनदवियकप्पो तेपदी हो सासंजोगा। पंच सता पणतीसा पण्णाडि सहस्स अबिते॥२॥ सचिसअथितार्ण एवं भणिया नुसब्यसंजोगा। पत्तेयं पत्तेयं 4 एनो मीसाण वोच्छामि ॥३॥ अधिनायकवे संजोग पिहप्पिहे ठवेतृण । जितकापेक्कगसंजोग गुणित तेसि फलमिर्ण तु॥४॥ उण्णउति संजोगा दुगसंजोगश्मि मीसए कप्पे। सन सता पीसहिगा तिवसंजोगाण बोदवा ॥५॥ तिनीसं चेव सता सहहिया नू चउकसंजोगे। दस चेच सहस्साई गव वीसहिया य पंचमए ॥६॥ उत्ती(जी) सहस्साई दो बेवसताई अमहियाई । अडयाले च सहस्सा अढताला होति सचमए॥७॥ अद्विसहस्साई उचेष सताई होति चत्तारि। सननरिं सहस्सा दो व सया भये बीसा ॥८॥ एमेव उकमेणवि गवमाउ परेण हॉति योदया। उन्हती जासोले छचेच पदा मुणवत्रा ॥९॥ एवं पण्णरस यवीस यपीसएण पणरस छकएकेण। पत्तेय पत्ते गुणिएणं रासिणो मुणसु॥९४०॥ होणि सता यत्नाला अहार सया य हानिणापव्या । जहु सहस्सा उसय ततिए मीसम्मि संजोगा ॥१॥ सत्तावीस सहस्सा विपिण सता येय होति णायया । पण्णद्विसहस्साई पंच नया वीस अहिया य॥२॥ एकं च सयसहस्सं पीस सहस्सा सर्व चवीसहियं । एकात्तरि सहस्सा लाखेको उस्सता चेव ॥३॥ एकच सतसहस्सं तेणउन सहस्स नह व पण्णासा। उकमनो सत्तेव य ठाणाई सतोय पण्णरस ॥४॥ तिणी सता तु बीसा दोणि सहस्साई चउसयजुवाई। एकारस य सहस्सा दोषिण सता च णायचा ॥५॥ उनीस सहस्साई चाउरो य सता हवंति णाया। सत्तासीति सहस्सा तिणि सता पेष सहहिता ॥६॥ एकच सनसहस्सं सहि सहस्सा सयं च सदी या दो लक्ला अडवीसा सहस्स अद्वेष व सपाई ॥७॥ दो। १०८२ पजकल्पमाप्यं - अनुक्रम [०८९६] मुनिटीपरतसागर ~229~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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