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________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) ---------- दशा [१०] ---------------------------------------- मलं [४९] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं प्रत सूत्रांक H4tay4Arrav4%Ashev [४९] परकममाणी पासेना से जे इमे भनि उम्मापुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया जाय कि ते मासगस्स सदति, पासित्ताणं निग्गंधी नियाणं करेति-शुक्लं खलु इत्यित्तणए दुरसंचाराई बामतराई जाव सनियसतराई, से जहानामए अंबपेसियाति का अंबाउपेसीयाति या माकुलंगपेसियाति या मंसपेसियाति वा उच्छुलंबिवाति वा संवलिकालियाति वा बहु जणस आसासणिजा पत्थगिजा वि(पी)हणिजा अमिलमणिना एकामेच इत्यिकावि बहुजनस्स आसासगिना जाच अभिलसणिजात दुक्ख खलु इस्थित्तणए, पुमत्तमए साह, जड़ इमस्स तवनियम आप अस्थि अहमविजागमिस्साणं इमाई एयाकबाई पुरिसभोगभोगाई मुंजिस्सामि, सेन साहुणी, एवंखल्समणाउसो ! निर्मायी निदाणे किवा तस्स ठाणस | अणासोश्वपटिकता जान अपटिवजित्ता कालमासे काले किचा अण्णतोसु देकलोएम देवत्साए उपचनारो मति,सेनत्य देचे भवति महिडिबए जाच पता नहेब दारए भवति । जाब कि ते आसमस्त सदाति, वरसणं तहण्यमारस्त पुरिसजायस्स जाप अमविए णं से तस्स धम्मस्स सरणयाए, सेयमवति महिच्छे जान दाहिणगामिए मेराए जाच वाहघोहिए यापि भवति, एवं खलु जाप पडिसुणित्तए । ४९एवं खलु समाउसो ! मए पम्मे पामते इणमेष निम्मये पापवणे जाव कहेच, जसणे धम्मस्म निर्माचे वा निर्माची या सिक्रवाए उपढिए बिहरमाणे पुरादिगिंछाए जाव उदिष्णकाममोगे चिहरिना, से य परकमेजा,सेय परिक्रममाणे माणुसहि काममोगेहिं निवेयं ममोजा, माणुस्समा खलु कामभोगा अधुना अणितिया असासमा सहणपडणविसणधम्मा उच्चारपासपणलेससिंघाणवतपित्तमुकलोणियसमुमचा दुरूबास्सासनिस्सासा दुरूसमुत्तरिसपुष्णा पंतासवा पित्तालवा खेला-8 सबा पच्छा पुरं च अवस्स विपजहमिजा. सति उद देवा देवलोए ने तत्व अण्णेसि देवा देवीबो अभिजुजिय२ परियारेवि अन्यथा पेच अप्पा विउत्रित्ता परिवारति अप. णिनियाओ देवीमो अनिजजिय २परियारंति, जति इमरस तवनियम जापतष सम्भानिय जान पयमपि आगमेसाइमाई एवारूया विचाईभोगभोगाई मंजमाणा बिहरामो, सेतं साह,एवं खलु समगाउसो ! निम्नांचे वा निम्गंधीचा निवागं किया तस्स ठाणरस अणालोइयपडिकते कालमासे कालं किया जाणतरेस देवेस देवताए उपवत्तारो मति -महिदिबएसुजान पभाक्षमाणे, सेणं देवे जय देवं अण्णं देवीं व पेष जाप पवियारेति, सेणं ताजो देवलोगामो भाउक्सएणं न न जाब पुमत्ताए पचायाति जानकितेआसमस्स सदति .तस्स सहप्पगारस्स परिसजायस्सवहारुवेसमगेवामाइणे गाजापपडिसुजा,हंतापडिमुणेजा, सेणं सहजापत्तिएनारोजाणोक्षणसमडे, अभावियेणं तस्सल धम्मस्स सदहणताए०, से भवति महिच्छे शाप दाहिणगाभिए नेहए आगमेस्साए सावभयोहिए यावि भवति, एवं खलु समणाउसो ! तस्स पियाणस्स इमेयारूवे पापफल विधागे जं जो संचाएति केवसिपण्णत धम्म सरहेसए मा पत्तिइत्तए पा रोइलए बा । ५०।एवं स्खलु समकाउसो ! मए धम्मे पाते तब से च परकममाणे माणुस्सएस कामभोगेसु नियंगमजा.माणस्सगा खलकाममोगा अथवा अणितिया ताहेर जाप सति उदंदेवा देवलोगसितेर्णतत्वणोअर्गा देवं मोबसमाजोदेवीमो अमिर्जजियपरिवारैतिअप्पणा व अप्पाणं विउवित्ता परियारेति ता जाइमरस तपनियम तं व सजाव से णं सरडेजा पत्तिएजा रोएना, णो इणद्वे समडे, अमात्यलाई मायाए से भवति, सेजे इमे आरग्गिया आपसहिया नामनियंतिया किग्रहस्सिया जो बहुसंजया जो बहुपतिपिरवा सापागभूवजीवसलेस अप्पणा सचामोसाई पाउंजता अहण ईतको अण्णे इतमा अईन अनायो अणे अजावेया आईन परिवायत्रो अन्य परियायवाजहंन परिपती अग्ने परिपतवाहन उरवेषो जन्मे उपवेबत्रा, एवामेव इत्यिकामेडिं मुथिया गडिया गिडा अज्मोचवण्णा जाव कालमासे कालं किचा जन्मतराई आमुराई किचिसियाई ठाणाई उपपसारो भवति, ततो मुखमाणा भुजो २एलमूल्यत्ताए पचायंति, नैसल समणाउसो! नम्स निदागम्स जावको संचाएनि केवसिपण धम्म सरहितए पा०५१। एवं ललुसममाउसोमए धम्मे पागले जाप माणुस्सगा सहकाममोगा अपना तहेव सेति उदय देषा देकलोयंसि अग्ण देवं अन्य च देवी अमिज़ुजिय २ परियारैति णो अपणा व अप्पाणं विउविय २ परियारेनि, जति इमरस तपनियम तंत्र जाच एवं सल समाउसो ! निग्गंधो या निम्मांधी वा निदान किया अणालोइयजप्पटियते जाब विहरति, से णं तस्व अम्गे देखें अम्माओ देवीओ अभिजिय २ परियारेति, गो जपणा व अप्पार्थ पिउत्रिय २परियारेगिसे गंवानो देवलोमाजो आउलएणं तहेववत्स गईना सदहिजा पनिएजारोएजा, सेजेसीलवयगुणायचेरमनपचनसागपोसहोचवासाई पविजेनानी इणढे समडे,सेक देसणसाचए भवति अधिगयजीवाजीवे जाप अद्विमिंजपेमाणुरागरते जाब एस अहे० सेसे अणद्वे, सेणं एवारूवेगं विहारेज विहरमाणे बरईपासाईसमणोचासगपरिया पाउनासा कानमाले कालं किया अम्मतरेस देवलोगेसु देवेषु देवत्ताए उच्चत्तारो भवति, तएवं खलु समणाउसी! तस्स निदानस्स इमेवाको पावफलपियाने को संचाएड सीलजयगुणषयरमणपक्रयाणपोहोचचासाई पडिजित्तए।५२॥ एवं खलु समनाउसो! मए धम्मे पते पेव सर्व जाप से य परकममाणे देवमाणुस्सएहि कामभोगेडिं ९९० दशाबुतस्कंधच्छेदमूर्व, दसा-10 मुनि परमसागर अनुक्रम [१०६] t .ANP10 ~153~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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